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की पालन-पोषण के कार्यों में सहायता करती हैं, परंतु ओलिविया नामक एक गाय इसमें बिलकुल भी सहायता नहीं चाहती थी । उसने पालन-पोषण में सहायता करने के अपनी माँ के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अंततः अप्रसन्न होकर उसकी माँ चरने के लिए अपने अन्य साथियों के साथ एक दूसरे खेत में चली गई और उसने फिर कभी अपनी बेटी से 'बात' नहीं की। दयापूर्ण व्यवहार किए जाने पर गाय वफादार साथी सिद्ध हो सकती है। स्टेफनी लैलेंड अपनी पुस्तक 'पीसफुल किंग्डम रैंडम एक्टस ऑफ काइंडनेस बाय एनिमल्स' में लिखती हैं कि जब पादरी ओएफ राबर्टसन की आँखों की ज्योति जाने लगी तो उनकी गाय मैरी उनकी आँखों की ज्योति बन गई। मैरी उनके साथ-साथ चलते हुए बाधाओं से उनकी रक्षा करती थी। राबर्टसन अपने शेष जीवन में जहाँ कहीं भी गए, मैरी उनके साथ-साथ गई।
अपने परिवार, मित्रों अथवा मानव - सखाओं से बिछड़ने पर गाय को उनके खो देने की पीड़ा महसूस होती है। अनुसंधानकर्ता बताते हैं कि गाय थोड़े समय की जुदाई में भी दुखी दिखाई देती है। गाय तथा उसके बछड़े का संबंध खासतौर से मजबूत होता है और ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, जब गाय से उसके बछड़े को छीनकर कसाइयों
बेच दिए जाने के पश्चात् उसे पागलों की तरह चिल्लाते हुए देखा गया है। वे काफी दिनों तक उस बाड़े के बाहर जहाँ उन्होंने अपने बछड़े को अंतिम बार देखा था, दुख में खड़ी रहती हैं और चिल्लाती हैं तथा जबर्दस्ती हटाए जाने पर ही वहाँ से हटती हैं। कुछ सप्ताह पश्चात् वे फिर उसी स्थान पर यह देखने के लिए वापस आएँगी कि क्या उनका बछड़ा वापस आ गया है।
अन्य सभी पशुओं के समान ही गाय को भी अपना
जीवन मूल्यवान् लगता है और वे मरना नहीं चाहती हैं। ऐसे किस्से बहुतायत में हैं, जहाँ गाय ने अपने जीवन की रक्षा करने के लिए असाधारण लड़ाइयाँ लड़ी थीं । सूजी नाम की एक गाय को जब एक भार-वाहक में चढ़ाया जाना था, तो वह पीछे की ओर मुड़ी, लकड़ियों के ढेर पर भागी और फिर उसने नदी में छलांग लगा दी । यद्यपि वह गर्भवती थी, फिर भी वह तैरकर नदी पार करने में सफल रही और कई दिनों तक पकड़ में नहीं आई। उसे पीटा (पीईटीए) द्वारा बचाकर फार्मवाले पशुओं की एक सेंचुरी में भेज दिया गया था ।
मांस खाने का अर्थ है ऐसे पशुओं को खाना जो मरना नहीं चाहते हैं । अमेरिका में प्रत्येक वर्ष 40 मिलियन से अधिक गायों की, मांस तथा डेयरी उद्योग द्वारा हत्या की जाती है। जब वे कम उम्र की ही होती हैं तब ही उन्हें गर्म सलाखों में जलाया जाता है, उनके अंडकोशों को निकाल दिया जाता है और उनके सीगों को काटा अथवा जलाया जाता है, वह भी बिना पेनकिलर के। थोड़ा बड़ा होने के पश्चात् उन्हें बहुत बड़े मिट्टीवाले भोजन करने के स्थानों में वध किए जाने हेतु मोटा होने के लिए भेजा जाता है। डेयरी में रहने वाली लाखों गायें अपना अधिकांश जीवन या तो बड़े-बड़े शेड में अथवा उनका मल लगे हुए मिट्टी के ढेरों में व्यतीत करती हैं, जहाँ पर रोग काफी फैले होते हैं। दूध के लिए पाली जानेवाली गायों को बारबार गर्भवती किया जाता है और उनके बछड़े को उनसे लेकर बछड़े के मांसवाले फार्मों अथवा अन्य डेयरी फार्मों को भेजा जाता है। जब उनका थका हुआ शरीर और दूध नहीं दे सकता है, तो उन्हें वधगृह भेज दिया जाता है। 'नई दुनिया' इन्दौर, 10 नवम्बर 2007 से साभार
समता
पैर में तकलीफ बढ़ती ही जा रही थी आचार्य महाराज कक्ष में आये और मुझसे पूँछने लगे क्यों महाराज कैसी है तकलीफ। मैंने कहा बढ़ती ही जा रही है आचार्य श्री बोले इस रोग में कोई औषधि तो काम करती ही नहीं है। समता ही रखनी होगी। मूलाचार में साधु को सबसे बड़ी औषधि बताई है बताओ वह क्या है? मैंने कहा जी आचार्य श्री समता । खुश होकर आचार्य श्री बोले बहुत अच्छा ऐसी ही समता बनाए रखना। मैनें कहा आपका आशीर्वाद रहा तो सब सहन हो जावेगा आप आ जाते हैं तो साहस बढ़ जाता है आचार्य श्री कहते हैं भैया और मैं क्या कर सकता हूँ आशीर्वाद ही दे सकता हूँ। मैंने कहा आपके आशीर्वाद से ही मुझे सब कुछ मिल जाता ।
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मुनि श्री कुंथुसागर - कृत 'संस्मरण' से साभार
दिसम्बर 2007 जिनभाषित 17
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