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कुलभूषण, राजकुमार की दृष्टि जब आरती उतारती हुई। में रंगीन सैक्सी फोटो अपने ही अंदाज में छप रहे हैं। कन्या पर पड़ी और वे उसकी ओर आसक्त हुए, किंतु | गानों में सीधे-सीधे द्विअर्थी अश्लील शब्दों की भरमार पता चलने पर कि 'हमारी ही बहिन है', तब उन्होंने | बढ़ती जा रही है। अब तो चूमा चाटी के दृश्य व केबिल प्रायश्चित किया ओर वैराग्य पथ पर चल पड़े। आदि | संस्कृति के चैनलों में ब्लू फिल्मों का दौर भी चल अनेक धार्मिक कथानक आज भी हमारे चिंतन को दिशा पड़ा है। इन सबने मिलकर हमारी संस्कृति को चोट दे रहे हैं। वर्तमान में भी अनेक उदाहरण हैं शिवाजी | तो पहुँचाई ही है और हमारे बच्चों को समय से पहले महाराज से जब एक स्त्री ने कहा कि वह उनसे उनके बड़ा बना दिया है। चौंकानेवाले आँकड़े तो यह है कि, जैसा ही पुत्र चाहती है तब महाराज ने उसके चरण किशोर वर्ग किस तरह सैक्स चक्रव्यूह में फँसता जा छू कर कहा कि 'आज से मैं ही तुम्हारा पुत्र हूँ, माँ!' | रहा है। टी.वी. में जनसंख्या नियंत्रण एवं एड्स के विज्ञापनों महाराजा छत्रसाल, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी आदि | में जहाँ यौन उन्मुक्तता का प्रदर्शन हो रहा है वहाँ संयमहीनता महापुरुषों के जीवन के भी ऐसे ही अनेक प्रसंग हैं।| को भी बढ़ावा मिल रहा है। एक तरफ मीडिया का
यह विचारणीय व चिंताजनक स्थिति है। कि आज | खुलापन देख लोग उसके विरोध में बात करते हैं। तो हम किस दिशा में जा रहे हैं। भोगवादी अप संस्कृति, | दूसरी तरफ इसके देखने की संख्या भी बढ़ रही है। कुत्सित साहित्य, अश्लील फैशन निरंतर बढ़ती जा रही | ये कैसा विरोधाभास है? एक तरफ नैतिकता व संयम है। रिश्तों की मर्यादाएँ नष्ट हो रही हैं और व्यक्ति का की बातें तो दूसरी तरफ उन्मुक्तता व असंयम। आज नैतिक चारित्रिक पतन हो रहा है। गृहमंत्रालय के अपराध | आम आदमी दो तरफे दबाव से घिरा हुआ दिशाहीन का रिकार्ड बताता है कि हर ४७ वें मिनट पर एक | होता जा रहा हैं। महिला के साथ बलात्कार, ४० वें मिनट में अपहरण बदलती जीवन शैली में रिश्तों की संयमित मर्यादाएँ एवं हर ६वें मिनट में किसी न किसी के साथ छेड़छाड बनाए रखना हम सब का दायित्व है। यह तभी संभव होती हैं। ये तो महज दर्ज आँकड़ें हैं न जाने कितने है जब हम जीवन में संयम के महत्व को जानें, धर्म अपराध मिनट दर मिनट होते रहते हैं।
| एवं संस्कृति को पहचानें। यह भी जानें कि भोगवादी ___हमारे समाजिक, पारिवारिक मूल्यों और मर्यादाओं | जीवन शैली के दुष्परिणाम किस तरह हम भोग रहे को चोट पहुँचाने में दृश्य-श्रव्य मीडिया व टी.वी. चैनलों, | हैं। आज भयंकर बीमारियाँ असंयम के कारण हमें अपना समाचार पत्रों-पत्रिकाओं ने जो भूमिका निभाई है, उसमें | शिकार बना रही हैं। वर्तमान में आवश्यक है कि हम स्त्री रूप को सैक्सी एवं उपभोग की वस्तु के रूप में | अपने संस्कारों के साथ संयम का आचरण कर नैतिक प्रस्तुत किया है। हमारे परंपरागत एवं संस्कारित परिवार | एवं चारित्रिक मूल्यों को बचाएँ। पारस्परिक सौहार्द व जिन दृश्यों की कल्पना भी नहीं कर सकते है अब | मर्यादाओं के साथ रिश्तों को निभाएँ। तभी एक स्वस्थ वह हमारे ही घरों में ड्राइंग रूम के टी.वी. में सुबह | समाज की कल्पना साकार होगी और साकार होंगे हमारे से लेकर देर रात तक दिखाए जा रहे हैं। दिन में न | आचार्यों के बचन कि 'माता-बहिन सुता पहिचानो' जाने कितनी बार तीन पीढ़ी दादा-दादी, बहू-बेटे, पोता
'संस्कार सागर' सितम्बर २००७ से साभार पोती इन दृश्यों को देखते होंगे। समाचार पत्र पत्रिकाओं |
अनंतकाल की आत्मा महावीर जयंती के दिन भोपाल में लाल परेड ग्राऊंड में आचार्य श्री के प्रवचन हुये। प्रवचन के उपरान्त आचार्य गुरुदेव चौक मंदिर की ओर बिहार करते हुए आ रहे थे। तभी किसी श्रावक ने आचार्य श्री जी के प्रति भक्ति प्रदर्शित करते हुये नारा लगाया-"चतुर्थकाल की आत्मा, काया पंचम काल की" ___यह सुनकर आचार्य गुरुदेव ने अपनी लघुता प्रदर्शित करते हुए कहा- भैया चतुर्थ काल की आत्मा नहीं, अनंतकाल की आत्मा कहो, अनंत काल की। अनंत काल से यह आत्मा संसार में रह रही है।
मुनि श्री कुन्थुसागरकृत 'संस्मरण' से साभार
-जनवरी 2008 जिनभाषित 23
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