Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006 Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal View full book textPage 4
________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 5 प्रकाशकीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म, नैतिकता, इतिहास एवं जीवन-मूल्यों की संवाहक जिनवाणी मासिक पत्रिका का शुभारम्भ जनवरी १९४३ में हुआ था। ६३ वर्षों की यात्रा में जिनवाणी पत्रिका के माध्यम से अब तक १५ विशेषाङ्क प्रकाशित हो चुके हैं-'स्वाध्याय' (१९६४), 'सामायिक' (१९६५), 'तप' (१९६६), 'श्रावक धर्म'(१९७०), 'साधना' (१९७१), 'ध्यान' (१९७२), 'जैन संस्कृति और राजस्थान' (१९७५), 'कर्मसिद्धान्त' (१९८४), 'अपरिग्रह' (१९८६), 'आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. श्रद्धांजलि अंक'(१९९१), 'आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. : व्यक्तित्व एवं कृतित्व'(१९९२), 'अहिंसा'(१९९३), 'सम्यग्दर्शन'(१९९६), 'क्रियोद्धार : एक चेतना'(१९९७), 'जैनागम'(२००२)। ___जिनवाणी का यह १६वाँ विशेषाङ्क प्रतिक्रमण विषय पर प्रकाशित करते हुए हमें प्रमोद का अनुभव हो रहा है। इस विशेषाङ्क के प्रकाशन का निर्णय गत वर्ष चेन्नई में आयोजित सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल की कार्यकारिणी बैठक में लिया गया था। __ प्रतिक्रमण की पुस्तकें तो अर्थ-सहित पृथक् से प्रकाशित होती रहती हैं। कभी ये पुस्तकें प्रश्नोत्तरों के साथ भी प्रकाशित होती हैं, किन्तु प्रतिक्रमण एक महत्त्वपूर्ण विषय है जिस पर जितना चिन्तन किया जाय उतना ही आत्मशुद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। विशेषाङ्क में अनेक विशिष्ट विचारपूर्ण लेख हैं जो प्रतिक्रमण विषयक भ्रान्तियों को दूर करने के साथ प्रतिक्रमण के सही स्वरूप का बोध कराने में सहायक हैं। साथ ही प्रतिक्रमण के प्रति रुचि एवं आस्था उत्पन्न कर उसे दृढ़ीभूत करने में भी निमित्त बन सकते हैं। विशेषाङ्क में जिन आचार्यों, संतों, साध्वियों एवं विद्वान-लेखकों के अमूल्य विचारों से सम्पृक्त लेख हमें प्राप्त हुए हैं, उनका हम हृदय से आभार ज्ञापित करते हैं। प्रतिक्रमण के स्वरूप, उद्देश्य, परिपाटी एवं लक्ष्य के संबंध में यह विशेषाङ्क अवश्य प्रकाश डालेगा एवं पाठकों का मार्गदर्शन कर सकेगा। विशेषाङ्क में प्रश्नोत्तर-खण्ड अलग से दिया गया है जो प्रतिक्रमण की तात्त्विक जानकारी के लिये उपयोगी है। इस विशेषाङ्क के प्रकाशन में जिन श्रद्धालु महानुभावों से हमें विज्ञापन प्राप्त हुए हैं, उनकी इस धर्मभावना का आदर करते हैं तथा हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। प्रेमचन्द जैन सुशीला बोहरा निवर्तमान अध्यक्ष पी.एस. सुराणा अध्यक्ष मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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