Book Title: Jinmurti Pooja Sarddhashatakam
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 158
________________ संस्कृतभावार्थः-तच्च शान्तिस्नात्रं पवित्रजलैः सद्दव्यैः सुदीपैः बहुमूल्यद्रव्यैः रजतकलशैः, अखण्डाक्षतैः परमश्रद्धया अदम्योत्साहैरुत्कृष्टनिष्ठाभिः सञ्जातम् । शान्त्या निर्विघ्नरीत्या प्रीत्या च सम्पद्यमानं कार्यमखिलसुखायाभीष्ट लाभाय च कल्पते । संसारे जन्म-मरणशोक-संताप-लवित्रं दात्रमिव भगवतः श्रीशान्तिनाथस्य स्नात्रं दिदीपे। * हिन्दी अनुवाद-वह शान्तिस्नात्र पवित्रजल, सद्रव्य, बहुमूल्य द्रव्य, रजतकलश, अखण्ड अक्षत इत्यादि अदम्य उत्साह एवं उत्कृष्ट निष्ठा एवं परम श्रद्धा से सम्पन्न हुआ। निर्विघ्न शान्त रीति एवं प्रीति से सम्पन्न होने वाला कार्य निश्चित रूप से मनोरथकारी एवं उत्कृष्ट लाभकारी सिद्ध होता है। जन्म-मरण-भय के उच्छेद के लिए दात्र (दराती) के समान वह पवित्र स्नात्र सम्पादित हुआ। उसके सर्वत्र अच्छे परिणाम उजागर हुए । १०७ ।। [ १०८ ] - मूलश्लोकःतदीयं यन्नीरं मृदितभयभीरं मदहरं , गृहीतं तत्सर्वं निहितमपि सौवर्णकलशे । सुधा निःस्यन्देनाप्यधिकसुखदेनास्य पयसा , तया पत्युर्गात्रं वरिणतगलितं रोगकलितम् ॥ १०८ ॥ -०-१३५ ---

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