Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 6
________________ 130 133 138 141 148 152 167 174 178 189 ||15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी तपागच्छीय प्रतिक्रमण में प्रमुख तीन सूत्र-स्तवन : श्री छगनलाल जैन दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में प्रतिक्रमण विवेचन : डॉ. अशोक कुमार जैन श्रावक-प्रतिक्रमण में श्रमणसूत्रों के ___ पाँच पाठों की प्रासंगिकता नहीं : श्री धर्मचन्द जैन आवश्यक सूत्र के पाठों के क्रम का औचित्य : श्री पारसमल चण्डालिया - श्रावकव्रत और प्रतिक्रमण पाँच अणुव्रतों के अतिचारों की प्रासंगिकता : श्री प्रकाशचन्द जैन तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों का महत्त्व : डॉ. मंजुला बम्ब कृत-कारित और अनुमोदन में से __ अधिक पाप किसमें? : आचार्य श्री नानेश आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र में व्रत-निरूपण : श्रीमती हेमलता जैन श्रावक और कर्मादान : डॉ. जीवराज जैन प्रतिक्रमण की उत्कृष्ट उपलब्धि : संलेखना : श्रीमती सुशीला बोहरा विविध आवश्यक उत्कीर्तन सूत्र : एक विवेचन : श्री प्रेमचन्द जैन 'वन्दना' आवश्यक : उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म.सा. पंच-परमेष्ठी के प्रति भाव-वन्दना का महत्त्व । : श्री जशकरण डागा कायोत्सर्ग : एक विवेचन : श्री विमल कुमार चोरडिया कायोत्सर्ग : काया से असंगता : श्री कन्हैयालाल लोढ़ा कायोत्सर्ग : प्रतिक्रमण का मूल प्राण : श्री रणजीतसिंह कूमट मूलाचार में प्रतिक्रमण एवं कायोत्सर्ग : डॉ. श्वेता जैन प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान : पारस्परिक संबंध : श्री चांदमल कर्णावट प्रतिक्रमण : व्यापक दृष्टिकोण कषाय-प्रतिक्रमण : भावशुद्धि का सूचक : मधुरव्याख्यानी श्री गौतममुनि जी म.सा. कषाय और प्रतिक्रमण : साध्वी डॉ. अमितप्रभा जी मिथ्यात्वादि का प्रतिक्रमण : कतिपय प्रेरक प्रसंग : श्रीमती हुकमकुँवरी कर्णावट प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त का मनावैज्ञानिक पक्ष : आचार्य श्री कनकनंदी जी 193 198 206 210 215 219 223 227 232 239 245 249 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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