Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 119
________________ मैं तुम्हें बचा लूँ । लेकिन व्यक्ति कहता है एक मिनट ठहरें । मधु-बूंद टपक रही है । एक बूंद का स्वाद तो और ले लूँ ।। कितनी छिछली आसक्ति और गहरा सम्मोहन । एक बंद के लिए भी व्यक्ति मौत के मुँह में जाने को तैयार हो जाता है, इसे अकर्मण्यता कहें या आसक्ति ? महावीर केवल काम-भोगों को छोड़ने का ही नहीं कह रहे हैं, वे कहते हैं आसक्ति को छोड़ो । आसक्ति और सम्मोहन के कई ठौर-ठिकाने हैं । यहाँ गौरवर्ण के प्रति राग हो ऐसी बात नहीं है, काले का भी अपना राग है । शक्कर की मधुरता का तो सम्मोहन है ही, नमक के खारेपन का भी है। जैसे बिना शक्कर के दूध नहीं सुहाता वैसे ही बिना नमक की सब्जी भी रास नहीं आती । माना कि रोटी, कपड़ा और मकान जिंदगी की आवश्यकता है, पर आवश्यकता के प्रति आसक्ति तो आवश्यक नहीं है। __आध्यात्मिक जगत् में जितना हेय आसक्ति को माना गया है और किसी को नहीं । आसक्ति को ठेठ संसार कह दिया गया । जबकि अनासक्ति को साधना और समाधि के शास्त्र का पहला और अन्तिम चरण स्वीकार किया गया है। जिसकी आसक्ति टूटी उससे संसार छूट गया । आसक्ति ही संसार है । समाधि की चहल कदमी के लिए संसार को नहीं छोड़ना है, आसक्ति से छुटकारा पाना होता है | आसक्ति सेतु है, आत्मा और संसार के बीच का | अनासक्ति नौका है, आत्मा को संसार से समाधि की ओर ले जाने की । जिससे आसक्ति छूटी, उससे सब कुछ छूट गया । जिससे आसक्ति जुड़ी, वह सब कुछ छोड़कर भी कुछ भी न छोड़ पाया । इसलिए अध्यात्म, संसार से संन्यास की यात्रा नहीं, वरन् आसक्ति से निर्लिप्तता की यात्रा है । ___ तुम कमल हो और तुम्हारा परिवार उसकी पंखुरियाँ । संसार तो दलदल है | संसार में ऐसे जिओ जैसे कमल कीचड़ से निर्लिप्त होकर अपनी शोभा बढ़ाता है | कमल का कीचड़ में रहना, मनुष्य का संसार में रहना बुरा नहीं है । बुराई यही है कि कीचड़ कमल पर चढ़ आये, संसार हृदय में बस जाये । तीन शब्द हैं- आवश्यकता, आकांक्षा और आसक्ति । महावीर आवश्यकता के कभी विरोधी नहीं रहे | अगर शरीर की आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान है तो इस आवश्यकता की पूर्ति होनी ही ११०/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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