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है। इनका छोटा पुत्र प्रभंकर गोद, में व बड़ा पुत्र शुभंकर | मूर्तियाँ प्रायः कम ही पाई जाती हैं। कर्णाटक में निर्मित दाहिनी ओर खड़ा हुआ है। मूर्ति के ऊपरी भाग में नेमिनाथ | यह मूर्ति चालुक्य कला के समय (नवमी-दसवीं सदी) की लघु मूर्ति ध्यान मुद्रा में है तथा पीठिका पर देवी | की बनी प्रतीत होती है। यहाँ राजस्थान के पूर्वी भाग का वाहन सिंह बैठा दिखाया गया है।
से प्राप्त एक पाषाण सिरदल भी है जो कला का सुन्दर इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश से प्राप्त सुलोचना, उदाहरण है। इसके नीचे वाली ताख में ध्यानी जिनकी धृति, पद्मावती, सरस्वती तथा यक्ष एवं यक्षी की सुन्दर | मूर्ति निर्मित है और उनके दोनों ओर अन्य दो-दो तीर्थंकर प्रस्तर मूर्तियाँ भी विद्यमान हैं। अन्तिम मूर्ति की पीठिका | कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्ण किये मिलते हैं। यह तेरहवींपर अनन्तवीर्य उत्खनित है।
चौदहवीं सदी की मूर्ति है। ब- विक्टोरिया एवं एलर्बट संग्रहालय, लन्दन । | ३. डेनमार्क : राष्ट्रीय संग्रहालय, कोपेनहेगन . इस संग्रहालय में कुषाण एवं गुप्त कालों की भगवान् इस संग्रहालय में मुख्यतः आध्रप्रदेश व कर्णाटक ऋषभ की दो मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं। साथ ही, मध्यप्रदेश | से प्राप्त जैन मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। ये सभी मूर्तियाँ के ग्यारसपुर नामक स्थान से लाई गयी तीर्थंकर पार्श्वनाथ | ११वीं-१२वीं सदी की हो सकती है। इस संग्रह में कई की अद्वितीय मूर्ति भी विद्यमान है जो सातवीं सदी की | चालुक्य युगीन महावीर स्वामी की नग्न प्रतिमाएँ हैं, जिनमें प्रतीत होती है। इसमें तेइसवें तीर्थंकर ध्यान मुद्रा में | उन्हें कायोत्सर्ग-मुद्रा में दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त, विराजमान हैं और मेघकुमार एक बड़े तूफान के रूप | ऋषभनाथ की एक चौबीसी भी है जिसमें मूल प्रतिमा में उनपर आक्रमण करता दिखाया गया है। साथ ही, | के दोनों ओर तथा ऊपरी भाग में अन्य तेईस तीर्थंकरों नागराज धरणेन्द्र अपने विशाल फण फैलाकर उनकी पूर्ण की लघु आकृतियाँ भी उत्कीर्ण की गई मिलती हैं। सुरक्षा करता दर्शाया गया है और उसकी पत्नीएक नागिनी | ये सभी मूर्तियाँ ध्यान मुद्रा में हैं। के रूप में तीर्थंकर के ऊपर अपना छत उठाये हुए | ४. इटली : राष्ट्रीय संग्रहालय, रोम है। मूर्ति के ऊपरी भाग में जिनकी कैवल्य प्राप्ति पर | | इस संग्रहालय में गुजरात में सन् १४५० ई० में दिव्य गायक नगाड़ा बजाता भी दिखाया गया है। प्रस्तुत | बनी भगवान् नेमिनाथ की कार्योत्सर्ग मुद्रा में खड़ी मूर्ति मूर्ति जैन मूर्तिकला की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व की | मुख्य आकर्षण है। इनके दोनों ओर अन्य दो-दो तीर्थंकर
खड़े व बैठे दिखाये गये हैं। मुख्य मूर्ति के पैरों के उपर्युक्त मूर्ति के समीप ही, सोलहवें तीर्थंकर | समीप उनके यक्ष एवं यक्षी गोमेध एवं अम्बिका भी भगवान् शान्तिनाथ की एक विशाल धातु प्रतिमा प्रदर्शित | बैठे दिखाये गये हैं। कलाकी दृष्टि से भी यह मूर्ति है जिसमें वह सिंहासन में ध्यानमुद्रा में बैठे हैं। इसके पर्याप्त रूप से सुन्दर है। दोनों ओर एक-एक चँवरधारी सेवक खड़ा है मूर्तिपर | ५. बुलगेरिया : रग्रेड संग्रहालय, रज्रग्रेड विक्रम संवत् १२२४ (११६८ ई०) के खुदे लेख से | राजस्थान में लगभग ११वीं सदी ई० में निर्मित्त ज्ञात होता है कि राजस्थान में चौहान शासकों के समय | परन्तु उत्तर-पूर्वी बुलगेरिया में सन् १९२८ में पाई गई इसकी प्रतिष्ठापना नायल-गच्छ के अनुयायियों द्वारा की | इस मूर्ति में तीर्थकर को एक कलात्मक सिंहासनपर बैठे
| दिखाया गया है। अन्य प्रतिमाओं की भाँति इसके वक्ष २. फ्रांस : म्यूजिगिमे पेरिस
पर भी कमल की पंखुड़ियों के समान श्रीवत्स चिन्ह इस संग्रहालय में कई जैन प्रतिमाएँ हैं, जिसमें | अंकित है। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर की कांस्य मूर्ति विशेष | ६. स्विटजरलेन्ड : रिटवर्ग संग्रहालय, ज्यूरिक रूप से सुन्दर है। इसमें वह एक सिंहासन पर ध्यान ज्यूरिक के इस सुप्रसिद्ध संग्रहालय में राजस्थान मुद्रा में बैठे हैं। उनकी दाहिनी ओर तेइसवें तीर्थकर | में चन्द्रावती नामक स्थान से प्राप्त भगवान आदिनाथ पार्श्वनाथ सर्प फनों के नीचे कायोत्सर्ग मुदा में खड़े की लगभग आदमकद प्रतिमा विद्यमान है, जो श्वेत हैं और बाईं ओर बाहुबलि, जिनके शरीर पर लतायें | संगमरमर की बनी है। इसमें उनको दो कलात्मक स्तम्भ लिपिटी हुई हैं, खड़े हैं। इस आशय की कांस्य की | के बीच कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। इसके ऊपरी
गई थी।
जनवरी 2008 जिनभाषित ।।
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