Book Title: Jiva Ajiva
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ पहला बोल २. तिर्यञ्च-गति-एक, दो, तीन, चार इन्द्रिय वाले जीव तथा पांचइन्द्रिय वाले स्थलचर-भूमि पर चलने वाले, खेचर-आकाश में उड़ने वाले तथा जलचर-पानी में रहने वाले सभी जीव तिर्यञ्च कहलाते हैं। यह तिर्यञ्च-गति ३. मनुष्य-गति-मनुष्य की अवस्था को प्राप्त करना मनुष्य-गति है। मनुष्य दो प्रकार के होते हैं-संज्ञी और असंजी। जिन मनुष्यों के मन होता है, वे संजी कहलाते हैं और जिनके मन नहीं होता, वे असंत्री कहलाते हैं। संज्ञी मनुष्य गर्भ से उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी मनुष्य मनुष्य-जाति के मल, मूत्र, श्लेष्य आदि चौदह स्थानों से पैदा होते हैं। वे बहुत सूक्ष्म होते हैं, इसलिए हमें दिखाई नहीं देते। ४. देव-गति-जो जीव देव-योनि में पैदा होते हैं, वे देव-गति हैं। देवता चार तरह के होते हैं-भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिका सभी संसारी जीव अपने किये हुए कर्मों के अनुसार-एक गति में से दूसरी गति में परिवर्तित होते रहते हैं। जैसे एक ही जीव कभी मनुष्य, कभी देवता, कभी तिर्यञ्च और कभी नारक बन जाता है। प्रश्न--जीव एक जन्म से दूसरे जन्म में, एक गति से दूसरी गति में जाने के समय कैसे जाता है? उत्तर-जीव एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने के लिए जो गति करता है, उसका नाम अन्तराल-गति है। वह दो प्रकार की है-ऋजु और वक्र। अन्तराल-गति के समय स्थूल शरीर नहीं होता। वह मृत्यु के समय छूट जाता है। कार्मण और तैजस--ये दो सूक्ष्म शरीर जीव के साथ रहते हैं। उस समय गति का साधन कार्मण शरीर होता है। पूर्व शरीर को छोड़कर दूसरे स्थान में जाने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं--एक वे, स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के शरीरों को सदा के लिए छोड़कर दूसरे स्थान में चले जाते हैं और दूसरे वे, जो पहले के स्थूल-शरीर को छोड़कर नये स्थूल-शरीर को प्राप्त करते हैं। पहले प्रकार के जीव मुक्त होते हैं और दूसरे प्रकार के जीव संसारी कहलाते हैं। मोक्षगति में जानेवाले जीव ऋजुगति से ही जाते है, वक्रगति से नहीं। पुनर्जन्म के लिए स्थानान्तर में जानेवाले जीवों की ऋजु और वक्र-दोनों गतियां होती हैं। ऋजुगति और १. विस्तार के लिए देखें बोल बीसवां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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