Book Title: Jinabhashita 2008 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 32
________________ ग्रन्थ-समीक्षा लेखक - प्राचार्य डॉ० श्री नेमिचन्द्र जैन खुरई, । आचार-मीमांसा तथा साहित्यिक काव्यविधा के क्षेत्र में (म.प्र.) किए गये उनके महनीय अवदानों को संक्षेप में उल्लिखित प्रकाशक - सर्वोदय फाउन्डेशन, खतौली (उ.प्र.) | किया है। एवं स्याद्वाद प्रचारिणी सभा, जयपुर | डॉ० श्री नेमिचन्द्र जी के इस शोध ग्रन्थ के पारायण (राजस्थान) से आ० समन्तभद्र के बहुआयामी विराट् व्यक्तित्व, सम्पादक - डॉ० श्री नरेन्द्रकुमार जैन, रीडर | दार्शनिक चिन्तन, दार्शनिक जगत को उनकी अमूल्य देन संस्कृत, गाजियाबाद (उ.प्र.) उनकी तार्किकता, असाधारण पाण्डित्य, अनोखी प्रतिभा प्रकाशन - प्रथम संस्करण सन् 2007, वीर नि० और जैनदर्शन के वैशिष्ट्य का पता चलता है तथा उनकी सं० 2533 | अनोखी भक्ति, काव्यसौष्ठव, वाग्मिता, बहुश्रुतज्ञता तथा मूल्य - रुपये 200/- मात्र पृष्ठ संख्या-307 | काव्यप्रतिभा का भी बोध होता है। प्राप्तिस्थान - (1) 1 यू० बी०, जवाहर नगर, वस्तुतः आ० समन्तभद्र जैन दार्शनिक इतिहास में बैंग्लो, दिल्ली फोन: 23851570, | ऐसे प्रथम आचार्य हैं, जिन्होंने अपनी कृतियों के माध्यम 23850944 से जैनदर्शन को तर्कशैली में प्रमाणशास्त्रीय पद्धति पर (2) कचौड़ी गली वाराणसी, (उ.प्र.) | प्रतिष्ठिापित किया है तथा परवर्ती दार्शनिकों, लेखकों फोन : 0542-2392376 को दर्शनशास्त्र, प्रमाणशास्त्र के आधारभूत सिद्धान्त तथा साहित्यमनीषी कशल प्रशासक शिक्षाविद प्राचार्य माहात्म्य डॉ० श्री नेमिचन्द्र जी जैनदर्शन एवं संस्कत के ख्याति /वैशिष्ट्य को विश्लेषित. विज्ञ प्राप्त विद्वान् एवं सिद्धहस्त लेखक हैं। विद्वत्संगोष्ठियों | परम्परा में वे जैनन्याय-जैनदर्शन के प्रतिष्ठापक, प्रभावक, में उच्चस्तरीय शोधपत्र प्रस्तुत कर इन्होंने विद्वत्समाज आद्यस्तुतिकार सर्वोदयसिद्धान्त के प्रथम प्रस्तोता, श्रावकाचार में अपने पाण्डित्य को प्रतिष्ठित किया है. तथा कार्यक्षेत्र | पर सर्वप्रथम स्वतन्त्र रचनाकार अनोखी प्रतिभासम्पन्न महान में श्रेष्ठ संगठक, कार्यकुशल, आदर्श प्रशासक, कर्मठ आचार्यों में परिगणित किए जाते हैं। परवर्ती आचार्यएवं लगनशील व्यक्तित्व को उजागर किया है। इन्होंने | लेखकों ने उनकी कृतियों पर बड़े-बड़े भाष्यों की रचना अनेक वर्षों तक आ० समन्तभद्र की कृतियों का गहन | की है तथा उन्हें अनेक उपाधियों से विभूषित कर उनके अध्ययन मनन, चिन्तन कर, शताधिक सन्दर्भग्रन्थों तथा | प्रति श्रद्धा-भक्ति प्रदर्शित की है। डॉक्टर सा० का यह पत्र पत्रिकाओं का आलोड़न-विलोड़न करके 'भारतीयदर्शन | शोधग्रन्थ आचार्य श्री के इसी वैशिष्टय एवं उनके अमूल्य के महामेरु आचार्य समन्तभद्र' नामक इस शोधग्रन्थ की | अवदान को अजागर करता है। रचना की है। इसी पर इन्हें मगध विश्वविद्यालय से साथ ही डॉक्टर सा० की लगन, श्रमशीलता और पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त हुई है। जुझारूपन को भी अभिव्यक्ति करता है। कितनी निष्ठा इस शोधग्रन्थ में आ० समन्तभद्र के कालनिर्धारण, | और लगन से इन्होंने इस विपुल सामग्री को सप्रमाण उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का बहुआयामी मूल्यांकन | सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया है- यह उनके शोधकर तथा अभी तक हुए तद्विषयक शोधकार्यों का सूक्षमता | सौष्ठव सुगम सरल बोधगम्य प्रतिपादन शैली तथा से पुनरीक्षण कर उनमें अवशिष्ट रहे अनछुए पहलुओं| श्रमशीलता को दर्शाता है। सद्बोधक यह शोधग्रन्थ सभी पर अपने निष्कर्षों को विशेषरूप से विशलेषित कर को पठनीय है। शोधार्थियों एवं भावी पीढी को प्रेरक प्रतिपादित किया है। आ० समन्तभद्र के बहु-आयामी | तथा मार्गदर्शक भी है। ऐसे उत्तम प्रकाशन के लिए लेखक व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समालोचनात्मक इस ग्रन्थ के | तथा प्रकाश सभी धन्यवाद के पात्र हैं। 5 अध्यायों के 12 परिच्छेदों में सुनियोजित कर प्रस्तुत __ प्राचार्य अभयकुमार जैन, किया है तथा अन्त में आ० समन्तभद्र द्वारा प्रमाण-तत्त्व कानूनगो वार्ड, बीना (प्र.म.) जनवरी 2008 जिनभाषित 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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