Book Title: Jinabhashita 2008 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 28
________________ दहेज के विरोध में विनोदकुमार 'नयन इंजीनियर, डॉक्टर हुए लड़के पढ़-पढ़ आज। लाखों में बिकते यहाँ तनिक न आती लाज। बिकते थे कभी देश में, गाय घोड़े और बैल । लेकिन अब बिकते यहाँ, ऊँचे दाम में छैल॥ 3 जब तक भूखे भेड़िये, हैं समाज में लोग। तब तक कैसे खत्म हो, यह दहेज का रोग॥ 4 बढ़ा प्रदर्शन दिखावा, शादी हुई व्यापार । वध-पक्ष से खर्च सब, लेने को तैयार ॥ 12 महंगाई की मार से, जीना है दुश्वार । ऊपर से ये दहेज का नाग रहा फुफकार ॥ 13 भ्रूण हत्या कन्याओं की करने को मजबूर। जब तक मौजूद है यहाँ, दहेज दानवी क्रूर॥ 14 पेट काटकर रख रहे, रुपये जोड़ सहेज। बेटी सयानी हो रही, देना पड़े दहेज। 15 बेटी ज्यों-ज्यों हो बड़ी, चिन्तित हों माँ बाप। रुपये कहाँ से लायेंगे, करने पीले हाथ ॥ 16 जिसकी जितनी हैसियत, उससे ज्यादा देय। बेटी की खुशी के लिए, बाप कर्ज तक लेय॥ जिन पर होता गर्व था, उन पर आती शर्म। वे लाखों में बिक रहे, जिनके ऊँचे पद, धर्म ॥ बढ़े सो पावे का चलन चलता है यहाँ खूब । डॉक्टर, इंजीनियर बिकें, अफसर बिकते खूब । 6 बेटा यहाँ गरीब का, हो कितना गुणवान। ढूँढ़े से भी न मिले, कोई कद्रदान । 17 वणिक वृत्ति के लोग हैं, करो न झूठी आस। बिन दहेज शादी करें, हमें नहीं विश्वास॥ मिलता था इस देश में, बेटों को सम्मान। मेहनत लगन से पा लिया, बेटियों ने स्थान । 18 मंदिर, दान, दया धमर, ये तब तक पाखंड। सास-बहू में जब तलक प्रीति न होय अखण्ड॥ शादी का बंधन पवित्र, खुशियों का त्यौहार। लेकिन धन-लोलुपियों ने, बना दिया व्योपार ॥ 10 लड़के अधबूढ़े हुए, माँगा खूब दहेज। अब कहते हैं, दहेज से, है हमको परहेज ॥ बेटियाँ पढ़ लिखकर हुईं आत्मनिर्भर होशियार। उनका भी सम्मान हो, मिले सभी का प्यार ॥ 19 बेटियाँ पढ़ लिखकर हुई डॉक्टर, इंजीनियरी पास। लड़के आवारा हुए, खोदेंगे अब घाँस॥ 20 नहिं दहेज इतना बुरा, जो हैसियत से देय। वह तो क्रूर कसाई है, गला पकड़ जो लेय॥ 21, सेंटर प्वाइंट जिंसी चौराहा, भोपाल (म.प्र.) पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय॥ सन्त कबीर जनवरी 2008 जिनभाषित 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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