Book Title: Jinmurti Pooja Sarddhashatakam
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ तप अपि मया न तप्तम् । एवं सत्यपि जगति वत्सलत्वात् हे अरिहन्तदेव ! मम मनस्तापं पापं शमयतु । * हिन्दी अनुवाद-मन्दबुद्धि के कारण पाप रूपी अग्नि को शमन करने के लिए दान रूपी जल का भी मैंने वितरण नहीं किया है। नरकगति-विनाशक सुन्दर सुचरित का अनुष्ठान भी मैंने नहीं किया है। कुत्सित कर्मों का विनाश करने में सक्षम तप भी मैंने नहीं किया है। इस प्रकार का मेरा जीवन होने पर भी हे जगद्वल्लभ ! हे अरिहन्त परमात्मन् ! आप मेरे मनस्ताप को शान्त करें ।। १३९ ।। [ १४० ] - मूलश्लोकःक्रिया मे नो लीका भवदलनशीलापि च न मे , न भावस्सद्भावो जनिमरणदावोऽपि न कृतः । कलाभ्यासाऽह्लादो नहि परिचितो दोषरहितः , तथाप्येतत् सर्वं मम हृदि गतं पूरयतु वै ॥ १४० ॥ .. संस्कृतभावार्थ:-संसारदावानल - दलन - समर्था, पवित्रा सत्यसमन्विता क्रिया अपि मदीया नास्ति । न च मया जन्म-मृत्युविनाशकः सद्भावोऽपि समाश्रितः ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206