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कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१०) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI
Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.10)
राहण्माणमा बुदाणावादागास बदारजासतमा
वादमखरावण आणानामाण श्री गाउमदावार
जाणारा मादावालामता
आचार्य श्री कैलाससागरसारि ज्ञानामांदिर ।
कोबा तीर्थ मनाव
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मायादार
15
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
(१.१.१०)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र,कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची
आशीर्वाद व प्रेरणा से आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
भी महान
विद्या
प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर
वीर सं. २५३८ ० वि.सं. २०६८ ० ई. २०१२
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १० Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūi Smrti Granthasūci - Ratna 10
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१०
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.10
० ग्रंथसूची निर्देशन समिति ०
मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी)
श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य)
कनुभाई एल. शाह (नियामक)
० संपादक मंडल ०
पं. मनोज आर. जैन पं. शैलेष पी. महेता पं. आशिष आर. शाह
०सह संपादक ०
०संपादन सहयोग ०
पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा
पं. रामप्रकाश झा
डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा
परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल
संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल
० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ०
केतन डी. शाह
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १०
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ
हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची - वर्ग - १ : जैन साहित्य
खंड - १०
आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Descriptive Catalogue of Manuscripts
Preserved in Dēvarddhigaņi Kșamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir
under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
Section - I: Manuscripts' Catalogue — Class - I: Jain Literature
Volume - 10
Blessings & Inspirations Acharya Shri Padmasagarsurishwarji
Published bys Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India
2012
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Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 10
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci
Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.10
Preserved in Dēvarddhigani kşamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra,
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o Copy rights: Reserved by Publisher OVir Samvat 2538, Vikram Samvat 2068, A.D. 2012
OEdition : First
0 प्रकाशन सौजन्य :
श्री भवानीपुर मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर संघ, कोलकाता
OAvailable at:
Shruta Sarita
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublished by:
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org O Price: Rs. 1500/O Printed by:
Navprabhat Printing Press, Ahmedabad 0 ISBN: 81-89177-00-1 (Set)
978-81-89177-41-6 (Vol.10)
+ उपलक्ष श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
की पावन निश्रा में आयोजित श्रीगोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव
के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. २०६८, वैशाख कृष्णपक्ष, अमावस्या, शनिवार, दि. २१-४-२०१२ श्रीगोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, १२, पायधुनी, विजयवल्लभ चौक, मुंबई-४००००३
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योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी
गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
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।। अर्हम् नमः ।।
* मंगल कामना
-
तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार - भाष्यकार चूर्णिकार टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ..
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अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह - संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित - समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. हुए
ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है, जिनका आकस्मिक व अतिदुःखद कालधर्म गतवर्ष जेठ वद-२, ता. १७-६-२०११, शुक्रवार को हो गया. उन्होंने अत्यंत समर्पित भाव से यह कार्य किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबको मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्त्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन - जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत दशम खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री भवानीपुर मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर संघ, कोलकाता एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ.
परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी बोथरा एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है, यह कार्य बहुत ही अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है.
बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान- शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची के खंड ९ से १२ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है.
पद्ममावार सूटि
मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे.
संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है.
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3 सादर समर्पण -
कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के
कर कमलों में...
जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही.
००० मूक व समर्पित, अतिविरल श्रुतसेवक तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी म. सा.
के चरणों में... जिनके अथक परिश्रम एवं कुशल
मार्गदर्शन के फलस्वरूप यह ग्रंथसूची साकार हो सकी.
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आचार्य
श्री पहाराज के कारी व सनि दिन गुण
श्रुतोपासक तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी म. सा. का परिचय तारक तीर्थकर परमात्मा श्रीमहावीरस्वामी की यशस्वी पाटपरंपरा में सुप्रसिद्ध योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज की शिष्य-परंपरा में श्रुतोद्धारक राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर स्व. उपाध्यायजी श्री। धरणेन्द्रसागरजी महाराज के शिष्यरत्न तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी महाराज का चरित्र वर्तमान काल में एक सच्चे निर्विकारी व सन्निष्ठ साधु के रूप में सर्वविदित है. आपश्री का जन्म दिनांक २२/९/१९५२ के दिन गुडा-बालोतान (राजस्थान) में माता स्व. सोनीबाई की कुक्षि से पिताश्री लालचंदजी हीराचंदजी जैन के परिवार में हुआ था. आपका सांसारिक नाम पारसमलजी था. आप बी. एस-सी. तक की लौकिक शिक्षा प्राप्त कर बेल्लारी
(कर्नाटक) में चल रहे पिताश्री के व्यापार में सहयोगी के रूप में प्रवृत हो गये. श्रीसंघ में गुरुमहाराज श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में आयोजित उपधान तप की आराधना में शामिल होकर पूज्य आचार्यश्री के परिचय में आए. इसी अवधि में आपश्री धर्माभिमुख हुए और मानवजीवन की सफलता प्रव्रज्याधर्म में ही जानकर विक्रम संवत २०३७ फाल्गुण शुक्ल सप्तमी के दिन बेल्लारी में पूज्य गुरुदेव की निश्रा में दीक्षित होकर पूज्य उपाध्याय श्रीधरणेन्द्रसागरजी के शिष्य के रूप में मुनिश्री निर्वाणसागरजी जैसे लोकप्रिय नाम से अपना संयम जीवन प्रारम्भ किया. दीक्षा के प्रथम दिन से ही अप्रमत्त भाव से संयमयात्रा शुरु कर अन्तिम दिन तक प्रभु-आज्ञामय संयम जीवन व्यतीत किया. वे नित्य एकासणा अथवा आयंबिल तप किया करते थे, कभी भी खुले मुंह आहार ग्रहण नहीं किया. साथ ही २०-२० घन्टों तक सतत प्रवृत्तिशील रहते थे. बाह्य तप के साथ-साथ स्वाध्याय तथा वैयावच्च उनके जीवन के खास पर्याय बन चुके थे. ३० वर्षों के दीक्षापर्याय में उन्होंने जिस प्रकार श्रुतज्ञान की आराधना की है, वह अद्भुत है. जोधपुर निवासी विरल श्रुतसेवक श्री जौहरीमलजी पारेख को आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में स्थित विशाल हस्तप्रत संग्रह के सूचीकरण के प्रारम्भिक कार्य में उन्होंने हस्तप्रत के पत्र गिनने व आवरण चढ़ाने रूप सहयोग प्रदान किया और आगे जाकर श्रुतभक्ति के आदर्श के रूप में उन्होंने ६०,००० से अधिक हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाएँ १,००,००० फॉर्म में भरकर अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. अपने आप में विलक्षण ऐसे प्रत-दशा संकेत, विशेषता संकेत व प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोकों का संकलन आदि सारगर्भित सूचनाएँ उनकी सूक्ष्मदर्शिता का परिचायक है. इतना ही नहीं, बल्कि आज ज्ञानमंदिर की अधिकांश हस्तप्रतों के आवरण पर लिखी गई प्रत-नामादि संक्षिप्त सूचनाएँ उन्हीं की देन है. छोटी से छोटी सामान्यतः व्यर्थ लगनेवाली अनुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोग में लाना उनकी कार्यकुशलता का विशिष्ट परिचायक था. वीरविजयजी उपाश्रय, अहमदाबाद में स्थित ऐतिहासिक ज्ञानभण्डार में संगृहीत हस्तप्रतों की सूची स्वयं अकेले तैयार कर उन्होंने श्रुतज्ञान के प्रति समर्पण भाव का और एक परिचय दिया. पूज्यश्री ने वर्तमान समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर सर्वप्रथम रोमन लिपि में डायाक्रेटिक चिह्नों से युक्त दो प्रतिक्रमणसूत्र व पंचप्रतिक्रमणसूत्र हिन्दी शब्दार्थ, गाथार्थ तथा भावार्थ के साथ प्रकाशित कराके लोकोपयोगी बनाया. जिसे विश्वभर के श्रीसंघों द्वारा खूब आदर प्राप्त हुआ. इन दोनों पुस्तकों की प्रथम आवृत्ति हेतु पूज्यश्री ने महीनों तक दिन-रात मेहनत कर प्रत्येक अक्षर पर डायाक्रेटिक मार्क स्वयं चिपकाए थे. श्रुतभक्ति के जीवंत चमत्कार भी पूज्यश्री के जीवन में देखने को मिलते हैं. पूज्यश्री की सूत्रों की धारणा शक्ति प्रारंभ में कमजोर थी. खूब मेहनत करने पर भी सूत्रों को पुनः पुनः भूल जाते थे इसी कारण वे संस्कृत, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन भी नहीं कर पाए थे. श्रुतभक्ति का ही प्रभाव था कि बाद में बड़े-बड़े सूत्र भी उनको सरलता से याद रहने लगे थे. हस्तप्रतों में से ग्रंथों की सूचनाएँ निकालने के लिए जहाँ बड़ेबड़े विद्वानों को भी परिश्रम करना पडता है, वहीं पूज्यश्री का ध्यान सारे पन्नों में से जो उपयोगी पाठ होता था, उसी जगह सबसे पहले सहज ही चला जाता था, भले वह पाठ संस्कृत या प्राकृत में ही क्यों न हो! उनके साधुजीवन में नम्रता, सरलता, समता, सजगता, तीव्र जिज्ञासा, निःस्पृहता, प्रभुभक्ति, ज्ञानभक्ति, अप्रमत्त स्वाध्याय, गच्छ-मत के भेदभाव से रहित बाल-ग्लान की सेवा-सुश्रूषा, वैयावच्च आदि दुर्लभ गुण अपनी सोलह कलाओं के साथ खिले हुए थे. प्रत्येक व्यक्ति के लिए। सहायक सिद्ध होना, 'वेस्ट से बेस्ट' बनाना, आरम्भ किए गए कार्य को जी-जान लगा कर पूर्ण करके ही दम लेना आदि अनेक गुणों से वे जीवन के अन्तिम महीनों में उन्होंने २२-२३ घन्टों तक सतत मौन रहकर आराधनाएँ करते हुए शासनदेवता की सहायता प्राप्त की थी. उसकी फलश्रुति के रूप में उन्होंने अत्यन्त चमत्कारी सर्वतीर्थार्हन् सिद्धमहायंत्र का संयोजन किया था.। मोक्षमार्ग के विरल यात्री पूज्य मुनि श्रीनिर्वाणसागरजी महाराज ने अपने संयम जीवन को यशस्वी बनाकर दिनांक १७/६/२०११ को समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. धन्य है, हे मुनिवर आपको! धन्य है, आपके सफल जीवन को! धन्य हैं, आपकी अपूर्व आराधनाएँ, हे मुनिवृषभ! आपके चरणों में हमारी कोटिशः वन्दना ! वन्दना !! वन्दना !!!
श्रद्धावनत . समग्र श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र परिवार
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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के दशम खंड को मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर के द्वि-शताब्दी महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार है, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.
हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था.
सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती है. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार- धन्यवाद दिया जाता है.
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर ज्ञानमंदिर का तन-मन-धन से कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता.
परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का जो उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है वह अत्यंत अनुमोदनीय है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस दशम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री भवानीपुर मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर संघ, कोलकाता के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस दशम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता प्रमुख
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर
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प्राक्कथन
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हो रहे मुंबई, श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव के ऐतिहासिक प्रसंग पर एक साथ प्रकाशित हो रहे रत्न चतुष्टय ९ से १२ में से इस दशम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है.
सूचीकरण कार्य के परिणाम स्वरूप इस बार भी प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतों को अल्प-महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षित सा रख दिया जाता है. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में महत्व की अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बहुत संतोष दे रहा है. प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है.
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें.
जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है.
प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है.
प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु, त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद.
सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें.
- संपादक मंडल
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खंड ९ से १२ के विक
भार ग्रंथसूची खंड
के विशिष्ट सहयोगी
कैलास श्रुतसागर म
धन्यधरा व पुण्यतमा बंगभूमि के जाह्नवीतट पर अवस्थित सुप्रसिद्ध अजीमगंज-मुर्शिदाबाद के धर्मनिष्ठ, संस्कारसमृद्ध, श्री-संपन्न एवं श्रीसंघ सेवापरायण श्रीबोथरा जैनकुल की उज्ज्वल परंपरा में स्वनामधन्य पितामह श्रीमान प्रसन्नचन्द्रजी बोथरा, धर्मनिष्ठ पिता श्री गंभीरचंदजी बोथरा, उनके ज्येष्ठ बंधुद्वय श्री परिचंदजी एवं श्री श्रीचन्दजी बोथरा जैसे जाज्वल्यमान् नक्षत्रसम महानुभावों ने अपना जीवन सफल और यशस्वी बनाया. उसी गौरवमयी परंपरा में देवगुरुश्रुतभक्तिकारक श्री रविचन्द्रजी बोथरा एवं उनकी धर्मपत्नि सौभाग्यशालिनी श्रीमती कुमुदकुमारी ने भी अपने जीवन में अनेकविध शासन प्रभावना व धर्मप्रभावना के कार्य करके वीतराग परमात्मा के श्रद्धासम्पन्न एवं समर्पित सन्निष्ठ श्रावक-आविका के रूप में अपने-अपने नाम को यथार्थ करते हुए स्वजीवन को सही अर्थ में सफल बनाया है, उनके कार्य वास्तव में श्रीसंघ व समाज के लिये कल्याणकारी है.
CA
सुकृतसागर की झलक 76 तृतीय तीर्थकर श्री संभवनाथ परमात्मा के गृहजिनालय का निर्माण, पोरुर (चेन्नई) में मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिष्ठा. विशाखापत्तनम् (आन्ध्रप्रदेश) स्थित श्रीसंघमंदिरजी में कायमी ध्वजारोहण का लाभ एवं अजीमगंज से लायी गयी नयनरम्य व मनोहारी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा का भी लाभ प्राप्त किया. वहीं पर दादावाड़ी के प्रांगण में आपने अपनी मातामही-नानीमां परम सुश्राविका श्रीमती ताराबेन कांकरिया के साथ मिलकर समवसरण मंदिर की संरचना का लाभ लिया. कुंडलपुरतीर्थ (बिहार में) श्री अजितनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की. इस्वी सन् १९९३ में पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मधुपुरीतीर्थ (महुड़ी) से तारंगातीर्थ का छरी पालित पदयात्रा संघ का सुंदर आयोजन किया. पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से कोबातीर्थ के मूलनायक चरम तीर्थपति श्री महावीरस्वामी परमात्मा को रत्नजड़ित स्वर्णहार अर्पण का धन्यतम लाभ लिया. कोबा तीर्थ में ही आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में तृतीय तल पर स्थित आर्य रक्षितसूरि शोधसागर (कम्प्यूटर कक्ष) का सुंदर एवं अनुमोदनीय लाभ लिया है. श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में नूतन श्राविका उपाश्रय का भव्य एवं यशस्वी लाभ लिया है. पूज्य आचार्यश्री की ही पावन निश्रा में उज्जैन से नागेश्वर तीर्थ का ऐतिहासिक छरी पालित संघ का भव्य आयोजन कार्य आपश्री ने पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा पाकर जीवदया, साधर्मिकभक्ति, अनुकंपा,जीर्णचैत्योद्धार, श्रुतसंरक्षण इत्यादि बहुविध सुकृतों की सुवास से अपने जीवन को सार्थक किया.
आपश्री ने जीवन का सही मर्म समझकर अंतिम साँस तक धर्म को हृदयस्थ किया. अपने परिवार को सद्धर्म-सदगुरु व सुसंस्कार की संपत्ति विरासत में देते हुए धर्मवैभव को समृद्ध किया. परिवार को समर्पण-सरलता एवं सदाचार के पथ पर चलने का अनमोल शिक्षापाठ देकर धर्मरसिक बनाया. जिनशासन के प्रति श्रद्धान्वित एवं पूज्य गुरुदेव के प्रति समर्पित आपश्री के जीवन का प्रत्येक कार्य परिवार और श्रीसंघ को सदैव नया संदेश, नई शक्ति व नई प्रेरणा देता है. आज भी आपके द्वारा बतलाए गए इस उज्ज्वल पथ पर चलते हुए आपके दोनों सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा सपरिवार श्री जिनशासन की सेवा और धर्मप्रभावना के अनेक सुकृत करने के लिए अग्रसर और उत्सुक है.
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अनुक्रमणिका
मंगलकामना समर्पण .. समपण ...................................... प्रकाशकीय ...
.................................॥
प्राक्क थन ..........
.................IV अनुक्रमणिका.
............। प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत
..........vi-vii हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य.
.........vili हस्तप्रत सूची..
.......१-४८९ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या....................... ४९०-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ .....
.............४९०-५१९ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २....
...............५२०-५९६
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें.
प्रस्तुत खंड १० में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ३९०५१ से ४३४६० ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३४९०
प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ३४४२ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३७२१ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६१२६ बार आई हैं.
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प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत
कृति नाम के अंत में, विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक.
प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)
प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त,
पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. ............ कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की
लघुवृत्ति. ... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का
सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों
पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. (का........... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)............आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिः ........ अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ........... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ........ ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) कुं..............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को.............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ग........... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............ गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा.............. गाथा (कृति परिमाण) गु.............. गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर)
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गृही.
गोल
ग्रं.
जै..
जै. क.
जैदे. ते.
दत्त.
दि.
देना
पं.
पं.
पठ.
प+ग
पद्य.
पा.
पु. हिं. प्र. वि.
पूर्व.
********..
पृ.
पे. नाम.
पे. वि.
पै... ..........
प्र. वि.
प्रले.
प्र. ले.
प्रा.
प्र.ले. श्लो.
गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान )
. गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रंथाग्र (कृति परिमाण)
. जैन कृति (कृति परिशिष्ट)
जैन कवि (विद्वान स्वरूप)
जैन देवनागरी (प्रत लिपि)
....जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट)
. आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान)
. जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट )
... देवनागरी (प्रत लिपि)
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पंजाबी (कृति भाषा)
पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप)
पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या
लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान )
पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार )
. पद्यबद्ध (कृति प्रकार)
. पाठक (विद्वान स्वरूप )
. पुरानी हिंदी (कृति भाषा )
. पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर)
. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक.
पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर )
. पेटाकृति नाम
. पेटाकृति विशेष
. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा )
प्रत विशेष,
प्रतिलेखक लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.)
पु.
..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - ( प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.)
. प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक ( जलात् रक्षेत् .... इत्यादि)
.. प्राकृत (कृति भाषा )
vii
प्रे.
बौ.
म.
महा.
मा.
मा. गु.
. मारुगुर्जर (कृति भाषा )
मु.
. मुनि (विद्वान स्वरूप)
मु. . मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट )
मूपू.
यं.
रा.
रा.
राज्ये.
वा.
वि.
. राजस्थानी (कृति भाषा )
राज्यकाल ..... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी
गई हो.
. जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो.
. प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान)
. लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका)
वाचक (विद्वान स्वरूप )
******...
लिख
ले. स्थल.......
विक्र.
वी.
वै.
व्याप.
श.
श्राव.
श्रावि.
श्रु..
श्वे.
सं.
सम.
सा.
स्था.
हिं.
प्रतलेखन प्रेरक (प्र. ले. पु. विद्वान)
. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) . मराठी (कृति भाषा ) महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा )
.मागधी प्राकृत (कृति भाषा )
.........
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जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट)
. यंत्र (कृति स्वरूप)
राजा (विद्वान स्वरूप)
.विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु.. कृति रचना वर्ष )
. विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान ) .. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत यथा
वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु.. कृति रचना वर्ष )
वैदिक कृति (कृति परिशिष्ट)
• व्याख्याने पठित - विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान)
शक संवत् (वर्ष माहिती प्र. ले. पु.)
.
श्रावक (विद्वान स्वरूप )
श्राविका (विद्वान स्वरूप)
. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान )
. जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट )
. संस्कृत (कृति भाषा )
• समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला.
.
(प्र. ले. पु. विद्वान )
साध्वीजी (विद्वान स्वरूप)
जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) ...हिंदी (कृति भाषा )
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० सुकृत के सहभागी o
हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली
१. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी
अहमदाबाद
२. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई
४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ,
वालकेश्वर
मुंबई
५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ
मुंबई
६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ
७. श्री प्रेमलभाई कापडिया
मुंबई
मुंबई
८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव
मुंबई
९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया
अमेरिका
अहमदाबाद
१०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल
मुंबई
१२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट
मुंबई
१३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा
अमेरिका
१४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन
मुंबई
१५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी
मुंबई
१६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.)
मुंबई अहमदाबाद
१७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी
१८. श्री . मू. पू. जैन संघ, नानपुरा,
सुरत
१९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ
अहमदाबाद
२०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट बेंग्लोर २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी
२४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.)
मुंबई
हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली
१. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन श्रेयस्कर मंडल
२. श्री अर्बुद गिरीराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट
४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर
५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी
६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया-मांडवला
७. श्री सुंदर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर, रांदेर रोड
८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली
९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट
१०. प. पू. आ. देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल
११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा रोड
१२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर
१३. दक्षिण - पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट
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महेसाणा
इन्दौर मुंबई
tx przzz
अहमदाबाद
सुरत
मुंबई
पूना
कोलकाता चेन्नई
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200
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प्रस्तुत खंड सौजन्य
श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेतांबर संघ
११ए, हैसाम रोड, भवानीपुर, कोलकाता - ७०००२०
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अति प्राचीन चमत्कारिक महाप्रभावक संप्रति महाराज के समय के मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान आदि जिनबिंबों की प्रतिष्ठा विक्रम संवत २०२६ ई. सन् १९७० में वर्धमान तपोनिधि आचार्यश्री भुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. के करकमलों द्वारा नूतन जिनालय में हुई. साथ ही सुंदर धर्म आराधना करने के लिये विशाल उपाश्रय, साध्वीजी भगवंतों के लिए उपाश्रय एवं अतिथि निवास का निर्माण किया गया है. पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से श्री रत्नत्रयी आराधना भवन का निर्माण किया गया है. पूर्वोत्तर भारत में कोलकाता महानगर महत्वपूर्ण एवं अति उत्तम स्थान बना हुआ है. श्री संघ का विकास खूब त्वरित गति से हो रहा है. आयंबिलशाला, पाठशाला आदि का सुंदर आयोजन चल रहा है. इस महानगर में कई भव्यातिभव्य चातुर्मासों का आयोजन भी हुआ है. देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, जीवदया आदि की आर्थिक स्थिति खूब सुदृढ़ है. भारत भर के तीर्थ क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार आर्थिक सहयोग किया जाता है. श्री भवानीपुर संघ के सत्कार्यों की महक चारों दिशाओं में फैल रही है. पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंत भी इस क्षेत्र को उत्तम स्थान के रूप में प्राथमिकता प्रदान करते हैं.
इस क्षेत्र में आने वाले तीर्थ यात्रियों-दर्शनार्थियों को इस भव्य मंदिर के दर्शन का लाभ अवश्य लेने जैसा है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
॥श्री महावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३९०५१. दानशीयलतपभाव संवाद रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६४१३.५, १२४४२).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जीनेसर पाय नमी; अंति:
सुंदर० सुप्रसादारे, ढाल-५, गाथा-९७. ३९०५२. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, १०४३१-३५).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८१. ३९०५३. (-) चौवीस दंडक छबीस द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१२.५, २०४३८-४०).
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर अघीणा सीणघ; अंति: (-), (पू.वि. दंडक ३ अपूर्ण तक है.) ३९०५५. (+) स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३.५, ११४३७). १.पे. नाम. चोथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरवारथसिद्धथी चवी; अंति: ए नय धरी नेय
नीहालतो, गाथा-४. २.पे. नाम. षटआरास्वरूपकथक श्रीमहावीर स्तवन, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी;
अंति: देवीदास० संघमंगल करो, ढाल-५, गाथा-६४. ३९०५६. (-) थावच्चापुत्र नवढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१२, १४४३०-३३).
थावच्चापुत्र नवढालियो, रा., पद्य, आदि: आरिसाना भवनै बैठा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ के दोहा २ अपूर्ण तक है.) ३९०५७. दानसीलतपभावना संवाद चौढालीयो, अपूर्ण, वि. १८७०, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४१२, ३४३६).
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: भणे० सुप्रसादोरे,
___ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा ९ अपूर्ण से है.) ३९०५८. नवतत्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मांडल, प्रले. महेश्वर व्यास सांकला, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १२४३२).
आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्यने पाव; अंति:
समकितगुण चित धरजो जी, गाथा-४. ३९०५९. महावीर तवन-नरकदुःखवर्णनरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३०-३३).
नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वृद्धमान जिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३६. ३९०६०. मौनएकादशी गणणू, अपूर्ण, वि. १९३७ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीजापूर, पठ. श्रावि. पसीबाई; प्रले. हरिलाल भ्रमभाट लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, ११४३५-३७).
मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: सेवक ___ जसविजय सिरि लही, ढाल-१२, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ढाल १२ की गाथा ५ अपूर्ण से है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९०६२.(+) अष्टमी व एकादशी थुई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३,
११४३०-३२). १.पे. नाम. अष्टमी थुई, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम जीवत जनम प्रमाण, गाथा-४, (पू.वि. गाथा
३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. एकादशी थुई, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूवडि; अंति: सीस० संघतणा
निसदिन, गाथा-४. ३९०६३. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१३, १४४४२-४५). १.पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ पातु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २८ अपूर्ण तक है.) ३९०६४. व्याख्यानश्लोक संग्रह सह विवेचन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १२४२८).
व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: जन्मवृक्षसफलान्नमूनि, श्लोक-१.
व्याख्यानश्लोक संग्रह-विवेचन, मा.गु., गद्य, आदि: अहंत भगवंत असरणसरण; अंति: मंगलमाला प्रवर्ते. ३९०६५. (+-) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२५४१२.५, २०४३५-३७). १.पे. नाम. कुडरीकपुडरीक ढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुडरीक रूध तज ने; अंति: खेवो पार रे लाला, ढाल-२, गाथा-३३. २. पे. नाम. सरीसकोमल सझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी अजोधाराएजी हो; अंति: खेमा खाक रीझवे सांतर,
ढाल-२, गाथा-२७. ३९०६६. सीखामण व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, ., (२५४१२.५, १२४३५-३७). १.पे. नाम. ककानी सीखामण सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीस जीनवरधन एम भणे, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा ३१
अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसती भगवत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा २ तक है.) ३९०६७. चतुर्थ व्रत उच्चारण व अतिचार चिंतवन गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५,
१३४३६). १. पे. नाम. चतुर्थ व्रतोच्चारण विधी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एएसामन्नयरं आहारकम्म; अंति: पचखांण कराववो. २. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सेणा सणणा पाणे सैई; अंति: वत्तीआयारईयारे, गाथा-१. ३९०६९. भरतबाहुबलीजी सलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४१३, १०-१३४३९).
भरतबाहुबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु माता; अंति: भरतने नामे लीलविलास,
___गाथा-६८. ३९०७०. (-#) इरियावहिकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. सांकलीबाई;
प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ११४३९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति:
विनयविजय उवज्झायरे, ढाल-२. ३९०७१. (#) पद, स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.,
(२४.५४१२.५, ९४३६). १.पे. नाम. आत्मध्यान पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतमध्यान समान जग मे; अंति: नंद० पावत पद निरवाण, गाथा-५. २. पे. नाम. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, पृ. १अ, संपूर्ण.
उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. मतिज्ञान- स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो पंचमी दिवसे; अंति: विजयलक्ष्मी लहो संत, गाथा-६. ३९०७२. (+) कल्पसूत्र व कल्पसूत्र की स्तुति, अपूर्ण, वि. १८९३, भाद्रपद शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५४-५३(१ से ५३)=१, कुल पे. २,
पठ. मु. चंद्रभाण ऋषि; प्रले. मु. हर्षचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४१२, ११४३२-३४). १. पे. नाम. कल्पसूत्र, पृ. ५४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. २.पे. नाम. कल्पसूत्र की स्तुति, पृ. ५४अ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हन्मूल: सुधर्मादि; अंति: कल्पकल्पद्रुमो वः, श्लोक-१. ३९०७३. (+-) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४६-१९४७, माघ शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(४ से ५)=४, कुल पे. ६,
ले.स्थल. वीदासर, प्रले. भरुजी; पठ.पं. गणेशचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२७७१३, ८x२४). १. पे. नाम. चंद्रप्रभुजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय,
गाथा-७. २. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजिनेश्वर गाऊं; अंति: सांभलो एसेवक अरदास, गाथा-८. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ शुक्ल, ११, प्रले. पं. गणेशचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी राव कहो बडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. नेमीजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टभवांतर बालही रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९
अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आनंदघनपद धरणी रे., गाथा-९, (पू.वि. गाथा ३ से है.) ६. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस जिन; अंति: आनंदघन मतिवासी, गाथा-६. ३९०७४. स्तोत्र, स्तवन व मातृकावर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-६६(१ से ६६)=४, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१३,
२६४१४-१६). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन सबीजमंत्र स्तोत्र, पृ. ६७अ-६८अ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-सबीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद-फलवर्धि, पृ. ६८अ-६९अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. असार, मा.गु, पद्य, आदिः परतापूरण प्रणमीय, अंतिः सेवकने सानिधि करे,
गाथा - १७.
३. पे नाम आजिजिन स्तोत्र, पृ. ६९-७० आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
वर्णमातृका काव्य- जैनकथा मूलाक्षरगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य वृषभं देव, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३६ अपूर्ण तक है.)
३९०७६. वीस स्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६.५X१२.५, १५X३५).
२० स्थानकतप वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: वीशस्थानक तप सेवीए अति: केसरी ०
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स्तवना मनहरु, गाथा - २१.
३९०७७, (४) पार्श्व स्तोत्र स्तंभनक, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) = २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६५१२.५, १०-१२x२४).
पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगधिंत, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, ई. १२००, आदि; जसु सासणदेवि वएसकया; अंतिः स्तोत्रमेतत् गाथा- ३६, (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक नहीं है.)
"
३९०७८ (+१) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२.५, १३४३१).
"
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं०
प्रपद्यते श्लोक-४४.
३९०७९. चौरासी आसातना स्तवन अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. दे. (२६४१२.५, ७४३२).
""
"
८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदै जैनसासन ते वली, गाथा - १८, ( पू.वि.
१५ अपूर्ण से है.)
३९०८०. पंचमआरा सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., ( २६१२.५, १२x२६). पंचमरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो अंति (-) (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण तक
है.)
३९०८१. रूषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८८९ वैशाख शुक्ल, १२. शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २ ले स्थल धनोप, प्रले. मु. जसवंतविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२५.५X१२, १६४३८).
"
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लभ्यते पदमव्ययं, श्लोक - ८१, (पू. वि. श्लोक
१८ अपूर्ण से है.)
३९०८२. (+) साधवी निरवाण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. वे. (२६४१२.५ १२४४२). साध्वीकालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोटी गण वयरी शाखा, अंति: उघाडुं रखाय नहि.
३९०८३. पंचमहाव्रत सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,
प्र.वि. पत्रांकवाला अंश खंडित होने से पत्र २ लिया है. दे. (२५.५x१२.५, ११४३२).
""
५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. ३रे महाव्रत की गाथा ३ से ५वें महाव्रत की गाथा १ अपूर्ण तक है.)
३९०८४ (-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अशुद्ध पाठ,
"
3
(२५x१२, १६४३२).
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: बाणी श्रीजीनराज तणी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३९०८५. पंचकल्याणक अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १८९०, भाद्रपद कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, प्रले. मेघजी कुंअरजी महात्मा, लिख. सा. जीवधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६४१२.५, ८४३३).
"
पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: (-); अति वंचित दाय सहावोरे, (पू.वि. अंतिम ढाल की अंतिम गाथा का कुछ अंश है.)
३९०८६. चंदनवाला सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. दे. (२६.५४१२, १३४३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: नयविज० कहे करजोि रे, गाथा - १३.
३९०८८. श्रीमंदिरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२७.५४१३, ११४३०).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु, पद्य, आदिः सुण सुण सरसति भगवति, अंतिः पुरव पुन्यो पायो रे, ढाल-७, गाथा ४०.
"
३९०८९. ।। खंधकमुनि चौडालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे., (२६X११.५, १७x४० ).
खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८९१, आदि: नमो वीरसासण धणी गुण अंति: (-), ( पू. वि. गाथा २२ अपूर्ण तक है.)
३९०९० (-) तप सज्झाय, अपूर्ण, बि. २०वी, मध्यम, पू. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे. (२६४१२, १८X३६).
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तप सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अणसण अणोदरी भख्यचरी; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३९०९१. (+) प्रतिलेखना कुलक, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. पाटण, प्रले. वलभ लहिया,
दत्त. मु. हर्षमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X१३, १४४४५).
पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि पडिलेहणाविसेसं अंतिः सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२८. ३९०९२. श्रीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२७.५४१२.५, १३४३६).
""
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु, पद्य, आदिः सुण सुण सरसति भगवति, अंतिः पुरव पुन्ये पायो रे, ढाल-७, गाथा ३९.
३९०९३. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७१, फाल्गुन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, दे., ( २६.५x१२.५, ११x४२).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा, अंति: लावण्य० सुख संपूर्ण, ढाल-४, गाथा-२४. ३९०९४. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १० ९ (१ से ९) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे.,
(२५.५X१२.५, ११४३६).
-
आवकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-), अंति: (-). (पू. वि. अभ्यंतर तप अपूर्ण से अस्थूल अपूर्ण तक हैं.)
३९०९५. श्रीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७X१२, ११x२२).
सीमंधरजिन स्तवन-वृद्ध, मु. अगरचंद, मा.गु, पद्य वि. १८२१, आदि: मारी विनतडी अवधारो अति: जिनपद वचन
1
विसाल, गाथा - २१.
३९०९६. (+) २० विहरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५४११.५,
,
१४x२७).
विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (१) श्रीजिनवर पय प्रणमने, (२) श्रीअरिहंतनई चक्रपत, अंति: नेहधर धर्मसी नमे, गाथा २६.
३९०९७ (४) चैत्रपूनम कथा व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४३ आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पू. ४, ले. स्थल. लक्ष्मणपुर,
प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५X१३, १२X३१).
"
चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा. गद्य, आदि (१) तीर्थराजं नमस्कृत्य, (२) अहो भव्य जीवो; अंतिः सुख संपदा पामे, ३९०९८. (-) सनतकुमार चक्रवर्ती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६X१२.५, १९x४१).
सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय-रूपअभिमान, रा., पद्य, आदि: तीण कालन तीणसमे परथम, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल २ गाथा ४ तक लिखा है.) ३९०९९. बालचंद बत्रिसी, संपूर्ण बि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे. (२६.५४१३, १६४५०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: कहे अरीहत देव
रे, गाथा-३२. ३९१००. (-#) तिनभुवनना देहराप्रतिमा सर्वसंख्या व स्त्रीपूर्ष विना गर्भ धरे तेनी विधि, संपूर्ण, वि. १९१५, भाद्रपद कृष्ण, १०,
मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. आ. दलिचंद भटारक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १३४३६). १.पे. नाम. त्रिणभुवनना देहराप्रतमा सर्वसंख्या, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
शाश्वतजिन प्रासाद जिनबिंब विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जंबूद्विपमाहे बे; अंति: असंख्याती प्रतिमा. २. पे. नाम. स्त्रीपूर्ष विना गर्भ धरे ते दृष्टांत, पृ. २आ, संपूर्ण..
५प्रकारे स्त्री पुरुषबिना गर्भधारण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: वस्त्र रहीत पंडा; अंति: नागधर दृष्टांत. ३९१०१. बीज स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२७४१२.५, ११४३५).
बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: (-); अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल-३,
(पू.वि. ढाल २ गाथा ५ अपूर्ण से है.) ३९१०२. सुधर्म देवलोक स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४१३, ११४२८).
सुधर्म देवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सौधर्मदेवलोक पहिलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण
तक है.) ३९१०३. षट अट्ठाई स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, दे., (२६४१२, १०४३७-३९).
६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी० मंगल पाइया, ढाल-९,
(पू.वि. ढाल ५ गाथा १ अपूर्ण से है.) ३९१०४. दसपच्चक्खाण व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४१-१९४२, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. तिलोकविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १४४३७). १. पे. नाम. दसपच्चखाण स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९४१, फाल्गुन शुक्ल, २. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र
तपविधि भणे, ढाल-३. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारकर सारकर स्वामि; अंति: उदयरत्न० जाए सब सोती,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नंबर नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. प्रेमनयन, पुहि., पद्य, आदि: ध्यान धर ध्यान धर; अंति: प्रेम०फिरे यत्न तेरो, गाथा-४. ३९१०५. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १०४३६-३९). १. पे. नाम. पंचम आरानी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: भाख्या वयण रसाल, गाथा-२१, (पू.वि. मात्र अतिम
३ गाथाएँ हैं, प्रतिलेखक ने गाथांक ३-५ दिया है.) २. पे. नाम. पंचमहाव्रतनी सज्झायो, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति: भणै ते सुख लहे, ढाल-५. ३९१०६. पंचजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३७-४०).
पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: गरीयो गुण श्रेण्यरीण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १०
अपूर्ण तक है.) ३९१०७. सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, १३४२६).
१.पे. नाम. तपसीमहाराज की सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
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पूण.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
ख्यालीरामतपसी सज्झाय, श्राव, भगवानदास, रा., पद्य, वि. १९वी, आदि: प्रथम नमुं अरिहंत कौ; अंति: होय नमै
भगवानदाशे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: जुवा आलस सोग भय; अंति: विष त्यागता नाहि, गाथा-३. ३९१०८. मंगल पलो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५४१२, १४४३८).
४ मंगल रास, मु. मुनिराज ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुं; अंति: रीष मुनीराज कहै एमतो, गाथा-३७. ३९१०९. मरूदेवीमाता व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालिनगर, पठ. सा. उजली;
प्रले. पं. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. माणभद्रजी प्रसाद, जैदे., (२५.५४१२, १०४३८). १. पे. नाम. मरूदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी माता कहे; अंति: पंचमी पोल पोचावो जी, गाथा-११. २. पे. नाम. युगमंधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे पामी अति; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-९. ३९११०. (-) अढाईद्वीप व ज्योतिषचक्र विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२,
१७४४०-४२). १.पे. नाम. अढाइद्विप वीचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा कहाता याढाइधीप; अंति: (-). २. पे. नाम. जयोतिषचक्र विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चदरमाना पदरा माडला; अंति: जोजन उर छ जोतक चकर. ३९१११. (+#) चितसंभू कि ढाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. किनारी खंडित होने
से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, २०४४९). १.पे. नाम. चितसंभू कि ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८७, चैत्र कृष्ण, १४, रविवार, प्रले. सेरा, प्र.ले.पु. सामान्य.
चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचित कह ब्रहमदतन; अंति: बंधव बोल मानो जी, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: तु तो हुतो वोपारि; अंति: (अपठनीय), गाथा-२८, (वि. पत्र की किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य
अपठनीय है.) ३९११२. (+) देवसीपडकमणा विधी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३८).
प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (-), (पू.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं., वि. श्रावकसंबंधि देवसी प्रतिक्रमण विधि है.) ३९११४. जिनपंजर आदि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १४४३३). १. पे. नाम. माहामंत्रमयी सप्रभावैक जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८. २. पे. नाम. परमेष्टीमाहामंत्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ३९११५. (+#) बृहत्सांति व देसावगासिक पच्चक्खाण विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२.५, १०४३६). १. पे. नाम. बृहत्सांति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण विधिसहित, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (१)प्रथम तीन नवकार गुणी, (२)अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: (१)पाठ
तीन बार उचरावीय, (२)वत्तियागारेणं वोसिरइ. ३९११६. (+) २१ कार्योत्सर्गस्य दूषणानि व पच्चकखाणफल सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से
६)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १०४३५). १.पे. नाम. २१ कायोत्सर्गस्य दूषणानि, पृ. ७अ-७आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
२१ कायोत्सर्ग दोष, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: ते अनुपेक्ष दोष, (पू.वि. कृति का प्रारंभिक किंचित् अंश नहीं है.) २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सिज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दशविध प्रह ऊठी; अंति: पांमौ निश्चय निर्वाण, गाथा-८. ३. पे. नाम. बल मानं, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणौ बीर्य बोलुं; अंति: अग्र कुं नेम ते तुं, गाथा-१. ४. पे. नाम. १८ भार वनस्पतिमान कवित, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: अडसट्ठ कोडी सट्ठ लाख; अंति: ऋतु मै हिंसा छती, गाथा-२. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ३९११७. (#) पंचकल्याणक पूजा-ढाल ४ व थुलीभद्रस्वामीनी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल
पाठ का अंशखंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३६).. १.पे. नाम. पंचकल्याणक पूजा-ढाल ४, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. थुलीभद्रस्वामीनी ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. वीर, पुहिं., पद्य, आदि: उठ बे साहेली प्यारे; अंति: सुणो० बडी मेहेर से, गाथा-६. ३९११८. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र व तीनचौवीसी तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.,
दे., (२५.५४१२.५, १३४३६-३९). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: स्तोत्रमुत्तमम, श्लोक-७९. २.पे. नाम. तीनचौवीसी तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमांन चौवीसी वंदु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४
गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३९११९. ज्ञानपंचमी व अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १०४३९). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक गुनगनलायक; अंति: निराबाध सुखगेहरे,
गाथा-१३. २.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारै ठांम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्णतक है.) ३९१२०. (+) सज्झाय संग्रह व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९-१५(१ से १५)=४, कुल पे. ४,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १७४३८-४१). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा सिझाय, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गौतमपृच्छा सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: फलै इम भणे मनि रंग, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण
तक नहीं है.) २. पे. नाम. च्यारगोल्यो को चोडालियो, पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४ गोला चौढालियो, मु. धनदास, पुहि., पद्य, वि. १९०७, आदि: संतनाथजी सोलमा संत; अंति: सुभ भाव कुंम राखो,
ढाल-४. ३. पे. नाम. उपदेस सिझाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. धनदास, पुहि., पद्य, आदि: सतगुर कहै भव सांभलो; अंति: राखो मुकत्यांरी आस, गाथा-१६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १८आ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. धनदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कषायवस पड्यौ, अंति: (-), (पू.वि. सवैया-१५ अपूर्ण तक है.) ३९१२१. जिनपूजा स्वाध्याय व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११,
११४३६). १.पे. नाम. जिनपूजा स्वाध्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: सत्तरभेदे पूजा जिन; अंति: आपतर्याने तारे रे,
गाथा-९. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया भरत; अंति: समयसुंदर गुण गाउंरे,
___ गाथा-७. ३९१२२. (#) प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५४१०.५, २०४६०).
प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विसालसुरसहस्सरस्सिए; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रश्न-१९
अपूर्ण तक है.) ३९१२४. (+) चोसरणपयन्ना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, ५४२८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से गाथा-२६
अपूर्ण तक है.)
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९१२५. (4) पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ११४३४).
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कडं, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र
३९१२६. नमीण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.पं. कल्याणविजय; पठ. श्रावि. झूमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३३).
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ३९१२७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सुमतिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४४).
पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ परमेसरु रे; अंति: उदय सदा सुखकंद, गाथा-२१. ३९१२८. जीराउलापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १६x४७).
पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउलमंडण जिन पास; अंति: भणे० नवनिधि
आंगणे, गाथा-३८. ३९१२९. चैत्यवंदनभाष्य सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. चैत्यवंदनभाष्य के द्वार का कोष्टक दिया गया है., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०).
चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा दो पाद पर्यन्त है.) चैत्यवंदनभाष्य-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऐंद्रश्रेणिनुतं, (२)भव्यजीवने मनोवांछित;
अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण पर्यन्त बालावबोध है.)
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१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३९१३०.
(+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पत्रांकवाला हिस्सा टुटा होने के कारण काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५X११, ९३२-३४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. माता देवानंदा के चौदह स्वप्नदर्शन का पाठ है.)
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३९१३१. (a) अनुत्तरौपपातिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., ( २४.५X११, १२X३७).
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: (-), (पू. वि. प्रथम वर्ग के दस अध्ययन नाम तक है.)
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: हिवइ अनुत्तरोववाइदशा; अंति: (-), (पू.वि. बालावबोध प्रारंभिक अंशमात्र है.)
३९१३२. (#) चउदइ गुणठाणा २१ दुवार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४.५x११, २४४४३-४६).
१४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखण २; अंति: निगोदना जीव जाणिवा. ३९१३३. (d) पांचम स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४१०.५,
१६x४२).
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी श्रीगुरुपाय, अंति भगति भाव प्रसंसियो, ढाल - ३.
३९१३५. १२ व्रत कथानक व्रत १ से १, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प्र. २- १ (१) १, प्र. वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है. दे. (२४.५४९११.५, १३४४४).
""
१२ व्रत कथानक, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., अनर्थदंड के अंतिम किंचित् पाठ से सामायिक व्रत तक लिखा है.)
३९१३६. (१) राजमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.,
"
(२५.५X१३.५, १९५३२).
रथनेमिराजिमती पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८५४, आदि: अरिहंत सीध आयरिया, अंति: (-). (पू.वि. ढाल -५ गाथा-५ अपूर्ण तक है.)
"
"
३९१३७. नरकविस्तार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे. (२६४१४, १२४३२-३५)नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिन विनवुं अंति: (-), (पू.वि. डाल-४ प्रारंभ पर्यन्त है.) ३९१३८, (*) दिख्या विधि, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. अशुद्ध पाठ मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२x१३.५,
१८४२८-२९).
दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि सांजरी वेला चारित्र, अंतिः चलाइने अक्षत चलाइजे
३९१३९. (-) अजितशांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३)=१, प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे. (२५४१३.५,
""
१२x२८-३०).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०, (पू. वि. गाथा २९ तक नहीं है.)
३९१४०. महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२५X१३.५,
१३X३०-३२).
महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण बंदु अंति: (-), (पू.वि. बाल-३ गाथा १५ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९१४१. (-#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२६.५४१३.५, १२४३८-४०). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले गरंथ सभारी; अंति: (अपठनीय), गाथा-४,
(वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ३९१४२. (-#) उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१३.५, ११४३२-३४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं दिया है.) ३९१४३. (+) किसनजीरी लावणी, उपदेसी ढाल व तवन उपदेसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, १६४४५). १.पे. नाम. किसनजीरी लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कृष्णवासुदेव लावणी, मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९५५-१९५६, आदि: पुरी दुवारका बासुदेव; अंति: हीरालाल
मंगल गावे, (वि. प्रतिलेखक ने परिमाण नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. उपदेसी ढाल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
संयतिराजा सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: मीठी मीठी हो इमरत; अंति: रतनचंद० दीप कमाल, गाथा-१७. ३. पे. नाम. तवन उपदेसी, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहि., पद्य, आदि: खबर नही हे जुग मे; अंति: वीणती अखमल की, गाथा-८. ३९१४४. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४१३, ६x२८).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: लुब्धका नरा अर्थेषु; अंति: जीवा इत्यर्थः. ३९१४५. नवपद कलश, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पत्रांक-३९., दे., (२३४१४, ११४३०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९
अपूर्ण तक है.) ३९१४६. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६४१३, ७४१७).
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: त्वं शारदादेवी समस्त; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण
तक है.) ३९१४७. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मंगलापुर, प्रले. मु. मुक्तिचंद्र; पठ. श्रावि. कपुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२६.५४१२.५, १४४२२).
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: सुखी मुनि वीयरागी, गाथा-१५. ३९१४८. छ काय विराधना विचार सह टबार्थ व तिथि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५४१३.५,
८४३२). १.पे. नाम. छ काय विराधना विचार सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
काय विराधना विचार, प्रा., गद्य, आदि: भवे कारणं जेण तसकाय; अंति: संवरा संवरा ते आसवा, संपूर्ण. ६ काय विराधना विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कारण होइ तिवारे त्रस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., अंतिम भाग का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. तिथि विचार, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३९१५० षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. बाद में किसी के द्वारा पेन्सिल से गाथा- २ अपूर्ण तक टवार्थ लिखा गया है. दे. (२५.५४१२.५, ५४२६).
षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.)
३९१५१. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) -२ प्र. वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैवे. गुटका (१५४१३.५, १२४१५-१७)
"
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ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगति भाव
प्रसंसीयो, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा- १४ तक नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ३९१५२. (+) चित्रबंध स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, ले. स्थल. प्रतापगढ़, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें - संधि सूचक चिह्न, दे., (२५X१३, ११३६).
,
१. पे. नाम. चित्रबंध स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तोत्र-चित्रबंध, मु. गुणभद्र, सं., पद्म, आदिः ये तीर्थस्य नेतारः अंतिः वर्गश्रियं चानुते श्लोक-२६,
(वि. प्रतिलेखक ने रचना प्रशस्ति के श्रोक नहीं लिखे हैं.)
२. पे. नाम. यमकश्लेष विषयक श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण.
सामान्य श्लोक सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) श्लोक-१
1
३९१५४. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५X१३.५, १९४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: (-), (अपूर्ण,
"
"
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२९ तक लिखा है.)
"
"
३९१५५ (+) ग्यानपंचमी को स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित प्रत का मध्यभाग कटा हुआ है व दोनों छौर पर कागज चिपकाया हुआ है., जैदे. (१३.५x१३.५, १२४२८).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पास जिनेसर, अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२
अपूर्ण तक है.)
३९९५६. भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्र यंत्रविधान, अपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. २८-२५ (१ से २५ ) = ३, प्रले. रायचंद ब्राह्मण लिय. मु. नैनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक २६आ का ऊपरी भाग सुशोभनयुक्त, जैदे. (२०.५x१३, ११x२४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक - ४८, ( पू. वि. श्लोक-४५ के गद्यमय आम्नाय के उत्तरांश से है.)
भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) घ्रौं श्रीं स्वाहा, (२) नमः स्वाहा, मंत्र- ४८. भक्तामर स्तोत्र - यंत्र, सं., यं., आदि: (-); अंति: (-).
३९१५८. () त्रिजेयहुत, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२६×१३, १६४३९). विजयपहुत स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहृत्तपयासय अड अंतिः निब्धंतं निच्चमध्येह, गाथा- १४. ३९१५९. नयद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५.५X१३.५, १४-१६x४०).
"י
७ नव विचार, प्रा. सं., गद्य, आदि: नेगमसंगहववहारुजुसुएव अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संग्रह विवरण अपूर्ण पर्यन्त लिखा है.)
३९१६० (+) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, बि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. वीरमगांम, पठ श्राव. हरजी जेठा शाह, प्र. ले. पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित, दे., (२५.५४१३.५, १४४२८).
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जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. ३९१६२. समकितना सड़सठ बोलनो विवरो, संपूर्ण वि. १९१० माघ शुक्ल ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १ ले, स्थल, दसाडा,
प्रले. मु. कस्तुरचंद, लिख. श्राव. भूधर, पठ. श्राव. धनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. पत्र १x४ हैं. दे., (२६X१३.५, २९X७-२६).
सम्यक्त्व ६७ बोल विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम समकितनी अति वर्तन करवो बाकी रहे.
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१३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९१६३. (-) पुण्यपाप कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१३.५, ६४२७). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: सम्ममि उज्जमह, गाथा-१६,
(पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.)
पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करवो जिम परमसुख पामे, ग्रं. ९०. ३९१६४. आदिजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१३.५, ११४२२-२४).
आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २३ से ४३ तक है.) ३९१६५. अभव्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१३.५, ५४३१).
अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिं न; अंति: दुहावि तेसिं न पत्तं, गाथा-९.
अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जीम अभव्यनो; अंति: बे प्रकारे न पामइ, ग्रं. २८. ३९१६६. तपविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४१३, १६४१५).
तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (संपूर्ण, वि. चौदपूर्वतप गणणु व ज्ञानपंचमी तप की
विधि है.) ३९१६७. (+) सिद्धिदंडिका सह टबार्थ व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३.५, ५४२८).
सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३,
(ले.स्थल. खंभायतबंदर) सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे ऋषभस्वामी केवल; अंति: ते सिद्धिना सुख आपो.
सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३९१६८. (+) जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ३९१६९. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४१).
नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. नवकार, उवसग्गहरं व
तिजयपहुत्त स्तोत्र की गाथा-७ अपूर्णतक है.) ३९१७१. पर्युषणपर्व नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४३८).
पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजय मंडणो; अंति: तणो धीर करे गुणज्ञान, गाथा-७,
ग्रं. २४. ३९१७२. भिलिनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४३७).
भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीने विनवू; अंति: सांभलो ए सती छे पूरी, गाथा-१८. ३९१७३. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३.५, २०४३६). ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरअमरपणयं पणमिय; अंति: पुत्थयभरेहिं,
गाथा-३४, ग्रं. ४५. ३९१७४. सिद्धचक्रजीनु चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ११४३५).
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: धीर० नय वंदे
करजोड, गाथा-१५. ३९१७५. मरुदेवीनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आइ; अंति: प्रगटी अनुभव सारी रे,
____गाथा-१८, ग्रं. १६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ३९१७६. (+#) संखास्वरापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, ९४३१). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेसरो मन; अंति: संखेसरो आप तुठा,
गाथा-७. ३९१७७. स्थंभनकपार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२७४१२.५, १०४३३).
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुशललाभ
पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. ३९१७८. सागारी अणसण विधि, संपूर्ण, वि. १९४४, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त मेवाडा;
पठ. सा. सौभाग्यश्रीजी (तपागच्छ); सा. केसरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीदेरासरजी प्रासादात., दे., (२७.५४१३.५, १३४३७).
सागारी अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि पडिकम; अंति: ते सागारी अणसण करै. ३९१७९. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १३४४५).
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजीणेसर चरणकमल; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ३९१८०. चोविस डंडकनि गतागतिनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पुरे मनोरथ पासजिनेसर; अंति:
गावे धरमसि सुजगिस ए, ढाल-४, गाथा-३५. ३९१८१. (#) आत्मनींदा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १२४२३).
आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सो नर सुगड प्रवीन. ३९१८२. (#) ऋषभजिनेंद्रस्य गत्यागत्यौ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, माघ शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. द्रांगधरा,
प्रले. पंडित. वालजी मारवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३१). आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय;
अंति: दरसण सुरतरु तोलइ, ढाल-२, गाथा-२६. ३९१८३. (#) महावीरजिन स्तोत्र-काव्यचमत्कृतियुक्त सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४९). महावीरजिन स्तोत्र-काव्यचमत्कृतियुक्त, प्रा.,फा.,सं., पद्य, आदि: दोस्तीष्वांदतुरान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०
अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तोत्र-काव्यचमत्कृतियुक्त-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ प्रारंभ
तक अवचूरि है., वि. किनारी खंडित होने से आदिवाक्य अपठनीय है.) ३९१८४. आलोयणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. पं. लावण्यकुशल; पठ. श्राव. जीवाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १३४३३). शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनकुंजी; अंति: वाचक समयसुंदर
इम भणे, गाथा-३१, ग्रं. ५०. ३९१८५. शत्रूजयतीर्थ कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पोकरदास लहिया,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३.५, ६x४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५.
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीइं; अंति: यात्रा फल पामे. ३९१८६. (+) अध्यात्मकल्पद्रुम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १७X४१).
अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: (१)अथायं श्रीमान् शांत, (२)जयश्रीरांतरारीणा; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) ३९१८७. २४ दंडक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४१२.५, १२४३५).
२४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-१५ अपूर्ण से द्वार-१८ अपूर्ण तक है.) ३९१८८. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, दे., (२६.५४१२, १३४४८).
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल
३४ से ४३ अपूर्ण तक है.) ३९१८९. (+) पंचकल्याणक विर स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १३४३९). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: (-); अंति: नामे लहे अधिक
जगिस ए, ढाल-३, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९१९०. मुहपत्ति बांधने के शास्त्रीय पाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मावलाग्राम वल्लभीपुर, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, १४४४५).
मुहपत्ति बांधने के शास्त्रीय पाठ संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ओघनियुक्ति गाथा; अंति: १० आचारदिनकरमा. ३९१९१. स्नात्रविध पूजा, अपूर्ण, वि. १९२७, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. गोधावीनगर, लिख. श्राव. पुरुषोत्तमदास डाहा शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १४४३५). स्नात्रपूजा, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समकित सुजस सवाउरे, (पू.वि. वीर जिणंद कुसुमांजलि
अपूर्ण से है., वि. विधि सहित.) ३९१९२. (#) स्नात्र महोत्सव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, ७४३४). स्नात्रपूजा, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: समकित सुजस सवायो रे, (पू.वि. अंतिम मांगलिक गाथा-१
अपूर्ण से है.) ३९१९३. वेदरभीनी चोउपाइ, अपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. अजमेर,
प्रले. सा. हीरा (गुरु सा. वदू); गुपि.सा. वदू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२६.५४१२, २०४३६). वैदर्भी चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रेमराज० बहु थान, गाथा-२०५, (पू.वि. गाथा-१८६ अपूर्ण
तक नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने भूल से गाथांक २०० की जगह १२०० लिखा है.) ३९१९४. (-) विजयशेठविजयशेठाणी सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२, १९४३६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देव नमसर नामी कोही; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण
तक है.) ३९१९५. (#) मरुदेवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १०४३१).
मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आई; अंति: परगटी अनुभव सारिरे,
गाथा-१८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१६
३९९९६. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९३५, फाल्गुन शुक्ल, ४, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ११.९(१ से ९)= २, ले. स्थल, राजनगर, प्रले. केशवलाल रामचंद्र दवे, लिय. श्रावि, जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ३००, (२७X१२.५, ४x२४).
-
"
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि (-) अंतिः रुदाओ सुयसमुदाओ, गाथा-५२. (पू. वि. गाथा ४४ अपूर्ण तक नहीं है.)
जीवविचार प्रकरण टवार्थ . मा.गु, गद्य, आदि: (-): अंति: समुद्र तेही उधर्यु
*,
३९१९८. (+#) गौतम व पुण्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१ वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. ग. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे., (२८.५४१३, ८x४९-५१).
१. पे. नाम. गोत्तम कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ २अ संपूर्ण ले. स्थल. रणोदग्राम.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि लोभी नर मनुष्य अर्थ, अंतिः पालीनइ अनंत सुख पामे,
२. पे नाम, पुण्य कुलक सह टवार्थ, पृ. २अ २आ, संपूर्ण ले. स्थल, मणोदयाम.
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पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसतं अंतिः ते सासवं सुक्खं गाथा- १०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुन्यकुलं प्रकीर्ति; अंति: सुख पाम्या पामई.
३९१९९. सरणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६ १२, १९x४४).
४ शरणा विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समण; अंति: (-), (पू. वि. तृतीय शरण अपूर्ण तक है.) ३९२०० योगविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. योगविधि यंत्र संलम है. दे. (२७४१२,
"
१९५२०-५४).
,
योगविधि संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. आचारांग द्वितीय श्रुतस्कंध व सूत्रकृतांग के योगोहन की विधि है.)
३९२०१. (+) छ आवश्यकनि सज्झाच, संपूर्ण वि. १९५५ श्रावण कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पू. ३, प्रले. हरीलाल बारोट पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वान ने पेन्सिल से भी संशोधन किया है, संशोधित. वे., (२६.५X१२.५, ११X३६).
६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन चितवी; अंति: तेह शिवसंपद लहे,
ढाल - ६, गाथा ४३.
३९२०२. (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., ( २६.५X१३, १२X३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३५ तक लिखा है., वि. गाथा ३५ से आगे का कुछ पाठ लिखकर मिटा दिया गया है.)
"
३९२०४. कक्कावत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २- १ ( १ )=१. दे. (२६.५x१२, २०५३). ककाबत्तीसी, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: पेस्या करै वजाजे का, गाथा - ३२, (पू.वि. गाथा - १८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९२०५. माहावीरजिन बीनति जिन स्तवन, अपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३) -१, वे. (२७४१२, ९४२५). महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः धुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९ (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण तक नहीं है.)
"
३९२०६. कल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अन्य किसी विद्वान ने अनुपलब्ध पाठ की पूर्ति हेतु पेन्सिल से
पत्रांक- १अ पर लिखा है., दे., ( २६.५X१२.५, ११४३९).
महावीरजिन स्तवन ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण बंदु अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल -२ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.)
३९२०९. छय आराना भाव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे. (२६.५४१२, १२४३१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणेसर पाय नमुं;
___अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल-४ पर्यन्त लिखकर ही पूर्णाहुति कर दी है. प्रशस्ति वाली अंतिम ढाल नहीं है.) ३९२१०. पर्युषणपर्व नमस्कार संग्रह व सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. ८, प्रले. मु. चंद्रविजय; पठ. श्रावि. नवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १२४३५). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजेजो सिणगार; अंति: आराधीइ आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: लहे उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एक हि चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी बहु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज्य संवत्सरी; अंति: वीरने चरणे नामुंसीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ३९२१२. (-) ६ संवर सज्झाय व बतीस असजाइरी ढल, संपूर्ण, वि. १९१६, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२.५, १७४३२). १.पे. नाम. ६ संवर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जनेसर गोएमने; अंति: जपे मुगत जासी पादरो, गाथा-६. २. पे. नाम. बतीस असजाइरी ढल, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: वाणी सीरीजनराजनी रे; अंति: तीणसु मुज परणाम,
गाथा-१३. ३९२१३. (+) जैन संध्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४२२-२६).
जैन संध्या, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., गद्य, आदि: जिनं जिनं वाक् वाक्; अंति: द्रव्यानुवेद स्वाह. ३९२१४. (+#) धरणनागराजस्य महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५४११, १५४५३).
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति; अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ३९२१५. संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोहन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५३).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहिये श्रीसार
ए, गाथा-७१. ३९२१६. आदिजिन स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६.५४१३.५,११४२१).
__ आदिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उभो रहन जीवडा प्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक
जन
३९२१७. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१४, १२४२८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ प्रारंभ पर्यन्त है.) ३९२१८. आराधनासुत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७७१३, १२४४७).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, संपूर्ण. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तीर्थंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा ३ तक लिखा है.) | ३९२१९. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२२४१४.५, १२४२६).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३९२२०. दशवीकालिक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२८x१३, २१४४५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्यन-३
गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३९२२१. (+) महावीरद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १३४३२). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसाम्यात्समुद्; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) ३९२२२. राजुलरो बारमासियो, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२८x१३.५, १३४३४).
नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: राजुल उभी विनवेरे; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ३९२२४. (+) सूतक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२९.५४१४, १३४३८). सूतक सज्झाय, आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: श्रीसरसतिदेवी समरूं; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ३९२२५. (+) ८ कर्म विवरण व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१४,
११४२४). १.पे. नाम. ८ कर्म विवरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति पूर्णता सूचक वाक्यांश नहीं है.
सं., पद्य, आदि: आवृणोति यज्ज्ञानं; अंति: सिंधौ नौ छिद्रबंधने, श्लोक-२५. २.पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. पूर्व कृति की पूर्णतासूचक एवं इस कृति के प्रारंभ सूचक संकेत दिये बिना
ही लिखा गया है.
दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३९२२८. (+) भैरवपद्मावती कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. प्रतिलेखकने टीकानुसारी पर्याय का प्रारंभिक अंश लिखकर छोड दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९४१३.५, ९४२३).
भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: कमठोपसर्गदलनं; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-२ श्लोक-१७ तक
३९२३०. पार्श्वनाथपद्मावती स्तोत्र व एक सीलोकी दुर्गा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५४१३.५,
१५४३९). १.पे. नाम. पार्श्वनाथपद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., प+ग., आदि: ॐ अस्य श्रीमंत्रराज; अंति: क्षमस्व परमेश्वरि, श्लोक-४१, (वि. साथ में मंत्राम्नाय
भी दिया गया है.) २.पे. नाम. एक सीलोकी दर्गा, प्र. ४आ, संपूर्ण.
दुर्गा स्तुति, सं., पद्य, आदि: या अंबा मधुकैटभप्रमथ; अंति: वां पातु विश्वेश्वरी, श्लोक-१. ३९२३१. पार्श्वजिन आदि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२८.५४१४, १४४४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: समस्तकल्याणनिधानकोशं; अंति: नित्यं निजपादसेवां,
श्लोक-१०. २.पे. नाम. पंचांगुली स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर पाय; अंति: (अपठनीय), गाथा-३४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
प्रा.,सं., पद्य, आदि: अर्हतमानतसुरासुरराज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३९२३२. (+) पोसानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१४, १०४२२).
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण० इरियावही; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३९२३३. (-) बारव्रतनी पुजा व गावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७७१३, १२४२८). १. पे. नाम. महावीरजिन गावली, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे गुणसीला चेत्य; अंति: राजने अति सुख थाय, गाथा-७. २. पे. नाम. बारव्रतनी पुजा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६
अपूर्ण तक है.) ३९२३४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१४, १०४२६).
२४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: जिनप्रभसूरि० मंगलं, श्लोक-९. ३९२३५. चतुर्विसतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१९.५४१४, १२४२३).
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: रुतदेवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३९२३६. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ.८१-७९(१ से ७९)=२, प्रले. मु. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, २४४४५-४९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति:
वृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, संपूर्ण... ३९२३७. बुढापा सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७७१३, १८x२९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: बुढो हलवे हलवे चाल; अंति: हुंचरणां की वलियारी, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: कुण कुण बुढा तुन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३९२३८. दसपच्चखाण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१३, ७४२७).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. पाणहार के पच्चक्खाण पर्यन्त कुल ५
पच्चक्खाण हैं.) ३९२३९. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४१३, ११४२४).
१२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६
अपूर्ण तक है.) ३९२४०. (+) एलाची सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १४४३०). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३९२४१. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२८x१२,७४४१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक
३९२४३. बीजाक्षर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., अ., (२९x१३, १२४३५).
बीजाक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐकारमनवद्याना; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२६ अपूर्ण तक है.) ३९२४४. दानशीयलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९३७, वैशाख कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, ले.स्थल. विजापुरनगर, पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३, ११४३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: भणे० सुप्रसादो रे,
ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-६ तक नहीं है.) ३९२४५. (+#) बृहत्संग्रहणीसह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२.५, १२४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण
तक है.)
बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९२४६. पीस्तालीस आगम करवानी विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२८.५४१२.५, ९४४५).
४५ आगमतपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: खमासमण देइ इरीयावही; अंति: (-). ३९२४७. रात्री संथारो व पोसो पारवानी गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १६४४६). १.पे. नाम. राईसंथारो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: नवकार ३ कही इरियावही; अंति: पछे सर्वमंगलमागल्यं, गाथा-१४, (वि. विधि
सहित.) २. पे. नाम. पोसो पारेवानी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: सेसेसु सारफल हेउ, गाथा-३. ३९२४८. अट्ठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७.५४१२.५, १०४३७).
६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्यादवाद सुधोदधि; अंति: लक्ष्मी० मंगल पाइया,
ढाल-९. ३९२४९. नववाडि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२८x१२.५, ११४३४).
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहेने जाउं भामणी,
ढाल-१०. ३९२५१. (#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. गिरपुनगर, प्रले. ग. नेमविजय; पठ. श्रावि. कुंदणबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८९८) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्या, जैदे., (२७४१३, १३४२८-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ
सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ३९२५२. ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. भक्तिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, ४४३७).
ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: वेत्ति च वीतरागः, श्लोक-१९.
ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेहमांही विद्या नही; अंति: वेति च वीतरागः. ३९२५३. गोडिपार्श्वनाथ स्तवन व दुहो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. श्रीऋषभदे., जैदे., (२६-२६.५४१२.५, १४४३८). १.पे. नाम. गोडिपार्श्वनाथजी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा-१४. २. पे. नाम. दूहो, पृ. १आ, संपूर्ण.
दहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ३९२५४. (+) होलीरज:पर्व संबंध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. बालूचर,
प्रले. य. जित् श्रीपूज्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२६४१३, १४४३४). १. पे. नाम. होलिरजःपर्व संबंध, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
__ होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: विज्ञानं वाचनोचितः, श्लोक-८३. २. पे. नाम. होली संबंध, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: गम्यं महतामपि, श्लोक-३३. ३९२५६. (#) दशवैकालिकसूत्र-प्रथमअध्ययन, चतुर्विंशतिजिन व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल
पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ७४२३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-दुम्मपुप्फिय अज्झयणं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. श्रीमच्चतुर्विसतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम,
श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: श्रीपार्श्व चिंतामणि; अंति: सेवक सदा पुरवै
मनरली, गाथा-८. ३९२५७. (-2) वडी गतागत द्वार, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रक्रमांकवाला हिस्सा खंडित होने से पत्रांक का
पता नहीं चल रहा है अतः प्रारंभिक भाग की अनुपलब्धता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२, १५४३९). पर्याप्ता अपर्याप्ता ३१ द्वार विचार, रा., गद्य, आदि: (-); अति: ३९५री गत २४३ आगत, द्वार-३१, (पू.वि. द्वार-१ से ९
अपूर्ण तक नहीं है.) ३९२५८. (-) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अशुद्ध पाठ., दे., (२८x१२, ९x४२).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९२५९. (+) परमानदपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, १२४३८).
परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः,
___ श्लोक-२५. ३९२६०. आठकर्मनी ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. कुचामणवड, प्रले. सा. बदना (गुरु
सा. अमरु); गुपि. सा. अमरु; अन्य. सा. सुंदर (गुरु सा. जीवणा); गुपि. सा. जीवणा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८.५-२९.०x१२.५, १८-२०४४१). ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रायचद० जिनवचन प्रमाण, (वि. प्रतिलेखक ने ढाल
क्रमांक नहीं लिखा है.) ३९२६१. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. २, प्र.वि. यह प्रति २ प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई है. मात्र पत्रांक-२आ पर काली २ पार्श्वरेखा अंकित है., जैदे., (२५४१२, ११-१४४२२). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद
तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९२६२.(+) अजयराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२८-२९.०x१३, २१४३८). अजयराजा चौपाई, उपा. भावप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच की ढाल की गाथा ९ अपूर्णांश से गाथा ३२ पर्यंत व आगे के दोहे ७ तक हैं.) ३९२६३. (-) छ भाव विचार, अपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. सा. जतना (गुरु
सा. चतुरा); गुपि.सा. चतुरा (गुरु सा. अमरा); सा. अमरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२८-२८.५४१२.५, १६x२७).
६ भाव विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: उपसम खय खयसम परणामे. ३९२६४. (+) नयचक्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x१२.५, १२४४१).
नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रारंभिक किंचित् अंशमात्र है.) ३९२६५. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अंतिम पत्र गाथा-४१ से ४४ बाद में लिखी गई हो ऐसा प्रतीत होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१२, १२४३१).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३९२६६. सम्यक्त्व कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रारंभ में बालावबोध के मांगलिक २ श्लोक लिखे गये हैं., दे., (२९४१३, १२४४४).
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउसम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. ३९२६७. (+) नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२८.५४१२.५, १३४४३). नेमराजिमती पद, रा., पद्य, आदि: समदभिज सिवादेजी राणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-१४ तक लिखा है.) ३९२६८. (+#) गोचरी दोष गाथा सह बालावबोध व अतिचारचिंतवन गाथा का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम,
पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खडित है, जैदे., (२८x१३, १८४५०-५५). १.पे. नाम. गोचरी दोष गाथा सह बालावबोध, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ तक नहीं है.)
गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पहिला वांछवा जाणवा, (पू.वि. गाथा-५ के पंचम दोष से है.) २. पे. नाम. अतिचारचिंतवन गाथा का टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सयण क० सोवाना संथारि; अंति: काउस्सग्गमां चिंतवे,
(वि. टबार्थ बालावबोध की तरह लिखा है.) ३९२६९. (+#) चौरासी आशातना छंद वदोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १६x४३). १.पे. नाम. ८४ आशातना छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष शुक्ल, १३, शनिवार, प्रले.पं. यशोविजय गणि; अन्य.
ताराचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय पास जगत्रधणी; अंति: श्रीजिनसासन ते वली,
गाथा-१४. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित है.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३९२७०. (+) पौषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४४५-५०).
पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहत; अंति: येन शीघ्रंरचयांचकार, श्लोक-७५.
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२३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९२७१. (#) सिंदूर प्रकरण व दहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, कुल पे. २,
ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. श्राव. जेसींगचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुविधिनाथ प्रसादात, श्रीपार्श्वजिनाय नमः., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (८६७) जला रक्षे तला रक्षे, दे., (२८.५४१३, ६४३३). १.पे. नाम. सिंदूर प्रकर्ण, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे.वि. मूल कृति के अत में आ. चंद्रकीर्तिसूरि कृत
टीका का उल्लेख किया गया है परन्तु प्रत में टीका नहीं है. तदनन्तर प्रतिलेखकने अपनी धार्मिक मान्यता सहित एक गाथा में पुष्पिका लिखी है. तथा यह सब कृति के श्लोकानुक्रम अंतर्गत ही दिया है. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००,
___ (पू.वि. श्लोक-९८ अपूर्ण तक नही हैं.) २. पे. नाम. जैनदहा संग्रह, पृ. २२आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३९२७३. (+#) शत्रुजयतीर्थ आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ६, प्रले. मु. हरखसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२७.५४१३, १६४३८). १. पे. नाम. विमलाचलतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चालो सखि जिनवंदन जइइ; अंति: देवचंद्र पद निकोरे,
गाथा-६. २.पे. नाम. श्रीसीमंधर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालिताणा. सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देवचंद्र पद पावेरे,
गाथा-९. ३. पे. नाम. श्रीयुगमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख कृष्ण, ११, रविवार, ले.स्थल. कंचनगिरी. युगमंधरजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीयुगमंधर विनवू; अंति: जिनपदकज सुपसाय रे,
गाथा-१०. ४. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: थांसु प्रेम बन्यो छे; अंति: दिल मान्या है मेरा, गाथा-५. ५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख कृष्ण, १२, ले.स्थल. सिद्धाचल तीर्थ.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुज मुजरीझनी रिझ; अंति: सीस एहज चित्त धरैरी, गाथा-५. ६.पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंति: प्रभुना गुण गावोरे, गाथा-५. ३९२७४. (+) स्थविरावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, ४४४७).
नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२५ तक है.) नंदीसूत्र-स्थविरावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जय० विषय विकारादिकने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-२५ तक है.) ३९२७५. (+) पंचमीपर्व आदि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ९, ले.स्थल. पेथापुर,
प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३४४२). १. पे. नाम. बीजनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. श्रीपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. इग्यारसनी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: ऐकादसी अति रुवडि; अंति: निवारो संघतणा
निसदिन, गाथा-४. ४. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूरो देवि सिधाईजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण
तक नहीं है.) ६. पे. नाम. रोहणी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
रोहिणीतप स्तुति, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक ऐ जिनसेव; अंति: जो जिन भगति राचे जी, गाथा-४. ७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल तीरथनोराया: अंति: लक्ष्मीविजय
सुख पाया, गाथा-४. ८. पे. नाम. दीवालि स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऐह दिवाली पर्व पनोतु; अंति: सकल संघ आनंदा जी,
गाथा-४. ९. पे. नाम. गोडिपार्श्वनाथनी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भाणविजय तस करेवि,
गाथा-४. ३९२७६. (+) शीयलनी नववाड्य, संपूर्ण, वि. १९३७, माघ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सरसपुरा, प्रले. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन्सिल से संशोधित., संशोधित., दे., (२७.५४१३, ११४३३). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने हुंजाओ भामणे,
ढाल-१०, गाथा-४५. ३९२७७. ज्ञानपांचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, ११४३७).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतांसावधाना, श्लोक-४. ३९२७८. (#) बारव्रतना दृष्टांत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र खंडित होने से क्रमांक
का पता नहीं चल रहा है अतः प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक ३ दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, १७४३४-४०).
१२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करवो विशेषे करीने. ३९२७९. रहनेमी सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. कसनगढ, प्रले. सा. रतु (गुरु सा. वदु); गुपि. सा. वदु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १७४४०). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: (-); अंति: आसोज ग्रंथ मंडाण,
ढाल-५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ३९२८०. सिद्धाचल कल्पसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, माघ कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अमदावादनगर,
प्रले. श्राव. बेचरदास बादरसी दोशी; पठ. श्राव. धर्मचंदजी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जगतवल्लभ प्रासादे., दे., (२७.५४१२, ६४३९-४३).
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुजजत्तफलं, गाथा-२५.
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्ता केवलिई; अंति: यात्रा फल पामे. ३९२८१. (+) वीरजिन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा बीच
में एक गाथा लिखनी छूट गई थी जो किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन्सिल से हासिए में लिखी गई है., संशोधित., जैदे., (२६-२६.५४१२.५, ११४३७).
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नरक
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६. ३९२८२. (+) दयाछत्रिसि, संपूर्ण, वि. १९५८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाने की कोशिश की गई है., संशोधित., दे., (२६-२७.०४११.५-१२.५, १४४३७-४१). दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहि., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरणकमल गुरुदेव के अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३९२८४. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२७.५४१२, १८४४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३
दोहा-२ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ३९२८५. (+) पर्युषणा स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रतिलेखकने अंत में लेखनमूल्य संबंधि इस प्रकार लिखा है 'श्लोक ३० पानां सुधि बे आना'., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ८४३६).
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४,
___ग्रं. ३०, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ३९२८६. (+) पक्षीक नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३-१३.५, १२४२७).
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-३३, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक ३० तक श्लोकांक लिखा है, बाद में तीन श्लोक का
क्रमांक १-१ लिखा है.) ३९२८७. (+) अष्टप्रकारी पूजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१३.५, १६४३४-३७). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाशजे; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३९२८८. (#) छ आवश्यक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १२४३१-३६). ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से ३८
तक है.) ३९२८९. (+) रोहिणि तपविधि स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ११४३७).
रोहिणीतपविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर शंखेश्वर नमी; अंति: पंडित वीरविजयो जयकरो,
ढाल-४, गाथा-४८, ग्रं. ९०. ३९२९०. (+#) नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, ११४३६). नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम निरंजन बालपण; अंति: गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४,
गाथा-१६, ग्रं. ५०. ३९२९१. (+#) दसपचखाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, ११४३२). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद
तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३, ग्रं. ५०. ३९२९२. (+#) दंडक सूचीमात्र यंत्र, अपूर्ण, वि. १९०४, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७-२७.५४१३, १६४२८). दंडक प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वैमानिक असंख्यातगुणा, (पू.वि. द्वार ८ तक नहीं
है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९२९३. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७-२७.५४१२.५, ११४४०-४६).. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: (-), (पू.वि. षष्ठम
आलापक प्रारंभ तक है.) ३९२९४. (+) तेतीसबोल थोकडोव बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२७.५४१२, १९४४०-४४). १.पे. नाम. ३३ बोल संग्रह, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: सात भयना स्थानक एह; अंति: पिंडतमरण मरइ. २.पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. शील की ३२ उपमा, ३० आशातना, ३४ अतिशय आदि
बोल संग्रह.) ३९२९५. (+) पार्श्वजिन अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १०x४०-४४).
पार्श्वजिन अष्टक, मु. रत्नसिंह, सं., पद्य, आदि: कल्याणकेलिसदनाय नमो; अंति: जनताभिमतार्थसिद्ध्यै, श्लोक-८. ३९२९६. (+#) देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, ११४३१).
देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९२९७. भगुपीरोहित चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्रले. केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५-१३.०, १७४४०).
भृगपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: छाडा जी रधमत आदरो, ढाल-४, (पू.वि. ढाल ३ गाथा ९ तक
नहीं है.) ३९२९८. (+) आवसग सप्रण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. सा. भागाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १७४३९). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामिण भंते; अंति: जीव नमसकार
होज्यो. ३९२९९. (+) हितोपदेसमालारत्न सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, आषाढ़ कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विसाला, प्रले. पं. मोहनरुचि (तपागच्छ); पं. चेतनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, ७४२८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: पामइ रमइ सएच्छाए,
गाथा-३६.
उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरत्न को भंडार; अंति: इण वात मे संदेह नहि. ३९३०१. (-) ज्यंबद्विपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३१).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वणु; अंति: रइया हरीभद्दसूरिहि, गाथा-३०. ३९३०२. (+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४४८).
प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलो बोल; अंति: (-),
(पू.वि. बोल-३३ अपूर्ण तक है.) ३९३०३. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. आचार्य पट्टानुक्रम कोष्टक दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १९४४१).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वज्रसेनस्वामी से विजयदेवसूरि पर्यन्त है.) ३९३०४. पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१२.५, ६x४१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ ___अपूर्ण तक है.) पार्श्वनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८००, आदि: (१)प्रणिपत्य जिनान्, (२)श्रीनाभिराजाना
पुत्र; अति: (-). ३९३०५. परमेष्टिमंत्र स्तोत्र व जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३८-४२). १.पे. नाम. परमेष्टिमंत्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अंति: श्रेयांसि लभते नरः, श्लोक-२३. ३९३०६. (#) अठपुहरी पोसह विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १२४३६-४०).
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दो घडी रात्रि रहे; अंति: (-). ३९३०७. भरहेसर सझाय व बाराक्षरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२८). १.पे. नाम. भरहेसर सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. बाराक्षरी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
सं., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: (-), (पू.वि. छै शब्द तक है.) ३९३०८. षट्परवी अधिकार गर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१२.५, १५४५०).
महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: नाम
षटपरवि धौं, ढाल-८. ३९३०९. (+) सम्यक्त गर्भितं सम्यक्त व हरिबल रास से उद्धृत दुहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. सम्यक्त गर्भित सम्यक्त, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार.
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. २. पे. नाम. हरिबल व हितशिक्षारास से उद्धृत मुहपत्ति विषयक दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी
अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३९३१०. मृतकनी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, १२४३८).
साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जे स्थानके काल कर्यो; अंति: देहरे दरसण करवा जाय. ३९३११. खीमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८x१२.५, ११४३२).
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमा गुण आदर; अंति: खीमा सयल जगीस जी,
गाथा-३६. ३९३१२. महादेव स्तवना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. धर्मचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १३४३७). महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमः तस्मै,
श्लोक-४४. ३९३१४. (+) नवग्रहस्तुतिगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १४४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: गहाण पीडति, गाथा-१०,
(पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: न पीडयति न बाधते, (पू.वि. गाथा-४ से है.) ३९३१५. छिन्नूजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १७४३८). ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चउवीसी वांदु: अंति: सदा जिनचंदसूरणा,
ढाल-५, गाथा-२३. ३९३१६. (+) शांतिनाथ व जंबूस्वामी कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त
विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १७-२२४४८-६८). १.पे. नाम. शांतिनाथ चरित्र का चयनित संक्षेप कथासंग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
शांतिनाथ चरित्र-चयनित संक्षेप कथासंग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: अथोज्जयिन्यां; अंति: का वाकृतिः. २.पे. नाम. जंबूस्वामी चरित्र का चयनित संक्षेप कथा संग्रह, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी चरित्र-चयनित संक्षेप कथा संग्रह, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुरुष ते जीव १ अटवी; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा-१६ प्रारंभ पर्यन्त लिखी है.) ३९३१७. (+) सकलार्हत् स्तव, बृहत्शांति स्तोत्र व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२७४१२.५, १४४३४). १.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति:
भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. ॐ ऋषभ अजित गाथा प्रारंभ तक है.) ३९३१८. रामचंद्र लेख व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १७४४२-५०). १. पे. नाम. रामचंद्र लेख, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण..
मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: स्वस्ति श्रीलंका; अंति: हृदयि अमीरस थाय, ढाल-५, गाथा-५१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शील विषये, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११
प्रथमपाद अपूर्ण तक है.) ३९३१९. (+) सप्ततुत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ११४४०).
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३९३२०. चंदनबाला व अर्जुनमाली सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२-१२.५, १९४४०). १.पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: जी सासणनायक संजम; अंति: चोथम० सुणजो सहु भाइक, गाथा-२८. २. पे. नाम. अर्जुनमाली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिणराय तणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ३९३२१. नवकार रास, अपूर्ण, वि. १८३५, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १७४३७). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: रिद्धि वांछित फल लहे.
गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-४ तक नहीं है.) ३९३२२. (+) शील रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५,
१६४४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण
तक है.) ३९३२३. (+) खंदकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १६x४२).
खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम ढाल गाथा-१२ से तृतीय ढाल प्रारंभ तक है.) ३९३२४. (+) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११, १७४४५).
अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४१ से २७० तक है.) ३९३२५. विरविजय पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. पार्वतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १४४३०). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण चंद;
अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३. ३९३२६. दश पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१३, २३४१७).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३९३३०. (+#) आदिम्ररजीनी विनती, मृगापुत्र सज्झय व पनरतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २३४६१). १.पे. नाम. आदिम्ररजीनी विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आदिजिनविनती स्तवन-श@जयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणिसर अति;
अंति: मुनि वैरागी इम भणीइ, गाथा-४५. २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मृगापुत्र सज्झाय, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दोगुंदुक सुरनी पर; अंति: वंदना विविध प्रकार, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पनरतिथि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
१५ तिथि सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विद्या वरदायणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ३९३३१. (+#) गोतमाष्टक व तुंगीयापुरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, ., (२५४१३, १३४३५). १.पे. नाम. गोतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: यच्छतु वांछितं मे, श्लोक-९. २. पे. नाम. तुंगीयापुरनी सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीयापुर नगर; अंति: देवलोक मजाय रे, गाथा-१३. ३९३३२. (#) सिद्धाचलजी उपरे सिद्ध थया तेहनी विगत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, ११४३०-३६).
शत्रुजयतीर्थे सिद्ध आत्मा विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र सुदि १५ मे; अंति: (-). ३९३३३. (#) सूयगडांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्रले. भागा सरभणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१०.५-११.५, १६४५१). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र - वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९३३४. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ७४३९-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं..
प्रथम अध्याय अपूर्ण तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारभिक
___ कुछ पाठ तक ही टबार्थ लिखा गया है.) ३९३३५. (+) चोविसजिन कल्याणकदिन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५४१३, १४४३८).
२४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ३९३३६. (#) तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १५४४०-४३). पट्टावली तपागच्छीय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रीवर्द्धमान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३५
तक लिखा है.) ३९३३७. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी-अधिकार १ से २, अपूर्ण, वि. १६७३, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१,
प्रले. मु. सत्यकीर्ति (गुरु ग. पुण्यतिलक); गुपि.ग. पुण्यतिलक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका को हरताल से मिटाने का प्रयत्न किया गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, १६४४१-४४).
अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. द्वितीय अधिकार श्लोक-२५ अपूर्ण से है.) ३९३३८. (#) नेमिजिन नवभववर्णन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७-२७.५४१२, १७७३८-४६).
नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: यादव भवदव उल्हवि राय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६८ तक है.) ३९३३९. द्वादशत्रिंशसतिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१३.५, १३४३१).
साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नम्राखिलाखंडलमौलिरत; अंति:
स्ताद्वर्द्धमानो मम, श्लोक-३३. ३९३४०. विवाहसोधन उपय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक २आ पर हासिए व खाली जगह में एकार्गल चक्र व प्रत में अन्य कोष्ठक भी अंकित हैं., जैदे., (२७.५४१२, १२४३४). विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जोतिस तणो मरम्म, गाथा-३८, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.,
गाथा-२६ अपूर्ण से है.) ३९३४१. (+#) अक्षयतृतीया व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १३४३६).
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. ३९३४२. (+#) सील सज्झाय व चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११, १४४५१). १. पे. नाम. सील सीज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कतारे; अंति: कुमुदचंद समूजलौ,
गाथा-१०. २.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: (अपठनीय),
श्लोक-८. ३९३४३. साधुना अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२७४१२, ११४३७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. षट्काया विराधना पाठ अपूर्ण से है.)
३९३४४. (+) पार्श्वनाथ स्तवन व स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, १५x५४).
१. पे नाम, अजितनाथदंडक स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
अजितजिन स्तुति-दंडकगर्भित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शारदासेविनां शारदा, श्लोक-४, (पू. वि. अंतिम श्लोक अपूर्ण मात्र है. )
२. पे. नाम. अजितनाथ स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: विश्वत्रयीकीर्तित, अंति: रक्षां कुरुतादरीणः, श्लोक-४.
३. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ संपूर्ण
सं., पद्य, आदि: कृतिजनकृत्तसेवा:; अतिः समानं जैनदेवी वितानं श्लोक-४.
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४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, प्रा., पद्य, आदि: तमतमहरण तवण सम छण; अंति: शिवसुंदर सुहकरो हवओ, गाथा- ६. ५. पे नाम, २४ जिन स्तव, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
सं., पद्य, आदि: शमरसोरुसरः सरलाशय, अंति: (-) (पू. वि. लोक-१४ तक है.)
३९३४५. ऋषिमंडल व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. सुंदरविजय, पट मु. धीरसागर,
1
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१३-१४.०, १८३५).
१. पे. नाम ऋषिमंडल स्तंत्र, पृ. १९आ- ३आ, संपूर्ण.
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदिः आचंताक्षरसंलक्ष्य, अंतिः लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक- ९७.
२. पे नाम, सकलात. प्र. ३आ-४आ, संपूर्ण.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी आदिः सकलात्प्रतिष्ठान, अंतिः जिनो वा नमोस्तु ते श्लोक-३३.
३९३४७. (+) शील रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६-२ (१ से २) ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११ १७४४४)शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: एम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा- ७७, (पू. वि. गाथा-२६ के प्रारंभ के शब्दांश पर्यंत नहीं है.)
३९३४८. सिद्धदंडिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. कृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कोष्ठक भी आखि
है., दे., (२७.५-२८.०X१३, ३x४२).
सिद्धइंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत, अंतिः दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा- १३. सिद्धइंडिका स्तव बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि; जंक० जे उस क० ऋषभ, अंतिः सुख ते प्रते आपो
३९३४९, (+४) जीवविचार प्रकरणम्, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले मु. कर्मचंद, पठ. श्राव. मोहनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक द्वारा इस प्रकार उल्लेख किया गया है 'कोइ लेणे पावय न', संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५x१२.५, १०x२६).
""
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति : रुद्दाओ
सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
३९३५०. दीपमालिकापर्व सिझाच, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७४११, १३४३९).
दीपावलीपर्व सज्झाय, आ. पाचंचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: तीरथनायक बंदीयइ जिण, अंति: हरष धरी श्रीपासचंद, गाथा - २२.
३९३५१. () शालिभद्र सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२७४११.
"
१५x२४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरीन सिणाक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३
तक है.) ३९३५२. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, १७४३६).
साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चोबिसी रषबा; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३९ तक है.) ३९३५३. (-#) सकलार्थ स्तोत्र व चतुर्दशी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. शांतिविजय (गुरु गच्छाधिपति नयरत्नसूरि, बृहत्तपागच्छ); गुपि. गच्छाधिपति नयरत्नसूरि (बृहत्तपागच्छ); पठ. श्राव. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंदाप्रभु चैत्याले. प्र. लेखन स्थल कांठलदेश का प्रतापगढ़ नगर., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १६४२७). १. पे. नाम. सकलार्थः, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३२. २.पे. नाम. चतुर्दशी नमस्कार, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: वंदे श्रीज्ञातनंदनं, श्लोक-१२. ३९३५४. पंचज्ञान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६६, पौष शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. साणंद, प्रले. पंन्या. नयविजय; पठ. श्रावि. धोलीबाई; अन्य.सा. वृद्धश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वृद्धश्रीजी सत्क., जैदे., (२७४१२, ११४३३).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो पंचमी दिवसे; अंति: रे ज्ञानमहोदय गेहरे, ढाल-५. ३९३५६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्रपाठ, अपूर्ण, वि. १८६३, पौष शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, ले.स्थल. गुंडल,
पठ. मु. तिलकचंद (गुरु मु. गोकलजी); गुपि. मु. गोकलजी (गुरु मु. राघवजी); मु. राघवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३५-४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४,
(पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९३५९. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४५०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १४ से ३४ अपूर्ण तक है.) ३९३६१. पंचास्वरजीजिन स्तवन व वाख्यांन करवानी पीठका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १४४३२). १.पे. नाम. पंचास्वरजीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन भजीये रे; अंति: परमानंद सुख पाया,
गाथा-९. २. पे. नाम. वाख्यांन करवानी पीठका, पृ. १आ, संपूर्ण.
व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: अशरणशरण भवभयहरण; अंति: करीने तुझे सांभलो. ३९३६२. (+#) कल्याणमंदिर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२९-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३९३६३. (+) मेघकुमार द्रष्टांत व दशआश्चर्य वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२७४११, १७४४२-४५). १.पे. नाम. मेघकुमार द्रष्टांत, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: राजगृह नगरि राजा; अंति: धर्मसारथी कहीइ. २.पे. नाम. १० आश्चर्य वर्णन, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.
प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: उवसग्ग १ गब्भहरणं २; अंति: (-), (पू.वि. सुमतिसाधुसूरि के वृत्तांत अपूर्ण तक है.) ३९३६४. (+#) सीमंधरजिन आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ
का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १४४४४). १.पे. नाम. सीमंदरजी की स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभूस्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिणवर प्रणमुं; अंति: इम जीवत जनम प्रमाण,
गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंति: कलित्त बहु वित्त, गाथा-४. ५. पे. नाम. एकादशी की स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ६.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३९३६५. (#) गौतमपृच्छा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११.५, १७४३५). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: (-); अंति: जे जिनवरने वस्यु, गाथा-११७,
(पू.वि. गाथा-९६ तक नहीं है.) ३९३६६. (+) मृगांकलेखासती चरित्र, अपूर्ण, वि. १५६४, कार्तिक कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ११-८(१ से ८)=३,
ले.स्थल. घानोघ, प्रले. मु. देवचंद्र (आगमगच्छ); अन्य. मु. हांसा ऋषि; मु. जसा ऋषि; मु. नादा ऋषि; सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); गुपि. सा. रुपा आर्या; अन्य. मु. जीवराजऋषि (गुरु मु. भाणा ऋषि); गुपि. मु. भाणा ऋषि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. यह प्रति रचना के समीपवर्ति काल में लिखित होने की संभावना है. प्रति के अंत में इस प्रकार के अलग-अलग उल्लेख है 'ऋषि श्रीहांसा जसा नादा प्रति भणवा आलीती' 'आर्या रुपाई आर्या लीलांनी प्रति छइ' 'ऋषि भाणाना सषि ऋषि जीवराजनी प्रति', संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १६-१९४५१). मृगांकलेखा रास, श्राव. वछ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सविहु० करुं प्रणाम, गाथा-४०७, (पू.वि. गाथा-२९० तक
नहीं है.) ३९३६८. (+) गुरुछत्रीसी, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४४०).
जैनदर्शनमंडनछत्रीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मागु., पद्य, आदि: रिसह पमुहा जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण
तक है.) ३९३६९. साधुप्रतिक्रमण व पाक्षिख स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२,
१२४३७-४१). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. सूत्र-२१. २.पे. नाम. पाक्षिख स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९३७२. (+) दीपावली देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८).
दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर;
___ अंति: (-), (पू.वि. नमो गणधर चैत्यवंदन प्रारंभिक पाठ पर्यन्त है., वि. मात्र स्तवन, स्तुति व चैत्यवंदन ही लिखे हैं.) ३९३७३. आत्मशिख्या गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२७४११, १२४३५).
औपदेशिक गीत-आत्मशिक्षा, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणी अलगोरहिज्यो रे, गाथा-२६,
(पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९३७४. अष्टदान दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४११.५, १३४३६).
वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वसतिदान व शयनदान विषयक कथा
३९३७५. बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, ११४२७-३३).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. श्रीसंघजगजनपद पाठ प्रारंभ
तक है.) ३९३७६. साधारण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १०४२९).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये. श्लोक-२५. ३९३७७. (+) नंदीसूत्र मंगलगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १२x२६).
नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयई जगजीवजोणीविआणओ; अंति: संघसमुद्दस्स रुदस्स, गाथा-११. ३९३७९. (#) २४ दंडक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. प्रति के प्रारंभ में मंत्र लिखना प्रारंभ करके छोड़ दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१५-१७४३६-३८).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेसा ठिती; अंति: (-). ३९३८०. (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १७६२, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
ले.स्थल. विसावदर, प्रले. मु. नेणसी ऋषि; अन्य. मु. त्रीकम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १५-१७४४३-५६).
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आयुष्यद्वार अपूर्ण से अवगाहना द्वार प्रारंभ तक
३९३८२. सिद्धांतविरुद्ध संग्रहणी १३ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, जैदे., (२७४१०.५, १३४३७).
१३ बोल विचार-सिद्धांतविरुद्ध संग्रहणी, मा.गु., गद्य, आदि: पढम जोयणसए ए गाथा; अंति: ५ समय वक्रगतई
कह्या, संपूर्ण. ३९३८३. (#) पाखी नमस्यकार, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, प्रले. य. गोरजी चेलूजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७.५४१२, ९४३७). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
वीसंवंदामि तित्थयरे, श्लोक-३६. ३९३८४. (#) चौवीस दंडक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १३-१५४३५).
२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवलोक विचार से आयुष्यद्वार विचार अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३५ ३९३८५. श्रावक आलोयणा, अपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१,
प्रले. श्राव. कल्याणजी जीवराज शाह; पठ. श्राव. वनमालीदास उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने अंत में इस प्रकार लिखा है 'आ प्रत्य सामा उतारा परमाणे उतारी छे। ते श्रीगोधावीवाला सावक सा वनमालीदास वी उमेदरामने वास्ते लिखी आपी छे ते सुध वस्त्र पेहेरी सुध जग्योये बेसी उपयोग राखी वांचवी। वांचनारा भाईयोने माहरो प्रीणाम होजो', दे., (२६.५४११.५, १२४५२).
श्रावक आलोयणा, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव आराधक पद पामसे. ३९३८६. (+) कर्मग्रंथ १ से ३, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. ३, प्रले. मु. कल्याणभवान ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १२-१८४३३-४३). १.पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: भणिओ
देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. २.पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. २आ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहतं
वीर, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा ५ से २९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. बंधसामित्तं, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं
कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ३९३८७. (+) देशनाशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ५४२६-३१).
आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ प्रारंभ तक ही है.)
आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारे नथी सुख जन्म; अंति: (-). ३९३८८. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १६४५०).
२४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: यत्राखिलश्रीः श्रित; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३२ अपूर्ण तक है.,
वि.) ३९३९०. जीवरास सझाय, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीनगर, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५४११, १३४४१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: करुं जनम
पवित्र, ढाल-३, गाथा-३०. ३९३९१. (#) वैदर्भी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४३१). दमयंतीसतीरास, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ से ४८ अपूर्ण
तक है.) ३९३९२. (#) चतुरविंशति नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १०४३३). नमस्कारचौवीसी, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पदम करे परणाम, चैत्यवंदन-२४, (पू.वि. प्रारंभिक ३
चैत्यवंदन नहीं है.) ३९३९३. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, प्रले. मु. नेताजी ऋषि (गुरु मु. अमराजी
ऋषि); गुपि. मु. अमराजी ऋषि; पठ. श्रावि. शुद्धा (माता श्राव. पार्श्वदत्त); गुपि. श्राव. पार्श्वदत्त, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिकागत विद्वान नाम मिटाने का प्रयत्न किया गया है., जैदे., (२६४११, ७४४८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
,
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. ११वी आदि (-) अंतिः रुदाओ सुवसमुदाओ, गाथा- ५१, (पू. वि. गाथा ९ से २५ अपूर्ण तक व ४२ से अंत पर्यन्त है.)
"
1
जीवविचार प्रकरण- टवार्थ मे, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: गहन सिद्धांतसमुद्रधी (पू. वि. टनार्थ गाथा ९ से २५ अपूर्णक ४२ से अंत पर्यन्त है.)
३९३९४. मौन ११ गुणणो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५X११, १८x४१-६२).
मौनएकादशीपर्व गणणं. सं., को, आदि: जंबूद्वीपे भरते, अंतिः (१) गुणणो वे वे हजार, (२) कीधड़ वशेष उज्जमणो कीजइ. ३९३९५. योगानुष्टान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५X१०.५, १७३५).
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: इच्छामि खमा० इच्छाका; अंति: पुठिइ पवेइणुं पवेईइ.
(#)
३९३९८. राजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. प्रति अलग-अलग दो प्रतिलेखकों द्वारा लिखित है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६.५४११.५, १४४३५).
"
शुकराज रास, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: श्रीरीसहेसर वीनवु अंति: (-), (पू.वि. डाल १ गाथा ५
अपूर्ण तक ही है.)
३९३९९. पार्श्वजिन आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. प्रति गुटके की पद्धति से लिखी गई है., जैदे., (२५.५X११.५, १३X३६).
१. पे. नाम, गोडीपास्वनाधनु स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण,
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परकरदेश बिराजे छै; अंति: गोतम प्रभुने सीरनामी,
गाथा-७.
२. पे. नाम. संखेसराजीनुं स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. देवचंद्ररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर वंदीइ, अंति: पूरो वंछित काज, गाथा-७.
३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मु. , गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणंदने भेटीये, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३९४०० (+) दश पखांण, संपूर्ण वि. १८९९ श्रावण कृष्ण, ७ सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, वढलु, प्रले. मु. मनरूपहंस; पठ. मु. कस्तुरहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X११.५, १३३३-३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: महत्तरागारेणं वोसिरे, (वि. नोकारसी, पोरसी,
साढपोरसी, एकासणुं, ठंडा पाणीनुं एकासणुं, एकलठाणुं, नीवी, आंबिल, तिविहार व चोविहार उपवास, बेलो, , तेलो आदि पच्चक्खाणों का संग्रह.)
३९४०१, (+) भयहर स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६.५x१२, ७५२८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंति: भय नासर तस्स दूरेण, गाथा - २४. ३९४०३. (+) प्रथम कर्मग्रंथ सह अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है..
प्र. वि. संशोधित - पंचपाठ टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्थाही फैल गयी है. जैदे., ( २६.५X११.५, ९x४२).
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ७ अपूर्ण तक है.)
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ अवचूर्णि आ. गुणरत्नसूरि, सं. गद्य वि. १४५९, आदिः श्रियाष्टप्रातिहार्य अंति: (-), (पू.वि. अवचूर्णि गाथा-७ अपूर्ण तक है.)
३९४०६. (+) युगादिदेव महिम्नः स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५ १०४४२). आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति रमाब्रह्मैकतेजोमयी, लोक-३८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९४०७. (#) जिणमार्ग, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२७४११, २०४४२).
साधुवंदना, रा., पद्य, आदि: जीणमार्गमधुरसं आद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ३९४०८. अढारानातरा सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४११.५, १७४३६). १८ नातरा सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा ११ से ढाल ४ गाथा
८ तक है.) ३९४०९. रहनेमिराजीमती सझाय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२७४११, १९४३७).
रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सीधने आरीया; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-५ गाथा-११ तक है.) ३९४१०. प्रदेशीराजानी चउपुर्ण, अपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, ले.स्थल. पोखरजी, प्रले. सा. जतु (गुरु सा. वधुजी); गुपि. सा. वधुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १७X४२). प्रदेशीराजा रास, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: पालसी ते उतरसी भवपार, ढाल-१९, (पू.वि. अंतिम ढाल गाथा-१० अपूर्ण
से है.) ३९४११. सिद्धचक्र व पर्युषणा स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२, ११४४५). १. पे. नाम. सिद्धचक्रनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्नं; अंति: प्रेमपूर्णे प्रसन्ना, श्लोक-४. २. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्यजनाः सदा; अंति: सा संघस्य सिद्धायिका, श्लोक-४. ३९४१२. (#) द्वितीय कर्मग्रंथ व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३४). १. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., मात्र गाथा-१३ तक लिखा है.) २. पे. नाम. एकेंद्रियादि स्पर्शादि विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक किंचित् अंशमात्र है.) ३९४१३. अनुयोगद्वारसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१५(१ से १५)=२, जैदे., (२६.५४११.५, १२४५६).
अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)जं चरणगुणट्ठिओ साहू, (२)दुक्खक्खयट्ठाए,
प्रकरण-३८, (पू.वि. अंतिम किंचित् अंशमात्र है.) ३९४१४. उववाईसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४११, ११४३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९४१५. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ के अतिम अक्षर से गाथा
३६ तक है.) ३९४१६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११, ४४५१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से
१३ अपूर्ण तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-).
३९४१७. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, प्रले. पं. मनरूपसागर, पठ. मु. भगवान (गुरु पं. मनरूपसागर), प्र. ले. पु. सामान्य, दे., ( २६.५X११.५, १२X३२).
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति मिच्छामि दुक्कडम् (पू. वि. कुल १५ प्रत्याख्यानों में से प्रारंभ के १० प्रत्याख्यान नहीं हैं.)
३९४१९ (+) जंबुधीपनो विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२,
,
१६x४२).
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affit: (-).
जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो पहुल;
३९४२०. (+) वादिघटमुद्गर, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७१२, १८x४८). वादिघटमुद्रर वादस्थल, सं., गद्य, आदिः इह हि पूर्व पूर्वपक, अंतिः साध्यावगतिरिति, ३९४२९. मेघमुनींद्र सीज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे. (२६.५४११.५, १३४४४).
मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु, पद्य, आदिः समरी सारद स्वामिनी अंतिः प्रेमे प्रणमे हो पाय, ढाल ६. ३९४२२. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२७x९२.५, १९४३९).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संत अंतिः जिणववणे आवरं कुण्ठ,
गाथा ४०.
३९४२३. (+) अमकासती सझाव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २ अन्य. सा. अशोकश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रति के अंत में किसी पेन से 'साध्वीजी अशोकश्रीजी' लिखा है., संशोधित., दे., ( २६.५X१२, १२x२९).
अमकासती सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमका ते वादळ उगीयो; अंति: वीजय गुण गावतां रे,
गाथा - २२.
३९४२४. (#) योगसार सह अन्वयार्थ - प्रस्ताव १, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८४१२, १७४५७).
"
योगसार, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
योगसार - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रागद्वेषरहित एवा परम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
३९४२५. अढारनात्रा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२७४१२, १९४३९).
१८ नातरा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमी, अंति: सार बोली माहासतीरि, ढाल-४, गाथा-३३. ३९४२६. (+#) वर्द्धमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२६.५X१२, १२X४१).
महावीरजिन स्तवन, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: इक मन वंदो श्रीवीर, अंतिः विनव मनबंछित आसा घणी, गाथा-२८. ३९४२७, (+) संधारापोरसी, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५४१२.५ १२४३२).
"
संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा: अंतिः इअ समतं समागहिअं, गाथा- १४.
३९४२८. रत्नागुरु भास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२६४१२, २१४४५).
"
रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतन गुरु गुण मीठडा, अंतिः रे दशमी बाल उदारे, गाधा ४६.
"
३९४२९. जीवविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४-२ (१ से २) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२७४१२, ११४३८)जीवविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. ढाल ३ गाथा ३ अपूर्ण से बाल ६ गाथा ७ अपूर्ण तक
है.)
, י
""
३९४३० (+) ५ समवाय से स्वरूप, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५X१२, १३४३१). ५ समवाय विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: काल सभाव नियति पुव्व; अंति: तिवारे झगडता रह्या. ३९४३१. (#) अढारहजार शीलांगरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. यंत्र भी दिया गया है., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२, १४४१०-३७).
१८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करति मणसा; अंति: च बंभं च जइधम्मो, गाथा-२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९४३२. (+) विजयशेठने विजयाशेठाणीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अंत में मूल्य संबंधित इस प्रकार उल्लेख किया गया है. 'श्लोक-३९ की० पैसा १० पाना सुधि साडा अगिआर', संशोधित., दे., (२६.५४१२, १०x४०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे समुद्; अंति: आनंद वधे
नवनवे, ढाल-४, ग्रं. ३९, (वि. प्रथम ढाल में दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ३९४३३. (#) नवतत्व विचार व दश आश्चर्य वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्र
क्रमांक का पता नहीं चल रहा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २२-२६४५०-५५). १. पे. नाम. नवतत्व विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नवतत्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व भेद १४; अंति: बहुत्वं मोक्षतत्वं. २. पे. नाम. १० आश्चर्य वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण.
__प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: उवसग्ग गब्भहरणं; अंति: एगम्मि समयम्मि. ३९४३४. (+) वीतराग आत्मार्थं ग्रां स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, १२४३४).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ३९४३५. स्वसांसारिकदुःखप्रकटन तदुःखप्रतिकारविज्ञप्ति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५४१२,११४४६).
दुःखप्रतिकारविज्ञप्ति स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: आनंद यः परं प्राप; अंति: सर्वैः सुखैर्योजयन्,
श्लोक-३७. ३९४३६. उत्तराध्ययनसूत्र के भास संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४११.५, १७X४७). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गुण हियडई; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. प्रथम, त्रयोदशम अध्ययन के भास संपूर्ण व पंचदशम अध्ययन भास गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३९४३७. (+) ऋषभदेव आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२,
१६४५५). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि: अंति: भवजले
पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. शांतिनाथजिनस्य स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः,
श्लोक-४. ३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय
ज्ञानकलानिधानः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९२४, आश्विन कृष्ण, १, ले.स्थल. खीमेलनगर, प्रले.पं. चिमनसागर,
पे.वि. प्रतिलेखकने यह प्रति शीघ्रगत्या लिखी है ऐसा उल्लेख किया है. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति:
नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४, (वि. कृति के अंत में 'पं. मेरुविजय विरचितं' इस तरह लिखा है.) ६.पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अथवा अन्य किसी प्रतिलेखक द्वारा लिखी
गई है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रात्रिभोजनत्याग स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी ए; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३९४३८. (+#) आचार्य जसवंत चौमासो, घंटाकर्ण स्तोत्र व पंचषष्टि स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,
प्र.वि. पत्रांक-२आ पर यंत्रालेखन के लिए रेखाएँ अंकित की है किन्तु अंकलेखन में प्रथम लाईन पर ही अपूर्ण छोड़ दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १५४४२). १.पे. नाम. जसवंत आचार्यजी चोमासा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हेमजी (गुरु मु. कल्याण ऋषि); गुपि. मु. कल्याण
ऋषि (गुरु मु. कृष्णदास ऋषि); मु. कृष्णदास ऋषि; पठ. श्रावि. नागबाई; श्रावि. हरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम. जसवंत आचार्य गहुंली, पं. सुरताण, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सकल जिन समरी सदा; अंति: संघ सहुनी
सुखकरु, ढाल-४, गाथा-३९. २.पे. नाम. घंटाकर्णो महास्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. २आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: (-),
(पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ३९४३९. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १२४२९).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३९४४०.(+) उत्तराध्ययनसूत्र- इसुयारियज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२, १५४४५-४६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३९४४१. वीरजिनद्वात्रिंसतिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १२४४२).
महावीरजिनद्वात्रिंशिका-समसंस्कृत, आ. जयशेखरसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अकंपसंपल्लवलीवसंत; अंति: पात्रं
प्रमोदश्रियः, श्लोक-३२, ग्रं. ४५. ३९४४२. (+#) चतुर्विशतिजिन स्तव संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं,
जैदे., (२७४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवनं, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, श. १६७५, पठ. मु. कान्हा ऋषि; मु. पंचायण ऋषि; मु. धर्मसी
ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
२४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: आनम्रनाकिपतिरत्न; अंति: परमार्थसिद्धिम्, श्लोक-२५. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद
में लिखी गई है.
सं., पद्य, आदि: विमलनाभिकुलांबरचंद्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ३९४४३. (+) वीरजिन जन्ममहोत्सव विवरण व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२,
१३४३०). १. पे. नाम. वीरजिन जन्ममहोत्सव विवरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. वीरजिन जन्माधिकार अंतर्गत
___ छप्पनदिक्कुमारिका आगमन से जन्माभिषेक महोत्सव तक है.) २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जैनगाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुल गाथा १५ तक है., वि. गाथा क्रम इस प्रकार है
८+५+१+१.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९४४४. (+-) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बरांटीयानगर, प्रले.
गंगाराम पंडित; पठ. मु. केसोदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने लेखन विषयक इस प्रकार का उल्लेख किया है. 'प्रीतर्थे लिखत्वा'. मंगलवार के दिन द्वितीय प्रहर में इस प्रति का लेखन पूर्ण हुआ., संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १३४३९-४३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३९४४५. सिद्धचक्र स्तवनं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक १अपर सुंदर सिद्धचक्र यंत्र आलेखित है., जैदे., (२६४११.५, १४४२१). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क
नमामि, गाथा-६. ३९४४६. (+#) शांतिजिन स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४५२). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वंछित काम सवे फलइए, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सिद्धगुण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. सिद्धों के १५ भेदों के विषय में टिप्पण दिया गया है.
सिद्धपद सज्झाय, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिद्धने करूं; अंति: मुंहनि सिद्धनुं सरण, गाथा-१६. ३. पे. नाम. विंशतिविहरमानजिनेंद्र स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीश्रीगणधर गण स्तव; अंति: तेह निश्चल सुख
पामसइ, ढाल-३, गाथा-३२. ४. पे. नाम. जीवदयाप्रतिबोध गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुरलहो नरभव भवभमता; अंति: न्यानिकुल
अजुआलि, गाथा-१३. ५. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक गीत-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरिहंतजी अवरनइं; अंति: करेसि निंद्या पारकी,
गाथा-४. ३९४४७. (+#) वीरजिन २७ भव व शनिदृष्टि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४४३). १. पे. नाम. वीरजिन २७ भव वर्णन-कल्पसूत्रगत, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १७६१, भाद्रपद कृष्ण, ५,
प्रले. पं. सुमतिकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य. कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. कल्पसूत्रगत महावीरजिन सत्ताइसभव व विशेष
ग्रंथानुसार २८ भव वर्णनात्मक व्याख्यानांश है.) २. पे. नाम. शनि दृष्टि, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
शनिदृष्टि श्लोक, सं., पद्य, आदि: मेषे वृषे च मिथुने य; अंति: दृष्टिर्भवति तत्र वै, श्लोक-४. ३९४४८. (+#) औपदेशिक सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२,११४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वात तणो एही पर्मसु, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-८ तक नहीं है.) २. पे. नाम. राजेमतीनी सझाइ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीने वीनQ; अंति: मलीया मुगति मझारि,
गाथा-२८. ३. पे. नाम. जुठातपसी भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
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मु. चारण, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामन वीनवु; अंति: सहु सधार्या सूत, गाथा- १५.
४. पे. नाम. जुठातपसीनी भास, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.
जुठातपसी भास, मु. लालजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्ररथम गणपति लागु; अंति: तेना पातिक दुर पलाए, गाथा-३९. ३९४४९. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. हितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रति के अंत में किसीने 'हीतवी' लिखा है. संशोधित. दे. (२६.५४१२, १४४४२).
.
"
""
नवतत्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः बोहिय इकणिकाय, गाथा ५१. ३९४५० (+) जिविचार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पेन्सिल से अल्पमात्रा में संशोधित संशोधित. दे. (२६.५x१२,
१४X३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
३९४५१. (+) संभवजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूच लकीर-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे (२६.५x१२.५, १०x२७).
१. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: संभव जिनवर वंदिये रे; अंति: गाया संभव जिणंद, गाथा-९. २. पे. नाम, बीसवहेरमानजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण
२० विहरमानजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदिः श्रीमंदिर युगमंदिर, अंतिः गणि मेघराज उलास, गाथा-७.
३. पे. नाम. अजीत स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: अजित जिणेसर वंदिइ; अंति: गणि मेघराज उलास रे,
(२६४१२, १४X३२).
१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १.अ. संपूर्ण,
गाथा - ९.
४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: ऋषभ जिणेसर चरणकमलने, अंति: गणि मेघराज उलास, गाथा ६.
५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: अभिनंदन जिन वंदिये अति गणि मेघराज उलास, गाथा ७.
६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण, वि. १८२०, आषाढ कृष्ण, ७, ले. स्थल. दीवबंदर, पठ. श्राव सोमचंद, सा. कुंबर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. किसीने बाद में इस प्रकार लिखा है 'आर्या कुंबरने अर्थ लिख्या है दीवबिंदर मध्ये.
ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: पास जिणेशर वंदीये रे, अंति: कहे गणि मेघराज रे, गाथा- ७.
७. पे. नाम, गुरु भास, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जगजीवनगुरु भास, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जन मुगुटमणिरे, अंतिः संघ सहनी पूरो आसरे, गाथा ९. ३९४५२. (+) औपदेशिक पद संग्रह व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, दे.,
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उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब मोहो दरसन, अंतिः सेवक सुजस वखाने, गाथा-६.
२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: काहा करुं मंदिर काहा, अंति: करे दुनिया में फेरा, गाथा-५.
३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.. महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद पद लीध रे,
गाथा - ९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९४५३. (+) जिनप्रतिमा वंदनफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १६९१, माघ शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुराक्राम,
प्रले. मु. मुक्तिराज शिष्य (गुरु मु. मुक्तिराज, तपागच्छ); गुपि. मु. मुक्तिराज (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३६). जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिण चउवीसइ करूं; अंति: किरतिविमल सुख वरवा,
गाथा-१२. ३९४५४. (+) मेघकुमारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४५).
मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण नीलो; अंति: भणता रे सूख थाय, गाथा-२१. ३९४५५. पार्श्वजिन तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, ११४२८).
पार्श्वजिन स्तवन-जीराऊला, मा.गु., पद्य, आदि: माहानंद कलांणवली वसं; अंति: श्रीपासजी रंगि गाउ, गाथा-११. ३९४५६. (+) अणसनी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १४४४६).
अनशन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: आराधनापताकापइन्ना; अंति: पंडितमरणं भवति. ३९४५७. (+) पुण्यपापविपाक कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४३१).
पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसं दिणसहस्सा; अंति: धम्मम्मि उज्जमह,
गाथा-१६. ३९४५८. (+) जीराउलि पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखकने अध्यात्मकल्पद्रुम ग्रंथ का प्रारंभ करके
प्रथम गाथा अपूर्ण ही छोड़कर जिराउला पार्श्वनाथ स्तोत्र का प्रारंभ किया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १८४४८). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीराउलि राउल कयनिवास; अंति: जण
मज्झ पूरि आस, गाथा-४४. ३९४५९. (+#) संबोधसत्तरी व विविधगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखकने गुणवाची शब्दों
पर अंक लिखे हैं., संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३४). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह प्रत पं. दीपविजयजी द्वारा
लिखी गई प्रत की प्रतिलिपी है.
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७२. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जैन गाथा , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१६, (वि. चरणसत्तरी, करणसत्तरी, पंचपरमेष्ठि गुणादि विषयों की
____ गाथाएं हैं.) ३९४६०. (+) लघुशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७९९, भाद्रपद, १, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले. श्राव. माणेकचंद नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अल्प मात्रा में अज्ञात पदार्थ से संशोधित., संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४२४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९, (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण
तक नहीं है.) ३९४६१. नवकरवाली स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. इस प्रति में एक अक्षर लाल स्याही से व दूसरा अक्षर
काली स्याही से इस प्रकार क्रमशः संपूर्ण लेखन किया गया है. प्रत की किनारी को रेखाओं से सुशोभित की गई है., दे., (२५.५४१२.५, ८x२०). नवकारवाली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहोनी चतुर नर ते कुण; अंति: मोहन० बुद्ध सारी रे,
गाथा-६. ३९४६३. पक्खिपडिकमणाविधि गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, संवद्रुद्रनिधिश्चंद्र, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, रविवार, मध्यम, पृ. १,
ले.स्थल. विक्रमनगर, प्रले. मु. दत्तविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ४४३४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्ति वंदणय; अंति: सव्वे
पक्खिपडिक्कमणं, गाथा-३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवसीरी वंदेतु कहीने; अंति: पडिकमणारी
विधि जाणवी. ३९४६५. च्यार शरणं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १२४३०).
४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरणां; अंति: दिन मुझ कदि होस्ये,
अध्याय-४, गाथा-१२. ३९४६६. (+) आत्मानी आत्मता व द्रव्य गुण पर्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. आत्मानी आत्मता, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आत्मतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: रमवूते चारित्र. २.पे. नाम. द्रव्य गुण पर्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. द्रव्यगुणपर्याय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अस्तित्वं १ वस्तुत्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
प्रारंभिक किंचित् अंश मात्र लिखा है.) ३९४६७. (+) भयहर स्तवन, अपूर्ण, वि. १६९३, पौष शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. वीरजी (गुरु मु. धना ऋषि);
गुपि. मु. धना ऋषि; पठ. सा. रुपा आर्या; सा. लीला आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १३४३४). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भय तस्स नासेइ दूरेण, गाथा-२५,
संपूर्ण. ३९४६८. गौतमप्रीछा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १२४४३).
गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी पूछा; अंति: न होय नीरवाण हो वछ, गाथा-३७. ३९४६९. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोटा ऋषि; पठ. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक की जगह पर कागज चिपका होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२६४११.५, १४४४२). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: कयं अभयदेवसूरिहिं,
गाथा-२२. ३९४७०. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४३).
पार्श्वजिन स्तवन-नवसारीमंडन, ग. संघमंगल, अप.,मागु., पद्य, आदि: नवसारीमंडण पाससामी स; अंति: सण नाण
लहई विभव. ३९४७१. (#) २४ जिन मातापितानाम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ८x२५).
२४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नाभराय राजा मुरदेवा; अंति: पहुची मुक्त मंझार, गाथा-२५. ३९४७२. (+) वखांणरी पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. मु. उत्तमविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने अंत में इस प्रकार का उल्लेख किया है 'फागण वुद ११ दने मेलो हतो', संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२७).
__व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: चेतनो आगल वखाण सलावो. ३९४७३. सालिभद्रनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. लीला आर्या, सा. तेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १७४४४).
धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहिपुर नयरी; अंति: जग्य सोहामणो ए, गाथा-३३. ३९४७४. (+) ८ कर्म १४८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, २०४४४).
८ कर्म १४८ प्रति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठकर्म ग्यानाबरणी १; अंति: वीर्य अंतराय ५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९४७८. (#) अमरशक्तिप्रियदर्शना रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४७). अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि*, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (-);
अति: (-), (पू.वि. गाथा २८ अपूर्ण से ८७ अपूर्ण तक है., वि. कृति का प्रारभिक भाग मात्र है जिसमें राजा अमरशक्ति, उसकी राणी प्रियदर्शना एवं तीन पुत्र १ वसुशक्ति २ उग्रशक्ति ३ अनंतशक्ति का नाम है, पुत्रों को पढ़ाने के
लिए कुलगुरु के पास अभ्यास प्रारंभ करने तक है.) ३९४८०. कर्मविपाक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-२(४ से ५)=४, जैदे., (२६४११, १२४४३).
८ कर्मविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इह नाण सणावरण वेय; अंति: चउ तिसय दुपणविहं, गाथा-१, संपूर्ण.
८ कर्मविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव करइ ते कर्म कहीइ; अंति: अतिहि चीक' बांधइ, अपूर्ण. ३९४८१. मानतुगमनवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १४४४१). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. ढाल ७ गाथा १४ से ढाल ९ दोहा ३ तक है.) ३९४८२. तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. अशोकश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पेन्सिल से 'असोकश्रीनी परत छे' इस प्रकार लिखा गया है., दे., (२८x१२, १३४४६).
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-९. ३९४८३. (+) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८१७, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११.५, १५४४६). ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरे सदा; अंति: उत्तम पदवी पावो रे,
ढाल-८. ३९४८४. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १२४५०-५५).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र __हैं., संसारदावा० स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
धाराबद्ध नहीं लिखते हुए आवश्यकतानुसार कहीं-कहीं पर ही अल्प मात्रा में टबार्थ लिखा है.) ३९४८५. (+#) भावारिवारण स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ७४४३). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.)
महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अंतरंगवैरिगजनिवारण; अंति: (-). ३९४८७. (+) पंचास्तिकाय की तात्पर्यवृत्ति टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. ऊपरी भाग
पर संशोधन के अक्षर किनारी खंडित होने से विनष्ट है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, १४४५०). पंचास्तिकाय-तात्पर्यवृत्ति, आ. जयसेन, सं., गद्य, ई. ११वी, आदि: (१)स्वसंवेदनसिद्धाय जिन, (२)अथ
श्रीकुमारनंदिसिद्; अंति: (-). ३९४८९. नागिलानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४३५).
नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घरे आविया; अंति: समयसुंदर
सुखकार रे, गाथा-१७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९४९०. (+#) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: (-),
(पू.वि. प्रस्ताव ४ गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३९४९२. पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान ९, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. लाभश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखन मूल्य के विषय में इस प्रकार लिखा है 'श्लोक १५ की ०६ पैसा पाना सुद्धि', दे., (२६.५४१२, १०४३१). कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अति: बुध माणक मन भाय, ग्रं. १५,
(प्रतिपूर्ण, पू.वि. नवम व्याख्यान की सज्झाय है.) ३९४९३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ६x४७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किं विशिष्टं अंह्रि; अंति: समूहाः शीघ्रं लभते. ३९४९६. परमानंदपचवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, माघ शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागनेश, प्रले. श्राव. मोहनलाल उत्तमचंद्र शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. झालावाड प्रांत का नागनेश गाँव., दे., (२६४११.५, ५४२९). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: प्राप्य परमपदमात्मनः,
श्लोक-२५.
परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परमानंद क० मो तेणे; अंति: एहवी स्थिति रहेता. ३९४९७. (+#) परिहांबत्रीसी, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १८४४५).
परिहांबत्रीसी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: काया काचे कुंभ समान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ३९४९८. (+#) बाहुबलिभरतेसर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. धना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२९). भरतबाहुबली छंद, मु. वादीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (१)कतिएरभं नत्वा छंदं, (२)छंदं भरथेस्वर बाहुबल; अंति: तुह्म
गुण एक वखणीइ, गाथा-६०. ३९४९९. नेमनाथजन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४११.५, १८४३५).
नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सकल सिद्ध प्रणमेव; अंति: पाठक जनने सुखकरु,
गाथा-४२. ३९५००. (+-#) उवसगहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १२४३४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, गाथा-१३. ३९५०१. सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६४१२, १०४३७).
सुमतिजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सुमति जिनवर हो प्रभु; अंति: गणि मेघराज गुण गावे,
गाथा-५. ३९५०२. (#) आदिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४३६).
आदिजिन स्तवन, मु. अभयराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: णइ दया धर्म दीपावीया,
ढाल-२.
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४७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९५०३. (+#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६४२६-३०).
शांतिजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर सोलमा; अंति: जी हो करो शांति पसाय, गाथा-१९. ३९५०४. तेजसिंहगुरु भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, १२४३३).
तेजसिंहगुरु भास, मु. वीरपाल, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जणिसिरने नमी; अंति: वीरपाल पायो रे, गाथा-९. ३९५०५. (+) अभयकुमारचंडप्रद्योतन कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राधणपुर, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४५).
अभयकुमारचंडप्रद्योत कथा, सं., पद्य, आदि: पण्यस्त्रियैधर्मकर्म; अंति: गतो चंडोथ भूपतिः, श्लोक-४०. ३९५०६. (+#) आदिजिन पद वस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६४११, १२४४३). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
क. देपाल, मा.गु., पद्य, आदि: बहुगण सारी बेडली आठे; अंति: मूरख कवि देपाल, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. वीतराग सत्वन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सर्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: जिनपते सविवेकमुदित्व; अंति: हतमोहतमोरिपु वीर ते, श्लोक-९. ३९५०७. (+) चिंतामणिपार्श्व स्तोत्र व भैरवपद्मावती कल्प-तृतीय परिच्छेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४११.५, १२४२५). १. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. २. पे. नाम. भैरवपद्मावती कल्प- तृतीय परिच्छेद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. भैरवपद्मावती कल्प के तीसरे
परिच्छेद से चयनीत श्लोकों का संग्रह है.) ३९५०८. (+#) वीतराग आदि स्तव संग्रह व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, १७४६२). १.पे. नाम. वीतराग स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: मम केवला स्यात्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. वीतराग स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. प्रभानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: अंभोजाक्षीर्मदुत्तर; अंति: छ्रीप्रभानंदसूरिः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. साधारण स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सर्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: जिनपते द्रतमिद्रिय; अंति: हतमोहतमोरिपुवीर ते, श्लोक-९. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, श्राव. वेल्हण, सं., पद्य, आदि: जयति भुजगराजप्राज्य; अंति: स्थिति चिरमाश्रितः. ५. पे. नाम. एकद्वीबहुवचनाश्लेष स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: शस्ताशर्मावृतसुमहिमा; अंति: वीक्षयाध्यासतां मां, श्लोक-४. ३९५०९. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुतयः, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४३४).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. श्लोक
२८ तक है.) ३९५१०. पंचजिन आदि स्तोत्र संग्रह व जिनभद्रसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. खंडित भाग पर
कागज चिपकाया होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पंचजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
५जिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: आसाढकिन्हचउथीवयार; अंति: सिवं सुजएउ वीरो, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
२४ जिनकल्याणक स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जाणकल्लाणइ संसइ जमणं; अंति: कल्लाण खेमंकरा, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सरभसनतविद्याधरसुरवर; अंति: जायते सकलसुखभाजा, श्लोक-६. ४. पे. नाम. चउपई श्रीजिनभद्रसूरिभिः, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनभद्रसूरि गीत, मु. जिनराजसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनभद्रसूरि इसा; अंति: राज कउता जिनभद्रसूरि,
गाथा-११. ५. पे. नाम. आज्ञा सव, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नयगमभंगपहाणा विराहिआ; अंति: विग्धं कुणउ अम्हाणं,
गाथा-११. ३९५११. (+#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. मु. मनरुप; मु. खुसाल; मु. केसरविजय, मु. हेतविजय,
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मुनि मनरुप आदि चारों विद्वानों के नाम व १ से १०० अंक तक पत्रांक १अपर दिये गये हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३९). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: विनयह उवसाय
कणीजइ, गाथा-७२, (वि. कर्ता नामवाले अंतिमवाक्य को मिटाने का प्रयास किया गया है.) ३९५१२. (#) पंचतीथ व पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२६४११.५, ११४३२). १. पे. नाम. पंचतीथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
५जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेसरा परम; अंति: भगवंतनी कीर्ती भणता, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार.
उपा. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: भीडभंजन प्रभु भीड; अंति: धरी नाथजी हाथ सायो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
सिं., पद्य, आदि: अमा मानीगडो कंदी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३९५१३. (+) अनुबंध व वृत्तगणफल सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४९, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-पंचपाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १०४३४). १.पे. नाम. अनुबंधफल सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: उच्चारणेस्ति वर्णा; अंति: चानुबंधः कथितो
मुदा, श्लोक-१०. अनुबंधफल-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वद व्यक्तायां वाचि; अंति: भवदीयः भवतोरि कणीयसौ. २. पे. नाम. गणफल सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. वस्तुतः पत्रांक १अपर
से ही अवचूरि का प्रारंभ किया गया है. किन्तु पूर्व पेटांक पत्रांक १आ पर समाप्त होता है अतः संगणकीय नियमानुसार सही पत्रांक बाधित होने के कारण पेटांक का पृष्ठांक १आ भरा है. किन्तु सही पृष्ठांक १अ-१आ है. वृत्तगणफल, संबद्ध, ग. वानर्षि, सं., पद्य, आदि: द्युतादेरद्यतन्यां; अंति: चैतदीषितं वानरेण हि, श्लोक-६.
वृत्तगणफल-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: द्युति दीप्तौ; अंति: वृद्धिं नेच्छंति. ३९५१४. (#) भक्तामर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. तीर्थविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२१x१०.५, ११४३०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४९
.,
३९५१५. नववाडी सज्झाय व अरजिन सबईयो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे २, जै. (२६५११, १८४५२). १. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. रायसिंघ ऋषि (गुरु मु. गणेश ऋषि); गुप. मु. गणेश ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वृद्धि रे मंगलमाल कइ, ढाल -९, गाथा- ६२, (पू. वि. ढाल ६ गाथा २५ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. अरजिन सवईयो, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. अरजिन सवैयो, पुहिं., पद्य, आदि: शशधर सम वर वदन; अंति: नमत जपत जन भवभय हरन, गाथा- १. ३९५१६. (+) धन्नाअणगार स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि): गुपि. मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२६.५x१२, २०x४४). १. पे. नाम. धन्नाअणगार स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण.
,
धन्नाअणगार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: निरुपम शिवसुख थाय,
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गाथा - १०.
२. पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. गजमुख, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमल गुण वेलडी; अंति: गुण गाता जयकार, गाथा-५. ३. पे नाम, अरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखाकर गुण; अंति: मानइ सुख मेरु समान, गाथा-३.
४. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: कामकलस समो गुणधारी, अति: प्रेम बंद करजोडी, गाथा- ९.
५. पे नाम. इच्चरजिन स्तवन. पू. १आ. संपूर्ण.
ईश्वरजिन स्तवन, मु. प्रेम मागु, पद्य, आदि: इसरजिन नमीयइ सदा रे, अंतिः प्रभु० साचो धरम सनेह, गाथा ५.
.
६. पे नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण,
मु. प्रेम मागु, पद्म, आदि: सोवनवान सोभाकरु हो; अंतिः मुनि० भावे कीजइ सेव, गाथा-४.
७. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर युगमंधर, अंति: तेहनइ होइ सदा कल्याण, गाथा-४.
३९५१७. (+) संभवजिन स्तवन संग्रह व खंघकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे.,
(२६.५X११, १४X३५).
१. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब साभली विनति; अंति: तणी ए विनती छे छेली,
गाथा-८.
२. पे नाम, खंधकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा- २३ अपूर्ण से किसी अन्य विद्वान द्वारा या बाद में लिखी गयी है.
मु.
जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: गौयम गणधर मन धरु; अंति: ऋषि जयसिंघ गुण गाय, ढाल-४,
गाथा - २८.
३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मुने संभव जिनशुं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.)
३९५१८. पुण्यफल सझाइ व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे (२६.५X११, १३x२७). १. पे. नाम. औपदेशिक सझाइ - दानफल, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्म, वि. १६वी आदि एक परि घोडा हाथीया, अंतिः पुंनि प्रमाण रे, गाथा ११.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: हुं नवि मागुं वासवनी, अंति: आपो अविचल ट्ठामरे, गाथा - ३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक
१ को दो बार विखा है एवं बाद में गाथांक २ दिया है, जो वास्तव में गाथांक ३ है.)
३९५२०. (+) उपधान विधि व नंदिकरण विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, अन्य. पं. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पं. महिमासागर गणि की निश्रा में यह प्रति लिखी गई., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १६X३५).
१. पे. नाम. उपधान विधि, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: बुद्धाणं वाचना.
२. पे. नाम. नंदिकरण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण.
नंदीकरण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: खमा० मुहपत्ति पडिलेह; अंति: नंदिसूत्र भणति ३९५२३. (+#) माहावीर स्तवन व धन्ना अणगारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. भीमा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ऋषि भीमा की प्रति है, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.,
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(२६११.५, १६x४७).
१. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तव - बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: ढइ कहइ अभयदेवसूरिहिं,
गाथा- २३.
२. पे. नाम. धनाअणगारनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण
धनाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवुं अंतिः भणइ एहवा साधुनो सरण,
गाथा - १५.
३९५२४. (+) वीर स्तवन व करणचरणसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे.,
(२५.५X११-११.५, ६X३४).
१. पे. नाम. वीर स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण, अन्य. मु. सधराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभवदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि जइज्जा समणे भयवं अंतिः सत्तुमित्तेसु वा वि.
-
गाथा - २१.
महावीरजिन स्तवन- बृहत् टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत वर्त्ति श्रमण, अंतिः एतालानइ विष सम २. पे. नाम. साधुनामाचार सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण.
चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १० ; अंति: चेव करणं तु, गाथा-२. चरणसत्तरी- करणसत्तरी गाधा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहिंसादि ५ क्षांत्या अंतिः द्रव्यक्षेत्रादि ४. ३९५२५. (+) पदमावतीनी आलोयण आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ४, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X११.५, १८३९).
१. पे. नाम पदमावतीनी आलोचण पृ. १अ २अ, संपूर्ण,
पद्मावती आराधना, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती अंतिः कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल - ३, गाथा-३४.
२. पे. नाम. वेलजी ऋषि का कमलादे साध्वी को पत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.
पत्र - वेलजी ऋषि का कमलादे साध्वी के नाम, मु. वेलजी ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिनं; अंति: (-). अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण,
३. पे. नाम. सुदर्शनशेट्ठनी सझाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद विराजता अंति: प्रेम मुनि जयकारी रे, बाल-४, गाथा-२१. ४. पे. नाम. नेमनाथनु तवन, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि पाय; अंति: धनवजइ सव सुख करु, ढाल-४,
गाथा-४९. ३९५२६. महावीरचरित्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४११.५, १०४३०).
दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह,
गाथा-४४. ३९५२८. (#) माणिभद्र स्तोत्र वसुभाषित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मोहबतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. माणिभद्र सतोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सेवित तसु; अंति: माणिभद्र जय जय
करण, गाथा-२१. २. पे. नाम. सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण.
सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३९५२९. (+#) साधारण व नमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४३२). १.पे. नाम. साधारण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य; अंति: लोक्यलक्ष्मीश्वराः, श्लोक-८. २.पे. नाम. नमसकार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
त्रिलोकचिंतामणी वीरः, श्लोक-३१, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक २५ के बाद पूर्णता सूचक संकेत दिया है.) ३९५३१. (#) नेमीनाथ बारमास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९, ३१४१३-१९). नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसिर मासइ रे मोहिउ; अंति: गाया हर्ष
उल्हास, गाथा-२७. ३९५३२. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रारंभ में इस प्रकार लिखा है 'धर्माचार्य श्रीपंचायणमुनि सद्गुरुभ्यो नमः', पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२४४९.५, १२४३७).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३९५३३. चकेसरी स्तुति वनेम पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०-१०.५, १३४२८). १. पे. नाम. चकेसरी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
चक्रेश्वरीदेवी छंद, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: मा चक्रेसरी सिद्धाचल; अंति: तेहने फल भरज्यो, गाथा-११. २. पे. नाम. नेम पद, पृ. १आ, संपूर्ण..
नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन कवि, रा., पद्य, आदि: मानै रुडो लागे छै; अंति: समकित चाख्यो लेस, गाथा-७. ३९५३५. (+) अंतरीकपार्श्वनाथजीरो छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६१, माघ, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
ले.स्थल. नांदीपुरनगर, प्रले. मु. बुधीयाखुशाल; पठ. मु. दीपविजय; पं. भाणविजय (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय); गुपि. पंन्या. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. जीवतस्वामीजी प्रसादात्. श्री बांभणवाडजी. श्री शांतिनाथजी. श्रीशारदाजी., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (८७४) त्यां लग मेरु अडग है, (८७५) लेखण खडीया मछड बडी, (८७६) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२४४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. अंतरीकपार्श्वनाथजी रोचंद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात मया करी आपो; अंति: जयो देव जे
जे करण, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा १६ तक ही गाथांक लिखा है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३९५३६. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. भावसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १०४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३९५३७. (+) अष्टप्रकारी पूजा व आरती संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५,
१२४३३). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८. २.पे. नाम. शांतिनाथ की आरति, पृ. ३आ, संपूर्ण..
शांतिजिन आरती, सेवक, पुहि., पद्य, आदि: जै जै आरती संत; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन आरति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
साधारणजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: इहविध मंगल आरती कीजे; अंति: वंछित फल निश्चय पावे, गाथा-९. ४. पे. नाम. अष्टप्रकार की पूजारा दहा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहि., प+ग., आदि: सुचि सुगंध वरकुसुम; अंति: अमृतधर्म० पद कल्याण,
गाथा-९, (वि. इस प्रति में मात्र दोहे ही लिखे हैं. विधि नहीं लिखी है.) ३९५३८. (+#) चैत्यपरिवाड का स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३३).
९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनरवाणी; अंति: रिद्धि वृद्धि आणंद ए, ढाल-८. ३९५३९. (#) आलोयण स्तवन व निंदात्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३३). १. पे. नाम. आलोयण स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंत्ता भवत्तणा;
अंति: प्रभु आद्धि जिणंद तो, गाथा-५९. २. पे. नाम. निंदात्याग सीज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: म म कर जीवडारे;
अंति: समयसुंदर कहै येम, गाथा-६. ३९५४१. (#) तीरर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १२४३०). ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनरवाणी; अंति: नमतां रिध वृध आणदए,
ढाल-८. ३९५४२. देवीपद्मावती स्तोत्र व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५,
१२४३०). १.पे. नाम. देवीपद्मावती स्तोत्र सर्वोपसर्ग्रहर, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी आदि मंत्र संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण.
जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. विधि सहित दो मंत्र दिये गये हैं.) ३९५४३. (#) शेजेजय रास व २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन गाथा, संपूर्ण, वि. १८५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. शेव॒जय रास, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
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५३
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आनंद थाय, ढाल ६.
२. पे. नाम. २४ तीर्थंकर के साथ में पुरुषसिद्धगतिगमनसंख्या गाथा, पू. ४आ, संपूर्ण.
प्रा. पद्य, आदि: एगो वीर भवनं, अंतिः निष्ट्टिय अनुकम्मभरा, गाथा ४.
३९५४४. (+४) दसपच्चक्खाण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, ले, स्थल, जेसलमेर, प्रले. मु. सौभाग्यविमल, पठ. मु. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड़ गये हैं, प्र. ले. लो. (९०२) भणजो गुणजो वांचजो, जै (२४४११.५, ९x२९).
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगाए सूरे नमुक्कार; अंतिः बत्तियागारेणं वोसिरइ. ३९५४५, (+४) दंडक विचार षट्त्रिंशिकासूत्र, संपूर्ण वि. १८८४ श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, भागनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११.५, १०x२८-३१).
"
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ,
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गाथा- ४०.
३९५४६. (+-#) साधुअतिचार व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४-२४.५४११.५, १३४२८)
१. पे. नाम. साधु अतीचार, पृ. १अ- ४अ, संपूर्ण, वि. १९६१, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, ले. स्थल. फलवृधी, प्रले. मीठीयो; पठ रत्नलाल, आदकरण, मघेलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. माणीभद्र प्रसादात्, आदिनाथ प्रासादात् चत्रेस्वरी प्रसादात्, श्री श्री सदाई गुरुदेव साथ छे.
"1
साधुपाक्षिक अतिचार से.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि० अंतिः मिच्छामि दुक २. पे. नाम. देव वांदवानी वीध, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरिवहि कहीजे तसओतरी; अंति: कहीजे दीन उगीमां.
३९५४८. (#) चोवीसदंडक साध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, पठ. श्राव. जीवण वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४-२४.५X१०.५, १५X३६).
3
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर, अंतिः धर्मसीह सुजगीस ए. बाल-४, गाथा-३४.
३९५४९. संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, वे. (२४४११, ६x२१)
संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि अंतिः इअ समतं मए गहिअं, गाथा १० (वि. प्रारंभ में दो
,
है.)
गाथा की जगह एक गाथा गिनी गई है.)
३९५५० (+) सोभाग्यपंचमी स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, नाडोलनगर, प्रले. मु. चुतरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपद्मप्रभुजी., संशोधित., जैदे., (२४X११.५, १५X३५).
१. पे. नाम. सोभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण
नेमिजिन स्तवन- ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि सारद मात पसाउले निज अति: दवाकुशल आणंद थयो, ढाल -३, गाथा- ३०.
२. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच, प्र. २आ, संपूर्ण.
महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांह, अंति: (-). ( अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३ तक लिखा
३९५५१. (+#) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. दोलतविजय; पठ. श्रावि. वाहलांबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, ११x२९).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरें ठाम, अंति: कांति सुख पामे घणुं,
ढाल - २, गाथा - २४.
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३९५५४. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. प्रामुक पानी आदि का विचार किसी अन्य विद्वान द्वारा या बाद में लिखा गया प्रतीत होता है., संशोधित., दे., (२३.५X११.५, १२x२९).
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कर्म स्थितिबंध, पल्य विचार, पकवान आदि का का विचार आदि संग्रह.)
३९५५५, (+) चउवीसजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५४१०५. ११४३०).
२४ जिन स्तवन- लंछन व गणधरसंख्यागर्भित, मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी, अंति: मिलइ नवनिधि अंगण, गाथा - २७.
३९५५६, (४) नेमराजिमती आदि पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ६ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.. (२४४१०.५, ९४२७).
१. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: जदव मैरौ मन हर लियौ; अंति: चंद कहै मन हरखियौ रै, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पद की एक गाथा गिनकर ५ गाथा लिखी है.)
२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जालम जौगीडा से लागी; अंति: मन करुं कुरवांण रे, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पद की जगह एक गाथा गिनकर गाथा ६ लिखी है.)
३. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण,
आदमखान, पुहिं., पद्य, आदि: बाबौ रिषभ वेठै अलवेस; अंति: तार लीजै अपनो करके, गाथा - ३.
४. पे नाम. अनंतजिन पद, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
अनंतजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि मे तोरी प्रीत पीछाणि अंति: निज सहिनांणी हो, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
११X३१).
१. पे. नाम. चेत्यवंदण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
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मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहां रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा- ३.
६. पे नाम, विहरमानजिन स्तवनवीसी-स्तवन २०, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति रे वाहिरमान जिन विस, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रशस्तिरूप पंच गाथामय मात्र अंतिम ढाल लिखी है.)
३९५५७. (-) चैत्यवंदन सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२३.५४११.५,
1
"
साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: जय जय महाप्रभु; अंति: तिहुणवि ताहे वंदामि, गाथा-१०.
२. पे नाम, पासजिण स्तोत्र, प्र. ९आ-२अ, संपूर्ण
उवसग्गहर स्तोत्र- गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पासं पासं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
,
गाथा-५.
३. पे नाम, जंकिचि सूत्र, पृ. २अ संपूर्ण
प्रा., पद्य, आदि: जं किंचि नामतित्थं अंति: ताई सव्वाई वंदामि गाथा- १.
४. पे. नाम. नमोथाणु, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं, अंतिः तिविहेण वंदामि
३९५५८. (+) चोवीसडंडक, संपूर्ण, वि. १८२०, आश्विन कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. गोयल, प्रले. मु. कनकसोम; पठ. मु. फता (गुरु मु. कनकसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक १ अ पर इस प्रकार उल्लिखित है- 'भणता उठाडसी तो कागलो न कुतरा पेट ज को होसी सही कर माणजो सही', संशोधित, जैदे., ( २३ १०, ११४३०).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ
गाथा - ४१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९५५९. (+#) दादाजीरी धुंभप्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४१०.५, १५४४३).
दादाजी धुंभप्रतिष्ठा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम दिने थूभने; अंति: वाजिंत्र बजावीजे. ३९५६१. (+#) ज्ञानपंचमी आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १०४३१). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर; अंति: कहै जिणचंद मुणिंद,
गाथा-४. २. पे. नाम. मोनएकादसी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अंति: देवी देव करो कल्याण, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विशदसद्गणराजविराजित; अंति: पार्श्वजिनेशमनश्वरं. श्लोक-१. ३९५६४. (+) प्रतिमास्थापक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४५).
प्रतिमास्थापन स्तवन, श्राव. वधो साह, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीसुतदेवी तणै; अंति: साह वधो० जिन तूठो
रे, गाथा-४१. ३९५६५. (#) सर्वारथसिद्धविमाननी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नवानगर, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, ३५४२१). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले
आसो रे, गाथा-१७. ३९५६६. (+#) धन्नाशालिभद्रादि सज्झाय संग्रह व औपदेशिक लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२-१७४३२). १.पे. नाम. सालद्र की सझाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.
धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि पणि नगरी जी; अंति: रंगी का सुख पाईया जी, गाथा-३९. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन शुक्ल, १, प्रले. वरधन मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य.
पुहि., पद्य, आदि: कर कर भजन साहिब का; अंति: आसक अजरा जरता है, गाथा-५. ३. पे. नाम. राजिमतीरहनेमि सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मन चलियो रहनेम को; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम ढाल गाथा-१३ अपूर्ण तक
३९५६८. (+) अंतरीकपार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४५२).
पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो पास जय
जय करण, गाथा-५२. ३९५६९. योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८२, ज्येष्ठ शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. रणुज, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १०४४७). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वाघाई अवरत्ती, अंति: भणति गुरुः इत्यादि, (वि. कालग्रहण,
सज्झाय, योगप्रक्षेप व नंदिकरावणादि विधि संग्रह.) ३९५७०. (+#) महावीरजिन आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३८-४२). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: थुण्यो त्रिभूवन
तिलउ, गाथा-१९, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नीसनेहि स्युं नेहलो; अंति: ज्ञानविमल० बनि आवेलो, गाथा-७. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर चरणनी; अंति: हुओ मुझ मन काम्यो, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक
द्वारा या बाद में लिखी गई है.
मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायकपार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ३९५७१. (#) करमछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३२). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करम थकी कोऊ छूटै नही; अंति: लहसो धरमतणे
परमाण जी, गाथा-३९. ३९५७२. (#) चवदहनियम गाथासह विवरण व हो, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित
है, दे., (२५४१०.५, ९४३७). १.पे. नाम. चवदहनियम स्वरूप सह विवरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१.
श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, आदि: किनहीक श्रावक पांच; अंति: तो सामान्य करणा हे. २. पे. नाम. दूहो, पृ. ३आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३९५७४. (+#) जिनपालजिनरक्षित चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). जिनपालजिनरक्षित चौपाई, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: वर्द्धमान चौवीसमौ; अंति: कह्यौ उदयरतन
गुण दाख, ढाल-४. ३९५७५. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. श्रीवर्द्धमानजी, श्रीगोतमा., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३९५७६. नांमेएलापुत्रनी सज्याए, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १५४३०).
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम येलापुत्र जाणी; अंति: करे लबदवीजे गुण गाय,
गाथा-२६. ३९५७७. औपदेशिक लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१२, १७४४७). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: गई सब तेरी सील संमता; अंति: जिनराज विना भंमता, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजो जगत का ख्याल; अंति: उपदेस सुणो मत कांना,
गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण..
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुं कुबद कलेसण नार; अंति: वात बोत मत खेडे, गाथा-४. ३९५७९. आदिजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. हरलाल
महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४.५४११, १०x२५). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: फागुन मै फागरमो; अंति: निगोदसुंरहो न्यारो, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथांक ३ को जगह भी २ ही लिखा है) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: असी वीतीयारे कुमत; अति: हमसुदुर रहो बाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: अब कर ले रे भजन; अंति: चोरासी मै नही फरुको, गाथा-६. ३९५८०. गुरुगुण गुहली, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, ११४३६). गुरुगुण गहुली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुहली करो गुरु आगले; अंति: पामे शुभ भव पार रे,
गाथा-८. ३९५८१. दानफल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, १२४३५).
औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीआजी; अंति:
पुण्य प्रमाण रे, गाथा-१३. ३९५८२. (+#) तुंगियानगर श्रावकवर्णनादि सज्झाय व द्वौ ऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्र क्रमांक १अपर अंकित किया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४४३). १.पे. नाम. तुंगीयानगरी श्रावकवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंत में 'ढाल नवकारमंत्रनो ध्यान' इस
प्रकार लिखा गया है किन्तु वास्तव में 'तुंगीयानगरी श्रावकवर्णन सज्झाय' है.
मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: तुंगीयानगरीरा श्रावक; अंति: वखाण्या सुतर माय रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. द्वौ ऋषि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक सिद्ध कीधी;
अंति: नाम थकी मंगलमाला, गाथा-१३. ३९५८३. (+) दानशीअलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १८१५, चैत्र शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. रोहितासपुर,
प्रले. मु. राजविजय (गुरु पं. रुचिविजय); गुपि.पं. रुचिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम; अंति:
समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४. ३९५८५. पंचमी स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १४४३३). १. पे. नाम. पंचमीरी थूई, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुद दिन पांचम; अंति: रिषभदास गुण
गाय तो, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजै सुत नेम; अंति: ग्नानविमल० पाया रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण..
आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माई आज रिषभ घरि; अंति: साधुकीरति गुण गावै, गाथा-३. ४. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. करण वीचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. करणविचार विषयक गाथा-४.) ३९५८६. (+#) गुणस्थानक चतुर्दशोपरि बोल १३, संपूर्ण, वि. १८१३, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९).
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१४ गुणस्थानके १३ बोल विचार, मा.गु, गद्य, आदि नामद्वार १ लक्षण, अंतिः मार्गणा १ मोक्ष जाय. ३९५८७ (१) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२५.५X११.५, २३४३५).
,
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: इच्छाकारेण संदिसह, अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., इरियावहीसूत्र से लोगस्ससूत्र गाथा - १ पर्यन्त लिखा है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वेतांबर - बालावबोध", मा.गु. गद्य, आदि: इरियावही विना, अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., इरियावहीसूत्र से अन्नत्थसूत्र कायोत्सर्ग दोष विचार में १४ वें कायोत्सर्ग दोष पर्यन्त है.)
३९५८८ (+) उपधान विधि व उदधिकतिथि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे.,
"
(२५X१२, २०४४२)
१. पे. नाम. श्रीभगवतीसूत्रो वारमड़ शतकि छट्ठड़ उद्देसइ उदयिकतिथि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
१४X३८).
१. पे. नाम. वृत्ते प्रश्न, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
उदयिकतिथि विचार-भगवतीसूत्रोक्त, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: से केणट्टेणं भंते, अंति: परिठवइ ते प्रमाण. २. पे नाम, उपधान विधि-सूत्रोक्त, पृ. ९अ ३आ, संपूर्ण
उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि ऋषि मुनि श्रावकनई, अंतिः न करिवओ अविधि जाणिवड. ३९५८९ (+) प्रश्नोत्तर संग्रह व षद्रव्य विचार, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२.
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जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. प्रश्नोत्तर- ७.)
२. पे. नाम. षट्द्रव्य विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
बोल संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
.
३९५९१. (#) नरतिर्यंचायुविचार गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४×११.५, ७X३३).
मनुष्यतिर्यचायुविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कंचणगिरि पव्वएस अंति: खरकरहाणं तु पणवीस, गाधा-४४. मनुष्यतिर्यचायुविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि कंचणरि पर्वतनै विषे अंतिः उटनो पचीस बरस आउखो.
३९५९२. (+) आलोयणा, संपूर्ण, वि. १८९४, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५x११, ११३०).
""
साधु आलोयणा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह, अंति: ते० मिच्छामि दुक्कडं.
३९५९४ (+०) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x१२,
१४४४१).
अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: तथा प्रथम उपगरण, अंति: रक्ष रक्ष स्वाहा.
३९५९५. दानशीलतपभावना कुलं व दशश्रावक कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक ३आ पर स्वस्तिक आलेखित है., जैदे., (२५X११, १६x४२-४५).
१. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलं, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण,
दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य, आदिः परिहरिय रज्जसारो अंतिः सो लहड़ सिद्धिमुहं
,
वक्षस्कार-४, गाथा-८१.
२. पे. नाम. दशश्रावक कुलक, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
१० श्रावक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जव्वयणामयसित्ता, अंति: भणिअं सुसाहु धीरेहिं, गाथा-१७. ३९५९६ (१) नेमिजिन स्तवन व अष्टमी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १६x४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१.पे. नाम. मौन्येकादशीतिथि नेमिजिन स्तवन, प्र. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४२, आश्विन शुक्ल, ५, ले.स्थल. नाडूलनगर,
प्रले. पं. ऋद्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरी समोसर्य; अंति: पांमीइं मंगल
घणो, ढाल-३, गाथा-२८. २.पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करें जिन आगल; अंति: तपथी
कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ३९५९८. (4) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अनेक स्थानों पर श्लोकों को लिखने के लिए जगह छोड़ी हुई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशदं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
कुल श्लोकांक-६३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. दान, तप, भावनादि विषयों से संबंधित श्लोक संग्रहीत हैं.) ३९५९९. (+) पडिलेहण कुलक, मुहपत्तिपडिलेहणविचार गाथा सहटबार्थ व विचार काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४,
कुल पे. ३, प्रले. पं. ईश्वरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३४). १.पे. नाम. मुमतिपडिलेहणविचार गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन शुक्ल, १५,
ले.स्थल. मेडतानगर. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५.
प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली पहिलेहणर्नु नाम; अंति: चिंतववा कह्या. २. पे. नाम. पडिलेहण कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेण विनयविमलेण, गाथा-२७.
(वि. इस प्रति में कर्तानाम विनयविमल उल्लिखित है.) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखण विशेष ते; अंति: विचार रच्यौ छई. ३. पे. नाम. विचार काव्य, पृ. ४आ, संपूर्ण..
जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३९६००. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ११४२९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३९६०१. (+#) पंचमकर्मग्रंथ सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५३, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. श्रीचिंतामणिजी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११.५, १४४४०). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं
आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ३९६०२. (#) जिनबिंबपूजानो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, ९४३५).
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनबिंब जूंहारो; अंति: श्रीजिनचंद सवाइरे, गाथा-१२. ३९६०४. (+) सम्यक्तसत्तरी सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४७).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयासं; अंति: दसणसुद्धिं धुवं लहह, गाथा-७०. ३९६०५. धन्नाअणगारऋषि सिज्झय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, ९४२९).
धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल नमी वीरना पूछ; अंति: मेरु नमइ वारोवार रे, गाथा-११.
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६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९६०६. नवकारमंत्र सह अर्थ व आदिजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२४४११,
१०४२९). १.पे. नाम. नवकार मंत्र सह अर्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९.
नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमस्कार एवो; अंति: अक्षर ७ सरव अक्षर ६८. २. पे. नाम. नवकारवालीरा मणीयांरो विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
नवकारवाली मणका विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण बारह; अंति: पिण १०८ मणीया करवा. ३. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. पं. अभयकुशल; पठ. श्रावि. रुषमांबाई, प्र.ले.पु. सामान्य.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रीसाणा हो नेमि; अंति: जिनहरष० मुगतें पहुती, गाथा-८. ४. पे. नाम. नेमिराजुल गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काइ फिरि चाल्या हो; अंति: जिनहरख पयंपे हो, गाथा-८. ५. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यो; अंति: सेवे बे करजोडी रे, गाथा-५. ३९६०७. चोविशजिन वसाधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक १अके प्रारंभ में इस
प्रकार उल्लेख है 'संमत् १८८२ काम' एवं पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२३४११, २८x१५). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: बंदौ आदि जिनंदजी सुख; अंति: सही मेटै गर्भावास जी, गाथा-१४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
५जिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: चंदण रुष सुहावणा; अंति: मुजकुं पार उतार, गाथा-९. ३९६०८. (+#) भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, पठ. श्रावि. कर्माइ; अन्य. ग. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४६४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३,
(पू.वि. गुरुवंदन की गाथा ४१ से प्रत्याख्यान की गाथा ४४ तक नहीं है.) ३९६०९. (+) कल्याणमंदिर भाषा व जिनदत्तसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०-४३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. लयां. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम;
अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनदत्तसूरीसरू; अंति: मनसुध त्रिकाल रे लाल, गाथा-९. ३९६१०. देवसीपडिकमणो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, ११४२७).
देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम श्रीगुरु के; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ३९६११. (+#) स्नात्र विध, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जोधपूर, प्रले. मु. कमलसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३६).
स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार; अंति: मुंकीइंठारीइं नही. ३९६१२. (#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कवित्त आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, कुल पे. ६,
प्र.वि. पत्रांक-५आ पर इस प्रकार का उल्लेख है 'अमरसींगी नाममाला पूज्य भट्टारिक श्री श्री श्रीकल्याणसागरसूरिश्वर कृतं १८ सहश्र' एवं अंत में उर्दू भाषा में दो पंक्ति लिखी गई हैं., मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ७X४३).
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ई
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१.पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा १५
से २९ अपूर्ण तक नहीं है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थना धणी; अंति: स्वामीना पूछ्या थकी. २. पे. नाम. विषमभूमिविचरण कवित्त, पृ. ५अ, संपूर्ण.
मु. कुशललाभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विषम भोम थल भुरूट; अंति: हिवे म आणीस मुझ फर, गाथा-१. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण.
शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पांच पद तक लिखा है.) ४. पे. नाम. संयममहिमा शुभाषित, पृ. ५आ, संपूर्ण.
संयममहिमा पद, पुहिं., पद्य, आदि: कवित गीत गुण गूढ; अंति: विण नही कोई आधारा, गाथा-४. ५.पे. नाम. चोत्रीसीयो यंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण.
चौतीसा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्र विधि सहित है.) ६. पे. नाम. दूहो, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक ५अव ५आ पर श्लोक लिखना प्रारंभ करके छोड़ दिया है.
दहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ३९६१५. सक्रस्तव, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. गुंदवच, प्रले. पं. गुणविजय; अन्य. य. रमणिकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४५४). शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: (१)लिलिखे
संपदां पदं, (२)महासुखाय स्यादिति. ३९६१६. पद्मावती की स्वाज्झाए, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भखरी, प्रले. मु. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २०४५७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: ते मुज
मिछामि दुकडं, ढाल-३, गाथा-४५. ३९६१७. (+) कल्याणक विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १५४३४).
२४ जिनकल्याणक तपविधि, रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीसंभवनाथसर्वज्ञाय; अंति: ज्ञानमहोछव करणो. ३९६१९. उवसग्गहरो स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३९, पौष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विशलपूर,
प्रले. मु. शोभाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगुरु प्रसादेन. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, १७X४८). १.पे. नाम. उवसग्गहरो स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संपत श्रीपार्श्व; अंति: विजेयसील मुनी एम भणै, गाथा-९. ३९६२०. चारप्रत्येकबुद्ध गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. धर्मदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३८). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हु; अंति: (-), (पू.वि. तृतीय
प्रत्येकबुद्ध नमिराजा की ढाल पर्यन्त है.) ३९६२२. (+#) स्नान विधव आदीश्वरजी अरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४३७). १. पे. नाम. स्नान विध, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम बाजोट मूंकीये; अंति: सारखी कही सूत्र
मझार, ढाल-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आरती आदि जिणंद; अंति: प्रभु के गुण गावे, गाथा-६. ३९६२३. (+) वृहच्छांति, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. हेदरावाद, प्रले. पं. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधिसूचक चिह्न., जैदे., (२६४११.५,११४३२).
बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ३९६२५. (#) वृहच्छांति, संपूर्ण, वि. १९३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जैशलमेरु, प्रले. पं. विजयसमुद्र,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक-२ पर पावरेखा लाल २+१ अंकित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४३८).
बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ३९६२७. (#) मदनकुमार वार्ता व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है,
जैदे., (२६४११.५, २१४६५). १. पे. नाम. मदनकुमार वारता, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. देघाणानगर.
मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वानंद पदकज नमी; अंति: नर लहै अनेक पसाइ, गाथा-८९. २.पे. नाम. ९ ग्रह स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं; अंति: प्राप्नोति न संशयः, श्लोक-१२, (वि. प्रत्येक ग्रह का श्लोकांक
१ से प्रारंभ किया है.) ३९६२८. (#) सर्वज्ञविज्ञ आदि स्तवन, शनिचार व अधिकमास फल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
ले.स्थल. उदयपुर, प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र टूटा होने से पत्र क्रमांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). १.पे. नाम. २० विरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: सीमंधरो जुगंधर बाहु; अंति: इह संतो ते अहं वंदे, गाथा-४. २.पे. नाम. सर्वज्ञविज्ञ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. उदयपुर.
सर्वज्ञविज्ञस्तव, सं., पद्य, आदि: जय त्वं जगतां नाथ जय; अंति: यात् प्रसीद परमो मयि, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. शनिचार व अधिकमास फल, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा पूर्व या बाद में
लिखी गई है.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३९६२९. (+#) आराधना प्रकर्ण सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. राजचंद्र; पठ. श्रावि. लाडमदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१०४३७).
पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०.
पर्यंताराधना-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरनइ नमस्कार; अंति: (-). ३९६३०. रोहणी तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १०४३४).
रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाइये,
ढाल-६. ३९६३१. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. काणणपुर, प्रले. मु. जैतसी
(गुरु पं. गेनचंद्र, भावहर्षगच्छ); पठ. मु. जुहारमल (गुरु मु. जेतसी, भावहर्षगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवराणी पदमावती; अंति: कहै पापथी
छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ३९६३२. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., संशोधित-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ९४३९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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१. पे, नाम, भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: लक्ष्मी अवशा परवशा. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण
१२५३३).
१. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
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पार्श्वजिन स्तुति- अष्टविभक्तियुक्त, सं., पद्य, आदिः पार्थः पातु नतांग, अंतिः प्रयच्छ प्रभो, श्लोक १. ३९६३३. अष्टप्रकारी पूजा, वख पूजा व थूलभद्र सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे, ३, जैदे, (२५.५४१२,
.
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख, अंति: (१) अर्हं अर्घं यजामहे, (२) मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल - ८.
२. पे नाम. वस्त्र पूजा, पृ. ४-४आ, संपूर्ण
वस्त्रपूजा श्लोक, सं., पद्य, आदि: शक्रो यथा जिनपते; अंति: क्लेशक्षयाकांक्षया, श्लोक-२.
३. पे नाम. थूलभद्र सिझाय, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि, यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रांण पीयारा हो; अंतिः प्रणमुं हो पाय सनेही, गाथा-७. ३९६३४. (+) जीवदया सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३. कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५x११,
१३४३७).
१. पे. नाम. जीवदया सिझा, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
जीवदया सज्झाय, मु. कनीराम, रा., पद्य, वि. १८९४, आदि: आप हणै हणावै नहिं; अंति: इणसुं राखो अबचल रंग, गाथा - ६२, (बि. इस प्रति में रचनावर्ष व स्थल विषयक सूचना नहीं लिखी है.)
२. पे नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः आरती करुं श्री; अंति: बिस्तार कर प्रभू का, गाथा-७.
३. पे. नाम. गजसुकुमाल पद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि पद पु.ि, पद्य, आदि हुकम पाय मसान में अंतिः जो द्धन सीस नये सो गाथा-४.
"
४. पे. नाम. औपदेशिक रेखता - भोगोपरि, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-भोगोपरि, मु. जिन, पुहिं., पद्य, आदि: ये भोगबद कला कोई भोग; अंति: या तैं तेरा भला कोइ,
गाथा-४.
५. पे. नाम. साधारणजिन रेखता, पृ. ३आ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: तेर दरसन कै देख सै; अंतिः झलाझल सैं झलकता है, गाथा- ३.
३९६३५. (४) मौनएकादशी स्तवन व तेर काठीयारी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे. (२६११.५. १४४४०).
"
१. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १९११, वैशाख शुक्ल, १४, ले. स्थल. सांडेरा, प्रले. मु. तीर्थसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपतिनायक नेमिजिणंद, अंतिः कपुरविजय जयसिरी वरी, डाल-४.
२. पे. नाम. तेरेकाठीयारी सझाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण.
१३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: जी गुणवंता भविका तुम; अंति: गुण गाया हो राज, गाथा-१६. ३९६३६. (+) पच्चक्खाणसूत्र व सिद्धचक्र स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे. ६,
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प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, १३X५१).
१. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति एकाधिक प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतीत होती है. पच्चक्खाण उच्च रावण विधि भी साथ में दी गई है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः श्रावकनै ए आगार नथी.
२. पे नाम, नवपद स्तवन, पृ. ३अ संपूर्ण, पे. वि. यह एवं पश्चातवर्ती कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई
है.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन नवपद जस नामी; अंति: सुख पावै अखय जिनचंदा, गाथा- ६.
३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र पद, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ध्याइयै सिद्धचक्र; अंति: हमकुं भव भव सुख रसाल, गाथा-३. ४. पे नाम, नवपद थुइ, पृ. ३आ, संपूर्ण
सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु, पद्य, आदिः जगनायक दायक सिद्ध, अंतिः भाखे श्रीजिनचंद, गाथा ४. ५. पे. नाम. नवपदजी री थूई, पृ. ३आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमंत सुरनर पाय; अंति: चंद समकित नित वरुं, गाथा-४. ६. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाधा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चैव नमुक्कारे, अंतिः छप्पाणे चरिम चत्तारि गाथा-२. ३९६३७. (d) अनाथीसाधु संधि, संपूर्ण वि. १८४८ माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.
(२५X११.५, १३४५०).
अनाधीमुनि पंचढालियो उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु. पद्म, वि. १६४७, आदि: श्रीजिनशासन नायक, अंति पाम सुख संपति सारी, ढाल - ५, गाथा- ७१.
३९६३८. (०) चारप्रत्येकबुद्ध सज्झाव, संपूर्ण वि. १८२१, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे.,
(२५X११, ११x२४).
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : चंपानयरी अति भली हुं, अंति: गाया हे पां परसिध, ढाल ५.
३९६३९. (#) स्त्रीसामुद्रिकलक्षण विचार व थुलभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १४X३९).
१. पे. नाम. स्त्रीसामुद्रिकलक्षण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कीदृशीं वरयेत्कन्यां अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोकांक- १० तक लिखा है.) २. पे नाम, धुलभद्र स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: थूलभद्र मुनीसर आवो; अंति: वाचा अविचल पाली,
गाथा - १०.
३९६४१. (१) जयपताका फल आदिदेवपुराणे, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे.,
( २६X११, १७६० ).
महापुराण- जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वमंत्रप्रतिष्ठाना, अंति: (१) राज्ञा वांछितसिद्धये, (२) राजादीनां जयप्रदः, श्लोक-४८, (वि. साथ में पंद्रह के दो यंत्र भी दिये हुए हैं.)
(+#)
३९६४२. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १३X२८-३०).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३९६४३. (+) नियंठा-३६ द्वार विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. रती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में कोष्टक हुआ है., संशोधित, जैदे. (२६११.५ २२४५१).
"
भगवतीसूत्र नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प, अंति: गुणा अधिक जाणवा,
द्वार- ३६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९६४४. (+#) भेरवाष्टक आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है,
दे., (२५४११, १०४२६-३२). १.पे. नाम. भेरवाष्टक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., पद्य, आदि: यं यं यं यक्षराज दश; अंति: चिंतितं तस्य सिद्धं, श्लोक-९. २.पे. नाम. कषाय संबंधी सवइया, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ४ कषाय सवैया-अनंतानुबंधी आदि, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: अनंतानबंधीयो क्रोध; अंति: बंध या वखान हे,
सवैया-४. ३. पे. नाम. विविध विचार गाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुल गाथा-८ अपूर्ण तक है., वि. ग्यारह प्रतिमा गाथा, सत्रह
नियम, पक्वान्नादि काऋतु अनुसार समय, दही में जीवोत्पत्ति आदि विचार.) ३९६४५. (#) राइपडीकमणा, देववंदन विधि व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३९). १.पे. नाम. राइपडीकमणांनी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.
राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियाव० पडि०; अंति: वहूल करसु. २. पे. नाम. देववंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ईरा० नो०४ लोगस्स; अंति: नमुत्थु० जयवीयरा. ३. पे. नाम. गोपी पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३९६४६. (4) पजुसणारी सझाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले. पं. तीर्थसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. पजुसणारी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीया रे; अंति: गणी हंस नमै करजोडरै, गाथा-११. २.पे. नाम. चवदेनियम संभारवा विद्धि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
१४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सचित ते कोने कहीइं; अंति: ए १४ नियम जाणवो. ३. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणधर वीरनोरे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८. ४. पे. नाम. पांचतीर्थी चेत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर समरु श्रीआदिदेव; अंति: त्यां घर जय जयकार,
गाथा-६. ५. पे. नाम. अजितनाथ नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: अजितनाथ अवतार सार; अंति: अजितनाथ नित्ये जपो,
गाथा-३. ३९६४७. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, अन्य. श्रावि. रुपाइबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४३२-३५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः, (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३९६४९. (+#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, २२४४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति:
धरम हीय धरउं, ढाल-५, गाथा-९८, (वि. मात्र गच्छाधिपति का नाम लिखा है कर्ता की प्रशस्तिवाली शेष गाथाएँ नहीं लिखी हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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३९६५०. (#) शत्रुंजयतीर्थ आदि चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. ज्ञानलाभ, पठ. पं. सुखानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १४४४४). १. पे नाम, ऋषभ स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण
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शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद, अंति: निसदिन नमत कल्यांण, गाथा-३.
२. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ, अंति: लहिये कोडि कल्याण,
गाथा-३.
३. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमौ नेमि, अंति: अहनिस करै प्रणाम, गाथा- ३. ४. पे नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण,
पार्श्वजिन चैत्यवंदन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पासनाह; अंतिः प्रगटै परम कल्यांण, गाथा-३.
५. पे. नाम. महावीरजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: बंदु जगदाधार सार सिव, अंतिः कल्याण० करी सुपसाय, गाथा ३.
६. पे नाम. सिद्धचक्रजी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत, अंतिः निधि प्रगटै चेतन भूप,
गाथा - ६.
७. पे नाम, सीमंधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण
आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि, अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-३. ८. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: बंदु जिनवर वहिरमान, अंति: कारण परम कल्याण, गाथा - ३.
९. पे. नाम. भावीतीर्थंकरपद्मनाभजी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महेसर पदमनाभि; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा - ३.
३९६५१. (+४) दीवाली कल्पोत्सव, संपूर्ण वि. १७४० वैशाख, ९ मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, पट्टणा, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै. (२४४११. १८४५६).
"
दीपावली पर्व कल्प, प्रा. सं., प+ग, आदि उप्पायविगमधुवमयमसेस अंतिः सोहेअव्वो सुअधरेडिं, गाथा-१३५. ३९६५२. (+) दशमहास्वप्न विचार, जिनदानमाहात्म्य व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, १९×५१).
१. पे. नाम. महास्वप्नविचार गाथा संग्रह - भगवत्यंगे, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
भगवतीसूत्र - आलापक संग्रह में संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा २० (वि. दो बार १०-१० गाथा लिखी है.)
२. पे नाम तीर्थंकरदानमाहात्म्य गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा २० संपूर्ण है परंतु प्रतिलेखक द्वारा गाथाक्रमांक देने में स्खलना हुई है.
प्रा. सं., पद्य, आदि लोके दानप्रवृत्यर्थं अंतिः परमेष्ठिनः गाथा २०.
३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
सामान्य लोक सं. पद्य, आदि: (-); अंति: (-) श्लोक-१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
६७ ३९६५३. (#) ज्ञाता प्रथमाध्ययने मेघकुमाररिषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. ग. जीवनचंद्र; मु. दानचंद्र (गुरु
ग. जिनचंद्र); गुपि.ग. जिनचंद्र; अन्य. ग. तेजचंद्र (गुरु ग. विवेकचंद्र); गुपि. ग. विवेकचंद्र; अन्य. ग. देवचंद्र (गुरु उपा. भानुचंद्र); गुपि. उपा. भानुचंद्र; पठ. श्रावि. अगरबाई, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४२७-३०). मेघकुमार चौढालियो, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनारे चरण; अंति: चुक्यो आण्यो मागरे,
ढाल-४, गाथा-४४. ३९६५४. (+) भगवतीसूत्र चयनित शतकांश संग्रह व चोवीसमांडला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, २२४६३-६९). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र चयनित शतकांश संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पौषधमांडला, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने मात्र बारह मांडला
ही लिखे हैं., वि. मांडला लेखन क्रम अव्यवस्थित है.) ३९६५५. (+#) भरतबाहुबलसंवाद संबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदि जिणेसरु; अंति: बाहुबल परि मुगति जईइ,
गाथा-२९. ३९६५६. (#) स्तंभणिकपार्श्वनाथ नमसकार, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४-४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय०
विनवइ अणिदिय, गाथा-३०. ३९६५७. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं
दयालो मयि, श्लोक-३०. ३९६५८. (4) पद्मावती खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मागु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवरांणी पदमावती; अंति: पापथी छूटई
ततिकाल, ढाल-३, गाथा-४५. ३९६६०. (4) षद्रव्य सप्तनय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र.वि. पत्र खंडित होने से कुछ पत्रों का पत्रांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९).
६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायरा गुण ४; अंति: करी वर्त्तइ छै. ३९६६१. (#) आषाढभुतिनो सतढालीयो, संपूर्ण, वि. १८९५, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. रतनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४२).
आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरू; अंति: मानसागर०
वाण रे लाल, ढाल-७. ३९६६२. (+#) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सिधपुर, प्रले. पंन्या. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम बाद में लिखा गया है., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: संबंधीओ अनेरो०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३९६६४. (+#) पुण्यप्रकास श्रीवीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१५, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. सप्तत्सदीमहानगर, प्र. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिंतामणि पार्श्वप्रभु प्रसादात् संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३६-४२).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंतिः नाम
י:
पुण्यप्रकास ऐ, डाल-८.
३९६६५. (+४) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जगजीवन (गुरुमु रूपसागर); गुपि. मु. रुपसागर (गुरु ग. भीमसागर): ग. भीमसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, ११X३५).
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कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४.
३९६६६. (+#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११.५, १४४४३).
जिनविवप्रतिष्ठा विधि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः काडवानी दोरी सुत्रनी. ३९६६७. (+#) प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से पदच्छेद सूचक चिह्न अंकित किये हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५X१२, १९३५).
"
३९६६८.
प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरेंद्र अंतिः कंठगता किं न भूषयति श्लोक-२९. (+#) २१ सद्वार, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. साथीणग्राम, प्रले. मनीराम, पठ. मु. धनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१२, २३x४१-५२).
२१ द्वार विचार, मा.गु, गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार, अंतिः निगोदरा जीव आश्री.
३९६६९. (+#) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशि काव्य व अनंतकल्याणकर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, ७X४०-४४).
१. पे नाम, प्रज्ञाप्रकाशपट्त्रिंशि काव्य सह टवार्थ, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण
प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन अंतिः मयका प्रणीता श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशनिङ्ग अंतिः कीधी रुपसिंह नामकेन,
२. पे. नाम. अनंतकल्याणकर स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण
अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि अनंतकल्याणकर, अंतिः तेषां बत साधुरूपाः, लोक-५, अनंतकल्याणकर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अनंतकल्याण करहू कर, अंति: रूपा मुनि एवं पठति. ३९६७० (+) चर्तुवंशतीजिन स्तुति व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक- २आ पर अजितशांति स्तोत्र का मात्र प्रारंभ करके लिखना छोड़ दिया है. अंतिम पत्र पर कोष्टक में कुछ अंक लिखे हुए है., संशोधित अशुद्ध पाठ. वे., (२६.५X११.५, ११X३४).
२. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण
दुहा संग्रह*, प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
१. पे. नाम. चर्तुवंशतीजिन स्तुति, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १९०९, कार्तिक शुक्ल, ६, पठ. मु. नवला, प्र.ले.पु. सामान्य. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः इय पयनवर्ग नमसामि श्लोक-३२.
३९६७१. (-) अरणिकमुनि सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. सा. बदना, पठ सा. चत्रुजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. दे., (२५X११, १७X२९-३२).
१. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंतिः मनवछत फल सीद्धो जी, गाथा ८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बटालील करो; अंति: समसुदर कह गुण जोडो,
गाथा-८. ३. पे. नाम. घुघरा की ढाल, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
कृष्णमहाराजा घुघरा ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी दवारकासुकीसनजी; अंति: मारबत सयोन जाय जी. गाथा-१०. ४. पे. नाम. महावीरजिन तप स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्यामी बुध द्यो; अंति: उपर सहस अट्ठाराहजार, गाथा-१७. ३९६७२. सीमंधरस्वामीजी रोस्तवन व सातवीसन री सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. कूनणमल्ल,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ७-१३५१९-३२). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामीजी रो स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: म्हारी विनतडी अवधारो; अंति: तारो गीरीबनवाज,
गाथा-२१. २. पे. नाम. सातवीसनरी सीझाय, प्र. २आ, संपूर्ण.
७ व्यसननिवारण सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: संसारी लोको सात वीसन; अंति: सातुं वीसन नीवार रे, गाथा-५. ३९६७३. चौदगुणस्थान विचार स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १९४४३). १.पे. नाम. गुणठाणचउद विचार स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति;
अंति: कहै इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीवामारमणीय; अंति: क्षेमंकरस्तात्सदा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. सिद्धक्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जीनेसर अलवेल; अंति: गन्यांनविजय गुण गाय, गाथा-४. ३९६७५. (+#) नंदिषेणमुनि सज्झाय व सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४३८). १.पे. नाम. नंषेणमुनिवर स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. ग. सूरविजय (परंपरा उपा. कल्याणविजय);
गुपि. उपा. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रारंभ में 'महोपाध्याय श्रीकल्याणविजय गणि गुरुभ्यो नमः' इस प्रकार लिखा है. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महिअललि विहरइ; अंति: कवि श्रुतरंग विनवइ,
गाथा-६. २. पे. नाम. जगचिंतामणि सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-२ पर्यन्त लिखा है.) ३. पे. नाम. जंकिंचि सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. जगचिंतामणी चैत्यवंदन की प्रारंभिक दो गाथाएँ लिखने के बाद जंकिंचिसूत्र
का प्रारंभ सूचक संकेत लिखे बिना ही प्रारंभ करके उसकी एक गाथा संलग्न गिनकर अंत में गाथा ३ लिखा है.
प्रा., पद्य, आदि: जं किंचि नामतित्थं; अंति: ताई सव्वाइं वंदामि, गाथा-१. ३९६७६. (+#) आठकर्म, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. लक्ष्मीकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४३).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलूंज्ञानावरणी; अंति: अट्ठावन परगति जाणवी. ३९६७७. (#) वीसस्थानक विषयक गाथा संग्रह सह पद्यानुवाद पांखडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १०४३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० स्थानकतप गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: दसारसीहो इव सेणिओव्व, गाथा-२५. २० स्थानकतप गाथा संग्रह-पद्यानुवाद पांखडी, मा.गु., पद्य, आदि: जै जिन पूजे त्रिणे; अंति: परम महोदयट्ठांण,
गाथा-२१. ३९६७९. (+#) नेमजरोचरत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. सा. गुमाना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १६४३२-३६). नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नगरी सुरापूर राजीयो; अंति: रीष जेमल कह नेम
जणदा, गाथा-५२. ३९६८०. (#) साधुउपमा गाथा सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. कुयरसागर; अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१२, १५४४५-५१). साधुउपमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उरग १ गिरि २ जलण ३; अंति: पवण १२ समो य भो समणो, गाथा-१, (वि. साधु के
१२ गुण विषयक मूल गाथा प्रत्येक पत्रांक के ऊपरी भाग पर एक दो उपमावाची शब्दों के द्वारा दर्शायी गई है.)
साधुउपमा गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: अत्र अनुयोगद्वारमा; अंति: जाणस्यई अहो गोतम. ३९६८२. मौन ११ गुणणौ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६.५४१२-१२.५, १२४३३).
मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३९६८४. (+#) साधुवंदना बडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४१-४४).
साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमूं अनंत चोइसी ऋषभ; अंति: (-), (अपूर्ण,
___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३९६८५. (#) चोवीसकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. अंत में 'पोथी चनोवीवी की' इस प्रकार लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६-२७.०x११.५, १४४३२). २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: थुणिआ
श्रीजिनराया रे, ढाल-७, गाथा-४९. ३९६८६. असज्झाई विचार, संपूर्ण, वि. १८८२, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. धर्मचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १२४४४).
असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महिया जाव पडति ताव; अंति: तत्रात् विलोकनीया. ३९६८८. (+) पदमावती जीवरास खांमणा, संपूर्ण, वि. १९५८, चैत्र शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नीबेडानयर,
प्रले. मु. गणपत; राज्यकालरा. मतिसिंघ; अन्य. दोलतसिंघ कुमर (पिता रा. मतिसिंघ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२४.५४१२, १८४४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवरांणी पदमावती; अंति: कहे पापथी
छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ३९६८९. (#) भइरउंदासजी आचार्य गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५४११.५, १९४५४). १.पे. नाम. भयकं आचार्यजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सो दिन वद्धामणो हो; अंति: नित नित लील विलास, गाथा-६. २. पे. नाम. आचार्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आवउ हे सही एगावउ; अंति: श्रावक जयवंता, गाथा-२३. ३. पे. नाम. भैरवदास आचार्य गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअलियल भवक जण; अंति: श्रीवीकानयर पधारि, गाथा-७. ४. पे. नाम. आचार्यजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु समरिए; अंति: आपउ अक्षरतणी अधिकाई, गाथा-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ५. पे. नाम. आचार्य भइरउंदासजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर प्रणमीनइ; अंति: अतिसारा गछरउ सामता, गाथा-४. ३९६९१. (+) रोहिणी स्वाजाय, चैत्यवंदन व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६.५४१२, १४४३६). १. पे. नाम. रोहिणी स्वाजाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलखमीसूरी भूप,
गाथा-९. २. पे. नाम. रोहिणीरीचैत्यवंदण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने गाथांक २ नहीं लिखा है एवं गाथांक ३ की जगह
१ लिखा है.
वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: वासपुज्य वासव नमे; अंति: मीठी साकर द्राख, गाथा-३. ३. पे. नाम. द्रादरो उषध, पृ. १आ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९६९२. आदिजिन स्तवन व मोक्षनगरनी सज्जाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, ११४२९-३३). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. कमलविजय, गु., पद्य, वि. १९६४, आदि: आदीश्वरस्वामी आप; अंति: सुखसंपत्ति घेर आणो, गाथा-७, ग्रं. ११. २. पे. नाम. मोक्षनगरनी सज्जाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर मारु सासरु; अंति: सासरु मोक्ष ठाम रे, गाथा-५, (वि. इस
प्रति में कर्ता नाम 'सहेजसतोष' इस प्रकार अशुद्ध लिखा है.) ३९६९३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-१७ वाँ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ११४४४).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३९६९४. (+#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १२४४०).
दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेसे; अंति: कूणे विहार करें. ३९६९६. (+) पाटावली, संपूर्ण, वि. १८२९, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ३, प्रले. मु. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २०४४७).
पट्टावली लोंकागच्छीय, रा., गद्य, आदि: पटावली पाट परापूर्व; अंति: सकार्यो ते सही सही. ३९६९८. (+) कल्पसूत्र का प्रारंभणा व्याख्यान वगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२, १४४४१). १.पे. नाम. कल्पसूत्र का प्रारंभणा व्याख्यान, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. कनकसुंदर, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)सर्वसिद्धिकरी देवीं, (२)ईर्यापथिकीं; अंति:
गुरुनामग्रहणे वाच्यः. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३९७००. (#) मोहनऐकादशी गणणु आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२४-१९२६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये
हैं, दे., (२७४१२, १५४४८). १. पे. नाम. मोहनऐकादशिगुणणु, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, ले.स्थल. शीलोदरनगर,
प्रले. मु. दोलतरुचि; अन्य. मु. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. अंत में 'श्री श्रीजी महाराज का व्याहरमां लख्यो से' व 'भाइ सुखविजयजी बेठालख्यो से' इस प्रकार लिखा है. मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. गीतध्वनि, पृ. २आ, संपूर्ण.
कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि: धुंधूंकटी धुंधूं; अंति: भानु सा सीता नरसेया, सवैया-४. ३. पे. नाम. अमृतध्वनि कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९२६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, ले.स्थल. पोसालीया, प्रले. मु. दोलतरुचि,
प्र.ले.पु. सामान्य. पुहि., पद्य, आदि: दमकिते दंताले; अंति: थरहर कुचकिच कंकनी, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक तीन की जगह दो
लिखा है.) ३९७०२. चतुर्विंसतीजिन आरति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४४७).
२४ जिन आरती, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: जे जे श्रीजगतनाथ; अंति: हर्षचंद मंगल करनं, गाथा-२५. ३९७०३. (#) जीवादिविचार गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १६४५२). जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३७, (वि. जीव, चतुपृष्टबाहा, प्रतरमान, घनगणितादि संग्रह की
गाथाएँ हैं.) ३९७०५. (#) जंबुकुवरनी सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १०४२५).
जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरि बशे; अंति: शिद्धि सुखावैरे, गाथा-१२. ३९७०६. (-#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५-२६.०x११, १२४१९).
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३९७०७. शीलांगरथ व जैनगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५.५४१०,
८x१०-३३). १. पे. नाम. १८ हजारशीलांगरथ गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अट्ठारह हजार शीलांगरथ का चित्र भी दिया गया है.
१८ हजार शीलांगरथ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जेनो करति मणसा; अंति: खंतजुया ते मुणी वंदे, गाथा-१. २. पे. नाम. छषटद्रव का गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३९७०८. (+) सीजण दुवार, संपूर्ण, वि. १९२२, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पादुरु, प्रले. मु. बदनमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १७४२५).
सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: उरधलोकमाही एक सम ४; अंति: तो २ समा नीरत्र सीज. ३९७०९. (+#) गायत्री मंत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक की जगह से खंडित होने से पत्र क्रमांक
अनुपलब्ध है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, २९४९५). गायत्री मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्, श्लोक-१, (वि. प्रतिलेखकने मूलकृति पत्र के दोनों
तरफ लिखी है.) गायत्री मंत्र-व्याख्या, उपा. शुभतिलक, सं., गद्य, आदि: चिदात्मदर्शसंक्रांत; अंति: (१)स्वबुध्यनुसारेण, (२)अमी
अर्था ज्ञेयाः, (वि. प्रति खंडित होने से प्रारंभिक एक-दो शब्द अनुपलब्ध हैं किन्तु आगे के पाठ के आधार से
आदिवाक्य संकलित किया गया है.) ३९७११. नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६४११.५, १०४३०).
नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिने दो मुझ; अंति: हूंओ जय जयकार तो, गाथा-२५. ३९७१२. (+) रहेनेमि आदि स्वाध्याय संग्रह व हरियाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४११, १४४३९). १.पे. नाम. हरियाली स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८०५, ले.स्थल. पौषधपुर.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
७३ आध्यात्मिक हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो जगमा मे; अंति: श्रीकमलविजयगुरु सीस,
गाथा-९. २.पे. नाम. रहनेमि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: यादव कुलना रे तुझने; अंति: चित्तमारे आण रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. आत्महित स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडारे; अंति: शाश्वता सुख लीजीई, गाथा-४. ३९७१३. (+#) दीक्षा विधि-विधिप्रपानुसारेण व लघुवर्द्धमानविद्या, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, ले.स्थल. पादलीप्त तीर्थ, प्रले. पं. नगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १९x४४). १.पे. नाम. लघुवर्द्धमानविद्या, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिए में लिखी गई है एवं हासिए का अंश टूटा होने से कृति
का किंचित् अंश अनुपलब्ध है.
वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ अरहओ; अंति: ॐ ह्रीं स्वाहा. २. पे. नाम. विधिप्रपानुसारेण दीक्षा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
दीक्षा विधि-विधिमार्गप्रपानुसारी, प्रा.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्र; अंति: वास ९ उस्सगो १०. ३९७१४. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १५४३९). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-),
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २२ गाथा ११ अपूर्ण से ढाल २३ गाथा ७ अपूर्ण तक
लिखा है.) ३९७१५. (#) पार्श्वनाथ व सप्ततिशतजिनयंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित
है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठमंतसारं सारं; अंति: देइ सुहपुन्नो, गाथा-७. २. पे. नाम. सप्ततिशतजिनयंत्रस्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३९७१६. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे.,
(२५.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. जैन स्तुति, दुहादि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-८. ३९७१७. (+) सनतकुमार सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. सुखा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४८). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: कहइ गायां सुख
पावइ, गाथा-१७. ३९७१८. श्रीपाल रास-खंड २ ढाल ७, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. तीर्थसागर; पठ. श्रावि. ज्योति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिपूर्ण, पू.वि. द्वितीय खंड की सातवीं ढाल मात्र है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३९७१९. (+) सचित्ताधित्त सज्झाय, लघुशांति वडीशांत स्वाध्याय व मांडला करवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १,
कुल पे, ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित, जै, (२५.५X१०.५, १६x४९).
,
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१. पे. नाम. सचित्ताचित्त सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. मनोहरसागर, प्र. ले. पु. सामान्य.
असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम, अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा १९.
२. पे. नाम. मांडला करवा विध, पृ. १आ, संपूर्ण.
मांडला विधि, प्रा., रा., गद्य, आदि: डावी भुजाई आगाडे, अंति: करने पडिकमणो करणो.
३. पे. नाम. लघुशांतिवडीशांत स्वध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने कृति के अंत में 'लघुशातिवडीशांत स्वध्याय' नाम अशुद्ध प्रतीत होता है, कृति वास्तव में औपदेशिक हरियाली है.
औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे, अंतिः पुरो संघ जगीस, गाथा ८. ३९७२० (+) वीरजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., ( २४१२, १५X४४).
१. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपावापुर मंदिरै, अंति: तव पत्कजनो ध्यान कि,
गाथा-७.
२. पे नाम, वासुपूज्य स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, रा. पद्म, आदि: दरसण लहिस्यां जी, अंतिः कीनी नाह चरणइ तारी,
गाथा-५.
३. पे. नाम, पार्श्व स्तव, प्र. १-१ आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. खेम, रा., पद्य, आदि: चाकर रहिस्यां जी गौड, अंति: पदवी सेवा भक्ति सदीव, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सरणै रहिस्यां जी; अंति: ध्यावौ मन हितकारी, गाथा - ५.
३९७२१. (+) पार्श्वजिन व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४९ वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. जाटावाडा, प्र. मु. धनविजय, पठ. मु. धनविजय शिष्य (गुरु मु. धनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१२, १६३२-३५).
१. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: प्रगट थया पारकर, अंति: वनीतविज गाया हो, गाथा - ९.
२. पे. नाम. विरजीन स्तवन, पु. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: समरी इश्वरी मातने; अंति: वनितविज गुण रे, गाथा - १०.
३९७२२. (४) सार्दा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. पद्मविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. आदेशर, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, १०४३०).
""
सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु, पद्य, आदिः ॐकार धरा उधरणं वेद, अंतिः वह हेम एम विनति, गाथा- १५. ३९७२३, (४) श्वासोच्छ्वास को धोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.,
2
( २६१२, १५X३८).
श्वासोच्छ्वास का थोकडा, रा., गद्य, आदि: गोतमस्वामि हाथ जोड, अंति: ५० छठो भाग मठे.. ३९७२४. (+४) देवकी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२६.५X१२, १५X४० ).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
देवकी ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: उतम नगरी दुवारका राज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५
अपूर्ण पर्यन्त लिखा है.) ३९७२५. (+#) शाश्वत जिनबिंब जिनप्रासाद नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५, २२४५७).
शाश्वता जिनबिंब जिनप्रासाद विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिर्यग्लोके नंदीश्वर; अंति: जिनबिंब नमस्करूं. ३९७२६. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १२४२८).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-६१, (वि. प्रारंभ में
संस्कृतभाषाबद्ध मांगलिक श्लोक लिखा है.) ३९७२७. (+#) जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार व उर्ध्वलोके वृत्तादि विमानसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल
पे. २, प्रले. ग.खेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, १४४४६). १.पे. नाम. उर्ध्वलोके बासट्ठिप्रतरें प्रतरे प्रतरे वृत्त तिम्र चतुस्र दिविमानसंख्या, पृ. १अ, संपूर्ण.
उर्ध्वलोके प्रतिप्रतर वृत्तादिविमानसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सुहुमो य होइ कालो; अंति: जीव घणा शरीर थोडा. ३९७२८. (+#) नवकार सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३९).
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५.
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमस्कार होओ; अंति: माहरो नमस्कार हो. ३९७३०. (+) भीलिनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२४२५-३२).
भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने विनवू; अंति: सांभलो ए सती छे पूरी, गाथा-१८. ३९७३१. (#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४५).
स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ऋषभजिन से सुमतिजिन स्तवन प्रथम गाथा अपूर्ण पर्यन्त है.) ३९७३२. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११,८-११४३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यंते, श्लोक-४४.
कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: रागादिशत्रूणां जेता; अंति: तु ते ज्ञातव्याः. ३९७३४. तीर्थंकरध्यान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४९).
तीर्थंकरध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर भगवंतनउं; अंति: सर्वकार्य सिद्धि थाइ. ३९७३५. (+#) चिंतामणिपार्श्वस्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९४४, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १७४४०). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीजं
ददातु, श्लोक-११. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किमिति वितर्के कर्पू: अंति: बीजं ज्ञानबीजं ददातु,
(वि. अवचूरि टबार्थ शैली में लिखी गई है.) ३९७३६. (#) आदिनाथस्वामीनी सूखडी व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५, १३४३८). १.पे. नाम. आदिनाथस्वामीनी सूखडी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १७५०, चैत्र कृष्ण, ६, गुरुवार.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ऋधि सिध संपति घणी, गाथा-५७, (वि. प्रति विवर्ण होने से
आदिवाक्य का अंश अपठनीय है.) २. पे. नाम. श्रृंगारवर्णन दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण..
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३९७३७. (+) केसीकुमार की सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १९४४१).
केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल २
से ३ पर्यन्त है., वि. प्रतिलेखक ने व्युत्क्रम से ढाल लिखा है.) ३९७४०. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन कृष्ण, १०, जीर्ण, पृ. ३, ले.स्थल. वल्लभीनयर, प्रले. पं. नरेंद्रविजय
गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीधर्मनाथजी प्रसादात., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (८८५) लेखण उर मस डबडी, दे., (२५.५४११.५, १३४३४).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३९७४१. (#) पार्श्वजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.,
(२४४११.५, १५४३३-३७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरोतवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर म्हारो; अंति: दोय करजोडी रंग वणीऔ, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. फतेचंद पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी तोरी सोवनी; अंति: ओजी मणमरण
मिटावो जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पारसनाथजीरोतवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी अंगीयाने रही; अंति: उदयैरतन० पुरीजै आस, गाथा-८. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. माणेक, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुगल सोहे मोतीन; अंति: अपणा विरुद संभाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: नेमजी मनावा म्हे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय गाथा अपूर्ण पर्यन्त लिखा
६.पे. नाम. निग्रंथ पांचनो विचार, पृ. २अ, संपूर्ण.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३९७४२. (+) गोडीपार्श्वनाथ आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, दे., (२५.५४११, १५४४१).
१.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १७९२, आदि: धीग धवल गौडी धणी; अंति: सुखदायक द्यौ सेव हो,
गाथा-९. २.पे. नाम. सेजय स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दयातिलक, रा., पद्य, आदि: कंत भणी कामिणि कहइ; अंति: करिस्यां सफल जमार हो,
गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता हो नारी; अंति: दोलत दीयै सिव तणी. गाथा-९. ४. पे. नाम, सिद्धाचलजीस्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रंगवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सेव॒जानौ स्वामी; अंति: रंगवर्द्धन सुखकार, गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ५. पे. नाम. आदीस्वर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहिया सेजेजगिर; अंति: मननइ उल्हासइ हे, गाथा-६. ६. पे. नाम. नेमराजीमती स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. अनोप, मा.गु., पद्य, आदि: रांणी राजुल इम वीनवै; अंति: नित प्रणमुपाय हो, गाथा-६. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. अनोपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: होरे महाराज देवल; अंति: धरी प्रणमें वारौवार, गाथा-५. ३९७४३. (+#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३५).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ३९७४४. (#) अध्यात्मछतीसी, संपूर्ण, वि. १९१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अंत में इस प्रकार लिखा गया
है. 'रात्रिप्रहर सपादोपरि किंचित् वेलायां लिखितमिदं पुस्तकपर्णद्वय', मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४११.५, ११-१३४३४-३६). ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान सरूप अनंतगुन; अंति: यथासगति परमान,
गाथा-३६. ३९७४५. पद्मप्रभस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६४१२, २३४१४).
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो मारो; अंति: पूरज्यो अकल जगीस
हो, गाथा-७. ३९७४६. (+#) पांचकारण स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पत्रांक १अके हासिए में
आकाशादि ६ पदार्थ व कालादि ५ कारण के नाम लिखे हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिइ; अंति: (-),
(पू.वि. अपूर्ण रचनाप्रशस्ति मात्र है.) ३९७४७. (+#) मूर्खनो स्माध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वसो, प्रले. चीमनलाल जमनादास लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४४३८).
औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वश खोटुं बोले; अंति: तेहथी
अनुभव लहिये रे, गाथा-१४. ३९७४८. मोहराज स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२, १५४४२).
महावीरजिन स्तवन-मोहराजा कथागर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिणेसर भुवन;
अंति: मानमुनि मंगल करू, गाथा-५५. ३९७४९. श्रीमंदिरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ९४३६).
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतमंदिर साहिब; अंति: राखे तुमारे पास ए,
गाथा-१३. ३९७५०. (+) श्रीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४२१).
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिरिमंदिर साहिब; अंति: राखे तुमारै पास ए,
गाथा-१३. ३९७५१. (+) योगअडदृष्टी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. इलोल, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुंथुनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सीवसुखकारण उपदीसी; अंति: वाचक जसनें
वयणे जी, ढाल-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९७५२. (+#) आत्मगर्दा सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४३२). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५,
संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अहो कल्याण लक्ष्मनु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., श्लोक-१३ तक ही लिखा है.) ३९७५३. (#) नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से
प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, ९-१२४३२-३६). १. पे. नाम. नेमराजेमती स्तवन, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दोलितना दातार रे, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण
तक नहीं है.) २. पे. नाम. अंतरीक्षपार्श्वजिन छंद, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वसन द्यौ सरसती; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२७ प्रारंभ तक है.) ३९७५४. (#) भावना, श्रावकना मनोरथ, कुंडलीओ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ
का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२९). १. पे. नाम. धर्म भावना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करी वंदणा होज्यो. २. पे. नाम. श्रावकना तिनमनोरथ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक 'यादृशां पुस्तकं दृष्टा' का प्रथम
पादमात्र लिखा है.
श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो मनोरथ समणोवासग; अंति: मरण मुझनें ज्योहो. ३. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलियो, पृ. ३अ, संपूर्ण.
दिन, पुहिं., पद्य, आदि: दिन देख संसार विचार; अंति: जीवें तो बी खपना हे. पद-१. ४. पे. नाम. आत्मशिक्षा श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभवाची शब्द लिखे बिना ही कृति का प्रारंभ किया है.
जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३९७५५. (+#) धन्नाशालिभद्र आदि सज्झाय संग्रह व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १२४३९). १. पे. नाम. शालिभद्रधन्ना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जोरावर कर्मे जालमी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम. हृदियविचितं, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. लोभनी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमें लक्षण ज्योजो; अंति: लोभ तजे तहने
सदारे, गाथा-७. ३९७५६. (+) समोसरण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४२९).
समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अह्मे स्तवस्युं केवल; अंति: समर्थ छइंजन प्रतिं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३९७५७. (+) वृद्धशांति, संपूर्ण वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. नगजी (गुरुग. कपूरविजय); गुपि. ग. कपूरविजय (गुरु पन्या, केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १०X३०).
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"
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३९७५८. जिनपिंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९४ आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५X११, ११४३५). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ अर्हं श्री; अंतिः मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२३. ३९७५९. (+) पद्मावति आलोयण, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, ११४३३).
पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिवड़ राणी पदमावती, अंतिः पापथी छुटै ततकाल, गाथा - ३४.
३९७६०. (+#) संसारदावानल स्तुति सह वृत्ति व पार्श्वनाथ स्तुति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४११, १६४६३).
"
१. पे. नाम. संसारदावा स्तुति सह वृत्ति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति: देहि मे देवि सारम्,
श्लोक-४.
संसारदावानल स्तुति- टीका, सं., गद्य, आदि वीरं वर्द्धमानस्वामि अंतिः देहि मे देवि सारमिति
२. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - समसंस्कृत, प्रा., सं., पद्य, आदि: मायातुंगीनिरासे; अंति: हंतु वो वाणिदेवी, श्लोक-४. ३९७६२. (+) भगवतीसूत्र चयनित शतकांश संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४११.
१४-१५X४२-४५).
भगवतीसूत्र - आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक- १२ उद्देश - ९ गत आलापक एवं संकलित आलापकों का संग्रह )
३९७६३. (४) जीवरासी आलोअण सझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थे का नाम बाद में किसी अन्य विद्वानने लिखा है तत्पश्चात् किसी अन्यने तैलीय रंग से 'बाइ वीजी' लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, ११x२६).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवें राणि पदमावति; अंति: कहे पापथी छूटे
ततकाल, गाथा ३३.
गाथा - ३२.
३९७६७. ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. वे. (२६११.५, १४४३४).
७९
३९७६४. जंबूस्वामी सज्झाय व कुगुरुपच्चीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., ( २६.५X११.५, १०X२३). १. पे नाम. जंबूस्वामी सज्झाव, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने प्रारंभ व समाप्ति सूचक वाक्यांश नहीं लिखे हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेवा संचरा रे, अंति: घन जगमा अवतारे, गाथा-१६, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु संबंधी विवरण अनुपलब्ध है.)
२. पे. नाम. कुगुरु सिज्या, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभसूचक संकेत बिना ही कृति प्रारंभ की गई है.
कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्म, आदि: सदगुरु फेरि परखा कीज, अंतिः रत्नविजय इम बोले जी गाथा २५. ३९७६५. (+) शंखेश्वर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, २२५१).
पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., पद्य वि. १७१२, आदि जय जय जगनायक, अंतिः मुदा प्रसन्नः,
2
ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल, अंतिः मंत्र गुणियें सदा, गाथा १६. (वि. अंत में छंद महिमा दर्शायी गई है. )
३९७६९. (+) अजीयशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. गाथा - ३३ के अंतिम कुछ अंश से संपूर्ण पर्यन्तकृ सूक्ष्माक्षर में लिखी गई है., संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १५X३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिवसव्वभयं संत, अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स गाथा ४६.
३९७७०. (+#) चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र व महिमाइजीरी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८०७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२४.५x११, १२४३७-४१).
१. पे नाम, चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण वि. १८०७ मार्गशीर्ष शुक्ल ९ प्रले. पं. दीपविजय पठ. पं. मतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११.
२. पे. नाम. महिमाइजी री स्तुति, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण, वि. १८०७, माघ कृष्ण, ६, रविवार, ले. स्थल. खीमेलनगर.
ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोडिकल्याण; अंति: इम हेम कहे सचियायतणा, गाथा-५. ३९७७१. (४) पार्श्वजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले. स्थल अलावनगर, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे (२६१२.५, १३४३६).
१. पे. नाम. संस्वर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमे पास, अंति: कुंअरवि० शिष्य गुणया, गाथा ११.
२. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: जिन दरसण की प्यासी, अंति: दोलत गुण गासी रे, गाथा - ३.
३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदिः सुपना में मांरी रे, अंतिः सति का गुण गावो रे, गाथा-५.
४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चालो सखी री प्रभु; अंति: जस वास भयो जगसारियें, गाथा-४.
५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. भीम, पु,ि पद्य, आदि हो जगदीस काहा करतो; अति आनंद रहे चीत चंगा, गाथा- २ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक १ दिया है, किन्तु वास्तव में दो गाथा है.)
३९७७२. अष्टापदजीनुं स्तवन, संपूर्ण वि. १९२४, पौष कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २. वे. (२५.५४१२, ११४३३).
"
आदिजिन स्तवन- अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे, अतिः पोहति सघलि आस कें, गाथा-२३, ग्रं. ३६, (वि. इस प्रति में कर्तानाम 'भाण' की जगह 'भणि' इस प्रकार अशुद्ध लिखा गया है.) ३९७७३. माणीभद्र समहीम छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. वसंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १४४४६).
माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु. पद्म, आदि चित समरु हुं त्रीपुर, अंतिः जे माणिभद्र सेवे सदा,
गाथा - २५.
३९७७४ (१) सुदर्शन स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१२, ११x२९).
सुदर्शनशेठ सज्झाच, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी, अंति: लालविजय नमे करजोडि, गाथा-४२.
.
३९७७५. (+) चौदरन आदि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. प्र. वि. काले रंग से अंक व दंड कहीं कहीं पर किया है., संशोधित, जैवे. (२५.५४११.५. १६४४६).
"
बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: चक्ररत्नं छत्ररत्नं; अंति: कल्पवृक्ष जाणवा.
३९७७६ (०) चैत्रीपूनम देववांदवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.
१३X३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गुंहली करी; अंति: श्रीसंघनी भक्ति कीजै. ३९७७७. नवकार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ९४३१).
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समर रे जीव नवकार नित; अंति: आपणा कर्म आठे
विखोडी, गाथा-६. । ३९७७८, (+) मुनिसुव्रतजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पेन्सिल से भी अल्पमात्रा में संशोधित.. संशोधित.. दे.. (२६४११.५, ११४३९). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: वरसे वरसे वचन सुद्धा; अंति: नीरे सेचो समकीत छोड,
गाथा-९. ३९७७९. (+) माहावीरजीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ९४२७).
महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहब की सेवा मे; अंति: जय जय श्रीमाहावीर, गाथा-८. ३९७८०. (+#) अरणिकमुनि आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंशखंडित है, जैदे., (२६.५४११, १७४३७). १. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मोखतणा सूख लीधो जी,
गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सया-निंदात्यागविषये, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर नर चावत म करो; अंति: पांमे देव
वीमांण, गाथा-५. ३. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने कृतिलेखन प्रारंभ पत्रांक-१आ से किया है किन्तु
जगह नहीं बचने से पत्रांक-१अपर गाथा-१६ के किंचित् अंश से कृति की पूर्णता की है.
आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जणेस वांदीने; अंति: तेहना वांदु पाया, गाथा-१७. ३९७८१. (+) वीरजिन आदि गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. गोघाबंदर, प्रले. मु. पृथ्वीचंद्र;
पठ. श्रावि.खेमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४३६). १. पे. नाम. वीरजीन गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो दीइ छ; अंति: नाय० दरीसण जय जयकार, गाथा-६. २. पे. नाम. गुरुगुण गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयलक्ष्मीसूरि गहुली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: आरजदेश नरभव लह्योरे; अंति: सोभाग्यलक्ष्मी०
जांण, गाथा-६. ३. पे. नाम. वीरजीन गुहली, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जग ओपगारी रे वीर; अंति: अमृतवाणी रंगस्युरे, गाथा-८. ३९७८२. (+) नांदी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४५४).
नंदी विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: तत्रादौ शुभे दिने; अंति: क्रियते यथाशक्तिः. ३९७८३. (+) वाग्देवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२५).
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्वलागिरः,
श्लोक-९. ३९७८४. (+) दादाजी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरांकन वैविध्य., संशोधित., दे., (२६४१२, १४४३२).
जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: धन हो धन खरतरधणी,
गाथा-४८. ३९७८५. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १०४३३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्लोक-४४.
३९७८६. जातकपध्यति, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल वाढण, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिनाथजीण प्रसादात्., जैदे., ( २६.५X१२, १५X३५).
""
जातकपद्धति, मु. हर्षवजय, सं. पद्य वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश, अंतिः जातकदीपिका, श्लोक- ८५. ३९७८९, (+) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x११.५ १४४४१). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सकलकुशल कमलालय अनुपम, अंति: अविचल सुखनी रेह,
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गाथा-२७.
३९७९०. अक्षयनिधितपणज्हिते पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, वे. (२६.५४११.५, १२४३७). पार्श्वजिन स्तवन- अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षय, अंतिः पदमविजेय फल लीधो, गाथा - १२.
३९७९१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५X११.५ १२x४४).
""
महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीर सुणो मोरी बीनती; अंतिः समयसुदर० त्रिभुवनतिलो, गाथा- १९.
"
३९७९२. (+) गणपति अष्टक, आरती व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५४११, १५४४४).
१. पे. नाम. गणेश स्तुतिरष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
गणपति अष्टक, सं., पद्य, आदि: द्वे भार्ये सिद्धि, अंतिः सिद्धिं च आप्नुयात्, श्लोक-१०.
२. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. पुहिं, पद्य, आदि आरति श्रीजिनराज, अंतिः सेवक कु सुखी दीजे, गाथा-६,
३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं, पद्य, आदि मेरो मन वस कर लीनो, अंतिः सुणजे पूरी वंछित आस, गाथा-५, ३९७९४. धना व औपदेशिक सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक दोनों तरफ अंकित है. जैसे..
(२१X१०, ५-१४x२५).
१. पे. नाम. धना सझाय, पू. १अ संपूर्ण.
धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण प्रणमी; अंति: भणै एहवा साधानी सरण, गाथा- १५. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण,
मु. जिनवल्लभ, मा.गु., पद्म, आदि कर अरिहंतनी चाकरी अंतिः मनवंछित फल पावोरे, गाथा ५.
३९७९५, (+४) रत्नाकरसूरिविरचित स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक
יי
चिह्न. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२४.५x१०, १३४४८-५२ ).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ३९७९६. (+) जिनवाणी भाष्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६१२, १०X३४).
जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हुं हर अंति: अमीय० घणुं हो लाल, गाथा-१४ (वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम नहीं लिखा है.)
"
३९७९८. सीमंधरजी रो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५६, पौष शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. लोवावट, प्रले. मु. लिछमीलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिस्वरजी प्रसादात् दे. (२४.५x११.५ १२४३७). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतडी अवधारो; अंति: अनोपम जिनपद वंदन भास, गाथा - २१.
३९७९९. ऋषभजिन प्रभाति व गोडीजीपार्श्व छंदाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, १३x४०). १. पे. नाम. ऋषभजिनप्रभाति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिनेस्वर, अंति: चरणांबुजसुं चित लाया, गाथा - ९. २. पे नाम. गोडीजी पार्श्वच्छंदाष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि धवल प्रिंग गोडी धणी, अंतिः नाथजी दुखनी जाल तोडी,
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गाथा-८.
३९८००. पंचमी व हीतसीख्या सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५x११.५, ११X३३-४२). १. पे. नाम. पंचमी सझाच, पू. १अ २आ, संपूर्ण, वि. १९३६ पौष शुक्ल १३, प्रले. करसन, पठ. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य.
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेशर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे,
ढाल - ५, गाथा - १६.
२. पे नाम. हीतसीख्या सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि जीवडा धरमन मुकीस अंति: जेम चीरकाले नंदोरे, गाथा- ८.
३९८०१ (+) चोइसतीथकरानु तोन, संपूर्ण वि. १८७१ भाद्रपद शु. ११. रविवार, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल. सहजपुर, प्रले. सा. लीछी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दाहिने भाग की पार्श्वरेखा कटी होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५X३ - १०.५, १९५०).
"
२४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ हुं के जे अंति: भगत द्यो कंठ मेरी, गाथा- ३०. ३९८०२. (+) समेतशिखरगिरि आदि पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ५. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित., दे., (२५.५X११.५, १५X३३-३६).
१. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण
पार्श्वजनपद- सम्मेतशिखरतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: जये मोरी सजनी जये; अंति: नरभव लाहो लहियै, गाथा-४. २. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार, अंति: रतनसागर० जय जयकार, गाथा-७.
३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि मेरो मन बस कर लीनो, अंतिः जिन पासजिनंद, गाथा - ३.
४. पे नाम. साधारणजिन पद, प्र. १अ संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं, पद्य, आदि; चालो री सखी जिन दरसण अंतिः भयो है सुखकारीयां गाथा-४,
५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. किसनगुलाब, पुहिं., पद्य, आदि: देखो री जिणं प्यारा; अंति: किसनगुलाब० राजांना, गाथा - ३. ३९८०४. (+) ऋषिमंडल स्तवयंत्र, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पु. १. प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४११, १५४४४-४८). ऋषिमंडल स्तोत्र - यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमीशं अति जिनचीजस्य बीजकम, लोक-३७.
३९८०६. (#) आदीसरस्वांमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X११.५, १२X४२-४७).
आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि सिखिर गजराज, अंति: सहिजकीरति इम कहै,
गाथा - १७.
३९८०७. (+#) थंभनकतीर्थराज श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा अलग-अलग समय में लिखी गई प्रतीत होती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६ ११.५, १०x४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जब तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभवदेव विन्नवह आनंदि, गाथा- ३०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९८०८. (+) सरस्वत्यष्टक व युधिष्ठिरादिनाम विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५४११.५, १३४३०-३३). १.पे. नाम. सरस्वत्यष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
__ सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि जगज्ज; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-९. २. पे. नाम. युधिष्ठिरादि नाम विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनेतर सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३९८०९. गुरुनाथ दिव्याष्टक, संपूर्ण, वि. १९०५, माघ शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४३४-३९). जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: सुखं सर्वा संपद्वसति; अंति: चिरं स्थायिनी,
श्लोक-९. ३९८११. (+#) स्थूलिभद्र नवरस दहा, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५.५४११.५, १५४३६). स्थूलिभद्रमुनि नवरस दूहा, ग. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहों थुलभद्र सुणि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ८ के दोहें
९ अपूर्ण तक है.) ३९८१२. सिद्धचक्र स्तोत्र व नेमिनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १८४७, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२,
१२४४१). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क
नमामि, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: चलोने प्यारे सहसावन; अंति: निरखीने हियडे हसीइं, गाथा-६. ३९८१३. (+) शक्रस्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. विनयशील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७X४३).
शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: सिद्धिगइनामधेयं.
शक्रस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमो नमस्कारोस्तु; अंति: संप्राप्तेभ्यः. ३९८१४. (#) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखकने
पत्रांक १ लिखा है किंतु वास्तव में यह बीच का पत्र है एवं प्रारंभिक पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक २ दिया है. पत्रांक-२आ पर संख्या द्योतक अज्ञात कोष्टक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५-५०). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पायउ अविचल राज, गाथा-८, (पू.वि. गाथा ४ तक
नहीं है.) २. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. हेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नेह धरि आउरे निज घर; अंति: कहइ० लहीइरेखेम, गाथा-११. ३. पे. नाम. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. सुखेन प्रसूति, गर्भस्तंभ
मृगीवातोपशम इत्यादि मंत्र-तंत्र प्रयोग दिये गये हैं.) ३९८१५. (+) नवग्रह स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे.,
(२५४१०, ११४५१). १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, श्लोक-११. २. पे, नाम, ९ ग्रह मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण
नवग्रह मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ हाँ ह्रीँ हाँ, अंति: केतवे नमः स्वाहा.
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३९८१६. (#) सुपास स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. किनारी कटी होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५, १४४५१). १. पे. नाम औपदेशिक सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: करि करि परि उपगार, अंति: जिणवाणी उल्हासु, गाथा-१६. २. पे नाम. सुपास तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण प्रले. मु. धना ऋषि पठ सा. वीराजी आर्या, प्र. ले. पु. सामान्य,
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कल्याणसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पास तिथंकर प्रणमिन, अंतिः वार सुरिज नर मुणउ, गाथा - ९.
३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: केस दीया सिरि सोहन; अंति: पेट दीया पति खोवण कं, पद- १. ४. पे. नाम. दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १.
३९८१७. (#) पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तुति संग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र. वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X११, ६- ९X३०-३३).
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ यमकबंध स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण प्रले. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. मूल कृति पत्रांक-१अ पर एवं अवचूरि पत्रांक- १ आ पर पूर्ण होती है.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं अंतिः शिवसुंदर सौख्यभरम्,
श्लोक- ७.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगमं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं, अंति: नौमि बुधैनमस्कृतम्, श्लोक-३. महावीर जिन स्तुति- अवचूरि, सं. गद्य, आदि: विशाल० व्याख्या वीर, अंतिः तृतीयवृत्ताक्षरार्थः,
,
३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
,
महावीर जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय, अंतिः (-) (पू. वि. दूसरा श्लोक अंतिम पाद अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तुति- अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानाय नमोस्तु अंति: (-), (पू. वि. श्लोक-२
अपूर्ण तक है.)
३९८१८. (+) तेवीसपदवी व जीवविचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १४४४३-४६).
१. पे. नाम. तेवीसपदवी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
२३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७ एकेंद्री रतनरा नाम, अंतिः टल्यौ एवं १५ विना.
२. पे नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
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मा.गु, गद्य, आदि: नरक ७ तिरा भेद १४: अंतिः सर्वभेद ५६३ हुआ.
३. पे. नाम. ५६३ जीवभेद गतिआगति विचार - २४ दंडके, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: तिहां प्रथम ७ नारकी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने मनुष्य के १३१ एवं तिर्यंच के ४८ भेद दोनों मिलाकर १७९ भेद की गति तक लिखा है.)
३९८१९. (+) गोडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रामचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०, १२x२९-३३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण,
___ गाथा-२९. ३९८२०. (+) पूर्णकुंभथापना स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११.५, ९४३४-३८).
४ मंगल पद, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धरम उत्सव समै जैन पद; अंति: देवचंदह पद अनुसरै ए, गाथा-४. ३९८२१. (#) शांतिकर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४११.५, १३४३२-३४). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सलहइ सुह संपयं परमं,
गाथा-१३. ३९८२२. (+) वैराग्य आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा
लिखी गई प्रतीत होती है, जिसमें प्रथम व अंतिम कृति सामान्य स्थूलाक्षर में एवं बीच की कृति सूक्ष्माक्षर में लिखी है., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२-१६४३४-४७). १.पे. नाम. नागीला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाइ घरे आवीआ; अंति: समयसुंदर
सुखकार रे, गाथा-७. २. पे. नाम. थावचा स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझारी रे; अंति: पामे ते निश्चय करी ए, गाथा-७. ३. पे. नाम. वैराग्य सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मागु., पद्य, आदि: ते तरीआ भाइ ते तरीया; अंति: जे धर्मि दृढ रहवेरे, गाथा-५. ३९८२३. (+#) शत्रुजयमंडन श्रीआदिनाथ बृहत्स्तवन-आलोचनागर्भित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. इंद्रा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५-११.०,११४३७).
शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनकुंजी; अंति: समयसुंदर गुण
भणइ, गाथा-३१. ३९८२४. (+#) कल्याणमंदिर भाषा व शतायुजीवश्वासोश्वास विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३१-३४). १.पे. नाम. कल्याणंदिर भाषा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम;
अंति: कारन समकित सुद्ध, गाथा-४५. २. पे. नाम. शतायुजीवश्वासोश्वास विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी
गई है.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९८२५. (+#) अनाथीरीषीस्वरनी सज्झाय वसुभाषित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. अमृतसोम; अन्य.
जीवणजी भडजी गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३२-३६). १.पे. नाम. सुभाषित, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
दहा संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१, (वि. सामान्य जैन विचार व दो ग्रंथनाम लिखे हैं.) २.पे. नाम. अनाथीरीषीस्वरनी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रवाडि चड्यो; अंति: प्रणमइरेबे करजोडी,
गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३९८२६. (+४) जयतिहुअण आदि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५-११ (१ से ११) ४, कुल पे. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४११.५, १५४३६-३९)
१. पे. नाम. थंभणापार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२अ - १२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्म, वि. १२वी, आदि: (-) अंतिः अभवदेव विन्नवइ आनंदि,
गाथा - ३०, ( पू. वि. गाथा - १९ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १२आ- १५अ, संपूर्ण.
आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिवं जियसव्वभवं संत, अंतिः पुव्वुप्प० विणासंति, गाधा ३९.
३. पे. नाम. अजितशांति स्तव- लघु, पृ. १५-१५ आ. संपूर्ण.
अजितशांति स्तवलघु - खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिकमनक्ख, अंतिः दुरियमखिलंपि तह, गाथा-१७.
४. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पणयसुरगण अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा दूसरे पाद अपूर्ण तक है.) ३९८२७, (+४) पंचकल्याणक मंगलस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, २३x४६).
५ कल्याणक मंगलस्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि: पणविवि पंच परम गुरु अंतिः जिनदेव चौसंघह जयी,
गाथा - २५.
३९८२८. (+#) पार्श्वनाथजी गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है. जैवे. (२५.५४११, १६-१९४३९-४८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन गीत, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नाम प्रभु के सांभली, अंतिः नाम तुमारी रसाल, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य संयोग नै पामीय अंतिः रंगवल्लभ करजोडिरे, गाथा ५. ३. पे. नाम. नेमिराजुल स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चिंतवै नारि, अंति: ( अपठनीय), गाथा - १८, (वि. प्रत खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.)
४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. भीमराज, मा.गु., पद्य वि. १८७३, आदि: श्रीजिनकुशलसूरिसर अंति: (अपठनीय), गाथा-७, (वि. प्रत खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है .)
३९८२९. (+#) चतुःशरण प्रकरण व पिंडेषणाद्वार गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५.५४११, ११४३३-३६).
१. पे. नाम. चतुःशरण प्रकर्णक, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण, अन्य. सा. माना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य.
चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३.
२. पे. नाम. साधुपिंडेपणाद्वार गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २; अंति: रस हेउ दव्व संजोगा, गाथा-६.
(+#)
३९८३०. आवश्यक मूलसूत्र, संपूर्ण, वि. १७००, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. अहम्मदावाद, प्रले. वा. कल्याणसागर गणि (खरतरगच्छ); पठ. वा. विद्याविजय (गुरु वा. कल्याणसागर गणि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूलकृति का अंति सूत्रांश सूक्ष्माक्षर में लिखा गया है. पत्रांक २आ एवं ३अ पार्श्वरेखा रहित है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X४५-४८).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि अंतिः मक्खीएणं वोसिर, अध्ययन-६, ग्रं. १२५.
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८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९८३१. (#) जिनदत्तसूरीश्वराणामष्टकं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ८x२२-२५).
जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: नमाम्यहं श्रीजिनदत्त; अंति: सर्वाणि समीहितानि, श्लोक-८. ३९८३२. (+) पद्मावती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १०४२९-३२).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै राणी पदमावती; अंति: कहै पापथी
छूटै ततकाल, गाथा-३४. ३९८३३. बीज स्तुति व भरतबाहुबलि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. श्रीशांती प्रसादात्., दे.,
(२४.५४११, १०४३०). १.पे. नाम. आबूजीकानीरी थूई, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पंचपदरा, प्रले. मु. सुरेंद्रविजय.
बीजतिथि स्तुति, मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अजूआली बीज सूहावो रे; अंति: नंदन चंद विख्यातारे, गाथा-४. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया भरत; अंति: समयसुंदर गुण गायोरे,
गाथा-७. ३९८३४. (+#) शील की सिझाय, संपूर्ण, वि. १८७१, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम मिटाने का प्रयत्न किया गया है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). शीलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: श्रीअ«त नीत नमु; अंति: कथियो उत्तमचंदरे,
गाथा-२३. ३९८३५. (+#) षटआरा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४४१). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंदह पाय नमी;
अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-५, गाथा-६७. ३९८३६. (+#) चोवीसतीर्थकरा को स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागोर,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १०४३१). १. पे. नाम. चोविसतीर्थंकरा को स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन-वर्णविचारगर्भित, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरीषभ अजित संभव; अंति: ऊगते सूर रे प्राणी,
__ढाल-२. २.पे. नाम. समकितमहिमा पद, पृ. २अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वमहिमा पद, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसर कवल न उपजै वनवन; अंति: पावै निश्चै जी सोय,
गाथा-५. ३. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: विणजारा रे वालभ सुण; अंति: आपण जीवसूयु कही, गाथा-७. ३९८३७. (#) पांत्रीसवाणीगुण विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १२४३४).
३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्व संस्कृता; अंति: बोलतो खेद न उपजइ. ३९८३८. चतुर्विंशतिगणधरसंख्या स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. दे., (२५४११.५, १२४३४). २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेसर प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०
अपूर्ण पर्यन्त है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९८३९. (+) विचार संग्रह व सुभाषित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२,
१३४४०). १.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. जंबूद्वीप मध्ये नदी, कूट संख्या व कल्पवृक्ष विचार.) २.पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३९८४०. (#) लघुशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४८).
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३९८४१. (#) थूलभद्र चउमासिउं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३८).
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवति भारतीजी; अंति: शिवपुर वास रेजी, गाथा-५. ३९८४२. (+) असज्झाइदोषनिवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ८x२६).
असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: शिललच्छी तस वरे, गाथा-१६. ३९८४३. (+#) वीरजिन आदि पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अंत में कोई अज्ञात कृति प्रारंभिक दो
शब्द पर्यन्त ही है, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ११४३६). १.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-विक्रमनगरमंडन, मु. शोभ मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय वीरजिणंद हो जय; अंति: प्रभु सांभलो
रेलाल, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. जिनमहेंद्रसूरि, रा., पद्य, आदि: हो जयकारिरे जिनजी; अंति: चरणांरी चाकरी रे लाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. मेघसुंदर, रा., पद्य, आदि: प्रभुजी थारी सुरतरी; अंति: पुरो मनरा कोडो, गाथा-७. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परब दीवाली रे दिन; अंति: भावना
फलवधीनगर मझार, गाथा-७. ५.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. शोभ मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १८५०, आदि: श्रीवर्धमान जिनेसर; अंति: वारी जाउ वार हजारी,
गाथा-९. ३९८४४. (#) आत्मशिक्षाबत्रीसी व वैराग्य सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४४०-४५). १. पे. नाम. आत्मशिख्याबत्रीसी सिज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
आत्मशिक्षाबत्रीसी, मु. खेम, रा., पद्य, आदि: पापथान अढारे पूरौ; अंति: शरणौ छै प्रभु ताहरौ, गाथा-३२, ग्रं. ३२. २. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागरे सुग्यांनी जीव; अंति: लहिज्यो सुख खेम, गाथा-१९. ३९८४५. (+) वृद्धनवकार व जैनगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें.,
दे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. वृद्धनवकार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पत्तरु रे; अंति: सेवा देज्यो नित्त,
गाथा-२६, (वि. एक गाथा की दो-दो गाथा गिनकर गाथा २६ लिखी है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. जैनदहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ३९८४६. (-#) पदमावति आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४२७-३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: ऐहथी पाप सुटे
ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ३९८४७. (#) उपधानरी आलोयण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १९४३४-४७).
उपधान आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: चलवडौ अणपडिलेह्या; अंति: बीजी पिण आलोयण दीजइ. ३९८४९. (#) पार्श्वजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२४.५४११, १३४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नांनडीयो गोद खिलावे; अंति: निरख सुख पावे छे, गाथा-८. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ते बाधो जन्म ईही खोय; अंति: चोरासी मे डोहोरे. गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नगजय, पुहिं., पद्य, आदि: नायक विणजारा रे अंखी; अंति: नगजय कहे क्या तोय, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आणंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मोतीडै मेह वुठारे; अंति: दिनदिन होत सवाई, गाथा-५. ५. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: सतगुर साध सिपाई मे; अंति: गंगारा० आवागमन मिटाई, गाथा-५. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. ऋषभदास, पुहि., पद्य, आदि: यह चेतन या होरी रे; अंति: वनी एक अदभुत होरी, गाथा-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. चेनविजय, पुहि., पद्य, आदि: कोण नींद सूतो मन मेर; अंति: हे सतगुरु का चेरा, गाथा-३. ८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीयाजी, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा केसरीया; अंति: पुरो आस गुण गाओ रे,
गाथा-३. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
आदमखान, पुहि., पद्य, आदि: बाबो ऋषभ वेठो अलवेसर; अंति: तार लीजै अपनो करके, गाथा-३. १०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादेवीनो नंद मोरो; अंति: प्रभु एहने जाचोरे, गाथा-५, (वि. दो-दो पद की एक गाथा
गिनकर ५ गाथा लिखी है.) ११. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बोलो रे प्रीतम बालमा; अंति: स्वामी भवनो कांठो रे, गाथा-४. ३९८५१. (+) तेतीस को थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ११४३६). सामायिक सज्झाय, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: सामायी सुखदाइजी चित; अंति: काइ चाडवास
चित लाय, गाथा-१०. ३९८५२. वीरवाणी घवली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४२७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
महावीरजिन गहुली, मु. उत्तम, मा.गु, पद्य, आदि मंगलिक वाणी रे वाली अंतिः परमानंद पद पावे, गाथा ५. ३९८५३. (०) नेमराजिमती बारमासो व पद्मप्रभस्वामी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी जीर्ण, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११. १३४३४-३६)
१. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. अमर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मागसिर मासई रे; अंति: अमर गुण गाय, गाथा- १४.
२. पे नाम, जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण,
पद्मप्रभजिन स्तुति - जंबूसरमंडन, मु. अमर, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: जंबूसर प्रभु वांदीइ; अंति: अमरनी पुरो आसतो, गाथा-४.
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३९८५४. () नारकी चौडालीयो, सीमंधरजीरो तवन व प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२५४११, १७४३४).
१. पे. नाम. नाकीनो चोडालो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
नरक चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदिः आदि जिणंद जुहारीए मन, अंतिः सवकन सुखकार, ढाल ४.
२. पे. नाम. श्रीमदरजीरो तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. सीध ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्री मदरसामी दीपता; अंति: जोड्या दोए हाथो जी, गाथा - ७. ३. पे. नाम, पडिकमणा सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सम्यइ करवो रग्यराजइ; अंति: जाणइ भवसागरमइ तारजे, गाथा-७. ३९८५५. उपदेस सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X४०). औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसति मति सुमति द्यो; अंतिः जिम अजरामर पदवी वरो, गाथा १३.
"
३९८५६. (०) नरमोही चोपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११.५, ११४३१). निर्मोहीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सकरिं इंद्र प्रनरन्स, अंति: लही गावै श्रावक दास, गाथा-२९. ३९८५७, (४) वृद्धशांति व नवग्रह आदि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-२३ (१ से २३) २, कुलपे, ३,
प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५४९.५, १६४४७).
१. पे. नाम. वृद्धिशांति, पृ. २४अ - २५अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे.
२. पे. नाम. नवग्रह प्रसन्नाभूया स्तोत्र, पृ. २५अ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिर्विधीयते, श्लोक-११. ३. पे. नाम. पार्श्वप्रभू स्तोत्र, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं. पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं, अंतिः वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक ५.
.
३९८५८. आत्महित व मेघकुमार सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१२, ११३१).
१. पे. नाम. आत्महित सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - आत्महित, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: माहरु माहरु म म कर; अंति: रह्यो रंगसार रे,
९१
गाथा ५.
२. पे. नाम. मेघकुंमार सिझाव, पू. १अ १आ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. कविषण, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ, अंति: मुज मन हर्ष अपार, गाथा-५. ३९८५९. (+#) गुरुगुण गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
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(२४.५X११.५, ११x२५).
गुरुगुण गहुली, मु. देवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भामणि सहु भोली हस; अंति: देवाब्धि इम कहीये, गाथा-७. ३९८६१. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. रास की दो लाईन हरताल से मिटाने की कोशिश की गई है., जैदे.,
(२५X११.५, १८x४४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो जी लीजीइं; अंति: नहि कोइ अधार के, गाथा-२१. ३९८६२. (#) नेमिजिन आदि स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल
पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १९४५१). १.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घेर आवोने नेम वरराज; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वस्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सांवरीया पासजीने; अंति: आनंदघन० सिर वंदीये, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजुंजानो वासी; अंति: भवभव पार उतारे मारा, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासकि पासकि पासकि; अंति: तुमसी लागी आसकी, गाथा-३, (वि. इस प्रति में
दो-दो गाथा की एक गाथा गिनकर ३ गाथा लिखी है.) ५. पे. नाम. आत्म गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इस सहेर विच कोंन; अंति: दस मन मान गुमान है, गाथा-५. ६. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे नेम मीले तो; अंति: रूप० मिलना कीजीये हो, गाथा-३. ७. पे. नाम. सुवधी स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: दास निरंजन तोरा रे, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वस्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. बुद्धिकुशल शिष्य, रा., पद्य, आदि: जोडी थारी कुण जोडे; अंति: भवभव दीजो दीदार, गाथा-२. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: युग में जीवन थोडो; अंति: जिन भजो पार उतार, गाथा-५,
(वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३९८६३. त्रेसठशलाकापुरुष देहमान, आयुष्यादि कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र टूटा होने से पत्र क्रमांक का पता नहीं चल रहा है., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४९-४५).
जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९८६६. (+) नेमनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. झालर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४४२).
नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांवलीया घरि आवकि; अंति: एह की श्रीजिनरंग कहै, गाथा-७. ३९८६७.(+) पार्श्व सप्राभ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ९४३६).
पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदिः श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८. ३९८६८. (+#) सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५४१०.५, १३४४६). १.पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीमतिर्मेधा; अंति: कल्मषं मे स्वाहा, श्लोक-१५. २. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ह्रीं ह्रीँ हृद्यैक; अंति: बुद्धिः प्रवर्द्धते, श्लोक-११. ३९८६९. (+) तीर्थंकर आंतरा विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१. पे. नाम. त्रेवीसां तीर्थंकररा त्रेवीस आतरा, पृ. १अ - १ आ, संपूर्ण, ले. स्थल. समीचीनपुर, पठ. सा. विनयशोभा, प्र.ले.पु. सामान्य.
२४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथरा निर्वाण, अंति: उणा आंतरउ जाणिवउ.
२. पे. नाम क्षुद्रोपद्रवकाउसग्ग विधि, पृ. १ आ. संपूर्ण
प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउं क्षुद्रोपद्रव, अंतिः प्रमुख गुणणा करणा.
३. पे. नाम. वर्तमानचोवीशीसमये धर्मविच्छेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)
(२५X११.५, २२X४५-४८).
१. पे नाम, पूर्वाग, पूर्वादि गणित, पृ. १९अ संपूर्ण.
३९८७०. नवकार छंद व देवी पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पार्श्वरेखा एक तरफ अंकित है दूसरी तरफ
नहीं है. जै., (२५४१०.५, १५४३९).
""
१. पे. नाम. नमस्कार छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरे विविध परि अंतिः विविध परिवंछित लहे, गाथा - १६.
२. पे. नाम. कालभवानी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
कालिकादेवी स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदिः करे सेवना ताहरी माता अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक लिखा है.)
३९८७१. (४) आत्महित सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे., ( २४४११, १०x२४)औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: कडवा बोल्यां अनरथ, अंति: मोसो कोई मति परकासो, गाथा - २४. ३९८७२. (+) चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे.,
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामण स्वामी साचा; अंति: बेनारसी बंदा तेरा, गाथा- ७.
३. पे. नाम, साधारणजिन वसंत, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं, पद्य, आदि मेरे जिनजी खेले रुत, अंतिः कर कर्म अंत, गाथा-५,
४. पे. नाम. औपदेशिक वसंत, पृ. १आ, संपूर्ण.
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पुहिं., पद्य, आदि: तुम खेलो नर एसो वसंत, अंतिः निरमल भज भगवंत धान, गाथा ५.
"
५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सांमलो रे, अंति: पायउ अविचल राज, गाथा-८. ६. पे. नाम, शील सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण
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शीलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: तीन गुपत तणो ताणो; अंति: जे पामे भवपारो जी, गाथा-१०. ३९८७३ (+) गौतमस्वामी चोपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. जै (२५.५x१०.५, १९४३६). गौतमस्वामी चौपाई, उपा. लक्ष्मीकीर्ति पाठक, मा.गु., पद्य, आदिः श्रुतदेवी पदपंकज, अंति: गौतमना सुख लील लहइ, गाथा- ३१.
३९८७४. (+०) नेमनाथजी राणीराजुलनो तवन, संपूर्ण वि. २०बी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११, १३X३९).
नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा. पद्य, आदि हठ कर हरीयां मनावीया, अंतिः रद्धहरण० वाहो लाल, गाथा- ३१. ३९८७५ (+) चंद्रगुपतिराजा सोलशुपना सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जै, (२५x११, १२x२६).
चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि पाडलीपुर नामे नगर, अंतिः जेनधर्म साची जाणो रे, गाथा-३५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९८७६. (#) साधुनी निरवाण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्र नष्ट होने लगे हैं, दे., (२५.५४११, ९४३६-४८).
साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्यारे काल करै त्यार; अंति: चरवली जमणी कोर राखवो. ३९८७७. (+) साधुवंदना व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४१२, १३४३३). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, १०.
ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: भत्तिवि० पभणे निसदीस, गाथा-२९. २. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, १४.
सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: भवतु चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ३९८७८. २४ तीर्थंकर नाम, राशि, गणादि व जिनबिंब राशिमेलापक कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१,
कुल पे. २, प्र.वि. “पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२५४११, १८४५०). १. पे. नाम. चोवीशजिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्गादि विचार कोष्टक, पृ. ३अ, संपूर्ण.
२४ जिन राशि नक्षत्र योनिगण वर्ग हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. जिनबिंब राशिमेलापक कोष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण.
२४ जिन राशिमेलापक कोष्टक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ३९८७९. दशारणभद्रराजर्षी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. भवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रायः कर्ता के हस्ताक्षरों से लिखित., जैदे., (२५४११, १४४३६). दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: वीर जिणेसर पद नमी; अंति: सकल संघ दिन
दिन सदा, ढाल-४. ३९८८१. (+) रात्रिभोजन सझाय व नाटिकअसुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. तुलसी;
पठ. सा. रतनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रति के अंत में किसी ने 'श्री आदिश्वरजी लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३१). १.पे. नाम. रात्रिभोजन सझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. आणंदविमलसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल नयरी वसे जी; अंति: होज्यो
सुख भरपुर रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. नाटिकअसुर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: जोवण
उच्छक छे अति, गाथा-९. ३९८८२. वृद्धिशांत, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि; पठ. मु. लालचंद ऋषि (गुरु मु. अनोपचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १६४४३).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: तस्मै श्रीशांतये नमः. ३९८८३. (+) गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४०).
वृद्धिसागरगुरु सज्झाय, मु. माणिक्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु पदपंकज; अंति: तणा पाय सूरीश्वर, गाथा-११. ३९८८४. (+) ज्ञानपंचमीपर्वादि स्तुति संग्रह व उवसग्गहर स्तोत्र की भंडार गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३७). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिपंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र की भंडार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा*, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दसणेण सामिय;
अंति: अट्ठगुणाधीसरं वंदे, गाथा-२. ३९८८५. नाकोडातीर्थ स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. नाकोडातीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. साचोर, प्रले. पं. जुक्तिरंग, प्र.ले.पु. सामान्य.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: महेवानगर मझार वीतराग; अंति: करी सुजगीसैरे, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य द्वारा लिखी गई है. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ; अंति: संघ आवै सहु धसमसीया,
गाथा-७. ३९८८६. वाणीयानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. सिणगारश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ९४२३).
औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वांण्यो वीणज करे छे; अंति: वाणी आवे कमाइ
साथ, गाथा-९. ३९८८७. (#) विवेक सज्झाय, सीमंधरस्वामी स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. विवेक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: धर्म रंग मन धरयो चोल,
गाथा-१६. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंतकल्याणकर; अंति: तेषांबत साधुरूपाः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३९८८८. आतमसीख्या सज्झाय व रुखमणी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५,
१५४३७). १. पे. नाम. आतमसीख्या सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवै ए; अंति: जइयै मुगति
मझार तो, गाथा-१०. २. पे. नाम. रूखमणी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगै भणै, गाथा-१४. ३९८८९. (+) अभव्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. भावश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ७X४१).
अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिं न; अंति: दुहावि तेसिं न पत्तं, गाथा-९.
अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जिम अभव्यनो; अंति: बई प्रकारइ न पामइ. ३९८९२. (+) जिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०४३०).
आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: मनवचकाया त्रिकरण योग; अंति:
जिनचंद० मन लयलीनोरे, गाथा-१५. ३९८९३. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४२५).
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सैत्रुजैऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहै
एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पाद को एक गाथा गिनकर गाथांक १६ लिखा है.) ३९८९४. (+#) नवकार छंद व ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५,११४३७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नवकाररो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछतपूरण विध परे; अंति: ऋधि वांछत फल
लहै, गाथा-१७. २.पे. नाम. ढंढणऋषजीरी सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिजीनै वंदणा; अंति: सुजाणरे हुवारी लाल, गाथा-९. ३९८९५. वस्तुपालतेजपाल रास व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. लाडु, प्र.ले.पु. सामान्य,
जैदे., (२५४११, १३४४१). १.पे. नाम. वस्तुपालतेजपालनो रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. वस्तुपालतेजपालमंत्री रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सरसति सामण पाय नमी; अंति:
गुणतां परम उल्हास, ढाल-२, गाथा-३९. २. पे. नाम. जैनदहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
जैनदहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ३९८९६. (+) गौतमाष्टक, पार्श्वनाथ स्तोत्र व स्थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२४४१०, १५४४८). १.पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभंते सुचिरं क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: मगसी पास जुहारीयै; अंति: लखमीवल्लभ० मनि जगीस,
गाथा-७. ३. पे. नाम. थूलिभद्रमहामुनीश्वर सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. करमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जोसी जोव जोतिग सारुं; अंति: पालो भवियण प्यारा के,
गाथा-१७. ३९८९७. कलिकुंडपूजा जपमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१).
पार्श्वजिन पूजा-कलिकुंड, सं., प+ग., आदि: संसाध्याखिलकल्याणमाल; अंति: मानर्द्धिसिद्ध्यै. ३९८९८. (+#) प्रवचनमात्राराधने फले पुण्यसार कथा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, २०४५१). १.पे. नाम. प्रवचनमात्राराधने फले पुण्यसार कथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पुण्यसार चरित्र-चारित्राराधनफलविषयक, सं., पद्य, आदि: गोपालाचलश्रियाकीर्णे; अंति: यूयमप्याश्रयध्वं,
श्लोक-९४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-८, (वि. आरण्यकादि से संगृहित श्लोक संग्रह.) ३९८९९. (#) गौतमस्वामी स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप
गए हैं, जैदे., (२४.५४११, १५४४१). १.पे. नाम. गौतम स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रऊठी गौतम समरीजै; अंति: प्रगट्यौ परधान, गाथा-८. २. पे. नाम. गौतम स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनोरे; अंति: वीर नमे निसदीस, गाथा-८. ३. पे. नाम. गौतम स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. सुधनहर्ष पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेशर चउवीसमो; अंति: श्रीगौतमनो महिमा घणो.
गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३९९००. वीरजिन गुणस्थांन स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १६x४७).
महावीरजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिनरायना पय; अंति:
श्रीवीरजिन सेवो सदा, गाथा-२३. ३९९०२. पार्श्वजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र का दाहिना हासिआ टूटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२४.५४११.५, १०४३४). पार्श्वजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पास जिण; अंति: झाझू केंवरावो रे,
गाथा-१०. ३९९०३. पार्श्वजिन सलोको, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. दशाडानगर, प्रले. पं. क्षमावर्द्धन (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि); गुपि.पं. धर्मवर्द्धन गणि (गुरु पं. विवेकवर्द्धन गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). पार्श्वजिन सलोको-शंखेश्वरतीर्थ, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८४, आदि: देवि सरसति प्रणमु; अंति: देवविजय
मंगलिक थाई, गाथा-४६. ३९९०४. वासुपूज्यनी थोयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ९४३०).
रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपुज्य जीनेसर; अंति: धीरियने सुख संजोग, गाथा-४. ३९९०५. रजःपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. पं. कमलकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४४६).
होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: विज्ञानं वाचनोचितः, श्लोक-४९. ३९९०६. (+#) दलाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र टूटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४४४). दलाली सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: दलाली इस जीवन कीधी अ; अंति: समझाव आग थारोइकतार,
गाथा-३२. ३९९०७. सचित्ताचित्तविवरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१२.५, १०४३८).
सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहै
सिज्झाय, गाथा-२५. ३९९०८. (+) जीवनी उत्पतीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १६४३८).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पती जोई जीव आपणी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६ अपूर्ण तक लिखा है.) ३९९०९. (-) प्रश्नज्ञान नीर्णय, वीतरागष्टक व आत्मबोध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
ले.स्थल. पोसालिया, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. पृश्नज्ञान नीर्णय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक किंचित्
अंशमात्र लिखा है.) २.पे. नाम. वितरागाय चतोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में या अन्य विद्वान द्वारा लिखी गई है.
वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्ध; अंति: हृदाभ्युद्यतं, श्लोक-९. ३. पे. नाम. आत्मबोद्ध स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में या अन्य विद्वान द्वारा लिखी गई है.
औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चरखा चलता नांहि बे; अंति: भुदर चेत सेत सवेरा, गाथा-५. ३९९१०. (+-#) कल्याणमंदिर व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक ४आ पर सांक
३१ व्यंजनाक्षर दिये गये हैं एवं ४आ के हासिए में १, २, ४,८ व १६ इस प्रकार दुगुने अंक लिखे हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर माहास्तोत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. आणंद ऋषि (गुरु मु. वणायग ऋषि); गुपि. मु. वणायग
ऋषि; पठ. श्रावि. प्रेमाबाई; श्रावि. वीरा बाई, प्र.ले.पु. मध्यम.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७. ३९९११. () स्थूलभद्र स्याध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे
फल्यारे, ढाल-९. ३९९१२. (+#) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्रले. मु. चतुरसौभाग्य; पठ.ग. कमलसौभाग्य,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. 'एवंकारे'.. से शुरु होने वाला अंतिम आलापक बाद में या किसी अन्य विद्वानने लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३९९१३. जयतिहअण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले.सा. गुणश्रीजी; पठ. श्रावि. भाणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३१). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव
विनवइ आणंदि, गाथा-३०. ३९९१४. (#) पार्श्वनाथ नमस्कार व संथारापोरसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, माघ कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल
पे. २, पठ. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ४४३१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमल्लल्ल; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारिजे कषायरूपजे; अंति: वांछित पदार्थ आपु. २. पे. नाम. संथारापौरसी सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकनें गाथाक्रम ४ तक ही लिखा है.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: अवढिओ सव्वभावसु, गाथा-१६.
संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मन वचन कायार्नु प्याप; अंति: भावनइ विषइ रह्यु छउ. ३९९१५. (+#) अवंतीसुकमालनी व जीवदयावैराडी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १९४४०-४२). १.पे. नाम. अवंतीशुकमालनी सझाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. डांकुलानगर, पे.वि. प्रतिलेखकने अंत में उतावल
घडी ४ मध्ये लखी छे राते' इस तरह लिखा है. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्यसुहस्ती; अंति: सांतीहरख सुख पाविरे,
गाथा-१०६. २. पे. नाम. जीवदयावैराडीसझाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पदमावती जीव; अंति: कहि
पायथी छुटि ततकाल, ढाल-३, गाथा-३१. ३९९१६. (+) दशपच्चक्खाण फलस्वरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १०४३८).
१० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद
तपविधि भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ३९९१८. (+#) पार्श्वनाथ स्तुति व मंगलाष्टक, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १७४४७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमो सारदा सार पादार; अंति: सोख्यप्रदा सर्वदा,
गाथा-१३. २. पे. नाम. मंगलाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
__ सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नम्रसुरासुर; अंति: कुर्वंतु नो मंगलम्, श्लोक-९. ३९९१९. (-#) ऋषभजिन स्तुति व शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ९-१३४२८). १.पे. नाम. ऋषभजीन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोधर्म देवलोक पहि;
अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. फतेसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांति जिणेसर; अंति: महानंद पद लहे पास, गाथा-५. ३९९२०. नेमजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ., (२५.५४११.५, १५४५०).
नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जो जिनमुखकमले राजे; अंति: मनवंछत सुख
पावे वा, गाथा-२१, (वि. प्रतिलेखक ने रचनाप्रशस्ति वाली गाथा नहीं लिखी है.) ३९९२१. (+) गुरु गीतं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३१).
राजसागरसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: गुण गायइ दई सन्मानं, गाथा-७. ३९९२३. (#) सुखसागरपार्श्वनाथ तवन वसतरभेदसाध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३०-३४). १.पे. नाम. सुखसागरपार्श्वनाथ तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुखसागर, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखसागर गुणमणी; अंति: देखी सुधारस नयणे,
गाथा-७. २. पे. नाम. सतरभेदसाध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १७ साधुभेद सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधू शिरोमणी एहवा; अंति: हुंजाउं तस बलीहार,
गाथा-५. ३९९२४. (#) आचार्य जसवंतजीकृत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४८).
२४ जिन स्तुति, आ. जसवंत, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्चितदेवं; अंति: वा कीर्तिमंतस्ते, श्लोक-२७. ३९९२५. (+) अनेकार्थमंजरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४७).
अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: (१)शुद्धवर्णमनेकार्थं, (२)शब्दांभोधिर्यतोनंत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४३ तक
३९९२६. (+) राजानो ददते सौख्यं के ६४ अर्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र का दाहिना हासिआ कटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४३८). राजानो ददते सौख्यं के ६४ अर्थ, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)राजा नो ददते सौख्य, (२)राजा नृपः
नोस्माकं; अंति: नगरवर्णनेपि समेति, ग्रं. ३९. ३९९२७. (+) संजममंजरी व ताव मंत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,
१६४५४). १. पे. नाम. संजममंजरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
संयममंजरी, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण नमिर तियसिंद; अंति: किं निकुणति सुणेह, गाथा-३५. २. पे. नाम. ताव मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
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१००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह उ. पुहिं, प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि (-): अंति: (-).
३९९२८. (+) व्रतारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६११, २३-२५x७३).
१२ व्रत उच्चारणविधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: वारव्रतना पोसह वहि अंतिः नीमेलि जाणवा ३९९२९. गुणाणुराय कुलं संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र का दाहिना हासिआ कटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है.,
जैदे., (२६X११, १५x५८).
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गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., पद्य, आदि: सयलकल्ढाणनिलयं नमिऊण, अंति: पामइ सव्व नमणिजं, गाथा-२८. ३९९३० (४) चतुर्विंशतिजिन स्तुतय सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X११, १२-१५X४७).
२४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: जनेन येन क्रियते; अंति: भासमानच्छविभालकांता, श्लोक-२७. २४ जिन स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: निम्ना नाभिर्यस्य स, अंति: अंता यस्यां सा तथा.
३९९३९. () सर्वज्ञजिन त्रिगडाअधिकारमय स्तवन व माणिभद्र छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १२X३२).
१. पे नाम, सर्वज्ञजिन त्रिगडाअधीकारमय स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण
साधारणजिन स्तवन- त्रिगडाअधिकारमय, ग. पद्मसागर, मा.गु, पद्म, वि. १७०९, आदि: सिद्धारथ कुल चंदलो, अंतिः रे सफल फली मुझ आस रे, गाथा- १९.
२. पे. नाम. माणभद्रजीरो छंद, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण.
माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लोक रीझावै, (वि. इस कृति में गाथा ४ तक ही गाथांक दिया गया है.)
३९९३२. (+) चक्वेस्वरी स्तवनाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. डभोई, प्रले. मु. खुशालचंद, पठ. प्रेमीओ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चक्केश्वर नमः. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२६X११, १३X३८).
चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंतिः पाहि मां देवी चक्रे, श्लोक ८, (वि. कृति के अंत में क्षमायाचनासूचक ३ लोक लिखे हैं.)
३९९३३. (#) सेत्रूंजा भास, आदिजिन पद व शेत्रुंजयमाहात्म्योक्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, ११X३७).
९. पे, नाम, सेश्रूंजा भास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सहियां मोरी चालो अंतिः अरिहंत श्री आदिनाथ हे गाथा- १३. २. पे. नाम. आदिजिन द्रूपद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि आज ऋषभ घरि आवै देखो, अंतिः साधुकीरति गुण गावे, गाथा- ३. ३. पे. नाम. शेत्रुंजयमाहात्म्योक्त, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में या अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १.
३९९३५ (+४) प्रतिक्रमणसूत्र व संखेस्वरपारसनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११.५, १०x२८-३२).
""
१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण, वि. १८०४ माघ शुक्ल, ६, ले. स्थल. दरीबा, प्रले. पं. खुसालविजय;
पठ. ग. रणछोड (गुरु पं. खुसालविजय); अन्य. मु. हीरसागर, राज्ये आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. प्रतिलेख पुष्पिका के बाद में 'किसी अन्य विद्वानने पुज्य श्री आचार्यजी श्री १०८ श्रीविजयधर्मसूरि विजयराज्ये ॥ संवत १८०५ वर्षे लिखितं हीराब्धिना' इस तरह लिखा है.
वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - ५०.
२. पे. नाम. संखेस्वरपारसनाथ स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण, ले. स्थल. डुग्गला, प्रले. ग. रणछोड (गुरु पं. खुसालविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
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१०१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजि तुझ; अंति: नीत चाहे दीदार रे,
गाथा-८. ३९९३६. तेत्रीस आशातना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. राजधर; पठ. श्रावि. फूलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५.५४११, ११४३३). ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: आसातना तत्र आयज्ञा; अंति: (१)तेत्रीस आशातना टालवी,
(२)तेतीसन्नरा ए एपाठ. ३९९३७. (+-#) ढंढणऋषि आदि सज्झाय संग्रह व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. दोनों
हासिओं पर कागज चिपकाये होने से पत्रांक नहीं दिखता है., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४०). १.पे. नाम. ढंढणऋषि सजा, पृ. १अ, संपूर्ण.
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषजीने वांदणा; अंति: रेहु वारी लाल, गाथा-९. २. पे. नाम. बाहुबल सझा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. सा. कुसाला आर्या. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राज तणा अतलोभीया भत; अंति:
प्ररणमुपाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन सिझा, पृ. १आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगियो; अंति: पुरो बंछीत काज जी, गाथा-६. ३९९३८. (+#) गौतम कुल सह पर्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. पतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४२७-३०).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य लक्ष्मी; अंति: होइ अनंता सुख पामि. ३९९४०. (+) बीजतिथि आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. बीजतिथिनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
बीजतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पूछै प्रभू; अंति: सिद्ध भगवंत लाल रे, गाथा-८. २. पे. नाम. पांचिमनी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन वीर इम; अंति: गुरु सेवा करे ततसार, गाथा-८. ३. पे. नाम. आठिमतपनी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर गौतमस्वामि; अंति: महानंद पद पांमै मुदा, गाथा-९. ४. पे. नाम, एकादशीनी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
एकादशीतिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हरि पूछे श्री; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक दो शब्द मात्र है.) ३९९४२. खंधकमुनि आदि सज्झाय संग्रह व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मानी,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, २०४३८). १.पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. सबलदास, पुहिं., पद्य, आदि: धन धन जगम खंधक मुनी; अंति: सुणता पातक जड ताह, गाथा-१२. २. पे. नाम. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: रिषभादतन देवानंदा; अंति: वरस ऐसीय कीयो रे. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कुसल जै कुसल जै क्या; अंति: विहुं आवागमण करत, गाथा-४. ३९९४३. (+) सुभद्रासतिन चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. कुसला, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५).
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१०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसती सामण वीनवू; अंति: फलिय
मनोरथ माल, ढाल-४. . ३९९४६. (+#) प्रतिमा रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, २३४६१).
जिनप्रतिमा रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय नमी; अंति: भयणोते किसो संदेह, गाथा-४१. ३९९४७. (+#) औपदेशिक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. उजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किनारी
खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है. पेन्सिल से किसी आधुनिक विद्वानने संशोधन किया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१२, १३४३८).
औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (१)समय संभारे रे आखर, (२)चेतनजी चेतोरे आखर; अंति:
त्रस्यो ए संसार हो, गाथा-९, (वि. आदिवाक्य के प्रारंभिक अंश को किसी विद्वान द्वारा पेन्सिल से सुधारा गया
है. जिसे द्वितीय आदिवाक्य के रूप में संकलित किया गया है.) ३९९४८. (+-) आदेश्वर तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, ११४२७).
आदिजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, मु. गयवर, रा., पद्य, वि. १९७२, आदि: (१)बोल बोल आदिश्वर वाला, (२)मांसु
मुडें बोल बोल; अंति: प्रणमुपाया रे, गाथा-११. ३९९५०. (+#) मेतारज सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२८).
मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणनो आगरुजी; अंति: साधुतणी रे साझाय, गाथा-१३. ३९९५२. आदिजिन स्तवन व हीराऋषि गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. अमी ऋषि,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १६४३१). १.पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण.
म., पद्य, आदि: आधी नमी तोमी आदीनाथ; अंति: रा चामुळ दुरटा कावा, गाथा-४. २. पे. नाम. हीराऋषि गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण.
रामकिशन ब्राह्मण, पुहिं., पद्य, आदि: मुनी हीरारषजी महाराज; अंति: माय बडो जस लीनो, गाथा-५. ३९९५३. (#) सिद्धांतविचार स्तवन व कम्मभूमी अक्षरार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. किसीने सफेदा से
प्रतहुंडी मिटाई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४८). १.पे. नाम. सिद्धांतविचार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: संसारि फरिता जीविहि; अंति: ते गंगा विम धोउ. गाथा-१५. २. पे. नाम. कम्मभूमी अक्षरार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
१५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पनर कर्मभूमि कहीइ; अंति: प्रतिमा वांदउं. ३९९५४. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १०४३०).
सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमि तुझ लली लली,
गाथा-८. ३९९५५. (+#) चवदसि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. आनंदविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४४).
चतुर्दशीतिथि स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीमहावीरजीनै आगलै; अंति: स्तवन महिमा
संचमी, ढाल-३, गाथा-५७. ३९९५६. सूतकादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.ग. भूपतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.,
(२४.५४११, ९४३५).
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१. पे. नाम. सूतकादि विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सूतक व गाय भैंस आदि के मूत्र में समूर्च्छिम जीवोत्पत्ति काल विचार)
२. पे. नाम. शिवमते मृतकसूतक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. सूतक विचार - शिवमते, सं., पद्य, आदि: चतुर्थे दशरात्रिं; अंति: मेकरात्रिं च सूतकं, श्लोक-२. ३९९५७. (#) करमऊपरि सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हेमचंद पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४२).
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर, अंति: नमोनमो कर्मराजा रे, गाथा- १८. ३९९५८, () पार्श्वनाथ आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक ९अ पर लिखा है एवं पत्रांक १ आ पर क्रमांक की जगह पर संदेहास्पद अंक लिखित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२५.५४११, १४४२८). १. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
,
सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्र अंतिः प्राप्नोति निश्चल, श्लोक-४.
२. पे. नाम. गुरु स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो, अंति: सुप्रीतिस्तस्य जायते, श्लोक - ५.
३. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
पार्श्वजिन स्तव-लघु. मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: गुणश्रेणिरत्नावली अंतिः ते मनुष्या लभते श्लोक ५. ३९९६० (+) तंत्रीस ठाणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४११.५, २१४४३).
असंयम, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अपूर्ण
३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक प्रकार ग्यारहवे बोल तक लिखा है.)
३९९६१. () नवग्रह व चोविसजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ..
दे., (२५X११.५, ११X३०).
१. पे नाम. ग्रह स्तोत्र, पू. १अ संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्म, आदि जगद्गुरुं नमस्कृत्य अंतिः ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११.
,
२. पे नाम, २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. अंत में पणसट्ठि यंत्र भी अंकित है.
१०३
२४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्,
श्लोक- ८.
३९९६२. (#) आदिनाथ स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ८३०-४०).
आदिजिन स्तव - देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा., सं., पद्य, आदि: जय सुरअसुरनरिंदविंद, अंतिः सेवासुखं प्रार्थये,
गाथा - २५.
आदिजिन स्तव- देउलामंडन मंत्राम्नाय अवचूरि, मा.गु. सं., गद्य, आदिः कियदनुभूतमंत्रयंत्री, अंतिः प्राप्तिर्भवति, (प्रले. मु. पुण्यमाणिक्य, पठ. मु. करमचंद (गुरु मु. पुण्यमाणिक्य), प्र.ले.पु. सामान्य, वि. प्रथम पत्र पर पंदरिया यंत्र अंकित है. प्रतिलेखक ने गाथा २१ तक अवचूरि लिखकर कृति संपूर्ण कर दी है.)
',
३९९६३. खांमण सज्झाय व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२५x११.५, १४४४). १. पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. गुणसागर, मा.गु., पद्म, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा- १६.
२. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि योवनवेसमई झीलतो, अंति: चोथमल्ल गुण गाया रे,
गाथा - १२.
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१०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९९६४. (+#) नवाडी स्वाध्याय व ऋषभदेव स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७७५१). १.पे. नाम. नवाडीशीलरत्ननी स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३,
(पू.वि. ढाल ९ गाथा १ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदि: शेजागढना वासी; अंति: इम कहे उदयरतन करजोडि, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धरी प्रभू; अंति: निधि ऋद्धि भरी पायो,
गाथा-८. ४. पे. नाम. राधिकावाक्य, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३९९६५. (+#) अंगुलीस्पर्शने दिनरात्रिज्ञान गाथा व पंचतीर्थी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३०). १.पे. नाम. पंगुलिस्पर्शने दिनरात्रिज्ञान, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हासिये में दिनरात्रिज्ञान गाथा का संक्षिप्त कोष्ठक दिया गया है.
दिनरात्रिज्ञान गाथा-अंगुलिस्पर्शने, पुहिं., पद्य, आदि: अंगुष्टादिक आदि करि; अंति: निसदिन घडियां इष्ट, गाथा-२. २.पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदहि आद आद जिणेसरु ए; अंति: करतां सुख पावै
सासता. ३९९६६. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११,१०४३१). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: भावै वंदोरे गोडी; अंति: गावे पदम
कहे लहे पार, गाथा-९. ३९९६८. (+) गिरनार वृद्धस्तवन व सिद्धचक्र थूई, अपूर्ण, वि. १८८३, माघ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २४-२१(१ से २१)=३,
कुल पे. २, प्रले. मु. गंगाराम (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१०.५, ७४२२-२६). १. पे. नाम. गिरनार वृद्धस्तवन, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: शुयदेवी सानिध करी; अंति: प्रेम घणो जिनचंद,
गाथा-१३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र थूइ, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगणंत सुरनर पाय; अंति: चंद समकित नित वरू, गाथा-४. ३९९६९. (+) पचखांण स्वाध्याय व मेघकुमारमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चाणोद,
प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १८४४५). १.पे. नाम. पचखांण साध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: धुरि समरु सामणि; अंति: सयल संघ
संपति करो, ढाल-२, गाथा-२३. २. पे. नाम. मेघकुमारमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: प्रीतविजय० तणा पास, गाथा-५,
(वि. इस प्रति में कर्ता नाम प्रीतविजय लिखा है.) ३९९७०. (+#) यंत्र चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२६४११, १६x४९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१०५ यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउवीसइ पय पणमेवि; अंति: प्रसादि परमारथ सुणइ,
गाथा-१६, (वि. कृति के अंत में यंत्र भी दिये गये हैं.) ३९९७१. इर्यापथिकी कुलं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५४११,११४५०).
ईर्यापथिकी कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअसिरिवीरजिणं; अंति: रे जीव निच्चंमि, गाथा-१२. ३९९७३. (#) औपदेशिक रेखता व नेमनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जसोजी कीका भाट;
पठ. सा. जामा; राज्यकालरा. भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ८४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कुलकर्म को सौधर्म; अंति: जानजे नबगस तुज दीयौ, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उंची उंची मेडिने अजब; अंति: चेलो देववीजे
जैकारी, गाथा-८. ३९९७६. (+#) चवदेगुणथानकविचार व पोसह १८ दोष तजवा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १४४३८). १. पे. नाम. चवदेंगुणथानक विचार स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमति जिणंद सूमत; __अंति: कहै मुनि इम धरमसी, ढाल-५, गाथा-३४, (वि. प्रतिलेखकने कृति के प्रारंभ में रागसूचक देसी लिखी है किन्तु
उसके बाद 'ए देसी' नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. पोषह १८ दोष तजवा स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. १८ पौषधदोष स्तवन, उपा. आनंदनिधान गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सुखकर शांति जिनेसरु; अंति: पदधर
आनंदनिधान उलास, ढाल-२, गाथा-२१. ३९९७८. उवसग्ग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, ९४२६).
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: तेनाह सुरा भगवंत,
गाथा-१३, (वि. अंत में आम्नाय दिया गया है.) ३९९७९. (+#) शीतलजिन व वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३४). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिंन सहिज सुरंग; अंति: शुवधीकुशल गाया रे, गाथा-८. २.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. शिवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा वीर जिणंदनी; अंति: सीस इंम वीनवे रे लो, गाथा-७. ३९९८१. (+#) पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १८४३९). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मावादनी जग; अंति: पास जिण अभिराम मंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ३९९८२. (+#) मेवाड देसरा गुण, संपूर्ण, वि. १८४०, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. मु. श्रीचंद्र,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदमप्रभु प्रसादात्, गोडीजी., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३५). मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धरी माता भारथी; अंति: सोरहिज्यो चिर नंद,
गाथा-१२, (वि. इस प्रति में रचनासंवत् नहीं लिखा है.) ३९९८४. (-2) पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४३४).
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१०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए नमुक्कार; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. आयंबिल, एकसणा, निवि,
उपवास व पाणहार प्रत्याख्यान हैं.) ३९९८६. थंभणपुरजीरो तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हर्षविजय; पठ. श्रावि. पदमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३६).
पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ दीयालो, गाथा-१६. ३९९८७. गोडिकाभिधान पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. नवला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल 'श्रीप्रभुजीरा गाममधे इस तरह लिखा है., जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे वसी; अंति: कांति० नमो गोडी
धवल, गाथा-३७. ३९९८९. (+#) श्रावक व साधु अतिचारचिंतवन गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गौतमसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १२४३०). १. पे. नाम. अतिचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिअ; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८,
(वि. गाथाओं के उच्चारण की विधि अन्त में दी गई है।) २. पे. नाम. अतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१,
(वि. अंत में गाथा उच्चारण की विधि दी गई है।) ३९९९०. (#) कालज्ञान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, ११-१३४३९).
कालज्ञान आम्नायसहित, सं., प+ग., आदि: दीपोत्सवस्य कृष्ण; अंति: अतिसारेण मरणं भवति, (वि. कालज्ञान का यंत्र
__ भी संलग्न है.) ३९९९२. (#) श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रथमचंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, १०४३३)..
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति द्यो मुझ; अंति: गोडी धुण्यो, गाथा-९. ३९९९३. (+) पुण्यचत्रीसी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १५४४६).
पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुन्यतणा फल परितख; अंति: पुन्यना फल परतक्ष
जी, गाथा-३६. ३९९९४. (#) साधारा गुणांरोतवन व जीवदयारी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. साधांरा गुणांरोतवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
रतनचंदजी भास, मा.गु., पद्य, आदि: धन रे दिहाडो मारे; अंति: सतगुर सरणे आंन पडी, गाथा-६. २.पे. नाम. जीवदयारी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जीवदया सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धरम धरम सहु को कहै ए; अंति: हुवा मेघकुमार के, गाथा-७. ३९९९५. (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे.,
(२४४११.५, १०४३६). १. पे. नाम. महामोहनीरा ३० बोलरी विगत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलै बोलै त्रस जीव; अंति: महामोहणी करम बांधै. २. पे. नाम. १० बोल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. शिष्य द्वारा पूछे गये दस संशय एवं उनके उत्तर दिये गये हैं.
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१०७ ३९९९६. (#) आदिजिन आदि स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, दे., (२४४१०.५, १०४३२). १.पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो मरुदे; अंति:
सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. २.पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदसुप्रीत; अंति: नित नित
गुण गाय कै, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलभडै मत; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी हो,
गाथा-७. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: श्रीसीधाचलगिर भेटीया; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे,
गाथा-५. ५.पे. नाम. बाहुबल सझाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभीया भरथ; अंति:
समयसुंदर० पायारे, गाथा-७. ६. पे. नाम. निंद्यारी सझाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निद्या मकर रे जीव;
अंति: समयसुंदर कहै सीख रे, गाथा-५. ३९९९७. (-) दशपचखांण सिझाय, ज्योतिष कुंडली, शीतलजिन स्तवन व प्रभाति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १०४४१). १. पे. नाम. दशपचखांण सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामो निश्चै निरवाण, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बदन सदन अर्मत; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने प्रथम गाथा दो पाद मात्र लिखी है.) । ३. पे. नाम. ज्योतिष कुंडली, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. शीतलजिन तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
शीतलजिन स्तवन, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जण सरुतरु समो; अंति: हो कहे श्रीदयासुर, गाथा-५. ३९९९८. (2) चोवीसतिर्थकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, पठ. श्राव. सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १२४३३).
२४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदनाथं करोजी; अंति: दिज्यो माहावीर मोकुं, गाथा-२४. ३९९९९. (+) नाकोडोपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२१.५४१०.५, ७४२२-२५). पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणै घर बैठा लील करौ;
अंति: सुंदर कहइ गुण ज्योडौ, गाथा-८. ४०००२. (#) गुरावली व गणधरावली कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२४४१०.५, १६x४३).
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2
१. पे. नाम. गुरावली, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पूर्णिमागच्छ पट्टावली, मा.गु., सं., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय, अंति: विलयं यांति नितिम, गाथा-२१. २. पे. नाम गणधरावली कुलं, पृ. १आ, संपूर्ण
.
गणधरावली कुलक, अप, पद्य, आदिः उडुवि सयणह पणमीयए अंतिः पुव्ववणं निपत्तो, गाथा-१३. ४०००३. नंदषेण सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२४.५४१०.५, १४४३० ). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधजी न जाइये परघर, अंति: प्रघर गमण नीवार, गाथा - १०. ४०००५. चउदरननो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२३.५४११.५, १७४३०).
"
चक्रवर्ती १४ रत्न विचार, रा. गद्य, आदि: चक्ररत्न पेडैरे, अंति: प्रचत रे जडै उपजे य.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४०००६. (#) अरहनक मुनीश्वर रास, संपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन शुक्ल, ३, शनिवार, जीर्ण, पृ. ३, ले. स्थल. विजापुर, प्र. वि. का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३९.५, १७x४६-५०).
मूल पाठ
अरणिकमुनि रास, मु. आनंद, मा.गु, पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामनी वीनवृं अंतिः कहिओ रास विलास कि,
ढाल-८.
४०००७. ज्ञान उक्तियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३.५X१०.५, १७X४७). जैन सामान्यकृति", प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). (वि. ज्ञान एवं क्रिया में ज्ञान की महत्ता दर्शानवाला संस्कृत भाषामय हितोपदेश.)
(२४१०.५, १९-३३X२४).
१. पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
४०००८. (#) सीद्धचक्रनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५X११, ११×३१). सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरी वासी; अंति: ते घरे नित्य दीवाली, गाथा-४. ४०००९. (+#) अनाथी अणगार सझाय, संपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जै, (२३.५४१०.५, १५४४३).
अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक, अंति: इम जंपे गणि राम कि,
गाथा - ३०.
४००११. (+#) महावीर पारणो, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. जीवण मथे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२३१०, १७x४०).
,
महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेहिनही मन माल,
गाथा - ३१.
४००१२. शीवपुरनगर सज्झाव व गोतम स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे.,
मा.गु, पद्य, आदि सीवपुर नगर सोहामनी, अंति: पामे सुखनो आराम हो, गाथा- १५.
२. पे. नाम, गोतम स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु. पद्म, आदि प्रे उठी गोतम समरीजे अंतिः प्रगट्यौ कुलभांण, गाथा-७. ४००१३. पजुसर्णपर्व स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. चित्र की स्याही से पत्र प्रभावित होने के कारण कुछ शब्द
दुर्वाच्य है., जैवे. (२४४१०, ९४४४).
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेद जिनपूजा, अंति: पूरवि देवी सिद्धाइजी, गाथा- ४. ४००१४. समर की सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., जैवे.,
(२३.५४१०.५, १५४४२).
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संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर जिणेसर गोतम, अंति: मुगत जासी पाधरो, गाथा- ६.
४००१५. आदिजिन आदि चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२४, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. ५, अन्य. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखक द्वारा इस प्रकार लिखा गया है 'देविंद्रवीजरो पानो छे बापजी दीधो छे', जैदे., (२३.५X१०.५, ११X३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
___१०९ १. पे. नाम. ऋषभजन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेसर कुल कमल; अंति: प्रीत० आवागमन निवार,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथाक्रम नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. नेम चेत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमुं निसदिस जनम; अंति: मेहिमा जगमें रह्या, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथाक्रम नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्व चेत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वादं पासजिणंद कमठ; अंति: जस मेहिमा जग कीध,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथाक्रम नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. वीरजन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीरजिणंद महियल; अंति: ऋषभ० जन पाम्या पार,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथाक्रम नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदण-भवसंख्यागर्भित, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकर तणा;
अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथाक्रम नहीं लिखा है.) ४००१६. (#) अर्जनमालीनी संधि, अपूर्ण, वि. १६९७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, पठ. वा. श्रीविमल;
मु. धनविमल ऋषि; मु. कीर्तिविमल ऋषि; मु. भीमविमल ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४२).
अर्जुनमाली संधि, उपा. नयरंग वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६२१, आदि: संतिकरण सरि संति; अंति: रिधि वृधि निरंतर,
गाथा-६९, (पू.वि. गाथा ९ से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) ४००२०. (#) जिनप्रतिमास्थापना हुंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९, १४४३४). जिनप्रतिमास्थापना रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सार वचन जिन भाखीयो; अंति: मनवंछित फल
सिधकै, गाथा-४२. ४००२१. नकार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, १२४२९).
नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ४००२२. विरह पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १६, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पत्र १४२ हैं., जैदे.,
(२४४१०.५, ३५४१९). १.पे. नाम. विरह पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: मांने एकलडी मत मेलो; अंति: डरपूँइकेलीरे, गाथा-२. २. पे. नाम. विरह पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मे भीजु कापुं द्वार; अंति: जराई मीयां अधिक जरी, गाथा-२. ३. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
कृष्णभक्ति पद, नरसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: तुंक्यांनो दाणी; अंति: ज्यु रावण भीम कंस, गाथा-२. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण.
वा. साधुहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: मुख निरख्यो; अंति: दीजे पद शिवराज को. गाथा-३. ५. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
सुरदासजी, पुहिं., पद्य, आदि: वृज मंडल देस देखाउ; अंति: मोहन नयनन मन वसीया, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, मु. न्यांनजी, मा.गु., पद्य, आदि: रमक झमक माहावीरजी घर; अंति: अवचिल पद पामे रे, गाथा-३.
कृष्ण
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११०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. नेमी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, म. भीम, रा., पद्य, आदि: जो थे चालो शिवपुरी; अंति: भवदुख भंजणहार रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमीसर गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. कल्याणसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बोले जी डुगरी; अंति: सुंदर गुण गाया जी, गाथा-५. ९. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रीसाणा हो नेम; अंति: हो मुगति पहोति, गाथा-९. १०. पे. नाम. शांतिजिन फाग, पृ. १आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मी, पुहिं., पद्य, आदि: फाग खेलत हे फूल वाग; अंति: मनि भावे शांति भगवंत, गाथा-७. ११. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुरदासजी, पुहिं., पद्य, आदि: बालिम बिनु फागु; अंति: प्यारी कुं बोलाय, गाथा-४. १२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजयको नेम; अंति: प्रभु चरणे चित लाओने, गाथा-७. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ फाग, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: आवो सखी तुम सब मीली; अंति: कपूर कहे एक चित्त हो, गाथा-५. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग-केरडा, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: सुंदर रूप सोहामणो हो; अंति: प्रेमचंद० अधिक आणंद, गाथा-५. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: करेलना थड दे रे थड; अंति: कहो कीहां की रीत, गाथा-५. १६. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण..
मु. रूपविजय, पुहि., पद्य, आदि: तुं मेरा साहिब में; अंति: नामे प्रभु सदा आणंदा, गाथा-३. ४००२३. (+) वालचंदबतीसी व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, आश्विन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित.,
जैदे., (२४४१०.५, २५४९०). १.पे. नाम. वालचंदबतीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेसर कुं; अंति: भणै मुनि बालचंद,
गाथा-३३. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
कवित संग्रह*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-५. ४००२४. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि व देवसी पडिकमणारी विध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४११, ११४३५).
प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलोइय; अंति: पछै तीन नवकार
गुणीजै, (वि. देवसी व पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि.) ४००२५. पोसोलेवानी विधव श्रावक पोसहमाहे सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र का दाहिना
हिस्सा कटा होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., दे., (२४४१२, ११४३६). १.पे. नाम. पोसो लेवानी विध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषध विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रहली नवकार तीन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
प्रारंभिक विधिमात्र है.) २. पे. नाम. श्रावक पोसहमाहे सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं,
गाथा-५. ४००२७. (#) चोत्रीस अतीसयं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५,
१३४३९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरति; अंति: सेव मांगु भवभवे, गाथा-११. ४००२९. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४९.५, १२४५३). शांतिजिन स्तवन-विक्रमपुरमंडन, उपा. रुघराय पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिकरण नमीयै सांती; अंति: श्रीपाठक
रुघरायरे, गाथा-१५. ४००३०. (#) नवकार, पंचपरमेष्टि स्तुति व संतिकर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, ११४३३). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम होइ मंगलं, पद-९. २. पे. नाम. ५ परमेष्ठिनमस्कार स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. शंतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं,
गाथा-१३. ४००३२. (#) सामायक दोष बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्र
नष्ट होने लगे हैं, ., (२३४१०.५, १२४३३). १.पे. नाम. सामायक दोष, पृ. १अ, संपूर्ण.
सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दश मनरा बोल वेला; अंति: संपविते दोष. २. पे. नाम. अपराध आलोण, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
श्रावक आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे पुरिमड; अंति: गाल घणी गावे तो उ० १. ३. पे. नाम. साधुने धारवा जोग्य बोल, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. २१ बोल कुमतिना पुछे ते उत्तर सहित, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य.
प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: समकित तो शरदहणा रुप; अंति: पंथ माहे तुमे नोकार. ५. पे. नाम. आचारदिनकर ग्रंथोक्त गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१, (वि. गाथा गुणन विधि भी संलग्न है.) ४००३७. (#) महावीरजिन पारणा स्तवन, बीजतिथि चैत्यवंदन संग्रह व छिंकनी क्रिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल
पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, ११४२५). १.पे. नाम. माहावीरजिंन पारणा स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. पं. विद्याविजय; पठ. श्रावि. माणेकबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहनि नमे मुंनी माल,
गाथा-३१. २. पे. नाम. बीजनुं चैतवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. इस प्रति में लिखे गये द्वितीयातिथि के चैत्यवंदन संग्रह में यह पहला
है. कृति पूर्ण होने पर कृति पूर्णता सूचक शब्दसंकेत नहीं लिखा है एवं क्रमांक १ लिखा है. बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुव्रीध धर्म आराधवा; अंति: जो कीजे तप मंडाण,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. दुतीयानू चैतवंदनां, पृ. ३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाहलणपुर, प्रले. पं. विद्याविजय; पठ. श्रावि. माणेकबाई;
अन्य. मु. रूप; मु. परसोत्तमविजय (गुरु मु. नित्यविजय); गुपि. मु. नित्यविजय (गुरु मु. सुखविजय); मु. सुखविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, पे.वि. इस कृति में द्वितीया तिथि के चैत्यवंदन संग्रह में यह दूसरा है. पूर्व कृति के पूर्णता सूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ करके अंत में क्रमांक २ लिखा है. श्रीपल्लवीया पार्श्वनाथ प्रसादात्. रुपसत्केन. बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुविध बंधननिं टालीइं; अति: होवे कोड कल्याण,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४. पे. नाम. छिंकनी क्रीया, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीपल्लवीया पार्श्वनाथ प्रसादात्.
क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पाखी पडिकमणामांहि; अंति: क्रिया पुरी करीइं. ४००३८. (+) चंदनबाळासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १०४२२).
चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबा नगरी पधारीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-३७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४००३९. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन ३५० गाथा-ढाल ३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४११.५, ११४२९).
सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ४००४१. (4) नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. जयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अंत में इस प्रकार लिखा गया है 'पत्र १ जयसोमजीनु छै', अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, ९४२४).
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिशुभं, श्लोक-११. ४००४२. (+#) देवगुप्तसूरि गुरु गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. वर्तमान गुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. देवगुप्तसूरि गीत, मु. रतिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: सरस वचन द्यो मुझ; अंति: लाय गावो भल भावसौ,
गाथा-७. २. पे. नाम. चैत्यप्रवाड वाडरो गुरु गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
देवगुप्तसूरि गीत, मु. रायचंद, रा., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: रायचंद० वधो सुखसाल, गाथा-९. ३. पे. नाम. देवगुप्तसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सरसति प्रणमु हो; अंति: दिन दूधे वूठा मेह, गाथा-६. ४००५१. संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७८७, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. उदयापुर, प्रले. पं. सुंदरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला भाग खंडित होने से पठनार्थ विद्वान का नाम पढा नहीं जा रहा है., जैदे., (२३४१०, १२४३६).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७४. ४००५७. (+#) पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १४४३३).
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४००६०. (+#) नवकार सज्झाय व २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक की जगह
से पत्र कटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है अतः प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्र क्रमांक-२ दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११,१५४४५-४८). १.पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणइ धरीइ धर्मविचार, गाथा-१०,
(पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२. पे नाम. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगभिंत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पे. वि, यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमी; अंति: तास सीस प्रपभणे आणंद, गाथा-२९. ४००६१. (+०) साश्वताअसास्वताजिन नमस्कार, सास्वताजिन स्तुति व स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२४४१२, १५४३२)
१. पे. नाम. साचताअसास्वतजिन नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोडी सातने लाख; अंति: आत्मतत्वे रमीजेंई,
गाथा - १३.
२. पे. नाम. सास्वतजीन स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण.
शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रिषभ चंद्रानन वंदन, अंति: पद्मविज न जी, गाथा- ४.
३. पे. नाम. सास्वताजीन स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण
शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन अति अधीक आंणी रंग ए. डाल-७, गाथा - ३१.
४००६२. (#) धन्नामुनि सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक की जगह से पत्र टूटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४११.५, १४४३६)
धन्ना अणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा, अंतिः सिद्धि लाधी रे, गाथा-१६, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम उपलब्ध नहीं है.)
४००६३. अष्टमीजी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. दे. (१९.५x१२, १२x२१).
"
अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि आठम कहै आठम दीने अंतिः पुन्यनी रेहरे, गाथा- ९. ४००६५. सिद्धस्वरुप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५X११.५, ११४३०).
शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि गोतमस्वामी पुछा करे, अंतिः पामे सुख अथाग हो, गाथा- १६.
४००६६ (+) मल्लिनाथ जिन ५ कल्यांणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२१४११.५, ११४२३). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, बि. १७५६, आदि: मिगसर सुदि हो इग्यार, अंतिः धरममार्ग मन मे धरी,
ढाल - ५.
४००६७ (५०) सीखामणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५X१०, २३×१४-१८)
औपदेशिक सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन समझो रे मन अंतिः राखो निज सेवक संभारी,
गाथा - १३.
४००६९. () पार्श्वनाथ धरणेंद्रपद्मावती अट्टेमट्टे स्रग्धरा छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे.,
(२१.५X११.५, ११x२६).
पद्मावतीदेवी स्तोत्र - सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ॐ ॐकार बीजं; अंति: अमरापदमाश्रितम्, श्लोक-२६.
४००७० (+) पद्मनाभजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पाद पूर्णता सूचक लकिरे., संशोधित., दे., ( २१.५X१०.५, ९४२४).
पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीपद्मनाभ जिनराया, अंति: पद्मवि० अक्ष लेवा, गाथा-८.
४००७१ (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-२ व शंखेश्वरजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रती किनारी खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२२x११.५, १२X४१). १. पे नाम दशवेकालिकसूत्र अध्ययन १-२ पृ. ९अ १आ, संपूर्ण.
,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-१ तक है., वि. प्रति में अध्ययन-३ गाथा-१ तक का पाठ है किंतु प्रतिलेखकने अंत में
द्वितीय अध्ययन पूर्णतासूचक वाक्यांश लिखा है.) २. पे. नाम. शंखेश्वरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४००७२. (4) पाक्षिकपर्व स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२४११, १०४३४).
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-अवचूरि, मु. विनयकुशल, सं., गद्य, आदि: (१)नत्वा सरस्वती देवीं, (२)सः श्रीवर्धमानो; अंति: रूपं
यस्येति कामरूपी. ४००७५. जिनकुशलसूरि छंद, अष्टक व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२१.५४११.५,
१०४२४). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरीजीरो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरि सुख; अंति: भावराज इण परी भणै,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम. जिनकुशलसूरिजीरो अष्टक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः सुखं सर्वा संपद्वसति; अंति: चिरं स्थायिनी.
श्लोक-९. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि मंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में शुभाशुभकथन विषयक आम्नाय भी लिखा है.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४००७८. (+#) चिंतामणिपार्श्वनाथ मंत्राकर स्तोत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. खंडित भाग
पर कागज चिपकाए होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, १६४४३). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ मंत्राकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं
ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी
गई है. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ तक है., वि. प्रति के खंडित भाग पर
कागज चिपकाए होने से कृति की सही-सही पूर्णता अनुपलब्ध है.) ४००८०.(+#) द्वादशभावनादि विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
प्र.वि. पत्रांक-१अपर उर्दू जैसी लिपि में कुछ लिखा हुआ है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४१०.५, २०-२३४४१-४८).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. बार भावना विचार अपूर्ण तक है.) ४००८१.) प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन व आंबिल प्रत्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक
अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४११.५, १४४३२). १. पे. नाम. आबीबनु पचखान, पृ. १अ, संपूर्ण..
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र आयंबिल का पच्चक्खाण है.) २. पे. नाम. प्रभुदर्शनपूजनफल च्यैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह प्रति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमु श्रीगरुराज आज; अंति: प्रभु
सेवानी कोड, गाथा-१४. ४००८२. (+#) फलोधीपार्श्वनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीपार्श्वनाथजी महाराज., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०.५४११.५, ३५४९). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक सामी; अंति: उत्तम जिन गुण गावै,
गाथा-८. ४००८४. (+) सिद्धचक्रयंत्रोद्वार गाथा सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. पं. नगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १८-२०४४५). सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायंतं
उद्दाह; अंति: सिझंति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा;
__ अंति: रहस्यभूतमित्यर्थः. ४००८५. (#) वर्धमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक की जगह खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११, १४४३९). महावीरजिन स्तोत्र-संसारदावापदगर्भित, मु. ज्ञानसागर, सं., पद्य, आदि: कल्याणवल्लीवनवारिवाह; अंति: श्रीजिनो
वर्धमानः, श्लोक-१७, (वि. प्रतिलेखकने अंतिम गाथांक नहीं लिखा है.) ४००८८. (+#) युगमंधरजिन आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१.५४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कायारै पामी अति; अंति: पंडित जिनविजै गायो, गाथा-७. २. पे. नाम. शाश्वतजिन साश्वतप्रतिमा स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभानन वधमांन; अंति: सदा मुझ परणांमु
ए, ढाल-५, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति सामी थंभणौ; अंति: पसायै तत्व परीच्छीयै, गाथा-५. ४. पे. नाम. अर्बुदाचलतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, ग. दर्गदास, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: म्हारो मनडोऊमाह्यो; अंति: दास गणि सुभ मनइ,
गाथा-११. ५. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारी अरज सुणोनै; अंति: सागर० जिनजी दीनदयाल, गाथा-६. ६.पे. नाम. जिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वारीयां वारीयां मैं; अंति: दरसण दुख टारीयां रे, गाथा-५. ४००९०. (+#) संवेगीरो चोढालियो, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. हरदुर्ग, प्रले. पं. परमसुंदर
(कवलागच्छ); अन्य. पं. नराणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति पं. श्रीनराणजी लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ११४४५). संवेगी चौढालियो, उपा. जस वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सुद्ध संवेगी किरिया; अंति: मति नवि काची रे, ढाल-४,
गाथा-७३. ४००९४. (+#) गौतमस्वामीनोरास, गाथा संग्रह व राशिघात श्लोक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १६x४०). १.पे. नाम. गोतमस्वामीनो रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: जीवना काज सरेस्यै, गाथा - ६८.
२. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. जैनगाथा संग्रह, प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदिः (-): अंति: (-), गाथा-३.
,
३. पे. नाम. राशिघात श्लोक सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि (-) अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-३ तक लिखा
"
है.)
יי
ज्योतिष - टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-३ प्रारंभ तक टवार्थ लिखा है.)
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४०१०२. (+#) देवसीप्रतिक्रमण विधि व आध्यात्मिक आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १५, प्र.वि. पत्र १x६ है. पत्रांक अंकित नहीं है. प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा या एकाधिक समय में लिखी गई प्रतीत होती है. व्यक्तियों के अंगूठों की तीन छाप लगी है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५X११, १७१४). १. पे. नाम. देवसीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ संपूर्ण
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इछामी केवुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छड्डे आवश्यक की मुहपत्ति पडिलेहण विधि पर्यन्त लिखा है.)
२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुष्टिं पद्य वि. १८वी, आदि: सोहागण जागी अनुभव, अंतिः रे अकथ कथानीअ कोअ, गाथा-४.
"
३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मुगती गये पावापुर; अंति: आनंदघन परनामी रे, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक २ की जगह १ लिखा है व प्रथम व अंतिम गाथाक्रमांक नहीं लिखा है.)
४. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. नवलदास, पुहिं., पद्य, आदि: सीखरगीर वांदन जाना; अंति: दास कहे० चित देना रे, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा को क्रमांक २ लिखा है.)
५. पे नाम, साधारणजिन पद, प्र. १अ संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, आदिः केसे मीले मोअ केसे; अंतिः कहे० भव फेरो टले, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक २ नहीं लिखा है, व अंतिम गाथा को गाथा क्रमांक २ लिखा है.)
६. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ -१ आ. संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मे पुजुं पारसनाथ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.)
"
७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
"
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात भयो प्रात भयो; अंतिः समय० शिवसुख कुंण लहे, गाथा-५.
८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ. संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, वि. १८वी आदि अवधुक्यां सुवे तन, अंतिः नांथ नीरंजन पावें, गाथा ५.
९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
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मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदिः आस्या ओरन की कहां, अंति: घन० देखत लोक तमासा, गाथा-५. १०. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-षट्दर्शन प्रबोध, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद पुहिं, पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा, अंतिः चरण सरण ताहांरा रे,
गाथा - ९.
११. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सीधगीरीजी को दरसन कर; अंति: भवभय पातीक हर ले, गाथा-४.
१२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
११७ मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मेरों मन मुगतागीरीसु; अंति: पेखत पाप गमेंरी, गाथा-३. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: अजब जोत मेरें जिन की; अंति: पुरो मेरे मन की,
गाथा-३. १४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदराम, पुहि., पद्य, आदि: भाग्य विना नही पावे; अंति: सेवक० रोम रोम उलसावे,
गाथा-५. १५. पे. नाम. सामान्य पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सोतन एवं सामान्य पद.) ४०१०४. (+#) चंद्रप्रभजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये
हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०.५, १४४३५). १.पे. नाम. चंद्रप्रभू स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय,
गाथा-७. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिर जात्र करण; अंति: सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ३. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि*, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदिः (-);
अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने गोडीजीपार्श्वनाथ स्तवन का अंदाजित गाथा-२
जितना बीच का पाठ लिखा है.) ४०१०६. (+) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ६ की सज्झाय व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. पत्र १आ के हासिए पर अंकाक्षर लिखे हुए हैं., संशोधित., जैदे., (१९.५४११, १२४२६). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय-अध्ययन ६, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ६ की सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर धरम इम उपदिशैं;
अंति: वृधीविजय लहो तेहरे, गाथा-७. २. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननो नायक राजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा
४०१०७. (#) शुद्धसम्यक्तनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९४१०, १२४२९).
सम्यक्त्व सज्झाय, मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: सुद्ध सम्यक्तीना भेद; अंति: पाप न लागस्यै इक रती, गाथा-१७. ४०१०८. (+) पर्युषण स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे.,
(१९.५४११, १४४२१). १. पे. नाम. पुरजुसण थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुन्ये; अंति: नीसदिन करो वधाइ जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेद जनपुजा रचावी; अंति: पुर्व देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ४०१०९. () पर्युषणपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, गु.,
(२०.५४१०.५, ९४२०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषणपर्व स्तवन, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कलपसुत्र पूजो उछरंगे; अंति: अमीयवीजय थावो रसीया,
गाथा-८. ४०११२. (#) बाहबलरी सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२०.५४१०.५, १६४३५).
बाहुबली सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल दीक्षा ग्रही; अंति: तस पद वारंवार, गाथा-११. ४०११३. (#) गोडी स्तवन व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों
पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११.५, १४४२९). १. पे. नाम. गोडी स्तंवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: मुख बोलि जिकार, गाथा-५. २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
सवैया संग्रह* पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-३+१. ४०१२०. (+#) प्रीतिपरीक्षाविषये रंगवेली नाटिका व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना
के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२०.५४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. प्रीतिपरीक्षा विषये रंगवेलिनाम्नी रसनाटिका, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७९७, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार,
ले.स्थल. कौरल, अन्य. उपा. उदयरत्न (गुरु ग. शिवरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. रंगवेलि नाटिका-प्रीतिपरीक्षाविषये, उपा. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, वि. १७७०, आदि: बानी जूको बंदि कै रस; अंति:
यह रंगवेलि रस खानि, गाथा-७८. २. पे. नाम. ५ जिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेसरा परम; अंति: भगवंतना तवन भणतां, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ४आ, संपूर्ण.
उपा. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: पास गोडी प्रभू प्रगट; अंति: चितमा आणी लेजो, गाथा-५. ४०१२१. (+) नाडोलाईमंडण श्रीनेमनाथ नीके स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, ९x१८). नेमिजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. सुखलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: बावीसम शासनधणी काई; अंति: काइ
सुखलाल गुण गाय, गाथा-८. ४०१२३. (-#) चतुर्दशी स्तुती, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०४१०, ९४२३).
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४०१२४. (+) मगसीपार्श्वजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२०.५४१०.५, ९x१९). १. पे. नाम. मगसीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. सुखलाल, रा., पद्य, वि. १९१२, आदि: म्हे तो जास्यां हो; अंति: सुखलाल गुण गाय,
गाथा-६. २. पे. नाम. शंभवजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. संभवजिन पद, मु. सुखलाल, पुहि., पद्य, वि. १९१२, आदि: संभवनाथ सहाई मेरे; अंति: सुखलाल गुण गायैरे,
गाथा-४. ३. पे. नाम. कापरडापार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, मु. सुखलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: श्रीकापरडा पारसजी रे; अंति:
सुखलाल गुण गाय, गाथा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
११९ ४०१२५. (#) हीरबीजेआचारज सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, ११४१८).
हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. खीमासेन, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी जी बिनउं; अंति: हीरवीजे सुरीराज, गाथा-९. ४०१२६. (+#) अजमेर लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, १२४२९). संभवपार्श्वजिन स्तवन-अजमेरमंडन, मु. शांतिरत्न, पुहिं., पद्य, वि. १९३०, आदि: शहर अजमेर मे भज भवि; अंति:
रत्नने जिन जल का, गाथा-७. ४०१२७. (+#) स्थानकवासी को किये गये ११ प्रश्न, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखकने ग्यारहवे प्रश्न को छोड़कर प्रत्येक प्रश्न के ऊपर अंकाक्षर लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, ११४२९).
स्थानकवासी को किये गये ११ प्रश्न, पुहि., गद्य, आदि: संपूर्ण सूत्र तुम; अंति: सूत्रो मे से लिखणा. ४०१२८. (#) महावीरजिन होली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४११.५,१४४२५).
महावीरजिन होरी, रा., पद्य, आदि: कुंनणपुर भला नगर; अंति: कालै त्रिभवनेसर को, गाथा-१६. ४०१२९. (+#) सुमतिजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गुटका, (१६४१०, ८x१७-२०). सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीथी बांधी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७
अपूर्ण तक है.) ४०१३१. (+#) नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा या अलग-अलग
समय में लिखी प्रतीत होती है एवं अंतिम गाथांक ही लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, १६४२७). नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो उठो भवीक; अंति: वरदाअक ऐम लाधो वदे,
गाथा-१९. ४०१३२. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. लल्ल ईश्वरभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, १०४३४).
पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: श्रीपाश्व जीनेश्वर; अंति: नार अस्त्री सुखकारी, गाथा-५. ४०१३३. (#) ऋषवदेवजीनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१२, १८x१२).
आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल गुण केरोसाहबो; अंति:
रूपकीरति० लेहसु लाल, गाथा-५. ४०१३८. (+#) छिन्नुजिनवर स्वतन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२०.५४१०.५, ११४१७). ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चौवीसे; अंति: सदा जिनचंदसूर ए,
ढाल-५, गाथा-२३. ४०१३९. (#) खरतरगच्छसामाचारी विध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १५४३६).
साधुसामाचारी-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र मासनै बीजै; अंति: आमनाय लगी जाणवी. ४०१४०. (+#) रोहीणी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५-१८७२, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पादपूर्णता सूचक दंड
अल्पमात्रा में., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, १३४२७). १.पे. नाम. रोहण स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८६५, भाद्रपद कृष्ण, १०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणी ए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या
फली, ढाल-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख कृष्ण, १४, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा
लिखी गई है.
मु. कमलहंस, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसम जिनराजजी; अंति: थेही ज देव हो, गाथा-६. ४०१४१. (+) विजयशेठविजयाशेठाणी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, १८४३८).
विजयशेठविजयाशेठाणी लावणी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति:
रामपुरे गुण गाइ, गाथा-१६. ४०१४२. (+) पर्युषण स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. स्याही चमकीली है., संशोधित., दे.,
(२१४११.५, ९४२३). १. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुण्यनुं पोपण पापर्नु; अंति: दिन दिन अधिक
वडाई जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरे देवी सिद्धाईजी, गाथा-४. ४०१४६. (+#) अष्टमी स्तुती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७४१२.५, १५४१४). अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी
कोड कल्याण जी, गाथा-४. ४०१४७. (+#) महावीरदेवजीनौ चैत्यप्रतिष्ठानै बिंबप्रवेश महोत्सवनौस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. रचना
समीपवर्ती काल में लिखी होने की संभावना है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७४११, १३४२४). ___ महावीरजिन स्तवन-पताशापोल अहमदाबाद चैत्यप्रतिष्ठा व जिनबिंबप्रवेशगर्भित, मु. सरूपचंद, मा.गु., पद्य,
वि. १९२२, आदि: चौवीसमा जिनवर गुण; अंति: सरूपचंद गुण गावै तौ, गाथा-३६. ४०१४८. रावणमंदोदरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७.५४११.५, ७४१९). रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो मनोहरी नारायण; अंति: बोले मुनि माणेक वाणी,
गाथा-५, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक-४ लिखने की जगह गाथांक-३ दो बार लिखा है.) ४०१५३. (#) गोडि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१७४११.५, १३४२७). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: प्रगट थया पारकर; अंति: वनीत्तविजे
गाया हो, गाथा-९. ४०१५५. (4) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४११, ९४१६-२१).
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर बामा; अंति: तूटै कर्म तुरत्त, गाथा-४. ४०१६०. बतीस असजाइ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. पत्रांक २अपर अंकित किया है., दे., (१३४११.५, १२४२३).
३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकावाइ कहता; अंति: आधी रात्ते १२, संपूर्ण. ४०१६५. गुरु गीतं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. किशोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१२.५४९, १४४२०).
जिनचंद्रसूरि गीत, मु. उदयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मोरी सझी सिणगार; अंति: भणै० उदैचंद मुनिवरू, गाथा-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१२१ ४०१६६. सात नरगनी थीती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१४.५४११.५, ९x१६).
७ नरकस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहली नरगे जगन; अंति: २२ सागर उ० सागर ३३. ४०१६८. (#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-११(१ से ३,७ से १४)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
प्र.वि. मध्यवापी के आजुबाजु में अक्षरमय दो वापी प्रथम पत्र पर है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४९.५, ११४२८-३०).
देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४०१६९. (-) पंचषष्टियंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (१८.५४११.५, १९४२०). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्,
श्लोक-८, (वि. पंचषष्टि यंत्र भी आलेखित है.) ४०१८३. (+) हेतुपदेस लावणी व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित., अ., (१६४१०, १७७१९). १.पे. नाम. हेतुपदेस लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नही हे जग में पल; अंति: वीनती हे अखेंपत की, गाथा-८. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पापाधर्म यथा तप; अंति: तीणे दोनु ही पाया, गाथा-६. ४०१८४. (+-) सुमतिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०, १४४२९). १. पे. नाम. आत्मशीख्योपरि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण.
___ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके वे चेले किसके; अंति: विराजो सूख भरपूर, गाथा-७. २. पे. नाम. सीतासती सीझाइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम धराउ; अंति: नित्य हौयो परिणाम, गाथा-७. ३. पे. नाम. अधात्मा सीझाअ, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: मेरो चिदानंद अविनासी; अंति: ब्रह्म अभ्यासी हो,
गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक स्वाझाअ, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारू छ मारा; अंति: शांतिवि० गमन
निवारि, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक सीझाअ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुख सरज्या पामिइ; अंति: धरम सदा सूखकार
रे, गाथा-९. ६. पे. नाम. सुमीति गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभसुं बांधी; अंति: मुने वाहलो जिनवर एह,
गाथा-७. ७. पे. नाम. सीतासती सीझाइ, पृ. ३अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नित
वादीजे थाइरे, गाथा-८. ८. पे. नाम. औपदेशिक सीझाइ-निंदात्याग, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: म करि हो जीव परताप; अंति: भावसु ए हितशिख माने,
गाथा-९.
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१२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सीज्झाइ, पृ. ४अ, संपूर्ण.
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. वीरचना, मा.गु., पद्य, आदि: राजगीही नगरीनो वासी; अंति: बोले० साधुने तोले, गाथा-९. १०. पे. नाम. राजूल सीज्झाइ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगरु पाइ गाइ; अंति: अवीचल पद राजूल लहे,
गाथा-११. ११. पे. नाम. नमिराजर्षि सीज्झाइ, पृ. ४आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथला नगरीनो; अंति: पामीजअ भवपार,
गाथा-७. ४०१८५. (#) सातव्यसन सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४११, १५४२९).
७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परऊपगारी साधु सगुरू; अंति: सिस रंगे जेरोगे कहै, गाथा-९. ४०१८८. (+#) ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय व नेमराजुल तिथी १५, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६४९.५, २९४१७-२०). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. नेमराजूलनी तीथी १५, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत-१५ तिथिगर्भित, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभदेव प्रणमीजे; अंति: तीहां पामी अमर
उलास, गाथा-१६. ४०१९१. (+) उपसम सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गंगदास ऋषि; पठ. मु. वरजांग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी विद्वानने नवकारवाली गणना विषयक कुछ अस्पष्टाक्षर लिखे हैं., संशोधित., जैदे., (१८.५४११, १३४२९). उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भयभंजण रंजण जगदेव; अंति: कवियण नही अवतरइ,
गाथा-१२. ४०१९३. (-#) जंबूकुमर सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खडित है, जैदे., (१९४११, २२४१५).
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सुजौ, मा.गु., पद्य, आदि: Aणक नर वैराजीयौ; अंति: भणै मुगतत फल होइ, गाथा-१५. ४०१९५. (#) नाकोडापाश्रीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१३.५४१०.५, १४४१३). पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणइ घरि बैठा लील; अंति:
समयसुंदर कहे गण जोडो, गाथा-८. ४०१९६. (+) वज्रधरजिन स्तवन व दूहो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे.,
(२०४१५, २३४१७). १.पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: जुत भक्ति मुज आपजो, गाथा-७. २. पे. नाम. दूहो, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४०१९९. प्रणिपातसूत्र सह टबार्थ व महावीरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., जैदे., (१६४११, १३४४१). १. पे. नाम. महावीरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन कृष्ण, ७, मंगलवार, ले.स्थल. इंदोर, प्रले. वा. रूपचंद
गणि, प्र.ले.पु. सामान्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
महावीरजिन स्तवन, उपा. कल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: वीरजिणंद जयो सो; अंति: प्रगट कल्याण भयो, गाथा-५. २.पे. नाम. प्रणिपातसूत्र सह अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
प्रणिपातसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: सीहिआए मत्थएण वंदामि.
प्रणिपातसूत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: क्षमादिगुणोपेत यति; अंति: नमस्कार करुं. ४०२००. (+#) शनिसर कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४८.५, ११४२३). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामण मति दीओ; अंति: ललितसागर
इम कहे, गाथा-४७. ४०२०२. (+#) पट्टावली गाथा-अहिपुरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४११, १३४३१).
पट्टावली अहिपुरगच्छीय, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: गुणपति सरस्वती; अंति: वाणी सुण्यां पटावली, गाथा-२९. ४०२०४. (#) सिद्धचक्र व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (१३.५४११, १५४२१). १. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चंद, रा., पद्य, आदि: जती मोने जेतर लिख दे; अंति: चंद सुणो० तुज पदे, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदमखान, पुहिं., पद्य, आदि: बावोरीषभ बहठै अलवसर; अंति: तार लीज्यौ अपनो करकै, गाथा-३. ४०२०५. (#) दादै जिनकुशलसूरिजीरो छंद व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४११, २२४१२). १.पे. नाम. दादै जिनकुशलसूरिजीरो छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरसती; अंति: विजै सिंघ लीला वरी,
गाथा-३१. २.पे. नाम. साधारणजिन द्रूपद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सबल भरोसो तेरो जिनवर; अंति: संत सेवग राखो नेरो,
गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन द्रूपद, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अब जिनराज मिलीया हा; अंति: सकल पाप टलि टलीयां,
गाथा-६. ४. पे. नाम. साधुगुण द्रूपद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
साधुगुण पद, मु. रामचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: धनि मुनिराज ऐसे है; अंति: चंद्र० आतमलीन विशेषै, गाथा-४. ५. पे. नाम. स्वयंप्रभु गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण.
स्वयंप्रभजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि स्वयंप्रभु; अंति: केहनइ छेह न दिंत, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्व गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर हे सहीयर आवौ; अंति: पासनौ सुभावै ध्रमसीह, गाथा-७. ४०२०७. (-#) चोविसजिन आदि चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा पेटांक ७
पर्यंत कृति प्रारंभ और अंत सूचक संकेत न लिखकर प्रत्येक कृति के अंत में १, २, ३ इत्यादि अंक क्रमशः लिखे हैं., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४११, १०४२०). १. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभुने वासु; अंति: ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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२. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन- देहमानगर्भित, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसवा धनुमान जाण, अंतिः तणो नय प्रणमे निसवीस, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन - लांछनगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन - लंछनगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ गज हय कपिअ; अंति: ज्ञानविम० शिवसुख धाम, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ एकासणुं कर; अंतिः पारणुं अवर जिनेस, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
-
५. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन- दीक्षास्थानादिगर्भित, पृ. २अ संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनीता नवरी लिह, अंतिः धया ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन सहदीक्षितसंख्यागर्भित, प्र. २अ २आ, संपूर्ण
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार सहससु ऋषभदेव, अंति: कहे होयो जिन सुपसाय, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
७. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन - भवसंख्यागर्भित, पृ. २आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम जिणंद तणा भला, अंति: नय प्रणमे धरी नेह गाथा - ३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
८. पे. नाम. चेत्यजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन - भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरिसय ठाणे कह्या; अंति: क वंदो जिन चोवीस, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
९. पे नाम. पंचपरमेष्ठी च्येत्यवंदन, पृ. ३अ संपूर्ण.
साधारणजिन चैत्यवंदन-५ परमेष्ठिगुणगभिंत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. पद्य वि. १८५ आदि: बार गुण अरिहंत देव, अंति: नय प्रणमै जग सार, गाथा - ३.
४०२०८. (४) पार्श्वनाथ स्तोत्र व जिनकुशलसूरि गीत अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (१२.५४७.५ ९५१७).
"3
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. करणसी, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं धरणोरगेंद्र, अंतिः नमामः कुशलं लभामः श्लोक-५२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, अपूर्ण. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, पद्म, आदि आयड आयउरी समस्ता, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३ प्रारंभिक दो शब्द तक
"
(४.)
४०२१०. (+#) जयतिहुयण नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५X११, १२X३५).
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जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभव० विन्नवइ अणिदिय, गाथा- ३०.
४०२१२. (+#) सीतलजीन स्तवन व नेमिजी गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (१२४९, १७४१६).
१. पे. नाम. सीतलजीन स्वन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु, पद्य, आदिः सीतलजिन सहेज सुरंगा अंतिः बुधकुसल गुण गाया रे,
गाथा - ६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२. पे. नाम. नेमजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. न्यायसागर, रा., पद्य, आदि: बाइ मानै नेमजी वर; अंति: इम न्यायसागर बलीहारी, गाथा-५. ४०२१३. (-#) नेमिजीरोतावन, संपूर्ण, वि. १९२२, पौष शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नणावाल, प्रले. किशोरचंद
मथन; राज्यकालरा. मंगलसींघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल में इस प्रकार लिखा है 'नणावाल पोसाल भीणाये लधुचोक', अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४१०.५, १२४२२).
नेमिजिन स्तवन, सुख, रा., पद्य, आदि: सहो मोरा नेमिसर बनडा; अंति: अरज मारि मान लीजो हे, गाथा-७. ४०२१४. (#) ऋषिभाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१२४९, १५४२१-२४).
आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: देव मो दीदार दीज्यै; अंति: जुगि जुग एक तु करतार, गाथा-८. ४०२१५. (#) नेमिनाथ गीत व पार्श्वजिन लघुस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ.पं. देवकरण,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१२४८.५, १४४१७-२०). १. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन गीत, मु. कमलरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत सोहतो; अंति: करी कमलरतन मुणिंद, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: भवि भवि देज्यो सेव, गाथा-५. (वि. प्रत का
ऊपरि हिस्सा कटा होने से कृति का प्रारंभिक अंश अनुपलब्ध है.) ४०२१८. (+#) गोतमाष्टक, करेमिभंते सूत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अंत में किसीने प्रवास खर्च
की यादी लिखी है. पत्रांक की जगह में अलग-अलग व्यक्तिने १ व २ इस प्रकार दो अंक लिखे हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०, १३४२९). १.पे. नाम. गोतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभंते सुतरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. जैनेतर श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
अजैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४०२२१. (+) पार्श्वजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (१९.५४१०, ८x२३-२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: प्रगट थया भले पासजी; अंति: जातरा
भवोभव तुम आधार, गाथा-८. ४०२२२. (-#) पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक की जगह से किनारी
कटी होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६.५४७, ८x२०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने कृति पूर्णता सूचक संकेत नहीं लिखा है.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुपद पंकज पासन; अंति: प्रीत प्रतीत रे, गाथा-७. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभसूचक शब्द-संकेत लिखे बिना ही कृति प्रारंभ की है.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जनेस्वर परमेस्वर; अंति: आनंदघन माहाराज, गाथा-७. ४०२२३. (#) चंद्रप्रभु गीत व काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. १आ पर कुछ अस्पष्टाक्षर अंकित हैं., मूल
पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९४११.५, १४४१८). १.पे. नाम. चंद्रप्रभूगीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन गीत, वा. आनंदवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभूचंदवदन; अंति: प्रभु की खूब वणाई, गाथा-९. २. पे. नाम. चंद्रप्रभ काव्य, पृ. १आ, संपूर्ण..
चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अत्यद्भुतं सज्जन; अंति: नौमि जिनं सनातनं, श्लोक-१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०२२८. (+) मोनइग्यारस स्त्वन, चोपड रचना, सिज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४,
प्र.वि. मात्र प्रथम पत्र में पत्रांक लिखा है. पत्रांक २अकी ऊपरी किनारी पर १ से ३४ तक संख्या लिखी गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१६.५४१०.५, १२४२८). १. पे. नाम. मोनइग्यारस स्त्वन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण वैठा भगवंत; अंति: कहै
कह्यो द्याहडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. चोपड रचना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे माका प्राणीया; अंति: रतनसागर कहै सूर रे,
गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सिज्झाय-वैराग्य, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुण वहिनि प्रिउडो; अंति: नारि विण सोभागी रे,
गाथा-७. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ४०२२९. (#) इरियावही हरीआली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले.पं. मोहनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१२, १४४१७).
इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारि में दीठी एक; अति: करज्यो घणी सेवरे, गाथा-७. ४०२३२. (+-) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (१५४११, १५४२१).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४०२४१. (+) आदीजिन स्तवन व औपदेशिक सवेइयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(१७.५४१०.५, ११४१३). १. पे. नाम. आदीजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जणेश्वर विनती; अंति: वीर नमि करजोडीरे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सवेइयो, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: जोगीआऐ धरै ध्यान; अंति: गंग० जगत जेर कीया है, गाथा-१. ४०२५०. (-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९४१४.५, १७४२१).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. आत्मारामजी, पुहिं., पद्य, आदि: अव तो पार भये हम; अंति: वधु अव वेग वरी रे, गाथा-११. ४०२६०. (#) नेमिराजेमती बारहमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक की किनारी पर कागज चिपका होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४११, १५४१९-२१). नेमराजिमती बारमासो, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावन मन भावन भव्यो; अंति: मिलीया मुक्ति मझार,
गाथा-१३. ४०२६७. (-2) पंचपरमेष्टी स्त्रोत्र व परमेष्टी रक्षा, संपूर्ण, वि. १८८८, सिधिईष्टीसांवनीजोतसमत, ?, वैशाख शुक्ल, ४ अधिकतिथि,
मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. तिलोकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५४११, १२४१९). १.पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्त्रोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अल्तस्त्रिजगद; अंति: प्रथमं भवति मंगलं, श्लोक-७. २. पे. नाम. परमेष्टी रक्षा, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४०२६९. (+#) औपदेशिक सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८x११, १२४३०). १.पे. नाम. हुकमीचंदादिगुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. हुकमीचंद आदि गुरु गीत, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: अणी भरतखंड मे तोरन; अंति: चोमास मोक्ष की पाजे,
गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: अब सादसादवी सदा व्रत; अंति: यो उत्तम कूल आचारे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: दसकिंदर राजा कणीरो; अंति: माने लगो चीतह वीस रे. गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: (१)श्रीवरधमान जिनराज, (२)जय जीनंद जय जीनंद हो; अंति: लाल प्रतीपाल प्रभु,
गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: इस जक्त की जंजाल जाल; अंति: खाल मोक्ष का ये ही, गाथा-४. ४०२७१. (#) मुनिशिक्षा स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित न
होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०.५, १२४२३). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोहन कहै सुख पाई, गाथा-६, (पू.वि. गाथा- ४ प्रारंभ के शब्द तक नहीं है.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर अरज सुणी; अंति: उदय० कारिज सीझैरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमा; अंति: सुख चित्त पूर रे,
गाथा-२०. ४०२७४. (+) साधुमरण करणी व विजयहीरसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित., दे., (१६.५४१०.५, १४४२८). १.पे. नाम. साधुमरण करणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्नानपूर्व वेस नवो; अंति: सुधी सर्वे साधु करे. २. पे. नाम. विजयहीरसूरि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: करिये भक्ति गुरुराज; अंति: मंगलीक भक्ति मुणिंद, गाथा-२१. ४०२७५. (+-#) गोडीजी रो चंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाडीव, प्रले. मु. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५४११, १५४२०).
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहि., पद्य, आदि: वाणारसी राया पास; अंति: दानवीजे तुमंदा हे, गाथा-५. ४०२७६. (+-#) मंदीरस्वामी वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०.५, ११४२७).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो सुणो सरसति; अंति: पूर्व पुन्ये पाया रे, ढाल-७. ४०२७९. (-2) आदीनाथजी तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,
ले.स्थल. पेसुआ, प्रले. मु. सौभाग्यविजय (आनंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र २४४ हैं. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३०४२०, १९-२७४१५-२२). १. पे. नाम. आदीनाथजीरो तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलघडी आदीनाथनी रे; अंति: इम रामवीजेय गुण गाय, गाथा-५. २. पे. नाम. जुबु सझाय - अंतिम ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: (-); अंति: धरिय उत्साह रे, प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. धनाजी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीयालामाहे सीह गणी; अंति: सिवसुख पामे न कोयरे, गाथा-२३. ४०२८०. (-) पंचमी सतुती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (१७४१२, १७४२१).
नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरावण सूद दन पंचमीइ; अंति: सफल करो
अवतार तो, गाथा-४. ४०२८१. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक-१आ पर यंत्र आलेखित है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१३४९, १२४३०).
पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: तुं त्रिभुवनरो नाहलो; अंति: लाल सुमतिहंस करजोडि, गाथा-७. ४०२८२. (+#) सरस्वतीदेवी छंद व ऋषभजिन थूई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (१६४११.५, १३४२३-२७). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सशिकर नकर समुंजल; अंति: सदाइ पुजो सरस्वति, ढाल-३. २. पे. नाम. ऋषभजिन थूई, पृ. २आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-श@जयतीर्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला जिन पुजो; अंति: बोलै दिनदिन दोलत थाय,
गाथा-४.
४०२८३. सुपात्रदान पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१८४११.५, ९४२५).
सुपात्रदान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दान सुपात्रे दीजै हो; अति: लक्ष्मी गुण गीता हो, गाथा-६. ४०२८४. (-#) चौविसिजिन चैत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४९.५, १२४२०). २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रषभ लंछन रषभदेव अजित; अंति: लष्मिरत्न
कहत, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४०२८५. (#) गौतमस्वामी सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. फतेविजय गणि; पठ. पं. दीप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०, १५४१३).
गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ आपो पे विर; अंति: गये विर के तिरोबे, गाथा-६. ४०२८६. (+#) नेमिजिन आदि पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २२, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१२.५४६.५, १०४२२). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
ग. रत्नविमल, पुहि., पद्य, आदि: नेम जिणंदजी सैं आखडल; अंति: रत्नविमल० पाय जई रे, गाथा-३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: आज प्रभुतारै चरण; अंति: मेरे तुम विन कोई रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. ऋषभदास, पुहिं., पद्य, आदि: नवरीया मोरी आटक रही; अंति: इतनी अरज उर धार, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आनंदहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सवी सखी बन ठन ठाहे; अंति: आनंदहरख अपारै री, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: वामा सुतजीसुमन; अंति: गंगाराम सदा गुण गावै, गाथा-५. ६. पे. नाम. जिनदत्तकुशलसूरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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जिनदत्तसूरिजिनकुशलसूरि पद- वडलीमंडन, मु. महिमराज, पुहिं., पद्य, आदि दीपे वडली मे गुरु को अंति: कुठ सुधारस मेहरो, गाथा-३.
७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आणंद, पुहिं., पद्य, आदि: रात गई अब प्रात होन; अंति: ए सुधो सिव माग रे, गाथा- ३.
८. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि: चालो देखो री माधुवन, अंति: फरसु वाके मन वच पाव, गाथा- ३.
९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कुमति तो हिवे चूरी; अंति: ताहि करु परिणाम, गाथा-२.
"
१०. पे नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण
चंद्रप्रभजिन स्तवन- बालूचरमंडन, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज जुहारो क्या; अंति: भवसायर पार उतारौ, गाथा-५. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: कहा भरोसा तन का औधू; अंति: नांही जनम मरण भवपासा, गाथा-४.
१२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: एही अजब तमासा औधू; अंति: ग्यानसार पद पावै, गाथा ५.
१३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: और खेल भव खल वाव रे, अंति: अजर अमर पद राय रे, गाथा- ६.
१४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभ की मेरे मन भक्ति; अंति: प्र उलसी री, गाथा - ३.
१५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदिः उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: चंद० सुखसंपदा वधाईये, गाथा-५.
१६. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण
मु. नयनसुख, पुहिं, पद्म, आदि प्रभु सिमेटो व्यथा अंतिः नैनसुख सरन तुमारी, गाथा-४, १७. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
जादुराध, पुहि, पद्य, आदि: बंदु माहाराज सदा चरण, अंतिः वादुराव चरनन के चैरे, गाथा-४. १८. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाकै गढ फोज चढी है, अंति: न ध्याउं दूजुं और, गाथा-६.
१९. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुण भयौ रे उदासी, अंति: जाय करवत लेउ कासी रे, गाथा-५.
२०. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: तुमरा रे दरसण पाईलो; अंति: रतन० वेर वलि जाईलो, गाथा-२.
२१. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. १आ. संपूर्ण.
मु. गुलाब, पुहिं., पद्य, आदि प्रभु वंदन सखी मे अंतिः तरवा को दाव मिली रे, गाथा ५.
२२. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हीरधर्म, पु,ि पद्य वि. १८५५ आदिः श्रीचंद्राप्रभु जिन, अंतिः धरम० चरण इक तारी वे, गाथा-८, (वि. अंतिम
"
गाथा का अंतिम अक्षर कागज चिपका होने से दब गया प्रतीत होता है.)
४०२८७. (#) चोविसजिन व नवपद आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१५.५X१०, १६x२८-३०).
१. पे. नाम. २४ जिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति के अंत में पूर्णता सूचक शब्दसंकेत नहीं लिखा है. पुहिं., पद्य, आदि रेषभ अजत संभव, अंति: महाराज की आरती कीजै, गाथा-६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नवपद आरती, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही कृति प्रारंभ की गई है.
मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: भविजिन मंगल आरती करी; अंति: क्षमाकल्लाण ते पावै, गाथा-५. ४०२९३. (#) उपदेस ढाल, संपूर्ण, वि. १८००, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. ढोर्या, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१०.५, ११४२०).
औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हिवडा तो जीव पचैरे; अंति: मिट जाय दुखनै जंजालो, गाथा-१०. ४०२९४. (+-#) पार्श्वजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१९.५४९.५, १२४३१). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: कित गए पंच किसान; अंति: चले गए सिंचनहारे, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
जगतराय, पुहि., पद्य, आदि: आसरा तुमारा प्रभुजी; अंति: सेवग का कीजीये नवेडा, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: समरन मनवंछत फल खेती; अंति: प्रीत करो प्रभु सेती, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज भाल मे भेटीया; अंति: हरख० मोह सरण
राखंदा, गाथा-१०. ४०२९५. (+#) पार्श्व पदवचैत्यवंदन पाटी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक १अपर किसी कृति का मात्र
प्रारंभिक पाठ लिखा है जो इस प्रकार है 'मेली मेरी भववाधा हरो राधा नागर', संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४९.५, ९x१९). १.पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखकने या बाद में लिखी गई है.
पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन मूरत पास की; अंति: संपत दीजो उलास की, गाथा-३. २. पे. नाम. चैत्यवंदन पाटी, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. जंकिंचिसूत्र तक ही लिखा है.) ४०२९७. (+-) चतुर्विसतिजिनानां स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ५, अन्य. मु. कमलसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में किसीने इस प्रकार लिखा है. 'लीखतं कमलसागरेण संवत् १८६६' जो अनुमान से असंबद्ध प्रतीत होता है., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१०.५, १२४२३). १.पे. नाम. चतुर्विसतिजिनानां स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलम्, श्लोक-९, (वि. इस
प्रति में कर्ता विषयक 'विजैप्रभुसूरिनुता' इस प्रकार लिखा है.) २. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८३६, कार्तिक कृष्ण, ३०.
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियां, श्लोक-३३. ४. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ६अ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर आदनाथ; अंति: मनबंछीत फल पाइयो, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ५. पे. नाम. सिद्धांतचंद्रिका, पृ. ६आ, संपूर्ण.
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प्रक्रिया, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारंभिक दो लोक लिखे हैं.)
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४०२९८. (+०) पार्श्वनाथ स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१७४१२, ८x१६ ).
"
१. पे. नाम. नाकोडा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घरि बैठा लील; अंति: क जोडो, गाथा-८.
२. पे नाम, दानसीलतपभाव गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण
दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जिनप्रम कीजीय; अंतिः मुगति तणा फल तांह, गाथा-६.
३. पे. नाम. कृष्णराधा गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. कृष्णराधा पद, पुहि, पद्य, आदि एक समे सखी ताठी हुती, अंति बादर मे बीजरी चमकी, पद- १.
४. पे. नाम. कवित्त व दूहा संग्रह, पृ. ३-४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. काव्य / दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
५. पे. नाम, कृष्णराधा पद, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
दीपक, पुहिं, पद्य, आदि हरि मन गये ओर ठोर; अंतिः राधा मीठी दे मनाई है, पद- १.
"
४०३००. (+) औपदेशिक सज्झाय व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. दे. (१३.५४१०.५, १७४२२).
"
१. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच पू. १अ १आ, संपूर्ण.
रा., पद्य, आदि: दादाजी थारा चरणांरी; अंति: छोडै परभव गोता खाई, गाथा - ९.
२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. जैन गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
४०३०१ (+) अंबिकादेवी अष्टक व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, कुल पे २ ले, स्थल, उदेपुर,
.
प्रले. पं. राजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५x९, ८x२१). १. पे. नाम. अंबिकादेवी मंत्राम्नाय व सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ. पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-) (वि. मंत्र के साथ विधि भी दी है.) २. पे. नाम. अंबिकाष्टक, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण.
अंबिकादेवी अष्टक, सं., पद्य, आदिः या लोलीलंबमान प्रवर; अंति: प्रौढमंबा प्रसाद, श्लोक - ८.
४०३०९. (d) शत्रुंजयतीर्थ आदि स्तवन संग्रह व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं
है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१८४११.५ १२४२९).
१. पे. नाम. कर्णपिशाची व आगीयोवीर मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ. पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-).
"
1
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. ,जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी बीमलाचल मन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.)
३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन- आगलोडमंडन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज हुं गइती स० पीता; अंति: ज डंका वाजे रे, गाथा - ५.
४०३१०. (+०) आवकनी ग्यारप्रतिमा सज्झाय, संपूर्ण वि. १८५९, भाद्रपद कृष्ण, १ शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२ हैं. पत्र में दो बड़े छिद्र किये हुए हैं. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (१६४१२, १६४२३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक ११ प्रतिमा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: ग्यारै प्रतिमा हो; अंति: मुकतिरमणी सुपरीतो जी, गाथा-१७. ४०३११. (+) उभयनयगर्भितवीरजिन गीतम, संपूर्ण, वि. १९१९, आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज,
प्रले. मु. बालचंद्र; पठ. श्राव. धनपतसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथजी प्रसादात्. भागीरथी तटे., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (१९.५४११.५, १७४३६).
महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: श्रीवीरचरणकज भेट्या; अंति:
___ज्ञान० मंगलचारारे, गाथा-८. ४०३१३. (#) शंतिनाथजी स्तवन व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४४९, ११४२१). १.पे. नाम. शंतिनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: संति जिणेसर सोलमो रे; अंति: लाल सुंदर द्यै आसीस, गाथा-५. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४०३१४. (#) ३२ आगम नाम, आगमिक गाथा संग्रह व अचित्तभूमि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. पत्र की किनारी कटी होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१२.५४१०.५, १९४२३). १.पे. नाम. सूत्रबत्रीसना नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ आगमनाम, अध्ययन व गाथा संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआचारांगना अध्ययन; अंति: अध्यन ६
गाथा १२५. २. पे. नाम. आगम गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. अचित्तभूमि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण..
मा.गु., गद्य, आदि: राजमार्ग भूमका अंगुल; अंति: इंटबाह० अंगुल १०८. ४०३१९. (#) बतीस असजाइ, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. रामगोपाल महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१३४११, १३४१५).
३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकावाइ कहता; अंति: दोपहरा ११ आधीराते १२. ४०३२०. (+#) जंबूकुमार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५४११.५, २०४२०). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदिः राजग्रही नगरीरो बासी; अंति: नागौर माहै
बखाणी, गाथा-१४, (वि. इस प्रति में रचनावर्षवाली गाथा नहीं है.) ४०३२१. (+-#) अवंतीसुकमाल स्वाझाय, संपूर्ण, वि. १८१६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, १८४३१).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आचार्जसूहस्ति; अंति: शांतिहरख सुख पावे
रे, ढाल-१३. ४०३२२. (+-#) च्यारप्रत्येकबुद्ध स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, १३-१५४२८). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा नयरी अतिभली हु; अंति: गुण गाया हे पाटण
नयर, ढाल-५. ४०३२५. (#) अष्ठचैत्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र दो टुकड़ों में है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४१०, ४७४१४). ८ चैत्य स्तवन-जेसलमेरस्थित, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: जिनवर जेसलमेर जुहारी; अंति:
सतरसै इकहोत्तरै, ढाल-२, गाथा-२३, (वि. अंतिम गाथा में गाथांक-२३ लिखने की बजाय गाथांक-३३ लिखा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४०३२८. (+#) गोतमस्वामी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रति के अंत में 'श्रीरामजी सतसै जी' लिखा है. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८४७.५, १०४२५).
गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: परभाते गौतम प्रणमीजै; अंति: प्रगट्यौ परधान, गाथा-८. ४०३२९. उपदेसमाला, संपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता, पठ. सा. अणंदाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६४९, १२४२६).
६ काय सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर देवे देसणा जि; अंति: कुसल कहे समजाय, गाथा-१२. ४०३३१. (+#) पूजा अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५४११, १४४२३).
पूजाष्टक, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभू तुम राजा जगत; अंति: द्यानत तारन कारन हो, गाथा-१०. ४०३३२. (-#) सासत्र पूजा व सरस्वती पूजाजपमान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४११, १३४२३). १. पे. नाम. सासत्रपूजा, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
शास्त्रपूजा अष्टक, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: प्रकटितपरमार्थे; अंति: समयसार कल्पद्रुमे, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वती पूजाजपमान, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. ज्ञानभूषण, सं., पद्य, आदि: त्रिजगदीशजिनेंद्रमुख; अंति: भूषणकवि स्तवनं चकार,
श्लोक-११. ४०३३४. (#) भक्तामर गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(१५४११.५, १४-१६४१५). १. पे. नाम. भगतामर गीत, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरु चकेसरी वंछत; अंति: इम बोलै हो सांतसूर,
गाथा-१३. २. पे. नाम. दादजीरी प्रभाती, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि प्रभाति, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो जी गुरु प्रसमै; अंति: सूर० जिनकुशलसुरिंदजी,
गाथा-६. ३. पे. नाम. गुरु गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. दादाजी स्तवन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण दीजै सेवका समर; अंति: पूरोसयल जगीस दादाजी,
गाथा-६. ४. पे. नाम, संखैसरा पारसनाथजीरो सतोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) ४०३३५. (#) अरणंकरी सझा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. चंपा; लिख. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५४११, १५४२३). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगर अतिचालीयाजी; अंति: सांभल ए
अदकार, गाथा-१५.. ४०३३६. (#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रारंभ में 'सिरोही
परगणे कानपरू गाम छ तिहानो वशनारोजाति छे पोमान सिंघीयो राख्यो छे' इस प्रकार लिखा गया है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०.५, १५४१५). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: शुललित नवपद ध्यानथी; अंति: गंगा रंग तुरंग, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. पूर्वकृति के पूर्णतासूचक व इस कृति के प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही पूर्णता व प्रारंभ किया है एवं कृति पूर्ण होने पर १, २ अंक लिखा है.
मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र, अंति: भणी वंदू बेहु करजोडि, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४०३३९. (+४) २४ जिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. प्रतिलेखकने
,
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"
पत्रांक १ लिखा है किंतु कृति का बीच का हिस्सा है अतः प्रारंभिक पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२४४११.५, १२x२६).
""
२४ जिन स्तवन मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा १६ से २२ अपूर्ण तक है.)
४०३४६. (#) पार्श्वजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १६११, १४X३० ).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
आ. जिनअक्षयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: वाणारस नगरे सोभता जी, अंतिः श्रीसिंघने सुखकार, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुष्टि, पद्य, आदि दास जान मोहि तारो रे; अंतिः हितधर काज सुधारो रे, गाथा- ३.
"
३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कौन करे जंजाल जुग मै; अंति: भज हर भजि उतरो पार, गाथा-५. ४०३४७. (#) उपदेशरत्नमाला, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०, ६x२८-३०).
उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरवणकोसं नासिअ अंति: (-), (पू. वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.)
४०३४८. (+) चौवीसतीर्थंकर जयमाल व विमलाद्रिमंडण श्रीऋषभदेव स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे, २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२०.५X१२, १६३६).
१. पे. नाम, चौवीसतीर्थंकर जयमाल पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार,
२४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आदि नमो अरिहंत, अंति: मनबंछित फल पाइयै,
गाथा-५.
२. पे. नाम. विमलाद्रिमंडण श्रीऋषभदेव स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, ८, रविवार.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सिर तिलो अंति: गावता अवचल लील विलास,
गाथा - ११.
(४०३४९. (+) कलंकी सीझाच, संपूर्ण वि. १९१३ कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. मु. सुजितसागर, पठ. श्रावि. जवारबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे., (२०.५X११, ७X१४).
"
पंचमरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: वीर कहै गोतम सुणो अंतिः एह सिझाय रसालोरे, गाथा-२१. ४०३५५ (+४) २४ जिन चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२०.५x१२, १६५३९).
१. पे. नाम. वृद्धि चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
२४ जिन बृहत्चैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै प्रणमुं प्रथम, अंति: पद लहइ पामै सुख अनंत,
गाथा-८.
२. पे. नाम. लघु चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन, मु. सुखनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजितजिणदेव, अंति: पंचायण सुखनिधान,
गाथा - २.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४०३५६. (+) पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित., ., (१८.५४१०, १४-१६४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: वदाइ तीणलोक मे होइ; अंति: राजे वरते जे जे कारण, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: श्रीपार्श्वचिंतामणि; अंति: सदा पुरै मनरली,
गाथा-८. ४०३५७. (#) अनाथीमुनि आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (१५.५४१०, १६४२८). १. पे. नाम. अनाथीमुनि सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रयवाडी चढ्यो; अंति: वांदै रे बे करजोडि,
गाथा-९. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणओ भावसुं; अंति: मुगति तणो ए
निदान, गाथा-४. ३. पे. नाम. धोबीडानी सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबीडा तुंधोजे मननु; अंति: सुखडी
अमृतवेलरे, गाथा-६. ४. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मनही में वैरागी भरत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ४०३५८. (#) पार्श्वनाथ स्तुति, स्तवन व जैनदुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५४१०.५, १६४३१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कांय जीव मन में कसकै; अंति: श्रीपास पसाये
रंगरली, गाथा-९. ३. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ४०३६०. (#) साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४१०, १३४३३).
साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत जे धरइ; अंति: नमइ निशिदीसो जी, गाथा-८. ४०३६१. (+) पार्श्वनाथ स्तव, स्तुति व तीर्थनमस्कार पद्धति, संपूर्ण, वि. १७७४-१७७५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,
प्रले. पं. अजबसागर (गुरु ग. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५४७.५, १३४२८-३२). १.पे. नाम. जीराउलिपार्श्वनाथ स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७७४, पौष शुक्ल, ८, सोमवार, ले.स्थल. शंकराणी.
पार्श्वजिन स्तव-जीरावला, सं., पद्य, आदि: अमेयवामेयचरित्रचित्र; अंति: स्थितस्यार्हिणः, श्लोक-८. २. पे. नाम. तीर्थनमस्कार पद्धति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १७७४, पौष शुक्ल, ९, मंगलवार.
सं., पद्य, आदि: सिद्धिवधूसिद्धसंगम; अंति: पदपद्धतिभिर्नमस्कैः, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पंचश्लोकी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १७७५, आश्विन कृष्ण, ८, शनिवार, ले.स्थल. कृष्णदुर्ग.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तुति - पंचोकी, सं., पद्य, आदि: पार्श्वजिनेश्वराय, अंतिः निर्माहि जिन प्रसीद, श्लोक ५.
४०३६५ (-) आदिजिन आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१६४१०.५, ८-१०x२२-३२)
१. पे. नाम. रीषभदेवजी की थूई, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु, पद्य वि. १७वी, आदि पर वुठी बंद रीषभदेव, अंति: रीषभदास गुण गाय, गाथा-४.
२. पे नाम, पजूसणा की थूई पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदि जिन पूजा, अंति पूरोवो देवि सीधाईजी, गाथा ४. ३. पे. नाम. बिज की थूई, पृ. २आ, संपूर्ण..
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बिज, अंति: कहै पूर मनोरथ माय, गाथा- ४. ४०३६६. () धर्ममहिमा सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (१७.५x१०.५, १३x२५). धर्ममहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः समरिसि निज मनि सारद, अंतिः सबै ते इण परि भणइ, गाथा- १०.
"
,
४०३६७, (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे..
(१७.५x१०.५, १६x२५).
पार्श्वजिन स्तवन- रोगहर, पुहिं., पद्य, वि. १८५९, आदि: पारसनाथ परमसुख दाता; अंति: पुरोजी आसा हम तणी, गाथा-१९ (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४०३७२. (+#) घोतमस्वामी को तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित-अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे. (१८.५४११.५, १३४२८)
"
१. पे. नाम. घोतमसामी को तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पो ऊटी गोतम प्रणमीजे, अंति: पुन जोघे परगण परधान, गाथा-८.
२. पे नाम, दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १आ. संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि अरिहंत देवने ओलखासरे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.)
३. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पू. १ आ. संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा - १.
४०३७३. (4) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण बि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (१८.५X१०.५, १०x४८).
आदिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिजन प्रमु पाय; अंति: भवी जीन भव हरो जी, गाथा - १२. ४०३७४ (०) तावनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२०.५X११.५, १३X३१).
ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल, अंति: सार मंत्र गणीइं सदा, गाथा- १६. ४०३७५ (+) वीरस्वामीनुं झूलणु पालणुं, संपूर्ण, वि. १८९४ मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. दीपविजय कवि (तपागच्छ),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ताने दसवी गाथा में उल्लिखित चेडा राजा की सात पुत्रियों का परिचय गाथा के शुरुआत में लिखा है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०X११.५, १४X३८).
महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला जूलावें; अंतिः दीपविजय कविराज,
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गाथा - १७.
४०३७६. (#) राईसंथारा गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x११, ११x२८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निस्सिही निस्सिही; अंति: जीवा कम्मवसु० खमंतु, गाथा-२२, (वि. संथारापोरसी सूत्र
अंतर्गत अन्य प्रक्षिप्त गाथाएँ भी लिखी हैं)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४०३७७. (#) जिनदत्तसूरिजीरो छंद व सवईया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२२४१०, १४४३९). १. पे. नाम. जिनदत्तसूरिजीरौ छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि छंद, उपा. रुघपति, रा., पद्य, आदि: वरदायक हंसवाहनी सारद; अंति: सूरचीयो छंद मनोहरु, गाथा-३५. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरिजीरो सवईयो, पृ. २आ, संपूर्ण.
जिनदत्तसूरि सवैयो, ग. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: गंगोदुतरंग सुचंग; अंति: निधान आणंद करे, गाथा-१. ४०३७८. (+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२०.५४११, ९४२८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानगरि समोसर्य; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१ तक है.) ४०३७९. साधुआचार सज्झाय व ज्योतिष आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२०x१०.५,
१३४३२). १. पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पेला अरहतने नमु; अंति: होवे छकायनी घात जी, गाथा-४६. २. पे. नाम. अखातीज के दिन सूर्यबिंब से वरतारा का विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. २४ अवतार नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: मीन १ वाराह २ कमठ ३; अंति: देव २३ सनकादिक २४. ४. पे. नाम. २४ पीरां का नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
२४ पीर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इमाम अलीअकबर; अंति: इब्राहिम मुक्त्यार. ४०३८९. (+) २० स्थानक सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा कहीं कहीं
संख्यावाची शब्द के ऊपर अंक लिखे हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१७४१२.५, १२४२३). १.पे. नाम. २० स्थानक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत प्रथम पद; अंति: कहे तप
शिवसुख दातार, गाथा-५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४०३९०. (+#) इरीयावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, २०४३३). इरियावही सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचारज; अंति: नारी अमारी पदना जासी,
गाथा-२०. ४०३९१. (+#) मोराजीरो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. रघुवरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १६४२९). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जंबु तो दिप हो भरत; अंति: आछो सेहर
अजमेर, गाथा-१८. ४०३९३. (#) सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०.५, ११४२२). सीतासती सज्झाय, मु. विनयविवेक, पुहि., पद्य, आदि: पीया तुम कैसी वीचारि; अंति: हुई करमा की एक तारी,
गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१३८
४०३९८. (+) नेमिजिन स्तवन, धन्ना अणगार सज्झाय व २४ जिन साधुपरिवार संख्या, संपूर्ण बि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित - अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१४.५X१०.५, १९-२१x२५). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: समदभीज श्रीनेम; अंति: मारो पीव भीरमचारी, गाथा-५.
२. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी काकडी हो मुनीसर; अंति: रतनचंदजी कह करजोड, गाथा- १४.
३. पे नाम, २४ जिन साधुपरिवार संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण.
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२४ जिन साधुपरिवार संख्या विचार, रा., गद्य, आदि: पला रीखवनाथजी कबार; अंति: वीरजी कवार चवदहजार. ४०३९९. (#) जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(१५.५X१०, १२४२५).
जीवदया सज्झाथ, पुहि, पद्य, आदि असो हो जग विप्र मति, अंतिः ज्यौ पावो निरवाण, गाथा- १२. ४०४०० (+) मेतारजमुनिवर सजाए व नवपद आरती संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x११, १६x२८).
१. पे नाम, मेतारजमुनिवर सजाए. पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण.
मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि धन धन मेतारजे मुनि, अंतिः रामो० अवचल ठामो,
गाथा - १५.
२. पे. नाम. नवपद आरती, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि ऐसी आरती करो मन मेरा, अंति: शिवपुर का सुख पावो, गाथा-१५. ४०४०३. बतीस असजाइ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१३४११, १२x२१).
३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उकाबाइ कहता तारो तूट; अंति: जगता दोपहरा आधीराते. ४०४०४, (४) पार्श्वनाथ स्तवन व वारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है,
जैदे., ( २१.५X११.५, १५X३६).
१. पे नाम, गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मननी मोहनी सखी; अंति: हेत कहै धमसीह रे,
गाथा-७.
२. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो बारमासो. पू. १आ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पावस उलय अंतिः रित मुझ पासजी संभर, गाथा- १३. ४०४०८, (४) पासजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८०५, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, सीहामसर, प्रले. मु. जैतसी,
अन्य. श्राव. दुलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५X१०.५, १२x१७).
पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलोकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अतिभली अतिभली सदा, अंति: कहै सेव्यां सुख थाय, गाथा-७. ४०४०९. (#) जंबूस्वामी सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, अन्य. मु. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अशुद्ध पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५x११. ८x१३).
१. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: (१)जंबु कहो मान रे जाया, (२) ये आठुई कामण्यां; अंतिः जाया भले लो संजमभार, गाथा-१२. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन. पू. ३आ-४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी आदि आणी मन सूधी आसता देव अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.)
४०४१०.
(+#)
पुण्यफलपच्चीसी व पोसा विधि आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x१०.५, १७५२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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१. पे. नाम. पुन्यफलपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पुण्यफलपच्चीसी, मु. गंगकुशल, मा.गु., पंथ, आदि: सरसति भगवतिनइ सिरनाम अंतिः धीरकुशल कवि सीस जी,
गाथा - २८.
२. पे. नाम. पोसा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरिया० तस्स० ४; अंति: इच्छं उपति पडिलेहू.
३. पे. नाम. उपवासतप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. कितने आयंबिल, नीवि आदि तप बराबर एक उपवास होता है उसका विवरण . )
४. पे नाम. मंत्रीपद विचार हो, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी है. दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), गाथा- १.
४०४१२ (०) अइमुत्तामुनि आदि सज्झाव संग्रह व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २१x११, २१x४५).
१. पे. नाम. अयमंताऋषि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण
अइमुत्तामुनि सज्झाव, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने, अंतिः ते मुनिवरना पावा, गाथा- १८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. तिलोकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिवपुर नगर सुहामणो; अंति: विनवे सेवक तिलोकचंद, गाथा- १४.
३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि आउ तुटां साधो लागे, अंति: मुझ निस्तार रे, गाथा - ७.
४०४१३. (+) गोचरीना दोष सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९७३ भाद्रपद शुक्ल ९ श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल फलोधी, प्रले. मु. लाभचंद
१३९
महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २१.५X१२, ५x२९).
गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २ अंति: कप्पीए १ सर्व १०६ (वि. गाथा क्रमांक नहीं दिया है.)
गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० साधु के वास्ते छ; अंतिः बुधी पीण नीरमल रही.
४०४१८. () राईप्रतिक्रमण प्रभात सज्झाय व यौवनपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x१२, ८x२४).
१. पे नाम, राईप्रतिक्रमण प्रभात सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जसपडहो तिहुबणे सबले, गाथा- १३. २. पे. नाम. यौवनपच्चीसी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: हां रे कांइ यौवनीआनो; अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४०४१९. (+#) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६००, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. उपा. रत्नकीर्ति; पठ. सा. मांजू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१७.५x११.५, १७X३४).
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बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंतिः धणुसय तेरंगुलव्धहियं, गाथा- ९६.
"
४०४२० () समकित व औपदेशिक पद संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १७११, ९x१८).
१. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: समकित न लही रे ता ते; अंति: दास० बहु वार हम कीनो, गाथा-४.
२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. डालूराम, पुहिं, पद्य, आदि जीवडारे सौज विरानी, अंतिः श्रीगुर युं फरमाया, गाथा- ३.
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१४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०४२३. (#) प्रास्ताविक गाथासंग्रह व ८ मद सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२३४१०, ११४३५). १.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथासंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. ८ मद सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारीइं; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे,
गाथा-११. ४०४२६. (-#) अनाथीमुनि व सप्तव्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४९.५, १९४२६). १.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रेवाडी चढ्यो; अंति: वंदेरे बेकरि जोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. सप्तविसन सिज्झा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुर; अंति: सिष श्रीजयरंग इम कह, गाथा-९. ४०४२७. (#) नागोरप्रतिष्ठा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५,११४२६). आदिजिन स्तवन-नागोरप्रतिष्ठा, मु. क्षमाकल्याण शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९७२, आदि: भवि भावै भेटो ऋषभ;
अंति: तो पावो शिववासरे, गाथा-८. ४०४२८. (#) महावीरजिन स्तवन, औपदेशिक पद व ४ शरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (११४१०.५, १६४२०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिधार्थ कुल; अंति: समु नही भाव प्रधान, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: असनान करो उपसमर्सपूर; अंति: रमणि ज्यु निहचै बरो, गाथा-४. ३. पे. नाम. ४ शरण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहलो मंगलिक कहुं एह; अंति: तो अचल अखै सुख होय, गाथा-८. ४०४३१. (+#) सिद्धचक्र स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, १३४२७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर अति; अंति: सानिध करजो मायो जी, गाथा-४. २.पे. नाम. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे वैसी प्रथम; अति: मोहन कहै जयकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. गाथासंकेताक्षर संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. किसी कृति की गाथाओं के संकेताक्षर होने की
संभावना है.) ४०४३२. शांतिजिन व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१, पौष कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. गेरीता,
प्रले. पं. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४९.५, १३४३१). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मानीता साहिब; अंति: निज आतम गुण साधई हो, गाथा-७. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१४१ महावीरजिन स्तवन, मु. गंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वीरजी करुणा; अंति: गंगविजय सुसीस के,
गाथा-९. ४०४३३. (+) कनककामिनीस्वरूप आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२१.५४११, १४४३१). १. पे. नाम. कनककामिनीस्वरूप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-कनककामिनीविषये, मु. राम, रा., पद्य, वि. १९१८, आदि: मूरख लखजरे कनकने; अंति:
वरते मंगलमाल रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कर गुदराण गरीवी से; अंति: पापी नरग में सडता है, गाथा-९. ३.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: केसी वीध समझाउं रे; अंति: जोत में जोत समा जी, गाथा-५. ४०४३४. (+) बालूडा गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४९, १३४४२).
बालूडा गीत, उपा. देवकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: आपणयए पुत्रह आणण काज; अंति: नारी तिर नदीस्यइए,
गाथा-१०. ४०४३८. महावीर स्तवन पद्मप्रभजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
जैदे., (२२४९.५, ३५४२६). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७२५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
थुण्यउ त्रिभुवन तिलउ, गाथा-१९. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरउ मन मोह्यो जिन; अंति: सकल कुशल संपतीयां, गाथा-३. ३. पे. नाम. सोरठीयो दूहो, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा", मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. वयरस्वामि गीतं, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ सुनंदा बांह पसार; अंति: धन धन जिणसासण जयउ,
गाथा-९. ५. पे. नाम. समस्या दुहो, पृ. १आ, संपूर्ण.
दहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४०४४०. पार्श्वजिन स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, दे., (२१.५४१०.५, १३४३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-देवासमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: देवासमंडन दुरितखंडन; अंति: मुज दीजीये वरदान ए, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: पदै करो संघ कल्याण,
गाथा-६. ३. पे. नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजितसत्रु नरेसर; अंति: गिरि करो संघ कल्याण, गाथा-६. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: सुनो सुनो सीमंदर; अंति: कर राख आपणो जाणीरे, गाथा-६. ५. पे. नाम. शिखरजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीसेन, पुहि., पद्य, आदि: शिखरजी की यात्रा; अंति: करीये तां के काज सरे, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६. पे. नाम. शिखरजी स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: चालो चालो सिखर गिरि, अंति: विनय नम गहिरे, गाथा - ९.
७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. चुनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गफलत मे सारी उमर गई; अंति: आग्या सीर पर धार लही, दोहा-४. ८. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.
ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला अंतिः तत्परपदमविजयसुहितरं श्लोक ७. ४०४४२. (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे.
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( २३X१२, ९X३६).
पद्मावतीदेवीस्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: सर्वाधिव्याधिहरम्, श्लोक-२७.
४०४४३. (+#) सीधचक्र स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. उण, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२२x१०, १०x३७).
नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुसल कमलानो रे; अंति: दानवीजे जयकरू रे,
गाथा- २३.
४०४४५ () चतुर्दशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. (२०x१०, ९x१९).
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४.
४०४४६. (+#) रहनेम सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२२.५४९.५, ११४३६).
"
रथनेमिराजिमती सज्झाव, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि राजेमती हो नेम भणी, अंति लाल कहि हरख त्रिकाल, गाथा - ९.
४०४४८. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २२x९.५, ६X५२).
आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रिषभ जिणेसर पीतम; अंति: अरपणा आणंदघन पद
रेह, गाथा- ६.
४०४५० (+४) महाविरजी का स्तवन व करम सिझ्याय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x११.५, १२x२९).
१. पे. नाम. महाविरजी का स्तवन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण.
महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विर सुणो मोरी बीनती अंति थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९ (वि. प्रतिलेखक ने समयसुंदर की जगह सहजसुंदर लिखा है, जो अशुद्ध प्रतीत हो रहा है.)
२. पे. नाम. करम सिझ्याय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर, अंति: बल राजा रे प्राणी, गाथा- १४. ४०४५२. (+) नमिराजर्षि व बारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है..
संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२.५x९.५, १७X३६).
१. पे. नाम. छमा अयधान स्वाधा, पृ. १अ, संपूर्ण.
नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तणी रीधि भोगवी; अंति: विजयसिंघ वचने रे, गाथा - ८. २. पे नाम. १२ व्रत सज्झाय सप्तम एवं तृतीय, पू. १अ १आ, संपूर्ण.
१२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
४०४५३. (+) वासुपूज्यजिन स्तुति व पार्श्वजिन स्तव आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२७४१३, १७४४३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१४३ १. पे. नाम. वासुपूज्य स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __ वासुपूज्यजिन स्तुति-सूर्यपुरमंडन, मु. ज्ञानरत्न शिष्य, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपरिरंभ; अंति: दत्तं सदा शाश्वतं,
श्लोक-१३. २. पे. नाम. ग्रहशांतिगर्भितस्थंभनेश स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-स्थंभनतीर्थ नवग्रहगर्भित, सं., पद्य, आदि: जीयाजगच्चक्षु; अंति: चकोरप्रमदं तनोतु नः, श्लोक-१२. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथमंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४०४५४. (+#) कुंथुजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १३४२८). १. पे. नाम. कुथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुथजिन मनडो किण विध; अंति: साचो करि जाणु हो,
गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ध्रुवपद रामि हो सामि; अंति: आनंदघन मुझमाहि,
गाथा-८. ४०४५५. (+) नारी की स्झा, जोगपतीसा की सीज्झाय व नीरमोहीराजा की सीझा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३,
प्र.वि. कहीं कहीं पर गाथांकों को अलग दर्शाने हेतु लकीरे की गई हैं. अंतिम पत्र में पत्रांक नहीं है., संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, १९४३९). १. पे. नाम. नारी की स्झा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
लीलावती रास, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजदहो राजदहो सूरत; अंति: सुणीए बोल विचार, गाथा-८१. २.पे. नाम. जोगपतीसा की सीज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
योगपांत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: आद जीणेसर जगती; अंति: पाव सीवपुर वासो, गाथा-३५. ३. पे. नाम. नीरमोहीराजा की सीझा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
निर्मोहीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सकइंद्र प्रसंसा करी; अंति: गावइ श्रावक दास, गाथा-२९. ४०४५७. (#) दादाजी अष्टप्रकारी पूजा व आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२१.५४१२, १०४२७). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सकलगुणगरिष्ठान्; अंति: निर्विपामिति स्वाहा,
पूजा-८, (वि. इस प्रति में कर्ताप्रशस्तियुक्त कलश नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. जिनकुशलसूरि आरती, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै कुशलसूरि जसधार; अंति: ण इम अमरचंद गुण गावै, गाथा-८. ४०४६०. (-) जिनकुशलसूरि गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्रले. उमेदमल
लूणीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९.५४१०, ११४२०-२४). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि; अंति: अपनौ करि जाणीजै, गाथा-३. २.पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुसल गुरु कुशल करो; अंति: वीनवै श्रीजिनचंदसूरि,
गाथा-२. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: कुशल गुरु देखता; अंति: चरन को सरण मोहि दीजै, गाथा-३.
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१४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशल जुहारा; अंति: लालचंद० चरण कमल आधार, गाथा-४. ५. पे. नाम. अभिनंदन गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी वीनवुरे; अंति: समविषमी जिनराज रे,
गाथा-५. ६.पे. नाम. अभिनंदन गीतं, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: विणजारा रे नायक संभव; अंति: अरियण मूल न
को कलै, गाथा-५. ४०४६१. (-) गौडीपार्श्वजिनी स्तोत्र व मंगलाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मुलतान नगर, प्रले.
उदेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१०.५, १२४३४). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वजिनी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिने; अंति: संसेव्यतां विश्वपाः, श्लोक-३. २. पे. नाम. मंगलाष्टक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नम्रसुरासुर; अंति: कुर्वंतु मे मंगलं, श्लोक-९. ४०४६२. (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १७५८, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सेवरीया, प्रले. मु. मनजी ऋषि;
पठ. श्राव. खेता वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, १६४३८-४४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: समय०पापथी
छूटइ ततकाल, गाथा-३८. ४०४६३. (+#) ८४ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १४४४२).. दिक्पट ८४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण ग्यान सुभध्यान; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७५ तक लिखा है.) ४०४६५. (+#) पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४६, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भुधर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १८४३६). १. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्व स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज
ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग; अंति: त्रिभुवन तिलो,
गाथा-५, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक १ लिखा है जो अशुद्ध प्रतीत होता है. वस्तुतः कुल गाथा ५ हैं.) ४०४६६. (+#) गुरुगुण गहुंली व वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १२४३६-४८). १.पे. नाम. गुरुगुण गहुंली-खरतरगच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिणसासण सिणगार वांदो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक
लिखा है.) २.पे. नाम. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रैजीव मनमै; अंति: श्रीपास पसायै
रंगरली, गाथा-९. ४०४६८. (+) सीखामण सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१४५ औपदेशिक सज्झाय, मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे तूं सजनी; अंति: लक्ष्मी लीला वरस्यै, गाथा-२३,
ग्रं. ३४. ४०४७०. शत्रुजयतीर्थ आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४१०, ११४३४). १. पे. नाम. सिद्धागिरि स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरू मन मोह्युरे; अंति: कहितां नावे हो
पार, गाथा-५. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. अमृतविजय; पठ. श्रावि. लाधू बाई, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस तुम्हारौ हो; अंति: रूप० सफल फली मोरी आस,
गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: गया सिद्धिकारी रे, गाथा-९. ५.पे. नाम. नाटिक स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मागु., पद्य, आदि: प्रभू आगलि नाचै सुर; अंति: जोवण
उछक छै अती, गाथा-९. ४०४७१. (+) तेर काठीया सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०,
१४४२९). १. पे. नाम. प्रतिमास्थापन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विमलरत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जेहनै जिनप्रतिमास्यु; अंति: भाव थकी सिरनामी हो, गाथा-५. २.पे. नाम. तेरकाठीया सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आलस पहैलो काठीयो धरम; अंति: भाव
साधु धन्य तेह, गाथा-७. ३. पे. नाम. सांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वार अनंती भवसायर; अंति: सागरने शिवपुर राज रे, गाथा-५. ४०४७२. (+-) पार्श्वजिन स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध
पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, ११४२७). १.पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. रामसेणनगर. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीजं
ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदाजिन; अंति: पार्श्वजिनं शिवं, श्लोक-७. ३. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-९. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासं,
श्लोक-८. ५. पे. नाम. आदीनाथ स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ६. पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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१४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि; अंति: श्रेयः सुखास्पदं,
श्लोक-५. ७. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण.
हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ८. पे. नाम. ऋषभ चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: ऋषभ० आददेव महिमा घणो,
गाथा-३. ९.पे. नाम. सीद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क
नमामि, गाथा-६. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु पासजिणंद कमठ; अंति: समर्या सानिद्ध किद्ध, गाथा-३. ४०४७३. (#) श्रीमंदरस्वामीनी स्तुती, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. चुनीलाल वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खडित है, दे., (२३.५४१२.५, १०४२६). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो सीमंधर; अंति: हु ते सदघु प्रभुजी, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४०४७४. (+#) अष्टकर्मप्रकृति विवरण व सीमंधरस्वामी नम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४११, ३२४१७). १.पे. नाम. अष्टकर्मप्रकृति विवरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणी; अंति: धर्मनो उद्यम करवो. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी नम, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनायक सुरतरु मन; अंति: देव ए मुज प्रणाम, गाथा-२. ४०४७५. (+) नवकारवाली सज्झाय व महावीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. १अ पर अक्षर व
पावरेखा सफेद रंग के हैं. प्रायः रचनावर्ष के समीपवर्ती काल में लिखित., संशोधित., जैदे., (२४४११, ११४२६). १. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हितकुशल (गुरु ग. लब्धिकुशल).
ग. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुहवि सुहासणि सुंदरि; अंति: कुशल कहइ० चतुराइ रे, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु.डुंगरशी (गुरु ग. लब्धिकुशल); गुपि.ग. लब्धिकुशल (गुरु
ग. लालकुशल); ग. लालकुशल (गुरु आ. विजयसिंहसूरि, तपागच्छ); अन्य. पं. गंगकुशल.
महावीरजिन स्तुति, ग. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुपुर प्रभु दीपक; अंति: लालकुशल गुण गावइ, गाथा-४. ४०४७६. (+#) संवेगबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १३४३८). संवेगबत्रीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ विमासी जीवडा ए; अंति: पामउ जिम पभणइ पासचंद,
गाथा-३२. ४०४७७. (#) नेमराजेमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रंडग्राम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १०४२४).
नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: छप्पनकोड जादव मील आए; अंति: राजल पहुता नीरावांणी, गाथा-२४. ४०४७८. सवासौ सीख सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२३.५४११.५, १२४३७).
१२५ शीख सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी प्रथम जिणंद; अंति: मयाचंद सदा पद वंदै, ढाल-२,
गाथा-४४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१४७
४०४७९. (#) नेमिजिन बारमासो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२२.५४८.५, १३४३३).
१. पे. नाम. नेमजी वारेमास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: सखीरे सुण तुंवाणी, अंतिः पोहता मुगत मझार रे, गाथा- १५.
२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण,
आ. शुभसमुद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि जब पास देवा करय सेवा, अंतिः केरी संघ आस्वा पणी, गाथा ४. ३. पे. नाम. पंचतीरथी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
५ तीर्थ स्तवन, उपा. सूरजविजय, मा.गु., पद्य, आदि जय जय पास जिनेसर देव अंतिः विजह० द्यो पदमावती, गाथा ५.
४. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
( २०X८.५, १७५५).
१. पे. नाम. रीषबजीरो तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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नेमिजिन स्तवन, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम जिणेसरस्वामी तु; अंति: विनयचंद गुण गाई रे, गाथा- ९. ४०४८०. रीषभजी से तवन, औपदेशिक सज्झाय व जयमलऋषि गहुली, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे, ३, दे.,
आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: रीखबजी थे इहो संजम; अंति: रायचंदजी भाषेजी एम, गाथा - ११. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच. पू. १अ संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - कायोपरि, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: काची रे कायाने काची, अंति: कहे० रतन नरभव पाया, गाथा ५.
३. पे नाम, जयमलऋषि गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य जयमलजी हुवा, अंतिः जयमलजीरो जाप जपो गाथा-८.
"
४०४८४.
(#)
पुण्यप्रकाश स्तवन-ढाल ५ व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक १अ के हासिए में तप विशेष का उल्लेख किया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३×१०.५, १३x४०).
गाथा - १२.
२. पे. नाम. हतसीख सझाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
१. पे नाम. चंद्रमुनी सिझाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहै विजया प्रतै; अंति: चंद्रविजय० ते सुख लहै,
पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परे दोहिलो; अंति: विजैयदेवसुरंद कै, गाथा - १६. ३. पे. नाम. पुन्यप्रकास - पंचम ढाल, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु पद्य वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. ढाल ५
"
गाथा-९ है.)
४०४८५. (+#) सीलपचीसी व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की
स्वाही फैल गयी है, दे. (२३.५४११.५, १८४३९).
१. पे. नाम सीलपचीसी. पू. १अ १आ, संपूर्ण.
शीलपच्चीसी, आव. नेतो, मा.गु., पद्य, आदि: सुर नर किंनर नाग, अंतिः सीले कारज सारे जी, गाथा-२६.
२. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण,
मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि तो सो सादा दील लागा, अंतिः सूणतां होइ जै जैकार, गाथा ७.
४०४८६ (+) मौनएकादसी स्तुति, पारणा स्तवन व आठमरी सज्झाय, संपूर्ण वि. १८८८, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३. ले. स्थल नागोर, प्रले. पं. नगविजय पठ साहबकचर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२३४१०.५, १६४३७).
१. पे. नाम. मौनएकादसी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण
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मौन एकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गोतम बोले ग्रंथ, अंतिः श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. २. पे. नाम. माहावीर पारणा स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंति: सुभवीर वचन गावे रे, गाथा- ८.
३. पे. नाम. आठमरी सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आठम कहे आठ मद तजी; अंति: पुन्यनी रेह रे, गाथा - ९. ४०४८७. (+४) अष्टकर्म विचार गाथा संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैदे.,
(२६४१०.५, १८४६३).
८ कर्मविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इंदियकसायमयगारवेहिं अति: संघयणं उत्तमं लहइ, गाथा- ४४.
४०४८८. (#) अनाथीऋषिनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गुलाबचंद, पठ. मु. मावजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२२.५४९.५, १०x३२).
,
अनाधीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदिः श्रेणिक रायवाडी, अंतिः वंदे रे वे कर जोड,
गाथा - १०.
४०४८९. (+#) पार्श्वजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११. १८४२).
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१. पे. नाम गौडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहाराज मनावो जिम; अंति: दिन दिन चढत दावी, गाथा-४.
२. पे. नाम. आदिजिन मरूदेवामाता पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन मरुदेवीमाता पद, मु. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ललाजी तुम्ह तो भले, अंति: रुप प्रभू लय लगी,
गाथा - ३.
३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद - गोडीजी, मु. माणिक्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन गोडी पासजी, अंति: जाणैज्यौ निज दास जी,
गाथा - ३.
४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जगतगुरु मेरे तेरो ही; अंति: कहैत० जनम जनम परधान, गाथा-३.
५. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सोयो तुं बहुत दिन अंतिः समानि इतै सिवमांग रे, गाथा-३,
"
६. पे नाम, पार्श्वजिन पद, प्र. २अ १आ, संपूर्ण.
मु. चंद, पुहिं, पद्म, आदि रूप भलो जिनजी की अंतिः चंद० जगजीवन सबही को, गाथा-३,
७. पे. नाम. गुरु पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: ग्यानगुण चाहह तो अंतिः धर्म सीख धुर की गाथा ४.
८. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. १आ. संपूर्ण.
मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावे; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा- ३.
४०४९० (४) अयमता सझाय व नेम गीत, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
.
गाथा - १८.
२. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
(२२.५४११.५, १५X३७).
१. पे. नाम. अयमत्ता सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्वसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन वीर बांदीने अंतिः वंदे अयमतो अणगार,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: गोख चढी राजीमती जोवै; अंति: गुण गाता सुख थाय, गाथा-१३. ४०४९१. (#) धनाकाकेडीनी सझाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वणोद, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, ३५४२२). धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धनाने सुपि माह धन; अंति: भव्यने मन भावउं,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४०४९२. (+#) पार्श्वजिनादि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १४४३८). १. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि दें; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. सर्वतीर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: सर्वा उद्वारोहीणा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. मुनएकादसी थूई, पृ. १आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिन उपदेशी मोनएका; अंति: धरा संति तै सुरवरा, गाथा-४. ४०४९३. (#) नवपद चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १३४२५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी उलभडै मत; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. २.पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पद अरिहंत बारे; अंति: अनुक्रमे लोगस जाणीइ, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा
की एक गाथा गिनी है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे सांवलीया; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधीइ; अंति: ग्यानविनोद प्रसिद्ध, गाथा-५. ४०४९४. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४८, ८४३०).
पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि: वामानंदन रे वाला; अंति: रतन घर घर रंग
रासी, गाथा-५. ४०४९७. (#) आहारना ९६ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४३३).
गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उद्देसिअ; अंति: ९५ पारियासिए ९६, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकरमी आहार साधनि; अंति: घणीवार राखी करे ते. ४०४९८. (+#) समवसरण स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर,
प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १-६४३१).
समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउसुपयत्थं, गाथा-२४.
समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरं समवसरणस्थं; अंति: मोक्षपदस्थं करोतु. ४०४९९. (#) वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. कुशलदत्त पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४११.५, ९४३२). २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: कहै वसतो मुनिवरो, ढाल-३,
गाथा-१८.
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१५०
४०५००. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें अक्षर फीके पड़ गये हैं. दे. (२३.५४१२, ११४३३).
"
१. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे नाम, श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. ४आ, संपूर्ण
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-२.
४०५०७. (#) रुक्मिणी सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व जैनदुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२.५४८.५, १३४३४)
"
१. पे. नाम. रुक्वामणी साध्यान, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभ सूचक शब्दसंकेत लिखे बीना ही कृति का प्रारंभ किया है. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम, अंति: लाल राजबिय रंगै भणै,
गाथा - १४.
२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभ सूचक शब्दसंकेत लिखे बीना ही कृति का प्रारंभ किया है. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि अण न सुवाउं जणजि, अंति: पाइ नमुं बांदु बजहीर, गाथा-७.
३. पे. नाम जैनदुहा संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह " प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
४०५०८. (#) राजमती गीत व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. कल्याण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५x९, १२४३६).
१. पे नाम, नेमजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि, यह कृति बाद में या अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
जैन गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १.
२. पे. नाम. राजमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
राजिमती सज्झाय, मु. बुद्धि, मा.गु., पद्य, आदि: जादव परणि ण चालीयो; अंतिः णइ तेहनइ रे सुख अनंत, गाथा - १०.
४०५०९. रोहीणीरी धूई, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. दोनों किनारिओं पर कागज चिपकाये होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., वे., (२३.५४१२, ९४२२)
रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: जंपै जिनजी जगदाधार, गाथा-४ (वि. इस प्रति में कहीं नाम उपलब्ध नहीं है किंतु कर्ता लब्धिरूचि होने की संभावना है.)
४०५१०. (#) तारादेवी आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२३.५X११.५, १९x४६).
२०X३८).
१. पे नाम, मेघकुमार सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण,
१. पे नाम, पांचपांडव सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण,
५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पच, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो अंतिः मुझ आवागमण निवार रे, गाथा २०. २. पे. नाम. तारादेवी सज्झाय - शीलविषये, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वचन सुन्या वीरामन, अंति: सुंदर० गाया भली भात, गाथा- १३.
३. पे. नाम. शील सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण.
शीलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि तिन गुप्त तणो अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखकने गाथांक १-२ नहीं लिखा है.)
४०५११. (४) मेघकुमार आदि सज्झाय संग्रह व राजुलपच्चीसी, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे ५ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर मिट गए हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३४११.५,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१५१ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी वीर जिणंदनी जी; अंति: रात दिवस तसु ध्यान, गाथा-९, (वि. कर्ता चंद
ऋषि होने की संभावना है.) २. पे. नाम. धनासालभद्र सिजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल्या तणो; अंति: सहजसुंदरे बाणी, गाथा-१७. ३. पे. नाम. नेमनाथ गालि, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: धर्म का ढोल गुडाय; अंति: पाव मुकति का वासी जी, गाथा-६. ४. पे. नाम. राजुलपचीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सब संघ के मंगल करो, गाथा-२६, (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ से लिखना प्रारंभ किया है.) ५. पे. नाम. नेमनाथराजेमति की मिश्री, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मागु., पद्य, आदि: सोरीपुर नगसुहावणो; अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र पानी से विवर्ण होने से
अंतिमवाक्य अपढनीय है.) ४०५१२. (#) पार्श्वजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२३४१०.५, १३४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद नीरधार,
गाथा-७. २. पे. नाम. माहावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
___ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. विमल पदं, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलजीन दीठा नयणे आज; अंति: आनंदघन पद
सेव, गाथा-७. ४. पे. नाम. सीतलजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलजिन तें सह; अंति: दीजै ध्रुवपद वास, गाथा-७. ५. पे. नाम. शीतलजिनगीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
शीतलजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीव थकी वालो मुने रे; अंति: दीजै ध्रुवपद वास, गाथा-९. ६. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि सादडीमंडन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: सादडी सहरे सोहतोरे;
अंति: रे गाया गुण अभिराम, गाथा-८. ४०५१३. (+#) दया उपर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १०४२६).
औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थंकर करूं; अंति: पामै अमर विमान, गाथा-२४. ४०५१४. (#) सीमधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १२४३२).
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिरिमिंदिर साहिब; अंति: राखो तुमारे पास,
गाथा-१३. ४०५१५. (#) सीमदस्वामी तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १२४३२).
सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: पूरब पुकलावती हो सिध; अंति: तो वांदुबे करजोड, गाथा-९. ४०५१६. (#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह वदानफल गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १५४३३).
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१५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक ल्यावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, पंडित. हरसुख, पुहिं., पद्य, आदि: कुमत कु छोड दे भाई; अंति: हरचरणा चत्त ल्याइ, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पंडित. हरसुख, पुहिं., पद्य, वि. १८९१, आदि: काया काची रे भव जीवा; अंति: चरणा चत्त ल्याई रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. दानफल गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४०५१७. (+#) सिद्धसरस्वती स्तवन व यंत्र-मंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२३४१०, १२४३८-४०). १.पे. नाम. महामंत्रनिबद्ध पवित सिद्धसरस्वती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवंत्युत्तमसंपदः, श्लोक-९, (वि. कृति के अंत में
सरस्वती मंत्र भी दिया गया है.) २. पे. नाम. यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४०५१९. (+#) पल्लवियापार्श्वगुणस्तुति गझल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १३४३०). पार्श्वजिन गझल-पल्लविया, मु. दीप, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: ससीवदनी वरदायनी सुमत; अंति: भवोभव
आपज्यो पद सेव, गाथा-७३. ४०५२०. सीखबहुत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२०.५४१०, १२४३५).
शीखबहोत्तरी, रा., गद्य, आदि: अरिहंत देव को मन मै; अंति: तिणरो उपगार मानीजै. ४०५२२. (+#) पाक्षिकप्रतिक्रमण आदि विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. धनली,
प्रले. मु. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १७४३८). १.पे. नाम, पखीचौमासीसंवच्छरीपडकमणानी विधि, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वदैतु लगै देवसी; अंति: संसारदा० पछै वडीशांत. २. पे. नाम. पोसह लेवा-पारवारी विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पछै ४ नोकार; अंति: ३ कही माथै पाय घालवी. ३. पे. नाम. सामायिक लेवा-पारवानी विधि, पृ. २आ, संपूर्ण.
सामायिक विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावहि पडिकमीजै; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ४०५२४. (#) ऋषमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३४१२, १५४४६).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (१)लभ्यते पदमव्ययं, (२)जैनो
धर्मोस्तु मंगलं, श्लोक-९७. ४०५२७. (+#) पंचपरमेष्टि वृद्धनवकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बगडी, प्रले. पं. अजबसुंदर (गुरु पं. ज्ञानसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ९४३८). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेवा
देज्यो नित, गाथा-१३. ४०५३०. आलोअणजीवरास पदमावतीनी कहेल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४१०, ३५४१४-१७).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पदमावती जीव; अंति: मुझ
मच्छामी मीदूकडं, गाथा-३६. ४०५३२. (+) अइमुत्तामुनि व भरतबाहुबलि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२३४१२, १८४५१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० १. पे. नाम. अइमत्ताऋषि सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदिनइ; अंति: ते मुनिवरना पाया,
गाथा-१८. २. पे. नाम. बाहुबलि सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयो; अंति: विमलकीरति सुखदाय,
गाथा-१२. ४०५३६. नवपदगुणवर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वलादनगर,
प्रले. मु. खुसालरत्न (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ); गुपि.मु. शिवरत्न (गुरु पं. प्रतापरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजीतनाथ प्रसादात्., जैदे., (२४४११.५, ६४३३-४३). नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सूसोभता, गाथा-११,
(वि. प्रतिलेखक द्वारा दो गाथा की एक गाथा गिनकर परिमाण गाथा-११ लिखा है.) ४०५३७. (+) बिसवहरमानजी को तावन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५,१४४२९). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. आसकरण, रा., पद्य, वि. १८३५, आदि: श्रीमिंदर जुगंमंदरो; अंति: समरूं बारूं बारोजी,
गाथा-१२. ४०५३८. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१७.५४१०.५, १२४२४). सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगो हो; अंति: मुझ आवागमण निवार,
गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखकने कर्ता नाम की जगह पर सीमंधरजिन का नाम लिखा है व बीच की तीन गाथाएं अंत में
लिखी हैं.) ४०५३९. (+#) नेमराजुल लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १३४३५).
नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंतगीर; अंति: सीस रूपविजेय तुम दास, गाथा-१९. ४०५४०. (+#) पासजिन स्तवन आदि संग्रह व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. किनारी
खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. फलवधीपासजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. धर्मकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सोहई सोहई रूपई रे; अंति: वांछु चरण निवास,
गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, पं. धर्मकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: रंग भरी राजुल वीनवइ; अंति: धर्मकुशल तुह्म दास, गाथा-९. ३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन शुद्धइ करो; अंति: व्रत पालो निशदीस, गाथा-५. ४०५४१. २० स्थानकतप गणणुंव अक्षौहिणीसैन्यमान श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रत की
दाहिनी ओर के हासिए में १ से २० तक ओली की गिनती संख्या लिखी गई है., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. २० स्थानकतप गणj, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु., को., आदि: ॐ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: २०नौ काउसग्र कीजें, पद-२०. २. पे. नाम. अक्षौहिणीसेन्यमान श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४०५४२. (+) अन्योक्ति काव्य व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १०-१३४४३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. अन्योक्ति काव्यानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
अन्योक्ति काव्य, ग. वृद्धिविजय, सं., पद्य, आदि: अधिरुह्य गिरेः शिरः; अंति: धर्मः सततं समेधताम्, श्लोक-१३. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४, (वि. पार्श्वचंद्रगच्छीय सागरचंद्रर्षि निर्मित श्लोक-२,
हेमचंद्रसूरि रचित श्लोक-१ एवं भट्टोजी कृत श्लोक-१ का संकलन है.) ४०५४३. (-2) अष्ट गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ९४२५).
पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमिअचरण; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. ४०५४५. (+#) पडिक्कमणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किनारी का कोना खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल
रहा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९,
(वि. प्रतिलेखकने अंतिम श्लोक का संकेताक्षर देकर छोड़ दिया है.) ४०५४६. (+#) कल्याणमंदिर स्त्रोत्रं, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४०५४७. (4) पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सिझाइ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है अतः पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १८४५२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धवल मंगल तिहां दीजै, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम. औपदेशिक सिझाइ, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा म पडीस; अंति: सिवपुर पामै रंगरे, गाथा-७. ४०५४८. (-) वज्रपंजर स्त्रोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., ., (२३.५४११, ११४२७).
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४०५४९. दिसाणुवाई, २४ जिनवर्ण स्तवन व साधुलक्षण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४१२,
१४४४१). १.पे. नाम. दिसाणुवाई, पृ. १अ, संपूर्ण.
दसाणुवाइ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव समच्चइ सर्व थोडा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. २४ जिनवर्ण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पहु उठी प्रभाते वंदु; अंति: हरख हुलास प्रानी, गाथा-११. ३. पे. नाम. साधुलक्षण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: त्यारण तिरण जिहाज; अंति: ते पावें भवपार, गाथा-११. ४०५५१. (#) संबोधसप्ततिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १०४२८).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण तक
४०५५२. सरस्वती जापविधि व अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११, १२४३२).
१.पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. शारदा अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: पूजनीयात् सरस्वती, श्लोक-८. ४०५५३. (+) लोभपरिहार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०, १०४२२).
औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पहोचें सयल
जगीस, गाथा-८. ४०५५४. (#) शेजाजी स्तूती, सोमासानि ल्यामणी व केस कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी-१९२६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१२, १४४३४). १. पे. नाम. शत्रुजाजी स्तूती, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नडुलाइ, प्रले. मु. प्रमाणविजय.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजे गीर; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. २. पे. नाम. सोमासानि ल्यामणि, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९२६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, रविवार, ले.स्थल. पोसालिया,
प्रले. पं. दोलतरुचि.
चोमासा लावणी, पुहि., पद्य, आदि: इंद्र महाराज महाराज; अंति: किलंगी पाणि मे, गाथा-४. ३. पे. नाम. केस कल्प, पृ. १आ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४०५५५. (#) देवतानो विरहकाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, २९४८-२०).
देवविरहकाल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भवनपति १० विंतर १६; अंति: मुहुरति चउवीस घडी. ४०५६०. (#) आध्यात्मिक पद व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३३, ज्येष्ठ कृष्ण, १ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,
ले.स्थल. पाली, प्रले. छोगालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, १९x४८). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तम तजो जगत के ख्खाल; अंति: दास० गुण गाया तेरी, गाथा-४. २.पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: श्रीआदनात्त नीरबांण; अंति: दास लगी मेरी थाणी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुकरत की बात; अंति: दास० जोर तेरो नई रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण..
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम तजकर राजल नार; अंति: जीनदास सुणौ जीनबर रे, गाथा-४. ४०५६१. (+#) पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भाग्यचंद; पठ. श्राव. नेमकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ८x२५). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. ४०५६२. (+) संखेरापार्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. रुपचंद लालचंद कुलगुरु; पठ. श्राव. नागजी रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १४४२७). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: पास संखेसरो आप तूठा,
गाथा-७. ४०५६३. (#) गर्भावास व ढंढणरिषि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर
पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १३४३५). १.पे. नाम. गर्भावास सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गर्भावार्श इम चिंतवे; अंति: मुगति मझारि
तो, गाथा-९. २.पे. नाम. ढंढणरिषि सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणरिषिने वंदणा हु; अंति: कहे जिनहरख सुजाण रे, गाथा-९. ४०५६४. (+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ९४२८).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिधाचलमंडण सामी; अंति: इम विमलाचल
___ गुण गाया, गाथा-१५. ४०५६५. (+#) जंबुस्वामी आदि सज्झाय संग्रह व आध्यात्मिक होरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक
अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४४११.५, २७४४३). १.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: छोडो नां जी कंचणनै; अंति: पाम्या हरख हुलासो, गाथा-१३. २.पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: चाखो रे नर समतारस; अंति: घणी राखिज्यो समता जी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जेंपुर, प्रले. जगु.
पुहिं., पद्य, आदि: मुनषा देहि पाया को; अंति: आग थारो एक तार रे, गाथा-१०. ४०५६७. (+) जिनकुशलसूरि भास व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२३.५४११, १३४२५). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरीसरू; अंति: होज्यो सदाई सहाय, गाथा-९. २. पे. नाम. अरबुदाचलमंडण श्रीआदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आबूतीरथ अतिभलौ; अंति: यात्रा
जैनलाभसूरीसरू, गाथा-१९. ४०५६८. (#) अंतरीक्षजीरोतवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११, १२४२५). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वसन द्यौ सरसती; अंति: दरसण
हम वीसु सदा, गाथा-५५. ४०५७५. (4) पंचमआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १५४४१).
पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोतम सुणौ; अंति: एह सिज्झाय रसाल रे, गाथा-२१. ४०५७७. (+-#) चतुविशति नमसकार व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. अमरबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. चतुविशति नमसकार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१०. २.पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) ४०५७८. (+#) विमलजिन आदि स्तुति संग्रह व स्थूलिभद्ररूपकोशा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२५). १. पे. नाम. विमलजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सौभाग्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१५७ विमलजिन स्तुति-मालपुरामंडन, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर अरचित; अंति: नित्य उछव मंगल
करू, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सेरपुरा मुखमंडणउ; अंति: सौभाग्यनि सुखकारणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्ररूपकोशा गीत, मु. माल, पुहिं., पद्य, आदि: आवति कोश्या सणगार; अंति: कहि धन जनम जीइरे, गाथा-३. ४०५७९. (+#) सामायिकबत्तीसदोस सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ११४३२).
सामायिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी पाय; अंति: भाख्यौ विसवावीस, गाथा-१३. ४०५८०. (#) नेमीनाथजीरो बारेमासियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२,
१३४३९).
नेमिजिन बारमासो, मु. ज्ञान, पुहि., पद्य, आदि: सावणमास सखी लग्यो; अंति: ती केवल किना प्रकासा, गाथा-१२. ४०५८१. (#) २५ क्रिया गाथा सह टबार्थ, १४ गुणस्थानक नाम व २२ परिसह दृष्टांत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४१२, ४-१७४३१-४८). १. पे. नाम. पंचवीस क्रीया सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
२५ क्रिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: काइअ अहिगरणिया पाउसि; अंति: पिज दोसेरियावहिया, गाथा-३.
२५ क्रिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कायाइं करी कर्म; अंति: ते इर्यापथीकी क्रीया. २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९७३, भाद्रपद शुक्ल, १४, ले.स्थल. फलोघी, प्रले. मु. लाभचंद
महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.
मा.गु., गद्य, आदि: मीथ्यात्व गुणठाणु; अंति: अजोगी गुणठाणुं १४.. ३. पे. नाम. २२ परिसह दृष्टांत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या
बाद में लिखी गई है. २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: सूधा परीसह हस्ती; अंति: (-), (पू.वि. परिषह-१९ तक है., वि. परिषह नाम के
साथ में दृष्टांत का मात्र नाम दिया गया है.) ४०५८३. (+#) बृहत्सांति व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रावण शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सांडेरा,
प्रले. पं. तेजकुशल; पठ. मु. धनकुशल (गुरु पं. तेजकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १६x४८). १. पे. नाम. बृहत्सांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०५८४. (#) लघुशांति व सोमरत्नसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १६७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१५४४२). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २. पे. नाम. सोमरत्नसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
सोमरत्नसूरि गीत-आगमगच्छीय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सामिणइ मनि धरी; अंति: प्रतिपु एह मुणिंद, गाथा-६. ४०५८५. (#) नवअंगपूजा दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४१०,११४३१).
नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरि संपुट पत्रना; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१५८
४०५८६. (०) बृहच्छांति व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४११, १३४३२).
१. पे. नाम. बृहच्छांति, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
वृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा.
,
२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. कपूरशेखर, पुडिं, पद्य, आदि अविसी अविचल पदवासी, अंतिः जीवन तुं दीप्यारी, गाथा-५. ४०५८७. (+४) नेमिजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ कृष्ण, १ मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्रले. पं. न्यानचंद, पठ. श्राव. रुप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११, ११४३२).
१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
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मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी कंत पाछा, अंतिः नेम अनुभव कलीया रे, गाथा- १५.
२. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण,
ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद जगत उपगारी अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.)
४०५८८. दीवाली का स्तवन संपूर्ण वि. १९४३ श्रावण कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, स्थंभपूर, प्रले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४११.५, १३४३८).
दीपावली पर्व स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि सुर सुख भोगवि, अंति: जस कमला नीत वरी, गाथा १३. ४०५८९. (#) गौतमपृच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., १३४३९).
(२४.५X११,
४०५९०.
गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वाम प्रीछ्या; अंतिः वच्छ गोइम मांगीयांह, गाथा-३४. (+#) धन्नाअणगार व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११. १७x४०),
१. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुं तो दीपै हो धना; अंति: हुया छै जै जैकार, ढाल -२, गाथा-२६.
२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सोहवत थोडी रे जीव; अंति: कांई होसि जी, गाथा- ६.
४०५९१. (#) चरखा की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२३.५X११.५, १२X३४).
चरखा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: गढ सोरठसु वाडी बुलाय; अंति: घर को माडण चरखो, गाथा-१७.
४०५९२.
(4) सीमंधरजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x१०.५. १७४४४०५५).
१. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधर सुणिजो मेरी अंतिः प्रभुजी ए अरदास रे, गाथा- ७.
२. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सर सरि कमल न नीपजै, अंतिः निश्चेय पार लहेस रे, गाथा-५.
३. पे नाम, भील की सीझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
भीलडी सझाय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रसरसत शामण वीनवं अंतिः कह्यो मुझ असीस देजो, गाथा- २३. ४०५९३. (# ) नंदीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४११, १०x३६).
नंदीसूत्र सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो; अंति: तरण अवतार रे सनेही, गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१५९
४०५९४ (+) आध्यात्मिक पद व लावणी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१)=२, कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है अतः पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
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( १९x१०.५, ९X२०-२४).
१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: समज मन मेरा मतवाला; अंति: देखो जीनदास का चाला, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
२. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. २अ संपूर्ण
मु.
जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सीस नित नमु नाभीनंदन, अंति: सीस चरणे सें नमावे, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
३. पे नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण
पुहिं., पद्य, आदि: अरे माई मेरो नेम गयो; अंति: तरसे हमारे नेंणा, पद-५.
४. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. जैन गाथा", मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-२.
४०५९५. (+#) त्रेसट्ठिलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२१.५X१०.५, १४x२८).
६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मन धार, अंति: नमै मुनि वसतौ मुद, गाथा - १८, (वि. कुल ढाल ४ लिखा है.)
४०५९६. (#) औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४१०.५, १२४२९).
१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. साधुजी ऋषि, रा. पद्म, आदि आउखो टुटानें सांधो अंतिः होजो मुझ नीसत्तार रे, गाथा-८.
"
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सबे दुख टालेगे; अंति: त्यार त्यार भव तार, गाथा- ६. ४०५९७. (+४) गजसुकमालमुनि स्वाध्याय व मृगापुत्रनी सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १९x४०-४४).
१. पे नाम. गजसुकमालमुनी स्वाध्याय, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकां नगरी ऋद्धि, अंतिः सुगुरु सहाय रे,
ढाल- ३, गाथा- ३८.
२. पे. नाम. मृगापुत्रनी सिझाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु, पद्य, आदिः सुगरीब नवरी सुहांमणी, अति ताम प्रणाम रे, गाथा- २३. ४०५९८. (४) बृहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२,
१३X२५-३१).
बृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः शिवं भवतु स्वाहा (वि. इस प्रति के अंत में 'श्रीशांतसूरिवादिवेतालीकृतबृहशांति' इस प्रकार लिखा है.)
(#)
४०५९९. साधु अतीचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. मु. ऋद्धिसोम, दत्त. मु. खुशालसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१२, ११४३४).
"
साधुपाक्षिक अतिचार थे. मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः तस मीछामि दोकड, ४०६०१ (+) शांतिजिनस्तुते निश्चयव्यवहार स्तवन, संपूर्ण वि. १८८३ मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, घ्राणपुर, प्रले. पं. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१२.५, १३५३३).
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१६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिनेसर
केसर; अंति: जसविजय बुध जयवरी, ढाल-६. ४०६०३. (+#) अजितशांति स्तोत्र व मांगलिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३२). १. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___ आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: सुखी भवतु लोकः, गाथा-४४. २.पे. नाम. मांगलिक गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४०६०५. (#) साधारणजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२०४९, १५४४४). १.पे. नाम. पारस्वनाथ तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराय मन; अंति: मुक्ति सूख लहोजी, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है एवं
गाथांक नहीं लिखे हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: एक सरुपे बिचार; अंति: सुरगा सूख लहोजी, गाथा-१. ३. पे. नाम. रीषवदेवजी को सवेन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: आजरूषब घर अबे; अंति: साधकीरत गुण गबे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूंत्रीहंकाल; अंति: होय सुगर का चेला, गाथा-५. ४०६०६. (+#) कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४०६०९. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, ११४३९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ४०६११. (4) नवपदतपना नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ११४३५). नवपदतप नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पदे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साधु के
१२ गुणों तक लिखा है.) ४०६१३. (+#) देशातरी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२-१४४३२-३६).
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन समापो सारदा; अंति: इम तवयो छंद देशांतरी, गाथा-४८. ४०६१४. (+#) स्त्रोत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संधि सूचक चिह्न-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४३०).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ४०६१६. (+#) भववैराग्यशतक व जिनवचनमहिमा गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४३८). १.पे. नाम. भववैराग्यशतक, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीवो सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० २. पे. नाम. जिनवचनमहिमा गाथा सह टीका, पृ. ४अ, संपूर्ण.
जैन गाथा*.प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
जैन गाथा की टीका*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४०६१७. (#) साधारणजिन रेखताव पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२४.५४१२, १३४२७). १. पे. नाम. साधारणजिन रेखता, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चेतन, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु को सुमर रे; अंति: अगर जो ग्यान पाया है, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन रेखता, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा मन्न महावीर सो; अंति: आज जिनवर का, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुमतजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन पद, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन दीजै सुमत जिनेस; अंति: चेतन अविचल धामी रे. गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. चेतन, पुहि., पद्य, आदि: पारसजिन सुन वीनती; अंति: अब के उतारो पार, गाथा-६. ४०६१८. (#) साधारणजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप
गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, १५४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद-मोक्षस्वरूपगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहि., पद्य, आदि: सिद्ध रिद्ध शुद्ध; अंति: जीव मोक्ष वेग वर रे, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहि., पद्य, आदि: जय जय जिनराज आज; अंति: मान मोड विनती गुजारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-देवगुरुधर्मतत्त्वगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: देव गुरू धर्म तीन; अंति: कहै सुगति पधारे, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधुमनोरथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहि., पद्य, आदि: तीन मनोरथ धारो साधु; अंति: जल्दी मोक्ष पधारो रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. ११ गणधर पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहि., पद्य, आदि: गणधर के गुण गावो; अंति: सदा सुख पावो रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदे तीर्थंकर भगवान; अंति: वेगसि कारणीरे. गाथा-४. ७. पे. नाम. ४ शरणा पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चारों शरणा धार; अंति: गावे जीत बधावणारे, गाथा-४. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: देवाधिदेवा सेवा मेवा; अंति: कर दो केवलधारी हो. गाथा-४. ९.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहि., पद्य, आदि: सिद्ध निरंजन में; अंति: मोक्ष मिले छिन में, गाथा-४. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: मंगल गावो रे मंगल; अंति: भद्दा जीत बधावोरे, गाथा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद-विनयोपरि, पृ. ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-विनयोपरि, म. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: विनय कर भाई विनय कर; अंति: गुण गावे कर
नरमाई रे, गाथा-४. १२. पे. नाम. धर्मलक्ष्मी पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: लक्ष्मी आई रे; अंति: गुण गावे करो कमाई रे, गाथा-४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम. औपदेशिक पद-नवकारवाली, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: माला प्यारी रे माला; अंति: आलयणा है हर वारी रे, गाथा-४. ४०६२१. (#) धर्मनाथनो तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रास, प्रले. मु. विमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३७). धर्मजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: पनरमा जिण तणा गुण; अंति: जीव ऋख्या जीण कही, ढाल-३,
गाथा-१५. ४०६२२. (#) पूजा बिध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ११४३५). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अमर; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१, गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४०६२३. हितसिक्षेपदेश सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. कस्तूरसागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, ९४३२).
पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवलभ गुण गाय, गाथा-१६. ४०६२४. इग्यारसनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से संशोधन किया है., दे., (२४.५४११.५,११४४१). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सेप
सजाय भणी, गाथा-१५. ४०६२५. (#) वीसस्थानिक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, पौष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३६).
२० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमी; अंति: पभणे शुभ मने रे, गाथा-८. ४०६२६. (+) चंद्रप्रभजिन आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. लवजी माहावजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनी मे वरप्रदा, श्लोक-५. २. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: घंटाकर्णो नमोस्तु ते, श्लोक-४. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा११, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० तुह; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-११. ४०६२७. (4) वीरजिन आदि पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४,
प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४९.५, १३४२५). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एहथी वडाई प्यारा, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१०
अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नेम पद, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नेम न जाणे मोरी पीर; अंति: फाड्या चीवर झरररर, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मिल आवो; अंति: वीनठीसागर मुदा, गाथा-६.
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१६३ ४. पे. नाम. वीर पदम्, पृ. २आ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वाजत रंग वधाई नगरमा; अंति: दीन दीन पुजीस सवाई, गाथा-३. ४०६२८. (+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५४१२, ११४२९). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतक सुद पंचमी तप; अंति: जय अधिक अधिक
सुविचार, गाथा-४. ४०६२९. (#) माहाबीरजीरो तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६४३६). महावीरजिन स्तवन, मु. सुखलाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालजी० तपस्या दीपती, गाथा-४१,
(पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक नहीं है.) ४०६३०. (+#) शंखेश्वरपार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३४).
पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीहंसरत्नायितं, श्लोक-११. ४०६३२. (+#) जिनआगमबहुमान जिनशासनथंभ फूलडांव औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८२९, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम,
पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरमग्राम, पठ. श्रावि. रंगु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४३४). १. पे. नाम. जिनआगमबहुमान जिनशासनथंभ फूलडां, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जिनागमबहुमान स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदि: श्रीअरिहंत मंडप भलो; अंति: उत्तम
कोड कल्याण ए, ढाल-२, गाथा-३१. २. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. २आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ४०६३४. शांतिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४१०, १५४३०-३८). १. पे. नाम. संतनाथजीरो तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, रा., पद्य, आदि: सोलमा जीणजी संतनाथ; अंति: अवररीदे नही आण्यो, गाथा-२४. २. पे. नाम. संतनाथजीरो तान, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कस्तुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: बाणारसी नगरी सोभती; अंति: भव भव तुम आधार,
गाथा-७. ४०६३५. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३०).
औपदेशिक सज्झाय, मु. गुलाबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने वंदन करी; अंति: पभणे अती चीत लाय, गाथा-१७. ४०६३६. (+#) धन्नाकाकंदी सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. धर्मदास
किसोरदास वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४५). १.पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा; अंति: कल्याण सुरंगइरे,
ढाल-२, गाथा-१५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थ, ग. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी ते प्रीउनि; अंति: सामु देख वारि,
गाथा-११.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०६३७. (+#) जिजिकारं प्रभातीयं व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य.सा. रत्नादे आर्या,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३५). १. पे. नाम. महापुरुषगुण प्रभाती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महापुरुषगुण प्रभाति, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिकारं जिजिकारं जग; अंति: वाजिकारं जिजिकारं,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
___मा.गु., पद्य, आदि: पास पास नति नाम जपता; अंति: सीझे सवि काम जी, गाथा-३. ४०६३८. (+#) चिंतामणीपार्श्वजिनाधिराज स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५७). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीज
ददातु, श्लोक-११, (वि. अंत में पार्श्वचिंतामणी मंत्र व जापविधि भी संलग्न है.) ४०६३९. (#) शालिभद्र गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३४).
धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर वहिरण; अंति: राजसमुद्र सुखकार, गाथा-१६. ४०६४०. (+#) नवतत्त्व प्रकरण यंत्राणि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४५-६६).
नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण चेतन; अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध. ४०६४१. (+#) वडेरा उपर विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २०, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ३०४५६). १.पे. नाम. वडेरा उपर निखेपा, पृ. १अ, संपूर्ण.
नामादिनिक्षेप विचार, रा., गद्य, आदि: नाम वडेरो १ थापना; अंति: भाव वडेरो सिद्ध ४. २.पे. नाम. पांचनय वख्यान उपर, पृ. १अ, संपूर्ण.
नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वरषत वचन झरी; अंति: सहज सुभाव फरी हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जगराम, पुहि., पद्य, आदि: पुनः यो अवसर फिर; अंति: सदगुरु तै समजाई, गाथा-५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: समकिस श्रावण डायोरी; अंति: निज निश्चै घर पायो, गाथा-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: कीयै आराधना तेरी; अंति: नवल चेला तुम्हारा है, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी वाजे नगारां की; अंति: हुवै तो पांउं जोर, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की
एक गाथा गिनी है.) ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: प्रभुजी आदिपुरुष; अंति: आपौ
सुख अविकार हो, गाथा-११. ९.पे. नाम. भक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुरदासजी, पुहिं., पद्य, आदि: मुम गरीब के निवाज; अंति: सरण तेरे आया, गाथा-३.
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१०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पु.ि, पद्य, आदि: दरवाजे तेरे खोल अंतिः मुखडा की छबी जोर, गाथा-४,
११. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चवद कै पार; अंति: चरन सरण का दासा है,
१२. पे. नाम. गोडी स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरो म्हारो मानो रे; अंति: साचो सेवक जांणो रे,
गाथा ५.
१३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हर्षकुशल पु,ि पद्य, आदि: तुम देखो विराजित है; अंति: फीक पडै ततकाला, गाथा-३.
१४. पे नाम, औपदेशिक पद, प्र. १आ, संपूर्ण
मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहां रे अग्यानी जीव; अंति: वाको सहज मिटावे, गाथा - ३.
१५. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: गुण अनंत अपार प्रभु अंतिः प्रभुजी तुम आधार, गाथा - ३.
१६. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण,
गाथा - ३.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरणा हक जाना, अंति: मुसलमान कुराना, गाथा-४.
१७. पे, नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ. संपूर्ण.
मु. ज्ञानसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कोन धर्म को मर्म लहे, अंतिः कोन पावत हेरी, गाधा-५. १८. पे. नाम. योगीमहात्म्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. राज, मा.गु., पद्य, आदिः आली धन ओ पीओ, अंति: नखसिख परिवारु डारी, गाथा - ३.
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१९. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि अविन्यासीनी सेझडी, अंतिः तेहथी प्रीत बंधाणी,
गाथा - ६.
२०. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण,
मु. गुणविशाल, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि तारेगें; अंति: मेरी करो प्रतिपाल, गाथा- ३.
४०६४२. (*) प्रभातिना पडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २ अन्य पं. अनोपसागर, पं. अजबसागर, पं. नरेंद्रसागर,
पं. जसरूपसागर, मु. भाग्यसागर, मु. उमेदसागर, गोकलुजी, लीलाजी, चिमनाजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत,
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x९, ११४२८-३२).
"
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरिवावही पडिकमीजे, अंतिः सव्वलोए अरिहंत ०. ४०६४४. (+#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रति के अंत में
'रायकवरी की भुक छु दुजो उतार्या छै' इस प्रकार लिखा है. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५x७.५, ६X३९).
१६५
जैनदुहा संग्रह प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-) अंतिः (-), गाथा-२.
3
३. पे नाम, पुजानी बीधी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तु धन तु धर संत, अंति: ओर सहु भर पामी, गाथा-५.
४०६४५. (+#) पंचमी स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५- २ (१ से २ ) = ३, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, १३४३६).
"
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१. पे. नाम. पंचमी स्वाध्याय, पृ. ३अ संपूर्ण, वि. १९३० भाद्रपद कृष्ण, १३ अधिकतिथि, प्रले. पं. दोलतरुचि
पंचमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण पचाउले; अंति: कांतीवीजय गुण गाय, गाथा- ७. २. पे. नाम औपदेशिक दुहा, पृ. ३अ संपूर्ण, पे. वि. प्रथमजिन प्रसादेयात्.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रकारीपूजाविधि स्तवन-सुविधिजिन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुवधिनाथनी पुजाचार; अंति: विमल
कहे मन उलास, गाथा-१३. ४. पे. नाम. शांति स्तुती, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नुमु सीर; अंति: मनवंछीत
सिवसुख पावे, गाथा-२१. ५. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. न्यायविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही उद्यानमा; अंति: पामो परम कल्याण, गाथा-९, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम
न्यायसागर लिखा है.) ६. पे. नाम. विविधतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, पठ. मु. पुनमचंद (गुरु मु. दोलतरुचि), पे.वि. श्रीमाणभद्रजी सते.
सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयरैवताद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलं, श्लोक-५. ४०६४६. नववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४३३).
९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नववाडि मुनिसर मनधरो; अंति: ते साधूस्यूं नेह रे, गाथा-११. ४०६४८. (#) सिधाचलजीको तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. पं. विनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, १०४२४).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा निनाणु; अंति: पदम कहे भव तीरियै, गाथा-१०. ४०६४९. (+) वृद्धिशांति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३५).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: तस्मै श्रीशांतये नमः. ४०६५०. (#) पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रत के अंत में 'सेतुजे
ऋषभ समोसर्या भला गुण' इतना लिख के अपूर्ण छोड दिया है. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०, १३४४५-४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: वरकाणापुर मंडण पासजी; अंति:
भावसागर जयकार जी, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: खटपट छारि द्यो सहू; अंति: गायो राग ए गोडी, गाथा-१३. ४०६५२. (#) धर्मजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२०४१०.५, २२-२४४५०-५६). १.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: देखो माई अजब रुप है; अंति: सेवा हेत सवेरो, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
__आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर भयो भयो भयो जाग; अंति: सुकल सुख मंगलमाल रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पास स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: पास रंग लागा चोल रंग; अंति: दिन अब जग्गा, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: थलना ठाकुर ज्ञान; अंति: रभु० सेवक सनमुख जोय, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: हम लीने प्रभु ध्यान; अंति: सफल करो दान मै, गाथा-५. ६. पे. नाम. अर्बुदागिरितीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवोजी राजि; अंति: सकल संघ सुख करीय,
गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१६७ ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: आस खडा मेदान मे; अंति: हिर दूजा देव निरंज, गाथा-५. ८. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम हो बहु उपग्गारी; अंति: जाउं मै बलहारी, गाथा-६. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने रे म्हारा आतम; अंति: वरतूं सिद्ध वधाई रे,
गाथा-५. १०. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: धन धन पाराकर देस; अंति: प्रेम अधिक जिणचंद, गाथा-७. ४०६५३. कालग्रहण विधि वयोगारंभ विधि श्लोक-आचारदिनकरगत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्रले. मु. विद्याविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत मरम्मत करने योग्य., जैदे., (२४४१०.५, १५४५४). १. पे. नाम. कालग्रहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (९००) द्रुतं विद्याविलासेन.
प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पच्छिमदिसि थापनाचारि; अंति: पद उच्चार पूरवकलेवा. २. पे. नाम. योगारंभ विधि श्लोक-आचारदिनकरगत, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४०६५४. (+#) पार्श्वजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं,
अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १२४२४-२७). १. पे. नाम. पंचमि स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, ५. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरु पाय; अंति: भगत
भाव प्रसंसियौ, ढाल-३, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण माहरा प्रभुजी; अंति: हीमत रे सुरतरु आनंद, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
पुहिं., पद्य, आदि: जिनजी जो तुम्ह तारक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) ४०६५५. (+#) छिन्नूजिन स्तवन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १४४३२). १. पे. नाम. छिन्नूजिण स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमांन चौवीसी वंदु: अंति: प्रणमै सदा
जिणचंदसूर, ढाल-५, गाथा-२३. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. ४०६५६. (+#) पौषध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ९४२७). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं,
गाथा-३३. ४०६५७. (+#) पार्श्वजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १९४३९). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखकने
गाथांक नहीं लिखा है.)
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१६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०६५८. (#) द्वारका रिधि विस्तार सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. देसणोक, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४०). द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमि; अंति: थायज्यो मोय ए,
गाथा-३२. ४०६५९. (+#) गजसुकुमाल व ब्रह्मचारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सा. गुमानी (गुरु सा. जीउ);
गुपि.सा. जीउ; पठ. भखतोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १५४३६). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजीणराज तणी; अंति: पहतो तो मोख मे, गाथा-४१. २. पे. नाम. ब्रह्मचारीनी सिझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण..
९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पीइ सुह पीडक; अंति: वीजदेव के सुर के, गाथा-१३. ४०६६०. (+#) साधारणजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २०, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये
हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १९-२१४४१-४६). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण..
मु. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: मेटो विथा रे हमारी; अंति: नैनसुख सरन तिहारी, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
म. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: दुख सै काहि डरेरे, अंति: ज्यु सिवकमला वरेरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमीश्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. हरख, रा., पद्य, आदि: काई हठ मांड्यौ; अंति: थानै मुगतनौ वास, गाथा-५. ४. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोय केसैतारोगे दीन; अंति: रूपचंद प्रभू संसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मे तो गिरनारगढ देखण; अंति: उनही के गुन गाऊरी, गाथा-२. ६. पे. नाम. बारे मासरी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
कृष्णराधा बारमासा, पुहिं., पद्य, आदि: पेहली महिनो आसाढ लगी; अंति: सुध बुध दीजै किसन, गाथा-१२. ७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: मेरी पति राखी ते; अंति: बांह ग्रह्यां की लाज, गाथा-४. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. दोलतराम, पुहिं., पद्य, आदि: घरी घरी पल पल छिन; अंति: भवसागरसुतीर लेरे, गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: पास जिणंदा मेरी निजर; अंति: दास चाहत दीदाराबे, गाथा-५. १०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समझ समझ जीव ग्यान; अंति: अब हूबा भव सार, गाथा-२. ११. पे. नाम. औपदेशिक सवैयो, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: काम न आवत काज न आवत; अंति: पैजार की दीजै, गाथा-१. १२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. खुशालराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा जीवडा लगा; अंति: भव भव पातिक भगा, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
२ की जगह गाथांक ३ लिखा है.) १३. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरोरे; अंति: शिवतरु बीज खरोरे, गाथा-३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१६९ १४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहरा; अंति: ग्यांन नही गहिरा. गाथा-५. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. कीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: उमट आए मेह अंबर पर; अंति: पारस प्रभु गुण गेह, गाथा-४. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. कीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: उमट घटा घनघनोर; अंति: कीर्ति कहत कर जोर, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: निपट ही कठन कठोर; अंति: रयण वीति भयो भोर, गाथा-४. १८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
शिवाराम, पुहिं., पद्य, आदि: लगी वो प्रीत नही; अंति: प्रीत नही छूटैरे, गाथा-३. १९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे नेम मिले तौ; अंति: ग्यान की वेल वरीजीयै, गाथा-४. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु भज ले दिन; अंति: ऐवंती अब तेरो आधार, गाथा-५. ४०६६१. (+#) पोषवदिदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४०).
पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: येन शीघ्रंरचयांचकार, श्लोक-७५. ४०६६२. (+#) आराधना, संपूर्ण, वि. १७०३, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४४२).
अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: नायव्वो वीरियायारो. ४०६६३. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३, पठ. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ४०६६५.(#) श्रावक ११ प्रतिमा विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४५४). १.पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पहिली प्रतिमा मास १; अंति: समक्ष घरि आवइ. २.पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: दंसण१ वयर सामाइय३; अंति: वज्जए१० समण भूएअ११, गाथा-१. ३. पे. नाम. साधुप्रतिमा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: मासाईय सतता पढमा; अंति: भिक्खु पडिमाण बारसगं, गाथा-१. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: अब में जान्यउहइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२
तक लिखा है.) ४०६६६. (#) १० श्रावक सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १४४५५). १.पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: आणदरें सिवानंदारे; अंति: ऋष रायचंद इम भास हो, गाथा-१७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हो जी जबुदीपें जाणीऐ; अंति: श्रीमिद्रस्वामि, गाथा-१७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१७०
४०६६७. (#) चतुर्विंशतिजिन चैत्यवंदन व स्तुती पार्श्व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे. (२५x१२. १४४४२).
१. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. ग. सोभसागर,
२४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य, अंतिः त्रैलोक्यलक्ष्मीसुरा, श्लोक ८.
२. पे. नाम. स्तुती पार्श्व, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करुं, अंतिः संघ आस्था पूरणी,
गाथा-४.
४०६६९. (#) भारति व सूर्य स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२१४९.५, १४४३२-३८).
१. पे. नाम. भारति स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र- अष्टोत्तरशतनामगर्भित सं., पद्य, आदिः धिषणा धीर्मतिर्मेधा अंतिः कल्मषं मे स्वाहा, लोक-१५. २. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सं., पद्य, आदि वाराणस्यां वदा मुक्त, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.)
४०६७२. (+) शांतिजिन चेतवंदन व मोहराजानी सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक की जगह से खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित., दे., (२४.५X११.५, १७X३६).
१. पे. नाम. शांतिजिन चेतवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. लास.
शांतिजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: शांतिं शिवं शिवपदस्य अंतिः यरहिता न हि वीतरागं, श्लोक ८.
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२. पे नाम, मोहराजानी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल, मणाउद्र, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
""
मोहराजा सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं पद्य, आदि मोहराय से लडीया ने अंति: जिन सेवा नडीवा बे, गाथा २२. ४०६७३. (+) शांतिजिन स्तव व सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १०x४४).
१. पे. नाम. शांतिजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: दुरितदहननीरं पापपाथो अंतिः वः शांतिनाथस्य नाम, श्लोक ७.
२. पे नाम, सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः,
श्लोक- ९.
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४०६७४. (४) एकादिसंख्या निर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२१४१०.५, १५४३६-३८).
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एकादिसंख्या नाममाला, सं., पद्य, आदि आदित्यमेरुचंद्रात्म, अंतिः संख्या अमी ज्ञेवाः, गाथा- ३०. ४०६७७. (+#) नेमिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४११, १४४४०).
१. पे नाम. ५ पांडव सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. कवियण, मा.गु., पद्म, आदि: हसतनागपुर वर भलो अंतिः मुको आवागमण निवार रे, गाथा २०.
२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पंच सवल तुम्ह पामीया; अंति: हो भाइ मोखद्वार, गाथा - १०.
३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहवा, अंति: हिवै पुरो हमारी आस, गाथा - ७. ४. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. २अ- २आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१७१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करै; अंति: गाया सुख लहे
अपारो, गाथा-२०. ४०६७८. (#) सालिभद्रधना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. श्रीमाहाविरदेव प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४२). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दीउ सारदा; अंति: उदय आणंद पावरे,
गाथा-२१. ४०६७९. (+#) थुलिभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १७७९, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. जयश्री (गुरु सा. गुणश्री); गुपि.सा. गुणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४३). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: थुलिभद्र थिर जस करमी; अंति: कोस्या संगति कहिण,
गाथा-१७. ४०६८०.(#) घूली, संपूर्ण, वि. २०वी, ?, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. खेमकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्रतिलेखकने वर्षसंबंधी 'चैत्र २ वैशख सुद ८' इस प्रकार उल्लेख किया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १०४२३).
सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमां; अंति: चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. ४०६८१. (#) नमस्कार महामंत्र व पुरोहितपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखकने इष्ट शब्दों
के नीचे लाल स्याही से रेखाएँ की हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १५४३४). १.पे. नाम. नवकार सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सुदर सीस
रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. पुरोहितपुत्र सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
___ मा.गु., पद्य, आदि: प्रिरोहित नगरथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६ प्रारंभ तक लिखा है.) ४०६८२. (+#) होलिका व अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संधि सूचक
चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५). १.पे. नाम. होलिका प्रबंध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. _होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: साधको
विद्यते, (वि. इस प्रति में रचना वर्ष व स्थल की माहिती अनुपलब्ध है.) २.पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: बह्वादरेण यतध्वमिति. ४०६८३. (+#) दसपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर,
प्रले. ग. जैतसी (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि); पठ.सा. केसरबाई; सा. लाडू; सा. लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १५४५३-६४). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद
तपविध भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ४०६८४. (#) भैरवाष्टक व स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२०.५४९.५, १५४३०). १. पे. नाम. देहराजी सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीस करूं; अंति: कीरतिविमल सुख करवा,
गाथा-१२. २.पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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१७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिर यात्र करण; अंति: सुरनरनायक
गावै, गाथा-९. ३. पे. नाम. शुकन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४. पे. नाम. भैरवाष्टकं, पृ. २अ, संपूर्ण.
भैरवाष्टक, मु. अभयराज, सं., पद्य, आदि: वंदेहं भैरवं देवं; अंति: विदुषाभयराजकेन, गाथा-९. ४०६८५. (+#) चेलणासती चोढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १८४३४). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (-); अंति: लोक वसै सुखै ठाम, ढाल-४,
(पू.वि. मात्र अंतिम ढाल है.) ४०६८७. (#) रोहीणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४४१२, १०४३४). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासण देवत सांमणी ए; अंति: हिव सकल मन आस्या
फली, ढाल-४, गाथा-२६, (वि. ढाल-२ में दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४०६८९. (#) चेतन सिझा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १८४३२).
औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: चेतन चेतियोरेमानुष; अंति: सुरग्ग मै बासो रे, गाथा-२४. ४०६९०. (#) रुखमणि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४८, १३४३४). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जि,
गाथा-१५. ४०६९१. (#) आषाडभूतरो पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १५४४६).
आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो बाइसम्मो; अंति: ते
जगमाहे धिन हो, ढाल-५. ४०६९३. (+#) आदिजिन स्तवन व जयघोषमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली,
प्रले. मु. तेजरज (गुरु मु. छगनलाल); गुपि. मु. छगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. अमी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवो हमारे घर; अंति: इक्षुरस आहारो हो, गाथा-१८. २. पे. नाम. जयघोषमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. चोथमल, रा., पद्य, आदि: श्रीजयघोष मुनि गुण; अंति: चोथमल गुण गाया, गाथा-९. ४०६९४. (#) पार्वनाथ वनेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४१). १.पे. नाम. पार्वनाथ स्तवन्नं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-जीराऊला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवली; अंति: पंचम्मी गति दायको, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
___ मु. खेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सूरिज जेहउ तेज; अंति: खेत कहइ सुध प्रेम, गाथा-२३. ४०६९५. (+#) मोहोपरि स्वाध्याय व सीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. योधपुर, प्रले.पं. देवेंद्रहस (गुरु पं. अमृतहस); गुपि.पं. अमृतहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१७३ १.पे. नाम. मोहोपरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मोहोपरिहार, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोह सुभट जीपण दोहिलो; अंति: लेस्युं
वलिहार रे, गाथा-१८. २. पे. नाम. सीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर दरसण दीठो; अंति: चरण सदा बलिहारी रे,
गाथा-५. ४०६९६. (#) वासक्षेप भास व गुरुगुण गूंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. बचि बाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४४०). १.पे. नाम. वासक्षेप भास, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: झमकारोरे मादल वाजे; अंति: विस्तरे परिमल साथि. गाथा-३. २. पे. नाम. गुहली भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो रे सहीयो उतावली; अंति: सुख पामइ मन अनुकूल, गाथा-७. ४०६९७. (+) जिन स्तवन, गोचरी आलोअण गाथा व वीसस्थानक तप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४३०). १. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति:
निअपयसुहदाणओ अइरा, गाथा-५. २. पे. नाम. गोचरी आलोअण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: वितहायरणे अइआरो, गाथा-२. ३. पे. नाम. वीसस्थानकतप, पृ. १आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं सहस्र; अंति: तित्थस्स स.२ का.५. ४०६९८.(#) गौंली, आत्माहीत सज्झाय व दहो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं.खेमजी; पठ. श्रावि. वीजा
बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १४४२९). १.पे. नाम. गौंली-नवपद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद गहुंली, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आतमरामी मुनिराजीया; अंति: संपदा शुभविजय सुखकार,
गाथा-१०. २. पे. नाम. आत्माहीत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदि: बापडली सुण जीभडली; अंति:
कहे सुणो प्राणी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सजनसंगति दुहो, पृ. १आ, संपूर्ण.
दहा संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४०६९९. (#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में लेखन स्थल विषयक 'पोलिअ अपासरे' इस प्रकार उल्लेख है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३८). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मागु., पद्य, आदि: जिणवाणी पणमेव समरी; अंति: विजय जिन उपदिस्यो जी,
गाथा-१६. ४०७००. (+#) सोलसुपन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७७८, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दिवबंदर,
प्रले. पं. न्यायरुचि (गुरु पं. दानरूचि गणि); गुपि. पं. दानरूचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. रचनावर्ष के समीपवर्ती काल में लिखी जाने की संभावना है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२).
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१७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नयरी चंद्र; अंति: तेह ज गुणनो गेह जी,
गाथा-१८, (वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी गई है.) ४०७०१. (#) सांतिजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १६४३७).
शांतिजिन स्तवन-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमो सिरनामी; अंति: मनवंछत
सिवसुख पावइ, गाथा-२२. ४०७०२. (#) रात्रिभोजन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४९). १.पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारु वसै जी; अंति: ते पांमै भवपार, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: विषया लालच रस तणो; अंति: महा अथिरि संसार, गाथा-१२. ४०७०३. (#) नवकार स्तवना, औपदेशिक सज्झाय व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रति के
अंत में 'मुनवर वाणी वागरी ग्यान तीर चलाये' इस प्रकार अपूर्ण लिख कर छोड दिया है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १८४४३). १.पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम श्रीहरिहंत; अंति: कोडा भवाना पाप हरो, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: हटवाडा में लाजि सो; अंति: मेलइ मुक्तनै पंथ, गाथा-१६. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: असे नेम चरण की; अंति: द्यानतन आनदकारी, गाथा-४. ४०७०४. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १७४४५).
सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाये; अंति: ग्रंथ मै कह्यौ छै. ४०७०५. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. विषयानुरूप क्रमांक लिखे गये हैं., दे., (२४.५४१२, ३३४१५).
सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्मे दिन १०; अंति: दिवसनो सुतक जाणवो. ४०७०६. (#) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११,७४२९). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात नमुं सिरनाम; अंति: नर मनवंछित
फल पावै, गाथा-२२, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम गुणसागर की जगह गुणसूरि लिखा है व 'सारंगपुरवरमंडण' इस
प्रकार लिखा है.) ४०७०८. (+#) शांति स्त्वन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९, ७४३४-३६).
शांतिजिन स्तवन, पं. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांती जणेसर सोलमो रे; अंति: भाणनी पुगी छे आस, गाथा-६. ४०७०९. (+#) शीलव्रत ३२ उपमा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३).
शीलव्रत ३२ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: पहली उपमा सीलकी; अंति: अर्थ मोटो प्रधान, गाथा-३२. ४०७१०. (+) ग्याताधर्मकथा की साढे तीनकोड कथा का विरवा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित-संशोधित., दे., (२४४१०.५, १२४३८). ज्ञाताधर्मकथाकीसाढे तीन करोड कथा का विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मकथा के वरग; अंति: साढा तीन कोड
कथा रही.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१७५
४०७११. (#) श्रीपाल चरित्र- खंड ४, ढाल ११ व १२, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १२४२७-३७).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
""
४०७१२. (+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२५x१२, १३४४०). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -७ तक लिखा है.)
४०७१३. (+) आदिजिन स्तवन व सज्झाव संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४.५४१०.५, १४४३४).
१. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. ऋषभसागर, रा., पद्य, आदि: करो रे कसीदो ईण वेध, अंति: रिषभसागर रस लारे, गाथा - १०.
२. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंद, रा., पद्य, आदि: हे प्रभु० आदि जिनंद अंतिः सेवक प्रभुजी आपरो गाथा ६.
"
३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
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वच्छमल, रा., पद्य, आदि: देसडलो विडांणो जी; अंति: यू कहै धन धन साध सधी, गाथा-५.
४०७१४. (०) साधारणजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X११.५, ११x२५).
१. पे. नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण
मु. भोजसागर, पुडिं, पद्य, आदि जिनवर चरण सण चित; अंतिः इन ही को ध्याइये, गाथा ७.
२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: हां जी मुरत मोहन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.)
४०७१५. (०) चोवीस दंडक, संपूर्ण, वि. १९६२, पौष कृष्ण, १ मध्यम, पृ. ४, प्रले. मीठीयो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x१२, १०X३१).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ,
गाथा-४७.
४०७१६. (+) मनुष्योत्पत्ति सिज्झाय व पार्श्व स्तवन, संपूर्ण वि. १८८०, श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. नेमचंद, पठ. श्रावि. सिणगारा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९३४) लिखणहार सदा सुखी, जैदे. (२५.५x१२.५, १३४३८).
१. पे नाम, मनुष्योत्पत्ति सिज्झाय, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उतपति जोज्यो आंपणी; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा- ७१.
२. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ४अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलकप्रिय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति नयणे निरखीयौ, अंतिः भावसु सफल भिई अवजात,
गाथा-७.
४०७१७. (४) पडिलेहणा कुलक व अष्टभंगी कुलक सह टवार्थ आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१२. ५०४८).
"
१. पे. नाम. पडिलेहणा कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. राजसागर.
पsिहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेसं; अंति: सीसेण विजयविमलेण, गाथा - २७. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः प्रतिलेखना विशेष अतिः विजयविमल शिष्यदं (प्रले. मु. राजसागर)
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१७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. अष्टभंगी कुलक सह टबार्थ, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. राजसागर.
अष्टभंगी कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि देवगुरुधम्मतत्तं न अंतिः कवि विजयविमलेण, गाथा- १०. अष्टभंगी कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुगुरु १ सुदेव २; अंति: विजयविमल कवीश्वरे.
३. पे. नाम. नवनियाणा विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण.
९ नियाणा विचार, मा.गु., पद्य, आदि: साधु तथा साध्वी, अति: (अपठनीय), (वि. स्याही फैली हुई होने के कारण अंतिम वाक्य अपठनीय है.)
४. पे नाम. ९ नियाणा गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण,
प्रा., पद्य, आदि: निव १ सट्ठि २ इत्थि; अंति: हुज्जा नव नियाणा, गाथा - १.
४००१८ (०) भलेना अर्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १५X३४).
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भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभु नीशालै वेठा; अंति: पामस्यौ तत्वं.
४०७२०. (+#) पढमा थेरावलीया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, ९३०).
नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा. पद्य, आदि जगह जगजीवजोगीविआणओ, अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखकने गाथा २४ तक लिख के पूर्णाहूति कर दी है.)
४०७२१. () पंचतीर्थ स्तवन कलश, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १४४३४-३६).
५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आदि ए आदि ए आदि, अंति: श्रुख पामे सास्वतां,
गाथा - १२.
४०७२२. (+#) आणंदश्रावकरो परीग्रहप्रमाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१२, १३४३९).
आनंदधावक परिग्रह प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारि कोडि सोनझ्या अंतिः पाणी आकासनो पीवणो.
४०७२३. .(+#) अष्टप्रकारी पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८५१, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित - संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ७X३० ).
८ प्रकारी पूजाविधि, प्रा., मा.गु. सं. पण, आदि: नमो अरि० नमोर्हत्सि० अंतिः पतेः पुरतः कुरुध्वं.
"
४०७२४. () संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
11
छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४११.५, ८x२७).
संभवजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभव जिनराजजी रे; अंति: सुद्ध सिद्ध सुखखाणि, गाथा-८. ४०७२५. (I) इक्षुकारमुनि स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १८२१ मध्यम, पृ. १, प्रले. मया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२३९).
इक्षुकारमुनि सज्झाय, भट्टा, तिलकसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १७७९, आदि: कमलावती राणी कहे हो; अंतिः धर्म्म सुदा सुखकार, गाथा - १९.
४०७२९. (+) अष्टमि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. मु. अमरसी, अन्य. मु. जेसंग, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. किनारी चुहे द्वारा कुतरी हुई होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित., दे., (२५X११.५, १०X३१).
अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आठम तप आराधि भाव, अंति शुभ फल पामे तेह, गाथा- १२.
(#)
४०७३०. ऋषभ व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X११, ११x२८).
१. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१७७ आदिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: माता मारुदेवीना नंद; अंति: ताहरी टालो भवना फंद, गाथा-६. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर; अंति: देव सकल मे हो जीनजी, गाथा-४. ४०७३१. (#) विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १२४४०). विमलजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमल जिणंदसु विनती; अंति: काई वाचक देव कहत,
गाथा-१४. ४०७३२. (#) विविधतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १७३७, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७). विविधतीर्थ चैत्यवंदन, पंडित. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद पर्वतइं; अंति: इम नमै आणी मन उल्लास,
गाथा-७. ४०७३३. (#) गोडीपार्श्वनाथउत्पति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४२). पार्श्वजिन चौढालियो-गोडीजी, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद प्रसिद्ध; अंति: शिष्य लावन्य मन
भले, ढाल-५, ग्रं. ६५. ४०७३४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. आगे पीछे दोनों ओर हासिओं में सुशोभन चित्र., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: सुरतरु मुज अंगणि; अंति: प्रभु पूरउ
मननी आस, गाथा-१३. ४०७३५. (+#) आखाढभूत सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. सा. माया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३५).
आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हीयें; अंति: भावरतन सुजगीसो रे,
ढाल-५, गाथा-३७. ४०७३६. मरुदेवि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५४१०.५, १२४३९).
मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दन मरुदेवि आई; अंति: परगटि अनुभव शारिरे,
गाथा-१८, (वि. प्रतिलेखकने एक गाथा की दो गाथा गिनी है.) ४०७३७. १२ व्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, १०४३३). १२ व्रत सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय नमीजे; अंति: साधूसाधर्मिने तोले,
गाथा-१७. ४०७३८. एकादसीमाहात्म स्तवन व पंचमीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. माहावीरस्वामी
प्रसादात. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२४.५४११, १४४२८). १.पे. नाम. एकादसीमाहात्म स्तवन-ढाल ७, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. मेरुविजय.
एकादशीतिथि स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१८, आदि: (-); अंति: लक्ष्मीसूरी जयांकरो, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पंचमीनी सझाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९३६, आषाढ़ कृष्ण, २, शुक्रवार, प्रले. मु. कल्याणविजय
(तपागच्छ); पठ. श्रावि. फुलकोरबाई; अन्य. पं. रतनविजय; मु. दानविजय.
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५. ४०७३९. (+#) देवसिपडिकमणं विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. सुंदरचंदा (पायचंदगच्छ); पठ. श्रावि. जेठी बाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४४२).
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१७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकदेवसीप्रतिक्रमण विधि-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एक नवकार गणी; अंति: कही
सामायक पारवं. ४०७४०. (#) पार्श्वजिन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक की जगह पर कागज
चिपका होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मोहनगारा; अंति: सुमति सुखदातारे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. लक्ष्मीविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: दीर्छ तारु रूप मोहन; अंति: प्रभु कीजै वंछित काज, गाथा-७. ४०७४१. (#) विविधतप यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १६x४५).
विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४०७४२. म्हाबीरजी की होली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, ११४३०).
महावीरजिन होरी, रा., पद्य, आदि: कुंनणपुर भला नगर; अंति: कालै त्रिभवनेश्र को, गाथा-१६. ४०७४४. (+#) असज्झाइ विधि, संपूर्ण, वि. १८५९, माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. हरीदूर्ग, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३९).
असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सूक्ष्म रज आकास थकी; अंति: पुण सज्झाय न सूझई. ४०७४५. (+#) पंचमाआराना भाव छठा आराताई भाव वीरना भाख्या तस्य सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,
प्रले. श्राव. साकरचंद न्हालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुवधिनाथ चरणे ग्रहे., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १०४२८). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहें गौत्तम सुणो; अंति: भाषा वयण रसाल, गाथा-२१,
(वि. इस प्रति में कर्ता नाम नहीं है.) ४०७४६. प्रथमजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१३, फाल्गुन कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. केशरविजय
गणि; पठ.पं. भक्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक केशरविजय गणि एवं पं. भक्तिविजय गणि दोनों गुरुभाई है., जैदे., (२४४१०.५, ११४३९).
आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., पद्य, आदि: जयानंदलक्ष्मीलसद्वल; अंति: जोपासनां देव देया, श्लोक-११. ४०७४७. (#) २४ जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३४).
२४ जिन नमस्कार, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसल तरु प्रथम; अंति: इम प्रणमें जिनवर पाय, गाथा-७. ४०७४८. (+#) गुरुवाणी भाष्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ९४३३).
गुरुवाणी भास, मु. अमीकंवर, मा.गु., पद्य, आदि: जिरे मारे देशनो; अंति: एणि पर भणे जिरे जी. गाथा-८. ४०७४९. (#) धान्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४६). धान्यजीवोत्पत्तिसज्झाय, आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनाथइ रे सयं; अंति: जंपइ खरतपागच्छ
नायको, गाथा-९. ४०७५०. (#) खिमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७५१, वैशाख शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. य. उदयरत्न; पठ. श्रावि. भाग्यवती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ९४३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी,
गाथा-३६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१७९ ४०७५१. (+#) शारदाजी छंद व अपवासनु पचखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. किनारी खंडित होने से
पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३५). १. पे. नाम. शारदाजी छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, अन्य. मु. रूपविजय. __सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: वाचा फलसें माहरी,
गाथा-३५. २.पे. नाम. अपवासनु पचखाण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र तिविहार उपवास का
पच्चक्खाण है.) ४०७५२. (+#) साधुना सत्तावीस गुण, श्रावकना एकवीस गुणा व छ वयरी अंतरंग गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम,
पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३२). १. पे. नाम. साधुना सत्तावीस गुण सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.
साधु २७ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: छव्वय छक्कायरक्खा; अंति: भरेण हि अण्ण रे जीव, गाथा-३.
साधु २७ गुण गाथा- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छ व्रतनु पालनहार; अंति: वीस गुण साधुना जाणवा. २. पे. नाम. श्रावकना एकवीस गुणा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: इगवीस गुणो हवइ सङ्को, गाथा-२. (वि. प्रतिलेखकने
गाथांक १ दो बार लिखा है.) श्रावक २१ गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एहवु श्रावकधर्म रूपी; अंति: ते मोटु श्रावक जाणवउ. ३. पे. नाम. छ वयरी अंतरंग सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
६ अंतरंगशत्रु श्लोक, सं., पद्य, आदि: कामः क्रोधश्च लोभश्च; अंति: एष जीवस्य शाश्वतः, श्लोक-१.
६ अंतरंगशत्रु श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: काम १ क्रोध २ लोभ ३; अंति: कहिया ते प्रीछ्यो. ४०७५३. (#) सीमंधरजी की वीनती, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ९४२५). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारि वीनतडि अवधारो; अंति: तार गरीब नवाज,
गाथा-२१. ४०७५४. (+#) श्रीमंदीरस्वामी सास्वताजनेसूरजीरो तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, आषाढ़ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. खीमत, प्रले. पंन्या. जिनेंद्रशील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ७४२७).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंदीर ते; अंति: मने आपोने समकीत सार, गाथा-१३. ४०७५५. (#) नवकार सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. मु. बेचर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३).
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. साधु पद तक लिखा है.)
नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहिता नमस्कार हो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४०७५६. जिनपूजापरि स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ७, प्रले. मु. तीर्थसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. बीजमाहात्म स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीसुतदेवी पसाउले; अंति: नित नित वंदु पाय,
गाथा-१९. २. पे. नाम. मोनएकादशी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. __ मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, पुहि., पद्य, वि. १८७५, आदि: अवीचल व्रत एकादशी; अंति: हो
जिनउदयसुरिंद के, गाथा-१३.
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१८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सुजातस्वामी विहरमान स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
सुजातजिन स्तवन, मु. नयविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो स्वामी सुजात; अंति: गुण हेज हिल्युरी, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्वनाथजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: थलपति प्राण आधार के,
गाथा-५. ५. पे. नाम. गौडीपार्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल मुरति अलवेसरू; अंति: श्रीविजय सुख रसाल
हो, गाथा-७. ६. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिधारथ राजानो नंदन; अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा-७. ७. पे. नाम. जिनपूजापरि स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी पूजा जिन; अंति: आप तर्या पर तारे
रे, गाथा-९. ४०७५७. (+#) नागोरीलुंकारी पटावली व सोलै पाटांरो कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १७४४२). १.पे. नाम. वृधन्नागोरीलंकांरी पटावली, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८८०, ?, आश्विन शुक्ल, ७, ले.स्थल. कृष्णगढ,
प्रले. मु. नेमचंद ऋषि, पे.वि. पत्र खंडित होने से प्रतिलेखन वर्ष स्पष्ट पढ़ा नहीं जा रहा है. पट्टावली नागोरीलंकागच्छीय, मु. उत्तम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक बिर जिन; अंति: धुर पटावली वणाय,
गाथा-५९. २. पे. नाम. सोलै पाटांरो कवित्त, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पट्टावली कवित्त-अहिपुरगच्छ, मा.गु., पद्य, आदि: पनरैसै असिजेठ सुदी; अंति: दया उजागर दांन, गाथा-५. ४०७५८. (#) इरीयावहि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, ११४२८).
इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारि में दीठी एक; अंति: करो घणि सेवरे, गाथा-७. ४०७५९. (#) औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४२७).
औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसति मति सुमति; अंति:
जिम अजरामर पदवी वरो, गाथा-१३. ४०७६०. (#) पार्श्वनाथजिन स्तवन वनेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन माहरौ; अंति: सोहामणौरै हांजी, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जीवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांवलिया हो जिनवर; अंति: राज सुपियारा बेहां, गाथा-१४. ४०७६१. गजसुकुमाल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४५४).
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ द्वारवतीपुरी; अंति: संघ जगीस ते पूरवउरे, गाथा-१४. ४०७६२. (+#) ८४ आशातना नाम व दशप्रकार सम्यक्त्वरुचि सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४६). १.पे. नाम. ८४ आशातना नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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१/
१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
सं., गद्य, आदि: इह चतुरशीतिसंख्याका; अंति: जलस्नानं ८४. २. पे. नाम. दशप्रकार सम्यक्त्वरुचि सह विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण.
१० सम्यक्त्वरुचि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: निस्संगुवएसरुई; अंति: संखेव धम्मरुई, गाथा-१.
१० सम्यक्त्वरुचि गाथा-विवरण, सं., गद्य, आदि: रोचक: कारक: दीपकः; अंति: व्रतसंक्षेपरुचिः. ४०७६३. चतुर्विशतिजिन कल्याणक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४२५).
२४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. कृति अंतर्गत कल्याणक विधि भी दी
गई है.) ४०७६४. (+#) कमलावती रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ.सा. वीहेमी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४६१). कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय वीरि जिणेसर; अंति: मोखमंदिर माहि गया, ढाल-४,
गाथा-४४. ४०७६५. (+) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १८४४०).
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ४०७६६. (+) अल्पबहुत्व अट्ठाणुंबोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र के हासिए में उर्दूभाषामय महोर अंकित है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३५).
अल्पबहुत्व ९८ बोल स्तवन, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पन्नवणा श्रुत त्रीजि; अंति: चंद्र भणि मतिमेय,
___ गाथा-२१. ४०७६७. (#) षोड सत्यवादी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लोटोती, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४०-४५).
१६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचार चूडामणी; अति: खेम सदा सुखकार हो, गाथा-१९. ४०७६८. (+#) नेमिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड
गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २१४५९). १.पे. नाम. दानसीलतपभावना गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलो जीवारे; अंति: दास गणि इम भासिया,
गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, वि. १६२५, आदि: किस विधि जीवडे; अंति: आवागमण निवारोजी. गाथा-१०. ३. पे. नाम. संवर द्वार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
६संवर सज्झाय, मागु., पद्य, आदि: श्रीबीर जिणेसर गोयम; अंति: मुक्तिरमणि हेलां वरो, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नगर सोहामणो; अंति: मनरुप प्रणमें पाय, गाथा-१५. ४०७६९. ऋषभदेवजीनो तवन व सितानि सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
दे., (२७४१२, १२४२९). १. पे. नाम. ऋषभजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___आदिजिन स्तवन, आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आदिसर अवधार; अंति: मिले प्रभू सुरमणी, गाथा-५. २. पे. नाम. सितानि सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हूं नाम; अंति: नित नित होजो परिणाम, गाथा-७. ४०७७०. (#) इकवीस ठाणउ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. मेरुधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४६०)..
२४ जिन २१ स्थान कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४०७७२. (#) ५२ बोल सज्झाय व उपदेशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६४१२, ११४३८).
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१. पे. नाम. ५२ बोल सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. कृष्णलाल, मा.गु., पद्य, आदि आधाकरमी १ मोलरोए अंतिः अरज करे कृष्णलाल, गाथा- १६.
२. पे. नाम, उपदेशी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
"
औपदेशिक सज्झाय, मु. मुरार, रा., पद्य, आदिः चोरासी लख जोण मे रे, अंतिः मुनिवर कहेत मुरार, गाथा- १२. ४०७७३. (+४) जिनकुशलसूरि आदि गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्रले. पं. जगत्कीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३x४४). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ संपूर्ण.
पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीखरतरगच्छ राजा, अंति: गुणवचन विलासह हो, गाथा- ६.
२. पे नाम, जिनकुसलसूरि गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु, पद्य, आदि: कुसलसूरि भेटा लही रे, अंतिः नमतां सुजस विलास रे,
गाथा-७.
३. पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, पं. गुणविनय गणि, अप., मा.गु., पद्य, आदि: विमलमइ दायगं; अंति: संपदा सुख दिनि दिन, गाथा - १९.
"
४. पे नाम. महावीर, आदिनाथ, चंद्रप्रभ, कुंथुनाथ, संभवनाथ, पारसनाथ स्तवनं पू. २आ- ३अ, संपूर्ण. ६ चैत्य स्तवन- जेसलमेरस्थित, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जेसलगिरि मुख मंडणउ, अंति: विनय० जान भाव रे, गाथा - १२.
५. पे. नाम. जिनसिंहसूरि गीत, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारी बहिनी हे अंतिः श्रीगुरु इम भणइ हे, गाथा ५.
६. पे. नाम, खरतरगुरु पट्टावली, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
पट्टावली स्तवन- खरतरगच्छीय, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पहिली; अंति: विनय गणि
जी, गाथा - ३१.
७. पे नाम. जिनसिंहसूरि गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है. पं. गुणविनय गणि, पुहिं., पद्य, आदि फली असाडी आसवे अंतिः प्रभु मोतीवडे वधाउं, गाथा ५. ४०७७५ (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, १३४३४).
"
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४०७७८ (+) धरणोगेंद्र स्तोत्र महामंत्रमयं संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. नयविजय राज्ये आ. विजयदेवसूरि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १५X४५).
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति, अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ४०७८० (+४) स्थूलभद्र सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२४४१२,
१३X३९).
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा, अंतिः सगलां फल्यां रे, ढाल-९, (वि. कृति के अंत में दूसरी ढाल के दोहे लिखे गये हैं.)
४०७८१ (०) विसधानक तप व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४११. ११४३३-३७).
१. पे. नाम, विसधानक तप, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण.
२० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिवसे पोषध; अंति: नित्थार पारगा हो...
२. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१८३ औषध संग्रह **.सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०७८२. (+#) धर्मरुचीमुनीवररोतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १३४४५). धर्मरुचिअणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चपानगर नरुपम सुदर; अंति: नाम थकी
सीववासो, गाथा-१५. ४०७८३. (4) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९). चोवीसजिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नमु आदि अरिह; अंति: मनवंछित फल पाइयै,
गाथा-५. ४०७८४. (+#) पद्मप्रभजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४४). १.पे. नाम. नेमिनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सामलिया घर आवकिं; अंति: शिवपद ते लहै हो, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चींतामणि; अंति: पूरो संघ जगीस ए,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गांथांक २ तीन बार एवं गाथांक ३ दो बार लिखा है अतः वस्तुतः कुल गाथा ६ होती है.) ३. पे. नाम. पदमप्रभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: तुम्ह पाय
सेवरे, गाथा-९. ४०७८५. (#) सलैखणारी पाटी, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. शांतिदास; पठ. विरधुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १८४४६).
संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपच्छिमा; अंति: वेर मज्झं न केणइ. ४०७८६. (#) साधु ३० उपमा सज्झाय व रतनचंदजी गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १४४४४). १. पे. नाम. साधु ३० उपमा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: तिस ओपमा साधरी रे; अंति: पाय हो मुनीसर, गाथा-१२. २. पे. नाम. रतनचंदजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हमीरमल, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: ऐक दीनी हो रतनजी; अंति: हरख भरी गुण गाया, दोहा-११. ४०७८७. (#) सुयणा गीत व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६५७, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों
पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५४). १.पे. नाम. सुयणा गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: मथुरापुरि पति संख नर; अंति: जे सुधउ संजम पालइ, गाथा-१२. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
___ मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नगर सुहामणउ; अंति: तुम्ह भेट्या मिलइ, गाथा-१३. ४०७८८. (+#) मल्लिदेव व वर्द्धमान स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५१). १.पे. नाम. मल्लिदेव संस्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, ग. कीर्तिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६५४, आदि: सुखसागरीया रे तोनि; अंति: एवा साहिब जु मिलइ,
गाथा-१४. २.पे. नाम. वर्द्धमान स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीर जिन स्तवन, ग. कीर्तिउदय, मा.गु, पद्य, आदि जगजीवनिया रे मोनि, अंति: (१) ददतु श्रियस्तेषां (२)पद दालनं कवि दंढोल, गाथा- १६.
४०७८९ (४) च्या सरणा व आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे
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(२५.५X११.५, १९x४९).
१. पे. नाम. च्यारु सरणा, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
४ शरणा विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: वेरं मज्झं न केणइ.
२. पे. नाम. आराधना विचार, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण.
मु. देवजी, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: हिबेइ अदारइ स्थानक, अंतिः मिच्छामि दुकडं.
४०७९० नवतत्वनी स्तुति, संपूर्ण वि. १९९१ मध्यम, पृ. १, अन्य सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x११,
१९५३१).
आदिजिन स्तुति-नवस्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि जीवा रे जीवा पुनं अंति: गुण
चित धरज्यो जी, गाथा-४.
४०७९१. शांतिजिन व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., वे.. (२६X११.५, १०X३०).
१. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल २, ले. स्थल. पालीताणा, अन्य. मु. वीरविजय (तपागच्छ); मु. रत्नविजय, पे. वि. रीषभ प्रसादात्.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन दीन वेला घडी तेह; अंति: ते वाचक जस कहे जी, गाथा-५.
४०७९२.
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, ले. स्थल. अमदावाद, लिख. मु. गुलाबविजय, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत 'श्रीसीधाचलजीनी नवाणूं जात्रा करीने आ परत लखावी छे' इस प्रकार उल्लेख है.
मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्म, वि. १८८३, आदि: सिधाचल गी भेटा रे अंतिः प्रभु प्यारा रे, गाथा ५.
(+)
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स्नात्रपूजा सविधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, १७४४२)स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रथम नित्यविधड़ पूजा, अंति: विजया सिरि संतिकरो. ४०७९३. (+) पर्युषणपर्व शझाय व अष्टमीतिथि स्तुती, संपूर्ण, वि. १८५२, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. प्रमोदसौभाग्य, पठ श्रावि हरखबाई, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदीस्वर प्रसादात, संशोधित, जै. (२५.५४११.५. १४४४१).
,
१. पे. नाम. पर्युषण पर्व शझाय, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण.
पर्युषण पर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदिः परथम प्रणमु सरसती अंति: गुण गाये सदा, गाथा १६. २. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. सुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः आव्ये चोसठ इंद्र पुजे अंतिः जीव्यु जन्म प्रमाण, गाथा-४, ४०७९४. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, वे. (२६.५४११.५, १०४३३).
१. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीशत्रुजो सिणगार अंतिः आगमवाणी विनीत, गाथा-३.
२. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंतिः प्रवचन वाणि विनीत, गाथा- ३.
३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
"
१. पे. नाम. मेघकुमार गीत, पृ. २अ, अपूर्ण. पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
मु. , विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है . ) ४०७९५. (#) मेघकुमार गीत व भाषाकवितानि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १२४३०-३७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते पामइ भवपार, गाथा- २३, (पू.वि. गाथा - २१ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. भाषाकवितानि, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त, मु. भद्रसेन, मा.गु, पद्य, आदि: ताल गिहय वरही सति गय; अंतिः हुं बोलि विणासियइ, पद-३. ४०७९६. (#) बीजतिथि आदि चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, ११३३).
१. पे. नाम. बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुविध धरम आराधतां अंतिः जिम होइ कोड कल्याण, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक १ लिखा है किन्तु वस्तुतः गाथा - ३ हैं.)
२. पे. नाम. अष्टमीतीथी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एके उणा पंच वर्ग जिन; अंति: लहो अड मंगल भरपूर गाथा- १ (वि. प्रतिलेखकने गाथांक १ लिखा है किन्तु वस्तुतः गाथा ३ हैं.)
३. पे. नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
एकादशीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मल्ली जिनवरनें नमो; अंति: पामो भवजल पार, गाथा - १, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक १ लिखा है किन्तु वस्तुतः गाथा - ३ हैं.) ४०७९७. (#) बीजनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५, ११४३२).
बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित्य विविध वीनोद रे,
गाथा-८.
४०७९८. रूखमणि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. भक्तिविजय, अन्य. पं. देव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६५११, १२४३९).
रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम, अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
४०७९९. (+#) श्रीपाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंकित नहीं है. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५, ११४३५).
श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता मया करो; अंति: सति नामें आणंदोरे, गाथा - १२. ४०८०० (+) अरीयावही मिछामी दुक्कड व धुणली, संपूर्ण वि. १९३९ भाद्रपद कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २,
अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५x११.५, १०X३२).
१. पे. नाम. अरीयावही मिछामी दुक्कड, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
',
इरियावही सज्झाय संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य वि. १९वी आदि गुरु सन्मुख रही विनय अंतिः वरते एकवीस वरस हजार, गाथा- १४.
२. पे नाम तृतीयातिथि थुणली. पृ. २अ २आ, संपूर्ण
तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहिं त्रिण परदक्ष, अंति: सासन सुर संभारो जी, गाथा-४. ४०८०१. (#) नेमनाथ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. नुलाइनगर, प्रले. मु. वासा (आगमगच्छ); पठ. श्रावि. तारादे
लालजी शाह (पति श्राव. लालजी कचरा शाह); अन्य. श्राव. लालजी कचरा शाह (पिता श्राव. कचरा शाह); गुपि श्राव. कचरा शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५X१२, १३X३०).
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाये पणमी करी; अंतिः सुप्रसन्न नेम जिणंद, गाथा- ६३. ४०८०२. (४) श्राद्धपडिकमण, संपूर्ण, वि. १८४२ वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल आगलोड, प्रले. मु. माणिक्यविजय
(गुरु पं. मोहनविजय गणि); गुपि. पं. मोहनविजय गणि (गुरु ग. कमलविजय); पठ. श्रावि. रामकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १४X३९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ४०८०३. (#) २२ परिसा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, २२४४९).
२२ परिषह सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: क्षुधा त्रिषा हेम; अंति: के दरसनसु अघ भागे, गाथा-२४. ४०८०४. (#) भक्तामर गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ११४२९). भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरुं चकेसरी; अंति: बोलै सामी सयंतसूर,
गाथा-१२. ४०८०५. (+) जममहोछबनी ढांलां, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२६४११.५, २३४५७). महावीरजिन जन्ममहोत्सव पंचढालियुं, मा.गु., पद्य, आदि: ताल मृदंग रंग चंग; अंति: मोटा सिवपुरनां दातार, ढाल-५,
गाथा-३१. ४०८०६. (#) बुढाबाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १५-१८४३८-७३). १.पे. नाम. बुढाबालनी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यजन्मदुर्लभताविषयक, मु. जेमल, रा., पद्य, आदि: दुर्लभ मनुष जमारो; अंति: तणी करो
नित्य संभाल, गाथा-२९. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
मा.गु., पद्य, आदि: पाचं समतने पासें; अंति: ते सीवपुरमा माले, गाथा-१३. ४०८०७. (+) आध्यात्मिक पद व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,
पठ. सा. नाथाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., दे., (२६४१२, २०४४३). १.पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सूर्यमल्ल ऋषि, रा., पद्य, वि. १९३०, आदि: चोमासो उतर्यो पछै; अंति: त्रिविधे प्रणमुपाय,
गाथा-१४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान नही पाया रे; अंति: लौगाने ओर वाताया, गाथा-४. ३. पे. नाम. मंदोदरीरावण संवाद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, ले.स्थल. वीसलपुर,
प्रले. मु. छतमल ऋषि; पठ. सा. नाथाजी आर्या.
मु. हीराचंद, रा., पद्य, वि. १९३८, आदि: इण लंकागड मे आइ; अंति: चतुर करो पीछांण रे, गाथा-१२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैयो-चोरीत्यागे, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सवैया-चोरीत्यागविषये, म. बालचंद, रा., पद्य, आदि: चोरी कोई करोमती; अंति: आगम संभालते,
गाथा-२. ५.पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, अन्य. मु. नाथाजी.
दहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ४०८०८. (+#) पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २६४५३). पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे
राजरो अतरजामी, गाथा-५६. ४०८०९. सनीसरजीरो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४११,११४२८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरांपती; अंति: अलगी अटालो आपदा, गाथा-१७. ४०८१०. (#) रात्रीभोजन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, २६७५३-५६). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारू वसे जी; अंति:
श्रीहेमविमलसूरीसरे, गाथा-३३. ४०८११. अठाणुबोलारो बासठीयो, संपूर्ण, वि. १९८१, भाद्रपद शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले.ऋ. सोवनराज; पठ. सा. चुनाजी; सा. पानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, २१४७२).
९८ बोल का बांसठिया, रा., गद्य, आदि: पेले बोले सरवसुं; अंति: उप्योग १२ लेसा छ. ४०८१२. (+) लोकनालीसह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. काहानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९x४१-५८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जंलोअ; अंति: जहा भमह न
इह भिसं, गाथा-३२.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: वइ० प्रसारितपादं; अंति: मुपलभ्य इति ज्ञात्वा. ४०८१३. नवकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक १अपर पोथियों की टीप दी गई है., जैदे., (२४.५४११.५, ६४२०).
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९. ४०८१४. (+#) पर्वकथा संग्रह व १७ संयम गाथा, संपूर्ण, वि. १८६२, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३,
ले.स्थल. विझेवानगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६x४०-४३). १. पे. नाम. पौषवदिदशमी कथा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहत; अंति: येन शीघ्रंरचयांचकार, श्लोक-७५. २.पे. नाम. होलीरज:पर्व कथानकं, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.
होलिकापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अथ चतुर्विंशतितमं; अंति: तत्र यत्नो विधीयतां. ३. पे. नाम. १७ विध संयम गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४०८१५. (#) कल्पांतरकाल सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. २४ जिन के निर्वाण बाद कितने समय में
कल्पसूत्र पुस्तकारूढ हुआ उसका वर्णन किया गया है.)
कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४०८१६. (+#) प्रश्नोत्तररत्नमालिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३६-३९).
प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: तिको भलउ दीसइ सही, (वि. पत्र खंडित होने से
आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है) ४०८१७. (+#) पार्श्वनाथ नीसाणी व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८०८, अष्टाबिंदुसुरचितेब्दे, ?, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम,
पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. कर्मवट्याग्रा, प्रले. अनलराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी नीसाणी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहरख कहदा है,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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१८८
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२. पे नाम, औपदेशिक लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण
लोकसंग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-) अंति: (-) श्लोक-१.
४०८१८. (+४) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., ( २६.५X११, १४X३५).
विचार संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ५ शरीर, आनुपूर्वी व भव्य स्त्री आदि के आश्रय लब्धियों का विचार है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४०८१९. (#) कालसप्ततिका व वनस्पतिसप्ततिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. मरम्मत कर योग्य प्रत. पंचपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२६.५४११, १७५८).
१. पे नाम, कालसप्ततिका विचार सह अवचार, प्र. १अ २आ, संपूर्ण,
कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि: देविंदणयं विजानंद, अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं गाथा- ७२.
3
"
कालसप्ततिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: देवेंद्रनतं विद्यानं; अंति: प्यनंतगुणानागताद्वा.
२. पे. नाम. वनस्पतिसमतिका सह अवचूरि, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वटपत्र.
वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उसभाइए जिणिदे, अंतिः मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७७,
(वि. १५२८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मंगलवार )
वनस्पतिसप्ततिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: उसभेत्यादि गाथा ४; अंतिः ततः प्रत्येक इति, (वि. १५२८, आषाढ़ शुक्ल, ५, गुरुवार, लिख. पं. मेरुरत्न गणि)
४०८२० (७) २४ जिन नामराशि मेलापक कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १४४४५).
२४ जिन नामराशिमेलापक कोष्टक, सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुंभ राशि तक है.) ४०८२१. (#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, स्तुति व मंत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १५०९, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. ग. तिलकहंस, पठ. सा. हंससुंदरी गणिनी, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पत्रांक १ अ पर सिद्धचक्र यंत्र आलेखित है. मरम्मत करने योग्य प्रत., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १५X४८).
१. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ. संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
+
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., पद्य, आदि जो धुरि सिरिअरिहंत, अंतिः अम्हं मणवंछिय दिउ, गाथा - ३ (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
६. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-), श्लोक-२.
3
יי
२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण, अंतिः सिद्धचकं
नमामि गाथा - ६.
३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा. पद्य, आदि: भतिजुत्ताण सत्ताण, अंतिः धुणंताणं कट्टागं, गाथा-४.
४. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: जिण सिद्ध सूरि, अंति: कुणंतु कल्लाणं, गाथा-४.
५. पे. नाम. सिद्धचक्र मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
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४०८२२. (+#) जीवविचार सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. मेडतानगर, प्रले. पं. गोपाल,
अन्य उपा. हीरानंदचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित त्रिपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे., (२६X११.५, ६x४१-४५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ
सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१.
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जीवविचार प्रकरण- अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीव, अंति: सकलसंघाय श्रेयसेस्तु. ४०८२३. पाक्षिक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५x११.५, ११×२७-३०).
सकलात् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: ( १ ) सकलकुशलवल्ली पुष्करा (२) सकलात्प्रतिष्ठान, अंतिः प्रक्षालनजलोपमाः, श्लोक-३३.
४०८२४. (#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है अतः पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२४४११.५.
१८x४०).
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: (-); अंति: रामपुर गुण गाया, गाथा - १६, (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा- ३ तक नहीं है.)
४०८२५. (+) धन्नाअणगार सझाय व औपदेशिक दुहा, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२६X११, १५X४९).
१. पे. नाम. धन्नाअणगार सझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दोय करजोडीनइ नित्य; अंति: वांदउ भविक रसाल रे, गाथा-२१. २. पे नाम औपदेशिक दुहा, पृ. १आ. संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह, पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
3., स.,
४०८२६.
(+#) द्रौपदीसंहरण संबंध, संपूर्ण, वि. १६६१, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. नागपुर, प्रले. उपा. समयसुंदर गणि" (गुरु उपा. सकलचंद्र, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६११, १३x४४).
,
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- द्रोपदीसंहरणसंबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: एकदा श्रीहस्तिनापुरे; अंति: गणिः
समयसुंदरः,
יי
१८९
४०८२७. नेमजीराजीमति स्तवन बारमासो, संपूर्ण, वि. १८७९ वैशाख शुक्त, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, नागपुर, प्र. मु. रविंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीधर्मनाथ प्रसादात्, जैदे. (२६.५४११.५, १३४३९).
"
राजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: (१) प्रेम विलुधी पदमणी, (२) सीयाले खाटु भली; अंति: नाथ सूरे सर नेम,
गाथा-४८.
४०८२९. (+) चौदनाम सुसाधुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, ११३६)
""
साधुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनुं करुं; अंतिः सेवकनइ देज्यो परमत्थ, गाथा- १५. ४०८३० (+४) शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६११.५, १४४४४).
"
शाश्वतत्यस्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिसवद्धमाणं अंतिः भविआण सिद्धिमुहं गाथा २४. ४०८३१. (+४) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह टवार्थ व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
प्रले. ग. कीर्त्तिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ७X३७-४१).
२. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह उ. पु.ि प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-) अंति: (-).
१. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह टबार्थ, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः वंदे श्रीज्ञातनंदनम्, लोक-२८.
सकलार्हत् स्तोत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सघलाइ अरिहंतनि, अंतिः देव श्रीमहावीर प्रति
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१९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०८३२. ज्ञानीअज्ञानी विचार-भगवतीसूत्रशतक-८ उद्देश-२, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १२४१८-९०).
ज्ञानीअज्ञानी विचार-भगवतीसूत्रशतक-८ उद्देश-२, संबद्ध, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ४०८३४. (+) एकसोसित्तरजिननाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. अमृतसागर (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२६४११.५, ३५४१७-२०).
१७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०८३५. १७० जिन नाम, संपूर्ण, वि. १७७८, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५.५४११.५, ३५४२०).
१७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०८३६. (+) छ कायना जीवनी वगति व जीवायोनि ८४००००नी वगति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३७). १. पे. नाम. छ कायना जीवनी वगति, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.
६कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहि परथवीकाय बीजी; अंति: मीच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. जीवायोनि ८४००००नी वगति, पृ. ४अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२००००० थावर एकेंद्र; अंति: (१)४००००० नारकी,
(२)८४००००० सिरवालइ. ४०८३७. (-#) गजसुकमालनी रषीस्वरनी सीझाय, सुभाषित श्लोक व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७-२०४५१-६०). १. पे. नाम. गजसुकमालनी रषीस्वरनी सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. सवजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीर सुखे भलो; अंति: गाता छुटे कर्म रे, गाथा-१४. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. ज्ञानशेखर.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धरमसी, पुहिं., पद्य, आदि: खोद कोदालसू चाडीए; अंति: ताहरूं न जाणे कोय, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक द्वारा दो
कृतिओं के गाथांक क्रमशः लिखने के कारण इस कृति का प्रारंभ गाथांक ४ से करके अंत में गाथांक १४ लिखा है.) ४०८३८. (+#) पंचमीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेसर; अंति: गुणविजय रंगइ मुनि, ढाल-६,
गाथा-४५. ४०८३९. (#) कानणकठियारेरी चोपड़, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४४०). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमु सदा; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६३ अपूर्ण तक है.) ४०८४०. (#) प्रव्रज्याविधान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १६४४४).
प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसारविसमसायरभवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४, संपूर्ण. ४०८४१. (4) गुरुगुण गहुंली वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे.,
(२४.५४१०.५, १२४३४-३८). १.पे. नाम. गुरुगुण गुहली-तपागच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
गुरुगुण गहुंली-तपागच्छीय, उपा. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चकोरनी सहिरो; अंति: सकल सुख पावो रे,
गाथा-७. २. पे. नाम. पंचमि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष कृष्ण, ११, ले.स्थल. खेरालु, प्रले. पं. तेजविजय;
अन्य. पं. रत्न; पठ. सा. अजबाई, प्र.ले.श्लो. (९०४) जब लग मेरू थिर रहें, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'पं रत्नसत्केन लपीकृत' इस प्रकार लिखा है.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदिरस्वामि; अंति: निवार निवार. गाथा-१. ४. पे. नाम. विर स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवी जीयादंबा, श्लोक-१. ४०८४३. (+) देववंदवा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ९४३९).
देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: नाहनी कहीनि बइसीइ. ४०८४४. (#) नेमराजिमती सझाय, औपदेशिक रेखतो व सवैयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४३१-४०). १. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छांड दे रेतुंवीषय; अंति: सीवसुखनी अनुसरीया,
गाथा-६. २. पे. नाम. रेखता संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
हसनमल, अ.भा.,मा.गु., पद्य, आदि: ऐकदिदम् एकसूरत; अंति: जिणे रेखता संभार्या, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैयो, पृ. १आ, संपूर्ण.
सवैया संग्रह*, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-१. ४०८४५. (#) २४ जिन कल्याणकदिन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४४२).
२४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ४०८४६. (#) पारस्वनाथनी सतुती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४२७).
पार्श्वजिन स्तुति, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवै; अंति: देव वाचक हेते कारी, गाथा-४. ४०८४७. (#) नेमिजिन घउंली व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ९४३२). १. पे. नाम. नेमिजिन घउली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. लक्ष्मी.
नेमिजिन गहुंली, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका नयरी सुंदरु; अंति: घउली करे फागमां, गाथा-१२. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभु तुम सेवना; अंति: वहेज्यो साचो नेह हो, गाथा-५. ४०८४८.(#) पुन्यप्रकासनोतवन व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). १. पे. नाम. पुन्यप्रकाशनो तवन, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे
पुन्यप्रकास ए, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-६ से ढाल-६, गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हवे राणी पद्मावती, अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १० प्रारंभ तक लिखा है.)
३. पे. नाम. नवचडवीसी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण
४०८४९ (१) नवचडवीसी कुलं व शाश्वतजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४४). १. पे. नाम. नवचडवीसी कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण.
शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चत्तारि अट्ठ दस दोय; अंतिः समकाल उप्पन्न वंदामि गाथा- १२. २. पे नाम. शास्वतजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण
शाश्वतजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि सत्तकोडी लक्ख, अंति: (अपठनीय), गाथा-५, (वि. जीवातकृत छिद्र होने से अंतिम वाक्य अपठनीय हैं.)
विचार संग्रह ". प्रा. मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमदेवनागेंद्र, अंतिः चिंतामणिः पार्थः श्लोक-७, ४०८५१. (१) वंभणवाडवीर स्तव सवालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६४११.५, १२X४७).
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महावीरजिन स्तवन- बंभणवाडामंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणावलिवल्लीण; अंति: गुरु रयणसेहररस, गाथा-२५, (वि. कृति के अंत में 'श्री सोमदेवसूरीश्वर विरचितं' ऐसा उल्लेख किया है.) महावीरजिन स्तव - बृहत् - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीनी आवलि श्रेणि; अंति: तेहनु विलास दिउ. ४०८५२. इरियावही सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५X११, ११४३५)
इरिवावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः श्रुतदेवीना चरण नमी, अंति विनयविजय उवझाय रे, बाल- २, गाथा २६.
४०८५३.
(#) गौडीपार्श्व स्तोत्र, मंत्र संग्रह व कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अंत में सूक्ष्माक्षर में वर्णाक्षर दिये हुए हैं. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, २८x२१).
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१. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयति जगति चंद्रः; अंति: करणं कामितकरणं, श्लोक-११.
२. पे. नाम पद्मावती, लक्ष्मीदेवी आदि मंत्र संग्रह. पू. १अ १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ. पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-).
३. पे. नाम औपदेशिक कवित्त-जीभोपरि, प्र. १ आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: जीभ जनम उधरे, अंति: जीभ वली वली वंदिडं, गाथा- १. ४०८५४. आदिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जै, (२५.५४११.५, ११४३८).
आदिजिन स्तवन, मु. विमलसोम, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर चरणकमल नमी, अंति: अरिहंतना गुण गाउ, ढाल-४, गाथा - २६.
४०८५५. (+) पंचमि नमस्कार व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, ११४३२).
१. पे. नाम बीजनी थोड़, पृ. १आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंतिः कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा- ४. २. पे. नाम. अष्टम्यां स्तूती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि मंगल आठ करी जस आगल, अंतिः तपथी क्रोड कल्याण जी, गाथा- ४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ३. पे. नाम. पंचमीनी थोड़, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. एकादसीनी थोड़, पृ. ३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूअडी; अंति: संघ तणा निसदिस,
गाथा-४. ५. पे. नाम. तेरसतीथौ स्तुती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ६. पे. नाम. चतुर्दसी स्तूती, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचमि नमस्कार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीगडे बेठा वीरजिन; अंति: रंगविजय लहो सार, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४०८५६. (+#) पुण्य व अहिंसा कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ८४५६). १. पे. नाम. पुण्य कुलउ सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदिअत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०.
पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपुण्यकुलना ५५; अंति: पाम्या अनइ पामिस्यई. २.पे. नाम. अहिंसा कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तत्थ पढमं अहिंसा; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
अहिंसा कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहिलो संवर; अंति: (-). ४०८५७. नवतत्त्वसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य प्रत., जैदे., (२६४११, १३४५६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परिअट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. ४०८५८. (#) गुरुणांप्रदिक्षणा गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४५७).
प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोअमसोहमजबूपभवो; अंति: पढम हवई मंगलं, गाथा-२५. ४०८५९. मुहपत्तिपडिलेहण विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ३४३४).
प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थट्ठिी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५.
प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली पहिलेहणनू नाम; अंति: मनमाहिं चिंतवा कह्या. ४०८६०. (+#) मौनएकादसिनुं गुणणो, संपूर्ण, वि. १७८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जमालपुर, प्रले. मु. भानुमेरु;
पठ. श्रावि. देववहजी; मु. प्रेमचंद्र (गुरु पं. आनंदविजय); गुपि.पं. आनंदविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. देववहुजी का नाम सुधारकर लिखा गया है व आनंदविजय एवं प्रेमचंद्र का नाम पीछे से किसी विद्वान द्वारा लिखा गया है. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४३).
मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ४०८६१. (+#) सवइया स्थूलभद्रव मेतार्जमुनि कि ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, २१४४०). १.पे. नाम. सवइया स्थूलभद्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: एक समें च्यार सिष; अंति: थूलभद्र सुप्रस्नजी, गाथा-९. २. पे. नाम. मेतार्जमुनि कि ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण.. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुरग थकी आए; अंति: तिन लोक ठुकराइ, ढाल-२,
गाथा-२१.
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१९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०८६२. (#) देवलोक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ११४३३).
देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरस्वति; अंति: भवतणुंपातिक हर्यु, ढाल-७,
गाथा-४४. ४०८६३. १२ भावना नाम सह टबार्थ व २२ परिषह नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., दे., (२५.५४१०.५, ३४३८). १.पे. नाम. १२ भावना नाम सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.
१२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनित भावना १ असरण; अंति: स्वरुप बोधबीरज भावना.
१२ भावना नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भरथ चक्रवत भाई; अंति: भावना कही भगवतै. २. पे. नाम. २२ परिषह नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: दिगंछा परिसहे १; अंति: दंसण परिसह २२. ४०८६४. वैराग सिज्झा व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-३५(१ से ३५)=१, कुल पे. २, जैदे.,
(२५.५४१०.५, १६x४८). १. पे. नाम. वैराग सिज्झा, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण, ले.स्थल. दिली, प्रले. रामचंद.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, रा., पद्य, आदि: दुलभ मीनख जमारोपायो; अंति: ते लहसी भवनो पार रे, ढाल-२,
गाथा-३६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मा.गु., पद्य, आदि: पहिली वलि प्रणमुंजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ४०८६५. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ६४३१). सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुर्ब बिदेह पुखलावती; अंति: जिनहरख घणे ससनेह,
गाथा-५. ४०८६६. (#) चंदाप्रभुजी को तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १०४२२). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: श्रीचंदाप्रभू आज जिन; अंति: (अपठनीय),
गाथा-७, (वि. किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४०८६७. पर्युषणपर्व थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ११४३२).
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवस माहे सार; अंति: जीनेंद्रसागर सूखकार,
गाथा-४. ४०८६९. (+#) भवानी स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५४१०, १७X४२). १.पे. नाम. भवानी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मनविजय. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कमलरालविहंगमवाहन; अंति: रंजयति स्फुटम्,
श्लोक-१३. २. पे. नाम. कवित्त, दुहादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक सह अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
अजैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
अजैन गाथा का अर्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०८७०. (#) शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५९, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२,
१२४३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवंत्युत्तमसंपदः, श्लोक-९. ४०८७१. (+#) रोहिणीतप वीधी स्तवन व चरणकरणसित्तरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४३९). १. पे. नाम. रोहिणीतपवीधी स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. रोहिणीतपविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: पंडित वीरविजयो जयकरो,
ढाल-४, गाथा-४७. २. पे. नाम. चरणकरणसत्तरीनी सजाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध; अंति: जगमां सुजस वाधो जी,
गाथा-७. ४०८७२. कालमांडला विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३६).
कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुंइरियावहि पडि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४०८७५. (#) ब्रम्हचारी की सझाय, संपूर्ण, वि. १७८३, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३८).
१६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: बर्मचारी चुडामणि जिण; अंति: खेम भणै सुखकार हो, गाथा-१९. ४०८७६. (+#) सिद्ध स्तुति, संपूर्ण, वि. १७५१, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४०). सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगन्नाथ जगदीश जगबंधु; अंति: निज दृष्टि
देवी, गाथा-२१. ४०८७७. (+#) सुपार्श्वजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४५४). १. पे. नाम. मंडवगढसुपास स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढमंडन, आ. गुणाकरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि पहिलु सासणदेवी; अंति: सुपास
भविहि भवि, गाथा-२१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमुपासनाह प्रह समि; अंति: (-),
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है)। ४०८७८. (+#) नेमिनाथ स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, पठ. पं. गुणसोम, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. 'चिरंजीवी पंडित गुणसोम पठिनार्थ' ऐसा अंत में अन्य किसीने लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं विनवउं जादव; अंति: सिद्धिपुरी निवास, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: निष्ठुरकमठमहासुर; अंति: धरणेद्रवरपत्नी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: त्रिदशविहतमानं सप्त; अंति: त्यादिकृद्धुरंगी, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४०८७९. (#) मोनएकादशीदिने एकसोपंचासजिन नाम, संपूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७).
मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०८८०. (+) मोनएकादसीनी सीजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२६४११, १२४४०). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीगोयम पुछे वीरने; अंति:
सुव्रतरषी सझाय भणि, गाथा-१५. ४०८८१. (+#) पाशक केवली, अपूर्ण, वि. १७२३, वर्षे रामकरांभोधिक्षपाकरमिते, पौष कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम,
पृ. ५-१(४)=४, ले.स्थल. बेन्नातट, प्रले. मु. समर्थ; पठ. मु. अमरसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४५७). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सत्यापाशक केवली, श्लोक-१८४, (पू.वि. श्लोक
१२९ अपूर्ण से श्लोक १७९ तक नहीं है.) ४०८८२. (#) हीररतननी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ११४२८-३२).
हीररत्नसूरि सज्झाय, मु. उदयप्रताप, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेमदा प्रेमसुंगीत; अंति: हीरगण बोलता हरख पूरे, गाथा-७. ४०८८३. (#) नालंदापाडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, ३६४२४-२६). नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: मगध देसमाहे वीराजे; अंति: ज्ञान तणो
परकासो जी, गाथा-२१. ४०८८५. मेघकवर की सज्याए, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कसनगढ, प्रले. जगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १४४३५).
मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: थारइ तो कारण मेहा; अंति: सेवक मुनि गुण गाया, गाथा-११. ४०८८६.(#) नवकार महिमा, संपूर्ण, वि. १९४२, फाल्गुन शुक्ल, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. रत्नसागर; पठ. सा. चोथमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५.५४१२.५, १५४३४). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयांण; अंति: सेवा देज्यो
नित, गाथा-१३. ४०८८७. चतुर्दशीदिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, ४४३३).
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४.
पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे भगवंत केहवा छे; अंति: एस्नातस्यानो अर्थ. ४०८८८. आधासीसी कथा व तावरो मंत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली,
प्रले. मु. जीवणमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १८४४५). १.पे. नाम. आधासीसी कथा, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहि., गद्य, आदि: ॐ नमो ऐठाणपुर पाटण; अंति: सोमाथो आराम हुवे. २.पे. नाम. ज्वरनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
___ ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल; अंति: सार मंत्र जपीये सदा, गाथा-१६. ४०८९०. (+#) बारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६६, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६).
१२ व्रत सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिनेसर पाय नमी; अंति: कर्यो सुणतां सुखदाय, ढाल-५. ४०८९१. (+#) बारह भिक्खुपडिमा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, २१४४८).
१२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तम संघयणनो धणी; अंति: तउ मिछामी दुक्कडं. ४०८९२. (#) नवकारमंत्र त्वना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १.प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे..
(२५.५४१२, १४४४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१९७ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: मंत्र नोकार पढे भाई; अंति: जाकि लबध तणे
आई, गाथा-३२. ४०८९३. (+) वनजारानी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३९, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. स्यामली, प्रले. मु. कुस्यालराय (गुरु मु. रामचंद्र); गुपि. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४२).
वणजारा सज्झाय, छजमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: चुत्रु वणजारा हो; अंति: सिवपुर लीला भोगवै, गाथा-२७. ४०८९४. (+) दंडक स्तवनम्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १८४५०).
पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर;
अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ४०८९५. (+) महावीरजिन व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें., दे., (२५.५४११.५, १२४४२-४६). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देज्यो परमाणंद रे, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१६ तक
नहीं है.) २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जिणेसर साहिबा; अंति: जिनहरखे राखुं ध्यान, गाथा-७. ४०८९६. (#) श्रीमंधरस्वामीनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १०४३५).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी; अंति: दरसन दीजे नाथ, गाथा-१६. ४०८९७. (#) गायत्री मंत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५११, माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सोझीत्तकनगर, प्रले. ग. शिवहर्ष;
अन्य. मु. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य प्रति. पत्रांक १अ स्थित फुल्लिकाओं के खाली जगह में 'सं १८३६ डा पोस सुदी १० गुणसागरेण' इस प्रकार लिखा हुआ है. पत्रांक अंकित नहीं है. प्रति के प्रारंभ में 'नमो ब्रह्मणे' लिखा गया है. मूलपाठ लाल व टीका काली स्याही से लिखी गई है., पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १४२४).
गायत्री मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: यो नः प्रचोदयात्, श्लोक-१. गायत्री मंत्र-व्याख्या, उपा. शुभतिलक, सं., गद्य, आदि: चिदात्मदर्शसंक्रांत; अंति: (१)विधयोप्यत्र ज्ञेयाः,
(२)क्रीडामात्रोपयोगमिदं. ४०८९८. (+#) संभवनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दुरगू ऋषि; पठ. मु. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०४३७). संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरेसंभव; अंति: हेला ते लीला तरइ, गाथा-४,
(वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४०८९९. संभवजिन व वेहरमानजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९११, चैत्र कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. घोघाबंदर, पठ. श्रावि. वखतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनवखंडापार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२५.५४१२, ११४३८). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो रे संभव; अंति: सुणज्यो देवाधिदेवा, गाथा-७. २. पे. नाम. वेहरमानजीन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामि; अंति: अविचल पदवी ए मांगु,
गाथा-१८. ४०९००. नारकि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२, १२४३२).
नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६.
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१९८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०९०१. (+#) अष्टप्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १८५९, आषाढ़ शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. न्यानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: दीजे सुख अभंग,
ढाल-८, श्लोक-८. ४०९०२. (+) कर्मफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १६४५०).
कर्मविपाकफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर; अंति: लेसु तेहना नाम रे, गाथा-२५. ४०९०३. अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा.खेमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ११४३३). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीने; अंति: वहेला वरसो सिद्धि,
गाथा-११. ४०९०४. चोरासीलाख खमावानी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य.सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सा. खीमकोरश्री का नाम बाद में किसीने लिखा है., दे., (२५.५४११.५, १०x२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवेंराणी पदमावती; अंति: (१)कहे पापथी
छुटे ततकाल, (२)कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ४०९०५. (+) चार शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'खीमकोरसरी' ऐसा उल्लेख किसीने पेन्सिल से किया है., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३१). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने च्यार सरणा; अंति: भवनो हूं पारो जी,
अध्याय-४, गाथा-१२. ४०९०६. (+#) सचितअचित सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल
करजोडी कहई, गाथा-१८. २. पे. नाम. निरंजन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दूषन; अंति: ध्यानथी सिद्ध दरसन, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सुमतिनाथजी गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गईती समवसरणमा; अंति: जीतना डंका वाजै रे,
गाथा-५. ४०९०७. (#) जैमलऋषि व अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख शुक्ल, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. कीसगढ, प्रले.सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखु); गुपि.सा. अखु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३५). १.पे. नाम. गुण सीझा, पृ. १अ, संपूर्ण.
जैमलऋषि सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: जंबुद्वीपै भरथमै; अंति: पुरी छै मनरी कोड, गाथा-१६. २. पे. नाम. अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में
लिखी गई है.
रा., पद्य, आदि: कुसाबदी कैर दातारनी; अंति: कुप्य का नीकी कुती, गाथा-१५. ४०९०८. (+#) सरस्वतीदेवी अष्टक व स्तोत्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १७४३७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण..
मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमो ज्योतिमूर्ति; अंति: चंद्रकीर्तिं पुनातु, श्लोक-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० २. पे. नाम. सारदाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र; अंति: विलोका निरस्तानिदानी, श्लोक-८. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
मु. अचलसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संसारस्वरूपं महाकाल; अंति: नमो आदिनाथ, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पुहि., पद्य, आदि: ब्रिह्मज्ञान नही जान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ प्रारंभ तक है.) ४०९०९. (+#) थूलीभद्र स्वाधाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३८-४२). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिने चरणे नमी; अंति: तस घर नित रंगरोल,
गाथा-१८. ४०९१०. (-2) आदिजिन पदव सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक
का पता नहीं चल रहा है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२६४१०.५, १६४५१). १. पे. नाम. ७ व्यसन सझा, पृ. १अ, संपूर्ण.
७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्र उपगारि साध; अंति: रंगी जेनरंग लहे, गाथा-१८. २. पे. नाम. साधुस्वरूप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: मोह महारीय जीपक; अंति: भुदर मांग जी इम, गाथा-१४. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
भूधर, पुहि., पद्य, आदि: लगि लव नाभनंदणसुं; अंति: श्रीजण कहत भुद्रई, गाथा-४. ४०९११. (#) शांतिजिन व विंसतिपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२४.५४११, ११४२७-३२). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. विंसतिपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
२० पद स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वित हरख धरी अनुभव; अंति: प्रभु अरज अवधरणा, गाथा-५. ४०९१२. (#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३८-४०). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल
५, गाथा १ प्रारंभ तक है.) ४०९१३. (#) महावीर स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१).
महावीरजिन स्तवन, उपा. कर्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सवा लख देसांमूलि; अंति: पाठक इम भणइ ए, गाथा-१४. ४०९१४. चतुर्विशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४२६).
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: रुतदेवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ४०९१५. (+#) शांतिजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३५). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल महिल मै अमोल; अंति: देव कहै सुखकारी, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमती तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उचिसी मेडी मै अबल; अंति: देव कहै जे जेकारी, गाथा-८. ३. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शांतिजिन स्तवन- विक्रमपुरमंडन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८३२, आदि अधिक आनंद चित ऊपनो, अति: वीनवे श्रीजिनचंद, गाथा ११.
४०९१६. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६१२, १२x२८).
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धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीनवचन बरागीया, अंति: होवे जय जयकार, गाथा-१३, (वि. इस प्रति में रचना स्थल आलणपुर लिखा है.)
४०९१७. (#) सेतुजाजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७१२, ९X३१).
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगनायक जगगुरु; अंति: द्यो दरस सुखकंद, गाथा-६. ४०९१८. (+) अष्टमी, मौनएकादशीतप स्तवन व बैराग सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे, ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१० १४X३५-४०).
स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४१२, १४४४० ).
,
१. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे म्हारे ठाम, अंति: कांति सुख पामे घणो, ढाल - २, गाथा- २३.
२. पे. नाम. मौनएकादशीतप स्तवना, पृ. २अ ४आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: पामीयै मंगल घणो, बाल-३ गाथा २६.
३. पे नाम, बैराग सिज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण,
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: साधु भाई अब हम कीनी; अंति: मुगति महानिध पाई, गाथा- ६. ४०९१९. (#) वासुपूज्यजिन आदि स्तवन संग्रह व २४ जिन सवीया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
ले. स्थल, नाडोल, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की
,
१. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ, अंति: जस कहे
.
हेजे हिलस्युं, गाथा-५.
२. पे. नाम. पर्युषणा स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे पुन्य करो पुन्य; अंतिः बुधी माहा मिलिया रे, गाथा-७. ३. पे नाम, २४ जिन सवीया, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन सवैया, मु. जालम, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंतिः जालम वंदत तेज दिवाजे, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. सवैया २२-२५
"
तक है.)
४०९२१. (#) आध्यात्मिक स्वाध्याय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४४११, १३x२८-३४)
१. पे. नाम. आध्यात्मिक स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन धरीय उमाहो; अंति: दिन दिन रंग रसाल, गाथा- ११. २. पे नाम, आदि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण
आदिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य वि. १८४७ आदि हो प्रीतडली लगन थई, अंतिः सूख नीत सवायो,
गाथा - ९.
४०९२२. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६४११, १८-२०X३०-३५ ).
""
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती जीव अंति: कीवड जाणपणान सार, ढाल -३, गाथा-३६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४०९२३. आठमनी सझाय, संपूर्ण वि. १९४४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, प्रले. कामेश्वर शिवलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११, १०X३९).
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अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट करम चूरण करी रे; अंति: आसीस मेरे प्यारे रे, गाथा-६.
४०९२४. (०) सीचलन्नत सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., (२५.५४११, १२X३४).
औपदेशिक सज्झाय - शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम रे सीखामण; अंतिः अष्ट महाजस विस्तरे, गाथा - १०, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम उल्लिखित नहीं है.)
४०९२५. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोर श्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५.५x११.५, १२५३३).
४०९२६.
मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु, पद्य, आदि: वरसे वरसे वचन सुधा, अंतिः सेंचो समकित छोडे, गाथा- ९. (+) नववाडि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे.. (२६११, १६४५४).
९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदिः आद्ये आदिजिनेश्वर, अंति: (-), (पू. वि. ढाल ६, गाथा ५ प्रारंभ क
है.)
४०९२७. (+) पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११.५, १०x२८-३२). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं, अंतिः नित्वारग पारगा होह, आलाप ४. ४०९२८ (०) संख्या विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२६४११.५,
१५X४०).
"
उपधानतय विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-).
४०९२९. (+४) पार्श्वजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल
२०१
गयी है, जैदे., (२५x११.५ १२-१४४४४-४८).
१. पे. नाम. पारस्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- पचविधा, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि परम पुरुष परमेसर, अंति: लहीए अविचल पद निरधार,
गाथा-७.
२. पे. नाम. महाविरजीरो स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: माहाविरजी तुम्हारो अंतिः रुपचंद रस मांणे ते, गाथा-७.
३. पे. नाम संतिनाथजीरो स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदिः संति जिनद भले भेट्या, अंतिः जे जिनदरसण कांमिरे, गाथा- १५, (वि. दो पाद की १ गाथा गिनने से १५ गाथा हुई है.)
४०९३०. (+४) ख्यालीरामतपसी की सिज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १४-१२ (१ से १२) -२ प्रले. श्राव. भगवानदास (गुरु मु. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२५.५४११.५, १२x२६).
ख्यालीरामतपसी सज्झाय, श्राव. भगवानदास, रा. पद्य वि. १९वी आदि: प्रथम नमो अरिहंत की, अति: कहै
"
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भगवान पंथ मै आउं, गाथा - १५, संपूर्ण.
४०९३१. (#) मौनएकादशी आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १३४५०)
१. पे नाम, एकादशी स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण ले. स्थल वल्लभीपुर, प्रले. पं. हिंमतविजय गणि पठ. श्राव दलीचंद अन्य. पं.
कस्तूर.
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२०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल
अतिभलो, ढाल-३. २. पे. नाम. सीद्धचक्र स्तवनम्, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुसल कमलानो; अंति: दानवीजे जयकार रे,
गाथा-२३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यो; अंति: सागर सुख पायो रे, गाथा-१०. ४०९३२. (#) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ४ व प्रत्येकबुद्ध आदि आलापक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३४). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन चतुर्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखकने मात्र गाथा-९ तक ही
गाथांक लिखे हैं.) २.पे. नाम. ६३ शलाकापुरुषवर्णन आलापक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: पुणरवि समोसरणे; अंति: चउवीसाए जिणवराणं. ३. पे. नाम. च्यारप्रत्येकबुधज्झयणं, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
४ प्रत्येकबुद्ध आलापक, प्रा., गद्य, आदि: वाणारसी नयरीए; अंति: सिद्धिं गया एगसमएण. ४. पे. नाम. २४ जिन पारणक आलापक, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: संवच्छरेण भिक्खा; अंति: करति महिमं जिणंदस्स. ४०९३३. (+) इग्यारसनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ११४३५).
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरजी सुणो; अंति:
सुव्रत सेठ सिझाय भणी, गाथा-१५. ४०९३४. (+#) संस्तारविधि गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. किनारी पर कागज चिपकाया हुआ होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०).
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निस्सिही निस्सिही; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-२५. ४०९३६. (#) सुमतिनाथ गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्रले. उमेद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नहीं लिखा है किन्तु पीछे से किसीने पेन से पत्रांक लिखा है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ११४२७-३०). १. पे. नाम. सुमतिनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मागु., पद्य, आदि: कर तासूतौ प्रीत; अंति: विरुद साचौ वहै रे, गाथा-४. २. पे. नाम. वासपूज्य गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: इम जपै जिनराजौरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. विमलनाथ गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घरि आंगणि सुरतरु; अंति: तुहि ज देव प्रमाण, गाथा-५. ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन १, पृ. २अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा नीलो; अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ५.पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ६. पे. नाम. सीधाचलजीनोतवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
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शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि जात्रा निनांणु, अतिः पदम कहै भव तरियै, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
४०९३७. (+#) सील सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५X११, १५x५२-५५).
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे, अंतिः कुमुदचंद समुज्जलौ, गाथा - १०.
४०९३८, (+४) श्रीमंदिरस्वामी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५. ५X११.५, १०X३५).
१. पे. नाम. श्रीमंदिरस्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशुतमंदिर साहिबा, अंति: राखे तुमारे पास ए,
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गाथा - १३.
२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदिः आज आनंदघनन मट्यो जी; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिस, गाथा - ९. ४०९३९. (+#) सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२७X१२, ९x३२).
सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्म, आदिः समरू सुखदायक मनसुद्ध, अंतिः श्रीजिनचंदनी वाणी, गाथा-४. ४०९४०. (+#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. साणंदनगर, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों
की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ११४४१).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. लाभविजय, पठ. श्रावि. अवल, प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तवन- अमीझरा साणंदनगरमंडन, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउदराजना सहेरमा रि; अंति: रामविजय उवझाय, गाथा- ७.
२. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. अवल; श्रावि. सोनबाई श्राविका श्रावि. वजकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- अमीझरा साणंदनगरमंडन, मु. महेंद्र, मा.गु., पद्य वि. १८६२, आदि: जगगुरु वामानंदन भगवं अंतिः महेंद्र पद अनुसरे, गाथा - ६.
४०९४१, (+४) नंदीसर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.,
(२५.५x१०, ११४३५).
नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालय; अंति: जैनचंद्र गुण गावौ रे, गाथा - १५. ४०९४२. (#) दंडक प्रकरण, रोहिणी स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११-१५X३६-४२).
१. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २४ से २५ अपूर्ण तक लिखा है.)
२. पे नाम रोहिणि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण
रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर, अंतिः लब्धीरूविजयकार, गाथा-४,
३. पे. नाम क्रोध सझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाला क्रोध नः अतिः प्रीत० कहे नित्ति
रे, गाथा-७.
४. पे नाम. मानपरिहार स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे मानवी रे, अंतिः कहे प्रीत सवखाण रे, गाथा-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५. पे. नाम. माचापरीहार सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: माया निवारो मन थकि अंतिः वयण संभाल हो, गाथा-५.
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४०९४३. (# ) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मनंछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६x११.५, १२४३९).
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत, अति जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४०९४४. (+) पंचम व अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १५X४०). १. पे नाम. पंचम स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करि मेरुशिखर, अंतिः विघन अम्हारां जी, गाथा- ४.
२. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि मंगल आठ करी जस आगलि, अंतिः तपथी कोडि कल्याण जी,
गाथा-४.
४०९४५ (-) साधुअतिचारचिंतवन गाथा व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-१३ (१ से १३) १, कुल पे. ५. प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे (२४४११, १३४३२-३८).
"
१. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, प्र. १४अ संपूर्ण.
मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीयमंदिर मूझने; अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४.
२. पे. नाम वीरजिन स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवी देयादंबा, श्लोक-१.
३. पे नाम, पार्श्वदेव स्तुति, पृ. १४अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: विश्वस्वामी जीयात्पा अंतिः विशालां मंगलमालाम्, श्लोक-४.
४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि कि धपमप, अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
.पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: साहुदेहस्स धारणा, गाथा-२.
४०९४६. (+) उपदेशरत्नकोस सह बालावबोध, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. धनानाद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १३४३३).
उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सच्छाए, गाथा - २५.
उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेशरूपी या रत्न; अंतिः क्रीडा कर .
४०९४७. (#) आदीस्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, २१x६४). आदिजिन स्तवन, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पढम सारद तणं सुद्ध, अंति: मुनि ते इणी परि थुणइ, गाथा-२८. ४०९४८. (# ) चतुर्विशंतिजिन स्तोत्र, एकसोसित्तेरीयो यंत्र व घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३५३२).
१. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
"
२४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगभिंत, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (वि. कृति के साथ में पैंसठिया यंत्र भी दिया गया है.)
२. पे. नाम. एकसोसित्तेरीयो यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२०५ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४०९४९. (+#) ऋषभजिन स्तवन, समवसरण अधिकार व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७). १.पे. नाम. घ्राणपुरमंडन ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. केसरविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय). आदिजिन स्तवन-घांणोरामंडन, मु. विनोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भविया घाणोरामंडण; अंति: वृषलंछन जिन
गायोरे, गाथा-७. २.पे. नाम. समवसरणाधिकार, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८०८, चैत्र शुक्ल, १२, ले.स्थल. घ्राणपुर, प्रले.ग. केसरविजय (गुरु
ग. ऋद्धिविजय); गुपि. ग. ऋद्धिविजय (गुरु ग. भाणविजय). १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्विमान; अंति: भूषितां पातु वः, श्लोक-१, (वि. कृति के साथ में पर्षदा
कोष्टक भी आलेखित है.) ३. पे. नाम. सुभाषित दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४०९५०. (#) साधु स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१).
श@जयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मुनिवर जे संजम; अंति: गणि भाखे देवचंदरे, गाथा-११. ४०९५१. (#) शांतिजन जन्माभीषेककलश, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३९).
शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रीजयमंगलाभ; अंति: सांतिजन जयकार,
ढाल-२, गाथा-४२. ४०९५२. (+#) नेमीस्वर रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. सुखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १६४३५).
नेमराजिमती स्तवन, मु. गोपाल, मा.गु., पद्य, आदि: अवगुण कोइ न मोरत; अंति: बिनवइ दास गुपाल कंत, गाथा-२९. ४०९५३. (-#) बृहेशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, १६x४०).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ४०९५४. (4) पार्श्वजिन १० भव व ऋषभजिन १३ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. १०१,
अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १६४३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन १० भव वर्णन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: इणि जे जंबूदीपइ; अंति: अज्ञान तप करइ. २. पे. नाम. आदिजिन १३ भव वर्णन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: पछिम महाबिदेहइ; अंति: तेरमो भव कहइ छइ. ४०९५५. (#) केशवगुरु भास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं
चल रहा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४११.५, १६x४२). १.पे. नाम. केशवगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. भिक्खु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर नित्य; अंति: भिखू कहै उछाह हो, गाथा-१२. २. पे. नाम. केशवगुरु भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. भिक्खु, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर सानिध कर; अंति: मुनि भिखू जयकार, गाथा-१३. ४०९५६. पार्श्वजिन व सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. य. उत्तमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य,
जैदे., (२७.५४१२, ११४३७-४०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- वढवाणमंडन, मु. हंस, मा.गु., पद्म, आदि: सकल मंगल सुखसागर, अंतिः हंस लीला लहि यणी, ढाल-४.
२. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण.
उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य वि. १७६९, आदि: श्रीसुविधि जिनंद अंतिः गुण देवाधिदेवना रे, ढाल २, गाथा २९. ४०९५७. (+) जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२७४१२.५, ९४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीर नमिऊण अंति: रुद्दाओ
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सुवसमुद्दाओ, गाथा-५२.
४०९५८. (+) चउदगुणस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७७४ २ वैशाख कृष्ण, ५. गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. वडनगर, प्र. वि. पत्रांक ३अ से ४आ में यंत्रालेखन हेतु कोरे यंत्र किये हुए हैं., संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १३३१).
१४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: चंद्रकला निर्मल सुह; अंति: पाप पंथ परिहरीआ रे, गाथा ६० (वि. बीच-बीच में गुणस्थानक के कोष्टक भी आलेखित हैं.)
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(*) नंदषेणऋषि सिज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, ९४२८).
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी नै जाईयै; अंति: परघर गमण निवारि, गाथा - १०. ४०९६०. () राइसंथारासूत्र, अभिनंदनजिन पद व वीर स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २६.५X१२, १०X३५).
१. पे. नाम. राइसंथारासूत्र, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अणुजाणह परमगुरु गुरु, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा २०.
२. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वे करजोडि वीनवु रे; अंतिः सम विषमै जिनराज रे,
गाथा ५.
३. पे नाम वीर स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण,
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ४०९६१. (+#) श्रावकपाक्षिकअतिचार व अतिचार संख्या गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११, १७५९).
१. पे. नाम. श्रावकपाक्षिकअतिचार, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण.
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम. आवक अतिचार संख्या गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण
प्रा., पद्य, आदि: नाणाइ अट्ठ वयसङ्कि अंतिः चठवीससयं तु अईआरा, गाथा १.
४०९६२. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६.५X११.५,
१७५७).
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-).
,
४०९६३. (+) पार्श्वप्रभु स्तव महिम्नाख्य, संपूर्ण, वि. १८८३ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. प्र. ले. मास वाला भाग खंडित होने से पढ़ा नहीं जा रहा है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १२३७). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५४, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंतिः लिखितो मोद भरतः,
श्लोक-४१.
४०९६४. (+) षट्दर्शनसमुच्चयसूत्र व अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७११, १६५३).
१. पे नाम षट्दर्शनसमुच्चयसूत्र, पृ. १अ- ३अ संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, श्लोक-८७. २. पे. नाम. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अगम्यमध्यात्मविदाम; अंति: मयमुपाधिं विधृतवान,
श्लोक-३२. ४०९६८. (#) खंदकमुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सांतिकरण चरणे नमी; अंति: ते लहि अविचल
राज, ढाल-६. ४०९७०. (#) गुणस्थानविचारगर्भित सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३६). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद
सुमतिदाता; अंति: कहै इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ४०९७१. (+) गुरुगुण घउली आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५,
९४३५). १. पे. नाम. गुरुगुण गउली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सजि नव सत शणघार सखि; अंति: आतमराम रामा गणि,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. नवपद घउली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवपद गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर चतुर चकोरडि; अंति: दिजे हो मुज सुख अनंत,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दन क्यारे आवसे; अंति: उचर तारे निरमल थासु, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४. पे. नाम. पांचमेरुमंदीरनु गर्गु, पृ. २आ, संपूर्ण.
५ मेरुमंदिर नमस्कार, सं., गद्य, आदि: श्रीसुरेंद्रनाथाय नम; अंति: द्युन्मालीनाथाय नमः. ५. पे. नाम. ऐकादशी थोय, पृ. २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: ऐकादसी यतीरुयडी; अंति: संग तणे नत दीस,
गाथा-४. ४०९७२. (+) आदिजिन आदि स्तवन संग्रह व ऋषिसर सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित.,
दे., (२६४११.५, १२४४१). १. पे. नाम. जिन पदं, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तों वधाइ राजा नाभ; अंति: आदीसर दीयालरे, गाथा-६. २. पे. नाम. ऋषिसर सीजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुंली, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसे; अंति: भुधर मागें एह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. साधारणजिन विनती स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पंन्या. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुन गुरु सोमीजी; अंति: निरभय कीजीये जी, गाथा-१७. ४. पे. नाम. नाकोडोपार्श्वनाथ का तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बेठालील करो; अंति:
सुंदर कहे गुण जोडो, गाथा-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०९७३. (#) पार्श्वजिन व वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९४, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १०४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वचन अमृत; अंति: भाग्यदिसा अब जागीरे,
गाथा-७. २.पे. नाम. शीमंधरजिन स्तवन, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण.
२० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधर जुगमंधर; अंति: जराना दुख वारे रे, गाथा-७. ४०९७४. स्थापनाकल्प सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२,११४४१).
स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरव नवमाथी उद्धरी; अंति:
वाचक यश गुण गेहरे, गाथा-१५. ४०९७५. पौषधविधि स्तवन वगोतमसामीनी सीज्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२,
११४२९). १. पे. नाम. पौषधविधि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नग भलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) २. पे. नाम. गोतमसामीनी सीज्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी अती; अंति: एह प्रकासी वाणी,
गाथा-१२. ४०९७७. (+#) आदिजिन आदि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक है.) २.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१, (वि. इस प्रति में कर्ता
का नामोल्लेख नहीं है.) ३. पे. नाम. दीवालीमहोच्छव स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए दीवाली परव पनोतु; अंति: सकल संघ आणंदा जी,
गाथा-४. ४. पे. नाम. चैत्रीपुनमजिन स्तुती, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण.
चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सुदर; अंति: लब्धिविजय गुण गाय,
गाथा-४. ५. पे. नाम. सीधचक्र स्तुती, पृ. १३आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविर जीणेसर अती; अंति: जीनविजे गुण गाय, गाथा-४. ४०९७८. (+#) चंद्रराजारास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३९). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास ४ ढाल ३३ गाथा ३
अतिम पादांश से ढाल ३४ गाथा २२ अपूर्ण तक है.) ४०९७९. (+#) वीसस्थानकतपविधि स्तवन व नवपदओली पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१. पे. नाम. वीसस्थानकनो विधनो स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण राज्येगच्छाधिपति विजयप्रभसूरि (गुरु आ. देवसूरि,
तपागच्छ).
२० स्थानकतपविधि स्तवन, ग. विद्याकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शारद पाव प्रणामी करी, अति विद्याकुशल कहे सीस, गाथा-१३, (वि. रचना प्रशस्ति अंतर्गत 'गुणपंचासी वत्सरे' इस प्रकार उल्लेख मिलता है.) २. पे. नाम. नवपद ओली पद, पृ. ९आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: धरम धोरी पाटण, अंति: गुरुने दीधा बहुमान, गाथा-२.
४०९८०. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, दे. (२७४१२, ७५१६).
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जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामिने बिन अंतिः
भाग्यविजय जय जयकार, गाथा - १५.
४०९८१ (०) सकलात् स्तोत्र व चउदगुणठाणाना नाम, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. प्रत के प्रारंभ में 'श्रीसत्यविजय गणि शिष्य पंडित श्रीसौभाग्यविजय गणि गुरुभ्यो नमः' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५. १०x३५)
१. पे. नाम. सकलात् स्तोत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः भावतोहं नमामि, श्लोक-२७.
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२. पे. नाम. चउदगुणठाणाना नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.
१४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्वदष्टि गुण अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १० गुणस्थानक तक ही लिखा है.)
४०९८२ (०) कर्मवहोतरी, करमछतीसी व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १५X४७).
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१. पे. नाम. जीवा की सिज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि मोहमिध्यात की नींद में, अंतिः रिष जेमल कहै ऐम, गाथा - ३५.
२. पे. नाम. कर्मवहोतरी, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
कर्मबहोतेरी, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर; अंति: नमो नमो कर्म्मराजा, गाथा - ७३.
३. पे. नाम. करमछतीसी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
कर्मछत्तीसी, पु,ि पद्य, आदिः परम निरंजन परम गुरु अंतिः करे मूड वढावै सिष्टि, गाथा- ३७.
४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पृ. ४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा पियु साजिणा, अंति: पामै रंगि सुख कोड, गाथा-९.
४०९८३. पिंडेषणा दोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७११.५, २८X७२).
गोधरी दोष, प्रा., पद्य, आदि; अहाकम्मं उदेसिअ अंतिः रसहेड दव्व संजोगा, गाथा- ६.
गोचरी दोष- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहाकम्म० आधाकर्म्म; अंतिः संयोग न मिलेवर.
४०९८४. नेमीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२६.५X११.५,
१०x४०).
नेमिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजी चालीर पाछा वली; अंति: सुभविर भले भगवंत रे, गाथा - ९. ४०९८५. (#) सुभद्रासती व संजतीराय चउढालीय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे.. (२६.५४११.५, २१४५९).
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१. पे. नाम. सुभद्रासती का चउढालीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
सुभद्रासती रास - शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सांमणि बीनवं अंतिः फली मनोरथ माल, ढाल ४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. संजतीराय महामुनी का चौढालीया, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
चित्रसंभूति चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु सरसति सामणी; अंति: स्वामी जणनी सेव, ढाल-४. ३. पे. नाम. विषइपचीसी, पृ. ३आ, संपूर्ण. विषयपच्चीसी, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो वीर कहइ गोतम; अंति: लाला छंडो विषय विकार,
गाथा-२६. ४०९८६. (+#) गोतमकुल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. महतावराय (गुरु मु. भवानीदास
ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ४४३९).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: श्रावक परइ दृष्टात, (वि. पत्र खंडित होने से आदिवाक्य
पढा नहीं जा रहा है.) ४०९८७. (#) ओपदेशिक पद व ५ इंद्रिय सज्झया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२६.५४१२.५, १२४४१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद-शीलविषये, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सितासतीने सील जो; अंति: मुकत लहो भवप्रानी, गाथा-४. २.पे. नाम.५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. धनदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: काया कोट सुहामणुं; अंति: सुणुंवाल गौपाल, गाथा-१९. ४०९८९. (#) षट्ऋषीश्वर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११-१३४३८-४२). पुरोहितपुत्र सज्झाय, उपा. सहजसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: सहज सलूणा हो साधुजी; अंति: स मुझ
सफल फली मनि आस, ढाल-३. ४०९९०. गोतमस्वामीनी सझाय व अजीतजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२,
१३४२७). १.पे. नाम. गोतमस्वामीनी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजणेसर केरोसीस; अंति: गोतम तूठि संपती
कोड, गाथा-९. २.पे. नाम. अजितजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली बधांणी रे; अंति: मोहन कहे कवी रंग जो, गाथा-५. ४०९९१. पंचमाआरानो भाव, अपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. जसरूप (गुरु
पंन्या. जिनेंद्रशील); गुपि.पंन्या. जिनेंद्रशील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है अतः पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., दे., (२६४१२, १०४२७). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भाखो वेण रसाल, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१०
अपूर्ण तक नहीं है.) ४०९९२. सामायक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०).
सामायिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सोहम गणधर; अति: भाव वसंत उल्लासे रे. ४०९९३. नवकार महिमा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अंत में नवकार माहात्म्य दर्शक तीन गाथा दी गई है., कुल ग्रं.४५, दे., (२७४१२.५, १२४४३).
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सकल मंगलिकनु; अंति: महिमा इम क्यौ छे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२११
४०९९४. (+) गुप्ति स्वाध्याय व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११.५, १५X४१).
१. पे. नाम. समिति गुप्ति स्वाध्याय, पृ. १ अ-४आ, संपूर्ण.
८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदिः सुकृत कल्पतरु श्रेणि, अंति: गुरु गुण वृद्धो जी,
२१X५४).
१. पे. नाम. ५ पांडव सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
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ढाल-८.
२. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, प्र. ४आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो शिवं श्रिये, श्लोक-३. ४०९९५. (१) ५ पांडव सज्झाव व महावीरजिनेंद्र स्तवन, संपूर्ण वि. १७१२, चैत्र शुक्ल, मध्यम, पू. १, कुल पे २ प्रले. मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५,
मा.गु., पद्य, आदि एहवा मुनिराय पांडव, अंतिः एहवा साध साहस धीर रे, गाथा-१५.
२. पे. नाम. महावीरजिनेंद्र स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. अभयराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर गुण गायसु; अंति: संसार पारि उत्तारि,
गाथा - ३३.
४०९९६.
. (+) वीरविद्या कल्प, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. मरम्मत करने योग्य प्रत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे. (२६११, १३x४७).
.
"
वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा. सं., प+ग. वि. १३२२, आदिः श्रीवीर जिनं नत्वा, अंति: मना लिखितवान्कल्पं, लोक- ९६.
४०९९७. (#) शाश्वतप्रतिमा वर्णविभाग विचार व जिनप्रतिमापरिकर विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११, १३४४२).
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१. पे नाम शाश्वतप्रतिमावर्णविभाग विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
शाश्वतप्रतिमावर्णविभाग विचार गाधा, प्रा., पद्म, आदि: पणधणुसय गुरुवाउ, अंतिः पडिमाणं भवे वनो, गाथा-५.
२. पे. नाम. जिनप्रतिमापरिकर विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
प्रा., गद्य, आदि: तत्थणं देवच्छंदए चउ, अंति: पायवडियाओ चिट्ठति.
४०९९८. (f) मरुदेवीमाता सज्झाव आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १४-१३ (१ से १३) -१, कुल पे. ५, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. बेलजी ऋषि); गुपि. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५x११.५, १४X३७).
१. पे. नाम, मरुदेवीनी संझाय, पृ. १४अ संपूर्ण.
मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ साथे नही बोलु; अंति: ऋषभदेव आणंदोजी, गाथा-५.
२. पे नाम, प्रास्ताविक दुहा, पृ. १४अ, संपूर्ण,
दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२, (वि. एक दोहा पत्रांक १४अ के हासिए में एवं दूसरा दोहा १४आ के हासिए में है.)
३. पे. नाम, अजैन गाथा, पृ. १४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्र के हासिए में लिखी गई है.
अजैन गाथा", मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा- १.
४. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सझाय, पू. १४अ - १४आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन मागु; अंति: देव करे धरम रखा जी, गाथा- १३. ५. पे. नाम. करकंडुराजऋषि स्वाध्यय, पृ. १४आ, संपूर्ण.
करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हु; अंति: प्रणमइ पातक जाय,
गाथा ५.
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२१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०९९९. (#) भक्तामर महामूल मंत्र, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. झेझोनगर, प्रले. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१०.५, १७४५८). भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: भक्तामर० ॐ नमो वृषभ; अंति: होमय फुट् स्वाहा, मंत्र-४८, (वि. मूल
स्तोत्र का मात्र प्रतीक पाठ लिखा गया है. मंत्र के साथ आम्नाय विधि भी लिखी गई है एवं अंत में मंत्रविधि सहित
स्तोत्र भंडार काव्य लिखे हैं.) ४१०००. मौनएकादशीपर्व स्तवन-ढाल १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६.५४११.५, १२४३९). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-),
(प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल १, गाथा ११ तक है.) ४१००१. (#) नववाडगर्भितशील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अमदाबाद,
प्रले. बुलाखीराम गणपतराम क्षत्रिय; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १२४३७). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणी,
ढाल-१०, ग्रं. ७१, (वि. इस प्रति में 'संवत सतरबासठीहो' इस प्रकार उल्लेख है.) ४१००२. (+#) चोविसतीर्थंकर चंद्राउला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ७)=२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७-२०४४०). २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु चरणकमल नमी; अंति: प्रतें जिनगुण सूणीइं,
गाथा-३५, संपूर्ण. ४१००३. (#) गढचित्तोड की गजल व उपदेशपचीसी, संपूर्ण, वि. १८१४, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. जावद नगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२.५, १५४६९). १.पे. नाम. गजल चीचोड की, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुरभूज धार; अंति: गजल खूब गाई,
गाथा-६४. २. पे. नाम. उपदेशपचीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
उपदेशबत्तीसी, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाना हो भाई; अंति: दानत सीख सुणीयो जी, गाथा-३२. ४१००४. (-#) ५ ज्ञान विचार व संथारा की पाटी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १५४३९). १.पे. नाम. ५ ज्ञान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पजवा अनंतगुणा, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अवधिज्ञान से लिखा है.) २. पे. नाम. संथारा की पाटी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपच्छिमा; अंति: वेरं मझं न केणइ. ४१००५. (+#) केशीगौतमगणधर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३६४११.५, ८-१४४३५). केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमिजे; अंति: रूपविजय गुण गाय रे,
गाथा-१६, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम नयविजय लिखा है.) ४१००६. नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४३४-३६).
नेमराजिमती स्तवन, मु. गीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोनानि आंगी रे सखी; अंति: विधी सहू को तर्या जी, गाथा-७. ४१००७. (+#) उत्सर्पणीअवसर्पणीविचार बारआरामानकालचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४०).
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२१३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१२ आराकालचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: प्रणमुं प्रेमे भगवती; अंति: अमृत विगते
भण्या, ढाल-५, गाथा-८२. ४१००८. मौनएकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४३२-३५).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने वीघन नीवारी, गाथा-४. ४१००९. रोहिणीतपविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४३४).
रोहिणीतपविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम ढाल मात्र लिखा है.) ४१०१०. सरस्वती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५९, मध्यम, पृ. १, दे., (२८.५४१३, १२४३४).
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ श्रीअर्हन्मुखांभो; अंति: केवलमहामहिमानिधानं, श्लोक-१२. ४१०११. (#) अध्यात्मबत्रीसी व ध्यानबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. धोराजी,
प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. हीरजी ऋषि); गुपि. मु. हीरजी ऋषि; पठ. श्राव. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १४४५०). १.पे. नाम. अध्यात्मबत्रीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुध बचन शदगुरु कहे; अंति: लहे पावो भावपार, गाथा-३२. २.पे. नाम. ध्यानबत्रीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्नान स्वरुप अनंत; अंति: अलपमति परवान, गाथा-३५. ४१०१२. (+#) २४ जिन आदि स्तुति संग्रह सह टीका व टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४,
पठ. उपा. माणिक्यसुंदर (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य प्रत., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२९x१२, १०४३७-३८). १.पे. नाम. चतुर्विंशति स्तुतयः सह टीका व टिप्पण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, आ. जिनपतिसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेय जिनेश त्वं; अंति: कलकंठीरवा सिता, श्लोक-२७. २४ जिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीनाभेय जिनेश त्वं; अंति: यशसा सिता शुभ्रा.
२४ जिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. शांति स्तुति सह टीका व टिप्पण, पृ. २अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: शांते तव स्वांत; अंति: कांतं मकरं दधानं, श्लोक-४. शांतिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: हे शांते षोडशतीर्थ; अंति: अंतः शब्द शोभावाचकः.
शांतिजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति सह टीका व टिप्पण, पृ. २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: पार्थोवताद्यो रद; अंति: यच्छतु वांछितानि वः, श्लोक-४. पार्श्वजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीपाङ्खवतात्; अंति: सा विभयो विलेशयाः.
पार्श्वजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. महावीर स्तुति सह टीका व टिप्पण, पृ. २आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नम्राखंडलमंडलस्तुतपद; अंति: पद्मालयाध्यासिनी, श्लोक-४. महावीरजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: हे प्रणतेंद्रवृंदनुत; अंति: (अपठनीय), (वि. अंत के अक्षर मिट गये हैं अत:
पढ़ा नहीं जाता है.)
महावीरजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१०१३. (+) कुंभस्थापनानी भास, संपूर्ण, वि. १८६२, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४११.५, १३४३८-४२). कुंभस्थापना भास, मु. दुर्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सुतदेवी चरणे नमी रे; अंति: मंगलकलसनी थापना,
ढाल-२, गाथा-१८.
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२१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१०१४. (#) षट्परवअधिगर्भित वीरजीन स्तन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, ११४४५). महावीरजिन स्तवन-षट्पी , पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगुरू पदपंकज नमि; अंति: नाम
षट्पर्विध धर्यो, ढाल-९. ४१०१५. (#) युगमंधरजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ११४३४).
युगमंधरजिन स्तवन, पं. चैनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कूडी; अंति: चैनविजय गायोरे, गाथा-९. ४१०१६. पदमावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. महुरड़ा, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३, ११४३०).
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: तस्य पद्मावती स्वयं, श्लोक-१८. ४१०१७. (#) ऋषभदेवजीनुं स्तवन व सम्यग्दर्शन गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२८x१३, १७४२२). १. पे. नाम. ऋषभदेवजीनुं स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. शुभविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनरेंद्रनो नंदन; अंति: शुभ सेवक धो शिवराज,
गाथा-५. २.पे. नाम. सम्यग्दर्शन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४१०१८. चउदथानकनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१२.५, १२४३२).
१४ समूर्च्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गुरुना प्रणमी; अंति: सूणे
तस लील विलास, गाथा-१३. ४१०१९. जलजात्रा भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १३४३७).
जलयात्रा भास, मु. दुर्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोविसि जिन नमु; अंति: गलमाल करजो थई उजमाल,
गाथा-१६. ४१०२०. (+#) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, ११४३२).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणो,
ढाल-२, गाथा-२४. ४१०२२. (-2) वसुधारा स्तोत्र व ५ शौच श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५४, आश्विन शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
ले.स्थल. मेसाणा नगर, प्रले. पं. भीमविजय (गुरु पं. प्रेमविजय गणि); गुपि.पं. प्रेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्. श्रीगोडीजी सत्य छई., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९०५) जीहा लगें सायर चंद रवी, जैदे., (२८.५४१२.५, १५४४३). १.पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: कामितावाप्तिर्भवति. २. पे. नाम. ५ प्रकार शौच श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४१०२३. (#) पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १४४२५-३२).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. विजयसिंहसूरि के अपूर्ण वर्णन तक है.) ४१०२५. सीमंधरस्वामी का स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२९x१२.५, १२४४२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२१५ सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि श्रीमंधर;
अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७ तक लिखा है.) ४१०२६. शनिश्वरनो छंद, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३.५, ११४३५).
शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसती सांमण मति दिओ; अंति: ललितसागर
इम कहे, गाथा-३१. ४१०२७. शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८.५४१३.५, १२४३७).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान,
गाथा-१६. ४१०२८. (+) चतुर्विंसतीतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १०४२८).
२४ जिन स्तव, मु. शांति कवि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य परंपरया; अंति: कैवल्यलक्ष्मीकरा, श्लोक-१५. ४१०२९. पार्श्वजिन श्लोक व शाश्वतचैत्य स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्रले. पं. निधानविजय गणि; पठ. मु. गुलाबविजय (गुरु पं. निधानविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, ६४३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २.पे. नाम. शाश्वतचैत्य स्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणय; अंति: भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४.
शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ नामा तथा; अंति: सुख प्रते आपो. ४१०३०. ५ महाव्रतस्वरुप विचार-निश्चयव्यवहारे, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२९४१३.५, १४४३३).
५ महाव्रतस्वरुप विचार-निश्चयव्यवहारे, मा.गु., गद्य, आदि: अथ गुरु कहे जे; अंति: संखेप मात्र जाणवो. ४१०३१. (+) शांतिकरस्तवस्याम्नाय, संपूर्ण, वि. १९६२, चैत्र कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९४१३, १२४४०-४२).
संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: एतत्स्तोत्रं त्रिकाल; अंति: तत्र प्रयोदेवतम्. ४१०३२. (+) सिद्धदंडिका स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. मु. चतुरविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कृति के अंत में सिद्धदंडिका का कोष्टक भी आलेखित है., संशोधित-पंचपाठ., दे., (२३४१२, १८४५५-६३).
सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३.
सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: दंडिका सुभावनीयम्. ४१०३३. एकादसी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७४१२, १०४३१).
मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति:
जिनविजय जयसिर वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ४१०३४. (#) साधु अतिचार व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १३४३७-४६). १.पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ४१०३५. पूजा के दोहे व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १२४३१). १. पे. नाम. पूजा के दोहे, पृ. १अ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३.
५
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपो मोरो रे आंगणे; अंति: होजो मंगलीकमाल, गाथा-५. ४१०३६. पुन्य कुलंसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१३.५, ४४३४).
पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०.
पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचेद्रीयपणउ मनुष्य; अंति: शाश्वतां माक्षना सुख. ४१०३७. महावीरजिन हालरभु व संसारस्वरूप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, दे., (२६.५४१२.५,११४३०). १.पे. नाम. महावीरजिन हालरडु, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे सुद असाडनी छठ; अंति: माहराज इम के छे, गाथा-११. २. पे. नाम. संसारस्वरूप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, ऋषभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पापनो तो नांख्यो; अंति: देव के दगो दिधोरे,
गाथा-६. ४१०३८. (+#) अतरीकपार्श्वनाथजीरो तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. मनरूपराज (गुरु
मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); अन्य. भट्टा. गोरधनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १२४३८-४०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यौ शारद; अंति: दरसण हु
वांसु सदा, गाथा-५२, (वि. इस प्रति में रचना वर्ष नहीं लिखा है.) ४१०४१. गतागतिना बोल, संपूर्ण, वि. १९२९, माघ कृष्ण, ३०, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. वजेराम मोनजी रावल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, १७४४५-५२).
५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना प्रजाप्त; अंति: गत पांचसे त्रेसठनी, ग्रं. १३०. ४१०४२. (+#) उपस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन व पेन्सिल से संशोधन किया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२, ११४४४-५०).
उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सो डगलांसुधी वस्ती, अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४१०४३. (#) प्रभंजनानि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १२४३६).
प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरिवैताढ्यनें उपरें; अंति: मंगल लीला सवाई,
ढाल-३. ४१०४४. (#) चंदगुप्तराजारा सोलै सुपना व चोवीसीतीर्थंकर नामगाममातापितादेहमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३,
कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १४४१७). १. पे. नाम. चंदगुप्तराजारा सोलै सुपना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामें नगर; अंति: चुक लीज्यो सुधारो
रे, गाथा-४५. २. पे. नाम. चोवीसीतीर्थंकर नामगाममातापितादेहमान स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमु; अंति:
तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ४१०४५. दशमताधिकारे वर्द्धमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२८.५४१३.५, १४४४३).
महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सुखदायक चोवीसमो; अंति: चक
जसविजय जय सिरिनमो, ढाल-६. ४१०५१. रथनेमिराजिमती सजाय, संपूर्ण, वि. १९३८, पौष शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१३.५, १२४३२).
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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४१०६० (4) सतकवारजीनी राज्य, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है,
दे., (२६X१२.५, १९X२८).
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सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपत प्रससा करे, अंतिः खम कह गाया सुख पाव, गाथा २०.
४१०६३ (+०) वितरागाष्ट, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१२,
५X१८).
वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्ध, अंति: हृदाभ्युद्यतं, श्लोक - ९.
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४१०६६. (+) जंबूद्वीप संग्रहणी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२८४१४, ६४५०-५२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं सव्वनुं अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं गाथा - ३०. लघु संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय कहतां नमस्कार; अंति: हरिभद्रसूरैं कीधी.
४१०६७ (१) गौतम कुलक व चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है... अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१३, १०X३४).
१. पे. नाम, गौतम कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) २. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, पृ. १अ संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ", प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-).
४१०६९. (*) सुधर्मास्वामी गुहली भास, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल रुद्रमाला, प्रले. नाथुराम इच्छारा जोशी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६४१३.५, ११४३४).
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४१०७५. सिधचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २५X१३, १०X३९).
सुधर्मास्वामी भास, रा., पद्य, आदि: कठडारा आया गुरुजी, अंति: जिनसासन बहुमान, गाथा- ७.
४१०७० (+) ऐलचिकुमारनो पटढालीड, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२७X१३, १५X४८).
इलाचीकुमार छढालिषु, मु. माल, मा.गु., पद्य वि. १८५५, आदि: मात मया करो सरसती, अंति: मालमुनि गुण गाय, ढाल- ६.
४१०७४. माहावीरस्वामीना पंचकल्याणकनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२९.५X१३.५, १३-१५X३६). महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासन नाअक सीवकरण; अंतिः लहे अधिक जगीस ए, ढाल - ३.
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र आराधतां अंतिः सीस कहे करजोड, गाथा - १५, (वि. प्रतिलेखकने एक गाथा की तीन गाथा गिनी है.)
४१०७६. (१) देवसिपाखिचोमासिछमछरिपडीकमणानि विध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५.५४१२, १५५३३).
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि पडिकम; अंति: (-), (पू.वि. आलोचनादान विधि तक है.)
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४१०७७. (+०) एकाक्षर नाममालिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३०X१४.५, ११x४२).
एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि, अंति: थैकाक्षराणामियं मया, लोक-२१. (वि. प्रतिलेखकने कर्तानाम 'अमरसिंह' लिखा है.)
४१०७८. (+०) लघुसंग्रहणी, रूपीअरूपीतत्व गाथा सह स्वार्थ व गृहस्थापित जंत्र, संपूर्ण, वि. १८३७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे, ३, ले. स्थल. नागौर, प्र. वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५X१४.५, ८४३८). १. पे नाम, लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ,
गाथा-४३, (वि. १८३७, माघ शुक्ल, ७, बुधवार) । दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: रिषभादि २४ तिर्थंकर; अंति: कीधी आत्माने अर्थे, (वि. १८३७, श्रावण
शुक्ल, ९, प्रले. पं. भाग्यधीर (अज्ञा. ग. दर्शनराज); गुपि. ग. दर्शनराज) २. पे. नाम. रूपीअरूपीतत्त्व गाथा सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण.
जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
जैन गाथा का टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. गृहस्थापित जंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में यंत्र भी दिया गया है.) ४१०८०. (#) नारकीदुखवर्णन लावणी व दुहा, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सीलोदर,
प्रले. मु. रुपसागर (गुरु मु. उमेदसागर); गुपि.मु. उमेदसागर; अन्य. पं. दया ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'पा दयारुसजी पासे लख्यो इस प्रकार उल्लेख है., मूल पाठ का अंशखडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९४१३.५, १५४४०). नारकीदुखवर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: दुख दुष भवता वीना; अंति: सरणे जिनदास आयो,
गाथा-१०.
नारकीदुखवर्णन दहा, संबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: पांच आश्रव मत करो; अंति: लेइ गइ गगन आकास, ग्रं. दोहे ५८. ४१०८२. (#) बीजतीथीनु स्तवन व नमस्कार दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२५.५४१३.५, १४४४१). १. पे. नाम. बीजतीथीनु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति त्रीसनानंदन; अंति: नायसमुद्र कहे जयकारी, ढाल-३,
गाथा-१९. २. पे. नाम. नमस्कार दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१०८३. (+) विचार संग्रह व नवकारनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१३,
१२४३०). १. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कर्मभूमि अकर्मभूमि आदि बोलनुमा तत्त्व विचार) २. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सूरीवर सीस
रसाल, गाथा-७, (वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४१०८५. (#) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १४४४७).
कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राय दसरथ पहिला हुवो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ दुहा ३ अपूर्ण तक है.) ४१०८८. (#) अट्ठाणु बोल स्तवन व संखेसरपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १२४३३). १.पे. नाम. अट्ठांणु बोल स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. जयसागर;
पठ. सा. लक्ष्मीश्री, पे.वि. श्रीशंभवनाथ प्रसादात. ९८ बोल स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: (-); अंति: शुभविजय जयसीरी वरें, ढाल-२,
गाथा-१६, (पू.वि. ढाल २ गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. संखेसरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीशंखेसरपासजी रे; अंति: साधु क्षमाकल्याण, गाथा- ७.
४१०९०. (#) सिद्धगिरी चैत्यवंदन व तीर्थमाल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३.५, १२४३१).
१. पे. नाम. सिधगिरी चैत्यवंदन, पृ. १९अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सरूपसागर.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. माणेकविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीसिधाचलतीर्थ नायक, अंतिः करत सुख अनंत ए.
गाथा-५.
२. पे. नाम. चैत्यपरिपाटी, पृ. १आ, संपूर्ण.
तीर्थमाला स्तवन- स्थंभनपुर, आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: श्रीसारदा वरदायनी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ गाथा ४ तक लिखा है.)
४१०९१. (+#) पंचमीग्यानाख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(३१x१६, १९४४२).
ज्ञानपंचमीपर्व कथा, मा.गु. सं., गद्य, आदि: पार्श्वदेवं नमस्कृत् अंति: मंगलीक्यमाला संपजे.
४१०९२. (+#) पच्चखाणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (३१x१५, ५४३७).
.
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगाए सूरे नमुक्कार, अंतिः बत्तियागारेण वोसिरह, संपूर्ण,
प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ”, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य का उदय से ले; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नवकारशी पच्चक्खाण अपूर्ण तक लिखा है.)
४१०९४. (+) पाखीसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१० (१ से १०) = २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१३, ९X२६).
१. पे. नाम. पाखीसूत्र, पृ. ११अ - ११आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भति
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२. पे. नाम. पाखि खामणा, पृ. ११९ आ-१२आ, संपूर्ण.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः पिवं च मे जं भे; अंतिः नित्धारग पारणा होह, आलाप-४. ४१०९७. मौनएकादशीनो गणणुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (३४४१४, ९x४१).
मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि धूर प्रणामं जिन, अंति जसविजय जयसिरि वरी, बाल- १२.
४१०९८. (#) वृधशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X१४,
१३X२६).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम् . ४११०३. (#) ऋषभ आदि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २०, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२२.५X१४.५, २६x४८).
१. पे नाम ऋषभ गीतं, पृ. १अ, संपूर्ण,
आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मन मकर मोहि रह्यो, अंतिः सेवै वे करजोडि रे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजित गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तारि किरतार संसार, अंति: जे रहइ सदा पासई, गाथा-४. ३. पे नाम, संभव गीतं, पृ. ९अ, संपूर्ण,
संभवजिन स्तवन, आ, जिनराजसूरि, मा.गु. पद्य वि. १८९४, आदि: विणजारा रे लाइ नायक, अंतिः जिनराज० मूल न को कलइ, गाथा-५, (वि. इस प्रति में कृति रचना वर्ष नहीं है.)
४. पे. नाम. अभीनंदन गीतं, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वे करजोडि वीनवुरे; अंति: समविषम जिनराज रे,
गाथा-५. ५. पे. नाम. सुमतजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कर तास्युं तो प्रीति; अंति: साचो वहइ रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. पदमप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलिउ किरतार भणी; अंति: इण घरि छइ आ रित, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुपास स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज हो परमारथ पायो; अंति: सुपास तणो इम आखइ,
गाथा-५. ८. पे. नाम. चंद्रप्रभु गीतं, पृ. १आ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु पाहुण; अंति: वंछित चढइ प्रमाण रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. सुवधि गीतं, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुविधिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा वाहिरो कहिइं; अंति: किम पहचीजइ आडे, गाथा-५. १०. पे. नाम. शीतल गीतं, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज लगि धर अधिक; अंति: तो द्यो अविचल राज,
गाथा-५. ११. पे. नाम. श्रेयांस गीतं, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक कनकने बीजी कामिनी; अंति: साचो प्रभुस्युं हेज,
गाथा-५. १२. पे. नाम. वासपुज्य गीतं, पृ. २अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोहि नचावीउ; अंति: जंपें इम जिनराजोरे, गाथा-५. १३. पे. नाम. वीमलगीतं, पृ. २अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगणि सुरतरु; अंति: तुहि ज देव प्रमाण, गाथा-५. १४. पे. नाम. अनंत गीतं, पृ. २अ, संपूर्ण.
अनंतजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजानो तुं वेपरवाही; अंति: चालौ तो द्यइ शिवराज, गाथा-५. १५. पे. नाम. धर्मजिन गितं, पृ. २अ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भवसायर हूंती जो हेले; अंति: चढती दौलित पामी, गाथा-५. १६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काल अनंतानंत भवमाहि; अंति: (अपठनीय), गाथा-५, (वि. पत्र खंडित होने से
अंतिमवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) १७. पे. नाम. कुंथ गीतं, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: करि चलतो वीवहार, गाथा-५, (वि. पत्र
खंडित होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) १८. पे. नाम. अर गीतं, पृ. २आ, संपूर्ण.
अरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आराधो अरनाथ अहोनिशि; अंति: ग्याने करस्य सेवा, गाथा-५. १९. पे. नाम. नेमि गीतं, पृ. २आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलरे सामलिया; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. २०. पे. नाम. पार्श्वगीतं, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-पुरुषादानीय, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनगमतो साहिव मिल्यो; अंति: चढे न विजो
चितनरे, गाथा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४११०५. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२४१३, १३४३२).
शांतिजिन स्तवन-सिरोहीमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: होजी मारी सहीया सेव; अंति: जिनगुण संथुण्यो
जी, गाथा-७. ४११०६. महावीर स्तवन व गुहली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, ११४२९). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १९२६-१९२६, फाल्गुन शुक्ल, १४, बुधवार,
ले.स्थल. विजलकुय, प्रले. महासुखराम अध्यारु, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कहे धन मुझ एह
गुरु, (पू.वि. अतिम गाथा मात्र है.) २.पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुँली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे जिनवर वचन; अंति: अमृत शिव निसान रे, गाथा-७. ४११०९. (+) पार्श्वनाथजीरो स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. झालोर, प्रले. पं. सरीचंद;
पठ. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंदजी); गुपि.मु. देवीचंदजी; राज्यकालरा. तखसिंघजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रथम पत्र व बीच के पत्र में रंगीन सुशोभन चित्र किये हुए हैं., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२९x१२, ४-५४४१-४४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५,
(वि. १९०३ शुक्ल, ४, शनिवार) रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे सर्वज्ञ त्वं चिरं; अंति: मोक्षनुकरणहारण छई, (वि. १९०३,
मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा) ४१११०. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९.५४१२.५, १२४४०).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तम, श्लोक-६३. ४११११. (+#) अष्टप्रकारी पुजा व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
ले.स्थल. चाणस्मा, प्रले. मु. केशरविजय (गुरु पं. गुलाबविजय); गुपि.पं. गुलाबविजय (गुरु पं. वीरविजय); पं. वीरविजय (गुरु पं. उदयविजय); पं. उदयविजय (गुरु पं. पद्मविजय); पं. पद्मविजय (गुरु उपा. खुशालविजय); उपा. खुशालविजय (गुरु गच्छाधिपति विजयदयासूरि); गच्छाधिपति विजयदयासूरि; पठ. मु. ललु (गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. श्रीभट्टेवाजी प्रसादात. प्रतिलेखन के विषय में अंत में 'लखनार नवा दीक्षीत साथीयावाली चोकीमां दीवसना १० वागते लीखी छे' इस प्रकार उल्लेख है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९०६) भग्न प्रष्टी कटी ग्रीवा, (९०७) जीहा लगे मेरुं थीर रहे, (९०८) एक पोथी दुजी पद्मणी, (९०९) याद्रीसं पुस्तकं द्रीष्टा, दे., (२३.५४१३, १५४३९). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पुजा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: सुतधर जश समरे सदा; अंति: उत्तम पदवी पावोरे,
ढाल-८. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४१११३. (+) चतुशरणविषमपद विवरण, संपूर्ण, वि. १५६७, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. शुद्धदंति, प्रले. ग. दयासमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य प्रत., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३०x११.५, १९-२०४६५-६८).
चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सावज० सह अवद्येन; अंति: सुखानि तेषामित्यर्थः. ४१११४. (+) ६२ मार्गणा मूलप्रकृति औदयिकभावादि विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, ३६x२८).
६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कृति अंतर्गत ६२ मार्गणा का कोष्टक दिया गया है.) ४१११९. (#) पोसो लेवानी विध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४१२, १४४३२).
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमसुं ईरीयावहि; अंति: काजो काढीजे.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४११२०. (#) कर्मविपाक व पांचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है. जैवे. (२०x१६, १८४१८)
""
१. पे. नाम. कर्मविपाक गीतं, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर, अंति: नमो नमो कर्मराजा रे,
४११२१.
गाथा - १८.
२. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण.
मु.
कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवै रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -३ तक लिखा है.)
(#)
| पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२.५, १६४३६-४२).
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प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगए अब्भत्त, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. चोविहार-तिविहार उपवास, नवकारसी, चोबिहार व देसावगासिक पच्चक्खाण का संग्रह है.)
४११३२. (+) बावनी, औपदेशिक व नवरत्न कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. फलोधी, प्रले. मु. मथु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१२, २३x४५).
१. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
मु. मान, पुहिं., पद्य, आदिः ॐकार अपार अलख्य; अंति: अक्षरबावनी गाई, गाथा-५८.
२. पे नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक कवित्त संग्रह * पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-).
३. पे. नाम. नवरतन कवीत्त, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
९ रत्न कवित, पुहिं., पद्य, आदि: विमलवित्त जाचिक; अंति: ए जग मै मूरख वदित, गाथा- ११.
४११३९. (#) २० स्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१५.५, १७३३). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याइ, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. पद- ४ तक लिखा है.)
४११४० (०) प्रतिक्रमणसूत्र व आदिजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे ५, प्र. वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१६.५, १०x१८).
"
१. पे नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र. पू. १अ २अ संपूर्ण.
चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. नवकार, इच्छामि खमासमणसूत्र व नमुत्थुर्ण सूत्र लिखा है.)
२. पे. नाम. आदीसरभगवान स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. विनयविमल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आज ऊजम छै मुझने; अंति: छे मूजनें अधिको,
गाथा-५.
३. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण
पुहि., पद्य, आदि: प्रभु को नाम अमोल हे अंति; लाडलो पारस मूख वोल, गाथा-२.
४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एतो चाहीये नित; अंतिः मे तो ओर न ध्यावं, गाथा- ३.
५. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: पास संखेसरो आज तूठा,
गाथा-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४११४४. (+) शांतिजिन अष्टक, चिंतामणिपूजा स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र
१अपर रही कृति में संख्यावाची शब्दों पर संख्यादर्शक अंक दिये गये हैं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२८.५४१४.५, ११४३५). १.पे. नाम. सप्तदश नेम, पृ. १अ, संपूर्ण.
१७ नियम श्लोक, सं., पद्य, आदि: भोजने षट्रसे पाने; अंति: पक्षमासायनादिभिः, श्लोक-३. २.पे. नाम. अंतरायसप्त, पृ. १अ, संपूर्ण.
७ अंतराय श्लोक, सं., पद्य, आदि: आमिषं रुधिरं चर्म; अंति: घृततक्रादिके वृत्तिः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. शांतिनाथाष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: न स्नेहाच्छरणं; अंति: शांत्यष्टकं भक्तितः, श्लोक-८. ४. पे. नाम. चिंतामणिपूजा स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमः देवनागेंद्र मंदा; अंति: चितामणिपार्श्वनाथः,
श्लोक-७. ४११५०. (#) तीर्थ आशातनात्याग स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१५.५, २५४१५). १.पे. नाम. अरणिकमुनि सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंचीत फर सीधो जी.
गाथा-१०. २. पे. नाम. मेतारजमुनीरी सझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
__ मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: साधुतणी रे सझाय, गाथा-१३. ३. पे. नाम. केसीगोतम सीष्य सझाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन कृष्ण, ४, ले.स्थल. आहोर,
प्रले. मु. भीमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीऐ; अंति: रूपविजय गुण गाय रे,
गाथा-१६. ४. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही पीण नगरी जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा१७ तक लिखा है.) ५. पे. नाम. तीर्थ आशातनात्याग स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनी आसातना नवी; अंति: विसाला
मंगल सीवमाल, गाथा-८. ४११५६. (+#) द्रव्य संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१४.५, १५४४२). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार २
गाथा २० अपूर्ण तक है.)
द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहं कहिय मजुहो; अंति: (-). ४११५८. समवसरणस्थापना यंत्र, मोमतीना ५० बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३, जैदे.,
(२८.५४१४.५, १०-१४४४४). १.पे. नाम. समवसरणस्थापना यंत्रम्, पृ. १अ, संपूर्ण.
जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. मोमतीना ५० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, ६, ले.स्थल. भरूचबिंदर, प्रले. पं. देवेंद्र.
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र १ अर्थ २ तत्व; अंति: विराधना परिहरु. ३.पे. नाम. सचित्तअचित्त पृथ्वी आदि विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, २.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४११५९. महादेवद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३.५, १५४४१).
महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांतं दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै,
श्लोक-३३. ४११६०. पक्षीका नमस्कार व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२८x१४.५, १४४४०). १.पे. नाम. पक्षीका नमस्कार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
जीवने भवजल तारवा, श्लोक-३४, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक ३४ लिखने की जगह २४ लिख दिया है. इस प्रति में
अनेक प्रक्षिप्त गाथाओं के साथ सकलकुशलवल्लि एवं हीरविजयसूरि के नामवाली एक गाथा भी सम्मिलित है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: निज आतम हित साधे, गाथा-१३. ४११६१. (#) बिमलाचलतीरथ की महिमाबरणन का तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. जीणचंद; पठ. श्रावि. पांची, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१३, ९४३१). शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनी आशातना नवि; अंति: विशाला
मंगल शिवमाल, गाथा-८. ४११६२. केवलीसमुद्धात यंत्र, संपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. भरूचबिंदर, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्लारापार्श्वनाथजी सुप्रशादात्., जैदे., (२८.५४१४, ८४३०).
जैनयंत्र संग्रह*, मागु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४११६३. (4) अल्पाबहुत्व ९८ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१४.५, १५-२२४४७).
९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भज मनुष्य सर्वथी; अंति: सर्वजीव अधिका ९८. ४११६९. संसत्तनिऋत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२८.५४१४.५, १४४४४).
संसक्तनियुक्ति, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइवीरचरिमे सुरासु; अंति: सोअव्वा साहुपासाओ, गाथा-५५. ४११७०. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८.५४१४.५, १४४५१).
__ पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, श्लोक-१३. ४११७१. शिध्धाचल आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१३.५,१३४३२). १. पे. नाम. शिध्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थपतिनें पूजें रे; अंति: सुभटने पाछो हठावो रे, गाथा-८. २. पे. नाम. गिरिनार स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
गिरनारतीर्थ स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जीणेसर समोसर्य; अंति: तो झाले शिववहु हाथ, गाथा-६. ३. पे. नाम. अष्टापदगिरि स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण..
अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. हकम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर समोसर्य; अंति: पामें भवनो पार. गाथा-५. ४. पे. नाम. समतशिखरगिरि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: अनिहारे समतशिखर; अंति: भवदुख जाय दुर, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: आपापानगरी भली ललना; अंति: मनवंछित फल थाय, गाथा-५. ६. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: वास्यपूज चंपापुरी; अंति: स्वभाव मोझार रे, गाथा-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२२५ ४११७२. (+#) प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. कल्याणजी विट्ठलजी भट्ट; पठ. श्राव. राघवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५४१४, १३४४५).
प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रश्न-२७.. ४११७३. महापरिठवण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२९४१३.५, १०४४१).
साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्नानपूर्वक नवो वेष; अंति: उपर वडीशांति केहवी. ४११७४. (#) निगोदपल्योपमादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अंतिम पत्र के हासिए में पंचपरमेष्ठी के १०८ गुणांक दिये गये हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१४.५, २१४४२).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४११७५. (#) जंबुद्वीपादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१४.५, १५-२०४३८). विचार संग्रह* प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कृति अंतर्गत महाविदेहक्षेत्र, लवणसमुद्र, मेरुपर्वत आदि
का वर्णन किया गया है.) ४११७६. (#) पचखाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१४.५, १९४३६).
प्रत्याख्यानसूत्र-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे संक्षेपे पचखाण; अंति: पच्चक्खं छु. ४११७७. (#) शेत्रुजयउद्धार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१४.५, १८४४१). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देहि दंशण जयकरु,
ढाल-१२. ४११७८. (+) आउर पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२८.५४१४.५, १५४४३).
आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं,
गाथा-६७. ४११७९. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२८.५४१४, ११४३५).
शांतिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: संतिकर संति मति आपि; अंति: दिउ सिवसुख आसना, ढाल-३. ४११८०. (+#) सिद्धचक्र स्तुति, पद्मप्रभजिन चैत्यवंदन व सामायकबत्तीसदोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५३, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. ३, ले.स्थल. आजोल, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५४१४.५, १३४३७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९५३, भाद्रपद शुक्ल, ८, शनिवार, पे.वि. श्रीमाणिभद्र प्रासादात्.
मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा; अंति: सुख संपद लहे चंग जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: प्रद्मप्रभुजिन सेवीए; अंति: लहीए भवनो पार, गाथा-३. ३. पे. नाम. सामायकबत्तीसदोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९५३, भाद्रपद शुक्ल, ९, रविवार,
पे.वि. श्रीपद्मप्रभप्रासादात्. श्रीमाणभद्राय नमोनमः. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. बुद्धि, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक समता भावे करो; अंति: जनममरण दूर जावेरे,
गाथा-६. ४११८१. (#) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतकनो बीज, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१४, ११४३१). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिले बोले तीर्थंकर; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल ६ अपूर्ण तक लिखा है.)
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सान
२२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४११८३. नववाडीनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. साणंद, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ वैद्य जानि; पठ. श्रावि. विजकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१३.५, १३४४१). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहेने जाउं भामणी,
ढाल-१०, गाथा-७५, ग्रं. १२५, (वि. सर्वदूहा ३२ व सर्वगाथा ४३ को मिलाकर कुल गाथा ७५ हैं.) ४११८४. (#) जन्म आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३०x१३.५, १३४२७).
२४ जिन जन्मआंतरा काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी मास; अंति: वासे रह्या पछि जन्म. ४११८५. (#) नेमिजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ वैद्य जानि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५४१३.५, १३४३४). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरस्वति स्वामिने पाय; अंति: थुण्यो नेमि
जेणेसरु, ढाल-४, ग्रं. ८७, (वि. इस प्रति में रचनावर्ष व स्थल का उल्लेख नहीं है.) ४११८६. दसवैकालिकनी व आयुष्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. गंगाप्रसाद व्यास,
प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३.५, ११-१३४३८-४२). १. पे. नाम. दसमीकालकनी सध्यावा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल हिमा नलो; अंति: सदाजी
जयतसी जेजर, अध्याय-१०, (वि. इस प्रति में संवत 'सतरसतोतर' लिखा है.) २.पे. नाम. आयुष्य सिज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
आयुष्य सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणी आउखो तूटेने; अंति: वली धरम तणो उछाहरे, गाथा-१२. ४११८८. (#) एकादशी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९४१२.५, १३४३७).
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति:
सुव्रत रूप सझाय भणी, गाथा-१५. ४११८९. (+#) चित्रसंभूत सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. कीसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन्सिल से संशोधन किया
गया है. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२८x१२.५, ९४३३).
चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहै ब्रह्मराय; अंति: भवस्थिति आई हो, गाथा-२०. ४११९०. आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८.५४१३, ११४३४).
४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमि वंदो रे ए; अंति: सिवलक्ष्मी घर आणो, गाथा-१३. ४११९१. आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३, ११४३२).
४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे ए आ; अंति: सिवलक्ष्मी घर आंणो, गाथा-१३. ४११९२. सिद्धदंडिका स्तवन व सीद्धचक्रनुं चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५,
१४४३३). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जनराया रे, ढाल-५,
गाथा-३८. २. पे. नाम. सीद्धचक्रनुं चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४११९३. पर्युषणपर्व आदि चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, दे., (२९४१२.५, १३४४१). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण गुणनीलो; अंति: पाम्यो जय जयकार, गाथा-९. २. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-अतीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२२७ पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उसरपिणि आरे थया; अंति: श्रीशुभवीर सनाथ, गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो सिणगार; अंति: आगमवाणी वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंतिम गाथांक व पूर्णता सूचक शब्दसंकेत नहीं लिखा है.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरु कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने प्रारंभ सूचक शब्दसंकेत लिखे बीना ही कृति का प्रारंभ
किया है.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविधि कहे सुत होस; अंति: वाणी वनीत्त रसाल, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जननी बहेन सुदर्शन; अंति: सुणज्यो एकहे चरित्त, गाथा-३, (वि. इस प्रति में कर्ता
का उल्लेख नहीं है.) ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ९. पे. नाम. पजुसण नमस्कार, पृ. २अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवच्छरी दिन; अंति: चरणे नमु सीस, गाथा-३. ४११९४. (#) गौतमाष्टक व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२७४१२, १५४३३-३६). १.पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५... ४११९५. (+#) जिनबिंबस्नपन विधिव सिधावलजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, ३५४२४). १. पे. नाम. जिनबिंबस्नपन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय
अभिषेक से तृतीय अभिषेक अपूर्ण तक लिखा है.) । २. पे. नाम. सिधावलजीतुं स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. जेसिंग साकरचंद. श@जयतीर्थमहिमा स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: स्तवीयो गीर सोहकार, गाथा-२७,
(वि. पत्र की किनारी खंडित होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४११९७. प्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२८.५४१२.५, २०४५७).
आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भिन्न मास कहता; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४११९८. (+) संसारने समुद्रनी उपमा व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२८.५४१३.५, १८x२६-४२). १. पे. नाम. संसारने समुद्रनी उपमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
संसारसमुद्र उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: जे समुद्रने बाहेरली; अंति: करी गुंजी रह्यो छे. २. पे. नाम. सिखामणदय आदि बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अति: (-).
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४११९९. (+) ज्ञानपंचमी का चैत्यवंदन विधि व पंचमि लेणैरी विध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित, दे., (२५.५४१२.५, १२-१४४२८-३५)
१. पे. नाम. ज्ञानपंचमी का चैत्यवंदन विधि, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमी पर्व देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र, अंतिः श्रीकेवलज्ञानाय नमः २. पे. नाम, पंचमि लेणैरी विध. पू. ३अ ४आ, संपूर्ण
दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: दीक्षा देवराविइ. ४१२०२. चउदपूर्वनि पूजा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैदे (२५X१३, १६x४१).
पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुरु आगे आवि, अंतिः लोगस्स उ० निस्तरै ४१२००. (+) कालमांडलादियोग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२८x१३, १२X४६). कालमांडलादियोग विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
"
४१२०१. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९५८, आषाढ़ कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. मोरबी, वे., (२८.५५१२.५,
८x४५).
"
१४ पूर्व पूजा, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु. सं., पद्य वि. १८९५, आदि: पूजो भविजन भावसुं अंतिः नंदिचारित्रनित्यैः,
"
१. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने झूठे, अंति: सतगुरु सीख सुणीजै, गाथा-३१.
२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
ढाल १४.
४१२०४. (#) उपदेशबत्तीसी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्ष
की स्याही फैल गयी है, दे. (२८.५४१२.५ ४६५३४).
"
पुहिं, पद्य, आदि घर घर ध्यान निहारले अंतिः गावो संत सुजाण रे, गाथा- १३.
३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
יי
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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औपदेशिक पद - तीतरतीतरी, वसतीराम, पुहिं., पद्य, आदि: एक समे भाई घर से; अंति: में पूछंगा तोइ, पद-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
क्र. भवानीनाथ, पुहिं., पद्य, आदि मार्ग में लूटे पांच अंतिः सुमरो कऐ न एक धणी, गाथा-८.
४१२०५. (+०) ९गमा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे., (२८४१२.५,
१६-२०४६२).
बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति (-), (वि, बोलनुमा जैन तत्त्वज्ञान.) ४१२०८. सचित्ताचित्तरज उहडावणकाउसग्ग व साधुकालधर्म विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७.५x१३.५, १४४४३).
१. पे नाम, सचित्ताचित्तरज उडावणकाउसग्ग विधि, पृ. १आ, संपूर्ण,
सचित्ताचित्तरज उहड्डावणकाउसग्ग विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रसुदी ११ १२ १३; अंति: पारीने लोगस्स कहेवो, (वि. प्रति छ मास एवं लोच के पहले करने की विधि है.)
२. पे. नाम. साधुकालधर्म विधि, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण.
साधु कालधर्म विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: जे साधुए काल कर्यो; अंति: करी स्वस्थानके जवं.
४१२११. (+) षट्द्द्रव्य निर्णय व आत्मभेद श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित, जैदे. (२९.५१२.५, १३x४२).
"
१. पे. नाम पद्रव्य निर्णय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण
द्रव्य निर्णय, मु. शुभेंदु, सं. पद्म, आदि: तत्त्वात्तत्त्वस्वरूप अंतिः पठ्यमानमहर्निशं श्लोक ५१.
"
२. पे. नाम. आत्मभेद श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक ५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४१२१२. आलोइणछत्तीसी व ४ मंगल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. कुल पे. २, वे. (२५.५४१२, ९४२४). १. पे. नाम. आलोइणछत्तीसी, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.
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२२९
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती जीव; अंति: छुटै ते ततकाल, ढाल -३, गाथा-३४.
२. पे. नाम. ४ शरणा, पृ. ४अ, संपूर्ण.
४ मंगल, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तृतीय शरण तक लिखा है.) ४१२१३. (+४) पद्मावती सिझाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, जै, (२५.५४१२.५,
१६X३४-४२).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव रांणी पदमावती, अंतिः कहे पापथी छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-४१.
४१२१४. महावीरद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नहीं लिखा है परंतु किसी आधुनिक विज्ञानने पेन्सिल से पत्रांक भी लिखा है और संशोधन भी किया है. दे., (२८.५४१३.५, १०४४०).
,
महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १बी, आदिः सदा योगसात्म्यात्, अति तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३.
४१२१५. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२.५, ८४२६-३२).
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंतिः सयल भुवणच्चिअ चलणो, गाथा-२१. ४१२१६. (#) जीवदया सज्झाय व बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२६.५१५, ११x२७).
१. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता नमी करु, अंति: ए मुनी वीसवावीस, गाथा- ८.
२. पे. नाम. बृहत्शांति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में विपरित लेखन पद्धति लिखी है.
वृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः (-) अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
४१२१७. (+#) द्वादशव्रतविधौ पूजा विधी व भलडीयापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x१२.५, १९-२१X५२-५८).
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१. पे. नाम. द्वादशव्रतविधौ पूजा विधी, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणि.
१२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., सं., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: जग जस पडह वजायो रे, ढाल १३, गाथा- १२४. ग्रं. २०३ (वि. कृति के अंत में पूजा विधि भी दी गई है.)
२. पे. नाम. भलडीयापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- भीलडीबाजी, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: श्रीभिलडिवा पास भेटव, अंति लक्ष्मी० मली हो लाल, गाथा- ७.
४१२१९, (४) पांच पदना १०८ गुण व ३४ अतिशय वर्णन आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे ५, प्र. वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जै. (२८४१३५, १३४३५).
१. पे. नाम. पांच पदना १०८ गुण, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: मारणांतिक उपसर्ग सहै.
२. पे. नाम. जिनगुण स्तुति - १८ दोषरहित, पृ. २अ, संपूर्ण.
जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - २.
३. पे. नाम. ३४ अतिशय विवरण, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम शरीर, अंति: मिटै सुखसाता हुवै.
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२३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. ३५ वचनातिशय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: समार्यो वचन बोले; अंति: शरीर खेद न पामै. ५. पे. नाम. आहारना ४२ दोष, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अहाकम्मं क० आधाकर्मी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
निमित्त दोष अपूर्ण तक लिखा है.) ४१२२७. (+) विनयभुजंगमयूरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वसो, प्रले. जेठालाल जमनादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., दे., (२८.५४१३.५, १५४५९).
विनयभुजंगमयूरी, ग. अमृतसागर, सं., गद्य, आदि: इह कश्चित् कल्पसुबोध; अंति: वीणेव वाणीगुणान्. ४१२३०. (+#) शांतिस्नात्राभिषेक मंत्र-गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१३, ७४३६).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-५. ४१२३१. (+) शांतिस्नात्राभिषेक मंत्र-गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९४१३, ७४३५).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ४१२३२. (+#) शांतिस्नात्राभिषेक मंत्र-गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१३.५, ७४३३).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ४१२३३. (+) शांतिस्नात्राभिषेक मंत्र-गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९४१३.५, ७४३३).
शोक संग्रह जैनधार्मिक* प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ४१२३९. साश्वताअसास्वता चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, ११४४८).
शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठीने प्रणमीइं; अंति: शुभ नमे पामे
मंगलमाल, गाथा-१५. ४१२४०. संसक्तनियुक्ति सह समासार्थ व स्थापनाचार्यप्रतीष्टा मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे.,
(२८.५४१२.५, ६x४३). १. पे. नाम. संसक्तनियुक्ति सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
संसक्तनियुक्ति-चयन, प्रा., पद्य, आदि: बीयाओ पुव्वाओ अग्गणी; अंति: सोयव्वो साह पासाओ, गाथा-२४.
संसक्तनियुक्ति-चयन का समासार्थ, सं., गद्य, आदि: द्वितीयात् पूर्वात्; अंति: साधुपात्.ि २. पे. नाम. विधिसहित स्थापनाचार्य प्रतिष्टामंत्र आदि संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४१२४१. (+) पंचमीतपउचरवानी विधि, संपूर्ण, वि. १८९४, कार्तिक कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पादलिप्त, प्रले.
भाणजी सुंदरजीत्रवाडी; पठ. मु. गजविमल (गुरु पंन्या. कल्याणविमल); गुपि.पंन्या. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१३, १२४३८).
पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम खमा०; अंति: हुइ तो मिछामि दूकडं. ४१२४२. (#) अभव्य कुलिकम् सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ९४३६).
अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिं न; अंति: तेसिं न संपत्ता, गाथा-९.
अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम अभव्य जीव छ; अंति: एतला वाना न पामे. ४१२४३. सीतलनाथाष्टक व शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १४४४२). १.पे. नाम. सीतलनाथाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.
शीतलजिन अष्टक, मु. मलुकचंद, सं., पद्य, आदि: वृषभतुल्यगतिं वृषदं; अंति: वशांश्रिये स्तात्, श्लोक-९. २. पे. नाम. शांतिनाथजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदि: सकलदेवनरेश्वरवंदित; अंति: संपदः प्राप्नुवंति, श्लोक-१३. ४१२४४. चतुर्विंशतिजिन चतुस्त्रिंशदतिशयगर्भितं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७.५४१३.५, २०४६२). २४ जिन स्तव - ३४ अतिशयगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदान्; अंति: चंद्राय सांद्रम्, श्लोक-२८. ४९२४५. संतनाथजी को स्तवन व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७.५४१३.५, २५x२०).
१. पे नाम, संतनाथजी को स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण
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शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं धन, अंति: तो हुं सहुं भर पामी, गाथा-४, (वि. प्रथम दो गाथा की एक गाथा गिनी गई है.)
२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १अ संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तै न कैसी फकीरी; अंति: आत्मरतीनै धरी रे, गाथा- ४. ४१२४६, (+) गौतमस्वामि छंद व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१२.५, १२४३४). १. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्म, आदि: पेहलो गणधर वीरनो रे, अंतिः वीर नमे निसदिस, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-४.
४१२४७. जिनेस्वरभगवंतनी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१३.५, ११x२७).
नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरि संपुट पत्रना; अंति: कहे सुभवीर मुंणिद, गाथा-१०. ४१२४८. (+) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पुनमचंद बोडा ब्रामण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५X१३, १६x४६).
महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: निस्तीर्णविस्तीर्णभव; अंति: साम्याज्यमासादयेत्, श्लोक-१७,
ग्रं. २७.
४१२४९. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह व अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१३.५, १०-१५x५१).
१. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
अजितशांति स्तवबृहत् अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुखनिवहदानाय सुर अंति: मुपजनयतु संघस्य मुदं श्लोक-१७.
२. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रभुं जीरिकापल्लि अति महेंद्रस्तवाः, श्लोक-४५. ३. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव - जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधु; अंतिः एव लक्ष्मीविशेषाः, श्लोक-१३.
४१२५०. सीमंधरजिन व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, जैवे. (२६.५४१३, १३४३७). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चोदलीया संदेसो जीनवर; अंति: जिनहरख सुजाण रे, गाथा - १६.
२. पे नाम, मल्लिजिन स्तवन, पृ. ९आ-३आ, संपूर्ण
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मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्म, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन सुद्ध, अंति: धरमराग मनै धरी, दाल-५. ४१२५१. योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, वे. (२७.५४१३.५ १२४४६).
कालमांडलादियोग विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-).
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या आदिः (-); अंति: (-), गाय
(२८x१२.५, १३४३७). जामनेरे, गाथा-८.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१२५२. (#) प्रश्नोत्तर रत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. रूपचंद; पठ. श्रावि. जेकोर बाई (माता श्राव. उमाभाई); गुपि. श्राव. उमाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १२४३४).
प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: हवै शिष्य पूछ हे; अंति: तेहने घणो लाभ थाइ छै, प्रश्न-६५. ४१२५३. उपसरगहर स्तोत्र व मांगलिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९३१, भाद्रपद शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.
