Book Title: Jinabhashita 2007 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ | जिले के ही तुलसी संग्रहालय, रामवन में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा सुरक्षित है जिसके पार्श्वभागों में त्रिभंग मुद्रा में इन्द्र और उपेन्द्र प्रदर्शित हैं। सुन्दर गठन और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति से परिपूर्ण मूर्ति गुप्तकाल का परवर्ती उदाहरण प्रस्तुत करने के कारण लगभग 7वीं शताब्दी की कृति मालूम पड़ती है। नचना के समीप सिरा पहाड़ी से तीर्थंकर आदिनाथ और पार्श्वनाथ की दो प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो नचना में पल्लवित शिल्पकला से सम्बन्धित प्रतीत होती हैं और लगभग 8वीं शताब्दी में निमित्त हुई होगी। मध्यप्रदेश के जबलपुर क्षेत्र ओर तेवर ( प्राचीन त्रिपुरी, जिला- जबलपुर) से कलचुरि राजाओं के काल की अनेकों जैन मूर्तियों प्राप्त हुई हैं जो लगभग 9वीं से 12वीं शताब्दी की हैं। इनमें से जिन धर्मनाथ की मूर्ति नागपुर संग्रहालय में है और उस प्रकार की तीर्थंकर आदिनाथ त्रिपुरी से प्राप्त मूर्ति भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता, में सुरक्षित है। त्रिपुरी से उपलब्ध अनेकों तीर्थंकर मूर्तियाँ जबलपुर संग्रहालय में देखी जा सकती है। जबलपुर क्षेत्र बुन्देलखण्ड की पूर्वी बाहरी परिधि है जिसने बुन्देलखण्ड पूर्वी भाग को कलचुरि राजाओं के काल ( 9वीं से 12वीं शताब्दी) में प्रभावित किया । देवगढ़ (जिला- ललितपुर, उत्तरप्रदेश) जहाँ गुप्तकालीन दशावतार मंदिर के लिए प्रसिद्ध है वहीं जैन मंदिरों के एक विशाल समूह के लिए भी। इस मंदिर समूह के लगभग 31 जैन मंदिर 9वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य पहाड़ी पर निर्मित हुए जो अपने आप में जैन स्थापत्य और शिल्पकाल के अध्ययन का विस्तृत विषय हैं। जैन स्थापत्य ओर चंदेल राजाओं के काल में हुआ। कुछ मंदिरों को छोड़कर अधिकतर मंदिर छोटे आकार के है जिनका निर्माण वर्गाकार या आयताकार तल योजना पर किया गया ओर जिनमें गर्भगृह तथा उसके सामने मुखमण्डप स्थित है । अधिकांशतः ये मंदिर समतल छतवाले हैं, केवल दो मंदिर नं. 12 और नं. 28 शिखर युक्त हैं । यहाँ पर विभिन्न आकार -प्रकार की मूर्तियाँ और मानस्तम्भों के उदाहरण भी बड़ी संख्या में मिलते हैं। इन मंदिरों में से दो मंदिर नं. 12 और नं.15 अनी स्थापत्य विशेषताओं के कारण विशेष रूप से वर्णनीय हैं। शान्तिनाथ मंदिर ( मंदिर नं. 12) इस मंदिर के सामने स्थित मुख-चतुष्की के एक स्तम्भ पर प्रतीहार वंशीय 20 दिसम्बर 2007 जिनभाषित Jain Education International भोजदेव (मिहिर भोज) के समय का 862 ई. का एक अभिलेख मिलता है जिसपर उत्कीर्ण है कि स्तम्भ का निर्माण शान्तिनाथ मंदिर के समीप ( शान्त्यायतनसन्निद्ये) किया गया। पश्चिमाभिमुख इस मंदिर में गर्भगृह और अन्तराल प्रदक्षिण्मपथ से आवेष्टित हैं। इसके सामने अनेक स्तम्भोंवाला मण्डप बाद में निर्मित हुआ । प्रदक्षिण्मपथ से बाहर की और जाने के लिए मुख्य द्वार के अतिरिक्त तीनों ओर द्वार हैं। मंदिर का अधिष्ठान नीचा और अपेक्षाकृत सादा है किन्तु उसके ऊपर जंघाभाग स्तम्भिका तथा उद्गमों के नीचे जैन यक्षी प्रतिभाओं से सुशोभित है जिनकी पहचान के लिए सुलोचना, सुमालिनी, सुलक्षणा आदि नाम भी लिखे मिलते हैं । जंघा के ऊपर करण्डिका भाग पर तालपत्र, घंटिकामाला, सिंहमाला आदि से विभूषित पट्टिकाएँ हैं जिनके ऊपर शिखर आधारित है- पंचरथ की चौड़ी मध्यलता के दोनों और कर्णभाग पर निर्मित चिपटे भूमि आमलक शिखर की ऊँचाई दर्शाते हैं। शिखर के सामने त्रिभुजाकार शुकनसिका के निचले भाग में एक देवकुलिका का द्वार है जिसके दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी दोदो जिन प्रतिमाएँ निर्मित की गई है। शुकनासिका के शीर्षभाग पर पदमासन में आसीन एक जिन मूर्ति स्थित है। मंदिर में प्रवेश के लिए मुख्य द्वार प्रदक्षिणा पथ में ले जाता है और दूसरे द्वार से गर्भगृह में प्रवेश मिलता है। गन्धर्वशाखा, मिथुनशाखा और गंगा-जमुना की मूर्तियों से अलंकृत द्वार मुख्य मंदिर से कुछ बाद के हैं जैसा कि उनके शिल्प और उन पर लिखी तिथियों से ज्ञात होता है। द्वार के ऊपर ललाटबिम्ब पर तीन जिन प्रतिमाएँ हैं जिनके दोनों और नवग्रह तथा वीणापाणि सरस्वती की मूर्तियाँ विराजमान हैं। इसके ऊपर सिरदल (उत्तरंग) पर जिन प्रतिमाओं के साथ-साथ जैन धर्म के सोलह मांगलिक प्रतीक भी दर्शाये गये हैं जिनका स्वप्न में दर्शन तीर्थंकर की माता ने किया था। गर्भगृह में प्रवेश के लिए अन्तराल भाग में स्थित सीढ़ियों से उतरना पड़ता है क्योंकि उसका तल प्रदक्षिणा पथ से नीचा है। गर्भगृह के अन्दर कुंभिका, पट्टिका आधार है। पिछले भाग में तीर्थंकर शान्तिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है जिसके दोनों और दो-दो अनुचर बने हैं। यहाँ यह स्मरणीय है कि मंदिर के सामने की चतुष्की के एक स्तम्भ पर शान्तिनाथ के आयतन का उल्लेख है। और यह प्रतिमा उसी को प्रमाणित करती है। गर्भगृह में जैन देवी अम्बिका की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं जिनके बांये | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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