Book Title: Jinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 16
________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी शब्द है About Turn (अबाउट टर्न) अर्थात् “जिस स्वभाव से बाहर निकल गये थे, वापस लौटकर वहीं आ जाइये”, “जहाँ से चले थे, लौट आइये' यही प्रतिक्रमण है। बाहरी संसार असीम है, अनंत है। जब हमें किसी लक्ष्य का ज्ञान हो जाता है तो हम उस ओर क्रमण अर्थात् पहुँचने का प्रयास करते हैं। लक्ष्य लेकर चलते हुए भी शक्ति, सामर्थ्य, पुरुषार्थ पूरा नहीं करने के कारण भटक जाते हैं और कभी मार्ग की दुरूहता, आने वाले कष्ट और परीषह से कृत्य के साथ अकरणीय भी कर लेते हैं और ये अकरणीय अतिक्रमण हमें अशान्ति, अस्थिरता देते हैं। अशान्त मन पाप में प्रवृत्ति करता है, वहाँ से वापस लौटना प्रतिक्रमण है। हम अनेक भवों के यात्री हैं, कई जन्मों से यात्रा करते आ रहे हैं, कितने ही सावधान होकर चलने पर भी कहीं वासना-विकार की, तो कहीं क्रोध-लोभ की, तो कहीं मोहमाया की, भूल की धूल लग ही जाती है और हमारी चारित्र एवं नियम रूपी चदरिया मैली हो जाती है। भले ही हम कितने ही संभल कर चलें, संसार की कहावत है काजल की कोटड़ी में लाख हँसयानो जाय। काजल की एक रेख, लागे पुनि लागे है।। इसी भूल की धूल का आत्मनिरीक्षण कर, विभाव से स्वभाव में आने को प्रतिक्रमण कहते हैं। ये भूल से लगे साता-सुख के शल्य रूप काँटे, हमें साधना पथ पर तेज दौड़ने नहीं देते। कहावत है डाढाँ खटके कांकरो, फूस जो खटके नैन। कह्यो खटके आकरो, बिछड्यो खटके सेन ।। __ जैसे दाँत के बीच में कंकर आ जाने पर, आँख में फूस या तिनका पड़ जाने पर, कठोर वचन कहने पर, वियोग में निशानी साथ रहने पर खटकती है, इसी तरह आत्मा में पाप का शल्य चुभता रहता है। भूल की धूल आत्मा को मलिन बनाती है। एक कहावत है- भूल होना छद्मस्थ मानव की प्रकृति है, भूल को स्वीकार नहीं करना जीवन की विकृति है, भूल को मान लेना संस्कृति है और उसे सुधारना प्रगति है। किसी ने कहा कभी नहीं फिसलने वाला भगवान है, फिसलन को समझने वाला मतिवान है। फिसलकर संभलने वाला इंसान है, फिसलने को अच्छा मानने वाला शैतान है।। संक्षेप में भूल या गलती कुछ भी कहा जाय, जीवन की एक विकृति है। छद्मस्थ अवस्था में जानेअनजाने, चाहे-अनचाहे यह हो जाती है। बाहरी भूलों के तीन रूप आपके सामने रखे जा रहे हैं। विभाग करने पर वे जल्दी समझ में आते हैं और उन्हें पकड़कर सुधार भी किया जा सकता है। तीन रूप हैं- अज्ञानजन्य, आवेशजन्य और योजनाबद्ध । (१) अज्ञानजन्य भूल- समझ कम है, बुद्धि विकसित नहीं है, उम्र से नादान है और इस नादानी में वह हँसी करने लायक भूल कर बैठता है। उसके मन में अपमानित करना, बदला लेना अथवा स्वार्थ-साधना जैसी कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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