राजाराम त्रिकमचंद त्रिवाडी; पठ. श्राव. जगजीवन अभेचंद महेता; अन्य. नथु हिराणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अकित नहीं है., दे., (२७.५४१३.५, १०४३५). १.पे. नाम. उपसरगहर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-९. २.पे. नाम, मांगलिक गाथा-कल्पसूत्र वाचन हेतु, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी आधुनिक लेखकने पेन्सिल से लिखी है.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४१२५४. वीसथानकनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१२.५, १३४३७).
२० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे प्रणमु; अति: पभणै शुभ मने रे, गाथा-८. ४१२५५. (+) शत्रुजय कल्प, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३७-४१).
शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुअधम्मकित्तिअंतं; अंति: सित्तुंजए सिद्धिम्, गाथा-३९. ४१२५६. (#) माहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३.५, १४४३४-४२). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति देउ मति;
अंति: धन्य ए मुझ गुरो, ढाल-१०, गाथा-८८. ४१२५७. (4) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मानकाठियानि व गौत्तमस्वामिनि सझाय, संपूर्ण, वि. १८८७-१८८९, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. ३, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ९x४६). १.पे. नाम. मानकाठियानि सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, अन्य. पं. कांति.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: मान न किजे मानविरे; अंति: सिवरमणि करे मान,
गाथा-१०. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशे@जो तिरथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा
अपूर्ण तक लिखा है.)। ३. पे. नाम. गौतमस्वामिनि सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८९.
गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणधर वीरनोरे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८. ४१२५८. (+#) वीरजन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १३४२९). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: वंदे० धन मुझए
गुरो, गाथा-८४, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक नहीं है.) ४१२५९. (#) सिद्धाचलतीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १३४२७). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वारु रे भले; अंति: (-),
(पू.वि. मात्र ढाल २ के प्रारंभ तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४१२६०. (#) परमेष्टी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ९४३८-४०).
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४१२६१. (#) उपदिस की सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पारसनाथजी साहाय नमः., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, २१४४५).
औपदेशिक सज्झाय, मु. साधु, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुर; अंति: हित काज सदा आसा फलई,
गाथा-४४. ४१२६२. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९५१, फाल्गुन कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ४, दे., (२७४१२.५, १६४३५).
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ कूष्माननी; अति: संदेह नाही सुभ होइगा. ४१२६३. सीमंधरजिन आदि स्तवन संग्रह व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ३, कुल
पे. ३, ले.स्थल. सोझत, प्रले. सा. चेनश्री (गुरु सा. ज्ञानश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३.५, १०४२८). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी बीनतडी अवधारो; अंति: अनुपम जिन पदन भास, गाथा-२१. २. पे. नाम. अक्षतपुजात्री, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रमति गमति हमुने सहेल; अंति: श्रीशुभवीर
वचन रसाली, गाथा-९. ३.पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्व यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ४१२६४. (+) भरतचक्रवर्ती रास, संपूर्ण, वि. १९४१, वैशाख शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सरवडसलगढ, प्रले. चांदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३.५, १८४५६).
भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., पद्य, आदि: धनपति नामइ देवता; अंति: नर कुडा मइरन सोभागी, ढाल-१३. ४१२६५. (#) अष्टप्रकारि पूजाष्टक व पद्मावति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१४, १७४४१). १.पे. नाम. अष्टप्रकारि पूजाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. देवेंद्र. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९, (वि. पत्र की किनारी खंडित
होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) २.पे. नाम. पद्मावति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीमत्कलिकुंडं दंड; अंति: (अपठनीय), गाथा-११, (वि. पत्र
की किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४१२६७. शिमतशिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साणंद, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ वैद्य जानि; पठ. श्रावि. विजीबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३, १२४३२). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो हे सहेली जावा; अंति: एछे परम निमत्त,
गाथा-१०,ग्रं. २१. ४१२६८. (+#) सिद्धस्वरुपवर्णन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३९).
सिद्धस्वरूपवर्णन स्तोत्र, मु. आनंदविजय, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य स्फुरत्; अंति: नित्यस्थितिं देयात्, श्लोक-२५. ४१२७०. (+#) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. आगलोड,
प्रले. पं. जीतविजय; लिख. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनेमनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १४४३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: षोत्तम गुण
माया जी, ढाल-५. ४१२७१. देववंदण वीधी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, १३४३३).
साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्नानपूर्वक नवो वेष; अंति: उपर वडीसांत केहवी. ४१२७२. पार्श्व स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१२.५, १०४४६).
पार्श्वजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: यो भ्राजसे तांतिरभीर; अंति: निजपदांबुजरेणुसेवां, श्लोक-११. ४१२७३. (+) बलि मंत्र व तीर्थयात्रा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. बीच बीच में किसी आधुनिक
विद्वान द्वारा पेन्सिल से संशोधन एवं टिप्पण किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १३४५३). १.पे. नाम. बलि मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह* प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. तीर्थयात्रा विधि, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., प+ग., आदि: संघो य संघवइप्पहाणो; अंति: दिनमाराधयतीति. ४१२७४. रोहेणीनो दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ३., (२७.५४१२.५, १२४३५).
कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१२७५. (+) जीवराशीआलोयणा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. भायचंद (पार्श्वचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १२४२९).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: कहे
___ पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ४१२७६. (+) पार्श्वजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन्सिल से संशोधन एवं पेन से पत्रांक दिया गया है., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१४.५, १६x४२).
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: सुंदरसौख्यभरम्,
__ श्लोक-७.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य; अंति: काव्यं स्पष्टार्थं. ४१२७७. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४४, माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सुभटपुर, प्रले. शिवबगस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२७.५४१४.५, १५४३४).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. ४१२७८. (+#) उपस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन से संशोधन किया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, १४४४०-४२).
दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१२७९. (+#) मौनएकादशी सतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११-१५४२४-३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहो मंगल
अति घणो, ढाल-३, गाथा-२७. ४१२८२. (#) वीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२.५, १५४५५). महावीरजिन स्तव-चित्रबद्ध, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: चित्रैः स्तोष्ये जिन; अंति: स्मरतरसरब्धरक्षारतः,
श्लोक-२७. ४१२८३. (#) पद्मावती छंद व सुमतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२७४१३, १२४४२). १.पे. नाम. पद्मावती छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२३५ पद्मावतीदेवी छंद, पुहिं., पद्य, आदि: ॐ नरेंद्रा खगेंद्रा; अंति: उपजे छिनमे होत निहाल, गाथा-१५. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मदमदनरहितनरहितसुमते; अंति: दूनदून सत्रासत्रा, श्लोक-४. ४१२८४. (+) पार्श्वजिन आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५,
१४४३५). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथजीन स्तवनम्, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्र; अंति: मणिः पार्श्वनाथः, श्लोक-७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. लालचंद.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण.
___ सं., पद्य, आदि: अंति: हृदाभ्युद्यतं, श्लोक-९. ४१२८५. (#) दशवकालिकसूत्र सज्झाय- अध्याय ३ व ८, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, १०४३७-४०). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण,
पू.वि. चतुर्थ सज्झाय गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ४१२८६. (-#) लघुउपसर्गसह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १७४६६).
उपसर्गगण, सं., पद्य, आदि: प्रपरापसमन्ववनिर्दुर; अंति: स्थानादिकर्मण्यपि, श्लोक-२१.
उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: अयं उपसर्ग गण: प्राक; अंति: आभरते विद्यामध्येषु. ४१२८७. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लिंबडी, प्रले. श्राव. अमूलख वलूभाई शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४४०).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. संध्या एवं प्रातःकाल संबंधी आलोयणासूत्र
४१२८८. (+#) गौतमस्वामी छंद व रासो, संपूर्ण, वि. १९२४, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अमदाबाद,
प्रले. सा. सिणगारश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुभब्दीनाथ परसादत., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, ११४२६). १.पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीवीर जिणेसर केरो; अंति: बाहुबलनु बल देव, गाथा-१०. २. पे. नाम. गोत्म रासो, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४१२८९. (#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. जतना (गुरु सा. चतुरा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १९४३५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४१२९०. (+) पूजाना शीलोक व संभवजिन तवण, अपूर्ण, वि. १९२३, चैत्र कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित.,
दे., (२७४१३, १४४३१). १. पे. नाम. पूजाना शीलोक, पृ. २अ, संपूर्ण.
८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मूलं दर्शनं सल्लभंति, श्लोक-९. २.पे. नाम. संभवनाथजी का तवण, पृ. २आ, संपूर्ण.. संभवजिन स्तवन-जहानाबादमंडन, मु. मोहन, रा., पद्य, आदि: विस्वगुणी विस्वेसरू; अंति: वीच जहानावाद,
गाथा-९.
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२३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१२९१. (#) सेजाऋषभदेव वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक द्वारा किसी कृति का किंचित अंशमात्र लिखा गया है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, २०४५२). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: प्रणमी सदगुरु पायरे;
अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८. ४१२९२. (#) श्लोक संग्रह व आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२७४१२.५, १२४२९). १.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ४१२९३. सिद्धचक्र व पोषदशमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, ११४३४). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विर जिणेश्वर अति; अंति: सानिध करज्यो माय जि, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, प्र. १आ, संपूर्ण.
___ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोस दसम दिन पार्श्व; अंति: राजविजे सिव मांगे जि, गाथा-४. ४१२९४. (#) अष्टापदनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ११४३२).
आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे; अंति: फलसे सघलि आस के,
गाथा-२३. ४१२९५. (#) मेघरथनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, ११४४७).
मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: दशमें भवे श्रीशांति;
अंति: दयाथी सुख निरवाण, गाथा-२१, (वि. इस कृति की गाथा २० व विद्वान नाम प्रक्षिप्त प्रतीत होता है. वस्तुतः
इस कृति के कर्ता समयसुंदर है. गाथा २१ का मात्र अंतिम पाद लिखा है.) ४१२९६. गुरुविहार गुंहलि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ., (२८x१२.५, १२४४०).
गुरुविहारविनती गहूंली, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाये; अति: जीरे दान दया आधार, गाथा-१४. ४१२९७. (#) औपदेशिक व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२७.५४१३.५, ८४४६). १. पे. नाम. मांकडनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकडनो चटको दोहिलो; अंति: जीवनी करजो जयणा
रे, गाथा-७. २. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीये एम जइये रे; अंति: शिवसुख लहीये रे बाइ,
गाथा-८. ४१२९८. सरस्वतीदेवी छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९७४, कार्तिक कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण,
प्रले. श्राव. मोहन गिरधर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७.५४१२.५, ११४३३). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवति विद्यानी; अंति: जाउं तारी बलीहारी, गाथा-७. २.पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२३७ ४१३००. (+#) पूज्यजी गीत व धननी सिजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२५-२७.०४११, १४४३१-४२). १.पे. नाम. पूज्यजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
जिनसुखसूरि वधाई, ग. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: अनुपम आज वधावा; अंति: मनसुध विसवावीस, गाथा-११. २. पे. नाम. धननी सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: समरुजी साध सिरोमणी; अंति: हुज्य एहवो सानो सरण, गाथा-१५. ४१३०१. (+) आउरपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२८x१३, ११४३५).
आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं,
गाथा-६७. ४१३०२. (#) रोहणीनि सझाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.,
(२६.५४१२.५, १२४३७). १.पे. नाम. रोहणीनि सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्षमिसूरी भुप,
गाथा-९. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से लिखी है. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ दुख कापो; अंति: (अपठनीय), गाथा-५, (वि. पत्र की किनारी खंडित
होने से अतिमवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४१३०३. उपधान स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९७२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. बालाराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७.५४१२.५, १२४५०-५५). उपधानविधिसज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात लही सुपसाया; अंति: भोजसागर गुण गाया रे,
गाथा-१८, ग्रं. २७. ४१३०४. अट्ठाविसलब्धि स्तवन व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १०४३३). १. पे. नाम. अट्ठाविसलब्धिना दूहा, पृ. १अ, संपूर्ण.
२८ लब्धि दुहा, मा.गु., पद्य, आदि: आमोसहिलब्धि भलि; अंति: नमो नमो गौतमस्वाम, गाथा-५. २.पे. नाम. अट्ठाविसलब्धि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
२८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठावीस लब्धि सारी; अंति: पणु पामो त्यारे रे, गाथा-६. ४१३०५. योगप्रवेश व उत्तारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १४४४५-४८).
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. योग प्रवेशव निक्षेप विधि लिखी गई है.) ४१३०६. (+#) फलोधिपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १२४३१). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. रंगरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: हारे लाला आश पूरे; अंति: रत्न वण्यो
वणावरे, गाथा-७. ४१३०७. (-2) नवकार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १४४३६). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारन भवियण सुमरो; अंति: (१)वरते जी जय
जयकारो, (२)सुदर सरसालो, गाथा-१४, (वि. गाथा १४ के बाद का पाठ प्रक्षिप्त प्रतीत होता है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१३०८. (+#) महावीरजिन आदि स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक २आ पर
बाद में किसीने एक श्वासोश्वास में आवलिका की संख्या लिखी है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२७.५४१२.५, १५४३८). १.पे. नाम. मिगर्थ विनती, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया वरोबर धर्म नही; अंति: संत सुखी अणगारो जी,
गाथा-३२. २.पे. नाम. म्हाबिरस्वामी का स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अणंतगुण; अंति: तेहने नमे मुनी माल,
गाथा-३०. ३. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तुम प्रवारी जी; अंति: रतन कहै करजोड, गाथा-१४. ४. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम हैलापुत्र जाणीय; अंति: लबद्धवीजे गुण गाए,
गाथा-३६. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
चंदुलाल, पुहि., पद्य, आदि: विसै नरसा तुं से; अंति: नित जिनवर के चरना, गाथा-८. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. रत्नचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १९११, आदि: देखो जी आदेस्वरस्वाम; अंति: गायो हें जी, गाथा-८. ४१३०९. (+) लघुनंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. बाद में किसी विद्वान द्वारा पेन से संशोधित किया गया है., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४४८-५०).
योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्त; अंति: (-), (वि. अंतिम सूत्र प्रतीकपाठ मात्र दिया
४१३१०. नमस्कार महामंत्र छंद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३.५, १५४३२). १. पे. नाम. पंचप्रमेष्टी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. लालो. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सुरवीर सीस
रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. पारश्वनाथनुंस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेथापूर, पे.वि. सुविधिनाथ प्रासादे.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुज सरिखा मेवासीने; अंति: प्रभु पाये लागुं, गाथा-८. ४१३११. पादुकास्थापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७.५४१३.५, ११४३०).
जैनविधि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४१३१३. (#) आत्माप्रबोध सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोतीचंद; पठ. श्रावि. जमना, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक २अखाली छोड़कर पत्रांक २आ पर पाठ लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ८x२३).
औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वश खोटू बोले; अंति: तेथी अनुभव
लइरे, गाथा-१४. ४१३१४. (+#) नवतत्व प्रकरणम्म सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, आषाढ़ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जीरीहजूर,रतलाम,
प्रले. मु. राजाराम मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. इस प्रति का प्रतिलेखन प्रारंभ जीरीहजूर में एवं पूर्णता रतलाम (मालवदेश) में की है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७.५४१३.५, ६४३७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: यथाभूत साची वस्तुनो; अंति: सिद्ध ऋषभदेव प्रमुख.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२३९ ४१३१७. (+#) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, २१४६०). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., धातकी खंड वर्णन
अपूर्ण तक है., वि. सूर्यमंडल, २८ लब्धि व धातकीखंड वर्णन है.) ४१३१८. (+) स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१३, ११४४३).
स्वप्न विचार*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४६. ४१३२०. (+) गौतमकुलं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गंगदास (गुरु मु. वरजंगजी ऋषि); गुपि. मु. वरजंगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ७४४२-४५).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी; अंति: ते सुख लहइं. ४१३२१. (+#) कुमतिनिराकरणहंडिका स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४८, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले.पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, २२४५४). कुमतिनिराकरणहंडिका स्तवन, उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणंद पय; अंति: मेघ पभणे इणपरै,
गाथा-७९. ४१३२२. सुतक वीचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३.५, १४४४५-४७).
सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्मे दिन दशनु; अंति: भाष्यमां कहेलुं छे. ४१३२३. (#) श्रावकवंदित्तु, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १३४३५).
__वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०.. ४१३२४. (+#) भावछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८८६, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रामपुरा, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., ग्रंथ
रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १६४३७).
भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: क्रियासुद्धता कछु; अंति: ग्यानसार मतिमन्न, गाथा-३९. ४१३२५. (+#) गोडीपार्श्वनाथजीरो वृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, पौष शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ११४२५). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मावादनी; अंति: जीन नाम अभीराम मंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ४१३२६. (-#) समोसरण व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १०४३५). १. पे. नाम. समोसरण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गयां तां हमे; अंति: जीतना डंका वाजे रे, गाथा-७,
(वि. इस प्रति में कर्ता का उल्लेख नहीं है.) २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में या किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सातमातान वीनवन; अंति: रूपवीजनी छ जोडम, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४१३२७. (#) गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. ममाइ, प्रले. मु. निधानविजय; पठ. श्रावि. केसर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोडीजी प्रसादात., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १०४४१).
गुरुगुण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुण साहेलि जंगम; अंति: वीर वचन हिअडे भावे, गाथा-७. ४१३२८. (+#) सडसठवोलसमकित सिज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: वाचक बोलै रे, ढाल-१२, गाथा-६८, ( पू. वि. ढाल १ गाथा ९ तक नहीं है.)
४१३३०. जैनरक्षा व गौतमस्वामी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७१३.५, १३x४५). १. पे. नाम. जैनरक्षा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अतिः स्वजनैः जनैः श्लोक-२१.
"
२. पे. नाम. गौतमस्वामी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह उ. पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि: (-); अंति: (-)
४१३३१. (#) ८ कर्मबंध भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. रूधनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गय है. वे. (२६.५४१३, ३३४२५).
८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. ८ कर्मों की जघन्य, उत्कृष्ट स्थिति व अबाधाकाल का वर्णन किया है.)
.
४१३३२. (+) राजलजी का बारामासा संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नही है. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१३, २७४१८).
नेमराजिमती बारमासो, आ. कीर्तिसूरि, रा., पद्य, आदि: सामण मास सुहावनां जी, अंति: पहुची मुक्त मंझार, गाथा - १३ (वि. कर्ता नामवाली गाथा नहीं है.)
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४१३३४. (४) पजुसण थोय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल. इलोलनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, पठ. श्रावि. झवेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३, १४X३३).
१. पे. नाम. पजुसणनी थोय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि पर्व पजुसण पुण्यें, अंतिः सुजस महोदय लीजे,
गाथा-४.
२. पे. नाम. पजुसणनी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि: एक पनोति पचनी, अंतिः पद्म कहे प्रणमीजे जी, गाथा-४. ४१३३५. (४) मुनइग्यारसनि धोय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५X१२.५,
१३X३४).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंतिः श्रीसंगना विग नीवारि, गाथा-४. ४१३३६. (४) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२७.५X१२.५, १३४३४)आदिजिन स्तवन- अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे अंतिः फले सपलि आस के
गाथा- २३.
४१३३७, (४) सीमंधरजीन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, ११X३७).
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि शाहेब श्रीसीमंधर, अंतिः मुने राखे तुमारि पास,
गाथा - १२.
४१३३८. (+) शांतिनाथनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१२.५, १३x४१).
(२७.५X१२.५, १२X४०).
१. पे नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. ९अ संपूर्ण.
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि सारदमाय नमुं सिरनामी, अंति: मनवंछीत सिवसुख पावे, गाथा - २१.
४१३३९. (#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो सिणगार अंति: आगमवाणी वनीत, गाथा- ३.
२. पे नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. ९अ संपूर्ण,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि, अंति: प्रवचन वाणि विनीत, गाथा- ३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः कल्पतरुवर कल्पसूत्र, अंतिः उपजे विनय वनीत, गाथा- ३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी विनित रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
मु. विनीतविजय, मा.गु, पद्य, आदि जिननि बहिन सुदर्सना अंतिः सुणज्यो एकह चित, गाथा- ३.
६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ, अंति: सारिखी वंदो सदा वनित, गाथा - ३. ७. पे. नाम. पर्युषणा नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्वराज संवछरी दिन अंति: वीरने चरणे नामुं सीस,
गाथा - ३.
"
४१३४०. (+) मौनैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. दे., (२७.५X१२.५, १२x३५). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः सादादानंदमाला भवतु. ४१३४१, (+४) थंभणापार्श्वनाथ वृद्धस्तवनम् व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४१३, १२-१४४३६).
"
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१. पे. नाम, भणापार्श्वनाथ वृद्धस्तवनम्, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु, पद्य, आदि प्रभु प्रणमुरे पाश, अंति: जाणी कुसललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा- १८.
२. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण.
गाथा संग्रह प्रा. पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
(#)
४१३४२. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. अमदावाद राजनगर, प्रले. बुलाखीराम गणपतराम क्षत्रिय, पठ श्रावि जमना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५x१३, १२x२८).
२४१
"
नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति सामिने दो अंतिः हूंओ जय जयकार तो गाथा २०. ४१३४३. (+) २४ जिन चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२८४१३,
१३५३९).
१. पे नाम. विंशतिचडुंर्जिन चतुत्रिंशयंत्रम्. पू. १अ संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन चतुस्त्रिंशद्यत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि आद्याभिनंदनस्वामी, अंति: वश्यं द्रुतं भवेत् श्लोक ५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ. पु.ि प्रा. मा.गु. सं., प+ग आदि (-); अंति: (-).
,
३. पे नाम, यंत्रनां चैतबंदन जोडा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण,
२४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८.
४. पे. नाम. पांचमनी थोड़, पृ. १आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४.
४१३४४. (+#) पदबी द्वार, संपूर्ण, वि. १९७२, कार्तिक शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. लिसाड, प्र. वि. च्छे लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५x१२.५, १३x४२).
"
१६ द्वारे २३ पदवी विचार-पत्रवणासूत्रगत, मा.गु, गद्य, आदि नाम द्वार १ अरब, अंतिः ए २ पदवी पावै.
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२४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१३४५. (+#) जंबूधीपसघयणी, संपूर्ण, वि. १९२५, आषाढ़ शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. चलोडानगर,
प्रले. मु. पेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीराउलापार्श्वनाथ प्रसादे., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, १३४३५).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ४१३४८. चउवीसदंडकविचारगर्भितपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७.५४१३, १३४४१).
पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजीनेसर; अंति:
गावे धरमसि सुजगिस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ४१३४९. (+#) गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४३, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पाली, पठ.सा. गुलाबश्री;
प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं.८०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ५४३७).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०.
गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभिया पुरुष; अंति: अव्याबाध सुख पामे. ४१३५१. (+#) पद्मावतीदेवी छंद व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से
संशोधन किया है. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १८४४४). १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीमत्कलिकुंडं दंड; अंति: पूजो सुखकारणी, गाथा-११. २. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४१३५२. (#) मेतार्यमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गोविंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १४४३५). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: साधु तणी एह सजाय,
गाथा-१४. ४१३५३. (+#) ऋषिकुल स्वाध्याय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१, इंदुरसवसुचंद्र, भाद्रपद कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भावनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, ७४३६).
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहअणे सयले, गाथा-१३.
भरहेसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भरतेश्वर चक्रवर्ति; अंति: त्रिभुवनमांहि सघले. ४१३५४. महावीरजिनगर्भापहरणकारण कथा व १४ स्वप्न कवित, संपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. य. केसरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपूप्फदंत प्रसादे., दे., (२७.५४१२.५, १६x४०). १.पे. नाम. गर्भापहरणकारण कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. त्रिशला राणी व देवानंदा ब्राह्मणी के पूर्वभव का वर्णन.) २. पे. नाम. १४ स्वप्न कवित, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण..
मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूंढ सरल दीपत्त दंतु; अंति: देखत देवि समुजलदही, गाथा-१४. ४१३५५. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखकने विशिष्ट पद्धत्ति से पदच्छेदमय आलेखन किया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२७४१३, ११४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ४१३५६. (+#) अइमंताऋषी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२८x१३, १२४३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वादीन, अंति: ते मुनिवरना पाया,
गाथा - १८.
४१३५७. (#) ज्ञानपंचमि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १३x४४).
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,
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीवासुपूज्य जिणेसर, अंतिः संघ सयल सुखकारि रे, ढाल - ५, गाथा - १६.
४१३५८. पंचमीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२७.५x१२.५, १२४३६). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय अंति; (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.)
४१३५९. (+#) पार्श्वजिन व पर्युषणपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२.५, १०x४४).
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, बि. १८७७, आदि: सुणो सखि संखेश्वर जइ, अंतिः प्रभु कमला वरता, गाथा - १४.
२. पे नाम, पर्युषण पर्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से लिखी है,
मु. विबुधविमल, मा.गु, पद्य, आदि: सुनजो साजन संत, अंतिः ऋधी सिधी वरीया रे.
२४३
४१३६०. (#) मौनएकादशी व दीपावलिपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२७.५४१३ १४४३८).
१. पे. नाम. दोडसोकल्याणक चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक जग जयो; अंति: शिव लक्ष्मी वरीजे, गाथा - १६.
२. पे. नाम. एकादशी नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेस पावापुरी प्रभ; अंति: मेरु दिओ मनुहार, गाथा-९. ४१३६१. (+) वृद्धोहांनि तिथि प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित.,
दे., (२७.५४१४, ११४३२-३५).
पर्वतिथि वृद्धिहानि प्रश्नोत्तर, प्रा.सं., गद्य, आदि: इंद्रवृंदनतं नत्वा, अंति: पणेनानंतसंसारवृद्धिः. ४१३६२. (+#) सीद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. छगन भगवानदास मणिआर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१२.५, १२X३०).
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहारु दुगरीवे मन, अंतिः सिद्धिविजय सुखवास हो,
गाथा - १२.
(४१३६३. (+) आदिजिन आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, वे. (२६.५x१२.५, १२४३३).
१. पे नाम, ऋषभ स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण
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आदिजिन स्तुति- चतुर्थीतिधि, सं., पद्म, आदिः उद्योत्सारं शोभागारं अंतिः तारा भूत्यै स्तात् श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति, अंतिः बुद्धिऋद्धिवैदुष्यं श्लोक-४. ३. पे. नाम. आठमनि थोइ, पृ. १आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि अष्टमि अष्ट प्रमाद, अंतिः विघन सदैव दूर हरे, गाथा ४. ४१३६४, (+) नोकार रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७.५४१२,
१२X३८).
',
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि द्यो; अंतिः रास भणुं सर्व साधुनो, गाथा - २५. ४१३६५ (+) सरस्वति अष्टक व शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे, २, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से संशोधन किया है.. संशोधित. दे. (२७४१२.५, १३४३४).
"
१. पे. नाम. सरस्वति अष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि बुधि विमल करणी, अति नित्य नवेलि जगपति, गाथा - ९. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल सीद्ध, अंति: शिवलक्षमि गुण गेह, गाथा - ५. ४१३६६, (+४) योगशास्त्र- प्रकाश १, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
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(२४.५X१२, ११X३३).
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ४१३६७. (#) नारंगापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. हिम्मत, लिख श्रावि. समरथना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १०x३२).
पार्श्वजिन स्तवन- नारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि विषय त्रेवीस नीवारी, अंतिः पद्मविजय कहे सुभमति, गाथा-९.
४१३६८. (+#) डीगरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सीघाण, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १६५३४).
महावीर जिन स्तवन- डीगरी, पुहिं. पद्य वि. १९२८ आदि तिर्थकर माहावीरनें अंति: सन उगणीसें अठाइ जी,
,
गाथा-२०.
""
४१३६९, (०) राजल सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१३, १४X३०). नेमराजिमती सज्झाय, मु. नयनसुख, पुष्टिं पद्य, आदि: प्रथम मनाउं ॐकार अंतिः हो वलीहारी जी गाथा २४. ४१३७० (+४) नेमराजुमति का बारामासा संपूर्ण, वि. १९८४ माघ कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल वरसतनगर, प्रले. मु. खुशालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से संशोधन किया है., संशोधित. मूल पाठ अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१४, २०x४७).
"
नेमराजिमती बारमासो, मु. नैनानंद, पुहिं. पद्य वि. १९१६, आदि नेमनाथ बंदु वर्णं हरण, अंतिः मन कि गरज पुरी हुई, गाथा-३०.
४१३७२, (४) चींतामणपार्श्वजिन तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण शुक्ल, १५. रविवार मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५X१४, ११४२५).
जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब, अंति: श्रीजिनचंद सवाई रे,
गाथा - ११.
४१३७३.
(+#) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित - अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२७४१२.५, १२४२५).
,
१. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४.
२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वर्धमानपुर, प्रले. जीवराज गांगजी वोरा.
मु. नयविजय, मा.गु, पद्य, आदि: वीर जीणेशर अति अंतिः सानिध करजो माय जी, गाथा ४.
३. पे. नाम. जंबुद्वीप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४१३७४. (०) उपसर्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२७X१३.५, १४X४०).
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उवसगहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं० ॐ अंतिः तेनाह सुरी भगवंत, गाथा - १६, (वि. कृति के अंत में स्तोत्र की मंत्र साधन विधि भी दी गई है.)
४१३७५. (+#) कूणिकराजाना संग्रामनी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्थाही फैल गयी है. वे. (२४.५४११.५. १४४३४-३७).
"
कथासंग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-) अंति: (-).
४१३७७. (+) आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१४, १३X३७).
१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८बी, आदि: क्या सोवे उठ जाग अंति: जन देव गावु ध्याव रे, गाथा-३
२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरिया रे बाहुरे, अंतिः विरला कोई पावे, पद-३.
३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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मु. आनंदघन, पुष्टिं पद्य वि. १८वी आदि जिया जाने मोरि, अंतिः नर मोह्यो माया ककरी, गाथा-३.
४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य वि. १८वी, आदि: सुहागन जागि अनुभव, अंति: नंदधन० अकथ कहानी कोय, गाथा ४.
"
2
५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १ आ. संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: माहरो बालूडो सन्यासी; अंति: सिझे काज सचारि, गाथा-४, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम नहीं है.)
६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
"
मु. आनंदघन, पु,ि पद्य, वि. १८वी, आदि: कुबुधि कुबरि कूटिल अंति; तो जिते जीव गाजि, गाथा- ६. ४१३७८. (+#) विचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९०९, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों
स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१३.५, १३४३४).
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमि चडवीसजिणे तस्स अंति: एसा विनति अप्पहिआ,
गाथा-५४.
४१३७९. महावीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन शुरू, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, दे., (२७४१३.५. १४४२२-२८)
१. पे. नाम. बैर प्रभुजीरी वीनती, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- डीगरी, पुहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: तिरथकर महाबीरनै; अंति: उगणीसै अठाइजी में,
गाथा - २०.
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
महावीर जिन स्तवन- पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.)
1
४१३८१. () मौनएकादशी वृद्धस्तवन, संपूर्ण वि. १९५६ भाद्रपद कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल. पाली, प्र. मु. धनरूपसागर, पठ. श्राव. तेजमाल पोरवाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्. पत्रांक ३आ पर 'वछ. गणे. पोरवार' इस प्रकार लिखा है. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे (२७.५x१३.५, १६४३५).
"
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि द्वारिकानवरी समोसर्व अंति: पामीवे मंगल अति घणो, ढाल - ३, गाथा - २६.
४१३८२. (+) महादेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. दे. (२७.५४१३.५,
१३X५२).
महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांतं दर्शनं यस्य; अंति: वा जिनो वा नमस्तस्मै, श्रोक-४०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१३८३. (+) वीर स्तोत्र सह अवचुरि, संपूर्ण, वि. १९८३, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. रायण जैन पं.,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सं १६६३ में लिखे गए हस्तप्रत की प्रतिलिपि., त्रिपाठ-त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १४४३९).
महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गाहाजुअलेण जिणं; अंति: सउ खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-४. महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: गा० गाभ्रक हा हारित; अंति: (१)दुरितानामित्यर्थः, (२)अकामिउ
नेअकमइ लोहेसु. ४१३८४. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, जैन रक्षा व चंद्रप्रभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२६.५४१३.५, १८४४३). १.पे. नाम. नवग्रहनिषेवितश्रीपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अरह थुणामि पास; अंति: अवतिष्टंतु स्वाहा, गाथा-१३. २. पे. नाम. जैन रक्षा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान्; अंति: बुद्धस्तां तथालिखत्, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनी मे फलप्रदा, श्लोक-५. ४१३८६. (+#) विधिपंचविंशतिका सह टबार्थ व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, ६x४५). १.पे. नाम. विधिपंचविंशतिका सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. विरावल.
विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: यदुकुलांबरचंद्रकनेमि; अंति: पठतीह सुनिश्चयः, श्लोक-२६.
विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: य० यादवना कुलरूपीया; अंति: ज्ञान पामइ. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१५. ४१३८७. (+) उवसग्गहरं स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३.५,
१५४४९). १.पे. नाम. उवसग्गहरं यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. उवसगाहर कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में पूजन विधि दी गई है. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: नाह सुभगवंत,
गाथा-१७. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: उवसमंतु मम स्वाहा,
गाथा-१६. ४. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में अष्टादशाक्षर मूलमंत्र दिया है. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-९. ४१३८८. (+) उवसग्गहरं स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. नागौर, प्रले. भीवराज पीरोयत;
अन्य. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'मुनि पद्मसागर' हस्ताक्षर पेन से लिखा गया है.. संशोधित.. दे.. (२७.५४१४.५,१७४४८). १.पे. नाम. उवसग्गहरं यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. उवसागाहर कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में स्तोत्र विधि दी गई है.
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सहर स्तोत्र - गाथा १७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: नाह सुभगवंत,
गाथा - १७.
३. पे नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उपसमाहरं पासं० ॐ अंतिः उवसमंतु मम स्वाहा, गाथा - १६.
४. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण, पे. वि. अंत में अष्टादशाक्षरी मंत्र लिखा गया है.
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसगहरं पासं० ॐ अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
,
गाथा - ९.
४१३८९. पंचतीर्थ स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. ग. मेरुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. द्विपाठ., ., (२६.५X१४, १८४४९).
५ तीर्थ स्तुति, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीधरहीरविजयह्रदयास; अंति: नाशीरर्चितमार्गाशासी, श्लोक-१.
५] तीर्थ स्तुति स्वोपज्ञ टीका, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सम्यन्नाना, अंति: मेघविजय स्म जयप्रभः ४१३९०. (+#) माहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२६.५४१३.५, ८४३६).
१. पे नाम. आखातीजरी कथा, पृ. १अ ४अ संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य प्रभुं अंतिः मंगलिकमाला संपजे
२. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह " प्रा. मा. गु. सं., पद्म, आदि: (-): अंति: (-), गाथा-२.
महावीरजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर जिणेसर साहिब, अंतिः वंछीत दान सवायो रे, गाथा ५. ४१३९१. (+#) अखातीजरी कथा व जैन गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१३.५, १४X३१).
२४७
४१३९४. (+४) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५X१४, १८४३२).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६,
गाथा-४४.
४१३९५. (४) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १५X३२-३६). पट्टावली लोकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामि, अंति: सूरीश्वर विद्यमान ७४.
४१३९६. (#) ४२ भाषा सह बालावबोध व वचन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. शिवराम झुमखराम जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नही है. मूलपाठ के प्रारंभ व अंत में रेखाचित्र किये गये हैं., त्रिपाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (३०x१४, ३०x६०)
१. पे. नाम. भाषा बैंतालीस सह बालावबोध, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जगवय समत्त ठवणा णामे, अंतिः वायड अव्वोयडा चेव गाथा ५.
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४२ भाषाभेद गाथा - बालावबोध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: जे देशे ज भाषा बोलीय; अंति: मेलता भाषाना ४२ भेद. २. पे. नाम. वचन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
१६ वचन नाम, प्रा., पद्य, आदि: एगवयणे १ दुवयणे २ अंतिः पच्चकखबवणे परोखवणे, गाथा- १. ४१३९७. (+) माणिभद्रयक्ष छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
प्रले. पं. चारित्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x१२, ११४३५-४२).
१. पे. नाम. माणिभद्रयक्ष छंद, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
माणिभद्रवीर छंद - मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपतितति सेवत, अंति: माणिभद्र जय जय
करण, गाथा - २१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१३९९. (#) श्रावककरणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १३४३३).
श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. ४१४००. (#) जिवरासी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३२).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवें राणि पदमावति; अंति: पापथी च्छाढे
ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ४१४०१. (#) श्रावक आलोचना कोईक बोल, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १६x४१).
आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननी आशातनाई जघन; अंति: सज्झाये उपवास पुहचे. ४१४०२. (#) माहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धांणेरावनगर, प्रले. ग. हंसविजय
(गुरु ग. नरेंद्रविजय); गुपि.ग. नरेंद्रविजय (गुरु पं. भक्तिविजय); पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशितलनाथजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १३४३३).
महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजीने चरणे लागुं; अंति: आनंदघन प्रभु जागेरे, गाथा-७. ४१४०३. (+#) अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, ११४३९).
अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. ४१४०४. (+) माहालक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, ६४१७).
महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः प्रणवस्ततः; अंति: सर्वदा भूतिमिच्छता, श्लोक-११. ४१४०५. (+#) पार्श्वजिन तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ७४३७). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, फा., पद्य, आदि: श्रीगोरी पास गरिब; अंति: अजनादो जख्न फ्ते,
गाथा-५.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगोडी पार्श्व नम; अंति: नगर परते गेथूछे. ४१४०६. (+#) शंखेस्वर स्तुति एवं आठकर्मरी स्थिति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १२४२८). १. पे. नाम. शंखेस्वर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेस्वरो; अंति: संखेश्वरो आप तूठा,
गाथा-७. २. पे. नाम. आठकर्मरी स्थिति, पृ. १आ, संपूर्ण.
८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीनी स्थिति; अंति: कोडीसागरनी स्थिथि. ४१४०७. (+#) रावणमंदोदरी पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १६४५४). १.पे. नाम. सारंग पद, पृ. १अ, संपूर्ण..
रावणमंदोदरी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: कहै मंदोदरी सुण हो; अंति: जाणा जिसने नारकी, गाथा-१७. २. पे. नाम. फूहड के लछण बरणण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
फूहडबाईलक्षण पद, मु. रुघनाथ, रा., पद्य, आदि: छैडारी तो सुध नाहि; अंति: रुघनाथ फूहडबाई बाजति. ३. पे. नाम. मंदोदरीविलाप गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: मंदोदरी आदे सहु सोग; अंति: मे बधाई बंटांनी, गाथा-११.
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४. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुष्टिं पद्य, आदिः किहां गए किहां गए अंतिः पामे छे अवचल गेह, गाथा १०.
४१४०८, (+४) रामचंद्रविलाप सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३, १५x५४).
१. पे. नाम. रामचंद्रविलापकथन स्वध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण.
रामचंद्रविलाप सज्झाय, रा., पद्य, आदि: किण ठामे चलि आयौ, अंति: करस्यां काम सिवायो, गाथा - ११. २. पे. नाम. मंदोदरीरावणोपदेश स्वध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
रावणमंदोदरी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: मंदोदरी बोलै महीपति; अंति: माने नहि राय राणो रे, गाथा- १८. .पे. नाम. रावणरणवासकलापकथन स्वध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण.
३.
रावणराणीवास गीत, राघव, पुहिं., पद्य, आदि: कित गये नृपति डौलतै; अंतिः ए कर्मा के झकझोलथे, गाथा - १३. ४. पे. नाम. हनुमान गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: कपि से उर्ण हम नाही; अंति: हरि अपणे मुख गाई, गाथा- ४.
४१४०९. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३, १४X४०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ अपूर्ण से गाथा २३ अपूर्ण तक नहीं लिखा है.) ४१४१०. (+#) पंडव सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२९४१३, ११५३०).
"
२४९
५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण नीवार रै, गाथा- १९. ४१४१२. (+#) बाराखडी पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १५X३८).
१. पे. नाम. बाराखडी, पृ. ९अ, संपूर्ण
बाराक्षरी पद, चंचल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अति बडे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक लिखा है.)
२. पे. नाम. दोहा, श्लोकादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनगाथा संग्रह " प्रा. मा. गु. सं., पद्म, आदि: (-): अंति: (-).
३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- शामलीया सम्मेतशिखर, पृ. १आ, संपूर्ण
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पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम भले बिराजो जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १ अपूर्ण तक लिखा है.)
४१४१३. (+४) पोसह विधि, संपूर्ण, वि. १९३८ पौष शुक्ल ३. शुक्रवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. राणीनगर, प्रले. मु. यशविजय (गुरु पं. चंद्रविजय); गुपि. पं. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १५x५६).
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पहिली इच्छामि खमासमण, अंति: ते मिच्छामि दुक्कडं. ४१४१४. (+) चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६.५४१३, १२-१५X३९).
१. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस अंतिः बीजं बोधबीजं ददातु श्लोक-११.
२. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण.
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक - ९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३. पे नाम, २४ जिन स्तोत्र, प्र. ३अ संपूर्ण,
२४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासं, श्लोक- ८.
४. पे. नाम. आदीनाथ स्त्रोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि आदिनाथ जगन्नाथ विमला, अंतिः शासनं ते भवे भवे, श्लोक ५.
५. पे. नाम, सर्वजिन खोत्र, प्र. ३१-३आ, संपूर्ण,
साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीजिनकल्याण अंतिः श्रेयः सुखास्पदं श्लोक-५, ६. पे. नाम, सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण
हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१.
७. पे. नाम. सीधचक्रजिन स्त्रोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १९२२, आषाढ़ कृष्ण, १४, प्रले. ग. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा. मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण, अतिः सिद्धचकं नमामि गाथा ६.
८. पे. नाम. सुभाषित दुहो, पृ. ३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. उत्तम.
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दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा - १.
४१४१५, (+) पंचमी व संसारदावानल स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., (२७.५X१३, ५x२७).
१. पे. नाम. पंचमी स्तुत्ति, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४.
२. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. २अ ३अ संपूर्ण.
संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ४१४१६. (०) पार्श्वनाथजीनो कलस, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. प्रतिलेखक ने १ आ शेष पाठ २ आ पर लिखा है.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४१२.५, १०X३७).
"
पार्श्वजिन कलश नवपलव मांगरोलमंडन, आव, वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौराष्ट्र देस मध्य अंतिः जयो
जय भगवंत जी, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४१४१७. (#) पंचमी स्तुती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२७.५X१३, ९x४२).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४.
४१४१८. (+) पार्श्वजिन आरती व ४ मंगल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१३, ११X३६).
१. पे. नाम, पार्श्वजिन आरती, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदिः परम परमेसरू पुरुषादा; अंति: आपो केवल जोत भावे, गाथा - ६.
२. पे. नाम, ४ मंगल पद, प्र. ९आ, संपूर्ण
मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज मारे च्यारो मंगल, अंतिः आनंदघन उपगार, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४१४१९. नरक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., ( २६.५X१३.५, ११X३०).
नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवुं; अंतिः परम कृपाल उदार, ढाल-६.
४१४२१. (+#) पंचज्ञान पूजा, संपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. हुकमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१३.५, १८X३३-४१).
ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: रूपविजय गुण गाया रे, डाल-१९ (वि. अंत में ज्ञान पूजा की विधि भी दी गई है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२५१
४१४२२. (४) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, गु., (२७५४१४.५, १२४३७). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे वि वेसे अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४१४२३ (०) रिषभदेवनि विनति, संपूर्ण वि. १९०१ कार्तिक शुक्ल, ७ शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, नासिकनगर,
प्रले. पं. पूनमचंद पं. फतेकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४१३.५, ११X३४).
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शत्रुंजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु जी; अंतिः शमयशुदर इम भणें,
गाथा - ३२.
४१४२६ (+) अणसण विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. ३, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१२.५ १३४४८). अनशन विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: वेला पांगे तो सर्व अंति: मेले जाणवी.
४१४२७. (+) योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. बाद में किसी विद्वानने पेन्सिल से पत्रांक लिखा है व पेन से
संशोधन किया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१४, २३X२३).
कालमांडलादियोग विधि, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४१४२८. पजुसणनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६१२.५, ११X३६).
पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६. ४१४२९ (०) सुगुरूपचिसि संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६४१२.५.
(+#)
१२X३६).
सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पईछाणो ए; अंतिः शांतिहर्ष उछरंग जी, गाथा-२५. ४१४३० (+) जंबूस्वामीना ढालिया, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. जीतश्री, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित दे.,
(२६.५x१३.५, १४४३८).
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: जंबुस्वामि जोवन पर अंतिः रूप नमे वारंवार, ढाल - ६.
४१४३२. एकादसि नमस्कार, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१३, १२५३४).
"
मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सासन नायक जग जयो, अंति: सिवलक्षिमी सुख लिजे, गाथा - १६.
४१४३३. महावीरस्वामी व रूषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७X१३, १३X२९). १. पे. नाम. माहावीरस्वामीनु स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मारा प्रभुजी मुजने अंतिः ति आपो रे वीर जिणंदा, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखकने स्तवन की प्रथम गाथा को अंत मे पुनः लिखकर गाथांक ९ लिखा है, किंतु वस्तुतः गाथा परिमाण ८ है.)
२. पे नाम. रुषभदेवनुं भगवाननुं स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
,
आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु, पद्य, आदि: जीर सफल दिवस आज अंतिः रुषभना जुगते गुण गाय, गाथा-७, (वि. प्रथम दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
४१४३४. (#) नरकविस्तार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. तलजाराम घेमरचंद बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५x१३, १२x२६).
नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवर्धमानजिन विनवू, अंतिः परम कृपाल उदार, ढाल - ६.
४१४३५. वीनंती, संपूर्ण बि. २०वी मध्यम, पु. २, वे. (२६.५४१२.५, ९४२५).
धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभुजी, अंति: त्रिकाल वंदना होजो.
४१४३६. (+) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६x१३,
१२X३७).
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं डुंगरिये मन अंतिः सिद्धावेजे सुखदाय हो, गाथा- १३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१४३७. वीरनी सझ्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, ११४३९). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हुतो रे एक; अंति: वरिया शिवपद सार,
गाथा-१५. ४१४३८. अष्टमद सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ११४४०).
८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठे महामुनि वारिई; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे,
गाथा-११. ४१४३९. (+) सिद्ध व ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५,
११४३४). १.पे. नाम. सीद्ध सझ, पृ. १अ, संपूर्ण.
सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठ करम चुरण करि रे; अंति: देव दिइं आसिस, गाथा-६. २. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय,
गाथा-७. ४१४४०. (+#) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १२४३४).
आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: जिन० देजो परमानंद, गाथा-२०. ४१४४१. (+) शांतिजिन स्तवन व पोसानी सज्झय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३,
११४२८). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. पोसानी सज्झय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं,
गाथा-५. ४१४४२. (+#) असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४३४).
असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीने; अंति: वहेला वरसो सिद्धि,
गाथा-११. ४१४४३. (#) नेमराजुलनां विझणो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीसनगर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १३४३८). नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या आव्या उनालाना; अंति: पद बिहु सुखकारि के,
गाथा-१३. ४१४४४. (+#) तृतियातिथि व गणधरस्थापना गुहूलि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४२८). १. पे. नाम. तृतीयातिथि गुहूलि, पृ. १अ, संपूर्ण.
तृतीयातिथि स्तुति, मु.क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहं त्रिण परदक्ष; अंति: सासन सुर संभारोजी, गाथा-४. २. पे. नाम. वैशाखसुद एकादशी, पृ. १आ, संपूर्ण.
११ गणधरस्थापना गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: महसेन वनह मुझार रे; अंति: मोह्या चतुरविध संघ, गाथा-४. ४१४४५. (+#) सेत्रुजाना मात्मनी गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, दे.,
(२६.५४१३, ४४३४).
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२५३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शत्रुजयतीर्थस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमन्निव भक्तिभरात्; अंति: लप्स्यते फलमुत्तमं, श्लोक-१४.
शत्रुजयतीर्थस्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नम्यानी परे भक्तिने; अंति: फल उत्तम पामे. ४१४४७. (+) ढंढणऋष्य सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्र.वि. अजीमगंज भागीरथीगंगा तटे., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४२८-३०).
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषजीनै वंदना; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ४१४४८. (#) प्रश्नोत्तर व नवनियाणादि गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. रायचंद विजयचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४३८). १.पे. नाम. प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. नवनियाणा आदि गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. किसी आधुनिक विद्वानने 'नव नियाणा एवं विदलमांजीव
थाय ते गाथा' इस प्रकार विषय निर्दिष्ट किया है.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१४४९. (-#) चोवीशजिन आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२७७१३, १३४३५). १. पे. नाम. विंशतीचतुर्जिन चतुर्बिशयंत्रम्, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में पार्श्वनाथ का मंत्र लिखा है.
२४ जिन चैत्यवंदन-चतुस्त्रिंशयंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: आद्याभिनंदनस्वामी; अंति: वश्यं द्रतं भवेत, श्लोक-५. २. पे. नाम. पंचशष्टी यंत्रम्, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्,
श्लोक-८. ३. पे. नाम. वज्रपंजर परमेष्टीपद, पृ. १आ, संपूर्ण.
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४१४५०. (+#) २४ पचखाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १३४४०).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुकार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ४१४५१. (+#) छिनालपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४४४).
छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पर मुख देख अपण; अंति: लालचंद आखर समजावै, गाथा-२६. ४१४५३. (+#) ग्यानपंचमी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १३४२७). १.पे. नाम. ग्यानपंचमी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरु पाय; अंति: भगति
भाव प्रसंसीयो, ढाल-३, गाथा-२४. २. पे. नाम. गोतमस्वामी गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर कैरोसीस; अंति: गोतम तुठां संपत
कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सीज्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, रा., पद्य, आदि: यो भव रतनचिंतामण; अंति: अनरथदंड निवारो रे, गाथा-८. ४१४५४. (+#) चारस्तुतिगर्भितश्रीवर्द्धमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, ११४३८).
महावीरजिन स्तवन, पंन्या. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिनेश्वर; अंति: हितविजय गुण गावे, गाथा-२४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१४५५. (+#) जिनमूर्तिमंडन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ११४४१).
जिनप्रतिमा स्तवन, पंन्या. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए जिनप्रतिमा पूजो; अंति: हितविजय गुण गाया, गाथा-३२. ४१४५६. (+#) जलयात्राकरण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. बाद में किसी आधुनिक विद्वानने पेन से संशोधन किया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, ११४३३).
जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ गुरुतत्त्वाय नमः; अंति: वादित्राणि वाद्यते. ४१४५७. (+) अजितनाथजिन जन्माभिषेक कलश, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १२४३८).
अजितजिन कलश, पंन्या. रुपविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चक्रे देवेंद्रवदैः; अंति: जिन अजीतनाथ गुणधाम,
ढाल-६. ४१४५८. (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३८, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४४०).
पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडदंडं; अंति: पद्मावती अमा शुखकरणी, गाथा-१२. ४१४५९. (+#) नेमिजिन सीज्झय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १४४३७).
नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नयर सुहावणो; अंति: मनरूप प्रणम पाय, गाथा-१५. ४१४६०. रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३.५, ९४२७).
रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षेत्र रोहीणी जिण; अंति: पद्मवीजय गुण गाय,
गाथा-४.
४१४६१. (+#) दशवैकालिकसूत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, अन्य. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १२४४४). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ व २, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. अध्ययन १-३ गाथा १ तक है.) २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
____ अपूर्ण., दैवसिक अतिचार अपूर्ण व करेमि भंते सूत्र लिखा है.) ३. पे. नाम. संथारापोरसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य.
__ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: तिविहेण वोसिरीयं, गाथा-१७. ४. पे. नाम. मंडल बोल २४, पृ. २आ, संपूर्ण.
२४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ५. पे. नाम. गोचरी आलोयण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण, अन्य. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. कृति पत्र के हासिए में
लिखी गई है.
प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: साहु देहस्स धारणा, गाथा-१. ४१४६२. (#) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विसनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १३४३४). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: केवलनाणंच
पंचमयं, गाथा-५१, (वि. इस प्रति में प्रतिलेखकने प्रारंभिक २४ गाथा लिखकर कृति की पूर्णाहुति कर के वृद्ध सज्झाय नाम दिया है व आगे की २७ गाथा की अन्य कृति बनाकर अंत में लघु स्वाध्याय नाम दिया है किंतु वस्तुतः दोनों नंदीसूत्र की प्रारंभिक मंगलगाथा रूप स्थविरावली ही है.)
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२५५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४१४६३. (+#) कालज्ञान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बाणारस, अन्य. मु. कुमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५.५४१३, ११४३२).
कालज्ञान, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीमज्जिन; अंति: अतिसारेण विनश्यति, श्लोक-१२. ४१४६४. (+#) बाहुबलि आदि सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित. अक्षर
पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १३४३९). १. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. बाहुबलि सीज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण..
भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया भरत; अंति:
___ समयसुंदर गुण गाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. गर्भावासनी ज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमा चितवेरे; अंति: जइये मुगति
मोज्झार, गाथा-८. ४. पे. नाम. चेलणा सझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखांणी रांणि; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार,
गाथा-७. ५. पे. नाम. इरीयावहिनी ज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारि में दीठी एक; अंति: करज्यो घणी सेवरे, गाथा-७. ६. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दिट्ठिहो प्रभु; अंति: दिजो सुख
दरसण तणो जि, गाथा-६, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम नहीं लिखा है.) ७. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तव, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराय तुं; अंति: वाचक जस थुण्यो जी,
___ गाथा-५. ८. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअनंत जिनस्यु; अंति: मुझ प्रेम महंत रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. अरजीन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंति: प्रभुना गुण
गावुरे, गाथा-५. १०. पे. नाम. मलिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ मन रीझ; अंति: एहज चित्त धरेरी, गाथा-५. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेनी अलगी रहे; अंति: चित
चेतनदा दाखी, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखकने कर्ता नामवाली गाथा नहीं लिखी है.) १२. पे. नाम. म्लेछराजा व अक्षौहिणी संख्या मान, पृ. ४आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१४६५. (+) पार्श्वजिन पद्यं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२१.५४११, १०x२९).
पार्श्वजिन स्तवन, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन महिर करीजै; अंति: सेवा आपो अंतरजामी, गाथा-७. ४१४६६. से@जय नमस्कार व पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, दे., (२६.५४१३,
११४३६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पजुसण नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जो सिणगार; अंति: आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहे शुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकह चित, गाथा-३. ६.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मागु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामुंसीस,
गाथा-३. ८. पे. नाम. सेजय नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण..
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोरठदेशे सोहता; अंति: जिम पामो कल्याण, गाथा-९. ४१४७२. (+) अष्टमीना स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १३४३३).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: संघने कोड
कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ४१४७३. (+) जयंतीप्रश्न गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक का भाग खंडित है., संशोधित., दे., (२६.५४१३, ९४२९). जयंतीप्रश्न गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितहर चोवीसमा जिनराय; अंति: छेह न देशो मुज कदा,
गाथा-९. ४१४७४. (+) वीरजिन २७ भव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४१२.५, १२४३६). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरु;
अंति: सेवक वीरवीजयो जयकरो, ढाल-५. ४१४७५. (#) झांझरीयाऋषिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३०). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणें सीस नमा; अंति: सांभलता मन
मोहे के, ढाल-४, गाथा-४५. ४१४७६. सुतकनी सज्झाय व सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३.५, १२४४४). १. पे. नाम. सुतकनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवि समरी मात; अंति: धन शिवलछी ते वरो, गाथा-१६. २.पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाय; अंति: प्रहर १२ सुतक. ४१४७७. (+#) अष्टमिकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२४, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले.
मगन पूजासा; पठ. श्राव. दूलवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअमिझरा प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, ११४३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धरम, अंतिः कांति सुख पामे यणो,
ढाल - २, गाथा - २४.
४१४७८. (+) स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, दे., (२५.५X१३.५, १४X३३).
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स्नात्रपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १९वी आदि: सरसशांतिसुधारससागर, अंति: धूप उखेवो जिनवर आगे, बाल-८.
४१४७९. (+#) बीरत्थुइ नाम्यध्यय्यनं व नमस्कार महामंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. रुगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३, ११X३८).
१. पे. नाम वीरत्थुइ नाम्यध्यय्यनं, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति तिबेमि, गाथा - २९.
२. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र पद ५, पृ. २आ, संपूर्ण
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. पांच पद तक है.) ४१४८०. (+#) षट्पर्वीणां घटाघट विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. हितविजय (गुरु पं. सौभाग्यविजय);
पं. लालरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १७x४०).
पर्वतिथि विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीवीरान्नवशत; अंति: लेखे तो विराधक छे.
४१४८१. (+०) महावीरजिन स्तवन व आवग की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१३, १६x२९).
१. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: श्रीबीर जिणंद सासण; अंति: धन धन बीर जीणंद, गाथा-९. २. पे. नाम. श्रावग की ढाल, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कई मीलसी रे श्रावग; अंति: सफल जनम ति लाधो
जी, गाथा - २१.
४१४८२. (+#) देवकी चोपी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५,
१७X३८).
देवकी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः आग्या ले भगवंतनी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ गाथा ९ तक लिखा है.)
४१४८३. (+०) लक्ष्मीपती चरित्र, संपूर्ण वि. १९६८ श्रावण शुक्ल ८, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पोसाल देवलिया, प्रले. मु. देवीचंद; पठ. सा. अलोला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती मे लिखित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२.५, १७४५१).
लक्ष्मीपति सझाय, मु. अमोलक ऋषि, रा. पद्य वि. १९५६, आदि: पुन्य चीज है बड़ी जगत; अंतिः अमोलक ऋषीयो कह तारो, गाथा-३०.
४१४८४. (+#) नंदीषेणनी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. गुमानविजय (आणंदसूरिगच्छ); पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१२.५, १४X३५).
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजगृही नगरीनो वासी, अंतिः साधुने कुंण तोले हो, बाल- ३, गाथा - १४, (वि. दुसरी ढाल में दो गाथा की एक गाथा गिनी गई है. )
४१४८५. (+०) समकत का सतसठ बोल व जैन गाथासंग्रह, संपूर्ण वि. १८९८, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२६.५x१२.५, १५X३७).
१. पे. नाम. समकत का सतसठ बोल, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
सम्यक्त्व ६७ बोल, गु., मा.गु, गद्य, आदि: दरब समगत भावै समकत, अंतिः मोख की उपाये छ
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२. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जैन गाथा *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४१४८७. (#) समयक्त्व कुलक व तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. वट्टपल्ली, प्र. वि. मू पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१३, २०x४६).
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१. पे. नाम, सम्यक्त्व कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८४६, मार्गशीर्ष शु. १२, रविवार, प्रलेग, कांतिविजय (गुरु पं. रूपविजय, वडीपोसालगच्छ); गुपि. पं. रूपविजय (गुरु पं. जिनविजय, वडीपोसालगच्छ); पं. जिनविजय (गुरु
ग. भक्तिविजय, वडीपोसालगच्छ); ग. भक्तिविजय (गुरु आ. दोलतसागरसूरि, वडीपोसालगच्छ); आ. दोलतसागरसूरि (गुरु आ. गुणसागरसूरि वडीपोसालगच्छ); आ. गुणसागरसूरि (गुरु आ भुवनकीर्तिसूरि वडीपोसालगच्छ) आ. भुवनकीर्तिसूरि (गुरु आ. रत्नकीर्तिसूरि, वडीपोसालगच्छ); आ. रत्नकीर्तिसूरि ( वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ति, गाथा - २५.
२. पे नाम, विजयपत स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८४६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, प्रले. ग. कांतिविजय (गुरु पं. रूपविजय, वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य
प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुतपवासव अड अंतिः निब्यंत निच्चमच्चेह, गाथा-१४.
४१४८८. (+४) दानशीलतपभावना सज्झाय व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण वि. २०बी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, १८४३६).
१. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देवने उलख्यो; अंति: वरत्या जै जैकार, गाथा- १०. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु तोड करम जंजीर, अंति: नैन हुआ क्युं अंधा, गाथा-५. ४१४८९. (+) छे लेस्या वर्णव व नरकना मुखभूमीनी गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२५.५X१३, ६X३४).
१. पे. नाम छे लेस्थानो वर्णव, पू. १अ-२अ संपूर्ण.
६ लेश्या गाथा, प्रा., पद्य, आदिः पंथाओ परिभट्ठा छ; अंति: रसो उसुक्क लेसाओ, गाथा- १४.
२. पे. नाम. नरकना मुखभूमीनी गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण.
जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा का किंचित् अंश लिखा है.)
४१४९०, (+४) पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड़ गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१३.५, १३X३३).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेणं वोसिरामि.
४१४९१. (०) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. खंभातबंदर, पठ. श्रावि खेमीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य,
प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१३, ११३१).
सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि भावे कीजे रे नवपद अति उत्तम गुणनो रे ठाण, गाथा- ११. ४१४९२. () जिनपंजर आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४ मध्यम, पृ. ३, कुल पे, ३, ले. स्थल, शुभटपुर, प्र. वि. अशुद्ध पाठ.,
दे., ( २४.५X१२.५, ११X३०).
१. पे. नाम. मंगलमाला स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमलप्रभाक्ष, श्लोक-२५.
२. पे. नाम, जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्र. ८, बुधवार
जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह, अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८.
३. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, गुरुवार, प्रले. आ. विनयचंद्रसूरि प्र.ले.पु. सामान्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४१४९३. (+#) राजिमती पद व नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित
है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १२४३४). १. पे. नाम. राजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद, आ. जिनसुखसूरि, रा., पद्य, आदि: वैगा आजोरे; अंति: सुखसूरि० सराज्योरो, गाथा-७. २. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जयइ; अंति: परघरि गमन निवार, गाथा-१०. ४१४९४. (+#) प्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १८४३५).
जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. इस प्रति में संक्षिप्त प्रतिष्ठा विधि दी गई है.) ४१४९५. (+#) दिनशुद्धि प्रदीपिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३.५, १७४५१). दिनशुद्धिदीपिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जोइमयं जोइगुरुं वीरं; अंति: रयणसेहरसूरिणा
विहिआ, गाथा-१४८. ४१४९६. (+) पार्श्वजिन स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १२४३२-३४). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५
गाथा १६ तक है.) ४१४९७. (+#) आदिसर वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १७४३२).
आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसायरे; अंति:
विनय करीने वीनव्यो ए, गाथा-५८. ४१४९८. (+#) कायस्थिति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४.५, १०४३९). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकायपदसंपदं देसु,
गाथा-२४. ४१४९९. (#) प्रियमदन चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १५-१६४३४-४०).
प्रियमदन चौढालियो, रा., पद्य, आदि: माया पुन्य तणी सहु; अंति: ते इणविध दुखीया थाय, ढाल-४. ४१५००. (+) दानशीलतपभाव संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्रले. जयशंकर दयालजी; लिख. श्रावि. उमेदकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १२४४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति:
भणे० सुप्रसादो रे, ढाल-४, (पू.वि. ढाल.२ गा.७ से ढाल ४ गा.४ अपूर्ण तक नहीं है.) ४१५०१. (+) संखेस्वरजीनो तवन व दीपावलीपर्व घुयलि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२६.५४१२.५, १४४३८). १. पे. नाम. संखेस्वरजीनो तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: संखेसरा पासजी जयकारी; अंति: ते तुज गुण धरसे,
दोहा-८. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व घुयलि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
दीपावलीपर्व गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: दीवाली दीवाली मारे; अंति: कोडी छट फल साली रे, गाथा-७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१५०२. (#) नववाडी, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपंचासरा प्रासादे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १३४२७). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने हु जाउ भामणेइ,
ढाल-१०. ४१५०३. (+#) वाख्याननी पीठीका, संपूर्ण, वि. १९५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीसनगर, प्रले. हरगोवन मोतीराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४, १२४३०).
व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० अज्ञा; अंति: धर्मदेशना देता हवा. ४१५०४. (#) दशवकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१४, ५०४२४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्म मंगल महिमा; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन ६ गाथा ७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४१५०६. (#) २० स्थानकतपतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १२४२६).
२० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याइ; अंति: लक्ष्मी पद पाया रे, गाथा-७. ४१५०८. खंधकमुनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १३४३५).
खंधकमुनिसज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवंता नगरी सोहामणी; अंति: सहुने उपजे वैराग, गाथा-१६. ४१५०९. (#) चरणसितरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३९, आषाढ़ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जावाल, अन्य. पं. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, २०४२४).
चरणसित्तरी सज्झाय, ग. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतने करी प्रणाम; अंति: गुरु सेवा शीवपद लाण, गाथा-९. ४१५१०. (#) नोकारनो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मुमाइ बंदर, प्रले. ग. रत्नसागर (गुरु पं. प्रतापसागर);
गुपि.पं. प्रतापसागर; पठ. श्रावि. सेठाणीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सातीनाथ प्रसादात., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १५४२८).
नवकार रास, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण द्यो मुज; अंति: हुवो जय जयकार तो, गाथा-२१. ४१५११. (+) महावीरजिन होली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १३४३०).
महावीरजिन होरी, रा., पद्य, आदि: कुंनणपुर भला नगर; अंति: कालै त्रिभवनेसर को, गाथा-१६. ४१५१२. (#) झूलना नववाड का व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही
है. प्रतिलेखकने पेटांक २ से ५ तक कृति प्रारंभ व पूर्णता सूचक शब्द संकेत लिखे बिना ही प्रारंभ व पूर्णता की है एवं प्रत्येक कृति के अंत में १, २ आदि क्रमांक लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३, ४४४२१). १.पे. नाम. झूलना नववाड का, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
९ वाड सज्झाय, मगनलाल, पुहि., पद्य, आदि: पहली बाड मे साधजी; अंति: नित प्रत धिर्कारी है, ढाल-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भजुलाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: क्रम कमावे भारी; अंति: राजा पोपाबाइ कौ, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भजुलाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: कीनी हे समाइता में; अंति: ऋष फोकट कमाइ हें, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने
गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भजुलाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पढे नवकार मंत्र; अंति: गुणो नमोकार की, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
नहीं लिखे हैं.) ५. पे. नाम. औपदेशिक पद-कायोपरि, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२६१ मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: काया हे असुच ठाम; अंति: पचहे दुख जालसुं, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४१५१४. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४३२).
महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे जिनवर वचन; अंति: अमरीत सिवनिसान रे, गाथा-९. ४१५१५. (#) तारंगाजी-स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४३५).
अजितजिन स्तवन-तारंगातीर्थमंडन, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: श्रीतारंगा धाममा; अंति:
पुरज्यो आस लाल रे, गाथा-८. ४१५१६. (#) बीजतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. कंचनश्री; श्रावि. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x१२.५, ११४३३). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवन रे; अंति: नित विविध वीनोधरे,
गाथा-८. ४१५१७. (+#) द्रव्य संग्रह गाथा, अपूर्ण, वि. १६४४, माघ कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, ले.स्थल. माहरोठ, प्रले. रंगा; राज्यकालरा. रायसल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १३४३४). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: चंदमुणिणा भणियंज,
अधिकार-३, गाथा-५८, (पू.वि. गाथा ३५ से गाथा ५६ अपूर्ण तक नहीं है.) ४१५१८. (+#) अहमंता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९११, आश्विन कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कीसनगढ,
प्रले. सा. रायकुंवरजी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११, १६४४१). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बीरजीणद बांदीन गोतम; अंति: ते मुनिवरना पाया,
गाथा-२६. ४१५१९. (+#) विषापहारभाष्या अस्तौत्र व ७ व्यसन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ११४३४). १.पे. नाम. विषापहारभाष्या अस्तौत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: आत्मलीन अणंतगुण; अंति: सदा श्रीजिणवर को
नाम, गाथा-४१. २.पे. नाम. ७ व्यसन लावणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: चौरी जुआ मास मधो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण
तक लिखा है.) ४१५२०. (#) अंबिकादेवी आरती व नेमनाथजीरी लावणी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४५६). १.पे. नाम. अंबिकादेवी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण.
शिवानंद स्वामी, पुहि., पद्य, आदि: जय अंबे गोरी ओ महीया; अंति: इसा फल पावे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमनाथजीरी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अरज; अंति: फेर फेरा नही फरणे की,
गाथा-१०. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ४. पे. नाम. बारपूनिम विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः बत्तियागारेणं वोसिरइ.
२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
५. पे नाम, भडली विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण
भडली पुराण, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४१५२१. पचखाण व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, वे. (२६.५४१३, १३x४१). १. पे. नाम. पचखाण, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
ढाल - ९.
४१५२४. नववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे. (२६४१३.५ १२४३६).
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ग. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९१, आदि: भविअण सिद्धचक्र; अंति: आपो सुख अपार के, गाथा-५. ४१५२३. षट् अठाईनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४ वे. (२६४१३.५, १२४३७)
६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्यादवाद सुद्धो, अंति: बहु संघ मंगल पाइआ,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणें नमी, अंतिः तेहने जाउ भांमणे,
ढाल १०.
४१५२५. रात्रिभोजननिवारण आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५x१३.५, १२X३५). १. पे. नाम. दशत्रिकनी स्तुति, पृ. १अ. संपूर्ण.
तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिही त्रण प्रदक्षी, अंति: सासन सुर संभालो जी, गाथा- ४. २. पे. नाम. वीरजीन स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
रात्रिभोजनत्याग स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सासननायक वीरजी ए अंतिः जीव कहे तस शिष्य तो,
गाथा-४.
३. पे. नाम वीरजीन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः उठी सवारे सामायक, अति एसीवपद भोगी जी गाथा ४. ४१५२६. जलयात्राकरण विधि, संपूर्ण, वि. १९६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्रले. हठीसिंग बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य,
"
दे., ( २६.५X१४, ११x४०).
जलयात्रा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: सधवाधारक बेहडा ४; अंति: वादित्राणि वाद्यंते.
४१५२७, (+) ककापैतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२४.५४११.५,
१५X४९).
गाथा - ३५.
ककापात्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका कर सुकृत कछु; अंति: अक्षय अजरामर पावे, ४१५२८. (#) क्षमाछत्रीसी व चोविसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैटे. (२५.५४१२.५, १६४३८).
१. पे. नाम, क्षमाछीसी, पृ. १अ २अ संपूर्ण, ले. स्थल, मेसाणा नगर,
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदर जीव क्षमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. २. पे. नाम. चोविसजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल आविया; अंति: टालो जन्म जंजाल, गाथा-५. ४१५३०. (०) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४१३,
११४३२-३५).
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पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिव ब्रह्मावादनी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा ९ अपूर्ण तक लिखा है.) ४१५३१. (+#) मृगापुत्र व शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. जावद, प्रले. राइचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१०.५, १२४३७-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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१. पे नाम, मृगापुरीना सझाय, पृ. १अ-२अ संपूर्ण
मृगापुत्र सज्झाव, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीव नगर सुहामणो, अंति: ज्दी मुक्ता होय, गाथा २६. २. पे. नाम. सालभद्रनी सझाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुवाल्यो तणे, अति: सहजसूधरम वीनवे जी, गाथा -१८ (वि. प्रतिलेखकने अंतिम गाथा के मात्र तीन चरण लिखकर कृति की समाप्ति कर दी है.) ४१५३२. (०) मानपरिहार सझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे, (२५X१३, १०x२२). औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, पंडित भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई, अंतिः नगर रह्या चोमासे रे, गाथा-८.
,
४१५३४. (०) शांतिनाथ छंद, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३.५,
१३४३०-३२).
शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद माय नमुं सिर; अंति: मनवंछी सिवसुख पावे, गाथा २१.
(#)
४१५३५. समावसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१४, १०X३४).
समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दरीस नयन ठरावजो, अंति: ओछव रंग वधामणां, गाथा-१५. ४१५३७, (+४) समवसरण स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६४१२.५, १०४३९).
२६३
समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा - २४. ४१५३८, (०) स्थूलभद्रजी को नवरासो, संपूर्ण वि. १९६८ भाद्रपद शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, प्रले श्राव, केरीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x१३.५, १८x४२-४७).
"
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा, अंति: उदयरत्न क
एम, ढाल - ९.
४१५३९. (+) संधारा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२३.५४१२.५,
१३X३०-३५ ).
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह, अंति: तिविहेण वोसिरीयं, गाथा-१४.
४१५४० (०) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५X१२.५, १३X३४).
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख, अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४१५४१. चक्रेश्वरीदेवी गरबी व ९ ग्रह श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, ९३४).
१. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी गरबी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय.
चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली रे चक्केसरी, अंति: छे बहु सोभा तारी, गाथा- ९. २. पे नाम ९ ग्रह लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८४ पौष शुक्ल ८, प्रले. ग. गुलाबविजय.
ज्योतिष मा.गु. सं. हिं. प+ग, आदि: (-) अंति: (-).
सं.,हिं.,
,
४१५४४. (+#) मीघर्थराजानी सीजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. दादरी, पठ. मु. रुघनाथ (गुरु मु. मंगलसेन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंतनाथाय नम, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६१२.५, १०३४). मेघरथराजा सज्झाय- पारेवडाविनती, मा.गु, पद्य, आदि दया बरोबर धर्म नही; अंतिः संत सुखी अणगारो जी,
""
गाथा - ३०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१५४५. (#) अमृतवेल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२५४११, १२४३२-३४). १. पे. नाम. अमृतवेल सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजूवालीइ; अंति: लहे सूजस रंग रेल रे,
गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी प्रीउने वीनवे; अंति: मूगति जासै तै जीवरे, गाथा-११. ४१५४६. (+-#) बृहच्छांति, धर्मलाभ श्लोक व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध
पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १४४३१-३८). १.पे. नाम. बृहच्छांति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. २. पे. नाम. धर्मलाभ श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्वेश्मनि; अंति: श्रीधर्मलाभोस्तु वः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), गाथा-१, (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य पढा नहीं जा
रहा है.) ४१५४७. जीवरास पदमावती, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१३.५, ११४३४).
पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मोटी सती पदमावती; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा ४१ अपूर्ण तक है.) ४१५४८. (#) मोहनएगयारस स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. गुमानविजय (गुरु पं. रूपविजय); अन्य.पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३.५, १२४२२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति:
मगसर सुद इग्यारस वडी, गाथा-१३. ४१५४९. (#) कलिजुग स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दसरथपूर, प्रले. मु. मोतीविजय; अन्य. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सांतीनाथ प्रसादात्. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १३४२६). कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि पाय नमी; अंति: सुक्रत एक सवायो रे,
गाथा-११. ४१५५०. पार्श्वनाथ पताकासाधन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४१३.५, १२४३३).
पार्श्वजिन पताकासाधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम एकांतस्थान वन; अंति: (-), (पू.वि. शुद्धिनिर्णय तक है.) ४१५५१. (+#) गर्भपरावर्तन शिवमते व स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अबरखयुक्त पाठ. पत्रांक
अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १६x४४). १. पे. नाम. गर्भापहार शिवमते, पृ. १अ, संपूर्ण.
गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, सं., गद्य, आदि: अत्राह शिवमते अहो; अंति: कथा श्रोतव्या. २. पे. नाम. स्वप्न विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: अर्हन्बुद्धो हरि शंभ; अंति: शास्त्रानुसारतः, श्लोक-२२. ४१५५२. (#) उठमणो सलोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वर्द्धमानपुर, प्र.वि. श्रीऋषजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५-१६४३२-४५).
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. श्लोक संग्रह-बालावबोध **, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरण; अंति: सुख संपदापणुंपामे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२६५ ४१५५३. (#) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. हठीसंग मानसंग बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१४, ११४३२).
जिनपंजर स्तोत्र-लुंकागच्छीय, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्हतो; अति: दहनवरपंजराख्यः, श्लोक-२९. ४१५५५. (+) शांतिस्नात्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १४४३८).
शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१५५६. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१७(१ से १७)=३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १५४३०-३२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंदसंपदं, ग्रं. १५०,
(संपूर्ण, वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं. अंत में किंचित्पूजन विधि भी दी गई है.) ४१५५८. (+#) अमीझरापार्श्वजिन छंद व ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, १६x४६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात अमीझरो; अंति: नीरमल एती पुरो आसये, गाथा-२१. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहाणांशांतिहेतवे, श्लोक-११. ४१५५९. (+#) विवाह प्रकरण, पोहर रविवासौ व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ३,
कुल पे. ३, प्रले. मु. चैनविजय; पठ. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १३४३४). १.पे. नाम. दूहाबंध विवाह प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ज्योतिस तणो मरम्म, गाथा-३६, (वि. पत्र खंडित
होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) २. पे. नाम. पोहर रविवासौ, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
ज्योतिष दूहा संग्रह, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: शनि सूतो परिहरो; अंति: पहुर अठमपूरब देई, गाथा-९. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण.
___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१५६०. (-#) लघुभक्तामर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १०४२९).
आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमो ज्योतिमूर्ति; अंति: चंद्रकीर्ति पुनातु, श्लोक-६, (वि. प्रतिलेखकने
मात्र पांच तक गाथांक लिखे हैं.) ४१५६२. (#) द्रुमपत्रीयाध्ययन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १२४३४). उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: वीर विमल केवल
धणीजी; अंति: पसरे बहुगुणवेल, गाथा-२३. ४१५६३. (-) पर्युसणपर्व व चउदसि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १४४३३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: पूरो देवि सिधाईजी, गाथा-४. २.पे. नाम. चउदसि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४.
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२६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४१५६४. (०) नमस्कार महामंत्र व मणभद्रजी को छंद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुलपे ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१३, ९४२७).
१. पे नाम. नमस्कार महामंत्र, पू. १अ. संपूर्ण.
शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं, अंतिः पदमं हवई मंगलम, पद- ९.
२. पे नाम, दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १, पृ. ९अ, संपूर्ण,
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. द्रुमपुष्पिका अध्ययन है.)
३. पे नाम. माणभद्रजी को छंद, पृ. १आ-२अ संपूर्ण
माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीमाणभद्र सदा समरो, अंति: मुनि इम सुजस कहे, गाधा ८. ४. पे नाम, मांगलिक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण,
साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान् वीरो; अंतिः जैनं जयति शासनम्,
"1
गाथा-७.
४१५६५. (+#) पाक्षिकविषमपद विवरण व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. जयगोपाल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x१३, १४४०).
१. पे. नाम. पाक्षिक विषमपद टिप्पण, पृ. १अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र - विषमपद विवरण, सं., पद्य, आदि: पाक्षिकविषमपदविवरणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रतिलेखकने प्रारंभिक कुछेक पाठ लिखकर समाप्ति कर दी है.)
२. पे. नाम. ५ तीर्थ स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
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प्रा., पद्य, आदि: पंचधणुस्सयमाणं; अंतिः सो पावइ सासयं ठाणं, गाथा - ६.
३. पे. नाम. वइरुट्टा स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पासं; अंति: लंघिस्सइ पारसनाथीय, गाथा-३२.
४१५६६. (+४) मौनैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५X१४, १४४४२).
मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः
हमीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८.
४१५६९. (४) शेत्रुंजय कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३,
__७X२७).
शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ अंतिः सितुंज्जतफलं गाथा २५. (प्रले. ग. मेघविजय (गुरु ग. रूपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य )
शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अश्मुत्ता क० अतिमुक्त, अंतिः जात्रा कर्या फल, (ले. स्थल. मवाबंदर, प्रले. मु. डुंगर (गुरुग. मेघविजय); गुपि. ग. मेघविजय (गुरु ग. रूपविजय); पठ. श्रावि. रलियात बाई, प्र.ले.पु. सामान्य )
"
४१५७०. अध्यात्मवत्तीसी, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, पालीताणा, दे. (२५x१२.५, १५X४७). अध्यात्मवत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै, अंतिः तत लहि पावै
भवपार, गाथा ३३.
४१५७३. (४) करमछत्तीसी व आलोयणछत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है.
3
वे. (२५.५x१३.५, १३४३३).
१. पे. नाम. करमछतीसी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करम थकी को छूटै; अंति: धरम तणै परमाण जी,
गाथा - ३६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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२. पे. नाम. आलोयणछत्तीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय तूं आपणा; अंति: मे करी आलोयण उछांह, गाथा- ३६.
२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: चांवलीया जिनजीसे अंति: डारणनै सुख भरपूर रे, गाथा-५.
३. पे. नाम. पार्श्वजिन सिझाया, पृ. १ आ. संपूर्ण.
४१५७४, () साधुगुण सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, अन्य मु. कुसालचंद्र प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x१२.५, १७३१).
.
"
१. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकतिधारी सुभमती; अंतिः सेव्या पावै सिध,
गाथा - १६.
पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीजी, मु. जोध, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीमगसी प्रभु अंतिः देव्यौ सेव रे लाला, गाथा-८, ४१५७५. वैराग्यनी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X१३.५, १३X३८).
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरव पुन्य संयोगे अंतिः दुरगति पडतां राखे रे,
י
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मा.गु., पद्य, आदि जीव जींदगी जाए अकारी, अंति: आखर पस्तवो भारी, गाथा ५.
३. पे नाम. शीयलनी सझाड़, पृ. १आ, संपूर्ण.
गाथा - १८.
४१५७६. (+) आध्यात्मिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्रांक संशोधित है., संशोधित., दे., (२४.५X१३.५, १३X३३).
१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ संपूर्ण.
क. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: चेत तो चेतावुं तने; अंतिः जिनवरे कीधुं कधी रे, गाधा-१२ (वि. इस प्रति में कर्ता का उल्लेख नहीं मिलता है.)
२. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण
२६७
शीलव्रत सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शियल समु वृत को नहीं; अंति: वृतनो खप करजो रे, गाथा - ५. ४. पे. नाम. श्रावकना एकवीसगुणनि सझाय, पृ. १आ-२, संपूर्ण.
आवक २१ गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरण नमावु सीस, अंतिः धन श्रावक तेह सुजाण, गाथा ६. ५. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण परनार, अंति: नाम प्रभुनु साचुं छे,
४१५७८. एकादशीनी सिझाच, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५x१३, १२४३२)
गाथा - १०.
४१५७७, (४) रुपसेनकनकावती चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, ७४३८-४२).
रूपसेनकनकावती चरित्र- चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि : आरोग्यभाग्याभ्युदय; अंतिः (-), (पू.वि. श्लोक २१ अपूर्ण तक है.)
रूपसेनकनकावती चरित्र - चतुर्थव्रतपालने-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर निरोग पावै सो; अंति: (-).
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो, अंति: सुव्रत सेठ सझाय भणी, गाथा - १५.
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४१५७९ (४) पजुसण धोय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजिराउली प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१२, १२X३१).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवशमांहिं सार अंतिः श्रीजिणंदसागर जयकारी, गाथा-४.
४१५८० (+) जिनप्रतिमास्थापन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि., संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे.. (२५.५X१४, ११X३३).
जिनप्रतिमा स्तवन, पंन्या. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए जिनप्रतिमा पूजो; अंति: हितविजय गुण गाया, गाथा-२८. ४१५८३. (०) मैणरैचा षटपदढाला व शीवल सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२५.५४१३ २४४५२).
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१. पे. नाम. मैणरैया षटपदढाला, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल, किसनगढ़, प्रले. मु. केसरमल.
मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु पद्य वि. १८७०, आदि आदि धर्म घोरी प्रथम, अंतिः गयो छरे चरीतो,
ढाल - ६.
२. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सासू कह सूणरी बहू; अंति: मुल मंत्र छ धरमनो ए, गाथा-२७.
४१५८४. वैराग्य व जीवहित सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे., (२४.५X१३.५, १३X३१).
१. पे. नाम. वैराग्यनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदिः सुणि सुणि जीवडा, अंतिः भवताना सुख लीजीये, गाथा ४. २. पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
जीवहित सज्झाय- गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमे चिंतवै ए; अंति: जावै मुक्ि मझार कि, गाथा - ९.
४१५८५. समवसरणविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६X१२, ९३३).
समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीनें प्रणमी करी; अंति: परे धर्ममंगल गाववा
ढाल - ६.
""
४९५८६. वीरनी सझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, अन्य. मु. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२५४१३, १२४३०-३४). महावीरजिन सज्झाय - गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि आधार ज हुतो रे एक अंतिः वरिया सिवपद सार
गाथा - १५.
४१५८७. (#) अंगणा विचार - देवलोकगत, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बकाणी, प्रले. पृथ्वीराज, पठ. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१३, १७X२९). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
४१५८८. जंबूसामी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५X१३, १३X२६-२८).
जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसति सामीने वीनवु; अंति: नामे होय
जय जयकार, गाथा - १५.
४१५८९. (+#) शत्रुंजयतीर्थ व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.., संशोधित अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१३, १६४३८-४०).
१. पे. नाम. सिधाचल स्तव, पृ. १अ संपूर्ण
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल, अंति: कनक गुण गाय जी कांइ, गाथा-१०. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मोहराय सै लडीया, अंति: दूरी जिन वातडीया बे, गाथा- २३.
४१५९०. (०) नववाडी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. खेमचंद सूरचंद बोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१३, ९४२५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२६९ ९ वाड सज्झाय, मु. रणछोड, मा.गु., पद्य, आदि: बेनी सील तणी नववाडीक; अंति: शीश वाड रणसोड भणी रे.
गाथा-११. ४१५९१. कुमतीने सिक्षा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२.५, १२४३५).
जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक उद्धार ज किध; अंति: वाचक
जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ४१५९२. (#) समेतसीखरजीनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १०४२५). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. हर्षविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे घाटीआंचोकी लाग; अंति: हरख हरख गुण गावे,
गाथा-६. ४१५९३. शेजयजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४३, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. धनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, दे., (२४४१३, १२४२७). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान,
गाथा-१६. ४१५९४. (#) पारस स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १६४३९).
पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मावादनी; अंति: पास जिण अभिराम मंतै, ढाल-५, गाथा-५१. ४१५९५. (+#) मान परीमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १०x२७). विविधमान परिमाण सज्झाय, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जुगति मान जानै विना; अंति: रामविनोद
विनोदसुं, गाथा-१३. ४१५९६. (+#) वीरथुया नामग्गएण व चोतीस असझाए, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १२४२८). १.पे. नाम. वीरथुया नामग्गएण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति:
आगमिस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. २.पे. नाम. चोतीस असझाए, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तारो टुट राती दिस; अंति: चढ्या १ ती की समुची. ४१५९७. नारंगापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, १०४३१).
पार्श्वजिन स्तवन-नारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विषय त्रेवीस नीवारी; अंति: पद्मविजय कहे
शुभमति, गाथा-९. ४१५९८. गोतम सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२.५,
९४३४). १.पे. नाम. गोतम सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: बीर जिणेशर केरोसीस; अंति: गोतम तूलै संपति
कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सूधी आसता देव;
अंति: मणि माहरी चिंता चूर, गाथा-७. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पं. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सुहावै जिनजी, अंति: बांदु श्रीविजै हीर,
गाथा-५.
४१५९९ (4) स्वारस्वति स्तुति व राजिमति सिझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नही है.. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१३.५, २०x२०).
१. पे नाम, स्वारस्वति स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: वाचा फलज्यो माहरि, गाथा-२७, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २१ से लिखा है.)
२. पे. नाम. राजिमति सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाव, अंतिः अवीचल पद राजुल लहै, गाथा - ११.
४१६०० (+#) जीवरा भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१२.५,
"
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१६X३६-४०).
५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए अंतिः ५६३ अधर्ममे ५५३. ४१६०१. (+#) चंदगुपत सोलसुपन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४१२.५, ९४३२).
गाथा - ३६.
४१६०२. सीधचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५x१२.५, १२X३०).
...
चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामें नगर, अंति: रीष जमलजीरी जोरे,
फैल गयी है, दे. (२५४१२, १३४३१).
"
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता, अंतिः सिस कहे करजोड, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक द्वारा १ गाथा की ३ गाथा लिखने से १५ गाथा हुई है.)
४१६०३. (*) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण वि. १९४४, आषाढ़ शुक्ल ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे, ३, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. गोपाल सांकलेश्वर जोषी; लिख. सा. शिवश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गय है, दे., (२५.५X१३, १०X२५).
१. पे. नाम. वडाकल्प नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एकाधिक बार जुडी हुई है.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडाकलप पुरव दिने, अंति: सुणे तो पामे पार, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणनुं चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण आवीआ, अति: वांणि सुणो उपांति,
गाथा-४.
३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एकाधिक बार जुडी हुई है. पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्म, आदि: वडाकल्प पूरव दिने, अंतिः सूने तो पायें पार, गाथा- ४.
४१६०४. (#) पर्यूषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, १०X३२).
१. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पंन्या पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि: वडाकलप पूरव दिने, अंतिः सुणता पामे पार, गाथा-४.
२. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण गुणनीलो, अंति: शासने पामो जयकार, गाथा- ९. ४१६०५. () मेघकुमार सझाय व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही
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१. पे. नाम. मेघकुमार सझाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीर जणंद समोसर्या जी, अंति: भवपार हो स्वामी, गाथा - २१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३१).
१. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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२. पे. नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण,
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी तुम्हे कांई, अंति: जस के हेने लहस्युं, गाथा-५. ४१६०६. १०८ पार्श्वनाथ नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५x१२, १२x२३-२७).
१०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., आदि: कोका पार्श्वनाथ; अंति: सलुणा पार्श्वनाथ.
४१६०७ (४) आदिजिन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिरे आज सफल दिन, अंति: हरखे गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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गाथा - ९.
२. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : आज मारा प्रभुजी, अंति: ध्यावो मोरा सांई रे, गाथा-५. ४१६०८. (+) तपसीपचीसी व साधु बंदणा, संपूर्ण, वि. १९५१, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६x१३, १२x२८).
१. पे. नाम. तपसीपचीसी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण.
तपसीपच्चीसी, मु. धनसीराम, रा., पद्य, वि. १८९९, आदि: धन धन धन श्रीसेवगराम, अंति: मोपै नही जावे कह्या,
गाथा - २७.
२. पे. नाम. साधुचंदणा, पू. २अ २आ, संपूर्ण.
साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहिं., पद्य, वि. १९८३८, आदि: साधुजीन बंदणा नीत; अंति: उतम साधुजीरो दास,
गाथा - १०.
४१६०९. (#) सीमंधरजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, अन्य. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पत्र १४२. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५.५X१२.५, २७४१५).
१. पे. नाम. श्रीमंदर स्तवना, पृ. १अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीसिमंधर साहिबा अंति होज्यौ मुज सिंत हो, गाथा- ९. २. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः आज आणंद वधामणी; अंतिः सेवना करी सुजस उपायो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पास पद, पृ. १.अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुडिं, पद्य, आदि अंखीयां हरखण लागी अंतिः भवभयै भावहठ भागी, गाथा-४.
४. पे. नाम. सीमंधर स्तवना, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिमंधर साहीबा; अंति: गुणरूप हो जोगीसर, गाथा-५.
५. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
יי
२७१
महावीरजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: माहावीरजिन वंदो, अंति: चंपक राम कहे अरीवंदो, गाथा-५. ६. पे. नाम बाहुजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण.
बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्म, आदिः परणी रे बहु रंग भरी, अंतिः धरु जिन आणा खरी रे, गाथा- ९. ४१६१०. (+#) महावीरजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.' १४२, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x१३, २८x२१).
पत्र
१. पे नाम वीर स्तवन प्र. १अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमरकलप उद्यानमा देव, अंति: सरणी श्रीमंदर तणी जी,
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महावीरजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: माहावीरजन वंदो, अंति: राम कहे अरीवंदो, गाथा-५.
३. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीरजिनेसुर राया; अंतिः सेवक जैन सुखदाया रे,
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गाथा-७.
४. पे नाम, महावीरजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण.
"
आ. ज्ञानविमलसूरि पु.ि, पद्य, आदि; तोरा समोवसरण की अंतिः तारीया नरने नारी, गाथा-३, (वि. इस प्रति में कर्ता गुरु का नाम उपलब्ध नहीं है.)
५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि सोभा अजब वणी जिनराज, अंतिः पदवी जोगीसर ताज की गाथा - ६.
६. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण
"
पार्श्वजिन होरी, मु. सहजसागर, पुहिं, पद्य, आदि: रंग मसीओ जि द्वार अंतिः तुम हो हम आधार, गाथा-७, ४१६११. (#) षट्प्रकार के यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१३,
१०-१८४२६-६१).
जैनयंत्र संग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (वि. नारक, देवलोक व तिर्च्छालोक संबंधित विवरण है.) ४१६१२. (४) कर्मनी सिझाच, संपूर्ण वि. १८४६ १ भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पु. १. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए
हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२.५, १४४२८-३२).
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर, अंति: नमो कर्म माहाराजा रे,
गाथा - १८.
४१६१३. (+#) मणिका कल्प व मुहरा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४११.५, १४४३९).
१. पे. नाम. मणिका कल्प, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
मणि कल्प, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: अथो वक्ष्ये मणेः अंतिः रागस्य स एव वेत्ति, श्लोक ६१. २. पे नाम, मुहरा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण
लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४१६१४. (+४) जिनपंजर व संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २ कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, ११×३४).
१. पे नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ २अ. संपूर्ण.
आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह, अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२३.
२. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी आदि संतिकरं संतिजिणं जग अति सिद्धी भइ सिसो, गाथा- १४. ४१६१५. (४) पार्श्वजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की
"
स्याही फेल गयी है, दे. (२४.५४१२.५ २३४३१).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. भवान ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभुजी पास जणेसर, अंतिः भवान आनंदमइ रे, गाथा- ७.
२. पे. नाम. सतनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. भवान ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८९६, आदि: सांत जणेसर सेवीये, अंतिः भणे भवान मन उलास,
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गाथा - १०.
४१६१७. (+४) पांडवनि सिझाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का
अंश खंडित है, दे., (२५.५X१२.५, १३x४७).
१. पे. नाम. पांडवनी सझाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर भलो; अंति: मुझ आवागमण निवार रे, गाथा-१९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: घनघटा भुवन रंग छाया; अंति: एम
__ वीरविजय गुण गाया, गाथा-६. ४१६१८. (-#) पाखी नमस्कलाहर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, १२४२९). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. ४१६१९. (+) पुच्छिसुणु सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. द्वागधरा, प्रले. मु. कुंवरजी स्वामी; लिख. श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ४४२८-३२).
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: एगंत होइ सोय जीवदया, गाथा-११.
महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं० पांच महाव्रत अने; अंति: मनी माता सुख करनारी. ४१६२०. (+#) नेमीनाथजीरो नवरासो, संपूर्ण, वि. १९७१, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ३,
ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १२४३०).
नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारे भवपार, ढाल-९. ४१६२१. अष्टमीतिथि व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१३, ११४२१). १. पे. नाम. अष्टमीना स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: संघने कोड
___ कल्याण रे, ढाल-४. २. पे. नाम. रोहीणी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासवपुजीत वासुपुज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ४१६२२. संतकुमरकी सजाय व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १८४३५). १.पे. नाम. संतकुमर की सजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: थुक जोयो तीण वसर; अंति: हुवा वहिर ए, गाथा-१९. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१६२३. (+) सम्यक्त्व स्वरूप स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. ग. लक्ष्मीरंग (गुरु उपा. पुण्यवल्लभ,
खरतरगच्छ); गुपि. उपा. पुण्यवल्लभ (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११, ७४१६-२३).
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउसम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येनौपशमिकसम्य; अंति: भवत्यिति सुगममन्यत, (प्रले. ग. अभयधर्म
(खरतगच्छ)) ४१६२४. (#) खंधक चौढालीयौ, संपूर्ण, वि. १९२३, माघ कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मुलजीराम नारायण जानि;
लिख. श्रावि. जवेरी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, दे., (२५४११, ११४३६-४२). खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: आदि सिद्ध नमोकार; अंति: रत्न नरभव पाइकै,
ढाल-४. ४१६२५. (#) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १६४२८-३३).
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२७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल ६ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ४१६२६. (4) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पत्र १४२ हैं., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, ६४४१५).
पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्पट्टे सुधा ; अंति: श्रीविजयसूरिराज्ये, (वि. प्रतिलेखकने अंतिम पाट पर हुए
___ आचार्य का नाम नहीं लिखा है.) ४१६२७. (+#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १२४२९). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४,
गाथा-२५. ४१६२९. (+#) उपदेशपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १+१(१)=२, प्रले. सा. चंदाजी (गुरु सा. रामकुंवरजी),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक २ की जगह पत्रांक १ लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४२८).
उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: निठ निठ नर भो लह्यौ; अंति: एह दीयो उपदेस, गाथा-२६. ४१६३०. (+) ८ कर्म भेद व १० प्राण विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १८x२४-४३).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१६३४. (+#) अष्टमीदीन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१४, १०४३७).
अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अठम जीन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ४१६३५. (+) पाक्षिक प्रतिक्रमणानुक्रम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१४, १०४२३).
प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिलई देवसिय आलोइय; अंति: छइ क्रिइं भेद
नथी. ४१६३६. (+#) सम्यक्त्व ६७ बोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६१-६०(१ से ६०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, १६४३८).
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१६३७. (+) आलोयण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. फलोदीनगर, प्रले. मु. लाभचंद महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१४.५, १४४२७). महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन बीर जिनवर; अंति: चोपने
फलविधिपुरै, ढाल-४, गाथा-३०. ४१६३८. (-) शारदाष्टक व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., अशुद्ध पाठ.,
दे., (२४४११, १०४२९). १.पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: तज सासार किलेस, गाथा-८. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सरस्वती नमस्यामि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ४१६३९. (+#) सिमंधरजीरो तवन, संपूर्ण, वि. १९६५, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लाभचंद महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१४, १५४३२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारि विनतरी अवधारो; अंति: जिन पद वंदन भास,
गाथा-२१.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२७५ ४१६४०. (+) आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१४.५,
१४४३३). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे प्रथम; अंति: भवसायर तरो रे, गाथा-९. २.पे. नाम. पेहलातिर्थंकर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. रूपविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेला तिर्थंकर; अंति: वरीया सिववधु नार, गाथा-७. ३. पे. नाम. राणकपुरनुं स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: जगपति जयो जयो; अंति: सादडी
__संघ सहित नमे, गाथा-७. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति:
क्षमाविजय०आगमरीत रे, गाथा-६. ४१६४२. (+) खीमाछत्रीशी व सडसठी बोल समकित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२५४१४, ११४३६-३९). १.पे. नाम. खीमाछत्रीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अंत में 'पोणावेआं' इस प्रकार लिखा है., प्रले.
अमृत वैद्य; पठ. श्रावि. प्रसन्नबन. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जिव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी,
गाथा-३६, ग्रं. ४६. २. पे. नाम. सडसठीबोल समकित, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'आसडसठी बोल खईमाछत्रीसीमां ओलो
८ लखाइ छ कारणके पत्रमा माग नोहोतो माटे' इस प्रकार लिखा है. प्रतिलेखकने पत्रांक ३आ पर पत्रांक ६ लिखा है जो अशुद्ध है. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम
बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८,ग्रं. १०९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६५ अपूर्ण से लिखा है.) ४१६४३. (#) श्रावकसम्यक्त्व विचार व उदरपिडाशमनादि मंत्र एवं यंत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१५.५, २६४५८). १.पे. नाम. उदरपीडाशमनादि मंत्र व यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. श्रावकसम्यक्त्व विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१६४४. (#) जीणऋषने जिणपालरो चोढालो, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१४, १४४३०).
जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आग हुई; अंति: देवखेत्रमै जासी मोख, ढाल-४. ४१६४५. त्रेसठसिलाकापुरुषोत्तम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., ., (२३४१३.५, ४८x२३). ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरण कमल मनधार; अंति: नमै मुनी वसतो मुदा,
गाथा-१८. ४१६४६. (+#) जिनवाणी भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. फतेविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१४, १३४२९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनवाणी गहुंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: वंछै घणा हो लाल, गाथा-७, (वि. पत्र की
किनारी खंडित होने स आदिवाक्य पढ़ा नहीं जा रहा है एवं प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४१६४७. (#) चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र व फिरंगी बोली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२२.५४१४.५, २१४३८). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीज
ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. फिरंगी बोली, पृ. १आ, संपूर्ण.
इतरग्रंथ*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).
इतरग्रंथ-अनुवाद*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१६४९. ४७ गोचरीदोष सज्झाय, दशपचखाणनी थोय व नेमिनाथजी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे.,
(२२.५४१३.५, १२४२९). १.पे. नाम. ४७ गोचरीदोष सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, वि. १९१३, आदि: दोश अहारना सांभलोरे; अंति: संजमे वरधीकरा, गाथा-२०. २. पे. नाम. दशपचखाणनी थोय, पृ. २अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाण स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले दिन उपवास एकास; अंति: सायर भव तरीए जी, गाथा-१. ३. पे. नाम. नेमनाथजी पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: गीरनारे नेमनाथ सामला; अंति: कहे नही मेलुं साथ, गाथा-४. ४१६५०. (+#) कातिकपूनिमरौवखाण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १८४४६).
कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: (-), (पू.वि. दीक्षा के अवसर अपूर्ण तक
लिखा है.) ४१६५२. (#) मुनिमालिका वदसनिकाय नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. २, प्र.वि. सं. १८७२ में
चारित्रसागरजी के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४११, ८x२६-३५). १.पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ३अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
प्रारभ क पत्र नहीं हैं. मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदिः (-); अंति: सदाई सदा जयकार, गाथा-३७,
(पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. इस प्रति में रचनावर्ष नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. दसनिकाय नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भुवनपति देव
निकाय नाम तथा अधिपति इंद्रों के आठनाम पर्यन्त लिखा है.) ४१६५३. (#) सिद्धचक्रनी थोई, संपूर्ण, वि. १९०६, ?, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १५४३८).
सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरी वासी; अंति: न० तस घर नित दिवाली, गाथा-४. ४१६५७. (+#) अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१४, १२४३३).
अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित; अंति: रमणी मुणी सुप्रतीता, गाथा-४९. ४१६५९. पंचासरपार्श्वनाथनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; अन्य. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१४, ११४३४). पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेसरू जगदीश; अंति: अवीचल
अक्षय राजी, गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२७७ ४१६६०. (#) ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वेलांगरी, पठ. मु. राजविजय (गुरु
पं. हीरविजय); गुपि.पं. हीरविजय; अन्य. सवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. माहावीरजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१२, १३४३०-३३).
ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध नीवारीई; अंति: वदे वीद्यावीलास, गाथा-३४. ४१६६३. (+#) अजितजिन गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १५४४१-४७). १. पे. नाम. अजितजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: तब प्रभु अजित कहायौ; अंति: परमानंद पद पायौ, गाथा-३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: प्रभु भजलै दिन; अंति: ऐवंती अब तेरो आधार, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु.जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज तौ हमारे भाग; अंति: चंद चित आनंद वधाए है, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण.
साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: जो बैठा सोइ तरीया है, गाथा-३. ५.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. पद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो दिल वस कीयो; अंति: पदम को चित हर जाय, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. राजसिंह, पुहि., पद्य, आदि: लगी हो लगन कहो केसै; अंति: नायक नाभि दुलारै सै, गाथा-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदराम, पुहि., पद्य, आदि: छोटीसी जान जरासा; अंति: संपति बहु करणा वै, गाथा-३. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. नयनसुख, पुहिं., पद्य, आदि: मेटो विथा रे हमारी; अंति: नैनसुख सरन तिहारी, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. धर्मपाल, पुहि., पद्य, आदि: दुखसुंकाहि डरै रे; अंति: ज्यु सिवकमला वरैरे, गाथा-३. १०. पे. नाम. जीवहिंसाफल पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: चेतन तूं मान लै; अंति: आणूं मेरी छतीयां, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: मेरे पारस प्रभुजी के अंति: निरख्यो नवल वसंत, गाथा-४. १२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
शिवाराम, पुहि., पद्य, आदि: लगी वो लगन नही छुटै; अंति: वो लगन नही छुटै री, गाथा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मांनो क्युंनी राज; अंति: पकड्यौ किरताररी, गाथा-४. १४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: कठीन लगन दी प्रीत; अंति: वेद मिल्यौ रघुवीर, गाथा-३. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: चालोरी सखी प्रभु; अंति: जस वास भयो जयकारीयां, गाथा-३. १६.पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: समेतसिखर चलो जइयै; अंति: अखय अमर पद लहीयै, गाथा-३. १७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: क्या तक सीर विचारी; अंति: जिनचंद ओर निहारी, पद-३.
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१८. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयो आज, अंतिः पायो मुगता पद को, गाथा ४.
१९. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ. संपूर्ण.
मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो ऋषभ; अंति: गुण गावो जिनजी को, गाथा- ३.
२०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुष्टि, पद्य, आदिः टुक सुनीवो नाथ, अंतिः मेटो भवदुख फेरी, गाथा- ३.
२१. पे. नाम. साधारणजिन फाग, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. चंद, पुहिं, पद्य, आदि ऐसी होरी में प्रीतम, अंति: मेरा प्रीतम पावारी, गाथा-३.
२२. पे नाम औपदेशिक होरी, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. जीत, पुहिं, पद्य, आदिः समें आंण उदे भए, अंतिः काटो करम की डोरी रे, गाथा-३.
"
४१६६४. (+४) ग्यांनपचवीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै. (२३.५४१२.५, ११-१३५२४).
""
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं पद्य वि. १७वी, आदि: सुरनरतिर जग जोनिमई, अंतिः उदै करन के हेत
""
3
गाथा - २५.
४१६६५. उपधानविधिगर्भितवीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४४१४.५, २०४३९).
महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदिः श्रीवीर जिणेसर सुपरे, अंति: मुझ देज्यो भवोभवे, गाथा-२७, (वि. प्रतिलेखकने गाथा-२१ तक क्रमशः गाथांक लिखे है एवं आगे गाथा- २ में ही संपूर्ण पाठ लिख दिया है.)
४१६७१. (४) सीमधरजी वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे.,
,
(२३.५४१४, १९४१६).
सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९८६१, आदि: त्रिभुवन साहिब अरज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-७ प्रारंभ पर्यन्त लिखा है.)
"
४१६७२. (+) नवपद स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२३१४.५, ९X२०).
सिद्धचक्र सझाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल, अंतिः पद महिमा जाणज्यो
जी, गाथा - ५.
४१६७३. (+#) पार्श्वनाथ स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., ( २३.५X११.५, १५X३५-३७).
पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासणदेवि वएसकवा, अंतिः
ते स्तोत्रमेतत्, गाथा - ३७.
पार्श्वजिन स्तव स्तंभनक मंत्रगर्भित स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदिः ॐ नत्वा जं संधवणं, अति: वेपि
लोकेनुयायि भवति.
नहीं है. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (३८.५४१२.५, ७१३६-४४).
.
४१६७६. (#) २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १४८. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२१x१४.५ ४९४९५-५४)
२४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को. आदिः (-); अंति: (-).
४१६७७. (+#) संभवजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, ले. स्थल. पाटण, प्र. वि. पत्रांक अंकित
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१. पे. नाम संभव स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही जिनराव मलिये अंतिः मोहन कहे चरणे नमी जी, गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२. पे. नाम. सुमति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति वास्तव में पद्मप्रभजिन स्तवन है किन्तु प्रतिलेखकने अंत में सु स्तवन लिखा है.
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पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु तुम सेवना, अंति: वहेस्यो साचो नेह हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. श्रेयांसजीन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांसजिन सुणो; अंतिः मोहन वचन प्रमाण, गाथा-७. ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजीस्युं लागी हो; अंतिः मोहन आवे जी दाय गाथा- ७. ५. पे नाम. कुंथुंजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ अविन्यासी हो, अंतिः दिज्ये शिवपुर राज, गाथा-८.
७. पे नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंधु जिणंद करुणा कर, अंति: कहे मोहन रस रीत, गाथा-७. ६. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सुगुरू सुणी उपदेश; अंतिः सकल आस्वा फली हो, गाथा ६.
८. पे. नाम. मुनीसुव्रतजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि हो प्रभु मुझ प्यारा, अंति: गी माया ताहरी रे लो, गाथा- ६. ९. पे नाम. नमीजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज नमी जिनराजने कहीह, अंतिः प्रभुने संगेरे, गाथा-७. १०. पे. नाम. माहवीरजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
२७९
"
महावीरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि; दुर्लभ भव लही दोहिलो; अंतिः तु विसवावीस रे, गाथा ८. ४१६७८. (+१) आवकाराधना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५०-४९ (१ से ४९) = १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५X१५, ३८x४१).
आवक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७ आदि (-); अंति: मुनिषड्रसचंद्रवर्षे, अधिकार-५. ४१६८० (४) पार्श्वजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण बि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२०X११.५, २५x२१-२८).
१. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवनम्, पृ. १अ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय गोडीजी माहाराज; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, श्लोक- ९.
२. पे. नाम. औषध आदि श्लोक संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह प्रा. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
3
३. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति स्वतंत्र रूप से नहीं है किन्तु अन्य श्लोकों के बीच में है. जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १.
४१६८३. आत्मप्रबोध आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. ३, जैवे. (२४४१०.५,
१२X३३).
१. पे नाम आतमप्रबोध सीझाय, पृ. ४अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
,
आत्मप्रबोध सझाय, आ. विजयचंदसूरि, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंतिः श्रीवीजेचंदसूर कि गाथा-१६, ( पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे नाम. इलापुत्र सीझाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणीयै; अंति: लबधविजै गुण गाय,
गाथा - ९.
३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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( १७११.५, ११x२०-२४).
१. पे नाम, आदिजीन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
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उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: (-) (पू. वि. गाथा ५ तक है.)
,
४१६८७, (०) ऋषभजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३. कुल पे ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे,
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आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: आदिशर जिन भेट्या रे; अंति: दरसण मुझ प्यारा रै, गाथा-५. २. पे. नाम. पारश्वजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. जसवंत.
पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानीय, मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: वामानंदन साहिबा है; अंति: किसन दुरंग गाथा- १०.
३.
. पे. नाम. वासपूज्यजीन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्य जीन बार; अंति: एम जीत वधे नीतमेव रै, गाथा-५. ४. पे. नाम. आत्मउपर स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-कायोपरि, मा.गु., पद्य, आदि: काया मांजत कुन गना; अंति: जीणी दाग दलुदो धोयो, गाथा - ५. ४१६८८. (a) सकलार्हत् चैत्यवंदन व चतुर्दिसीरी स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१)-२, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२२४१२, १२x२३-२५)
१. पे. नाम. सकलात् चैत्यवंदन, पृ. २अ ३अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३०, ( पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे नाम चतुर्दिसी स्तुति, पृ. ३४-३आ, संपूर्ण
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. ४१६८९. (+) चैत्यपद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२०x१०, ११x२२).
चैत्यपद्धति, सं., प+ग, आदि: श्रीमदर्हज्जिनं; अंति: प्रेवशोत्सवं कृतं.
४१६९१. हंसवछराजनी चोपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. सुमेरचंद (गुरु
मु. भवानीराम); गुपि. मु. भवानीराम (गुरु मु. मोजीराम); मु. मोजीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. यह पोथी मुनि सुमेरचंद की है, ऐसा उन्होंने संवत् १९४५ चैत्र सुद द्वितीय चतुर्दशी में लिखा है., दे., (१९.५X१४.५, १२x१८-२०).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदेसर आदी करी; अंति: (-), (पू.वि. खंड १ दाल ३ प्रारंभ पर्यन्त है.)
४१६९२, () औपदेशिक सझाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२०.५X१३.५,
१५X३०).
औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती चरण नमेव; अंति: धर्मरंग मनि धरयो चोल, गाथा - १६.
४१६९३. मोनएकादसी सझाय व २० बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., दे., (२०X१४, १०-१२x१५-१८).
१. पे. नाम. २० बोल संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
तीर्थकर गोत्रबंध के २० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: तीर्थंकर गोत्र बांधे, (पू.वि. बोल-१६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम, मोनएकादसी सझाय, पृ. २आ-४अ संपूर्ण
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे विरने; अंति: सुव्रत रूप सझाय भणी, गाथा - १५.
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४१६९५ (+) सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुलपे, २. प्र. वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (१७.५४११.५, १८४१४).
१. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १९०१ आश्विन कृष्ण, १. शुक्रवार, ले. स्थल. वडलु प्रले. सा. चंदा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२८१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: विबुध सुमतिर्हरि,
श्लोक-१३, (वि. कृति के अंत में 'हरिहरब्रह्माविरचितं शारदा स्तोत्र' इस प्रकार लिखा है.) २.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण..
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: कल्पलताफलमश्नुते, श्लोक-९. ४१६९६. (#) रावण सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२०.५४१३.५, १६४३३). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: गय गीर नेम मुझ को; अंति: बढाना ही मुनासीब है, गाथा-६. २.पे. नाम. जिनधर्ममहिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: कटे सब पाप दरसन सें; अंति: भवंत्र हो तो असा हो, गाथा-६. ३. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: रावन सुनौ सुमत; अंति: कहते कहनेवाले, गाथा-५. ४१६९८. (+) विरप्रभुनी सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. ममोइ,
प्रले. मु. पदमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (१८.५४१४, २१४१७). १. पे. नाम. विरप्रभुनी सज्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पुछे उलट मन मे आणी,
गाथा-१०. २.पे. नाम. नवअंगपुजानो भाव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवअंग पूजा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरि संपुट पत्रना; अंति: कहे सुभवीर मुंणिद, गाथा-१०. ४. पे. नाम. सेअंस सतवन, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुमे बहु मीत्री रे; अंति: भगती कामण
तंत, गाथा-५. ४१६९९. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, नवअंग पूजा भाव व दुहा, अपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३,
ले.स्थल. वाल्ही, प्रले. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कृति की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक लिखे हैं., जैदे., (१८.५४१४.५, १७४२०). १.पे. नाम. नअंगनो भाव, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सप्तमअंग भाव अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नवअंगपूजा दुहा, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरि संपुट पत्रना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३
अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमण, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४१७००. नंदीषेण सीझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-२२(१ से २२)=२, ले.स्थल. वाल्ही, प्रले.ग. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपरमेस्वरजी श्रीसारदाजी., जैदे., (१८.५४१४.५, १७४१६). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरीनो वासी; अंति: साधुने कोई तोले हो, ढाल-३,
गाथा-१३, संपूर्ण. ४१७०१. (+#) दिशानभद्र सझाय व महावीरजिन पूजाविधि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १०x२८).
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१. पे. नाम. दिशानभद्र सझाय, पृ. १ आ-४अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं.
दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधिदाइ सेवक; अंति: लालविजय निसदीस, गाथा - १४, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. महावीरजिन पूजाविधि स्तवन, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन पूजाविधि स्तवन- दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी वीर जिणेसर, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक है.)
४१७०२ (१) महावीरजिन गुलि, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
"
(२१X१३.५, ८x२४).
गाथा - ९.
२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुली, आ. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदि; चालो सखि वंदणने जइए अंतिः इम दीपविजे गावे, गाथा ५. ४१७०३. नमस्कार महामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., .,
(१८४१३.५, १४४३० ).
नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १२ अपूर्ण तक है. )
४१७०४. (+#) लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४- १२ (१ से १२ ) = २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५X१४.५, १६x१५).
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७, संपूर्ण, ४१७०५. (+) माणिभद्र छंद व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित, जैदे. (१८.५४१४.५, १५४१८).
१. पे. नाम. माणिभद्र छंद. पू. १-१ आ. संपूर्ण.
माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा समर अंति: शिवकिरत० इम सुजस कहे,
मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अरिहंतजी रे, अंतिः सिस नमे जिनचंद, गाथा-१३, ४१७०६. (-) सुमतिनाथजीनी व पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., १४४१५).
१. पे नाम, सुमतिनाथजीनी स्तुति, पृ. १अ २अ संपूर्ण,
सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु पद्म, आदि मोटो ते मेघरथ राय रे, अंतिः ऋषभ कहे रीखा करो ए. गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि दें कि धपमप अंतिः दिशतु शासनदेवता, लोक-४.
४१७०७. पंचीद्रीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१८x११.५, २०X१६-२० ). ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुझने सीख चतुर; अंति: प्रबध लहो सुख सासुता, गाथा- ७. ४१७०८ (F) रांणपुराजी को तवन व औपदेशिक सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (४७१६, ४३X२२-२५).
"
१. पे. नाम. रांणपुरा स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदिः राणपुरो रतीबामणो रे, अति: लाल सिवसुंदर सुख थाय, गाथा-१६.
२. पे. नाम. सौख सझाय, पृ. १अ संपूर्ण.
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(१८.५X१४.५,
औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-९, (वि. खंडित भाग पर कागज चिपका होने से आदि व अंतिम वाक्य पढ़ा नहीं जा रहा है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२८३ ३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. कनक कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: द्यौ सेवक सुखकंद, गाथा-४, (वि. खंडित
भाग पर कागज चिपका होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, पृ. १आ, संपूर्ण.
ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कायानगर सरूप सुहावै; अंति: कहै सुणो भाई रे, गाथा-१०. ५. पे. नाम. पांचइंद्रीरा भावरी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज; अंति: लहै सुख सासता, गाथा-५, (वि. अंतिम
दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४१७०९. आदिजिन चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, कुल पे. ३, दे., (१८.५४१५,
१६४१५). १. पे. नाम. आदिजिन चेत्यवंदन, पृ. १५अ, संपूर्ण.
आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: आददेव महिमा घणो, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथाक्रमांक नहीं लिखे हैं एवं अंत में १ लिखा है.)। २. पे. नाम. बीज थुइ, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: पुर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. थुई पांचमरी, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४१७१०. (+) नवाणुप्रकारनी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (१७.५४१३.५, २३-२७४२९-३६).
९९ प्रकारी पूजा-शजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीसंखेसर पासजी; अंति:
आत्म आप ठरायो रे, ढाल-११. । ४१७११. (+) बृहच्छांती व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८-२४(१ से २४)=४, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१४.५, १७४१३). १.पे. नाम. श्रीमद्हच्छांती, पृ. २५अ-२८अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वाहलीनगर, प्रले. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्, (वि. अंतिम श्लोक
का प्रथम पाद लिखकर कृति पूर्ण की है.) २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सीधासल वंदोरे नरनार; अंति: भगति करुसु एक ताहेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनपूजा स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण.
मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भवी जिनपुजा; अंति: जयसागर० मुगतवधु फलेय, गाथा-१०. ४१७१२. (+) सिद्धचक्र थुइ वचैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित., दे., (१८.५४१४.५, १८x१७). १. पे. नाम. सिद्धचक्र थुई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति अलवेस; अंति: करो मोरी माय जी, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-५ परमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बारे गुण अरिहंत
देव; अंति: तणो नयविमल सुखकार, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं मात्र अंत में ३ लिखा है.) ३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमप्रभुने वासुपुज्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.,
वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२८४
४१७१३. (४) धुलीभद्रनो नवरस, संपूर्ण वि. १८९४ ? आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, वांकानेर पठ श्राव नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१x१३.५, १८४३० ).
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ श्र फल्या र, ढाल - ९.
४१७१४. स्तवन संग्रह व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१८.५X१४.५, १९x१८).
१. पे. नाम. समेतसिखर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जयकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति प्रणमुं सदा, अंति: नमतां जावे कलेस, गाथा- ७. २. पे नाम, आदिजिन पद-धुलेवा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोस नेह धरी महाराज; अंतिः रत्नकुं उद्धार लीजीए, गाथा - ३.
३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १आ. संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: बीराजे बंगलेमेरे, अंति: बीनती भव भव पार उतार, गाथा-९
४१७१५. (४) संक्रांतिमुहुर्त व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. २- १ (१) ०१, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १६.५X१५, १३१७).
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१. पे नाम, संक्रांतिमुहूर्त, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
ज्योतिष मा.गु संहिं. प+ग, आदि: (-) अंति: (-) (पू.वि. गाथा ६१ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. आदीजिनविनती स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदीशर वांद पाय; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ५ तक है.)
४१७१८. पार्श्वजिन स्तोत्र व देव्याराधन मंत्र- पद्मावती कल्योक्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२४४१६,
"
२१४२५).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु अंतिः प्राप्नोति स श्रियं श्लोक-३३ (वि. पार्श्वजिन के प्रत्येक नाम के ऊपर उसका क्रम लिखा हुआ है.)
"
२. पे. नाम. देव्याराधन मंत्र- पद्मावती कल्पोक्त, पृ. १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ४ मूलमंत्र एवं जापविधि लिखी है.) ४१७२०. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५X१२, १२x२८).
साधारणजिन स्तुति - द्रव्यभावमंगलगर्भित, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म उत्सव समे; अंति: देवचंद्र पद अनुस ए. गाथा-४.
४१७२१, (४) गोतम संझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे..
( २०X१३, ११x२७).
गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर श्रीब्रधमान, अंति: मेघराज मुनी सुजस कहै, गाथा- ९. ४१७२२. पौषधव्रत सज्झाय व बीजनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१९.५x१३.५, १७X३३).
१. पे नाम, पौषधत सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलु ए संवर आणी ; अंतिः खपे करमना कोड रे, गाथा- १३.
२. पे नाम. बीजनो स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वर्तती, अंति: तस घर लील बीलास हे, ढाल - ३, गाथा - १६. ४१७२३. (+) जिनराजजीरी वीनती, दसपच्चखाण सज्झाय व धातपुष्ठनी वोषद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (१८.५X१४.५, १३ १४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१.पे. नाम. जिनराजजीरी बीनती, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: बंदु श्रीजिनराज मन; अंति: श्रीजिनभक्ति रचो जी, गाथा-१२. २.पे. नाम. दसपच्चखाण सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दशविध प्रह उठी पचखाण; अंति: पामो नीश्चै सुख ठाण, गाथा-८. ३. पे. नाम. धातपुष्ठनी वोषद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१७२४. (+) दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (१९.५४१२, ११४१८-२०).
महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परब दीवालीरै दिन; अंति: भावना
___फलवधीनगर मझार, गाथा-७. ४१७२५. (+) हितोपदेश श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१०, ११४३३).
जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
जैन गाथा का बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१७२६. (#) शीतलजिन आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९x१२.५, ७X१९-२४).
शीतलजिन आरती, बद्री, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आरती सीतल; अंति: जौडी बद्री गुन गाया, गाथा-५. ४१७२७. (+-#) जिनपींजर स्तोत्र व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९६५, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. धुलपुर, पठ. मु. जगतचंद; प्रले. सेवग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१४, १३४१४). १.पे. नाम. जिनपींजर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य लेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४१७२९. नरक आदि सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (१९.५४१३.५, १९४३७). १.पे. नाम. राजुलनी सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: नीद्धी कोडि कल्याण, गाथा-७. २.पे. नाम. नरगनी सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
नरक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे नरके चाल्यो जीव; अंति: सिद्धीगत कांसर्गवास. गाथा-७. ३. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मगद्ध देस का राज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ४१७३१. भरथ चिरित्र, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. भिलडा, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में इस प्रकार का उल्लेख है 'बाच जीन श्रीरषवदेवजी की बंचना', दे., (२०४११.५, ९४३२-३६).
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं से भरहे राया; अंति: सव्वदुक्खप्पहीणे. ४१७३३. सजन व दुर्जनाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१८.५४१४,
१९४१६). १.पे. नाम. सजनाष्टक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अर्क हरे अंधार; अंति: सजन गुण कही न सका, गाथा-८. २. पे. नाम. दुर्जनाष्टक, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पर अवगुणसुं प्रीत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण
तक लिखा है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४१७३४. पत्री लिखणरी विध व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. वे. (१८.५x१४, १७४१५)
१. पे. नाम. पत्र लिखणरी विध, पृ. १अ, संपूर्ण.
पत्रलेखन विधि, मा.गु., प+ग, आदि: श्रीजगनरी जरी जीवरी; अंति: अब रस सींचौ आय.
२. पे नाम, औपदेशिक सझाय पुण्योपरि, पृ. २अ संपूर्ण
औपदेशिक पद - पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि: पारकी होड तुं मत कर, अंतिः रिध कोटानकोटी, गाथा - ३.
४१७३५. (+#) जिनवरव्रत की कथा, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष शुक्ल ८, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. अजमेर, प्रले. पं. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (१९.५x१३, १३-१५X२७-३०).
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जिनवरव्रत कथा, मा.गु., पद्य, वि. १६५०, आदि: जिन चउवीस नमो जगदीस; अंति: तुम जयो जिणेसुर देव, गाथा - ६१. ४१७३७. (०) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल
पाठ का अंश खंडित है. दे. (१४४१३.५, १३४१७).
शांतिजिन स्तवन, मु. वल्लभविजय, पुर्हि, पद्य, आदि: पल पल गुण गाना, अंतिः मोक्ष का जाना जाना, गाथा-८. ४१७३८. ऋषभ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८०५, वैशाख शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अजमेर, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे.,
(१७.५x१३.५, १९x१९).
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेवं योगिध्येय, अंतिः सारं श्रीसारंगम्, श्लोक-४ (वि. प्रतिलेखकने कृतिगत सारंग शब्द के १६ अर्थ कृति के अंत में अलग से लिखे हैं.)
४१७३९. (+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. दे. (१७.५४१३.५. १७४४१).
१. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन दूहा, पृ. १अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: एकेकुं डगलुं भरे अंतिः बंदतां शिवरमणी संयोग, गाथा-९
२. पे. नाम. सिध्धचक्र नमस्कार चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण.
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप, पद्य, आदि; जो धुरि सिरिअरिहंत अंतिः अम्ह मनवंछिय फल दियो, गाथा- ३. ३. पे नाम, अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तुतिछंद चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरु अति आनंदवर्धन विनवे, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक ९ की जगह १० लिखा है. वस्तुतः गाथा ९ ही हैं.) ४१७४०. महफल, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. वे. (१८.५४१३, ९-११x१६).
आध्यात्मिक पद, मु. जुगराज, रा. पद्य वि. १९००, आदि: चालो चेतनजी महफल माय, अंति: सुकल तीज रविवारी जी, गाथा - १५.
,
४१७४१. पयुसना थइ, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, वे. (१५४१३.५ १२४१७).
"
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परब पजूसण पून्ये किज; अंति: सुजस महोदय
दीजे, गाथा-४.
४१७४२. थुणीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. किसनविजय, पठ. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे. (१७.५X१३, १८x२२).
. :
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि धुलिभद्र ऋषि जेह शखि; अंतिः मोहन वर मलपति रेजी,
गाथा - १७.
४१७४३. ज्ञानपंचमी व नवअंग पूजा दुहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे.,
(१६.५X१२.५, १५X१५).
१. पे. नाम. ज्ञानपंचमी हा पांच-पांच ग्यांनना, पृ. १अ संपूर्ण वि. १९२३, आषाढ़ कृष्ण, १०.
ज्ञानपंचमीपर्व दुहा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित श्रद्धावंतने; अंति: विजयलक्ष्मी सुभ हेज, गाथा-५.
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वास
"
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२८७ २. पे. नाम. नवअंगपूजा दुहा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल संपूट भरी पत्रना; अंति: कहे सुभवीर मुणंद, गाथा-१०. ४१७४४. (#) माहवीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८x१३, २२४१६).
महावीरजिन पूर्वभव स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुधीपैरे भरतखेत्र; अंति: हवे वीर प्रधान, गाथा-८. ४१७४५. (+) सुपार्श्वजिन स्ववन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (१३.५४१२.५, १२४१४). सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. माणिकराज, मा.गु., पद्य, आदि: तार प्रभु तार मुजने; अंति: नमे मुनि माणिकराज जी, गाथा-५,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४१७४६. (#) इग्यारगणधर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५४१३, १२४२०).
११ गणधरसंशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: परभाते उठिने भविका; अंति: नमंता लहीइं शिवमेवा, गाथा-९. ४१७४८. (#) औपदेशिक सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (१५४१३, ६x२३-२७). प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो पंडित ते कुण; अंति: ते सुख
लहस्यै, गाथा-१४, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देखिइ जाणिइ ते चेतना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है.) ४१७४९. (#) मोनएकादशी स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक
अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१३, १२४१२). १.पे. नाम. मोनएकादसी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे.वि. श्रीकुंथुनाथ प्रसादात्. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: षोत्तम गुण गाया जी,
(पू.वि. ढाल ५ गाथा ४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय रायहस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४१७५०. (#) महावीरजिन चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (१९x१३.५, १०x२९). १.पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंति: मिलियी नृपति अढार, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देव मिलिया देव; अंति: इसु धन धन दिहडो तेह, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ नृपकुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)। ४१७५१. (-) गीरीसेजा तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध
पाठ., दे., (१७४१३, १८४३०). १. पे. नाम. गीरीसेत्रुजा तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विवेकी विमलाचल वसीइं; अंति: ते शुभवीर नमे सघला,
गाथा-१५. २. पे. नाम. भवनदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ज्ञानादिगुणयुतानां; अंति: सदा सर्वसाधुनाम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: यस्याः क्षेत्रं समाश; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-१. ४१७५२. सिद्धचक्र आदि स्तुति संग्रह, पार्श्वजीन स्तवन व भांगा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,
प्र.वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (१९.५४१२.५, ४३४२६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: उत्तम सीस सदाई, गाथा-४, (वि. इस प्रति में
गच्छाधिपति विजयरत्नसूरि लिखा है.) २. पे. नाम. पर्यसणापर्व स्तुती, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवस माहे सार; अंति: जैनद्रसागर जयकार,
गाथा-४. ३. पे. नाम. दिपमालीका स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद कृष्ण, ४, ले.स्थल. सुरत. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी,
गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद कृष्ण, ५, बुधवार, ले.स्थल. सुरत, प्रले. पं. भक्तिविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदा हो साहिब; अंति: मननारे काम सुखीकर, गाथा-१०. ५. पे. नाम. भगवतीसूत्र का भांगा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी
गई है. भगवतीसूत्र-भांगा विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)एक संयोगी भांगा ६; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., असीभंगास्वरूप अपूर्ण तक लिखा है.) ४१७५३. (+) शरीराष्टक व स्नानाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१८.५४१३.५, १४४२५). १. पे. नाम. शरीराष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: दुर्गंधाशुचिधातु; अंति: सा स्थिरत्वे नृणां, श्लोक-८. २.पे. नाम. स्नानाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
सं., पद्य, आदि: सन्माल्यादियदीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ प्रारंभ तक लिखा है.) ४१७५४. (#) धन्नाअणगार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९४१४, १२४२२). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागीयो हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक लिखा है.) ४१७५६. आदिजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५.५४१३, १०x१९).
१. पे. नाम. विरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने अंत में विरजिन स्तुति लिखा है किन्तु वस्तुतः आदिजिन स्तुति
आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि; अंति: वीरं गिरिसारधीर,
श्लोक-४. २.पे. नाम. आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, पृ. १आ, संपूर्ण.
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प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद, अंति: गोखीरतुसारवन्ना, गाथा- ४.
४१७५७. (४) श्रावककरणी व नमीराय सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे २ प्रले. सा. फतु आव (गुरु सा. अख गुपि. सा. अखु. प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैसे., (१२.५x१२, १८x१८-१९).
.
१. पे. नाम, धावककरणी सझाय, प्र. १अ संपूर्ण
मु. नित, मा.गु, पद्य, आदिः श्रावक धरम करो सुख; अंतिः थे हुवा प्रतिकअधारी, गाथा-९, (वि. इस प्रति में नेत कहे' ऐसा उल्लेख है.)
२. पे. नाम. नमीराय सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः जी हो मुथला नगरीनो, अंति: कहै० पामीजे भवपार,
,
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गाथा-८.
४१७५८] (A) औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १ कुल पे. ७. प्र. वि. पत्र १x२. पत्रांक अंकित नहीं है.. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे.. (१६.५४१२.५. २३X२५).
१. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, आ. रतनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बंदो हो जिनवर, अंतिः दया पट रतनसूरिंद जी, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनराज, रा., पद्य, आदि: काया कामण वीनवै जी; अंति: तास जनमसु प्रमाण, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजवसी जोगनी, अंतिः मुझ मनमंदिर आवो रे, गाथा- ६.
मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि पर उपगारी जी पास, अंति: राम समापो जयसिरि, गाथा- ७.
६. पे. नाम. मृदंघ धुनि, पृ. १आ, संपूर्ण.
४. पे. नाम. अरजन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
अरजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कागल तोने रे किम लिख; अंति: जग जाच्यो व्यवहार, गाथा-५. ५. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
इतरग्रंथ, मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-): अंति: (-).
२८९
७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदिः साधवीयाने जडणो अंतिः लज्या छोडी ले भेख जी, गाथा-१.
४१७५९. (१) शाश्वततीर्थंकर मान व प्रतिमा मान आदि विचार संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र
१२. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (१८x१३, १८x२० ).
"
१. पे. नाम. शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६, (वि. आचार्य, साधु, श्रावक, श्राविका संख्यादर्शक व मुहपत्तिमानदर्शक गाथा.)
३. पे. नाम. महाविदेहक्षेत्र के साधुभगवंत की मुहपत्ति का मान, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रति द्वारा या बाद में लिखी गई है.
विचार संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४१७६० (+) चकेश्वरी छंद, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (१८५१२.५,
१५x२५).
चक्रेश्वरीदेवी छंद, राजेंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: चकेश्वरी माता तुम, अंतिः राजेंद्रोपरि दया करे, गाथा- ११.
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२९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१७६१. नेमजिनुंतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. चंपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१३.५४१२.५, १२४१८).
नेमिजिन स्तवन, मु. राज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सामलिया नेम; अंति: राज कहे जाउ बलिहारी, गाथा-१०. ४१७६२. साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१६.५४१३.५, ११४१६).
साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या मुख आज जिनवर; अंति: नवल आणंद ते पायो, गाथा-३. ४१७६३. (+) महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (१४४१२.५, १२४१९).
महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंद; अंति: जसविजय
____ जयकारी, गाथा-४. ४१७६४. रोटीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१५.५४१३.५, १३४१८).
तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व देवदेवमें; अंति: पास धीर मुनि गाजे, गाथा-११. ४१७६५. पर्युषणा नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, दे., (२०४१२.५, १२४२६). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजो सिणगार; अंति: आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणि विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननि बेहन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकहे चरित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: वंदू सदा वनित, गाथा-३. ७. पे. नाम. पYषणा नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परबराज संवछरी; अंति: चरणां नामुंसीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडाकलप पूरब दिने; अंति: सुणता पामे पार, गाथा-४. ४१७६६. इद्रभूती चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१३४१२.५, ९x१४).
गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरुद धरी सर्वज्ञनु; अंति: आत्मा सुख चेतना सदैव,
गाथा-३. ४१७६८. (#) नमजी की लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भोणाय, प्रले. श्राव. सदाकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१६४१२.५, १७४१८).
नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मोरी अरज सुणो; अंति: फेरा नही फीरने की,
___ गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखकने ७ से ९ तक की गाथाओं के गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४१७६९. (#) पार्श्वजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, ले.स्थल. बलदुठमेडा,
पठ. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१२.५, १७४२५). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज कुंदरस्त के अंति: प्रभु दरसदीजीऐ, गाथा-४. २. पे. नाम. ५ परमेष्ठि पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
५ परमेष्ठि स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समझ समझ जीहां ए गुण; अंति: कल्याण रूप करायो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मे हुं मुसाफर यार, अंति: ज्युं घाणी का फेरा, गाथा-३.
४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-२.
५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण..
साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं, पद्य, आदि: मेरे साहिब तुम ही हो; अंतिः भजनधी तुही
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तारणहारा, गाथा ५.
६. पे नाम आदि पद, पृ. १आ, संपूर्ण
आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदिः उठत प्रभात नाम; अंतिः सुखसंपदा बढाइयै, गाथा-५. ७. पे. नाम. आदी पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: नाभुजी के नंद वाद्यो; अंति: ताकै आख्ये अनवात रे, गाथा-५.
८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: तू ही निरंजन तू ही अंतिः न होवे भव फेरा रे, गाथा ५. ९. पे. नाम. सुमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरख बदन सुख पायौ, अंति: अवरन देव न आयी, गाथा- ४. १०. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नितु वंदीये, अंति: सेवे सुरनर वृंद, गाथा-५.
४१७७० (+) अमुत्तामुनि व मदनरेखा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५५-५३ (१ से ५३ ) = २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., गुटका, (१५.५x१३.५, २०x२२).
१. पे. नाम. अइमुत्तामुनि स्वाध्याय, पृ. ५४अ ५४आ, संपूर्ण.
अमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा- १८. २. पे. नाम. मदनरेखासती सझाय, पृ. ५५अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु, पद्य, आदि: लघुबंधव जुगबाहुनो रे अंति: हुबंदु त्रिणकाल, गाथा- ९. ४१७७१. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (१७.५x११.५, ९४२३).
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, आदिः प्रणमु श्रीगुरु पाय अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, मात्र प्रथम ढाल लिखी है.)
२९१
४१७७३. (#) सेत्रुजा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १७.५X१२.५, १२x२१). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: डुंगर ठंडो रे डुंगर, अंतिः कोडि कल्याणो रे, गाथा-८, ४१७७४ अष्टमी व बीज स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५X१३, १२x२७).
१. पे. नाम. अष्टमिनि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (१३.५x१२.५, ७४११).
"
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिनवर हुं, अंति: जिवत जुग परमाण, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजनि स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि बिज रिझ करी सविये; अंतिः श्रीशुभवीर हजुर, गाथा-४.
४१७७५. सिद्धितप गरणो, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, पाडीव, अन्य सा. प्रेमश्रीजी (खरतरगच्छ),
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सिद्धितप गणणुं, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो सिद्धस्स, अंति: साथीया समजवा.
४१७७७. (f) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (१७.५x१३, १५x२६).
,
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अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. गुलाल, मा.गु., पद्य, आदि आबु परबत सिखर सुहामण, अंति: गावे गुण गुलाल,
गाथा - १६.
"
"
४१७७८. नेमीनाथ नवभव संक्षेप, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (१३४१२.५, १८x२२). मिजिन ९ भव वर्णन, मा.गु, गद्य, आदि: प्रथम भवे अचलपुरे, अंतिः एहवी राजीमती नामे. ४१७७९. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९४१३.५, १४४२२).
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יי
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आवा आवा जसोदाना कंत, अंतिः सुपसाअ नीत दीवाली रे,
गाथा-६.
४१७८०. क्रोधमानमायालोभनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१८.५४१३.५, १७-२१४२४).
१. पे नाम, माननी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: देज्यो देसोटो रे,
गाथा-५.
२. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः समकितनुं बीज जाणज्यो, अंतिः ए के मारग सुंदिरे, गाथा - ६.
३. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे तुमे लक्षण, अंति: तेहने वांदु सदा रे,
गाथा- ६.
יי
४१७८१. (#) मतिज्ञाननु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(१९४१३.५, १३x२३).
मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो पंचमी दिवसे; अंति: विजयलक्ष्मी लहो संत, गाथा - ६. ४१७८२. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१९x१३.५, १३X२८). ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोभाग्यपचमी तणो; अंति: केवल लक्ष्मी नीधांन, गाथा - ३, (वि. तीन गाथा की एक गाथा गिनी है एवं अंत में किंचित् चैत्यवंदन की विधि भी दी है.) ४१७८४. (४) धुलिभद्रजिनि सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्रले. घुराभाई लहिया, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (१२.५४१२.५, १२४१८).
"
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चांपो मोर्यों हे आंगण, अंतिः सीलधी लहीइं सुख अपार,
गाथा-६.
.
४१७८७, (४) अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९x१३.५, १४x२१).
अभिनंदन जिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्म, वि. १८वी आदि दिठी हो प्रभू दीठी, अंतिः दरसण तुम तनुं जी, गाथा ६.
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४१७८८, (४) भाषाविवापडल, संपूर्ण वि. १९०२ आषाढ़ कृष्ण, १४ सोमवार, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, खारची,
3
प्रले. पं. तिलोकहंस; अन्य. पं. युक्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( १६ ११.५, ११x२१). भाषाविवाहपडल, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु वाणी समर; अंति: यौतिष तणौ मरम, गाथा- ३२. ४१७९०. (४) माहावीरस्वामीनो पालणो, संपूर्ण, वि. १९१७ वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. प्रतिलेखकने अंतिम पत्रांक नहीं लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, बे. (१७४१३.५, १२४२९)
महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलादे झूलाव; अंति: दीपवीजे कवीराज,
गाथा - १८.
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२९३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४१७९३. (+) उपदेस ढाल, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (१६.५४१३, १७४३०).
धर्मोपदेश सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक वीरजी उपदेस; अंति: धणी तणा छूत धारैरे, गाथा-१८. ४१७९४. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., ., (१८x१२.५, १७४१८).
महावीरजिन स्तवन, मु. मानविजय, रा., पद्य, आदि: प्रभुजी मारा आज; अंति: मानविजे गुण गाया हो, गाथा-१२. ४१७९८. (+) २४ जिन कल्याणकदिन विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(१८x११.५, १२४२४). १.पे. नाम. २४ जिन कल्याणकदिन विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
२४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकवदि १ नाणं; अंति: सुदि १५ चवणं नमि. २.पे. नाम. २४ जिन कल्याणकतप गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणिगट्टिप्पणय; अंति: वीरजिणंदस्स छटेणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पचखाणना आगार, पृ. २अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमुक्कारे; अंति: दवविगइ नियमट्ठ, गाथा-२. ४. पे. नाम. फलोधीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक सामी; अंति: उत्तम जिन गुण गावै,
गाथा-७. ४१८००. २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१३.५४१३, १३४१६).
२० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पेहाला सामी सीमंधर; अंति: सारो भवीकना काज,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४१८०६. (#) पार्श्वजिन आदि पद संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक व भले
मिंडी आदि नहीं लिखे हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९x१३, १५४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणनंदन, मा.गु., पद्य, आदि: एक समै प्रभु पास; अंति: नित तेज सवायो, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) २.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह, पुहि., पद्य, आदि: प्रगटा विकटा उमटा; अंति: वात कहा ध्रमसीलन की, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने
गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: सोवन्न पलाण के काण; अंति: खेम० वाजत है झणणं, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
नहीं लिखे हैं.) ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नाथ निरंजण भवदुख; अंति: गुम गावो ह प्यारा, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केसवदास, पुहि., पद्य, आदि: वीर की दुहाई भाई; अंति: केसवदास० फलै मोरी आस, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने
गाथांक नहीं लिखे हैं.) ६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहि., पद्य, आदि: लाल मृदंग सुगंध; अंति: लाल गुलाल वनी अंगीया, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
नहीं लिखे हैं.) ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
केशव, पुहिं, पद्य, आदि ठालीय वात जु आय अंतिः वातांसुं काम न होई, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं)
"
८. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
हा संग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति (-) गाथा-२ (वि. एक श्लोक व एक दोहा ) ४१८१०. (+#) ककाबतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (१९.५४१३, १०x२३).
"
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ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध निवारीयै; अंतिः जुं बधै बिदीया बिलास, गाथा-३४.
४१८१२ (०) नवकारजीरी सीड्याय व २४ जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे, २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे. (१७४१४, १८४२३).
१. पे नाम, नवकारजीरी सीड्याय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंत देव, अंति: मुगत चाहो तो धरम करो,
गाथा - १३.
२. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नेमिजिनं; अंति: (अपठनीय), (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं एवं पत्र पानी से विवर्ण होने के कारण अंतिमवाक्य पहा नहीं जा रहा है.)
४१८१३. (+४) पार्श्वजिन स्तवन व माचा पद, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१३X१३, १६x१५).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ- १आ, संपूर्ण.
मु. रावतसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि गोडी प्रभु आज सफल अंतिः रावतसुंदर गुण गायो, गाथा-८.
२. पे. नाम. माया पद, पृ. १आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: सुन ठगनी माया, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा का मात्र अंतिम पाद नहीं है., वि. प्रतिलेखक गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४१८१७. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९२, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. हणाद्रानगर, प्रले. पं. हेमविजय गणि (गुरु पं. भक्तिविजय): गुपि. पं. भक्तिविजय, पठ. सा. ज्ञानश्री, अन्य श्राव. जोरावरमल (पिता श्राव. दानमल) श्राव दानमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में हणद्रानगर यात्रासंघ का वर्णन है., जैदे., (१८X१३, १३X२८).
सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: पूर आस्या मन तणी,
गाथा - १८.
४१८१८. सरस्वतीजी को छंद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१(१) १, प्र. वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है. दे. (१८४१२.५. १५१९).
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सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सोही पुजो सरस्वती, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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१. पे. नाम. सीद्धाचल स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
४१८१९. (#) सीद्धाचल स्तवन व गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे. (१९.५x१२.५, १४४२९).
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सीद्धांचल सीध सोहावे; अंतिः शुभवीर वर गावे रे, गाथा-११.
२. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुली, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
गौतमस्वामी गहुली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: बेनी गुरू गछपति गुरुः अंतिः सदा सुख पावति रे लो, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
३. पे. नाम. वीसविहरमाननी गुहली, पृ. २अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२० विहरमानजिन गहुँली, मु. हस्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वेहरमान जन व्याहारता; अंति: हस्ती कहे सुख सेवरे,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४१८२०. (+#) आध्यात्मिक होरी व गणधर आरती आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१२.५, ११४२२). १.पे. नाम. आध्यात्मिक धमाल, पृ. १अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: चिदानंद खेले होरी; अंति: एहविध खेले जे होरी, गाथा-६. २. पे. नाम. साधारणजिन विनती स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. कुमुदचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पाय लागु करूं; अंति: स्वामी सीवसुख देसे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. ४ मांगलिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: च्यारु मंगल च्यार; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-५,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४. पे. नाम. गणधर आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमन माझे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ५.पे. नाम. दरसन जिन, पृ. १आ, संपूर्ण.
जिनदर्शनपच्चीसी, पुहि., पद्य, आदि: सिधं मन धरी संत; अंति: मुगत हि गयो, गाथा-२५. ४१८२१. औपदेशिक पद व संघपतिमालारोपण विधी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले.
माईदास मुहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में 'गुरूजी माराजजी श्री१००८ श्रीआगरावाला स्ववाचनार्थं' ऐसा लिखा है., दे., (१७.५४१२.५, १४४२२). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
मु. लाल, पुहि., पद्य, आदि: मनवा जगत चल्यो जाय; अंति: लाल कहे मन लायरै, गाथा-४. २.पे. नाम. संघमालारोपण विधि, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण.
मालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मालारोपण मुहर्त्त; अंति: धर्मदेशना दीइं. ४१८२२. (+#) नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१४१३, १४४३६).
नेमराजिमती स्तवन, मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: नेम नगीना मानो अरज; अंति: नाम लीया निसतारो, गाथा-१९. ४१८२३. संभवजिन गीत व आदिजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., दे., (१५.५४१२.५, १६४२१). १.पे. नाम. संभवनाथजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
संभवजिन गीत, मु. सुगुण, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिन सुखकारी हो; अंति: सदा हितकारी हो लाला, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमनाथजी की होली, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन होरी, मु. रत्नसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: राजमती कहै नेम; अंति: भव भव की अव फेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चलौ सखी वंदन जईयै; अंति: वंदौं विमलगिरांद, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: मेरौ मन वस कर लीनौ; अंति: पूरौ वंछित आस, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे अपनी अखीयन; अंति: हरखचंद गुण गावेरी, गाथा-४. ४१८२४. (#) पार्श्वनाथ स्तवन लक्ष्मीर्महास्तुल्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (१८.५४१२.५, ११४२४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: कोशं लभ्यते, श्लोक-९, (वि. इस
प्रति में कर्ता नाम नहीं लिखा है.) । ४१८२५. मरुदेवीमाता सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१६.५४१२, १२४२१).
मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: मारुदेवि माता रे; अंति: वलतो जय जयकार,
गाथा-६. ४१८२६. चोमासावीनती गहुली, संपूर्ण, वि. १९४९, भाद्रपद शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लींबडी,
प्रले. श्राव. त्रंबकलाल सुंदरजीभाई शेठ; अन्य. श्रावि. झबकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१४४१३, ११x१९).
चोमासावीनती गहुँली, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो गुरु फागण; अंति: विजय अनुसरसुंरे, गाथा-८. ४१८२८. (+) महावीरजिन गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५,
१५४३६). १. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. खुसालरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आव्या रे गुण; अंति: खूसालरतन रसाल, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. खुसालरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुजनी मग्धदेस मनोहरु; अंति: सुख पामसे र लोल, गाथा-१०. ४१८३१. पंचतीर्थ स्तवन, ज्योतिष श्लोक व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-३७(१ से ३७)=२, कुल पे. ३,
जैदे., (२०४१३, १५४२५). १. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३८अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंश एकाधिक जगह पर लिखे है. पत्रांक ३८अव ३९ पर लिखी
गई है एवं एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखित है.
औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मागु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ३८अ, संपूर्ण, पे.वि. पूर्व कृति के बीच में यह कृति लिखी गई है.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. श्लोक-१.) ३. पे. नाम. पंचतीरथी स्तवन, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि आदि; अंति: मुन लावन्यसमइ भणए,
गाथा-१५. ४१८३२. सीद्धगिरी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१४.५४१३, १५४१६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिन विमलगिरि वरणव; अंति: रिधीने सिद्धि दातार,
गाथा-११, संपूर्ण. ४१८३३. (4) व्रतांरी टीप, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१३.५४१३, ८x१३). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सम्यक्त ब्रत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चतुर्थ व्रत
अपूर्ण तक लिखा है.) ४१८३४. (+) गोतमस्वामीनो रास व मंत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित., दे., (१७.५४१२.५, २१४५०). १. पे. नाम. गोतमस्वामीनो रास, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ गौतमस्वामी रास, मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: बीर नमु सासण धणी; अंति: सुपसाय सुजाणये गातं,
गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
सामान्य श्लोक , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र आदि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
__ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में यंत्र भी आलेखित है.) ४१८३५. षट्संयोगी आहार भांगा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१७.५४१२, २१४४४).
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१८३६. (+#) पार्श्वजिन छंद, जीन पदं, नाग मंत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. अंतिम दो
पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५४१२.५, १८x१६). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सुर; अंति: धवलधींग गउडी
धणी, गाथा-२२. २. पे. नाम. जीन पदं, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भये; अंति: जित लह्यो मेदान में,
गाथा-६. ३. पे. नाम. नाग मंत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या बाद में लिखी गई है.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या बाद में लिखी गई है.
औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१८३७. (+) अषाडभुति सझाय व सीमंधरजिन काव्य आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४,
ले.स्थल. झालरापाटण, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०४१३, १८४२८). १. पे. नाम. अषाडभूति सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गाम नगर पूर विचरतां; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखकने ढाल ६
तक ही लिखकर समाप्ति की है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन काव्य, पृ. ३अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: त्रिलोकीनाथं भविक; अंति: संभव श्रीमंद्रस्वामी, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: नव घटी मे भटकत; अंति: पौतौ पाप भराय, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: घर त्याग दीयो; अंति: सतगूर का सरणा, गाथा-३. ४१८४१. (-#) अजीतनाथजीनुंतवन, महावीरजिन स्तुति व शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९४१४, १३४१६). १.पे. नाम. अजीतनाथजीनुंतवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजीत जीणंदस्यु; अंति: नीत नीत
गुणणय के, गाथा-५. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१, (वि. प्रतिलेखकने स्तुति अव्यवस्थित क्रम से लिखी
३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २
अपूर्ण तक लिखा है.)। ४१८४२. आध्यात्मिक गीत व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है. पत्रांक-१आ पर किसी व्यक्ति द्वारा कुछ लेन-देन संबंधि हिसाब लिखा गया है., दे., (१६४१२.५, १९४२२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निसदिन जोउ तोरी वाट; अंति: आवही सेजडी रंगरोला, गाथा-५,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुली, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुण वन वीर समोसर्या; अंति: नीज आतम काजरे, गाथा-५. ४१८४३. (+) पार्श्वनाथ स्तवन व पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक-२आ को
रिक्त रखा है., संशोधित., जैदे., (१५.५४१४.५, १७४२७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: आज दिवस रलीयामणौ; अंति: गुण गावइ जिनरंग हे,
गाथा-८. २. पे. नाम. नेमजीरो सोहलौ, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. नगराज, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुमर वरवींद; अंति: महल प्रभु संचरीया, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजीरउ लघुस्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडीपुर मंडण पास; अंति: सूर समान वधइ तनु
तेज, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलौ मन भमरा काइ; अंति: लै लेखा साहिब हाथि, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक है जिनजी कउ, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखकने मात्र अंतिम गाथा
लिखी है.) ४१८४४. (+#) रात्रिभोजन सझायव महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. श्राव. हकमचंद
डोसलचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक २ पर भी पत्रांक १ लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१४, २०४२१). १.पे. नाम. रात्रिभोजन सझाय, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण, वि. १७९३, आश्विन कृष्ण, ६, रविवार, प्रले. मु. कासीदास (गुरु
मु. नरसिंघ); गुपि. मु. नरसिंघ (गुरु मु. रूपचंदजी ऋषि); मु. रूपचंदजी ऋषि. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारु वसै जी; अंति: मानव रस्त्रीभोजन वार,
गाथा-२१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. मु.रूपसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: प्ररथम दीपै दीपता; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण
तक लिखा है.) ४१८४५. मेवाड चंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उजेण, प्रले. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४७, १०४२९). मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मने धरे माता भारथी; अंति: रहेज्यो सर नंद, गाथा-१२,
(वि. इस प्रति में रचनासंवत् नहीं लिखी है.) ४१८४६. (+#) ग्यांन जकरी व आदिजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्र २ पर पत्रांक
अंकित नहीं है. क्रमश: पत्रक्रमांक ८६ से ८७., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१४.५, १७४२०). १.पे. नाम. ग्यान जकरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ज्ञान जकडी, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यायक एक सरूप हमारा; अंति: परम अनुभौ रस चखा, गाथा-४. २. पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माई आज रिषभ घरि; अंति: साधुकीरति गुण गावै, गाथा-३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, पुहिं., पद्य, आदि: चलौ पावापुर नगरी; अंति: जीवां आनंद लह्यौ है, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: हो जिनजी तेरी मूरति; अंति: अपने सेवक कौं तारे, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-मुलतानमंडन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई
पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मुलताण मैं देहरा; अंति: भव्य जीवा मन मोहै जी, गाथा-४. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतम गुन जानिरे; अंति: और न मोहि
छुडावनहार, गाथा-७. ४१८४७. (#) माणिभद्रवीर छंद व पाश्वनाथ प्रभावीक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३५४११.५, ४३४१८). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: कुसल लक्ष्मी लह्यो, गाथा-२२. २.पे. नाम. पाश्वनाथ प्रभावीक स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी आधुनिक प्रतिलेखक द्वारा पेन्सिल से लिखी
गई है.
पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: स्वामिने नमः स्वाहा, श्लोक-४. ४१८४८. (+#) नमजीरो चिरत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पीपार, प्रले. सा. हसतु; अन्य. सा. जीउजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीउजीरा प्रसादथी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७४११,७४१८). नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नयरी सोरीपुर राजीया; अंति: जैमलजी कहै नेम
जीणदा, गाथा-३९. ४१८४९. (+) वइरस्वामिजी गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१५.५-१७.५४१४.५, १८x२२).
वज्रस्वामी सज्झाय, मु. दयातिलक, रा., पद्य, आदि: मुनिवरजी हो जौ थे; अंति: काल सीख सुणिज्यो, गाथा-९. ४१८५१. थुलिभद्र सिज्झाय-अंतिम ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१९.५४११.५, ११४३०). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ वेगै फल्यारे, (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. अंतिम ढाल मात्र है.) ४१८५२. रात्रीभोजन सझ्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. चनणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८.५४११.५, २१४२८).
रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीपती बारु बस जी; अंति: सार्या आतम काजरे,
गाथा-२०. ४१८५३. २४जीन परीवार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (१३.५४१२.५, १६४१७).
२४ जिन साधुसाध्वीश्रावकश्राविकासंपदा सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे तीर्थंकरनो; अंति: मुनि वंदन
फल फलहे, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखकने मात्र अंतिम गाथांक लिखा है.) ४१८५४. (+#) २४ जिन, स्त्रीपुरुषादि संख्या गाथा व सापराधनिरपराधारंभ गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम,
पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. २४ जिन गाथा-वर्णभवतपसिद्धिगमनादिगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: पउमाभ वासुपुज्जा; अंति: सिद्धा एगंमि समयंमि, गाथा-५.
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३००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. स्त्रीपुरुषादि संख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. सापराध-निरपराधारंभ गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से
अधिक बार जुडी है. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.
जैन गाथा का बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१८५५. पार्श्व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक की जगह से खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (१६४१२, १४४१५).
पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: फागुण मासे सोहावीओ; अंति: देव न दूजो ओर, गाथा-५. ४१८५६. गौतमस्वामी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१३, १०४२०).
गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गोतम प्रणमी; अंति: परगट्यौ परधान,
गाथा-८. ४१८५७. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४११.५, ११४२३).
शांतिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनराज हु; अंति: हुकमी हुं ताहरो, गाथा-१४. ४१८५८. (#) पार्श्वनाथजीरी नीसंणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४४. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७४१२.५, १५४१५). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है) ४१८५९. (+-#) तीजेपहोत स्तोत्र व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं
है., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१२.५, ११४१८). १.पे. नाम. तीजेपहोत स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखकने
गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अति: (-), (वि. पत्र के प्रारंभ में एकसौ सतरीया यंत्र
व अंत में अन्य यंत्र भी है.) ४१८६०. (#) औपदेशिक सज्झाय व पांचतिर्थकरारां जिनोस्तवनानि चैत्यवंदनानी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,
कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x११, १०४२६). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि*, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (-);
अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ से ७ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. पांचतिर्थकराणां जिनो स्तवनानि चैत्यवंदनानी, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, पठ. सा. फूला,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: तस घर जय जयकार,
गाथा-६. ४१८६२.(-) पंचमी आदि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१७४१३,
१०४३०). १. पे. नाम. बिज स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
बीजतिथि स्तुति, मु. पद्म, सं., पद्य, आदि: सर्वे वासरउत्तम, अंति: वांछितं संदायिनी, श्लोक-४. २. पे नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंच परमा अंतिः सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहे, अंति: (-). (पू. वि. प्रारंभिक पाठ मात्र है.)
४१८६४. पंच मंगलीक संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१२.५४१२.५,
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१९x२०).
५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं ए मंगल मन धरो; अंति: सुभ गुण ते वरे ए, गाथा- १६, (वि. एक गाथा की दो गाथा गिनी है.)
४१८६५. बजकवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र. ले. पु. सामान्य, दे.,
(१५.५X१२, १३X१९).
विजयसेविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः सुकलपाक बजीया वरत; अंतिः कथा मुखसु जाणी, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखकने एक गाथा की दो गाथा गिनी है.)
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कूकुजी बरणी हुती; अंति: करो करणी तप भारी रे, गाथा - ९. ४१८६७. नेमनाथजी की लावणी, संपूर्ण, वि. १९६० मध्यम, पृ. २, वे. (१७४१३.५, ११४१६).
४१८६६. उपदेस ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'दुजी
रायकवरी उतारी छै' इस प्रकार लिखा है., दे., ( १६x१२, १५x२१).
नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल पुहिं, पद्य, आदि नेमनाथ मोरी अरज सुनी अंतिः फेरा नही फीरने की,
"
गाथा - ९.
४१८६८. षट्विगयरातीश निवीता, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. बिक्रमपुर, प्र. मु. केसरीचंद, राज्यकालरा, गंगासिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (१७.५X१३, १२४१९).
"
जैन सामान्यकृति, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-).
१. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
३०१
४१८६९. (+#) पंचपरमेष्ठि मंत्र व पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (१८.५x१२.५, १३४२३).
२. पे नाम, पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, पृ. १अ २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं,
मु. उदयरत्न, मा.गु. पच, आदि वार वीस्वमां देस अंतिः (-) (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ४१८७०. (#) लक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३१, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. जमुनदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१७.५१३, ९x१५).
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पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम् श्लोक- ९, (पू. वि. प्रतिलेखकने अंतिम श्लोक का अंतिम चरण नहीं लिखा है.)
४१८७१. नेमिजिन आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. वे. (१७.५४१२, ११४२५).
नेमिजिन आरती, मु. मोजीराम, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै नेमनाथा भगवंता, अंति: मुक्ताफल द्यौ मन मान, गाथा- ६. ४१८७२. (#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (११.५X११, १२x१८). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. अभय, मा.गु., पद्य, आदि: पारकरे परसीध गुणे; अंतिः सदा हीत आणने, गाथा - ५. ४१८७३. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (१७.५x१२.५, ११४२४). संभवजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: सुखकारक हो श्रीसंभव, अंति: साधन भ संग्रही, गाथा - ११, (वि. इस प्रति में कृति रचनावर्ष नहीं लिखा है .)
"
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३०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४१८७४ (+) अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. सलम पत्र क्रमांक २१-२२.. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (१८x१२.५, ११x२५).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा. पद्य, आदि: अजिअं जिअसव्यभयं संत अंतिः (-), (पू. वि. गाथा ११
"
अपूर्ण तक है.)
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,י
४१८७७.
(#) साधुश्रावक नेषणिका विचार व चौदनियम गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१७.५X१२, ५५x२४).
""
१. पे. नाम. साधुश्रावक नेषंणिका विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
एषणीय आहार समयप्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चावल पहुर ४ राब पहर; अंति: ठाणंगजी० कह्या है. २. पे. नाम. चौदनियम गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण.
११ बोल नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तिने मारो नमस्कार...
२. पे. नाम. आठकर्म विवरण, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक नित प्रति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विगई विषयक विचार पर्यन्त लिखा है.)
४१८७९ (१) ११ बोल व आठकर्म विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ४-२ (१ से २) -२, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (१९x११.५, ९x१५).
१. पे. नाम. ११ बोल. पू. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेलुं ज्ञांनावरी करम; अंति: आठ करमनी वात पुरि था. ४९८८९. अष्टमीनी सझाय व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)= १, कुल पे. २, दे.,
( १९x१३, २०X१४).
१. पे. नाम. अष्टमीनी सझाय, पृ. १४- १४आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसती चरणकमल नमी, अंति: वाचक देव सुशीश,
गाथा-७.
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४१८९० (+) पद्मावति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ दे. (१९.५१२.५, ८४२६).
"
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः श्रीमच्चडोग्रदंडे; अंति: जाप्ययुतं फलदायिनी, श्लोक १०.
४१८९२. () शांतिजिन छंद व सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) ०१ कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध
"
पाठ., दे., (१८.५x१२, १३x२२).
१. पे. नाम. शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, पू. ३अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति वृध बेठा फल पावे, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा १३ तक नहीं है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२.
४१८९५ (१) संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२४.५५१३,
१३X२६).
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संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग, अंति: सिद्धी भणइ सिसो,
गाथा - १४.
४१८९९_(१) शालिभद्रनो सलोखो, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (१७४११.५,
८-१३X१७-२३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शालिभद्रमुनि सलोको, मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसवती माता तम पाए अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २९ अपूर्ण तक लिखा है.) ४१९०१. इरियावहीनी चरचा संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे. (२६४११.५, १६x२१).
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विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४१९०३ () बिजनो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (१८४१२.५, १२x२२). बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचनरस वरसती; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल - ३, गाथा- १६.
गाथा - १४.
४१९०७ मुहपत्ति का बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, वे. (२०.५X१३, ७४२१).
"
४१९०४. जंबूस्वामी स्वाध्याय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. वे. (१२.५x१२.५, १४x२७)जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वस्ये; अंति: तास तणा गुण गाया रे,
३०३
"
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ सांचवं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने - ३९ बोल पर्यन्त लिखकर कृति पूर्ण कर दी है.) ४१९०८. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित. दे. (२०x१२.५, १७४२८). पार्श्वजिन स्तव- समसंस्कृत, प्रा. सं., पद्य, आदिः सदारविंदारसुरासुराली अति लब्धि वित्तीयां मयि श्लोक-२१. ४१९०९. (#) सिमंधर स्तवन व वर्ष भविष्यफल कथन, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५X१२.५, १७X२६).
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१. पे. नाम संवत् १८१८ से १८२६ तक का भविष्यफल कथन, पृ. १अ संपूर्ण
ज्योतिष" मा.गु. सं., हिं. पग, आदि (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. सिमंधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि मनडो ते माहरो मोकले, अंतिः ससीयर साधे संदेस,
गाथा - ९.
४१९१० () अनंतकाय आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. पत्र १x२. पत्रांक अंकित नहीं
है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५X१२.५, २७X२१).
१. पे. नाम. संजतीसाधु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. उदय, मा.गु, पद्य, आदि: संयम सुरतरु सरीखो, अंतिः भाखे उदय सुभद्र हो, गाथा- ९.
२. पे. नाम. बाविसअभ्यख्य बतीसअनंतकाय सझाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि.
२२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रै सुद्धि; अंति: ते शिवसुख लहो, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
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३. पे. नाम. चउदनयम सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९ वी, माघ शुक्ल, ११, ले. स्थल. सीरोडी, प्रले. पं. मोतीविजय. १४ नियम सज्झाय, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाय प्रणमी करी, अंतिः ऋद्धिविजय उवझाय
गाथा - २१.
४१९११. (#) संलेखणा को पाट व जैनदुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. भांणपुर, प्रले. मु. कीसनसागर; पठ. मु. देवसागर (गुरु मु. कीसनसागर), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५X१३, १४x२०).
१. पे. नाम. सलेखणा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
संलेखना पाठ, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अपच्छिम मारणंतीय अंतिः तस्स मिच्छामिदुकडं.
२. पे. नाम. मांगलिक गाथा संग्रह, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
जैन हा संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गौतमस्वामी, नवकार, सोलह सती आदि के मांगलिक
दोहे.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१९१३. (+#) आदेसर व पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१३.५, १५४१९). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १..
मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु; अंति: द्यौ दरसण सुखकंद, गाथा-७. २.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ७. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: गनाननो पंचमो
भेदरे, गाथा-५. ४१९१४. (#) मूत्रपरीक्षा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, आषाढ़ कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. गुलाबविजय
(अज्ञा. पं. विनयविजय); गुपि.पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१३.५, ६४२९).
मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: मौषधं चैव कारयेत्, श्लोक-२४.
मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्व सर्व; अंति: औषध स्वल्प करवो. ४१९१६. (+#) गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४१३, १०x१९). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीवीर जीणेसर केरो; अंति: गोतम नामे छपती
कोडी, गाथा-९. ४१९१७. (+) सीमंधरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, ११४२४). १. पे. नाम. सीमंधर स्तवनम्, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजया जयो; अंति: भय
भंजन भगवंत, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधर स्तवनम्, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने अंत में कृतिनाम 'सीमंधर स्तवनम्' लिखा है किन्तु
कृति 'बाहु जिन स्तवन' है. बाहजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिव हो साहिव वाह; अंति: जस कहै
सुख अनंत हो, गाथा-५, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम नहीं है.) ४१९१८. जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. बबुबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०x१३, १२४२६). जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरुराज; अंति: प्रभु सेवानि कोड,
गाथा-१४. ४१९१९. (+#) समस्या पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१२, १७४२१). १. पे. नाम. समस्या पद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९वी, १४, रविवार, ले.स्थल. पाटडी, लिख. पंन्या. लालविजय.
मा.गु.,सं., पद्य, आदि: षटपदेवाहं नता; अंति: भागो कवण गणेण, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गाम ढुकडो कवण; अंति: आठे पोर राखे रदइ वीस, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. २४ जिन नाम- अनागत, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: मापोम श्रेणिकनो जीव; अंति: स्वातबूधनो जीव. ४. पे. नाम. तीर्थंकरजीव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४१९२०. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४१०, ११४२२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३०५ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: पांचमो भेदरे,
गाथा-५, (वि. किसी आधुनिक विद्वान ने कर्तानाम के ऊपर पेन्सिल से 'लालचंद कहे' इस प्रकार लिखा है.) ४१९२१. (-#) ऋषभदेवजी व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१,
कुल पे. २, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१७९) पोथी प्यारी प्राणथी, ., (१६४१३, १३४२२). १.पे. नाम. ऋषभदेजीरो स्त्वन, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___ आदिजिन स्तवन, मु. चत्रभुज, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: करो जे जेकारो जी, गाथा-११,
(पू.वि. गाथा ५ तक नहीं है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण.
मु.क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सीद्धाचल गीर विमलाचल; अंति: प्रभुप्यारारे, गाथा-५. ४१९२२. उपदेसी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४१२, १४४२५).
औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: चांगले एसी करना; अंति: जुग जेसा सुपना, गाथा-११. ४१९२३. प्रजजीरा गण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. किनारी कटी होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (१२.५४१२, १६४१४).
गुरुगुण गीत, मु. रईदास, रा., पद्य, वि. १८९६, आदि: पुन जोगे तुम कुं; अंति: थारा चरणा को दास, गाथा-९. ४१९२५. सीखामणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२०.५४१३, ११४२५).
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सिखामण कही;
अंति: उदयरत्न वाचक इम भणे, गाथा-१०. ४१९२६. वखाननी पीठका वशखेश्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र के दोनों तरफ पत्रांक
अंकित है., दे., (२१४१२.५, २१४३५). १.पे. नाम. शखेश्वरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने अलगी रहेन; अंति:
जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-५. २.पे. नाम. वखाननी पीठका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक-१आ से कृति लिखना प्रारंभ कर के अंतिम
कुछ हिस्सा पत्रांक-१अपर लिखा है.
व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत वीतरागनी वाणी; अंति: उतरोतर मगल पद पामे. ४१९२७. (#) अष्टमीनी स्तुती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. मोहनलाल डामरसी शाह;
पठ. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में किसीने लाल स्याही से 'आ पुस्तक बाई विजीबाईनु छे संवत १९५४ ना पेला आसो सुद ८ अष्टमीने सुकरवासरे' इस प्रकार लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४१२, ११४३०).
___ अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठम जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ४१९२९. (-#) उपसर्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीसलनगर, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२.५, २१४२०). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, गाथा-१३. ४१९३०. (+) सुभद्रा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२१x१२.५, १५४२९).
सुभद्रासती सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सत जोजो सुभद्रा तणो; अंति: वाहलो मुगतनो वास,
गाथा-३३. ४१९३२. (+) शील रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२०x१२.५, १८x२५).
शील रास, रा., पद्य, वि. १८०६, आदि: सारद माता सवलं तोइ; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३०६
४१९३३. नेमिजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२०x१२.५.
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१३X३३).
१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमजिन पद, मु. नथु, मा.गु, पद्य, आदि कीने देखा हमेरा अंतिः नथु० आज शिरनामी रे, गाथा-४ (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
२. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: तमारा मुखडा उपर, अंति: बलीहारी लाल लटकाला, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. आलीराजपूर, प्रले. श्राव. इंदरमल, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि चेतन काची मटी का डेर; अंतिः आपना करल्यो सवेरा रे, गाथा ५.
"
४. पे नाम. आदिजिन पद-राजपुर, पृ. १आ, संपूर्ण
आदिजिनसीमंधरजिन पद-राजपुरमंडन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीराजपुर नगर के, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४१९३४. (#) तिर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( १६x११.५, २०X१६).
तीर्थमाला स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीसरसति भगवती माता, अंति: पद पूर ठाम,
गाथा - ४१.
४१९३५. (#) वारेभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७X१३, १३X२१). १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनित्य भावना १ ते; अंति: गजसुकुमालनी परें.
४१९३८, (४) मेतारजमुनीनी सजा, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मोतिरुचि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१९.५४१३, १३x२२).
"
"
मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समद गुणना आगरु जी; अंति: भणे जी साधु तणी सजा,
गाथा - १३.
४१९४१ (+) स्थूलभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पु. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२०.५X११, ११x२९).
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. डाल २ गाथा २ अपूर्ण तक है.)
४१९४२. (४) नेमराजुलजीरी सोझ्याय व सेजाजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पू. ३. कुल पे. २, ले.स्थल. लोडीसादडी, प्र. वि. श्रीजिनाय नमः. अंत में प्रतिलेखन समय विषयक इस प्रकार उल्लेख है. 'सातम कै दिन गडी ३ दीन रहतां संपूर्ण अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, दे., (१९.५४१२, १४४३०).
१. पे नाम, नेमराजुलजीरी सीज्याय, पृ. १अ संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि पीठ ब्रमचारीने राजुल अंतिः मुगतें पहुता रे, गाथा-६,
२. पे. नाम. सेत्रुजाजीरो स्तवन, पृ. १अ -३आ, संपूर्ण.
आदिजिन बृहत्स्तवन - शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सयल जिणंद पाय; अंतिम
भवपार ए, गाथा ४३.
४१९४५. ५६३ जीवभेद सिज्झाय व भगवतीसूत्र गुहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२१X१३.५,
८४१५).
१. पे. नाम. ५६३ जीवभेद सिज्झाय, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण.
५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु, पद्य, आदि मिच्छामि दुक्कडं इण, अंतिः इम कहै रिषभदास जी,
गाथा - १३.
२. पे नाम, भगवतीसूत्र गुहली, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३०७
भगवतीसूत्र गहुली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहिर सुणियेरे, अति: मंगल कोडि वधाई, गाथा- ७. ४१९४६. (+) गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित. दे. (१३४१२.५, ९-११X१९).
"
गुरुगुण गहुली, श्राव. बेचर दोसी, मा.गु., पद्य, आदि: अम घर आज मनोहरु; अंति: बेचर गुण गाया रे, गाथा - ९. ४१९४७, () ज्ञानोपयोगनी कथलाभासा व अध्यातम उपरि वीरजिन थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. गोडीदास सोभाग्य शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५X१३, १५x२६).
१. पे. नाम, ज्ञानोपयोगनी कथलाभासा थुई. पू. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन- ज्ञानोपयोगगर्भित, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि : थाली कलसली सार कचोला; अंतिः सासयमुख आरोहो जी, गाथा- ४.
२. पे. नाम. अध्यातम उपरि वीरजिन धूई. पू. १ आ. संपूर्ण.
औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः उठी सवेर सामावक कीधुः अंतिः सिद्धपद भोगी जी,
गाथा-४.
४१९४८. नाणावटी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. दे. (१९४१२, १२x२४).
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नाणावटी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु पद्य वि. १८वी, आदि: हो नाणावटी नाणु अंतिः भविक प्राणी, गाथा-८. ४९९४९ (७) शत्रुंजयतीर्थ धूई, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
( २०x१२, १२X३१).
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदिः आगे पूरव बार निवाणु; अंतिः कारय सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. ४१९५० (०) धुलिभद्र सझाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x११.५, २७X२२).
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि धुलिभद्र मुनीसर आवो, अंति: वर षटकाया विसतारी,
गाथा - १७.
2
४१९५३. (+) वीरस्वामी स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (१८.५X१३.५, १६x२६).
१. पे. नाम, मनरूपी मांकडलानी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. मु. मोतीचंद
मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण्य न; अंति: मुगति तणा फल लीजे रे, गाथा ६.
२. पे. नाम. अज्ञानरूपी बालनी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ कृष्ण, २, प्रले. पं. रंगविजय गणि. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बूडा ते बली कहीये, अंतिः धर्म्म पामीने खरो,
गाथा-४.
३. पे. नाम. वीरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि जायो जिनवर जग हितकार, अंतिः कहे वीर वीभु शीतकारी, गाथा-७.
४. पे नाम, चंद्र व सूर्य देवविमानप्रमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. कृति हासिए में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
जैन सामान्यकृति, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-) अंति: (-).
४१९५४. गुहली भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२०.५x१२.५, १३४३०). महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि जग उपगारी रे वीर, अंति: अमृतवाणी रंगसुरे, गाथा-८. ४१९५६. (+) वडी शांत, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. मानविजय, पठ. श्रावि. सुजाणकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित, दे., (२०x१२, ९x१८).
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३०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत, अंति: जैनं जयति शासनम्. ४१९५७ (+) तिर्थमाल स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक
1
लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., ( १७१२.५, १४४१८).
१. पे नाम, तिर्थमाल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रले. मु. जिवण, प्र.ले.पु. सामान्य
तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: शेत्रुंजय ऋषभ, अंति: समयसुंदर कहे एम,
गाथा-८.
२. पे. नाम. दवाइ बुखार की, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. औषधवैद्यक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
३. पे. नाम. औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जिवण, प्र.ले.पु. सामान्य.
जैन श्लोक सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक ८.
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कृ
४. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जिवण, अन्य. मु. देवविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. अंत में किसी विद्वानने इस प्रकार लिखा है, 'संवत् १९५२ मि आसु १ देवविमल पां प्रा श्री १०८ श्री राजप्रधानजी मुनिजी माहाराज साहेब
सामान्य श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३.
४१९५८. सिद्ध स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२१x१२.५, १४४२८).
सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि जगतभूषण विगत दूषण, अंतिः नमो सिद्ध निरंजन, गाथा- १३. ४१९५९. (+४) जंबुस्वामीनु चोडालिडं व सिद्धनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. कालावड, प्रले. दामोदर त्रिकमजी खत्री; पठ. सा. कस्तुरस्वामी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (१८.५X११.५, १५x२२-२५).
१. पे नाम, जंबुस्वामीनुं चोदालिडं, पृ. १अ ४अ संपूर्ण.
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: मनवंछीत ते सुख लहेसे,
ढाल-४.
२. पे नाम, सिद्धनु स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि, यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. सिद्ध स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे तरण तारण दुख, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक अंश मात्र लिखा है.)
४१९६०. (+) पार्श्वनाथअंतरिक छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२०x१२.५, १६X३३). पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति, अंतिः धन जे जिनवचने वसुं, गाथा-५३, (वि. अंतिम गाथा के दो पाद ही लिखे हैं.)
४१९६१. सुपनारो विचार, संपूर्ण, वि. १८७४ श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, जैदे. (२०.५x१२.५,
१७x४२).
चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, रा., गद्य, आदि: पैहलै सुपनै कल्पवृष, अंति: अकालव्रषा घणी होसी. ४१९६२. (+) तेर काठियारि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (१४१२, ११x१२).
१३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु, पद्य वि. १८बी, आदि: पहलो आलस काठीयो, अंतिः घरे चित्त ज
2
वारु, गाथा- ७.
४१९६३. (#) मंत्र संग्रह व भैरवाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१२, १५X३७).
१. पे. नाम मंत्र संग्रह, पू. १अ संपूर्ण
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. साथ में आम्नाय भी दिया है.) २. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एकं खड्वांगहस्तं पुन; अंति: भैरवं क्षेत्रपालं, श्लोक- ९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४१९६४. (०) शनिश्चर चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (१७.५४१२.५.
१४x२०).
शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामण मुज मति; अंति: ललीतसागर म कहै, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं मात्र अंतिम गाथा के बाद ३१ लिखा है.) ४१९६५. मानकाठीओचतुर्थ सझाय व अननागतचोवीसी जिनस्कार, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१X१२.५, १२x२६).
१. पे. नाम. मानकाठीओचतुर्थ सझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजइ मानवी, अंति: सीवरमणी करी सांन,
गाथा - १०.
२. पे. नाम. आननागतचोवीसी जिनस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र कृष्ण, १३, ले. स्थल. आगलोड, प्र. सरुपचंद वहोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
२४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: नय वंदे सुजगीस, गाथा - १३, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम गाथा लिखी गई है.) ४१९६६. (+) चौरासी बोल स्वेतांवरी, भाग्योपरि कृष्ण पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुलपे, ३, प्र. वि. संशोधित, दे. (२१.५४१२.५, १०x१९).
१. पे. नाम. चौरासी बोल स्वेतांबरी, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
८४ बोल- धोतांबरीय, पुहिं गद्य, आदि: तीर्थंकरजी आहार लेय, अंतिः बिदल में दोष नहीं.
२. पे. नाम. कृष्ण सवैयो - भाग्योपरि, पृ. ३आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सोहै रिद्धि चहू; अंति: देखो रीति बिधि की, गाथा-२.
३. पे. नाम ब्रह्मचर्य लोक, पृ. ३.आ, संपूर्ण.
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जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १.
४१९६९. छकाय जीवनी वगति व सुभाषित गाथा आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र
१५२ पत्रांक अंकित नहीं है. जै
(२१.५४१२.५, ६४४२३).
१. पे. नाम. छकायना जीवनी वगति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पं. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
जैन गाथा", मा.गु., पद्य, आदि (-): अंति: (-), गाधा- १.
३. पे नाम, औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), रोक-१.
आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिधि, सं., पद्म, आदिः उद्यत्सारं शोभागार, अंतिः तारा भूत्यै स्तात् श्लोक-४. २. पे नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
י
४१९७० (+) नेमनाथराजेमती का वारामासा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४१३, १५X३३). नेमजिन बारमासो, मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: क्यों आया क्यो फिरि; अंति: हमको छुटकाई, गाथा-२४. ४१९७२. आदिजिन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. वे. (२२.५४१३, १२x२९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण.
,
पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि श्रीसर्वज्ञं ज्योति अति बुद्धिऋद्धिवैदुष्यं श्लोक-४.
"
३०९
४१९७४ नेमिजिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. मु. सुमतिचंद्र पट श्रावि. मुनाबीची, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२०.५X१३, १७१४).
१. पे. नाम, नेमिजिन पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण.
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३१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी; अंति: सांभल सिवादेवी मात, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती होरी, मु. अवीर, पुहि., पद्य, आदि: में खेलू पिया संग; अंति: लगी मुगत की डोरी, गाथा-३. ४१९७६. (+) अष्टमि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२.५, १२४२४).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: रच्यूं छे तारु रे, ढाल-४,
(पू.वि. ढाल १ गाथा ५ तक नहीं है.) ४१९७७. १४ गुणठाणानो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१२.५, १०x२७).
१४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जे श्रीजिनधर्मनो जाण; अंति: ह्रस्व ए कह्या छे. ४१९७८. तपफल विचार व देवालीरो गुणणो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४१२.५, १४४३४). १.पे. नाम. तपफल विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: ऐक उपवास करतो; अंति: ६२५ नो फल जाणवो. २. पे. नाम. देवालीरो गुणणो, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कृति अंतर्गत दीपावली तप का फल कथन भी है.) ४१९७९. (+) देवद्रव्य गुहूली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१२.५, १४४२९).
देवद्रव्य गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: अहो भविका तुमे सांभल; अंति: चारीत्र उदय न आवेरे, गाथा-१०. ४१९८०. (+) ध्याता ध्यान स्वरूप गाथा सह बालावबोध व उद्योतसागरजीने ठाकरसिंह को लिखा पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी,
मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१३, १५४३५-४५). १.पे. नाम. ध्याता ध्यान स्वरूप गाथा सह बालावबोध-द्रव्यसंग्रहे, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३.
जैन गाथा का बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. उद्योतसागरजीने ठाकरसिंह श्रावक को लिखा पत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्तिश्री आदिजिनं; अंति: पछवाडेथी लिखस्युं. ४१९८१. ध्यान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र खंडित होने से पत्रक्रमांक अनुपलब्ध है., दे., (२१.५४१३, १५४३९).
ध्यान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ४१९८२. (+) चक्रेस्वरि स्त्रोत्र व माणिभद्र मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. रत्नविजय (गुरु
पंन्या. हितविजय); गुपि. पंन्या. हितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२.५, ११४२६). १. पे. नाम. चक्रेस्वरि स्त्रोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहि मां देवि चक्रे, श्लोक-८. २.पे. नाम. माणिभद्र मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
__ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४१९८३. पजोसण- चैत्यवंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४१२, १३४२८).
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसणगुणनीलो; अंति: शासने पामे जय जयकार,
गाथा-९. ४१९८५. (+#) कृष्णकंस विवर्णन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१३, १३४१८-२२). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: गाफल मत रहरे; अंति: सूणतां मनही आणंदे,
गाथा-४३. ४१९८६. पाखीपडीकमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४१२.५, १४४२२).
"पा-३.
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३११
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलो० इच्छाकार; अंति: पाखी खांमणांखांमवा. ४१९८७. औपदेशिक ३५सी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२१४१२.५, २०४१४-१७).
औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: ऋख जैमल कहै एम
जी, गाथा-३५. ४१९८८. यतिधर्मबतिसि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२१४१३, १०४३०-३७).
यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाव यति तेहने कहो; अंति: ते पामे सिव
सात, गाथा-३२. ४१९९५. (+#) स्वरसतीजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वडी सादडी,
प्रले. मु. माणेकचंद (कमलकलशागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२.५, ९४२१). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस बचन समता मन; अंति: असा फलहे थाहारी,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४१९९६. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे., (२१४११.५-१२.५, २२४२१). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्री चौबीसवे तीर्थंक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
जंबूस्वामी तक है., वि. पट्टावलि के साथ-साथ संक्षेप में चरित्र भी लिखा गया है.) ४१९९७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२१x१३.५, २२४२१).
औपदेशिक सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: संजमे साणी बेनि; अंति: पद लेवु हो बेनी, गाथा-२०. ४१९९८. माणिभद्र छंद व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., दे.,
(२१.५४१२.५, २३४१९). १.पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूप; अन्य. पं. मेघ, प्र.ले.पु. सामान्य. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: लाख लाख रिझा लहे,
गाथा-२७. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है एवं प्रारंभिक __ भाग पत्रांक-१अपर लिखा है.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४१९९९. (#) उली- चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विदापूर, प्र.वि. श्रीचितामणप्रसव पसाऐ., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१.५४१२.५, ११४३६). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: शिश कहे करजोड,
गाथा-५. ४२०००. पजोसणनी व नवकार सझाय, संपूर्ण, वि. १९३६, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. कल्याणचंद्र;
पठ. श्राव. पूनमचंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (२५२) जिहां लगे मेरु महिधर, दे., (३१४११, १२४२७). १. पे. नाम. पजोसणनी सीझाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: श्रीगोतम गुणधामी; अंति: परमं मंगल पावीऐ,
ढाल-२. २.पे. नाम. नवकार स्वझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: गुणप्रभु० सीस
रसाल, गाथा-७.
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३१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२००१. ऐकादसि सीझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. कीसना, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. श्रीशांतीनाथजी., दे., (२३४१३, ७-९४२३). १. पे. नाम. ऐकादसि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ललना एकादसि तप; अंति: मानविजय कहे एम, गाथा-७. २.पे. नाम. ऐकादशि सीझाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: सूखडा ते लेस्ये, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभदेवजीरो स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
आदिजिन पद-धुलेवा, मु. गुमानविजय, रा., पद्य, आदि: धुलेवा सांम धणी; अंति: कियो तवन प्रवेस. गाथा-४. ४. पे. नाम. गोडीसनाथजीरो स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उमा, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: गोडिशा पासजि माने; अंति: प्रभु आपरी बुध अपार,
गाथा-५. ४२००२. (4) जीवसंख्या, देवलोकायुष्यादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११, १३-१६x४४).
