Book Title: Jinabhashita 2004 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ कुछ ठीक चल रहा है और उसने उल्लेखनीय भारी राहत | की कोई योजना नहीं बना रहे हैं तब आपको शान्ति अवश्य अनुभव की। उसके शब्दों में, "मेरे कन्धों से एक बढ़ा | प्राप्त होती है क्योंकि हृदय के अपराधों का कोई एक सर्वमान्य बोझ उतर गया जिससे मैं अपेक्षाकृत अपने को अधिक | हल नहीं है।" बहरहाल अपने क्रोध को उलटो-पलटो तब स्वस्थ अनुभव करने लगी।" लस्किन कहते हैं, कि अपनी | क्षमाशीलता शक्तिशाली हो सकती है। भूतकाल को बदला नाराजगी का समाधान इस प्रकार करने से "वैरपूर्ण भावनाएँ | नहीं जा सकता। किन्तु असमाधानित मामलों का और उनके सकारात्मक सोच में बदल जाती हैं और आपके शरीर को | पीछे संलग्न व्यक्तियों का सामना करने से एक आह्लादवर्द्धक शांत और आरामदायी अनुभव कराती हैं जिससे स्वास्थ्य में | और स्वस्थकर भविष्य की ओर बढ़ा जा सकता है। वृद्धि होती है।" विट विलियट का कथन और भी विचारणीय है ____5. लस्किन ने अपने एक अध्ययन में उत्तरी आयरलैन्ड "महीनों और वर्षों तक अपनी नाराजगी लटकाए रखने के 17 वयस्कों को जिनके सम्बन्धी आतंकवादी हिंसा के | का अर्थ है सदैव क्रोधित बने रहने के प्रति वचनबद्धता" शिकार हुए थे, एक सप्ताह का क्षमाशीलता का प्रशिक्षण जो दूसरों को नहीं, स्वयं अपने को अपार दुखदायी और दिया। परिणामतः उनके हताशापूर्ण दुःख में 40 प्रतिशत | | हताशा और निराशा के भंवर में पटकने वाली है। की कमी आई तथा सिरदर्द, कमरदर्द और अनिद्रा में 35 जैनाचार्यों ने इसे ही अनन्तानुबंधी क्रोध कहा है जिससे 'प्रतिशत की कमी अनुभव की गई। नीच गति अवश्यम्भावी है। छह माह से अधिक किसी भी ___ इस सम्बन्ध में लस्किन का यह कथन शत प्रतिशत | कषाय को बनाए रखने से वह अनन्तानुबंधी में परिवर्तित सही है कि क्षमाशीलता का यह अर्थ कदापि नहीं है कि हो जाती है, और सामान्यतः वैर (जो क्रोध का ही अचार किया गया अपराध सही था या तुम अपने ऊपर दुर्व्यवहार | या मुरब्बा है) तो लोग वर्षों क्या पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी मनों होने दो। जैन दर्शन भी पाप से घृणा करता है पापी से नहीं, | में संजोये रखते हैं। वैर इतनी बड़ी शल्य है जो व्यक्ति को क्योंकि सभी जीव शुद्ध निश्चय नय से परमात्मावत, | मन ही मन आन्दोलित करती है वह प्रतिशोध की अग्नि से चिदानन्दमय, स्वात्मरसलीन, ज्ञानचैतन्य स्वभावी हैं। मात्र | प्रज्जवलित रहता है, जो अन्दर ही अन्दर उसे खोखला बना कर्मों के आवरण से वे आज स्व-स्वरूप से भटकते हुए | देती है। शरीर अस्वस्थ रहने लगता है और एक के बाद पाप, अनाचार और दुष्कृत्य करते दिखाई देते हैं। जिस दिन | एक अनेक बीमारियाँ उसे अपनी चपेट में ले लेती हैं। स्वात्म बल से समस्त कर्मों का क्षय हो जाएगा, पूर्व पापी | भगवान बाहुबली के मन में एक छोटी सी शल्य कि वे सब से पापी जीव भी सिद्ध परमेष्ठी का महान पद प्राप्त कर लेंगे। कछ त्यागने के बाद भी अभी सम्राट भरत की भमि पर प्रथमानुयोग के ग्रन्थ इस प्रकार के अनेक कथानकों से भरे | खड़े हैं, ने उन्हें केवलज्ञान की उपलब्धि से 12 वर्ष तक पड़े हैं। हिंसक कृत्य, दुष्कृत्य, चोरी, बलात्कार आदि पापों | रोके रखा। जब भरत के माध्यम से वह शल्य निकली तो से कदाचित ही कोई बचा होगा। तीर्थंकर महावीर के जीव तुरन्त केवलज्ञान हो गया। ने सिंह पर्याय में पर्याप्त हिंसा की थी। अंजन चोर का ___निष्कर्षतः क्षमा धर्म ही नहीं, अपितु एक प्रभावकारी कथानक तो जगत प्रसिद्ध है जो अंजन चोर से निरंजन बन | परीक्षित औषधि भी है और जब इसमें विशेषण 'उत्तम' गया। शंवुकुमार तो तद्भव मोक्षगामी जीव थे किन्तु उनसे | लग जाता है तो सोने में सुहागा हो जाता है, भले ही वह भी बलात्कार जैसे घृणित कृत्य हुए जिन्होंने अपने एक | एक पक्षीय ही क्यों न हो। माह के राज्यकाल में अपनी प्रजा की शीलवती महिलाओं | आचार्य विद्यासागर जी के शब्दों में, का शीलभंग करने में संकोच नहीं किया। अतः दुष्कृत्य, प्रत्येक काल सबको करता क्षमा मैं, हिंसादि पापों से घृणा करना तो अभीष्ट है किन्तु उनके सारे क्षमा मुझे करें नित मांगता मैं। कर्ताओं से नहीं, उनके सुधार का मार्ग ही वांछित है। मैत्री रहे जगत के प्रति नित्य मेरी, न्यूयार्क की मनोचिकित्सक जेनिसेफर जो "फारगिविंग हो वैर-भाव किससे जब हैं न कोई बैरी। एंड नो फारगिविंग" की लेखक भी हैं कहती हैं "कुछ लोगों को मूलतः मेल-मिलाप समस्या का कोई समाधान नहीं हैं किन्तु यदि आप उद्धिग्न नहीं हैं और प्रतिशोध लेने । जवाहरलाल नेहरू स्मृति महाविद्यालय, गंजबासौदा सितम्बर 2004 जिनभाषित 17 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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