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स्थितिकरण है और वात्सल्य जो है।
जन्मसन्तति को अंगहीन सम्यग्दर्शन छेदन नहीं कर स्वयूथ्यान् प्रति सद्भावसनाथापेतकैतवा। सकता। यह सांगोपाङ्ग होना चाहिए। कोई यहीं से टल जाय प्रतिपत्ति-र्यथायोग्यं वात्सल्यमभिलप्यते॥ तो नीचे लिख दिया है कि एक एक अंग के जो उदारहण
अपनी ओर से जो कोई हो, अपने में मिलावो। तत्त्व | दिये वे तो हम लोगों को लिख दिये। और जो पक्के ज्ञानी तो यह है भैया। और यह सम्यग्दृष्टि बने हो तो आठ अंग | हैं उनके तो आठ ही अंग होना चाहिए। इस वास्ते हम नहीं पालोगे? आठ अंग तो तुम्हारे पेट में पड़े हैं। क्योंकि | तो कहते हैं कि स्थितिकरण सबसे बढ़िया है। और आप वक्ष चले और शाखा नहीं चले सो बात नहीं हो सकती। | लोग सब जानते हैं। हम क्या कहें? अगर सम्यग्दृष्टि बने हो तो आठ अंग होना चाहिए। यहाँ | एक बात हो जाती तो सब हो जाता। 'निमित्त कारण जोर दिया समन्तभद्र स्वामि ने- नाङ्गहीनमलं छेन्तुं... | को निमित्त मान लेते तो सब हो जाता।'
दीपावली
मुनि श्री निर्णयसागर जी संघस्थ-आचार्य श्री विद्यासागर जी
जीवन की कहानी में,आरंभ भी है, अंत भी। समय के उपवन में, पतझड़ भी है, बसंत भी॥
दीपावली वर्ष में एक बार मनाते हैं,
कितने पाप कमाते हैं? कहाँ हम दीपावली मनाते हैं? सब लोग घरों में मिठाइयाँ खाते हैं,
और
भगवान् महावीर के संदेश (जियो और जीने दो) जन-जन को सुनाते हैं।
और उन्हीं दिनों हम उस पर, कहाँ चल पाते हैं। सारी रात अपने ही हाथ आतिशबाजी चलाते हैं लाखों जीवों का जीवन मिटाते हैं। और हमारे नौजवान साथी कहाँ जुआ छोड़ पाते हैं?
दीपक की रोशनी लगाते हैं, फिर भी, जीवन में प्रकाश नहीं अँधेरा ही पाते हैं कहाँ हम दीपावली मनाते हैं? बुरा न मानो बंधुओ! हम दीपावली के नाम पर महावीर को लजाते हैं यूँ ही जीवन के कई वर्ष निकल जाते हैं! न हम दीपावली मनाते हैं, न हम महावीर को मान पाते हैं। दीपावली वर्ष .....
वह तो
जुए में सारी रात जाग जाते हैं। न मालूम, हम ऐसे
14 नवम्बर 2007 जिनभाषित
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