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२००४. (#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१३.५, १०४३२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति:
(-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२००५. (+#) गृहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४१३.५, २४४१७). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, (वि. प्रतिलेखकने
मात्र २ तक ही गाथांक लिखे हैं एवं कृति के अंत में दो श्लोक सुखनिधान विद्वानकृत पंचषष्टियंत्र स्तोत्र के लिखे हैं.) ४२००६. (+#) चोमासीसंवच्छरीखांमणांव विसस्थानकतप स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
अन्य. मु. अखेराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१२, ६०४२१). १. पे. नाम. चोमासीसंवच्छरी खांमणां, पृ. १अ, संपूर्ण. संवच्छरी खामणा, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: खामणलांखामोरेसजनी; अंति: पनोता तेहनी बलिहारी,
गाथा-१५. २. पे. नाम. विसथांनकतप स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुछे गौतम वीर जिणंदा; अंति: आधार वीरविजय जयकार,
गाथा-४. ४२००७. चंद्रप्रभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. मोहनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विद्वान माहिती पेन्सिल से लिखी गई है., दे., (२१.५४१२.५, १२४२२).
चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुजी हो के; अंति: थास्ये म्हारा लाल, गाथा-१४. ४२००९. (+#) आदिजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२२.५४१२.५, १५४३६). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतजिन एक मुझ विनती; अंति: मोहनविजेय गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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३१३
आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. भावविजय, पुहिं, पद्य, आदि सेडुंजे गिर कूंन, अंति चाहत कछुअन ओर,
गाथा ५.
३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन- भृगुकच्छ, मु. धरणेंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९४६, आदि: जिनपति आदिस्वर नमु; अंति: कहे धरणेंद्र मुदाम, गाथा- ७.
४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
धरणेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु भेटण भाव, अंति: मुरती भली, गाथा- ७.
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मु.
५. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणेसर जाणजो, अंति: मानवीजे उवझाय रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमुनिसुव्रतस्वामि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा (४.)
४२०११. समय का मान, संपूर्ण, वि. १९७८, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. जावदनगर, प्रले. मन्नालाल तलेरा; अन्य. सा. मोहनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र १x४ हैं. पत्रांक अंकित नहीं है. शांतिनाथ भगवान के प्रसादे., दे., (२०.५X१३.५, १३x४२).
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-).
४२०१२. (#) आदिजिन विनती व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x११.५, २१x४२).
१. पे. नाम. ऋषभदेवनी वीनती, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७२५, चैत्र शुक्ल, १०,
ले. स्थल. लोटोधरी, प्रले. मु. जयमल (गुरु मु. समरथ ऋषि); गुपि. मु. समरथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: मुनि वैरागइ एण भणीय, गाथा ४५ (पू. वि. गाथा २७ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थं बृहत्स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करी जोडी वीनवु जी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २४ अपूर्ण तक है.) ४२०१३. नमस्कार महामंत्र स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१(१) १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक
अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., दे., (२२.५X१२.५, २२x१७).
१. पे. नाम. दीवालीनो स्तवन, पृ. २अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
दीपावली पर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रभु भवनो फेरो टाल, गाथा - ६, ( पू. वि. प्रथम गाथा का प्रथम पाद नहीं है.)
२. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण
मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदिः सामलीआ सीधने चाल्या; अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.)
३. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई
है.
"
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: रे भवियण नवकार तो,
गाथा - ९.
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४२०१४. नंदीषेणमुनि सज्झाव व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, वे. (२०x१२, १९३६). १. पे. नाम. नंदीषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वेरागी संजम लीयो, अंतिः बेगा जाय जो मोख, गाथा- १५.
"
२. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९५१, आदि: पाप से जीव; अंति: पावे भव पार, गाथा-५. ४२०१५. क्रर्म शजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. पुन्यविजय; पठ. सा. कंकुश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१३.५, १३४२२).
कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो करम माहाराजा रे, गाथा-१८. ४२०१६. (+) गोत्म कुला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४१२.५, १०४२८).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ४२०१७. (+) सारंग पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२१.५४१२.५, १४४२८).
रावणमंदोदरी सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: कहै मंदोदरी सुण हो; अंति: जाणा जिसनै नारकी, गाथा-१७. ४२०१८. (#) महालक्ष्मी मंत्रस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०९, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२.५, १४४२८).
महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततः; अंति: सर्वदा भूतिमिछता, श्लोक-११. ४२०१९. (+#) ऋषभ धुलेव छंद, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ६, जीर्ण, पृ. १, अन्य.पं. तेजरत्न; मु. हर्षविजय;
मु. भाणविजय; पं. कपूर; गुपि.पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १५४२९).
आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगद्धारणी कला; अंति: सदा सूख पाईइ,
गाथा-८. ४२०२०. (+) दसारणभद्रराज्यानि सझाय व इंद्रस्य ऋधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. कृति लेखनक्रम
अव्यवस्थित है., संशोधित., जैदे., (२२४१२, १५४३७). १. पे. नाम. दसारणभद्रराज्यानि सझाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने यह कृति क्रमशः पत्र पर न लिखते हुए
प्रारंभ की गाथा ४ अपूर्ण तक पत्रांक १आ पर, गाथा ४ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक पत्रांक २आ पर एवं शेष गाथा ९ पर्यंत ३आ पर लिखकर पूर्ण की है.
दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाई सेवक, अंति: लालविजय निसदीस, गाथा-९. २.पे. नाम. इंद्रस्य ऋधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने यह कृति क्रमशः पत्र पर न लिखते हुए प्रारंभ की गाथा १३
अपूर्ण तक पत्रांक २अपर वशेष गाथा १५ पर्यंत १आ पर लिखकर पूर्ण की है अतः काल्पनिक पत्रांक ३अ और ३आ लिखा है. इंद्रऋद्धिवर्णन गाथा-आवश्यकचूर्णिगत, प्रा., पद्य, आदि: चउसट्ठि करि सहस्सा; अंति: (१)आवस्सय चुण्णीए
भणीया, (२)दिव्यकन्याश्च स्युः, गाथा-१५. ४२०२१. (+) समय का प्रमाण, संपूर्ण, वि. १९७३, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. लाभचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४४. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२१.५४१४, १३४५१).
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२०२२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १२४२६).
__ वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४२०२३. नवकारनो रास व दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२१४१३, १३४३१). १. पे. नाम. नवकारनो रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामीनी दो मुज; अंति: रास भणु सरव साधुनो, गाथा-२५. २. पे. नाम. दीवाली स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. मध्यभाग की एक ढाल लिखी है.) ४२०२४. (#) साधारणजिन व आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१.५४१२.५, ७४२९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३१५ १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चवद कै पार; अंति: चरण सरण कुंदासा है, गाथा-६. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: तरक संसार सैं; अंति: जहां प्राण पाया, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे
३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पूर्वकृति पूर्णता व प्रस्तुत कृति प्रारंभ सूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही
कृति प्रारंभ की गई है. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: बोल रे बोल अब चुप; अंति: मृदंग जहां वजैतूरा, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४२०२६. बाहुबलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१x१२.५, ११४२५).
भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया; अंति: मयसुंदर
वंदे पाया रे, गाथा-७. ४२०२७. (#) शांतिजिन स्तवन्न, संपूर्ण, वि. १९११, पौष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. अमृतविजय; पठ. श्रावि. मुनीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१३, १३४२२-२५). शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामि; अंति: निश्चय करि पावे,
गाथा-२२, (वि. प्रतिलेखकने मात्र गाथा-४ तक ही गाथांक लिखे हैं.) ४२०२८. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है., दे., (२४.५४११, १२४३४-३६). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलभद्र मुनीसर आवो; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र
नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ४२०२९. महासत्तामहासती कुलं व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. सुरत, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.७, १३४३८-४०). १. पे. नाम. महासत्तामहासती कुलं, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम, श्लोक-३. ४२०३०. (#) मौनएकादशी वृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १५-१८४३२). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरु मनसुद्ध; अंति: धरमराग मन मै धरो,
ढाल-५. ४२०३१. (#) सिद्धचक्र स्तवन व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२३.५४१२, १२४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणी सम सहु मंत्र; अंति: अनुपम जश लीजैरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर कहे कर जोडो,
गाथा-७. ४२०३२. दीवालीना देव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२, १२४३२).
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३१६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर;
अंति: प्रगटे सकल गुण खाण, (वि. देववंदन अंतर्गत के नमुत्थुणं स्तवादि सूत्र लिखे नहीं हैं, मात्र क्रमानुसार
चैत्यवंदन, स्तुति व स्तवन लिखे हैं.) ४२०३३. (+) ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र के दोनों ओर पत्रांक अंकित हैं., संशोधित., दे., (२१४१३.५, २३४२१). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर; अंति: सार मंत्र गहिये सदा, गाथा-१६, (वि. अंत में मंत्र की
गुणन विधि भी दी गई है.) ४२०३४. विनंती गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४१२.५, १३४३५).
गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाये; अंति: म करो आज विहार, गाथा-१९. ४२०३५. पजुसण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४१२.५, ११४३२).
कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण आवीयां; अंति: माणिकविजय
जयकारी रे. ४२०३९. (#) क्षेत्रसमास सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४२-४७). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ४२०४०. कनीराममुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२२.५४१२.५, १०x२५).
___ कनीराममुनि सज्झाय, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्व जनेसुर; अंति: गुर पद सो सो वार, गाथा-११. ४२०४१. (+#) वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११.५, १४४३०-३५).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ४२०४३. गतिआगति सझाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. प्रांतिज, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२.५, ८४३३).
२४ दंडक गतिआगति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरस्वति सामण; अंति: पामो निश्चे निरवांणी,
गाथा-११, संपूर्ण. २४ दंडक गतिआगति सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरसस्वति माताने; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२०४४. (#) पर्जूषणपर्व सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१३, १५४२७).
पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: घर घर मंगल हरख; अंति: मानव मुख सेती कहवाय, गाथा-७. ४२०४५. (+#) महावीरजिन गुहली व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १२४२८). १. पे. नाम. राणपुराजीरो स्तवनम्, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणपुर, मु. खूबआनंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: सुगुरु पद पंकज प्रणम; अंति: आनंद
सिरनामी रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख शुक्ल, ३, ले.स्थल. कुणेजानगर, पे.वि. यह कृति किसी अन्य
प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. सिद्धचक्र स्तवन, मु. खूबआनंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: नोपद पंकज सीस नमीजे; अंति: प्रभू भाखै खूव
आनंद, गाथा-११.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख कृष्ण, ४, ले. स्थल. भिन्नमाल, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
महावीरजन गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: माहावीरजी आवी, अंति: दुरगति दूरी टालि, गाथा- ८. ४२०४६. प्रश्नोत्तरमाला व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४१ श्रावण कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले. स्थल, वीरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, पठ. श्राव. चतुरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१३, १२४३९). १. पे नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण,
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मु. . चिदानंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदिः परम ज्योति परमातमा, अंति: वाणी कही भवसाय तरी, गाथा-६२. २. पे. नाम. समेतसिखरगिरि स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, आदिः समेतसिखर चालो जइ, अंति: अखय अमर पद लहिये, गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदसुं प्रीतडी, अंति: अविचल सुखवास,
गाथा - ६.
४२०४७ (४) १४ जीवभेदे १३ बोल, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x६. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५X१३, १८x२९).
',
१४ जीवभेदे १३ बोल, मा.गु गद्य, आदि (-); अंति: (-) (वि. अंत में यंत्र भी आलेखित है.)
विचार संग्रह " प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४२०४९ (+) भक्तामर आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५X११.५, १६४३८-४३).
४२०४८ (0) सेनुजय चैत्यवंदन व आयंबिलतप सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. ४. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३१२, १३३८).
१. पे. नाम. सेनुजय चैत्यवंदन, पू. १अ संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला, अंति: तत्परपदमविजयसुहितकरं, श्लोक- ७.
२. पे. नाम. आंबिलतपविचार स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
आयंबिलत सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७३, आदिः समरी श्रुतदेवी सारदा अंतिः विनयविजय उवज्झाय, गाथा - ११.
३. पे नाम. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय दृष्टि २ व ३, पृ. २अ, संपूर्ण.
८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. द्वितीय तृतीय दृष्टिवर्णन की ढाल है.)
४. पे. नाम. दीक्षावय विचार, पृ. २आ, संपूर्ण.
३१७
१. पे. नाम. भक्तामर स्तव, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेव, श्लोक १७.
३. पे. नाम. उवसर्गहर स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण.
उवसग्गाहर स्तोत्र- गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५.
४. पे नाम, मांगलिक लोक संग्रह, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण
साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव, अंति: साहुणो तिबेमि. ५. पे. नाम. तजयपहुत्त, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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३१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१५. ४२०५१. शांतिजिन तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२४४१२.५, १३४३३).
शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु संतिजीणंद भले; अंति: जीन दरीसण कामे रे, गाथा-७. ४२०५२. (#) राम चौपाई-प्रक्षेपढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १८४३६). जैन कथा-वार्ता-चरित्रादि*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. राम चौपाई की
बीच की २ प्रक्षेप ढाल है.) ४२०५४. (+#) शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२.५, १३४४४). शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि विमलवसी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ गाथा २ तक लिखा है.) ४२०५६. पार्श्वजीन स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४१३, १४४३०). १.पे. नाम. जीन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: सुंदरसौख्यभरम्,
श्लोक-७. २.पे. नाम. आदीजीन स्तुति वीर स्तुती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि; अंति: वीरं गिरिसारधीरं,
श्लोक-४. ३. पे. नाम. जीन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद; अंति: गोक्खीरतुसारवन्ना,
गाथा-४. ४२०५७. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३.५४१२.५, ४४४२१). महावीरजिन विनतीस्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ४२०५८. सिद्धचक्र स्तुति व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे.,
(२३४१२, ९४३८). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा; अंति: सुख संपद लहे चंगजी, गाथा-४. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा होवे; अंति: जिन उपम आवे, गाथा-५. ४२०६०. (+#) आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२४४१२.५, १२४२९). १.पे. नाम. शेत्रुजानो शतव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, ग. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी ते पीउने; अंति: जिन राखीज्यो रंग,
गाथा-११. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विमलासलगढ मंडणो; अंति: सागर जयकारी हो,
गाथा-६. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३१९ आदिजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेसर राय; अंति: आस्या सवे फलि, गाथा-५. ४२०६२. शत्रुजयतीर्थस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२२.५४१२.५, ११४२६).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारु डुगरिये मन; अंति: सिधावे जे सुखदाय हो, गाथा-१३,
(वि. इस प्रति में कर्तानामोल्लेख नहीं है.) ४२०६३. जालोरमंडणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३४१२.५, १६४३१). पार्श्वजिन स्तव-स्वर्णगिरिमंडन, ग. ज्ञानप्रमोद, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: विमलगुणनिधानं केवल; अंति:
प्रभुताप्रदोस्तु, श्लोक-१३. ४२०६४. आदिजिन व चिंतामणपार्श्वनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
दे., (२१.५४१३.५, १४४३४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., पद्य, आदि: अदभुत रूप अनुप खरो; अंति: रामपुरे नमो
___ आदिजीनं, गाथा-८. २. पे. नाम. चींतामणपार्वनाथजी को तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमलदल साभलोरे; अंति: पायो अवीचल राज,
गाथा-८. ४२०६५. (+) आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १९४४३).
आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: ए आत्मा असंख्यात; अंति: प्रतीत राखवी. ४२०६६. (+#) दसविध प्रत्याख्यानार्थाधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२.५४१३, ५४३०).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुक्कारस; अंति: गारेणं वोसिरामि.
प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उगइ थकइ; अंति: पुठली परेइ जाणवो. ४२०६८. (+) उवसग्गहरं आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२,
१४४३८). १.पे. नाम. शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो जिनाय ॐ नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., प्रारंभिक किंचित् पाठमात्र है.) २. पे. नाम. उवसग्गहरं, पृ. १अ, संपूर्ण.. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सिसो,
गाथा-१४. ४२०६९. (#) महाबीरजीतप तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. गंगापूर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, ८-१२४३२). महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण जी हुँ; अंति: आपोस्वामी सुख घणा,
गाथा-१०. ४२०७१. (+#) अक्षयतृतीया व्याख्यान आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संख्यादर्शक शब्दों के
ऊपर अंक लिखे गये हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १३४३१-३५).
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३२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र शुक्ल, ५, मंगलवार, ले.स्थल. विदासर,
प्रले. मु. केवलचंद्र. ___ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. २. पे. नाम. मेरुपर्वत १६ नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मेरुगिरि के १६ नाम, प्रा., गद्य, आदि: मदरस्सणं भंते पव्वय; अंति: सोलस नाम पन्नते. ३. पे. नाम. जंबूसूदर्शना वारै नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२०७२. नवपदमहिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किनारी कटी हुई होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२३४१३, १२४४५).
श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करो; अंति: सतियो नामें आदरे, गाथा-१२. ४२०७३. (+#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित
नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१२.५, १२४२७). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण गुणनीलो; अंति: पाम्यो जय जयकार, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
आ. चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण पीयारा जी हो; अंति: प्रभु वसीया सुखावास, गाथा-९. ३. पे. नाम. मेघकुमारमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: चारित्र लेइने चिंतवे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२०७५. महावीरजिन आयु व शब्दभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है. किंचित् अंश लाल स्याही से लिखा गया है., दे., (२३४१३, १३४३५). १. पे. नाम. आयु विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन आयुष्य विचार, रा., गद्य, आदि: एक वर्षमें सवाइग्यार; अंति: मास ६ ने दिन १८ आवे. २. पे. नाम. शब्दभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२०७६. (#) रसनानी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१३, २०४१४).
औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडलि रे जिबडली; अंति: कहे
सुण प्राणी रे, गाथा-८. ४२०७८. (+) पजुसणारी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, ११४३७).
पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीयारे; अंति: मतिहस नमै करजोडि रे,
गाथा-११. ४२०७९. (+) पार्श्वजीन सत्वन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १५४३०).
पार्श्वजिन स्तवन-चतुश्त्रिंशयंत्रगर्भित, मु. धर्मसिंह, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पासजिणगुणमंदिर; अंति: धर्मसंघ
मुनीवरं, गाथा-१३, (वि. प्रारंभ में चौतीसा यंत्र आलेखित है.) ४२०८०. (+#) मेतारजमुनिनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किनारी काटी गई होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१२.५, १२४३१). मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संयम गुणना आगरु जी; अंति: साधु तणि रे सझाय,
गाथा-१४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२०८१. बीज सज्झाय व औपदेशिक दोहो, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. ले. स्थल. पालीनगर, प्र. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२३४१२.५, ११४२९).
१. पे. नाम. बीज सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
तिथि सझाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि; बीज कहे भव्य जीवने अंतिः नित विवध विनोद रे, गाथा-८. २. पे नाम औपदेशिक दोहो, प्र. ९आ. संपूर्ण
दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १.
४२०८२. २४ तीर्थंकर परिवारसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पल्लिकापूर, पठ. सा. बुद्धिश्री. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाताजी सदा साहाय छै. दे. (२२.५x१२.५, १२४३३). २४ जिनपरिवार संख्या विचार, रा. गद्य, आदि: पहिले बोले साधुजी, अंतिः लाख अडत्तीसहजार.
"
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४२०८३.
. (#) दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से २, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजि., अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे. (२४x१२.५, ११५३०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः (-), (प्रतिपूर्ण,
"3
पू. वि. अध्ययन ३ गाथा १ तक लिखा है.)
४२०८५ (१) धर्मोपदेश व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२२.५४१२.५,
१३X२९).
व्याख्यान संग्रह में, प्रा., मा.गु., रा. सं., गद्य, आदिः आ अवसर्पणी काल, अंतिः श्रद्धाये करी सांभलो. ४२०८६. (+) आदिनाथवीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X१३, १०X२५).
आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसाय रे; अंतिः विनय करीने वीनवह ए. गाथा-५८.
४२०८७. उपधाणनी वीधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पत्र १९४२ ४. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२०.५X१३,
२९x२६).
गाथा ३०.
४२०८९. सिमंधस्वामिनी वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२३.५X१२.५, ११x२५).
३२१
उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम दिवसे आगेवन, अंतिः चोवीयारमां खपे.
४२०८८ (०) परदेसी सझाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. केवलराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. यह प्रति रचना समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१x१३, १६३२).
प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. राज, मा.गु., पद्य, वि. १९५०, आदि: सुगुरु धयान मन मे; अंति: व्रत धन परदेसी राय,
सीमंधरजिन स्तवन मा.गु, पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा करे, अंति; ते सदहु प्रभुजी, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४२०९०. पारस्य व मुनीसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. कुल ग्रं. २०, दे. (२४४१३,
१३X३८).
१. पे. नाम. पारस्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरुष परमेस्वरु, अंतिः लहीए अविचल पद
निरधार, गाथा- ७.
२. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: ऐन असाडी न्हवो अंतिः सेंचो समकित बोडे, गाथा- ९. ४२०९३. द्विकसंयोगादि भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे. (२३४११, २२४३१-५४). विचार संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. साथ में यंत्र भी आलेखित है.)
४२०९४. ऋषभजिन व मुनिसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३१२, ११X३०-३४).
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३२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१८, आदि: श्रीरिषभजिन नमुं; अंति: वीर रंगे भावथी भट्या,
गाथा-८. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिसुव्रतसामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक ही लिखा है.) ४२०९५. (+) आदिजिन स्तवन संग्रह व पजूसणपर्व थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. जाटावाडा,
प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १७४३४-३८). १.पे. नाम. आदीजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आद जिणदा परमाणदा; अंति: सुख भावे सीव भणी हो,
गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९वी, सोमवार.
ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: हो प्रीतडली लगन थई; अंति: सुख नीत सवाया, गाथा-९. ३. पे. नाम. पजूसणापर्व थुई, पृ. १आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पून्ये; अंति: सांतिकुसल० गाया जी, गाथा-४. ४२०९६. (+) रिखवदेवजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२२.५४१३, ११४३०).
आदिजिन स्तवन, मु. लाल, मागु., पद्य, आदि: हरे वीरलो पावेने; अंति: मूर्तिपूरीमा माल्या, गाथा-७, (वि. इस प्रति में
कर्तानामोल्लेख नहीं है.) ४२०९७. (#) शांतिनाथमहाराजनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १०x२८).
शांतिजिन स्तवन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति आपोरे शांति; अंति: जाशे पाप अपार जी, गाथा-५. ४२०९८. (#) नेमराजिमती स्तवन व बारेमास, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. हेदरावाद,
प्र.वि. हैदराबाद के बेगमबाजार में यह प्रति लिखी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १५४४८). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: नवनीध कोडी कल्याण, गाथा-७, (वि. इस प्रति में
कर्तानामोल्लेख नहीं है.) २.पे. नाम. बारेमास नेमजि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे स्याम; अंति: एह नवनीधि पावे रे, गाथा-१३. ४२०९९. गोडीजीरो छंद पाहढगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सोवनगीर, जैदे., (२३.५४१२, १२४२९).
पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवगा; अंति: मुगतिदायक
____ भगवती, गाथा-९. ४२१००. जिनकुशलसूरीणां अष्टप्रकारी पूजा व दादाजीरी आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे.,
(२४४१२, १४-१५४३७-४३). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरीणां अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सकलगुणगरिष्ठान्; अंति: रची शोधो
कविजनवृंद. २.पे. नाम. दादाजीरी आरती, पृ. २आ, संपूर्ण.
जिनकुशलसूरि आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली आरती दादाजी; अंति: चरणकमल बलिहारी, गाथा-७. ४२१०१. (+#) शीखामण सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२३४१२, १३४२९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३२३ १.पे. नाम. औपदेशिक शिझाय-शीयलविषये, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. पं. रंगविजय.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ऐक अनोपम शीखामण; अंति:
उदे महाजस विस्तरे, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखकने ८ तक ही गाथांक लिखे हैं.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति कीसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या
बाद में लिखी गई है. ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंतारे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक किंचित्
अंश पर्यन्त लिखा है., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४२१०२. चौत्रीसअतिसय चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. श्रीकल्याणपार्श्वजिनजी
प्रसादात्., दे., (२२.५४१३.५, २०४३३). १.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. विसलग्राम, प्रले. मु. जसराज.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमल्ली जीणंदमुं; अंति: उझल जस जिरे, गाथा-५. २. पे. नाम. चौत्रीसअतिसय चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, ८, ले.स्थल. वीसानगर. साधारणजिन चैत्यवंदन-३४ अतिशय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: तेषां च देहोद्भूतरूप;
अंति: त्रिंशच्च मीलिताः, श्लोक-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. वीसनगर.
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-९. ४२१०३.८) दिसावीगासीक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१२.५, १०४२०).
देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: श्रीथापनाचार्यजी आगे; अंति: पाठ तीनवार उचरावीजै, (वि. विधि
सहित.) ४२१०४. नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. पं. भगवान,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किनारी कटी होने के कारण पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., जैदे., (२२.५४१२.५, १३४३१). १. पे. नाम. नेमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल रंगे विनवें; अंति: जदुनाथ हेजे हलजोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: अविचल अक्षय
राज, गाथा-७. ४२१०५. (-#) नोकारनो छंद व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६५, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. आडीसरनगर, पठ. रंगजी; अन्य. संगा सोनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेव प्रसादात्. पत्रांक-१अके हासिए में स्त्री का रेखाचित्र है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १३४२४). १.पे. नाम. नोकारनो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो उठो भवि; अंति: वरदायक लाधो वदे,
(वि. प्रतिलेखकने मात्र प्रथम गाथा तक ही गाथांक लिखा है.) २.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मंगलाचरण का प्रथम
__ श्लोक भी अपूर्ण लिखा है., वि. एकही श्लोक को अलग-अलग प्रतिलेखकने दो बार लिखा है.) ४२१०७. (#) जिनेंद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१३, १०४३४).
साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वज्ञ सर्वहित; अंति: गुणान् गुणिनो नयंति, श्लोक-९. ४२१०८. (+#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२२.५४१२.५, १७४३४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रकारी पूजा, पुहि.,सं., प+ग., आदि: वरगंधपुप्फअक्खेहि; अंति: अर्घं जजामि स्वाहा, अध्याय-८. ४२१०९. (#) सुपासजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१२, १०४२६). सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसुपास जिन बंदिई; अंति: करे आनंदघन अवतार,
गाथा-८. ४२११०. पोसारा अठारा व कायोत्सर्ग १९ दोष विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., ., (२२.५४१२.५, ११४५०). १.पे. नाम. पोसारा अठारा दोष, पृ. १आ, संपूर्ण.
पौषध के १८ दोष *, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: सरीर की सोभा; अंति: सूधपोसा होता है. २. पे. नाम. १९ कायोत्सर्ग दोष, पृ. १आ, संपूर्ण.
१९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: गोडा उपरे पग; अंति: राखतो दोष लाग. ४२१११. (4) उवसग्गहरं व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, ., (२३४१२, २९४२४). १.पे. नाम. उवसगहरं, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. लाली, प्र.ले.पु. सामान्य.
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: ते सव्वे उवसमंति मे,
__ गाथा-१७. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२११३. (+#) नेमजीन स्तवन व उदेस सीज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. किनारी खंडित होने के कारण
पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १३४३६). १.पे. नाम. नेमजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहवा; अंति: हिवै पुरोहमारी आस, गाथा-७,
(वि. इस प्रति में कृति रचना स्थल व वर्ष नहीं लिखा गया है.) २.पे. नाम. उदेस सीज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटी मे भटकतारे; अंति: भइया रहसी सहुरी
लाज, गाथा-१५. ४२११४. (+#) पार्श्वजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १३४२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पं. नायकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखि जिनवंदन; अंति: नायक सिवपुरी आसीरे, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांति जिणंद दया; अंति: सीवपुर नायक सेव, गाथा-९. ३. पे. नाम. सिद्धिगीरी स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, पं. नायकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदि जिनेश्वर; अंति: भवी एह गीरी रंगीला,
गाथा-११. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पृ. २आ, संपूर्ण.
__ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपंचासर देव कृपा; अंति: जयो जिन पासजी, गाथा-५. ४२११५. अष्टमीनी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे.,
(२२.५४१२.५, ११४३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३२५
अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु, पद्य, आदि; अनुम जिन चंद्रप्रभू, अंतिः राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ४२११६. पजुसणनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २३१२.५, १३X३२).
पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु वीरजिण विचारी, अंतिः सेवो दान दया मनोहारी, गाथा- १२. ४२११७. (+#) प्रत्याख्यानसूत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २४४१२, १३४३३-४०).
१. पे नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिर इ.
२. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि नमुक्कार पोरिसि, अंतिः हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा- ३. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण विधि, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
जैनविधि संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. १४ नियमग्रहण व पच्चक्खाण पारने की विधि है.) ४२११९. सामाइक अधिकारे चंद्रलेहा चतुःप्पदी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६-२५ (१ से २५) = १ ले स्थल, रायपुर, प्र. वि. श्रीचिंत्यामणी पार्श्वनाथ प्रसादात् जैदे (२३४११.५, १६x४०-४४).
"
चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: भुवनपति हुवें तेंह, ढाल - २९, गाथा-६२४,
(पू.वि. अंतिम ढाल मात्र है. )
४२१२०(१) वीरमाणीभद्रजीनो छंद व ४ मंगल पद, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x१२.५, १५X३०).
१. पे. नाम. वीरमाणिभद्रजीनो छंद, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. भरुच, प्रले. मु. अभय.
माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनी पाय; अंति: आपे मुझ सुख संपदा, गाथा-४०. २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भुपति सोहेइ; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखकने पांच गाथा की १ गाथा गिनी है.)
४२१२२. (+) धूलभद्रऋषरो नवरसो दूहां सहित, संपूर्ण, वि. १९९२, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल, इंदोर, प्र. मु. सूकलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५X१२.५, २३x४५).
3
स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा, अंति: मनोरथ वेगै फल्या रे, ढाल - ९.
४२१२३. (#) शनिश्चर छंद व शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है. दे. (२४४१३, १५४३३)
१. पे. नाम शनिश्चर छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदण जग जयो, अंति: देव बखाणीये जी वली, गाथा- १४.
२. पे नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण,
क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि शांति जीनेसर स्मरीये अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा २ तक लिखा है.)
४२१२४. आलोयणा, संपूर्ण, वि. २००१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पालणपुर, पठ. मु. मांगीलाल;
प्र. मु. मांगीलाल मेवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखक ने ९ मुनिवरों से विराजना हुआ ऐसा लिखा है. पत्रांक
२ अंकित नहीं है. दे. (२३४१२.५, १७४३२).
"
आलोयणापच्चीसी, मु. जडाव, रा. पद्य वि. १९६२, आदि: अहो नाथजी पाप आलोड, अंति: नाथजी जोडुं हाथ जी,
गाथा - २५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२१२५. (+#) राणादेवी को चोढाल्यो व नेमराजल गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. राणादेवी को चोढाल्यो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंति चोवीसी आगैहुई; अंति: पासी भवनो पार, ढाल-४. २. पे. नाम. नेमराजल गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. यशोदेव, मा.गु., पद्य, आदि: कलाली हे ते म्हारो; अंति: जसोदेव कह सीख्य, गाथा-९. ४२१२७. (+-#) मुनएकादसी गुणनो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १२४२७).
मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ४२१२८. (#) शनिश्चर चोपड़व सुभाषित गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ,
प्रले. पं. अभयकुंवर; पठ. श्रावि. जीबा माता; अन्य. वजकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२.५, ३२४२१). १. पे. नाम. शनिश्चरनी चोपइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस्वति स्वामिन द्यो; अंति: ललितसागर एम
कहे, गाथा-२७. २.पे. नाम. सुभाषित गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), श्लोक-१. ४२१२९. (+#) दशाणभद्रनी शझाय व शारद स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२.५, ११४२८). १. पे. नाम. दशाणभद्रनी शझाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. रंगविजय (गुरु पंन्या. रूपविजय), पे.वि. ऋषभदेव
प्रसादात्.
दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाई सेवक, अंति: लालवजय निशदिश, गाथा-१०. २. पे. नाम. शारद स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. रूपविजय (गुरु मु. धन, तपगच्छ); पठ. पंन्या. रंगविजय (गुरु
पंन्या.रूपविजय).
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति नियमेन, श्लोक-९. ४२१३०. (#) गुरुस्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १५४२५-३४).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२१३१. (+#) सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक कृष्ण, ७, सोमवार, जीर्ण, पृ. २,
ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. सरूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११.५, १९४३६-४०). सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायंत
उद्दाह; अंति: सिज्झति महतसिद्धिओ, गाथा-१२, (वि. साथ में यंत्र भी आलेखित है.) सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा;
अंति: रहस्यभूतमित्यर्थः. ४२१३२. (#) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, १३४३४). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: (-),
(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४२१३५. (+#) आदिजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२२४१२, १४४३०-३५). १.पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदेसर जगदीसरु रे; अंति: तुं प्राण आधार, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलग अजित जिनंदनी; अंति: रूपनो जिन अंतरयामी. गाथा-५. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभवजिन वंदना रे; अंति: मोहन कवि रूपनो रे लो,
गाथा-५. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु बलिहारी ताहरी; अंति: घणु दीधी भेट जगीस, गाथा-५. ५.पे. नाम. सुमतिजिन गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिनंद तुं पद; अंति: जनजी जगदाधार हो, गाथा-५. ६.पे. नाम. सांतिनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सनेही सांति; अंति: मृगलंछनथी सो छांहि, गाथा-७. ७. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाला आज अनंत; अंति: हवै रूपारूपी देवरे, गाथा-७. ४२१३६. औपदेशिक दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२४४१३, १३४२७-३४).
जैनदहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ४२१३७. (+) पोसा विध, संपूर्ण, वि. १८६७, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पत्र के हासिए में दो बार २६ संख्या अंकित है., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२६-२९).
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: मुहपती पडीलेहवी. ४२१३८. (+#) जोबनपिचीसी, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन कृष्ण, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१३, ११४३५). यौवनपच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: जोबनियानो लटको; अंति: सिष्य कहे खोडिदास जो,
गाथा-२५. ४२१३९. (#) जंबूस्वामी घउली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १०४३४).
जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीयो मुनिराय; अंति: सुणी पामे शिवराज, गाथा-७. ४२१४०. ४ शरणा, संपूर्ण, वि. १९२७, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, १२४२८).
४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मूजने च्यार शरणां हो; अंति: तो हुं भवनो पारो जी,
अध्याय-४, गाथा-१२. ४२१४१. (+) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२, ११४२७).
सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल; अंति: सोइ पूजो सरस्वती, गाथा-१४. ४२१४२. समेतसीखर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१३, १२४३०).
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो हे सहेली जावा; अंति: एछे परम निमत्त,
गाथा-१०. ४२१४३. (+-#) श्रमण सझाय व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६४, फाल्गुन शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३.५, १०x२२). १.पे. नाम. श्रमण सझाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु तणि परिक्षा अंति: रत्नविजे इम बोले जी गाथा २४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि ब्रैं कि धपमप, अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४.
४२१४४. (+) नवपद स्तुति चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१२.५, १२x२८). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि प्रा. मा.गु, पथ, वि. १८वी, आदि उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण, अंतिः सिद्धचर्क नमामि गाथा - १०.
४२१४६. (+४) पार्श्वजिन फाग व शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, संपूर्ण बि. २०वी, मध्यम, पू. १ कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५ ११५३१).
,
१. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन होरी, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेले रे होरी, अंति: कीनी दीनोनाथा दयाल, गाथा-१०.
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण,
शत्रुंजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि; चालो सखी वीमलाचल, अंतिः भणे जनम जनम तोरो दास,
गाथा-२७.
२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.
गाथा-४.
४२१४० (+४) पार्श्वजिनराज निसाणी व पंचमी स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५. प्र. वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२४.५x१२.५, १३X३९).
१. पे नाम, पार्श्वनाथ जिनराज निसाणी, पृ. ९अ- ३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन निसणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सूखसंपति दायक सुरनर, अंति: जिनहर्ष गयंदा हैं,
पदसंग्रह *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
३. पे नाम, औपदेशिक सवैयो, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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सवैया संग्रह, पुहिं पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया- १.
"
४. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे, अंति: पांचमो भेदरे,
गाथा-५.
५. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
कुंबुजिन स्तवन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि जीनजी मोरा रे, अंतिः पचने मंगलमाल, गाथा- ७. ४२१४९. (+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित दे. (२४.५४१३.५, १६x४६).
""
१. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक, अंति: भवत्युत्तमसंपदः, श्लोक - ९.
२. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र. पू. १-१ आ. संपूर्ण.
५ परमेष्ठि स्तोत्र, मु. जिनदत्त शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: सुद्धधम्मंमि निरयाणं, गाथा-१२. ३. पे. नाम. मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजाक्षरवर्ग, अंतिः पत्तिर्येयसत्वः, श्लोक ७.
४. पे. नाम, मंत्राधिराजस्याक्षराणामंमेषु स्थापना स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः नादाग्रबिंदुतलचंद्र अंतिः पदाश्रयिणो भवंति श्लोक-६.
५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३२९ प्रा., पद्य, आदि: वनंतो पासजिणो; अंति: पसाहणी होउ, गाथा-२. ६. पे. नाम. कार्यशुभाशुभकथन मंत्र संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. मंत्र का आम्नाय भी संलग्न है.) ४२१५०. (#) राजुलनी लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. उगरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३.५, ११४३२).
नेमराजिमती लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल खडी रंगमोहोले; अंति: जाओ कुंडी माआ मेरी, गाथा-६. ४२१५१. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. वनेचन; पठ. श्रावि. रलीयात, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १८४३१).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणेगसिद्धा रिसहेय, गाथा-५६. ४२१५२. छिनूंजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कस्तूरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १७४४९). ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चउवीसे वंदु; अंति: सदा आणंद जय
जयकार ए, ढाल-५, (वि. इस प्रति में कर्ता का उल्लेख नहीं है.) ४२१५३. (+#) पंचमी स्तवन व तपग्रहणविधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्र २ पर पत्रांक
अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १९४३६). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरु पाय; अंति: भगती
भाव प्रसंसिओ, ढाल-३, गाथा-२४. २. पे. नाम. तपग्रहण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनविधि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. येवंताजीरी सीझा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजीणंद वांदीने; अंति: बंदु तेहना पाया, गाथा-१७. ४. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमतै सूर जी, गाथा-५. ५. पे. नाम. सरस्वती चूर्ण, पृ. २आ, संपूर्ण..
औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२१५४. (#) श्रेयांसजिन व नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. पत्रांक
अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १५४३३). १.पे. नाम. श्रेयंसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयांसजीन सुणो; अंति: मोहन वचन प्रमाण, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजीन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोख अमुल झरूखा; अंति: देव कहे
हितकारी, गाथा-७. ४२१५५. (#) शांतिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, लिख. लीलाचंद गंधप,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संति जीनेसर मूरति; अंति: कंतिविमल जस गाजै जी, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीजिण महाराज बहोत; अंति: पं शिर पर धारै, गाथा - ७.
४२१५६. (+) हीयाली सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३ फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पू. १, प्रले. मु. बखता (गुरु उपा. नैणसी); गुपि उपा. नैणसी (गुरुग, पुन्यसारजी) ग. पुन्यसारजी (गुरु पं. मतिविमल) पं. मतिविमल अन्य आ. कीर्तिरत्नसूरि प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३.५x१२.५, ५४३१).
आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसई छै कांबली, अंति: कवि देपाल वखाणइं, गाथा-६.
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आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वरसई कांबल कहता; अंति: इति कविश्वर तत्वं.
४२१५७. (+#) अस्सज्झाइ टालण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x१२, १५X४२).
जैनविधि संग्रह", प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-).
४२१५८ (०) पट्टावली, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३x११.५, १२X३३).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: चोथा आरा मै वरस; अंति: जेसीघदे तपोवर दीधो.
४२१५९. (+) स्नात्र व फूलपूजा दोहा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे. (२४.५x१२.५, १८४३५).
""
१. पे. नाम. स्नात्र, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण.
स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: प्रथम थाल मध्ये; अंति: भगते विघन नीवारे, कुसुमांजलि-५.
२. पे. नाम. फूलपूजा दोहा, पृ. ४अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: मोगर लाल गुलाब, अंतिः सवी उपद्रव ध्रुजै, गाथा-४.
४२१६० (+) ऋषयतीशी संपूर्ण वि. १९७४ वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, फलोधीनगर, प्रले. मु. लाभचंद महात्मा ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१२.५, १४४४४). अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदीजीणंद, अंति: जीनहरख नम कर जोड,
गाथा-३२.
४२१६१. (०) सांतिनाथजीनु व रिषभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, ९४३३).
"
१. पे. नाम. सांतिनाथजीनु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में किसी प्रतिलेखक द्वारा गुर्जर लिपि में लिखी गई है. शांतिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जीनेसर साहीब, अंति: करतां मंगल मालो रे, गाथा- १३. २. पे. नाम रिषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु ऋषभस्वामि अंतर; अंति: हियडे हर्ष न माय रे, गाथा-६. ४२१६२. (+) चेलणासती सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखकने अंत
में सवैया का प्रारंभिक कुछेक अंश लिखकर छोड़ दिया है. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४१२, १२४३२).
"
१. पे. नाम. चेलणासती सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने वलता; अंति: भव तणो पार, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: सिधारथना रे नंदन, अंति: वीनय गुण गाय, गाथा-५. ४२१६३. (d) इरियावही सीझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४१२.५,
१५X३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सनमुख रहि; अंति: वरते एकवीस वरस
हजार, गाथा-१४. ४२१६४. (+#) अष्टमी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'कीमत पईसा ४' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १२४३४).
अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी दिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४,
ग्रं. २०. ४२१६५. (-#) बीजतिथि आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं
है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १३४२९). १. पे. नाम. पंचतिर्थि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २.पे. नाम. बीजनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: पुर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्,
श्लोक-४. ४२१६६. (#) माहावीरजी व ऋषभदेवजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल
पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १२४३२). १.पे. नाम. माहावीरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञान, पुहि., पद्य, आदि: नाथ केसे जंबुको; अंति: किम संसार भमायो, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभदेवजी तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: भवि सेवो रे देव; अंति: जतन पद शिवपुर को, गाथा-९. ४२१६७. (+) शांतिकर स्तवन कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११.५, ११४५५).
संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ए स्तवन त्रिकाल; अंति: कार्य चिंतवे ते होइ. ४२१६८. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१३.५, ११४३०).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ४२१६९. (+) कलंकी स्वाध्याय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४२८-३०).
पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सुणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ तक है.) ४२१७०. (+#) माणिभद्रवीर आरती आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. जावाल, प्र.वि. पत्र
१४२. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, ३१४२२). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर आरती, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित.
मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: जय जय जग निधी; अंति: पूरे सहु आस्या, गाथा-७. २. पे. नाम. धनासालभद्र सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष कृष्ण, ११, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. उत्तम.
धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजिया जोरावर जे; अंति: गिर जइ वांदयै, गाथा-७. ३. पे. नाम. अनाथी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, ९, ले.स्थल. जावाल.
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३३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक; अंति: एहवो हुं अनाथि कै,
गाथा-२९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, ९, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में प्रतिलेखन विषयक 'माहा
वद ९ घटी उरे हती' इस प्रकार लिखा है.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चाल चाल चाल रे कुअर; अंति: प्रभुतोने नमुरे, गाथा-५. ४२१७१. (#) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १०-१२४२२). नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी तोरण आवीकंत पाछा; अंति: नेम अनुभव कलीयारे,
गाथा-१५. ४२१७२. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३.५,
१५४३८). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन द्वात्रिंशतिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं जगद्देवं; अंति: शश्वदन्वेषणीयम्, श्लोक-३२, (वि. इस प्रति में
कृति रचनाकार के विषय में 'श्रीचिंतामणि द्वात्रिंशतिका श्रीधरणेंद्र रचिता' इस प्रकार लिखा है.) २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: शिवश्रियः केलिविलास; अंति: तस्य करे कंदुकायते, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पार्श्वस्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीस्तंभनस्तंभन; अंति: शरणं मम यच्छतु,
___ श्लोक-११. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासनाहं विसहरव; अंति: संथवणं पासनाहस्स, गाथा-७. ५.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा., पद्य, आदि: जस्स फणिंद; अंति: कमलप्पह गुरु पसायाओ, गाथा-७. ६. पे. नाम. चिंतामणिविशेष यंत्राम्नाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
चिंतामणियंत्र आम्नाय, सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीपार्श्व; अंति: मद्यापिकाले स्फुरति. ४२१७३. (4) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र व लघुपंचम स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ११४२४-२८). १.पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८९७, चैत्र कृष्ण, ७, बुधवार,
ले.स्थल. श्रीपल्लिकानगर, प्रले. पं. कस्तूरचंद.
संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अप्पाणं वोसिरामि. २.पे. नाम. लघुपंचम स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचिम तप तुम; अंति: पांचमो भेद रे,
गाथा-५. ४२१७४. चंदनबालानि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२.५, १२४३३).
चंदनबालासती सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरस्वतीनारे; अंति: श्रीशुभवीर जयकारो जी, गाथा-१६. ४२१७५. (#) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, २८४३१-६५). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. उत्तराध्ययनादि योगोद्वहन तपविधियों के
यंत्रादि)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३३३
४२१७६. (+४) जिनप्रतिमास्थापना स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, पर श्रावि फूलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीमाणभद्रजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१३.५, १२४३१).
पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो, अंति: जिनप्रतिमासुं नेह गाथा - ७.
४२१७७, (+४) उवसग्गहरं स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३१२.५, ११३०).
१. पे नाम, उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण,
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पासं० ॐ अतिः भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा - १२.
२. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र की भंडार गाथा सह विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
,
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडार गाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीपास विस, अंति अड्ड महाधीस्वरं वदे, गाथा- ४.
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडार गाथा की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २अ- ३आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. साथ में मांत्रिक गाथाएं एवं यंत्र भी हैं.) ४२१७८. मोन्यएकादशीनी स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखन कीमत के विषय में 'लखाई त्रण पईसा' इस प्रकार लिखा है., दे., (२३.५X१३.५, १३X२९).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ, अंतिः संघना विघन निवारी, गाथा-४,
ग्रं. १७.
४२१७९. (+) पंचसंवच्छर विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २३१२, १६x४०). विचार संग्रह *, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
विचार संग्रह का टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२१८० (+४) स्थानांगसूत्रे संवत्सरविवर्णनम् सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१२, ५x२७).
स्थानांगसूत्र-संवच्छरविचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्म, आदि लक्खणसंवच्छरे पंचविह अंतिः तमाहु अभिवयि जाणई, गाथा-५, संपूर्ण.
स्थानांगसूत्र - संवच्छरविचार गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नक्षत्रादि संवत्सर, अंतिः वर्णव को छे, संपूर्ण. ४२१८१. (+#) इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. जीतश्री अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. किसी विद्वानने पेन्सिल से प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाने की कोशिश की है. संख्यावाची शब्दों के ऊपर संख्यादर्शक अंक अंकित हैं, संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे. (२४४१३, १५४३३)
,
इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सनमुख रहि; अंति: वरते एकवीस वर
हजार, गाथा - १४.
४२१८४. (४) अरणिकमुनि व नवपद सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५x१२.५, १३४२५).
"
१. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या अंतिः वंछित फल सिध्यां जी, गाथा- १०.
२. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
मु.
. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंति: मोहन सहज सभाव, गाथा - ९. ४२१८५. (+४) जिनकूसलसूरीजीनी सीजाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २३.५X१२, १५X३४).
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३३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनकुशलसूरि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीव्रधमान जिनेसरु; अंति: तणा एम क्षमाकल्याण,
गाथा-११.
४२१८६. (#) वृद्धस्थापना कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, २७४१६).
स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापनाविधि; अंति: भवत्येवं तदप्यहो. ४२१८७. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १२४३८). समवसरण स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारि वीनतडी अवधारो; अंति: जिनवंदण ए भाष्य,
गाथा-२०. ४२१८८.(+) जिनवज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १६४३५).
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह, अंति: चूडामणिरेष जैनो, श्लोक-२४. ४२१८९. (+#) सिद्धाचलजी वृद्धस्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ११४२२-२६). १.पे. नाम. सिद्धाचलजीवृद्ध स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु जी; अंति: समैसुंदर गणि भणै,
गाथा-३२. २. पे. नाम. देसावगासी लैण विधी, पृ. ३आ, संपूर्ण.
देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ३. पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: (-), (पू.वि. सव्वओ चोव्विहे पो० तक है.) ४२१९०. (+#) रात्रीभोजन सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १३४२६). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पून्य संजोगे नरभव; अंति: रात्रीभोजन निवारौ,
गाथा-१३. ४२१९१. (+#) गोत्रोत्पत्ति समय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १०४४१).
गोत्रोत्पत्ति समय विचार, सं., गद्य, आदि: बापणा नाहटा गोत्रे; अंति: श्रीओसीया उत्तरेषो. ४२१९२. (#) रोहिणतपस्तवन व औपदेशिक हो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२४.५४१२.५, २१४६३). १. पे. नाम. रोहिणतप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणी; अंति: सकल मन आस्या फली,
ढाल-४. २. पे. नाम. औपदेशिक हो, पृ. १आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४२१९३. (+#) यंत्रालेखन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. प्रथम श्लोकगत संख्यावाची
शब्दों के ऊपर अंकदर्शक संख्या अंकित की है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १६x४५).
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२१९७. अजियरसनिस्ताति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १२४३६).
सिर
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३३५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोलई अर्थ संभाल; अंति: श्रीसंघ विघन निवारि,
गाथा-४. ४२१९८. (#) च्यारसरणानो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ११४३८). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने चार सरणां होजो; अंति: हुं भवनो पार जी,
अध्याय-४, गाथा-१२. ४२२०१. (+#) मौनएकादशीगणणुगर्भित स्तवन, शांतिनाथ स्तुति व २४ जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल
पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १५४२२). १.पे. नाम. मौनएकादशीगणणुगर्भित स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख कृष्ण, ३०, पे.वि. हासिए में १५०
कल्याणक गणणा विधि दी है. मौनएकादशीपर्व स्तवन-गणणागर्भित, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीसंखेस्वर; अंति: उदय लहे मंगलमाल,
गाथा-१९. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुती, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १, शनिवार. शांतिजिन स्तुति, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तज लवेंग जायफल एलची; अंति: तुठी आपे सासन सामनी,
गाथा-४. ३. पे. नाम. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभूने वासु; अंति: नय वंदे
नसदीस, गाथा-१, (वि. तीन गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४२२०२. (#) नवकारगुणवर्ण साध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पठ.सा.साहबकवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र खंडित
होने से पत्रांक पढा नहीं जा रहा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१३, १४४२८). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: एह छे सिद्धस्वरूप, गाथा-५,
(वि. पत्र की किनारी खंडित होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ४२२०३. (+#) पोषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८८५, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मुबेइ बिंदर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १४४४१).
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: इदं कथानकं कृतं. ४२२०४. (#) पंचमी लघुस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, ९४२५). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमे भेद
रे, गाथा-५. ४२२०५. (#) जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १५४३७).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२२०६. (#) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, ८४३७).
पार्श्वजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: आज हमारै हरख वधाई; अति: प्रभुजी की गाइ
रे, गाथा-५. ४२२०८. (+#) अष्टमीतिथि व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १२४३१). १. पे. नाम. अष्टमीना स्तवन-ढाल ४, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि (-) अंति संघने कोड कल्याण रे, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. अंतिम बाल मात्र है.)
२. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासवपुजीत वासुपूज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ४२२०९. (+) छआवस्यकविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. भक्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसीने 'साधवीजी महाराज भक्तिसरीजी' इस प्रकार लिखा है., संशोधित, दे., ( २४१२, ११४३९).
६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन चींतवी, अंति: तेह सिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा ४४.
४२२१०. (#) औषध संग्रह व माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१३.५, १२X३२).
१. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. १अ. संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
3
""
२. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. १आ, संपूर्ण.
יי
माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तत सेवित, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ८ तक लिखा है.) ४२२११. (+४) रोहिणीतपविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२३.५४१२.५, ११x२९).
3
रोहिणीत पविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी, अंति: वीरविजयौ जयकरौ, ढाल ४. ४२२१२. (४) मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. १९६१ कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पू. ३, प्रले. नरभेराम उमीयाशशंकर , प्र... सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१३, १२X३५).
मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदिः श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः .
४२२१३. (+#) कायस्थित पनवणानो १८ पद व प्राणातिपातादि में वर्णादिविचार कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१२, १८x४३).
""
१. पे. नाम कास्थित पनवणानो १८ पद, पृ. १अ ४अ संपूर्ण वि. १८८४ वैशाख शुक्ल, २ शनिवार, ले. स्थल, सरवाड,
प्रले. सा. हरकवर (गुरु सा. बधुजी); गुपि. सा. बधुजी, प्र.ले.पु. सामान्य.
प्रज्ञापनासूत्र - कार्यस्थिति विचार, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि जीव गइ इंदिय काए अंतिः वेउनो अतरो नथी,
२. पे. नाम. प्राणातिपात आदि में वर्णादि विचार कोष्टक, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४२२१४. (०) जिनकुशलसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, दे. (२३४१२.५, ६५२१).
जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. खेम, पुहिं, पद्य, आदि; चित्त में आनंद आन, अंतिः खेमहु की तसलीम है, गाथा ४. ४२२१५. (+#) माहवीरजीन पंचकल्याणक तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२३.५X१२.५, १५X३३).
महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक शिवकरण; अंतिः लहे अधिक जगीस ए, ढाल ३.
४२२१६. (+) माणिभद्रजीनी गविंस्तुति, संपूर्ण, वि. १९५५, भाद्रपद शु. १३. सोमवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल आगलोड, प्र.पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि). प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. सुमतीजिन प्रसादे श्रीकल्याणपार्श्वजिन प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५X१२.५, १७३५).
माणिभद्रवीर छंद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: वाणी वीणा पाणी वरदा; अंति: गावे पामे मंगलमाल, गाथा - २४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३३७
४२२१७. (+०) पजूसणनी थोय व सामाइयसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१२.५, १३X२७).
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१. पे. नाम. पजूसणनी थोय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. सरदार, प्रले. पं. जीतविजय.
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि वरस दिवसमा सार, अंतिः जणंदसागर जयकार,
गाथा-४.
२. पे. नाम. सामाइय, पृ. १आ, संपूर्ण.
सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: सामाइअवयजुत्तो जाव, अंति: मिच्छामि दुक्कडं, गाथा- ३. ४२२१८. () हलिचालि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे.,
"
(२३.५X१३, १२x२५).
!
औपदेशिक हरियाली समस्यागर्भित, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरुष दुजो नपुंसक, अंति: सजनने बलिहारि, गाथा- ६.
४२२१९.
(+#) दसपचक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२४१३, १२x२० ).
१० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु. पथ, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंतिः रामचंद तपविधि भणे, ढाल -३, गाथा-३३.
४२२२०. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६८, आषाढ़ शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि; पठ मु. लालचंद ऋषि (गुरुमु. अनोपचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२४१३, १७३७).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४.
४२२२१. (#) आदिजिन आदि होरी संग्रह व उतराध्ययण स्वाध्याय-अध्ययन २६, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२.५, ९३१).
१. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. रंग, पुहिं, पद्य, आदि अपने रंग से रंग दे अंतिः रंग कुं अमृत पद दे, गाथा-४.
२. पे. नाम. अनंत जिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.
अनंतजिन होरी, मु. धर्मचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मनडो बस कर लीनो; अंति: न होवे पर आधीनो, गाथा-५. ३. पे. नाम. उतराध्ययण स्वाध्याय- अध्ययन २६, पृ. १आ, संपूर्ण.
उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण
४२२२३. (+) राजुलरहनेमी सझाय, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे.,
(२३.५X१२.५, ११x२७).
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि; अंति: नीरमल सुंदर एह रे, गाथा - ९. ४२२२४. (+) सरस्वती अष्टक, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है अतः पाठ की अपूर्णता दर्शान
हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है. संशोधित, जै, (२२४११.५, १४४३४-३६).
.
सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निति नमेबी जयपती, गाथा-९, (पू. वि. गाथा ३ प्रारंभिक अंश तक नहीं है.)
४२२२५. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४४१२.५, १०x३६).
शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः सुगो शांतिजिणंद, अंतिः इम उदवरतननी वाणी, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखकने अंतिम दो गाथा के गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४२२२७. (#) पार्श्वनाथजीरी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२३.५४१२, १३x२६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता,
श्लोक-४. ४२२२८. (#) मौनएकादशीगणणु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वांकानेर, प्रले. केशवजी दवे; पठ. श्रावि. पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३.५, १२४३७).
मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरी प्रणमुंजीन;
__ अंति: जसविजय जय जयशिर लहि, ढाल-१२. ४२२२९. (4) पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १९२३, आषाढ़ कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. निबली, प्रले. मु. पुनमचंद्र
ऋषि (गुरु मु. अजबचंद ऋषि); गुपि.मु. अजबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन समय के विषय में प्रथम प्रहरै लिपीकृत्वा' इस प्रकार लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ११४३५). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरख गावंदा है,
गाथा-२८. ४२२३०. (#) नेमिजिन चैत्यवंदन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२४४११.५, ११४३६-४०). १.पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिसर तीर्थनाथ; अंति: प्रणमै श्रीजिनचंद्र, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की
एक गाथा गिनी है.) २.पे. नाम. नेमिजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करुणावंत कृपाल स्वाम; अंति: प्रणमै श्रीजिनचंद, गाथा-२. ३. पे. नाम. नेमिजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिणंद आणंद कंद; अंति: श्रीनेमीसर नाम, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन पदम्, पृ. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अंही कूर्मयुगं करौ; अंति: नीक्षध्वमेनं जिनं, श्लोक-१. ५.पे. नाम. साधारणजिन नमस्काराणि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ६. पे. नाम. ऋषभ स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभि नरेंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण,
गाथा-३. ७. पे. नाम. शांत स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर सांतिनाथ; अंति: लहियै कोडि कल्याण,
गाथा-३. ८. पे. नाम. नेमि स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमौ नेमि; अंति: अहनिसि करै प्रणाम,
गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरुसादाणीय पासनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ४२२३२. (+) वृर्द्धशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१३.५, ११४२७).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनं. ४२२३३. (#) समवशरण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१३.५, ११४३२).
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पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसासन सेहरो; अंति: पाठक
धर्मवर्धन धार ए, ढाल-२, गाथा-२९. ४२२३४. (+#) माणभद्रजीरो लघुस्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, १२४३२).
माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणभद्र सदा सिमर; अंति: मुनि इम सुजस कहै, गाथा-९. ४२२३५. (#) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १७४४२-४७).
श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१६. ४२२३६. (+#) वज्रस्वामी हरीआलीसह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, गु., (२३.५४१२.५, १२४२८).
वज्रस्वामीगहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे मे कौतिक; अंति: शुभवीरने वालडारे, गाथा-८.
वज्रस्वामी गहंली-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वज्रस्वामी छ मासना; अंति: वल्लभ वचन छे. ४२२३७. (+#) संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १४४३०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: निच्चलं तस्स, गाथा-२७, (वि. अन्य प्रक्षिप्त गाथाएँ भी
सम्मिलित हैं.) ४२२३८. (+#) श्रावक देवसीराईप्रतिक्रमण विधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है अत: पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, ११४२८-३०). १.पे. नाम. श्रावकदेवसीराईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
प्रतिक्रमणविधि संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. देववांदवानी वीधी, पृ. २अ, संपूर्ण.
देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
___ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ४२२३९. (2) आत्म भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. उमेद; पठ.सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३.५, १२४२३).
आत्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: भगवान त्रैलोक्य; अंति: निरंतर आत्माई भाववी. ४२२४०. (+#) वीरनुं पालणु व आरति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १३४४१). १.पे. नाम. वीरनुपालj, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन हालरडूं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला झूलावे; अंति: दीपविजय कविराज,
गाथा-१७. २. पे. नाम. ऋषभ आरति, पृ. २आ, संपूर्ण.
आदिजिन आरती, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जय नाभि नृप नंदन; अंति: अंतरजामी सेवक सुखदाई,
गाथा-६, (वि. कृति के प्रारंभ में 'श्रीसिद्धाचलतीर्थे सेठ खीमचंद मोतीचंदेन स्थापितं प्रासादे श्रीऋषभदेवजी।
श्रीचक्रेश्वरी आगल आरति उतारवाने २ आरती लखी छै' इस प्रकार लिखा है.) ३. पे. नाम. चक्रेसरीनी आरती, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
चक्रेश्वरीदेवी आरती, मा.गु., पद्य, आदि: मृगपति वाहन गरुडासन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
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३४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४२२४१. (+*) माहावीरस्वामीना पांच बधावा, संपूर्ण वि. १९५७ श्रावण अधिकमास शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. अमदाबाद, प्रले. श्राव, माणेकचंद खोडीदास, पठ. श्रावि, चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २४.५X१२.५, ११३२).
महावीर जिन स्तवन ५ कल्याणकवधावा. मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदि: बंदी जगजननी ब्रह्माण, अंतिः तीरथफल माहाराज वाला, ढाल ५.
४२२४२. (#) कर्पूरचक्रतो देशेषु वर्षज्ञानं, संपूर्ण, वि. १८९३, पौष कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. बिरांटीया, प्रले. मु. कीर्तिसौभाग्य (गुरु मु. अनोपविजय); गुपि. मु. अनोपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. द्वितीय पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है.. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२२४११.५. १३४२६-३६).
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"
कर्पूर चक्र, सं., पद्य, आदि: अथ कर्पूरचक्रेण; अंति: प्रजमच्यत्येवाशिता, श्लोक-३०, (वि. कृति अंतर्गत यंत्र भी
आलेखित है.)
४२२४३. (+#) पल्ली विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
है. वे. (२१.५४१२, १७४४०).
"
१. पे. नाम. पल्ली विचार, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
पंन्या. हीरकलश, मा.गु, पद्य, आदि: पय प्रणमी हरखप्रभुः अंतिः ए पर उपगार, गाथा-५१. २. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
मु. हेमानंद, मा.गु., पद्य, वि. १६२१, आदि: श्रीहर्षप्रभु गुरु; अंति: जिम गुरुमुख सुणी, गाथा-२२. ३. पे. नाम. खरतरगच्छ व ओसवालजाति उत्पत्तिवर्णन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम गछ नहीं कोई, अंतिः (-) अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२२४४ (४) रावलिआ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२४.५४१०.५,
१२X४४-४७).
नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंतिः केवलनाणं च पंचम गाथा ५१.
5
४२२४५. (+१) भगवत्यंगेकचत्वारिंसत्सतक गाथा संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X१२.५,
१७x४९).
भगवतीसूत्र - बीजक, प्रा., पद्य, आदि: रायगिहे चलणं दुक्खे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक - २१ तक लिखा है.)
४२२४६. (४) श्रेणिकराजाअभयकुमारादि संबंधे पांचसाधुनी चोपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ४, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथजी . मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१२.५, २५४५४).
५ साधु चौपाई - अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जगगुरु प्रणमु वीरजिन, अति: संघ उदय सुखकार, ढाल - १२.
४२२४७. शत्रुंजय आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, गु., (२३.५X१२.५, १२x२४).
१. पे नाम, शत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण,
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानशीतल, मा.गु, पद्य, आदि जागोने मारा अंतरजामी, अंति: गुण निष्पन्न महंत रे, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमनाथजीनुं स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानशीतल, मा.गु., पद्य, आदि: बालब्रह्मचारी जिणंद, अंति: अंतर आतम पाइ रे, गाथा - ११. ३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथजी अर्ज उचर, अंतिः नपति तने वंदना करूं, गाथा-४.
४. पे. नाम. वीरजिनना चौद स्वप्ननुं स्तवन, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण.
त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: राय रे सिधारथ घेर अंतिः आनंद रंग वधामणां ए. गाथा ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२२४८. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. दे. (२२४१२, १५X३०-३२). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. नवतत्त्वादि विचार संग्रह . )
४२२४९. (+४) मुहपत्ति व मंडल बोल, संपूर्ण, वि. १९५९, ज्येष्ठ शुक्ल, २ मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. लुनावा,
प्रले. पं. केशरसागर, पठ. सा. किस्तूरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपद्मप्रभुजी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (९१७) करकूबरी नस दोवरी, दे., ( २४४१३, १०X१३).
१. पे. नाम. मुहपत्तिना बोल, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मुखखिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु. गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्व की अंतिः सकायनी रक्षा करुं.
२. पे. नाम, मंडल बोल, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
२४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि आघाडे आसन्ने उच्चारे, अंति: दूरे पासवणे अहिवासे.
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४२२५०. (+#) पंचपरमेष्टीजीरो स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिकागत पठनार्थ विद्वान का नाम मिटाया गया है एवं अंत में भणसी तो भलो मनष होसी नहीं तो बुरा दीससी जी इस प्रकार लिखा है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१२.५, १४X३० ).
३४१
नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, बि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अवांण, अंतिः सेवा देज्यो नित्त, (वि. प्रतिलेखकने गाथा-७ तक ही गाथांक लिखे हैं.)
गाथा - २४.
कार्यस्थिति प्रकरण-वार्थ * मा.गु, गद्य, आदि ज० जिम ताहरां दर्शन, अंतिः संपदा सीघ्र द्यो.
3
४२२५१, (+) कार्यस्थिति स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. नगविमल अन्य आ. सुरेंद्रभूषण मु. माणिक्यचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक १ अ पर 'वि.सं. १८७८ में भट्टारक सुरेंद्रभूषणने माणिक्यचंद्र को कर्मक्षयोपशम धर्मवृद्धि हेतु श्रवण करवाया. इस प्रकार लिखा हुआ है, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२३.५४१२.५, ४-६४३३). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय, अंति: अकायपयसंपयं देसु,
"
४२२५२. (+#) आदिजिन व चोवीसजिन मातापिता तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१२.५ १२४३३).
१. पे. नाम. आदिजिन तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने यह पेटांक १ आ-२आ-३आ-४आ इस प्रकार विष्ट क्रम से लिखा है,
आदिजिन बृहत्स्तवन - शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद, अंति: प्रेमविजय० सेवा, गाथा-४३.
मुझ
२. पे. नाम. चोवीसजिन मातापिता तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, ले. स्थल. आमोद, प्र. मु. मोतीविजय पठ श्राव, भाईदास राघव शाह, पे. वि. यह पेटांक बाद में किसी अन्य विद्वानने पत्रांक २अ -१अ -३अ-४अ इस प्रकार लिखा है व कृति का प्रारंभ पत्रांक १अ से न करते हुए पत्रांक २अ से किया है. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगभिंत, मु. आणंद, मा.गु, पद्म, वि. १५६२, आदि: सवल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तस सीस पणे आणंद, गाथा - २९.
४२२५३. (+४) कीर्तिध्वजराजा की ढाल, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, खारीया, प्रले श्राव, मिश्रीलाल, अन्य मु. केसूलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२४.५X१२.५, १२x२५).
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कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीआदि जिनेश्वरू; अंति: अदीतवार के दीन हो,
गाथा-७४.
४२२५४. (४) मुन इग्यारस, संपूर्ण, वि. १९८७, पौष कृष्ण ८, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल जोधपुर, प्रले. मु. मोतीचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२४.५४१२, १९४४४).
.
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: महाबल नामे मोटो राय, अंति: मल्लिकुंवरी कहे जी, ढाल -३, गाथा-३८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२२५५. उत्तराध्ययननी कथा का ततकरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२,१५४४२).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथासूचि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२२५६. (+#) चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १३४३३). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीज
ददातु, श्लोक-११.
पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-टीका, सं., गद्य, वि. १८९२, आदि: किं कपूरति; अंति: इत्येकादशपद्यार्थः. ४२२५७. (+#) उपधानविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नडुलाइ, प्रले. ग. कवींद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४३-४६). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरि;
अंति: मुझ ते भव भवई, गाथा-२४, (वि. इस प्रति में गच्छनायक विजयसेनसूरि लिखा है.) ४२२५८. (#) आदीभगवान व माहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, ११४३०). १. पे. नाम. आदीभगवान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मांगरोल मंडल, मा.गु., पद्य, आदि: आदी जिणेसर साहेबा; अंति: अक्षज्ञान- काम, गाथा-८. २. पे. नाम. माहावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: रसीक आज रमसु आनंद; अंति: मंडली साहे कुशल खेम, गाथा-५. ४२२५९. (#) नेमिजिन बारमासो व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२४.५४१२.५, १३४२९). १. पे. नाम. नेमिजीरो बारमासो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण कृष्ण, १२, ले.स्थल. राणीगाम, प्रले. मु. कपुरचंद;
पठ. मु. हरचंद, पे.वि. चंतीनाथजी प्र.
नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम विलुधी पदमणी; अंति: नाथ सिरे सुर नेम, गाथा-४८. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., पद्य, आदि: फूलडे चंपेल्याव; अंति: पाय बै मालण, गाथा-४. ४२२६०. (#) रोहिणीतपमहिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१३, १२४३५). रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपुज्य नमी; अंति: पदनो होय सामी हो, गाथा-११,
(वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४२२६१. (+#) अजीवभेद स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वणथली, प्रले. ग. धर्मविजय (गुरु पं. रत्नविजय);
गुपि.पं. रत्नविजय (गुरु आ. लक्ष्मीसूरि); पठ. पं. मोहनकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी श्रीशांतीनाथजी प्रशादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १७४३६).
जीवभेद सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद चितमा धरि; अंति: इणिपरे उपदिस्ये ए, ढाल-२,
गाथा-३३, (वि. द्वितीय ढाल में एक गाथा की दो गाथा गिनी हैं.) ४२२६२. (+#) नववाडि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. शांतीनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १२४२६). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: जाउं तेहने भामणे, (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. अंतिम ढाल मात्र है.) ४२२६४. गिरनारतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२.५, १०x२९).
गिरनारतीर्थ स्तवन, ग. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहसावन जइ वसियें; अंति: श्रीशुभवीर विलसीये, गाथा-९. ४२२६५. (+) श्रेष्टि प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२४४१२.५, १३४३३).
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अगरचंद्र भैरुदानश्रेष्ठी प्रशस्ति, मु. भगवानदास, सं., पद्य, आदि: श्रीमान् सुकुलोद्भवो अंति: सौभाग्यलक्ष्मीभूताः, लोक-५.
४२२६६. (+#) सिद्धचक्र यंत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. राजनगर, दत्त. पं. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणि प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१३, १८X३९). सिद्धचक्रोद्धार, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायतं उदाह, अंतिः हुति किंचुजं,
गाथा - १४.
सिद्धचक्रयंत्रोद्धार-व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा; अंतिः लिखित चक्राद्वावसेय, (वि. इस प्रति में कर्ता नामोल्लेख नहीं है.)
४२२६७, (+) आत्मशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित. दे. (२३.५x१२.५.
!
१०x४१).
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजितजिन अंतर; अंति: रस आनंदस्युं चाखै, गाथा- ९. २. पे नाम, षट्लेस्या, पृ. १अ १आ, संपूर्ण,
आत्मशिक्षा सज्झाय, क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभवियानां भवियां, अंति: तमे केम जहारो, गाथा- १५. ४२२६८. (+#) अजितजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१२, १४४४१).
१. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पट्लेश्या लक्षण, प्रा. सं., पद्य, आदि: अतिरौद्रः सदा क्रोधी, अंति: भणियं अथ जिणिदेहिं लोक-८.
३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
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३४३
जिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः उग्रसेन नृपपति तनया; अंति: साचा नेह निसांणा रे, गाथा- ९. ४. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण.
२० बिहरमानजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनुं लीजे अंतिः उदय सदा संपत पाइ, गाथा- ९. ५. पे नाम, चेतनमयजिन पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण
आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदिः अबधु नाम हमारा राखे, अंतिः सेवकजन बलि जाहीं,
गाथा-५.
६. पे. नाम. स्वार्थ स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- स्वार्थ, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हे रे, अंतिः एक धरम सगाई,
गाथा-५.
७. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः अष्टापदगिरि यात्र, अंतिः तेहनै सुरनरनायक गावै, गाथा - ९.
८. पे. नाम. रहनेमि स्वाध्याय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: काउसगव्रत रहनेमि, अंति: सुख ते लहेस्यें रे, गाथा - ११. ९. पे. नाम. दीपोत्सवी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
४२२७० (+#)
दीपावली पर्व स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन मंगल, अंतिः ए में हरखे गाइ रे, गाथा- १०. गुरुगुण व महावीरजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१२, १२X३७).
१. पे नाम, गुरुगुण गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण.
गुरुगुण गहुली, ग. आनंदकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः सांभल रे तुं सजनी अंतिः वजडावी आणंदकुसले आवो,
गाथा - ९.
२. पे. नाम महावीरजिन गुहली. पू. १अ १आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन गहुली, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर शासन स्वा; अंति: अमरपद निश्चै पावोरे,
(वि. प्रतिलेखकने मात्र प्रथम गाथांक ही लिखा है.) ४२२७४. (+#) वर्द्धमानविद्या कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४४१२.५, १९४५०).
वर्धमानविद्या कल्प, प्रा.,सं., गद्य, आदि: उपाध्यायवाचनाचार्ययो; अंति: स वश्यो भवति. ४२२७५. (+#) ऐकादसी सझाए, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १२४३३).
मौनएकादशीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हरी पुछे नेमने हो; अंति: हुंवारी व्रत एहनी, गाथा-९. ४२२७६. (+#) पार्श्वजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुरबंदिर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु
पं. विद्याविजय); गुपि.पं. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १७४६०). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसंवरसंवरस; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्,
श्लोक-७, (वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, १२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरसंवरसं वरसं वरा; अंति: संबोधने वा पूरणे,
(वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, १३) ४२२७७. (+#) स्थूलिभद्र आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५८, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वटग्राम,
प्रले. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १५४३६). १. पे. नाम. थुलभद्र सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: कहे सखी पिउडे; अंति: जे वाले मन वयराग, गाथा-७. २. पे. नाम. रहनेमराजिमती सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी,
गाथा-११. ३. पे. नाम. गोतमस्वामीरी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतम गुरु प्रभात; अंति: जयसिख्य कहे सुविलासे,
गाथा-९. ४२२७८. (+#) खामणा व हितोपदेश सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०९, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, कुलपे. २, ले.स्थल. पाली,
प्रले. पं. गौतमसागर; पठ. श्रावि. मयाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १३४३३). १. पे. नाम. खामणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. खामणा कुलक, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खामणां; अंति: ते पामै मंगलमाल, गाथा-२८.
(वि. एक गाथा की दो गाथा गिनी हैं.) २. पे. नाम. हितोपदेश सिज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपासागर, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो रे भवियण; अंति: श्रीजिनवरनी भक्ति रे,
गाथा-१९. ४२२७९. (+#) दादासाहब को स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, ७४३७). जिनकुशलसूरिस्तवन, मु. राम, पुहि., पद्य, वि. १९५८, आदि: श्रीसदगुरुजी से वीनत; अंति: कहे राम सूही सारी,
गाथा-७. ४२२८०. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे..
(२३.५४१२.५, १४४३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुण्णं पावा, अंतिः तेणेग सिद्धा य, गाथा ५९.
४२२८१. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. डुमरा, प्र. मु. क्षमालाभ, लिख. ग. कर्मचंद, अन्य. मु. सौभाग्यविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., ( २२.५X१२, १३X२८).
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
,
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"
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदिः आचंताक्षरसंलक्ष्य अंतिः भूवस्तुन निवर्तते श्लोक ५५ ४२२८२. (#) अष्टमी थुइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. वृद्धिचंद, पठ. सामलाबुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५४१३, १२४३१).
अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य वि. १८वी आदि मंगल आठ करी जस आगल; अंतिः तपथी कोड कल्याने जी, गाथा-४.
४२२८३. (+४) पार्श्वपद्यावती मंत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, प्र. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद
सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१३, १५४३९).
"3
१. पे. नाम. पार्श्वपद्मावती मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
२. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: शुक्लां ब्रह्मविचार अंतिः बुद्धिप्रदां शारदां श्लोक-१.
३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र भंडारारी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठे व अट्ठसया अट्ठ; अंतिः पासजिणिंद नम॑सामि, गाथा ५.
३४५
४२२८४. (४) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी संघयात्रा वर्णनगर्भित, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२४४११, १४४३२-३४).
"
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजीसंघयात्रा वर्णनगर्भित, मु. लालजी, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: प्रथम समरुं मा आद अंति: गुणतां पुगेजी आस, गाधा-३२.
४२२८५, (४) कुमतीन शझाय व नेमजीरा छवीस चोक, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २२x१२, १७४३).
१. पे नाम, कुमतीनी शझाय, पृ. १अ संपूर्ण,
जनविस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरथादिक उधारजे कीधो, अंतिः वाशक जशनी वाणी, गाथा - १०.
२. पे. नाम. नेमजीरा छवीस चोक, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
नेमगोपी संवाद - चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समरु सरसती सारदा, अंति: (-). (पू.वि. चोक-२ तक ही है.)
४२२८६. (#) दीक्षा देवानी वीधी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पुरणानगर, प्रले. पंन्या. खांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रसादात् अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१३, १२४३५).
दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम गमणागमण: अंतिः जईने उपाने लावे.
४२२८७, (४) सिद्धपद चैत्यवंदन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २१(१) = १. कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२३.५X१२.५, १२x२२).
१. पे. नाम. सिद्धपद चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः धरि सुभ भाव, गाथा-३, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पाठमात्र है.)
२. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति समाप्ति व प्रस्तुत कृति प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ किया है.
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मु. कुशल, पुहिं, पद्य, आदि: अष्टवरस नग मास हीना, अंतिः जगजीव मिलोगा तेहमै, गाथा-५.
३. पे. नाम. सिद्धपद स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति समाप्ति व प्रस्तुत कृति प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ किया है.
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मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट करम कुं धमन; अंति: केवलग्यानी भासी जी, गाथा-२.
४. पे. नाम, आचार्यपद चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति समाप्ति व प्रस्तुत कृति प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ किया है.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु, पद्य, आदि जनपद कुल मुख रस; अंतिः अष्टोतर सो वार, गाथा-३.
५. पे. नाम. आचार्यपद स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे. वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति समाप्ति व प्रस्तुत कृति प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ किया है,
मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: खंती खडगथी जे हणै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२२८८. () आलोयणछत्रीसी व आचारांग सिज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक
3
अंकित नहीं है अतः पाठ की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है.
अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे., (२२x१२,
४२२९० (+)
१३X२४-३२).
१. पे. नाम. आलोयणछत्रीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: (-); अंति: आलोयण उच्छाहि, गाथा-३६, ( पू. वि. गाथा - ३४ प्रारंभ तक नहीं है.)
२. पे. नाम. आचारांग सिज्झाय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य वि. १७५५, आदि: पहिली अंग सुहामणोरे, अंतिः (-), प्रतिपूर्ण, ४२२८९ (०) मोटाजोग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे.. (२५.५X१२.५, १२x२७).
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: एक कालग्रहणने पूर्व; अंति: डोरो विगरे पलेववो.. छड़ भावनो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५५१२.५, १०२७). ६ भाव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रे आत्मा कर्मवस्ये; अंति: स्थानक कीस्यु छे.
४२२९१. (+) मौनएकादशी गणनो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४१२.५, १२x२२). मौनएकादशीपर्व गणणं. सं., को. आदिः श्रीमहायशसर्वज्ञाय, अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः.
"
अंकित नहीं है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२२x११, १४x२८-३२).
"
४२२९२. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१२.५, ११x२७).
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुं करीइं; अंति: पदम कहे भव तरीइं, गाथा- १०. ४२२९३. (#) पंचमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, लिख. श्राव. कस्तुर मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१२, ९३३).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५.
४२२९४. (+१) अड्डाई पर्यूषणापर्वविधि स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१३, १४x२७).
पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पास जिणंदा, अंति: जपे हेमसोभाग हो,
गाथा - ३७.
४२२९५. (+#) थूलभद्रजी सीज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४४१३, १०x१९).
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भल उगो दिवस प्रमाण, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ६ तक है.) ४२२९६. (4) आदिजिन आदि स्तवन संग्रह व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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१. पे. नाम. ऋषभजन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीखब जिणेसर प्रीतम, अंति: आणंदधन पद आज, गाथा ६.
२. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलुडी विदेह खेत्रमा, अंतिः दीजो तुम पाय सेवो, गाथा- १०. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. विनयविजय.
आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मु. ऋषभदास, रा. पद्य, आदिः मरुदेवीना नंद धारा अंतिः ऋषभदास बलीहारी रे,
गाथा ५.
४. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजे हो; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-४. ४२२९७. (#) नंदीसूत्र मंगल गाथा, पंचमी स्तवन व महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १८७३ वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, पे. ३. ले. स्थल. हल, प्रले. पं. नावकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२x१२, १३X३५).
१. पे. नाम. नंदीसूत्र की मंगल गाथा, पृ. १अ. संपूर्ण
नंदीसूत्र - मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयई जगजीवजोणीविआणओ; अंति: भद्दं दम संघ सुरस्स, गाथा- १०. २. पे नाम, पंचमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण
मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं पंचमी दीवसे अंतिः विजयलक्ष्मी लहो संत, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: तारेंगे माहावीर, अंति: मेरू कहे टुंक धीर, गाथा - २.
३४७
-"
४२२९८ (+) पाक्षिकदिन नमस्कारस्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२३.५४१३, ११x२९). सकलात् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान अंतिः भावतोहं नमामि श्लोक-२९.
3
४२२९९. (१) नवपद लावणी, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५,
११X३३).
नवपद लावणी, पु,ि पद्म, वि. १९१७, आदि: जगत मे नवपद जयकारी अंतिः नवपद छबी प्यारी, गाथा-५, ४२३०० () नेमराजुलनो वेझणो, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२३.५x१२,
११४३४).
नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आव्या आव्या उनालाना, अंति: पद बिहु सुखकारि के,
गाथा - १३.
४२३०१ (+) दादाजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१२.५, ३६x२३).
जिनदत्तसूरि गीत, ग. सूरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १२११, आदिः आस्यापूर्ण कामगवी, अंति: सुरचंद कहे सफल दिणा,
गाथा १७.
समावसरण स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२३.५X१३.५,
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११X३२).
समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दरीस नयन ठरावजो; अंति: ओछव रंग वधामणा, गाथा - १५. ४२३०४. (+#) नमस्कार महामंत्रमहिमा स्तुति व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१२, १८४३२).
१. पे. नाम. नमस्कार महामंत्रमहिमा स्तुति, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण
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३४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र स्तुति, मु. लालचंद, रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० इहा; अंति: नमो नमो पंच नवकारने,
गाथा-१४. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ४२३०५. (#) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १०४३०).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमु सदा; अंति: संघने कोड
कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ४२३०६. (+#) आदिजिन आदि स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१६, पौष कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६,
ले.स्थल. खंडपग्राम, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. रिषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगो हो; अंति: राम सफल अरदास, गाथा-५. २.पे. नाम. माहावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआरे गुण तुम्ह; अंति: जीवन प्राण
आधारो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदमखान, पुहि., पद्य, आदि: बाबरीषभ बेलै; अंति: तारि लीजै अपनो करकै, गाथा-३. ४. पे. नाम. सेबेजाजीरो स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिधाचलगिर भेट्या रे; अंति: रत्न प्रभु प्यारा रे,
गाथा-५. ५. पे. नाम. रूखमणीरी सझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-७,
(वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ६. पे. नाम. नंदषेणरी सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो; अंति: विजेय जय जयकार लाल, गाथा-५. ४२३०७. (#) शेजानी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, ११४३१).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शेव्रुजे गया पाप; अंति: तप करिजे तेही जी, गाथा-१२. ४२३०८. (#) नवजन्म स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रावण शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, ११४३२). महावीरजिन स्तवन-जन्ममहोत्सवगर्भित, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदम सरोवर हूये गइति; अंति:
रूपविजय गुण गाय, गाथा-२३. ४२३०९. (#) आलोयण देवा तपनी रीत, संपूर्ण, वि. १९२८, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, १८४४५).
आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एकेंद्री अनंतकाय; अंति: आलोयण लेज्योजी. ४२३१०. (+#) पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२.५, १४४३२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. चोविहार-तिविहार उपवास,
एकासना और आयंबिल तप का पच्चक्खाण है.) ४२३११. (+#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५४१२.५, १२४२६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३४९ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति:
भगती भावे प्रसीयो, ढाल-३, गाथा-२६. ४२३१२. (#) जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११.५, ११४२४-२९). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने वेनवू; अंति: पाम्याजी
मुगती मोझार, गाथा-१५. ४२३१४. (+#) संसक्तनियुक्ति सह समासार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक २ नहीं लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १०x४४).
संसक्तनियुक्ति-चयन, प्रा., पद्य, आदि: बीयाओ पुव्वाओ अग्गणी; अंति: सोयव्वो साह पासाओ, गाथा-२४.
संसक्तनियुक्ति-चयन का समासार्थ, सं., गद्य, आदि: द्वितीयात् पूर्वात्; अंति: साधु पार्थात्. ४२३१५. (#) वीरनिर्वाण स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १८४६१).
महावीरजिन निर्वाण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मंगलमाल विशालो रे,
(पू.वि. ढाल-१० गाथा-१२ अपूर्ण तक नहीं है.) ४२३१६. (#) पंचद्रिय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १५४३२-३४).
५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुझने सिख चतुर; अंति: लहो सुख सासता, गाथा-७. ४२३१७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२३४१३, १२४२६).
औपदेशिक सज्झाय, मु. माणेक, पुहिं., पद्य, आदि: सुण प्राणिडा अरिआ के; अंति: फेर पछे पस्तावगे, गाथा-५. ४२३१८. (#) स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, २२४५२-५६). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतीस अतिसें जुओ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५
गाथा ३ तक है.) ४२३१९. (4) पार्श्वनाथ स्तवनाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १२४३४). पार्श्वजिन अष्टक-चिंतामणि, श्राव. मलुकचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रियः संततेः कारकं; अंति: जिनवरो विजितमदरागः,
श्लोक-९. ४२३२०. सोलसुपन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १२४३६).
१६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन देखी पेहलडे; अंति: राय सुधिरोरे, गाथा-१७. ४२३२१. (+#) भवन्याष्टक, संपूर्ण, वि. १८५५, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२.५, १२४२३).
सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी; अंति: नित नमैवी जगपती, गाथा-९. ४२३२२. (+#) तिजयपहु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४३१).
तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४२३२३. नेमनाजीनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. १९६९, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडोदा, प्रले. सा. कल्याणश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४१२.५, १०४४२).
नेमिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी सुणो हमारी; अंति: बाल तारो तरररररररे, गाथा-८.
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३५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२३२४. (+#) नेमजि को चक्रमासो सझाय व लधरवपुरमंडपारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४२८). १. पे. नाम. चत्रमास सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन चतुर्मास सज्झाय, सेस, मा.गु., पद्य, आदि: असाढ महिनो लागीयो; अंति: मुझ दिजो शीवपूर वास, गाथा-४. २. पे. नाम. लधरवपुरमंडपारसनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, वि. १९२८, आदि: लोद्रवपुर पास चिंताम; अंति: पास
सकल संघ सुखकरु, (वि. गाथांक अंकित नहीं हैं.) ४२३२६. शांतिनाथजीनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. नवलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४२३).
शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांति सुहंकर साहेबो; अंति: कवि विर ते जाणे, गाथा-४, ग्रं. ९. ४२३२७. (#) सर्वज्ञ व चतुर्विंशतिजिन मंगलाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. वल्लभीदुर्ग, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १३४३३). १. पे. नाम. सर्वज्ञाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगमकल्पमहीरुहो; अंति: विश्वाधिपः सर्ववित्, श्लोक-९. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन मंगलाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलम्, श्लोक-९. ४२३२८. प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित न होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया
गया है., दे., (२५४१२.५, १४४४२).
_प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: बल बाकुल उछालै. ४२३२९. (4) पार्श्वजिन पद व वृधमानस्वामी न्मसकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १०४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिवो पास संखेसरो; अंति: संखेसरोजी आप तूठा,
गाथा-७. २. पे. नाम. वृधमानस्वामी न्मसकार, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिधारथ सुत वंदीइं; अंति: पदमवीजय वीख्यात,
गाथा-३. ४२३३०.(+) आत्मनिंदा लावणी व औपदेशिक पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्रांक
अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२५४१२, २३४५६). १.पे. नाम. आत्मनिंदा लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तप जप मे नही; अंति: दुरगत आइ चली, गाथा-४. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मीराबाई, पुहि., पद्य, आदि: दरद न जाणे कोय; अंति: वेद सांवरो होयरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: तें तो कोण कर्म; अंति: धुरी या मुक्त निसांन, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जैनधर्म पायो दोहिलो; अंति: लीजीए भजीये भगवान्, गाथा-४. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: दीननी केवी ते जाति; अंति: मुवें फिर नही आते हे, गाथा-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३५१ साधारणजिन स्तवन, मु. मान, रा., पद्य, आदि: जुंजाणो ज्यू थारा; अंति: लग्या राज रेजाराहा, गाथा-८. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: चेतन ध्यान धरो; अंति: धारो उपदेश उपगारी को, गाथा-६. ८. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण..
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी वनिता भली विराज; अंति: पामे लील विलासो जी, गाथा-१३. ४२३३१. (+#) पार्श्वजिन थोयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल; अन्य. सा. कमलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ११४३६).
पार्श्वजिन स्तुति, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जगजन भजनमाहे जे; अंति: उदय वदे इम वाणी, गाथा-४, ग्रं. १६. ४२३३२. (+#) ज्वर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खीमेलग्राम, प्रले. पं. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १३४३३).
ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल; अंति: शार मंत्र जपीई सदा, गाथा-१६. ४२३३३. (+#) भावसंग्राम चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९३४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. हिम्मतराम, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २६४५५). भावसंग्राम चौढालियो, मु. हिम्मतराम, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: पान जडता देखने; अंति: हीमतराम चिहूं
ढाल, ढाल-४. ४२३३४. (#) सुमति सझाय, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. हमीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, १३४३३).
सुमति सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा दील में; अंति: गुणवंतारे मन भाय, गाथा-२२. ४२३३५. (+#) सिद्धगीरीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सूरतबंदिर, प्रले. य. जीवणविजय गोर; पठ. श्रावि. राजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १५४४१).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अमरत वचने रेप्यारी; अंति: चंदनसुंपुजो गीरी, गाथा-२७. ४२३३६. (+#) सारदामाताजिनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १३४३०).
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति सरस वचन; अंति: आस्या फलस्यो ताहरी, गाथा-३५. ४२३३७. (#) पांत्रीस बोल सह फलावट, संपूर्ण, वि. १८८९, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोजत, प्रले. पं. नगराज
(अज्ञा. पं. गुमानविजय, खरतरगच्छ); उप.पं. गुमानविजय (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४१९-३४).
३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गति च्यार; अंति: श्रावकना गुण एकवीस.
३५ बोल-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: संयुक्त होये. ४२३३८. (+#) निश्चयव्यवहारगर्भितसीमंधरजिनविनतीरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १३४४३). सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब
आगे; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-४, गाथा-४१. ४२३३९. (+#) पार्श्वजिन स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, २६४१७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्यामावरणविराजतोपि; अंति: सुखी भवति निश्चितं, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथस्य महाप्रभाविक स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पार्श्वजिन स्तव - फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदिः ॐ मम हरो ज्वरं मम, अंति: कुणो पास जिणो,
गाथा-३.
३. पे नाम वीरस्तूति, पृ. १आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि जयह नवनलिणकुवलय, अंतिः खयं सव्वदुरियाणं, गाथा- ६. ४. पे नाम, पार्श्वनाथस्य स्तोत्र, प्र. ९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ,
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श्लोक- ५.
५. पे नाम, बीज मंत्र, प्र. १आ, संपूर्ण
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह प्रा. मा.गु. सं., पग, आदि: (-); अंति: (-).
४२३४०. (४) जंबुकुवरनी सिज्झा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है,
दे., ( २४x११, १२x२७).
जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरि बशे अंतिः शिद्धि सुखावेरे, गाथा- १२.
४२३४१, (४) मौनइगयारसरो गुणणो व इम्यारै बोल निगोदना, संपूर्ण वि. १८९८ आश्विन अधिकमास शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५४१३, १२५२६).
"
१. पे. नाम. मौनइग्यारसरो गुणणो, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व गण, सं. को, आदिः श्रीमहायशः सर्वज्ञाय अंतिः श्री आरणनाथाय.
२. पे. नाम. इग्यारै बोल निगोदना, पृ. ३आ, संपूर्ण.
११ निगोद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एक सूईना अग्र उपरै; अंति: जीव मुगति जावै छे
४२३४२. (४) पचखाण व सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने
छप गए हैं, जैदे., ( २३X११, १४X३०-३३).
१. पे. नाम. पचखाण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. सुभटपुर, प्रले. ग. फतेसागर (गुरु ग. रंगसागर); पठ. सा. अमृतश्री.
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि उगाए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेणं वोसिरामि,
""
२. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन - ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: इम विमलाचल गुण गाय, गाथा-७, (वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
४२३४४. (+४) एकाक्षरी नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १ ले. स्थल. लद्धोपुर, प्रले. पं. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३४१२, १४४३५).
एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि अः कृष्ण आः स्वयंभू, अति: माला प्राक्सूरिसंमता, श्लोक १९. ४२३४५ (+४) ऋषिमंडल व घंटाकरण स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९३८ शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले. स्थल, लुधिहाणानगर, प्रले. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. लो. (३२२) बुद्धिमांद्यवशात् किंचिद (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५४१३, १८४५५). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि ऊं आद्यताक्षरसंलक्ष अंतिः दोषा विमुच्यते, श्लोक ७४. २. पे. नाम. घंटाकरण मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर, अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४२३४७. (#) जंवुजीनी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मदनगोपाल मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५.५४१२.५, १४४४९).
"
जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामि ते वीनवु; अंति: जंबु ना
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जय जयकार, गाथा - १५.
४२३४८ (+) शांतिकुवरनि व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१२, १०x२२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
१.पे. नाम. शांतिकुवरनि सझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: सुर नर प्रसंशा करे; अंति: गायो
सतकुमारो, गाथा-१७. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पितडली न कीजे रे; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-६. ४२३४९. (+) शत्रुजयतीर्थ कल्पसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. कृष्ण सोढा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, ६x२९).
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुजजत्तफलं, गाथा-२५.
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीई अंति: यात्रा फल पामइ. ४२३५०. (#) २६ पोरिसीनो प्रमाणयंत्र-उत्तराध्ययनगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२, १४४४६).
जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४२३५१. (+#) जलजात्रा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १३४३५).
जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्रादौ जलयात्रा; अंति: पूजा महोच्छव करणा. ४२३५२. (#) उपदेशी सिझाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, २५४२५). १. पे. नाम. उपदेशी सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: रे अबदु ऐसा ग्यान; अंति: सचा गुरु का चेलारे, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: जीयाजी मार मुवा मत; अंति: सचा गुरु का चेला जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शुभाशुभकर्म फल सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
जैन सामान्यकृति-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२३५३. (+#) दीवाली स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १०४३३).
दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंति: जंपे एहवी वाणी, गाथा-४. ४२३५४. (#) नेमिजिन थुइ व मौनएकादशीव्रत सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ११४३४). १. पे. नाम. नेमिजिन थुइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: करत अंबे देवीया, गाथा-४. २. पे. नाम. मौनएकादशीव्रत सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसि तप किजीए; अंति: सयथी मानविजय कहे एम,
गाथा-७. ४२३५५. (+) अध्यातमनी थोय व पारस्वनाथजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, गु., (२५.५४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. अध्यात्मनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवेरा सामायक; अंति: साधे ते पद भोगी. गाथा-४. २. पे. नाम. पारस्वनाथजी, स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन प्रभु पार्श्व; अंति: पुरजो मननी आस जी, गाथा-६.
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३५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२३५६. नरकविस्तार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. हठिसिंग मानसिंग बारोट; पठ.सा. गंगाश्री; अन्य. श्रावि. पार्वतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, १२४३०).
नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन वीर तु; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ४२३५७. (+#) रत्नगुरु सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १५४२८).
रत्नगुरु सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रत्नगरु गुण मेठडारे; अंति: मोहन जे जेकार, गाथा-१८. ४२३५८. श्रीमंधीरसांमीनो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४१२.५, १२४३१).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: पुरब पुने पायो रे,
ढाल-७, गाथा-३८. ४२३६०.(+#) चक्रेस्वरीश्वराष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. अमृत खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४३४).
चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पातु मां देवी चक्रे, श्लोक-९. ४२३६१. (#) शांतिकर्म विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. अमृतकुशल गणि; पठ. श्राव. प्रेमचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १८४४७).
शांतिकर्म विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: प्रथमशुभदिने चैत्ये; अंति: गुरुसंघभक्तिकार्य. ४२३६२. (+#) पार्श्वजिन स्तव व विषापहार मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १६४३४). १.पे. नाम. पार्श्वस्तवो महामंत्रमय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित, मु. इंद्रनंदि, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नागेंद्ररुद्र; अंति: श्रींद्रनंदिप्रणीतं, श्लोक-११. २. पे. नाम. विषापहार मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२३६३. (#) वृधशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२९).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ४२३६४. (+#) गुरुपादुका प्रतिष्ठाविधि, संपूर्ण, वि. १९५४, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्राव. जेठाभाई,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३९).
गुरुपादुका प्रतिष्ठाविधि, सं., गद्य, आदि: तत्र रात्रिजागरणं; अंति: शीलवृत्तं च पालयति. ४२३६५. (#) भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १६४३५). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीरजिनेसर अरथ प्रकास; अंति:
गुणगावै सुजगीस, गाथा-२१. ४२३६६. (+) प्रायश्चित्त विचार-बृहत्कल्पगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. लालजी; पठ. मु. उद्योतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ६४३१).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कृति अंतर्गत प्रायश्चित्त के कोष्टक भी आलेखित हैं.) ४२३६७. (+) कलस चंद का, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. द्वितीय पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२५.५४१३, १८४४४). चंद्रराजा कलश, मा.गु., पद्य, आदि: बनवर्ण वप्रविहार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१
गाथा-२१ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३५५ ४२३६८. (+#) फूलडांसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, ४४२९).
वज्रस्वामी गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे मे कोतिक दिठु; अंति: सुभवीरने वाल्हाडारे, गाथा-८.
वज्रस्वामी गहुली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वयरस्वामी ६ मासनै; अंति: अथ वल्लभ वचने कहै छै. ४२३७०. (#) स्वप्नबतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १२४३२).
स्वप्नबत्रीसी, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुपनेवत संसारमे जागै; अंति: समजि लह गुनवान, गाथा-३३, ग्रं. ३६. ४२३७१. (+#) आलोयण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३२). महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर; अंति: कीधौ चौपनै
फलवधिपुरै, ढाल-४, गाथा-३०. ४२३७२. (+#) पार्श्वजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ११, ले.स्थल. हरजीग्राम,
लिख. श्राव. अबीजा सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, २८x१९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन अंतरजामी; अंति: लीजीइ सवी सुखकंद, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मीतापीआरे लाल की; अंति: रूपचंद भए दासा, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: दरीसन कु आया; अंति: नीरंजन गुन गाया, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: हम लोक निरंजन लाल के; अंति: रूपचंद गुन गावे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: आजु को लाहो लीजीए; अंति: पामीए भवपार, गाथा-४. ६.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जब तु नाथ नीरंजनां; अंति: सीरे गजब का लहीया, गाथा-४. ७. पे. नाम. गौतमस्वामी प्रभाती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे नही जान्यो नाथजी; अंति: चरने शिर नाया, गाथा-७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: आये उपाय कर; अंति: वाजत जीत नगारो, गाथा-५. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: वीर विवेक हो; अंति: लीनो आनंदघन मांहै. गाथा-४. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. देवसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: आतम परदेसी रंग; अंति: उतम इण परसिधरे, गाथा-६. ११. पे. नाम. आदीसर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जइये; अंति: वंदु विमल गिरंदा, गाथा-४. ४२३७३. (+#) षट्काय की सीझ्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२४.५४१२.५, १८४४८).
६ काय सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: छह कायारि छाकरी भय; अंति: और में कछु ना चहो, गाथा-३९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३५६
४२३७४, (+) चंदनवाला व जंबूकुंमारजीरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४१२.५, १५x२९).
"
१. पे. नाम. चंदनबाला स्वाध्याय, पृ. १ अ - १आ, संपूर्ण.
चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु, पद्य, आदिः बालकुंआरी चंदनबाला अंतिः कुंअर कठै करजोडी रे,
गाथा - १३.
२. पे. नाम. जंबूकुंमारजीरी सझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण,
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिक नरवर राजीयो; अंति: पामीजे जग मान, गाथा - १७. ४२३७५. (+) नमस्कार मंत्र छंद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३२, मार्गशीर्ष कृष्ण ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले. स्थल. सोझितपत्तन, प्रले. पं. पद्मसागर, पठ. सा. पुण्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२४.५x१२.५, १३X३५).
१. पे. नाम. नमस्कार मंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सुंदर सहज रसाल, गाथा- ७.
२. पे. नाम. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५१, आदि: भारथी भगवती पाय नमी, अंतिः सेव्यां सिद्ध जाण, गाथा - १४.
३. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वली सिद्ध; अंति: नयविमलेसर वर आपो,
गाथा-४.
४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय- अध्ययन १, पृ. २आ, संपूर्ण.
7
दशवेकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्म, वि. १७१७, आदिः धम्मोमंगल महिमा नीलो अंति: (-), प्रतिपूर्ण
५. पे. नाम, दूहा, पृ. २आ, संपूर्ण
जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२.
४२३७६. (१) असादानुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. राधनपूर, लिख. सा. मनोरश्री, प्रले. अमधालाल मानचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१३, ११x४२). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: एनें आसाढउ, अंति: सेंच्यो समकित छोड रे, गाथा - १०. ४२३७७ (+) तृतीयातिथि व नवतत्त्व स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५x१२,
"
१३X२८).
१. पे नाम तृतीयातिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण
मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि निसिहि त्रिण अंतिः सासन सुर संभारो जी, गाथा-४.
२. पे. नाम. नवतत्त्व स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि जीवा रे जीवा पुन, अंति: गुण चित धरज्यो जी, गाथा-४.
४२३७९. (+) उपदेशी पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. वे. (२५.५४१३, १२४२९).
१. पे नाम, उपदेशी पद, पृ. १अ, संपूर्ण,
औपदेशिक सज्झाय, मु. दलपत, मा.गु, पद्य, आदि; सजी पर बार सारं अंतिः दलपते दिधु कधी रे, गाथा १२. २. पे. नाम. उपदेशी पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: जोने तुं पाटण जेवा; अंति: दिठा दलपतरामें रे, गाथा- १२.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३५७ ४२३८०. (#) आलोयण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ११४२७). महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर; अंति: फलवर्द्धिपुरे,
ढाल-४, गाथा-३०. ४२३८२. (+#) दशवईकालिक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. नगराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५०-५८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा; अंति: जैतसी जइ
जइ रंग, अध्याय-१०. ४२३८३. (#) महाबलमलीयासुंदरी चतुपदी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, २१४४२). महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्व प्रणमी; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ गाथा-१७ तक है.) ४२३८५. (#) देवसीपडिक्कमेणेरी विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ९४२३). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेणी; अंति: संपूर्ण सुधि इत्यादि,
संपूर्ण. ४२३८६. (+#) चतुर्विशतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. फतेंद्रसागर;
पठ. मु. चमना (गुरु पं. फतेंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्रप्रभुजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ७४२७). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति:
तास सीस प्रणमुंआणंद, गाथा-३०. ४२३८७. (+#) पेंतीस बोल सह अर्थफलावट, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४३६).
३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गति च्यार; अंति: श्रावकरा गुण इकवीस.
३५ बोल-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति मनुक्षगति; अंति: पाप से डरे तप जप. ४२३८९. (#) धनासालभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्रले.मु.रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३८).
धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणीरे धना; अंति: गायाई मनमांगहगही, गाथा-२२. ४२३९०. (+#) नंद्यावर्त्त पूजाक्रम विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४३३). नंदावर्त आलेखनादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कर्पूरकुंकुमसंमिश्र; अंति: (१)पभइणं पूयपट्टमि, (२)नमोह।
स्तवन० जयवी०. ४२३९२. (#) अणंत चोवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १९४३७). साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अणंत चउवीसी; अंति: एही तिर्णना दावो,
गाथा-११०. ४२३९३. (#) खामणा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. हठीसिंग बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१३.५, १२४३०). खामणा सज्झाय, मु. अभयकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजिने खामणां; अंति: पामे मंगल सार. (वि. गाथांक
अंकित नहीं हैं.)
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३५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२३९६. (#) मेघकुमार दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रावण कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४४१).
मेघकुमार कथा, सं., गद्य, आदि: पुनः कथंभूतेभ्यः; अंति: धर्मरथस्य सारथीसमानः. ४२३९७. (+#) इंद्रनिक्षेप विचार-स्थानांगसूत्रगत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, २०४३५).
आगम छटक पन्ने , प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२३९९. (+#) सिद्धचक्र थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. जासुदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १०४२६).
सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुर वासी; अंति: तस घर नित्य दीवाली, गाथा-४. ४२४००. (#) तृष्णा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १२४४९).
औपदेशिक सज्झाय-तृष्णापरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: त्रसना तुरणी हेतु; अंति: विघन विना निरवाण, गाथा-१४. ४२४०१. (#) राम तथा रावण उत्पत्ति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १४४४१).
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२४०२. (#) औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२,१४४२७).
औपदेशिक पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: तुम सुणो मुगत; अंति: सतगरु का सरणा जी, गाथा-४. ४२४०३. (#) भारती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४३६). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्,
श्लोक-१३. ४२४०४. (#) संभवजिन आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. एक ही पत्र पर
पत्रांक ४ एवं ५ अंकित है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४१२.५, ११४२६). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: संभवदेवत धुरि सेवो; अंति: याचना आनंदघन रस रूप, गाथा-६. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदनजिन दरसण; अंति: थकी आनंदघन महाराज, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुमति स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमति चरण कज आतम; अंति: संपजै आनंदघन रस
पोष, गाथा-६. ४२४०५. (+#) शांतिजिन स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४४४). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा-१५, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २.पे. नाम. पूडरिकगिरी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संघपति भरत नरेसलं; अंति: विमल ए भाखै बेलो,
गाथा-१०, (वि. एकगाथा की दो गाथा गिनी है.) ३. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
मु. जिनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमलगुण मनवस्यौ; अंति: किरति व्यापेरेलो, गाथा-६. ४. पे. नाम. नवकारमहिमा गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४२४०६. (+#) मुंदडीसीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, १८४३५).
रामचंद्रमुंदडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामणी बिनउं; अंति: पाणी उपर बट्ट, गाथा-३७. ४२४०७. (#) पांत्रीस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४१२, १३४३४). ३५ बोल संग्रह, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १५८३, आदि: गुरुने आदेसे विहार; अंति: गीतारथ टाली न
वावरवा. ४२४०८. (4) थूलभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. कानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३, ११४२६). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं.,म., पद्य, आदि: अणीअमा महामुनीसर; अंति: संघ कल्याण
कहांवदा, गाथा-१४. ४२४०९. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र व इष्टप्राप्ति मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४०-४५). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-८७. २.पे. नाम. पार्श्वपद्मावती मंत्र गुटिका, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. साथ में आम्नाय भी दिया है.) ४२४१०. (+#) कल्पसूत्र नवव्याख्यान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१९.५, १४४३६). कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसलण आवीयां; अंति: (-),
(प्रतिपूर्ण, पू.वि. सज्झाय-२ तक है.) ४२४११. (+#) कर्म सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२३४१२,१७४३५). १. पे. नाम. कर्म सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ शुक्ल, १४, ले.स्थल. हरजीग्राम. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म माहाराजा रे,
गाथा-१८. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. माहावीरजिणंद्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी विरजिणंदने; अंति: भव भव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. ४२४१३. (+#) जीवरा पांचसे त्रेसठि भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं हैं., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १०४२९). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम संख्या कहै छै; अंति: सर्वारथसिद्ध ५, (वि. अंत में ग्रैवेयक देवलोक
का कोष्टक भी आलेखित है.) ४२४१४. (-) वज्रपिंजर आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ.,
दे., (२५४११.५, ४०x१८). १. पे. नाम. वज्रपिंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि अति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८.
२. पे. नाम. माणिभद्रजी को अष्टक, पृ. १अ संपूर्ण.
माणिभद्रवीर छंद. मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमणिभद्र सदा समरो, अंति: इम सुजस कहै, गाधा ८. ३. पे. नाम. नवग्रहमहागर्भित स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदिः ॐ जगद्गुरुं नमस्कृत्; अंति: ग्रहशांतिमिति स्फुटं श्लोक-१०. ४२४१५. (d) भवानीकालिकाजीरी छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, भावनगर, प्र. वि. पत्र के हासिए का भाग खंडित होने से प्रतिलेखक विषयक माहिती अप्राप्त है. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४४१२, १६३८). कालिकादेवी छंद, य. हीरजी, मा.गु., पद्य, आदि: चत्रदिशि राकस चडीया; अंति: (अपठनीय), गाथा-१७, (वि. पत्र के हासिए का भाग खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.)
४२४१६. () सोलसतीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५४१३, १२X३३).
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदिनाथ आये जिनवर, अंति: तेहसे सुख्यसंपदा ए
गाथा - १७.
४२४१७. (+०) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०-९ (१ से ९) १, कुल पे. ३,
ले. स्थल. भुजनगर, प्रले. मु. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संख्यावाची शब्दों के ऊपर अंक लिखे गए हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३.५X११, २०X३८). १. पे. नाम, १६ हरीआली. पृ. १०अ अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
समस्या हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चतुर किस्युं कहाय, गाथा - १६, (पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०अ १० आ. संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सारद नाम सोहामणुं मन; अंति: रगट सेव करता सुख लहइ, गाथा - ३२.
३. पे. नाम. सत्रुंजयोद्वार हरीआली, पृ. १०आ, संपूर्ण.
जैनदहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-).
४२४१८. (+०) नाभेय स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, ८४३१).
आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं पणमिय देव; अंतिः विजयतिलओ निरंजणो, गाथा-२१.
आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित अवधूरि सं., गद्य, आदि: श्रीविजयतिलकमहोपाध्य; अंतिः
कविनाम निष्कलंक,
४२४१९. (+#) बीज व आठमनि सझाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२५४१२, १३४२७).
१. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा- ८.
२. पे. नाम, आठमनि सझाइ, पृ. १आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु, पद्य, आदि: त्रिसरसती चर्णे नमी अंतिः विजेरत्न० देव सुसीस,
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गाथा-७.
४२४२० (+०) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीमाहावीरवा प्रसादात् प्रतिलेखन पुष्पिका में 'जैनसाला लीपीक्रते' इस प्रकार उल्लेख है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२४.५X१२.५, १०X२६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा - ५.
४२४२१. (+#) मांकण आदि सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५- १ ( १ ) = ४, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११.५, १२x२३-३०).
,
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१. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा-६, ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है.)
२. पे. नाम. मांकण स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो, अंति: राधनपूर मांहि गायो,
गाथा-७.
३. पे. नाम. अमल स्वाध्याय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय- अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी मन धरी; अंति: माणिक्य मनुहार, गाथा-२२.
४. पे. नाम. तमाखू स्वाध्याय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: तेहन कोड कल्याण, गाथा - १८.
५. पे. नाम. करकंडु स्वाध्याय, पृ. ५अ, संपूर्ण.
करकंडुमुनि सज्झाच, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हु; अंतिः पाप पुलाव रे,
गाथा-५.
६. पे. नाम. प्रसनचंद ऋषिराय स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
प्रसन्नचंद्र राजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रसनचंद्र प्रणमुं; अंति: पाम्यो ए प्रतिक्ष, गाथा - ६. ७. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे, अंति: ग्याननो पंचमो
भेदरे, गाथा-५.
४२४२२. (#) कर्मप्रकृत्यांनो बिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पत्र २ पर पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., ( २४.५X१२, ८x२६).
कर्मप्रकृति विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
४२४२३. (#) नेमजीनी च्यारचोकनी लावणि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५X१३, ११४४२).
नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीनेमनिरंजन बालपणे; अंतिः गावे लावणी मनने कोडे, चोक-४. ४२४२४ (+) सर्वजिनपंचकल्याणक स्तव आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मरम्मत करने योग्य प्रत, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, २०७०).
१. पे नाम. सर्वजिन पंचकल्याणक स्तव, पृ. १अ संपूर्ण.
२४ जिनकल्याणक स्तव, जै. क. आशाराज, सं., पद्य, आदि: तिथिक्रमाज्जिनेंद्रा; अंति: आशाराज० पूरयंतु जिनाः, श्लोक-३२.
२. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थनामावली स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ नामावली स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: सिरिसतुंजयतित्थं अंतिः निअजम्मभरक्खयाए, गाथा-८.
३. पे. नाम. शत्रुंजयमहातीर्थ कल्प, पृ. १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा. पद्य, आदिः सुअधम्मकितिअं तं अंतिः सितुंज्जए सिद्धिं गाथा ३९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२४२७. (+) सम्यक्तछपनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १७४३८).
सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: तथा श्रावक है आराध, गाथा-५६, (वि. यंत्र
___संलग्न है.) ४२४२८. कलावतिनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, ११४३२-३४).
कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयरि कोसंबिनो राजा; अंति: मोक्षमारगडो खाड,
गाथा-१३. ४२४२९. (2) सातविसन की सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १७४३४).
वंकचूल सज्झाय-७ व्यसनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार मास पूरा थया; अंति: लपटाइ वोलै जम भाई, ढाल-४. ४२४३०. (+#) बारे भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, २०४५२).
१२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेली अन्यत्य भावना; अंति: धरमरूची अणगार भाई. ४२४३३. (+#) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य.सा. भक्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४५१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६,
गाथा-४७. ४२४३४. (#) दीवालि स्तवन व अष्टमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक २ अंकित नहीं है.,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ११४२८). १. पे. नाम. दीवालि स्त्वन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रमति गमति यमुना; अंति: विर वचुन रसालिरे,
गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमी स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिने चरणे नमुं; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ४२४३५. (#) गौतमस्वामी स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित है परंतु, कागज
चिपकाया हुआ होने से स्पष्ट नहीं दिखता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४३१). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: परभाते गोतम प्रणमीजे; अंति: प्रगट्यो कुलभाण, गाथा-८. २. पे. नाम. संखेसरजी तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेशर; अंति: मुजनइ भवसायरथी
तारो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सवेईयो, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४२४३६. (+#) मेघमुनिजीरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १४४३८). मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुल निलो; अंति: नित भणीयां होय सुख, ढाल-४,
गाथा-२३. ४२४३७. (#) महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२४.५४१२.५, ३४२८).
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महावीरजिन स्तुति, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, आदि: वाणि श्रीवीरजिणेसर, अंति: ते अरथ विच्यारी जी, गाथा-४. महावीर जिन स्तुति-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हिवे इहां वीरस्वामि, अंतिः अर्थ प्रते धारवो.
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४२४३८. चैत्रीपुनिम स्तुति, संपूर्ण बि. २०वी मध्यम, पू. १, वे. (२५४१३, ९४२२).
"
चैत्र पूर्णिमापर्व स्तुति, अनुपमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिणेसर, अंति: अनोपमचंद वखांणी जी, गाथा- ४. ४२४३९. समुद्धात द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्राव. फुलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२.५, १२X३७).
(#)
७ समुद्धात विचार- १४ गुणस्थानके, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिध्यात्व गुण अंतिः चवदमै गुणठाणे नही. ४२४४०. (+#) शीतलस्वामि वीनती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १३४५१)
शीतलजिन स्तुति - आत्मनिंदागर्भित, ग. राजहंस, अप., पद्य, आदि: सदानंद संपन्न चंदो; अंति: पय कमलि हुं रायहंस,
गाथा - २१.
४२४४१. (#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२.५, १०×२९). रोहिणीतप स्तवन, मु. कृष्ण ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि रोहिणीतप भवि आदरोरे, अंतिः तपधी शिवसुख सार,
गाथा-५.
४२४४२. रोहणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., ( २४.५X१२.५, ९X३०). रोहिणीतप स्तवन, मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहणीतप भवि आदरो रे; अंति: लाल भुपविजय सिरनाय,
३६३
गाथा-५.
४२४४३. (०) ८ मद सज्झाय, संपूर्ण वि. १९३३ आषाढ़ शुक्ल, ३ शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, राधनपुर, प्रले. श्राव. पुनमचंद डाया सा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४.५४१२, १०४४१).
"
८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदिः मद आठ महामुनी वारिहं अंतिः अविचल पदवी नरनारी रे,
गाथा - ११.
४२४४४. महासत्तामहासत्ती कुलं, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. १, वे. (२५x१२.५, ११४२३).
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ४२४४५. (#) विरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. वीरमगाम,
प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. हरखबाई; अन्य. श्रावि. समरथबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसी विद्वानने 'बाई हरख' को मिटाकर पास में 'बइसमरथ' लिख दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५. ५X१२.५, १२X३७).
महावीर जिन स्तवन ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि शासननायक सिवकरण; अंतिः लहे अधिक जगीस ए, डाल- ३.
४२४४६. (+) वीरजिन २७ भनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२.५, १३४३३). महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१ आदि: श्रीशुभविजय सुगुरुः अंतिः सेवक वीरवीजयो जयकरो, डाल-५, ग्रं. ७७.
४२४४७. (०) वीरजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४.५X१२.५, १२४३४).
1
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महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देसक मोक्षनो रे, अंतिः देवचंद्र पद लद्धि रे, गाथा - ९.
४२४४८. (+) बिजनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. भक्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४४६).
बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसती; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल - ३, गाथा - १७.
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४२४४९. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ३ गाथा १ आदि संग्रह, संपूर्ण बि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ४,
अन्य. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२.५, १४X३८).
१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ३, गाथा १. पू. १अ १आ, संपूर्ण.
२. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या, अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दशवेकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति (-), प्रतिपूर्ण,
,,
३. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे, अंति: वितहावरणेव अइयरो, गाथा- १.
४. पे. नाम. गोचरी आलोयण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा. पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा अंतिः साहु देहस्स धारणा, गाथा १.
४२४५०, (+४) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वान ने अंतिम पाठ व सादा रेखा चित्रयुक्त पत्रांक लिखा है. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x११, १७३३).
"
"
प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदिः उगाए सूरे नमुक्तार अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरे
,
४२४५१. (+४) औपदेशिकादि श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) - १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. नामवाची शब्दों के ऊपर अंक लिखे गये हैं, पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३४१०.५, १७x४४).
श्लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३७, संपूर्ण.
४२४५२. (४) सिद्धाचलजीनो स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२४.५x१२.५,
९X३५).
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडन, अंति: इम विमलाचल गुण गावे, गाथा - १५.
४२४५४. (+४) श्रीवीरनीसालग्रहणाधिकार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १९४४१).
१. पे. नाम. वीर नीसालग्रहणाधिकार, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण.
भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: अथ भलैरो अर्थ कहै छै; अंति: तै प्रभूने की है.
२. पे. नाम. लोक संग्रह, पू. ३अ, संपूर्ण.
लोक संग्रह, प्रा.सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा
है.)
४२४५५, (४) क्रोधनी सझाय आदि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे ७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५X१२.५, १५X४२).
१. पे. नाम क्रोधनी सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला अंतिः उपसम आणी पासे रे, गाथा - ९.
२. पे. नाम. माननी सिझाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई, अंति: नगर रहिया चडमासे हो, गाधा-८.
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३. पे. नाम. मायानी सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्म, आदि: माया मूल संसारनो अंतिः कहे० सुख निरवाण हो, गाथा- ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३६५ ४. पे. नाम. लोभनी सीझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. देपालपुर.
औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पुहचे सयल
जगीस, गाथा-७. ५. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. देपालपुर, प्रले. पं. सवाईसागर (तपगच्छ). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्य जिणेसर; अंति: संघसयल सुखदाइरे,
ढाल-५, गाथा-१९. ६. पे. नाम. भमरानी सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काइ; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-१२. ७. पे. नाम. राजीमतीरहनेम सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहेनेम; अंति: ते सासय सुख लहिसो रे,
___ गाथा-१०. ४२४५६. ऋषिमंडल व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, दे., (२५४१३, ७४२७). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.
आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-९३, (पू.वि. श्लोक-९१ तक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन अष्टक, मु. रत्नसिंह, सं., पद्य, आदि: कल्याणकेलिसदनाय नमो; अंति: जनताभिमतार्थसिद्ध्यै, श्लोक-८. ४२४५७. (+#) सिद्धचक्र स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संख्यादर्शक शब्दों के ऊपर अंक
लिखे हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७८६) एक पोथी दुजी पदमणी, दे., (२५४१३, १५४३५). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीधचक्र वर सेवा कीजे; अंति: निज आतमहेत साधे, गाथा-१३. २. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण शुक्ल, ११, सोमवार, ले.स्थल. चंडेसर,
प्रले. पं. दोलतरुचि, पे.वि. श्रीप्रथमजिन प्रसादात्. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वासीतपुरण विवध परे; अंति: रीध वंसीत
फल लहे, गाथा-१७. ३. पे. नाम. श्रीमंधिरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ सीमंधरजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: आजुनो दिहाडो भले; अंति: होज्यो त्रिकाल जी, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तु ही नकलंकी रुप; अंति: संजम लेसा नीरधारी, गाथा-५. ४२४५८. जीव के ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१३, ११४२५-२९).
५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दस प्रकारे कै; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२४५९. (#) सम्यक्त्वमहिमा काव्य व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १५४३९). १.पे. नाम. सम्यक्त्वमहिमा काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सम्यक्त्वरत्नान्न पर; अंति: म्यक्त्वमिति निश्चलं, श्लोक-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२४६०. (#) अष्टमी व रोहीणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद
उजमसी शाह; अन्य श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४३९). १.पे. नाम. अष्टमीना स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
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३६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमू सदा; अंति: संघने कोड
कल्याण रे, ढाल-४. २. पे. नाम. रोहीणी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासवपुजीत वासुपुज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ४२४६१. (+#) महावीरजीन स्तवन सतावीसभवनू, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. ससरथबइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १२४३२). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीसुभविजय सुगुरु;
अंति: सेवक वीरवीजयो जयकरो, ढाल-५. ४२४६२. (4) जंबूसामीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ११४३१). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसति सामीने वीनवू; अंति: नामे होय
जय जयकार, गाथा-१५. ४२४६३. (#) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लुणावाडा, प्रले. मु. ज्ञानरत्न (गुरु
पं.रंगरत्न, तपागच्छ); गुपि.पं. रंगरत्न (गुरु पं. कुशलरत्न, तपागच्छ); पं. कुशलरत्न (गुरु पंन्या. कल्याणरत्न, तपागच्छ); पंन्या. कल्याणरत्न (गुरु आ. दानरत्नसूरि, तपागच्छ); आ. दानरत्नसूरि (तपगच्छ); पठ. श्राव. पानाचंदभाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीवास्यपुज्य प्रशादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२,१२४२०). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
व: श्रेयसे शातिनाथः, श्लोक-२७. ४२४६४. बीजनी थोय सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ११४३३).
बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भावे जीवने; अंति: नीत विनय विवेक रे, गाथा-७. ४२४६५. (+) पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३०).
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमां अषाड; अंति: जीनेंद्रसागर जयकार,
गाथा-४. ४२४६६. (+#) निश्चयव्यवहार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १४४३५). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरु रे देसना; अंति: वितराग इण परे कहे,
गाथा-१६. ४२४६७. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४४३). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: (१)त्रिभुवनसाहिब अरज, (२)म्हारी
वीनतडी अवधारो; अंति: समत अयाहि छे अरदास, गाथा-२०. ४२४६८. थुलीभद्रनी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१३, ११४३०).
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलडे मात मल्हार; अंति: लीला छे घणी जी,
गाथा-१७. ४२४६९. (#) दीवालीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२, ११४३०).
दीपावलीपर्व स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीरथमां जिन वडो; अंति: वांदीया उतरवु भवपार, गाथा-१३. ४२४७०. (+#) गुरुविहारवीनति गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. नवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४३८).
गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाये; अंति: जिम करो आज विहार, गाथा-२०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२४७१, (+४) उज्रेणीनगरीनो वर्णवनी ढाल, संपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, उमयापुर, प्रले. मु. खेमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में पौषधशाला मध्ये इस प्रकार लिखा है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x१२, १२X३४).
उज्जयिनी नगरीवर्णन डाल, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तिहां कण कंचन कोट, अंतिः करी वणवु हुं जेहवी,
गाथा - १८.
४२४७२. (#) एकादशि व सीमंधरजिन थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२.५, ९-११x४० ).
१. पे. नाम. एकादशि थोय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, प्रले. श्राव. मनसुख पानाचंद, पठ. श्राव. हीराचंद प्रेमचंद, राज्यकालरा. मुनसफ साहा.
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मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ, अंति: संघनां विघन निवारी, गाथा-४. २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ आंगण सुरतरु, अंतिः प्रणमु ज मुदा, गाथा ४.
"
४२४७३. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय-अध्ययन १०,११ व १७, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२.५, १६X३९).
उत्तराध्ययन सूत्र - विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
४२४७४. () एकादसिनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२४.५४११.५, १२४३०-३४).
१३X३४).
१. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- लोढणमंडन, पृ. १अ संपूर्ण,
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति सुव्रत सेठ सझाय भणी, गाथा - १५.
४२४७५ (+) पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४.५x१२.५,
मु. सूर, मा.गु, पद्य, आदि श्रीलोदण प्रभू पासजी, अंतिः सूर नामे करजोड, गाथा-५.
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
३६७
ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद जगत उपगारी; अंति: पाम्यो सीधी नीधान जी, गाथा- ७. ४२४७७. (+४) शत्रुंजयतीर्थयात्रा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४११, ११x२६-२८).
शत्रुंजयतीर्थयात्रा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचलमंडण सामी रे, अंति: (-) (पू. वि. दाल-२ गाथा २ अपूर्ण तक
१. पे. नाम. वृहत्शांति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत, अंति: सिवं भवंतु स्वाहा.
है.)
४२४७८. (#) बृहत्शांति व वशीकरण मंत्र, संपूर्ण, वि. १७९३, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. नत्वमेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१०.५, १६x४९).
"
२. पे. नाम. वशीकरण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", प्रा. मा.गु. सं. प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
"1
.
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४२४७९.
(#) भाव बारमास व नेमराजुल भावन, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १४X३२-३६).
१. पे नाम, भावन बारमासो, पृ. १-२आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम गहेली पदमणी, अंति: गढ नाथ सरे सुर नेम, गाथा- ४७.
२. पे. नाम. नेमराजुल भावन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
राजिमती पद, मु. हितधर, मा.गु., पद्य, आदिः प्रीतमनुं पदमण कहे, अंति: आपे सुख अनूप, गाथा-१३. ४२४८१ (०) पजूषणापर्वनु चेत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५,
११x४१).
पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल परब श्रृंगार, अंति: होवे जय जयकार, गाथा-१३. ४२४८२. (#) पजोसणनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५X१२.५, ९४२८).
पर्युषण पर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुनजो साजन संत, अंतिः रुधी सीधी मल्या रे, गाथा-८, (वि. इस प्रति में कर्ता के विषय में 'विबुध वीनीतवर सेवक' इस प्रकार लिखा है.)
४२४८३. लघुपिंगलभाषा, संपूर्ण वि. १९३३ भाद्रपद शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, गोदगुवालेरके लस्कर, प्रले. लक्ष्मीनारायण पठ सा. अर्जिकाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५.५४१२.५, २०४४७).
पिंगलभाषा - लघु, मु. चेतनविजय, पुहिं., पद्य, वि. १८४७, आदि: चरन कमल गुरदेव के; अंति: तौ पावै सिव थान, गाथा- ११७, (वि. कृति अंतर्गत कोष्टक भी आलेखित है.)
४२४८५ () अष्टमी स्तुति, संपूर्ण वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १ ले, स्थल, वीरमगाम, प्र. मु. मोतीचंद ऋषि पठ श्रावि हरखवाई अन्य श्रावि. समरथबाई, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, १२X३४).
अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठम जिनचंद प्रनमि; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार,
गाथा-४.
४२४८६. मौनएकादसीनी थोय, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. हरखबाई; अन्य. श्रावि. समर्थबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बाद में किसी विद्वानने 'बाई हरख' को मिटाकर पास में 'बइसमर्थ पठनार्थ' लिख दिया है., दे., (२५.५X१२.५, १२X३३).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गौतम बोले ग्रंथ, अति संघना वीघन नीवारी, गाथा-४. ४२४८७, (+४) मौनएकादशीनी धोय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४१२.५, १०३७).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्म, आदि गौतम बोले ग्रंथ, अंतिः संघना वीघन नीवारी, गाथा-४, ४२४८८ (०) सुमतिजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का
,
अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X१३, १०X३२).
१. पे. नाम. जिन पदं, पू. १, संपूर्ण
सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: निरख वदन सुख पायो, अंति: ओर देव नही आयो, गाथा-४.
"
२. पे नाम ज्योतिष लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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३. पे. नाम, मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण,
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ. पु.ि प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-).
**
४२४८९. (+#) सिद्धमंत्रगर्भित स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५४१२.५, ११४२९).
1
सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं. पद्य वि. रवी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना, अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१० (वि. कृति के अंत में 'इत्यनुभूतिस्वरूपाचार्यविरचितं सिद्धमंत्रगर्भितस्तोत्रं' इस प्रकार लिखा है.) ४२४९०. नववाडीगर्भितसीलनी सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्राव. हरखचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १०x३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३६९ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणी,
ढाल-१०. ४२४९१. (+) नववाडिगर्भितशीलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. महेश्वर व्यास
सांकला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन मूल्य के विषय में 'लखामण अगीयार पैसा' इस प्रकार लिखा है., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: जाउं वारणे भामणे,
ढाल-१०, ग्रं. ७०. ४२४९२. नववाडिगर्भितसीलनी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३,
ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. हरखबाई; अन्य श्रावि. समरथबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बाद में किसी विद्वानने 'बाई हरख' को मिटाकर पास में 'बइसमरथ' लिख दिया है., दे., (२५.५४१२.५, १२४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणी,
ढाल-१०. ४२४९५. (+#) सांतनाथ छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५४१२, १६४३५). १.पे. नाम. सांतनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछीत
सिवसुख पावे, गाथा-२१. २.पे. नाम. मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
____ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४२४९६. (#) मौनएकादशी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; अन्य. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १०४३८).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: संघना वीघन नीवारी, गाथा-४. ४२४९७. (+#) १७० जिन नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १३४२२).
१७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेव कर्णभद्र; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२४९८. (#) ज्ञानपांचमीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ९४३७).
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसीधने करूं; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ४२४९९. (#) अभव्य कुलकं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक लेखकने पेन्सिल से पत्रांक १ लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १४४३६).
अभव्य कुलक-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: जे अभव्य जीव होय; अंति: कुलक उपरथी लखी छे. ४२५००. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६५, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीतणा, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४४०).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: स्म परमानंदसंपदं, श्लोक-८८. ४२५०१. (+#) पच्चखाण संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. मेघराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ११४३०).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ४२५०२. (+#) ऋषभजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३२). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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३७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेशर प्रीतम; अंति: आपणो आनंदघन पद
रे, गाथा-६. २.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणंद तुमे लायक; अंति: वाचकविमल तणो कहे राम, गाथा-५. ३. पे. नाम. संखेस्वरापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर; अंति: मुझने भवसायरथी
तारो, गाथा-५. ४. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: सिद्धारथना रे नंदन; अंति: विनयविजय गुण
गाय, गाथा-५. ५. पे. नाम. मोनइग्यारस स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोसरण बेठा भगवंत; अंति:
समयसूंदर कहु दिहावडी, गाथा-१३. ६. पे. नाम. ज्ञानपंचमीस्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति:
वीरजिनवर इम कहे, ढाल-३, गाथा-२५. ७. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण..
मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: बुधिकुसल गुण गाया रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ पुजाव; अंति: संघ आवे घणो
धसमसीया, गाथा-६. ९. पे. नाम. चीतामण स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुधे आसता; अंति:
यसुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-७. १०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो के; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ११. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलग अजित जिणंदनी; अंति: रूपनो जिनजी अंतरजामी, गाथा-५. १२. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: पंचम गनाननो
भेदरे, गाथा-५. ४२५०३. (+) दीवा व रुखमणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५,
१३४४१). १. पे. नाम. दीवा सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
दीवा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दस द्वारे दीवो कह्यो; अंति: तो नीश्चै मोक्ष जाय, ढाल-२, गाथा-९. २. पे. नाम. रुखमणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीचरतो गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-७,
(वि. दो गाथा की एकगाथा गिनी है.) ४२५०४. (+) मुरखप्रतिबोधनी सझाय व सहसफणापार्श्वनाथजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,
अन्य. सा. भक्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १२४४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३७१ १.पे. नाम. मूरखप्रतिबोध सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान कदि नवि थाय; अंति: बोधीबीज सुख
पाय, गाथा-९. २.पे. नाम. सहसफणापार्श्वनाथजीनुं स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, बाळमित्रमंडल, मा.गु., पद्य, वि. १९५१, आदि: गंगातट तपोवनमा रे; अंति: पामो तुमे
भवपारी, गाथा-५. ४२५०५. (+) सरस्वतिमाताजीनो अष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३.५, १५४३०).
सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: नीत नमेवी जगपति, गाथा-९, संपूर्ण. ४२५०६. विपाकसूत्र-श्रुतस्कंध २, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२४४१२, १४४४४).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. ४२५०७. (+#) संतिकरं स्तोत्र व सरस्वती मंत्री, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २.पे. नाम. सरस्वती मंत्री, पृ. १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२, (वि. अंत में सरस्वतीदेवी का मंत्र भी लिखा है.) ४२५०८. (#) थापनाजी पडिलेहवा व चेत्रीपुन्म देववांधवा विधि, संपूर्ण, वि. १९३८, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, २१४५२). १. पे. नाम. थापनाजी पडिलेहवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण..
स्थापनाचार्यजी पडिलेहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि तस्सउ; अंति: ठवण उपर पधराविजे. २. पे. नाम. चेत्रीपुन्म देववांधवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.
__ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम चोको दिराईजे; अंति: पछे इछाये करिये. ४२५०९. (#) अध्यातमयोगिनि कथली भास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ३४३२).
औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेर सामायक किधु; अंति: थइई सिद्धपद भोग जि,
गाथा-४, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहीमाप्रभसुरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-२ तक लिखा है.) ४२५१०. (+#) भुवनदीपक प्रश्नग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, ले.स्थल. कासी, प्रले. बालकृष्ण ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३,१३४३५-३८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: भार्गवश्चेत्तरश्मे, श्लोक-१७२, (पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१५९ तक नहीं है.) ४२५११. (+#) पोसहविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ११४२९).
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरीयावही पडकमी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४२५१३. (+#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, १५४३२). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः,
ढाल-९.
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३७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२५१४. (+#) बृहद्ग्रहशांति व नवग्रह मंत्र, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. विद्युत्पुर, प्रले. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९१८) जला रक्षे स्थला रक्षे, दे., (२५.५४१३, १९४४८). १.पे. नाम. बृहद्ग्रहशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, श्लोक-२८. २. पे. नाम. नवग्रह मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
जिनेश्वर आराधना विधि-ग्रहपीडायां, सं., गद्य, आदि: रविपीडायां रक्तपुष्प; अंति: पीडोपशमंति स्यात्. ४२५१७. (#) तिजयपहत्त स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १५४३४). १.पे. नाम. तिजयपहुत्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तमे जो जो रे भाई; अंति: लबध्य कहे इम भली ए,
गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण.
काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४२५१८. (+#) श्रावक राधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १६x४७). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत; अंति: मुनिषड्रसचंद्रवर्षे,
अधिकार-५. ४२५१९. (#) गजसुखमाल की सीज्झाय व चोबीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सोभाराम,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, २०४४०). १.पे. नाम. गजसुखमाल की सीझाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: सोरठ देस द्वारकानग्र; अंति: बरत
कोडे कलाण, गाथा-२२. २.पे. नाम. चोबीसी, पृ. २आ, संपूर्ण.
२४ जिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै श्रीऋषभ जो; अंति: कर्म भव अंत्रजामी, गाथा-७. ४२५२१. (+#) पार्श्वनाथजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (४५४११.५, ३८x१३).
पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास; अंति: सीधी आणंद घेरे, गाथा-१०. ४२५२२. (+#) नवकार छंद व गुरु आशातनाफल श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. सा. किस्तूरश्रीजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४१२.५, १०४२६). १.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित परण विवध; अंति: ऋद्धि वंछित लहे,
गाथा-१७. २. पे. नाम. गुरु आशातनाफल श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.
जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४२५२३. (+#) निगोद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक २ अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १५४४३).
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४२५२४. (+) पद्मावती स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३.५, १६४३९).
पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकार बीज; अंति: अमरा पद्माश्रितम्,
श्लोक-२६. ४२५२६. (+#) सिद्धचक्र स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२४.५४१२.५, ११४२१). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: स्रीसिद्धचक्र आराधओ; अंति: सीवसुख दइ भरपुर जी, गाथा-४. २.पे. नाम. सिद्धचक्रनु स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्रनी करो; अंति: अमृत पद लहइ तेह, गाथा-७,
(वि. इस प्रति में गुरु का नामोल्लेख नहीं है.) ४२५२७. सिद्धचक्रोद्धार विधि सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. नथमल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम पत्र की मध्यफुल्लिका में यंत्रालेखन किया गया है., दे., (२४.५४१३, २१४६९). सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियावंत
उद्दाह; अंति: सिझंति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा;
____ अंति: रहस्यभूतमित्यर्थः. ४२५२९. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध-ऋषभदेव चरित्रपर्यंत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६५-६३(१ से ६३)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १२४३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
कल्पसूत्र-बालावबोध*मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ४२५३०. (+) १४ गुणस्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९६४, फाल्गुन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. अचलदास माली; पठ. सा. केसरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१४, १४-१८४२०).
१४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). ४२५३१. (+#) पंचांगुलीदेवी स्तुति छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वैराटनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १४४३८). पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारति पय नमी; अंति: संपति नित्य विलसंत, गाथा-१४, (वि. दो गाथा
की एक गाथा गिनी है.) ४२५३४. (+#) नमस्कार महामंत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १६४३७-४५). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा दो पाद पर्यन्त लिखी है.) ३. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ४. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३, (वि. बृहत्शांति की अंतिम गाथाएँ लिखी है.) ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नम: पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
जै.क. बनारसीदास, पु,ि पद्य, वि. १७वी आदि नमी केवल नमी केवल अंतिः तजि संसार कलेस, गाथा १०. ७. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण.
कर्मछतीसी, पु,ि पद्य, आदिः परम निरंजन परम गुरु; अंतिः करै मूढ वढावै सिष्टि, गाथा- ३७.
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८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: निरमल ग्वान के अंति: गोली लागी ग्यान की, (वि. गाथांक अंकित नहीं हैं.) ९. पे. नाम. गोतमस्वामीजीरा दूहा, पृ. ३आ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसै; अंति: लिखमी लील करत, गाथा-२. १०. पे नाम. चिंतामनपार्श्वनाथ स्तोत्र, प्र. ३आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन छंद, पुष्टिं पद्य, आदि: हथडा जेह सुलखणा, अंतिः धन धन दोलत होय, गाथा- ११.
४२५३५. (+#) पच्चीश बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५४१३, १५४४४)
२५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति च्यार, अंतिः संपराव यथाख्यात.
४२५३७. (+०) केसरीचायीनुं स्त्वन, संपूर्ण बि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, १४x२७).
आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदिः प्रथम तिर्थंकर रीषभ अंतिः मागुं तुम पाय सेवा, गाथा-७, ४२५३९. (+०) परमानंदपचीसी स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
"
(२५.५X१३, १३X३६).
परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः परमानंदसंपन्न, अंतिः परमं पदमात्मनः,
श्लोक-२५.
४२५४०. (+#) इरियावहीनी सझाय, अपूर्ण, वि. १९०५, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२, १२x२८).
इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: (-); अंति: विनयविजय उवझाय रे, डाल- २, गाधा- २५, (पू.वि. डाल- १ गाधा १२ अपूर्ण तक नहीं है.)
४२५४१. (#) महावीरजिन मातापिता गुणादि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, १८४५२).
जैन सामान्यकृति, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंतिः (-) (वि, सिद्धार्थराजा त्रिशला राणी के श्रृंगार, गुण वर्णन व राजपुतों के ३६ कुलों का नाम.)
४२५४२. (#) कल्लाणकंदं आदि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जी., (२५x१२, १२४३३).
१. पे नाम, कलाकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४.
२. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर, अंति: पुर मनोरथ माय, गाथा-४.
३. पे. नाम चोधदिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सर्वारथ सिद्धथी चवी; अंति: नयधारी निहाल तो, गाथा- ४.
४. पे नाम, पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करी मेरु, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३७५ ४२५४३. (+#) दंडक व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक शुक्ल, १, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. खुबकुशल;
पठ. श्राव. बलदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३२). १.पे. नाम. दंडक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ,
गाथा-४६. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-३. ४२५४४. (#) चेतनाराणीविनती सज्झाय, वर्णमाला व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १९४१५). १.पे. नाम. चेतनाराणीविनती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना राणी रे रायजी; अंति: हुतर्यो रे संसार, गाथा-५. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
वर्णमाला*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. वर्णाक्षर व संयुक्ताक्षर लिखे गये हैं.)। ४२५४५. (#) दश पछखाण, संपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १४४३१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. बीच-बीच में सूत्र का
प्रतीकपाठ दिया है.) ४२५४७. (+#) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ११४३२).
जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रैलोक्यनाथाय; अंति: सुखमुच्यते, श्लोक-४०. ४२५४८. (+) सप्तभंगी स्वरूप सह अर्थ व भाषा, संपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरत, प्रले.पं. धर्मचंद्र
गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४४१). १.पे. नाम. सप्तभंगी स्वरूप सह अर्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एकाधिक बार जुडी हुई है.
सप्तभंगी स्वरूप, सं., गद्य, आदि: (१)सिद्धिः स्याद्वादादि, (२)स्यादस्ति स्वद्रव्या; अंति: वस्त्विति सप्तमः.
सप्तभंगी स्वरूप-अर्थ, सं., गद्य, आदि: लोके यत्किंचद्वस्तु; अंति: वक्तव्यमिति सप्तभंगी. २. पे. नाम. सप्तभंगी स्वरूप सह भाषा, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एकाधिक बार जुडी हुई है.
सप्तभंगी स्वरूप, सं., गद्य, आदि: स्यादस्ति स्वद्रव्या; अंति: सप्तमो भंगः..
सप्तभंगी स्वरूप-भाषा, मा.गु., गद्य, आदि: लोकमाहि जि कोई; अंति: मुख्य सप्तभंगी कही. ४२५५०. (+#) जीनरक्षजीनपालरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. भागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १५४४०).
जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: महाविदेह जाशी मोखी, ढाल-४. ४२५५१. (+) च्यार सरणानो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १२४२८).
४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने च्यार सरणा; अंति: भवनो हुं पार जी,
अध्याय-४, गाथा-१२, ग्रं. १७. ४२५५२. (#) शत्रुजै छट्टअट्ठम तप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ९४२४).
जैनविधि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).
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३७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२५५३. (+#) इलाचिमुनि सझाय, पार्श्वजीन स्तोत्र व शांतिनाथ मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३४). १. पे. नाम. इलाचिमुनि सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदि: नामे इलापुत्र जाणिइं; अंति: लब्धिविजे गुण गाय,
गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजीन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिपार्श्वनाथः,
श्लोक-७. ३. पे. नाम. शांतिनाथ मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२५५४. (#) जीवरासिआलोयण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मांडल,
प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र (पार्श्वचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. पासचंदसूरिगच्छे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवें राणि पदमावति; अंति: पापथि छुटे
ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ४२५५५. (#) गौतमाष्टक स्तोत्र व चोविसतिर्थंकर यंत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. गुलाबचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है व अंत में 'इति नमस्कारपाखि अतिचार पाखीसूत्र गौतम स्तोत्र चोविशतिर्थंकर स्तोत्र' इस प्रकार लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १४४३६). १.पे. नाम. गौतमाष्टक स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूति वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. चोविसतिर्थंकर यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा यंत्र में न्यस्त करने के अंक जिननामानुसार
जिनवाची शब्दों पर लिखे हैं. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्,
श्लोक-८. ४२५५६. नारकिनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ., (२६४१३, १२४३५).
नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६. ४२५५७. संथारापोरसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. वखतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४२९).
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निस्सिही निस्सिही; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१६. ४२५५८. (#) पल्योपमसागरोपम मान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१३,११४३२).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२५५९. (+) सिद्धाचलगिरिराज स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १०४३६).
शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: तत्परपदमविजयसुहितकर,
श्लोक-७. ४२५६०. (+#) शत्रुजय स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भाईचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १०४३६). १. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: इम विमलाचल गुण
गाय, गाथा-१५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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२. पे नाम शत्रुंजय स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वनिता पीउने वीनवे अंतिः पामी सिवपुर वास, गाथा ५. ४२५६१. (४) अंतरायनी सझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१३,
११x२८).
असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि,
गाथा - ११.
४२५६२. (-) संधारापूरसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२४४१२,
११४२७).
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा- ११. ४२५६३. (+) नेमिजिन पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२.५, ११x२७).
१. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. माणिक्यविजय (गुरु मु. रामविजय); गुपि. मु. रामविजय; पठ. पं. नायकविजय गणि.
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आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: फुलडि चंगे लाववो अंति: सिव प्रभु का पाय, दोहा-३.
२. पे. नाम. मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह उ., पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पण., आदि: (-); अंति: (-).
"
३. पे. नाम. जैन पद. पू. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
जैन पद, गु., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४. पे. नाम. रेवतीश्राविका सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है एवं इस प्रत के साथ एकाधिक बार जुडी हुई है.
रेवतीविका सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदिः सोवन सिंघासण रेवती; अंतिः आणंद हर्ष अपार रे, गाथा-१०,
बार जुडी हुई है एवं अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
मा.गु. पद्म, आदि: सोवन सिंघासणि रेवती, अंतिः (-) (पू. वि. गाथा ७ तक है.)
५. पे. नाम. श्रुतदेवता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - छे.मू. पू. * संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
६. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एकाधिक
३. पे, नाम, विचार संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण.
३७७
४२५६४ (४) मल्लनाथजीनो स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५५१२.५, १२४२५).
"
१. पे. नाम. मल्लनाथजीनो स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
ल्लजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: हवै दान छमछर दे, अंति: लेता लील विलाश, गाथा - १७, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम वाली गाथा नहीं है.)
२. पे. नाम. खिम्पाछत्रीसी, पू. ७आ-१०अ संपूर्ण वि. १८५३ श्रावण कृष्ण, २ ले स्थल. खाचरोद
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदरि जीव खिमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी,
गाथा - ३६.
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विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंतिः (-).
४२५६५. (+#) एकादसी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. वटपली, प्रले. ग. कांतिविज (गुरु पं. नायक विजय); गुपि. पं. नायकविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि) पं. कपूरविजय गणि (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२७१३, १३x२७).
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३७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमजिणंद; अंति:
जिनविजय जयश्री वरि, ढाल-४, गाथा-४२. ४२५६६. (+) ज्ञानपंचमीविधि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. महिमाविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीर; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि पावे, गाथा-४,
(वि. प्रतिलेखकने गाथा-१ को दो पाद में पूर्ण कर के चतुर्थ पाद में गाथांक २ लिखा है एवं गाथांक ३ दो बार लिखा
४२५६७. (+) पजुसणनि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ११४३४).
पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: सुत जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६. ४२५६८. (#) २० स्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १४४४४). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याइए; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
पू.वि. ढाल-२ तक ही है.) ४२५६९. (+#) हितोपदेश स्वाध्याय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ८४४०).
आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहो जी; अंति: सुणो भविक सहु संत, गाथा-१०.
आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांप्रते मनुष्यायु; अंति: मूरख हुवे सो जाणे. ४२५७०. (#) संखेश्वर छंद व चैत्यवंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२५.५४१२.५, १३४३०). १. पे. नाम. संखेश्वर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोहनविजय.
पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. पद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर गांम; अंति: पद्मविजय सीर नामे, गाथा-७. २.पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनविधि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२५७१. साधुपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९८२, श्रावण शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अणहिलपुरपाटण, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १०४४५).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: करि मिच्छामि दुक्कड. ४२५७२. (#) आहारगवेषणा अने ग्रासेषणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १४४३७).
आहारगवेषणा सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: ते लहे सुख संजोग,
ढाल-३, गाथा-३६. ४२५७३. भवदेवनागिला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४४०).
भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भाइ भुदेव घरे आवीया; अंति: रुपविजय जयकार रे,
गाथा-७. ४२५७४. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४४२).
प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: कर पडीकमणुप्रेमथी; अंति: ते नर सुर
शिव सद्म, गाथा-९. ४२५७५. (#) महावीरजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. संयमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४४२). महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजी सुणो एक विनति; अंति: वीर तोरा
वारणे रे, गाथा-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३७९ ४२५७६. (#) सिखामण सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ९४३९).
आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं मारुं मम कर; अंति: मुगतिवधु केरो रंगरे, गाथा-७. ४२५७७. (+#) चित्रामण सुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १५४३८).
चित्रामण शुकनावली, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञनी मूर्ति; अंति: श्रीअंबाका प्रसादात, श्लोक-१०८. ४२५७८. (+#) क्रोधमानमायालोभ स्वध्याय व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३२). १.पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ स्वध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पेलुं सरसती लीजे नाम; अंति:
___कंतिविजय० गुणगाय, गाथा-३२. २. पे. नाम. रोहणी चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासवपुजीत वासुपुज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ३.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहे सुत; अंति: वाणी वनीत्त रसाल, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बेहनी सुंदरसना; अंति: सुणज्यो एकह चित, गाथा-३. ५.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: वंदू सदा वनित, गाथा-३. ६.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवछरी दिन; अंति: विरने चरणे नामी सीस, गाथा-३. ४२५७९. (#) सिद्धसारस्वत स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १२४३३). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ४२५८०. (+#) बाहुबल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ८४३५). सुबाहजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सुबाहु सुहकर; अंति: सेवक सुजस वखाणेरे,
गाथा-५. ४२५८१. (#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ८४३५). प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छंडी रलीयामणो; अंति: एतो दीठा सिव परतक्ष.
गाथा-१४. ४२५८२. (+) पचखाण आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४५, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. छबील,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. पच्चखाण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. २.पे. नाम. पच्चखाणना आगारनी गाथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमुक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३. पे. नाम. अशनादिक नाम आदि विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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३८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अशनादिक वस्तु म व काउसग्गादि के आगार
विचार.) ४२५८३. (+#) सीतासती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १७४४७). १. पे. नाम. सितासतीरी सिझाए, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मलती घणु; अंति: नित
प्रणमुंपाअरे, गाथा-८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंगन्यारा; अंति: सरन चरन चीत
लाया हे, गाथा-९. ४२५८४. (#) राजिमतिविरह लेख आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. आधोइ,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १७४४५). १.पे. नाम. राजिमतीविरह लेख, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवतिगिर; अंति: रूपविजय तुम दाय, गाथा-१९. २. पे. नाम. शांतिनाथजीनो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: रंगस्यूं पंडित रूपनो,
गाथा-७. ३. पे. नाम. समस्या हो, पृ. १आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४२५८५. (-#) सक्लार्थ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२६, फाल्गुन शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. षटकपुर, प्रले. पं. प्रतापरत्न
(गुरु मु. मलुकरत्न, तपागच्छ); गुपि.मु. मलकरत्न (गुरु आ. दानरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १५४३४). सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-२७. ४२५८६. (#) पंचपरमेष्ठिजिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २,
ले.स्थल. वल्लीनगर, प्रले. पं. तिलोकविजय (गुरु पं. नित्यविजय); गुपि.पं. नित्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प. नित्यसत्क. श्रीमाणिभद्रजी प्रशादितः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १०x२५).
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: स: कमलप्रभाख्यः , श्लोक-२४. ४२५८७. (+#) सिद्धचक्रनि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वलादनगर,
प्रले. मु. खुसालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,१२४३६). सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सूरासूर सेवीत; अंति: सूविधिवीजय
सूविलास, गाथा-१२. ४२५८८. (#) सिद्धनी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. धुराभाई खोडाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९३५) जेवू दीर्छ तेवुलीखु, दे., (२६.५४१२, १२४३९).
सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछा करे; अंति: कहे सुख अथाग हो गौतम, गाथा-१६. ४२५८९. (+#) आदेस्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४२८).
आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: आदि जिणेसर वीनती हो; अंति:
त्रिभोवननो आधार, गाथा-१३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३८१ ४२५९०. (+#) औपदेशिक व पुरुषसिखामण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १९४४८). १. पे. नाम. औपदेशिक सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी;
अंति: उदय महाजस विस्तरई, गाथा-१०. २.पे. नाम. पुरुषसिखामण सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंता सीख; अंति: मुगतवधु हेला वरे, गाथा-९. ४२५९१. (#) आदिजिन आदि चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२६४१३, ५४२५). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरु; अंति: लहिये अविचल ठान, गाथा-३. २. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर सोलमा; अंति: चंदलो दीठे परमकल्याण, गाथा-३. ३.पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिनाथ बावीसमा शिवा; अंति: नमतां अविचल थान, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आश पूरे प्रभु पासजी, अंति: गया नमतां सुख निरधार, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: पद्मविजय विख्यात, गाथा-३. ४२५९२. (+) जोग प्रश्नोत्तरादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ३०x१६).
विचार संग्रह", प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. जोगविधि के प्रश्नोत्तर, साधु २७ गुण, श्रावक २१ गुणव
१३ क्रियास्थान के नाम आदि विचार है.) ४२५९४. (#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. जेठमल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन रे तु ध्यान आरत; अंति: तुरत आणंद वरतावे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जुगारोपरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-जुआत्यागविषये, रा., पद्य, आदि: कहे सेठाणी सुणो सेठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक ही लिखा है.) ४२५९५. (+#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १९x४०).
दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दिक्ष्या लेनार एटला; अंति: उपासरे लावीइ. ४२५९६. (+#) भिलीनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १२४३३).
__ भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने विनवं; अंति: ए सतिय छे पूरी, गाथा-१८. ४२५९७. (#) च्यार प्रत्येकबुद्ध स्वाध्याय व मेघकुमर सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३८). १.पे. नाम. च्यारप्रत्येकबुद्ध स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मागु., पद्य, आदि: चंपा नयरी अतिभली हुँ; अंति: गुण गाया हे पाटण
नयर, ढाल-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. मेघकुमर सिझाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
,
मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदिः धारणी मनावे हो; अंति: छूटीजै गर्भावास, गाथा-५. ४२५९८. (+) थुलिभद्रनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २६१२.५, ११३१). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु, पद्य, आदि: बोलि गयो मुख बोल अंतिः भणे शांति मया धकि जी, गाथा - १४, ग्रं. २४.
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४२५९९. (+#) रोहिणी सज्झाय व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७११.५, ११x४०).
१. पे. नाम. रोहिणी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्य जिन वयण; अंति: संघ सकल सुखदाय रे,
ढाल ५.
२. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अति: (-), श्लोक-२.
४२६०० (+) आत्म स्वाध्याय सह टवार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित, जैदे
(२६.५X१२.५, ७X३२).
१. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य.
आध्यात्मिक हरियाली, आव. देपाल भोजक, मा.गु, पद्य वि. १६वी, आदि बरसे छड़ कांबल, अंतिः कवि देपाल वखाणइं, गाथा-७.
आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबल कहतां इंद्री, अंतिः खातुं छइ निश्चे. २. पे नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १आ. संपूर्ण.
लोक संग्रह प्रा. सं., पद्य, आदि: (-); अति (-), श्लोक ११.
"
"
४२६०१. (+#) संतिकरं स्तोत्र, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की
गयी है, दे. (२६४१३, ९४२४).
"
संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ११
अपूर्ण तक है.)
४२६०२. (*) छपाणवै दोष सह टवार्थ- बृहतकल्पे, संपूर्ण, वि. १९५९, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पू. २, ले. स्थल भरतपुर, प्रले. अगरचंद, पठ. मु. अगरचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६१२.५, ५X४०). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उद्देसिअ अंति: सूत्रे पारिवासिय ९६ (वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० आधाकर्मी आहार; अंति: काल घणीवार राखी करे.
४२६०३. (+१) आवकरी करणीरी व संवर सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही
फैल गयी है, जैवे (२५.५x१२.५, ११-१३x३०-३४).
१. पे नाम. श्रावकरी करणीरी सिज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण.
श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तूं ऊठै, अंति: करणी दुखहरणी छै एह, गाथा - २२. २. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. २अ-२आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण तक है.)
४२६०४. (+#) जैन गाथा व ३२ अशीज्या सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जै. (२३.५४११.५, ५४४७).
"
१. पे नाम, जीववध हेतु व कल्पवृक्ष नाम गाथा सह टवार्ध, पृ. १अ संपूर्ण वि. १८९७ श्रावण शुक्ल ८ प्रले. रएण,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. कृति अंतर्गत जीववध के ६ हेतुव १० कल्पवृक्ष के नाम लिखे हैं.
जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
3
जैन गाथा का टवार्थ", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२. पे. नाम. ३२ अशीज्या सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८९७, चैत्र शुक्ल, ८, गुरुवार, ले. स्थल जयनगर,
प्रले. पं. परमसुख, प्र.ले.पु. सामान्य.
३२ असज्झाय गाथा, प्रा., पद्य, आदिः उक्कावाए दिसादाहे; अंति: मज्झमए अद्धरत्तीए, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक गाथांक नहीं लिखे हैं.)
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"
३२ असज्झाय गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि उ० तारो टुट तेहनी, अंति: राते होए सुत्र न गुण.
४२६०५. () साधुपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्रले. अमथालाल मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१३, १३x४२).
३८३
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४२६०६. पंचम्यादितपउचारण विधि, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमसी रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७४१२.५, १२४२९).
ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: ठवणी मांडी इरीयावहि; अंति: नाम फेरविने कहिई. ४२६०७ (+) पद्मप्रभु आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१९ ज्येष्ठ अधिकमास शुरु, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १३, ले. स्थल. रोझडा, प्रले. ग. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२३.५x१०, १४X३६-४२).
१. पे. नाम पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण,
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मोहन मारा, अंति: राम कहे शुभ सीस हो, गाथा-५. २. पे. नाम, अजित स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु पद्य, आदि; ताहरी मुद्रानी बलिहा, अंतिः रामे आणंद पायो रे, गाथा-५.
३. पे. नाम. मल्लि स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण
मल्लिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे जाणी मल्लिजिणंद, अंति: मिळ्वो तुं भाग्ये रे, गाथा-७.
४. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः संवर रायना नंदना रे; अंतिः लहे आनंद घणो रे लो, गाथा ५. ५. पे. नाम, श्रेयांस स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण
श्रेयांसजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीश्रेयांसनी सेवना, अंतिः रामविजय कहे एम, गाथा-५,
६. पे. नाम. संभव स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
संभवजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो ल्योने माहरा, अंति: राम कहे सुभी सीस, गाथा-५. ७. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण.
अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा अभिनंदन जिन; अंति: रामविजय भणै रे, गाथा-५. ८. पे. नाम, सुमति स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण
सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि; सुमति सुमति सलूणा, अंतिः राम लहे जयकार, गाथा ५. ९. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा माहरा वीनवे; अंति: नेमजी सामलो रे, गाथा-७. १०. पे नाम. पदमप्रभुजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
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पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि अजब बनी रे मेरी अंतिः रामे पायो परम जगदीस, गाथा ५. ११. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो परकर देश; अंति: सिवरमणी रसिया, गाथा- ७. १२. पे. नाम. मुनिसुव्रत स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: मुनिसुव्रतस्युं मोहन, अंति: राम कहे शुभ सीस हो, गाथा-५.
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१३. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रामविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल तेरे काजि; अति: लहै राम विभूति खरी, गाथा-५. ४२६०८. (+) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४४१).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६,
गाथा-४७. ४२६०९. (+#) दसपचखान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ७४३३).
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि.
प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: उ० सुर्य उग्याथी; अंति: वो० अन्यथी वोसिरइ. ४२६११. (#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४६, आषाढ़ शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साद्रिपुरी, प्र.वि. अंत में 'शीघ्रतरगत्या' ऐसा उल्लेख मिलता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १०४२६).
पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जवेरसागर, सं., पद्य, आदि: पार्श्वजिनवर पार्श्व; अंति: भक्तिरागदं परं, श्लोक-७. ४२६१२. (+) पौषदशमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष),
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२३४१२, १२४३४).
पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहत; अंति: येन शीघ्रंरचयांचकार, श्लोक-७५. ४२६१३. (+#) क्रोध आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५-१७४३८-४२). १.पे. नाम. क्रोधतणी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआरे फल छे; अंति: उपसमरस माहि,
गाथा-६. २. पे. नाम. माननी सझाय, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: दीजीए देसोटो रे,
गाथा-५. ३. पे. नाम. मायानी स्वाध्यय, पृ. २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकीत मूल जाणीइ; अंति: एह छे मारग शूध
रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभनी सझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे जो जो ते लक्षण; अंति: हुं वांदु सदा
रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. सामाअकनी सीज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८४१, कार्तिक शुक्ल, ३, प्रले. पं. हसविजय (गुरु पं. रविविजय
गणि); गुपि.पं. रविविजय गणि (गुरु पं. केशरविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन शुद्धे करो; अंति: सामायक करजो नीसदीश,
गाथा-५. ६. पे. नाम. थुलभद्र स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. लुणपुर. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लटकाली रे कोस्या; अंति: वीजय कहे उल्लासौरे,
गाथा-१३. ७. पे. नाम. बाहूबल स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहूबल वन काउसग; अंति: तेह समकीत संधुरा, गाथा-६,
(वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ८.पे. नाम. हीरवीजयसूरी स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
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३८५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडीजी वेनवूअंति: होजो मुझ आणंद,
गाथा-१८. ९.पे. नाम. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जश मूख सोहे शरशती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ प्रारंभ तक ही है.) ४२६१४. (+) मंदिरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३४-३७).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: पुरव पुन्ये पायो रे,
ढाल-७, गाथा-३९. ४२६१५. (+) अछीलालनी सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२५.५४१२.५, ११४३३). १.पे. नाम. अछीलालनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोरे गाम; अंति: राजवीजे रंगे भणे जि,
गाथा-१५. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल साहिब वीनती; अंति: मान० वीनती छे छेक, गाथा-८. ३. पे. नाम. नेमिनाथनुं स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमतीस्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फेरी गया; अंति: ए दंपति दोइ शिद्ध,
गाथा-६. ४२६१६. (#) भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, ११४२५).
भगवतीसूत्र सज्झाय, मु. गुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: भगवतीसूत्रनी देशना; अंति: आनंद हर्ष न माय हो, गाथा-५. ४२६१७. (+) थुलीभद्रनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९५४, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२४२८).
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछड माता मलार बहु; अंति: ए लक्ष्मीविजय घणी,
गाथा-१७. ४२६१८. (+) सप्तदसमजुठ स्वध्याय, संपूर्ण, वि. १८६३, माघ कृष्ण, ३०, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महावीरस्वामी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३५). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), (प्रतिपूर्ण,
वि. मात्र १७ वे पापस्थानक मायामोस की सज्झाय है.) ४२६१९. (+#) देवानंदा सझाय, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रावण शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. मु. अमीविजय (गुरु
मु. आनंदविजय); गुपि. मु. आनंदविजय; पठ. श्रावि. द्वारी बा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीसांतीनाथ प्रसादेत्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४३७). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट मनमा आणी,
गाथा-११. ४२६२०. (+#) निसालगरगुं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४३३). महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीभुवन जीन आणंद ए; अंति: सेवक तुझ चरणे नमे ए,
गाथा-१९. ४२६२१. (#) महावीर जिनस्तवन-निगोदविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. चंद्र (पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४२८). महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: बलि जाउं श्रीमहावीर; अंति: वेदना
भवदुख पार उतार, ढाल-२, गाथा-४२.
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३८६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२६२२. (+#) अंतरिक छंद, संपूर्ण, वि. १८५९, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. कांसंद्राग्राम, प्रले. मु. शिवरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४३५). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दिओ सरसति; अंति:
दरसण हु वंछु सदा, गाथा-४९. ४२६२३. (#) दशवैकालिकसूत्र का टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे.. (२४.५४११, १२-१३४३५-३७).
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२६२४. (#) अजितसांति स्तवन व नवमी भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, २०४६४). १.पे. नाम. अजितसांति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: सिरिमेरुनंदण
उवझाय ए, गाथा-३२. २.पे. नाम. १२ भावना सज्झाय-भावना ९, पृ. १आ, संपूर्ण.
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४२६२५. सरस्वती स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६४११.५,
१३४४२-४६). १.पे. नाम. सरस्वति मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सरस्वति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवि; अति: मुखतांबूलरचिताम्, श्लोक-९. ४२६२६. (+#) औपदेशिक आदि प्रभाती संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४२६-३०). १. पे. नाम. औपदेशिक प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: हारे समझने मुरख्या; अंति: धरम नही थासे, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक प्रभाति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते उठीने प्राणी; अंति: मनुस तणो अवतारोरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-वैराग्य, मूलदास, मा.गु., पद्य, आदि: वैरागना पदने वीघन; अंति: वाअक एम बोले, गाथा-४. ४. पे. नाम. ४ मंगल प्रभाति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मु. हीरजी शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमने गुरुने; अंति: माहरे सकल सीधी, गाथा-६. ५. पे. नाम. आदिजिन प्रभाति, पृ. २अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदजिन रटण कर; अंति: आतमानु कलाण इछे, गाथा-४. ६.पे. नाम. अनंतजिन प्रभाती, पृ. २आ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरवारनी सोहली; अंति: आनंदघन राज पावे,
गाथा-७. ४२६२७. (+#) स्नातपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३५). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसय अतीसय जुवो; अंति: कहि सुत्र मजार,
ढाल-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३८७ ४२६२९. (+#) नेमिजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १९४५५). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण तक
लिखा है.) २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम जिणेसर अतिवेसर; अंति: रंग वधे रामचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. हबसीफिरंगी पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. ४. पे. नाम. सीधाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरु मन मोह्यो रे; अंति: कहेता नावे पार,
गाथा-५. ५. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअनंत जिनेसरसुं; अंति: मुझ प्रेम महंत रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: वामानंदन साहिबा हा; अंति: मुनिराज
किसनदुरंग मे, गाथा-१०, (वि. इस प्रति में कर्ता का नाम नहीं लिखा है.) ४२६३०. पंचमी स्तुति व सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर,
प्रले. पं. मेघविजय गणि; अन्य. मु. पुनमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४१२.५, ११४३१). १.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ४२६३१. (+#) देसांतरी छंद व नेमराजीमती सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४३२-३८). १. पे. नाम. देशांतरी छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण शुक्ल, १, शुक्रवार, प्रले. मु. भगवानविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य.
पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन समपो सारदा; अंति: तवीयो छंद तेसांतरी, गाथा-४७. २. पे. नाम. नेमराजिमती सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: ऋद्धिहर्ष कहै एम, गाथा-१९. ४२६३२. (+#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १०४२८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: (-),
(प्रतिपूर्ण, पू.वि. स्तुति-३ तक है.) ४२६३३. (+#) वीरस्वामीनो पालघू, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४२४). महावीरजिन हालरर्दू, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला झूलावे; अंति: दीपविजय कविराज,
गाथा-१७. ४२६३४. (+#) गोचरी आलोअण विधि व साधुनी क्रिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४१).
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३८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. गोचरी आलोअण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.
गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोचरीथी आवीने पात्रा; अंति: प्रगट कही बेसै. २. पे. नाम. साधुनी क्रिया, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ए क्रिया संप्रदाय; अंति: ए उपराठी पडिलेहण छै. ४२६३५. (+) पचखाणविध स्तवन व अंबिकादेवी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६४१२, १३४३८). १.पे. नाम. पच्चक्खाणविध स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद
तपविध भणै, ढाल-३, गाथा-३३. २. पे. नाम. अंबिकादेवी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: जो तूसै देव अंबाई, गाथा-४. ४२६३७. (+#) चतुर्विशतिजिनमातापीतालंछन नगरछंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १८४३७).
२४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमु; अंति:
___ सीस पभणे मुनि आणंद, गाथा-२९. ४२६३८. (+#) पोशीनाजीनुंतवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. श्रीचितामणि प्रशादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४४६). __ पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सरसति सामिनीने समरी; अंति: कहे
उत्तमविजय वधाई, गाथा-१३. ४२६३९. (+#) नवकारमहिमा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४४१). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: सेवा दीजो
नित्त, गाथा-१३. ४२६४०. (+#) आलोयण तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (५१७) यादृशं पत्रयो दृष्टं, जैदे., (२६.५४१२, १६x४१-४२). आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदेसर प्रणमुं; अंति: पाप
आलोया आपणा, ढाल-५, गाथा-५८. ४२६४१. (#) राजुलनो वेंझणो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३१).
नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या आव्या उनालाना; अंति: सुख बेहूं सुखकारि के,
गाथा-१२. ४२६४२. नारकिनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, १३४३८).
नारकी सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोहमिथ्यातनि निंदमा; अंति: तो पामे भवपार, गाथा-२३. ४२६४३. (#) आदिजिन वीनति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १०४२९).
आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेत्रुजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. ४२६४४. (+#) श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५.५४११.५, ११४२८-३०).
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
____३८९ ४२६४५. (#) असझाय आदि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३२).
विचार संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. असज्झाय, सूतक व छींक काउसग्ग विचार है.) ४२६४६. (+) अढारनातरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १२४२६).
१८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलाने समलं रे पास; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३. ४२६४७. (#) नवतत्त्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १०४३३).
आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा रे जीवा पुनं; अंति: गुण
चित धरजो जी, गाथा-४. ४२६४८. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१३, १३४३८).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन पूर्व नवाणु; अंति: खिमा० मने सिद्ध थाए,
गाथा-१८. ४२६४९. (+) विहारवीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १२४३६).
गुरुविहारविनती गहूंली, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाये; अंति: ए विनती चित्तमां धार, गाथा-१९. ४२६५०. (+#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५-३८). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भद्रसूरी इम भणे ऐ, ढाल-६, गाथा-७४,
(पू.वि. ढाल-१ गाथा-१४ तक नहीं है.) ४२६५१. (#) गोतमस्वामिनो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १०४२३).
गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गांउगोत्म तणा; अंति: वीकानेर चोमास जी,
गाथा-१३. ४२६५२. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७७१३.५, ७X४९).
पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः,
श्लोक-७. ४२६५३. (#) शिमतशिख्यर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. दलसुखराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४३३). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो हे सहेली जावा; अंति: एछे परम निमत्त,
गाथा-१०. ४२६५४. (+#) यतिप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५९, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. बालमुकुंद लहीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, ११४३४-४०).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि भं०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४२६५५. अष्टादशनात्रानी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. केशरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १४४३९). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलाने समरु रे; अंति: ऋद्धिविजय गण गायरे, ढाल-३,
गाथा-३५. ४२६५६. (+) लोच विधि, नैगम शब्द आदि विचार, संपूर्ण, वि. १९५०, माघ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. अमरदत्त मेवाडा; पठ. मु. तिलोक (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संख्यादर्शक शब्द के ऊपर अंक लिखे गये हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १३४४८). १. पे. नाम. लोच विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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३९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पव्वइएणय लोओ कायव्वो; अंति: पवेयणाइ न करेइ. २. पे. नाम. नैगम शब्दार्थ आदि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. नैगम शब्द का अर्थ व १६ वचन भेद विचार.) ४२६५७. (#) एकादशी नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: विश्वनायक मुगतिदायक; अंति: माणेकमुनी
सिवसुख वरं, गाथा-१३. ४२६५८. (+#) युगमंधरजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२.५, २२४४६). १. पे. नाम. युगमंधरजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कूडी; अंति: जिनविजय गुण गायो रे,
गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-कायाउपदेश, मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: काया रे कहती मन; अंति: पंचरंग निसाण फराता,
गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: पेट रामने भुरा; अंति: या हाथी ओर क्या चेटी, गाथा-३. ४. पे. नाम. पुण्यपाप पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दोय वात हे जगमें; अंति: चरणा में हाजर आया, गाथा-४. ५. पे. नाम. तृष्णा पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-तृष्णापरिहार, गंगाराम, पुहि., पद्य, आदि: भजन वणत नाहि मन सहला; अंति: माया मे लोभानी,
गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: प्रदेसी रोकाइ पतीय; अंति: गांठ गांठ रस न्यारो, गाथा-६. ७. पे. नाम. कबीर पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: वंगला खुब वण्या; अंति: सुगुरु अरथ वताया, गाथा-५. ४२६५९. (+) यतिप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५९, पौष शुक्ल, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. बालमुकुंद लहीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४४०-४२).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि भं०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४२६६०. (#) अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से संशोधन किया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३०). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि,
गाथा-११. ४२६६१. (#) महाष्टक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४२९). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारिइं; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे,
गाथा-११. ४२६६२. (#) शांतिजिन पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३५). १. पे. नाम. शांति पदम्, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुंही मेरा मन मे; अंति: देख्यो देव सकल में, गाथा-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: ए जिनदास झूठो; अंति: जिनदास सबसु रुठो, गाथा-४. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).
श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पं., पद्य, आदि: कुडी दुनीया रे अजब; अंति: जीत गया भवसार, गाथा-४. ५. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४२६६३. (#) श्रीद्धालनु स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. श्रीद्धाल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शवजयतीर्थस्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देये तारी मुज पांखडी; अंति: ये मां नहें संदेह, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: समज जा गुमानि; अंति: नही जीनधरमने तोले, गाथा-४. ४२६६४. (+#) चिंतामणपार्श्वनाथ महाप्रभाव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, १०४३४).
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. ४२६६५. (#) दानशीलतपभावना संवाद व निंदा पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. भडकवा,
प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १६४३८-४०). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. भडकवा, प्रले. मु. रामजी ऋषि.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम; अंति: मुजने प्रथम प्रकास, ढाल-४. २. पे. नाम. निंदा पद, पृ. ३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. भडकवा.
औपदेशिक पद-निंदाविषये, मा.गु., पद्य, आदि: विर कहे तमे सांभलो; अंति: निदक मोह मदीठ, गाथा-३. ४२६६६. विसविहरमान स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, जैदे., (२६४११.५, १३४३८).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सुजस महोदय वृंदोरे, स्तवन-२०,
(पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., स्तवन-१२ गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) ४२६६८. (#) मौन्यएकादशि सिज्झय, संपूर्ण, वि. १९१९, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उंझा, प्रले. जोइता मनोर;
गुपि. श्रावि. उजली बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १७४४२). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे विरने; अंति: मुनी
सज्झाय भणी, गाथा-१५. ४२६६९. (+#) प्रश्नोत्तररत्नमालिका सह अवचूर्णिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३८-४०).
प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता कंन भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नत्वा जिनवरंद्र; अंति: न पामइ अपितु पामई, (वि. वस्तुतः यह टबार्थ
है किंतु प्रतिलेखकने अवचूर्णिका नाम दिया है.) ४२६७१. (+) दीपालिका देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १५४४२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व देववंदन, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५२, आदि: वीर जिनेश्वर केवली; अंति: जयकमला वरी
रेलोल. ४२६७३. (#) २४ जिन चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२६४१२.५, १४४३२). १.पे. नाम. उपधान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). २.पे. नाम. पच्चखाण, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. नवकारसी व चोविहार का
पच्चक्खाण है.) ३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेस्वर इश्वरइं; अंति: वीर रचे वरमाल, गाथा-५. ४२६७४. (+#) दशविकालिक सिज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२८-३३).
दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा; अंति: जयतसी
__ जय जय रंग, अध्याय-१०, (पू.वि. अध्याय-३ गाथा-७ अपूर्ण से अध्याय-५ गाथा-८ अपूर्ण तक नहीं है.) ४२६७५. (#) रहेनेमि अने राजुल व प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. अमथालाल;
पठ. मु. संयमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १३४४३). १.पे. नाम. रहेनेमि अनेराजुलनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहेनेमि काउसग रह्या; अंति: ते शिवरमणी वरसे रे,
गाथा-११. २.पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. संबद्ध, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: कर पडीकमणुंप्रेमथी; अंति: चेतनजी एम भव तरसो जी,
गाथा-९. ४२६७६. (#) रुकमीणीनी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. अमथालाल मानचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४४०). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणी जी,
गाथा-१५. ४२६७७. (#) दुरमतडिनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३८).
औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिसुमतिविषये, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो दूरमतडि वेरण थई; अंति: घेर आवे हो
प्रीतम जी, ढाल-३, गाथा-२१. ४२६७८. (+#) शीलविषये तिलोकसुंदरीसती वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, २०४४१-४३). त्रैलोक्यसुंदरी रास, ऋ. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: (-); अंति: जिण घर लील विलासोरे, ढाल-१२,
(पू.वि. ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) ४२६७९. सुमतिकुमति लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६४१३.५, ९x४०).
सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम कुमति कलेस; अंति: वात खोटी मत खेडे, गाथा-४. ४२६८०. ऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४१३, ८४३४).
आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: तत्राब्जकांतिक्रमौ, श्लोक-४.
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.)
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३९३ ४२६८१. (#) पिस्तालीस आगमनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३४). ४५ आगम सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अंग इग्यारने बार; अंति: जस कहे ते शिव वरई,
गाथा-१३. ४२६८३. (+#) सिद्धचक्र नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२६.५४१३, ११४३६). १. पे. नाम. सीधचक्रजिनो नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदायक सीद्धचक्र, अंति: धता लहिए अविचल लील, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. सिद्धचक्रनो नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: चंपापूरीनो नरवरु; अंति: धरिए एहनुं ध्यान, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने तीन
गाथा की एक गाथा गिनी है.) ३. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आशो माशने चैत्र माश; अंति: नयविमल कहीइं शीश,
गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४. पे. नाम. सिद्धचक्रनो नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. सुखविजय; पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधता; अंति: सुखविजय कहे
सिस, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ५.पे. नाम. सिद्धचक्रनो नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंत पहिले पदे; अंति: ए गणणानो पाठ, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने
गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४२६८४. (+#) देवानंदा सज्झाय व मंदीरस्वामि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १४४३३). १. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, बुधवार, ले.स्थल. माणसा,
प्रले. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य.
उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट मनमां आणी, गाथा-११. २. पे. नाम. मंदीरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले.पं. मनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य.
सीमंधरजिन स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिमधर जीनवरा; अति: प्रगटे प्रमाणंद, गाथा-४. ४२६८५. (#) सीमंधर आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२८x१३.५, १२४३०). १. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीसीमधर वीनती सुण; अंति: कहा कबूं बहु तेरा,
गाथा-५. २. पे. नाम. चोवीसजीन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रहसमे भावधरी घणो; अंति: नित रहजो जगीस,
गाथा-५. ३. पे. नाम. जीनराज स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जव जीनराज कृपा होवें; अंति: जीन उपम आवई,
गाथा-६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
३९४
४२६८६. () वासुपूज्या आमन्याय व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प्र. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है. दे. (२६.५x१३, १४४३६).
"
१. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ. पु,ि प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
,
3
२. पे. नाम वासुपूज्या आमन्यायः, पृ. १आ. संपूर्ण.
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कालज्ञान आम्नायसहित, सं., प+ग., आदि: गंधोदकेन पट्टकं, अंति: अतिसारेण मृत्युः
४२६८८ (+) औपदेशिक सज्झाव व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६.५४१३
११X३९).
१. पे नाम औपदेशिक सझाय दुर्मतिसुमतिविषये, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिसुमतिविषये, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो दूरमतडि वेरण थई, अंति: तो महानंद पदवी मलेस, ढाल -३, गाथा - २१.
२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: सोहम सोहम रटना लागी, अंति: भर बुद्धी जगीरी, गाथा-३.
३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. पुण्य, पुहिं., पद्य, आदि पारसनाथ आथ के नाथ; अंति: तेर हम हाजर हे लड़के, गाथा-१ (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा
"
की एक गाथा गिनी है.)
४२६८९. (+) पंचसमवाय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. अनोपचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६१३.५, १७x४०%,
५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत बंदियै; अंति: विनय क आणंद ए, ढाल - ६, गाथा - ५८.
४२६९०. (+#) दशवैकालिकसूत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. लिंबडी, प्रले. श्राव अमुलख वलुभाई शेठ, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११x४८).
१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ३, पृ. १- १आ, संपूर्ण.
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-१ तक है.)
२. पे. नाम. लोक संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण.
लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक ५.
४२६९१. (+#) प्रतिलेखना विधि व १८ हजार शीलांगरथ गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३.५, १९५५७).
"
१. पे. नाम. १८ हजार शीलांगरथ गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में अथवा किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी
गई है.
प्रा., पद्य, आदि: जे नो करति मणसा, अंतिः खंतजुवा ते मुणी वंदे, गाथा-१ (वि. साथ में १८ हजार शीलांग भेद अंक निर्दिष्ट कर बताया गया है.)
२. पे. नाम. प्रतिलेखना विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनविधि संग्रह*, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. साधु की प्रातः व संध्याकालीन पडिलेहणा विध है.)
४२६९२. (4) श्रीमंदरस्वामिनी स्तुती, संपूर्ण वि. १९३० श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २. प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, पठ. श्रावि. ईच्छाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१२, १४X३४). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि वालो मारो सीमंधर अंतिः ते सदधुं प्रभुजी.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४२६९४. (+#) आषाढभूति सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ११४३३).
आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हीयें; अंति: भावरत्न सुजगीसरे,
ढाल-५. ४२६९५. (4) इलाचीपुत्र व गजसुकुमालमुनि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुतर जाणीए; अति: समयसुदर गुण गाय,
गाथा-८. २.पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: सीरीजन आया हो; अंति: फल पाइया जी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सरिजीण आया मे सुण्या; अंति: बाइ दया यतण परसाद, गाथा-१२. ४२६९६. (#) नेमिजिन स्तवन व उपदेस सीज्झा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, २१४४३). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहबा; अंति: हिवे पुरो हमारी आस, गाथा-७. २. पे. नाम. उपदेस सीज्झा , पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटी मे भटकतारे; अंति: भइया रहसी सहुरी
लाज, गाथा-१५. ४२६९७. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, ९४२८).
जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने वीनवं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
ढाल-१ प्रारंभिक गाथा तक लिखा है.) ४२६९९. (+#) उपदेशमाला गाथा शुकनावली यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४३०).
उपदेशमाला-उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में विधि भी
लिखी गई है.) ४२७००. (+#) यमकबंधश्रीपार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४४४). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्,
श्लोक-७.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगमं. ४२७०३. (+#) अध्यात्म स्वाध्याय व घनम्म्, संपूर्ण, वि. १९३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. पाली, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन काल हेतु 'प्रथम पोहरे' ऐसा लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १४४४०). १.पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु सदगुरु; अंति: नित आनंदघन सुख थाय,
गाथा-१०. २. पे. नाम. धनम्म्, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र पद, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम जपो मंत्र नवकार; अंति: तेरे चरणां के पासे,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) । ४२७०४. (+#) पद्मावती जीवरास, संपूर्ण, वि. १९१८, कार्तिक शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले.सा. सोभाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १६४३९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी
छुटे ततकाल, गाथा-३३. ४२७०५. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १२४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं०
प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४२७०६. (+#) सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, कुल पे. ५,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १९४३९). १.पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: इण स्वार्थसिध के चंद; अंति: बोल्या इण पर बाणी
जी, गाथा-२५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.
शांतिजिनविनती स्तवन, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: संत करता श्रीसंत; अंति: करत तुम गुण सुहावै, गाथा-७. ३. पे. नाम. कमलावतीसती सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.
ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेहला मे वेठीजी राणी; अंति: मीछ्याम दुकडू मोह, गाथा-२४. ४. पे. नाम. सगरचक्रवतनो चौढालो, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन कृष्ण, १०, बुधवार, ले.स्थल. आगरा,
पे.वि. प्रतिलेखक के विषय में 'आरज्याने लीखो' इस प्रकार लिखा है. सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: सागररायनी वारता कहुं; अंति: धरमव्रत
सेवज्यो, ढाल-४. ५. पे. नाम. वीनती, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: एँडा मारीने धडा उडाव; अंति: रतन कहै सुणौ नरनारो, गाथा-२१. ४२७०७. शांतिनाथजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, १८४४६).
शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय नमुं सिरनामी; अंति: मनवांछित
शिवसुख पावे, गाथा-२१. ४२७०८. (+#) बार आरा व आध्यात्मिक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश
खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४४७). १.पे. नाम. गौतमप्रश्नोत्तर बारआरानुं स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: कहे गछ मंगल
करूं, ढाल-१२. २. पे. नाम. आध्यात्मिक स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उपसना बेजारमारे; अंति: एने नामे नवनिधे थाय, गाथा-४. ४२७०९. (4) पंचतिर्थनि व बीजनी थोय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १५४३४). १. पे. नाम. पंचतिर्थनि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजनी थोए, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
३९७ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: पुर मनोरथ माय, गाथा-४. ४२७१०. (#) अष्टप्रकारी पुजानां प्रथ्म दहा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ
का अंश खंडित है, दे., (२७७१३, १३४२९). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पुजानांप्रथ्म दुहां, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. ललु, प्र.ले.पु. सामान्य.
साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिजगनायक तुंधणी; अंति: पापकर्म दुर जाय, गाथा-१२. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजो
कोईनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४२७११. इग्यारसनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१३, १२४४१).
