Book Title: Jinmurti Pooja Sarddhashatakam
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 165
________________ एतत् कुतर्कजालं विकल्पं वा परित्यज्य स्वीकुर्वन्तु स्वीकरणीयम् । त्रिलोकमान्यानां श्रीजिनेश्वराणां वाण्येव श्रुतिरागमो वेति । तत्र च श्रद्धा विश्वासो विधेयः । एषा जिनमूत्तिः-जिनप्रतिमा श्रीजिनेश्वरदेवस्य प्रतिनिधिरिति स्वीकृत्य जिनभावैः पूज्यताम् । श्रद्धा-विश्वासमन्तरा संसारेऽस्मिन् कृतेऽपि भवति प्रयासे साफल्यं न लभ्यते । * हिन्दी अनुवाद-किम्पाकफल अत्यन्त ही कष्टदायी होता है । अतः यह कुतर्क जाल एवं विकल्प जाल छोड़कर स्वीकार करने योग्य इस मूत्तिपूजा-पद्धति को स्वीकार करो। त्रिलोकमान्य श्रींजिनेश्वर भगवान की वाणी ही श्रुति या आगम कहलाती है। उस पर पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास करो। यह 'जिनमूत्ति-जिनप्रतिमा' जिनेश्वरदेव की प्रतिनिधि स्वरूप है। इस भाव से इसकी पूजा करो । श्रद्धा व विश्वास के बिना इस संसार में महान् प्रयास करने पर भी सफलता प्राप्त नहीं होती है ।। ११३ ।। [ ११४ ] 0 मूलश्लोकःवनान्ते चोद्भूतं मृदुलकमलं कं न सुखदं , तदीयं सौरभ्यं प्रथयति दिगन्ते शिखिसखः । तथात् सन्मूर्ते ! तव च महिमा विश्वविदितः , वितन्वन्ति प्रायो दिशि-दिशि सदा शुद्धमतयः ॥ ११४ ॥ -०-१४२ --

Loading...

Page Navigation
1 ... 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206