Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 452
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० १.पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. हीरविजयसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्त्या नमस्कृत्य; अंति: हीरवि० मुदा प्रसन्नः, श्लोक-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मरुदेव्याः सुतकांति; अंति: संघस्य श्रेयं कुरु, श्लोक-१. ४३०३०. (+) अजशिलाका विद्धान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३६). अंजनशलाका विधि, रा., गद्य, आदि: प्रथम जवारा वाहणा; अंति: ते स्थानेके करवी. ४३०३१. (+#) गजसुकमालजी का बारामासीया व सीताविनती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४४१). १. पे. नाम. बारामासीया गजसुकमालजी का, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि बारमासा, पुहि., पद्य, आदि: चतमहीना चड आया मयावन; अंति: इंदर नमें जै जे कारी, गाथा-१२. २. पे. नाम. सीताविनती पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. पुहि., पद्य, आदि: हाहाकार करत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ४३०३२. (#) मौनीइग्यरसरै हुजमणैरो पत्रो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण वेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहै य्याहडी, गाथा-१३. ४३०३३. (+#) आलोचना स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३८-४०). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिक अने लक्ष्मी; अंति: शिव सौख्य मागु छु. ४३०३५. दिपालिका देववांदवानी वीधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीसलनगर, प्र.वि. कल्याण पार्श्वनाथजी प्रसादात्., दे., (२६४१३, १६४३६). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंति: प्रगटि सकल गुण खांणि. ४३०३६. (#) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.१, १०४३०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ४३०३७. (4) जीवना भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मात्र प्रथम पत्र पर पत्रांक अंकित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४३५). ५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी घंमा वंसा; अंति: देवता ९९ अपर्याप्ता. ४३०३८. (#) श्रीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३, १२४३५). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: संतोषि० पायो रे, ढाल-७, गाथा-३८. ४३०३९. (#) आंतरानु तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, ११४३३). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदाना सुपरे; अंति: तास नामे वरयो जयकार, ढाल-४. ४३०४०. (+#) मुनीसुव्रतजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वानने पेन्सिल से भी संशोधन किया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४३९). For Private and Personal Use Only

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