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति:
शुव्रतरूप सज्झाय भणी, गाथा-१५. ४२७१३. (+#) वैद्यकसारसंग्रहे मिश्रिकाध्याय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३,
कुल पे. ३, प्रले. अभैराम जीवराज दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४३८). १.पे. नाम, यौगचिंतामणौ वैद्यकसारसंग्रहे मिश्रिकाध्याय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
__ योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अथवा किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. वैद्यकश्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अथवा किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
सं., पद्य, आदि: प्रसंगान गात्र; अंति: मूलेषु वह्निना, श्लोक-५. ४२७१४. (+#) वंदेतुसूत्र व लेश्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३१-३६). १.पे. नाम. वंदेतुसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. लेश्या विचार, पृ. २आ, संपूर्ण.
षट्लेश्या लक्षण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्रः सदा क्रोधी; अंति: सीद्धगई सुक्कझाणेण, श्लोक-१०. ४२७१५. (+#) पंचांगुलीनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १४४४७). पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारथी पय नमी; अंति: संपत नीत्य वीलसंत, गाथा-१४,
(वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४२७१६. (+) छट्ठाआरानी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४३४). पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गउनेम सुणो; अंति: भाखो वेण रसाल, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४२७१७. (#) मदआठनी स्वझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, ११४३०). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारिई; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे,
गाथा-११.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२७१८. (+#) ज्ञानपंचमी सझाय, अपूर्ण, वि. १८७३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. नयविजय (गुरु पंन्या. गलालविजय); गुपि.पंन्या. गलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२९). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिधने करी; अंति: अमृत पदना थावो धणी, गाथा-११,
संपूर्ण. ४२७१९. (+#) क्षुल्लकभवावली स्तवन सह अवचूरि व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ४-५४४४-४८). १. पे. नाम. क्षुल्लकभवावली स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिक्रा, प्रले. ग. तिलकविजय (गुरु
ग. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीरं; अंति: सोहेयव्वं सूअहरेहिं, गाथा-२५. क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदि० क्षुल्लकभवानाम; अंति: भूतो विपरितः
शोध्य. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण..
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सम्यक्त्व व चक्रवर्ती का विचार है.) ४२७२०. (+#) अल्पबहुत्व श्रीवीरगति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२.५, ७-११४३०-३५). महावीरजिन स्तवन-अल्पबहुत्वविचारगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदि: सासन नायक
लायक शीव; अंति: उत्तम लहे शिववास रे, ढाल-३. ४२७२१. (#) तपफल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४२६).
विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२७२२. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १३४३४).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालोने जईए सोरठ; अंति: सौभाग्यविमल
सुखकार, गाथा-१३. ४२७२३. (+#) अमकानी सजाअ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १४४४७).
अमकासती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमका ते वादर उगते; अंति: विजय गुण गाईवला रे,
गाथा-२३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं किंतु किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से गाथांक लिखे हैं.) ४२७२४. (#) आहारगवेषणाएषणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, ११४३८-३९).
आहारगवेषणा सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: ते लहे सुख संजोग,
ढाल-३, गाथा-३६. ४२७२५. (#) सरस्वती मंत्र व सिद्धचक्र नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२६.५४१३, ११४४२). १.पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक श्रीसिद्ध; अंति: एहनो परम आहलाद, गाथा-१,
(वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की एक गाथा गिनी है.) ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदायक सीद्धचक्र; अंति: लहीई अविचल लील, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की
एक गाथा गिनी है.) ४. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंत पहिले पदे; अंति: ए गुणणानो पाठ, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की एक गाथा
गिनी है.) ५. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: चंपापूरीनो नरवरु; अंति: धरीइं एहनुं ध्यान, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने तीन गाथा की एक गाथा गिनी
६. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आसोमासने चेत्र; अंति: ज्ञानविमल कहइं सीस, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखकने
तीन गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४२७२६. (#) कायस्थिति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १३४४१).
कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपदसंपदं देसु,
गाथा-२४. ४२७२७. (+#) अनाथिमुनीनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १३४३७).
अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रयवाडी चढ्यो; अंति: वंदे रे बे कर जोडि,
गाथा-९. ४२७२८. (+#) स्वार्थप्रेय अष्टढालिक, संपूर्ण, वि. १९७९, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कीसनगढ,
प्रले. मु. विजयराज (गुरु मु. हजारीमल्ल); गुपि.मु. हजारीमल्ल (गुरु मु. जोरावरमल्ल); मु. जोरावरमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४५३).
औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: सकल सुगुन उर ओपता; अंति:
पोहररेटाणेरे, ढाल-८. ४२७२९. (+#) चंदराजानो लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १२४३२). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्त श्रीमारूदेवना; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३८ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२७३०. (+#) विचारपंचासिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३.५, १५४३८). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण,
गाथा-५१. ४२७३१. (#) माल आरोपण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १२४४२).
उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वलतुं भले मुहुर्ते; अंति: गुरु पुजणुं करीइं. ४२७३२. (+) सनतर विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १४४३१-३७). स्नात्रपूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: पवीत्र धोति पेहरी रे; अंति: (-), (पू.वि. पाश्वजिन जन्ममहोत्सव
तक है.)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२७३३. (+#) माहावीर स्तवनं, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, अन्य. मु. चेनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १२४३०-३३). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु;
अंति: नामे लहि अधिक जगीस ए, ढाल-३. ४२७३४. (+#) औपदेशिक सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १६४३२-३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मांकण, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: माकड मुछालो माकडनो; अंति: तुमे जीवना जतन करजो, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखकने
दो पाद की एक गाथा गिनकर लिखा है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो संत जीणेसर; अंति: उदेरतन कहे वाणि, गाथा-१०. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सामि संभवनाथ आराधो; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखकने एक पाद की एक गाथा गिनकर गाथांक
लिखे हैं.) ४. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
द्वारकादास, मा.गु., पद्य, आदि: केवल जिनरा माहरे; अंति: भजे तेनो तोल रेसे, गाथा-१६. ५.पे. नाम. जंबुसामीनी ढालु, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: जंबुसामि जोवन घरवास; अंति: लेस तूमारि साथ
के, ढाल-७, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम व वर्ष आदि माहिती उपलब्ध नहीं है.) ४२७३५. (+#) गीरीराज गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १५४३५). शत्रुजयतीर्थ गहुंली, मु. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासनपतिना प्रणमुं; अंति: तिरथफल होज्यो सदा रे,
गाथा-१८. ४२७३६. (#) सरस्वती स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, चैत्र कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नवानगर,
प्रले. पं. अमृतकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ९४३१). १.पे. नाम. सरस्वति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंति: निर्मलबुद्धिमंदिरैः, श्लोक-६. २.पे. नाम. सरस्वती मूल मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२७३७. (+#) पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२४, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. रामसेन्यनगर,
प्रले. मु. चारित्रविजय; पठ. श्राव. गोरधनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरऋषभजीन प्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९१९) गगन धरा वीच मेरुगीर, (९२०) जब लग मेरु अडग हे, (९२१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१२,११४३६). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक शिवकरण; अंति:
लहे अधिक जगिस ये, ढाल-३. ४२७३८. महावीरजिन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि.खेमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के बाद वासुपूज्यजिन स्तवन का किंचित् प्रारंभिक पाठ लिखकर छोड दिया है., दे., (२६.५४१३, १०४२६). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देसक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लद्धि रे,
गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४२७३९. (+#) सरस्वतीजीनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १९४५४).
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस्या फलसी ताहरी,
गाथा-३५. ४२७४०. (#) कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४३७-४०).
कवित संग्रह , पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. भरतचक्रवर्ती की ऋद्धि वर्णनादि २० कवित्त हैं.) ४२७४१. (+#) अनंतनाथ आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७X४१). १. पे. नाम. अनंतनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअनंत जिनसुंकरु; अंति: तिम मुझ प्रेम प्रसंग,
गाथा-५. २. पे. नाम. श्रीसीरीमीदरजीरोतवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८८, ?, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, ले.स्थल. नागोर,
प्रले.सा.रामी, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूझ हीयडो हेजालुवो; अंति: जिनराज०मत मुको विसार,
गाथा-६. ३. पे. नाम. मोखनगररी सीझ्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. सा. रामी, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामी पृच्छा करै; अंति: पाम्यौ सुख अथाग हो, गाथा-१६,
(वि. इस प्रति में कर्ता का नाम नहीं है.) ४. पे. नाम. धरम सत्वन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणसर गाउरंगसु; अंति: एसेवक अरदास, गाथा-८. ४२७४२. (+#) लुंकागच्छीय प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०३, भाद्रपद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पटणा, प्रले. मु. उदयभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४१).
आवश्यकसूत्र-लोंकागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं पढम; अंति:
मिच्छामि दुक्कडं, (वि. कृति अंतर्गत नागोरीलंकागच्छ की पद्धत्ति दी गई है.) ४२७४३. (+#) सेतुंजानी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, ११४२८).
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शेव्रुजयां पाप छुटी; अंति: छुटे तप करी ते हो जी, गाथा-१२. ४२७४४. (+#) त्रेवीस पदवी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४२१-२३).
२३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न१ छत्ररत्न२; अंति: अप्रजाप्ता २० लाभे. ४२७४५. (#) २४ जिनलंछन चैत्यवंदन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४२४-२६). १.पे. नाम. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
__आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरत्नसूरिराय, गाथा-९. २. पे. नाम. गौत्तमस्वामिनो अष्टक छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गोतम तूठे संपति
कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पाचमो
भेदरे, गाथा-५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. सिधाचल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. दलिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो सिधाचल जाइ; अंति: भव सरण तुमारीयारे, गाथा-६. ५. पे. नाम. अष्टापदतिर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जैनंद्र वधते नेहरे, गाथा-८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउला मंडण जीन पास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ४२७४६. (#) चक्रेश्वरी स्त्रोत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३९).
चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहि मां देवि चक्रे, श्लोक-८. ४२७४७. (#) स्वरस्वती स्त्रोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. मु. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४४१). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्,
श्लोक-१३. ४२७४८. (#) नेमजिनी चुनडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ११४२८).
नेमिजिन चुनडी, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल सुरंगी चुनडि; अंति: एह छे मुगतिना ठाम, गाथा-११. ४२७४९. (4) पंचमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १२४२९).
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिधने करी; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ४२७५०. (#) सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १३४३७). सिद्धचक्र नमस्कार, मु. सिद्धिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: सिस कहे कर जोड,
पद-५. ४२७५१. (#) तमाकुनि सझाय, अपूर्ण, वि. १९७२, भाद्रपद कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. राधनपुर,
प्रले. अमथालाल मानचंद; पठ.सा. चारित्रश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १३४४१).
औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रितम साथे विनवू; अंति: तेहने कोड कल्याण,
गाथा-२०, संपूर्ण. ४२७५२. (+#) सकलार्हत् स्तोत्र व भवणदेवता आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,
प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल बारोट; अन्य. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक २ अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४४०). १. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरं प्रणिदध्महे,
श्लोक-३०. २. पे. नाम. भवनदेवी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: ज्ञानादिगुणयुताना; अंति: सदा सर्वसाधुनाम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि: यस्याः क्षेत्रं समाश; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-१. ४२७५३. (+#) नवग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, अनुवाद व पीडानिवारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १७४४५). १.पे. नाम. नवग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रथमप्रणवमायाबीजं, अंतिः चिरं जीयाय शाश्वती, श्लोक-१३. २. पे नाम, नवग्रह मंत्राक्षर स्तोत्रनो गुजराती अनुवाद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र - अनुवाद, गु., गद्य, आदि: प्रथम ऊँ ह्रीँ अने; अंति: लक्ष्मी वासो कर छे.
३. पे. नाम. नवग्रह पीडानिवारण विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र - आम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: सूर्य नडतो होय तो अंतिः पीडोपशांति स्थात्. ४२७५४, (४) असझाइनि सझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५,
१२५३३).
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असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदि; अंति: वेहला वरसो सीधि, गाथा- ११. ४२७५५ (+) अषाडभूत का पंचडालीय, संपूर्ण वि. १९०० आश्विन कृष्ण १४, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, हरसरुकी गढी, प्रले. मु. गणेशीलाल (गुरु मु. देवकरण); गुपि. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१३, १३x४१). आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो, अंति बचन की आसतारे लाल, ढाल ७.
४२७५६. (#) जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१३, ११३१). पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकचद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस, अति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७.
४२७५७. गजसुकमाल की लाउणी, संपूर्ण वि. १९२० आश्विन शुक्ल, १३ शनिवार, मध्यम, पृ. ३, दे. (२६.५x१२.५, १६x४२).
""
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८६७, आदि: सोरठ देसम दुवारमती, अंतिः मनबंछत फल जे पाठ, गाथा-२२ (वि. इस प्रति में कृतिकार का नाम नहीं है.) ४२७५९ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, ११४३२). महावीरजिन स्तवन- विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: एकवार कछ देस आवज्यो; अंति: जीत नीसान बजावीये, गाथा - ११, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम नहीं मिल रहा है.)
स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५, १०x३८).
"
१. पे नाम, चेलणाजी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण
४०३
४२७६०. (#) वीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१३.५, १२X३७). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा, अंति: इम सुजस कहै, गाथा- ९. ४२७६१. (+) पार्श्वनाथजीनो कलश व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, दे., (२६.५X१२.५, १३x४३).
१. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनो कलश, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन कलश-मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु., पद्य, आदिः वणारसीनयरी विजय अनोप अंतिः जयो जयो भगवंत जी, गाथा- ७.
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि आंचलकल्प उद्याणमा, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, मात्र प्रथम गाथा लिखी है.)
४२७६२. (+४) देहरागडकोटनगर बसाया तिणरी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२.५, १३x४२-४४).
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. किस व्यक्तिने कौन से समय में जिनालय, गढ़, कोट, नगर बसाया उसका वर्णन है.)
४२७६३. (+) चेलणाजी व नवकारवाली सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की
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४०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: भव तणो पार, गाथा-६,
ग्रं. ९. २.पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहेजो चतुर नर ते; अंति: रीषभ तणा गुण गाया रे, गाथा-५, ग्रं.७. ४२७६४. मेतारजमुनिवरनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १२४३२).
मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संजम गुणना आगरु जी; अंति: साधुंतणी ए सझाय,
__गाथा-१४. ४२७६५. (#) बीज आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२६.५४१२.५, १२४३६). १. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: पुरण मनोरथ माय, गाथा-४. २.पे. नाम. पंचमि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन पंचम; अंति: सफल करो
अवतार तो, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल: अंति: तपथी
कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघना विघन निवारी, गाथा-४. ४२७६६. (#) शेत्रुजा व पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे..
(२६४१३, १२४३४). १. पे. नाम. शेत्रुजानि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल लिला मुनि; अंति: चकेसरि रखवाली, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण...
पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: लीलुडी मुख मंदिर सोह; अंति: सफल थाए अवतार, गाथा-४. ४२७६७. चउदथानकनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२,११४३२).
१४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गुरुना प्रणमी; अंति: सुणे
तस लील विलास, गाथा-१३. ४२७६८. (+#) सिंदूरप्रकर व विषयसूची, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, २०४४५). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २. पे. नाम. सिंदूरप्रकर विषयसूची, पृ. ४आ, संपूर्ण.
सिंदूरप्रकर-बीजक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२७६९. (+#) रहनेमजीकी स्वाध्याय व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १४४४१). १. पे. नाम. रहनेमजी की स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग वृत रहनेमि; अंति: सासय सुख लहिस्ये रे,
(वि. प्रतिलेखकने मात्र १ ही गाथांक लिखा है एवं कर्ता नाम दीप लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४०५ मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नानडीयो गोद खिलावै; अंति: नीरख सुख पावैरै, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४२७७०. सेबूंजामंडणआदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१३, १२४३८).
शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु जी; अंति: वाचक समयसुंदर
इम भणे, गाथा-३२. ४२७७१. (#) आत्मगीता व नेम पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४५२). १.पे. नाम. आत्मगीता, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य.
__ अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइं विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. २. पे. नाम. नेम पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती गीत, मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सती राजीमती नेमजी; अंति: भवना मुज पातिक तोड, गाथा-७. ४२७७२. (+#) पार्श्व लावनी, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उतेलीयाग्राम, प्रले. पं. सिवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२). पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भविक कज; अंति: पामे चीत परमानंदा,
गाथा-१६. ४२७७३. जिरावल्लिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्राव. खुसालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १५४३६). पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति:
भवेद् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ४२७७५. (+#) मुहपतीपडलेहण विधि स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-५६(१ से ५६)=२, कुल पे. ८,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४२८-३२). १. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ५७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाठक धरमवरधन धार ए,
ढाल-२, गाथा-२८, (पू.वि. ढाल-२ गाथा २६ प्रारंभ तक नहीं है.) २.पे. नाम. मुहपती पडलेहणविधि स्तवन, पृ. ५७अ-५८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-मुहपत्तिपडिलेहणविधिगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरधमान जिनवर तणाजी;
अंति: लछिवल्लभ गणि कही, गाथा-१५. ३. पे. नाम. अरिहंतपद स्तुति, पृ. ५८अ, संपूर्ण. अरिहंतपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंत; अंति: रहित हीरधर्म अलिसंत,
गाथा-३. ४. पे. नाम. सिद्धपद स्तुति, पृ. ५८अ, संपूर्ण.
सिद्धपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसैलेश्री पूर्व; अंति: धरि सुभ भाव, गाथा-३. ५. पे. नाम. आचारिजपद स्तुति, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण.
आचार्यपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: जनपद कुल मुख्य रस; अंति: अट्ठोत्तर सो वार,
गाथा-३. ६. पे. नाम. उपाध्यायपद स्तुति, पृ. ५८आ, संपूर्ण. उपाध्यायपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन श्रीउवझाय; अंति: धर्म वंदै पाठकवर्य,
गाथा-३. ७. पे. नाम. साधुपद स्तुति, पृ. ५८आ, संपूर्ण.
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४०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: दसण नाण करि; अंति: हीरधर्म कै काज, गाथा-३. ८. पे. नाम. दर्शनपद स्तुति, पृ. ५८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दर्शनपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: हुय पुग्गल परियट्ट; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण
तक है.) ४२७७६. (+#) वाख्यान पीठका, संपूर्ण, वि. १९३०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मंडाड, पठ. मु. धर्मचंद (गुरु
मु. दोलतराज, अंचलगच्छ); गुपि. मु. दोलतराज (गुरु मु. मूलराज, अंचलगच्छ); मु. मूलराज (गुरु मु. मनरूपराज, अंचलगच्छ); मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ); मु. सरूपराज (गुरु मु. पद्मराज, अंचलगच्छ); मु. पद्मराज (गुरु मु. गुलाबराज, अंचलगच्छ); मु. गुलाबराज (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीमाहावीर प्रासादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३, १३४३७).
व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., आदि: एहवा श्रीअरीहतदेव; अंति: वाचना जे प्रवर्ते छे. ४२७७७. (#) माणिभद्रजी छंद, संपूर्ण, वि. १८६९, फाल्गुन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. देवचंदजी ऋषि (गुरु
मु. ओधवजी ऋषि, वृद्धलुंकागच्छ); गुपि.मु. ओधवजी ऋषि (वृद्धलुंकागच्छ); पठ. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४४२-४४).
माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीन पाय; अंति: आपिशुख संपदा, गाथा-४१. ४२७७८. (+) आदिस्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, लिख. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४२९).
आदिजिन स्तवन-सेनापुरमंडन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: श्रीगुरु चरण कमल नमी; अंति:
सयल संघ मंगल करो, ढाल-४. ४२७८१. (+#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १३४२९). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः,
ढाल-९. ४२७८२. (#) मौनएकादशी स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, अन्य. सा.खीमकोरश्रीजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४४६). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुती, पृ. १अ, संपूर्ण..
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमिर्बभाषे; अंति: न्यस्तपादांबिकाख्या, श्लोक-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्रस्य स्तुती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्नं; अंति: प्रेमपूर्णे प्रसन्ना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पंचतीर्थस्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण.
५तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिंगण; अंति: सूरेवरदायकाश्च, श्लोक-४. ५. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन पंचमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पंचमीतिथि स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम दिन जनम्या पंच; अंति: हीररत्नसूरी पाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी; अंति: तपथी कोडि कल्याण
जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. असज्झाइ संक्षेप, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४०७ असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धूअर जे पडे ते; अंति: ढुकडा हुइ तो असज्झाई. ९. पे. नाम. ४२ भाषा भेद गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जणवय सम्मय ठवणा नामे; अंति: अद्धद्धा मिस्सिआ, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
नही लिखे हैं एवं बीच का कुछेक पाठ लिखना रह गया हो ऐसा प्रतीत होता है.) ४२७८३. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१३, १२४३५).
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने रे; अंति: सुणी भवियण
आदरे, ढाल-३, गाथा-२८. ४२७८५. (+#) दलपतरायोक्त प्रश्न सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ५४३४).
प्रश्नाष्टक, श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., पद्य, आदि: अनाद्येयं सिद्धि; अंति: थमिह निरादेर्विघटनम्, श्लोक-८.
प्रश्नाष्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इयं सिद्धि अनाद्य क०; अंति: छै पदार्थमात्र. ४२७८६. (+#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १२x२८).
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पुरव; अंति: दर्शनं संल्लभंते, ढाल-८. ४२७८८. जिनवाणी गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६४१३.५, १२४३९).
जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हु; अंति: वंछे घणुं हो लाल, (वि. प्रतिलेखकने
गाथा-२ तक ही गाथांक लिखे हैं.) ४२७८९. (+#) समकित सतसठिबोलनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पूना पेठएताल, प्र.वि. प्रतिलेखकने संख्यासूचक शब्दों के ऊपर अंक लिखे हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३.५, १३४५२). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवलि कादंबिनी; अंति:
वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ४२७९० (+#) पंछतीरथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६८, आषाढ़ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, पठ.सा. छगनश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पत्रांक २ अंकित नहीं है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, ११४२६-३२). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आद ऐ आद ऐ आद जीनेसरू; अंति: मीले सुख संपदा,
(वि. प्रतिलेखकने मात्र गाथांक २ ही लिखा है.) ४२७९१. (+#) महावीरजिन गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. वसंतराम माणकचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १०४३५).
महावीरजिन गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु माहारो भोगकर्म; अंति: पालि कारज सिधोरे, गाथा-७. ४२७९५. (4) पंचमी, चतुर्दशी स्तुति व बीजमंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२५.५४१३, १३४३९). १.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. चतुर्दसी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र बीजमंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४२७९७. (+#) जिनपिंजर स्तोत्र, वशीकरण मंत्र व वीसो यंत्र, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्रले. अमरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन समय में 'रात्रौ लिपिकृतं' इस प्रकार लिखा गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १७४४७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. जिनपिंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. वशीकरण मंत्र व वीसो यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
__ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४२७९८. सामाइकग्रहण विचार, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पल्लिका नगर, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, २०४७०).
सामायिकग्रहण विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आत्मार्थी जीवै पंचा; अंति: समकिति के प्रमाण नही. ४२८००. सिद्धचक्र स्तवन व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५.५४१२,
११४२६). १.पे. नाम. सिद्धचक्र यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण..
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं
नमामि, गाथा-६. ४२८०१. (4) सवइ पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९०८, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. वेणीदत्त
(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुषपिका में 'नागोरी सरामै' ऐसा पाठ मिलता लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १२४३७).
पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: ज्योती दीन १५ रहै. ४२८०४. (+#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२५.५४१२.५, १५४४३). १.पे. नाम. अंतरीकपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, वा. विनयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: पर उपगारी परम गुरु; अंति: बीनव्यौ
त्रिभुवनधणी, ढाल-४, गाथा-२८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सहज गुण आगरो स्वामि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२
अपूर्ण तक ही लिखा है.) ४२८०५. (+#) जिनदत्तसूरिजीरो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११-१३४२३-२८).
जिनदत्तसूरि छंद, उपा. रुघपति, रा., पद्य, आदि: वरदायक हंसवाहनी सारद; अंति: सूरचीयो छंद मनोहरु, गाथा-३५. ४२८०७. (+#) सामायक सझाय, संपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कृष्णगढ़, प्रले. मु. चतुरविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३०). सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु
सीस, गाथा-१३. ४२८०९. (#) जनम नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९३८ शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीजापुर नगर, प्रले. हरिभाई मालजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३७).
पर्युषणपर्व स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजुंजय मंडणो; अंति: धिर करे गुण ग्यान, गाथा-७. ४२८१०. (+#) २८ लबधनाम सह टबार्थ व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ६x४३). १.पे. नाम. अट्ठावीस लब्धि नाम सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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२८ लब्धि नाम, प्रा., गद्य, आदि आमोसहीलीणं १ विप, अंति: एवमाइ हुति लडीओ.
२८ लब्धि नाम - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर फरसधी सर्वरोग, अंति: लब्ध उपजे ते जाणवो.
२. पे. नाम. स्त्रीपुरुष को लब्धि प्राप्ति आदि विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. भव्य स्त्री पुरुषने आश्रयी लब्धि प्राप्ति, ज्ञान के अतिचार, ८ बोल, सामायिक ३२ दोष आदि विचार संग्रह है.)
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४२८११. (+#) चंदनबाला स्वध्याय, संपूर्ण, वि. १९४५, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. १, प्रले. हरिलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१२.५ १२४३२).
चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः बालकुंवारी चंदणवाला, अंति: सीस कुंवर करजोडी रे,
मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे; अंति: ते गरभावास नवी अवतरे, गाथा- २३.
२. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, प्र. २-३ अ, संपूर्ण.
',
गाथा - १३.
४२८१२. (+) सीमंधरजीरो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. वे. (२६४१२.५, १०४२५).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु. पद्य वि. १८२१ आदि मारि वीनतडि अवधारो, अंतिः जिन पद वंदन भास,
गाथा - २०.
४२८१३. औपदेशिक व आवककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. कुल ग्रं. ६०, दे., (२५x१२, १३X३४).
१. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय. पू. १आ-२आ, संपूर्ण
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे, अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२०. ४२८१४. सड़तालीसदोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे (२६४१२.५, ६४३५)
"
गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उद्देसिअ; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६.
गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकर्मी ते कहिए; अंति: ते संजोगना कहिय.
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४२८१५ (+) खेमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव, गोडीदास जोइतादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के बाद स्कंधकमुनि सज्झाय का मात्र प्रारंभिक अंश लिखकर छोड़ दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३१).
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदर जीव खेमागुण, अंतिः संघे जेगीसे जी, गाथा- ३६. ४२८१६. (+४) गौतमस्वामि रास व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, अन्य. मु. अमरसी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १५X४३-४६).
१. पे. नाम. गौतमस्वामीनो रास, पृ. १अ- ३अ, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, ६, शनिवार, पे. वि. प्रतिलेखक के विषय में 'लिखीतं ऋ' इतना लिखकर छोड़ दिया है.
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: श्रीवीरजिणेसर चरणकमल, अंति: नयभद्र गुरु इम भणे ए. गाथा - ५४.
२. पे नाम, पार्श्वजिन छंद, प्र. ३अ- ३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. असार, मा.गु, पद्य, आदिः परतापूरण पूरी अंति: गुण गीरूड पार्श्वधणी, (वि. प्रतिलेखकने गाथा - १० तक ही गाथांक लिखे हैं.) ४२८१७. पंचमहाव्रत पचीसभावना सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. वे. (२६४१२.५, १३४३७).
"
२५ भावना सज्झाव - ५ महाव्रते, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महाव्रत पहिलु रे, अंतिः वाधे सेवतां पाय हो,
सज्झाय-५, गाथा-३४.
४२८१८. (०) अष्टमी व पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१ कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १२X४३).
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ढाल - २, गाथा - २४.
२. पे. नाम, पंचमी स्तवन, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे. नाम, अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२अ संपूर्ण.
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: हांरे मारे ठाम धरम, अंतिः कांति सुख पामे यणो,
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेसर, अंति: गुणविजय रंगि मुनी, ढाल - ६. ४२८१९. (+#) महावीर स्तवन निगोदविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. नायकविजय, पठ. श्रावि. लेहरी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतीनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१३.५, १५X३९). महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: बलि जाउं श्रीमहावीर; अंत:
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मुझ आज, ढाल २, गाथा-४३.
४२८२० (+०) स्नान विधि संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६५१२.५,
१५X३७).
स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि चोतीसय अतिसय जुओ; अंतिः सारखी कही सूत्र
मझार, ढाल ८.
४२८२१. (#) आत्मनिंदा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५४१२, १४४३४-४०).
आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा. गद्य, आदि हे आत्मा हे चेतन ऐ अंतिः नर सुगुन प्रवीन
४२८२२. (+) पंचपरमेष्टी स्तोत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६१२.५ १०४४१).
.
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरअमरपणवं पणमिय, अंतिः पुत्खयभरेहिं,
गाथा-३४.
५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि : भक्तिभरामरप्रणतं; अंति: साधवः सदा स्मरतः.
४२८२३. (#) सिद्धगिरि आदि चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, १४४४६).
१. पे. नाम. सिद्धगीरि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन - २१९ नामगर्भित, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., सं., पद्य, आदि: नमो आदिदेवं नमो आदि; अंतिः रुप ते सुद्ध पावे, गाथा-५.
२. पे. नाम. महावीरस्वामिनं चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: न परं नाम मृद्वेव, अंति: भगवान् धर्मदेशनां, श्लोक - ११.
३. पे. नाम. संखेश्वरजीनुं चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीसंखेश्वर इश्वर, अंति वीर रचे वरमाल, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
"
"
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप, पद्य, आदि जो धुरि सिरिअरिहंत, अति अम्ह मनवंधिय फल दियो, गाथा - २. ४२८२४. (+) सिद्धदंडिका स्तवनम्, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x१२.५, १५४४१). सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि श्रीरिसहेसर पाव नमी, अंतिः पद्मविजय जनराया रे, ढाल - ५, गाथा - ३८.
४२८२५. (+#) सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२५.५४१२, १३४८).
सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., प+ग, आदि: अनंतशब्दार्थगतोपयोगि अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
४२८२६. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, दे. (२६.५x१२.५, १२४३४).
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४११
महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदुः अंतिः नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल - ३.
४२८२७. अहिंसा आदि सज्झाव संग्रह व अंतरीक्षपार्श्वनाथनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, वे., (२६.५X१३.५, १३X२७).
१. पे. नाम, अहिंसानी सझाय, प्र. १अ संपूर्ण.
अहिंसा सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु, पद्य, आदि चित्त चतुर चेतन; अंतिः कर्म कठीणने पीले रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. सत्यनी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - सत्य, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्यवचन मुख बोलीये; अंति: मार्ग छे खास,
गाथा-७.
३. पे. नाम. चोरीनी सझाच, पृ. १आ-२अ संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-चोरीविषये, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोरी चित्तथी परिहरो; अंति: काढो गले द फासो रे, गाथा- ७.
४. पे. नाम. लोभनी सझाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सझायलोभपरिहार, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि व्यसन निवारो रे चेतन, अंतिः तो मले पूरण सुख, गाथा- ७.
५. पे. नाम. मायानी सझाय, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय - मायापरिहार, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया मनथी परिहरो रे; अंति: शिवसुख पा तेहरे, गाथा - ७.
६. पे. नाम. अंतरीक्षपार्श्वनाथनुं स्तवन, पृ. ३अ-३ आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअंतरीक्षजी पासजी; अंति: वाग्या जित नीशान जी, गाथा- ७.
४२८२८ (+) लगुशांति, संपूर्ण वि. १९२० वैशाख शुक्ल ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. सालगराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५X१२.५, १४४३६).
""
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९. ४२८२९_ (+०) सकलकुशलवह्नि चैत्यवंदनसूत्र व श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३१, पौष शुक्ल ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, राधनपुर, प्रले. पं. तिलकवर्द्धन गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अंत में 'नीत सत्क' इस प्रकार लिखा है, संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२६.५४१३, २४३०). १. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह अनुवाद, पृ. १अ, संपूर्ण.
"
सकलकुशलवह्नि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली, अति: श्रेयसे शांतिनाथ, लोक-१. सकलकुशलवलि चैत्यवंदन बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: असरण सरण जगत्र आधार, अंतिः संपदा पामस्ये २. पे नाम, दानशीलतपभावना श्लोक सह वालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति समाप्तिसूचक व प्रस्तुत कृति प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे नहीं है किंतु पूर्व कृति को गाथांक १ और प्रस्तुत कृति को गाथांक २ दिया है. लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) श्लोक-१.
3
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक - बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४२८३०. (#) जीवरासि आलोयण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५x१२.५, १२४३४).
पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि हवे राणि पदमावती जीव, अंतिः समयसूंदर० छुटे ततकाल, ढाल -३, गाथा-३३, ग्रं. ४०.
४२८३१. () खिमाछत्रिसि, अपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) =१, प्रले. महेश्वर व्यास सांकला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१२.५, १२X३२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: चतुर्विध संग जगिस जी, गाथा-३६, ग्रं. ५०,
(पू.वि. गाथा-१८ तक नहीं है.) ४२८३२. सिखामणछत्रिसि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४१२, १२४३६).
उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजन नरनारि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ४२८३३. ढुंढणपचवीसि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६.५४१३, ११४३३).
ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुतदेवी प्रणमी; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ४२८३४. (+) नववाडिगर्भेतसिल सीज्झाय, अपूर्ण, वि. १९४७, श्रावण शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. सांकलेश्वर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथाय नमः., संशोधित., दे., (२६४१३, १२४३४). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: तेहने जाउ भामणी, ढाल-१०, ग्रं. ८०,
(पू.वि. ढाल-३ तक नहीं है.) ४२८३५. (+#) जीवरास आलोयण व नमस्कार महामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १२४३०). १.पे. नाम. जीवरास आलोयण सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. अमदावाद. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणि पदमावति; अंति: समयसूंदर०
छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३, ग्रं. ४०. २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से लिखी है. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: नवकरना करविलि वंदि, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४२८३६. (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १८४६२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती जीव; अंति: मुज
मीछामी दुकडं, ढाल-३, गाथा-५०. ४२८३७. (+#) भले अर्थसबंधि वार्ता, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चडगाम, प्रले.पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि);
पठ. मु. पूनमचंद (गुरु पं. दोलतरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६.५४१२.५, १४४४३).
भले अर्थ की वार्ता, मा.गु., गद्य, आदि: भले ते स्युं अरे जीव; अंति: आणंद वर्त छे. ४२८३८. (#) १०८ पार्श्वजिन नामावली, संपूर्ण, वि. १९६६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १०४२७).
१०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., आदि: श्रीकोकापार्श्वनाथ; अंति: श्रीसलुणापार्श्वनाथ. ४२८४०. (#) सुमतीदुर्मतीनी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भावनगर, पठ. मु. प्रेमजी (गुरु
मु. हीराचंद); गुपि.मु. हीराचंद; पठ.मु. वेलजी (गुरु मु. वाहालजी); गुपि.मु. वाहालजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अबरखयुक्त पाठ., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, ११४३२).
औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: हो दुर्मतडी वेरण; अंति: पदवीमां जैमलसे, गाथा-११. ४२८४१. (+) समकित सडसठ बोल नमस्कारविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मुंबाइ, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३४४३).
सम्यक्त्व ६७ बोल नमस्कार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम चार सद्दहणा; अंति: दर्शन गुणाय नमः. ४२८४२. (#) पारसनाथजीरो सीलोको, संपूर्ण, वि. १९१०, पौष शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. किशनगढ, प्रले. छगना,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १७४३४).
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४१३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: परणमुपरमात्म अविचल; अंति: भवनरो
अतरजामी, गाथा-५७. ४२८४३. (-#) पार्श्वनाथ स्तोत्र व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. हीरजी ऋषि); गुपि. मु. हीरजी ऋषि; पठ. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-७. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४२८४४. (+#) गरभब चतामणी, संपूर्ण, वि. १९३०, कार्तिक कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बडी सादडी, प्रले. मु. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २२४६६). उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदि: जीनवर दीओ एसो उपदेस; अंति: छोडो संसाना फद,
गाथा-२२. ४२८४५. (-) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साथीयाग्राम, प्रले. पं. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १६x४६). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगादिकक्षीर; अंति: अहँ अर्घं यजामहे, श्लोक-९,
(वि. पूजा के मात्र श्लोक ही हैं.) ४२८४६. (+#) रहेनेमीराजूलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, १५४३५). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमी अंबर विण; अंति: नित्य वंदन करे जो,
गाथा-४०. ४२८४७. (+#) साधवीनी नीरवाण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५,१२४४०).
साध्वीकालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोटी गण वयरी शाखा; अंति: उघाडु रखाय नहि. ४२८४८. सेजा लघुकल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१३, १४४३८).
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. ४२८४९. (+#) नोकारवाली सझाय, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सूर्जपुर,
पठ. सा. उमेदश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीमा:वीरस्वामी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १०४२१). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: करी पडिकमणो प्रेमथी, अंति: ते नर सुर
शिव सद्म, गाथा-९. ४२८५०. (4) गौडीपार्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण;
पठ. सा. सोभागश्रीजी (गुरु सा. सिणगारश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १२४३२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो; अंति: सेव करतां
सुख लहै, गाथा-३५. ४२८५१. (+#) मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०x२८-३२).
मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी माता कहै; अंति: वरत्या जय जयकारोरे, गाथा-१७.
पदा आदि: अइमुत्तयकवा
सोमवार, मध्यम, पृ.
त अक्षरों की स्याह
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४१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२८५२. (+) रावण सज्झाय वसीताजी की बीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२६४१२.५, १६४३३). १.पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जीतमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहै भैभीछण सुन हो; अंति: सांभलज्यो थे नरनारी, गाथा-१७. २. पे. नाम. सीताजी की बीनती, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीताविनती पद, पुहिं., पद्य, आदि: हाहाकार क्रत अति; अंति: जाये कहीयो मोरा बीर, गाथा-३. ४२८५३. (#) चोविसकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १५४२८). २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति:
श्रीजिनराया रे, ढाल-७. ४२८५४. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व ७, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-३८(१ से ३८)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संधि सूचक चिह्न-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २०४५८-६२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-),
(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. पर्व-७ सर्ग-५ श्लोक-३ से सर्ग-६ श्लोक-५१ अपूर्ण तक है.) ४२८५५. (+) षटअट्ठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. महेसाणा, प्रले. पं. चतुरविजय गणि; लिख.पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१३४३९). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: स्यादवाद सुधोदधी; अंति: बहु संघ मंगल पाइया,
ढाल-९. ४२८५६. (+#) रहनेमी सझाय वस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. रहनेमी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. रानेरबंदर, प्रले. मु. चतुरसागर गणि, पे.वि. श्रीऋषभदेव प्रासादात्. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडो नाजि नाजि नाजि; अंति: ज्ञानविमल
गुणमाला, गाथा-५. २. पे. नाम. जीन स्तवनम्, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: मे मतवाला ज्ञान; अंति: दिल भीतर पेठारे, गाथा-६. ३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवनम्, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन-रांदेरबंदरमंडन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हु तो वारी रे; अंति: जयसागर बलीहारी,
गाथा-५. ४२८५८. (#) बारमासी व संखेसर स्तवन व थुलभद्र सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १४-१८४३७-४२). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: चैत्रमास सुहामणो जी; अंति: मोहन जय
जयकार जी, गाथा-१४. २. पे. नाम. संखेसर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: जी सेवकनै सीवराज
रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. थुलभद्र सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: इण आगणडै पीउ; अंति: वाट जोउ चोमासै रे. गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२८५९. (४) आद्धप्रतिक्रमणसूत्र वंदितु व पांचमी स्तुति, संपूर्ण वि. १८६९ चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. भाणविजय, पठ. मु. जगरूप गुरु पं. भाणविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे.. (२६.५X१२, १३X३४).
१. पे नाम, श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र बंदीतु, पृ. १अ ३अ संपूर्ण
वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करोमि, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. पांचमी स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश, अंतिः विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. ४२८६०. (d) अष्टप्रकारीपूजा विधि, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१३,
१२X३२).
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुचिसुगंधवरकुसुम, अंति: नरनारी अमर पद पावै,
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ढाल-८.
४२८६२. (+९) ऋषिमंडल स्तत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६४१२,
११४३३).
ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ आद्यंताक्षरसंलक्ष, अंति: लभ्यते पदमव्ययं, लोक- ९६.
3
४२८६५ (+) स्नान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२६.५x१२.५. १२X४१).
स्नात्रपूजा, आव. देपाल भोजक, प्रा., मा.गु. पद्य वि. १६वी, आदि: पूर्वे बाजोट उपर अति उत्तारी राजा कुमारपाले, (वि. विधि संलग्न है.)
४२८६६.
(d) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. नंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५. ५X१२.५, १२X३२).
विचार संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-) (वि. संसारी जीव लक्षण, २२ अभक्ष्य ९ नियाणा, श्रावक
२१ गुण आदि विचार संग्रह . )
"
४२८६७ (+) वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४१२.५, १६४३५). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदिः उपवास तथा पोसह करी; अंति: पोसह कीजे निर्धारपण,
पद- २०.
४२८६८. मरुदेवनि सज्झाय, संपूर्ण, बि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२६.५४१३, ११४३०).
४१५
मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दन मरुदेवि आई, अंति: परगटी अनुभव सारि रे, गाथा-१८, (वि. प्रतिलेखकने एक गाथा की दो गाथा गिनी है.)
४२८६९. (+) जंबुनो दीक्षारे भावरी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९३७, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३.५, १२x२८).
जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेवा संचर्या रे; अंति: धन धन जंबुनो अवतार, गाथा १६ (वि. प्रतिलेखकने अंतिम चार गाथा के गाथांक नहीं लिखे हैं.)
"
१. पे. नाम. अष्टकर्म विचार, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण.
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलुं ज्ञानावरण; अंति: सर्वविरतिथी मोक्ष.
२. पे. नाम. मिथ्यात्व आदि नाम विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण.
४२८७०. (+#) अष्टकर्म १५८ प्रकृति विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की
स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५४१३.५, १६४३९).
.
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जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ५ मिथ्यात्व, ५ सम्यक्त्व व ५ आचार के नाम हैं.) ३. पे. नाम. बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र- अष्टकर्मविषये, पृ. ४आ, संपूर्ण.
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(+)
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बंधउदय उदीरणासत्ता यंत्र- ८ कर्मविषये, मा.गु. को.. आदिः (-): अंति: (-).
४२८७१.
नवतत्व, संपूर्ण, वि. १९६३, वैशाख शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मीठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, १०x२६).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ४२८७२. (#) सीयलोपरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१३,
११X३५).
औपदेशिक सज्झाय - शीलविषये, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो समझू सकल नरनारी; अंति: जाणी सीखो जरुर, गाथा - १६.
४२८७३. (#) सिद्धचक्रनि थोय, संपूर्ण, वि. १९०६, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. तपागच्छे संतीनाथ प्रसादा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, १२३२).
सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १८३, आदि: पेले पद जिपीड़ अरिहंत अति कांतीवीजे गुण गाय,
',
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गाथा-४.
४२८७४. (#) स्यादवादनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२६.५x१२, १२४३४).
१० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिन, अंतिः श्रीसीधंतरतन बहुमोल, गाथा - २०. ४२८७५. मौनएकादशीनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६ १२.५, १०X३३).
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंतिः संघना वीघन नीवारी, गाथा-४. ४२८७६, (+४) प्रभातिक सामायिकलेणविधि आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९१७ आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८. प्र. वि. प्रत का सर्व ग्रंथा पत्रांक २अ पर लिखा है, संशोधित कुल ग्रं. ७५ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५.५४१२.५, १५X३८).
१. पे नाम प्रभातिक प्रतिक्रमणविधि- खरतरगच्छीय, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक ९अ से २आ पर लिखी है किंतु हासिए में अन्य कृतियां लिखी होने से काल्पनिक पत्रांक लिखा है.
प्रतिक्रमणविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तीन नवकार गुण के, अंति: जिणचंद सुरतुरु कहायो.
२. पे. नाम. सीमंधजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीवडो हेजालूओ, अंतिः मत मूकोजी बीसार, गाथा- ७. ३. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो अंतिः सुंदर० आमते सूर जी गाथा ५.
४. पे नाम, उवसग्ाहर स्तोत्रस्य गाधाइय, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले. ग. कल्याणनिधान,
मा.गु., गद्य, आदि: पुरुस के स्त्री को अंति: फरस हुआ नि०.
७. पे नाम, जैन गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण,
7
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा में संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दंसणेण सामिय अति: अट्टगुणाधीसरं वंदे, गाथा-२.
५. पे. नाम. सीमंधरस्वामिजी स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण
सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा, अंति: अविचल सुख लाल रे, गाथा - ५. ६. पे नाम, आलोयणा विचार, पृ. २अ संपूर्ण.
जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १.
८. पे. नाम. सीमधरजीनी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि आज भले दिन उगो अंति: म्हारी आवागमन निवार, गाथा ५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४१७ ४२८७७. (+#) औपदेशिक स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८९, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. धर्मचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, २४३६).
औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेर सामायिक; अंति: सिद्धपद भोगी जी, गाथा-४.
औपदेशिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशारदाने मनमाहे; अंति: सिद्धपद भोगी थाइंछे. ४२८७८. श्रीपाल रास-खंडर ढाल ७, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १३४३५-३८).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-),
प्रतिपूर्ण. ४२८७९. (+#) जिनदेहरानो फल, संपूर्ण, वि. १९३७, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१३.५, १३४३२). जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मागु., पद्य, आदि: सरसती देव नमी मनरग; अंति: कवि मान कहे
करजोडि, गाथा-१२. ४२८८०. (+#) मायापरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १०४५९).
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: कहे० सुख निरवाण
हो, गाथा-७. ४२८८१. (#) भारती स्त्रौत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कसनगढ, प्रले. मु. नरेंद्रसागर;
पठ. मु. नवनिधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणीजी सहाय छै., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १०-१२४३४-३८). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस फलसी ताहरी,
गाथा-३३. ४२८८२. (+#) पार्श्वजिन स्तव आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ११४४०-४२). १. पे. नाम. समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: यस्य ज्ञानदयासिंधो; अंति: शंखेश्वरः प्रभुः, श्लोक-५. २.पे. नाम. विविधयमकयुक्ता पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीनिदानं गुरु; अंति: भवांभोनिधिम्, श्लोक-७. ३. पे. नाम. संखेश्वरजिन स्तव, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, वि. १८२६, आदि: गौडीग्रामे स्तंभने; अंति: दर्शनं यस्य तंच, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विशदसद्गुणराजिविराजि; अंति: वाग्जिनलाभशुभार्थदा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. गौडीपार्श्वस्तव, पृ. ८अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिने; अंति: संसेव्यतां विश्वपाः, श्लोक-३. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः श्रीऋषभस्ततो; अंति: सद्भक्तितः प्रत्यहं, श्लोक-३. ७. पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: यत्र श्रीभरतेश्वरः; अंति: समीहे स्वयम्, श्लोक-१. ८. पे. नाम. नंदीश्वर स्तव, पृ. ८आ, संपूर्ण.
नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: लसद्द्विपंचाशदधीश्वर; अंति: भवभीतिशांतये, श्लोक-१. ४२८८३. खंधकऋषि चौढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२, ११४२०-२६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
खंधकमुनि चौडालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्म, वि. १८०५, आदि आदि सिद्ध नवकार अंतिः (-), (पू. वि. दाल- २ गाथा २६ अपूर्ण तक है. )
४२८८४. (#) सरसुतीजीरो चंद, अपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, ले. स्थल. उदेपुर, देलवाडा, प्रले. लालचंद पुनमीया; पठ. मु. जालमचंदजी, मु. ताराचंदजी (गुरु मु. पोखरजी); गुपि. मु. पोखरजी, अन्य. मु. केसरीजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्री सरसूतीजी नमः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२, ८-९X२७-३०).
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु, पद्य, आदि (-); अति वाचा फलसी माहरी (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४२८८६. (+४) कुंडा रासो, संपूर्ण वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल बादपूवाडा, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखकने जेठ वद १३ लाइ आउछु सो जाणजी योक वांगाने साराने कहजो आव है इस प्रकार लिखा है., पदच्छेद सूचक
लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२५.५४१३, १२४३१).
""
ढुंढक रास, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: दया जै माता बीनवु; अंतिः पूज्या शिवराज होय, गाथा-७३. ४२८८७. (#) पार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८४५, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. मझेरानगर, प्रले. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, १५X३३).
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे वसी, अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा - ३७.
४२८८८. (०) साधारणजिन स्तुति सह व्याख्या आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४x११.५, १३X५०-५६).
१. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह व्याख्या, पृ. १अ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक १.
जिनस्तुत्यादि संग्रह - व्याख्या, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
२. पे. नाम. चउकसायसूत्र सह अवचूर्णि पृ. १ अ -१ आ. संपूर्ण.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण, अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन अवचूरि, सं., गद्य, आदि: चउकसाएति० भुवन, अंति: ललितश्चिह्नितः,
-
३. पे. नाम, संधारापोरसीसूत्र की टीका, पृ. १आ, संपूर्ण
जैन सामान्यकृति", प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-). (वि. ओघनियुक्ति वृत्ति में से किंचित् पाठांश लिखा
गया है.)
४२८८९. (#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. मनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २३१२, १९३४). १. पे नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९४२, आदि: सालभदरनै धनौ दोया; अंति: जौडीए गुणमालौ, गाथा- १६. २. पे. नाम, चंदनवालासती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: चीत चोखी चनेणबाला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक ही लिखा है.)
३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सरसती मोरे आंखीया; अंति: जवल मै सफल फलयां, गाथा - १०.
४२८९०. (#) एकादसी आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५. ५X१२, १४X३० ).
१. पे नाम, एकादशी सीझाय, पृ. १अ संपूर्ण
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एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज एकादशी रे; अंति: अवीचल लीला लेहसे, गाथा- ७. २. पे. नाम, अष्टमी सीझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४१९ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आतम कहे आठम दीने; अंति: लब्धि०पुन्यनी रेहरे,
गाथा-९. ३. पे. नाम. करकंडुनी सीझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: प्रेमे प्रणमे पाय रे,
गाथा-५. ४. पे. नाम. दूमहरायरषी सीझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपील्लानो धणी रे; अंति: नितनित प्रणमुं
पाय, गाथा-७. ५. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणरषीने वंदणा हुँ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ४२८९१. (+#) क्रोध आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १२४२६). १. पे. नाम. क्रोधनि सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडनां फल छे क्रोधना; अंति: निरमलि
उप्पसमरश नाहि, गाथा-६. २. पे. नाम. मान शिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: मानने देज्यौ
देशवटो, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया शिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सम्मकितनू बिज; अंति: ऐह छे मारग सूधरे,
गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभनि शिझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोज्यो; अंति: बाद हं सदा रे,
गाथा-७. ५.पे. नाम. अभव्य सिझाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेस न लागे अभव्यने; अंति: उत्तम संगति निदान, गाथा-७. ४२८९२. (#) गुरुविहारविनती व गुरुचोमासाविनती गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३३). १.पे. नाम. गुरुविहारविनती गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाय नमी; अंति: ए विनति चितमा धार, (वि. प्रतिलेखकने गाथा-१४ तक ही गाथांक लिखे
२. पे. नाम. गुरुविनती गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: गीरवा गुरु अरज; अंति: राजनगर चोमासु रे, गाथा-८. ४२८९३. (+) धन्नानि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १४४३५). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर बत्तिसी कामनिरे; अंति: धन्ना वरते जय जयकार,
गाथा-१५. ४२८९४. (+#) नवकारनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १७४३७).
नवकार रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो जी प्रणमुं; अंति: जाणज्यो श्रीनवकार तो, गाथा-२७.
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४२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४२८९५.
(+#)
नवपद गुहली, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, पठ श्रावि. दोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५ १२४३०).
नवपद गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: सखी श्रीजिनवर जिनेसर अंतिः श्रीवर्द्धमान साहेली, गाथा-७. ४२८९६ (१) आदिजिन स्तवन- मुंबईबंदरकोटे भायखलामंडन ढाल ६, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६४१३.५ १२४३२).
आदिजिन स्तवन- मुंबईबंदरकोटे भायखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
४२८९७ (४) पार्श्वजिन १० भाव कथानक, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुपलब्ध है. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६.५४१२.५. १९४५१)
पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन *, सं., गद्य, आदि: प्रथमभवे पोतनपुरं; अंति: (१) विशाखायां निर्वाणं, (२) शाखमुखेधिकाराः, ग्रं. ६९ अक्षर१०.
४२८९८ सिद्धनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प्र. १ ले स्थल, वीरमगाम, प्रले. शांतिलाल लवजी लहिया,
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प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६४१२.५ १२४३२).
सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछा करे; अंति: नय पामें सुख अथाह हो, गाथा-१६. ४२८९९ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, स्तुति व शांतिनाथ मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. दे.,
(२६X१२.५, १३X३२).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिपार्श्वनाथः, श्लोक- ७.
२. पे नाम. शांतिनाथ मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण,
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
३. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि दें कि धपमप, अंतिः दिशतु शासनदेवता, लोक-४.
४२९००. सकलजिनविनती स्तवन व साधारणजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. सा. भक्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६४१२.५, १२४३४)
१. पे. नाम. सकलजिनवीनति स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
सकलजनविनती स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जीवन प्रभु मारा; अंति: दिपविजय० जग जय नेता, गाथा- १०.
२. पे नाम, साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि रखे नाचतां प्रभुजि अति साचो सदा सुख ए जाणो, गाथा-५, (वि. गाथा क्रमांक अव्यवस्थित है.)
४२९०१. (+) शिखामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, अन्य. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५४१२.५, ११४४०).
उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजना नरनार, अंतिः शुभवीर वाणी मोहनवेली,
गाथा - ३६.
४२९०२. सीखामणछवीसी, संपूर्ण बि. २०वी मध्यम, पृ. ३, दे. (२६४१३, ११४३५).
उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजना नरनार, अंतिः शुभवीर वाणी मोहनवेली, गाथा - ३६.
४२९०३ पजुसणनी धोयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे, (२५.५५१२.५, १०४२४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२१ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परव पजुसण पुन्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे,
गाथा-४. ४२९०६. (#) श्रीपालनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४२८).
श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करो; अंति: सतिय नामे आणंदोरे, गाथा-१२. ४२९०७. (+) शत्रुजय लघुकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, पौष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अमदावाद, प्र.वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए होने से प्रतिलेखक का नाम अपठनीय है., संशोधित., दे., (२६४१२.५, ५४३०).
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: सित्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५.
शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअइमुत्ता वा अती; अंति: जात्रा कर्यान फ. ४२९०८. (+) ज्ञानसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१२,५-१०४३४).
ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: (-), (पू.वि. अष्टक-८ तक
ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा; अंति: (-). ४२९०९. (#) ककाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १०४३१).
अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: कका ते किरीया करो; अंति: ते पामसी भवपार, गाथा-३३. ४२९१०. (+#) पार्श्वजिन स्तवन षड्भाषाचातुर्यमयं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखकने अंत में किसी सुभाषित श्लोक का प्रारंभिक कुछेक अंश लिखकर छोड दिया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १३४३२).
पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: प्रणमति यः श्रीगौडी; अंति: सुस्वाददास्तात्, श्लोक-११. ४२९१२. (+) इर्यापथिक कुलंसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ४४२७).
ईर्यापथिकी कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअसिरिवीरजिणं; अंति: रे जीव निच्चंमि, गाथा-१२.
ईर्यापथिकी कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पणमिअक० प्रणाम करी; अंति: इम यजे तेहने विषे. ४२९१३. (#) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १५४१९).
जंबूस्वामी सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतसामीने वीन; अंति: भव भव पार उतार, गाथा-१५. ४२९१४. (+#) महाविरजिन व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ९४३४). १.पे. नाम. महाविरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ४२९१५. मुनिगुण गुहली, संपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. ग. गुलाबविजय; अन्य. नथुचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२६४१२.५, ११४३७).
मुनिगुण गहुंली, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसर समतारस संगी; अंति: वीधी ए रुपविजय वरणी, गाथा-९. ४२९१६. (+) भक्तामर स्तोत्रपूजा व वसुधारासाधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५.५४१२.५, २९४५२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्रपूजा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
भक्तामर स्तोत्र-पूजा विधान, संबद्ध, आ. सोमसेन, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवंद्य; अंति: वृषभदेवाय जयमालार्थः. २.पे. नाम. वसुधारासाधन विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण.
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४२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मास ६ पर्यंत सेवा; अंति: तद कीजै पेहली कीजै. ४२९१७. रोहणी स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, दे., (२६४१२.५, १५४३७). १. पे. नाम. वंदणा वीधी, पृ. २अ, संपूर्ण.
वांदणा विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. रोहणीनी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय,
गाथा-४. ३. पे. नाम. ७ सुख पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंसुख जे तनुई; अंति: मुनि सुखिओ पामे पार, गाथा-४. ४. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण..
जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ४२९१८. (#) छमासीतपचिंतवन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १०४३२).
छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरसामिना; अंति: धारी काउसग पारइ. ४२९१९. (+#) मधुबिदुयारी सज्झाइ, संपूर्ण, वि. १९३२, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वेलांगरी, प्रले. मु. सोभागविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहाविरजी प्रसादत्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १०४२७). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती मुजरे; अंति: परम सुख इम मांगीयो,
गाथा-१०. ४२९२०. (#) नंदीश्वरद्वीपस्थ चैत्य नमस्कार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १८४५०). १. पे. नाम. नंदीश्वरदीपस्थ चैत्य नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.
शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: दीवे नंदीसरम्मि; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) २.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथस्य स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: प्रणमति यः श्रीगौडी; अंति: सुस्वाददास्तात्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं सत्यसंध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ४२९२१. (#) जीवदया परे छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३०).
जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाये नमी; अंति: सो वीतराग वाणी लहे, गाथा-११. ४२९२२. (+) गांगेयभंग प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४१२, ८४३८).
गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वद्धमाणं; अंति: सरण परेसिं हियमढे, गाथा-२५, संपूर्ण. गांगेयभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदित्तुत्ति वंदित्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
मात्र प्रथम गाथा की ही है.) ४२९२४. नववाडगर्भितशील सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. मोहनलाल डुगरशी कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १२४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणी,
ढाल-१०,ग्रं. ७१. ४२९२५. सीखामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२, १२४३३).
उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजना नरनार; अंति: मुख वाणी मोहनवेली, गाथा-३६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२३ ४२९२६. (#) अजितशांति स्तवन व पोसह विधि, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. इडर
गढ, प्रले.पं. नेमविमल; पठ. श्रावि. रलियात बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १३४३२). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. २. पे. नाम. पोषह विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो०; अंति: पछे सझाय केवी. ४२९२७. शीलविषये नववाडिस्वरूप स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६.५४१२.५, १०४३८).
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणी,
ढाल-१०. ४२९२८. (+) त्रेवीशरत्नपदवि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ११४३२).
२३ पदवीसज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमिइं; अंति: जेम पामो भवपार रे, गाथा-१४. ४२९२९. (+) दीक्षा देवानी विधी, संपूर्ण, वि. १९५५, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अणहिलपत्तन, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित., दे., (२५.५४१३, ११४४६).
प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षा लेता एता काम; अंति: थइने सेहर मे लावे. ४२९३०. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२).
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-२८. ४२९३१. (#) आनजोगमाहीयालो बोल, संपूर्ण, वि. १८०१, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. कुचंबाल, प्रले. सा. उमेदा (गुरु सा. मानाजी);
गुपि. सा. मानाजी (गुरु सा. लछुजी); सा. लछुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३७).
२१ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते सात नेखेपा च्यार; अंति: सुतर साधोतरो सुणवा. ४२९३२. (#) नेमराजुल नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ९४३५).
नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रबिजय सुत चंदलो; अंति: प्रभुजी उतारौ भवपार, ढाल-८. ४२९३३. (#) होलिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४३५). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति:
व्याख्यानमाख्यानभृत्. ४२९३५. (+#) श्रीमंधरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, ११४२५). ___ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: पूर्व पून्यै पायोरे,
ढाल-७, गाथा-३९. ४२९३६. (+#) पार्श्वजिन स्तवन व समस्या दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, कार्तिक कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्रले. पं.खांतीसोम (गुरु आ. आणंदसोमसूरि); पठ. श्रावि. पानश्री बाई; श्रावि. सुंदरश्री बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १०४२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिनप्रणम्य स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: रमजम रमजम चरण नेउर; अंति: अम चोभाग्य
उघडीयोरे, गाथा-९. २. पे. नाम. समस्या दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
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४२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा- ३.
४२९३७. (#) फलवरद्धी पार्श्वनाथजी विज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सवाई जै नगर, प्रले. पं. अमरविजय गणि; पठ. पं. जसवंतसागर, पं. शिवसागर; अन्य. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंत में स्थल के विषय में 'वृद्धमरुदेसे' ऐसा पाठ मिलता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, १३३६). पार्श्वजिनविज्ञप्ति स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परचा पूरण परगडो; अंतिः सेवकनै सानिधि करे, गाथा-२५.
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४२९३८, (+४) तीर्थमाला स्तवन व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६१२.५, १३x४० ).
१. पे नाम, तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, ३, शुक्रवार, ले. स्थल, चंडेसर,
प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरुमु, लालरुचि); गुपि. मु. लालरुचि (गुरु पं. दलपतिरुचि), पे. वि. श्री आदिजिन प्रसादात्
पं. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: करकमल जोडी करी; अंति: दोलतरुचि शिव माग्य ए, ढाल -३, ग्रं. ४१. २. पे. नाम औपदेशिक कवित्त संग्रह, प्र. २आ, संपूर्ण
औपदेशिक कवित्त संग्रह " पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-).
3
४२९३९, (+४) ३५ बोल अर्थसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
( २६X१३, १३x४०).
३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै गति च्यार; अंति: श्रावकरा गुण २१.
४२९४०. (+) पदवि दुवार, संपूर्ण, वि. १९७४, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६ १३, १०X३२). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदिः ९ पदवि मोटकी, अंति: एवं ति पदवि दुवार.
४२९४१. (#) जीवविचार प्रकरण व नवपद नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६X११, ११-१२x२८-३२).
१. पे नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण
आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा ५१.
-3
२. पे. नाम. नवपद नमस्कार, पृ. ४अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र लिखकर छोड़ दिया है.)
४२९४२. (+४) आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे.,
( २३X११.५, १४X३९).
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति.
४२९४३. (+) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४१२.५, ८४३५ ).
अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि माहा सुदि आठम दिने, अंतिः पद्मनी सेवाथी शिववास, गाथा- ७.
४२९४४. (#) सिद्धदंडिकागर्भितसिद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५X११.५, ११५३१).
',
सिद्धइंडिका स्तवन पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः पद्मविजय जिनराया रे, ढाल - ५, गाथा-३८, ग्रं. ५७.
४२९४५. पर्युषणपर्व गुहरी, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२५.५x१३, ९४२८).
""
पर्युषण पर्व गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सखी परव पजुसण आवीया, अंतिः वीर प्रभुने वधावे रे, गाथा-५. ४२९४६. अष्टमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. जितश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१३, १२X३०). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदि आठिम दिने, अंतिः प्रगटै ग्यान अनंत, गाथा-१४ (वि. अंतिम दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४२५ ४२९४७. (+) पजुसणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४२७).
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परव पजूसण पूण्ये; अंति: सुजस भदोहप लीजे,
गाथा-४, ग्रं. १८. ४२९४८. (#) ऋषभजिन स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२६४१३, १०४३६). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो
___ भगवंत; अंति: ज्ञानविमलसूरिस नमो, गाथा-८. २. पे. नाम. अड्डाईजेसुसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अढीद्वीपगत सर्वसाधु
वंदनसूत्र.) ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेला स्वामि सिमंधर; अंति: सारो भवीकना काज, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) ४२९४९. (+#) संजतीसाधु सझाय व रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १५४३९). १. पे. नाम. संजतीसाधु सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
संजतीसाधु सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: सूरतरु सरीखो शंयम; अंति: भाखे उदय सुभद्र, गाथा-९. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे एतो वासपुज्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४२९५०. (+) गजसुकमालजीरी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९४२, भाद्रपद शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सीपरीछावणी, प्रले. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ९४२६).
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी; अंति: सहीने पोहता सीवपुरी, गाथा-४२. ४२९५१. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १७X४५).
मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: विबुधश्रीराजसागरः,
श्लोक-१५०, (वि. प्रतिलेखकने रचनाप्रशस्ति का किंचित् अंश ही लिखा है.) ४२९५२. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व देवसीआलोयणासूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३१). १.पे. नाम. साधुप्रतीक्रमणसूत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, ग्रं. ५०. २. पे. नाम. देवसीआलोयणासूत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४२९५३. (+) साधुपाक्षिकअतिचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२६.५४१३, १६४३८). १. पे. नाम. पक्षीअतीचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. सांजसवारनी गमणागमणे, पृ. ३अ, संपूर्ण.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. थापनाजीना बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सीद्ध सरूप धारवा; अंति: वचनगुप्ति कायगुप्ति. ४. पे. नाम. नंदीसूत्र सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखखने
सज्झाय की प्रारभिक ५ गाथाएँ लिखी हैं.) ४२९५४. (+#) अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १३४३२).
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह,
गाथा-४०. ४२९५५. (+#) बत्रीस असज्झाइ आदि विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९५३, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३,
ले.स्थल. विशलनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४, १२४३८). १. पे. नाम. बत्रीस असज्झाइ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धुंयरि पडई तां लगे; अंति: नीरंतर प्रतीवर्ष. २.पे. नाम. स्तुतीक अधीकार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.
सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाय; अंति: चरचरिग्रंथे कह्यो छे. ३. पे. नाम. छींक विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संवछरी चउमासी पखी; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः. ४२९५६. (+#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४, १२४३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ
सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ४२९५८. (+) लघुनंदावर्तपूजन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जेएसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३.५,१३४४०). नंदावर्त आलेखनादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कर्पूरकुंकुमसंमिश्र; अंति: पभइणं पूयपट्टमि, (वि. अंत में
नंदावर्तमहात्म्यदर्शक गाथा लिखी गई है.) ४२९५९. (+) ५ परमेष्ठी आदि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३,
१२४३६). १.पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र-मंत्रगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण, अन्य. मु. कल्याण, पे.वि. कृति के अंत में 'कल्याणमुनी पासेथी
उतार्यु छे' इस प्रकार लिखा है.
५ परमेष्ठि स्तोत्र-मंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कारं सार; अंति: गर्भितो धर्मवर्तिभिः. २. पे. नाम. पद्मावत्या स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-९. ३. पे. नाम. जीरावल्लिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति:
भवेद् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ४२९६०. (#) थूलभद्रजीरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १६४३२-३६). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भल उगो दिवस प्रमाण; अंति: सुजाण घणा सुख पावसी,
गाथा-११. ४२९६२. (#) विषयपरित्याग स्वाध्यय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कोरडाग्राम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२५४११, १७४४२-४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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औपदेशिक सज्झाय- विषधरागनिवारणे, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि मन आणी जिनवाणी, अंति ऋधविजय जयकार, गाथा - १७.
४२९६३. (+४) वसुधारा विधि व दोष वैतालीस आहारना सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६. ५X१२, २४४५९).
९. पे नाम, वसुधारा विधि, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः सर्वसौख्यं करोति,
२. पे. नाम. दोष बैतालीस आहारना सह टबार्थ, प्र. २आ, संपूर्ण.
गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उद्देसिअ अंति: रसहेउ दव्ब संजोगा, गाथा - ६. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः आधाकर्मी छ काय, अंति: मूलकर्म ए ४७. ४२९६४. श्रीमंदिरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१३.५, १९३३).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी, अंति: हंस० दरसण दीजे नाथ, गाथा- १६. ४२९६५ (+४) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८७१, ज्येष्ठ शुक्ल ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. रामहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १३, २१x४९).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: नाम पुन्यप्रकास ए, ढाल ८.
४२९६६. पर्युषणपर्व चीतवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६ १४, ११३५).
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पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परब पजोसण गुणनीलो, अंति: चरण चरण निरधार,
गाथा - १०.
४२९६७ (४) जिरावल्लीजिनेंद्र स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६.५५१२.५,
2
२८x१८).
गाथा-२७.
२. पे. नाम. दूध विचार, पृ. २अ संपूर्ण.
सामान्य श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १.
पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य, अंतिः लभेत् ध्रुवम् लोक-१४.
४२९६८. (+) सचित्तअचित्त सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. कुलपे, ३, प्र.वि. संख्यासूचक शब्दों के ऊपर अंक लिखे गये हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, १२X४०). १. पे. नाम. सचित्तअचित्त सझाय, पृ. १अ २अ. संपूर्ण.
सचित्तअचित्त सज्झाव, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रवचन अमरी समरी, अंति: नयविमल कहे सज्झाय,
"
४२७
३. पे नाम, सूतक विचार, पृ. २अ, संपूर्ण,
मा.गु., गद्य, आदिः पुत्रि जनम्यां दिन, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
४२९६९. (#) चंद्रावतीभेमसेन सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५४११, १२४३२-३७).
चंद्रावती भीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: कहे विवेक भजो जगदीस,
गाथा - २१.
४२९७०. (+४) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल पाचला, प्रले. पं. दयाल विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १६X३२-३६).
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दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंतिः स्मृद्धि प्रसाद रे, ढाल ४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४२९७१. (a) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, सांडेराव, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६.५x१३, १२३०).
"
सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल अंतिः सोइ पूजो सरस्वती, दाल-३,
गाथा - १४.
४२९७२. पाक्षिकक्षामण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. आनंदसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. प्रत के अंत में प्रत के लेन-देन संबंधी व्यवहार का उल्लेख है. दे., (२७४१२.५, १२४४१).
.
क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४२९७४ (+) ८ प्रकाशपूजा काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. वे. (२६४१३.५, ७४१६).
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८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर, अंतिः मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्रोक- ९.
४२९७५. (+#) बिंबपरिक्षा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९४५, आश्विन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. खंडित भाग पर चिपकाए होने से पत्रांक पढ़ा नहीं जा रहा है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे, (२६.५X१२.५, १३X३६).
बिंबपरीक्षा प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: एइयगि लक्खणभावं; अंति: गंथाउ जाणीज्जा, गाथा - ३०.
४२९७६.
(+) 'दृढप्रहारीरीषी सज्झाच व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२४X११, १९X३७-४२).
१. पे. नाम. दृढप्रहारीरीषी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रणमिं सरसति वरसति, अंतिः जंपे जब सीद्धीगामी, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.)
२. पे. नाम, दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण
दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
४२९७७. (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. दादरा, प्रले. सा. लाखा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४१३.५, १६x२९).
"1
औपदेशिक सज्झाय- बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: किण र बुडीपो तेडियो, अंति: नगर गुण गाया, गाथा - २९. ४२९७८. चेलणारो चउडालीयो, संपूर्ण वि. १९२० १४, रविवार, मध्यम, पृ. २. वे. (२६.५४१३, १७३७).
"
चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकलो; अंतिः श्रावलोक बस सुभठाम, ढाल ४ (वि. इस प्रति में कर्ता का नाम व रचनावर्ष प्राप्त नहीं होता है.)
४२९७९ (+) दीक्षा विधि संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३.५,
"
१३X३३).
दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेसे, अंति: नोकार गणावीई.
४२९८० (+) शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वजि सत्य छे प्ररमेस्वरजी, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२.५, १३x४० ).
शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर, अंति: जसविजय सारी लही, ढाल ६.
४२९८१. (#) रोहणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२.५, १३४३३).
रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हारे मारे बासपूज्य, अति: रोहणी तप गुण गाईवा, बाल-६. ४२९८२. (+) संभवनाथस्वामीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६ १३, ९४२५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मागु., पद्य, आदि: साहिब सांभलोरे; अंति: सुणजो देवाधिदेवा, गाथा-१४,
(वि. प्रतिलेखकने एक गाथा की दो गाथा गिनी है.) ४२९८३. (+#) गोडीजी स्तवन व पजूसण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२७). १. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जस नामे नवनिध; अंति: ऋद्धहर्ष कहै करजोडी,
गाथा-२०. २. पे. नाम. पजूसण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण आवीया रे; अंति: मतिहंस नमै करजोडरे,
गाथा-११. ४२९८४. पार्श्व व सांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में पेन्सिल से किसीने 'भगतीशरी' इस
प्रकार लिखा है., दे., (२६४१३, १३४३४). १.पे. नाम. पार्श्वस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो भवियण जिन; अंति: राम लहे वड रिध, गाथा-६. २. पे. नाम. सांति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सांति प्रभु विनति एक; अंति: सुरि मुगतिपदना दातार, गाथा-७. ४२९८५. (+) सीमंधरस्वामीनु स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२५.५४१२.५,१५४५७). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामीनु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साहेब श्रीश्रीमंदिर; अंति: मने राखो तमारी पास,
___ गाथा-१२. २.पे. नाम. स्तुति संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ४२९८६. अष्टापदजिनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १३४३२).
आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: फले सघलि आस
के, गाथा-२३. ४२९८७. (#) देवानंदा सीजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेहसाणानगर, प्रले. मु. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमल्लिनाथजी माहाराजजी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ९४३४). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: उलट मनमा आणी,
गाथा-१२. ४२९८८. (#) मुनिगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे.. (२६.५४१२.५, १३४४२).
मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन; अंति: विनय मांगे सोय, गाथा-१२. ४२९८९. (+) पचखाण विधि व श्रावक १४ नियम गाथा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५४१२,१२४३७). १.पे. नाम. पचखाण वीधी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पोरबंदर.
___ अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा सह अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पाणी फल बीज दातण; अंति: पले ते रीते पाले.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४२९९० (४) आशातनानी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६.५x१२.५, १९४३५).
"
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असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवि समरी मात, अंति: सीवलच्छी तस वरे, गाथा - १६. ४२९९१. (#) साधारणजिन स्तवना व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १८२७ श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. खुशालचंद मलुकचंद वसा. प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै. (२६५१२.५, १२४३६). १. पे नाम. साधारणजिन स्तवना, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
"
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. २. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैन गाथा, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १.
४२९९२, (+) समकतना ६७ बोल व २० स्थानक गुणकीर्तनफल विचार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे, २,
प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१३, १३X३६).
१. पे नाम समकितना ६७ बोल, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९९९ कार्तिक कृष्ण, १०.
६७ समकित बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ४ च्या सरदणा ३ लिंग; अंति: मोख जावणनो उपाय छै.
२. पे. नाम. २० स्थानक गुणकीर्तनफल विचार, पृ. २आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतजीना गुणग्राम, अंतिः कमारी कोड खपावे.
४२९९३, (+) करकंडुनि सजाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित. दे., (२५.५४१२.५, १५X३५-४३).
.
१. पे. नाम. करकंडुनि सजाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९४७, फाल्गुन शुक्ल, १, मंगलवार, प्रले. दलसुख मानचंद भावसार. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: चंपा ते नगरी अतिभली अंतिः प्रातिक जाय रे,
गाथा-५.
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. दुर्गादास, मा.गु, पद्य, वि. १८४९, आदि: जोग लावो सरीवीर, अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक ही लिखा है.)
४२९९४. (+#) शरस्वतीजिरो संद, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ कृष्ण, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूषकभक्षित होने के कारण प्रतिलेखन
तिथि अपठनीय है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१३, १०X२६).
सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शरश वसन शमता; अंति: वासा फलसी माहरी, गाथा-३५. ४२९९६, (४) सिद्धचक्र थुई व नेमिजिन होरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की
יי
स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३, १३४३१).
१. पे. नाम. सिद्धचक्र थोई, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पेहेल पद जपिये; अंति: कांतिविजय गुण गाय,
गाथा-४.
२. पे नाम. नेमिजिन होरी पू. १आ. संपूर्ण.
3
मु. धर्मचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: सरोवर तीरे धूम मचाई, अंति: धरमचंद पुजे गुण गाई, गाथा - ९. ४२९९७. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १२X३७). शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद, अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा- १०. ४२९९८. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. प्रतिलेखकने संबोधनवाची शब्दों के ऊपर 'हे' लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १२-१३३८-४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४.
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सपूण.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४३१ ४२९९९ (+#) झांझरीयामुनि सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३-१४४२५-३२). १.पे. नाम. झांजरीयाऋषि सर्याय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियलमांहि मुनिवर; अंति: लबधिविजय कहे मनखंत,
गाथा-३९. २. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रे रहो रहो; अंति: रूपविजय जयकार, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रासुकपृथ्वी विचार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति सामिणी; अंति: जीव सुख पामे तेह, गाथा-७. ४. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.
जैन गाथा , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४३०००. (+#) अषाडभूतआचारज पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रामलाल; अन्य. मु. देवकरणजी परसुरामलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १९४३८-४२).
आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बाबिसमो; अंति:
बचनारी आसतारैलाल, ढाल-५. ४३००१. (#) प्रतिलेखना कुलक आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, पठ. मु. गांगजी,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.८०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४३). १. पे. नाम. प्रतिलेखना कुलं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेण विजयविमलेण, गाथा-२८. २.पे. नाम. महादंडक स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमि भमिओ; अंति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२०. ३. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जंलोय; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. ४३००२. आहरगवेषणा अने एषणा अने ग्रासेषणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१३, १४४३७).
आहारगवेषणा सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: ते लहे सुख संजोग,
ढाल-३, गाथा-३६. ४३००४. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन व पांचमीनी थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. जतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ देव; अंति: प्रभु गुण सूणस्ये रे, गाथा-६. २.पे. नाम. पांचमीनी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४३००५. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२, १४४३८-४२).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदाइक सदा; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-७ (कुलगाथा-८५) अपूर्ण तक है.) ४३००६. (#) गुणठाणाविवर्णो सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लींबडी, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३६). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु केरा प्रणमी; अंति: भवसायर सोहिलई
तरो, गाथा-१९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३००७. (#) सचितअचित संज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १३४३९). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गण; अंति:
वीरविमल करजोडि कही, गाथा-१८. ४३००८. (+#) कृष्णदासबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १५४४८). अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि: ॐकार अमर अमार अज; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४३००९. (+) शांतीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३६). शांतिजिन स्तवन, मु. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९०, आदि: साहिब शांति जिणंदजी; अंति: ध्यानथी
मंगलमाल, गाथा-१४. ४३०१०. (-) उवसग्गहर स्तोत्र व पद्मावती कल्प से चयनित मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४२९). १.पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पासं०; अंति: भवे भवे पास
जिणचंद, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखकने चयनित गाथाएँ ही लिखी हैं.) २. पे. नाम. पद्मावति कल्प से चयनित मंत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. मेरुतुंगसूरिकृत पद्मावती कल्प से चयनित.) ४३०११. (#) तीन मनोर्थ श्रावकना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १५४४०).
श्रावकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोर्थ करतो समणो; अंति: सुत्र में कह्या है. ४३०१२. (#) ढंढणऋष स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कोठां, प्रले. मु. हीमतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४३५).
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषने बंदणा; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ४३०१३. (+) शांतिनाथ आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२,
११४२८). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरिइं; अंति: रिषभदासनी वाणी,
गाथा-४. २. पे. नाम. रिषभदेव स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रहि उठि वंदु रिषभ; अंति: रिषभदास गुण
गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधो साधो; अंति: पद्म वंछित शुभ आज, गाथा-१, (वि. अंत में 'आस्तुति चारे
थोयोमा केहेवाय' इस प्रकार लिखा है.) ४३०१४. (+) धना माहामुनिराजरी सझाय, संपूर्ण, वि. १९४६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. लक्ष्मीनारायण महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथरचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५४१२, २०४६८). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. किसनलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४६, आदि: काकंदि नगरी भली सकोइ; अंति: सफल
कियो अवतार हो, गाथा-२९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४३०१५. () होलीका सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२५X१२.५,
१७X३६).
יי
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होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पूरष राजा; अंति: विनयचंद कहे करजोरी, ढाल -४. ४३०१७. (#) नवकार लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. अमराज बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२.५, १२४४५),
४३३
नमस्कार महामंत्र लावणी, मोडाराम, रा., पद्य, आदि: रटे मंत्र नवकार सदा; अंति: मोडाराम टले कुगतीयां, गाथा- ७. ४३०१९. (f) सुबाहुकुंमार सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, अन्य मु. खुसाल, सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है. दे. (२५.५x१२.५, ११४४२).
"
सुबाहुकुमार सज्झाव, मु. पानाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम. अंति: (-), गाथा १५, (वि. पत्र पर कागज चिपका होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.)
४३०२० () पार्श्वनाथ स्तवन व प्रणातिपातनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १८५६ आश्विन शुक्ल, १ मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. पठ. श्रावि. देवबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३५).
१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. हस्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर साहिबा, अंतिः हस्तिविजय जय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम प्रणातिपात सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण.
प्राणातिपात प्रथमपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पेहलु; अंतिः हिंसा नामे बलाव रे, गाथा- ६.
४३०२१. (+०) अरणकमुनीनी व नवपद सजाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३०).
१. पे. नाम. अरणकमूनीनी सजाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चालल्या; अंतिः मनवंछित फल लीधो जी,
,
गाथा - ९.
२. पे. नाम. नवपद सजाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल, अंति: नवपद महिमा जांणो जी. गाथा ५.
४३०२२. (०) वीरजिन गुंली व पर्युषण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२.५, १३X३५).
१. पे. नाम. वीरजिन गुंली, पृ. १अ संपूर्ण, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
महावीरजिन गहुली, मु. गुलावविजय कवि, मा.गु, पद्य, आदि: वीरिजि आया रे चंपां अंति: गुलाबविजय जयकार,
गाथा-५.
२. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. गुलाबविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीया रे; अंति: कहे इंम विजयगुलाब रे, गाथा- ७. ४३०२३. (+०) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.
(२५.५X१२, १२X४३).
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चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक - ९.
४३०२४. (#) ऋषभदेवजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है ., अक्षरों
की स्याही फैल गयी है. वे. (२६४१३, १५४४१).
१. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर रीषभ, अंति: भव देजो तमारी सेवा, गाथा- ७.
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४३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनानी आंगी हे सुंदर; अंति: रामविजय शुभ सीसने जी, गाथा-७. ४३०२५. (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन व परमात्मपंचविंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १४४४३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसंवरस; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. परमात्मपंचविंशिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य किसी अद्यतन प्रतिलेखक द्वारा नीली स्याही से
लिखी गई है. परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमात्मा परंज्योतिः; अंति: स्ते
यशोविजयश्रियम्, श्लोक-२५. ४३०२६. (+) पार्श्वनाथ स्तुति, पुष्पांजली स्तोत्र व गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: पार्थोवताद्यो रद; अंति: यच्छतु वांछितानि वः, श्लोक-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: केवललोकितलोकालोक; अंति: मुक्तिलयं कुरुते, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
___ जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४३०२७. (#) देवानंदा आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५.५४१२, १७४५०). १. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: ऊलट मनमाहें आंणी, गाथा-११. २. पे. नाम. मेघकुंमार स्याध्या, पृ. १अ, संपूर्ण.
मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: पामीजे लिल विलास, गाथा-६. ३. पे. नाम. एकादसी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज माहरे एकादसी रे; अंति: अविचल लीला लेहस्ये,
गाथा-७. ४. पे. नाम. बीज सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे,
गाथा-८. ५.पे. नाम. बाहुबलि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीराजी मांनो विनति; अंति: मुझ होज्यो वंदना खास, गाथा-९. ४३०२८. मुनिइग्यारस स्तुति व पजुसणनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १३४३२). १. पे. नाम. मुनिइग्यारस स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. रूपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती कृष्ण; अंति: वर्द्धन इम ए भणीजे,
गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
__पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूण्यनो पोषण पापनो; अंति: दिन अधिक वद्धाइ जी, गाथा-४. ४३०२९. (#) महावीरजिन स्तव व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १४४३३).
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४३५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० १.पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. हीरविजयसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्त्या नमस्कृत्य; अंति: हीरवि० मुदा प्रसन्नः, श्लोक-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: मरुदेव्याः सुतकांति; अंति: संघस्य श्रेयं कुरु, श्लोक-१. ४३०३०. (+) अजशिलाका विद्धान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३६).
अंजनशलाका विधि, रा., गद्य, आदि: प्रथम जवारा वाहणा; अंति: ते स्थानेके करवी. ४३०३१. (+#) गजसुकमालजी का बारामासीया व सीताविनती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४४१). १. पे. नाम. बारामासीया गजसुकमालजी का, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि बारमासा, पुहि., पद्य, आदि: चतमहीना चड आया मयावन; अंति: इंदर नमें जै जे कारी, गाथा-१२. २. पे. नाम. सीताविनती पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
पुहि., पद्य, आदि: हाहाकार करत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ४३०३२. (#) मौनीइग्यरसरै हुजमणैरो पत्रो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण वेठा भगवंत; अंति:
समयसुंदर कहै य्याहडी, गाथा-१३. ४३०३३. (+#) आलोचना स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३८-४०).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५.
रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिक अने लक्ष्मी; अंति: शिव सौख्य मागु छु. ४३०३५. दिपालिका देववांदवानी वीधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीसलनगर, प्र.वि. कल्याण पार्श्वनाथजी प्रसादात्., दे., (२६४१३, १६४३६). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर;
अंति: प्रगटि सकल गुण खांणि. ४३०३६. (#) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.१, १०४३०).
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी,
गाथा-३६. ४३०३७. (4) जीवना भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मात्र प्रथम पत्र पर पत्रांक अंकित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४३५).
५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी घंमा वंसा; अंति: देवता ९९ अपर्याप्ता. ४३०३८. (#) श्रीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३, १२४३५).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: संतोषि० पायो रे,
ढाल-७, गाथा-३८. ४३०३९. (#) आंतरानु तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ११४३३). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदाना सुपरे; अंति: तास नामे वरयो
जयकार, ढाल-४. ४३०४०. (+#) मुनीसुव्रतजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: ऐन असाडो उन्होजी त्र; अंति: सींचो समकित छोड, गाथा-९,
(वि. इस प्रति में कर्तानाम हंस लिखा है.) ४३०४१. (+#) ९ पद ओलीराखमासणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसीने
अंतिम पत्र के हासिए में 'पं. चारित्रसागर' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १४४३७).
नवपद ओली खमासमण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वर्णसिंहासनस्थिताय; अंति: उत्सर्गतपसे नमः. ४३०४२. (+) नेमीजीनराज राजीमति कथन सप्तवार व नेमनाथ पनरतिथी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३६). १. पे. नाम. नेमीजीनराज राजीमति कथन सप्तवार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सुरतबंदर. नेमराजिमती पद-७ वारकथन, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे सरसति सदगुरु; अंति: नाम सेजे तरसे रे,
गाथा-११. २. पे. नाम. नेमनाथ पनरतिथी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, वि. १८४६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, ले.स्थल. रांनेरबंदर,
पठ. मु. केसरविजय; अन्य. मु. गलालविजय; हीरीयो; वनमाली; माणक; मु. जीतविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, पे.वि. श्रीनेमनाथ प्रसादात्. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: रंगविजय
वधते रंगे, गाथा-२३. ४३०४३. सिद्धाचल गिरबि, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६.५४१२.५, १२४४०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: जे कोइ सिद्धगिरिराज; अंति: दीप० सुख
साजने रेलो, गाथा-१५. ४३०४४. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; अन्य. श्रावि. हरख वउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १०४४२). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वदु;
अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ४३०४६. (#) ब्रद्धमान दसोठण महोछव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १९४३६).
महावीरजिन दशोटन महोत्सव, मा.गु., पद्य, आदि: राजा सिद्धार्थ निज; अंति: लागा देवता सेवा करइ. ४३०४७. (+) अष्टापदनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, ११४३३). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे; अंति: हो फलसे सघलि आस
के, गाथा-२३. ४३०४८. (+#) माणकचंदजी चौढालीयो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, २३४३८-४२). १.पे. नाम. माणकचंदजी की ४ ढाला, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८८६, ले.स्थल. बडोत, अन्य. मु. लक्ष्मीचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखकने 'पुजजी श्री १०८ लक्षमीचंदजी प्रसादत लिखतं' इस प्रकार लिखा है.
माणेकचंदमुनि चौढालियो, मु. मोजीराम, रा., पद्य, आदि: समरूं आदि अरिहंत; अंति: मौजीराम बिचारो रे, ढाल-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण..
रा., पद्य, आदि: कडवा वोल्या अनर्थ; अंति: कोईही मत प्रकासो, गाथा-२४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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४३७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: वुढो हलुवै हलुवै चाल; अंति: जीणरी चरणारी बलहारी,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४३०४९. (#) महावीरजिन आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२६४१३, १३४३३). १.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: पावापुषरा रे पावापुर; अंति: प्रभूजी से नेहरा, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजीसुं मोरी लगन; अंति: अजरअमर सुखदाय जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: मनवा जिनंद गुण गाय; अंति: आनंद बबित दायरे, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी बंदण जइवे; अंति: पूजी विमल जिणंद, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. किसनगुलाब, पुहिं., पद्य, आदि: पूरबीघाये देख्यो रे; अंति: तुम राजन कै राज, गाथा-४. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. शिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पास जणंदा प्रभू मेरे; अंति: अतचकोर विकसीया, गाथा-५. ४३०५०. (+#) जीव अजीव भेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४३१).
जीवअजीवभेद विचार, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम नारकी के १४; अंति: कर कै ५६० अजीवरा भेद. ४३०५२. (+#) करण करावण अनुमोदन भागा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं. दे.. (२५.५४१२.५, १४४२९).
जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३०५४. (#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १२४१७).
आदिजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पूजवा; अंति: उछले हर्ष तुरंग हो, गाथा-९. ४३०५५. (#) सरस्वतीजी कोस्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १०४३१).
सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उच्वर्णं; अंति: वंदै हेम इम वीनती, गाथा-११. ४३०५६. (#) दानसीलतपभावना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५-१७४४१).
दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमंतु एणं, गाथा-५०. ४३०५७. (#) पन्नवणाधिकार वार्त्तिक वोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६x४४).
बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३०५८. (#) राजुल की त्वन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४१२.५, १४४३२).
नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: मोड बाधे के मूझ; अंति: भारक सिद्धपद वर लयो, गाथा-८. ४३०५९. (+#) बृहत्शांति, लघुशांति व घंटाकर्ण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. पं. बुधचंद्र;
पठ. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १४४२८). १.पे. नाम. वृहत्शांति, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: ध्यायमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
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आ. मानदेवसूरि. सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत, अति सूरिः श्रीमानदेवञ्च श्लोक-१७.
३. पे. नाम. घंटाकर्णमहामंत्र स्तोत्र. पू. ४आ, संपूर्ण.
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ४३०६०. गमादि विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. जै. (२६४११.५, ३४४३३).
विचार संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-), (वि. उत्पन्न होने के ४४ स्थान, जीव आगति आदि विचार. )
"
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
1
४३०६१. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. रुघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६१२.५, १४५१).
विचार संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आकाशप्रदेशे अजीवभेद, सूक्ष्म परमाणु बोल, खंध बोल, ८ स्पर्शी पुद्गलादि विचार.)
४३०६२. (+) षट्द्रव्यभेद विचार व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३०, कार्तिक कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पू. ४, कुल पे. २, प्रले. उदयचंद ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२.५, १५४४५).
१. पे. नाम पद्रव्यभेद विचार, पृ. ९अ ४आ, संपूर्ण
६ द्रव्यभेद विचार, सं., गद्य, आदि: असीइसयं किरीयाणमित्य अंतिः सूत्रकृतांगतोवसेयः,
२. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में प्रति के हास में गई है.
सामान्य श्लोक सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) श्लोक-१.
1
४३०६३. (#) संथारो लैण री विध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये
हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२५.५४११.५. १४४४४)
संधारा विधि, प्रा.मा.गु., प+ग, आदि भंते अपच्छिम मरणांते, अंतिः मिच्छामिदुकडं.
४३०६४ (M) विविध तपविधि संग्रह, संपूर्ण वि. १८८१ आषाढ़ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, प्र. मु. कस्तुरविजय,
"
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२.५, २०x४०).
तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रियजयतप पुरिमड, अंति: विषे कह्या छेई.
४३०६५. (#) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. बखतावर (गुरु मु. शोभाचंद्र); गुपि. मु. शोभाचंद्र; पठ. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, १७३९).
लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १२-१५X४०).
"
"
विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सातश्रेणी, अरिहंत गुण, सिद्ध गुण, ८ प्रातिहार्य व ६३ शलाकापुरुष माता-पिता विचार.)
४३०६६. (+०) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. २, प्र. वि. श्रीरामजी श्रीसदासीव सत्य छे., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६४१२, १२X३१).
कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक-२२ अपूर्ण तक लिखा है.)
४३०६७ (d) चोसठयोगीनी स्तोत्र संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. एक ही पत्र पर पत्रांक १ व २
१. पे नाम, चोसठयोगिनी यंत्र मंत्रसहित, पृ. १अ संपूर्ण, पे.वि. कृति के बीच में यंत्र व मंत्र लिखा गया है.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-).
*,
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२. पे. नाम. चउसट्टजोगणी सुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., पद्य, आदि: जगमज्झिवासिणीणं; अंति: उवयारकरं जयउ लोए, गाथा- १५. ३. पे. नाम. चोसठजोगनीनाम स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
.
,
६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं दिव्य अंतिः लक्ष्मी प्रकीर्तिता, श्लोक ८. ४३०६८ (४०) लद्धी का थोकडा व संवत्सर विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, काणुडनगर, पठ. मु. रुघनाथ (गुरु मु. मंगलसेन); गुपि. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१३, २५X४७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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४३९
१. पे. नाम. लद्धी का थोकडा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.
लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं., प्रा., गद्य, आदि: जीव गइ इंदिय काए सुह, अंति: नीपजवा अनंतगुना छे.
२. पे. नाम. संवत्सर विचार, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. अंत में संख्यावाची अंक लिखे हैं.
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४३०६९. (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख, ११, रविवार, जीर्ण, पृ. ३, ले. स्थल. कीसनगढ़, प्रले. सा. छगना (गुरु सा. दलुजी); गुपि. सा. दलुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५५१२.५, २१४३२).
बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गुरु-शिष्य संवादरूप धार्मिक प्रश्नोत्तर.) ४३०७०. (+) चत्तारिअट्ठदसदोयवंदिया गाथा विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संख्यासूचक शब्दों के ऊपर अंक लिखे हैं, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत, जै. (२६.५४१२.५, १२४३८).
"
चतुर्विंशतिजिन स्तव - चत्तारिअट्ठदसदोय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदोअ; अंति: देविंद जग विंति गाथा १५.
४३०७१. (#) शांतिनाथनी मेरेठी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य मु. कीसनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५. ५X१२.५, ३२x२७). शांतिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: संतनाथ जिन संति के, अंति: संतनाथ जिन जेह रटे, गाथा - ११. ४३०७२. (+) रात्रिभोजनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सरसपूर, प्रले. मु. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X१२.५, ११x२७).
रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. बसता मुनि, मा.गु, पद्य, आदि पून्य संजोगे नरभव, अंतिः मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा - १३, ग्रं. १३.
४३०७४, (+) बीजनीढाल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित., दे., ( २६.५X१२.५, १४X३८).
बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसत्ति; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल - ३, गाथा - १७.
४३०७५. (#) ऋषभजिन आदि स्तुति संग्रह व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. कुल ग्रं. २५, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६.५४१२.५. १२४३६).
१. पे. नाम ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ. संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि, अंतिः भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४.
२. पे नाम वीर स्तुति, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण,
महावीर जिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद, अंतिः नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, लोक-४.
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३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तुति- रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रिया मंगल, अंतिः जब ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४.
४. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आणंदविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः आज जिणंदजी का दीठा; अंति: जिन कहुं हुवे केटलूं, गाथा-४. ४३०७६, (४) मांणभद्रजी रो छंद, संपूर्ण, वि. १९३९ माघ शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजय
पठ. रिधकरण, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२५, ११५३३).
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४४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरपति सेवित शुभ खाण; अंति: माणिभद्र जय
जय करण, गाथा-१४. ४३०७७. (4) महावीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. दलसुखराम; अन्य. श्रावि. मोतिकुंअर,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १४४३२). १. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु;
अंति: लहि अधिक जगीसरे, ढाल-३, गाथा-५६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आमलकल्प उद्यानमा; अंति: सीवमंदिर तणीजी, गाथा-९. ४३०७९. (#) महावीरपारणा अधिकार जीरणसेठपूरणसेठनौ, अपूर्ण, वि. १८वी, ?, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२,
प्रले. पं. साहिवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत् अस्पष्टाक्षरों में इस प्रकार है. 'संवत् १७१७७७ वर्षे', अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १३४२७). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरहत अनंत गुण; अंति: तिनहा नमइ मुनी माल,
गाथा-३१, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक नहीं है.) ४३०८०. (+#) रोहिणीतपसझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १२४३७)...
रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्य जिणंदा; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप,
गाथा-९.
४३०८१. (#) वीर स्तुति व दुम्मपुप्फयाज्झयण-दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, माघ कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, ले.स्थल. सुभट्टपुर, प्रले. मु. सुमेरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ११४३४). १. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१०. २. पे. नाम. दुम्मपुप्फयाज्झयण-दशवैकालिकसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ;
अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ४३०८२. (+#) श्रीमंधरस्वामीजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ७४१६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी विमनतडी अवधारो; अंति: जिनपद बंदन
विसाल, गाथा-२१. ४३०८३. (#) बावनअनाचार, पसण स्तुति व पार्श्वजिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३६). १.पे. नाम. बावनअनाचार, पृ. १अ, संपूर्ण.
५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, रा., गद्य, आदि: उद्देशिक आहार लेवें; अंति: अंग विभूषानो करवो ५२. २. पे. नाम. पर्युसण स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पर्ब पजुसण पुन्थे; अंति: संतोषी गुण गाया जी,
गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पार्श्व देवा करु; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२ तक है.)
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४४१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४३०८४. (+) उपदेसीकमाला, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४३६).
औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदयाने विशे रमवु; अंति: पोतानी मेले वरे. ४३०८५. वीरजिनपंचकिल्याणक स्तवन व पजुसरणरी थुइ, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्रले. मु. गुलाबचंद महात्मा; पठ. श्रावि. सतुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १२४३४). १. पे. नाम. वीरजिनपंचकिल्याणक स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासणनायक सिवकरण वंदु;
अंति: लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. २. पे. नाम. पजुसणरी थुइ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुंध्यांओ; अंति: कहे जिनलाभसुरिंद, गाथा-४. ४३०८६. (+) कुमतिनिवारणजिणभक्तस्थापनाबतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १३४२८). जिनभक्तिस्थापनाबत्रीसी, श्राव. लाधोसाह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिण पदपंकज परणमी; अंति: चिरकालै नधो,
गाथा-३२. ४३०८७. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. फुलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १०४३७). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी
ब्रह्मावादनी; अंति: तस घर मंगल जयकरो, ढाल-५, गाथा-५६. ४३०८८. (+#) संखेश्वरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १२४२७). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी;
अंति: रुप कहे प्रभुता वरो, गाथा-९. ४३०८९. (+#) कृष्णबतीसी व जंवूस्वामीजी की बीनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २२४५१). १.पे. नाम. कृष्णबतीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमां श्रीनेम; अंति: मीछामदुकडं मोय ए,
गाथा-३२. २. पे. नाम. जंबूस्वामीजी की बीनती, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८६, ले.स्थल. दिली, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक
द्वारा या बाद में लिखी गई है. अंत में'।१।' से '।६।' इस प्रकार अंक लिखे हैं. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मास्वामि तनी; अंति: दुरगदास गुण गाया, गाथा-११,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४३०९०. (#) भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सिंघाणा,
प्रले. मु. रुघनाथ (गुरु मु. मंगलसेन); गुपि.मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १७४४१).
भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआद पुरुष आदीस; अंति: ते पावें सीवखेत, गाथा-४९. ४३०९१. (-2) नोकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रुपनगढ, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १४४२८-३५).
नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५. नमस्कार महामंत्र-पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहता नीमसकार; अंति: नीमसकार होज्यो.
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४४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३०९२. (#) मृगापुत्र सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१२.५, १६४३७).
मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सौहावणौ; अंति: सुध प्रणाम हो, गाथा-१२. ४३०९३. (#) नवकारमाहात्म स्वाध्याय व प्रसनचंद्र सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, ., (२६४१२.५, १३४३१). १.पे. नाम. नवकारमाहात्म स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरै विविध परि; अंति: ऋद्धि वंछित
लहै, गाथा-१३. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सीझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंतोरा पाय; अंति: दीठा एह प्रत्यक्ष, गाथा-७. ४३०९४. (+#) श्रीमंदरस्वाम तवन व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का
अंशखंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १९४२८). १. पे. नाम. ज्योतिष कोष्ठकादि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
___ ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. श्रीमदरस्वाम तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमदरस्वामीजी; अंति: हवे दरसण दोजो नाथ, गाथा-१५. ४३०९६. बुढापा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १६४३६).
औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: केइ बालपण समज्या नही; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) ४३०९७. (+#) वीरजिन गहुंलि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दीपविजय (गुरु मु. चतुरविजय); गुपि. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १७४३१). महावीरजिन गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण वंदो रे चोविशम; अंति: रेते घर आनंद थाय,
गाथा-६. ४३०९८. (+#) क्षमाछत्रीशी, पुण्यछत्रीशी वसीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १६४३६-३८). १.पे. नाम. क्षमाच्छत्ती, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण आदर; अंति: चतुर्विधि संघ ज्यगीस,
गाथा-३६. २. पे. नाम. पुन्यच्छत्तीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतिख; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: श्रीश्रीमंदरस्वाम हो; अंति: इम वीनवै
महारा लाल, गाथा-११. ४३०९९. (#) समकितछप्पनी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, २९x१९).
सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: तथा श्रावक हे अराध, गाथा-५६. ४३१००. (#) बीजतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विजापुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(२५.५४१२.५, १३४३३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४४३ बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवने रे; अंति: नित विविध विनोद रे,
गाथा-८. ४३१०१. (#) मिथ्यात्व भेदा:, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. महासुखराम शिवराम अध्यारु, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्र. पु. अंतर्गत 'ठेकाणु चकले वीजलकुये रहे छेइस प्रकार लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३.५, १०४४१).
मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लोकिक देवगत मिथ्यात; अंति: ते अमुत्तसन्ना कहीइ. ४३१०२. (+) होलीपर्व कथा व सामान्य श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,
ले.स्थल. गुंदवचनगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४४८). १.पे. नाम. होलीपर्व कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-५१. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. ४३१०३. (+#) भाषा के ३२ भेद व असजझाय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुलपे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १६४३२-३५). १.पे. नाम. भाषा के ३२ भेद नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: धुअर पडे ते असजझाये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ३४ बोल तक लिखा है.) ४३१०४. (#) धरणोरगेंद्रमहाविद्या स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ११४३६).
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ४३१०५. नंदीसूत्र की मंगल गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१३, ३४३३).
नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयई जगजीवजोणीविआणओ; अंति: जिणंदवरवीरसासणयं, गाथा-८.
नंदीसूत्र-मंगल गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विषय कषायना जीपणहारा; अंति: जेनेंद्रनो सासण छि. ४३१०६. (#) अष्टमी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ११४२५).
अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति चर्णे नमी; अंति: वाचक देव सूसीस, गाथा-७. ४३१०७. (+) सौभाग्यपंचमि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. जमनाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६,
गाथा-५०. ४३१०८. (+#) चतुर्विंशति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, प्रले. पं. पुण्यसुंदर गणि (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४.५४११,११४३४). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: पूर्णानंद समाजो जी, स्तवन-२४,
(पू.वि. नमिजिन स्तवन अंतिमगाथा अपूर्ण से है.) ४३१०९. (#) विसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. कुबेरदास रणछोडदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, ११४३७).
२० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमु; अंति: वयण सोहांमणोरे लो, गाथा-८. ४३११०. (#) सौभाग्यपंचमि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५,
१२४३४).
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४४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुणी, डाल-६,
गाथा - ५०.
४३१११. (+) सीताजीनी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७१२, १०X३०).
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि जनकसुता हुं नाम; अंतिः नीत नीत होजो प्रणाम, गाथा ८. ४३११२. (+) धन्नाशालिभद्र चौडालईड, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे.,
1
(२६X१३, १३X३५).
धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि: सुभद्रा आवी कहै सुण; अंति: भगवत वचने राख, डाल-६.
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४३११३. (#) नवतत्व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १३X३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ४३११४. (f) जंबूस्वामिनि सीजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५,
१३x४१).
जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने विनवुं; अंति: नामे हो ज
जयकार, गाथा - १५.
४३११५. (#) जिनपंजर महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३, १२X४५). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: मनोवांछितपूरणाय श्लोक-२४. ४३११६. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे (२५४१३.५, ११४३२).
पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: नित्य समरुं साहिब, अंतिः शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा- १३.
४३११७. (+#) पार्श्वनाथजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२१, आषाढ़ शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पाटणनगर,
प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १३४४८).
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्थः पातु वो अंतिः सकलां श्रियं श्लोक-३३.
४३११८. (#) आदेसर विनति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७१३, ११x२९).
आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पांनी सुगुरु पसाय रे, अंतिः विनय करी विनवे ए, गाथा - ५५.
४३११९. एकादशीनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, वे. (२७४१३, ११४२८).
""
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमिर्बभाषें; अंतिः न्यस्तपादांबिकाख्या, श्लोक-४.
४३१२०. (+०) ज्ञानपंचमि सझाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने भी संशोधन किया है.. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५५१२.५ १२४४०).
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर, अंति: संघ सयल सुखकारि रे, ढाल - ५, गाथा - १६.
४३१२१. (+) आंबेलतपनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १ प्रले. मणिलाल मूळचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित.,
दे., (२७X१३.५, १२x२९).
नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु नमतां गुण; अंति: तारवा मोहन ससभाव, गाथा९. ४३१२२. (#) पार्श्वनाथाष्टक सह आम्नाय व जिनपिंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मयाचंद डुंगरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२, ११४४४).
१. पे. नाम. पार्श्वनाथाष्टक सह आम्नाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित, सं., पद्म, आदि: श्रीमदेवेंद्रवृंदा अतिः तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक ८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित - आम्नाय, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: जिवारै ए स्तवन, अंति: मनवंछित सिद्धि हुवे.
२. पे. नाम. जिनपिंजर स्तोत्र, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण.
जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२४. ४३१२३, (४) नवकारमंत्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२ है. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की स्याही फैल गयी
,
है, दे., (२८x१३, २१X१४).
नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विवध पर; अंति: वंछित श्रीफल लहे, गाथा-१८ (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४३१२४. (+४) जंबूद्वीपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२७४१३.
११-१३X३२).
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लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नुं; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ४३१२५ (+४) चतुःप्रत्येकबुद्धि गीत व आषाढमुनि सिज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) = २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है जै. (२६११, १४४३८-४१).
"
१. पे. नाम. चतुः प्रत्येकबुद्धि गीत, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण.
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: हे पाटण पुर सिद्ध,
ढाल-५.
२. पे नाम. आषाढमुनि सिज्झाय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण.
आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, वा. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: वय बालक आषाढामुनीसर; अंति: वाचक वदे मेघराज जी, गाथा - १४.
४३१२६. (+#) गोडीपार्श्वजिन, शत्रुंजयतीर्थ व अनंतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५X१२.५, १६X३४).
१. पे. नाम, गोडिजी स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. गौतमविजय, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीगोडी जिनराया हुं; अंतिः गौतमना छो तुमे ईस रे,
गाथा-५.
२. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आपो आपोनें लाल मुझने, अंतिः सेवां कामगवि दोहति
गाथा-७.
३. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरुआरनि सोहेली, अंति: आणंदघण राज पावे, गाथा-७. ४३१२७. (#) जिननमस्कार व सीमंधरजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२७४१२.५, १३५३६).
१. पे नाम, जिननमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति एकाधिक प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई है.
सर्वशाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि; जयति जंगमकल्पमहीरुहो अंतिः शिवं श्रीजिनः श्लोक-११. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: गुणग्रामधामस्थिर, अंति: देयादमुदां मुदां, श्लोक ८.
४३१२८. (#) शांतिजिन आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२७.५X१२.५, १६x४१).
१. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्म, आदि: अचिरा सुत अरजी अच्छे अंतिः मन थिर सांति सुरिद्ध, गाथा ५.
२. पे नाम, शांतिजिन लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
शांतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा साँति जिन, अंतिः तुहि रह्यो रे लो, गाथा-५.
३. .पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि प्रभूजी वासुपूज्य अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा- ३ तक लिखा है.)
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४. पे. नाम. पार्श्वनाथनु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: वामाजी के नंदन वंदन, अंति: रुचिप्रमोदे राचे, गाथा-५. ४३१३० (+) बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२४४११,
१३४३९-४१).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (१) सुखी भवतु लोक:, (२) जैनं जयति
शासनम्.
४३१३१. मरुदेवीमाता सज्झाय व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६X१३, १३X३५). १. पे. नाम, मारुव्देवी सज्झा, प्र. १अ संपूर्ण.
मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, आदि एक दन मारुदेवी आई अंतिः तव परगठ अंभव सारी रे, गाथा - ९, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
२. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण
पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे जोजो रे काई, अंतिः पामे सीवलर सदम, गाथा ९ (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
!
४३१३२. मौनएकादसीदिने डोढसोकल्याणकनु गणणु, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. विसलनगर, दे., (२७X१२.५, १२X३३). एकादशीपर्व गण, सं. को, आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत अंतिः श्रीअरण्यकनाथाय नमः, (वि. अंत में गुणनविधि दी गई है.) ४३१३३ (+) चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. श्रीसंभवनाथजी संशोधित, जैदे., (२५.५५११.५, ११४३५).
पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११.
"
.
४३१३४. () बीजनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. वे. (२७४१३, १२४४१). बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसती, अंतिः तस घर लील
विलास ए, ढाल - ३, गाथा - १६.
४३१३५. पुंडगीरी नमस्कार व सुभाषित संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, अमदावाद,
लियम कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७.५४१२, ११४२४-३०).
""
मु.
१. पे. नाम. पुंडरगीरी नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तव, सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रप्रमुखानागाः, अंति: लप्स्यते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३.
२. पे नाम. सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण.
दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), गाधा-१.
४३१३६. (#) पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे.,
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(२४.५X१०.५, १०X३२).
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.)
४३१३०. धर्मजिन तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य श्रावि अवलबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६X१३, १३x४०).
धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि हां रे मोने धरम, अंतिः मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४४७ ४३१३८. (+#) पिडंबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७४०, कार्तिक कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, लिख. श्राव. मनजी गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३५).
पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: पिंडबत्रीसी करी, गाथा-३२. ४३१३९. ६२ मार्गणासुमोहनीयकर्म बंधोदयसत्ता भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२.५,
१६x२१-३६).
___६२ मार्गणास्थाने मोहनीयकर्म बंधोदयसत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३१४०. ६२ मार्गणासु नामकर्म बंधोदयसत्ता भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७४१२.५, १२४१८-३०).
६२ मार्गणास्थाने नामकर्म बंधोदयसत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३१४१. ६२ मार्गणासु १४ गुणस्थानेषु अष्टकर्मणा १२२ उत्तरप्रकृतिना उदय यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१२.५, १३४७-४९).
६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३१४२. (+#) महावीरनुपालj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४३). महावीरजिन पारj, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला झूलावे; अंति: (अपठनीय), (वि. गाथाक्रमांक
अव्यवस्थित है. पत्र की किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ४३१४३. (#) सोलेसुपना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२६-२८).
चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पडलिपुर नामे नगर; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ४३१४४. २० स्थानक विचारसार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२७४१२.५, १२४३६).
२० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल सिद्धि संपतिकरण; अंति: (-),
(पू.वि. गाथा-२९ तक है.) ४३१४५. ढंढणऋषि व ७ व्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध
पाठ., दे., (२७.५४१२, १३४२५). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषजीनें बंदणा; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण
तक लिखा है.) २. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सात विसननारे संग मत; अंति: कहै ध्रमसी सुखकार, गाथा-९. ४३१४६. (#) बंदित्तु प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. माणेकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०-११४२९-३८).
वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४३१४७. (+#) संथारगपोरिसी व चउक्साय चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद
सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२८x१३, ८x२५-३०). १.पे. नाम. संथारगपोरिसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं तस्स, गाथा-१७. २.पे. नाम. चउक्कसाय चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ४३१४८. (+2) प्रसन्नचंद्रराजर्षि आदि सज्झाय स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध
पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४४).
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४४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. प्रसनचंद सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रसनचंद प्रणमु तुमा; अंति: दीठा ऐ मुनि प्रतक्ष, गाथा-६. २.पे. नाम. सिद्धाचलनु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारू मन मोहुरे; अंति: केहता नावे हो पार,
गाथा-५. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्र सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपो मोर्यो रे आगणे; अंति: शीलथी लहिये सुख अपार,
गाथा-६. ४. पे. नाम. संखेस्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, म. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजी; अंति: गौतमना सुद्धारो काज,
गाथा-६.
४३१४९. (#) मोक्षकल्प व चिंतामणि पार्श्वनाथकल्प स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३४-३८). १.पे. नाम. मोक्षकल्प स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: शस्वदन्येषणीयम्,
श्लोक-३२. २. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथकल्प स्तोत्र, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. ४३१५०. (+#) कालमंडलादियोग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, ९४४६-४८).
कालमांडलादियोग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथ मोटा जोग वहे तेने; अंति: डोरो विगरे पलेववो. ४३१५२. (+#) शंखेश्वर पार्श्वजिनेश्वर च्छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७, वैशाख कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
ले.स्थल. नारदपुरी, प्रले. ग. मनोहरसागर; पठ. पं. मुनिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६-१७४४८-५४). १.पे. नाम. वढियारदेशमंडन श्रीशंखपुराद्धीश श्रीशंखेश्वर पार्श्वजिनेश्वर च्छंद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. केशरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: परम ईष्ट परमेसरु; अंति: होय सदा सुखकार,
ढाल-५. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है.
दहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-९. ४३१५३. (#) चातुर्मास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १८४४६-५०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साधु भगवंत द्वारा आहार परठने के पाठ पर्यन्त लिखा है.) ४३१५४. पुण्यप्रकाश स्तवन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५,
१२४३८-४२). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामें
पुण्यप्रकास ए, ढाल-८, गाथा-१०२, (पू.वि. ढाल ३ गाथा १९ से ढाल ५ गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-उपधानविधिगर्भित, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः श्रीवीर जिणेसर सुपरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.)
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४३१५५. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६X१३, ११३५). सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर, अंति: सानिध करज्यो माय जी,
गाथा-४.
४३१५६. (+) श्रीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७.५४१२.५, १२४३४)
सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माहवदे खेत्रनो वासी, अंति: गाउ नितु ताहरा जी, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४३१५७. (a) व्याख्यान मांडणी व लूणउत्तारण गाथा संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर फीके पड़ गये हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६४१३, १९४३२).
"
१. पे. नाम. व्याख्यान मांडणी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
मा.गु., सं., प+ग., आदि: शुतं शुतेन बनकुंडलेन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक किंचित् पाठमात्र लिखा है.)
२. पे. नाम. लूणउत्तार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.
लूण उतारण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहपडिभग्गापसरं पयाहि; अंति: फुट्टई लूणं तडतडस्स, गाथा-४. ४३१५८. (+#) महावीरजिन व गुरु गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. वे.. (२६.५४१२.५, १४४३२).
१. पे. नाम, महावीरजिन गुहली, पृ. ९अ, संपूर्ण,
महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सखि श्रीवर्द्धमान, अंति: अमृत नीत सुखकारी रे, गाथा- ९. २. पे नाम, गुरु गुहली, पृ. १आ, संपूर्ण
गुरुगुण गहुली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु आव्या छे हे; अंति: कहे अमृत सर्या काज, गाथा-५. ४३१५९. () मांडलीचायोगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १२४३०-३४).
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि स्थापनाजी पडीलेवी, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उत्तारण विधि अपूर्ण तक है.)
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४३१६० (+) छआवश्यकनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित दे. (२७.५x१२.५, १२४३५ ). ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीशे जिनवर नमुं; अंति: नमुं ते जभाण रे, ढाल-६, (वि. प्रतिलेखकने रचना प्रशस्ति नहीं लिखी है.)
४३१६१. वीरजिनस्त २७ भववर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२७.५X१३.५, १२X३१). महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू, अंतिः वीरविजया जयकरो, ढाल ५ गाथा-५२. ग्रं. ७७.
४३१६२. (+) रत्नाकरपंचविंशतिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न दे. (२७.५४१३, १६४४८).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ४३१६३. (+) मौंनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१२.५, १२X३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, वि. २०वी आदि विश्वनाय मुंगतिदायक; अंतिः माणेक० शिवसुखक करं, गाथा- १३.
४३१६४. (+#) सरस्वतीनो छद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५X१२.५, १३३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-३० अपूर्ण तक लिखा है.) ४३१६५. पंचकारणगर्भित महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२१, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, प्रले. बालगीर बावा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, ११४३५-३७). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिइं; अंति: विनय कहें आनंद
ए. ढाल-६, गाथा-५८. ४३१६६. (+#) कालसत्तरी व संसक्तनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४६६). १.पे. नाम. कालसत्तरी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कालसरूवं किमवि भणियं, गाथा-७४,
(पू.वि. गाथा-६५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. संसक्तनियुक्ति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
___प्रा., पद्य, आदि: उसभाइवीरचरिमे सुरासु; अंति: करेइ साह परिहरंतो, गाथा-६१. ४३१६७. (+#) चैत्यवंदना भाष्य प्रथम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ११४३३).
चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो, गाथा-६३. ४३१६८. (#) प्रश्नोत्तररत्नमालाना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कपूरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, १७-२०४५८).
प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: शिष्य पुछे हे भगवन्; अंति: घणुंज दुर्लभ छैइ, प्रश्न-६४. ४३१६९. वीरनिर्वाण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४३३).
महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हुतो रे एक; अंति: पाम्या सिवपद सार,
गाथा-१५. ४३१७०. मुनिसुव्रत स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, १०४३९).
मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: ऐन असाडो उनत्यो; अंति: सीच्यो समकित छोड, गाथा-९. ४३१७१. श्रीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, ११४३६).
सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नाथ तुं; अंति: नित्यात्मरस सुख पीन, गाथा-२२. ४३१७२. (-#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९०, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मुंबइबंदर, प्रले. पं. शिवचंद्र;
पठ. श्राव. दीपचंद कल्याणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक ३आ पर कॉलम किया गया है एवं लिखावट सामान्य है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ११४३५).
८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुरसरी सिंधु पउमद्रह; अंति: मोक्षं हि धीराः, पूजा-८. ४३१७३. (#) श्रीद्धनी स्तुती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, ११४३०).
सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. ४३१७४. अष्टमिनि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२.५, १२४३१).
अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. ४३१७५. (+) चरणतिराकरणसत्तरीनी झाय व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित.,
दे., (२७.५४१३, १०४३३). १. पे. नाम. चरणतिरीकरणसत्तरीनी झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दशविधि; अंति: जगमे सुजस वाधे जी,
गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४५१ २.पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा
बाद में लिखी गई है.
मु. माणिकराज, मा.गु., पद्य, आदि: तार प्रभु तार मुजने; अंति: नमे मुनि माणिकराज जी, गाथा-५. ४३१७७. नरकनुंतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५४१२.५, १३४३७).
नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिनने; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, ग्रं. ४७. ४३१७८. सीद्धचक्रनी स्तुती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. हीराबेन सुरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १२४३७).
सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र शेवो; अंति: विनय वंदे नीसदीस, गाथा-४. ४३१७९. श्रीपालराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१२, १२४४०).
श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता मया; अंति: सती नामे आणंदोरे, गाथा-१२. ४३१८०. (+) अभिनंदनजिन स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२८x१३, १२४३९). १.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नरनागनरेंद्र; अंति: राजहंसं समप्रभम्, श्लोक-५, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं
लिखे हैं.) २. पे. नाम. अभिनंदनस्वामीनु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन दरीशण तरशीये; अंति: थकी
आनंदघन महाराज, गाथा-६. ३. पे. नाम. बीज-चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. कीर्तिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: बीज तीथ अतिदीपती; अंति: कीर्तिचंद्र लहे सार, गाथा-६. ४३१८१. (+) पजुसणपर्व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१३, १२४३६). १. पे. नाम. पजुसण स्तुती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंन्यवंता पीशाखे आव; अंति: श्रीलालविजे हितकरणी,
गाथा-४. २. पे. नाम. पजुसणपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमां सार; अंति: जीनेंद्रसागर जयकार,
गाथा-४. ४३१८२. (+) मोनएकादशी स्तुति व पंचमी स्तवन - तृतीय ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित.,
दे., (२८x१२, १२४४३). १. पे. नाम. मोनएकादशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमिर्बभाषे; अंति: न्यस्तपादांबिकायाः, श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तवन-ढाल ३, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भक्ति भाव
पृसंस्तयो, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. तृतीय ढाल की प्रथम गाथा के अंतिम पाद से है.) ४३१८३. (#) दिपालीका देव वांदवानि विधी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १२४३०). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर;
अंति: सकल गुंण खांणी. ४३१८४. (#) सांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त मेवाडा,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १२४३५).
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मात
४५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा सांति जिनेसरु; अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा-१५. ४३१८५. (+) मौनएकादशी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन्सिल से भी संशोधित., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १३४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: विश्वनायक मुगतिदायक; अंति: माणेक० सिवसुख
करं, गाथा-१३. ४३१८६. (#) पर्युषणा व सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
दे., (२८x१२.५, १३४३२). १.पे. नाम. पर्युषणा नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीपजुसण परव; अंति: तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा-१२. २. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: पसायथी हंस कहे करजोड, गाथा-१०. ४३१८७. चौवीसजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७.५४१२.५, १३४३६).
२४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७,
(वि. इस प्रति में दादा गुरु का नाम नयविमल लिखा है.) ४३१८८. (+) चोवीशजिन सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४४).
२४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरिने भणो नरनारी, गाथा-२४. ४३१८९. (#) कालकानो व कलिकुंडपार्श्वनाथ छद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२७.५४१३, १५४३४). १.पे. नाम. कालकानो छद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, ३, ले.स्थल. भुजपुर, पठ. मु. करमचंद,
प्र.ले.पु. सामान्य. ___ कालिकादेवी स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: करे सेवना ताहरि मात; अंति: श्रुषाली माहादुख, गाथा-८. २.पे. नाम. पद्मावतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडदंड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण
तक लिखा है.) ४३१९०. (+#) पोसोलेवानि विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७.५४१३, १४४४७).
पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम राई पडिकमणो; अंति: अवधी आसातना टालवी. ४३१९१. (+) सामान्यजोगप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४३८).
योगप्रवेश विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम त्रण प्रदक्षिन; अंति: तप उपयोग कराववो. ४३१९२. (+#) हेमदंडकद्वार गाथा सह यंत्र, योनिअल्पबहुत्व विचार व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल
पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १७४३२). १. पे. नाम. हेमदंडकद्वार गाथा सह यंत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. हेमदंडक, प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५, (वि. इस प्रति में कर्तानाम हेमराज
लिखा है.) हेमदंडक-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. योनिअल्पबहुत्व विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण.
रा., गद्य, आदि: सबस थोडा जीवा सीतोसि; अंति: जोणीयां अनंतगुणा. ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोकादि संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.
ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. दो श्लोक एवं अंगुलिपर्व तिथि विचार.)
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४५३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४३१९३. (#) अढाईद्वीप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३९, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पल्लिकानगर, प्रले. मु. सुमतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १२४४४). विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमांन; अंति: नेहधर ध्रमसी
नमे, ढाल-३, गाथा-३६, ग्रं. ६०. ४३१९४. श्रावकना अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, दे., (२७४१२.५, ११४३२).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करि मिच्छामिदूक्कडं,
(पू.वि. नवमव्रत अतिचार प्रारंभ से है.) ४३१९५. (-#) दानशीलतपभावनासंवाद व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४,
प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १६x४६). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पय नमी; अंति: वृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: दुलंभ लाधो मनुष जमार; अंति: क्रोध लोभ सहकार नही, गाथा-२०. ३.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: काया तु चलि संग हमार; अंति: प्रलाप भवबन डोलनहारा, गाथा-६. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. पूर्वकृति पूर्णतासूचक व प्रस्तुतकृति प्रारंभसूचक शब्द संकेत लिखे
बिना ही कृति प्रारंभ की गई है.
आध्यात्मिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: जीवा तें मेरी सार न; अंति: करियो द्यानत सिव्या, गाथा-६. ४३१९६. (+#) साध्वातीचार, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. माणसानगर, प्रले. पं. मनरूपसागर
गणि; पठ. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभ प्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, दे., (२७४१२, १३४३३).
साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: करी मिच्छामिदुक्कडं. ४३१९८. चंदनबालानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४४१).
चंदनबालासती सज्झाय, ग. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: श्री सरस्वतिना पाय; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने गाथा-१५ तक लिखकर संपूर्ण कर दी है किन्तु वस्तुतः कृति अपूर्ण है.) ४३१९९. (+) ओलीनी थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३१).
सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुर वासी; अंति: तस घरि निस दीवाली, गाथा-४. ४३२००. (#) आदिजिन व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ९x४२). १.पे. नाम. आदिजिन थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथंनतनाकि; अंति: वीरं गिरिसारधीर,
श्लोक-४. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद; अंति: गोखीरतुसारवन्ना, गाथा-४. ४३२०१. (+#) स्तंभनपार्श्वनाथस्य मंत्रमय स्तवन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १०४५०). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंति:
पार्श्वस्तोत्रमेतत, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जंसंथवणं विहिय तस्स; अंति:
भवतीति निश्चयेन.
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४५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३२०२. ऋषभदेव आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७७१३, १२४४१). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले
पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. विर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति:
नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय
ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शांतिजीन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः,
श्लोक-४. ४३२०३. अरणीकमुनीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १०४३७).
अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी,
गाथा-८. ४३२०४. (#) आठमनिवपंचमि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए
हैं, दे., (२७४१२.५, १२४२९). १.पे. नाम. आठमनिसझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट करम चूरण करी रे; अंति: रे लाल देव दिइ
आसिस, गाथा-६. २. पे. नाम. पंचमि सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय,
गाथा-७. ४३२०५. (#) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२७४१२, १२४३४).
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमुं; अंति: हो तेहने जाओ भामणे,
ढाल-१०, गाथा-४३. ४३२०६. (-#) नेमनाथजीराजमती की बीनती चुदडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कानूड, पठ.सा. पद्मश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १३४३७).
नेमराजिमती चुनडी, मु. इसांण, मा.गु., पद्य, आदि: सरंग नवरंग कांजरउ; अंति: मुक्ति तणा सुख हो, गाथा-१६. ४३२०७. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १३४३९). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्,
श्लोक-९६. ४३२०८.(+) श्रीमत्चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४६, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पाली, अन्य. श्राव. वल्लभ मुमुक्षु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १७४५२).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: देवता सा
__ जयतादजस्रम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७... ४३२०९. महादेव स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त
ब्राह्मण मेदपाटी; पठ. मु. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १८४८२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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१. पे. नाम. महादेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य अति जिनो वा नमस्तस्मै श्लोक - ४०. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में पेन्सिल से लिखी गई है. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सीमंधरस्वामी मंत्र.) ४३२११. बोल संग्रह व मुनिप्रायश्चित्त विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६.५X१३, २९५९). १. पे नाम, बोल संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
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बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. इरियावहि के बंध भांगा आदि बोल.) २. पे. नाम. सचारित्रियानि प्रायश्चित विध, पृ. १आ, संपूर्ण.
साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पडिक्रमणा अणकरवड़, अंति: प्रायश्चित्त उ० १०८ (वि. प्रायश्चित्त ३९ बोल विचार)
४३२१२. (+#) परमात्मस्वरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७.५x१२, ८-१३४३१-३५ ).
"
परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु. सं., पद्य, आदि चिदानंदरूपं सुरूपं अंतिः तच्छिशुर्दाननामा, गाथा- ३२. ४३२१३. नागिलानी सज्याय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५x१३, १९३७).
,
नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भुदेव भाई घेर आविया, अंति: समयसुंदर
सुखकार रे, गाथा-१५, ग्रं. २३.
४३२१४. (१) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पठ श्रावि अणदीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १४४५४).
५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदीर, अंति: विनय कह आनंद ए, ढाल - ६, गाथा - ५९.
४३२१५.
(+) पोसदसमी कथा, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. नरेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२.५ १३४४५).
.
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: (१) विदेहे सीज्झिस्यति, (२) स्वपरार्थेन
कृतं.
४३२१६. (१) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण वि. १९२५ कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२६.५४१३, ११-१३४२८).
सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः जी हो प्रणमुं दिन, अंतिः कहे मांनविजय उवजाय, बाल-४,
गाथा - २५.
४३२१८. (+#) षष्ठिशत व सघस्वरूप कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१ ( १ ) = ३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १९४५६).
१. पे नाम षष्टिशत, पृ. २अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
षष्टिशतक प्रकरण, आव, नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणंतु जंतु सिवं, गाथा- १६१, ( पू. वि. गाथा ४० अपूर्ण तक नहीं है.)
४५५
२. पे. नाम. सघस्वरूप कुलक, पृ. ४आ, संपूर्ण.
संघस्वरूप कुलक, आ. पूर्वाचार्य, प्रा., पद्य, आदि केई उम्मग्गविअं अंति: दुसमकालेवि सो संघो, गाथा- १५. ४३२१९. (+) सरस्वती स्तोत्र, उवसग्गहरं स्तोत्र भंडार गाथा व वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२.५, १५x५४).
१. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शुभ्रां शुभ्रविचार, अंतिः स लोके नात्र संशयः श्लोक-१२.
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४५६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रति में कृतिनाम पार्श्वनाथ मंत्र लिखा है, किन्तु वस्तुतः उवसग्गहर स्तोत्र की
भंडार गाथाएँ हैं. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ तुह दसणेण सामिय;
अंति: कुणह सुपहुपासं, गाथा-४. ३. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य अद्यतन प्रतिलेखक द्वारा आधुनिक स्याही व पेन्सिल
से लिखी गई है.
सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४३२२०. (+#) चोरासीआसातना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ३४२९).
जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेल केलिकलिकला; अंति: वज्जेह आसायणा, गाथा-४.
जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: खेलं क० श्लेष्मा १; अंति: विषई सकल वर्जवो. ४३२२२. (+#) प्रभातिपडिकमणो व पौषध विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५४४१). १.पे. नाम. शिवपार्वती आदि संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्र के हासिए में लिखी है.
जैनेतर सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. मांजारी अंतरायनिवारण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा पत्र के हासिए में लिखी है. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रतिक्रमण की मांडली में बिल्ली का संचरण होने पर
विघ्न निवारणार्थ बोली जाने वाली स्तुति.) ३. पे. नाम. प्रभातरा राईपडिकमणारी विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कुसम दुसमण; अंति: मुहपती पहिलेहै. ४. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
पौषध विधि* संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सामाई लेनै पछै इच्छा; अंति: मांडला करी राखै. ५. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहणरी विधि, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. पूर्व कृति के बीच में लिखी गई यह कृति पत्रांक २अ-२आ पर
है, किन्तु ग्रंथालयीय नियमानुसार पत्रांक भरा गया है.
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मुहपत्ती उखेली बिहु; अंति: एवं १० हीन जाणवी. ६. पे. नाम. समस्यागर्भित दुहो, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा पत्र के हासिए में लिखी है.
दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४३२२३. (#) सुधर्मास्वामी गुहलि, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मयाराम पंजाबी; पठ. श्रावि. उजमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ९४३३).
सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु भावे भविजन; अंति: भावि रंग कहे शशनेह, गाथा-६. ४३२२४. (-#) गजसुखमालजी की व चेलणासती सजाइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, २१४५०). १.पे. नाम. गजसुखमालजी की सजाइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मजारै दुवार; अंति: इणराना नामथी जी,
गाथा-४८, (वि. प्रतिलेखकने रचनाप्रशस्तिवाली गाथाएँ नही लिखी हैं.) २.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणी चेलणा; अंति: पामा भोवतणो पार. गाथा-७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४५७
४३२२५ (+) पार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. संशोधित अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५१२.५, १३४३९).
उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा १७, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं० ॐ अंतिः भवे भवे पास जिणचंदं, गाथा - १७.
४३२२६. () पंचपरमेष्टि स्तोत्र व शाश्वताजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखकने दोनों पत्र पर पत्रक्रमांक १ ही लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४०-४५ ).
१. पे. नाम. पंचपरमेष्टी स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण.
नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदिः किं कप्पतरु रे, अंतिः सेवा देज्यो नित्त,
गाथा - २०.
२. पे. नाम. शाश्वताजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधिवा; अंतिः श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ४३२२७. (a) मुहपतीना ५० बोल व मुहपत्तिबोलनी सिज्झाय, अपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७१३, १४x२७).
१. पे. नाम. मुहपतीना ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण.
मुखवत्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्ध तत्त्व, अंतिः सर्वे मीली ५० थवा. २. पे. नाम. मुहपत्तिबोलनी सिज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरी जंबू रे विनय; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अपूर्ण मात्र है.)
"
४३२२८. (+०) श्रमणोपासक ३ प्रकार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १२, १९x४५ ).
श्रमणोपासक ३ प्रकार विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) पहिलइ ठाणइ मातापिता, ( २ ) ३ प्रकारे समणोवासग, अंति:
(-).
४३२२९. (+) २० विहरमानजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे ६ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२.५, १३x४९).
१. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
लीबो, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामि, अंतिः सारो भविकनां काज रे, गाथा- ७.
२. पे नाम, १६ जिन चैतबंदन, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. पूर्वकृति पूर्णता व प्रस्तुत कृति प्रारंभ सूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही कृति प्रारंभ की गई है.
९६ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोविसी करूं, अंति: तो चउगति निवारण, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखकने पूर्व एवं यह दोनों कृतियों की गाथाओं के क्रमांक अविच्छिन्न दिये हैं वं रचनाप्रशस्तिवाली अंतिम गाथा लिखे बिना कृति की पूर्णता की हो, ऐसा अनुमान होता है.)
३. पे नाम, सीमंधजी रो चेतवांदण, पृ. १अ संपूर्ण.
सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: सिमंधर वितराग; अंति: विने धरे बहु ध्या,
गाथा-३.
४. पे. नाम. सिद्धाचलजी रो चैतवांदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेतुजो सिद्ध; अंति: जिनवर करु प्रणाम, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे है.)
५. पे. नाम, सीमंधर स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी श्रीमंधर, अंति: मुझ मुख अतिनुरो, गाथा-८. ६. पे. नाम. सिद्धाचलेरो तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरो मन मोह्यो रे; अंति: केहता नावे हो
पार, गाथा-५. ४३२३०.(+) गौतमस्वामी आदि गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३,
१२४४३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण.
गौतमस्वामी गहॅली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तियाम वनखंड मझारि; अंति: पद पद्म वधावे तो, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम गणधर वीरनारे; अंति: करता लहइं शिवठाण रे,
गाथा-७. ३. पे. नाम. जंबुस्वामी गुंहली, पृ. १आ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीउरे मुनिराय; अंति: सुणी पांमे शिवराज, गाथा-७. ४३२३१. (#) प्रतिबोध कुल सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ४-५४४७-५४).
वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जम्मजरामरणजले; अंति: शिवसुखं जेण पाविहिसि, श्लोक-२२.
वैराग्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संसार रूपियइ समुद्रि; अंति: कारण मोक्षसुख लहिसि. ४३२३२. (-#) पंचमीतिथि आदि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अंकित न
होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक दिया है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२,१०४२८-३१). १. पे. नाम. पंसमीरी सजाइ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संघसीयल सुथाए रे, ढाल-५, गाथा-१६,
(पू.वि. कलश गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अग्यारसरी सझा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी ऐ नदल; अंति: अवीसल लील वलासे,
गाथा-७. ३. पे. नाम. सीतारी सजाइ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मलती घणोरे; अंति: घर घर
हुया उसरंग रे, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने कर्तानाम वाली गाथा नहीं लिखी है.) ४. पे. नाम. रुषमणीरी सजाइ, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विसरता ठामोगाम; अंति: राजावजेय रंगे भणे, गाथा-१४. ५. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२
अपूर्ण तक लिखा है.) ४३२३३. औपदेशिक सज्झाय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., अ., (२६४१२, ५४३२).
औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न माने रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.)
औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि; अंति: (-). ४३२३४. मौनएकादसी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, ११४३६).
एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछ वीरने सुणो; अंति:
सुवृत रुप सझ्याय भणी, गाथा-१५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४३२३५. (+#) उज्जयंताचल श्रीनेमिनाथ स्तव, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, प्र.वि. मरम्मत करने योग्य
प्रति., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४६४).
नेमिजिन स्तव, आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिच्दमुज्जयं; अंति: सौहित्यनित्योत्सवः, श्लोक-३२, संपूर्ण. ४३२३६. (#) लघुशांति व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९०८, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मेसाणा, पठ. इंद्र,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, ११४२५). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. वर्णमाला* मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धं अआई; अंति: तृ ह्म ग्ल श्रेयः, (वि. स्वर, व्यंजन, का सेकः पर्यन्त
बारह अक्षर एवं संयुक्ताक्षर लिखे हैं.) ४३२३७. (4) पांचमी सीझाय व अभीनंदन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२७४१२.५, १५४५३). १. पे. नाम. पांचमी सीझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाइ रे,
ढाल-५, गाथा-१६. २. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, ५, अन्य. मथेणी; देलोल; पं. हेमसोम गणि,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीमहावीर प्रसादेन. अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठी हो प्रभूदीठी; अंति: दरसण
तुम तणुंजी, गाथा-६. ४३२३८. चेतननी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अरजणबारी, पठ. श्रावि. अचि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १३४३०).
औपदेशिक सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतजोरे एकाल; अंति: ते सीवपुरमा भलीयो,
गाथा-१५. ४३२३९. (+#) पार्श्वनाथजीनुं स्तोत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ३२४२२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास त्रेवीस मन; अंति: त्रेवीसमो आप त्रुठा,
गाथा-७. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३२४०. पंचमा आराना भाव छठ आरा तांई भाव वीरना भाख्या तस्य सझय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. मोसनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२,१३४३२). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: विर कहे गौतम सुणो; अंति: देखीइं भाखा वयण रशाल,
गाथा-२१, (वि. इस प्रति में कर्ता का नाम नहीं है.) ४३२४१. (+#) राईपडीकमणादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १२४५२). १. पे. नाम. राईपडीकमणा विद्धी, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. सामायिक लेने-पारने की विधि पत्रांक-१आ पर लिखी गई है.
राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ईरियावहि; अंति: पछे सामायक पराविई. २. पे. नाम. देववंदन विद्धि, पृ. १अ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरिआ० नो ४ का० लोगस; अंति: जयवियराय संपूण. ४३२४२. (+#) खंधकमुनि स्वाध्याय व आदिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२७). १. पे. नाम. खंधकमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सर्दाप्रवाठ, प्रले. पं. जीतविजय; पठ. श्रावि. पाना,
प्र.ले.पु. सामान्य. खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक माहा; अंति: सेवक सुखीआ कीजे रे,
ढाल-२, गाथा-२०. २. पे. नाम. आदिजिन नमसकार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो
भगवंत; अंति: ज्ञानविमलसुरीस नमो, गाथा-८. ४३२४३. (4) पाखिक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४२९). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:
हरो० नमस्तस्मै, श्लोक-३६. ४३२४४. (+#) सोभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सरदारपर इडर,
प्रले. पं. जीतविजय; पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १६४३०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणि, ढाल-६,
गाथा-४९. ४३२४५. (+#) मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १२४२९).
मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत अतीत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ४३२४६. वृद्धाशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५४१३, १२४३६).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनं, ग्रं. ४३, (वि. अंतिम
श्लोक प्रतीकपाठ मात्र लिखा है.) ४३२४७. (+#) नरकाधिकार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सरदारप्र, पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १४४२९).
नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ४३२४८. (+#) अष्टमी व कुंथुनाथजीजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १४४३१). १.पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सरदारप्र. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हा रे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घणो,
ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. कुंथुनाथजीजीन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. रेलियायत, प्र.ले.पु. सामान्य. कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिनजी मोरारे रात; अंति: पद्मने मंगलमाल,
गाथा-७. ४३२४९. (#) समक्तना ६७ बोल, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रतनचंद्र; पठ.सा. ग्यानोजी आर्या,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १७X४५).
६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य स्मक्त १ भाव; अंति: कारण सम्यक् छइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४६१
४३२५०. (+#) सिद्धाचल गुणवरनन संघवी मोतीचंद साकरचंद गुणवरनन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, खंभायत, प्रले. पं. दीपविजय कवि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१३, १५X३४).
शत्रुंजयतीर्थयात्रा स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: श्रीनिजगुरु; अंति: कवि दीपविजय गाया रे, डाल-५.
४३२५१. (+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-७ (१ से ७) ४. पू. वि. बीच के पत्र हैं..
प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, दे., (२८x१३, ११x४०).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जिनदर्शनमहात्म्ये आर्द्रकुमार दृष्टांत अपूर्ण से है.) ४३२५२, (+) जीवप्रतिबोध व धनाअणगार गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे २, प्रले. मु. उमेदसागर (गुरु मु. अजबसागर); गुपि. मु. अजबसागर (गुरुग. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, ९×३२). १. पे. नाम. जीवप्रतिबोध गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
औपदेशिक गीत - जीवप्रतिबोध, उपा. समयसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: करि भ्रम चित्त खरइ, गाथा-३, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.)
२. पे. नाम. धन्नाअणगार गीत, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिदि समोसर्या अंति: निरुपम सिवसुख थाय, गाथा- ९. ४३२५३. (+) नेमराजुल स्तवन चोक चार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. सा. भावश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित.
दे., (२८x१३, १२X३४).
नेमराजिमती पद, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुमुख पुनम को; अंति: वेनती गावे मन कोडे, चोक-४. ४३२५४. (+) विजयसेठविजयासेठाणिनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वान ने पेन्सिल से संशोधन किया है., संशोधित., दे., ( २६.५X१२.५, १२X३५).
विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे समुद्, अंति: आनंद वधे
नवनवे, ढाल ४.
४३२५५. (+#) सरवारथसीद्धनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२७.५X१२, १३४२९).
सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे, अंति: थकी फले आस्यो रे, गाथा-१५.
(#)
४३२५६.
| चतुःसरणपयन सूत्र व विचारपट्यिशिका डंडक प्रकरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२८x१२, १६x४४).
१. पे नाम चतुःसरणपयन सूत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा - ६३.
२. पे नाम. विचारषट्त्रिशिका डंडक प्रकरण, पृ. २आ-४अ संपूर्ण.
दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स, अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ,
गाथा-४४.
४३२५७. (+४) मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. १८८३ आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पू. ३, ले. स्थल. इल्लोल, पठ. श्रावि. झवेर प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२, १२X३७).
मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत अतीत, अंति: आरण्यकनाथाय नमः . ४३२५८. आठमदनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९५९ आश्विन कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, इटादरा, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. दे. (२७४१२.५ १२४५०).
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४६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ माहामुनी वारीय; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे,
गाथा-११. ४३२५९. (+#) महावीरपरमाप्तत्म व जिनेंद्रद्वात्रिंशका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मरम्मत करने
योग्य प्रति., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९४७०). १.पे. नाम. महावीरपरमाप्तत्मद्वात्रिंशका, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३,
(पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. जिनेंद्रद्वात्रिंशका, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
परमात्मषट्त्रिंशिका, सं., पद्य, आदि: सत्त्वेषु मैत्री गुण; अंति: तिनिकेतं विभवजरते, श्लोक-३३. ४३२६०. (+) सूरिमंत्रगर्भित श्रीगौतमस्वामि स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १४४३९).
गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्र; अंति: श्रेयांसि भूयांसि नः, श्लोक-१२, संपूर्ण. ४३२६१. (+) ज्वालामालिनी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अंत में आम्नाय भी दिया गया है., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४४४).
ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा, ग्रं. ३६ अक्षर२४. ४३२६२. (-2) लघुशांति व माहासतीमहासती कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. श्रावि. विजीबेन,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १२४२७). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण..
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. २. पे. नाम. महासतीमहासती कुलक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ४३२६३. (#) पगामसज्झाय श्रुत्र वंदीतु साधुनो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१३, ११४३२).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४३२६४. (+) संतिकर व दीपमालिका स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे.,
(२६४१३, ९४२६). १.पे. नाम. संतिकर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३,
(पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दीपमालिका स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दीपावलिपर्व स्तवन, श्राव. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दीवाली दिन अमर वखांण; अंति: निश्चे धरी आणंदो जी,
गाथा-७. ४३२६५. (+) औपदेशिक व आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १४४३६). १.पे. नाम. जैनलक्षण सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण.
उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्म गुरु जैन कहो; अंति: जैनदिसा जस उंची, गाथा-१०. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अबधुसो जोगी मेरा उस; अंति: आनंदघन पद पावे. गाथा-६. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १८आ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अबधू एसो ज्ञान; अंति: जोत से जोत मिलाइ, गाथा-६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४६३ ४३२६७. (#) मार्गशीर्षैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १९४५८).
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: माराधने सोद्यमा भवतु. ४३२६८. (+#) फाल्गुनचतुर्मासिक आदि व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १७-१९४४४-५६). १.पे. नाम. फाल्गुनचतुर्मासिक व्याख्यान, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९५०, चैत्र कृष्ण, १०,
प्रले. पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: (-); अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्,
(पू.वि. अंतिम कुछेक पाठ है.) २. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः. ३. पे. नाम. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-),
(पू.वि. प्रारंभिक किंचित् अंश है.) ४३२६९. (+#) मोनइग्यारसरो गुणणो, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडेरावनगर,
प्रले. मु. तलोकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३१-४२).
मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: आरण्यकनाथाय नमः, ४३२७०. (+) माहावीरस्वामी-पालगुं, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. श्रीजिनाय नमः., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४३६). महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मात्रा त्रिसलाये; अंति: कहे थासे लीला लेहेर, गाथा-१८,
ग्रं. ४०. ४३२७१. मारुदेवा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ११४३७).
मरुदेवीमाता सज्झाय, मागु., पद्य, आदि: माताजि मरुदेवारे; अंति: निज वाटलडि जोय जो, गाथा-९. ४३२७२. वैराग्यनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १२४३६).
औपदेशिक सज्झाय, जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुने संसारी सुख किम; अंति: मलवो छे महामुसकिल जो, गाथा-९. ४३२७३. ओलीनी व औपदेशिक सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४३४). १.पे. नाम. ओलिनि सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि उद्यान समवस; अंति: महिमा जाणज्यो जी,
गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एजीव दुखिओ थाय सजनो; अंति: जे कोइ करसे अन्याय,
गाथा-७. ४३२७४. (+#) सूरप्रभजिन, अजित स्तव व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक
अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२६.५४१२.५, २५४१८). १. पे. नाम. सूरप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण..
सुरप्रभजिन गीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सूर जगदीशनी तीक्ष्ण; अंति: (अपठनीय), गाथा-८, (वि. कृति का
__ अंतिम किंचित् अंश मूषक भक्षित होने से अंतिमवाक्य अनुपलब्ध है.) २.पे. नाम. सामायिकदोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
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४६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमुं; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र लिखकर छोड़ दिया है.) ३. पे. नाम. अजित स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्ञानादिक गुण संपदा; अंति: रे भावधर्म दातार,
गाथा-१०. ४३२७५. (+#) जंबूस्वामी गहुँली आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश
खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १५४३७). १. पे. नाम. जंबूस्वामी गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण.
जंबूस्वामी गहुंली, मु. उद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी सर्व विभाव मुनि; अंति: आतमारे आपो आपीछांण, गाथा-७. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. उद्योत, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: आवो सखी सिद्धाचल जइ; अंति: मणिउद्योत गुंण करकं, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. उद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी उद्यानमा; अंति: के संका नवी करो, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीतेरसोजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. १७० जिन स्तवन, म. उद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सोल जिनेसर सांमला; अंति: उद्योत भव निस्तार, गाथा-५,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४३२७६. (#) शुद्धचेतन वचनविलास आत्मप्रबोध स्वाध्याय व ऋषमणीरांणीनी सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल
पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. शुद्धचेतन वचनविलास आत्मप्रबोध स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउडारे पिउडा नरभव; अंति: चतुर रमो
मुझ साथिरे, गाथा-९. २.पे. नाम. ऋषमणीरांणीनी सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: राजविजय रंगे भणे,
गाथा-१४. ४३२७७. (+#) सर्वजिनसाधारण स्तोत्र, चतुर्विंशतिजिन स्तवन वचूटक काव्यानि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३,
कुल पे. ३, प्रले. मु. तिलोकसी (गुरु पं. जयरंग); गुपि.पं. जयरंग (गुरु वा. पुण्यकलश); वा. पुण्यकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४५). १. पे. नाम. सर्वजिनसाधारण स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. साधारणजिन स्तोत्र, मु. सुमतिकमल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मंगलं मे पवित्रं, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-१९
अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चूटक काव्यानि, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.
जिनस्तुत्यादि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१७. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: मयतामिह नम्रता, श्लोक-२९. ४३२७८. क्रोध आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुलपे. ५, दे., (२६.५४१२.५, ११४२७). १. पे. नाम. क्रोधनि सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधना; अंति: ओपसमरस
नाहि, गाथा-६. २. पे. नाम. मांन सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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५.
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४६५ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीई; अंति: मानने देज्यौ
देशवटो, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणज्यो; अंति: एह छे मारग
सुधरे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभनि सिझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोज्यो; अंति: बादू हु संदारे,
गाथा-७. ५. पे. नाम. अभव्य सिज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेस नलागे अनय ते; अंति: उतम संगति निदान रे, गाथा-६. ४३२७९. (+) इरियावहिनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३३). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सनमुख रहि; अंति: वरते एकवीस वरस
हजार, गाथा-१४. ४३२८०. (#) नमस्कार व बालत्रिपुरादेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, जैदे., (२६.५४१३.५,१३४३४). १.पे. नाम. नमस्कार स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. २. पे. नाम. बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आई आनंदवल्ली अमृतकर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ४३२८१. द्रौपदीसती सजाई, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७.५४१२.५, १२४३५-३९). द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजीने तुबडु; अंति: जामि मुगति मजार रे,
गाथा-१०. ४३२८२. (+) पजुसण्णनी थोयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१२.५, १०४३२).
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परव पजुसण पुन्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे,
गाथा-४. ४३२८३. (#) रोहणि चोढालीयो व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२७.५४१२.५, २१४५१). १.पे. नाम. रोहणि चौढालिया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
रोहिणी चौढालियो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदिः शाशननायक सुखकरण; अंति: विनयचंद विधिसुं भणे, ढाल-४. २.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अथवा बाद में लिखी गई है.
मु. नरसिंह, पुहि., पद्य, वि. १९३४, आदि: नेम प्रभु बाल केसे; अंति: नरसिंग नीत रंग नयारी, गाथा-६. ४३२८४. (+) गजसुकमाल वारमास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १५४४२).
गजसुकुमालमुनि बारमासा, मु. सादीराम, पुहि., पद्य, आदि: मे वैरागी हो राया; अंति: तुमरे चरण की छाया,
गाथा-१३. ४३२८५. (+) श्रावक आलोचना, निगोदना इग्यारे बोल व आयुकर्मबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३,
प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १३४१३-३४). १. पे. नाम. श्रावक आलोयणा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.
मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञाननि आशातनाई; अंति: पोषध भांगे उपवास १.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. इग्यारे बोल निगोदना, प्र. ४अ-४आ, संपूर्ण.
११ निगोद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: एक सुईना अग्रभाग उपर; अंति: जीव मुगत जावे छै सही. ३. पे. नाम. आयुष्यकर्मबंध विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण.
आयुष्य कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीर्नु आयुष्य चार; अंति: ए आयुष्य करम जाणवू. ४३२८७. संभवनाथ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दोलतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, ९४३३). संभवजिन अष्टक, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलविघ्नविघातकरस्वरः; अंति: तस्य गेहांगणेस्ति,
श्लोक-९. ४३२८८. ईरियावहीनो सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२.५, १५४३९).
इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति:
विनयविजय उवझायो रे, ढाल-२, गाथा-२५, (वि. इस प्रति में रचनासंवत् १७३३ लिखा है.) ४३२८९. (#) आठमनु तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १२४३८).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा; अंति: संघने कोडि
___कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ४३२९०. सीमंधरस्वामिनी विनतीरुप सवासोगाथार्नु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जहगोपाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १३४३७). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर
विनती; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखकने मात्र प्रथम ढाल लिखकर पूर्ण कर दिया है.) ४३२९१. सिधाचलमहिमा स्तवन व धरमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्रले. ग. नायकविजय; पठ. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४४). १. पे. नाम. सिधाचलमहिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. श@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिराज कुं सदा मेरी; अंति: मेरै ओर न विचारनारे.
गाथा-९. २. पे. नाम. धरमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
धर्मजिन स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरम जिणेसर हो धरमनो; अंति: हो के प्रभु गुण चाखइ, गाथा-५. ४३२९४. दशपचखाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६२, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालिताणानगर, प्रले. हठीसंग मानसंग बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, ११४३७). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद
तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३४. ४३२९६. (+#) श्रीमंद्रजी का स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४३२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंद्रसामी मे; अंति: भवियण रे मन भाया हो,
गाथा-२१. ४३२९७. (+#) दसपचखांण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६९, आश्विन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. भगवानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३,११४३८). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद
तपवीधी भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ४३२९८. आदिजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. माणेक, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या श्रीनाभि का; अंति: दादा दुख टारीये मेरो, गाथा-५.
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२. पे. नाम. सेनूंजा भास, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ रायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नीलडी रायणतरु तले, अंति: माहातममांहि, गाथा-६.
३. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. कल्याणविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मगन भयो अब, अंति: गुण एह गिरिराजना गाइ
गाथा - ११.
४३३०१ (१) पंचमीतपविषये पंचडालीया सझाय, संपूर्ण, वि. १९६६, पौष कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. १,
गाथा-७.
४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. सा. खीमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वली सिद्ध, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक लिखा है.)
४३२९९, (+०) पंचमी स्तवन, संपूर्ण वि. १८७१, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, दमणबंदर, प्रले. पं. नरोत्तमविजय गणि पठ. आवि विजाबाई हीरा झवेरभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिश्वर प्रसादात्.. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२.५, १४X३६).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भ मंगल करै, ढाल - ६, गाथा - ६८.
४३३००. आठमदनि सजाय संपूर्ण वि. १९६५ आश्विन कृष्ण, ४ सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१३, ११×३०).
८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आट्ठ महामुनि वारि, अंति: अविचल पदवी नरनारी रे,
ले. स्थल. पालीताणा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १५X३६).
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिनेसर, अंतिः संघ सबल सुखदाया रे, ढाल - ५, गाथा - १६.
४६७
४३३०२. (+#) बालचंदनां बत्रीससवैया व औपदेशिक सजाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,
प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १५X३८).
१. पे नाम, वालचंदना वत्रीससवैया, पृ. १अ ४अ संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. नाथा ऋषि): गुपि. मु. नाथा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य.
अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेस्वर; अंति: धंग रंग मन आंणीइं, गाथा-३३.
२. पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाच, पृ. ४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि जेने परनारीसु प्रीडी, अंतिः काल उठीने जावु छे,
गाथा - ११.
४३३०३ (१) साधुजी री ३० उपमादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ४३x२१).
बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. साधुजीरी ३० उपमा एवं १० बोल विचार.)
४३३०४.
(#) सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १०x४० ).
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम अंतिः नीत होजो प्रणाम, गाथा-७, ४३३०५. (#) पंचमहाव्रत आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, २३x४८-६६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पांचमहाव्रत सीज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: सझाय भणे ते सुख लहें,
ढाल-५. २.पे. नाम. छठाव्रतनी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमर्नुसार ते; अंति: पाले तस धन अवतारोरे,
गाथा-६. ३. पे. नाम. नेम सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतमसुं मुझप्रीत; अंति: तिलक नमे सूविहाण, गाथा-९. ४. पे. नाम. विजयधर्मसूरीसर भास स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. ज्ञानविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद प्रणमी पाया; अंति: ज्ञानविजय पभणंदारे,
गाथा-९. ४३३०६. (#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १६x४६). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: जी ते नमे मुनि माल,
गाथा-३१. ४३३०७. (+#) नारचंद्र सात्र-प्रकरण २, संपूर्ण, वि. १९५९, निधिबाणनिधिचंद्र, ज्येष्ठ शुक्ल, १५ अधिकतिथि, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३,
ले.स्थल. सुद्धदंति, प्रले. मु. चतुरसागर (गुरु पं. कीर्तिसागर); अन्य.पं. कीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति पं. कीर्ति के सानिध्य में लिखी गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १३४३६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिष्ठा, दीक्षादि के मुहुर्त विषयक ६२
श्लोकमय द्वितीय प्रकरण है.) ४३३०८. (+) नेमजिनो नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३०).
नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारो भवपार, ढाल-९,
गाथा-४०. ४३३०९. (#) हितउपदेस सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. सदाकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४३२-३४). जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमे चिंतवे रे; अंति: जइये मुगति
मजार के, गाथा-८. ४३३१०. (#) दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १४४३६). दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दान दीजे अतिभावसुं; अंति: भावथी पामीजे भवपार,
ढाल-४. ४३३११. अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४११, ११-१२४३२-३६).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कांति सुख पांमै घणु, ढाल-२,
गाथा-२३, (पू.वि. ढाल १ गाथा ७ अपूर्ण तक नहीं है.) ४३३१२. (#) माय सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए
हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १७४४२-४४). १. पे. नाम. मायानी सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमिरे माया म; अंति: लबद्धी कहे ए
जाणी, गाथा-९.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४६९ २. पे. नाम. आत्माहितार्थे सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण..
औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: क्या तन माजनी बे मरद; अंति: कब लग सीवे दरज्यु, गाथा-६. ३. पे. नाम. शीख्या स्वाध्याया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदि: शीख सुणो प्रभू माहरी; अंति: हरष० हियडे
आंगमवाण, गाथा-११. ४. पे. नाम. ओपदेशिक सीझाय-निद्रात्याग, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: नीदरडी वैरण होइ रही; अंति: हो मुनि कनकनिंदान
के, गाथा-८. ५. पे. नाम. स्थूलिभद्ररूपकोशा गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. माल, पुहि., पद्य, आदि: आवत कोस्यो सिंगार; अंति: माल कहे धन धन जीयेरी, गाथा-३. ६. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी रे मंगल हेते; अति: सझाय मुहपत्ती तणो, गाथा-५. ७. पे. नाम. अनित्य सीझाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहि., पद्य, आदि: करजो मत अहंकार एतन; अंति: धर्म मनमाहें तार्यो, गाथा-११. ४३३१३. (+#) चउचिसजिनवंदन सवेया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४४३-४८). २४ जिनवंदन सवैया, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: सरसती दे मुझ सुमत; अंति: इम जिनगुण गावै,
सवैया-२५. ४३३१४. (+#) वीरजिन चेत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५). १.पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, पृ. १अ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंति: मिलिया नृपति अढार, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति पूर्णता एवं प्रस्तुत कृति
प्रारंभसूचक शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ किया है. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देव मिलिया देव; अंति: धन धन दिहाडो तेह, गाथा-३,
(वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. महावीरजिन चेत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने पूर्वकृति पूर्णता एवं प्रस्तुत कृति प्रारंभसूचक
शब्दसंकेत लिखे बिना ही प्रारंभ किया है. महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिधारथ नृपकुल; अंति: कहें नय तेह गुणखाण,
___ गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४. पे. नाम. विरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मुरति माहावीर; अंति: जिनशाशनमां
जयकार करे, गाथा-४. ५.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भविहितकर विर; अंति: गुण पूरोवंछित आस, गाथा-४. ४३३१५. (+#) स्तंभनकपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४-१६x४९-५२). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुसललाभ
पयंपए, ढाल-५, गाथा-२३.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३३१६. (#) पर्युषणपर्व स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ११४४०). कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजूसण आवीओ; अंति: (-),
(पू.वि. प्रथमव्याख्यान स्वाध्याय तक है.) ४३३१७. (+#) जंबुद्वीपसंग्रहणीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अहमदावाद, प्रले. पं. रुपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ५४२८-३२).
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०.
लघुसंग्रहणी-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो जिन भगवंत; अंति: शिष्यनै भणवा माटे. ४३३१८. रोहिणितपविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७४१३, १४४३३).
रोहिणीतपविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर शंखेश्वर नमी; अंति: पंडित वीरविजयो जयकरो,
ढाल-४, ग्रं. ७५. ४३३१९. (+) सीखामणछत्रिसीव पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.६१,
दे., (२६.५४१२.५, १२४३४). १.पे. नाम. सीखामणछत्रिसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९५०, ले.स्थल. वीरमगाम, पठ. श्रावि. नाथीबाई,
प्र.ले.पु. सामान्य.
उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजना नरनार; अंति: मुख वाणी मोहनवेली, गाथा-३६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण शुक्ल, ६, मंगलवार, प्रले. बुलाखीदास
गणपतराम, प्र.ले.पु. सामान्य.
उपा. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदि: जाय छे जाय छे जाय छे; अंति: बांहे साय छे रे, गाथा-१३. ४३३२०. (#) अभीनंदनजिंन स्तवन, पचखांणफल स्वाध्याय व २४ जिननाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,
प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १५४३२). १. पे. नाम. अभीनंदनजिंन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
अभिनंदनजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे योयो रे वाणी; अंति: पामे शिवपूर सद्म, गाथा-९. २.पे. नाम. पचखांणफल स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामो निश्चै निरवांण, गाथा-८. ३. पे. नाम. चोवीसजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला श्रीऋषभदेव; अंति: नमो जिणाणं. ४३३२१. (#) दीपकपूजा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३४). ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ६४
प्रकारी पूजागत वेदनीयकर्मनिवारणपूजा अंतर्गत शातोत्तरसुखप्राप्तर्थ अष्टप्रकारी पूजा की दीपकपूजा ढाल.) ४३३२२. कृतकर्म सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१२.५, ११४३३).
कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराज रे, गाथा-२५. ४३३२३. (+) ऋषिमंडल महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने भी पेन से संशोधन किया है., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १२४३८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्,
श्लोक-७८. ४३३२४. पांचमहाव्रत स्वाध्यय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१२, ११४३७).
५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवेरे; अंति: सझाय भणे ते सुख लहे,
ढाल-५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४७१ ४३३२५. (#) सकलतीर्थ चैतवंदन व ४ मंगल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी विपरित क्रम से लिखी
गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १७४५२-५४). १. पे. नाम. सकलतीर्थ चैतवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरुं, गाथा-१४. २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. राजसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखकने बाद लिखी
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीधारथ भुपती सोहीइ; अंति: जगमा श्रीजिनधर्म, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक
लिखने की जगह ढालांक ही लिखे हैं.) ४३३२७. (+) चतुर्विंशतिजिन व समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १८६५, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७-५(१ से
५)=२, कुल पे. २, प्रले. पं. सौभाग्यहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३६). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: (-); अंति: देवता सा जयतादजस्रम्,
स्तुति-२४, श्लोक-७७, ग्रं. १४८, (पू.वि. शांतिजिन स्तुति श्लोक-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: यस्य ज्ञानदयासिंधो; अंति: शंखेश्वरः प्रभुः, श्लोक-५. ४३३२८. (+#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५-१७४३४).
पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. ४३३२९. (+) संखेश्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. चतुरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२.५, ११४३५). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: अतित अनागत वरततारे; अंति: धर्म साथें मन वालिई,
गाथा-३७. ४३३३०. (+) लुंकागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४९).
पट्टावली-नागोरीलुंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीमहावीरजीनो; अंति: माता जीवांदै माता छै. ४३३३१. (+) कर्मस्तव कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ);
गुपि. मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पत्रांक-४आ पर 'ऋ. सिद्धराजजीनी प्रति च्छइ' इस प्रकार का उल्लेख है., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ९४३२). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहतं
वीरं, गाथा-३४. ४३३३२. (#) सीतासती सज्झाय व माहावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४२६). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुँनाम धराव; अंति: नित होज्यो परिणामे, गाथा-७. २. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, १०, ले.स्थल. भिणायनगर, प्रले. मु. प्रेमसागर,
प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: बीर कुमरनी बातडी केन; अंति: भाग्य सालि अनंत, गाथा-९.
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४७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३३३३. (+#) सीलप्रबंद्धे मयणरेहा कथासंबंध, संपूर्ण, वि. १८९२, भाद्रपद कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. कोसलि,
प्रले. मु. सेढमल (गुरु मु. कन्हींराम); गुपि. मु. कन्हींराम (गुरु मु. पंडराज); मु. पंडराज (गुरु मु. जोकीराम); मु. जोकीराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका का एक अक्षर लाल व एक अक्षर काली स्याही में लिखा गया है., संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४१२.५, १७४५४). मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: आदि धर्म धोरी प्रथम; अंति: सुणो भबियण इकमनें,
ढाल-६. ४३३३४. आलोयणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. तिलकश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, ., (२७.५४१२.५, १४४४३).
श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: संकाकखादिक ८ आठ; अंति: बीजाग्रंथोथी जाणवो. ४३३३५. (#) साधुनिर्वाणविधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. अमथालाल मानचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १५४४५).
साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कोटिगण वयरीसाखा; अंति: पुतलुं करवूनहिं. ४३३३६. सीखामणनि सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, दे., (२६.५४१२.५, ११४२६).
औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोने तुं पाटण जेवा; अंति: छे नाव्या कामे
रे, गाथा-१२. ४३३३७. (+#) महावीरजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. यह प्रति एकाधिक प्रतिलेखकों
द्वारा लिखित है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १७४३२-४२). १. पे. नाम. महावीरजीरोपारणो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेह नमै मुनि माल,
गाथा-२८. २. पे. नाम. समवसरण स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चोविह सुरवर; अंति: पामी जैत सुनाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिस पुखलावती जय; अंति: कहे जिनहर्षसूरीस,
गाथा-५. ४. पे. नाम. नवकरवाल्यादि स्थापना, पृ. २आ, संपूर्ण.
गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पंचिंदिय संवरणो तह; अंति: गुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. ५. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सामाइयवयजुत्तो जाव; अंति: तच्छ मिच्छामिदुकडं, (वि. सामायिकपारण गाथा,
चउक्कसायसूत्र व पौषधपारण सूत्र है.) ६. पे. नाम. सीमदरजी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही साजण; अंति: लहै नित प्रेम अभंग, गाथा-१०. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, पृ. ३आ, संपूर्ण..
ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर मूरति सूरति; अंति: विनतीक्रम वच मन साखै, गाथा-५. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: अवचल सुख लाल रे, गाथा-५. ४३३३८. (#) नवकारनोरास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १३४३३).
नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांनी द्यो; अंति: रास भणुं सर्व साधुनो, गाथा-२५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४७३
४३३३९. (०) स्तीचानू स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३०, पोष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. ध्रांगधरा, प्रले. मु. मोतीलाल ऋषि (गुरु मु. अमरसी ऋषि); गुपि. मु. अमरसी ऋषि पठ. मु. सामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६४१२, १५४३६-३८).
""
औपदेशिक सज्झाय - शीलविषये, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि निर्माणो सकल सोहमण, अंतिः जोडी
ऋषि खोडीदासे, गाथा- १७.
(२७१२.५, ९X३२).
१. पे. नाम गोतम रास. पू. १अ १आ, संपूर्ण.
3.
1
४३३४०, (+) पर्युषणपर्व सज्झाय व्याख्यान १ से ३, संपूर्ण वि. १९७५, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, पाटण, प्रले. नानालाल हरीनंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२८.५४१२.५, ११४३६).
कल्पसूत्र- नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदिः पर्व पजूसण आवियां; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. ४३३४१. (०) गोतम रास आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे.,
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गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिनेशर केरो सीस; अंति: गोतम तुठा संपत कोड, गाथा- ९.
२. पे. नाम. संखेस्वरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि सेवो पास संखेसरो मन, अंतिः संखेश्वरो आप तूठा,
गाथा- ७.
३. पे नाम, पंचमि चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः युगला धर्म निवारियो; अंतिः श्रीखेमाविजै जिणचंद,
गाथा - ९.
४. पे नाम. अष्टमितिथि चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः चेत्र वदि आठम दिनें; अंतिः प्रगटै ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ४३३४२. (+) यति अतिचार, क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, गाथा संग्रह व भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने भी पेन्सिल से संशोधन किया है., संशोधित., दे., (२७१२.५, १५X४८).
१. पे. नाम. यति अतिचार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण.
साधुपाक्षिक अतिचार वे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि० अंतिः बादर जाणतां अजाणतां
1
२. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है.
संबद्ध, सं., पद्य, आदि सर्वे यक्षांबिकाद्या अति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक १.
३. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - २.
४. पे. नाम. भांगा विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
लिखा है., जैदे., ( २६.५X१२.५, १३x४५).
१. पे नाम, संधारापोरसीसूत्र, पृ. १अ. संपूर्ण.
४३३४४. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे., (२७.५x११.५, १२४३१).
भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ४३३४५. (+) मृगापुत्रऋषी सझाय, संपूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, प्रले. खीमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में इस प्रकार का उल्लेख है 'पांजरापोल मध्ये । साधवीजीने भणवाने अर्थे लख्युं जी', संशोधित., जैदे., (२७१२.५, १२X३२).
मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीवनयर सोहामणु; अंतिः होज्यो तास प्रणाम, गाथा- २३. ४३३४६. संथारापोरसी व जंबु स्वाध्या, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुलपे २, प्र. वि. प्रतिलेखकने पत्र के दोनों तरफ पत्रांक
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४७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. २.पे. नाम. जंवु स्वाध्या, पृ. १आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सहगुरु लागुजी पाय; अंति: नामे हो जय
जयकार, गाथा-१५. ४३३४८. (+) एकादशी आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल
चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४३८). १.पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघना विघन निवारी, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: माहारमहावीरकरांगतार; अंति: मे भवतादमाया, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: सदा महावीरं भजे भवंत; अंति: रमाकरा मे भवतादरेसा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: भवामो महावीरमते सदा; अंति: नरा मे कर तारकेशा, श्लोक-४. ४३३४९. (+#) नवपद स्तवन व आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२६.५४१२.५, १०४३०-३६). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नवपद वासक्षेप पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: कोयें न रही
अधुरी रे, गाथा-९. २. पे. नाम. नवपदजी कि आरति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवपद आरती, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: भवीजन मंगल आरति करीय; अंति: क्षमाकल्याण ते पावै,
गाथा-५. ४३३५०. (+#) झांझरीयाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. साणंदनगर, प्रले. मु. प्रमाणविजय; अन्य. पं. दया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १३४२६). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: साभलतां मन
आणंदा के, ढाल-४, गाथा-४३. ४३३५१. जीवाजीव भेद यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, २३४१२).
जीवाजीव भेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३३५२. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. तालनगर, प्रले. मु. मोतीलाल ऋषि;
पठ. मु. फोजमल (गुरु मु. मोतीलाल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १४४३७).
लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९. ४३३५३. श्रावककरणी सज्झाय व श्रीमती चौढाल्यौ, संपूर्ण, वि. १९०२-१९०३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. हाथरस,
दे., (२७४१२.५, १८४३३). १.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, शनिवार.
मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्राबक तुं उठै परभात; अंति: करणी दुखहरणी एह, गाथा-२२. २.पे. नाम. श्रीमती चौढाल्यौ, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ७, बुधवार, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में 'आर्ध्या
लीख्यो' इस प्रकार लिखा है. श्रीमती चौढालियो, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: इणहि ज दक्षीण भरथ; अंति: सफल फले अवतार, ढाल-४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४७५ ४३३५४. (+) महावीरजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है.,
संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४५२). १.पे. नाम. सवेयो, पृ. १अ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक
लिखा है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: माहावीरजिन वंदो; अंति: पा राम कहे अरिवंदो. गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अगन कल्प फल्यो रे; अंति: हुंरहेसुं सोहेलोरी, गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन्य क्यारे आव; अंति: क्यारे नीरमल थासु, गाथा-८. ५. पे. नाम. चोविसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रह समे भाव धरि घणा; अंति: नीत होये जगीस,
गाथा-५. ६.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जाग जाग रेन गाई; अंति: ज्युं नरंजन पावे, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: आखिआ हरखन लागी; अंति: भवोभव भावठ भागी,
गाथा-५. ८. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देखो माई अजब रूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
गाथा-५ तक ही लिखा है.) ४३३५५. पांचमीनी स्तुति व त्रिलोकजीव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले.
करमचंद रामजी लहिया; अन्य. सा. मोहनश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से 'मोहनश्रीजी' लिखा है., दे., (२७.५४१२.५, ११४३४). १. पे. नाम. पांचमीनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. त्रिलोकजीव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह* प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. उर्ध्वलोक, मध्यलोक व अधोलोक में रहने वाले जीवों
का विचार है.) ४३३५६. (#) गौतमस्वामी सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. सुजस, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिका में 'सेवकगुरु श्रुजसनु दिर्घ आयू घणूंहजोजी' इस प्रकार लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १२४३२-३४). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११.
गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे नही जान्यो नाथजी; अंति: चर्णे सीर लाया, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिनगीत, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एहिज चाहिइं; अंति: कछु उर न चाहु, गाथा-३. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष कृष्ण, ८.
मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवसे; अंति: तारे नीरमला थासु, गाथा-८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४७६
४३३५७, (४) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. दुर्वाच्य टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १६४३८-४० ).
*
व्याख्यान संग्रह , प्रा., मा.गु., रा., सं., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी; अंति: (-). ४३३५८. (+) सीतानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१२.५, १०४३२).
"
सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनुकसूता हुं नाम, अंति: नित नित होजो परणाम, गाथा -८. ४३३५९. (+#) आलोयणा श्रावकने, संपूर्ण, वि. १९६३, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ३ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, अन्य. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १२४४२).
४३३६१.
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יי
आवक आलोयणा, मा.गु, गद्य, आदिः पृथ्वी आदि देश अंति: मीछामि दुकडं कहे, (वि. साथ में आलोयणा लेने की विधि भी लिखी है।
४३३६० (+४) नवाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, भरूअच्च प्रले. पं. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमुनिसुव्रत प्रासादात्, संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १५x५१). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीसंखेश्वर पासजी अंति (१) आतिम आप ठरायो रे, (२) माले धरि साथिया ९९, ढाल-११, गाथा-१०८.
(#)
सरणचतुष्टय, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल ९, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१२.५, १०x२८-४०)
४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरणां, अंति: तो हूं भवनो पारो जी,
अध्याय ४, गाथा- १२.
४३३६२. (+) विजयसेनसूरि भास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X१०.५, ११४३८-४२).
विजयसेनसूरि भास, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती भारथी; अंति: प्रतिपु कोडी वरीस, गाथा- ९. ४३३६३. (+१) नोकारनो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५x१२.५,
१२X४०).
,
नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामनि द्यो; अंतिः जाणज्यो श्रीनवकार तो, गाथा २५. ४३३६४. (+) दीक्षा विधि संपूर्ण वि. १९४२ कार्तिक शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पू. ४, ले. स्थल. पालीनगर, प्रले. अमरदत्त मेवाडा, लिख. पं. कुनणमल्ल, अन्य. मु. हीराचंद (गुरु पं. कुनणमल्ल). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखनपुष्पिका में 'शिष्या हीराचंदने दिख्या देवण सारुं' आ परत लिखाड़ के इस प्रकार लिखा है, संशोधित. वे. (२६.५x१२.५, ११४३९).
प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि दीक्षा लेतां एतला, अंति: नोकरवाली १ गुणाविई.
४३३६५. (+#) शांतिजिन कलश, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X१२.५, १२४४५-५२)
शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रीजयमंगलाभ; अंतिः जपे शांतिजिन जयकार, ढाल - २, (वि. प्रतिलेखकने बीच-बीच में गाथांक नहीं लिखे हैं.)
४३३६६. (#) छ आवस्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. सा. मानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. किसी विद्वानने पेन्सिल से 'मानसरी' लिखा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५x१३, १३४३८).
"
""
६ आवश्यक विचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्म, आदि चोवीसे जिन चीतवी, अंति: तेह सिवसंपदा लहे,
ढाल ६.
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४३३६७. (#) दसश्रावक सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२६४११. १३४४४).
१. पे. नाम. दसश्रावक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
१० श्रावक सज्झाय, मु. गोकल, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमनइ रे; अंति: रिद्धि विरद्ध सार, गाथा- १५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
२. पे. नाम. ज्ञानकर्म गाथा पृ. १आ, संपूर्ण.
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जैन गाथा *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- ३.
३. पे. नाम. कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण.
काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-२,
४. पे नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण
औषधवैद्यक संग्रह", प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
४३३६८. पट्टावली, संपूर्ण वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६.५४१२, २१४३८).
"
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पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान तीर्थं; अंति: कल्लाणचंदसुरी थया. ४३३६९. (+) आहारना बेंतलीस दोष, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, २ मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. राधिकापुर,
लिख. सा. सूरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १२४३८). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: जो माहात्मा केही; अंतिः एषणा सुमती कहीजे.
४३३७० (४) ८४ बोल आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२७.५x१२.५,
१२X३५).
४७७
८४ आराधना बोल, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अंति: अविरती पाप करे.
४३३७१. (+#) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रावण कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. दोलतराम हरखचंद भोजक, पठ सा. जयश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाहावीरजदिन प्रसाद्यत्, संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे., (२७.५x१३.५, १३४३४).
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरण नमी, अंतिः तेहने जाउ भामणे, बाल-९,
गाथा ४४.
४३३७२. (+) राजलरो बारमासियो, संपूर्ण वि. १९६५, पौष शुक्ल १४, मध्यम, पू. २, प्रले. रावतमल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १३x४२).
नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: राजल उभि विनवे; अंतिः राखो मुज चरणानु पास,
गाथा २०.
४३३७३ (४) औपदेशिक पद व कुलजुग सिज्याय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी ४. दे. (२६१२.५ १२५३३).
"
१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदिः उपसम विण क्युं कुल; अंति: सीवबधु संग रम्यो, गाथा-४.
२. पे. नाम. कुलजुग सिज्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कुलजुग, अंतिः धर्मधान कीजी, गाथा- १०. ४३३७४ अष्टमी व मल्लिनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२७१२.५, ११X३३).
१. पे. नाम. अष्टमि स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण.
3
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा अंतिः संघने कोड कल्याण रे, ढाल ४.
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२. पे. नाम. मल्लिनाथजी स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुन रमे रे चित्त, अंति: बिना चित्त कुन रमे, गाथा ६. ४३३७५. सास्वतीप्रतिम विचार, संपूर्ण, वि. १९४७ भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. किसनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१२.५, ११X३५).
शाश्वत जनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो सौधर्म देक; अंति: बिंब शंख्या जाणवी. ४३३७६. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.,
(#)
(२६.५X१३, २४४१९).
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४७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ७३
___पाट तक लिखा है.) ४३३७७. (+#) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४३८). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने वीनवू; अंति: संजम लेतूंसहु साथ, ढाल-७, (वि. वस्तुतः कुल
ढाल-६ है किंतु प्रतिलेखकने ढाल-३, ४, ५, ६ की जगह ढाल-४, ५, ६, ७ लिखा है.) ४३३७८. (+) सारदा स्तोत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. अनराज बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५, दे., (२७.५४१३, १३४३७). १.पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: कल्मषं मे स्वाहा, श्लोक-१६. २. पे. नाम. गोतम रास, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए,
ढाल-६, गाथा-५३. ३. पे. नाम. सरस्वति अष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुधि विमल करणी; अंति: सुरा सेवि जगपति, गाथा-९. ४३३७९. (+) निश्चयव्यवहारगर्भितशांतिजिन सस्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४४१). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर
केसर; अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल-६. ४३३८०. (+#) मल्लीअरिहंतनौ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८३१, कार्तिक कृष्ण, ४, जीर्ण, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. बीलारा,
गुपि. मु. जीवणजी (गुरु मु. रूघनाथजी); मु. रूघनाथजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए होने से प्रतिलेखक का नाम पढा नहीं जा रहा है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, २४४५२-५४). मल्लिजिन रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: (-); अंति: भणतां गुणतां जयकार, ढाल-२०,
(पू.वि. ढाल-१५ तक नहीं है.) ४३३८१. समदाय कीरीतीभाती, संपूर्ण, वि. १९५४, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. जडावचंद; मु. टेकचंद;
मु. जवेरचंद; मु. देवीचंद; मु. नंदलाल; मु. देवीलाल; मु. डालचंद; मु. कर्मचंद; मु. जवेरलाल; मु. सीरीलाल, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, दे., (२५४१२, १९-२५४४३-७१).
स्थानकवासीगच्छ मर्यादा पट्टक, रा., गद्य, आदि: श्रीजैनधर्म अनुयाई; अंति: देके सुद करणो. ४३३८२. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२८-३२).
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारा ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घणु,
ढाल-२, गाथा-२४, ग्रं. ४२. ४३३८३. (+#) केशी तथा गौतमस्वामीनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९६७, आषाढ़ शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १३४४०). केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रूपविजे गुण गाय रे,
गाथा-१६. ४३३८४. (#) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १३४४४).
स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतीस अतिसें जुओ; अंति: कहिइ ते सुत्र मुझार,
ढाल-८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४३३८५. पृथ्वीचंद्रजीनी सिझाय, अपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ शुक्ल ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, लिख. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३.५, १६४३८-४० ).
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पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीवविजय धरे ध्यान, ढाल -३, ( पू. वि. ढाल - १ गाथा - १० तक नहीं है.)
४३३८६. नोकारनो चंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. दाणावाडा, प्रले. श्राव. कसलचंद शाह, लिख. मु. सामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२, १२४३०-३२).
नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछीत पुर्ण वीवध पेर, अंति: सुख वंछी लहे, गाथा-१३, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम उपलब्ध नहीं है.)
४३३८७ (+४) खेमचंदमुनि सीझाच, संपूर्ण, वि. १९५९ वैशाख शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. बडोत, प्रले. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५x१२.५, १२४३१).
खेमचंदमुनि सझाय, आव, खीमसी, मा.गु पद्य वि. १८१७, आदि: बिरद्धमान जिणवर चरण, अंतिः पुरी मन की जगीस ए, ढाल ४.
3
४३३८८, (४) नेमराजेमती विवाहलो, संपूर्ण वि. १८६२, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, राहुनगर, प्रले. मु. उग्रचंद ऋषि पठ मु. वसंतराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है जै. (२६.५४१२.५, १३४५३). नेमराजिमती विवाहलो. मु. जिनदास, मा.गु, पद्य, आदि गोइम गणधर पर नमी अतिः भव का लाहा लीज,
"
गाथा - ८२.
४३३८९. (+) भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८x१२, ११x४१). धर्म भावना, मा.गु, गद्य, आविः धन्य हो प्रभु संसार, अंतिः करि बंदणा होज्यो.
४३३९१. (+#) शीलनी नववाडोनी सज्झायो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.,
(२७X१३, ११x४० ).
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणें नमी, अंति: तेहने जाउं भांमणे,
१०.
"
४७९
४३३९३, (+) पच्चक्खाण पारवानी व पोशा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२६.५x१३, ११x२६).
१. पे. नाम. पच्चक्खाण पारवानी विधी, पृ. १अ, संपूर्ण.
पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहियाई, अंति: मिच्छामि दुक्कडं.
२. पे. नाम, पोशा विधि, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहिआए पडि; अंति: चैत्यवंदन करवुं (वि. रात्रि एवं दिन के पौषध की संपूर्ण विधि.)
४३३९४. चेलाना फूलडा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. भावनगर, प्र. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५४१२.५, ८४३५ ).
फूलडा सज्झाय, पुहिं., रा., पद्य, आदि: बाई रे में कोतिग; अंतिः सुखि सुखिओ किम थाओ ए, गाथा- २३. फूलडा सज्झायटवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरना निर्वाण पछि अंति: उपजावे तेणे भावइ.
४३३९६. सकलार्थ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अमदाबाद, प्रले. कला शिवदान, पठ. मु. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२.५, १६x४७).
सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरं प्रणिदध्महे, श्लोक-३०.
४३३९७. () अष्टमी स्तुति व लोढणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पेधापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२.५, १२X३८). १. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
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४८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन प्रभु चंद; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. २. पे. नाम. लोढणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: फणि फटाटोप करे छाया; अंति: प्रभु महिमा सुखदाया,
गाथा-४. ४३३९८. (#) आंबिलतपनी सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले.
जेठालाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४४१). १. पे. नाम. आंबिलतपनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.
नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंति: मोहन सहज स्वभाव, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धरणींदा करे सेवना; अंति: केवल लहो सोयरे, गाथा-६. ४३३९९. (+) आतमबोध स्वैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १७X४२-४४).
औपदेशिक सवैया, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीजीनराजने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., गाथा-१२ तक ही है.) ४३४००. (+#) पांच अतिचार, संपूर्ण, वि. १९६२, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल
लहिया; पठ. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'कोट फलीमालहीया' इस प्रकार लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १२४३८).
श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण,
__ पू.वि. चतुर्थ सम्यक्त्व आलापक तक ही लिखा है.) ४३४०१. उतपति व सोदागर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३, १०४३६). १. पे. नाम. उतपतिनी सिझाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइजो आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए,
गाथा-७२. २.पे. नाम. सोदागर सझाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.
सोदागर सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सोदागर बे दिल; अंति: जाई होत सताबीस गाई, गाथा-६. ४३४०२. (#) नेमनाथजीनी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १३४३२). नेमराजिमती सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजी पीउजी रे नाम; अंति: नेम भेटी आस्या फली,
गाथा-७. ४३४०३. (#) शांतिनाथ थुइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ है. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, २४४१६-१८).
शांतिजिन स्तुति, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वसेनकुल कमल दिनं; अंति: तणां गुण गाया जी, गाथा-४. ४३४०५. (#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ११४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६ तक लिखा है.) ४३४०६. पदमप्रभुजिन स्तवन व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १४४३७). १.पे. नाम. पदमप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जिनराया हो; अंति: गुरु दीये इम
आसीस ए, गाथा-१५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४८१ २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-२. ४३४०७. (#) सूतक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे.. (२७.५४१२.५, १०४३३).
सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाय; अंति: (-). ४३४०८. (#) पोषध आदि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १२४३४).
