Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 120
________________ चाहिये, लेकिन आवश्यकताओं की पूर्ति तब गुनाह का बाना पहन लेती है जब आसक्ति और आकांक्षा के दीमक उससे सट जाते हैं । आवश्यकता दो रोटी की होती है, पर आकांक्षा बादाम, पिस्ते और मिठाई की । आवश्यकता दो साड़ी की होती है, पर आकांक्षा II । आवश्यकता कमरे की और आकांक्षा महल की । आवश्यकता और आकांक्षा में फर्क है । आवश्यकता का घड़ा भरा जा सकता है लेकिन आकांक्षा का, बे-तल का पात्र, दुष्पूर है । आज के सूत्र में महावीर का अन्तिम संदेश है, अनुसरण का । श्रमण-धर्म को जानना ही पर्याप्त नहीं है, आवश्यकता है तदनुसार अनुकरण की । सत्य का ज्ञान करना जरूरी है, पर ज्ञात सत्य का आचरण करना भी अनिवार्य है । जब तक पुरजोर कोशिश न होगी बाहर निकलना सम्भव नहीं है । जिस व्यक्ति ने अब तक सैकड़ों-हजारों सिगरेटों के पैकेट खाली किये हैं, क्या उसने उस पर लिखी वह वैधानिक चेतावनी नहीं पढ़ी है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । व्यक्ति रोज चेतावनी पढ़ता है, रात भर खाँसता है फिर भी पीता है । जानबूझकर अपने आपको फंसाता है, यही तो आसक्ति है । जिस दिन यह चेतावनी, तुम्हें चेता दे और तुम चेत जाओ उसी दिन, दिल से वह चीज निकल जाएगी, बिखर जाएगी । तब, अब तक जिस दिलोजान से सिगरेट पीते रहे, संसार में अटके रहे, उसी कर्दम में से एक कली बाहर आएगी | कली का यह बाहर निकलना ही जीवन के द्वार पर अनासक्ति की दस्तक है। उस दिन परिपूर्णता समझना जब यह कली कमल बन जाये, संसार में समाधि खिल आए, वासना से उपरत होते हुए निर्वाण आत्मसात् हो जाये । Jain Education International अनासक्तिः संसार में संन्यास / १११ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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