Book Title: Jinabhashita 2007 11 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 9
________________ मानने में उनको आपत्ति है। यद्यपि फॉरलॉग साहब काश्यप बोध को जैन ही मानते हैं, लेकिन भगवान् पार्श्वनाथ नहीं मानते। इसमें मेरा यह कहना है कि तिथियों में थोड़ा सा हेरफेर होना कोई नई बात नहीं है, इतिहास में तो यह आम बात है; जैसा कि वे खुद भगवान् महावीर के बारे में अनेक मान्यताओं का उल्लेख करते हैं और फिर ५९८ ई.पू. को सही मानते हैं। मेरे अभिप्राय से भगवान् पार्श्वनाथ कब हुए इसके बारे में मतभेद हो सकते हैं और बहुत करके चीनियों का समय इसी का द्योतक है। मेरे अभिप्राय से | समय का उल्लेख करने में मतभेद जरूर हैं लेकिन व्यक्ति एक ही है। एक अन्य स्रोत से पता चलता है कि, डॉ. पी.सी. राय चौधरी का कहना है कि, "टिबेट में भी भगवान् पार्श्वनाथ का समवसरण गया था और जो वहाँ पर अंहिसा का प्रभाव देखने को मिलता है, वह पार्श्वनाथ भगवान का ही देन है।" इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि विदेशों में पार्श्वनाथ का बहुत ही प्रभाव था, उन्होंने करोड़ों भगवान् अनार्यों को आर्य बनाया था। अब हम कुछ और प्रमाण देखेंगे, जिनसे हमारा विषय और भी स्पष्ट हो जायेगा। मेजर साहब लिखते हैं, B. C. 580, Jaina-Bodhism story in North Kaspana.... Pg.61 इन सुदूर क्षेत्रों में जैन धर्म का शक्तिशाली होना एक विशेष बात है और यह श्रेय हम किसको दें? यह श्रेय निश्चय से भगवान् पार्श्वनाथ को है । भगवान् पार्श्वनाथ का प्रभाव चीन के एक सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व, जिनको आज भी विश्व में आदर प्राप्त है, पर पढ़ा था, मेजर साहब इस विषय पर लिखते हैं, "Confucius who was a true chinaman, loving the plain and pratical, and here therefore totally different to laotsze, whose spiritual mysticiam was an enudend out come of the teachings of the two last great Jaina saints, Parsvanath of 900, and Mahavira of 550. Theughat the 7th century B.C. we have shown that theis religion pervaded central Asia from the mouth of the Oxue to the Hoangoho, and had its philosophik center at Kapila-Vastu.....' इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान् पार्श्वनाथ का प्रभाव 'कन्फुसियस' जैसे दिग्गज विद्वान् पर पड़ा था और साथ में यह भी समझ में आता है कि भगवान् पार्श्वनाथ के तीर्थं में जैन धर्म का मध्य एशिया में जोरदार प्रभाव था । पाठक यह भी समझें कि इन लोगों के अन्धश्रद्धान का कोई पार नहीं था, Jain Education International इन लोगों को हमारे आराध्य भगवान् पार्श्वनाथ ने धर्म सिखाया, जो कि एक अद्भुत कार्य है। इन लोगों की क्रूरता के बारे में लिखते हुए लिखा है कि "Like the early Aryans of the Rig Veda, these Tueanians offered human victims to their gods, especially to Sri-Bonga the Earth mother, and children to Kali and Basavi, and only after pelonged efforst a at great cost did the Baittoh Government manage to suppress the Merials or human sacrifices of these kolorian brethesn." पृ. १२२. इस पर से पाठक अंदाजा लगा सकते हैं कि मध्य एशिया के लोगों में कितनी अन्धश्रद्धा थी, वे लोग बड़े और बच्चों तक की बली देते थे। मनुष्य-बली की प्रथा वेदिक आर्यों में भी थी, इसको भी नहीं भूलना चाहिए। ऐसी प्रथा मेजर साहब के अनुसार लगभग सारे विश्व में थी, इसके बारे में लिखने बैठें तो एक दूसरा ही बृहद लेख बन जायेगा । ऐसे इन क्रूर कर्मियों को धर्म सिखाया भगवान् पार्श्वनाथ ने। भगवान् पार्श्वनाथ का प्रभाव मात्र एशिया में ही नहीं, बल्कि युरोप में भी था, उसी को संक्षेप में समझते हैं। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो ग्रीस (यूनान) के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ 'पायथागोरस' को नहीं जानता हो । गणितज्ञ होने के साथ वे एक दार्शनिक भी थे और पक्के शाकाहारी थे और यहाँ तक कि वे शाकाहार में भी कुछ चीजों का परहेज करते थे। इनकी यह चर्या जैनत्व को ही घोषित करती है। यदि हम पायथागोरस को जैन धर्मी न भी माने तो भी जैनधर्म का प्रभाव होना स्पष्ट है । जैनधर्म की प्राचीनता (Antiquity of Jainism ) नामक लेख मेरे पास उपलब्ध है जिसमें बताया गया है fen, "In his book, the Magic of Numbers, E.T. Bell (P.87) tells that once Pythagoras saw citizen beating his dog with a stick, where upon the merciful Philo sopher shouted, "Stop beating that dog. In this howls of pain I recognise the voice of a friend... For such sin as you are committing he is now the dog of a house master. By the next turn the wheel of birth may make him the master and you the dog. May he be more merciful to you than you are to him. Only thus can he escape the wheel. In the name of Apollo, My father, stop or I shall be conpelled to say on you the ten fold cases of the Teteractyas." This seveals the effect of Jainism" यह स्पष्टतया जैनधर्म का सिद्धांत है और स्पष्ट करता है कि पायथागोरस पर नवम्बर 2007 जिनभाषित For Private & Personal Use Only 7 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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