Book Title: Jinabhashita 2004 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 28
________________ की प्राप्ति होती है, उससे इनकी आत्मा चलायमान हो जाती | दुर्गति को प्राप्त होते हैं, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि इस है, और विषयों में आसक्त दुर्बुद्धि से अपने ग्रहण किए हुए | पृथ्वी पर तीन लोक में दीक्षा भंग बराबर महान् पाप, अपमान, दर्शन, ज्ञान और संयम को छोड़कर दीक्षा भंग के महान | निन्द्यपना एवं निर्लज्जता न कभी (अन्य क्रियाओं से) पाप से यथोचित नरकों को प्राप्त करते हैं ॥ 263-264॥ भूतकाल में थी, और न कभी भविष्यत्काल में होगी। दीक्षा भंग के पाप से भीम और बलि ये दो रुद्र सप्तम नरक त्रैलोक्य में बुद्धिमानों के द्वारा सारभूत अति दुर्लभ रत्न को प्राप्त हुए हैं। जितारि, विश्वानल, सुप्रतिष्ठ, अचल और चारित्र ही माना गया है। अतः अति निर्मल चारित्र के पुण्डरीक ये पाँच रुद्र रत्नत्रय एवं तप के परित्याग से छठवें समीप स्वप्न में भी मल नहीं लाना चाहिए। अर्थात् ग्रहण नरक को प्राप्त हुए।। 265-266 ॥ अजितन्धर नाम का रुद्र किये हुए चारित्र में स्वप्न में भी दोष नहीं लगाना चाहिए। पाँचवें नरक, जितनाभि और पीठ ये दो रुद्र चौथे नरक तथा ॥ 267-271 ।। इन सभी रुद्रों को अनेक भवान्तरों के बाद सात्विकीतनय तीसरे नरक को प्राप्त हुए हैं। सम्यग्दर्शन, | प्राप्त किए हुए सम्यक्त्व से चारित्र होगा और चारित्र के द्वारा ज्ञान एवं संयम से विभूषित ये सभी तपस्वी (रुद्र) दीक्षाभंग | इन्हें निर्वाण की प्राप्ति होगी। 272॥" से उत्पन्न होने वाले पाप के समूह से ही इस प्रकार की 1/205, प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा- 282002 बालवार्ता जीना है तो पीना नहीं डॉ. सुरेन्द्र जैन प्रायः मैं यह निर्णय ही नहीं कर पाता कि मुझे दूसरों | कोई शराबी (शराबघर) से यह गीत गाता हुआ निकलाके यहाँ मजदूरी करके अपना पेट भरना पड़ रहा है, पूरा | 'जीना यहाँ, मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ?' बस राम परिवार भी मुझ पर आश्रित है, यह मेरे किस पाप कर्म का | ने यह गीत सुना और क्षण भर में बिना बिचारे शराबखाने में परिणाम है? क्या मैंने कोई पुण्य नहीं किया? क्या मैं कोई | घुस गया और शराब में डूबता गया। उसे यह याद ही नहीं श्रम नहीं करता? यह प्रश्न रामू के मस्तिष्क में बार- बार | रहा कि कब उसने उन 360/- रु. की शराब पी डाली है, कोंध रहे थे कि सहसा कारखाने की घंटी बजी और सब | जो उसे मजदूरी के बदले मिले थे। शराब की खुमारी मजदूरों के साथ रामू को भी काम से छुट्टी मिल गयी।आज | चढ़ती जा रही है। उससे उठा भी नहीं जा रहा है, थकान वह बहुत प्रसन्न था क्योंकि आज मजदूरी (वेतन) मिलने | बढ़ती जा रही है। वह याद करता है- 'जीना यहाँ, मरना वाली थी। 60/- रु. रोज के हिसाब से उसे मजदूरी मिलती | यहाँ.............' पर क्या हुआ- वह तो न जी पा रहा है, न थी। महीने में चार अवकाश रविवार को छोड़कर 26 दिन | मर पा रहा है। चले भी तो कैसे? इतने में शराबखाने का के उसे 1560/- रु. मिलने वाले थे, जिनमें से वह 1200/ नौकर बेसुध जानकर बाहर पटक देता है। बाहर जोर की - रु. पहले ही पत्नी की बीमारी के नाम पर एडवान्स | बारिश हो रही है। बारिश का पानी पड़ते ही वह थोड़ा(अग्रिम) कारखाने से ले चुका था, यह उसे तभी याद | थोड़ा होश में आने लगता है। इतने में एक शराबी की दशा आया जब वेतन बाँटने वाले ने उसे 360/- रु. ही पकड़ाये। का वर्णन करते हुए संत ध्वनि निकलती हैरुपये पाकर पहले तो वह थोड़ा सा खिन्न हुआ कि इतने 'दिन भर धूप का पर्वत काटा, शाम को पीने निकले हम। कम रुपये ही मिले? अगले ही क्षण वह सोचने लगा कि जिन गलियों में मौत छुपी थी, उनमें जीने निकले हम॥' अपनी इस थकान को कैसे मिटाये? क्या प्लान कर अच्छा सूर्योदय के साथ ही रामू भी चेतना पा चुका था। भोजन करे? क्या मन्दिर जाकर देवता का भजन करे और | उसने तय किया था कि अब वह कभी 'शराब' नहीं पिएगा। सो जाये? क्या बच्चों के लिए खिलौने या मिठाई खरीदे? | आखिर जीने के लिए 'पीना' क्या जरूरी है? पत्नी के लिए साड़ी ले ले तो उसकी शिकायत मिट जायेगी कि वह उसे कुछ नहीं देता। रामू यह सोच ही रहा था कि | एल-65, न्यू इन्दिरा नगर, बुरहानपुर (म. प्र.) 26 सितम्बर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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