Book Title: Jinmurti Pooja Sarddhashatakam
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 185
________________ मन्दबुद्धितया जीवः अस्य सांसारिकसुखस्य कटुतरं परिणाम अजानन् तव सेवा-पूजाविरहितः जन्म-मरणावर्ते सदैव भ्रमतितराम् ।। १३२ ॥ * हिन्दी अनुवाद-हे वीतराग विभो ! यह सम्यक् प्रकार से सुस्पष्ट है कि यह संसार आत्मीय प्रियजनों के मधुर पालाप-संवाद एवं व्यवहार से बाह्यदृष्टि से अतीव सुखद प्रतीत होता है। इस सांसारिक सुख के कटुमय परिणाम (फल) को विधिवत् न जानते हुए यह जीव आपकी सेवा-पूजा से विमुख होकर जन्म-मरण के आवर्त में सदैव घूमता रहता है ।। १३२ ।। [ १३३ ] । मूलश्लोकःउदारोऽसौ विश्वे विगतपरितापो विजयते , पिता माता भ्राता मुदितमृदुहासा च भगिनी । क्वचित् स्फारा दारा भवभ्रमणकारा युवतयः , न वा त्रातुं शक्तास्तवचरणसेवाविरहितान् ॥ १३३ ॥ संस्कृतभावार्थः-अस्मिन् संसारे दुःख-परितापरहितः पित्ता, माता, भ्राता, मृदुहासा भगिनी, स्फारा दारा, भवभ्रामका युवतयो वा क्वचित् अपि श्रीमच्चरणपूजा

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