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण० इरियावही; अंति: पासवणे अणहीआसे. ४३४०९. (+) पंचज्ञान की अर्चा, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १२-१५४४२). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: रूपविजय
गुण गायारे, ढाल-११, (वि. ज्ञानपूजन विधि संलग्न दी गई है.) ४३४१०. (+#) कलिकुंडपार्श्वजिन व सर्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३९). १.पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन शुक्ल, ५, प्रले. मु. रंगविजय.
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३९. २.पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८७२.
२४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति:
____ मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ४३४१२. (+#) वीर स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२७.५४१३.५, १४४३४). १.पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेढामली.
महावीरजिन स्तुति, उपा. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवीयण वंदु श्रीमहावी; अंति: नयविजय जय दाई, गाथा-४. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद,
गाथा-७. ३. पे. नाम. कार्यसिद्धि यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ४३४१३. मार्गशिर्षशुक्लैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. घनोघ, प्रले. पं. मोहनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १६४३९).
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: एकादशीमाराध्य समभवत्. ४३४१४. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३४४५).
दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: तेथी अधिक पालवू. ४३४१५. (+#) आत्मनिंदाविषये सुरप्रियमुनि कथानक, संपूर्ण, वि. १९६६, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १४४५३). सुरप्रिय कथा-आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदि: प्रणम्य महिमागार; अंति: लिखिता
शिवाय स्तात्, श्लोक-१२५. ४३४१६. (+#) पौषध विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३८-४२).
पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देइ इरीयावही; अंति: (-).
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४८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
४३४१७. (#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१३, ८-१२X३१-३७). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रशस्त दिवसै सुभ, अंति: इसानकुणे वीहार करे.
४३४१८. (+#) धर्मनाथ आदि स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २२, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५. १४४४४).
१. पे. नाम. धर्म्मनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
धर्मजिन पद, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि जब मे मुरत देखि, अंतिः प्रभुजिस्युं लागी, गाथा-४.
२. पे. नाम. शांतिजीन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण.
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शांतिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: फरसे माहाराज आज; अंति: आणंद लेहर लाई, गाथा-२.
३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद, अंतिः वाचक मान कहे सिरनामि,
गाथा - ५.
४. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन पद, मु. गुलालविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मुगटपार वारि वारि; अंति: जग जग जीत बादा, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमी स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, म. मोतीलाल, पुहिं, पद्य, आदि: स्वामी श्रीनेमकुमारा, अंति: अपना जन्म सुधारा, गाथा-३.
६. पे. नाम, सीधाचल स्तम, पृ. १आ, संपूर्ण.
शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारूं मन मोहु रे; अंति: कहेतां नावे हो पार,
गाथा-५.
७. पे. नाम, नेम गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, श्राव. सुजान, मा.गु., पद्य, आदि: सामलियो स्याम सरिर, अंति: सांत सुधिर रे, गाथा-४.
८. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.
साधारण जिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: तेरि अखीवारे, अंतिः ज्ञान आदी धारावे, गाथा- ३.
.
९. पे. नाम. वीमलजीन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सेवो रे भविया, अंति: प्रभु विण न राचु जी,
गाथा-५.
१०. पे. नाम. वीमलजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
विमलजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: विमलजिन लागो तुमसु, अंतिः रखे देखाओ छैह गाथा - ७. ११. पे. नाम. अजीत स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
अजितजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु, पद्य, आदि दिठा मे तो आज अंतिः ध्यान अमृतरस्कारा, गाथा ५.
१२. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चरणकमल में चित; अंतिः जगजीवन जिनराज जयोरी, गाथा ७. १३. पे नाम, पार्श्वजीन स्तनं, पृ. २आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि सेवक डायाभाई करजोडि, अंतिः लक्ष गुण गावे जी गाथा-३.
१४. पे. नाम, नेमी स्तनं, पृ. २आ-३अ संपूर्ण
नेमिजिन पद, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलिआरो डुंगर प्यारो; अंति: आ भवथी मने तारो, गाथा -३. १५. पे नाम, साधारणजिन गीत, पृ. ३अ संपूर्ण
साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, आदिः आज एसा सेरा बनाउगी अंतिः समर गुण गाडगी, गाथा ३. १६. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: दोखोरि जीनंदा प्यारा, अंति: पायो अविचल ज्ञान, गाथा-४, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम वाली अंतिम गाथा नहीं है.)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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नेमिजिन पद, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: हो बाल्यमा तुमें; अंति: राजुल के गुणखाणी हो, गाथा- ४. १९. पे नाम. नेमी गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण.
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१७. पे नाम, नेमीजन स्तवन, पृ. ३अ संपूर्ण
नेमराजिमती पद, मु. जगराम, मा.गु., पद्य, आदि: सलुणी सामली मुहुरत, अंति: उतारो बहिअ धरहिरि रे, गाथा-५. १८. पे. नाम. नेमी गीत, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण.
नेमराजिमती पद. मु. अमृत, पुहिं, पद्य, आदि: देखन दे ऐसे नेम, अंतिः अमृत नजर० सुखदानी, गाथा ३. २०. पे. नाम. नेमी गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. अमृत, रा., पद्य, आदि धारी बोलु लाग रहि अंतिः अमृतसुख रस रंग लही, गाथा- ३. २१. पे. नाम. नेमी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: होता जाजोनी राज रे; अंति: दीनो अमृत सुख साज, गाथा-५. २२. पे. नाम. नेमी गीतं, पृ. ३आ, संपूर्ण.
नेमिजिन पद, मु. अमृत, पुहिं, पद्य, आदि: घरमहिया रेणा नहि अंतिः अमृतरस रंग पईया, गाथा ३.
४३४१९. (+) जीवस्थापना कुलं व गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५x१२.५, १२४३४).
१. पे नाम. जीवस्थापना कुलं, पृ. १अ २अ, संपूर्ण ले स्थल, पाटण, प्रले श्राव. मोहन गिरधर,
जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवो अणाइनिहणो, अंति: निबद्धाई वेराई, गाथा-२५. २. पे. नाम गाथा संग्रह. पू. २अ २आ, संपूर्ण.
जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१५ (वि. आहारक लब्धि आदि तत्त्वज्ञान संबद्ध ) ४३४२०. (४) सीमंधरस्वामी विनती, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७४१३,
१०X३३).
४८३
सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि सुणि सीमंधर साहिबाजी, अंति: मुझ मनससर हसं, गाथा-३४.
,,
४३४२१ (४) रूपमणिना स्तन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक पढ़ा नहीं जा रहा है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५, ९-१२४२९).
रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजाविजय रंगे भणे जी,
गाथा - १५.
४३४२२. (४) पार्श्वनाथ स्तवन व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण बि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है. वे. (२६.५४१२.५, ११४३५).
"
१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु, पद्य, आदि: कासीदेश बणारसी सुख अंति कीजे कोडी कल्याण, गाथा ९.
२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.
श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१.
४३४२३. नेमीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. प्रत्येक पृष्ठ पर किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से 'मोहनसरी'
लिखा है., दे., (२७X१३.५, १४X३८).
नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामणि पाय नमी; अंति: थूण्यो म जिणेसरो, ढाल ४, गाथा- ६९.
४३४२४ (+) नवअंग पूजा व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. वे.,
(२७.५X१३, ११४३६).
१. पे नाम, नवअंग पूजा, पृ. १अ संपूर्ण
नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु, पद्य, आदि जल भरि संपुट पत्रना, अंतिः कहे शुभवीर मुणेंद, गाथा- १०.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन गहुंली, मु. हर्षचंद, मा.गु, पद्य, आदि: अरे लाला गुण वन वीर, अंतिः नीज आतम काज रे, गाथा-५, ४३४२५. (-#) बिरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. दुर्वाच्य अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१३.५, १६x४२).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदाइक सदा, अंतिः नामे
,
पुन्यप्रकाश ए. डाल-८.
४३४२६. (d) २४ जिन स्तवन व आदिजिन रेखता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, १५x२४).
१. पे नाम, २४ जिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिण प्रनमू : अंतिः कमलसाधु जयवंत मुणिंद, गाथा - २९.
२. पे. नाम. आदिजिन रेखता, पृ. २आ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: सुनु श्रीनाभ के नंदन, अंति: तो क्या हो प्या, गाथा-७
"
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४३४२७. (#)
बुढा की सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १५X३४). बुढापा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बूढापो आबीयो; अंति: कहे कबीयण ग्यान रे, गाथा- १६. ४३४२८. सिसलानंदवीर स्तवन व रुकमण का वाहला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक पढा नहीं जा रहा है., दे., (२८x१२, १७३९).
१. पे. नाम. सिसलानंदवीर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण, अंतिः तास नम मुनि माल,
गाथा - ३१.
२. पे. नाम. रुकमण का वाहला, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
रूक्मणीसती विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: नृप भिषम कुंदनपुरी, अंति: रुकमणी जस गाईया, गाथा-१५. ४३४२९. (४) चौमासीपर्व देववंदन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. ३. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे (२६.५४१३.
१६x४३).
१. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.
चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आदिदेव अलवेसरू विनीत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शीतलजिन चैत्यवंदन गाथा १ अपूर्ण तक है.)
४३४३० (+४) श्लोक संग्रह व मैतारजसाधु सीझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५५१२.५, १३४३७).
"
लोक संग्रह, मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-).
२. पे. नाम, मैतारिजसाधु सीज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण.
तार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरु जी; अंति: भणै जी साधुतणी सीझाय,
गाथा - १२.
४३४३१. (+) विजेकवर की ढाल, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे., (२८१३.५, १४४३७).
विजयकुंवर सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु, पद्य, आदि: मनष जमारो पाय के अंतिः ऋष लालचंद सीरनामी,
गाथा - २१.
४३४३३.
(+#) २० स्थानक पूजा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे (२३.५X१२, १२X३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
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(+)
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याईइ, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल-५ पंचम पद तक है.)
४३४३४. चतुःसरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र कृष्ण, १ मध्यम, पृ. ४, प्रले. पुनमचंद बोडा ब्रामण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१३, ११४३३).
चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं,
गाथा-६३, ग्रं. ८१.
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४३४३५. (+०) जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२ कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल विसलनगर,
प्रले. ग. मोतीविजय; अन्य. पं. मुक्तिविजय गणि; पठ. श्राव. अचरत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संख्यासूचक शब्दों के ऊपर अंक लिखे हैं एवं पत्रों में यत्र तत्र खाली जगह पर रंगीन चित्र हैं. कल्याणपार्थ प्रसादात् संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२.५, ६x४२).
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति : रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५०.
जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: भुवण कहेता त्रिण्य; अंतिः भणवाने अर्थ कह्यो.
१. पे. नाम. पर्युषणपर्व गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यवंता तुमे सांभल, अंति: दान सुपात्रे दिजे, गाथा- ६.
२. पे. नाम. पर्युषण पर्व गहुली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. हुकम, मा.गु, पद्य, आदि: पजुसण आव्यां रे, अंतिः टाली भवनो पार जो, गाथा ५.
३. पे नाम, पर्युषण पर्व गहुली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण
मु. हुकम, मा.गु, पद्य, आदि: पजुसण हवे आवियां अंतिः तस पर मगले माल रे, गाथा-६,
,
४. पे. नाम. पर्युषण पर्व गहली. पू. २अ २आ, संपूर्ण.
४८५
४३४३६. (१) छ आवश्यकविचार व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, अन्य श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १३४३४).
१. पे. नाम छआवश्यकविचार स्तवन, पृ. १आ-३ आ. संपूर्ण.
६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसई जिन चीतवी, अंति: तेह सिवसंपद लहे, ढाल - ६.
२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: लागी लगन मने तारी अंतिः सेवकजी साधुरी, गाथा- ९.
४३४३७. (+#) पर्युषणपर्व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२७१२, १०x३०).
मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: कलपसुत्रने सांभलो रे; अंतिः ते तो पामे भवनो पार, गाथा- ७.
५. पे. नाम. पर्युषण पर्व गोली, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण.
पर्युषणपर्व गहुली, मु. हुकम, मा.गु, पद्य, आदि: पजुसण आव्यां सुखकारि अंतिः जे काइ शीवरमणी वरिए, गाथा-६, ४३४३९. (+) २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७x९२.५, १६x२१-५४). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को. आदि (-); अंति: (-).
"
.
४३४४०. साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७X१३, ९X३२).
साधारणजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: मुज पापीने तार जिनंद; अंति: वली अमरपद सार, गाथा-६. ४३४४१. (+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. प्रतिलेकखने पत्रांक २अ
पर ३ लिखा है., संशोधित. दे., (२७१३, १२X४६).
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नीत परमेसरी; अंति: (-), (पू.वि., दाल-४ गाथा १ अपूर्ण तक है.)
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४८६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३४४२. (+#) पजुसणपर्वना चैत्यवंदन सात, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं
है. प्रतिलेखकने सातों कृतियों में क्रमश: १ से २१ गाथांक दिये हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १४४३८). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजेजे श्रृंग; अंति: आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेव आदि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पसुत्र कल्पद्रुम; अति: निपने विनय विनित, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविधि कहे सुत; अंति: वाणी विनित रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एके चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेस नेमनाथ; अंति: वंदो सदा विनित, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवच्छरी दिन; अंति: चरणे नामुंशीस, गाथा-३, (वि. इस प्रति में कर्ता
विनयविजय की जगह विनितविजय लिखा है.) ४३४४३. शांतिनाथ व नेमनाथ थोय, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. भेमविजय;
लिख. श्रावि. साकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १३४३२). १. पे. नाम. शांतिनाथनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण.
शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतीसूहकर साहिबा; अंति: कवि विर ते जाणे, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमनाथनी थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुरितभयनिवार मोह; अंति: भराणी वीरविजये वखाणी, गाथा-४. ४३४४४. (#) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १२४३९-४२). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: (-); अंति: नामे लहे अधिक
जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५४, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) ४३४४५. जीवरास आलोयण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अहमदावाद, प्रले. श्रीनाथ जोसी; अन्य. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १०४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणि पदमावति; अंति: कहे पापथी छुटे
ततकाल, गाथा-३३, ग्रं. ४०. ४३४४६. पजुसणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७.५४१३, १२४३२).
पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६,
ग्रं. २५. ४३४४७. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१४, १२४४२).
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१, ग्रं. ८०. ४३४४८. (4) पंचमीनी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२७४१२.५, १०४३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४८७ १. पे. नाम. पंचमीनी सीझाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९००, वैशाख कृष्ण, ९, शनिवार, प्रले. मु. विजयकुशल,
प्र.ले.पु. सामान्य. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती चरण पसाउले रे; अंति: कांतीवीजय गुण गाय,
गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव विषयने वारीये; अंति: (-), (अपूर्ण,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४३४४९. (+#) श्रीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सरदार, प्रले. पं. जीतविजय; पठ. श्रावि. पाना,
प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १४४२५).
सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी; अंति: दर्शन दिजीई नाथ, गाथा-१६. ४३४५०. (#) चीतोडरीगजर, संपूर्ण, वि. १७६५, आश्विन शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. शिवपुरी, प्रले.पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४५). चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुरभूज धार; अंति: गढ चीतोड की खूब
गाई, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ४३४५१. (#) नवकार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४५२).
नवकार रास, मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संपइ सासइ वर वरीई, गाथा-९२, (पू.वि. गाथा-४० तक नहीं
४३४५२. (+#) सिद्धार्थराजारी जीमणवार, संपूर्ण, वि. १७५५, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. वीरमजी; पठ.सा. स्यामा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १७X४८).
सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: माड्यउ उत्तंग तोरण; अंति: समाणा आयंता. ४३४५३. (+#) बृहच्छांति, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १२४४६).
बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४३४५५. (#) चतुषष्टियोगिनी स्तोत्र आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, दे., (२४.५४११, १२-१४४२८-३६). १. पे. नाम. चतुषष्टीयोगिनि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.
६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ दिव्ययोगी महायोगी; अंति: चमुविचक्षणैः, श्लोक-११. २. पे. नाम. सरस्वति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सरस्वति अष्टक, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
शारदाष्टक, सं., पद्य, आदि: ऊँ ह्रीँ श्री मंत्र; अंति: सा जयतु सरस्वतीदेवी, श्लोक-९. ४. पे. नाम. जाड्यहरसरस्वत्या स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ह्रीं ह्रीं हृद्यैकब; अंति: बुद्धि: प्रवर्द्धते, श्लोक-११. ५. पे. नाम. पद्मावति स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.
पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंड तुंड; अंति: पूजो सुखकारणी, गाथा-११. ६. पे. नाम. शारदामाता छंद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक
है.)
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४८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३४५६. (+#) कल्पसूत्र पीठिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४०, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भावरि,
प्रले.पं. खूसालविजय; पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवासपूज्यजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३, ७४४३).
कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: देवाणं जिणदेवो; अंति: न होइ तेण वरसाओ, गाथा-१६.
कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वदेवमाहे श्रीवित; अंति: जीवने सुखं भवतु सहि. ४३४५७. (#) शाश्वतजिन नमस्कार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२७.५४१३, २०४५३-६०). १.पे. नाम. शाश्वताजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोडी सातने लाख; अंति: मीजे आत्मतत्वे रमीजे,
गाथा-१३. २. पे. नाम. साश्वताजिन स्तुती, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पाया
जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुंकरीये; अंति: पद्म कहे भव तरीये, गाथा-५,
(वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फेरी; अंति: राख्यो अविचल प्रेम, गाथा-५. ५. पे. नाम. आबु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आबु अचल रलिआमणो रे; अंति: लो पद्मविजय कहे,
गाथा-१६. ६. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद अरिहंतजी; अंति: नमतां कोडी कल्याण, गाथा-८. ७. पे. नाम. समतसिखर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समतसीखरजी वंदीये; अंति: पास सामलनु
चेइरे, गाथा-८. ८. पे. नाम. पूण्यप्रकास तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे
पुण्यप्रकास ए, ढाल-८. ४३४५८. औपदेशिक पद व श्रावकनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, ३१४१८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तेने कैसी फकीरी करी; अंति: आत्मा रतीने धरी रे, गाथा-४. २. पे. नाम. श्रावकनी सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ऐडा मारीने धडा उठावे; अंति: रत्न कहे सुणो नरनारो, गाथा-२१. ४३४५९. (#) सिद्धाचल स्तवन व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाबविजय,
प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १५४३५). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विजापुर. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान,
गाथा-१६. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१०
४८९ सुभाषित श्लोक संग्रह * पुहि.प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशद; अंति: दिन दिन वधत सवाय, गाथा-३. ४३४६०. (+#) सीता सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल
गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १५४३२). १.पे. नाम. सीता सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मलती घj; अंति: नित्य
प्रणमुंपायरे, गाथा-८. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: किसके बेचेले किसके; अंति: विनय विराजतो सूख पुर, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले.मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य.
मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: गौतम पूछत श्रीजिनभाष; अंति: भगत करौ भगवांत की, गाथा-४. ४. पे. नाम. विष्णु पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
कृष्णराधा पद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मुने ओलू आवे; अंति: एक देखत धुत्यो दिन, गाथा-५.
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४९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
४ प्रत्येकबुद्ध आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (वाणारसी नयरीए), ४०९३२-३(#) ४ शरणा विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (तेणं कालेणं तेणं समण), ४०७८९-१(१), ३९१९९($) ५ जिन स्तोत्र, प्रा., गा.५, पद्य, मूपू., (आसाढकिन्हचउथीवयार), ३९५१०-१ ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ४०२९७-२(+#), ४२७८२-३(#) ५ तीर्थ स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंचधणुस्सयमाणं), ४१५६५-२(+#) ५ तीर्थ स्तुति, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीधरहीरविजयहृदयास), ४१३८९ (२) ५ तीर्थ स्तुति-स्वोपज्ञ टीका, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यग्नाना), ४१३८९ ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ४१२१९-१(#) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ४००३०-२(#) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभरअमरपणयं पणमिय), ४२८२२(+#), ३९१७३ (२) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (परमेष्ठीपंचकं), ४२८२२(+#) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, मु. जिनदत्त शिष्य, प्रा., गा. १२, पद्य, मपू., (ऊँ नमो अरिहंताणं), ४२१४९-२(+) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अल्तस्त्रिजगद), ४०२६७-१(-#) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा.७, पद्य, म्पू., (परमिट्ठमंतसारं सारं), ३९७१५-१(#) ५ परमेष्ठि स्तोत्र-मंत्रगर्भित, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (परमेष्ठिनमस्कारं सार), ४२९५९-१(+) ५ मेरुमंदिर नमस्कार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसुरेंद्रनाथाय नम), ४०९७१-४(+) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ३९४३०(+) ६ अंतरंगशत्रु श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कामः क्रोधश्च लोभश्च), ४०७५२-३(+#) (२) ६ अंतरंगशत्रु श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (काम १ क्रोध २ लोभ ३), ४०७५२-३(+#) ६ काय विराधना विचार, प्रा., गद्य, मपू., (भवे कारणं जेण तसकाय), ३९१४८-१ (२) ६ काय विराधना विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कारण होइ तिवारे त्रस), ३९१४८-१(६) ६ द्रव्यभेद विचार, सं., गद्य, मूपू., (असीइसयं किरीयाणमित्य),४३०६२-१(+) ६ लेश्या गाथा, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (पंथाओ परिभट्ठा छ), ४१४८९-१(+) ७ अंतराय श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आमिषं रुधिरं चर्म), ४११४४-२(+) ७ नय विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नेगमसंगहववहारुजुसुएव), ३९१५९(5) ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (इंदियकसायमयगारवेहि), ४०४८७(+#) ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (इह नाण दंसणावरण वेय), ३९४८० (२) ८ कर्मविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव करइ ते कर्म कहीइ), ३९४८०(5) ८ कर्म विवरण, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (आवृणोति यज्ज्ञान), ३९२२५-१(+) । ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ३९५३७-१(+), ४०९०१(+#),
४२७८६(+#), ४२९७४(+-), ३९६३३-१, ४१५४०(#), ४२८६०(#), ४२८४५(-) ८ प्रकारी पूजा, पुहि.,सं., अ. ८, प+ग., दि.?, (वरगंधपुप्फअक्खेहि), ४२१०८(+#) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (सुरसरि सिंधु पउमद्रह), ४३१७२(-#) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवलभासनभास्कर), ४१२९०-१(+), ४१२६५-१(#) ८ प्रकारी पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरि० नमोर्हत्सि०), ४०७२३(+#) ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (प्रथमप्रणवमायाबीज), ४२७५३-१(+#) (२) ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र-अनुवाद, गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ऊँ ह्रीं अने), ४२७५३-२(+#) (२) ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सूर्य नडतो होय तो), ४२७५३-३(+#)
परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९१
९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं काश्य), ३९६२७-२(#) ९नियाणा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (निव १ सट्टि २ इत्थि), ४०७१७-४(१) १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., ग्रं. ११३, प+ग., मूपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), ३९३६३-२(+5), ३९४३३-२(#) १० श्रावक कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (वाणियगामपुरम्मि आणंद), ३९५९५-२ १० सम्यक्त्वरुचि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (निस्संग्गुवएसरुई), ४०७६२-२(+#) (२) १० सम्यक्त्वरुचि गाथा-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (रोचकः कारक: दीपकः), ४०७६२-२(+#) १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), ४०९४९-२(+#) १२ व्रत उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बारव्रतना पोसह वहि), ३९९२८(+#) १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ४१२१७-१(+#),
३९२३९(६), ३९२३३-२(-5) १४ पूर्व पूजा, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु.,सं., ढा. १४, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (श्रीचारित्र पार्श्व), ४१२०२ १६ वचन नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (एगवयणे १ दुवयणे २), ४१३९६-२(2) १७ नियम श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (भोजने षट्रसे पाने), ४११४४-१(+) १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जेनो करति मणसा), ३९४३१(#) १८ हजार शीलांगरथ गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जे नो करति मणसा), ४२६९१-१(+#), ३९७०७-१ २० विहरमानजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमंधरो जुगंधर बाहु), ३९६२८-१(#) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ४२८६७(+) २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (नमो अरिहंताणं १ नमो), ४०५४१-१ २० स्थानकतप गाथा संग्रह, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ३९६७७(#) (२) २० स्थानकतप गाथा संग्रह-पद्यानुवाद पांखडी, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जै जिन पूजे त्रिणे), ३९६७७(#) २० स्थानकतपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ४०६९७-३(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नालिकेरादि), ४०७८१-१(#) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), ४०८६३-२ २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कार्तिकसुदि १ सुविधि), ४१७९८-१(+) २४ जिन कल्याणकतप गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणिगट्टिप्पणय), ४१७९८-२(+) २४ जिनकल्याणक तपविधि, रा.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीसंभवनाथसर्वज्ञाय), ३९६१७(+) २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मूपू., (--), ३९३३५(+), ४०७६३, ४०८४५(#) २४ जिनकल्याणक स्तव, जै.क. आशाराज, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (तिथिक्रमाज्जिनेंद्रा), ४२४२४-१(+#) २४ जिनकल्याणक स्तव, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (जाणकल्लाणइ संसइ जमणं), ३९५१०-२ २४ जिन गाथा-वर्णभवतपसिद्धिगमनादिगर्भित, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (पउमाभ वासुपुज्जा), ४१८५४-१(+#) २४ जिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जिनर्षभप्रीणितभव्य), ३९५२९-१(+#), ४०५७७-१(+-#), ४०६६७-१(#) २४ जिन चैत्यवंदन-चतुस्त्रिंशयंत्रगर्भित, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आद्याभिनंदनस्वामी), ४१३४३-१(+), ४१४४९-१(-#) २४ जिन नामराशिमेलापक कोष्टक, सं., को., मूपू., (--), ४०८२०(#5) २४ जिन पारणक आलापक, प्रा., गद्य, म्पू., (संवच्छरेण भिक्खा), ४०९३२-४(#) २४ जिन स्तव, मु. शांति कवि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परंपरया), ४१०२८(+) २४ जिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (आद्यः श्रीऋषभस्ततो), ४२८८२-६(+#) २४ जिन स्तव, सं., पद्य, मूपू., (शमरसोरुसर: सरलाशय), ३९३४४-५ (+$) २४ जिन स्तव-३४ अतिशयगर्भित, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदान्), ४१२४४ २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ४३४१०-२(+#) २४ जिन स्तुति, आ. जसवंत, सं., श्लो. २७, पद्य, श्वे., (श्रीदेवार्चितदेव), ३९९२४(#)
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४९२
२४ जिन स्तुति, आ. जिनपतिसूरि, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., ( श्रीनाभेय जिनेश त्वं), ४१०१२-१(+#) श्रीनाभेय जिनेश त्वं), ४१०१२-१+०)
"
(-), ४१०१२-१(००)
(२) २४ जिन स्तुति टीका, सं., गद्य, मृपू, (२) २४ जिन स्तुति - टिप्पण, सं., गद्य, भूपू २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (आनम्रनाकिपतिरत्न), ३९४४२-१(+#) २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, भूपू (ऋषभनम्रसुरासुरशेखर), ४३२७७-३+४)
२४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., ( जनेन येन क्रियते), ३९९३०(+#)
(२) २४ जिन स्तुति - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (निम्ना नाभिर्यस्य स), ३९९३० (+#)
२४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (यत्राखिलश्रीः श्रित), ३९३८८ ($)
२४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मृपू., (सुरकिन्नरनागनरेंद्र), ४३१८०-१(+)
२४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (नतसुरेंद्रजिनेंद्र) ३९२३४(+), ४०२९७-१(+), ४२३२७-२(A)
.,
२४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, मृपू. (विमलनाभिकुलांवरचंद्र), ३९४४२-२(+५७)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
२४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू (श्रीआदिनाथं नेमिजिनं), ४१८१२-२ (-१)
"1
२४ जिन स्तोत्र - चित्रबंध, मु, गुणभद्र, सं., श्लो. ३१, पद्य, दि. (ये तीर्थरथनेतारः ), ३९१५२-१ (९)
२४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि ), ३९३४२-२(+#), ३९४३८-३(+#), ४०४७२-४(+१), ४९३४३-३(+), ४१४१४-३ (५०), ३९२५६-२(१), ४०९४८-१(०), ४२५५५-२(१), ३९९६१-२ (-), ४०१६९), ४९४४९-२०
२४ तीर्थंकर के साथ में पुरुषसिद्धगतिगमनसंख्या गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., ( एगो वीर भयवं), ३९५४३-२(#)
२४ मांडला, प्रा., गद्य, मूपू., ( आघाडे आसन्ने उच्चारे), ३९६५४-२ (+$), ४१४६१-४(+#), ४२२४९-२(+#)
२५ क्रिया गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (काइअ अहिगरणिया पाउसि), ४०५८१-१(०)
१
(२) २५ क्रिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कायाई करी कर्म), ४०५८१-१ (#) २८ लब्धि नाम, प्रा., गद्य, भूपू (आमोसहीलीणं १ विप), ४२८१०-१(+)
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(२) २८ लब्धि नाम -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरीर फरसथी सर्बरोग), ४२८१०-१(+#) ३२ असझाव गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू (उक्कावाए दिसावाहे). ४२६०४-३(०४) (२) ३२ असज्झाय गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उका० तारा तुटै ते), ४२६०४-२(+#)
३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ३९८३७ (#), ४१२१९-४(#)
४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ४१३९६-१(१), ४२७८२-९ (ख) (२) ४२ भाषाभेद गाथा चालावबोध, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (जणवय कहीइ जे जे देस), ४१३९६-१(०)
४५ आगमतप विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रथम बीजें श्रीनंदि), ३९२४६($)
६३ शलाकापुरुषवर्णन आलापक, प्रा., गद्य, भूपू (पुणरवि समोसरणे), ४०९३२-२०१
६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (जगमज्झिवासिणीणं), ४३०६७-२(#)
६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ४३०६७-३(#), ४३४५५-१(#)
८४ आराधना बोल, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ४३३७० (#)
८४ आशातना नाम, सं., गद्य, मूपू (इह चतुरशीतिसंख्याका), ४०७६२-१(+०)
अंतिम आराधना संग्रह, प्रा. मा.गु., प+ग, वे. (प्रथम इरियावही), ४०६६२ (-१), ४२९८९-१(+)
"
अंबिकादेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूप, (या लोलीलंबमान प्रवर), ४०३०१-३ (+०)
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, भूपू., (प्रणिपत्य प्रभु), ३९३४१(+), ४०६८२-२(+०),
४२०७१-१००, ४३२६८-२००१
अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा., रा., सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ४१३९१-१(+#)
अगरचंद्र भैरुदानश्रेष्ठी प्रशस्ति, मु. भगवानदास, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (श्रीमान् सुकुलोद्भवो), ४२२६५(+) अजितजिन कलश, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., सं., ढा. ६, पद्य, मूपू., (चक्रे देवेंद्रवृंदैः), ४१४५७(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
अजितजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विश्वत्रयीकीर्तित), ३९३४४-२ (+) अजितजिन स्तुति-दंडकगर्भित, सं., श्रो. ४, पद्य, म्पू. (-), ३९३४४-१(+४)
"
अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा. गा. ४०, पद्य, भूपू (अजियं जियसव्वभयं संत), ३९७४३(१), ३९७६९(+),
"
अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि सं. अधि. १६ श्रो. २७२, पद्य, भूपू (जयश्रीरांतरारीणां), ३९९८६ (०४)
.
अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अनंतकल्याणकर), ३९६६९-२ (+#), ३९८८७-२(#) (२) अनंतकल्याणकर स्तोत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अनंतकल्याण करहू कर), ३९६६९-२(+#) मूपू., ( आराधनापताकापज्ञा), ३९४५६ (०), ४१४२६ (-)
अनशन विधि, प्रा.,
1..4...
"
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३९८२६-२(+#), ४०६०३-१ (+#), ४१८७४ (+), ४२१६८ (+), ४२९५४ (+#), ३९४२२, ४२९२६ - १ (# ), ३९४१५ ($), ३९१३९(-$) (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए), ४२६२४-१(#) अजितशांति स्तवबृहत् अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि सं., लो. १७, पद्य, मूपू. (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ४१२४९- १(+) अजितशांति स्तवलघु - खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., ( उल्लासिक्कमनक्ख), ३९८२६-३(+#) अजैन श्लोक सं., पद्य, वै., (--), ४०२१८-२(+०)
3
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं नवमस्स), ३९१३१(#$) (२) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र चालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू (हिवइ अनुत्तरोववाइदशा), ३९१३१(०३)
७
अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षितसूरि प्रा. प्रक. ३८ प+ग, भूपू (नाणं पंचविहं) ३९४१३(३)
3
"
""
अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, भूपू.. (शुद्धवर्णमनेकार्य), ३९३३७(+४), ३९९२५ (+)
अष्टभंगी कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. १०, पद्य, म्पू, (देवगुरुधम्मतत्तं न), ४०७१७-२०१ (२) अष्टभंगी कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुगुरु सुदेव सुधर्म), ४०७१७-२(#) अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यत्र श्रीभरतेश्वरः), ४२८८२-७(+#)
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, सं., गद्य, भूपू (--), ४३२५१(३)
अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु., सं., गद्य, मृपू., ( ते माहिली शांतिकविध), ३९५९४ (+न
अन्योक्ति काव्य, ग. वृद्धिविजय, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (अधिरुह्य गिरेः शिरः), ४०५४२-१(+)
अपूर्ण जैन काव्य / चैत्य/स्त/स्तु/सझाय / रास/चौपाई / छंद / स्तोत्रादि, प्रा., मा.गु., सं., हिं., पद्य, जै. ?, (--), ४०१०४-३(+#$), ३९४७८ (५६), ४१८६०-१(०३)
अभयकुमारचंडप्रद्योत कथा, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (पण्यस्त्रियैधर्मकर्म), ३९५०५ (+)
अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अगम्यमध्यात्मविदाम),
४०९६४-२ (+)
असज्झाय विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू (महिया जाव पद्धति), ४१५९६-२ (५०), ४२९५५-१(+), ३९६८६, ४२७८२-८(१) अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, मूपू., (तत्थ पढमं अहिंसा), ४०८५६-२ (+#$)
(२) अहिंसा कुलक-वार्थ, मा. गु, गद्य, भूपू (तिहां पहेलो संवर), ४०८५६-२१+४६)
४९३
आगम छुटक पन्ने, प्रा., सं., मा.गु., प+ग, मूपू., (--), ४२३९७ (+#$)
आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ४०३१४-२(#)
आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१. वि. ११वी, प+ग, मूपू (बेसिक्कदेसविरओ), ४११७८(+), ४१३०१(+) आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (महिम्नः पारं ते परम), ३९४०६(+) आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (नयगमभंगपहाणा विराहिआ), ३९५१०-५
आदिजिन स्तव - देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा. सं., गा. २५ पच, मृपू. (जय सुर असुरनरिंदविंद), ३९९६२ (४)
"
(२) आदिजिन स्तव - देउलामंडन मंत्राम्नाय अवचूरि, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (किवदनुभूतमंत्रतंत्र) ३९९६२(४) आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ४२६८०
आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( आनंदानम्रकम्रत्रिदश), ४०९७७-१ (+#S), ४२८५९-२(#)
आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (कृतिजनकृतसेवा:), ३९३४४-३(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (मरुदेव्याः सुतकांति), ४३०२९-२(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (श्रीनाभेयं योगिध्येय), ४१७३८ आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भावानयाणेगनरिंदविंद), ४१७५६-२, ४२०५६-३,
४३२००-२(#) आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (उद्यत्सारं शोभागार), ४१३६३-१(+#),४१९७२-१ आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ३९४३७-१(+), __४३२०२-१, ४३०७५-१(#) आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथं नतनाकि), ४१७५६-१, ४२०५६-२,
४३२००-१(#) आदिजिन स्तोत्र, मु. अचलसागर, मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (संसारस्वरूपं महाकाल), ४०९०८-३(+#) आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (नमो ज्योतिमूर्ति), ४०९०८-१(+#), ४१५६०(-2) आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ४१२९२-२(#) आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., श्लो. ११, पद्य, भूपू., (जयानंदलक्ष्मीलसद्वल), ४०७४६ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुह), ३९३८७(+$) । (२) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमांहि नथी सुख), ३९३८७(+$) आराधना विचार, मु. देवजी, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवेइ अढारइ स्थानक), ४०७८९-२(#) आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानाचार पोथी पाटी), ४२३०९(#) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), ३९८३०(+#) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), प्रतहीन. (३) वांदणा विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ४२९१७-१ (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४११४०-१(#) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ३९८१३(+), ३९५५७-४(-) (३) शक्रस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं नमो), ३९८१३(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ४०४७२-७(+-#), ४१४१४-६(+#),
४२८२९-१(+#), ३९२१०-८, ४२६३०-२, ४१३०२-२(#) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ४२८२९-१(+#) (२) १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (घोडानी परि एकई पगि), ४२११०-२ (२) आवश्यकसूत्र-(प्रा.+मा.गु.)लोंकागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं
पढम), ४२७४२(+#) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) प्रणिपातसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो), ४०१९९-२ (४) प्रणिपातसूत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षमादिगुणोपेत यति), ४०१९९-२ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी),
४२५४०(+#S), ४०८५२, ४३२८८, ३९०७०(-2) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (गुरु सन्मुख रही विनय), ४०८००-१(+),
४२१८१(+#), ४३२७९(+), ४२१६३(#) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ४०८५५-५(+), ४०८७८-४(+#), ४२५४२-१(#),
४२७०९-१(#), ४२१६५-१(-2) (२) क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यस्याः क्षेत्रं समाश), ४२७५२-३(+#), ४१७५१-३(-) (२) गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिंदिय संवरणो तह), ४३३३७-४(+#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९५ (२) जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा. ७, प+ग., मूपू., (जगचिंतामणी जगनाह), ३९६७५-२(+#$) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ४०१६८(#$) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ३९११५-२(+#), ४२१८९-२(+#), ४२१०३(-) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), प्रतहीन. (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), ३९२४७-२ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ४०२१८-३(+#S), ४२१८९-३(+#$), ४०९३६-५(#),
४२१७३-१(-#$) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ४१४४१-२(+), ४००२५-२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवंदणय), ३९४६३ (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम देवसी पडिकमणो), ३९४६३ (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ४३३४२-२(+), ४१२६३-३, ४२४४९-२,
४१०३४-२(#) (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ४२९५५-३(+#) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ४१९८६ (२) पौषध विधि* संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिई), ४३२२२-४(+#), ४००२५-१७) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ४०४१०-२(+#), ४१४१३(+#), ४२१३७(+), ४३१९०(+#),
४१११९(३), ४२९२६-२(#) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ३९२३२(+), ४०५२२-२(+#), ४३३९३-२(+),
४३४१६(+#$), ४३४०८(#) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ४२५११(+#), ३९३०६(#5) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४२२३८-१(+#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ४२८७६-१(+#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्क), ३९११२(+$), ४०१०२-१(+#$),
४०५२२-१(+#), ४०६४२(+#), ४१६३५(+), ४००२४, ४१०७६(#$), ४२३८५(#) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावशु), ४०३५७-२(#) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. रुपविजय, मागु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (कर पडिक्कमणुंभावY, ४२८४९(+#),
४२५७४, ४२६७५-२(#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४०२९५-३(+#), ४२५६३-५(+#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ३९५८७(#$) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतनइ नमस्कार), ३९५८७(#$) (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिट्ठी), ३९५९९-१(+), ४०८५९ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानु), ३९५९९-१(+), ४०८५९ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ३९४००(+), ३९५४४(+#), ३९६३६-१(+#), ४०७५१-३+#),
४१०९२(+#), ४१४५०(+#), ४१४९०(+#), ४२०६६(+#), ४२११७-१(+#), ४२३१०(+#), ४२४५०(+#), ४२५०१(+#), ४२५८२-१(+), ४२६०९(+#), ३९३२६, ४१५२१-१, ४११२१(#), ४२३४२-१(#), ४२५४५(#), ४२६७३-5(4), ३९२३८(s),
३९४१७($), ३९९८४-#), ४००८१-१(-) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ४१०९२(+#s), ४२०६६(+#). ४२६०९(+#) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे संक्षेपे पचखाण), ४११७६(१) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ३९६३६-६(+#), ४१७९८-३(+),
४२११७-२(+#), ४२५८२-२(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदल), ४२०२९-२, ३९८१७-२(#) (३) महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिणंदस्य मुखपद्म), ३९८१७-२(#) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ४२२४९-१(+#), ४३२२२-५(+#),
४११५८-२, ४३२२७-१(#), ४१९०७() (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ४१३५३(+#), ३९३०७-१, ४२०२९-१, ४२४४४,
४३३४४, ४०४१८-१(#), ४३२६२-२(-2) (४) भरहेसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवपुत्र भरत), ४१३५३(+#) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ३९९३५-१(+#), ४२०२२(+), ४२७१४-१(+#), ३९२१९,
४१६९९-३, ४०८०२(#), ४१३२३(#), ४२८५९-१(#), ४३१४६(#), ३९२५८(-६) (३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइअवयजुत्तो जाव), ४२२१७-२(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ४०६५६(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ३९४८४(#s), ४२९४८-#) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), ३९४८४(#$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) श्रावकदेवसीप्रतिक्रमण विधि-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (एक नवकार गणी), ४०७३९(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ४३३३७-५(+#) (३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दसणम्मिअ), ३९९८९-१(+#), ४०५४३(-2) (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमिदंसणंमि०), ४०९६१-१(+#), ४३४००(+#),
३९०९४(६), ४३१९४(६) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीर), ३९७६०-१(+#),
४१४१५-२(+), ४२१६५-४(-2) (३) संसारदावानल स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (वीरं वर्द्धमानस्वामि), ३९७६०-१(+#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ४१२८७ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४१४६१-२(+#$), ४२९५२-३(+#),
४२९५३-३(+) (३) पाक्षिकसूत्र-विषमपद विवरण, सं., पद्य, मूपू., (पाक्षिकविषमपदविवरण), ४१५६५-१(+#$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ४००५७(+#), ४०९२७(+), ४१०९४-२(+),
४२९७२ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ३९५३२(+#), ४०२३२(+-), ४२६५४(+#),
४२६५९(+), ४२९५२-१(+#), ४३४४७(+), ३९३६९-१, ३९७४०(#), ४३२६३(#) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ४१०९४-१(+s), ३९१२५(#$) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ३९९८९-२(+#), ३९०६७-२, ४२४४९-३,
४०९४५-५(-2) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शयन क० शय्या), ३९२६८-२(+#) (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ३९२९३(+$), ३९५४६-१(-2),
३९६४२(+#), ३९६६२(+#), ३९९१२(+#), ४२९५३-१(+), ४३१९६(+#), ४३३४२-१(+), ४२५७१, ४०५९९(#), ४१०३४-१(#),
४२६०५(#), ३९३४३($) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), प्रतहीन.
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९७ (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लुरण), ४३१४७-२(+#), ३९९१४-१(#), ४२८८८-२(4) (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भुवनत्रयस्वामी पाश), ४२८८८-२(#) (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यारि जे कषायरूप जे), ३९९१४-१(#) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), ३९२९८(+) (२) सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ४००३२-१(#) इतरग्रंथ (धर्मेतर), मा.गु.,सं., प+ग., (--), ४१६४७-२(#), ४१७५८-६(#) (२) इतरग्रंथ (धर्मेतर)-अनुवाद, मा.गु., गद्य, (--), ४१६४७-२(#) इंद्रऋद्धिवर्णनगाथा-आवश्यकचूर्णिगत, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (चउसट्ठि करि सहस्सा), ४२०२०-२(+) ईर्यापथिकी कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (पणमिअसिरिवीरजिणं), ४२९१२(+), ३९९७१ (२) ईर्यापथिकी कुलकन्टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमिय कहतां प्रणाम), ४२९१२(+) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ३९४४०(+), ४०९३२-१(#),
४१२८९(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीर विमल केवल
धणीजी), ४१५६२(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त
धरीजी), ४०१८८-१(+#), ४२४७३(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीय समाणी वाणी वरस), ३९४३६(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. रामविजय, मा.गु., अ. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीजंबुमुनि विनव्या), ४२२२१-३(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथासूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कूलवालूकी अछिनीतपर), ४२२५५ उदयिकतिथि विचार-भगवतीसूत्रोक्त, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (से केणटेणं भंते), ३९५८८-१(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), प्रतहीन. (२) उपदेशमाला-उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ४२६९९(+#) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), ३९२९९(+), ४०९४६(+-), ४०३४७(#) (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चउवीसमु), ४०९४६(+-#) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ३९२९९(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकारर्नु), ३९५२०-१(+$), ४२०८७ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसे पोषध), ३९५८८-२(+), ४०९२८(#) उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (शुभमुर्हते पूर्व), ४२७३१(#) उपसर्गगण, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (प्रपरापसमन्ववनिर्दुर), ४१२८६(-2) (२) उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, म्पू., (अयं उपसर्गगणः प्राक), ४१२८६(-2) उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण० मुहप० खमा०), ४१०४२(+#5) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं० ॐ), ३९५००(+-#), ४१३८७-३(+),
४१३८८-३(+), ३९९७८, ४१३७४(#), ४१९२९(-2) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं० ॐ), ४१३८७-२(+), ४१३८८-२(+),
४३२२५(+-#), ४२१११-१(#) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ४२०४९-३(+#), ४२०६८-२(+),
४२५३४-२(+#s), ३९५५७-२() (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा५ की भंडारगाथा*, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (तुह दंसणेण सामिय), ३९८८४-३(+),
४२१७७-२(+#), ४२२८३-३(+#), ४२८७६-४(+#), ४३२१९-२(+) (३) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम शुभ मास लीजे), ४२१७७-२(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू. ( उवसग्गहरं पास पास०), ४०६२६-३(+), ४१३८७-४(+), ४१३८८-४(+), ४२१७७-१ (+#), ४३४१२-२ (+#), ३९६१९-१, ४१२५३-१, ३९१४२ (#), ४३०१०-१ (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ३९०५२ (+), ३९११८-१(+), ४१११०/००), ४१५५६ (००) ४२३४५-१(००) ४२४०९-१(+), ४२५०० (+), ४२८६२ (+), ४३२०७(+०१, ४३३२३(+), ३९३४५-१, ४०५२४(०) ४२२८१(०) ३९०८१३) ४२४५६-१(३)
(२) ऋषिमंडल स्तोत्र -यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमीशं), ३९८०४(+) एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (विश्वाभिधानकोशानि), ४१०७७(+#), ४२३४४(+#) एकादिसंख्या नाममाला, सं., श्लो. ३०, पद्य, थे, (आदित्यमेरुचंद्रात्म), ४०६७४(१)
3
औपपातिकसूत्र, प्रा. सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, भूपू (तेणं कालेनं० चंपा०), ३९४१४(5)
७
औषधवैद्यक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ३९६९१-३ (+), ४१८३६-४ (+#), ४१९५७-२(+), ४२७१३-२(+#),
४३२३९-२(+४), ४१८३१-१, ४०५५४-३०) ४२२१०-१(०), ४३३६७-४११
औषध संग्रह *. सं., गद्य (--), ४१३९७-२(*), ४२१५३-५ (+), ४०७८१-२०१
कथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ४१३७५ (+#$), ४१२७४, ४१३५४-१
कर्पूर चक्र, सं., लो. ३०, पद्य, जै. ? (अथ कर्पूरचक्रेण), ४२२४२ (४)
3
"3
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ६०, वि. १३वी २४वी, पद्य, भूपू (सिरिवीरजिणं वंदिय), ३९३८६-१(+), ३९४०३(+)
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं. ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., ( श्रियाष्टप्रातिहार्य), ३९४०३(+)
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ३४, वि. १३वी १४वी, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ३९३८६-२(+), ४३३३१(+), ३९४१२-१(०६)
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्याख. ९. ग्रं. १२१६, गद्य, म्पू., (तेणं कालेनं० समणे), ३९०७२-१(०४), ३९१३० (+०७), ४०८१५), ४२५२९(5)
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, भूपू ( नमो अरिहंताणं), ४०८९५०), ४२५२९ (७६)
,
+
(२) कल्पसूत्र व्याख्यान, सं., गद्य, भूपू (प्रणम्य प्रणताशेषा) ३९४४७-phool
(२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा सं., मा.गु गद्य, भूपू (प्रणम्य प्रणताशेषं), ३९४४३-१(+)
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(२) कल्पसूत्र - ( मा.गु. +सं. + प्रा. ) पीठिका, संबद्ध, मु. कनकसुंदर, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (सर्वसिद्धिकरी देवीं), ३९६९८-१(+) (२) कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेक, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया), ४२४१०(+#),
४३३४० (+#), ४२०३५, ३९४९२, ४३३१६ (#$)
(२) कल्पसूत्र -पीठिका, संबद्ध, प्रा. गा. १६, पद्य, भूपू.. (देवाणं जिणदेवो), ४३४५६ (+)
"
(३) कल्पसूत्र -पीठिका का स्वार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (सर्वदेवमांहे श्रीवित), ४३४५६ (४)
"
(अर्हन्मूलः सुधर्मादि), ३९०७२-२ (+)
(२) कल्पसूत्र -स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं
. ४४, वि. १वी, पद्य, म्पू (कल्याणमंदिरमुदार) ३९०७८(+४०), ३९३५६ (+), ३९३६२ (-१), ३९४९३(+), ३९६६५ (+), ३९७३२+४), ३९७८५ (+), ३९९१०-१(+४), ४०५००-१(+), ४०५४६(१४), ४०६०६(५०), ४१३५५ (+), ४२२२० (+), ४२२३८-३(३) ४२७०५ (+४), ४२९९८(०), ४३०६६ (+०७), ३९५३६, ३९४१६ (5)
(२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ३९७३२ (+#)
(२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, भूपू., (अहं श्रीसिद्धसेन), ३९४९३(+)
(२) कल्याणमंदिर स्तोत्र -बार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ३९४१६ (३)
,
(२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ३९६०९-१(+), ३९८२४-१(००)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९९ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ४१४९८(+#), ४२२५१(+),
४२७२६(2) (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ४२२५१(+) कार्तिकपूर्णिमा व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धोविज्जायचक्की), ४१६५०(+#S) कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (योगकालिक अने उत्कालि), ४०६५३-१, ४०८७२ कालज्ञान, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमज्जिन), ४१४६३(+#) कालज्ञान आम्नायसहित, सं., प+ग., म्पू., (दीपोत्सवस्य कृष्ण), ३९९९०(१), ४२६८६-२(#) कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ३९६४४-१(+#) कालमांडलादियोग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ मोटा जोग वहे तेने), ४१२००(+), ४१४२७(+#), ४३१५०(+#), ४१२५१ कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा.७४, पद्य, मूपू., (देविंदणयं विजाणंद), ४३१६६-१(+#$), ४०८१९-१(#) (२) कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवेंद्रनतं), ४०८१९-१(१) क्षुद्रोपद्रवकाउसग्ग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउं क्षुद्रोपद्रव), ३९८६९-२(+) क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अमृतरीजी पाखी पडिकमण), ४००३७-४(#) क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्ता सिरिवीर), ४२७१९-१(+#) (२) क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्ता० सुगमा नवर), ४२७१९-१(+#) गणधरावली कुलक, अप., गा. १३, पद्य, मूपू., (उट्ठवि सयणह पणमीयए), ४०००२-२(#) गणपति अष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (द्वे भार्ये सिद्धि), ३९७९२-१(+) गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, सं., गद्य, मूपू., (अत्राह कोपि शिवशासनी), ४१५५१-१(+#) गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वद्धमाणं), ४२९२२(+) (२) गांगेयभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्तु इति), ४२९२२(+$) गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., (कज्जल विज्जल गुंद), ४०१८३-२(+), ४३४०६-२, ४०६८४-३(#) गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ४१३४१-२(+#) गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत), ३९७०९(+#), ४०८९७(#) (२) गायत्री मंत्र-व्याख्या , उपा. शुभतिलक, सं., गद्य, मूपू., वै., (चिदात्मदर्शसंक्रांत), ३९७०९(+#), ४०८९७(#) गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (सयल कल्लाण निलय), ३९९२९ गुरुपादुका प्रतिष्ठाविधि, सं., गद्य, मूपू., (तत्र रात्रिजागरणं), ४२३६४(+#) गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ४०६९७-२(+), ४१४६१-५(+#), ४२४४९-४ गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (गोचरीथी आवीने पात्रा), ४२६३४-१(+#) गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १देसिअ २), ३९२६८-१(+#s), ३९८२९-२(+#), ४०४१३(+), ४२९६३-२(+#),
४०९८३, ४२८१४, ४०४९७(#), ४२६०२(2) (२) गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आधाकर्मी ते कहीई), ३९२६८-१(+#$), ४०९८३ (२) गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), ४०४१३(+), ४२९६३-२(+#), ४२८१४, ४०४९७(#),
४२६०२(#) गोत्रोत्पत्ति समय विचार, सं., गद्य, मूपू., (बापणा नाहटा गोत्रे), ४२१९१(+#) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ३९१४४(+), ३९१९८-१(+#), ३९९३८(+#), ४०९८६(+#),
४१३२०(+), ४१३४९(+#), ४२०१६(+), ४१०६७-१(#S) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (लुब्धा लोभिष्ठा), ३९१४४(+) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ३९१९८-१(+#), ३९९३८(+#), ४०९८६(+#), ४१३२०(+),
४१३४९(+#) गौतमपृच्छा , प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ३९६१२-१(#$)
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יי
५००
(२) गौतमपृच्छा -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ३९६१२-१(#$) गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं. लो. ११, पद्य, भूपू (स्वर्णाष्टाग्रसहस्र), ४३२६० (+) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू. (श्रीइंद्रभूतिं), ४२७८२-४१ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., सं., गा. ५, पद्य, मूपू. (अंगुठे अमृत वसे लब्ध), ४२५३४-९ (५०)
',
गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं. लो. १०, पद्य, मूपू (इंद्रभूतिं वसुभूति) ३९३३१-१(+), ३९८९६-१(+), ४०२१८-१(+),
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
४९१९४-१(१), ४२५५५-१(क)
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ३९८१५-१(+), ४१५५८-२ (+#), ४२००५ (+#),
४२५१४-१(००), ३९८५७-२०००, ४००४१०० ३९९६१-१, ४२४१४-३)
घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (ॐ घंटाकर्णो महावीर), ३९४३८-२(+), ४०६२६-२ (+), ४१३७३-१(+०),
४२३४५-२(१०), ४३०५९-३(५०), ३९५८५-४, ४०९४८-३(१), ४१४९२-३()
चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (अत्यद्भुतं सज्जन), ४०२२३-२(१)
चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू. (ॐ चंद्रप्रभः), ४०६२६-१ (+), ४१३८४-३(+)
चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ३९९३२ (+), ४१९८२-१ (+), ४२३६० (+#), ४३०२३(+#), ४२७४६ (-#)
(२) चतु: शरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (चतुःशरणविषमपदविवरण), ४९११३ (+)
(२) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ० ), ३९१२४(+$)
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चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ३९१२४ ( +$), ३९८२९-१(+#), ४३४३४(*), ४३२५६.१०)
चरणसत्तरी करणसत्तरी गाथा, प्रा. गा. २, पद्य, भूपू. (एवय समणधम्म १० संजम), ३९५२४-२ (+)
,
(२) चरणसत्तरी -करणसत्तरी गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (पहिलुं बोल वय पंचमहा), ३९५२४-२(+) चातुर्मासिकत्रच व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं. ग्रं. ४०१, गद्य, भूपू. (स्मारं स्मारं स्फुरद), ४३१५३(०३)
""
चार मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ४१२१२-२ ($)
चिंतामणियंत्र आम्नाय सं., गद्य, भूपू (प्रथमं श्रीपार्थ), ४२१७२-६(+)
,
"
चित्रामण शुकनावली, सं., श्लो. १०८, पद्य, थे. (श्रीसर्वज्ञनी मूर्ति), ४२५७७ (+)
चैत्य पद्धति, सं., प+ग, मृपू (श्रीमदर्हजिनं), ४१६८९(+)
चैत्यवंदन भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू. (वंदितु बंदणिज्जे), ४३१६७(+), ३९१२९ (३) (२) चैत्यवंदनभाष्य चालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, भूपू (ऐंद्रश्रेणिनुतं). ३९१२९(३) चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (उस्सप्पिणीहि पढमं), ४२५०८-२(#) चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा. रा. सं., गद्य, भूपू (प्रथम गोवररी गुंडली), ३९७७६ (०)
""
""
जंकिंचि सूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (जं किंचि नामतित्यं), ३९६७५-३०) ३९५५७-३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष ७, पं. ४१४६, गद्य, भूपू ( नमो अरिहंताणं० तेण), प्रतहीन,
७
,
(२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे - भरत चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., ( तेणं से भरहे राया), ४१७३१
जंबूस्वामी चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन.
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(२) जंबूस्वामी चरित्र चयनित संक्षेप कथा संग्रह, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पुरुष ते जीव १ अटवी), ३९३१६-२(+$)
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ३९१६८(+$), ३९८०७(+#), ३९८२६-१(+#$), ४०२१० (+#), ३९९१३, ३९६५६ (#)
जलयात्रा विधि, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (जलयात्रा योग्य उपगरण), ४१४५६ (+०), ४२३५१(१०), ४९५२६ जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), ३९७८६
जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., श्लो. ९ वि. १४बी, पद्य, मूपू (सुखं सर्वा संपवसति), ३९८०९, ४००७५-२ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु. सं., पग, मूपू., (सकलगुणगरिष्ठान), ४२१००-१, ४०४५७ - शा
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५०१
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमाम्यहं श्रीजिनदत्त), ३९८३१(#) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ३९१६०(+), ४०७६५(+), ४१६१४-१(+#),
४१७२७-१(+-), ४२१८८(+), ४२७९७-१(+#), ३९३०५-२, ३९७५८, ४२५८६(#), ४३११५(#), ४३१२२-२(#), ३९११४-३(s),
४१४९२-१(-) जिनपंजर स्तोत्र-लुंकागच्छीय, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. २९, पद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्हतो), ४१५५३(#) जिनप्रतिमापरिकर विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (तत्थणं देवच्छंदए चउ), ४०९९७-२(#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ३९६६६(+#), ४१४९४(+#) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), ४३२२०(+#) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मां १ क्रीडा), ४३२२०(+#) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ३९११४-१, ४१३३०-१, ४१४९२-२) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान्), ४१३८४-२(+) जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नमस्त्रिलोकनाथाय), ४२५४७(+#) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), ३९५६१-३(+#), ४२९८५-२(+), ४३२७७-२(+#),
३९७१६-२, ४२२३०-५(#), ४२८८८-१(#), ४३०८१-१(#) (२) जिनस्तुत्यादि संग्रह-व्याख्या , सं., गद्य, मूपू., (--), ४२८८८-१(१) जिनेश्वर आराधना विधि-ग्रहपीडायां, सं., गद्य, मूपू., (रविपीडायां रक्तपुष्प), ४२५१४-२(+#) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ३९३४९(+#), ३९४५०(+),
४०८२२(+#), ४०९५७(+), ४२९५६(+#), ४३४३५(+#), ३९२५१(#), ४२९४१-१(#), ३९१५४(६), ३९१९६(), ३९३९३(5) (२) जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं किंचिदपिजीव), ४०८२२(+#) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषे), ४३४३५(+#), ३९१९६(६), ३९३९३() जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सुहुमो य होइ कालो), ३९७२७-२(+#) जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जीवो अणाइनिहणो), ४३४१९-१(+) जैन कथा-वार्ता चरित्रादि, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), ४२०५२(१) जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे., (उस्सासट्ठारमे भागे), ४०५७७-२(+-#), ४०६०३-२(+#), ४०६१६-२(+#), ४०८१४-३(+#), ४१०७८-२(+#),
४१४८९-२(+5), ४१८५४-२(+#), ४१८५४-३(+#), ४१९८०-१(+), ४२४०५-४(+#), ४२६०४-१(+#), ४२८७६-७(+#), ४३०२६-३(+), ४३३४२-३(+), ४३४१९-२(+), ३९७०७-२, ४१२५३-२, ३९३३३-२(#), ३९७०३(#), ४००३२-५(#),
४१०१७-२(#), ४१२१९-२(#), ४१७५९-२(2) (२) जैन गाथा की टीका, सं., गद्य, श्वे., (--), ४०६१६-२(+#) (२) जैन गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पचास आंगुल लांबो), ४१८५४-३(+#), ४१९८०-१(+) (२) जैन गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (३ दिसिठि ४ दर्शन), ४१०७८-२(+#), ४२६०४-१(+#)
जैन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), ३९३१७-१(+), ३९४४३-२(+S), ३९४५९-२(+#), ४१७२५(+), ४२५३४-४(+#) (२) जैन गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ४१७२५(+) जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ३९६९८-२(+), ४००९४-२(+#), ४१३९१-२(+#),
४१४१२-२(+#), ४२९१७-४ जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ४०३७२-३(+-#), ४०६४५-२(+#), ४०८२५-२(+), ४२३७५-५(+),
४२४१७-३(+#), ३९८९५-२, ४१०३५-१, ४२१३६, ४०३५८-३(#), ४०५०७-३(#), ४१०८२-२(#), ४१९११-२(#) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ३९५८९-१(+) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ३९५४२-२ जैनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उतरासण नांखी चावलदान), ४२११७-३(+#), ४२१५३-२(+#), ४२१५७(+#),
४२६९१-२(+#), ४२५५२(#), ४२५७०-२(#), ४१३११(६)
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५०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० जैन श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (बाह्यः परिग्रहविधि), ३९५९९-३(+), ४१९५७-३(+), ४१९६६-३(+), ४२५२२-२(+#), ४१९६९-३,
३९७५४-४(#), ३९९३३-३(#), ४१६८०-३(-2) जैन संध्या, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., गद्य, मप., (जिनं जिनं जिनं वाक), ३९२१३(+) जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ३९८७२-१(+), ४०४१०-३(+#), ४०४३१-३(+#), ४११९५-१(+#$),
४१४६४-१२(+#), ४१६९८-२(+), ४१९५३-४(+), ४२०२१(+), ४२०७१-३(+#), ४२२१३-२(+#$), ४२५२३(+#$), ४२५८२-३(+), ४२७६२(+#), ४२८७०-२(+#), ४३०५२(+#), ४३०६८-२(+#), ४३१०३-१(+#), ४३२२२-२(+#), ३९१४८-२, ४०००७, ४१६२२-२, ४१८३५, ४१८६८, ४१९७८-२, ४२०११, ४००३२-३(#), ४१६५२-२(#5), ४२३५२-३(#),
४२४०१(#$), ४२५४१(#), ४२८८८-३(#), ३९८६३(), ४१६९९-१(६) (२) जैन सामान्यकृति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ४२३५२-३(#) जैनेतर सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (--), ३९८०८-२(+), ४३२२२-१(+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), ३९६९३(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-द्रोपदीसंहरणसंबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (एकदा श्रीहस्तिनापुरे), ४०८२६(+#) ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम खमा० इरि), ४२६०६ ज्ञानपंचमीपर्व कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वदेवं नमस्कृत्), ४१०९१(+#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पवित्र), ४११९९-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ३९३६४-२(+#), ४१८६२-२(-) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ३९२७५-२(+), ३९८८४-१(+), ४०८५५-३(+), ४१३४३-४(+),
४१४१५-१(+), ४२९१४-२(+#$), ४३००४-२(+#), ३९२७७, ३९४३९, ४१७०९-३, ४२६३०-१, ४३३५५-१, ४०८४१-२(#),
४२७८२-५(#), ४२७९५-१(#), ४१४१७(-#), ४२१६५-३(-2) ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (येषां न विद्या न तपो), ३९२५२ (२) ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहमांही विद्या नही), ३९२५२ ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), ४२९०८(+$) (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ४२९०८(+$) ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., (--), ४००९४-३(+#$), ४१०७८-३(+#), ४१४६४-१(+#), ४३०९४-१(+#), ४३१९२-३(+#),
३९५८५-५, ४०३७९-२, ४१५४१-२, ४१८३१-२, ३९६२८-३(#), ४१७१५-१(#$), ४१९०९-१(), ३९९०९-१(-६),
३९९९७-३(-), ४२१०५-२(-#$) (२) ज्योतिष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, ?, (--), ४००९४-३(+#S) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ४१५५९-३(+#), ४१५२०-३(#), ४२४८८-२(#) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), ४०३१३-२(#) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ४३३०७+#) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ४३२६१(+), ३९०७४-१ तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ३९१६६ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ३९३१९(+), ४१८५९-१(+-#), ४२०४९-५(+#), ४२३२२(+#),
३९७१५-२(#), ४१४८७-२(#), ४२५१७-१(#), ३९१५८(-) तीर्थंकरदानमाहात्म्य गाथा संग्रह, प्रा.,सं., गा. २०, पद्य, मूपू., (लोके दानप्रवृत्यर्थ), ३९६५२-२(+) तीर्थनमस्कार पद्धति, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सिद्धिवधूसिद्धसंगम), ४०३६१-२(+) तीर्थयात्रा विधि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (संघो य संघवइप्पहाणो), ४१२७३-२(+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ३९८७७-२(+), ४०४७२-३+-#), ४१४१४-२(+#), ३९४८२,
४२९९१-१(#), ४३२८०-१(#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०३ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०+परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू.,
(सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ४२८५४(+#$) (२) सकलाहत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान),
३९२८६(+), ३९३१७-२(+), ३९५२९-२(+#), ३९६७०-१(+-), ४०८३१-१(+#), ४०९८१-१(+#), ४२२९८(+), ४२७५२-१(+#), ३९३४५-२, ४०८२३, ४११६०-१, ४२९३०, ४३३९६, ३९३८३(#), ४२४६३(#), ४३२४३(#), ३९३५३-१(-१), ४१६१८(-#),
४१६८८-१(-#$), ४२५८५ (-2) (३) सकलार्हत स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ४०८३१-१(+#) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीसजिणे तस्स), ३९२०२(+$), ३९५४५(+#),
३९५५८(+), ४१०७८-१(+#), ४१३७८(+#), ४२५४३-१(+#), ४०९४२-१(#S), ४३२५६-२(#), ४०७१५(-#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ४१०७८-१(+#) (२) दंडक प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३९२९२(+#$) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ४००७१-१+#),
४१४६१-१(+#), ४२६९०-१(+#), ४२४४९-१, ३९२५६-१(#), ४२०८३(#), ३९२२०(), ४१५६४-(-2) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ४२६२३(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा.५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ),
४३०८१-२(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ६ की सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गणधर धरम इम उपदेशे),
४०१०६-१(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो),
४२३७५-४+), ४२३८२(+#), ४२६७४(+#s), ४११८६-१, ४०९३६-४(#), ४१२८५(#$), ४१५०४(#$) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ४३०५६(#) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रजसारो), ३९५९५-१ दिनशुद्धिदीपिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १४४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जोईमयं जोइगुरुं वीरं), ४१४९५(+#) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ३९६९४(+#), ४२५९५(+#), ४२९७९(+), ४३४१४(+), ४१२०१,
४१४२२(#$), ४२२८६(#), ४३४१७(#), ३९१३८(-2) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (योग्य पुरुष स्त्री), ४१२७८(+#) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गा. १३७, प+ग., मूपू., (उप्पायविगमधुवमयमसेस), ३९६५१(+#) दुःखप्रतिकारविज्ञप्ति स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (आनंदं यः परं प्राप), ३९४३५ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीर मोहपंको), ३९५२६ दुर्गा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (या अंबा मधुकैटभप्रमथ), ३९२३०-२ दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, ?, (--), ३९११६-५(+$), ३९२२५-२(+), ३९६७०-२(+-), ३९७५५-२(+#), ३९८२५-१(+#),
४०४१०-४(+#), ४०८०७-५(+), ४०९४९-३(+#), ४११११-२(+#), ४१४१४-८(+#), ४२९३६-२(+#), ४२९७६-२(+$), ४३१५२-२(+#), ४३२२२-६(+#), ३९२५३-२, ४०४३८-५, ४२०८१-२, ४३१३५-२, ३९५७२-२(#), ३९६१२-६(#),
३९७३६-२(#), ३९८१६-४(#), ४०६९८-३(#), ४०९९८-२(#), ४१८०६-८(#), ४२१९२-२(#), ४२५८४-३(#) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ३९२९६(+#$), ३९५४६-२(+-#), ४०८४३(+), ४२२३८-२(+#),
४३२४१-२(+#), ३९६४५-२(#) देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ३९६१० द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ४११५६(+#$),
४१५१७(+#$) (२) द्रव्य संग्रह बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (अहं कहिय मजुहो), ४११५६(+#$)
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५०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० धर्मलाभ श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (लक्ष्मीर्वेश्मनि), ४१५४६-२(+-#) नंदावर्त आलेखनादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कर्पूरकुंकुमसंमिश्र), ४२३९०(+#), ४२९५८(+) नंदीकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० मुहपत्ति पडिलेह), ३९५२०-२(+) नंदी विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्ह० अहस्तनोतु), ३९७८२(+) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लसद्द्विपंचाशदधीश्वर), ४२८८२-८(+#) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), प्रतहीन. (२) नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३९३७७(+), ४३१०५, ४२२९७-१(#) (३) नंदीसूत्र-मंगल गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (विषय कषायना जीपणहारा), ४३१०५ (२) नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ४२९५३-४+) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३९२७४(+S),
४०७२०(+#), ४१४६२(#), ४२२४४(#) (३) नंदीसूत्र-स्थविरावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जय० विषय विकारादिकने), ३९२७४(+$) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ३९७२८(+#), ४१४७९-३+#), ४२५३४-१(+#), ३९६०६-१,
४०८१३, ४०९९३, ३९६१२-३(#$), ४००३०-१(#), ४०७५५(#), ४१५६४-१(-2), ४३०९१(-१) । (२) नमस्कार महामंत्र-पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार), ४३०९१(-2) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ३९७२८(+#), ४०७५५(#) (२) नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो क० नमस्कार हूवो), ३९६०६-१, ४०९९३ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), ३९४०१(+), ३९४६७(+), ३९८२६-४(+#s),
३९१२६, ४१२१५ नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), ३९२६४(+$) नवग्रह मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौँ), ३९८१५-२(+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ३९४४९(+), ३९७२६(+), ४१३१४(+#), ४२१५१(+#),
४२२८०(+#), ४२८७१(+), ४०८५७, ४३११३(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), ४१३१४(+#) नवपद ओलीखमासमण, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (स्वर्णसिंहासनस्थिताय), ४३०४१(+#) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाण), ३९१४५(s) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ४३३४९-१(+#) नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ३९१६९(६) नेमिजिन स्तव, आ. विजयसेनसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिर्मुदमुज्जय), ४३२३५(+#) नेमिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दुरितभयनिवारं मोह), ४३४४३-२ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कमलवल्लपनं तव राजते), ३९४३७-३(+) पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (गरीयो गुण श्रेण्यरीण), ३९१०६() पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ४११९९-२(+),४१२४१(+) पंचास्तिकाय, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. १७३, पद्य, दि., (इंदसदवंदियाणं तिहुवण), प्रतहीन. (२) पंचास्तिकाय-तात्पर्यवृत्ति, आ. जयसेन, सं., अधि. ३, ई. ११वी, गद्य, दि., (स्वसंवेदनसिद्धाय जिन), ३९४८७(+$) पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० इरिया० पडिक्कमी), ४३३९३-१(+) पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीमहावीर), ४१६२६(#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविध), ४३३६८, ४१९९६(#$) पट्टावली तपागच्छीय, सं., श्लो. ३५, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीवर्द्धमान), ३९३३६(#$)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (पडिलेहणाविसेसं), ३९०९१(+), ३९५९९-२(+), ४०७१७-१(#), ४२००१-१(०)
(२) पडिलेहण कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू (प्रतिलेखनाना विशेष), ३९५९९-२(१), ४०७१७-१४) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ४२९५९-२ (+), ३९५४२-१
पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु., सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ कलिकुंडदंड), ४१३५१-१(+#), ४१४५८(+#), ४१२६५-२(#), ४३१८९-२(०३), ४३४५५०५१
पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू (श्रीमङ्गीर्वाणचक्र), ४०४४२ (+), ४३१३६ (४७)
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं. श्री. ४१, प+ग, भूपू (ॐ अस्य श्रीमंत्रराज), ३९२३०-१
"
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रीमच्चडोग्रदंडे), ४१८९०(+)
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं. श्री. १८, पद्य, भूपू (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ४१०१६
पद्मावतीदेवी स्तोत्र सवीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (35ॐ ॐकार बीजे), ४२५२४(+), ४००६९) परमात्मषट्त्रिंशिका, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (सत्त्वेषु मैत्री गुण), ४३२५९-२ (+#)
परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., सं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूपं), ४३२१२(+#)
परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि सं., श्लो. २५. वि. १८वी, पद्य, मृपू., (परमानंदसंपन्न), ३९२५९(+), ४२५३९(-१),
४३०२५-२(+), ३९४९६
(२) परमानंद स्तोत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्माने नमस्कार), ३९४९६
पर्वताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मृपू., (नमिउण भणइ एवं भवनं), ३९६२९(१) ३९२१८
(२) पर्यंताराधना - टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरनइ नमस्कार), ३९६२९(+#)
(२) पर्वताराधना टवार्थ *, मा.गु., गद्य, भूपू (नमस्कार करिने), ३९२१८(5)
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पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन * सं., गद्य, वे (पासे नामेति भ्रातराव), ४२८९७)
,
"
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (भो भो भव्यजनाः सदा) ३९४११-२
पर्वतिथि विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरान्नवशत), ४१४८०(+#)
पर्वतिथि वृद्धिहानि प्रश्नोत्तर, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (इंद्रवृंदनतं नत्वा), ४१३६१ (+)
पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( स्नातस्याप्रतिमस्य), ३९२७५-४(+$), ३९८८४-२(+), ४०८५५-६(+), ४२९१४-१(+०), ३९३६९-२, ४०८८७, ४००७२/०१, ४२७९५-२(४), ४०१२३(४) ४०४४५१, ४१५६३-२(१), ४१६८८-२(१) (२) पाक्षिक स्तुति - अवचूरि, मु. विनयकुशल, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा सरस्वतीं देवीं), ४००७२(#)
(२) पाक्षिक स्तुति -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे भगवंत केहवा छे), ४०८८७
पार्श्वजिन अष्टक, मु. रत्नसिंह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (कल्याणकेलिसदनाय नमो), ३९२९५(१), ४२४५६-२ पार्श्वजिन अष्टक - चिंतामणि, श्राव. मलुकचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., ( श्रियः संततेः कारकं), ४२३१९(#)
पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित सं. श्री. ८, पद्य, भूपू (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ३९८६७(+), ४३१२२-१(१), ४२८४३-१(१)
"
"
(२) पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित - आम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (जिवारे ए स्तवन), ४३१२२-१(ख
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ४००७१-२ (+#), ४०४५३-३ (+#), ४१२८४-२(+),
४२३३९-४(+), ४२५३४-५ (+४) ३९७१६-१, ४१९९४-२(४)
पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, वि. १८२६, पद्य, मूपू (गौडीग्रामे स्तंभने), ४२८८२-३(+)
पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकवद्ध, मु. शिवसुंदर सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू (वरसं वर वर वरस), ४१२७६(+), ४२२७६ (+),
',
४२७००(+#), ४३०२५-१ (+), ४२०५६-१, ३९८१७-१(#), ४२७५६ (#)
(२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), ४१२७६ (+), ४२२७६(+#), ४२७०० (+#),
३९८१७-१(०)
पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका - चिंतामणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं जगद्देवं), ४२१७२-१(+) पार्श्वजिन पूजा - कलिकुंड, सं., पग, भूपू (संसाध्याखिलकल्याणमाल), ३९८९७
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्री पार्श्वः पातु), ३९५०७-१(+), ४०२९७-३(+-#), ४२६६४(+#),
४३११७(+#), ४३३२८(+#), ४१७१८-१, ४३१४९-२(#), ३९०६३-२($) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५४, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ४०९६३(+#) पार्श्वजिन स्तव, श्राव. वेल्हण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति भुजगराजप्राज्य), ३९५०८-४(+#) पार्श्वजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (यो भ्राजसे तांतिरभीर), ४१२७२ पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीनिदानं गुरु), ४२८८२-२(+#) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीवामारमणीय), ३९६७३-२ पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमति यः श्रीगौडी), ४२९१०(+#), ४२९२०-२(#) पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिने), ४२८८२-५(+#), ४०४६१-१(-) पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (स्फुरदेवनागेंद्र), ४२५५३-२(+#), ४२८९९-१(+),
४२६५२ पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (शिवश्रियः केलिविलास), ४२१७२-२(+) पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं विधुमधुसु), ४१२४९-३(+) पार्श्वजिन स्तव-जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्रभुंजीरिकापल्लि), ४१२४९-२(+) पार्श्वजिन स्तव-जीरावला, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (अमेयवामेयचरित्रचित्र), ४०३६१-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (जस्स फणिंद), ४२१७२-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (नमिऊण पासनाहं विसहरव), ४२१७२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू, (तमतमहरण तवण सम छण), ३९३४४-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय गोडीजी महाराज), ४१६८०-१(-2) पार्श्वजिन स्तवन-चतुश्त्रिंशयंत्रगर्भित, मु. धर्मसिंह, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (पणमिय पासजिणगुणमंदिर), ४२०७९(+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., गा. ४४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जीराउलि राउलि कयनिवा), ३९४५८(+) पार्श्वजिन स्तवन नवसारीमंडन, ग. संघमंगल, अप.,मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (नवसारीमंडण पाससामी स), ३९४७०(+) पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो हरउजरं मम हरो), ४२३३९-२(+#) पार्श्वजिन स्तव-लघु, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो.५, पद्य, म्पू., (गुणश्रेणिरत्नावली), ३९९५८-३(१) । पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (समस्तकल्याणनिधानकोश), ३९२३१-१ पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानदयासिंधो), ४२८८२-१(+#), ४३३२७-२(+) पार्श्वजिन स्तव-समसंस्कृत, प्रा.,सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (सदारविंदारसुरासुराली), ४१९०८(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ४०९९४-२(+#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया),
४१६७३(+#), ४३२०१(+#), ३९०७७(#S) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), ४१६७३(+#),
४३२०१(+#) पार्श्वजिन स्तव-स्थंभनतीर्थ नवग्रहगर्भित, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (जीयाजगच्चक्षु), ४०४५३-२(+-#) पार्श्वजिन स्तव-स्वर्णगिरिमंडन, ग. ज्ञानप्रमोद, सं., श्लो. १३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (विमलगुणनिधानं केवल), ४२०६३ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदसद्गुणराजिविराजि), ४२८८२-४(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (निष्ठुरकमठमहासुर), ४०८७८-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पार्बोवताद्यो रद), ४१०१२-३(+#), ४३०२६-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्थोवतात्), ४१०१२-३(+#) (२) पार्श्वजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, पू., (--), ४१०१२-३(+#) पार्श्वजिन स्तुति, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (वन्नंतो पासजिणो), ४२१४९-५(+)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०७ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विश्वस्वामी जीयात्पा), ४०९४५-३(-2) पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (श्रीमंतं सत्यसंध), ४२९२०-३(#$) पार्श्वजिन स्तुति-अष्टविभक्तियुक्त, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पार्श्वः पातु नतांग), ३९६३२-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ४०४९२-१(+#), ४०५६१(+#),
४२१४३-२(+-#), ४२८९९-३(+), ४०३५८-१(#), ४२२२७(#), ४०९४५-४(-2), ४१७०६-२(-) पार्श्वजिन स्तुति-पंचश्लोकी, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (पार्श्वजिनेश्वराय), ४०३६१-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ४१३६३-२(+#), ४१९७२-२ पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ३९४३७-४(+), ४३२०२-३,
४३०७५-३(#) पार्श्वजिन स्तुति-समसंस्कृत, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मायातुंगीनिरासे), ३९७६०-२(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जवेरसागर, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (पार्श्वजिनवर पाच), ४२६११(2) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ३९५०६-२(+#), ४०२०८-१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्रसुरपति), ३९२१४(+#), ४०७७८(+), ४३४१०-१(+#),
४३१०४(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ३९८५७-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (केवललोकितलोकालोक), ४३०२६-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नादाग्रबिंदुतलचंद्र), ४२१४९-४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ३९३५३-२(-2) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदाजिन), ४०४७२-२(+-2) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सरभसनतविद्याधरसुरवर), ३९५१०-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (स्यामावरम विराजतोपि), ४२३३९-१(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), ४१८४७-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (जयति जगति चंद्रः), ४०८५३-१(२) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), ३९९१८-१(+#), ३९२५३-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ३९७३५(+#), ३९७७०-१(+#),
४००७८-१(+#), ४०४६५-१(+#), ४०४७२-१(+-#), ४०६३८(+#), ४१४१४-१(+#), ४२२५६(+#), ४३१३३(+), ४१६४७-१(#) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-टीका, सं., वि. १८९२, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथस्य), ४२२५६(+#) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किमिति वितर्के कर्पू), ३९७३५(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (नमो देवनागेंद्रमंदार), ४०८४९-४(+#), ४११४४-४(+),
४१२८४-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह), ४३१४९-१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य),
४२९५९-३(+), ४२७७३, ४२९६७(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूप., (दोसावहारदक्खो नालिया), ३९३१४(+$) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-मवग्रहगर्भित-टीका, सं., गद्य, मपू., (--), ३९३१४(+$) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (अरिहं थुणामि पास), ४१३८४-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित, मु. इंद्रनंदि, सं., श्लो. ११, पद्य, दि.?, (श्रीमन्नागेंद्ररुद्र), ४२३६२-१(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ४१८२४(१), ४१८७०(-2) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ३९५७०-४(+#s),
३९७६५(+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंदलक्ष्मीघना), ४०६३०(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमहं), ४११७० पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीस्तंभनस्तंभन), ४२१७२-३(+) पार्श्वनाथ चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., स.८, ग्रं. ६४००, वि. १३१२, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), ३९३०४(६) (२) पार्श्वनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ग्रं. १२१४७, वि. १८००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनान्), ३९३०४($) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ४०८८१(+#$) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ४१२६२, ४२८०१(#) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ३९१९८-२(+#), ४०८५६-१(+#), ४१०३६ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ३९१९८-२(+#), ४०८५६-१(+#), ४१०३६ पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ३९४५७(+), ३९१६३(-६) (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ३९१६३(-६) पुण्यसार चरित्र-चारित्राराधनफलविषयक, सं., श्लो. ९४, पद्य, मूपू., (गोपालाचलश्रियाकीर्णे), ३९८९८-१(+#) पूर्णिमागच्छ पट्टावली, मा.गु.,सं., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय), ४०००२-१(#) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ४२२०३(+#), ४३२१५(+) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहत), ३९२७०(+), ४०६६१(+#), ४०८१४-१(+#),
४२६१२(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), प्रतहीन. (२) प्रज्ञापनासूत्र-(प्रा+मा.गु.)कायस्थिति विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इंदिय काए), ४२२१३-१(+#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), ४१७४८(2) (३) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कह्यो देखीयई जाणीयइ), ४१७४८(#5) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु.रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ३९६६९-१(+#) (२) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (बुद्धिप्रकासनइ अर्थे), ३९६६९-१(+#) प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ४२३२८($) प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम जंबूपभवो), ४०८५८(१) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसारविसमसायरभवजल), ४०८४०(#) प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेता एतला), ४२९२९(+), ४३३६४(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ३९३३४(+S) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ३९३३४(+$) प्रश्नाष्टक, श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अनाद्येयं सिद्धि), ४२७८५(+#) (२) प्रश्नाष्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इयं सिद्धि अनाद्य क०), ४२७८५(+#) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ३९६६७(+#), ४०८१६(+#), ४२६६९(+#) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमी करी श्रीमहावीर), ४०८१६(+#), ४२६६९(+#) प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (विसालसुरसहस्सरस्सिए), ३९१२२(#$) प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (-), ४११७२(+#), ४१४४८-१(#) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ नत्वा), प्रतहीन. (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), ३९३०२(+s),
४११८१(#$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ३९१४७, ४०४२३-१(#) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्क), ३९३८६-३(+) बाराक्षरी, सं., गद्य, (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ), ३९३०७-२(६)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी आई आणंद), ४३२८०-२(#S) बिंबपरीक्षा प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (एइयगि लक्खणभाव), ४२९७५ (+#) बीजतिथि स्तुति, मु. पद्म, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सर्वे वासरउत्तम), ४१८६२-१(-) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ३९३६४-१(+#) बीजाक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (ॐकारमनवद्यानां), ३९२४३() । बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण),
४०४१९(+#) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), ४२०३९(#$) बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ३९६२३(+), ४०५९८(+#), ४१५४६-१(+-#), ३९६२५(#),
३९८५७-१(#) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ३९११५-१(+#), ३९३१७-३(+$), ३९७५७(+-#),
४०५८३-१(+#), ४०६४९(+), ४१७११-१(+#), ४१९५६(+), ४२०४१(+#), ४२२३२(+), ४३०५९-१(+#), ४३१३०(+#), ४३४५३(+#), ३९८८२, ४३२४६, ४०५८६-१(२), ४१२१६-२(#$), ४२३६३(#), ४२४७८-१(१), ३९३७५(६), ४०९५३(-2),
४१०९८(-2) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ३९२४५(+#$), ४३४०५(#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सुष्ठ राजते शोभते), ३९२४५(+#$) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ३९९५८-२(#) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ३९२९४-२(+$), ३९५८९-२(+), ३९७७५(+), ४११९८-२(+),
४१२०५(+#), ४१६३६(+#$), ४३२११-१, ३९४१२-२(#$), ३९९९५-२(#), ४३०५७(#), ४३०६९(#), ४३३०३(#), ३९१८८(5) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ३९०६७-१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ३९२६५(+), ३९३५९(+$), ३९४४४(+-),
३९५७५ (+#), ३९६००(+), ३९६३२-१(+#), ४०६०९(+#), ४०६६३(+#), ४०७७५(+), ४१४०९(+#$), ४२०४९-१(+#),
३९५१४(#), ३९६४७(#s), ४१२७७(#), ३९१५६($), ३९२१७(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ३९६३२-१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), ४३०९०(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मन समरु चकेसरी वंछत), ४०३३४-१(#), ४०८०४(#) (२) भक्तामर स्तोत्र-पूजा विधान, संबद्ध, आ. सोमसेन, सं., पद्य, मूपू., दि., (श्रीमद्देवेंद्रवंद्य), ४२९१६-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहणमो), ४०९९९(१), ३९१५६(s) (२) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, सं., यं., मूपू., (--), ३९१५६(६) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), प्रतहीन. (२) ज्ञानीअज्ञानी विचार-भगवतीसूत्रशतक-८ उद्देश-२, संबद्ध, सं., को., मूपू., (--), ४०८३२ (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.+मा.गु.)नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ३९६४३(+) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह * संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ३९६५२-१(+), ३९६५४-१(+), ३९७६२(+s) (२) भगवतीसूत्र-गहुँली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ४१९४५-२ (२) भगवतीसूत्र-भांगा विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ४१७५२-५(६) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ४२३६५(#) (२) भगवतीसूत्र-बीजक, प्रा., पद्य, मूपू., (रायगिहे चलणं दुक्खे), ४२२४५(+#$) भवनदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिगुणयुतानां), ४२७५२-२(+#), ४१७५१-२(-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ३९६०८(+#$) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), ४२५१०(+#s) भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., परि. १०, श्लो. ४००, पद्य, दि., (कमठोपसर्गदलन), ३९२२८(+5), ३९५०७-३(+) भैरवाष्टक, मु. अभयराज, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू., (वंदेहं भैरवं देवं), ४०६८४-४(१) भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खट्वांगहस्तं), ४१९६३-२(#) मंगल स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), ३९९५८-१(2) मंगलाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमन्नम्रसुरासुर), ३९९१८-२(+#), ४०४६१-२(.) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ३९९२७-२(+), ४०३०१-१(+#),
४०५१७-२(+#), ४०८३१-२(+#), ४१३४३-२(+), ४१८३६-३(+#), ४१८५९-२(+#), ४१८६९-१(+#), ४२१४९-६(+), ४२३६२-२(+#), ४२४०९-२(+), ४२४९५-२(+#), ४२५५३-३(+#), ४२५६३-२(+#), ४२७९७-२(+#), ४३४१२-३(+#), ४००७५-३, ४१२९८-२, ४१३३०-२, ४१७१८-२, ४२६२५-१, ४३२०९-२, ३९०७१-२(#), ३९८१४-३(#), ४०३०९-१(#),
४०८५३-२(#), ४१६४३-१(३), ४२४८८-३(#), ४२६८६-१(#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), ४१२७३-१(+६), ४१३८७-१(+), ४१३८८-१(+), ४१८३४-३(+),
४१९८२-२(+), ४२१७७-३(+#), ४२१९३(+#$), ४२२८३-१(+#), ४२३३९-५(+#), ४२८९९-२(+), ४१२४०-२, ४१९९८-२, ४२८००-१, ४०८२१-५(#), ४०९४८-२(#), ४१०६७-२(#), ४१९६३-१(#), ४२४७८-२(#), ४२७२५-१(#), ४२७३६-२(2),
४२७९५-३(#), ४३०६७-१(#), ४३०१०-२(-#) मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (मंत्राधिराजाक्षरवर्ण), ४२१४९-३(+) मणि कल्प, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ६१, पद्य, स्पू., (अथो वक्ष्ये मणेः), ४१६१३-१(+-#) मनुष्यतिर्यंचायुविचार गाथा, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (कंचणगिरि पव्वएसु), ३९५९१(#) (२) मनुष्यतिर्यंचायुविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कंचणगिरि पर्वतने), ३९५९१(#) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ४३००१-२(2) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (प्रशांत दर्शनं यस्य), ४१३८२(+), ३९३१२, ४११५९,
४३२०९-१ महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पर्व. ४७, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. (२) महापुराण-जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., श्लो. ४५, पद्य, दि., (पूर्वावायू यमश्चैव), ३९६४१(#) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ४१४०४(+), ४२०१८(#) महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (न परं नाम मृद्वेव), ४२८२३-२(-2) महावीरजिनद्वात्रिंशिका-समसंस्कृत, आ. जयशेखरसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (अकंपसंपल्लवलीवसंत), ३९४४१ महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ३९२२१(+$),
४३२५९-१(+#$), ४१२१४ महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (निस्तीर्णविस्तीर्णभव), ४१२४८(+) महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (गाहाजुयलेण जिणं मय), ४१३८३(+) (२) महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (गा० गाभ्रकं हा हारित), ४१३८३(+) महावीरजिन स्तव, आ. हीरविजयसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (भक्त्या नमस्कृत्य), ४३०२९-१(#) महावीरजिन स्तव, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (अर्हतमानतसुरासुरराज), ३९२३१-३(६) महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिन कुवलय), ४२३३९-३(+#) महावीरजिन स्तव-चित्रबद्ध, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (चित्रैः स्तोष्ये जिन), ४१२८२(#) महावीरजिन स्तवन-बंभणवाडामंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (कल्लाणावलिवल्लीण), ४०८५१(#) (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलीनी आवलि श्रेणि), ४०८५१(#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ । महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ३९५२३-१(+#), ३९५२४-१(+),
३९४६९ (२) महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ३९५२४-१(+) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ३९४८५(+#$),
३९६५७(+) (२) महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं वीरं नुवामि णूत), ३९४८५(+#S) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (त्रिदशविहितमानं सप्त), ४०८७८-३(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ३९८१७-३(#$) (२) महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, म्पू., (नमो वर्धमानाय नमोस्त), ३९८१७-३(#$) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नम्राखंडलमंडलस्तुतपद), ४१०१२-४(+#) (२) महावीरजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (हे प्रणतेंद्रवृंदनुत), ४१०१२-४(+#) (२) महावीरजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ४१०१२-४(+#) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ४१६१९(+) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पं० पंच महाव्रत अने), ४१६१९(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (भवामो महावीरमते सदा), ४३३४८-४(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (माहारमहावीरकरांगतार), ४३३४८-२(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदेहिनमनादेव देहिन), ४०९६०-३(-) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ४०८४१-४(#), ४०९४५-२(-2), ४१८४१-२(-#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सदा महावीरं भजे भवंत), ४३३४८-३(+) महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ३९४३७-५(+),
४३२०२-२, ४३०७५-२(#) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ४०६९७-१(+) महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., श्लो.७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ३९९१०-२(+-#) महावीरजिन स्तोत्र-काव्यचमत्कृतियुक्त, प्रा.,फा.,सं., पद्य, मूपू., (दोस्तीष्वांदतुरा न), ३९१८३(#$) (२) महावीरजिन स्तोत्र-काव्यचमत्कृतियुक्त-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३९१८३(#S) महावीरजिन स्तोत्र-संसारदावापदगर्भित, मु. ज्ञानसागर, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणवल्लीवनवारिवाह), ४००८५(#) मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम सिंज्यार), ३९७१९-२(+) मालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (महूरत प्रथम दिवसे), ४१८२१-२ मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ४३१०१(#) मुहपत्ति बांधने के शास्त्रीय पाठ संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., भूपू., (ढूंढिये कहते हैं कि), ३९१९० मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., (श्रीमत्पार्धाभिध), ४१९१४(#) (२) मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीपार्श्वनाथ), ४१९१४(#) मेघकुमार कथा, सं., गद्य, मूपू., (पुनः कथंभूतेभ्यः), ४२३९६(#) मेरुगिरि के १६ नाम, प्रा., गद्य, श्वे., (एमंदरस्सणं पव्वयस्स), ४२०७१-२(+#) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ४३२६८-३(+#$) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), ४२९५१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ४१५६६(+#) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ४१३४०(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ४३४१३, ४३२६७(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
मौनएकादशीपर्व गण, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ४०८६० (+#), ४२१२७(+#), ४२२९१ (+), ४३२४५ (+#), ४३२५७(+#), ४३२६९(+४), ३९३९४, ३९६८२, ४३१३२, ३९७००-१(१), ४०८७९(१) ४२२१२(१) ४२३४१-१(०) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ३९३६४-५ (१०) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीभाग्नेमिर्बभाषे ), ४३१८२-१ (+), ४३११९, ४२७८२-१(#) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), ४२७१३-१(+#) योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सू. ९, गद्य, म्पू, (नाणं पंचविहं पण्णत्त), ४१३०९ (+)
योगप्रवेश विधि, प्रा.मा.गु., गद्य, मूपू., (ठवणी कांबलीई पडिलेह), ४३१९१(+)
योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), ४१३६६(+#)
योगसार, सं., प्र. ५, श्लो. २०६, पद्य, भूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ३९४२४०
,
(२) योगसार - अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (रागद्वेषरहित एवा परम), ३९४२४(५)
योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., को., मूपू., (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ४२१७५ (#)
योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खधो), ४२२८९ (+#), ३९३९५, ३९५६९, ४१३०५,
४३१५९(३), ३९२००)
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रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., श्लो. २५ वि १४वी, पद्य, भूपू (श्रेयः श्रियां मंगल), ३९४३४(+), ३९७५२(१०), ३९७९५ (+४), ४०६१४(५०), ४११०९ (+), ४३०३३(+), ४३१६२(+), ३९३७६
(२) रत्नाकरपच्चीसी खालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू. (अहो कल्याण लक्ष्मीनु), ४११०९ (+)
(२) रत्नाकरपच्चीसी टवार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ३९७५२ (०३), ४३०३३(०४) राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, म्पू, (प्रथम हरियावहिबा० कु), ४३२२२-३(+०), ४३२४१-१(+) राई प्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ३९६४५-१(#)
राजानो ददते सौख्यं के ६४ अर्थ, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, म्पू, (राजा नो ददते सौख्यं), ३९९२६ (+) रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने आ जिनसूरि सं . २२४ नं. १५३०, पद्य, मूपु (श्रीमंतं विदुरं शांत).
,
४१५७७(+४६)
יי
(२) रूपसेनकनकावती चरित्र चतुर्थव्रतपालने टवार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, भूपू (शरीर नीरोग पामे सो), ४१५७७ (+#$) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, भूपू (शांति शांतिनिशांत), ३९४६०(१६), ४०५४५ (१०), ४१७०४१),
४२०४९-३(+४), ४२८२८(+), ४३०५९-२+४) ३९८४०(१), ४०५८४-१(१), ४०९४३(१), ४३२३६-१(१), ४३३५२(१), ३९७०६ (-#), ४३२६२-१(#)
लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गा. ३०, पद्य, भूपू (नमिव जिणं सव्वन्नु), ४१०६६ (०), ४१३४५ (+), ४३१२४ (००), ४३३१७(+),
,
३९३०१/-)
(२) लघुसंग्रहणी -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ४१०६६(+), ४३३१७(+#)
.
(२) लघु संग्रहणी -९० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपु. ( खंडा जोयण वासा पव्वय), ३९११०-१)
लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं., प्रा., गद्य, श्वे., (जीव गइ इंदिय काए सुह), ४३०६८-१(+#)
लूण उतारण गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सह पडिभग्गापसरं पया), ४३१५७-२(#)
लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ४०८१२(+#), ४३००१-३(#)
(२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - अवचूरि, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वइ० प्रसारितपादं), ४०८१२(+#)
लोच विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (खमासमण इरियावही पडिक) ४२६५६-१(*)
"
वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ४३२१९-३ (+), ३९०६३-१, ३९११४-२, ३९३०५-१, ४१२६० (#),
४०२६७-२(#), ४०५४८), ४१४४९-३ (#), ४२४१४-१ (-)
वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि प्रा. गा. ७१, पद्य, म्पू. (उसभाइ जिनिंदे पत्तेय), ४०८१९-२(०)
""
"
(२) वनस्पतिसप्ततिका -अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (उसभेत्यादि गाथा ४), ४०८१९-२(#) वर्णमातृका काव्य - जैनकथा मूलाक्षरगर्भित, सं., पद्य, श्वे. (प्रणम्य वृषभं देव), ३९०७४-३(5)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ९६, वि. १३२२, प+ग., मूपू., (श्रीवीरं जिनं नत्वा), ४०९९६(+) वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवओ अरहओ), ३९७१३-१(+#) वर्धमानविद्या कल्प, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (उपाध्यायवाचनाचार्ययो), ४२२७४(+#) वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, प्रा.,सं., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ३९३७४(5) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ४२९४२(+#), ४२९६३-१(+#), ४१०२२-१(-#) (२) वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), ४२९१६-२(+) वस्त्रपूजा श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (शक्रो यथा जिनपते), ३९६३३-२ वादिघटमुद्गर वादस्थल, सं., गद्य, मूपू., (इह हि पूर्वं पूर्वपक), ३९४२०(+) वासुपूज्यजिन स्तुति-सूर्यपुरमंडन, मु. ज्ञानरत्न शिष्य, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपरिरंभ), ४०४५३-१(+-#) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा.५१, पद्य, म्पू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), ४२७३०(+#) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ३९५५४(+s), ३९८२४-२(+#), ३९८३९-१(+), ३९८६९-३(+),
४००८०(+#s), ४०८१८(+#), ४०८४९-३(+#), ४०९६२(+$), ४१०८३-१(+), ४१३१७(+#s), ४१३७३-३(+-#), ४१६३०(+), ४१९१९-४(+#), ४२१७९(+$), ४२३६६(+), ४२५६४-३(+#), ४२५९२(+), ४२६५६-२(+), ४२७१९-२(+#), ४२८१०-२(+#), ४३३४२-४(+), ३९९५६-१, ४११५८-३, ४१९६९-१, ४२०७५-२, ४२०९३, ४३०६०, ४३०६१, ४३३५५-२, ३९७४१-६(2), ४११७४(#), ४११७५ (#), ४१५२०-४(#), ४१५८७(#), ४१६४३-२(#), ४१७५९-३(#), ४२००२(#), ४२०४८-४(#), ४२१३०(#),
४२५५८(#), ४२६४५(#), ४२६७३-१(१), ४२७२१(#), ४२८६६(#), ४१९०१(), ४२२४८(६), ४३०६५ (-2) (२) विचार संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४२१७९(+$) विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (यदुकुलांबरचंद्रक नेम), ४१३८६-१(+#) (२) विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (यादवनुं कुल ते रूपी), ४१३८६-१(+#) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., ग्रं. ३५७४, वि. १३६३, पद्य, मूपू., (नमिय महावीरजिणं सम्म),
प्रतहीन. (२) दीक्षा विधि-विधिमार्गप्रपानुसारी, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्र), ३९७१३-२(+#) विनयभुजंगमयूरी, ग. अमृतसागर, सं., गद्य, मूपू., (इह कश्चित् कल्पसुबोध), ४१२२७(+) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेण), ४२५०६ विमलजिन स्तवन, पं. गुणविनय गणि, अप.,मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू., (विमलमइ दायग), ४०७७३-३(+#) विविधतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयरैवताद्र), ४०६४५-६(+#) वीतराग स्तव, आ. प्रभानंदसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अंभोजाक्षीर्मदुत्तर), ३९५०८-२(+#) वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ३९५०८-१(+#) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ३९४९०(+#$) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ४१०६३(+#), ४१२८४-३(+), ३९९०९-२८) वैद्यकश्लोक संग्रह, सं., श्लो. ५, पद्य, (प्रसंगाद् गात्र), ४२७१३-३(+#) वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जम्मजरामरणजले नाणावि), ४३२३१(#) (२) वैराग्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार रूपियइ समुद्रि), ४३२३१(#) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ४०६१६-१(+#) वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., गा. ३२, पद्य, मूपू., (नमिउण पासनाह असुरिं), ४१५६५-३(+#) व्याख्यान मांडणी, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम नवकार कहीइं), ४३१५७-१(#$) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ३९०६४ (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-विवेचन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ३९०६४ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, म्पू., (देवपूजा दया दान), ४२०८५(२), ४३३५७(-#$) शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ४२०६८-१(+$), ३९६१५
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५१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ३९६०१(+#) शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअधम्मकित्तिअंत), ४१२५५(+), ४२४२४-३(+#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ४२५५९(+), ४०४४०-८, ४२०४८-१(#),
४१८४१-३(-#$) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ४०४७२-५(+-#), ४१४१४-४(+#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन-२१ नामगर्भित, पंन्या. रूपविजय, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमो आदिदेवं नमो आदि), ४२८२३-१(-2) शत्रुजयतीर्थ नामावली स्तवन, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (सिरिसत्तुंजयतित्थ), ४२४२४-२(+#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ४२३४९(+), ४२९०७(+), ३९१८५, ३९२८०,
४२८४८, ४१५६९(#) (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइं), ४२३४९(+), ४२९०७(+), ३९१८५, ३९२८०,
४१५६९(4) शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (धरणेंद्रप्रमुखानागाः), ४३१३५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (नमन्निव भक्तिभरात्), ४१४४५(+#) (२) शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नम्यानी परे भक्तिने), ४१४४५(+#) शनिदृष्टि श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, (मेषे वृषे च मिथुने य), ३९४४७-२(+#) शरीराष्टक, आ. पद्मनंदि, सं., श्लो. ८, पद्य, दि., (दुर्गंधाशुचिधातु), ४१७५३-१(+) शांतिकर्म विधि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथमशुभदिने चैत्ये), ४२३६१(#) शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (न स्नेहाच्छरणं), ४११४४-३(+) शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., ढा. २, गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीजयमंगलाभ), ४३३६५(+#), ४०९५१(#) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (सकलदेवनरेश्वरवंदित), ४१२४३-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (शांतिं शिवं शिवपदस्य), ४०६७२-१(+) शांतिजिन स्तव, सं., श्लो.७, पद्य, मपू., (दुरितदहननीरं पापपाथो), ४०६७३-१(+#) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, स्पू., (अंह्री कूर्मयुगं करौ), ४२२३०-४(2) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शांते तव स्वांत), ४१०१२-२(+#) (२) शांतिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (हे शांते षोडशतीर्थ), ४१०१२-२(+#) (२) शांतिजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ४१०१२-२(+#) । शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ३९४३७-२(+), ४३२०२-४ शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र.६, श्लो. १६३२, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भूता), प्रतहीन. (२) शांतिनाथ चरित्र-चयनित संक्षेप कथासंग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (अथोज्जयिन्यां), ३९३१६-१(+) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (अथ प्रतिष्ठायां वा), ४१५५५ (+$) शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र), ४३४५५-३(#) शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (सिरिउसहवद्धमाणं), ४०८३०(+#), ४१०२९-२ (२) शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभनाथ वर्द्धमान), ४१०२९-२ शाश्वतजिन प्रासाद जिनबिंब विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (असुरकुमारे चउसठि), ३९१००-१(-2) शाश्वतजिन स्तव, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदामि सत्तकोडी लक्ख), ४०८४९-२(+#) शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवे नंदीसरम्मि), ४२९२०-१(#) शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (चत्तारिअट्ठदसदोइ), ४०८४९-१(+#), ४३०७०(+) शाश्वतप्रतिमावर्णविभाग विचार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (पणधणुसय गुरुयाउ), ४०९९७-१(#) शाश्वता जिनबिंब जिनप्रासाद विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तिर्यग्लोके नंदीश्वर), ३९७२५(+#) शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभुवना), ४३२२६-२(#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१५
शास्त्रपूजा अष्टक, आ. पद्मनंदि, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (प्रकटितपरमार्थे), ४०३३२-१(-2) शीतलजिन अष्टक, मु. मलुकचंद, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (वृषभतुल्यगतिं वृषद), ४१२४३-१ ।। शीतलजिन स्तुति-आत्मनिंदागर्भित, ग. राजहंस, अप., गा. २१, पद्य, मूपू., (सदानंद संपुन्न चंदो), ४२४४०(+#) श्रमणोपासक ३ प्रकार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलइ ठाणइ मातापिता), ४३२२८(+#S) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दसण वय सामाई पोसह), ४०६६५-२(2) श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ४२९८९-२(+), ३९५७२-१(#), ४१८७७-२(#) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (सचित्त पृथिव्यादि), ४१८७७-२(#$) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, रा., गद्य, मूपू., (किनहीक श्रावक पांच), ३९५७२-१(#) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण), ४२९८९-२(+) श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ४०७५२-२(+#) (२) श्रावक २१ गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनै जोग्य ते), ४०७५२-२(+#) श्रावकअतिचार संख्या गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नाणाई अट्ठवय सट्ठी), ४०९६१-२(+#) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, म्पू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत), ४१६७८(+#$),
४२५१८(+#) श्रावक आलोयणा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानाचारि पोथी पाटी), ४३२८५-१(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ३९५३५-२(+), ४०२२८-४(+), ४०५४२-२(+), ४०६५५-२(+#),
४०८१७-२(+#), ४१६१३-२(+-#), ४२४५१(+#), ४२६२९-१(+#$), ४०५४१-२, ४०६५३-२, ४२१०२-३, ४१५५२(#),
४२१२८-२(#), ४२२३५ (#), ४१०२२-२(-#) (२) श्लोक संग्रह-बालावबोध *, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत असरण), ४१५५२(#) श्लोक संग्रह- मा.गु.,सं., पद्य, (--), ४३४३०-१(+#), ४२६६२-३(१) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), ३९८९८-२(+#), ४२४५४-२(+#$), ४२६००-२(+), ४३१०२-२(+), ३९८८७-३(#), ४२४५९-२(#),
४१६८०-२(-#), ४२८४३-२(-#) (२) श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, (--), ४२६६२-३(#) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ४००७८-२(+#$), ४०३८९-२(+), ४०५००-२(+#), ४०५८३-२(+#),
४१२११-२(+), ४१२३०(+#), ४१२३१(+), ४१२३२(+#), ४१२३३(+), ४१३५१-२(+#), ४१३८६-२(+#), ४२५४३-२(+#), ४२५९९-२(+#), ४२६४४(+#), ४२६९०-२(+#), ४२८२९-२(+#), ४१०२९-१,३९५९८(#$), ४०८२१-६(#), ४१२९२-१(#),
४१४४८-२(#), ४१७६९-४(#), ४२२०५(२), ४३४२२-२(#), ४०८३७-२(-2),४१८९२-२(-) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४२६४४(+#), ४२८२९-२(+#) षट्लेश्या लक्षण, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ४२२६८-२(+#), ४२७१४-२(+#) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ३९१५०($) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), ४०९६४-१(+) षड्द्रव्य निर्णय, मु.शुभेंदु, सं., श्लो. ५१, पद्य, दि., (तत्त्वातत्त्वस्वरूप), ४१२११-१(+) षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ४३२१८-१(+#$) संघस्वरूप कुलक, आ. पूर्वाचार्य, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (केई उम्मग्गठि), ४३२१८-२(+#) संतिकरंस्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ४१६१४-२(+#), ४२०६८-३(+),
४२५०७-१(+#), ४२५३४-३(+#), ४२६०१(+#), ४३२६४-१(+$), ३९८२१(#), ४००३०-३(#), ४१८९५(#) (२) संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (एतत्स्तोत्रं त्रिकाल), ४१०३१(+) (२) संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए स्तवन त्रिकाल), ४२१६७(+)
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५१६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निसिही निसीहि), ३९४२७(+), ४०९३४(+#), ४१४६१-३(+#), ४१५३९(+#),
४२२३७(+#), ४३१४७-१(+#), ३९२४७-१, ३९५४९, ४२५५७, ४३३४६-१, ३९९१४-२(#), ४०३७६(#), ४०९६०-१८),
४२५६२(-2) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), ३९९१४-२(4) संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (संथारा पाट आलोउं), ४३०६३(-१) संबोधप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभवियजीवेहिं न), ३९८८९(+), ३९१६५, ४१२४२(#) (३) अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह क० जिम अभव्यनो), ३९८८९(+), ३९१६५, ४१२४२(#) (३) अभव्य कुलक-अनुवाद, मा.गु., गद्य, म्पू., (जे अभव्य जीव होय), ४२४९९(#) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), ३९४५९-१(+#), ४००५१, ४०५५१(#S) संभवजिन अष्टक, आ. विबुधविमलसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकलविघ्नविघातकरस्वरः), ४३२८७ संयममंजरी, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (नमिऊण नमिर तियसिंद), ३९९२७-१(+) संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ४०७८५(१), ४१९११-१(१), ४१००४-२(-2) संसक्तनियुक्ति, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (उसभाइवीरचरिमे सुरासु), ४३१६६-२(+#), ४११६९ (२) संसक्तनियुक्ति-चयन, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (बीयाओ पुवाओ अग्गणी), ४२३१४(+#), ४१२४०-१ (३) संसक्तनियुक्ति-चयन का समासार्थ, सं., गद्य, मूपू., (द्वितीयात् पूर्वात्), ४२३१४(+#), ४१२४०-१ सचित्ताचित्तरज उहड्डावणकाउसग्ग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अचित्तरज उड्डाहवणी), ४१२०८-१ सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त्), ३९२४१($) सप्तभंगी स्वरूप, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धिः स्याद्वादादि), ४२५४८-१(+), ४२५४८-२(+) (२) सप्तभंगी स्वरूप-भाषा, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोकमाहि जि कोई), ४२५४८-२(+) (२) सप्तभंगी स्वरूप-अर्थ, सं., गद्य, मपू., (लोके यत्किंचद्वस्तु), ४२५४८-१(+) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ३९७५६(+), ४०४९८(+#), ४१५३७(+#) (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरं समवसरणस्थ), ४०४९८(+#) (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अटे स्तवस्युं केवल), ३९७५६(+) समस्या पद, मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, (षटपदेवाहं नता), ४१९१९-१(+#) सम्यक्त्व ६७ बोल नमस्कार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम चार सद्दहणा), ४२८४१(+) सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ३९३०९-१(+), ४१६२३(+), ३९२६६, ४१४८७-१(#) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ४१६२३(+) सम्यक्त्वमहिमा काव्य, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (सम्यक्त्वरत्नान्न पर), ४२४५९-१(#) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा.७०, पद्य, म्पू., (दंसणसुद्धिपयास), ३९६०४(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., श्लो. ९, पद्य, स्पू., (प्राग्वाग्देवि जगज्ज), ३९८०८-१(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनादेशजाता जिनेंद्र), ४०९०८-२(+#) सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), ४३१६४(+#$), ४३४५५-६(#$) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., (ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद), ४०५५२-१ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (शुक्लां ब्रह्मविचार), ४२२८३-२(+#) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, जै.?, (सरस्वती महाभागे वरदे), ४२५०७-२(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. ज्ञानभूषण, सं., श्लो. ११, पद्य, दि., (त्रिजगदीशजिनेंद्रमुख), ४०३३२-२(-#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जलधिनंदनचंदनचंद्रमा), ४१६९५-२(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (त्वं शारदादेवी समस्त), ३९१४६ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), ४१६९५-१(+#)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१७
सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (ॐ श्रीअर्हन्मुखांभो), ४१०१० । सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ४२१२९-२(+#), ४३४५५-२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्य), ४२७३६-१(2) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), ४०५१७-१(+#), ४२१४९-१(+), ४०८७०(2) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, वै.?, (शुभ्रां शुभ्रविचार), ४३२१९-१(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती नमस्यामि), ४१६३८-२(-$) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ह्रीं ह्रीं हृद्यैक), ३९८६८-२(+#), ४३४५५-४(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), ३९८६८-१(+#), ४३३७८-१(+),
४०६६९-१(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ३९७८३(+), ४०६७३-२(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ४०५५२-२, ४२६२५-२ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत), ४०२९७-५(+-#$) सर्वजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (जिनपते द्रुतमिंद्रिय), ३९५०६-३(+#), ३९५०८-३(+#) सर्वज्ञविज्ञ स्तव, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जय त्वं जगतां नाथ जय), ३९६२८-२(#) सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति जंगमकल्पमहीरुहो), ४२३२७-१(२), ४३१२७-१(#) सर्वतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ४०४९२-२(+#) सागारी अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (प्रथम इरियावहि पडिकम), ३९१७८ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), ४०४७२-६(+-#), ४१४१४-५(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जय जय महाप्रभु), ३९५५७-१(-) साधारणजिन चैत्यवंदन-३४ अतिशय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (तेषां च देहोद्भुतरूप), ४२१०२-२ साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., श्लो. ३३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नम्राखिलाखंडलमौलि), ३९३३९ साधारणजिन स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शस्ताशर्मावृतसुमहिमा), ३९५०८-५(+#) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराज: पदपद्म), ४०९७७-२(+#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ३९३६४-६(+#), ३९२३५, ४०९१४ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, पू., (मंगलं भगवान वीरो), ४२०४९-४(+#), ४१५६४-४(-2) साधारणजिन स्तोत्र, मु. सुमतिकमल, सं., श्लो. २५, पद्य, म्पू., (--), ४३२७७-१(+#$) साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (सर्वज्ञ सर्वहित), ४२१०७(#) साधु २७ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (छव्वय ६ छक्काय ६), ४०७५२-१(+#) (२) साधु २७ गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छ व्रतना पालनहार), ४०७५२-१(+#) साधु आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (इच्छाकारेण संदिसह), ३९५९२(+) साधुउपमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (उरग १ गिरि २ जलण ३), ३९६८०(#) (२) साधुउपमा गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अत्र अनुयोगद्वारमा), ३९६८०(#) साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्यारे साधु काल करे), ४०२७४-१(+), ३९३१०, ४११७३, ४१२०८-२, ४१२७१,
३९८७६(१), ४३३३५(#) साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ए क्रिया संप्रदाय), ४२६३४-२(+#) साधुप्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मासाईय सतता पढमा), ४०६६५-३(१) सामान्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), ३९१५२-२(+), ३९६५२-३(+), ३९८३९-२(+), ४१७२७-२(+-#), ४१८३४-२(+),
४१९५७-४(+), ४२९६८-२(+#), ४३०६२-२(+), ३९५२८-२(#), ३९७४१-७(#), ४२४३५-४(#) सामायिकग्रहण विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (आत्मार्थी जीवे), ४२७९८
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५१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
सामायिक विधि, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४०५२२-३ (+#)
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ४२७६८-१(+#), ३९२७१-१(#$) (२) सिंदूरकर चीजक, सं., गद्य, म्पू (--), ४२७६८-२ (५०)
सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, ग. क्षेमंकर, सं., प+ग., मूपू., (अनंतशब्दार्थगतोपयोगि), ४२८२५ (+#$)
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ४०४७२-९(+#),
४९४९४-७ (क), ४२९४४(+), ३९४४५, ३९८१२-१, ४२८००-२, ४०८२१-२
सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., गा. ३, पद्य, मूपू., (जो धुरि सिरि अरिहंत), ४१७३९-२(५), ४०८२१-१५१, ४२८२३-४८-०१ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञात्वा प्रश्नं), ३९४११-१, ४२७८२-२(#)
सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जिणसिद्धसूरिउवज्झाय), ४०८२१-४ (#)
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सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मृपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ४०८२१-३(०)
"
सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १३, पद्य, भूपू (जं उसहकेवलाओ अंत), ३९१६७(+), ४१०३२(+), ३९३४८
"
',
(२) सिद्धदंडिका स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो), ४१०३२(+)
(२) सिद्धदंडिका स्तव टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (जं क० जे उसभ क० ऋषभ), ३९१६७/०), ३९३४८
(२) सिद्धदंडिका स्तव यंत्र, सं., को. मृपू., (अनुलोम सिद्धिदंडिका), ३९१६७(+)
सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ४०८६९-१(+#), ४२४८९(+#), ४२४०३ (# ), ४२५७९ (#S), ४२७४७ (#)
(प्रणम्य स्फुरत्), [४१२६८(+)
सिद्धस्वरूपवर्णन स्तोत्र, मु. आनंदविजय, सं., श्लो. २५, पद्य, भूपू सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८ सू. ४६८५, प्र. २१८५. वि. ११९३, गद्य, मूपू (अर्ह सिद्धिः
.
,
स्वाद), प्रतहीन,
(२) अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (उच्चारणस्ति वर्णा), ३९५१३-१(१)
(३) अनुबंधफल - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वद व्यक्तायां वाचि), ३९५१३-१(+)
(२) वृत्तगणफल, संबद्ध, ग. वानर्षि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (द्युतादेरद्यतन्यां), ३९५१३-२(+)
(३) वृत्तगणफल - अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मूपू., (द्युति दीप्तौ), ३९५१३-२(+)
सिद्धितप गणणु, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (ॐ नमो सिद्धस्स), ४१७७५
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), प्रतहीन. (२) सिरिसिरिवाल कहा- सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (गयणमकलियायतं उद्दाह),
४००८४(१), ४२१३१(००, ४२२६६ (+०), ४२५२७
(३) सिरिसिरिवाल कहा -सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, म्पू, (अथ गगनादिसंज्ञा),
४००८४(+), ४२१३१(+#), ४२२६६ (+#), ४२५२७
सीमंधरजिन स्तव, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (गुणग्रामधामस्थिर), ४३१२७-२ (#)
सुभाषित लोक सं., पद्य, (-), ४२६६२.५ (१)
सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गा. ४०, पद्य, श्वे. (दानं सुपात्रे विशुद), ४२४११-२ (+#), ४३४५९-२(#) सुमतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मदमदनरहितनरहितसुमते), ४१२८३-२(#)
सुरप्रिय कथा- आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १२५, वि. १६५६, पद्य, भूपू (प्रणम्य महिमागार), ४३४१५ (+) सूतक विचार - शिवमते, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (चतुर्थे दशरात्रिं), ३९९५६-२
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), प्रतहीन.
(२) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गा. २९, पद्य, भूपू (पुच्छिसुणं समणा माहण), ४९४७९-१(+), ४९५९६-१००), ३९३३३-१(१)
सूर्य स्तोत्र, सं., पद्य, वै., (वाराणस्यां यदा मुक्त), ४०६६९-२(#$)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१९ स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि),
४२६३३+#), ४३२०८(+), ४३३२७-१(+s) स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ९९, पद्य, मूपू., (जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे), ३९५०९(+) स्त्रीसामुद्रिकलक्षण विचार, सं., पद्य, वै., (कीदृशीं वरयेत्कन्या), ३९६३९-१(5) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), प्रतहीन. (२) स्थानांगसूत्र-संवच्छरविचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (लक्खणसंवच्छरे पंचविह), ४२१८०(+#) (३) स्थानांगसूत्र-संवच्छरविचार गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नक्षत्रादि संवत्सर), ४२१८०(+#) स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्थापनाविधि), ४२१८६(१) स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ४२१५९-१(+#), ४२८६५(+#) स्नात्रपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. ८, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सरसशांतिसुधारससागर), ४१४७८(+) स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ३९६११(+#), ४०७९२(+) स्नानाष्टक, सं., पद्य, जै.?, (सन्माल्यादियदीय), ४१७५३-२(+$) स्वप्न विचार, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू, (अर्हन्बुद्धो हरि शंभ), ४१५५१-२(+#) स्वप्न विचार*, सं., पद्य, श्वे., (--), ४१३१८(+) हेमदंडक, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), ४३१९२-१(+#) (२) हेमदंडक कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., भूपू., (--), ४३१९२-१(+#) होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ४३१०२-१(+) होलिकापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अथ चतुर्विंशतितम), ४०८१४-२(+#) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), ३९२५४-१(+) होलिकापर्व कथा , सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ३९२५४-२(+), ३९९०५ होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ४०६८२-१(+#), ४३२६८-१(+#$),
४२९३३(#)
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५२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
४ कषाय सवैया-अनंतानुबंधी आदि, मु. जिनराज, पुहिं., सवै. ४, पद्य, मूपू., (अनंतानबंधीयो क्रोध), ३९६४४-२(+#) ४ गोला चौढालियो, मु. धनदास, पुहि., ढा. ४, वि. १९०७, पद्य, श्वे., (संतनाथजी सोलमा सांति), ३९१२०-२(+) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ४०३२२(+-#), ४३१२५-१(+#),
३९६३८(१), ४२५९७-१(#), ३९६२०($) ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चारो मंगल चार आज), ४१८२०-३(+#) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ४२१२०-२(#), ४३३२५-२(#) ४ मंगल पद, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धरम उछव समै जैनपद), ३९८२०(+) ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै च्यारु), ४१४१८-२(+) ४ मंगल प्रभाति, मु. हीरजी शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतमने गुरुने), ४२६२६-४(+#) ४ मंगल रास, मु. मुनिराज ऋषि, रा., ढा. ५, गा. ३७, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जिन नमु), ३९१०८ ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहूं), ४०४२८-३(2) ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ४०९०५(+), ४२५५१(+),
३९४६५, ४२१४०, ४२१९८६), ४३३६१(#) ४ शरणा पद, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन चारों शरणा धार), ४०६१८-७(#) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ४१७०७, ४१७०८-५(#), ४२३१६(#) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. धनदास, मा.गु., गा. २१, वि. १९१५, पद्य, श्वे., (काया कोट सुहामणु), ४०९८७-२(#) ५ कल्याणक मंगलस्तवन, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (पणविवि पंच परम गुरु), ३९८२७(+#) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ३९७४६(+#), __४२६८९(+), ४३१६५, ४३२१४(#) ५ जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच परमेसरा परम), ४०१२०-२(+#), ३९५१२-१(#) ५ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (चंदण रुष सुहावणा), ३९६०७-२ ५ ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान श्रुतज्ञान), ४१००४-१(-#$) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदनाथ), ४०२९७-४(+-#) ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ३९६४६-४(१), ४१८६०-२(#) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ३९९६५-२(+#), ४२७९०(+#),
४१८३१-३, ४०७२१(#) ५ तीर्थस्तवन, उपा. सूरजविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय पास जिनेसर देव), ४०४७९-३(#) ५ परमेष्ठि स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (समझ समझ जीहां ए गुण), ४१७६९-२(#) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ४०६७७-१(+#), ४१४१०(+#), ४१६१७-१(+#),
४०५१०-१(#) ५ पांडव सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (एहवा मुनिराय पांडव), ४०९९५-१(#) ५ प्रकारे स्त्री पुरुषबिना गर्भधारण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (वस्त्र रहीत पंडा), ३९१००-२(-#) ५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिलुंए मंगल मन धरो), ४१८६४ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ३९१०५-२, ४३३२४, ४११२०-२(#5),
४३३०५-१(३), ३९०८३(5) ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ४०४८४-२(#) ५ महाव्रतस्वरुप विचार-निश्चयव्यवहारे, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ गुरु कहे जे), ४१०३० ५ साधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (जगगुरु प्रणमु वीरजिन), ४२२४६(2)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५२१ ६ अट्ठाइस्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वादशुद्धो), ४२८५५(+), ३९२४८,
४१५२३, ३९१०३(६) ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसइं जिन चीतवीं), ३९२०१(+), ४२२०९(+),
४३१६०(+), ३९२८८(#$), ४३३६६(#), ४३४३६-१(2) ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), ४०८३६-१(+) ६ काय सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मुनिवर देवै देसणा जी), ४०३२९ ६ काय सज्झाय, पुहिं., गा. ३९, पद्य, श्वे., (छह कायारि छाकरी भय), ४२३७३(+#) ६ चैत्य स्तवन-जेसलमेरस्थित, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जेसलगिरि मुख मंडणउ), ४०७७३-४(+#) ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकायरा गुण ४), ३९६६०(#) ६ भाव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (रे आत्मा कर्म वस्ये), ४२२९०(+), ३९२६३(-) ६ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर गोयमनें कह), ४०७६८-३(+#), ३९२१२-१८) ७ नरकस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली नरगे जगन), ४०१६६ ७ व्यसननिवारण सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (संसारी लोको सात वीसन), ३९६७२-२ ७ व्यसन लावणी, मु. राम, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (चोरी जुवा मास मद), ४१५१९-२(+#$) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ४०१८५(#), ४०४२६-२(-#), ४०९१०-१(-#) ७ व्यसन सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सात व्यसननो रे संग), ४३१४५-२(-) ७ समुद्धात विचार-१४ गुणस्थानके, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम मिथ्यात्व गुण), ४२४३९(#) ७ सुख पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पहिलुं सुख जे तनुइं), ४२९१७-३ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ३९४७४(+), ३९६७६(+#), ४०४७४-१(+#), ४२८७०-१(+#) ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३९२६०(5) ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, मा.गु., को., म्पू., (--), ४१३३१(#) ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावरणी कर्म आंख),४१८७९-२(#) ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), ४१४०६-२(+#) ८ चैत्य स्तवन-जेसलमेरस्थित, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. २३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (जिनवर जेसलमेर जुहारी),
४०३२५(#) ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ३७, वि. १८१३, पद्य, पू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ३९४८३(+),
४११११-१(+#) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, पू., (अजर अमर निकलंक जे), ४२५१३(+#), ४२७८१(+#) ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), ३९२८७(+$),
४०६२२(#$) ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहिं., गा. ९, प+ग., मूपू., (शुचि सुगंध वर कुसुम), ३९५३७-४(+) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), ४०९९४-१(+#) ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), ४१४३८, ४३२५८, ४३३००, ४०४२३-२(#),
४२४४३(#), ४२६६१(#), ४२७१७(#) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, भूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ३९७५१(+),
४०७१२(+$), ४२०४८-३(#) ९नियाणा विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिलो राजनियाणो तप), ४०७१७-३(#) ९ रत्न कवित, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (धनंतरि छपनक अमर), ४११३२-३(+)
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५२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ३९२७६(+),
३९९६४-१(+#$), ४२२६३+#), ४२४९१(+), ४२८३४(+$), ४३३७१(+#), ४३३९१(+#), ३९२४९, ४११८३, ४१५२४,
४२४९०, ४२४९२, ४२९२४, ४२९२७, ४१००१(#), ४१५०२(#), ४३२०५(#) ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशुपंडग तणी रे), ४०६५९-२(+#) ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमु), ४०९२६(+$), ३९५१५-१($) ९वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नववाडि मुनिसर मनधरो), ४०६४६ ९ वाड सज्झाय, मगनलाल, पुहि., ढा. १०, पद्य, श्वे., (पहली बाड मे साधजी), ४१५१२-१(#) ९ वाड सज्झाय, मु. रणछोड, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बेनी सील तणी नववाडीक), ४१५९०(#) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ३९११६-२(+), ४१७२३-२(+), ४३३२०-२(#),
३९९९७-१(-) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमु), ३९२९१(+#), ___ ३९९१६(+), ४०६८३(+#), ४२२१९(+#), ४२६३५-१(+), ४३२९७(+#), ३९१०४-१, ३९२६१, ४३२९४ १० पच्चक्खाण स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पहेले दिन उपवास एकास), ४१६४९-२ १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ४२८७४(#) १० श्रावक सज्झाय, मु. गोकल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमनइ रे), ४३३६७-१() १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंदने सेवानंदारे), ४०६६६-१(#) ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पहिलो अंग सुहामणों), ४२२८८-३(#) ११ गणधर पद, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (गणधर के गुण गावो), ४०६१८-५(#) ११ गणधरसंशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभाते उठीने भविका), ४१७४६(१) ११ गणधरस्थापना गहुँली, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महसेन वनह मुझार रे), ४१४४४-२(+#) ११ निगोद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक सुईना अग्रभाग उपर), ४३२८५-२(+), ४२३४१-२(2) ११ बोल नमस्कार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिले बोले चोवीस), ४१८७९-१(#5) १२ आराकालचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ८२, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रेमे भगवती), ४१००७(+#) १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), ४२७०८-१(+#) १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनित भावना १ असरण), ४०८६३-१ (२) १२ भावना नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरथ चक्रवत भाई), ४०८६३-१ १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली अनित भावना ते), ४२४३०(+#), ४१९३५(#) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी),
४२६२४-३(#) १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (समकित सूधउं पालता), ३९२७८(45), ३९१३५(६) १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), ४१८३३(#$) १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), ४०४५२-२(+#) १२ व्रत सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर पाय नमी), ४०८९०(+#) १२ व्रत सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर पाय नमीजे), ४०७३७ १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलि प्रतिमा १ मास), ४०८९१(+#) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ३९६३५-२(#) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ४०४७१-२(+),
४१९६२(+) १३ बोल विचार-सिद्धांतविरुद्ध संग्रहणी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम जोयणसए ए गाथा), ३९३८२ १४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणस्थानक १४ तेहनां), ३९१३२(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
१४ गुणस्थानक नाम, मा.गु, गद्य, म्पू (मिध्यात्व गुणठाणो १) ४०९८१-२ (००४), ४०५८१-२०१
१४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., पं., ., (-), ४२५३०)
"
१४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, क्षे., (बंधप्रकृतयस्तासां ), ४१९७७
१४ गुणस्थानक सज्झाच, उपा. जयसोम, मा.गु., गा. ६४, वि. १७६८, पद्य, म्पू., (चंद्रकला निर्मल सुह), ४०९५८(०)
४२७६७
१४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु.. गा. १४, पद्य, क्षे. (सूंड सरल दीपत दंतु), ४१३५४-२
,
१४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू (निजगुरु केरा प्रणमी), ४३००६ (४)
"
१४ गुणस्थानके १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ३९५८६(+#)
१४ जीवभेदे १३ बोल, मा.गु, गद्य, थे., (-), ४२०४७)
"
१४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित ते कोने कहीइं), ३९६४६-२(#)
१४ नियम सज्झाय, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (सारद पाय प्रणमी करि), ४१९१०-३(०)
१४ समूर्च्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू. (गौतम गणधर प्रणमी पाव), ४१०१८,
१५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पनर कर्मभूमि कहीइ), ३९९५३-२(#)
"
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१५ तिथि सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सकल विद्या वरदायणी), ३९३३०-३(+#$)
१६ द्वारे २३ पदवी विचार -पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम दुवार १ अर्थ), ४१३४४(+#)
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर ), ४२४१६ (#)
१६ सत्यवादी सज्झाव, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचारी चूडामणी), ४०७६७(१), ४०८७५ (०१)
१६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नयरी चंद्र), ४०७०० (+#)
१६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुपन देखी पेहलडे), ४२३२०
१७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. ९, पद्य, मृपू (सत्तरभेद पूजा फल), ३९१२१-१, ४०७५६-७
"
१७ साधुभेद सझाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (साधू शिरोमणी एहवा), ३९९२३-२(१)
"
१८ नातरा चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ३३, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पाय नमी), ३९४२५
१८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ३२, पद्य, भूपू (पहिलो प्रणमुं पास), ४२६५५
१८ नातरा सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३९४०८($)
५२३
१८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), ४२६४६ (+)
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ४२६१८००१
१८ पौषधदोष स्तवन, उपा. आनंदनिधान गणि, मा.गु, ढा. २ गा. २१, वि. १७४८, पद्य, मूपू (सुखकर शांति जिनेसरु), ३९९७६-२(+#)
,
१८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. २, पद्य, ओ., (तीन कोडि तरु जात), ३९११६-४(का
२० पद स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (वित हरख धरी अनुभव), ४०९११-२०१ २० विहरमानजिन गहुंली, मु. हस्ति, मा.गु., पद्य, मूपू., ( बेहरमान जन व्याहारता), ४१८१९-३०)
२० विहरमानजिन स्तवन, मु. आसकरण, रा. गा. १२, वि. १८३५, पद्य, स्वा. (श्रीमंदर युगमंदरो), ४०५३७(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (श्रीजिनवरनुं लीजै), ४२२६८-४(+४)
२० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७. पद्य, म्पू, (सीमंधर युगमंधर बाहु, ४०९७३-२ (४)
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२० विहरमानजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( श्रीसीमंधर युगमंधर), ३९५१६-७(+)
२० विहरमानजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु. गा. ७, वि. १८१९, पद्य, वे. (सीमंधर युगमंदिर बाहु, ३९४५१-२२)
२० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (पहिला स्वामी सीमंधर), ४०८९९-२, ४१८००, ४२९४८-३(#)
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२० विहरमानजिन स्तवन, लीबो, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पहिला स्वामि), ४३२२९-१(+#)
२० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर गुण स्तवुं), ३९४४६-३(+#)
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५२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० २० स्थानक गुणकीर्तनफल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतजीना गुणग्राम), ४२९९२-२(+) २० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंत प्रथम पदे), ४०३८९-१(+) २० स्थानकतपविधि स्तवन, ग. विद्याकुशल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शारद पाय प्रणमी करी), ४०९७९-१(+#) २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तपसेवीए), ३९०७६ २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसत हारे मारे), ४१२५४, ४०६२५(#), ४३१०९(#) २० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत पद ध्याइय), ४१५०६(#) २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीयै), ४०४९९(#) २० स्थानकतप स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुछे गौतम वीरजिणंदा), ४२००६-२(+#) २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ४३४३३(+#), ४११३९(),
४२५६८) २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३१, गा. ३४०३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि संपतिकरण),
४३१४४(६) २१ कायोत्सर्ग दोष, रा., गद्य, मूपू., (--), ३९११६-१(+) २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ३९६६८(+#) २१ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते सात नेखेपा च्यार), ४२९३१(१) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनसासन रे सूधी सद्द), ४१९१०-२(#) २२ परिषह दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीयइ हस्तमित), ४०५८१-३(#$) २२ परिषह सज्झाय, पुहिं., गा. २४, पद्य, श्वे., (क्षुधा त्रिषा हेम), ४०८०३(#) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ३९८१८-१(+), ४२७४४(+#), ४२९४०(+) २३ पदवी सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पाय नमी), ४२९२८(+) २४ अवतार नाम, मा.गु., गद्य, वै., (मीन १ वाराह २ कमठ ३), ४०३७९-३ २४ जिन २१ स्थान कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ४०७७०(4) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ३९८६९-१(+) २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ४३०३९(#) २४ जिन आरती, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., (जे जे श्रीजगतनाथ), ३९७०२ २४ जिन आरती, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (रेषभ अजत संभव), ४०२८७-१(१) २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमी जिन चोवीशने), ३९६८५(#),
४२८५३(#) २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमुं), ३९८३८(s) २४ जिन गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जै जै श्रीऋषभ जो), ४२५१९-२(#) २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (निजगुरु चरणकमल नमी), ४१००२(+#) २४ जिन चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर ईश्वर), ४२६७३-३(#), ४२८२३-३(-#) २४ जिन चैत्यवंदन, मु. सुखनिधान, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजितजिणदेव), ४०३५५-२(+#) २४ जिन चैत्यवंदन-अतीत, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उत्सर्पिणी आरे थया), ४११९३-२ २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ४१९६५-२($) २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ एकासगुंकरी), ४०२०७-४(-2) २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विनीतानगरीए लीये दीक),
४०२०७-५(-2) २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), ४०२०७-२(-2)
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भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
५२५
२४ जिन चैत्यवंदन - भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ४००१५-५, ४०२०७-७(#)
२४ जिन चैत्यवंदन -भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सत्तरिसयठाणई कह्या), ४०२०७-८(#) २४ जिन चैत्यवंदन - लंछनगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (वृषभ गज हय कपि), ४०२०७-३(-१) २४ जिन चैत्यवंदन - वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मृपू. (पद्मप्रभने वासपूज्य), ४१७१२-३(०३), ४२२०१३ (०) ४०२०७-१(०)
२४ जिन चैत्यवंदन - सहदीक्षितसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू., (चार सहस्सथी ऋषभदेव), ४०२०७-६(#)
२४ जिन जन्मआंतरा काल विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीऋषभदेवजी मास), ४१९८४क
,
"
२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (शत्रुंजे ऋषभ समोस ), ३९८९३
२४ जिन नमस्कार, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सकल कुसल तर प्रथम), ४०७४७(१)
२४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ४३३२० - ३ (#)
२४ जिन नाम - अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ४१९१९-३(+#)
२४ जिन पद, जादुराव, पुहिं. गा. ४, पद्य, वे, वंदु जिनदेव सदा चरन), ४०२८६-१७/(+०)
"
२४ जिन पद, मु. हजारीमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (वंदे तीर्थंकर भगवान), ४०६१८-६ (#)
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२४ जिनपरिवार संख्या विचार, रा. गद्य, मृपू., (पहिले बोले साधुजी) ४२०८२
"
२४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को. थे. (--), ४१६७६ (०)
२४ जिन राशि नक्षत्र योनि गण वर्ग हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ३९८७८-१
२४ जिन राशिमेलापक कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ३९८७८-२
२४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू. (ऋषभ लंडन वृषभ अजित), ४२७४५-१(१), ४०२८४(क)
२४ जिनवंदन सवैया, मु. हंसराज, मा.गु., सवै. २५, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (सरस्वती दे मुझ सुमत), ४३३१३(+#)
२४ जिनवर्ण स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु गा. १९. वि. १८३६, पद्य, स्था. (पहु उठी प्रभाते बंदु), ४०५४९-२
"
२४ जिन सवैया, मु. जालम, पुहिं. पद. २५, पद्य, [., (--), ४०९१९-३०)
२४ जिन साधुपरिवार संख्या विचार, रा., गद्य, म्पू. (पला रीखवनाथजी कबार), ४०३९८-३(+)
२४ जिन साधुसाध्वीश्रावकश्राविकासंपदा सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चोविसे तीर्थंकरनो), ४१८५३
२४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू
(पहिला प्रणमुं प्रथम), ४०३५५- १(२०) (श्रीसिद्धाचल आविया), ४१५२८-२(#)
२४ जिन स्तवन, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू.,
२४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, भूपू (प्रह समे भाव धरी), ४३३५४-५ (१), ४२६८५-२(१
२४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि वंदो आदजिनंदजी), ३९६०७-१
२४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (जय जय आदि नमुं अरिह), ४०३४८-१ (+), ४०७८३(१)
२४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (नाभिराय राजा मरुदेवा), ३९४७१(#)
२४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), ३९८०१ (+#), ३९९९८(#)
२४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरसती साम्मण वीदसु), ४०३३९(+#$)
२४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु, गा. २९. वि. १५६२, पद्य, भूपू (सयल जिणेसर प्रणमुं),
४००६०-२(+#), ४२२५२-२ (+#), ४२३८६ (+#), ४२६३७ (+#), ४१०४४-२(#), ४३४२६-१(#)
२४ जिन स्तवन -लंछन व गणधरसंख्यागर्भित, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पय नमी), ३९५५५ (+)
२४ जिन स्तवन - वर्णविचारगर्भित, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. २, पद्य, वे., (श्रीरीषभ अजित संभव), ३९८३६-१(+#)
२४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ४३१८८(+), ४३१८७
२४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (दंडक २४ नामानि शरीर), ४३४३९(+)
२४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (शरीर अवगाहना संघयण), ३९०५३(७)
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२४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ३९३८४ (#$)
२४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ३९३८० (+), ३९३७९ (45)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
२४ दंडक गतिआगति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सांमण देव), ४२०४३
(२) २४ दंडक गतिआगति सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती मातनइ), ४२०४३ (६)
२४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु, गद्य, म्पू. (दंडक २४ ना शरीर ५), ३९९८७/३/
"
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२४ पीर नाम, मा.गु., गद्य, (इमाम अली अकबर), ४०३७९-४
२५ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., ( नरकगति १ तिर्यंचगति), ४२५३५ (+#)
२५ भावना सज्झाय-५ महाव्रते, मु. जसविजय, मा.गु., सज्झा. ५, गा. ३४, पद्य, मूपू., (महाव्रत पहेलुं रे), ४२८१७ २८ लब्धि दुहा, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (आमोसहिलब्धि भलि), ४१३०४-१
+
२८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अट्ठावीस लब्धि सारी), ४१३०४-२
३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (उकाबाई कहता तारो तूट), ४०१६०, ४०४०३, ४०३१९(१)
३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (वाणी सीरीजनराजनी रे), ३९२१२-२ (-)
३२ आगम नाम, अध्ययन व गाथा संख्या विचार, मा.गु., गद्य, स्था., ( आचारांग कालिक), ४०३१४-१ (#)
३३ आशातना विचार - गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ३९९३६
३३ बोल संग्रह, मा.गु, गद्य, भूपू (सात भये इहलोक भय), ३९२९४-१ (+), ३९९६० (+४)
.
३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु गा. ११, पद्य, भूपू (श्रीसुमतिदायक कुमति), ४००२७(१)
३४ अतिशय विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो अतिशय तीर्थंकर), ४१२१९-३(#)
३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), ४२३८७ (+#), ४२९३९ (+#), ४२३३७(#) (२) ३५ बोल - अर्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (देवगति मनुष्यगति). ४२३८७ (+४) ४२३३७)
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३५ बोल संग्रह, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु. वि. १५८३, गद्य, म्पू. गुरुने आदेसे विहार), ४२४०७ (१) ४५ आगम सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंग इग्यारने बार), ४२६८१(#) ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (भवि तुमे वंदो रे एआ), ४११९०, ४११९१ ४० गोचरीदोष सज्झाय, मा.गु. गा. २० वि. १९१३, पद्य, भूपू (दोश अहारना सांभलो रे), ४१६४९-१ ५२ अनाचार वर्णन - साधु जीवन के, रा., गद्य, मूपू., (उद्देशिक आहार लेवें), ४३०८३-१(#)
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५२ बोल सज्झाय, मु. कृष्णलाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, वे. (आधाकरमी १ मोलरोए), ४०७७२-१(१) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू. (नमिउं अरिहंताई बोले), ४१११४(+३)
६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ४३१४१ ६२ मार्गणास्थाने नामकर्म बंधोदयसत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु को, भूपू (--), ४३१४०
६२ मार्गणास्थाने मोहनीयकर्म बंधोदयसत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ४३१३९
६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरणकमल मनधार), ४१६४५
६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (सदगुरु चरणकमल मन), ४०५९५ (+#)
६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पूजा. ६४, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर साहिबो), ४३३२१(#)
६७ समकित बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमार्थ जाणवानो अभ्य), ४२९९२-१(+)
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६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ४३२४९(१)
८४ आशातना स्तवन, उपा धर्मसिंह, मा.गु. गा. १८, पद्य, भूपू (जय जय जिन पास जग, ३९२६९-१ ४) ३९०७९ (४)
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८४ बोल खोतांवरीय पुहिं, गद्य, म्पू.. (तीर्थंकरजी आहार लेख), ४१९६६-१(+)
८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बावन लाख साधारण एकिं), ४०८३६-२ (+)
९६ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अनंत चोविसी करुं), ४३२२९-२ (+#)
१६ जिन स्तवन, आ, जिनचंद्रसूरि, मा.गु ढा. ५, गा. २३. वि. १७४३, पद्य, मूपू (वरतमान चोवीस बंद), ३९११८-२(+३), ४०१३८(००), ४०६५५-१००) ३९३१५, ४२१५२
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (केवलनाणी श्रीनिरवाणी), ३९५३८(+#), ३९५४१(#) १८ बोल का वांसठिया, रा. गद्य थे. (पेले बोले सरवसुं), ४०८११
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९८ बोल जीव अल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपु. ( अहमते सव्व जीवा), ४११६३(१)
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९८ बोल स्तन, मु. शुभविजय, मा.गु., डा. २ गा. १६. वि. १८५५, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसरसति), ४१०८८-१(०३)
९९ प्रकारी पूजा - शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ४१७१०(+), ४३३६० (+#)
१०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., मूपू., (कोका पार्श्वनाथ), ४१६०६, ४२८३८(#)
१२५ शीख सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ४४, पद्य, श्वे., (प्रणमी प्रथम जिणंद), ४०४७८
१७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र ), ४०८३४ (+), ४२४९७ (+#$), ४०८३५
१७० जिन स्तवन, मु. उद्योत, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (सोल जिनेसर सांमला), ४३२७५-४२+०)
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गइ इंदीये काए), ४१६०० (+#)
५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, वे (सात नारकी पर्याप्ता), ४१०४१, ४३०३७/०) ५६३ जीवभेद गतिआगति विचार-२४ दंडके, रा., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम ७ नारकी), ३९८१८-३(+$) ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), ३९८१८-२ (+), ४२४१३(+#), ४२४५८($) ५६३ जीवभेद स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मिच्छामि दुकडं इन पर), ४१९४५-१ अंगस्फुरण विचार, मु. हेमानंद, मा.गु., गा. २२, वि. १६२१, पद्य, मूपू., (श्रीहर्षप्रभु गुरु), ४२२४३-२ (+#) अंजनशलाका विधि, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम जवारा वाहणा), ४३०३० (+)
अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, भूपू (--) ३९३२४(७)
5
अंबिकादेवी आरती, शिवानंद स्वामी, पुहिं. गा. १०, पद्य, वै., (जय अंबे गोरी ओ महीया), ४१५२०-१ (१) अमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा. गा. १३. वि. १८३०, पद्य, वे. (सासणनायक सिद्ध कीधी),
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"
३९५८२-२००)
अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ३९७८०-३ (+#), ४०४१२-१(+#),
४०५३२-१ (+), ४१३५६ (+#), ४१५१८ (+#), ४१७७० - १ (+#), ४२१५३-३(+#), ४०४९०-१(#) अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, रा. गा. २०, पद्य, मूपू (खुसामदी कर दाताररी), ४०९०७-२०१ अक्षरवत्रीसी - आत्महितशिक्षाणभिंत, मा.गु., गा. ३५, पद्म, मृपू., (कक्का तें किरिया), ४२९०९ (४)
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अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहिं., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (ॐकार अमर अमार अज), ४३००८ (+#$) पद्य, श्वे. ( ॐकार अपार अलख्य), ४११३२-१(+)
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अक्षरबावनी, मु. मान, पुहिं. गा. ५७, अचित्तभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे.
(राजमार्ग भूमका अंगुल), ४०३१४-३(१)
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अजयराजा चौपाई, उपा. भावप्रमोद, मा.गु., ढा. ३३, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (पारस प्रणमुं सदा), ३९२६२(+$)
अजितजिन गीत, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (तब प्रभु अजित कहावी), ४१६६३-१(०)
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अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु, गा. ३, पद्य, म्पू, (अजितनाथ अवतार सार), ३९६४६-५(१) अजितजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजितसत्रु नरेसर), ४०४४०-३ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), ४११०३-२(#) अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुण संपदा), ४३२७४-३ (+#) अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (अजित जिणेसर चरणनी), ३९५७० ३ (+) अजितजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु. गा. ९. वि. १८१७, पद्य, वे (अजित जिणेसर वंदिइ), ३९४५१-३ (+) अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीतलडी बंधाणी रे), ४०९९०-२
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अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( अजित अजित जिन), ४२२६८-१(०)
अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (ओलग अजित जिणंदनी) ४२१३५-२ (५०), ४२५०२-११(१०)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू. (अजित जिणंदस्यु प्रीत). ३९९९६-२(१), ४१८४१-१(१)
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अजितजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दिठा मे तो आज ), ४३४१८-११(+#)
अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी मुद्रानी बलिहा), ४२६०७-२(+#) अजितजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय शिष्य, मा.गु, गा. ६, पद्य, म्पू, (दीढुं तारुं रूप मोहन), ४०७४०-२(४) अजितजिन स्तवन -तरंगातीर्थमंडन, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १९५५, पद्य, मूपू., ( श्रीतारंगा धाममां), ४१५१५ (#) अजैन गाथा, मा.गु., पद्य, जै. ?, (--), ४०८६९-३ (+#), ४०९९८-३(#)
(२) अजैन गाथा का अर्थ, मा.गु., गद्य, जै. 2, (--), ४०८६९-३(१०)
अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित ), ४१४०३ (# ), ४१६५७(+#), ४२७७१-१(#) अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास पुहिं. गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि. (सुध वचन सदगुरु कहें), ४१५७०, ४१०११-१२)
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अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ४००२३-१ (+),
४३३०२-१(+), ३९०९९
अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मृपू, धार तलवारनी सोहली), ४२६२६-६ (+), ४३१२६-३(+) अनंतजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजानो तुं बेपरवाही), ४११०३-१४ (#) अनंतजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( मे तेरी प्रित पीछाणि), ३९५५६-४(#)
अनंतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (हां रे लाला आज अनंत), ४२१३५-७(+)
अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंतजिनशुं करो), ४१४६४-८ (+#), ४२६२९-५(+#), ४२७४१-१(+#)
अनंतजिन होरी, मु. धर्मचंद्र, पुडिंगा. ५, पद्य, मूपू (मोरो मनडो बस कर लीनो), ४२२२१-२(१)
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अनाथीमुनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., ढा. ५, गा. ७१, वि. १६४७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नायक), ३९६३७(१)
अनाधीमुनि सज्झाय पंन्या. रामविजय, मा.गु. गा. ३०, पद्य, मूपू (मगधाधिप श्रेणिक), ४०००९ (+), ४२१७०-३(+) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू, (श्रेणिक रववाडी चडयो) ३९८२५-२(+०) ४२७२७(+), ४०३५७-११०), ४०४८८(०), ४०४२६-१८००)
अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं. गा. १९, पद्य, म्पू., (मगध देश को राज राजे), ४१७२९-३
अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (उपदेश न लागे अभव्यने), ४२८९१-५(+#), ४३२७८-५
अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६. वि. १८वी, पद्य, मूपू (अभिनंदन जिन दरिसण), ४३१८०-२(+), ४२४०४-२(क) अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे करजोडी वीनवु रे), ४११०३-४ (# ), ४०४६०-५ (),
४०९६०-२ (-)
अभिनंदनजिन स्तवन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (तुमे जोजो रे वाणीने), ४३१३१-२, ४३३२०-१(m) अभिनंदनजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ७, वि. १८२०, पद्य, श्वे. (अभिनंदन जिन वंदिये), ३९४५१-५ (+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु बलिहारी ताहरी), ४२१३५-४(+#)
अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( दीठी हो प्रभु दीठी), ४१४६४-६(+#),
४१७८७(५), ४३२३७-२०१
अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( संवर रायना नंदना रे), ४२६०७-४(+#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (साहिबा अभिनंदन जिन), ४२६०७-७(+) अमकासती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २३, पद्म, मृपू. (अमका ते वादर उगते), ४२७२३ (+४) अमकासती सज्झाच, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू (अमका ते बादल उगीयो), ३९४२३(+)
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अमृतध्वनि कवित्त, पुहिं., गा. २, पद्य, (दमकिते दंताले), ३९७००-३(#)
अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ४१५४५-१(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५२९ अरजिन सवैयो, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (शशधर सम वदन रदनघर), ३९५१५-२ अरजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागळ तुन्ने रे किम), ४१७५८-४(#) अरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आराधो अरनाथ अहोनिस), ४११०३-१८(#) अरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सकल सुखाकर गुणरतनागर), ३९५१६-३(+) अरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरनाथ अविनाशी), ४१६७७-६(+#) अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअरजिन भवजलनो), ३९२७३-६(+#),
४१४६४-९(+#) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनj, ४०००६(#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (चंपानगरथी चालिया), ४०३३५(#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ३९७८०-१(+#), ४३०२१-१(+#),
४३२०३, ४११५०-१(#), ४२१८४-१(#), ३९६७१-१(-) । अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ४१६८३-३() अरिहंतपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय श्रीअरिहंत), ४२७७५-३(+#) अर्जुनमाली संधि, उपा. नयरंग वाचक, मा.गु., गा. ६९, वि. १६२१, पद्य, मूपू., (सतिकरण सिरि संति)४००१६(#$) अर्जुनमाली सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिणराय तणी), ३९३२०-२($) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. गुलाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (आबु परबत सिखर सुहामण), ४१७७७(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आवो आवोने राज श्रीअर), ४०६५२-६(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, ग. दुर्गदास, मा.गु., गा. ११, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (म्हारो मनडो ऊमाह्यो), ४००८८-४(+#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (आबु अचल रलिआमणोरे), ४३४५७-५(#) अल्पबहुत्व ९८ बोल स्तवन, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पन्नवणा श्रुत त्रीजि), ४०७६६(+) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ३९९१५-१(+#),
४०३२१(+-2) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ४२९४६, ४३३४१-४(#) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (एके उणा पंच वर्ग जिन), ४०७९६-२(#) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. न्यायविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजगृही उद्यानमा), ४०६४५-५(+#) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ४२९४३(+) अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिई भाव), ४०७२९(+) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अष्ट करम चूरण करी रे), ४०९२३, ४३२०४-१(#) अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ४२४१९-२(+#), ४१८८९-१, ४२४३४-२(2),
४३१०६(#) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आछे लाल जी गणधर), ३९९४०-३(+#) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ४०४८६-३(+), ४००६३,
४२८९०-२(#) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ३९५५१(+#),
४०९१८-१(+#), ४१०२०(+#), ४१४७७(+#), ४३२४८-१(+#), ४३३८२, ४२८१८-१(#), ३९११९-२(s), ४३३११(६) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मपू., (पंचतिरथ प्रणमुंसदा), ४१४७२(+),
४१९७६(+$), ४२२०८-१(+#), ३९०९३, ४१६२१-१, ४३३७४-१, ४२३०५(#), ४२४६०-१(#), ४३२८९(#) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ३९०६२-१(+$), ३९३६४-३(+#),
४१७७४-१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ४०१४६(+#),
४०८५५-२(+), ४०९४४-२(+), ३९५९६-२(#), ४२२८२(2), ४२७६५-३(#), ४२७८२-७(#) अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ४१६३४(+#), ४२१६४(+#), ४२११५, ४३१७४,
४१९२७(#), ४२४८५(#), ४३३९७-१(२) । अष्टमीतिथि स्तुति, आ. सुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीशे जिनवर), ४०७९३-२(+) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ४१३६३-३(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ४१८६२-३(-$) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सकलकुशल कमलालय अनुपम), ३९७८९(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ४२१६०(+#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ४२७४५-५(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ४०१०४-२(+#),
४२२६८-७(+#), ४०६८४-२(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अष्टापद अरिहंतजी), ४३४५७-६(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ४२१५३-४(+#), ४२८७६-३(+#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर समोसर्य), ४११७१-३ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूक्ष्म रज आकाश थकी), ४०७४४(+#), ४३१०३-२(+#$) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइ), ४१४४२(+#), ४०९०३, ४२५६१(#),
४२६६०(#), ४२७५४(#) असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ३९८४२(+), ४१४७६-१, ४२९९०(#) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ३९७१९-१(+),
४०९०६-१(+#), ४३००७(२) अहिंसा सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चित्त चतुर चेतन), ४२८२७-१ आचार्यपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनपद कुल मुखरस अनिल), ४२७७५-५(+#), ४२२८७-४(#) आचार्यपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (खंती खडगथी जेणे), ४२२८७-५(#$) आत्मतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ३९४६६-१(+) आत्मध्यान पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आतमध्यान समान जग मे), ३९०७१-१(#) आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ३९१८१(#$), ४२८२१(#) आत्मनिंदा लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तप जप मे नही), ४२३३०-१(+) आत्मप्रबोध सज्झाय, आ. विजयचंदसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), ४१६८३-१(६) आत्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (सिद्धं आ भावना रोज), ४२२३९(१) आत्मशिक्षाबत्रीसी, मु. खेम, रा., गा. ३२, ग्रं. ३२, पद्य, मूपू., (पापथांन अढारे पूरौ), ३९८४४-१(#) आत्मशिक्षा सज्झाय, क. ऋषभदास, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (अनुभवियानां भविया), ४२२६७(+) आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ४२०६५(+) आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदेसरना १३ भव), ४०९५४-२(१) आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (देव मो दीदार दीजै), ४०२१४(१) आदिजिन आरती, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय नाभि नृप नंदन), ४२२४०-२(+#) आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती आदिजिणंदा), ३९६२२-२(+#) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ४०४७२-८(+-#), ४१७०९-१ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ४०४४०-२ आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरु), ४२५९१-१(2)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत),
४३२४२-२(+#), ४२९४८-१(#) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ४२०१९(+#) आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभि नरेसर कुल कमल), ४००१५-१ आदिजिन पद, मु. आणंदविजय, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मोतीडै मेह वुठारे), ३९८४९-४(#) आदिजिन पद, आदमखान, पुहि., गा. ३, पद्य, जै.?, (बाबो रिषभ बैठे), ४२३०६-३(+#), ३९५५६-३(#), ३९८४९-९(#),
४०२०४-२(#) आदिजिन पद, मु. आनंदहर्ष, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सबी सखि बनठन ठाढे), ४०२८६-४(+#) आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), ३९८४९-१०(#) आदिजिन पद, मु. गुणविशाल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब मोहि तारेगें), ४०६४१-२०(+#) आदिजिन पद, मु. गुलालविजय शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुगटपार वारि वारि), ४३४१८-४(+#) आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नित ध्यावो रे रिषभ), ४१६६३-१९(+#) आदिजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (लग्या मेरा नेहरा), ४०६६०-१४(+#) आदिजिन पद, क. देपाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहुगण सारी बेडली आठे), ३९५०६-१(+#) आदिजिन पद, भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नाभ नंदनसूं लगी लव), ४०९१०-३(-2) आदिजिन पद, मु. मेघसुंदर, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी थारी सुरतरी), ३९८४३-३(+#) आदिजिन पद, मु. राजसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (लगी हो लगन कहो केसै), ४१६६३-६(+#) आदिजिन पद, मु. लाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (लाल मृदंग सुगंध), ४१८०६-६(१) आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो सखी वंदन जाइये), ४२३७२-११(+#), ४१८२३-३, ४३०४९-४(2) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ४१८४६-२(+#), ३९५८५-३, ३९९३३-२(#),
४०६०५-३(#) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), ४०२८६-१५(+#), ४१७६९-६(#) आदिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभिजी को नंद), ४१७६९-७(#) आदिजिन पद केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मारा केसरीया माहाराज), ३९८४९-८(#) आदिजिन पद-धुलेवा, मु. गुमानविजय, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (धुलेवा सांम धणी), ४२००१-३ आदिजिन पद-धुलेवा, मु. रत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोस नेह धरी महाराज), ४१७१४-२ आदिजिन प्रभाति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदजिन रटण कर), ४२६२६-५(+#) आदिजिन फाग, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अब कर ले भजन जिनेस्व), ३९५७९-३ आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ४२२५२-१(+#),
४१९४२-२(#) आदिजिन मरुदेवीमाता पद, मु. रूपविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ललाजी तुम्ह तौ भलै), ४०४८९-२(+#) आदिजिन रेखता, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुझे है चाव दरसन का), ४३४२६-२(#) आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ निर्वामी), ४०५६०-२(#) आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सीस नित नमुनाभीनंदन), ४०५९४-२(+#) आदिजिन लावणी, म., गा. ३, पद्य, श्वे., (आधी नमी तोमी आदीनाथ), ३९९५२-१ आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर वंदु पाय),
४२६४०(+#), ४१७१५-२(#$) आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू., (सुण जिनवर शेजेजा),४१४४०(+#), ४२६४३(#) आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३९१६४(६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर),
३९३३०-१(+#), ४२०१२-१(#$) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत),
४१४९७(+#), ४२०८६(+), ४१२९१ (#), ४३११८(२) । आदिजिनसीमंधरजिन पद-राजपुरमंडन, पुहिं., पद्य, मूपू., (श्रीराजपुर नगर के), ४१९३३-४($) आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय त्रिभुवन आदि), ३९६५०-७(#) आदिजिन स्तवन, मु. अभयराज ऋषि, मा.गु., ढा. २, पद्य, श्वे., (सयल जिणेसर प्रणमी), ३९५०२(#) आदिजिन स्तवन, मु. अमी ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (आवो आवो हमारे घर), ४०६९३-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ४०४४८(+#), ४२४२१-१(+#$),
४२५०२-१(+#), ४२२९६-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. आनंद, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हे प्रभु० आदि जिनंद), ४०७१३-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभ जिनेश्वर), ३९७९९-१ आदिजिन स्तवन, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पढम सारद तणं सुद्ध), ४०९४७(4) आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ४२५३७(+#), ४३०२४-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. कमलविजय, गु., गा.७, वि. १९६४, पद्य, मूपू., (आदीश्वर दादा आप बीरा), ३९६९२-१ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ४१९१३-१(+#), ४०९१७(#) आदिजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर पूजवा), ४३०५४(#) आदिजिन स्तवन, मु. चत्रभुज, मा.गु., गा. ११, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (--), ४१९२१-१(-#5) आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदि जिनेश्वर अरज), ४०२७१-२(#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), ३९६०६-५, ४११०३-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंतजी रे), ४१७०५-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद वधामणां), ४१६०९-२(#) आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदशुंप्रीतडी), ४२०४६-३ आदिजिन स्तवन, मु. धरणेंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभु भेटण भाव), ४२००९-४(+#) आदिजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर राय), ४२०६०-३(+#) आदिजिन स्तवन, मांगरोल मंडल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदी जिणेसर साहेबा), ४२२५८-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. माणेक, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (देख्या श्रीनाभि का), ४३२९८-१ आदिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (माता मारुदेवीना नंद), ४०७३०-१(2) आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), ४३४१८-३(+#) आदिजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ६, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर चरणकमलने), ३९४५१-४(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदीसर जगदीसरू रे), ४२१३५-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ३९९९६-३(#), ४०४९३-१(2) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो मरुदे), ३९९९६-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. रत्नचंद्र, पुहि., गा.८, वि. १९११, पद्य, स्था., (देखो जी आदिसरसामी), ४१३०८-६(+#) आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो), ४२३०६-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिशर जिन भेट्या रे), ४१६८७-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ४०२७९-१(-2) आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (रीखबजी थे इहो संजम), ४०४८०-१ आदिजिन स्तवन, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिजन प्रमुपाय), ४०३७३(-#) आदिजिन स्तवन, मु. रूपविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पेहेला तिर्थंकर), ४१६४०-२(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
आदिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे प्रथम), ४१६४०-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. लाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (हरे वीरलो पावेने), ४२०९६(+)
"
आदिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (आदि जिणंदा परमानंदा), ४२०९५-१(+)
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आदिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८४७, पद्य, मूपू., ( हो प्रीतलडी लगन थई), ४२०९५-२(+), ४०९२१-२(#)
आदिजिन स्तवन, मु. विनवविमल शिष्य, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू., (आज ऊजम है मुझने), ४११४०-२०१ आदिजिन स्तवन, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी आदिसर अवधार), ४०७६९-१ आदिजिन स्तवन, मु. विमलसोम, मा.गु., ढा. ४, गा. २६, पद्य, मूपू., (जिनवर चरणकमल नमी), ४०८५४ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (आदिजिनेसर विनती), ४०२४१-१(+) आदिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उभो रहेने हो जीउरा), ३९२१६ आदिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ८. वि. १९१८, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभजिन नम) ४२०९४-१ आदिजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवि सेवो रे देव), ४२१६६-२(#)
"
आदिजिन स्तवन, मु. शुभविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभिनरिंदनो नंदन वंद), ४१०१७-१(#) आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (विमलगिरि सिखर गजराज), ३९८०६(#) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (जी रे आज सफळ दिन), ४१४३३-२, ४१६०७-१(क आदिजिन स्तवन, मु. हेतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु ऋषभस्वामि अंतर), ४२१६१-२ (+#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५६, पद्य, भूपू., (सरसतीदेवी चरणकमल), ३९७३६-१(१)
आदिजिन स्तवन -२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु. बा. २ गा. २६, पद्य, मूपू., ( आवसर हो सोवनकाय),
३९१८२(१
आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (मनवचकाया त्रिकरण योग), ३९८९२(+) आदिजिन स्तवन -अर्बुदगिरिमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु गा. १९, पद्य, भूपू (आबूतीरथ अतिभली), ४०५६७-२(+) आदिजिन स्तवन- अष्टापदतीर्थ, मु, भागविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ४३०४७(+), ३९७७२,
,
४२९८६, ४१२९४५१, ४१३३६(१)
आदिजिन स्तवन- ओसीयातीर्थ, मु. गयवर, रा., गा. ११, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (मासु मुढे बोल बोल), ३९९४८(+) आदिजिन स्तवन केसरीबाजी, मु. फतेचंद पंडित, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हांजी तोरी सोवनी), ३९७४१-२०१ आदिजिन स्तवन -घांणोरामंडन, मु. विनोदसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भविया घाणोरामंडण), ४०९४९-१(+#) आदिजिन स्तवन - जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ४०९७२-१(+) आदिजिन स्तवन - देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (पहिलु पणमिअ देव),
५३३
४२४१८(+)
(२) आदिजिन स्तवन - देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलकमहोपाध्य), ४२४१८(+#) आदिजिन स्तवन धुलेवामंडन, मु. ऋषभदास, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मरुदेवीना नंद थारा), ४२२९६-३(#) आदिजिन स्तवन - धुलेवामंडन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल गुण केरो साहबो), ४०१३३(०) आदिजिन स्तवन - भागोरप्रतिष्ठा, मु. क्षमाकल्याण शिष्य, मा.गु., गा. ८, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (भवि भावै भेटो ऋषभ), ४०४२७(#) आदिजिन स्तवन -भृगुकच्छ, मु. धरणेंद्र, मा.गु., गा. ७, वि. १९४६, पद्य, मूपू., (जिनपति आदिस्वर नमुं), ४२००९-३(+#) आदिजिन स्तवन- मुंबईबंदरकोटे भायखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.गु, ढा. ७. वि. १८८८, पद्य, भूपू (सुखकर साहेब रे पामी),
४२८९४(१)
आदिजिन स्तवन - रांदेरबंदरमंडन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हु तो वारी रे), ४२८५६-३(+#) आदिजिन स्तवन - राणकपुरमंडन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७. वि. १७९३, पद्य, मृपू., (जगपति जयो जयो), ४१६४०-३(+) आदिजिन स्तवन - राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६. वि. १७१५, पद्य, मूपू. (राणपुर नमी हियो रे), ४१७०८-१(०) आदिजिन स्तवन -राणपुर, मु. खूब आनंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (सुगुरु पद पंकज प्रणम), ४२०४५-१(+#) आदिजिन स्तवन - रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (अदभुत रूप अनुप खरो), ४२०६४-१
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर वीनती हो), ४२५८९(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, ग. उदयविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्यारी ते प्रीउनइ), ४०६३६-२(+#), ४२०६०-१(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (जिनजी आदिपुरुष), ४०६४१-८(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमलासलगढ मंडणो), ४२०६०-२(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, पं. नायकविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीआदि जिनेश्वर), ४२११४-३(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. भावविजय, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (सेव॒जे गिर कून), ४२००९-२(+#) । आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऋषभ की मेरे मन भगति), ४०२८६-१४(+#) आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्व गर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), ४१६४०-४(+) आदिजिन स्तवन-सेनापुरमंडन, मु. अमरविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३६, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (गुरुचरण कमल नमी रे),
४२७७८(+) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ४३०१३-२(+),
४०३६५-१(-2) आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ४२३७७-२(+),
३९०५८, ४०७९०, ४२६४७(#) आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बेसी आवे), ४०४३१-२(+#) आदिजिन स्तुति-शत्रुजयतीर्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पहिला पूजो श्रीआदि), ४०२८२-२(+#) आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो),
३९९१९-१(-2) आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहो जी), ४२५६९(+#) (२) आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुष कउ आउखु हवडा), ४२५६९(+#) आदिजिन होरी, मु. रंग, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अपने रंग से रंग दे), ४२२२१-१(#) आधासीसी कथा, पुहि., गद्य, वै., (ॐ नमो पैठाणपुर पाटण), ४०८८८-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधु सो जोगी गुरू), ४३२६५-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नाम हमारा राखे), ४२२६८-५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आये उपाय कर), ४२३७२-८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आस्या औरन की कहा), ४०१०२-९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (एसो ज्ञान बिचारी), ४३२६५-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (औधूं क्या सौचे तन), ४०१०२-८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (किन गुन भयो रे उदासी), ४०२८६-१९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुबुद्धि कूबरी कुटिल), ४१३७७-६(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्या सोवै उठि जाग), ४१३७७-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जिया जानै मेरी सफल), ४१३७७-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो कुडी दुनियांदा), ४२६६२-४(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउ थारी), ४१८४२-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (माहरओ बालूडो सन्यासी), ४१३७७-५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउरे मत), ४१३७७-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुहागणि जागी अनुभव), ४०१०२-२(+#), ४१३७७-४(+) आध्यात्मिक पद, मु. ऋषभदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (यह चेतन या होरी रे), ३९८४९-६(#) आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (केसी वीध समझाउरे), ४०४३३-३(+) आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (तरक संसार सैं), ४२०२४-२(4)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५३५ आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (बोल रे बोल अब चुप), ४२०२४-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोहं सोहं सोहं सोह), ४२६८८-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ए जिनदास जुठोरे), ४२६६२-२(2) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञान नही पाया नही), ४०८०७-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, स्पू., (तु मत जो जग विचलीया), ४०५६०-१(2) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (समज मन मेरा मतवाला), ४०५९४-१(+#) आध्यात्मिक पद, मु. जुगराज, रा., गा. १५, वि. १९००, पद्य, श्वे., (चालो चेतनजी महफल माय), ४१७४० आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसमुद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (कोन धर्म को मर्म लहे), ४०६४१-१७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (एही अजब तमासा औधू), ४०२८६-१२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (और खेल भव खल वावरे), ४०२८६-१३(+#) आध्यात्मिक पद, क. दलपतराम, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे.?, (चेत तो चेतावू तु), ४१५७६-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. देवसुंदर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (आतम परदेसी रंग), ४२३७२-१०(+#) आध्यात्मिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जीवा ते मेरी सार न), ४३१९५-४(-2) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ४०६०५-४(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ४१८४६-६(+#) आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (समकित श्रावण आयोरी), ४०६४१-५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तने हसी हसीने समजावु), ४२७०८-२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (है इस सहिर विचको), ३९८६२-५(#) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीये), ४०६४१-१९(+#) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (किसके बेचेले किसके), ४०१८४-१(+-#), ४३४६०-२(+#) आध्यात्मिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात भयो प्रात भयो), ४०१०२-७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. हजारीमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मंगल गावो रे मंगल), ४०६१८-१०(#) आध्यात्मिक पद, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सिद्ध निरंजन में), ४०६१८-९(#) आध्यात्मिक पद, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (सूगरु मेरे वरषत वचन), ४०६४१-३(+#) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (कुमति तो हिवे चूरी), ४०२८६-९(+#) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जालम जोगीडा से लागी), ३९५५६-२(2) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोयो तुं बोहोत काल), ४०४८९-५(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (धरिय उमाहो रस भरी), ४०९२१-१(#) आध्यात्मिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतना राणी रे रायजी), ४२५४४-१(#) आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (अरिहंत राजा मोहराय), ४०६७२-२(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे जो जो रे भाई), ४२५१७-२(#) आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सासरीये इम जइये रे), ४१२९७-२(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारुं मारु म कर जीव), ४२५७६(#) आध्यात्मिक हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक अचंभो जगमां मे), ३९७१२-१(+) आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ४२१५६(+), ४२६००-१(+) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली कहतां इंद्री), ४२१५६(+), ४२६००-१(+) आध्यात्मिक हरियाली, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे.?, (करेलना थड देरे थड), ४००२२-१५ आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (फागुन में फाग रमो), ३९५७९-१ आध्यात्मिक होरी, मु. रत्नसागर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिदानंद खेले होरी), ४१८२०-१(+#) आध्यात्मिक होरी, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (मनुषा देही पाया लाहा), ४०५६५-३(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० आनंदश्रावक परिग्रह प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यारि कोडि सोनइया), ४०७२२(+#) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ४२०४८-२(#) आयुष्य कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीनुं आयुष्य चार), ४३२८५-३(+) । आयुष्य सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्राणी आउखो तूटेने), ४११८६-२ आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ४१५७३-२(#),
४२२८८-१(#s) आलोयणापच्चीसी, मु. जडाव, रा., गा. २५, वि. १९६२, पद्य, श्वे., (अहो नाथजी पाप आलोउ), ४२१२४ आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ४२८७६-६(+#), ४१४०१(१), ४११९७(६) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं वंद), ३९६६१(#) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ४२७५५(+),
४३०००(+#), ४०६९१(#) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ४०७३५(+#),
४२६९४(+#) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, वा. मेघराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वय बालक आषाढामुनीसर), ४३१२५-२(+#) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे.?, (गाम नगर पूर विचरतां), ४१८३७-१(+) आहारगवेषणा सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ४३००२, ४२५७२(#),
४२७२४(#) इक्षुकारमुनि सज्झाय, भट्टा. तिलकसूरि, मा.गु., गा. १९, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (कमलावती राणी कहै हो), ४०७२५(#) इरियावही सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्ध आचारज), ४०३९०(+#) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), ४१४६४-५(+#), ४०२२९(#),
४०७५८(२) इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा),
३९२४०(+$) इलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), ४१०७०(+#) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (धनदत्त शेठनो दीकरोए), ४१३०८-४(+#), ३९५७६ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ४२५५३-१(+#), ४१६८३-२ इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाम एलापुतर जाणीए), ४२६९५-१(#) ईश्वरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इसरजिन नमीयइ सदा रे), ३९५१६-५(+) उज्जयिनीनगरीवर्णन ढाल, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (तिहां कण कंचन कोट), ४२४७१(+#) उद्योतसागरजीने ठाकरसिंह श्रावक को लिखा पत्र, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री आदिजिन), ४१९८०-२(+) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ४२९०१(+), ४३३१९-१(+), ४२९०२, ४२९२५,
__४२८३२(5) उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (निठ निठ नर भवे लहो), ४१६२९(+#) उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., गा. २५, वि. १८२०, पद्य, स्था., (जीनवर दिए एसो उपदेश), ४२८४४(+#) उपदेशबत्तीसी, मु. द्यानत, पुहि., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाना हो भाई), ४१००३-२(#) उपदेशबत्तीसी, पुहिं., गा. ३१, पद्य, श्वे., (आतमराम सयाने झुठे), ४१२०४-१(#) उपधान आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चलवडौ अणपडिलेह्यां), ३९८४७(#) उपधानविधि सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सारद मात लही सुपसाया), ४१३०३ उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (भयभंजण रंजण जगदेव), ४०१९१(+) उपाध्यायपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (धन धन श्रीउवज्झाय), ४२७७५-६(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५३७ उर्ध्वलोके प्रतिप्रतर वृत्तादिविमानसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ३९७२७-१(+#) ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (रिषभादतन देवानंदा), ३९९४२-२ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मल्लि जिनवरने नमी कर), ४०७९६-३(#) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसीरेनणदल), ४२००१-२,४२८९०-१(#),
४३०२७-३(३), ४३२३२-२(-2) एकादशीतिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, स्पू., (हरि पूछे श्री), ३९९४०-४(+#$) एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एकादसी तप किजीये), ४२००१-१, ४२३५४-२(#) एकादशीतिथि स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर नत चरण), ४०७३८-१ एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ४०८८०(+),
४०९३३(+), ४०६२४, ४१५७८, ४१६९३-२, ४२७११, ४३२३४, ४११८८(#), ४२४७४(#), ४२६६८(#) एषणीयआहार समयप्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चावल पहुर ४ राब पहर), ४१८७७-१(#) ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (देवी सेवी कोड कल्याण), ३९७७०-२(+#) औपदेशिक कवित्त, मु. भद्रसेन, मा.गु., पद. ३, पद्य, म्पू., (ताल गिहय वरही सति गय), ४०७९५-२(#) औपदेशिक कवित्त-जीभोपरि, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (जीभ जनम उधरे), ४०८५३-३(#) औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, मपू., (कीमत करन बाचजो सब), ४११३२-२(+), ४२९३८-२(+#) औपदेशिक कुंडलियो, दिन, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे.?, (दिन देख संसार विचार), ३९७५४-३(#) औपदेशिक गीत, द्वारकादास, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (केवल जिनरामाहरे), ४२७३४-४(+#) औपदेशिक गीत-आत्मशिक्षा, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (--), ३९३७३(5) औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (दुलहे नरभव भमता दुलभ), ३९४४६-४(+#) औपदेशिक गीत-जीवप्रतिबोध, उपा. समयसुंदर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (--), ४३२५२-१(+$) औपदेशिक गीत-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक अरिहंतजी अवरनई), ३९४४६-५(+#) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ३९८८७-१(#), ४१६९२(#) औपदेशिक पद, मु. आणंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रात गई अब प्रात होन), ४०२८६-७(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (मनवा जिणंद गुण गाय), ४३०४९-३(#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मानो क्यु नै), ४१६६३-१३(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (छोटीसी जान जरासा), ४१६६३-७(+#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ९, पद्य, वै., (कर गुजरान गरीबी में), ४०४३३-२(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (कौन करै जंजाल जुग मै), ४०३४६-३(#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (तें तो कोण कम), ४२३३०-३(+) । औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (वंगला खुब वण्या), ४२६५८-७(+#) औपदेशिक पद, केशव, पुहिं., गा. ३, पद्य, जै.?, (ठालीय वात जुआय), ४१८०६-७(#) औपदेशिक पद, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एसी बतीयां कुमती कहा), ३९५७९-२ औपदेशिक पद, मु. चुनीदास, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (गफलत मे सारी उमर गई), ४०४४०-७ औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोण नींद सुतो मन), ३९८४९-७(#) औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समरन मनवंछत फल खेती), ४०२९४-३(+-#) औपदेशिक पद, मु. जगराम, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (पुनः यो अवसर फिर), ४०६४१-४(+#) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ३९५७७-२ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तेने केसी फकीरी करी), ४१२४५-२, ४३४५८-१ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीव), ४०६४१-१४(+#), ३९५५६-५(2) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कहा भरोसा तन का औधू), ४०२८६-११(+#)
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औपदेशिक पद, मु. डालूराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीयडा रे सौज विरानी), ४०४२०-२ (#) (ते बाधो जन्म ईही खोय), ३९८४९-२(५)
*!
