Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 420
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रथमप्रणवमायाबीजं, अंतिः चिरं जीयाय शाश्वती, श्लोक-१३. २. पे नाम, नवग्रह मंत्राक्षर स्तोत्रनो गुजराती अनुवाद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र - अनुवाद, गु., गद्य, आदि: प्रथम ऊँ ह्रीँ अने; अंति: लक्ष्मी वासो कर छे. ३. पे. नाम. नवग्रह पीडानिवारण विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ९ ग्रह मंत्राक्षर स्तोत्र - आम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: सूर्य नडतो होय तो अंतिः पीडोपशांति स्थात्. ४२७५४, (४) असझाइनि सझाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२५३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदि; अंति: वेहला वरसो सीधि, गाथा- ११. ४२७५५ (+) अषाडभूत का पंचडालीय, संपूर्ण वि. १९०० आश्विन कृष्ण १४, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, हरसरुकी गढी, प्रले. मु. गणेशीलाल (गुरु मु. देवकरण); गुपि. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१३, १३x४१). आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो, अंति बचन की आसतारे लाल, ढाल ७. ४२७५६. (#) जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१३, ११३१). पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकचद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस, अति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७. ४२७५७. गजसुकमाल की लाउणी, संपूर्ण वि. १९२० आश्विन शुक्ल, १३ शनिवार, मध्यम, पृ. ३, दे. (२६.५x१२.५, १६x४२). "" गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८६७, आदि: सोरठ देसम दुवारमती, अंतिः मनबंछत फल जे पाठ, गाथा-२२ (वि. इस प्रति में कृतिकार का नाम नहीं है.) ४२७५९ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, ११४३२). महावीरजिन स्तवन- विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: एकवार कछ देस आवज्यो; अंति: जीत नीसान बजावीये, गाथा - ११, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम नहीं मिल रहा है.) स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५, १०x३८). " १. पे नाम, चेलणाजी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण ४०३ ४२७६०. (#) वीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१३.५, १२X३७). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा, अंति: इम सुजस कहै, गाथा- ९. ४२७६१. (+) पार्श्वनाथजीनो कलश व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, दे., (२६.५X१२.५, १३x४३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनो कलश, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन कलश-मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु., पद्य, आदिः वणारसीनयरी विजय अनोप अंतिः जयो जयो भगवंत जी, गाथा- ७. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि आंचलकल्प उद्याणमा, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४२७६२. (+४) देहरागडकोटनगर बसाया तिणरी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२.५, १३x४२-४४). जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. किस व्यक्तिने कौन से समय में जिनालय, गढ़, कोट, नगर बसाया उसका वर्णन है.) ४२७६३. (+) चेलणाजी व नवकारवाली सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की For Private and Personal Use Only

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