Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 138
________________ के घर में कारें हैं । हम ऐश्वर्य इसलिये पाना चाहते हैं, क्योंकि पड़ोसी का ऐश्वर्य हमें खटक रहा है । गहने खरीदेंगे-भले ही बच्चों को भूखा रखना पड़े । कार खरीदना चाहेंगे-भले ही बच्चों को पढ़ा न पाएं । ___ धार्मिक कृत्यों में भी इसी आडम्बर ने प्रवेश किया है । 'अमुक' महाराज का नगर में प्रवेश हुआ तो उनकी शोभा यात्रा में पाँच हाथी थे, तो 'ये' महाराज इसलिये कार्यकर्ताओं का उलाहना दे रहे हैं, क्योंकि उनके नगर-प्रवेश के दौरान मात्र दो ही हाथी थे । यह प्रतिस्पर्धा है और यही प्रतिस्पर्धा समाज में ईर्ष्या, वैमनस्य और मूल्य-हीनता की गंदगी फैलाती है। ___ 'अमुक' महिला ने सोलह व्रत किये | उसके पीहर वालों ने इसके उपलक्ष्य में चार सोने की चूड़ियां दी | पड़ोस की महिला ने भी सोलह उपवास किये थे, लेकिन उसकी ननद इसलिये उस पर ताना कस रही थी, क्योंकि उसके पीहर से एक अंगुठी तक नहीं आई थी | सास कहने लगी, बहु तुम्हारे पीहर वालों ने तो हमारी नाक कटा दी । देखो ! पड़ोसी की बहु ने सोलह उपवास किये, पीहर से चार सोने की चूड़िया आई हैं, पर तुम्हारे......? ____ यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि हम लोगों ने धार्मिक अनुष्ठानों में भी इतना जबर्दस्त आडम्बर प्रारम्भ कर दिया है कि निर्धन व्यक्ति उस धर्म से जुड़ा रहने पर हीन भावना का शिकार होता है | यह अतिशयोक्ति नहीं वरन् वास्तविकता है कि बहुत सी निर्धन महिलाएँ इसलिए लम्बी तपश्चर्या नहीं कर पाती हैं, क्योंकि आर्थिक दृष्टि से उनका परिवार इतना सम्पन्न नहीं है कि उसके लिए शोभा यात्रा निकाली जा सके , स्वामी-वात्सल्य किया जा सके और महापूजन करवाया जा सके। अगर यह सुबह कुछ नहीं किया जाता है तो नाक कटने का भय कल की बात है एक महिला मुझसे कह रही थी, मैं मासक्षमण (तीस उपवास) करना चाहती हूँ पर.....। मैंने पूछा दिक्कत क्या है ? कहने लगी, 'मेरे पति रेलवे में क्लर्क हैं, वे स्वामी वात्सल्य (जीमणवारी) नहीं करा पाएंगे, परिवार वालों को 'प्रभावना' नहीं दे पाएंगे-ऐसी स्थिति में मैं लम्बी तपस्या कैसे कर सकती हूँ ?' ____ मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि तपस्या हम इच्छाओं के नियमन के लिए करते हैं या अपने वैभव प्रदर्शन के लिए | अगर समाज में ऐसा सत्य वाणी का, अंतर का/१२९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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