औपदेशिक पद, मु. चानत, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू औपदेशिक पद, मु. धर्मपाल, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू (काहे जीव डरे रे दुख) ४०६६०-२(+०), ४१६६३-९(+) औपदेशिक पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं. गा. ४, पद्य, वे. (तुम सुनो मुगत का), ४२४०२(७) औपदेशिक पद, मु. नगजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नायक विणजारा रे अंखी), ३९८४९-३(#) (चेतन काची रे मिट्टि), ४१९३३-३ (जैनधर्म पायो वोहिलो), ४२३३०-४(+)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, भूपू औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (सुणि सुणि जीवडा रे), ३९७१२-३ (+), ४१५८४-१ औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, दि., (कित गये पंच किसान), ४०२९४-१ (+#) औपदेशिक पद, मु. भजुलाल ऋषि, पुहिं. गा. ३, पद्य, थे. (कीनी हे समाइता में), ४१५१२-३(१) औपदेशिक पद, मु. भजुलाल ऋषि, पुहिं. गा. ३, पद्य, ओ., (क्रम कमावे भारी), ४१५१२-२०)
"
"
औपदेशिक पद, मु. भजुलाल ऋषि, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पढे नवकार मंत्र), ४१५१२-४(#) औपदेशिक पद क्र. भवानीनाथ, पुहिं. गा. ८, पद्य, वै., (मार्ग में लूटे पांच), ४१२०४-४(A) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, वे., (चरखा भया पुराना रे), ३९९०९-३ () औपदेशिक पद, मु. माणेक, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समज जा गुमानि), ४२६६३-२(#) औपदेशिक पद, मु. मान, पुडिं, गा. ३, पद्य, भूपू (केस दीया सिरि सोहन), ३९८१६-३(०)
"
(घर त्याग दीयो), ४१८३७-४(क)
"
( मे हुं मुसाफर यार), ४१७६९-३(#)
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि पुहिं. गा. ६, पद्य, भूपू (चेतन अब मोहे दरशन), ३९४५२-१(+) औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुडिं, गा. ३, पद्य, भूपू (समझ समझ जिया ग्यांन), ४०६६०-१० (+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., (हक मरणा हक जाना), ४०६४१-१६(+#) औपदेशिक पद, मु. लक्ष्मी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( उपसम विण क्युं कुल), ४३३७३-१(#) औपदेशिक पद, मु. लाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मनवा जगत चल्यो जाये), ४१८२१-१ औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहां करू मंदिर कहां), ३९४५२-२(+) औपदेशिक पद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., ( इस जगत की जंजाल जाल), ४०२६९-५(+#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आजु को लाहो लीजीए), ४२३७२-५ (+#)
औपदेशिक पद, मा.गु गा. १, पद्य, वे (एक सरुपे विचार), ४०६०५-२(४)
,
""
औपदेशिक पद, मा.गु, पद्य, थे., (गाम टुकडो कवण), ४१९१९-२(+)
"
औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., ( जागि जागि रेन गइ भोर), ४३३५४-६ (+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, छे, (जीवाजी मार मुवा मत), ४२३५२-२शक
"
"
औपदेशिक पद. रा. गा. ३, पद्य, थे., (जुवा आलस सोग भय), ३९१०७-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (दीननी केवी ते जाति), ४२३३०-५ (+) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. १०, पद्य, वै. 2 (धर ध्यान निहालडा रे), ४१२०४-२(क) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, वै., (पेट रामने भुरा चणाय), ४२६५८-३(५०) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, वै., ( प्रदेसी रो कांई पतीय), ४२६५८-६ (+#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १, पद्य, ओ., (साधवीयाने जडणो), ४१७५८-७(ण औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (साधु भाई अब हम कीनी), ४०९१८-३(+#) औपदेशिक पद, मा.गु, गा. ४, पद्य, थे., (स्नान करो उपसमरसपूर), ४०४२८-२(१
"
औपदेशिक पद कायोपरि, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (काया हे असुच ठाम ), ४१५१२-५ (#) औपदेशिक पद -कायोपरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (काया मांजत कुन गुना), ४१६८७-४(#)
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५३९
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
औपदेशिक पद-तीतरतीतरी, वसतीराम, पुहि., पद. ४, पद्य, वै., (एक समो भई घर से पारध), ४१२०४-३(#) औपदेशिक पद-तृष्णापरिहार, गंगाराम, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (भजन वणत नाहि मन सहला), ४२६५८-५(+#) औपदेशिक पद-देवगुरुधर्मतत्त्वगर्भित, मु. हजारीमल, पुहिं., गा.४, पद्य, श्वे., (देव गुरू धर्म तीन), ४०६१८-३(#) औपदेशिक पद-भवकारवाली, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (माला प्यारी रे माला), ४०६१८-१३(#) औपदेशिक पद-निंदाविषये, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विर कहे तमे सांभलो), ४२६६५-२(#) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ४३३१२-४(#) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ४१७३४-२ औपदेशिक पद-भोगोपरि, मु. जिन, पुहिं., गा.४, पद्य, मूपू., (ये भोगबद कला कोई भोग), ३९६३४-४(+) औपदेशिक पद-मोक्षस्वरूपगर्भित, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सिद्ध रिद्ध शुद्ध), ४०६१८-१(#) औपदेशिक पद-चैराग्य, मूलदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (वैरागना पदने वीघन), ४२६२६-३(+#) औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहि., गा.६, पद्य, मूपू., (धरम को ढोल वजाय सखी), ४०५११-३(#) औपदेशिक पद-शीलविषये, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (सितासतीने सील जो), ४०९८७-१(#) औपदेशिक प्रभाति, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रभाते उठीने प्राणी), ४२६२६-२(+#) औपदेशिक प्रभाति, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे समझने मुरख्या), ४२६२६-१(+#) औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवदयाने विशे रमवु), ४३०८४(+) औपदेशिक रेखता, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (कुलकर्म को सौधर्म), ३९९७३-१(१) औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (खबर नहिं हे पलकी), ४०१८३-१(+) औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ३९१४३-३(+) औपदेशिक लावणी, मु. जडाव, पुहि., गा. ५, वि. १९५१, पद्य, मूपू., (पाप से जीव), ४२०१४-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुमत कलेसण नार लगी), ३९५७७-३ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (गइ सब तेरी शील समता), ३९५७७-१ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकृत की बात तेरे), ४०५६०-३(#) औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (कर कर भजन साहिब का), ३९५६६-२(+#) औपदेशिक लावणीकायाउपदेश, मु. देवचंद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (कायारे कहेती मन), ४२६५८-२(+#) औपदेशिक वसंत, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम खेलो नर एसो वसंत), ३९८७२-४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (यो भव रतन चिंतामण), ४१४५३-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रणमुसदगुर), ४२७०३-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (संजमे साणी बेनि), ४१९९७ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (प्यारी ते पीउने इम), ४१५४५-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समय सांभळोरे आखर), ३९९४७(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋषभसागर, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (करो रे कसीदो इन विधि), ४०७१३-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपासागर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चेतन चेतोरे भवियण), ४२२७८-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (--), ३९४४८-१(+#$) औपदेशिक सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जागरे सुग्यानी जीव), ३९८४४-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. गुलाबचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (श्रीगुरुने वंदन करी), ४०६३५(#) औपदेशिक सज्झाय, चंदुलाल, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (विसै नरसा तुं से), ४१३०८-५(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ४०४१२-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तने संसारी सुख किम), ४३२७२ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनराज, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (काया कामण वीनवै जी), ४१७५८-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर अरिहंतनी चाकरी), ३९७९४-२
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५४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जुग मे जीवन थोडो), ३९८६२-९(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. जेठमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेतन रेतूं ध्यान), ४२५९४-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. २५, पद्य, स्था., (चेतन चेतियोरेमानुष), ४०६८९(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (खटपट छारि द्यो सहू), ४०६५०-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नाहलो न माने रे), ४३२३३($) (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावनामांहि), ४३२३३(s) औपदेशिक सज्झाय, दलपतराम, मा.गु., गा. १२, पद्य, वै.?, (जोने तुं पाटण जेवां), ४२३७९-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. दलपत, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सजी घर बार सारु), ४२३७९-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया तु चलि संग हमार), ४३१९५-३(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनदास, पुहि., गा. १६, पद्य, श्वे., (सतगुर कहै भव सांभलो), ३९१२०-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (तु तोड करम जंजीर), ४१४८८-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ४३३१२-७(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चेतन समजो राज मन), ४००६७(+#) औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ३९५५०-२(+$), ४१८४३-४(+), ४२४५५-६(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. माणेक, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुण प्राणीडा अरिह को), ४२३१७(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मुरार, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (चोरासी लख जोण मे रे), ४०७७२-२(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा.६, पद्य, मूपू., (चिदानंद अविनाशिहो), ४०१८४-३(+-#) औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (विणजारा रे वालंभ सुण), ३९८३६-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (करि करि परि उपगार), ३९८१६-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लक्ष्मी, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू, (सांभल रेतु सजनी मार), ४०४६८(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ३९८००-२ औपदेशिक सज्झाय, वच्छमल, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (देसडलो विडाणो जी), ४०७१३-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ४२८१३-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतजोरे एकाळ), ४३२३८ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ४०३५७-३(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बूढा ते वली कहीये), ४१९५३-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुजी ऋषि, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखो टुटाने साधो), ४०५९६-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. साधु, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुर), ४१२६१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ए जीव दुखिओ थाय सजनो), ४३२७३-२ औपदेशिक सज्झाय, पंडित. हरसुख, पुहिं., गा. ६, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (काया काची रे भव जीवा), ४०५१६-२(#) औपदेशिक सज्झाय, पंडित. हरसुख, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (कुमत कु छोड दे भाई), ४०५१६-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (अब सादसादवी सदा व्रत), ४०२६९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (कडवा बोल्यां अनरथ), ४३०४८-२(+#), ३९८७१(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, वि. १६२५, पद्य, मूपू., (किस विधि जीवडे), ४०७६८-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (कूकुजी बरणी हुंती), ४१८६६ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (क्या तन माजना बे), ४३३१२-२(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (चांगले एसी करना), ४१९२२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेतन ध्यान धरो), ४२३३०-७(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव जींदगी जाए अकारी), ४१५७६-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीवडा म पडीस), ४०५४७-२(१)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (तु तो हुँतो वोपारि), ३९१११-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (दादाजी थारा चरणांरी), ४०३००-१(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), ४३१९५-२(-2) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (नव घटी मे भटकत), ४१८३७-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पंच सवल तुम्ह पामीया), ४०६७७-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पांच सुमतीने पासे), ४०८०६-२(2) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, श्वे., (ब्रिह्मज्ञान नही जान), ४०९०८-४(+#$) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (रे अबदु ऐसा ग्यान), ४२३५२-१(2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (विषिया लालच रस तणो), ४०७०२-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सोहबत थोडी रे जीव), ४०५९०-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (हटवाडा में लाजि सो), ४०७०३-२(१) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (हिवडा तो जीव पचैरे), ४०२९३(2) औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जिनवाणी मन धरी), ४२४२१-३(+#) औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मायाने वश खोटे बोले), ३९७४७(+#),
४१३१३(#) औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पिउडारे पिउडा नरभव), ४३२७६-१(#) औपदेशिक सज्झाय-आत्महित, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (माहरुमाहरु म म कर), ३९८५८-१ औपदेशिक सज्झाय कनककामिनीविषये, मु. राम, रा., गा. १५, वि. १९१८, पद्य, श्वे., (मूरख लखजरे कनकने), ४०४३३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कायानगर सरूप सुहावै), ४१७०८-४(#) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तो सुख जो आवै संतोष), ४१७०८-२(#) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (काची रे कायाने काची), ४०४८०-२।। औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधना), ४२६१३-१(+#),
४२८९१-१(+#), ४३२७८-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हारे लाला क्रोध न), ४०९४२-३(#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), ४२४५५-१(#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ३९९०८(+$), ४०७१६-१(+#),
३९२१५, ४३४०१-१ औपदेशिक सज्झाय-चोरीविषये, मु. मणिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चोरी चित्तथी परिहरो), ४२८२७-३ औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरे माहरा प्राणीया), ४०२२८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुं मेरा पिय साजणा), ४०९८२-४(+#) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सकल तीर्थंकर करुं), ४०५१३(+#) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जोने तु पाटण जेवां), ४३३३६ औपदेशिक सज्झाय-जुआत्यागविषये, रा., पद्य, श्वे., (कहे सेठाणी सुणो सेठ), ४२५९४-२(#5) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), ४२७५१(#) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवे), ४२४२१-४(+#) औपदेशिक सज्झाय-तृष्णापरिहार, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (तिसना तुरणी हेतु), ४२४००(#) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ३९५१८-१,
३९५८१ औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो), ४२८४०(#)
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५४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
औपदेशिक सज्झाथ दुर्मतिसुमतिविषये, मु. चिदानंद, मा.गु., डा. ३, गा. २१, पद्य, भूपू.. (हो दूरमतडि वेरण थई), ४२६८८-१ (+), ४२६७७(१)
औपदेशिक सज्झाय भवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा. गा. १५, पद्य, वे (नवघाटी मे भटकता रे), ४२११३-२+०) ४२६९६-२०१
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औपदेशिक सज्झाय - निंदात्यागविषये, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चतुर नर चावत म करो), ३९७८०-२ (+#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ३९५३९-२(१), ३९९९६-६(१), ४२७१०-२०१
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औपदेशिक सज्झाय - निदात्यागविषये, मा.गु गा. ९, पद्य, मूपू (म कर हो जीव परतांत). ४०९८४-८ (0) औपदेशिक सज्झाथ परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (सुण सुण कंता रे सिख), ३९३४२-१(००),
४०९३७(+), ४२१०१-२+४४)
औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू.. (सीख सुणोरे पीया), ४३३१२-३४) औपदेशिक सज्झाव - परनारीपरिहार, शंकर, मा.गु.. गा. १२, पद्य, क्षे., (सुण चतुर सुजाण परवार), ४३३०२-२००)
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औपदेशिक सज्झाय - परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ४०१८४-४(+#) औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मा.गु गा. १०, पद्य, भूपू (सुण चतुर सुजाण परनार), ४१५७६न्दाका औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि कंता सीख), ४२५९०-२ (+#) औपदेशिक सज्झाय चुढ़ापा, रा. गा. २७, पद्य, मूपू (कुणे बुडापा तेडीयो), ४२९७७(+४), ३९२३७-२(६) औपदेशिक सज्झाय चुढ़ापा, रा., पद्य, मूपू., ( केइ बालपण समज्या नहीं), ४३०१६ (5)
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औपदेशिक सज्झाय चुढ़ापा, रा. गा. १९, पद्य, वे (बुढो हलवे हलवे चाले), ४३०४८-३(०५), ३९२३७-१ औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), ४२४२१-२(+#), ४२७३४-१(+#), ४१२९७-१(#)
औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५. पद्य, म्पू, (रे जीव मान न कीजीए), ४२६१३-२ (+),
४२८९१-२(+०), ४१७८०-१, ४३२७८-२
औपदेशिक सज्झाय - मानपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मान न कीजे मानवी रे), ४०९४२-४(#) औपदेशिक सज्झाय - मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( अभिमान न करस्यो कोई), ४१५३२ (#),
४२४५५-२०१
औपदेशिक सज्झाय - मानपरिहार, मु. वीर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मान न कीजे मानवी रे ), ४१९६५-१, ४१२५७-१ (#) औपदेशिक सज्झाव- माचापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (समकितनुं मुल जाणीये), ४२६१३-३(+०),
४२८९१-३(+#), ४१७८०-२, ४३२७८-३
औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( माया निवारो मन थकि), ४०९४२-५ (#) औपदेशिक सज्झाय- मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), ४२८८० (+#), ४२४५५-३(#) औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. मणिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मनथी परिहरो रे), ४२८२७-५ औपदेशिक सज्झाय मायापरिहार, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (मावा कारमि रे माया म), ४३३१२-१७) औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ज्ञान कदि नवि थाय), ४२५०४-१(+) औपदेशिक सज्झाय -मोहोपरिहार, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (मोह सुभट जीपण दोहिलो), ४०६९५-१(+#) पदेशिक सज्झाय रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपु. ( बापलडी रे जीभलडी तु), ४०६९८-२(५), ४२०७६(#)
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औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसति मति सुमति द्यो), ३९८५५, ४०७५९(#)
औपदेशिक सज्झाय लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (तमे लक्षण जो जो लोभ), ३९७५५-३०),
४२६१३-४(+०), ४२८९१-४(+०), ४१७८०-३, ४३२७८-४
औपदेशिक सज्झाव - लोभपरिहार, मु. मणिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू. (व्यसन निवारो रे चेतन), ४२८२७-४
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५४३ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ४०५५३(+), ४२४५५-४(#) औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणीओ वणज करे छे रे), ३९८८६ औपदेशिक सज्झाय-विनयोपरि, मु. हजारीमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (विनय कर भाई विनय कर), ४०६१८-११(#) औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय न राचीई), ४३४४८-२(#$) औपदेशिक सज्झाय-विषयरागनिवारणे, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मन आणी जिनवाणी जिनवा), ४२९६२(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ४०९८२-१(+#), ४१९८७ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. नेमविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरव पुन्य संयोगे), ४१५७५ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ४०२२८-३(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, रा., ढा. २, गा. ३६, पद्य, मूपू, (दुलभ मीनख जमारो पायो), ४०८६४-१ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुणो समझूसकल नरनारी), ४२८७२(#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (निसुणो सकल सोहमण), ४३३३९(#) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (सुण सुण प्राणी शीखडी), ३९३१८-२($) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही),
४२१०१-१(+#), ४२५९०-१(+#), ४१९२५, ४०९२४(#) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओरन से रंगन्यारा), ४०१०२-१०(+#), ४२५८३-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, ऋषभदेव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पापनो तो नांख्यो), ४१०३७-२ औपदेशिक सज्झाय-सत्य, मु. मणिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सत्यवचन मुख बोलीये), ४२८२७-२ औपदेशिक सज्झाय-सुखदुखविषये, मु. दाम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुखदुख सरज्या पामिइ), ४०१८४-५(+-#) औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १९३८, पद्य, स्था., (सकल सुगुन उर ओपता), ४२७२८(+#) औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हेरे), ४२२६८-६(+#) औपदेशिक सवैया, क. गंग, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (जोगीआऐ धरै ध्यान), ४०२४१-२(+) औपदेशिक सवैया, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (ॐकार अगम अपार प्रवचन), ४३३९९(+$) औपदेशिक सवैया, मु. धनदास, मा.गु., पद्य, श्वे., (प्रथम कषायवस पड्यौ), ३९१२०-४(+$) औपदेशिक सवैया, मु. धरमसी, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (खोद कोदालसू चाडीए), ४०८३७-३(-2) औपदेशिक सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, दि., (निरमल ग्यान के), ४२५३४-८(+#) औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (काम न आवत काज न आवत), ४०६६०-११(+#) औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (कुसल जै कुसल जै क्या), ३९९४२-३ औपदेशिक सवैया चोरीत्यागविषये, मु. बालचंद, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (चोरी कोई करो मती), ४०८०७-४(+) औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., पद. ६, पद्य, मूपू., (सूर छिपे घन वादलथे), ४१२४६-२(+#) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ४२३५५-१(+#), ४२८७७(+#), ४१५२५-३,
४१९४७-२(#), ४२५०९(#) (२) औपदेशिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक भव बाल्यक बीजो), ४२८७७(+#), ४२५०९(#5) औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरणे रे), ३९७१९-३(+) औपदेशिक हरियाली-समस्यागर्भित, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक पुरुष दुजो नपुंसक), ४२२१८(#) औपदेशिक होरी, मु. जीत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (समें आंण उदे भए), ४१६६३-२२(+#)
औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (--), ४१७२३-३(+) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ४१९८५(+#) ककापात्रीसी, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (कका कर सुकृत कछु), ४१५२७(+#) ककाबत्तीसी, पुहि., गा. ३२, पद्य, श्वे., (--), ३९२०४(६) ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ३९०६६-१(६)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (कका क्रोध निवारीय), ४१८१०(+#), ४१६६०(१) कनीराममुनि सज्झाय, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (पार्श्व जनेसुर), ४२०४० कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., ढा. ४, गा. ४४, पद्य, मूपू., (नमिय वीरि जिणेसर), ४०७६४(+#) कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहि., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ४२७०६-३(+#) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ४२४२१-५(+#), ४२९९३-१(+),
४०९९८-५(#), ४२८९०-३(#) कर्मछत्तीसी, पुहि., गा. ३७, पद्य, श्वे., (परम निरंजन परमगुरु), ४०९८२-३(+#), ४२५३४-७(+#) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ३९५७१(#), ४१५७३-१(#) कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), ४२०१५, ४३३२२ कर्मप्रकृति विचार *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४२४२२(#$) कर्मबहोतेरी, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ७३, पद्य, मूपू., (देव दानव तीर्थंकर), ४०९८२-२(+#) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ४०४५०-२(+#) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ४२४११-१(+#), ३९९५७(#),
४११२०-१(#), ४१६१२(2) कर्मविपाकफल सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (देव दानव तीर्थंकर), ४०९०२(+) कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नयरी कोसंबीनो राजा), ४२४२८ कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि पाय), ४१५४९(१) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (हलाहल कलजुग चल आयो), ४३३७३-२(#) कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, श्वे., (आसराज पोरवार तणै कर), ४००२३-२(+), ४२७४०(#) कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), ४०८३९(#S) कालिकादेवी छंद, य. हीरजी, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे.?, (चत्रदिशि राकस चडीया), ४२४१५(#) कालिकादेवी स्तोत्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., (करे सेवना ताहरी माता), ४३१८९-१(#), ३९८७०-२(5) काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, ?, (--), ३९९६४-४(+#), ४०२९८-४(+#), ४०८६९-२(+#), ४२५१७-३(#), ४३३६७-३(#) कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.७४, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (श्रीआदि जिनेश्वरू), ४२२५३(+#) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., ढा. २, गा. २८, पद्य, श्वे., (नगर अजोध्या रायजी), ३९०६५-२(+-) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., ढा. ७, पद्य, श्वे., (राय दसरथ पेली हुवो), ४१०८५(45) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडु किमहि), ४०४५४-१(+#) कुंथुजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन तिम हुं आवी चढयो), ४११०३-१७(#) कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (रात दिवस नित सांभरो), ४२१४७-५(+#), ४३२४८-२(+#) कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), ४२००९-५(+#) कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणंद करुणा कर), ४१६७७-५(+#) कुंभस्थापना भास, मु. दुर्लभ, मा.गु., ढा. २, गा. १८, वि. १८४१, पद्य, स्पू., (सुतदेवी चरणे नमी रे), ४१०१३(+) कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु केरि परिक्षा), ४२१४३-१(+-#), ३९७६४-२ कुमतिनिराकरणहुंडिका स्तवन, उपा. मेघविजय, मा.गु., गा. ७९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंद पय), ४१३२१(+#) कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, पुहि., सवै. ४, पद्य, वै., (धुंधूंकटी धुंधू), ३९७००-२(#) कृष्णभक्ति पद, नरसिंह, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (तुंक्यांनो दाणी), ४००२२-३ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (दरद न जाणे कोय), ४२३३०-२(+) कृष्णभक्ति पद, सुरदासजी, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (बालिम बिनुं फागु), ४००२२-११ कृष्णभक्ति पद, सुरदासजी, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (वृज मंडल देस देखाउ), ४००२२-५ कृष्णमहाराजा घुघरा ढाल, मा.गु., गा. १०, पद्य, वै., (नगरी दवारकासुकीसनजी), ३९६७१-३(-)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कृष्णराधा पद, दीपक, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (हरि मन गये ओर ठोर), ४०२९८-५(+#) कृष्णराधा पद, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (एक समे सखी ताढी हुती), ४०२९८-३(+#) कृष्णराधा पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (सखी मुने ओलू आवे), ४३४६०-४(+#) कृष्णराधा बारमासा, पुहि., गा. १२, पद्य, वै., (पहिलो महीनो आसाढ), ४०६६०-६(+#) कृष्णवासुदेव लावणी, मु. हीरालाल, रा., वि. १९५५-१९५६, पद्य, श्वे., (पुरी द्वारिका), ३९१४३-१() कृष्ण सवैयो भाग्योपरि, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (सोहै रिद्धि चह), ४१९६६-२(+) केशवगुरु भास, मु. भिक्खु, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर नित्य), ४०९५५-१(१) केशवगुरु भास, मु. भिक्खु, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सयल जिणेसर सानिध कर), ४०९५५-२(#) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ३९७३७+) केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ४१००५(+#), ४३३८३(+#),
४११५०-३(#) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, वि. १८३५, पद्य, मूपू., (पेलुं सरस्वतीनु), ४२५७८-१(+#) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ४१६४२-१(+), ४२५६४-२(+#), ४२८१५(+#),
४३०९८-१(+#), ३९३११, ४०७५०(#), ४१५२८-१(#), ४२८३१ (#s), ४३०३६(#) खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था., (नमुवीर सासनधणीजी), ३९०८९(-) खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., ढा. ४, वि. १८०५, पद्य, श्वे., (आदि सिद्ध नमोकार), ४१६२४(#), ४२८८३(5) खंधकमुनिसज्झाय, मु. कातिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (केवंता नगरी सोहामणी), ४१५०८ खंधकमुनि सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७५५, पद्य, श्वे., (गौयम गणधर मन धरु), ३९५१७-२(+) खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., ढा. ४, वि. १७३२, पद्य, श्वे., (तिर्थंकर चरणे नमि), ४०९६८(#) खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), ४३२४२-१(+#) खंधकमुनि सज्झाय, मु. सबलदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (धन धन जगम खंधक मुनी), ३९९४२-१ खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३९३२३(+$) खरतरगच्छ व ओसवालजाति उत्पत्तिवर्णन, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम गछ नहीं कोइ), ४२२४३-३(+#$) खामणा कुलक, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (अरिहंतजीने खामणां), ४२२७८-१(+#) खामणा सज्झाय, मु. अभयकुंवर, मा.गु., पद्य, श्वे., (अरिहंतजिने खामणां), ४२३९३(#) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने), ३९९६३-१ खेमचंदमुनि सज्झाय, श्राव. खीमसी, मा.गु., ढा. ४, वि. १८१७, पद्य, श्वे., (बिरद्धमान जिणवर चरण), ४३३८७(+#) ख्यालीरामतपसी सज्झाय, श्राव. भगवानदास, रा., गा. १२, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (प्रथम नमुंअरिहंत कौ), ४०९३०(+#),
३९१०७-१ गजसुकुमालमुनि पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हुकम पाय मसान मैं), ३९६३४-३(+) गजसुकुमालमुनि बारमासा, मु. सादीराम, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (मे वैरागी हो राया), ४३२८४(+) गजसुकुमालमुनि बारमासा, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (चतमहीना चड आया मयावन), ४३०३१-१(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ४०५९७-१(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ४२६९५-२(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (सोरठ देस द्वारकानगरी), ४२७५७,
४२५१९-१(२) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. सवजी, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीर सुखे भलो), ४०८३७-१(-#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मपू., (सोरठ देश मझार), ४३२२४-१(-2) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ४०६५९-१(+#), ४२९५०(+), ३९०८४(-१) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सरिजीण आया मे सुण्या), ४२६९५-३(१)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सोरठ द्वारवतीपुरी), ४०७६१ गणधर आरती, मा.गु., पद्य, श्वे., (प्रथम नमन माझे), ४१८२०-४(+#s) गिरनारतीर्थ स्तवन, ग. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहसावन जए वसीये चालो), ४२२६४ गिरनारतीर्थस्तवन, मु. हुकम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नेमि जीणेसर समोसर्य), ४११७१-२ गुरुगुण गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु आव्या छे हे), ४३१५८-२(+#) गुरुगुण गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सजि नव सत शणघार सखि), ४०९७१-१(+) गुरुगुण गहुँली, ग. आनंदकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभल रेतुं सजनी), ४२२७०-१(+#) गुरुगुण गहुंली, मु. देवसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भामणि सहु भोली हस), ३९८५९(+#) गुरुगुण गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चालो रे सहीयो उतावली), ४०६९६-२(#) गुरुगुण गहुंली, श्राव. बेचर दोसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (अम घर आज मनोहरु), ४१९४६(+) गुरुगुण गहुंली, मु. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (ते गुरु मेरे उर वसे), ४०९७२-२(+) गुरुगुण गहुंली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गुहली करो गुरु आगले), ३९५८० गुरुगुण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सुण साहेली जंगम तीरथ), ४१३२७(#) गुरुगुण गहुंली-खरतरगच्छीय, मा.गु., पद्य, मूपू., (जिणसासण सिणगार वांदो), ४०४६६-१(+#$) गुरुगुण गहुँली-तपागच्छीय, उपा. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चतुर चकोर चरडि सहीयर), ४०८४१-१(#) गुरुगुण गीत, मु. रईदास, रा., गा. ९, वि. १८९६, पद्य, श्वे., (पुन जोगे तुम कुं), ४१९२३ गुरु पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यानगुण चाहइ तो), ४०४८९-७(+#) गुरुवाणी भास, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे मारे देशना), ४०७४८(+#) गुरुविनती गीत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गीरवा गुरु अरज), ४२८९२-२(#) गुरुविहारविनती गहूंली, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पाये), ४२६४९(+#), ४१२९६ गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पाये), ४२४७०(+#), ४२०३४, ४२८९२-१(#) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ४३३६९(+#), ४१२१९-५(#S) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ३९३६५(#$) गौतमपृच्छा सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (--), ३९१२०-१(+$) । गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ३९४६८, ४०५८९(#) गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ४०३७२-१(+#), ४१८५६ गौतमस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हस्तियाम वनखंड मझारि), ४३२३०-१(+) गौतमस्वामी गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बेनी गुरू गछपति गुरू), ४१८१९-२(#) गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (बिरूद धरी सर्वज्ञनु), ४१७६६ गौतमस्वामी चौपाई, उपा. लक्ष्मीकीर्ति पाठक, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवी पदपंकज), ३९८७३(+) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ४१२८८-१(+#), ४१४५३-२(+#),
४१९१६(+#), ४०९९०-१, ४१५९८-१, ४२७४५-२(#), ४३३४१-१(#) गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (मे नही जाण्यो नाथजी), ४२३७२-७(+#), ४३३५६-१(#) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ४२६५१(#) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ४२६५०(+#F),
४३३७८-२(+) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ३९५११(+#),
४००९४-१(+#), ४२८१६-१(+#), ३९१७९($) गौतमस्वामी रास, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. २१, वि. १९६०, पद्य, मूपू., (बीर नमु सासण धणी), ४१८३४-१(+) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुज आपो विर गुरु), ४०२८५(*)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान), ४१७२१(#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रभातेगोतम प्रणमी), ४०३२८(+#), ४००१२-२, ३९८९९-१(#),
४२४३५-१(2) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ४१२४६-१(+#), ३९६४६-३(#), ३९८९९-२(#),
४१२५७-३(#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. सुधनहर्ष पंडित, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (वीर जिणेशर चउवीसमो), ३९८९९-३(#) गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गुरु प्रभात), ४२२७७-३(+#) चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ४२३७४-१(+#), ४२८११(+#),
३९०८६ चंदनबालासती सज्झाय, ग. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ४८, वि. १७८२, पद्य, मूपू., (सरसती केरा रे पय), ४३१९८($) चंदनबालासती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (जी सासणनायक संजम), ३९३२०-१ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (चित चोखी चंदणबाला), ४२८८९-२(#S) चंदनबालासती सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसरस्वतीनारे), ४२१७४ चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (कोसंबी नगरी पधारीया), ४००३८(+5) चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (विजय कहे विजया प्रति), ४०४८४-१(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, रा., गद्य, मूपू., (पैहलै सुपनै कल्पवृष), ४१९६१ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ४१६०१(+#), ४१०४४-१(#),
४३१४३(#$) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नामे नगर), ३९८७५(+) चंद्रप्रभजिन गीत, वा. आनंदवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभू चंदवदन), ४०२२३-१(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ३९०७३-१(+-), ४०१०४-१(+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु प्राह), ४११०३-८(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. ज्ञानकुशल, मा.गु., गा. ७, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभू आज जिन), ४०८६६(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. भावविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चंद्र प्रभुजी हो तुम), ४२००७ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, पुहि., गा. ८, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्राप्रभु जिन), ४०२८६-२२(+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन-बालूचरमंडन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारो क्या), ४०२८६-१०(+#) चंद्रराजा कलश, मा.गु., पद्य, मूपू., (बनवर्ण वप्रविहार), ४२३६७(+$) चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवीन), ४२७२९(+#$) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ४०९७८(+#$) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), ४२११९($) चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन मुख सोहे सरस्वति), ४२६१३-९(+#s), ४२९६९(#) चक्रवर्ती १४ रत्न विचार, रा., गद्य, मूपू., (चक्ररत्न पेडै रे), ४०००५ चक्रेश्वरीदेवी आरती, मा.गु., पद्य, मूपू., (मृगपति वाहन गरुडासन), ४२२४०-३(+#$) चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अलबेली रे चक्केसरी), ४१५४१-१ चक्रेश्वरीदेवी छंद, राजेंद्र, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (चकेश्वरी माता तुम), ४१७६०(+#) चक्रेश्वरीदेवी छंद, शंकर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मा चक्रेसरी सिद्धाचल), ३९५३३-१ चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सर्वारथसिद्धथी चवी ए), ३९०५५-१(+),
४२५४२-३(#) चतुर्दशीतिथि स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५७, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीरजीनै आगलै), ३९९५५(+#) चरखा सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (गढ सोरठसु वाडी बुलाय), ४०५९१(-#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत दशविधि), ४०८७१-२(+#), ४३१७५-१(+) चरणसित्तरी सज्झाय, ग. धर्मदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंतने करी प्रणाम), ४१५०९(#) चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), ४१००३-१(#), ४३४५०(#) चित्रसंभूति चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमु सरसति सामणी), ४०९८५-२(#) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ३९१११-१(+#) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बांधव बोल मानो जी), ४११८९(+#) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते),
४०६८५(+#$), ४२९७८ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ४१४६४-४(+#), ४२१६२-१(+#),
४२७६३-१(+#), ४३२२४-२(-2) चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ३९०९७(#) चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, अनुपमचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू, (श्रीमहावीर जिणेसर), ४२४३८ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल सुंदर), ४०९७७-४(+#) चोमासा लावणी, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (इंद्र महाराज महाराज), ४०५५४-२(#) चोमासावीनती गहुंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (रहो रहो गुरु फागण), ४१८२६ चौतीसा यंत्र, मा.गु., को., (--), ३९६१२-५(#) । चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ४३४२९(#S) छमासीतपचिंतवन विधि, मा.गु., गद्य, मूप., (रे जीव महावीर भगवंत), ४२९१८(#) छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (परमुख देखी अपण मुख), ४१४५१(+#) जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ३९४१९(+$) जंबूस्वामी गहुंली, मु. उद्योत, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (छोडी सर्व विभाव मुनि), ४३२७५-१(+#) जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ४३२३०-३(+), ४२१३९(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसतसामीने वीनवं), ४२९१३(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, वि. १७६५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु पदपंकज नमी), ४१९५९-१(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम लेवा संचर्या), ४२८६९(+#), ३९७६४-१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १३, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (छोडो नांजी कंचणनै), ४०५६५-१(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सुधर्मास्वामि तनी), ४३०८९-२(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवू), ४०९८०, ४१५८८,
४३३४६-२, ४२३१२(#), ४२३४७(#), ४२४६२(#), ४३११४(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (राजग्रही नगरीनो वासी), ४०३२०(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (जंबुस्वामि जोवन घर), ४१४३०(+), ४२७३४-५(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., (श्रेणिक नरवर राजीयो), ४२३७४-२(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ४१९०४ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सुजौ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (स्रेणक नर वैराजीयौ), ४०१९३(-#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सरस्वती पद पंकज नमी), ४०२७९-३(-#) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ये आठुइ कामनी रे), ४०४०९-१(-#) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरि बशे), ३९७०५(), ४२३४०(१) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (सरसत स्वामीने वीनवु), ४३३७७(+#), ४२६९७(5) जगजीवनगुरु भास, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सकल जन मुगुटमणि रे), ३९४५१-७(+) जयंतीप्रश्न गहली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चितहर चोवीसमा जिनराय), ४१४७३(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ जयघोषमुनि सज्झाय, मु. चोथमल, रा., गा. ९, पद्य, श्वे. (श्रीजयघोष मुनि गुण), ४०६९३-२(+#) जयमलऋषि गहुली, मु. राम, मा.गु, गा. ८, पद्य, थे., (पूज्य जयमलजी हुवा), ४०४८०-३ जलयात्रा भास, मु. दुर्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (अनंत चोविसि जिन नमु), ४१०१९
"
दादाजी), ४२१००-२
,
+
,
जसवंत आचार्य गहुली, पं. सुरताण, मा.गु., ढा. ४, गा. ३९, वि. १६८९, पद्य, श्वे., (सकल जिन समरी सदा), ३९४३८-१(+#) जिनकुशलसूरि आरती, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जे जे कुशलसूरि जसधार), ४०४५७-२(१) जिनकुशलसूरि आरती, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहिली आरती जिनकुशलसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू (कुसलसूरि भेटा लही रे), ४०७७३-२(+) जिनकुशलसूर गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीखरतरगच्छ राजा), ४०७७३-१(+#) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु, गा. २, पद्य, मूपू (कुसल गुरु कुसल करो), ४०४६०-२) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. भीमराज, मा.गु., गा. ७, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुसलसूरिसरु), ३९८२८-४(+#) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू., ( आयो आयो री समरतो). ४०२०८-२ (०३) जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा. ५०, पद्य, म्पू., ( वदनकमल वाणी विमल), ३९७८४(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( श्रीजिनकुशलसूरि सुख), ४००७५-१ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू (कुशल गुरु अब मोहि), ४०४६०-१(-) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू (कुशल गुरु देखतां), ४०४६०-३(-) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशल जुहारा), ४०४६०-४ (-) जिनकुशलसूरि पद, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू.. ( मेरी पति राखी ते), ४०६६०-७०)
"
,
जिनकुशलसूरि प्रभाति, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पूजो जी गुरु प्रसमै), ४०३३४-२(#) जिनकुशलसूरि भास, मु. रामविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (श्रीजिनकुशलसूरीसरू), ४०५६७-१(+) जिनकुशलसूरि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनेसरू शासन), ४२१८५ (+#) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. खेम, पुहिं. गा. ४, पद्य, म्पू (चित्त में आनंद आंन), ४२२१४(४)
"
"
"
जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राम पुहिं. गा. ७. वि. १९५८, पद्य, मूपू (श्रीसदगुरुजी से वीनत), ४२२७९ (+०) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू. (समरुं माता सरसती), ४०२०५ १(क) जिनचंद्रसूरि गीत, मु. उदयचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (सखी मोरी सझी सिणगार), ४०१६५
जिनदत्तसूरि गीत, ग. सूरचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १२११, पद्य, मूपू., (आसापूरण कामगवी भवियं), ४२३०१(+#) जिनदत्तसूरि छंद, उपा. रुपपति, रा. गा. ३५, पद्य, भूपू (वरदायक हंसवाहनी सारद), ४२८०५ (+), ४०३७७-१(४)
"
जिनदत्तसूरिजिनकुशलसूरि पद -खडलीमंडन, मु. महिमराज, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू, (दीपे वडली मे गुरु को), ४०२८६-६ (१०) जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनदत्त), ३९६०९-२(+)
जिनदत्तसूरि सवैयो, ग. आनंदनिधान, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गंगोदुतरंग सुचंग), ४०३७७-२(५)
जिनदर्शनपच्चीसी, पुहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिधं मन घरी संत), ४१८२०-५ (+०)
जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (सरसती देवी धरी मनरंग), ४२८७९ (+)
जिनधर्ममहिमा पद पु,ि गा. ६, पद्य, वे (कटे सब पाप दरसन से), ४१६९६-२()
"
जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ४२१२५-१ (+#), ४२५५०(#),
४९६४४(१)
जिनपालजिनरक्षित चौपाई, मु. उदयरत्न, मा.गु., डा. ४, वि. १८६७, पद्य, भूपू (वर्द्धमान चोवीसमो), ३९५७४(+०) जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू.. (सुविधिनाथनी पूजा), ४०६४५-३ (+)
जिनपूजा स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भवि जिन पूजा करजो), ४१७११-३ (+#)
जनप्रतिमा रास, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय नमी), ३९९४६(+#)
जिनप्रतिमा स्तवन, पंन्या हितविजय, मा.गु. गा. ३२, पद्य, भूपू (ए जिनप्रतिमा पूजो), ४१४५५ (+०), ४१५८ol+m जिनप्रतिमास्थापना रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ४३, पद्य, भूपू (सार वचन जिन भाखीयो), ४००२० (७)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
""
जिनबल विचार, मा.गु, गा. १, पद्य, वे (सुणो वीर्य बोलु), ३९११६-३(+) जिनविवपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि मा.गु गा. ११, पद्य, मूपू (भविका श्रीजिनबिंब), ३९६०२ (०), ४१३७२(१) जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ४१५९१, ४२२८५-१(#) जिनभक्तिस्थापनावजीसी, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीजिण पदपंकज परणमी), ४३०८६ (+) जिनभन्द्रसूरि गीत, मु. जिनराजसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (श्रीजिनभद्रसूरि इसा), ३९५१०-४ जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु.. गा. १२, पद्य, भूपू (प्रणमी श्रीगुरुराज), ४९९१८ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), ३९४५३ (+), ४०६८४-१(#) जिनवरव्रत कथा, मा.गु. गा. ६१. वि. १६५०, पद्य, भूपू (जिन चडवीस नमो जगदीस), ४१७३५ (१०)
"
जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (साहेली हो आवी हु), ३९७९६ (+), ४१६४६ (+#), ४२७८८ जिनसिंहसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, भूपू. (फली असाडी आसवे ), ४०७७३-७(+) जिनसिंहसूरि गीत, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ५. पद्य, मूपू., (म्हारी बहिनी हे), ४०७७३-५ (+१)
,
जिनसुखसूरि बधाई, ग. दयातिलक, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू ( अनुपम आज वधावा), ४१३००-१(+)
"
"
जिनागमबहुमान स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु. दा. २ गा. ३१. वि. १८०९, पद्य, मूपू (श्रीअरिहंत मंडप भली),
,
४०६३२-१(+#)
जीवअजीवभेद विचार, पुहिं. गद्य, भूपू (प्रथम नारकी के १४), ४३०५० (+)
जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी पाए नमी), ४२९२१(#)
जीवदया सज्झाय, मु. कनीराम, रा. गा. ७०, वि. १८९४, पद्य, वे., ( आप हणे हणावे नहीं पर), ३९६३४-१(+)
"
"
जीवदया सज्झाय, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (असो हो जग बिप्र मति), ४०३९९(#) जीवदया सज्झाय, मा.गु., गा. ७. पद्म, थे. (धरम धरम सहु को कठै ए), ३९९९४-२(०)
""
जीवदया सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसती माता नमी करु), ४१२१६-१(#)
जीवभेद सझाय, मु, जिनविजय, मा.गु. डा. २ गा. २० पद्य, भूपू (श्रीसारद चितमें धरी), ४२२६१ (+)
.
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जीवविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, वे (--), ३९४२९
जीवहिंसाफल पद, मु. द्यानत, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन मानी ले सारी), ४१६६३-१० (+)
जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवर है), ४१४६४-३(+#),
३९८८८-१, ४१५८४-२, ४०५६३-१ (#), ४३३०९(#)
जीवाजीव भेद यंत्र, मा.गु., को. भूपू (-), ४३३५१
.
जुठातपसी भास, मु. चारण, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. ?, (सरसति सामन वीनवुं), ३९४४८-३(+#)
जुठातपसी भास, मु. लालजी, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे. ?, (परथम गणपति लागु पाय), ३९४४८-४(+#)
जैन गाथा, मा.गु., पद्य, म्पू. (--), ३९२६९-२ (०) ३९३०९-२(+), ३९६४४-३(०३), ३९८४५-२(१), ४०१९६ २(+), ४०३००-२(+), ४०५९४-४(+९), ४०६३२-२(+४), ४१२८८-२(+४), ४९४८५-२(१०), ४१५४६-३(०) ४२३०४-२ (००६), ४२९९९-४(+०), ४०४३८-३, ४१९६९-२, ३९२७१-२(१), ४०५०८-१(१), ४०५१६-३(१), ४२४३५-३(१) ४२९९१-२(१), ४३३६७-२(१) जैन दर्शनमंडनछत्रीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (रिसह पमुह जिणवर चउ), ३९३६८(+) जैन पद (गु. मा. गु.), गु. मा.गु., पद्य, वे (--), ४२५६३-३(+)
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जैनयंत्र संग्रह (कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), ४११५८-१, ४११६२, ४१६११(#), ४२३५०(#)
जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जैन कहो क्युं होवे), ४३२६५-१(+) जैमलऋषि सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १६, पद्य, स्था. (जंबुद्वीपे भरथमे), ४०९०७-१(M)
',
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ज्ञाताधर्मकथा की साढे तीन करोड कथा का विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (धर्मकथा के वरग), ४०७१०+)
४१८४६-१(+#)
ज्ञान जकडी, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यायक एक सरूप हमारा ), ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगला धर्म निवारिओ), ४३३४१-३(#) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), ४०८५५-७ (+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ ज्ञानपंचमीपर्व दुहा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (समकित श्रद्धावंतने ), ४१७४३-१ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ४१७८२ ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), ४१४२१ (+#),
४३४०९(+#)
ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, डा. ३, गा. २५, पद्य, मूपु (प्रणमुं श्रीगुरु पाय),
४०६५४-१(+०), ४१४५३-१(+४), ४२१५३-१(+), ४२३११ (+०), ४२५०२-६(४०), ४३१८२-३ (+), ३९१३३(०), ३९१५१(३), ४१३५८(5) ४१७७१(३)
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,
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू. (अनंतसिद्ध करु), ४२७१८(१) ४२४९८(१), ४२७४९(१) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ५. गा. १६, पद्य, भूपू. श्रीवासुपूज्य जिणेसर) ४२५९९-१(१०), ४३१२०(+४),
३९८००-१, ४०७३८-२, ४१३५७/१, ४२४५५०५१), ४३२३७-११०१, ४३३०१०), ४३२३२-१ (-) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ३९१५५ (+$), ४०८३८(+#),
४१३९४(+), ४२४३३(+) ४२६०८(+), ४३१०७(+), ४३२४४(+०) ४२८१८-२(०), ४३११०)
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ४३२९९(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. नगविजय, मा.गु, गा. १३, पद्य, भूपू (शिवसुखदायक गुनगनलायक), ३९११९-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमो पंचमी दिवसे), ३९३५४
"
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ४१९१३-२(+०),
४२१४७-४(+०), ४२४२० (+), ४२४२१-७/१९), ४२५०२-१२०० ४१९२०, ४२२०४०) ४२२९३ (०) ४२७४५-३(०), ४२१७३-२ (-१)
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (श्रीतीर्थंकर वीर) ४२५६६ (+)
"
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (कारतक सुद पंचमी तप), ४०६२८(+) ज्ञानपच्चीसी, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि ), ४१६६४ (+#)
ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु. गद्य, भूपू (चदरमाना पदरा माडला). ३९९९०-२)
"3
तपफल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवती शास्त्रोक्तं), ४१९७८-१
तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, भूपू., (नांदल मांडीजे), ४३०६४/०१
ज्योतिष दूहा संग्रह, मु. हीर, मा.गु, पच, भूपू
(ग्रहण दिवस रवि भूम), ४१५५९-२ (+)
ज्वर छंद, सु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ४२०३३ (+), ४२३३२(+), ३९७६७, ४०८८८-२, ४०३७४१०)
५५१
झांझरियामुनि सज्झाय, मु, भावरत्न, मा.गु., डा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, म्पू. (सरसति चरणे शीश नमावी), ४३३५०+४), ४९४७५ ()
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलिमांहि मुनिवरु), ४२९९९ - १(+#)
ढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ३९८९४-२ (+#), ३९९३७-१(+#), ४१४४७(+), ४०५६३-२(०), ४२८९०-५ (०३), ४३०१२(१), ४३१४५-१(-)
ढुंढकपच्चीसी - स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु. गा. २५, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ४२८३३(३)
"
ढुंढक रास, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ७३, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (दया जै माता बीनवु), ४२८८६ (+#)
तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सर्व देवदेव में), ४१७६४
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तपसज्झाय, मा.गु, पद्य, भूपू (अणसण उणोदरी भाख्या), ३९०९० (क)
autrपच्चीसी, मु धनसीराम, रा. गा. २७ वि. १८९९, पद्य, वे (धन धन धन श्रीसेवगराम), ४१६०८-१(+)
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"
तारादेवी सज्झाय - शीलविषये उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (वचन सुन्या वीरामन), ४०५१०-२०१
तीर्थंकर गोत्रबंध के २० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ४१६९३-१ ($) तीर्थंकरध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर भगवंतनउं), ३९७३४
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तीर्थमाला स्तवन, पं. दोलतरुचि, मा.गु., ढा. ३, वि. १९३०, पद्य, मूपू., (करकमल जोडी करी), ४२९३८-१(+#) तीर्थमाला स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु. गा. ४१, वि. १६५९, पद्य, म्पू. (सरसती भगवती मात जे), ४१९३४(१) तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रीशंत्रुजयगिरि), ४१९५७-१ (+) तीर्थमाला स्तवन स्थंभनपुर, आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु. डा. ९, गा. ६१, वि. १९०५, पद्य, मूपू (श्रीसारदा वरदायनी), ४१०९०.२(०३)
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יי
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
,
"
तुंगीयानगरी श्रावकवर्णन सज्झाय, मु, चोथमल ऋषि, रा. गा. १२, पद्य, वे (तुंगीवानगरी श्रावक), ३९५८२-१(+) तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू
(निसिहि त्रण), ४०८००-२(+), ४१४४४-१(+०) ४२३७७-१(+),
"
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४१५२५-१
तेजसिंहगुरु भास, मु. वीरपाल, मा.गु. गा. ९, पद्य, स्था. (शांति जणिसिरने नमी), ३९५०४ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ४२२४७-४ त्रैलोक्यसुंदरी रास, क्र. सबलदास, मा.गु. ता. १२. वि. १८५२, पद्य, से. (विहरमान वीसे नम) ४२६७८+६) धावच्चापुत्र नवदालियो, रा. डा. ९, पद्य, वे (आरिसाना भवने बैठा ३९०५६(७) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोरठ देस मझारी रे ), ३९८२२-२ (+)
""
दमयंतीसती रास, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., गा. १२३, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (सानिध जस कविता सगत), ३९३९१(#$) दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं. गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू. (चरणकमल गुरुदेव के), ३९२८२ (६) दर्शनपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हुय पुग्गल परिअड्ड), ४२७७५-८(+) दलाली सज्झाव-धर्मदलाली, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (दलाली इस जीवन कीधी अ), ३९९०६ (+) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर पद नमी), ३९८७९ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपु, (सारद बुधदाइ सेवक), ४१७०११ (०३), ४२०२०-१(+), ४२१२९-१(+)
दसाणुवाइ विचार, मा.गु., गद्य, भूपू ( जीव समुचय सर्व थोडा), ४०५४९.१ (६)
दादाजी धूभप्रतिष्ठा विधि, मा.गु., गद्य, मृपू, (प्रथम दिने धूभने), ३९५५९ (वा
दादाजी स्तवन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु. ( दरसण दीजे सेवका समर), ४०३३४-३(०)
दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय),
४०२९८-२(+#)
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ४. गा. १०१, ग्रं. १३५ वि. १६६२, पद्य, मूपू (प्रथम जिनेसर पाय), ३९५८३(+), ३९६४९(+), ४१५०० (+), ४२९७० (+), ३९०५१, ३९२३६, ४२००४ (६) ४२६६५-१(१), ३९०५७(३), ३९२४४ ($), ३९२८४($), ४३१९५-१(#)
दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. दुर्गदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सांभलौ जीबा रे दान ज), ४०७६८-१(+#)
दानशीलतपभावना सझाय, मु. रामविजय, मा.गु.. गा. १०, पद्य, भूपू (अरिहंत देवने उलख्यो), ४०३७२-२+४३) ४९४८८-१(१०)
"
दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (दान दीजे अतिभावसुं), ४३३१०(#)
दिक्पट ८४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १६१, पद्य, मूपू., (सुगुण ज्ञान शुभध्यान), ४०४६३(+#$)
दिनरात्रिज्ञान गाथा - अंगुलिस्पर्शने, पुहि., गा. २, पद्य, वै. ( अंगुष्टादिक आदि करि), ३९९६५-१(+)
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दीपावलिपर्व स्तवन, श्राव जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (दीवाली दिन अमर वखाण), ४३२६४-२ (+) दीपावलीपर्व गहुली, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (दीवाली दीवाली मारे), ४१५०१-२(१)
दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मगधदेस पावापुरी प्रभ), ४१३६०-२ (#)
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दीपावली पर्व देववंदन, मु. माणेकविजय, मा.गु., वि. १९५२, पद्य, मूपू (वीर जिनेश्वर केवली), ४२६७१ (+) दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू (वीरजिनवर वीरजिनवर), ३९३७२(७),
४२०३२, ४३०३५, ४३१८३ (# )
दीपावलीपर्व सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (तीरथनायक वंदिये), ३९३५०
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ दीपावलीपर्व स्तवन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सुर सुख भोगवि), ४०५८८ दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन मंगल), ४२२६८-९(+#) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकल तीरथमां जिन वडो), ४२४६९(#) दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गौउतम केवलज्ञान रे), ४२०१३-१ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ ताता जग), ४२३५३+#) दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवाली दिन पर्व), ३९२७५-८(+), ४०९७७-३(+#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (सासननायक श्रीमहावीर), ४१७५२-३ दीवा सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, मूपू., (दस द्वारे दिवो कह्यो), ४२५०३-१(+) दुर्जनाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पर अवगुणसुप्रीत), ४१७३३-२(६) दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे), ४२८९०-४(#) दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २४, पद्य, म्पू., (पय पणमीअसरसति सरसति), ४२९७६-१(+) देवकी चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (आग्या ले भगवंतनी), ४१४८२(+#$) देवकी ढाल, मा.गु., पद्य, श्वे., (उत्तम नगरी दुहारका), ३९७२४(+#$) देवगुप्तसूरि गीत, मु. रतिसुंदर, मा.गु., गा. ७, वि. १८४४, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो मुझ), ४००४२-१(+#) देवगुप्तसूरि गीत, मु. रायचंद, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (सारद पाय प्रणमी करी), ४००४२-२(+#) देवगुप्तसूरि गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सरसति प्रणमुंहो), ४००४२-३(+#) देवद्रव्य गहुंली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अहो भविका तुमे सांभल), ४१९७९(+) देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरस्वति), ४०८६२(#) देवविरहकाल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (भवनपति १० विंतर १६), ४०५५५(१) देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ४१६९८-१(+), ४२६१९(+#),
४२६८४-१(+#), ४०९७५-२, ४२९८७(#), ४३०२७-१(#) द्रव्यगुणपर्याय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अस्तित्वं १ वस्तुत्व), ३९४६६-२(+$) द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजीने तुंबडु), ४३२८१ द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ४३०८९-१(+#), ४०६५८(#) धन्नाअणगार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ३९५१६-१(+), ४३२५२-२(+) धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, मूपू., (धनाने सुपि माह धन), ४०४९१(#) धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (काकंदीवासी सकज भद्रा), ४०६३६-१(+#),
४००६२(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. किसनलाल, मा.गु., गा. २९, वि. १९४६, पद्य, श्वे., (काकंदि नगरी भली सकोइ), ४३०१४(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ४२३८९(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वीर बत्तिसी कामनि रे), ४२८९३(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चरणकमल नमी वीरना), ३९६०५ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर काकंदी हो मुनीसर), ४०३९८-२(+-१), ४१३०८-३(+#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (जंबुं तो दीपैहो धना), ४०५९०-१(+#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ४०९१६, ४१७५४(#$) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीन), ३९५२३-२(+#), ४१३००-२(+#), ३९७९४-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (दोय करजोडीनई निति), ४०८२५-१(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (शियाळामां शित घणी), ४०२७९-३(-2) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ३९७५५-१(+#$), ४२१७०-२(+#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सरस वचन दीउ सारदा),४०६७८(2)
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५५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु.राजसमुद्र, मा.गु.,गा.१७, पद्य, मूपू., (मुनिवर वहिरण), ४०६३९(#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (सुभद्रा आवी कहै सुण), ४३११२(+#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १९४२, पद्य, श्वे., (सालभद्रने धनो दोय जण), ४२८८९-१(#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (राजग्रहिपुर नगरी), ३९५६६-१(+#), ३९४७३, ४११५०-४(#$) धर्मजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, पू., (जब मे मुरत देखि), ४३४१८-१(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., ढा. ३, गा. १५, पद्य, मूपू., (पनरमा जिण तणा गुण), ४०६२१(#) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ३९०७३-२(+-), ४२७४१-४(+#) धर्मजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भवसायर हुंती जो हेळे), ४११०३-१५(#) धर्मजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखो माई अजब रुप है), ४३३५४-८(+६), ४०६५२-१(#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (हारे मारे धरमजिणंद), ४३१३७ धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (थास्युं प्रेम बन्यौ), ३९२७३-४(+#) धर्मजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धर्मजिणंद तुमे लायक), ४२५०२-२(+#) धर्मजिन स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरम जिणेसर हो धरमनो), ४३२९१-२ धर्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य हो प्रभु संसार), ४३३८९(+), ४१४३५, ३९७५४-१(2) धर्ममहिमा सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (समरी निज मनि सारद), ४०३६६(-) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ४०७८२(+#) धर्मलक्ष्मी पद, मु. हजारीमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (लक्ष्मी आई रे), ४०६१८-१२(2) धर्मोपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सासणनायक वीरजी उपदेस), ४१७९३(+) धान्यजीवोत्पत्ति सज्झाय, आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजगनाथइ रे सय), ४०७४९(2) ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान सरूप अनंतगुन), ३९७४४(#), ४१०११-२(#) ध्यान विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐकारनुं ध्यान करवू), ४१९८१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), ४१४९३-२(+#), ४०००३, ४०९५९(#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ४१४८४(+#), ४१७००,
४३२३२-५ (-#$) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), ४२३०६-६(+#), ४२९९९-२(+#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. वीरचना, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (राजगीही नगरीनो वासी), ४०१८४-९(+-#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनीवर महिअल विचरई), ३९६७५-१(+#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (वेरागी संजम लीयो), ४२०१४-१ नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ४०९४१(+#) नंदीसूत्र सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुण सोभागी हो), ४०५९३(#) नमस्कारचौवीसी, मु. पद्मविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७२, पद्य, मूपू., (सोमवदन रवि ऊगते जयो), ३९३९२(#$) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ३९८९४-१(+#),
४२४५७-२(+#), ४२५२२-१(+#), ३९८७०-१, ४३३८६, ४३०९३-१(), ४३१२३(#), ३९३२१(६) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ४१०८३-२(+), ४१३१०-१,
४०६८१-१(#), ४१७०३(5), ४१३०७(-#) नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (भोर भयो ऊठो भवि), ४०१३१(+#), ४२१०५-१(-१) नमस्कार महामंत्र पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, मूपू., (तुम जपो मंत्र नवकार), ४२७०३-२(+#) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ३९८४५-१(+),
४०५२७(+#), ४२२५०(+#), ४२६३९(+#), ४०८८६(#), ४३२२६-१(#) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ३९८६१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, पू., (सरसति सांमिने दो मुझ), ४१३६४(+#), ४३३६३(+#), ३९७११, ४२०२३-१,
४१३४२(#), ४३३३८(#) नमस्कार महामंत्र लावणी, मोडाराम, रा., गा.७, पद्य, श्वे.?, (रटे मंत्र नवकार सदा), ४३०१७(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए पंचपरमेष्टि पद), ४२२०२(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), ४००६०-१(+#5) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ४२३७५-१(+), ४२०००-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (समररे जीव नवकार नित), ३९७७७ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (प्रथम पद अरिहंतदेवता), ४१८१२-१(-2) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८१७, पद्य, श्वे., (मंत्र नोकार पढे भाई), ४०८९२(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), ४२८३५-२(+#), ४२०१३-३ नमस्कार महामंत्र स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रथम श्रीहरिहंत), ४०७०३-१(#) नमस्कार महामंत्र स्तुति, मु. लालचंद, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० इहां), ४२३०४-१(+#) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ४००२१ नमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज नमि जिनराजने कहीए), ४१६७७-९(+#) नमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (त्रिभुवननो नायक राजे), ४०१०६-२(+$) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवतणी ऋधि भोगवी), ४०४५२-१(+#) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ४०१८४-११(+#), ४१७५७-२(#) नय विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (-), ४०६४१-२(+#) नरक चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद जुहारीए मन), ३९८५४-१(-) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ३९२८१(+), ४३२४७(+#), ३९०५९, ४०९००,
४१४१९, ४२३५६, ४२५५६, ४३१७७, ४१४३४(#), ३९१३७(5) नरक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हवे नरके चाल्यो जीव), ४१७२९-२ नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ४१६९८-३(+), ४३४२४-१(+), ४१२४७,
४१७४३-२, ४०५८५(#), ४१६९९-२(5) नवकार रास, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरसति सामण द्यो मुज), ४१५१०(#) नवकार रास, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ९२, पद्य, मूपू., (--), ४३४५१(45) नवकार रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (पेहलोजी प्रणमु), ४२८९४(+#) नवकारवाली मणका विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारह), ३९६०६-२ नवकारवाली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहिये चतुर नर ते कुण), ३९४६१ नवकारवाली सज्झाय, ग. लालकुशल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सुहवि सुहासणि सुंदरि), ४०४७५-१(+) नवकारवाली सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (केहेजो चतुर नर ते), ४२७६३-२+#) नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ४०६४०(+#), ३९४३३-१(2) नवपद आरती, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भविजिन मंगल आरती करी), ४३३४९-२(+#), ४०२८७-२(#) नवपद आरती, पुहि., गा. १५, पद्य, श्वे., (ऐसी आरती करो मन मेरा), ४०४००-२(+-#) नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तीर्थपति अरिहा नमुं), ४०५३६ नवपदओली पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (धरम धोरी पाटण), ४०९७९-२(+#) नवपद गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सहियर चतुर चकोरडी), ४०९७१-२(+) नवपद गहुंली, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आतमरामी मुनिराजीया), ४०६९८-१(१) नवपद गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखी श्रीजिनवर जिनेसर), ४२८९५(+#) नवपद चैत्यवंदन, मु. नंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम पद अरिहंत बारे), ४०४९३-२(१)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० नवपदतपनमस्कार, मा.गु., गद्य, म्पू., (तिहां प्रथम पदे), ४०६११(#$) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ४२९४१-२(4%), ४११९२-२($) नवपद लावणी, पुहिं., गा. ५, वि. १९१७, पद्य, श्वे., (जगत मे नवपद जयकारी), ४२२९९(#) नवपद सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (राजग्रहि उद्यान समवस), ४३२७३-१ नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरु नमतां गुण उपजे), ४३१२१(+), ४२१८४-२(#), ४३३९८-१(#) नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणी हो कहै), ४२५०२-१०(+#) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ४०४४३(+#), ४०९३१-२(#) नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ४०६२७-३(2) नाकोडातीर्थ स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (महेवानगर मझार वीतराग), ३९८८५-१ नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ३९४८९, ४३२१३ नाणावटी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हो नाणावटी नाणुं निर), ४१९४८ नामादिनिक्षेप विचार, रा., गद्य, मूपू., (नाम वडेरो १ थापना), ४०६४१-१(+#) नारकीदुखवर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (दुःख दुष्ट भुगता हुय), ४१०८०(#) (२) नारकीदुखवर्णन दुहा, संबद्ध, पुहि., गा. ६७, पद्य, श्वे., (पांच आश्रव मत करो), ४१०८०(१) नारकी सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (मोहमिथ्यातनि निंदमा), ४२६४२ नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १५४४, पद्य, मूपू., (मगध देशमाही बिराजे), ४०८८३(#) निर्मोहीराजा चौपाई, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (सकरेंद्र प्रसंसा), ४०४५५-३(+), ३९८५६(#) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ४२४६६(+#) नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर),
४२२८५-२(#s) नेमजिन पद, मु. नथु, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (हां रेकीने देखा), ४१९३३-१ नेमराजिमती गीत, मु. कल्याणसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल बोले जी डुंगरी), ४००२२-८ नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कौ नेमि), ४००२२-१२ नेमराजिमती गीत, मु. जीवराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सांवलिया हो जिनवर), ४०७६०-२(#) नेमराजिमती गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ३९५८५-२ नेमराजिमती गीत, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सती राजीमती नेमजी), ४२७७१-२(#) नेमराजिमती गीत, मु. हेमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., (नेह धरि आउरे निज घर), ३९८१४-२(2) नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू, (गोख चढी राजीमती जोवै), ४०४९०-२(#) नेमराजिमती गीत-१५ तिथिगर्भित, मु. अमर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव प्रणमीजे), ४०१८८-२(+#) नेमराजिमती चुनडी, मु. इसांण, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (संरंग नवरंग कांजरउ), ४३२०६(-#) नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ४१६२०(+#), ४३३०८(+),
४२९३२(2) नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखन दे मुझ नेम), ४३४१८-१९(+#) नेमराजिमती पद, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बोल बोल रे प्रीतम), ३९८४९-११(#) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ३९५५६-१(#) नेमराजिमती पद, मु. जगराम, मा.गु., गा.४, पद्य, श्वे., (सलूणी सांवरी सूरति), ४३४१८-१७(+#) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुपना में मारी रे), ३९७७१-३(#) नेमराजिमती पद, आ. जिनसुखसूरि, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (वैगा आजो रे), ४१४९३-१(+#) नेमराजिमती पद, मु. नरसिंह, पुहि., गा. ६, वि. १९३४, पद्य, श्वे., (नेम प्रभु बाल केसे), ४३२८३-२(2) नेमराजिमती पद, मु. भीम, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जो थे चालो शिवपुरी), ४००२२-७
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५५७ नेमराजिमती पद, मु. माणेक, मा.गु., चोक. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुमुख पुनम को), ४३२५३(+) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेम मिले तो बाता), ३९८६२-६(2) नेमराजिमती पद, मु. शिवरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम न जाणे मोरी पीर), ४०६२७-२(#) नेमराजिमती पद, मु. हितधर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रीतमनु पदमण कहे), ४२४७९-२(#) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (गय गीर नेम मुझ को), ४१६९६-१(#) नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ३, पद्य, पू., (मे तो गिरनार गढ देखण), ४०६६०-५(+#) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (मोड बाधे के मूझ), ४३०५८(१) नेमराजिमती पद, रा., पद्य, श्वे., (समदभिज सिवादेजी राणी), ३९२६७(+$) नेमराजिमती पद-७ वारकथन, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तुमे सरसति सदगुरु), ४३०४२-१(+#) नेमराजिमती बारमासो, मु. अमर, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मागसिर मासई रे), ३९८५३-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावक नमन भावन भव्य), ४०२६०(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (सांवण मासे स्वाम), ४२०९८-२(#) नेमराजिमती बारमासो, आ. कीर्तिसूरि, रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावण मास सुहामणाजी), ४१३३२(+#) नेमराजिमती बारमासो, मु. नैनानंद, पुहि., गा. ३०, वि. १९१६, पद्य, श्वे., (नेमनाथ बंदु चर्ण हरण), ४१३७०(+#) नेमराजिमती बारमासो, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (चैत्रमास सुहामणो जी), ४२८५८-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १९११, पद्य, श्वे., (राजुल उभी विनवे रे), ४३३७२(+), ३९२२२ नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मपू., (मागसर मासे मोहिनीयो), ३९५३१ (#) नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (प्रेम गहेली पदमणी), ४०८२७, ४२२५९-१(#), ४२४७९-१(#) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ४०८०१(#) नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अर्ज), ४१८६७, ४१५२०-२(#), ४१७६८(#) नेमराजिमती लावणी, पुहि., गा.६, पद्य, श्वे., (राजुल खडी रंगमोहोले), ४२१५० (#) नेमराजिमती लावणी, पुहि., पद. ५, पद्य, मूपू., (हेरी माई मेरो नेम), ४०५९४-३(+#) नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), ४०५३९(+#), ४२५८४-१(#) नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आव्या आव्या उनालाना), ४१४४३(#), ४२३००(#), ४२६४१(2) नेमराजिमती विवाहलो, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ८२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमो), ४३३८८(2) नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (हठ करी हरीय मनावीर्य), ३९८७४(+#), ३९७५३-१(#$) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जोवनवेस में झीलतो), ३९९६३-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रिसाणो हो नेम), ३९६०६-३, ४००२२-९ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम काइ फिर चाल्या), ३९६०६-४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रीतमसुं मुझ प्रीत), ४३३०५-३(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. नयनसुख, पुहिं., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम मनाउं ॐकार), ४१३६९(१) नेमराजिमती सज्झाय, मु. बुद्धि, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (जादव परणि ण चालीयो), ४०५०८-२(2) नेमराजिमती सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पीउजीरे पीउजी नाम), ४३४०२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीने वीन), ३९४४८-२(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय रायहंस), ४१७४९-२(#$) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पीउ ब्रमचारीने राजुल), ४१९४२-१(१) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सोरीपुर नग सुहावणो), ४०५११-५(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. अनोप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इम वीनवै), ३९७४२-६(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. गीतसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सोनानि आंगी रे सखी), ४१००६ नेमराजिमती स्तवन, मु. गोपाल, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (अवगुण कोइ न मोरत), ४०९५२(+#)
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राजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांवलीया घरि आवकि), ३९८६६ (+), ४०७८४-१(+#) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (अजब झरूखे उग्रसेन), ४०९१५-२ (+)
राजमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( अवल गोखने अजब जरोखे), ४०९१५-१(+#), ३९९७३-२(#), ४२१५४-२(#)
नेमराजिमती स्तवन, मु. नथमल रा. गा. १९, पद्य, क्षे., (नेम नगीना मानो अरज), ४१८२२ (५०)
"3
"
नेमराजिमती स्तवन, मु. न्यायसागर, रा. गा. ५, पद्य, म्पू., (बाइ माने नेमजी वर), ४०२१२-२ (+०)
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राजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फेरी गया), ४२६१५-३(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (राजुल चिंतवै नारि), ३९८२८-३(+#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ४१७२९-१, ४२०९८-१(#)
राजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ४३०४२-२(+#), ३९९२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
"
नेमराजिमती होरी, मु. अवीर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. ( में खेलू पिया संग), ४१९७४-२ नेमिजिन ९ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम भवे अचलपुरे), ४१७७८
नेमिजिन आरती, मु. मोजीराम, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (जै जै नेमनाथा भगवंता), ४१८७१ नेमिजिन गहुली, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी सुंदरु), ४०८४७-१(#) नेमिजिन गीत, मु. कमलरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (समुद्रविजय सुत सोहतो), ४०२१५-१(७) नेमिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. दोहा ५, पद्य, भूपू. (फूलडे चंगे ल्याव रे), ४२५६३-१(+०) नेमिजिन चतुर्मास सज्झाय, सेस, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (असाढ महिनो लागीयो), ४२३२४-१(+#)
७
नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ५२, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजायो), ३९६७९(+#), ४१८४८(+#)
जिन चुनी, मु. हरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीयल सुरंगी चुनडि), ४२७४८ (# )
नेमिजिन चैत्यवंदन, मु ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (नेमि नमुं निशदिश जन्), ४००१५-२
""
नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु. गा. ३, पद्य, भूपू (ग्रह सम प्रणमूं नेम), ३९६५०-३(१) ४२२३०-८(C)
४११८५(#)
नेमिजिन पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (घरमहिया रेणा नहि), ४३४१८-२२(+#) नेमिजिन पद, मु. अमृत, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (थारी बोलु लाग रहि), ४३४१८-२० (+#) नेमिजिन पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( हो बाल्यमा तुमें), ४३४१८-१८(+#) मिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (चालोने प्यारे सहसावन), ३९८१२-२ नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू (गढ़ गिरनार की तलहटी), ४१९७४-१ नेमिजिन पद, मु. खेम, पुहिं. गा. ३, पद्य, मृपू, (सोवन्न पलाण के काण), ४१८०६-३(१) नेमिजिन पद, मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (फूलडे चंगे लाउरे), ४२२५९-२(#) नेमिजिन पद, मु. दोलत, पुहि., गा. ३, पद्य, मृपू., (जिन वरसण की प्यासी), ३९७७१-२(१) नेमिजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, भूपू. (असे नेम चरण की), ४०७०३-३(४) नेमिजिन पद, मु. धर्मसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., नेमिजिन पद, मु. न्यायसागर, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू मिजिन पद, मु. मोतीलाल, पुहिं, गा. ३, पद्य, वे.
"
नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २, पद्य, भूपू., (करुणावंत कृपाल स्वाम), ४२२३०-२(१) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( नेमजिणंद आणंद कंद), ४२२३०-३(#) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. ( श्रीनेमिसर तीर्थनाथ), ४२२३०-१(#)
नेमिजिन चैत्यवंदन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु गा. ३, पद्य, मूपू (नेमिनाथ बावीसमा सिवा), ४२५९१-३(क)
"
नेमिजिन नवरसो क. ऋषभदास संघवी, मा.गु, ढा. ४, गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, मृपू., (सरसति सामिनी पाय नमी), ४३४२३,
(प्रगटा विकटा उमटा), ४१८०६-२(#)
(प्यारे नेम मिले तौ), ४०६६०-१९(+) (स्वामी श्रीनेमकुमारा), ४३४९८-६ (mm)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
नेमिजिन पद, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अलिआरो डुगर प्यारो), ४३४१८-१४(+#) नेमिजिन पद, ग. रत्नविमल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम जिणंदजी सैं आखडल), ४०२८६-१(+#) नेमिजिन पद, श्राव.सुजान, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सामलियो स्याम सरिर), ४३४१८-७(+#) नेमिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (निपट ही कठन कठोर), ४०६६०-१७(+#) नेमिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, म्पू., (मे अपनी अखीयन), ४१८२३-५ नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनारे नेमजी शामला), ४१६४९-३ नेमिजिन पद, रा., पद्य, मूपू., (नेमजी मनावा म्हे), ३९७४१-५(#S) नेमिजिन बारमासो, मु. गोपालदास, पुहि., गा. २३, पद्य, श्वे., (अथवा हमै देउ कन्ह), ४१९७०(+) नेमिजिन बारमासो, मु. ज्ञान, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (सावणमास सखी लग्यो), ४०५८०(#) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सखी रे सुणतुं वाणी), ४०४७९-१(#) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ४०५६०-४(#) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ३९२९०(+#), ४२४२३(#) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शामळीया शीदने चालो), ४२०१३-२(5) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (होता जाजोनी राज रे), ४३४१८-२१(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टभवांतर बालही रे), ३९०७३-४(+-$) नेमिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेमजी सुणो अमारी अरज), ४२३२३ नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू, (तोरण आवी कंत पाछा), ४०५८७-१(+#), ४२१७१(#) नेमिजिन स्तवन, मु. खेतसी, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (सूरिज जेहउ तेज), ४०६९४-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा. ७, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसर साहिबा), ४०६७७-३(+#), ४२११३-१(+#),
४२६९६-१(#) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (सुअदेवी सानिद्ध करी), ३९९६८-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभल रे सांवलीया), ४०४९३-३(१), ४११०३-१९(#) नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानशीतल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बालब्रह्मचारी जिणंद), ४२२४७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. देव, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल रंगे विनवें), ४२१०४-१ नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाये नमी), ३९५२५-४(+) नेमिजिन स्तवन, पं. धर्मकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रंग भरी राजुल वीनवइ), ४०५४०-२(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ४०४७०-४ नेमिजिन स्तवन, मु. नगराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेमकुंमर वरवींद), ४१८४३-२(+) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फेरी), ४३४५७-४(#) नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., गा. ४२, वि. १६८२, पद्य, श्वे., (सकल सिद्ध प्रणमेव), ३९४९९ नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ४०७६८-४(+#), ४१४५९(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन कवि, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (मने रुडोलागे छै जी), ३९५३३-२ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उग्रसेन नृपपति तनया), ४२२६८-३(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. यशोदेव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कलालि हे ते म्हारो), ४२१२५-२(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. राज कवि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सामलिया नेम), ४१७६१ नेमिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (नेम जिणेसर अतिवेसर), ४२६२९-२(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल तेरे काजि), ४२६०७-१३(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिबा माहरा वीनवे), ४२६०७-९(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), ३९८६२-१(#) नेमिजिन स्तवन, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नेम जिणेसरस्वामी तुं), ४०४७९-४(#)
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मिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पीयुजी आवी पाछा वज्य), ४०९८४ नेमिजिन स्तवन, सुख, रा. गा. ७, पद्य, थे ? (सहो मोरा नेमिसर बनडा), ४०२१३(०) नेमिजिन स्तवन, मु. हरख, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (कांई हठ मांड्यौ), ४०६६०-३(+#) नेमिजिन स्तवन रा. गा. २४, पद्य, मूपू., (छप्पनकोड जादव मील आए), ४०४७७ (१) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू. (यादव भवदव उल्हवि राय), ३९३३८(०३) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ४०३९८ -१(+#) (सरसती मोरे आंखीया), ४२८८९-३ (#) (सोरीपुर नगर सुहामणड), ४०७८७-२(१) (हुं विनवउं जादव), ४०८७८-१(१०)
नेमिजिन स्तवन, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., नेमिजिन स्तवन, मागु गा. १३, पद्य, मूपू नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपु
',
मिजिन स्तवन- ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३४, पद्य, मूपू., (शारद मात पसाउले निज), ३९५५०-१(+) नेमिजिन स्तवन - नाडोलमंडन, मु. सुखलाल, मा.गु., गा. ८, वि. १९२२, पद्य, मूपू., (बावीसम शासनधणी कांई), ४०१२१ (+) जिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ३९५८५-१, ४२७६५-२(#), ४०२८० ()
नेमिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेरपुरा मुखमंडणउ), ४०५७८-२(+#)
नेमिजिन स्तुति, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू (सुर असुर वंदित पाय), ४२३५४-१(१)
नेमिजिन होरी, सु. धर्मचंद्र, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू. नेमिजिन होरी, मु. रत्नसुंदर, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गौतम सुणो), ४०५७५ (#)
(राजमती कहे नेम), ४९८२३-२
(सरोवर तीरे धूम मचाई), ४२९९६-२ (०)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
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पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु गा. २१, पद्य, भूपू (वीर कहे गौतम सुणो), ४०३४९ (+), ४०७४५ (+), ४२१६९(+),
७
४३२४०, ३९०८०(३) ३९१०५-१(३), ४०९९१ (३)
पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे. (पंच आराना भाव रे), ४२७१६ (+)
पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु गा. ७. पच, भूपू (सद्गुरू चरण पसाउले), ४०६४५-१+४), ४१४३९-२(१),
४३२०४-२(१), ४३४४८-१(१)
"1
पंचमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु, गा. ८, पद्य, भूपू (श्रीजिन वीर इम), ३९९४०-२ (+०) पंचमीतिथि स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पांचम दिन जन्मया), ४२७८२-६(#) पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू. (पंच अनंत महंत गुणाकर), ३९५६१-१००) पंचमी तिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ४०९४४-१(+), ४२५४२-४(#$) पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (भगवति भारति पाए नमि), ४२५३१(+#), ४२७१५ (+#) पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सामी सीमंधर पइ नमेवि), ३९२३१-२ पट्टावली अहिपुरगच्छीय, मु. हंस, मा.गु. गा. २९, पद्य, मूपू (गुणपति सरस्वती), ४०२०२(+) पट्टावली कवित्त -अहिपुरगच्छ, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (पनरैसै असि जेठ सुदी), ४०७५७-२(+#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामि शिष), ३९३०३(+$) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमान तीर्थ), ४१०२३ (५६), ४३३७६ (६)
"
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु. ग्रं. २२५०, गद्य, मूपू (श्रीवीर वर्धमानस्वाम), ४२१५८/m)
',
पट्टावली लोकागच्छीय, मा.गु., गद्य, वे., (हिवे अनुक्रमे पाट), ४१३९५(४)
"
पट्टावली नागोरीलुंकागच्छीय, मु. उत्तम कवि, मा.गु., गा. ५९, पद्य, श्वे., (सासणनायक बिर जिन), ४०७५७-१(+#)
पट्टावली भागोरीलुकागच्छीय, मा.गु., गद्य, श्वे. (श्रमण भगवंत श्रीमहाव), ४३३३०(+)
"
पट्टावली लोंकागच्छीय, रा., गद्य, वे., ( श्रीमहावीरस्वामीने), ३९६९६(+)
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पट्टावली स्तवन- खरतरगच्छीय, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पहिली श्रीवर), ४०७७३-६(+#) पत्रलेखन विधि, मा.गु. प+ग. (श्रीजगनरी जरी जीवरी), ४९७३४-१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५६१ पत्र-वेलजीऋषि का कमलादे साध्वी के नाम, मु. वेलजी ऋषि, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ३९५२५-२(+$) पद संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पदराग भरु बोत दिनांक), ४०१०२-१५(+#), ४२१४७-२(+#), ४२६२९-३(+#), ३९६४५-३(#$) पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम महेसर पद्मनाभ), ३९६५०-९(#) पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणी जगगुरु जग), ४००७०(+) पद्मप्रभजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रद्मप्रभुजिन सेवीए), ४११८०-२(+#) पद्मप्रभजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरौ मन मोह्यो जिन), ४०४३८-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागलीयु करतार भणी), ४११०३-६(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु तुम सेवना), ४१६७७-२(+#), ४०८४७-२(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), ३९७४५ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (अजब बनी रे मेरी), ४२६०७-१०+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मनना मोहन मारा), ४२६०७-१(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (चरनकरम में चित्त), ४३४१८-१२(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन-माडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), ४३४०६-१ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ४०७८४-३(+#) पद्मप्रभजिन स्तुति-जंबूसरमंडन, मु. अमर, मा.गु., गा. ४, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (जंबूसर प्रभु वांदीइ), ३९८५३-२(#) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ३९५२५-१(+),
३९६८८(+), ३९७५९(+), ३९८३२(+), ३९९१५-२(+#), ४०४६२(+#), ४१२१३(+#), ४१२७५(+), ४२७०४(+#), ४२८३५-१(+#), ४२८३६(+#), ३९३९०, ३९६१६, ४०५३०, ४०९०४, ४०९२२, ४१२१२-१, ४३४४५, ३९६३१(#), ३९६५८(#), ३९७६३(#),
४०८४८-२(#$), ४१४००(#), ४२५५४(#), ४२८३०(#), ४१५४७(s), ३९८४६(-2) पद्मावतीदेवी छंद, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (ॐ नरेंद्रा खगेंद्रा), ४१२८३-१(#) परिहांबत्रीसी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (काया काचे कुंभ समान), ३९४९७(+#) पर्याप्ता अपर्याप्ता ३१ द्वार विचार, रा., गद्य, श्वे., (--), ३९२५७(-#$) पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (प्रणमुपास जिणंदा), ४२२९४(+#) पर्युषणपर्व गहुँली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी परव पजुसण आवीया), ४२९४५ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. हुकम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कलपसुत्रने सांभलो रे), ४३४३७-४(+#) पर्युषणपर्व गहुंली, मु. हुकम, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (पजुसण आव्यां रे), ४३४३७-२(+#) पर्युषणपर्व गहुंली, मु. हुकम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पजुसण आव्यां सुखकारि), ४३४३७-५(+#) पर्युषणपर्व गहुंली, मु. हुकम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पजुसण हवे आवियां), ४३४३७-३(+#) पर्युषणपर्व गहुंली, मु. हुकम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुण्यवंता तुमे सांभल), ४३४३७-१(+#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया), ४१६०३-२(2) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वडाकल्प पूर्व दिने), ४१७६५-८, ४१६०३-१(१), ४१६०३-३(#),
४१६०४-१(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकलपर्व शृंगारहार), ४२४८१(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ४२५७८-६(+#), ४३४४२-७(+#),
३९२१०-७, ४११९३-९, ४१४६६-७, ४१७६५-७, ४१३३९-७(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ४३४४२-३(+#), ३९२१०-३, ४११९३-५,
४१४६६-३, ४१७६५-३, ४१३३९-३(#), ४०७९४-३(5) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), ४२५७८-४(+#), ४३४४२-५(+#),
३९२१०-५, ४११९३-७, ४१४६६-५, ४१७६५-५, ४१३३९-५(#)
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५६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), ४२५७८-५(+#), ४३४४२-६(+#),
३९२१०-६, ४११९३-८, ४१४६६-६, ४१७६५-६, ४१३३९-६(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ४३४४२-२(+#), ३९२१०-२, ४०७९४-२,
४११९३-४, ४१४६६-२, ४१७६५-२, ४१३३९-२(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ४३४४२-१(+#), ३९२१०-१, ४०७९४-१,
४११९३-३, ४१४६६-१, ४१७६५-१, ४१३३९-१(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), ४२५७८-३(+#), ४३४४२-४(+#),
३९२१०-४, ४११९३-६, ४१४६६-४, ४१७६५-४, ४१३३९-४(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ४२०७३-१(+#), ४११९३-१, ४१९८३,
४२९६६, ४१६०४-२(#) पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडणो), ३९१७१, ४२८०९(2) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घर घर मंगल हरख वधामण), ४२०४४(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुसरस्वत), ४०७९३-१(+), ४२५६७(+), ४०६२३,
४१४२८, ४३४४६ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ४२०७८(+), ४२९८३-२(+#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. २, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (श्रीगोतम गुणधामी), ४२०००-१ पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया रे), ३९६४६-१(#) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. अमीविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (कल्पसुत्र पूजो उछरंग), ४०१०९(१) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. गुलाबविजय कवि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (परव पजुसण आवीया रे), ४३०२२-२(+#) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रभु वीरजिण विचारी), ४२११६ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपजुसण परव सेवो), ४३१८६-१(१) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ४१३५९-२(+#), ४०९१९-२(#),
४२४८२(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ४०१०८-१(+) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), ४३०८५-२ पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुण्यनुं पोषण पापर्नु), ४०१४२-१(+), ४३०२८-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां अषाड), ४२२१७-१(+#), ४२४६५(+),
४३१८१-२(+), ४०८६७, ४१७५२-२, ४१५७९(#) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ३९२८५(+S), ४२९४७(+),
४३२८२(+), ४१७४१, ४२९०३, ४१३३४-१(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक पनोति पदमणि पभणई), ४१३३४-२(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ३९२७५-५(+$), ४०१०८-२(+), ४०१४२-२(+),
४००१३, ४०३६५-२(-2), ४१५६३-१(-#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्यवंता पोशाले), ४३१८१-१(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ४३०८३-२(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्य), ४२०९५-३(+) पल्ली विचार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (पय प्रणमी हरखप्रभु), ४२२४३-१(+#) पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप भरतक्षेत्र), ४०९५४-१(#) पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती करु श्रीपाश), ३९६३४-२(+) पार्श्वजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (परम परमेसरू पुरुषादा), ४१४१८-१(+)
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भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
पार्श्वजिन कलश - नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीसौराष्ट्र देश), ४१४१६(#) पार्श्वजिन कलश मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु गा. ७, पद्य, म्पू, (श्रीसुराटदेस मध्ये), ४२७६१-१(+ पार्श्वजिन गझल-पलविया, मु. दीप, मा.गु., गा. ७३, वि. १८३७, पद्य, भूपू (ससीबदनी वरदायनी सुमत), ४०५१९(०) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), ४११४०-४(#), ४३३५६-२(#) पार्श्वजिन गीत, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (नाम प्रभुनो सांभली), ३९८२८-१(+)
',
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पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (बंदु पासजिणंद कमठ), ४०४७२-१० (+४), ४००१५-३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन पंन्या पद्मविजय, मा.गु. गा. ३, पद्य, मृपू., (आशा पूरे प्रभु पासजी), ४२५९१-४०)
पार्श्वजिन चैत्यवंदन - गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (पुरसादाणीव पासनाह) ३९६५०-४(१) ४२२३०-९(AS) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ४३०८८(+#) पार्श्वजिन चौढालियो - गोडीजी, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., ( पासजिणंद प्रसिद्ध), ४०७३३ (#)
पार्श्वजिन छंद, पुहिं, गा. ११, पथ, भूपू (हथडा जेह सुलखणा), ४२५३४-१० (+)
',
पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु, गा. ५१, पद्य, म्पू, (सरसत मात मना करी), ३९५३५-१(+), ३९५६८(+) पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, भूपू (सरस वचन दियो सरसति), ४१०३८(+), ४१९६०(+), ४२६२२(+०), ३९७५३-२ (०३), ४०५६८००१ पार्श्वजिन छंद - अमीझरा, मा.गु. गा. २१, पद्य, भूपू (उठत प्रभात अमीझरो), ४१५५८-१(१०) पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ३९७९९-२
,
पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ४१८३६-१(+#)
पार्श्वजिन छंद -गोडीजी, मु. दानविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वाणारसी राया पास), ४०२७५ (+#)
पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सरसति द्यो मुझ), ३९९९२(#)
पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु, गा. ४६, पद्य, मृपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ४०६१३(+०), ४२६३१-१(+०)
पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८. वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ३९९९९(१), ४०२९८-१(+०), ४०९७२-४(१), ४०१९५(१) ४२०३१-२(१) ३९६७१-२)
पार्श्वजिन छंद - भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २५, पद्य, भूपू. (बारु विश्वमां देस), ४१८६९-२(+०७)
पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ३९१७६ (+#), ४०५६२ (+),
४१४०६-१(+#), ४३२३९-१(+#), ४०३३४-४(#S), ४११४०-५ (#), ४२३२९-१ (# ), ४३३४१-२(#) पार्श्वजिन छंद - शंखेश्वरतीर्थ, मु. केशरविमल, मा.गु, डा. ५, पद्य, भूपू (परम ईष्ट परमेसरु), ४३१५२-१ (+) पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. पद्मविजय, पुहिं, गा. ७, पद्य, मूपू
(श्रीशंखेश्वर गाम), ४२५७०-१(१)
पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ४०६५७(+#$), ४०८१७-१(+#), ४२९४७-१(००), ४९८५८(85), ४२२२९(१)
पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), ४२०२३-२, २९११७१) ३९०८५ (४)
पार्श्वजिन पताकासाधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम एकांतस्थान वन), ४१५५० (5) पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सांवरीया पासजीने), ३९८६२-२(#) पार्श्वजनपद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( चाल चाल चाल रे कुअर), ४२१७०-४(+#) पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (--), ४१८४३-५ (+)
पार्श्वजिन पद, मु. कपूरशेखर, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (अविसी अविचल पदवासी), ४०५८६-२(४) पार्श्वजिन पद, मु. कीर्ति, पुहिं. गा. ५, पद्य, मृपू (उमट आए मेह अंबर पर), ४०६६०-१५ (१०) पार्श्वजिन पद, मु. कीर्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( उमट घटा घनघनोर), ४०६६०-१६(+#)
पार्श्वजिन पद, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नांनडीयो गोद खिलावे), ४२७६९-२(+४), ३९८४९-१शन पार्श्वजिन पद, मु. गुणनंदन, मा.गु गा. ३, पद्य, मूपू (एक समै प्रभु पास), ४९८०६-१(क)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पार्श्वजिन पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (रूप भलौ जिनजी कौ), ४०४८९-६(+#) पार्श्वजिन पद, जगतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै.?, (आसरा तुमारा प्रभुजी), ४०२९४-२(+-#) पार्श्वजिन पद, आ. जिनमहेंद्रसूरि, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (हो जयकारि रे जिनजी), ३९८४३-२(+#) पार्श्वजिन पद, मु. पुण्य, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (पारसनाथ आथ के नाथ), ४२६८८-३(+) पार्श्वजिन पद, मु. प्रेमनयन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ध्यान धर ध्यान धर), ३९१०४-३ पार्श्वजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (दरवाजे तेरे खोल), ४०६४१-१०(+#) पार्श्वजिन पद, मु. बुद्धिकुशल शिष्य, रा., गा. २, पद्य, मूपू., (जोडी थांरी कुण जोडे), ३९८६२-८(#) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनराज कुंदरस्त के), ४१७६९-१(१) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ३९७९२-३(+), ४१८२३-४ पार्श्वजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जणंदा प्रभू मेरे), ४३०४९-६(#) पार्श्वजिन पद, मु. श्रीचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाथ निरंजण भवदुख), ४१८०६-४(#) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालो देखोरी मधुवन), ४०२८६-८(+#) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (दास जान मोहि तारोरे), ४०३४६-२(#) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जिणंदा मेरी निजर), ४०६६०-९(+#) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास पास नित नाम जपता), ४०६३७-२(+#) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (प्रभु को नाम अमोल हे), ४११४०-३(१) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो मन वस कर लीनो), ३९८०२-३(+) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सेवक डायाभाई करजोडि), ४३४१८-१३(+#) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो जिनजी तेरी मूरति), ४१८४६-४(+#) पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंथीडा पंथ चलेगो), ४०६६०-२०(+#), ४१६६३-२(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. केसर, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (मनमोहन मूरत पास की), ४०२९५-१(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ३९८१९(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. माणिक्यसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनमोहन गोडी पासजी), ४०४८९-३(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, वा. साधुहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुख निरख्यो), ४००२२-४ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासकि पासकि पासकि), ३९८६२-४(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ३९८७२-२(+) पार्श्वजिन पद-पुरुषादानीय, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मन गमतो साहिब मिल्यौ), ४११०३-२०(#) पार्श्वजिन पद-मुलतानमंडन, पुहि.,मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुलताण मैं देहरा), ४१८४६-५(+#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, मूपू., (सारकर सारकर स्वामि), ३९१०४-२ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ), ४२५०२-८(+#), ३९८८५-२ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), ४०१०२-१३(+#) पार्श्वजिन पद-सम्मेतशिखरतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समेतशिखर चलो जईये), ३९८०२-१(+) पार्श्वजिन फाग-केरडा, मु. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ५, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (सुंदर रूप सोहामणो हो), ४००२२-१४ पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ४०४०४-२(#) पार्श्वजिन लावणी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तु ही नकलंकी रुप), ४२४५७-४(+#) पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ४२७७२(+#) पार्श्वजिनविज्ञप्ति स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. जसविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (परचा पूरण परगडो), ४२९३७(#) पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., (प्रणमुं परमातम अविचल), ४०८०८(+#),
४२८४२(#) पार्श्वजिन सलोको-शंखेश्वरतीर्थ, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ४६, वि. १७८४, पद्य, मूपू., (देवी सरसती प्रणमु), ३९९०३
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनोपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरे महाराज देवल), ३९७४२-७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ध्रुवपद रामी हो), ४०४५४-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपद पंकज पासन), ४०२२२-१(-2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुझ सरीखा मेवासीने), ४१३१०-२ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पारसनाथ परमेसरु रे), ३९१२७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घातिकरमनो क्षय करी), ४०२१५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ दुःख कापो), ४१३०२-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमल शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मनमोहन प्रभु पार्श्व), ४२३५५-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलहंस, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तेवीसम जिनराजजी), ४०१४०-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कस्तुरचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १९३०, पद्य, श्वे., (बाणारसी नगरी सोभती), ४०६३४-२ पार्श्वजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (आज हमारै हरख वधाई), ४२२०६(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंगाराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (वामा सुतजीसुमन), ४०२८६-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. चंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्राण पीयारा जी हो), ४२०७३-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चेतन, पुहि., गा. ६, पद्य, भूपू., (पारसजिन सुन वीनती), ४०६१७-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनअक्षयसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (वाणारस नगरे सोभता जी), ४०३४६-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा.८, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (आज दिवसरलीयामणौ), ४१८४३-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (आज आनंदघनन मट्यो जी), ४०९३८-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन माहरौ), ४०७६०-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), ४३३५४-७(+), ४१६०९-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास रंग लागा चोल रंग), ४०६५२-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलकप्रिय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मूरति नयणे निरखीयौ), ४०७१६-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलोकचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर मूरति सोहइ), ४०४०८(१) पार्श्वजिन स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (श्रीपार्श्वनाथ देव), ४३००४-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहज गुण आगरो स्वामि), ४२८०४-२(+#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरणेंद्रा करे सेवना), ४३३९८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (सहीयर हे सहीयर आवौ), ४०२०५-६(#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. नायकविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो सखि जिनवंदन), ४२११४-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वामानंदन अंतरजामी), ४२३७२-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (फागुण मासे सोहावीओ), ४१८५५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुगट परि वारीयां), ४००८८-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामाजी के नंदन वंदन), ४३१२८-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भवान ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रभुजी पास जणेसर), ४१६१५-१(१) पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काशीदेश बनारसी सुखका), ४३४२२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा.७, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (पास जिणेशर वंदीये रे), ३९४५१-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (पास जिणेसर म्हारो), ३९७४१-१() पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पुण्य संयोग मै पामीय), ३९८२८-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा हो साहिब), ४१७५२-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पर उपगारी जी पास), ४१७५८-५(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सेवो भवियण जिन), ४२९८४-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा. ९, वि. १७९२, पद्य, मूपू., (धीग धवल गौडी धणी), ३९७४२-१(+)
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पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास), ४२५२१ (+#), ३९६१९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन मोहनगारा), ४०७४०-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमतिहंस, मा.गु गा. ७, पद्य, मूपू. (तुं त्रिभुवनरो नाहलो), ४०२८१(७) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामानंदन महिर करीजै), ४१४६५ (+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हस्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू. ( पासजिनेसर साहिबा तमे), ४३०२०-१ (४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू. (दरसण मांहरा जिनजी को), ४०६५४-२ (+)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, वि. १९०९, पद्य, मूपू., (श्रीपाश्व जीनेश्वर), ४०१३२(+)
पार्श्वजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरणै रहिस्यां जी), ३९७२०-४(+#)
पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४०५४७-१ (#$)
पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित सु. धरमसी, मा.गु. बा. ४. गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू (पूर मनोरथ पासजिणेसर),
४०८९४[+] ३९१८०, ४१३४८, ३९५४८
पार्श्वजिन स्तवन -२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ४०८७७-२(+#$) पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (प्रभु पासजी ताहरो), ४१७३९-३(+) पार्श्वजिन स्तवन - अंतरीक्षजी, मु. मणिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीअंतरीक्षजी पासजी), ४२८२७-६
+
पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, वा. विनयराज, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (पर उपगारी परम गुरु), ४२८०४-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन- अक्षयनिधितपगर्भित पंन्या पद्मविजय, मा.गु. गा. १२. वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजेरे अक्षय), ३९७९० पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., वा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, भूपू (वाणी
ब्रह्मवादिनी), ३९९८१(+#), ४१३२५ (+#), ४३०८७ (+), ४१५३० (# ), ४१५९४(#)
पार्श्वजिन स्तवन -अमीझरा साणंदनगरमंडन, मु. महेंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (जगगुरु वामानंदन भगवा),
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४०९४०-२(+#)
"
पार्श्वजिन स्तवन -अमझरा साणंदनगरमंडन, उपा. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चउवराजना सहेरमा रि), ४०९४०-१(२०) पार्श्वजिन स्तवन कापरडामंडन, मु. सुखलाल, मा.गु., गा. ५. वि. १९९५, पद्य, मूपू (श्रीकापरडा पारसजी रे), ४०१२४-३(+) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. अभय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पारकरे परसीध गुणे), ४१८७२(#) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (रमजम रमजम चरण नेउर), ४२९३६-१(+४) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, वि. १७८१, पद्य, मूपू., ( पास गोडी प्रभू प्रगट), ४०१२०-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, उमा, रा. गा. ५. वि. १८७४, पद्य, भूपू (श्रीगोडीचा पासजी मोन), ४२००१-४ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जस नामे नवनिध ऋद्धि), ४२९८३-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगौडीपुर मंडण पास), ४१८४३ - ३(+) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेश), ३९९८७, ४२८८७ (#) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. खेम, रा. गा. ५, पद्य, मृपू., (चाकर रहिस्यां जी गौड), ३९७२०-३(+४) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारकरदेश बिराजे छे), ३९३९९-१ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू. (श्रीगोडी जिनराया हुँ), ४३१२६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), ४०४७०-३ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( श्रीमहाराज मनावो जिम), ४०४८९-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धनना ठाकुर ज्ञान), ४०६५२-४(#) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू, (लाखीणो सोहावें जिनजी), ४०५०७-२(४) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मूरति मननी मोहनी सखी), ४०४०४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु. बा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ४३४४१(७) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (भावे वंदो रे श्रीगोड), ३९९६६(#) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, पं. प्रेमविजय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (लाखीणो सुहावे जिनजी) ४१५९८-३
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघराज, मा.गु., गा.८, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (प्रगट थया भले पासजी), ४०२२१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ४०७५६-४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरोथे मानो हो), ४०६४१-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, फा., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगोरी पास गरिब), ४१४०५(+#) (२) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगोडी पार्श्व नम), ४१४०५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारकर देस), ४२६०७-११(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोनानी आगी हे सुंदर), ४३०२४-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रावतसुंदर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गोडी प्रभु आज सफल), ४१८१३-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वनीतविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (प्रगट थया पारकर), ३९७२१-१(+#), ४०१५३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ४२८५०(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सारद नाम सुहामणुं), ४२४१७-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अकल मुरति अलवेसरू), ४०७५६-५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, सिं., पद्य, मूपू., (अमा मानीगडो कंदी), ३९५१२-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (गोडी राव कहो बडी), ३९०७३-३(+-$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ७, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (धन धन पारकर देश धन), ४०६५२-१०(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बीराजे बंगलेमे रे), ४१७१४-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीसंघयात्रा वर्णनगर्भित, मु. लालजी, मा.गु., गा. ३२, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (प्रथम समरु मा आद),
४२२८४(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा.८, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वचिंतामणि), ४०३५६-२(+), ३९२५६-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामली रे), ३९८७२-५(+), ४२०६४-२,
३९८१४-१(#$) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मागु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव),
४२५०२-९(+#), ४१५९८-२, ४०४०९-२(-#$) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, मूपू., (हां जी मुरत मोहन), ४०७१४-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि सादडीमंडन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (सादडी सहरे सोहतो रे),
४०५१२-६(#) पार्श्वजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रमति गमति हमुने सहेल), ४१२६३-२, ४२४३४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ४२१७६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), ३९१२८, ४२७४५-६(#$) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंद कल्याणवल्ली), ३९४५५, ४०६९४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर मूरति सूरति), ४३३३७-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९४५, पद्य, मूपू., (घनघटा भुवन रंग छाया), ४१६१७-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-भारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विषय त्रेवीस नीवारी), ४१५९७, ४१३६७(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम परमेश्वरु), ४१६५९, ४२१०४-२ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भविजन भजीये रे), ३९३६१-१ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपंचासर देव कृपा), ४२११४-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ४०९२९-१(+#), ४२०९०-१,
४०५१२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. १०, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबा हे), ४२६२९-६(+#),
४१६८७-२(#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनीने समरी), ४२६३८(+#) पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ४०९७३-१(#), ३९९९७-२-६) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठोरे मारा आतमराम), ४०६५२-९(2) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति माता सेवकां), ४२०९९ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), ४००८२(+#), ४१७९८-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा.७, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीजिण महाराज बहोत), ४२१५५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. धर्मकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सोहई सोहइं रूपईरे), ४०५४०-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. रंगरत्न, मा.गु., गा.७, वि. १९०६, पद्य, मूपू., (हारे लाला आश पूरे), ४१३०६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ४२८१६-२(+#), ३९०७४-२ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जाय छे जाय छे जाय छे), ४३३१९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (श्रीभीडभंजन प्रभु), ३९५१२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-भीलडीयाजी, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (श्रीभिलडीया पास भेट), ४१२१७-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीजी, मु. जोध, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमगसी प्रभु), ४१५७४-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मगसी पास जुहारीय), ३९८९६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १९३१, पद्य, मूपू., (वामानंदन रे वाला), ४०४९४(#) पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. सुखलाल, रा., गा. ६, वि. १९१२, पद्य, मूपू., (अश्वसेनजी तात ज कहिय), ४०१२४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-रोगहर, पुहि., गा. १९, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अरिहंत सिद्ध), ४०३६७(+-#) पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडन, मु. सूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीलोढण प्रभू पासजी), ४२४७५-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडन, मु. हंस, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (फणि फटाटोप करे छाया), ४३३९७-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, मु. सुमति, मा.गु., वि. १९२८, पद्य, मूपू., (लोद्रवपुर पास चिंताम), ४२३२४-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चढवाणमंडन, मु. हंस, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल सुखसागर), ४०९५६-१ पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणातीर्थ, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर मंडण पासजी), ४०६५०-१() पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), ४०४६६-२(+#), ४०३५८-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ३९७४१-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आज भाल मे भेटीया), ४०२९४-४(+-#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रणमे), ३९७७१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी रे), ४१०८८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी), ४३१४८-४(+-#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर वंदीइ), ३९३९९-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ४२५०२-३(+#), ४२४३५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्म, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (अतित अनागत वरततारे), ४३३२९(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ध्यान धरी प्रभु), ३९९६४-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), ४१४६४-११(+#),
४१९२६-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी प्रभु पासजी पासजी), ४२८५८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. १३, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (सुरतरु मुज अंगणि), ४०७३४ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. वीरविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (नित्य समरूं साहेब), ४३११६ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सुणो सखि संखेश्वर जइ), ४१३५९-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी तुझ), ३९९३५-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मा.गु., गा. ८, वि. १९३३, पद्य, मूपू., (संखेसरा पासजी जयकारी), ४१५०१-१(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २
पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. दा. २ गा. २७, पद्य, मृपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ४२७७५-१+०३) ४२२३३(१)
"
पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु, खुशालचंद, पुहिं. गा. ५. पद्य, थे. (तुम तो भले विराजो जी. ४१४१२-३ (+०६) पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( समेतशिखर जिन वंदीये), ४३४५७-७(#) पार्श्वजिन स्तवन- सहस्रफणा, बाळमित्रमंडल, मा.गु., गा. ५. वि. १९५१, पद्य, म्पू., (गंगातट तपोवनमा रे), ४२५०४-२(५) पार्श्वजिन स्तवन - सारंगपुरमंडन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सजनी मोरी पास जिण), ३९९०२ पार्श्वजिन स्तवन -सुखसागर, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसुखसागर गुणमणी), ३९९२३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुं रे पास), ४१३४१-१(+#),
४१४९६(+), ४३३१५(+), ३९१७७
(थंभणपुर श्रीपास जिणं), ३९९८६
पार्श्वजिन स्तवन स्तंभनतीर्थ, मा.गु. गा. १६, पद्य, भूपू पार्श्वजिन स्तवन स्थंभनतीर्थ, मा.गु., गा. ५ पद्य, भूपू (सकल मूरति सामी थंभणो), ४००८८-३+४) पार्श्वजिन स्तुति, मु. उदय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (जगजन भजनमांहे जे), ४२३३१(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. कनक कवि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ४१७०८-३ (#)
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू (अश्वसेन नरेसर वामा), ३९३६४-४(+), ४०१५५११
"
""
पार्श्वजिन स्तुति, उपा. देवविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (सकल सुरासुर सेवे), ४०८४६(१)
पार्श्वजिन स्तुति, आ. शुभसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करय सेवा), ४०४७९-२(#) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (लीलुडी मुख मंदिर सोह), ४२७६६-२(७)
पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद -शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ४०७८४-२(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( श्रीसकल सार सुरतरु), ४०४६५- २ (+#)
पार्श्वजिन स्तुति - गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू. (परम प्रभु परमेश्वर), ३९२७५-९(+) पार्श्वजिन स्तुति देवासमंडन, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (देवासमंडन दुरितखंडन), ४०४४०-१
""
पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (जय पास देवा करूं), ४०६६७-२(५), ४३०८३-३ (०३)
"1
पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरे पास प्रभुजी के), ४१६६३-११(+#)
पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ३९८०२-२(+), ४०११३-१(#) पार्श्वजिन होरी, मु. सहजसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मसीओ जि द्वार), ४१६१०-६(+#) पार्श्वजिन होरी, मा.गु. गा. १०, पद्य, थे. (होरी खेले रे होरी), ४२९४६-१(+)
,
"
पिंगलभाषा - लघु, मु. चेतनविजय, पुहिं., गा. ११७, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (चरण कमल गुरुदेव के), ४२४८३
पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमुं), ४३१३८(+#)
पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु. बा. २ गा. ३५, पद्य, वे (कुंडरीक रीद्ध तज), ३९०६५-१(+)
3
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पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यताणां फल परतखि) ३९९९३ (+), ४३०९८-२(+१३)
पुण्यपाप पद, मु. दीपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (दोय वात हे जगमें), ४२६५८-४(+#)
.
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु. दा. ८. गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू (सकल सिद्धिदायक सदा). ३९६६४ (+),
४२९६५ (+४), ४०४८४.३(०), ४०८४८-१(०३), ४३४५७-८(4), ४३००५(5), ४३९५४-१(३), ४३४२५(का पुण्यफलपच्चीसी, मु. गंगकुशल, मा.गु., गा. २८, पद्य, भूपू (सरसति भगवतिनइ सिरनाम) ४०४१०- १(००) पुरोहितपुत्र सज्झाय, उपा. सहजसागर, मा.गु. दा. ३. वि. १६६९, पद्य, भूपू (सहज सलीणा हो साधजी), ४०९८९ (४)
.
""
पुरोहितपुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, थे. (प्रिरोहित नगरी), ४०६८१-२४३)
पूजाष्टक, मु. द्यानत, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., ( प्रभू तुम राजा जगत), ४०३३१(+#)
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पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (शासननायक सुखकरु वंदी), ४३३८५ (S)
पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. राजविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( पोस दसम दिन पार्श्व), ४१२९३-२ पौषध के १८ दोष पु,ि मा.गु., गद्य, मृपू (विना पुछ्या आग्या), ४२११०-१
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५७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (जेसलमेर नगर भलो जिहा), ४०९७५-१६) पौषधव्रत सज्झाय, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पहेलु ए संवर आणीइं), ४१७२२-१ प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (संघमइ करवो रंगराजइ), ३९८५४-३(-) प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकित तो सरदहण रूप), ४००३२-४(#) प्रतिमास्थापन स्तवन, श्राव. वधो साह, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेव तणे), ३९५६४(+) प्रतिमास्थापन स्तवन, मु. विमलरत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जेहनै जिनप्रतिमास्यु), ४०४७१-१(+) प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (धुरि समरूं सामिणी), ३९९६९-१(+) प्रदेशीराजा रास, रा., ढा. १९, पद्य, मूपू., (कुण हूतौ भव पाछले), ३९४१०(5) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. राज, मा.गु., गा. ३०, वि. १९५०, पद्य, श्वे., (सुगुरु धयान मन मे), ४२०८८(+#) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ४१०४३(#) प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरूराज), ४००८१-२(-) प्रश्नोत्तरमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६२, वि. १९०६, पद्य, मूपू., (परम ज्योति परमात्मा), ४२०४६-१ प्रश्नोत्तररत्नमाला के प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. ६५, गद्य, मूपू., (हवै प्रश्नोत्तर रत्न), ४१२५२(#), ४३१६८(#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुतुमारा पाय), ४२४२१-६(+#), ४२५८१(#), ४३०९३-२(#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु.रुपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ४३१४८-१(+-#) प्राणातिपात प्रथमपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पापस्थानिक पहिलू), ४३०२०-२(#) प्रासुकपृथ्वी विचार सज्झाय, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरसति सामिणी), ४२९९९-३(+#) प्रियमदन चौढालियो, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (माया पुन्य तणी सहु), ४१४९९(#) फूलडा सज्झाय, पुहि.,रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रेकोतिग दीठ), ४३३९४ (२) फूलडा सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरना निर्वाण), ४३३९४ फूलपूजा दोहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोगर लाल गुलाल मालती), ४२१५९-२(+#) फूहडबाईलक्षण पद, मु. रुघनाथ, रा., पद्य, श्वे., (छैडारी तो सुध नाहि), ४१४०७-२(+#) बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., मूपू., (--), ४२८७०-३(+#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तुंगीयापुर नगर), ३९३३१-२(+#) बाराक्षरी पद, चंचल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे.?, (नमो अरिहंत बडे बलबीर), ४१४१२-१(+#$) बालूडा गीत, उपा. देवकल्लोल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आपणयए पुत्रह आणण काज), ४०४३४(+) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे रे बाहू रंग), ४१६०९-६(१) बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ४००८८-५(+#) बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ४१९१७-२(+) बाहुबली सज्झाय, मु.न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), ४३०२७-५(१) बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), ४२६१३-७(+#) बाहुबली सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बाहुबल दीक्षा ग्रही), ४०११२(#) बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. कीर्तिचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (बीज तीथ अतिदीपती), ४३१८०-३(+) बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुविध धर्म आराधवा), ४००३७-२(#) बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुविधबंधनने टाळीए), ४००३७-३(#), ४०७९६-१(#) बीजतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पूछै प्रभू), ३९९४०-१(+#) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ४२४१९-१(+#), ४२०८१-१, ४२४६४,
४०७९७(#), ४१५१६(३), ४३०२७-४(#), ४३१००(#) बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ४०७५६-१
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५७१ बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस वरसती), ४२४४८(+),
४३०७४(+), ४१७२२-२, ४१९०३(#), ३९१०१(६), ४३१३४(-) बीजतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (जिनपति त्रीसनानंदन), ४१०८२-१(#) बीजतिथि स्तुति, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजुआली बीज सुहावें), ३९८३३-१ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ३९२७५-१(+), ४०८५५-१(+), ४१७०९-२,
४२५४२-२(#), ४२७०९-२(#), ४२७६५-१(#), ४०३६५-३(-१), ४२१६५-२(-#) बीजतिथि स्तुति, मु. वीर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बिज रिझ करी सविये), ४१७७४-२ बुढापा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुगुण बुढापो आइयो), ४३४२७(#) बुढापा सज्झाय, मु. जेमल, रा., गा. २९, पद्य, श्वे., (दुर्लभ मनुष जमारो), ४०८०६-१(#) भक्ति पद, सुरदासजी, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (मुम गरीब के निवाज), ४०६४१-९(+#) भगवतीसूत्र सज्झाय, मु. गुलाब, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (भगवतीसूत्रनी देशना), ४२६१६(#) भडली पुराण, मा.गु., गद्य, (अथ कार्तिक मास विचार), ४१५२०-५(#S) भरतचक्रवर्ती रास, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (धनपति नामइ देवता), ४१२६४(+) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमें ही वैरागी भरत), ४०३५७-४(#$) भरतबाहुबली छंद, मु. वादीचंद, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (छंदं भरथेस्वर बाहुबल), ३९४९८(+#) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदे आदि जिणेसरु रे), ३९६५५(+#) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ४०५३२-२(+) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ३९९३७-२(+-#),
४१४६४-२(+#), ३९१२१-२, ३९८३३-२, ४२०२६, ३९९९६-५(#) भरतबाहुबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुं माता), ३९०६९ भले अर्थ की वार्ता, मा.गु., गद्य, मूपू., (भले ते स्यु अरे जीव), ४२८३७(+#) भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ४०७१८(+#), ४२४५४-१(+#) भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भाइ भुदेव घरे आवीया), ४२५७३ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), ३९८२२-१(+) भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (क्रिया अशुद्धता कछु), ४१३२४(+#) भावसंग्राम चौढालियो, मु. हिम्मतराम, मा.गु., ढा. ४, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (पान जडता देखने), ४२३३३(+#) भाषाविवाहपडल, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सदगुरु वाणी समरि), ४१७८८(१) । भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीने), ३९७३०(+), ४२५९६(+#), ३९१७२ भीलडी सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवू), ४०५९२-३(#) भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलै), ३९२९७(६) भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (आवउ हे सही ए गावउ), ३९६८९-२(#) भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (पास जिणेसर प्रणमीनइ), ३९६८९-५(#) भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीअलियल भवक जण), ३९६८९-३(#) भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु समरिए), ३९६८९-४(#) भैरवदास आचार्य गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सो दिन वद्धामणो हो), ३९६८९-१(#) मंदोदरीरावण संवाद सज्झाय, मु. हीराचंद, रा., गा. १२, वि. १९३८, पद्य, श्वे., (अणी लंकागढमे आइरे), ४०८०७-३(+) मंदोदरीविलाप गीत, पुहि., गा. ११, पद्य, वै., (मंदोदरी आदे सह सोग), ४१४०७-३(+#) मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमो पंचमी दिवसे), ३९०७१-३(#), ४१७८१ (#), ४२२९७-२(#) मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., गा. ८९, पद्य, भूपू.?, (विश्वानंदी पयनमी), ३९६२७-१(#) मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८७०, पद्य, स्था., (आदि धरम धोरी प्रथम), ४३३३३(+#), ४१५८३-१(#)
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 572 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 1.1.10 मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लघु बंधव जुगबाहूनो), 41770-2(+#) मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., ढा. 5, गा. 10, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), 42919(+#) मनमांकड सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. 6, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), 41953-1(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (तुझ साथे नहीं बोलु), 40998-1(1) मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. 9, पद्य, मूपू., (एक दिन मरुदेवी आइ), 39175, 40736, 42868, 43131-1, 39195(2) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. 16, वि. 1850, पद्य, स्था., (जंबुदीपै हो भरत), 40391(+#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. 13, वि. 1837, पद्य, श्वे., (नगरी वनीतां भली वीर), 42330-8(+) मरुदेवीमाता सज्झाय , मु. विनयविजय, मा.गु., गा.७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (मरुदेवी मातारे एम), 41825 मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. 17, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता कहे), 42851(+#), 39109-1 मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. 9, पद्य, मूपू., (माताजि मारूदेवा रे), 43271 मल्लिजिन पद, मु. आणंदविजय शिष्य, मा.गु., गा. 4, पद्य, मूपू., (आज जिणंदजी का दीठा), 43075-4(#) मल्लिजिन रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. 20, वि. 1824, पद्य, स्था., (निमस्कार हुवो अरिहंत), 43380(+#$) मल्लिजिन स्तवन, ग. कीर्तिउदय, मा.गु., गा. 14, वि. 1654, पद्य, मूपू., (सुखसागरीया रे तोनि), 40788-1(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. 5, वि. 1756, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), 40066(5), 41250-2, 42030(#) मल्लिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गा. 18, पद्य, मूपू., (हवे दान संवछरि दिये), 42564-1(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), 43374-2 मल्लिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (कामकलस समो गुणधारी), 39516-4(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. 6, पद्य, मूपू., (सुगुरू सुणी उपदेश), 41677-7(+#) मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (तुज मुजरीझनी रिझ), 39273-5(+#),41464-10(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. 7, पद्य, मूपू., (हवे जाणी मल्लिजिणंद), 42607-3(+#) मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. 5, पद्य, मूपू., (मोहे केसे तारोगे दीन), 40660-4(+#) मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (श्रीमल्ली जीणंदसुं), 42102-1 महापुरुषगुण प्रभाति, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (जिकारं जिजिकारं जग), 40637-1(+#) महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. 4, वि. 1852, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रणम), 42383(#$) महावीरजिन आयुष्य विचार, रा., गद्य, मूपू., (एक वर्षमें सवाइग्यार), 42075-1 महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जग उपकारी रे वीर), 39781-3(+), 41954 महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. 9, पद्य, मूपू., (सखि श्रीवर्द्धमान), 43158-1(+#) महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., गा. 10, पद्य, मूपू., (जी रे जिनवर वचन), 41106-2, 41514 महावीरजिन गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (मंगलिक वाणी रे वाली), 39852 महावीरजिन गहुंली, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर शासन स्वा), 42270-2(+#) महावीरजिन गहुंली, मु. खुसालरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी आव्या रे गुण), 41828-1(+) महावीरजिन गहुंली, मु. खुसालरत्न, मा.गु., गा. 10, पद्य, मूपू., (सुजनी मग्धदेस मनोहरु), 41828-2(+) महावीरजिन गहुंली, मु. गुलाबविजय कवि, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (वीरजि आया रे चंपानयर), 43022-1(+#) महावीरजिन गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चालो सखि वंदनने जइये), 41702(#) महावीरजिन गहंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. 6, पद्य, मूपू., (भवियण वंदो रे चोविशम), 43097(+#) महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. 6, पद्य, मूपू., (प्रभुमारो दीइ छ), 39781-1(+) महावीरजिन गहुंली, मु. राज, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू, (जी रे गुणसीला चेत्य), 39233-1(-) महावीरजिन गहुंली, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (कौनै वन वीर समोसा), 43424-2(+), 41842-2 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ 573 महावीरजिन गहुँली, मा.गु., गा. 7, पद्य, मूपू., (प्रभुमारो भोग करम), 42791(+#) महावीरजिन गहुँली, मा.गु., गा. 9, पद्य, मूपू., (महावीरजी आवी समोसय), 42045-3(+#) महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (वंदु जगदाधार सार सिव), 39650-5(#) महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ नृपकुल), 43314-3(+#), 41750-3(#$) महावीरजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ सुत वंदिये), 42329-2(#), 42591-5(#) महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. 3, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देव मलिया 2 करे उछर), 43314-2(+#), 41750-2(#) महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (वीर जिनवर वीर जिनवर), 43314-1(+#), 41750-1(#) महावीरजिन जन्ममहोत्सव पंचढालियुं, मा.गु., ढा. 5, गा. 31, पद्य, मूपू., (ताल मृदंग रंग चंग), 40805(+) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. 11, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), 39671-4(-) महावीरजिन दशोटन महोत्सव, मा.गु., पद्य, मूपू., (राजा सिद्धार्थ निज), 43046(#) महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (वंदुवीरजिणंद महियल), 40015-4 महावीरजिन निर्वाण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. 12, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सच्छांतिकांतिसमता), 42315(#$) महावीरजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (मुगती गये पावापुर), 40102-3(+#) महावीरजिन पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. 4, पद्य, मूपू., (वीर विवेक हो), 42372-9(+#) महावीरजिन पद, मु. केसवदास, पुहि., गा. 3, पद्य, श्वे., (वीर की दुहाई भाई), 41806-5(#) महावीरजिन पद, मु. गुलाब, पुहिं., गा. 5, पद्य, मूपू., (प्रभु वंदन सखी मे), 40286-21(+#) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. 4, पद्य, मूपू., (आज हमारे भाग वीर), 41663-3(+#) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. 3, पद्य, मूपू., (क्या तक सीसर विचारा), 41663-17(+#) महावीरजिन पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. 3, पद्य, मूपू., (महावीर तोरे समवसरण), 41610-4(+#) महावीरजिन पद, मु. नयसागर, मा.गु., गा. 3, पद्य, मूपू., (वाजत रंग वधाई नगरमा), 40627-4(#) महावीरजिन पद, मु.न्यांनजी, मा.गु., गा. 3, पद्य, श्वे., (रमक झमक माहावीरजी घर), 40022-6 महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. 3, पद्य, मूपू., (मो मन वीर सुहावै), 40489-8(+#) महावीरजिन पद, मु. मेरु, मा.गु., गा. 2, पद्य, मूपू., (तारेंगे माहावीर), 42297-3(#) महावीरजिन पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (तमारा मुखडा उपर), 41933-2 महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं., गा. 5, पद्य, श्वे., (पावापुरी मुकरा), 43049-1(#) महावीरजिन पद-विक्रमनगरमंडन, मु. शोभ मुनि, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (जय जय वीरजिणंद हो जय), 39843-1(+#) महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. 18, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला ए पुत्र), 43270(+) महावीरजिन पारj, मु. उत्तम, मा.गु., गा. 12, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), 43142(+#) महावीरजिन पूजाविधि स्तवन-दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., गा. 27, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), 41701-2(+#$) महावीरजिन पूर्वभव स्तवन, मा.गु., गा. 8, पद्य, मूपू., (जंबुधीपैरे भरतखेत्र), 41744(1) / महावीरजिन रेखता, मु. चेतन, पुहि., गा. 5, पद्य, मूपू., (मेरा मन्न महावीर सो), 40617-2(2) महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. 19, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), 39570-1(+#S), 40450-1(+#), 39791, 40438-1, 42057, 39205 (6) महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. 15, पद्य, मूपू., (आधारज हुँ तोरे एक), 41437, 41586, 43169 महावीरजिन स्तवन, मु. अभयराज ऋषि, मा.गु., गा. 32, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीर गुण गायसु), 40995-2(#) महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर परमेश्वर), 40222-2(-2) महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. 7, पद्य, मूपू., (वीरजीने चरणे लागुं), 41402(#) महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदराम, पुहि., गा. 5, पद्य, मूपू., (भाग्य विना नही पावे), 40102-14(+#) For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 574 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 1.1.10 महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. 7, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), 39779(+) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. 12, पद्य, मूपू., (श्रीप्रभुजी तुमे तो), 40627-1(#$) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), 40756-6 महावीरजिन स्तवन, उपा. कर्मसागर, मा.गु., गा. 14, पद्य, मूपू., (सवा लख देसां मूलि), 40913(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. कल्याण, पुहि., गा. 5, पद्य, मूपू., (सो प्रभु मेरे वीर), 40199-1 / महावीरजिन स्तवन, ग. कीर्तिउदय, मा.गु., गा. 16, पद्य, मूपू., (जगजीवनिया रे मोनि), 40788-2(+#) महावीरजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद जगत उपगारी), 40587-2(+#$), 42475-2(+) महावीरजिन स्तवन, मु. गंगविजय, मा.गु., गा. 9, पद्य, मूपू., (सासननायक वीरजी करुणा), 40432-2 महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (वंदो वीर जिनेश्वर), 41610-3(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. 19, पद्य, मूपू., (सुणि जिनवर चोवीसमा), 40895-1(+$) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञान, पुहि., गा. 5, पद्य, मूपू., (नाथ केसे जंबु को), 42166-1(#) महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. 8, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजी सुणो एक विनति), 42575(#) महावीरजिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. 16, वि. 1849, पद्य, श्वे., (जोगलेइनै वीर जिणेसर), 42993-2(+$) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (श्रीसीद्धार्थकुल), 40428-1(#) महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. 20, पद्य, मूपू., (मोहराय से लडीया रे), 41589-2(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मारा प्रभुजी मुजने), 41433-1 महावीरजिन स्तवन, मु. मानविजय, रा., गा. 12, पद्य, मूपू., (प्रभुजी मारा आज), 41794 महावीरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. 8, पद्य, मूपू., (दुर्लभ भव लही दोहलो), 41677-10(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. 6, पद्य, मूपू., (--), 40271-1(#$) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. 5, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), 42306-2(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. 6, वि. 1734, पद्य, मूपू., (सुखदायक चोविसमो प्रण), 41045 महावीरजिन स्तवन, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), 42411-3(+#), 40512-2(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. 6, पद्य, श्वे., (सवि दुख टालेगे महावी), 40596-2(2) महावीरजिन स्तवन, आ. रतनसूरि, मा.गु., गा. 7, पद्य, मूपू., (बंदो हो जिनवर), 41758-1(#) महावीरजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (महावीरजिन वंदो भविक), 41610-2(+#), 43354-2(+), 41609-5 (#) महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. 9, पद्य, मूपू., (आमलकल्प उद्यानमा), 41610-1(+#), 42761-2(+$), 43077-2(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. 7, पद्य, मूपू., (माहाविरजी तुम्हारो), 40929-2(+#) महावीरजिन स्तवन, मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सातमातान वीनवन), 41326-2(-2) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम दीपे दीपता रे), 41844-2(+#$) महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. 9, वि. 1862, पद्य, श्वे.?, (वीर जिणंद सासण धणी), 41481-1(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. वनीतविजय, मा.गु., गा. 10, वि. 1845, पद्य, मूपू., (समरी इश्वरी मातने), 39721-2(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा.५, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (सिद्धारथना रे नंदन), 42162-2(+#), 42502-4(+#) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. 6, पद्य, मूपू., (आवो आवो जसोदाना कंत), 41779(#) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. 7, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जय जिनवर जग हितकारी), 41953-3(+) महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. 10, पद्य, मूपू., (वीरकुंवरनी वातडी), 43332-2(#) महावीरजिन स्तवन, मु. शिवचंद्रजी, मा.गु., गा. 7, पद्य, श्वे., (साहिबा वीर जिणंदनी), 39979-2(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. शोभ मुनि, पुहि., गा. 9, वि. 1850, पद्य, मूपू., (श्रीवर्धमान जिनेसर), 39843-5(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., गा. 5, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिणेसर साहिब), 41390(+#) महावीरजिन स्तवन, मु.सुखलाल, मा.गु., गा. 41, पद्य, श्वे., (--), 40629(5) For Private and Personal Use Only
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५७५ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. हितविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनेश्वर), ४१४५४(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीपावापुर मंदिरे), ३९७२०-१(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीवरधमान जिनराज), ४०२६९-४(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आपापानगरी भली ललना), ४११७१-५ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिली वलि प्रणमुंजी), ४०८६४-२($) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रसीक आज रमसु आनंद), ४२२५८-२(#) महावीरजिन स्तवन, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (वदाइ तीणलोक मे होइ), ४०३५६-१(+) महावीरजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (महावीर जिनरायना पय), ३९९०० महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ३९४२६(+#) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (श्रीशुभविजय सुगुरू),
४१४७४(+), ४२४४६(+), ४२४६१(+#), ४३१६१ महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ
मति), ४१२५८(+#$), ४१२५६(#), ४११०६-१(६) महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु),
३९१८९(+$), ४२२१५(+#), ४२७३३(+#), ४२७३७(+#), ४३०४४(+), ३९१४०, ३९३२५, ४१०७४, ४२८२६, ४३०८५-१,
४२४४५(१), ४३०७७-१(#), ४३४४४(#s), ३९२०६($) महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणकवधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), ४२२४१(+#) महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ४१६३७(+),
४२३७१(+#), ४२३८०(4) महावीरजिन स्तवन-अल्पबहुत्वविचारगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., ढा. ३, वि. १८०९, पद्य, मूपू., (सासन नायक लायक
शीव), ४२७२०(+#) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे),
४२२५७(+#), ४१६६५, ४३१५४-२($) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी),
३९०५५-२(+), ३९८३५(+#), ३९२०९ महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण दो मति), ४२०६९(#) महावीरजिन स्तवन-जन्ममहोत्सवगर्भित, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (पद्म सरोवर हये), ४२३०८(#) महावीरजिन स्तवन-डीगरी, पुहिं., गा. २०, वि. १९२८, पद्य, मूपू., (तिर्थकर महावीरने), ४१३६८(+#), ४१३७९-१ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (परब दीवाली रे दिन), ३९८४३-४(+#), ४१७२४(+) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनोरे), ३९४५२-३(+), ४२७३८,
४२४४७(#) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, भूपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), ४२८१९(+#),
४२६२१(#) महावीरजिन स्तवन-निसालगरगुं, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जिण आणंदा), ४२६२०(+#) महावीरजिन स्तवन-पताशापोल अहमदाबाद चैत्यप्रतिष्ठा व जिनबिंबप्रवेशगर्भित, मु. सरूपचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १९२२,
पद्य, मूपू., (चौवीसमा जिनवर गुण), ४०१४७(+#) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ४००११(+#), ४१३०८-२+#),
४३३३७-१(+#), ४३४२८-१,४००३७-१(#), ४३०७९(#$), ४३३०६(#) महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), ४०४८६-२(+), ४१३७९-२($) महावीरजिन स्तवन-पावापुरीमंडन, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., गा. ८, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (श्रीवीरचरणकज भेट्या), ४०३११(+)
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५७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
महावीरजिन स्तवन -पावापुरीमंडन, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू (चली पावापुर नगरी), ४१८४६-३(+) महावीरजिन स्तवन- मुहपत्तिपडिलेहणविधिगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू, (वरधमान जिनवर तणा जी),
४२७७५-२(+#)
महावीर जिन स्तवन -मोहराजा कथागर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवन), ३९७४८ महावीरजिन स्तवन - विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ११, वि. १८८८, पद्य, मूपू., (एकवार कछ देस आवीये), ४२७५९*)
महावीरजिन स्तवन - षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७१, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (गुरु पदपंकज नमी रे), ३९३०८, ४१०१४(#)
महावीरजिन स्तुति श्राव मकन, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (वाणि श्रीवीर जिणेसर), ४२४३७(१)
(२) महावीरजिन स्तुति-वार्थ, मा.गु गद्य, भूपू (हवे इहां वीर स्वामी), ४२४३७/१
',
महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( जय जय भवि हितकर वीर), ४३३१४-५ (+#) महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू, (मनोहर मुरति महावीर), ४३३१४-४(+) महावीरजिन स्तुति, उपा. नवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (भवियण वंदो श्रीमहावी), ४३४१२-१(+) महावीरजिन स्तुति, ग. लालकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुरतरुपुर प्रभु दीपक), ४०४७५-२ (+) महावीरजिन स्तुति - गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), ४१७६३(+) महावीरजिन हालरडु, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हां रे सुद असाडनी छठ), ४१०३७-१
"
महावीरजिन हालडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ४०३७५ (+#), ४२२४०-१(+#),
४२६३३ (+#), ४१७९०(#)
महावीरजिन होरी, रा. गा. १५, पद्य, भूपू (कुंनणपुर भला नगर), ४१५११(+), ४०७४२, ४०१२८(०)
माणिभद्रवीर आरती, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८६५, पद्य, मूपू (जय जय जय जय जगनिधि), ४२१७०-१००) माणिभद्रवीर छंद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २४, वि. १९५५, पद्य, मूपू., (वाणी वीणा पाणी वरदा), ४२२१६(+#)
माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., माणिभद्रवीर छंद, मु, लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपु माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु गा. ४३, पद्य, भूपू माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु गा. ४४, पद्य, म्पू. माणिभद्रवीर छंद, मु.शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू.,
(सरस वचन द्यो सरसती), ४१९९८-१, ३९९३१-२(०) (सरसति भगवती भारती), ४१८४७-१(३) (सरसति सामनि पाय), ४२७७७ (१) (सरस्वती स्वामनी पाय), ४२१२०-१(७)
(श्रीमाणिभद्र सदा), ४१७०५-१ (+), ४२२३४(+#), ४२७६०(#),
४१५६४-३) ४२४१४-२१
יי
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माणिभद्रवीर छंद -मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ४१३९७ -१(+),
३९५२८-१(#), ४२२१०-२ (#$), ४३०७६(#)
माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु गा. २२, पद्य, भूपू (नित समरुं त्रिपुरा), ३९७७३
"
(समरुं आदि अरिहंत), ४३०४८-१(+#
माणेकचंदमुनि चौडालियो, मु. मोजीराम, रा. डा. ४, पद्य, वे
,
मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ३९७१४(+#$), ३९४८१(s)
मावा पद, मु. भूधर, पुहिं. गा. ४, पद्य, क्षे. (अरि जग ठगनी तु माया), ४९८१३-२२+४)
मुनिगुण गहुंली, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु.. गा. १२, पद्य, मूपू
"
(मुनिसर समतारस संगी), ४२९१५
(वे मुनि मेरे मन वस्य), ४२९८८ (4)
"
"
मुनिमालिका स्तवन ग. चारित्रसिंह, मा.गु. गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ४१६५२-१ (४३) मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु गा. २०, पद्य, मृपू, (शांति सुधारस कुंडमा), ४०२७१-३(४) मुनिसुव्रतजिन पद, मु. रूपविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुं मेरा साहिब में ), ४००२२-१६ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो प्रभु मुज प्यारा), ४१६७७-८(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतशुंमोहनी), ४२६०७-१२(+#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (वरसे वरसे वचन सुधा), ३९७७८(+), ४३०४०(+#), ४०९२५,
___ ४२०९०-२, ४३१७०, ४२३७६(4) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीमुनिसुव्रतसामी), ४२००९-६(+#$), ४२०९४-२(5) मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (सिरि जंबूरे विनय), ४३२२७-२(#$) मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुअदेवी रे मंगल हेते), ४३३१२-६(#) मृगांकलेखा रास, श्राव. वछ, मा.गु., गा. ४११, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमेवि), ३९३६६(+$) मृगापुत्र सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू, (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ४३०९२(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दोगुंदुक सुरनी पर), ३९३३०-२(+#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ४०५९७-२(+#), ४१५३१-१(+#), ४३३४५(+) मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजीनी वाणी), ३९३६३-१(+) मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), ३९४५४(+), ४२४३६(+#) मेघकुमार चौढालियो, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनो रे चरण), ३९६५३(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ४२५९७-२(#), ४३०२७-२(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ३९८५८-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ५२, पद्य, मूपू., (समरी सारद स्वामिनी), ३९४२१ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ४०७९५-१(#$), ४१६०५-१(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावेरे मेघ), ३९९६९-२(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चारित्र लइ चित्त), ४२०७३-३(+#$) मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (त्यागि वैरागि मेहा), ४०८८५ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणी वीर जिणंदनी जी), ४०५११-१(#) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (दशमे भवे श्रीशांतिजी),
४१२९५(#) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), ४१३०८-१(+#), ४१५४४(+#) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. खिमाविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (सुरग थकी आए), ४०८६१-२(+#) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ३९९५०(+#), ४२०८०(+#),
४३४३०-२(+#), ४२७६४, ४११५०-२(#), ४१३५२(#), ४१९३८(#) मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), ४०४००-१(+-#) मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे.?, (मन धरी माता भारती), ३९९८२(+#), ४१८४५ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ३९६९२-२ मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एजे त्रस पाणी जीवनइ), ३९९९५-१(#) मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सासन नायक जग जयो), ४१४३२, ४१३६०-१(#) मौनएकादशीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हरी पुछे नेमने हो), ४२२७५ (+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसय), ४०३७८(+#$),
४०९१८-२(+#), ४१२७९(+#), ४१०००, ३९५९६-१(#), ४०९३१-१(२), ४१३८१(2) मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, पुहि., गा. १३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (अविचल व्रत एकादशी), ४०७५६-२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद),
४२५६५(+#), ४१०३३, ३९६३५-१(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जितेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने), ४२७८३
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. १३, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (विश्वनायक मुक्तिदायक), ४३१६३(+), ४३१८५(+),
४२६५७(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ४१२७०(+#),
४१७४९-१(#$) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ४०२२८-१(+),
४२५०२-५(+#), ४१५४८(#), ४३०३२(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, पद्य, मूपू., (महाबल नामे मोटो राय), ४२२५४(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन),
४१०९७, ४२२२८(#), ३९०६०(5) मौनएकादशीपर्व स्तवन-गणणागर्भित, मु. उदय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीसंखेस्वर), ४२२०१-१(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ३९०६२-२(+), ३९२७५-३(+),
४०८५५-४(+), ४०९७१-५(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), ३९५६१-२(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती कृष्ण), ४३०२८-१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ४०४८६-१(+), ४२४८७(+#), ४३३४८-१(+),
४१००८, ४२१७८, ४२१९७, ४२४८६, ४२८७५, ४१३३५(#), ४२४७२-१(१), ४२४९६(१), ४२७६५-४(#). ३९१४१(-#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ४०४९२-३(+#) यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), ३९९७०(+#) यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भाव यति तेने कहो), ४१९८८ युगमंधरजिन स्तवन, पं. चैनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया पामी अति कूडी), ४१०१५(१) युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ४००८८-१(+#), ४२६५८-१(+#), ३९१०९-२ युगमंधरजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमंधर विनवू), ३९२७३-३(+#) योगपांत्रीसी, मा.गु., गा. ३५, पद्य, म्पू., (आद जीणेसर जगती), ४०४५५-२(+) योगीमहात्म्य पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (याली धनओ पीउ धनउ), ४०६४१-१८(+#) योनिअल्पबहुत्व विचार, रा., गद्य, मूपू., (सबस थोडा जीवा सीतोसि), ४३१९२-२(+#) यौवनपच्चीसी, मु.खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, स्था., (जोवनियानो लटको दहाडा), ४२१३८(+#), ४०४१८-२(#$) रंगवेलि नाटिका-प्रीतिपरीक्षाविषये, उपा. उदयरत्न, पुहि., गा. ७८, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (बानी जूको बंदि कै रस),
__४०१२०-१(+#) रतनचंदजी गीत, मु. हमीरमल, मा.गु., गा. ११, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (ऐक दीनी हो रतनजी), ४०७८६-२(#) रतनचंदजी भास, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (धन रे दिहाडो मारे), ३९९९४-१(#) रत्नगुरु सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (रत्नगरु गुण मेठडारे), ४२३५७(+#) रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ३९४२८ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ३९४०९, ३९१३६(#s),
३९२७९(६) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (काउसगव्रत रहनेमि), ४२२६८-८(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., गा. १९, पद्य, मूपू., (देखी मन देवर का), ४२६३१-२(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजिमती नेम भणी चाली), ४०४४६(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (छांड देरे तुं वीषय), ४०८४४-१(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (छेडोनाजी नाजी छेडो), ४२८५६-१(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (यादव कुलना रे तुझने), ३९७१२-२(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ४२७६९-१(+#), ४२४५५-७(#),
४२६७५-१(4) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ४२२२३(+#), ४१०५१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (रहनेमि अंबर विण राजु), ४२८४६(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ४१५९९-२(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ४२२७७-२(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ४०१८४-१०(+-#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, मूपू., (मन चलियो रहनेम को), ३९५६६-३(+#5) राजसागरसूरि गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (पास जिणेसर पाय नमी), ३९९२१(+) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथम हि समरुं अरिह), ४०५११-४(#$) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. आणंदविमलसूरि शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसे जी), ३९८८१-१(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कातिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममा सारज कहिइ), ४३३०५-२(#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (अवनीतल वारु वसै जी), ४१८४४-१(+#), ४१८५२, ४०७०२-१(#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ४२१९०(+#), ४३०७२(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसे जी), ४०८१०(#) रात्रिभोजनत्याग स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी ए), ३९४३७-६(+5), ४१५२५-२ रामचंद्रमुंदडी सज्झाय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (सरसत सामणी बिनउं), ४२४०६(+#) रामचंद्र लेख, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीलंका), ३९३१८-१ रामचंद्रविलाप सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (किण ठामे चलि आयौ), ४१४०८-१(+#) रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. माणेक, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सुणो मंदोदरी नारायण), ४०१४८ रावणमंदोदरी सज्झाय, पुहिं., गा. १७, पद्य, मूपू., (कहै मंदोदरी सुण हो), ४१४०७-१(+#), ४२०१७(+) रावणमंदोदरी सज्झाय, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (मंदोदरी बोलै महीपति), ४१४०८-२(+#) रावणराणीवास गीत, राघव, पुहि., गा. १३, पद्य, वै., (कित गये नृपति डौलतै), ४१४०८-३(+#) रावण सज्झाय, मु. जीतमल ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (कहै भमीछण सुन हो), ४२८५२-१(+) रावण सज्झाय, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (किहां गए किहां गए), ४१४०७-४(+#) रावण सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (रावन सुनौ सुमत), ४१६९६-३(#) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ४२३०६-५(+#), ४२५०३-२(+),
४२६१५-१(+), ३९८८८-२, ४०७९८, ४०५०७-१(#), ४०६९०(#), ४२६७६(#), ४३२७६-२(#), ४३४२१(#), ४३२३२-४(-2) रूक्मणीसती विवाहलो, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (नृप भिषम कुंदनपुरी), ४३४२८-२ रेखता संग्रह, हसनमल, अ.भा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, (ऐकदिदम् एकसूरत), ४०८४४-२(#) रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन संघासन रेवती), ४२५६३-४(+#), ४२५६३-६(+#$) रोहिणी चौढालियो, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (शाशननायक सुखकरण), ४३२८३-१(#) रोहिणीतपविधि स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (सुखकर शंखेश्वर नमी), ३९२८९(+), ४०८७१-१(+#),
४२२११(+#), ४३३१८, ४१००९(5) रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य नमी स्वामी), ४२२६०(2) रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणंद), ३९६९१-१(+), ४३०८०(+#),
४१३०२-१(#) रोहिणीतप स्तवन, मु. कृष्ण ऋषि शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (रोहिणीतप भवि आदरोरे), ४२४४१ (#) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ४२९४९-२(+#$),
३९६३०, ४२९८१(#)
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रोहिणीतप स्तवन, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रोहणीतप भवि आदरो रे), ४२४४२
रोहिणीत स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ४०१४०-१(+#),
४०६८७१, ४२११२-१(४)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
रोहिणीत स्तुति, मु. कांति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (शिवसुखदायक नायक ए), ३९२७५-६ (+)
रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ३९९०४
"
रोहिणीतप स्तुति, पंन्या पद्मविजय, मा.गु गा. ४. वि. १९वी पद्य, भूपू (नक्षत्र रोहिणी जे), ४९४६०, ४२९१७-२ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ४०५०९, ४०९४२-२(#) लक्ष्मीपति सज्झाय, मु. अमोलक ऋषि, रा., गा. ३०, वि. १९५६, पद्य, श्वे., ( पुन्य चीज है बडी जगत), ४१४८३(+#) लीलावती रास, क. मानसागर, मा.गु. गा. ८१, पद्य, भूपू (राजदहो राजदहो सूरत), ४०४५५-१(+) वंकचूल सज्झाय -७ व्यसनगर्भित, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., ( च्यार मास पूरा थया), ४२४२९ (# ) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बिहरमान भगवान सुणो), ४०१९६-१(+) वज्रस्वामी गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ८, पद्य, भूपू (सखी रे में कौतुक), ४२२३६ (+), ४२३६८ (+) (२) वज्रस्वामी गहुली वार्ड, मा.गु., गद्य, म्पू (वयरस्वामी ६ मासन), ४२३६८ (५०) (२) वज्रस्वामी गहुली - अर्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (वज्रस्वामी छ मासना), ४२२३६ (+)
वज्रस्वामी सज्झाय, मु. दवातिलक, रा. गा. ९, पद्य, भूपू (मुनिवरजी हो जौ थे), ४१८४९ (+) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू., (कहै सुनंदा बांह पसार), ४०४३८-४ वणजारा सज्झाय, छजमलजी, मा.गु., गा. २७, पद्य, वे., (चतुर वणजारा हो सारद), वर्णमाला *, मा.गु., गद्य, (ॐ नमः सिद्धं अ आ ई), ४२५४४-२ (#), ४३२३६-२(#) वस्तुपाल तेजपालमंत्री रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. डा. २ गा. ४०, वि. १६८२, पद्य, भूपू (सरसति सामिणि मनि),
४०८९३(+)
""
३९८९५-१
वासक्षेप भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (झमकारो रे मादल वाजै), ४०६९६-१(#)
वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (वासुपूज्य वासव नमे), ३९६९१-२(+)
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (नायक मोह नचावीवो), ४०९३६-२ (०), ४११०३-१२(ख)
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. ( वासुपूज्य जिन बारमा), ४१६८७-३(४)
,
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभूजि वासुपूज्य), ४३१२८-३(#$)
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू. (वासव पूजित वासुपूज्य), ४२२०८-२(+४) ४२५७८- २(१०),
,י
४१६२१-२, ४२४६०-२ (#)
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु गा. ७, पद्य, भूपू (प्रभुजीसुं लागी हो), ४१६७७-४(+४)
.
वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, भूपू., (स्वामि तुमे कांइ), ४०९१९-१(१),
४१६०५-२०१
वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, रा., गा. ५, पद्य, म्पू, (वरसण लहिस्यां जी), ३९७२०-२(+०)
वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., ( वास्यपूज चंपापुरी), ४११७१-६
""
विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु, ज्ञानविजय कवि, मा.गु.. गा. ९, पद्म, भूपू विजयलक्ष्मीसूरि गहुली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु, गा. ८, पद्य, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा.
४०८२४(४६)
(सारद प्रणमी पाया), ४३३०५-४११
(आर्यदेश नरभव लह्यो), ३९७८१-२(+)
थे. (शुक्लपक्ष विजया व्रत). ४१८६५
.
१७. वि. १८६१, पद्य, स्था. (प्रथम नमु श्रीअरिहंत), ४०१४१(१),
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विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ४३४३१(+#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ३९४३२(+), ४३२५४(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, थे., (देव नमसर नामी कोही), ३९१९४(७)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५८१ विजयसेनसूरि भास, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती भारथी), ४३३६२(+) विजयहीरसूरि सज्झाय, मु. दोलत, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (करिये भक्ति गुरुराज), ४०२७४-२(+) विमलजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुख दोहग दूरे टळ्या), ४०५१२-३(2) विमलजिन स्तवन, मु. गजमुख, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (विमल विमल गुण वेलडी), ३९५१६-२(+) विमलजिन स्तवन, मु. जिनकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमल विमल गुण मन), ४२४०५-३(+#) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यौ), ४०९३६-३(#), ४११०३-१३(#) विमलजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विमल जिणंदसु विनती), ४०७३१(#) विमलजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (सेवो भवियां विमल जिण), ४३४१८-९(+#) विमलजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (तुमसों लागो नेह विमल), ४३४१८-१०(+#) विमलजिन स्तुति-मालपुरामंडन, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर अरचित), ४०५७८-१(+#) विरह पद, रा., गा. २, पद्य, (मांने एकलडी मत मेलो), ४००२२-१ विरह पद, पुहिं., गा. २, पद्य, (मे भीगँका' द्वार), ४००२२-२ विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (श्रीसद्गुरु वाणी), ४१५५९-१(+#), ३९३४०($) विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), ४०७४१(2) विविधतीर्थ चैत्यवंदन, पंडित. धनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद पर्वते), ४०७३२(#) विविधमान परिमाण सज्झाय, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जुगति मान जानै विना), ४१५९५(+#) विषमभूमिविचरण कवित्त, मु. कुशललाभ कवि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विषम भोम थल भुरूट), ३९६१२-२(#) विषयपच्चीसी, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (जी हो वीर कहइ गोतम), ४०९८५-३(#) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ४१५१९-१(+#) विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरणमाण), ३९०९६(+),
४३१९३(#) विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ३९५५६-६(#) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ४२६६६(६) वृद्धिसागरगुरु सज्झाय, मु. माणिक्यरुचि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पदपंकज), ३९८८३(+) वैदर्भी चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), ३९१९३(5) व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ३९३६१-२, ४१९२६-२ व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० अज्ञा), ३९४७२(+), ४१५०३(+#), ४२७७६(+#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल),
४०९१२(#$), ४११७७(#) शत्रुजयतीर्थ गहुँली, मु. गुलाबविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सासनपतिना प्रणमु), ४२७३५(+#) शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. दलिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो चालो सिद्धाचल), ४२७४५-४(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), ३९६५०-१(#), ४२२३०-६(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलतीर्थ नायक), ४१०९०-१(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध), ४१३६५-२(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ४३२२९-४(+#) शत्रुजयतीर्थ दोहा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एकेकुंडगलुं भरे), ४१७३९-१(+) शत्रुजयतीर्थ पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो मन मुगतागीरीसु), ४०१०२-१२(+#) शत्रुजयतीर्थ पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरिजी को दरिशन), ४०१०२-११(+#) शत्रुजयतीर्थ फाग, मु. कपूर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो सखी तुम सब मीली), ४००२२-१३
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५८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ३९८२३(+#), ४१४२३(+#),
४२१८९-१(+#), ३९१८४, ४२७७०, ४२०१२-२(#$) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ४१२५९(#$) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (जगजीवन जालम जादवा), ४२१३२(#$) शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, मु. उद्योत, मा.गु., गा. ७, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (आवो सखी सिद्धाचल जइ), ४३२७५-२(+#) शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (श्रीनिजगुरु), ४३२५०(+#) शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (विमलगीरि वीमल वसीसेर), ४२०५४(+#$) शत्रुजयतीर्थयात्रा स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिद्धाचलमंडण सामी रे), ४२४७७(+#$) शत्रुजयतीर्थरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नीलुडी रायणतरु तले), ४३२९८-२ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ३९५४३-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. आत्मारामजी, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदिश्वर जिन मेहर), ४०२५०-#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिन विमलगिरि वरणव), ४१८३२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (डुंगर ठंडोरे डुंगर), ४१७७३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ४०९७१-३(+), ४३३५४-४(+), ४३३५६-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेजागढना वासी), ३९९६४-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ३९९३३-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ४१५८९-१(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणविमल, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (मेरो मन मगन भयो अब), ४३२९८-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ४२३०६-४(+#), ४०७९१-२,
३९९९६-४(#), ४१९२१-२(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन पूर्व नवाणु), ४२६४८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वनिता पीउने विनवे), ४२५६०-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ४१०२७, ४१५९३, ४३४५९-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (हाजी विमलाचल मन०), ४०३०९-२(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), ४१७११-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आपो आपो ने लाल मोंघा), ४३१२६-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), ३९८६२-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरु मन मोह्युरे), ४२६२९-४(+#),
४३१४८-२(+-#), ४३२२९-६(+#), ४३४१८-६(+#), ४०४७०-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वंदना वंदना वंदना), ४३२९१-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संघपति भरत नरेसरु), ४२४०५-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानशीतल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जागोने मारा अंतरजामी), ४२२४७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दयातिलक, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (कंत भणी कामिणि कहइ), ३९७४२-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ४३०४३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चालो सखी जिन वंदन जइ), ३९२७३-१(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (धन धन मुनिवर जे संजम), ४०९५०(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता हो नारी), ३९७४२-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ४२२९२, ४०६४८(३), ४०९३६-६(#),
४३४५७-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सहिया सेजगिर), ३९७४२-५(+)
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शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ४१८८९-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचल नित वंदीये), ४१७६९-१०(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रंगवर्द्धन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सेजानो स्वामी), ३९७४२-४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विमलाचल सिर तिलो), ४०३४८-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उमैया मुजने घणीजी हो), ४२६६३-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अमृत वचनेरे प्यारी), ४११९५-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसोरठदेशे सोहता), ४१४६६-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विवेकी विमलाचल वसीए), ४१७५१-१(-) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध सुहाव), ४१८१९-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ४१३६२(+#), ४१४३६(+#), ४२०६२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चालो चालोने जइये), ४२७२२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. हुकम, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तीर्थपतिनें पूजे रे), ४११७१-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अमरत वचनेरे प्यारी), ४२३३५(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (शेत्रुजे गयां पाप), ४२७४३(+#), ४२३०७(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ४०५६४(+#), ४२५६०-१(+#),
४२३४२-२(#), ४२४५२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तीरथनी आशातना नवि), ४११५०-५(#),
४११६१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ४०५५४-१(३), ४१२५७-२(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचल तीरथनो राया), ३९२७५-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ४१९४९(१) । शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल लीला मुनि), ४२७६६-१(#) शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो सखी विमलाचल जइय), ४२१४६-२(+#) शत्रुजयतीर्थे सिद्ध आत्मा विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (चैत्र सुदि १५ मे), ३९३३२(#S) शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ४०२००(+#), ४१०२६,
४१९६४(#), ४२१२८-१(#) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ४०८०९ शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ४२१२३-१(-2) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ३९५३७-२(+) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ), ३९६५०-२(#), ४२२३०-७(#) शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शांतिजिनेसर सोलमा अच), ४२५९१-२(#) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ४०६४५-४(+#),
४१३३८(+), ४२४९५-१(+#), ४२७०७, ४०७०१(#), ४०७०६(#), ४१५३४(#), ४१८९२-१(-) शांतिजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (फरसे माहाराज आज),४३४१८-२(+#) शांतिजिनविनती स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (संत करता श्रीसंत), ४२७०६-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ४१४४१-१(+), ४२२२५(+), ४२७३४-२(+#),
४२९९७(+), ४०९११-१(#) शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (संति जीनेसर मूरति), ४२१५५-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वार अनंती भवसायर), ४०४७१-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (--), ३९४४६-१(+#$)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० शांतिजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (शांति जिनेश्वर सोलमा), ३९५०३(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. गुलाबविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८९०, पद्य, मूपू., (साहिब शांति जिणंदजी), ४३००९(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (शांति जिणंदने भेटीये), ३९३९९-३($) शांतिजिन स्तवन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति आपोरे शांति), ४२०९७(१) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ४०७३०-२(#), ४२६६२-१(#) शांतिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (काल अनंता अनंत भवमा), ४११०३-१६(#) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मनरा मानीता साहिबा), ४०४३२-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर साहिबा), ४०८९५-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शांति जिनेसर साहेब), ४२१६१-१(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अचिरा सुत अरजी अछे), ४३१२८-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा सांति जिन), ४३१२८-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. फतेसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीशांति जिणेसर), ३९९१९-२(-#) शांतिजिन स्तवन, मु. भवान ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८१६, पद्य, श्वे., (सांत जणेसर सेवीये), ४१६१५-२(#) शांतिजिन स्तवन, पं. भाणविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (शांती जणेसर सोलमोरे), ४०७०८(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवा शांतिजिणेसर की), ४२४०५-१(+#$), ४३१८४(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सोलमा जिनराज हु), ४१८५७(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (संतिकर संति मति आपि), ४११७९ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिजिन एक मुज विनत), ४२००९-१(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज), ४२५८४-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (स्वामि सनेही सांति), ४२१३५-६(+#) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धन दिन वेला धन घडी), ४०७९१-१ शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ४१८३६-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तुं), ४०६४४(+#), ४१२४५-१ शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु शांतिजिणंद भलै), ४०९२९-३(+#), ४२०५१ शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मी, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (फाग खेलत है फूलबाग), ४००२२-१० शांतिजिन स्तवन, मु. वल्लभविजय, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (पल पल गुण गाना गाना), ४१७३७(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ४३३५४-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संति जिणेसर सोलमोरे), ४०३१३-१(2) शांतिजिन स्तवन, मु.सुखलाल, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (सोलमा जीनजी शांतिनाथ), ४०६३४-१ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीशांति जिणंद दया), ४२११४-२(+#) शांतिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (संतनाथ जिन संति के), ४३०७१(#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांति प्रभु विनति एक), ४२९८४-२ शांतिजिन स्तवन-ज्ञानोपयोगगर्भित, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (थाली कलसली सार कचोला), ४१९४७-१(#) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर
केसर), ४०६०१(+), ४२९८०(+#), ४३३७९(+) शांतिजिन स्तवन-विक्रमपुरमंडन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (अधिक आनंद चित ऊपनो),
४०९१५-३(+#) शांतिजिन स्तवन-विक्रमपुरमंडन, उपा. रुघराय पाठक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सांतिकरण नमीयै सांती), ४००२९(#) शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमु सिरनामि), ४२०२७(#) शांतिजिन स्तवन-सिरोहीमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (हो जी मारी सहीया सेव), ४११०५
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५८५ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीई), ४३०१३-१(+), ४२१२३-२(-#s) शांतिजिन स्तुति, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तज लवेंग जायफल एलची), ४२२०१-२(+#) शांतिजिन स्तुति, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विश्वसेनकुल कमल दिन), ४३४०३(2) शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति सुहंकर साहिबो), ४२३२६, ४३४४३-१ शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ४२५३४-६(+#), ४१६३८-१(-) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीने), ३९३५१(-5) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), ४१५३१-२(+#), ४०५११-२(2) शालिभद्रमुनि सलोको, मु. खोडाजी, मा.गु., गा. ४२, पद्य, श्वे., (सरसति माता तम), ४१८९९(#$) शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठीनें प्रणमीई), ४१२३९ शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कोडी सातने लाख बहोतर), ४००६१-१(+#),
४३४५७-१(#) शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ४३३७५ शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभाननजिन), ४००६१-३(+#) शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ४००६१-२(+#), ४३४५७-२(2) शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ४१७५९-१(#) शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., (रिषभानन बधमान चंद), ४००८८-२(+#) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ४००६५ शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (शीवपुर नगर सोहामणो), ४००१२-१ शीखबहोत्तरी, रा., गद्य, मूपू., (अरिहंत देव को मन मै), ४०५२० शीतलजिन आरती, बद्री, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जय जय आरती शीतल जिनर), ४१७२६(2) शीतलजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज लगे धरी अधिक जगीश), ४११०३-१०(#) शीतलजिन स्तवन, आ. दयासूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सुरतरु समो), ३९९९७-४(-) शीतलजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीव थकी वालो मुने रे), ४०५१२-५(#) शीतलजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशीतलजिन तें सहू), ४०५१२-४(#) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ३९९७९-१(+#), ४०२१२-१(+#),
४२५०२-७(+#) शीतलजिन स्तवन, मु.सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीतल जिनवर दरसण दीठो), ४०६९५-२(+#) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ४२१११-२(#S) शीलपच्चीसी, श्राव. नेतो, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सुर नर किंनर नाग), ४०४८५-१(+#) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ३९३२२(+$), ३९३४७(+$) शील रास, रा., गा. ३२, वि. १८०६, पद्य, श्वे., (सारद माता समरूं तोय), ४१९३२(+$) शीलव्रत ३२ उपमा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रह नक्षत्र तारा), ४०७०९(+#) शीलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८४४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हत नीत नमु), ३९८३४(+#) शीलव्रत सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीयल समुंव्रत को), ४१५७६-३(+) शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ते तरीया भाई ते), ३९८२२-३(+) शीलव्रत सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तिन गुपत ताणो भण्यो), ३९८७२-६(+), ४०५१०-३(#$) शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (सासूकह सूणरी बहू), ४१५८३-२(१) शुकराज रास, मु. रत्नविजय, मा.गु., ढा. ६५, वि. १८११, पद्य, मूपू., (श्रीरीसहेसर वीनवु), ३९३९८(#5) श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रतिमा मास १), ४०६६५-१(2) श्रावक ११ प्रतिमा सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, म्पू., (ग्यारै प्रतिमा हो), ४०३१०(+#)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० श्रावक २१ गुण सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सरसति चरण नमावु सीस), ४१५७६-४(+) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ३९७५४-२(१), ४३०११(#) श्रावक आलोयणा, मु. हीरमुनि, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३९३८५(६) । श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकने सकल पातक), ४३३५९(+#), ४३३३४, ४००३२-२(#) श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रावक नाम धरायने), ४२७०६-५(+#), ४३४५८-२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ४२६०३-१(+#), ४२८१३-२, ४३३५३-१,
४१३९९(#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ४१७५७-१(#) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (कहिए मिलस्ये रे), ४१४८१-२(+#) श्रीपालराजा सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति माता मया करो), ४०७९९(+#), ४२०७२, ४३१७९,
४२९०६(#) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल
कवियण तणी), ३९७१८, ४२८७८, ४०७११(#) श्रीमती चौढालियो, मु. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (खीर खांड मिलीया खरा), ४३३५३-२ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिन), ३९०७३-६(+-) श्रेयांसजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक एक कनकने बीजी), ४११०३-११(#) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सोवनवान शोभाकर हो), ३९५१६-६(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रेयांसजिन सुणो), ४१६७७-३(+#), ४२१५४-१(#) श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तुमे बहु मैत्री रे), ४१६९८-४(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसनी सेवना), ४२६०७-५(+#) श्वासोच्छ्वास का थोकडा, रा., गद्य, स्था., (गोतमस्वामि हाथ जोड), ३९७२३(#) संजतीसाधु सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरतरु सरीखो संयम), ४२९४९-१(+#), ४१९१०-१(#) संभवजिन गीत, मु.सुगुण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (संभव जिन सुखकारी हो), ४१८२३-१ संभवजिन पद, मु. सुखलाल, पुहि., गा. ४, वि. १९१२, पद्य, मूपू., (संभवनाथ सहाई मेरे), ४०१२४-२(+) संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमु जी संभव), ४०८९८(+#) संभवजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (संभवदेव ते धुर सेवो), ४२४०४-१(#) संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८९४, पद्य, मूपू, (विणजारा रे नायक संभव), ४११०३-३(#), ४०४६०-६(-) संभवजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (सुखकार हो), ४१८७३ संभवजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा.८, पद्य, स्पू., (संभव जिनराजजी रे ताह), ४०७२४(#) संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलोरे संभव), ४२९८२(+), ४०८९९-१ संभवजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो विनति), ३९५१७-१(+), ४२६१५-२(+) संभवजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ९, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (संभव जिनवर वंदिये रे), ३९४५१-१(+) संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसंभवजिन वंदना रे), ४२१३५-३(+#) संभवजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ससनेही जिनराय मलिये), ४१६७७-१(+#) संभवजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मुजरो ल्योने माहरो), ४२६०७-६(+#) संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्यु), ३९५१७-३(+$) संभवजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (सामि संभवनाथ आराधो), ४२७३४-३(+#$) संभवजिन स्तवन-जहानाबादमंडन, मु. मोहन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (विस्वगुणी विस्वेसरू), ४१२९०-२(+) संभवपार्श्वजिन स्तवन-अजमेरमंडन, मु. शांतिरत्न, पुहि., गा. ७, वि. १९३०, पद्य, मूपू., (शहर अजमेर मे भज भवि), ४०१२६(+#) संयतिराजा सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (मीठी मीठी हो इमरत), ३९१४३-२(+)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
संयममहिमा पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कवित गीत गुण गूढ), ३९६१२- ४(#)
संच्छरी खामणा, पं. दीपविजय कवि, मा.गु. गा. १६, पद्य, मृपू., (खामणलां खामो रे भविक), ४२००६-१(+) संवर सज्झाच, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (बीर जिणेसर गौतमने), ४२६०३-२(४), ४००१४ संवेगबत्रीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जोइ विमासी जीवडा ए), ४०४७६ (+#)
13
संवेगी चौढालियो, उपा. जस वाचक, मा.गु., ढा. ४, गा. ७३, पद्य, मूपू., (सुद्ध संवेगी किरिया), ४००९० (+#)
संसारसमुद्र उपमा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जेम समूद्रनी बाहेरन), ४११९८-१ (+)
सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल तीर्थ वंदु कर), ४३३२५-१(#)
चित्तचित्त सझाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. २५, पद्य, मृपू, (प्रवचन अमरी समरी), ४२९६८-१(+), ३९९०७ सज्जनाष्टक, मु. हेम कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु., (एक हरे अंधार तास), ४१७३३-१
सद्गुरु पद, मु. गंगाराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (सतगुरु साधु सिपाई), ३९८४९-५ (#)
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (सुरनर परसंशा करे), ४२३४८-१(ख) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु गा. १७ वि. १७४६, पद्य, मूपू (सुरपति प्रशंसा करे), ३९७१७(+), ४०६७७-४(+),
"
४१०६०(#)
सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु. गा. १९, पद्य, थे. (थुक जोयो तीण वसर), ४१६२२-१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन मागु), ४०९९८-४ (#) सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय रूप अभिमान, रा., पद्य, श्वे. (तीण कालन तीणसमे परथम), ३९०९८४) समता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (चाखो रे नर समतारस), ४०५६५-२(+#) समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., डा. ५, पद्य, मूपू.. (देवतणा आसण चलइए सुर), ४१५८५ समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपु. ( आज गईती हुं समवसरणमा), ४०९०६-३(+), ४१३२६-१(१) समवसरण स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८२१, पद्य, मृपू. (मोरी वीनतडी अवधारो), ४२१८७
"
समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपू (समोसरणनी शोभा जेणे), ४१५३५ (१), ४२३०३(७)
"
,
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (मिलि चौविह सुरवर), ४३३३७-२२+४)
समस्या हरियाली, मा.गु. गा. १६, पद्य, वै., (--), ४२४१७-१(०४)
सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. नवलदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीखरगीर वांदन जानां), ४०१०२-४(+#)
सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, मूपू., (मे पुजुं सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुडिंगा. ३, पद्य, भूपू (समेतसिखर चलो जाइये), ४१६६३-१६ (+), ४२०४६-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जयकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (तीरथपति प्रणमुं सदा), ४१७१४-१
(दरसण कीयौ आज सीखरगीर), ४१६६३-१८ (+) पारसनाथ), ४०१०२-६ (+#$)
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सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू. (चालो हे सहेली जावा), ४९२६७, ४२१४२, ४२६५३(१)
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीसेन, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू., (शिखरजी की यात्रा), ४०४४०-५
सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ९, वि. १९११, पद्य, मूपू., (चालो चालो सिखर गिरि), ४०४४०-६
सम्मेतशिखरतीर्थं स्तवन, मु, हर्षविजय, पुहिं, गा. ६, पद्य, म्पू, (तेरे घाटीओ चोकी लाग), ४१५९२(१) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु, हुकम, मा.गु.. गा. ५, पद्य, मृपू. (अनिहां रे समतशिखर), ४१९७१-४
सम्यक्त्व ६७ बोल, गु.,मा.गु., गद्य, श्वे., (दरब समगत भावै समकत), ४१४८५-१ (+#)
सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (इम समकित मन थिर करो), ४२४२७(+), ४३०९९(#)
सम्यक्त्वमहिमा पद, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( सर सर कमल न उपजै), ३९८३६-२(+#) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. देवीदास पुहिं. गा. ५, पद्य, वे (समकीत नाह सही रे, ४०४२०-१ (४)
זי
सम्यक्त्व ६७ बोल विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम समकितनी), ३९१६२
सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ४१३२८(+०३), ४१६४२-२(+३), ४२७८९(+४)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० सम्यक्त्व सज्झाय, मु. नथमल, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (सुद्धसम्यक्त्वीना), ४०१०७(#) सम्यक्त्व सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सर सरि कमल न नीपजै), ४०५९२-२(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ४१२९८-१ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ४१३६५-१(+), ४२२२४(+), ४२३२१(+#),
४२५०५(+),४३३७८-३(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ४०७५१-१(+#), ४१९९५(+#), ४२३३६(+#),
४२७३९(+#), ४२९९४(+#), ४१५९९-१(#s), ४२८८१(#), ४२८८४(#S) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ४०२८२-१(+#), ४२१४१(+),
४२९७१(#), ४१८१८() सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), ३९७२२(#), ४३०५५(#) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ४३२५५(+#), ३९५६५(#) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (इण स्वार्थसिध के चंद), ४२७०६-१(+#) सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ४२१४७-३(+#), ४०११३-२(#), ४०८४४-३(#) सवैया संग्रह, मा.गु., पद्य, जै.?, (--), ४३३५४-१(+5) सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सागररायनी वारता कहु), ४२७०६-४(+#) साधारणजिन आरती, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती श्रीजिणराज तुम), ३९७९२-२(+) साधारणजिन आरती, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (इहविध मंगल आरती कीजे), ३९५३७-३(+) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ४१७६९-८(2) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रखे नाचतां प्रभुजी), ४२९००-२ साधारणजिन चैत्यवंदन-५ परमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव),
४१७१२-२(+), ४०२०७-९(-2) साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज एसा सेरा बनाउगी), ४३४१८-१५(+#) साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कठीन लगन दी प्रीत), ४१६६३-१४(+#) साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (केसे मीले मोअकेसे), ४०१०२-५(+#) साधारणजिन पद, मु. आनंदरत्न, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (तुमरा रे दरसण पाईलो), ४०२८६-२०(+#) साधारणजिन पद, मु. ऋषभदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नावरीया मेरा कोण), ४०२८६-३(+#) साधारणजिन पद, मु. किसनगुलाब, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (देखोरी जिणंदा), ३९८०२-५(+), ४३०४९-५(#) साधारणजिन पद, मु.खुशालराय, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरा जीवडा लग्या), ४०६६०-१२(+#) साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (घडी घडी पल पल छिन), ४०६६०-८(+#) साधारणजिन पद, मु. नयनसुख, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु सिमेटो व्यथा), ४०२८६-१६(+#), ४०६६०-१(+#), ४१६६३-८(+#) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (कीयै आराधना तेरी), ४०६४१-६(+#) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या मुख आज जिनवर), ४१७६२ साधारणजिन पद, मु. पद्मविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो दिल वस कीयो), ४१६६३-५(+#) साधारणजिन पद, मु. भाण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हु नवि मागुवासवनी), ३९५१८-२ साधारणजिन पद, मु. भीम, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (हो जगदीस काहा करतो), ३९७७१-५(#) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालोरी सखी प्रभु), ३९८०२-४(+), ४१६६३-१५(+#), ३९७७१-४(#) साधारणजिन पद, मु. माणेक, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (प्रभु गल सोहे मोतीन), ३९७४१-४(१) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जब तु नाथ नीरंजनां), ४२३७२-६(+#) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (दरीसन कु आया), ४२३७२-३(+#) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देव निरंजन भव भय), ४१६६३-४(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मीतापीआरे लाल की), ४२३७२-२(+#) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ४०६४१-११(+#), ४२०२४-१(#) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हम लोक निरंजन लाल के), ४२३७२-४(+#) साधारणजिन पद, मु. रूपविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जगतगुरु मेरे तेरो ही), ४०४८९-४(+#) साधारणजिन पद, शिवाराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगी वो प्रीत नही), ४०६६०-१८(+#), ४१६६३-१२(+#) साधारणजिन पद, मु. हजारीमल, पुहिं., गा.४, पद्य, श्वे., (जय जय जिनराज आज), ४०६१८-२(#) साधारणजिन पद, मु. हजारीमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (देवाधिदेवा सेवा मेवा), ४०६१८-८(#) साधारणजिन पद, मु. हर्षकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम देखो विराजत है), ४०६४१-१३(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज प्रभु तोरै चरण), ४०२८६-२(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (टुक सुनीयो नाथ), ४१६६३-२०(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरि अखीया रे), ४३४१८-८(+#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे दरसण के देखे), ३९६३४-५(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजीसुं मोरी लगन), ४३०४९-२(#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोभा अजब वणी जिनराज), ४१६१०-५(+#) साधारणजिन फाग, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऐसी होरी में प्रीतम), ४१६६३-२१(+#) साधारणजिन रेखता, मु. चेतन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु को सुमर रे), ४०६१७-१(१) साधारणजिन वसंत, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (मेरे जिनजी खेले रुत), ३९८७२-३(+) साधारणजिन विनती स्तवन, पंन्या. भूधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (त्रिभूवनगुरु स्वामी), ४०९७२-३(+) साधारणजिन विनती स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, मु. कुमुदचंद, मागु., गा. १०, पद्य, श्वे., (प्रभु पाय लागु करु), ४१८२०-२(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुज पापीने तार जिनंद), ४३४४० साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (देखोरे जिणंदा प्यार), ४३४१८-१६(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ४१७२३-१(+), ४०६०५-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सबल भरोसो तेरो जिनवर), ४०२०५-२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज माहरा प्रभुजी), ४१६०७-२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), ४२०५८-२, ४२६८५-३(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निस्नेही शुनेहलो), ३९५७०-२(+#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भोर भयो भयो भयो जागी), ४०६५२-२(#) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हम लीने प्रभु ध्यान), ४०६५२-५(#) साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आबोलो स्याना ल्यो छो), ४२९००-१ साधारणजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (में मतवाला जिनका), ४२८५६-२(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. भोजसागर, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (जिनवर चरण सण चित), ४०७१४-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. मान, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (जुजाणो ज्यू थारा), ४२३३०-६(+) साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही हो), ४१७६९-५(#) साधारणजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उगियो), ३९९३७-३(+-#) साधारणजिन स्तवन, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अब जिनराज मिलीया हां), ४०२०५-३(#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आस खडा मेदान मे), ४०६५२-७(#) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, श्वे., (अब में जान्यउ हइ), ४०६६५-४(#$) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, स्पू., (जिनजी जो तुम्ह तारक), ४०६५४-३(+#$) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लागी लगन मने तारी), ४३४३६-२(#)
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डा.पू., (वी ), ४२७१
धर्म उत्त
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० साधारणजिन स्तवन-त्रिगडाअधिकारमय, ग. पद्मसागर, मागु., गा. १९, वि. १७०९, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ कुल चंदलो),
३९९३१-१(#) साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल नाचे सुरपत), ३९८८१-२(+),
४०४७०-५ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ४२६३५-२(+) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (त्रिजगनायक तुंधणी), ४२७१०-१(#) साधारणजिन स्तुति-द्रव्यभावमंगलगर्भित, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (धर्म उत्सव समे), ४१७२० साधु ३० उपमा सज्झाय, मु. आसकरण, मा.गु., गा. १२, वि. १८३३, पद्य, स्था., (तिस ओपमा साधरी रे), ४०७८६-१(#) साधुआचार सज्झाय, मा.गु., गा. ४६, पद्य, श्वे., (पेला अरहतने नमुं), ४०३७९-१ साधुगुण पद, मु. रामचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (धनि मुनिराज ऐसे है), ४०२०५-४(#) साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहिं., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), ४१६०८-२(+#) साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत जे धरइ), ४०३६०(#) साधुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनुं करूं), ४०८२९(+) साधुपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दसण नाण चरित्त करी), ४२७७५-७(+#) साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमती जी), ४१५७४-१(#) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ४३२११-२ साधुमनोरथ पद, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तीन मनोरथ धारो साधु), ४०६१८-४(#) साधुलक्षण सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तारण तिरण जिहाज तुम), ४०५४९-३ साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमु), ३९८७७-१(+) साधुवंदना, रा., ढा. २, गा. ३९, पद्य, श्वे., (जिणमार्ग में धूरसु), ३९४०७(२) साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुअनंत चोवीसी), ३९६८४(+#S), ४२३९२(#),
३९३५२(६) साधुसामाचारी-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिथि २ थाइ तिवारइ), ४०१३९(#) साधुस्वरूप सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (मोह महारीय जीपक), ४०९१०-२(-#) साध्वीकालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोटी गण वयरी शाखा), ३९०८२(+), ४२८४७(+#) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. बुद्धि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सामायक समता भावे करो), ४११८०-३(+#) सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ४२८०७(+#), ४३२७४-२(+#$) सामायिक सज्झाय, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १०, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (सामायिक सुखदाइजी चित), ३९८५१(+) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ४०५४०-३(+#), ४२६१३-५(+#) सामायिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर प्रणमी पाय), ४०५७९(+#) सामायिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमी सोहम गणधर), ४०९९२ सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (उरधलोकमाही एक सम ४), ३९७०८(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदायक श्रीसिद्धचक), ४२७२५-२(#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ३९१७४ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शुललित नवपद ध्यानथी), ४०३३६-१(#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र),४०३३६-२(#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ४१०७५, ४१६०२,४१९९९(#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. सुखविजय; पं. दीपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ४२६८३-४(+#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चंपापूरीनो नरवरु नाम), ४२६८३-२(+#), ४२७२५-५ (2) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंत पहिले पदे), ४२६८३-५(+#), ४२७२५-४(#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक सिद्धचक्र), ४२६८३-१(+#), ४२७२५-३(#) सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ३९६५०-६(#) सिद्धचक्र नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आसोमासने चैत्र मास), ४२६८३-३(+#), ४२७२५-६(#) सिद्धचक्र नमस्कार, मु. सिद्धिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ४२७५०(#) सिद्धचक्र पद, मु. चंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जती मोने जेतर लिख दे), ४०२०४-१(१) सिद्धचक्र पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ध्याइये सिद्धचक्र), ३९६३६-३(+#) सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान धरो रे), ४०६६०-१३(+#) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ४१६७२(+), ४३०२१-२(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ३९९५४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्रनी करुं भव), ४२५२६-२(+#) सिद्धचक्र स्तवन, ग. अमृतसागर, मा.गु., गा. ५, वि. १७९१, पद्य, मूपू., (भविअण सिद्धचक्र), ४१५२१-२ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (भावे कीजे रे नवपद), ४१४९१(#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ४०४७०-२, ४०९३१-३(#) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनवाणी पणमेव समरी), ४०६९९(2) सिद्धचक्र स्तवन, मु. खूबआनंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८८४, पद्य, म्पू., (नोपद पंकज सीस नमीजे), ४२०४५-२(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धन धन नवपद जस नामी), ३९६३६-२(+#) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सह मंत्र), ४२०३१-१(#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (गौतम पूछत श्रीजिनभाष), ४३४६०-३(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ४०४९३-४(#) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ४२४५७-१(+#), ४११६०-२ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमुं दिन), ४१६२७(+#), ४३२१६(2) सिद्धचक्र स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १६५१, पद्य, मूपू., (भारती भगवति पाय नमी), ४२३७५-२(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ४२५८७(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ४३१८६-२(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. अमृत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधो), ४२५२६-१(+#) सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ४१७५२-१ सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ४२३९९(+#), ४३१९९(+), ४०००८(१),
४१६५३(#) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ४२८७३(#), ४२९९६-१(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगनायक दायक सिद्ध), ३९६३६-४(+#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमंत सुरनर पाय), ३९६३६-५(+#), ३९९६८-२(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समरु सुखदायक मन), ४०९३९(+#) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनेसर अलवेसर), ४०९७७-५(+#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनेसर अलबेल), ३९६७३-३ सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), ४२३७५-३(+), ४३२९८-४($) सिद्धचक्र स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा), ४११८०-१(+#), ४२०५८-१ सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ४०४३१-१(+#), ४१३७३-२(+-#),
४१७१२-१(+), ४१२९३-१ सिद्धचक्र स्तुति, मु. पद्म, मा.गु., गा. १, पद्य, म्पू., (सिद्धचक्र आराधो साधो). ४३०१३-३(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), ४३१५५
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सेवो), ४३१७८ सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ४२८२४(+),
४११९२-१, ४२९४४(2) सिद्धपद चैत्यवंदन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशैलेसी पूर्व), ४२७७५-४(+#), ४२२८७-१(#S) सिद्धपद सज्झाय, मु. अभयराज, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धनइ करूं), ३९४४६-२(+#) सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (आठ कर्म चूरण करी रे), ४१४३९-१(+) सिद्धपद स्तवन, मु. कुशल, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (अष्टवरस नग मास हीना), ४२२८७-२(#) सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ४२७४१-३(+#), ४२८९८, ४२५८८(#) सिद्धपद स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ४०९०६-२(+#), ४१९५८, ४३१७३(#) सिद्धपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्ट करमकुंदमन करी), ४२२८७-३(#) सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगन्नाथ जगदीश जगबंधु), ४०८७६(+#) सिद्ध स्तुति, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (तुमे तरण तारण दुख), ४१९५९-२(+#$) सिद्धांतविचार स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (संसारि फरिता जीविहि), ३९९५३-१(#) सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवे मांड्यो उत्तंग), ४३४५२(+#) सीताविनती पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हाहाकार करत), ४२८५२-२(+), ४३०३१-२(+#S) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुनाम), ४०१८४-२(+-#), ४३१११(+#), ४३३५८(+),
४०७६९-२, ४३३०४(१), ४३३३२-१(#) सीतासती सज्झाय, मु. विनयविवेक, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (पीया तुम कैसी वीचारि), ४०३९३(#) सीतासती सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (दसकिंदर राजा कणीरो), ४०२६९-३(+#) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ४०१८४-७(+-#),
४२५८३-१(+#), ४३४६०-१(+#), ४३२३२-३(-#) । सीमंधरजिन काव्य, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (त्रिलोकीनाथं भविक), ४१८३७-२(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदं जिणवर विहरमाण), ३९६५०-८(4) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवरा), ४२६८४-२(+#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ४३२२९-३(+#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीजगनायक सुरतरु मन), ४०४७४-२(+#) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर
साहिब), ४००३९ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ४१६७१(#$), ४२४६७(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मनडु ते माहरु मोकलु), ४१९०९-२(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीमंधर विनती सुणि), ४२६८५-१(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुण सीमंधर साहिबाजी), ४३४२०(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, पद्य, पू., (प्रभुनाथ तुं तियलोक), ४३१७१ सीमंधरजिन विनतीस्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ३९२७३-२(+#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), ४१८१७ सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू.,
(स्वामी सीमंधर विनती), ४१०२५, ४३२९० सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४१, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब
आगे), ४२३३८(+#)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ४१६३९(+#), ४२८१२(+#),
४३०८२(+#), ३९०९५, ३९६७२-१, ३९७९८, ४१२६३-१, ४०७५३(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ४३१५६(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण शिष्य, मा.गु., गा.११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर स्वाम हो), ४३०९८-३(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तो सो साढा दील लागा), ४०४८५-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो हो), ४०५३८(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (सीमंधरस्वामी तुम दरस), ४३२९६(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सुगुण सेनही साजन), ४३३३७-६(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनदास, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुणो सुणो सीमंधर), ४०४४०-४ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडुंहेजालवू), ४२७४१-२(+#), ४२८७६-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चांदलिया संदेशो), ४१२५०-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूर्वविदेह विजये), ४०८६५(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा), ४२८७६-५(+#), ४३३३७-८(+#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूरव दिस पुखलावती जय), ४३३३७-३(+#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा जन), ४१६०९-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर साहिबा), ३९७५०(+), ४०९३८-१(+#),
४२९८५-१(+), ३९७४९, ४०५१४(#), ४१३३७(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. तिलोकचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (शिवपुर नगर सुहामणो), ४०४१२-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आजुनो दिहाडो भले), ४२४५७-३(+#) सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ४३२२९-५(+#) सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ओलुडि महाविदेह), ४२२९६-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ४१९१७-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ४१६०९-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, स्था., (हो जी जबुदीपें जाणीऐ), ४०६६६-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ४०५९२-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ४०२७६(+-#),
४२६१४(+), ४२९३५(+#), ३९०८८, ३९०९२, ४२३५८, ४३०३८(#), ३९०६६-२(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर ते साहेबा), ४०७५४(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सीधऋषि, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधरस्वामी दीप), ३९८५४-२(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ४३४४९(+#), ४२९६४, ४०८९६(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदलीया जिनजीसु), ४१५७४-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो जी), ४२८७६-८(+#) सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पूरव पुष्कलावती हो), ४०५१५(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वालो मारो सीमंधर), ४२०८९, ४०४७३(#), ४२६९२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमदरस्वामीजी), ४३०९४-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु.,गा.५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा),
३९५३९-१(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. विमल, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (मुज आंगणे सुरतरू), ४२४७२-२(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुझनै), ४०९४५-१(-2) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी केवला), ४०८४१-३(#)
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सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ४१४२९(+#)
"
सुजातजिन स्तवन, मु. नवविजय- शिष्य, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू. (साचो स्वामी सुजात), ४०७५६-३ सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., ढा. ४, गा. २१, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद विराजता), ३९५२५-३(+)
"
सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद पंकज नमी), ३९७७४(#)
(चंपानवरी उद्यानमा), ४०६८० (१)
,
सुधर्मास्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु. गा. ७ पद्य म्पू. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु, उद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू. (चंपानगरी उद्यांनमां), ४३२७५-३(+) सुधर्मास्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचम गणधर वीरनारे), ४३२३०-२(+) सुधर्मास्वामी गहुली, मु. रंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सहगुरु भावे भविजन), ४३२२३ (#) सुधर्मास्वामी भास, रा. गा. ७, पद्य, मूपू (कठडा आया गुरुजी), ४१०६९(१)
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१०
सुपात्रदान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दान सुपात्रे दीजै हो), ४०२८३
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुपार्श्व जिन वंदीए), ४२१०९(#)
सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कल्याणसूरि शिष्य मा.गु., गा. ९. वि. १६९७, पद्य, मृपू. ( पास तिथंकर प्रणमिनइ) ३९८१६-२०१
सुपार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज हो परमारथ पायो), ४११०३-७(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. माणिकराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (तार प्रभु तार मुजने), ४९७४५(५), ४३१७५-२(+) सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीसुपास जिनराज), ४१४६४-७(+)
"
सुपार्श्वजिन स्तवन मांडवगडमंडन, आ. गुणाकरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (पणमवि पहिलु सासणदेवी), ४०८७७-१(+४) सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. पानाचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८९३, पद्य, स्था., (हवे सुबाहुकुमार एम), ४३०१९(#) सुबाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामि सुबाहु सुहंकर), ४२५८० (+)
सुभद्रासती रास - शीलव्रतविषये, मु, मानसागर, मा.गु., डा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू (सरसति सामणि वीनवुं), ३९९४३ (५),
"
४०९८५-१(०)
सुभद्रासती सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु, गा. ३४, पद्य, भूपू (हुं पभणुंशी एहनी वा), ४१९३० (+) सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हां रे तुं कुमति), ४२६७९
सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ४०९३६-१(#), ४११०३-५(#) सुमतिजिन पद, मु. चेतन, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसन दीजे सुमत जिनेस), ४०६१७-३(४) सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरख वदन सुख पायो मै), ४१७६९-९(#), ४२४८८-१(#)
सुमतिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (सुमतिनाथजी अर्ज उचर) ४२२४७-३
13
"
,
सुमतिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु. गा. ६. वि. १८वी, पद्य, भूपू (सुमति चरण तुज आतम), ४२४०४-३(४) सुमतिजिन स्तवन आ ज्ञानविमलसूरि, पुहिं. गा. ६, पद्य, भूपू (तुम हो बहु उपगारी), ४०६५२-८(०) सुमतिजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु. गा. ५. वि. १८२२, पद्य, श्वे. (सुमति जिनवर हो प्रभु), ३९५०१ सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( सुमति जिनंद तुं पद), ४२१३५-५(१) सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (सुमति सुमति सलूणा), ४२६०७-८ (+)
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सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ३९९७६-१(+), ३९६७३-१, ४०९७० (४)
सुमति सज्झाय, मा.गु. गा. २२, पद्य, भूपू. (सुमति सदा दील में), ४२३३४(१)
सुयणा गीत, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मथुरापुरि पति संख नर), ४०७८७- १(#)
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सुमतिजिन स्तवन - आगलोडमंडन, मु. विनयविजय, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपु. ( आज हुं गश्ती स० पीता), ४०३०९-३ (क) सुमतिजिन स्तवन- उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., प्रभुस्युं तो बांधी), ४०१२९ (+#), ४०९८४-६(+#) सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू (मोटो ते मेघरथ राय रे). ४१७०६-१)
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सुरप्रभजिन गीत, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सूर जगदीशनी तीक्ष्ण), ४३२७४-१(+#) सुविधिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (सेवा बाहिरउ कईयको), ४११०३-९(४)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मेरा रे), ३९८६२-७(#) सुविधिजिन पद उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (गुण अनंत अपार प्रभु), ४०६४१-१५ (+०) सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८. पच, मृपू. (सुविधिजिणेसर पाय नमी) ३९०७३-५ (+४) सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २, गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (श्रीसुविधि जिणंद), ४०९५६-२ सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी अजबशी योगनी मु), ४१७५८-३(१) सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., (वाकै गढ फोज चही है), ४०२८६-१८(४०), ४०६४१-७ (+१०)
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सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ४२९५५ - २ ( +#), ४२९६८-३ (+#S), ४०७०४, ४०७०५, ४१३२२, ४१४७६-२, ४३४०७ (#S)
सूतक सज्झाय, आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु गा. ३३, वि. १९७७, पद्य, भूपू (सरस्वतीदेवी सम), ३९२२४+६)
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सोदागर सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुण सोदागर बे दिल), ४३४०१-२
सोमरत्नसूरि गीत - आगमगच्छीय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( सारद सामिणइ मनि धरी), ४०५८४-२ (#) सौधर्मदेवलोक स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सौधर्म देवलोक पहिलो), ३९१०२($) स्तवनचीवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु. स्त. २४ वि. १७७६, पद्य, भूपू (ऋषभ जिनिंदसु प्रीतडी), ४३१०८(+०६) स्तवनचीवीसी उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु स्त. २४ गा १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू जगजीवन जगवालहो), ३९७३१ (४७)
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स्थानकवासी को किये गये ११ प्रश्न, पुहिं गद्य, मपू. (संपूर्ण सूत्र तुम), ४०१२७ (+)
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स्थानकवासीगच्छ मर्यादा पड़क, रा., गद्य, स्था. (श्रीजेनधर्म अनुयाई), ४३३८१
स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूरव नवमथी उद्धरी), ४०९७४
स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), ४२९५३-३ (+) स्थापनाचार्यजी पडिलेहण विधि, मा.गु, गद्य, मूपू (प्रथम इरियावहि तस्सङ), ४२५०८-१(०)
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स्थूलभद्रमुनि नवरस दूहा, ग. दीपविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (थूलिभद्र कहें सुण), ३९८११(+#)
स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), ४०७८० (+#), ४१९४१(+$), ४१८५१, ३९९११००१, ४१५३८००), ४१६२५ (०३), ४९७१३(४)
स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपि
दायक सदा), ४२१२२(+#)
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. करमचंद, मा.गु, गा. १७, पद्य, भूपू (जोसी जोव जोतिग साफ), ३९८९६-३ )
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स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि पुहिंम गा. १४, पद्य, मूपू., (अणीअमा महामुनीसर), ४२४०८ (०) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (लटकाली रे कोस्था), ४२६१३-६ (+) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्राणप्यारा हो), ३९६३३-३
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स्थूलभद्रमुनि सज्झाय ग. जिनहर्ष, मा.गु गा. ११, पद्य, भूपू (भल ऊगो दिवस प्रमाण), ४२२९५ **३) ४२९६०(०) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे. (कहे सखी पिउडे स्युं), ४२२७७-१००) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र ऋषि जेह शखि), ४१७४२ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र थिर जस करमी), ४०६७९(+#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू., (चंपो मोरो रे आंगणे), ४१०३५-२
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स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपा मोर्यो हे आंगणे), ४३१४८-३ (+#), ४१७८४(#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), ४२६१७ (+), ४२४६८ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु, वीर, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू (उठ वे साहेली प्यारे), ३९११७-२०१ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बोली गयो मुख बोल), ४२५९८ (+)
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स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू. (थूलभद्र मुनीसर आवो), ३९६३९-२ (०)
स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ४२३४८-२ (००) ४२२९६-४(१) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय क. सहजसुंदर, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपु (चंदलीया तुं वेहलो), ४२८५८-३(५)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ४१९५०(#), ४२०२८($) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारतीजी), ३९८४१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सूर्यमल्ल ऋषि, रा., गा. १४, वि. १९३०, पद्य, श्वे., (चोमासो उतर्यो पछै), ४०८०७-१(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरस्वतीने चरणे नमी), ४०९०९(+#) स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, दि.?, (एक समें चारो शिष्य), ४०८६१-१(+#) स्थूलिभद्ररूपकोशा गीत, मु. माल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आवति कोश्या सणगार), ४०५७८-३(+#), ४३३१२-५(#) स्नात्रपूजा, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, मूपू., (पूर्व दिसे तथा उत्तर), ३९१९२(#$), ३९१९१(६) स्नात्रपूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (पवित्र धोती पेरी रे), ४२७३२(+$) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ३९६२२-१(+#),
४२६२७(+#), ४२८२०(+#), ४२३१८(#s), ४३३८४(#) स्वप्नबत्रीसी, मु. भगोतीदास, पुहि., गा. ३३, पद्य, दि.?, (सुपनेवत संसारमे जागै), ४२३७०(१) स्वयंप्रभजिन गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामि स्वयंप्रभु), ४०२०५-५(#) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु.,खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी ___चोवीसे), ४१६९१(६) हनुमान गीत, तुलसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (कपि से उर्ण हम नाही), ४१४०८-४(+#) हीररत्नसूरि सज्झाय, मु. उदयप्रताप, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रेमदा प्रेमसुंगीत), ४०८८२(#) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु.खीमासेन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बे करजोडी जी बिनउं), ४०१२५(#) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीनवू), ४२६१३-८(+#) हीराक्रषि गहुली, रामकिशन ब्राह्मण, पुहि., पद्य, श्वे., वै., (मुनी हीरारषजी महाराज), ३९९५२-२ हुकमीचंद आदि गुरु गीत, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (इस भरत खंड में तरण), ४०२६९-१(+#) होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), ४३०१५(१)
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