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भी आगम से मेल नहीं खाता।
३०. इस ग्रन्थ में गुरु हंसनाथ की बहुत चर्चा २६. भाग २ पृ. २२० पर भरतेश्वर की काली | है। ऐसा प्रतीत होता है कि रत्नाकर वर्णी के गुरु हंसनाथ मूंछो का वर्णन है, जबकि आगम के अनुसार ६३ शलाका | नाम के जैनेतर कवि होंगे। पुरुषों के दाढ़ी-मूंछ नहीं होते हैं।
३१. भाग २ पृ. २३७ पर लिखा है- 'ज्ञानावरणीय २७. भाग २ पृ. २२० पर भरतेश्वर को महान् | की ४ प्रकृतियों का अंत पहले से हो चुका है, अब कामी और भोगी बताया है। लिखा है-'जिन स्त्रियों पर | बचे हुए धूर्तकर्मों को भी मार गिराऊँगा। तदुपरान्त ध्यान बुढ़ापे का असर हुआ, उनको मंदिर में ले जाकर खड्ग के बल से प्रचला व निद्रा का नाश किया, साथ आर्यिकाओं से व्रत दिलाते थे और उनके पास ही छोड़कर | में अन्तराय व दर्शनावरण की शेष प्रकृतियों को नष्ट नवीन जवान स्त्रियों से विवाह कर लेते थे। ऐसे भोगी | किया। यह प्रकरण बिल्कुल आगमविरुद्ध है।' राजा को रत्नाकर कवि ने भाग १ पृ. १६९ पर शुद्धोपयोगी | ३२. महाराजा भरत के निगोद से निकलकर, मनुष्य कैसे कह दिया, बड़े आश्चर्य की बात है। पर्याय धारणकर, मोक्ष प्राप्त करनेवाले ९२३ पुत्रों की
२८. भाग २ प. २२१ पर लिखा है कि भरतेश्वर | इसमें कोई चर्चा नहीं है। की रोज नई-नई शादियाँ होती रहती थीं। लिखा है 'देश- उपर्युक्त प्रसंगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता देश से प्रतिदिन कन्याएँ आती रहती हैं। रोज भरतेश्वर | है कि इस ग्रन्थ का रचयिता प्रामाणिक नहीं हैं, उसने का विवाह चल रहा है। इस प्रकार वे नित्य दूल्हा ही | | राजा आदि को प्रसन्न करने के लिए अपने मन के बने रहते हैं।'
अनुसार कल्पित कथा गढ़कर लोक में सम्मान प्राप्त कने २९. भाग २ पृ. २२० पर लिखा है कि भरतेश्वर | के लिए इसे ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ की अर्ककीर्ति कुमार को बुलाकर बोले-'इधर आओ, इस | रचना १६वीं शताब्दी में हुई। उसके सामने भरतेश्वर राज्य को तुम ले लो, मुझे दीक्षा के लिए भेजो।' अर्ककीर्ति | के चरित्र का निरूपण करनेवाले आचार्य-प्रणीत शास्त्र के आनाकानी करने पर उन्होंने कहा- 'मैं घर में रह | उपलब्ध थे, परन्तु उसने उनका आधार न लेकर, लोक तो सकता हूँ, परन्तु आयुष्यकर्म तो बिल्कुल समीप आ | को रंजायमान करनेवाला यह अप्रामाणिक ग्रन्थ रच डाला। पहुँचा है। आज ही घातिया कर्मों को नाश करूँगा और | उसकी जैनधर्म में कोई आस्था नहीं थी और न उसको कल सूर्योदय होते ही मुक्ति प्राप्त करने का योग है। | सैद्धान्तिक ज्ञान ही था। उसका जीवन कामवासना से भरतेश्वर ने पहले दिन दीक्षा ली, शाम को केवलज्ञान पूरित रहा। भरतेश्वर को क्षायिक सम्यक्त्व था, अत: हुआ और अगले दिन मोक्ष प्राप्त किया। यह प्रकरण | उसको सांसारिक भोगों में आसक्ति का अभाव था, परन्तु बिल्कुल गलत है। आदिपुराण पर्व ४७ के अनुसार रत्नाकर कवि ने अपनी प्रवृत्ति एवं वासना के अनुसार केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान् भरत ने समस्त भरतेश्वर को महान भोगी प्रदर्शित किया है। वास्तविकता देशों में चिरकाल तक विहार किया। (श्लोक ३९७- | यह है कि यह ग्रन्थ कथावस्तु तथा सिद्धान्त की दृष्टि ३९८)।
| से एकदम अप्रामाणिक है।
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16 मार्च 2009 जिनभाषित
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