Book Title: Jinabhashita 2007 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ शीशा देने वाला रास्ते चिड़िया! पूरा आकाश तुम्हारा है हर बार तुम अपने लिए अपना रास्ता बनाती हो सुदूर क्षितिज तक आती-जाती और चहचहाती हो दुनिया ने जितने रास्ते बनाये उनमें लोग कभी उजडे कभी भटके कभी भरमाये पर तुम्हारा रास्ता साफ है जिससे गुजरने पर सारा आकाश जैसा है वैसा ही रहता है। जब भी मैं रोया करता माँ कहतीयह लो शीशा, देखो इसमें कैसी तो लगती है रोनी सूरत अपनी अनदेखे ही शीशा मैं सोच-सोचकर अपनी रोनी सूरत हँसने लगता। एक बार रोई थी माँ भी नानी के मरने पर फिर मरते दम तक माँ को मैंने खुलकर हँसते कभी नहीं देखा। माँ के जीवन में शायद शीशा देने वाला अब कोई नहीं था। सबके जीवन में ऐसे ही खो जाता होगा कोई शीशा देने वाला। 'अपना घर' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36