Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 157
________________ महावीर चिकित्सक की भांति न केवल लोगों को रोगों की जानकारी देते हैं अपितु उनके निवारण के लिए औषधि भी देते हैं । महावीर पहले दुःख की पहचान कराते हैं । यह बताते हैं कि तुम दुःखी हो, जिन तत्त्वों से दुःखी हो वे सब नश्वर हैं । नश्वर है तुम्हारी आयु, चचंल है तुम्हारा यौवन और चपल है भोग-विलास । इन सब में सुख ढूंढ रहे हो | ये सब तो दुःख - रूप हैं, इनमें वैसा ही कल्पित आनंद मिलता है जैसा हड्डी चूसने से, कुत्ते को । महावीर कहते हैं, 'मैं दुःख छुड़ाना चाहता हूँ और सुख दिलाना चाहता हूँ, पर तब तक सुख कैसे पा सकोगे जब तक दुःख से अपने पांव को बाहर नहीं निकालोगे। तब तक कैसे स्वच्छ हो सकोगे, जब तक कीचड़ से स्वयं को उपरत नहीं कर लोगे । महावीर बंधन की चर्चा कर रहे हैं । लहुलुहान दुनिया को देख रहे हैं, जहाँ सिवा गिला और शिकवा के कुछ नहीं है । जिसे हम जीवन की असलियत समझ बैठे हैं, उससे कभी प्रेम और शांति के स्रोत नहीं बहेगें। यह तो रेगिस्तान में हरियाली ढूंढने का काम होगा । मुक्ति, मात्र देह मुक्ति ही नहीं है, मुक्ति अन्तर के बन्धनों को तोड़ने का नाम है । बाहर के बन्धनों से छुटकारा हर किसी के लिए सहज है, लेकिन भीतर के बंधनों से छूटना, इसका नाम मुक्ति है, मोक्ष है, निर्वाण है। निर्वाण, ज्योति की उस स्थिति का नाम है, जहाँ ज्योति तो रहती है, पर निधूर्म । मुक्ति संकोचन नहीं है, मुक्ति विस्तार है, शलाकाओं से मुक्ति है । बंधन बंधा इंसान किसी एक में प्यार ढूंढेगा और मुक्तपुरुष सृष्टि के हर अंश में, हर कोण में - दिल को लहूलुहान करें, शायद प्यार यही है | जीना क्या बस मरते रहें, शायद प्यार यही है | सब कुछ पाने के चक्कर में जाने कहाँ कहाँ जाएं, खाली हाथ ही लौट चलें, शायद प्यार यही है | नखलिस्तानों की हरियाली, जाने कब और कहाँ मिले । सहराओं में सफर करें, शायद प्यार यही है । बादल बनकर रहें उमड़ते, बस्ती-बस्ती नगर-नगर प्यासी रेत में सफर करें, शायद प्यार यही है | १४८/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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