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|| नई सहस्राब्दी और भारत
डॉ. अशोक सहजानन्द
पता नहीं चला कैसे यह समय निकल गया। वैसे भी हमारा तो अब रिटार्यमेंट का समय आ गया। कोई यदि सर्विस करता है, तो 3035 साल की सर्विस करके रिटायर हो जाता है। अब यह बात इन सबको (यानि संघ को) बता दो। हमें बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम तो जैसा महाराज ने कहा था, वैसा कर रहे हैं। हम तो गुरु महाराज के द्वारा प्राप्त इस पथ पर उनके दिशा निर्देश के अनुसार चल रहे हैं। उन्होंने पथ पर चलने के लिये दिशा निर्देश के साथ संकेतों के कुछ साइनबोर्ड भी दिये हैं। उन्हीं साईनबोर्डो को अपने पास रखकर चल रहा हूँ। हमने सुना है कोई प्रतिभावान् विद्यार्थी है, वह यदि पेपर में कहीं एक जगह गलती कर देता है लेकिन अपना पेपर साफ सुथरा रखता है, अच्छी राईटिंग में लिखता है तो उस पर भी वहअपने नम्बर बढ़ा लेता है, वैसे ही मैंने भी श्री ज्ञानसागर जी महाराज का पेपर एकदम साफसुथरा रखा है, जैसा उन्होंने कहा वैसा ही किया और कर रहा हूँ और अपनी चर्या को एकदम साफ सुथरा बनाये रखा है। अब तो नम्बर पूरे मिलेंगे, मिलना चाहिए। जैसे प्रतिभावान विद्यार्थी को पेपर लिखते समय ज्ञात ही नहीं रहता है कि 3 घंटे कैसे निकल गये, वैसे मुझे भी ज्ञात नहीं है कि ये 29 वर्ष कैसे निकल गये? मुझे तो ये 29-30 वर्ष 3 घंटे जैसे लगे। मुझे तो ज्ञात आपने करा दिये, वैसे ही इन महाराज लोगों को भी बता देना कि 29 वर्ष हो गये और आप लोगों को भी ध्यान रखना है। हमने भगवान महावीर स्वामी के इस शासन काल में उन्हीं के बताये हुए मार्ग का अनुसरण किया है। यह सब गुरुदेव का आशीर्वाद एवं उनकी असीम कृपा का प्रतिफल है। इसमें मेरा कुछ भी नहीं है, क्योंकि यह पथ उन्हीं ने हमें दिया है। यह पथ भी उनका और पाथेय भी उनका और पथ पर चलने के लिये यह पद भी उनका, मैं तो बस चल रहा हूँ। उन्हीं श्री ज्ञानसागर जी का अनुसरण कर रहा हूँ। अन्त में उनको याद करता हुआ विराम लेता हूँ।
तरणि ज्ञानसागर गुरु, तारो मुझे ऋषीश। करुणा कर करुणा करो, कर से दो आशीष।।
प्रस्तुति- मुनि श्री अजित सागर
एक अहम प्रश्न है कि नयी सदी और | लाभ चंद लोगों तक ही सीमित रहेगा। तीसरी सहस्राब्दी में भी क्या वे ही शक्तियाँ ज्योतिषियों की भविष्यवाणी है कि वर्चस्व बनाये रखेंगी, जो अब तक बनाये इक्कीसवीं सदी के शुरुआत में ही भारत हुए हैं। क्या असमानता, शोषण और एक महाशक्ति बन जायेगा। लेकिन अन्याय तथा धर्मान्धता एवं धर्म के कंधे महाशक्ति तो रूस भी था, चीन भी है और पर व्यक्तिगत या समूहगत हित के लिये अमरीका, फ्रांस और ब्रिटेन भी। लेकिन इन बंदूक रखने का सिलसिला नयी सदी में भी देशों में भी प्राय: जनता उन्हीं दुःख-दर्दो जारी रहेगा। आशंका यही है कि सब-कुछ में पीड़ित है, जिनसे कि अन्य देशों में। पूर्ववत् ही चलता रहेगा। खतरा तो यह भी हाँ मात्रा का फर्क जरूर है। भारत अवश्य है कि समूचे संसार में धर्म, संस्कृति, नीति महाशक्ति बने, पर किस कीमत पर? क्या आदि के नाम पर विघटनकारी तत्त्व और सामरिक श्रेष्ठता और विज्ञान-टेक्नालॉजी अधिक आक्रामक हो जाएँगे।
की उन्नति ही किसी देश को शक्ति बीसवीं सदी में कई देशों की सम्पन्न बनाती है? हमारा विचार है, कतई भौगोलिक सीमाएँ बदलीं। कुछ पुराने देश नहीं। देश महान और महाशक्ति सम्पन्न टूटे, नये देश जन्मे, पर जिस आम जनता तब बनता है, जब उसकी जनता खुशहाल के हित के नाम पर यह हुआ, वह पहले होती है तथा अशिक्षा, बेरोजगारी, कुपोजैसी ही पीड़ित रही। बीसवीं सदी में संसार षण और धर्मांधता तथा व्यक्तिगत स्वार्थ ने दो-दो महान विश्व युद्धों के बाद अनेक के लिये राष्ट्रहित को बलि चढ़ा देने वाला छोटे-बड़े क्षेत्रीय युद्धों की विभीषिका झेली। नेतृत्व नहीं होता। आज भारत में ये सब लाखों लोग मारे गये, करोड़ों बेघर हुए, अपना वर्चस्व बनाये हुये हैं। भ्रष्टाचार उनकी त्रासदी से आज की समूची मानवता जीवन-शैली बन गया है। परंपरागत मुक्त नहीं हो पायी। विश्व के सभी महाद्वीपों नैतिक मूल्य दम तोड़ रहे हैं। में असंतोष, अराजकता और भिन्न-भिन्न इक्कीसवीं सदी में ये सब तिरोहित आदर्शों के नाम पर रक्तपात जारी है। एक हो जायेंगे। भारत को एक सामाजिक ओर इस्लामिक कट्टरवाद खतरनाक रूप आंदोलन चलाने वाला प्रखर नेता चाहिये। धारण कर रहा है, तो दूसरी ओर ईसाइयत ऐसा सामाजिक आंदोलन जो देश की के प्रचार-प्रसार के लिये हर सम्भव उपाय तमाम बुराइयों का उन्मूलन कर दे, ऐसा किये जा रहे हैं। अपने देश में भी कट्टरवाद नेता जिसकी आँखों पर व्यक्तिगत या पनप रहा है, न केवल धर्म के नाम पर, दलीय स्वार्थ की पट्टी न बँधी हो। जो सत्ता बल्कि जाति के नाम पर भी।
को जनता की चेरी बना दे। इक्कीसवीं सदी मानवता के लिये सम्पादक - "आपकी समस्या हमारा | शुभ होगी या अशुभ, कहना कठिन है। यह
समाधान"
239, दरीबा कलाँ, दिल्ली-110006 सत्य है कि विज्ञान और टेक्नालॉजी के क्षेत्र में बीसवीं सदी में अभूतपूर्व उन्नति हुई, विशेषकर उत्तरार्द्ध में। अंतरिक्ष यात्राएँ सम्पन्न हुई। इक्कीसवीं सदी में सूचना क्रांति के कारण छोटी हो गई दुनिया और भी छोटी हो जाएगी। लेकिन इस क्रांति का
-दिसम्बर 2001 जिनभाषित 13
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