Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 445
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२९७१. (a) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, सांडेराव, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. मूल पाठ का अंश खंडित है अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२६.५x१३, १२३०). " सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल अंतिः सोइ पूजो सरस्वती, दाल-३, गाथा - १४. ४२९७२. पाक्षिकक्षामण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. आनंदसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. प्रत के अंत में प्रत के लेन-देन संबंधी व्यवहार का उल्लेख है. दे., (२७४१२.५, १२४४१). . क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४२९७४ (+) ८ प्रकाशपूजा काव्य, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. वे. (२६४१३.५, ७४१६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर, अंतिः मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्रोक- ९. ४२९७५. (+#) बिंबपरिक्षा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९४५, आश्विन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. खंडित भाग पर चिपकाए होने से पत्रांक पढ़ा नहीं जा रहा है, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे, (२६.५X१२.५, १३X३६). बिंबपरीक्षा प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: एइयगि लक्खणभावं; अंति: गंथाउ जाणीज्जा, गाथा - ३०. ४२९७६. (+) 'दृढप्रहारीरीषी सज्झाच व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२४X११, १९X३७-४२). १. पे. नाम. दृढप्रहारीरीषी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रणमिं सरसति वरसति, अंतिः जंपे जब सीद्धीगामी, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखकने दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) २. पे. नाम, दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२९७७. (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. दादरा, प्रले. सा. लाखा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७४१३.५, १६x२९). "1 औपदेशिक सज्झाय- बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: किण र बुडीपो तेडियो, अंति: नगर गुण गाया, गाथा - २९. ४२९७८. चेलणारो चउडालीयो, संपूर्ण वि. १९२० १४, रविवार, मध्यम, पृ. २. वे. (२६.५४१३, १७३७). " चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकलो; अंतिः श्रावलोक बस सुभठाम, ढाल ४ (वि. इस प्रति में कर्ता का नाम व रचनावर्ष प्राप्त नहीं होता है.) ४२९७९ (+) दीक्षा विधि संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३.५, " १३X३३). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेसे, अंति: नोकार गणावीई. ४२९८० (+) शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वजि सत्य छे प्ररमेस्वरजी, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२.५, १३x४० ). शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर, अंति: जसविजय सारी लही, ढाल ६. ४२९८१. (#) रोहणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२.५, १३४३३). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हारे मारे बासपूज्य, अति: रोहणी तप गुण गाईवा, बाल-६. ४२९८२. (+) संभवनाथस्वामीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६ १३, ९४२५). For Private and Personal Use Only

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