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3. याथातथ्यानुपूर्वी
मंत्रजाप के तीन अन्य प्रकार और भी हैंणमो सिद्धाणं,णमो अरिहंताणं, णमो उवज्झायाणं। १. कमल जाप्य- हृदय स्थान पर १२ दलवाले णमो आइरियाणं, णमो लोए सव्व साहूणं॥ | कमल की रचनाकर उसके आधार से जाप करना। अथवा
२. हस्तांगुली जाप्य- हाथ की अंगुलियों के आधार णमो आइरियाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। से जाप करना। णमोअरिहंताणं, णमो सिद्धांण, णमो उवज्झायाणं। ३. मालाजाप्य- माला के आधार से जाप करना।
अथवा इसी विधि से किसी भी पद को आगे- उपर्युक्त तीनों प्रकारों में कमलजाप्य को उत्कृष्ट पीछे लेकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता है। इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि न तो कोई पद दोबारा वर्तमान में जाप देने का प्रचलन तो बहुत से धर्मप्रेमी आये और न कोई पद छूटे। लड्डू की तरह इस मंत्र | भाइयों-बहिनों में है, परन्तु सबका एक ही प्रश्न रहता का कैसा भी जाप सुख प्रदान करनेवाला है। है कि मन तो लगता नहीं, फिर जाप देने से क्या लाभ • जाप भी तीन प्रकार से किया जाता है- है? उन सबसे मेरा नम्र निवेदन है कि यदि उचित स्थान
१. जब जाप करते समय न तो उंगली-अंगूठा | पर, उचित काल में जाप दी जायेगी, तो अवश्य मन आदि का प्रयोग किया जाय और न जिह्वाचालन या उच्चारण | लगेगा। साथ ही मन लगाने के लिये, ऊपर कही गयी हो। मात्र मन में जाप हो। यह सर्वश्रेष्ठ फलदायी है। पूर्वानुपूर्वी आदि रूप से जाप देंगे, तो अवश्य ही मन
२. जब मंत्र का उच्चारण तो न हो, पर अंगुली | लगेगा। आशा है पाठकगण, शुद्ध मंत्र का, मन लगाते या ओंठ, जिह्वा आदि क्रियाशील हों। यह मध्यम फलदायी हुये जाप देकर मंत्र का उत्कृष्ट फल प्राप्त करेंगे।
यही इस लेख का आशय है। ३. जब उच्चारणसहित मंत्रजाप किया जाय। यह
श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर जघन्य फलदायी है।
(जयपुर, राज.) म.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा डॉ० सागरमल जी जैन सम्मानित दिनांक १९ फरवरी २००९ गुरुवार को भारतीय साहित्य, कला एवं संस्कृति को समर्पित शाजापुर नगर की 'पहचान' संस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त जैन विद्वान् डॉ. सागरमल जी जैन के 'अमृत महोत्सव' समारोह का आयोजन किया गया। समारोह प.पू. पुष्पा जी म.सा., प.पू. ज्योत्सना जी म.सा. प.पू. प्रतिभा जी म.सा. आदि ठाणा-७ की निश्रा एवं म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान के मुख्य आतिथ्य तथा श्री पारस जी जैन खाद्य आपर्ति मंत्री. म.प्र. शासन की अध्यक्षता में स्थानीय प्रहलाद जीन परिसर में उपस्थित विशाल जनसमदाय के बीच सम्पन्न हुआ।
मुख्यमंत्री व डॉ० सागरमलजी के बीच गुरु-शिष्य का नाता है। इसी बात से प्रेरित होकर 'गुरुगोविंद दोनों खड़े, काके लागू पाँय, बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय' के दोहे से अपनी बात आरंभ करते हुए मुख्यमंत्री श्री चौहान ने अपने मार्गदर्शक प्रेरणास्रोत डॉ० सागरमल जी जैन के इस अमृतमहोत्सव समारोह में अपने गुरु का गुणानुवाद करते हुए जब गुरु-शिष्य के मधुर संबंधी व इस रिश्ते की पवित्रता पर मुखरित होकर बोले, तो उपस्थित जन समुदाय स्वतः ही तालियाँ बजाकर इस प्रसंग पर अपनी आत्मीय उपस्थिति का प्रमाण देता दिखाई दिया। उन्होंने कहा-संसार में माता-पिता के बाद वंदनीय स्थान गुरु का होता है। मुझे गर्व है कि इस गहराई को मैं स्वयं के जीवन में भी महसूस करता हूँ। मैं अपने वंदनीय गुरु डॉ० जैन सा० को विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे द्वारा भी इस जीवन संग्राम में किए जा रहे प्रत्येक कार्य से आप सदैव गौरवान्वित होते रहेंगे।
इस अवसर पर उपस्थित साध्वी-मण्डल ने डॉ० सागरमल जी जैन को 'ज्ञान महोदधि' की उपाधि से अलंकृत किया।
22 मार्च 2009 जिनभाषित
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