Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 488
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४७१ ४३३२५. (#) सकलतीर्थ चैतवंदन व ४ मंगल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी विपरित क्रम से लिखी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १७४५२-५४). १. पे. नाम. सकलतीर्थ चैतवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरुं, गाथा-१४. २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. राजसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखकने बाद लिखी मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीधारथ भुपती सोहीइ; अंति: जगमा श्रीजिनधर्म, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक लिखने की जगह ढालांक ही लिखे हैं.) ४३३२७. (+) चतुर्विंशतिजिन व समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १८६५, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, प्रले. पं. सौभाग्यहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३६). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: (-); अंति: देवता सा जयतादजस्रम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७, ग्रं. १४८, (पू.वि. शांतिजिन स्तुति श्लोक-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: यस्य ज्ञानदयासिंधो; अंति: शंखेश्वरः प्रभुः, श्लोक-५. ४३३२८. (+#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५-१७४३४). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. ४३३२९. (+) संखेश्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. चतुरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२.५, ११४३५). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: अतित अनागत वरततारे; अंति: धर्म साथें मन वालिई, गाथा-३७. ४३३३०. (+) लुंकागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४९). पट्टावली-नागोरीलुंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीमहावीरजीनो; अंति: माता जीवांदै माता छै. ४३३३१. (+) कर्मस्तव कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पत्रांक-४आ पर 'ऋ. सिद्धराजजीनी प्रति च्छइ' इस प्रकार का उल्लेख है., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ९४३२). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहतं वीरं, गाथा-३४. ४३३३२. (#) सीतासती सज्झाय व माहावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४२६). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुँनाम धराव; अंति: नित होज्यो परिणामे, गाथा-७. २. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, १०, ले.स्थल. भिणायनगर, प्रले. मु. प्रेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: बीर कुमरनी बातडी केन; अंति: भाग्य सालि अनंत, गाथा-९. For Private and Personal Use Only

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