Book Title: Jinabhashita 2009 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 36
________________ UPHIN/2006/16750 मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ अगर ना सही माना कि हममें भगवान् बनने की योग्यता है पर इस बात पर हम इतना अकड़ते क्यों हैं? (वह तो किसी चींटी में भी है) सवाल सिर्फ योग्यता का नहीं हू-ब-हू होने का है स्वयं को भगवान् मानने/मनवाने का नहीं स्वयं भगवान् बन जाने का है हम अपने को जरा ऊँचा उठायें इस बार ना सही भगवान्, एक बेहतर इन्सान बन जाएँ। उसने सोचा जब वह पहली बार नीड़ से बाहर पैर रखेगा तब कोई आकर उसे थाम लेगा आँचल से लगा कर दुलार लेगा पंख सहला कर उसे उड़ने का साहस देगा दो-चार कदम उसके साथ चलेगा पर हुआ यह कि उसने न पैर बाहर रखा न पंख खोले न उड़ा सोचता ही रहा अगर ऐसा न हुआ तो क्या होगा? 'पगडंडी सूरज तक' से साभार स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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