Book Title: Jinabhashita 2009 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ समाधान- अलग से उनके ग्रहण करने का कोई काम सखबोधतत्त्वार्थवृत्ति-'च' शब्दादद्रव्यान्तरसाधारणाः नहीं, क्योंकि उनका ग्रहण किया है। शंका- कैसे? | सत्वद्रव्यत्वासंख्येयप्रदेशत्वामूर्तत्वादयाऽप्राधान्येनोक्ता गृह्यन्ते। समाधान- क्योंकि सूत्र में आये हुए 'च' शब्द से उनका अर्थ- सूत्र में आये 'च' शब्द से अन्य द्रव्यों समुच्चय हो जाता है। शंका- यदि ऐसा है, तो तीन | में पाये जानेवाले साधारणरूप सत्व, द्रव्यत्व, अंसख्येयसंख्या विरोध को प्राप्त होती है, क्योंकि इस प्रकार तीन | प्रदेशत्व, अमूर्तत्व आदि भाव अप्रधानता से ग्रहण किये से अधिक पारिणामिकभाव हो जाते हैं। समाधान- तब भी तीन संख्या विरोध को प्राप्त नहीं होती, क्योंकि जीव तत्त्वार्थवृत्ति- चकारादस्तित्वं वस्तुत्वं द्रव्यत्वं के असाधारण भाव तीन ही हैं। अस्तित्व आदि तो जीव प्रमेयत्वमगुरुलघुत्वं नित्यप्रदेशत्वममूर्तत्वं चेतनमचेतनत्वं और अजीव दोनों के साधारण हैं। इसलिए उनका 'च' । च। एतेऽपि दशभावाः पारिणामिका अन्यद्रव्यसाधारणा शब्द के द्वारा अलग से ग्रहण किया है। वेदितव्याः । राजवार्तिक- 'च' शब्दः किमर्थ:? अस्तित्वान्यत्व- अर्थ- सूत्र में आये 'च' शब्द से अस्तित्त्व, वस्तुत्व, कर्तत्वभोक्तृत्व-पर्यायवत्वाऽसर्वगतत्वाऽनादि सन्ततिबन्धन- | द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशवत्व, मूर्तत्व अमूर्ततत्व, बद्धत्वप्रदेशवत्वारूपत्वनित्यत्वादिसमुच्चयार्थश्च शब्दः। चेतनत्व और अचेतनत्व भावों का ग्रहण किया गया है। अस्तित्वादयोऽपि पारिणामिका भावाः सन्ति। (७/१२)। अर्थात् ये दस भी पारिणामिक भाव हैं। ये भाव अन्य अर्थ- शंका- सूत्र में 'च' शब्द किसलिए है? द्रव्यों में भी पाये जाते हैं (इसलिये जीव के असाधारण समाधान- अस्तित्व, अन्यत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, पर्यायवत्व, | भाव न होने से सूत्र में इन भावों को नहीं कहा है।) असर्वगतत्व, अनादिसन्ततिबन्धनबद्धत्व, प्रदेशवत्व, अरूपत्व, भावार्थ- सूत्र में आये 'च' शब्द से अस्तित्व, नित्यत्व आदि के समुच्चय के लिए सूत्र में 'च' शब्द | वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रदेशवत्व आदि सभी द्रव्यों में पाये का ग्रहण किया गया है। क्योंकि अस्तित्त्व आदि भाव | जानेवाले साधारण भावों का ग्रहण किया गया है। ये भी परिणामिक हैं। | भी पारिणामिक भाव हैं। श्लोकवार्तिक-'च' शब्दसमुच्चितास्तु साधारणाः | संसारिणो मुक्ताश्च॥ १०॥ असाधारणाश्चास्तित्वान्यत्वान्यत्वकर्तृत्व-हरत्व-पर्यायव- सर्वार्थसिद्धि एवं सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति में 'च' शब्द त्वासवर्गगतत्वानादिसंततिबंधनबद्धत्वप्रदेशवत्वारूपत्व- | की व्याख्या नहीं है। नित्यत्वादयः। तादिग्रहणमत्र न्याय्यमिति चेन्न, त्रिविध- | | राजवार्तिक-समुच्चयाभिव्यक्त्यर्थं 'च' शब्दोऽनर्थक पारिणामिकभावप्रतिज्ञाहानिप्रसंगात् । समुच्चयार्थेपि'च' शब्दे | इति चेत्, न, उपयोगस्य गुणभावप्रदर्शनत्वात्॥४॥स्यान्मतम्सति तुल्यो दोष इति चेन्न, प्रधानापेक्षत्वात्त्रित्वप्रतिज्ञायाः| 'च' शब्दोऽनर्थकः। कुतः? अर्थभेदात् समुच्चयसिद्धेः। समुच्चीयमानास्तु 'च' शब्देनाप्रधानभूता एवास्तित्वादय इति | भिन्ना हि संसारिणो मुक्ताश्च ततो विशेषणविशेष्यत्वानुपपत्तेः न दोषः। समुच्चयः सिद्धः यथा “पृथिव्यापस्तेजोवायुः" इति, तन्न अर्थ- 'च' शब्द में साधारण और असाधारण भाव | किं कारणं? उपयोगस्य गुणभावप्रदर्शनार्थत्वात्। नायं 'च' समुच्चित हैं। जैसे- अस्तित्त्व, अन्यत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, शब्दः समुच्यते, क्व तर्हि? अन्वाचये। तत्र ह्येकः प्रधानभूतः पर्यायवत्व, असर्वगतत्त्व, अनादिसंततिबंधनबद्धत्व, इतरो गुणभूतः यथा 'भैक्षं चर देवदत्तं चानय।' इति प्रदेशवत्त्व, अरूपत्व, नित्यत्व आदि। तो फिर यहाँ 'आदि' प्रधानशिष्टं भैक्षचरणं देवदत्तानयनमप्रधानशिष्टम्। तथा शब्द का ग्रहण करना चाहिये? नहीं, ऐसा करने से ली| संसारिणः प्राधान्येनोपयोगिनो मुक्त्वा गुणभावेनेत्येतस्य गई तीन प्रकार के भावों की प्रतिज्ञा नष्ट होगी। शंका- | प्रदर्शनार्थः। कथं संसारिषु मुख्य उपयोगः कथं वा मुक्तेषु 'च' शब्द को समुच्चयार्थक ग्रहण करने पर भी वही | दोष होगा? समाधान- नहीं, तीन की प्रतिज्ञा तो प्रधानता परिणामान्तरसंक्रमाभावाद् ध्यानवद्॥ ५॥ यथा की अपेक्षा से है, किन्तु अप्राप्तप्रतिज्ञावाले समुच्चीयमान एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमिति छद्मस्थे ध्यानशब्दार्थो अस्तित्वादि को अप्रधान की अपेक्षा से 'च' शब्द से मुख्यश्चिन्ताविक्षेपवतः तन्निरोधोपपत्तेः, तदभावात् केवलिग्रहण करने में कोई दोष नहीं है। न्युपचरितः फलदर्शनात्, तथा उपयोगशब्दार्थोऽपि संसारिषु -मार्च 2009 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36