Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 158
________________ हिरनों जैसे मन-मन भटकें, लौटें फिर बेबस अपनी ही कस्तूरी खोजें, शायद प्यार यही है । बंधन को तोड़कर विराट होना, यही तो जिंदगी की विराटता है । जो बंधन में है, वह परतंत्र है और जो बन्धन मुक्त है, उसी को स्वतंत्र कहा जा सकता है । देश को स्वतंत्र कराना फौलादी लोगों का काम है, पर अपने आपको स्वतंत्र करना, उससे भी अधिक हिम्मत का काम है। अंग्रेजों से मुक्त होने वाले हम, क्या क्रोध, मान, माया और वासना से मुक्त हो पाये हैं ? दुनिया को जीतने की बजाय अपने आपको जीतना ज्यादा दुष्कर, पर श्रेयस्कर है । विश्व-विजेता सिकन्दर क्या अंत में अपने-आपसे नहीं हारा था ? सिवा एक कण गम के अलावा वह साथ क्या ले जा पाया ? इसलिए विज्ञान-भिक्षु कहते हैं न मोक्षो नभसः पृष्ठे न पाताले भूतल | सर्वाशासंक्षये चेतः क्षयो मोक्ष इति श्रुतः ।। मोक्ष न तो गगनतल में है, न पाताल में है और न पृथ्वी पर है । सब आशाओं का क्षय होने पर, चित्त का क्षय, मोक्ष कहा गया है । विज्ञान-भिक्षु बड़ी रहस्य भरी बात कह रहे हैं । अब तक यही सुना है कि मोक्ष गगनतल में है, स्वर्ग गगन के नीचे है और उससे नीचे संसार है और नरक उससे भी नीचे है | हकीकत में तो जब हम कुण्ठा ग्रस्त होते हैं, तब नरक में जीते हैं । जब परिवार के बीच होते हैं तब संसार में जीते हैं, इसलिए जीवन-मुक्ति शब्द का प्रयोग मिलता है | बनादास कहते थे - 'जीवित मुक्ति नहीं पावे मुए मुक्ति भ्रम कहिये ।' जो व्यक्ति जीवित अवस्था में मुक्ति नहीं पा सकता है, मरकर वह कैसे पायेगा । हकीकत में मुक्ति जीवित अवस्था में ही मिलती है, मरकर तो निर्वाण मिलता है । कर्म मुक्ति जी कर पायी जाती है, मरकर नहीं । ___ महावीर कहते हैं, 'जो बंधन और मोक्ष के सिद्धान्तों के बारे में कहते तो बहुत कुछ हैं पर करते कुछ भी नहीं ।' इसे तुलसी के शब्दों में ऐसे समझें- 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते, नर न घनेरे' उपदेश हर कोई दे सकता है, हर विषय पर दे सकता है, लेकिन जीवन में उन सिद्धान्तों को अपनाना, हर किसी के बलबूते की बात नहीं है । महावीर ऐसे लोगों के लिये ज्ञानवादी शब्द का प्रयोग करते हैं । वे केवल ज्ञान में जीते हैं, ज्ञान का भार ढोते हैं और जिन्दगी की दीप बनें देहरी के/१४९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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