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उपासकदशा
९००
| द्वादशांगी की रचना. उसका हास एवं आगम-लेखन
29 समवायांग १४४०००
१६६७ व्याख्याप्रज्ञप्ति २८८००० (नंदीसूत्र) १५७५२
८४००० (समवायांग)१६ ज्ञातृधर्मकथा
समवायांग और नन्दी ५५०० इस अंग के अनेक के अनुसार संख्येय कथानक वर्तमान में उपलब्ध हजार पट और इन दोनों नहीं हैं। अंगों की वृत्ति के अनुसार ५७६००० संख्यात हजार पद सम. ८१२ एवं नंदी के अनुसार पर दोनों सूत्रों की वृत्ति के
अनुसार ११५२००० अंतकृद्दशा
संख्यात हजार पद, सम. नंदी वृत्ति के
अनुसार २३०४००० अनुत्तरौपपातिकदशा संख्यात हजार पद, १९२
सम. नंदी वृ.के
अनुसार ४६०८००० प्रश्नव्याकरण
संख्यात हजार पद, १३०० सम. एवं नंदी वृ. के समवायांग और नंदी सूत्र में अनुसार ९२१६००० प्रश्नव्याकरण सूत्र का जो
परिचय दिया गया है, वह उपलब्ध प्रश्नव्याकरण में
विद्यमान नहीं है। विपाक सूत्र
संख्यात हजार पद, १२१६ सम. और नंदी वृ. के
अनुसार १८४३२००० दृष्टिवाद संख्यात हजार पद पूर्वो सहित बारहवां अंग
वीर निर्वाण सं.१०००
में विच्छिन्न हो गया। वस्तुस्थिति यह है कि द्वादशांगी का बहुत बड़ा अंश कालप्रभाव से विलुप्त हो चुका है अथवा विच्छिन्न-विकीर्ण हो चुका है। इस क्रमिक हास के उपरान्त भी द्वादशांगी का जितना भाग आज उपलब्ध है वह अनमोल निधि है और साधना पथ में निरत मुमुक्षुओं के लिए बराबर मार्गदर्शन करता आ रहा
श्वेताम्बर परम्परा की मान्यता है कि दुःषमा नामक प्रवर्तमान पंचम आरक के अन्तिम दिन पूर्वाह्न काल तक भगवान् महावीर का धर्मशासन और
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