Book Title: Jinabhashita 2001 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ धर्म का झण्डा भी डण्डा बन जाता है आचार्य श्री विद्यासागर नमोऽस्तु मुखौटे दया का कथन निरा है और दया का वतन निरा है एक में जीवन है एक में जीवन का अभिनय। अब तो.... अस्त्रों शस्त्रों वस्त्रों और कृपाणों पर भी . 'दया धर्म का मूल है' लिखा मिलता है। किन्तु, कृपाण कृपालु नहीं है वे स्वयं कहते हैं हम हैं कृपाण हम में कृपा न! कहाँ तक कहें अब! धर्म का झण्डा भी डण्डा बन जाता है शास्त्र शस्त्र बन जाता है अवसर पाकर और प्रभु स्तुति में तत्पर सुरीली बाँसुरी भी बाँस बन पीट सकती है प्रभु-पथ पर चलने वालों को। समय की बलिहारी है! 'मूकमाटी' महाकाव्य से साभार प्रो. (डॉ.) सरोज कुमार लाभ-शुभ के गणित में चिपकाए रहा मुखौटे। आती रही चमड़ी धीरे-धीरे उन पर जिस्म में उतर गए मुखौटे! अब मुक्त होने की कोशिश में खिंचती है चमड़ी रिसता है लहू! धोता हूँ शरीर चमचमाते हैं मुखौटे! मुखौटों में भर गई जिन्दगी जिन्दगी में भर गए मुखौटे अब न चेहरे खरे न मुखौटे खोटे! 'मनोरम'37, पत्रकार कालोनी, इंदौर-45001, म.प्र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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