Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 154
________________ पहला शब्द है बन्धन, व्यक्ति बंधा है। महावीर इस सत्य की पहचान कराना चाहते हैं कि तुम बंधे हो । देखो इधर-उधर आखिर किस से बंधे हो । किसी ने तुम्हें नहीं बांधा है, तुम अपने आप बंधे हो | यह नागपाश के बंधन से भी मजबूत बंधन है, जिसे महावीर ने मोहपाश कहा है | नागपाश के बन्धन को तोड़ना मुश्किल नहीं है, लौह-श्रृंखलाओं को भी एक झटके में तोड़ा जा सकता है, लेकिन उन सूत के धागों को तोड़ना दुष्कर है, जिन्होंने मोहपाश का रूप धारण कर लिया है । सम्पूर्ण संसार का त्याग करने वाला आर्द्रकुमार' मोह के कच्चे धागों के सामने पस्त हो जाता है । यह बंधन और कुछ नहीं, मात्र आसक्ति है, गहरा सम्मोहन है । यहाँ व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानने के लिये भी तैयार हो जाता है | बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापा, इस यात्रा में व्यक्ति स्वयं को ऐसे, मकड़ी के जाल में फंसा देता है, जिस का निर्माण वह स्वयं करता है और निकलना उसके वश में नहीं होता है | यही संसार की आसक्ति है, बंधन है, सम्मोहन है, लालसा और तृष्णा है । इनसे मुक्ति का नाम ही मोक्ष है | ___ एक युवक किसी फकीर के पास रोज-ब-रोज जाया करता था । एक दिन उसने फकीर से निवेदन किया, फकीर साहब ! मैं भी फकीर होना चाहता हूँ | लेकिन मेरे लिये संभव नहीं है। मेरी माँ कहती है कि तुम फकीर हुए तो मैं आत्महत्या कर लँगी । पिता कहता है, फाँसी के फन्दे पर लटक जाऊँगा | पत्नी कहती है कि रेल की पटरी पर सो कर खुदकशी कर लूँगी । कहें, घर कैसे छोडूं ? ___ फकीर ने युवक को कुछ समझाया और रवाना कर दिया । युवक घर पहुंचा, बीच आँगन में जाकर निश्चेष्ट हो गया । परिवार के सदस्य डॉक्टर लेकर आये । लेकिन उन्होंने भी हाथ छिटक दिये । युवक को मृत घोषित कर दिया गया । अगले दिन सुबह शव यात्रा की तैयारियाँ हो रही थीं। चारों ओर गमगीन माहौल था | घर के एक कोने में बैठी युवक की पत्नी छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थी और वह फकीर पहुँच गया । सभी लोग फकीर के पास आये बोले, 'फकीर साहब ! आपका चेला मर गया | आप जैसे-तैसे इसको वापस जीवित कर दीजिये ।' फकीर युवक के पास गया । कुछ नाड़ियां टटोलने का अभिनय किया, फिर कहा 'इस युवक को जीवित तो किया जा सकता है, दीप बनें देहरी के/ १४५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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