Book Title: Jinabhashita 2001 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ विद्या-अध्ययन कैलाशचंद सिद्धांतशास्त्री की प्रेरणा से | से 77 तक मानद मंत्री रहे, अतः इस संस्था दरबारीलाल ने अपनी कुशल प्रज्ञा से बनारस आ गए और स्था. महा. में रहकर | को भी वृद्धिंगत करने एवं साहित्य प्रकाशन दादा तथा नाना के ग्राम सौरई में विद्याध्ययन न्यायाचार्य (चतुर्थ) परीक्षा में पास हुए। सन् | में आपका योगदान रहा। तभी यह संस्था कर चौथी कक्षा में अपने विद्यालय के साथ 1937 में वीर विद्यालय, पपौरा जी में 3 | आगे शोध संस्थान का रूप पा सकी। अन्य विद्यालयों में भी श्रेष्ठतापूर्वक प्रथम वर्ष तक धर्म प्राध्यापक रहकर फिर ऋषभ समाज-सेवा स्थान प्राप्त कया। 1925 में जार्ज पंचम के | ब्रह्मचर्याश्रम, मथुरा में दो वर्ष तक प्राचार्य पच्चीस सौवें भगवान महावीर निर्वाभारत आगमन काल में आपको पारितोषक पद का दायित्व वहन किया। सन् 1942 से णोत्सव वर्ष के अवसर पर दिगम्बर जैन रूप में जार्ज पंचम की मुद्रावाला मेडल 50 तक पं. जुगल किशोरजी मुख्तार के श्रमण परंपरा का इतिहास लेखन कार्य संपन्न प्रतियोगिता में प्राप्त हुआ। बाद में श्री महावीर साहचर्य में रहकर वीर सेवा मंदिर, सरसावा हो, इस भावना से शिवपुरी (म.प्र.) में सन् दिगम्बर जैन संस्कृत महा.. साढमल से | में जैन धर्म के ग्रन्थों के संशोधन संपादन 73 में नेमीचंद जैन गोंदवालों के द्वारा संपन्न प्रवेशिका, विशारद प्रथमखण्डरूप धार्मिक तथा लेखन कार्यों में दत्तचित्त रहे। वहाँ से कराए गए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा अवसर पर तथा संस्कृत शिक्षा प्राप्त की। विशेष सेवानिवृत्त होकर दिल्ली में कुछ दिनों तक आपने भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् अध्ययन की भावना से तत्पश्चात् आपने जैन पुस्तक भण्डार खोलकर उसका संचालन परिषद के अध्यक्ष के रूप में संस्था के रजत शास. संस्कृत महा., काशी (संप्रति-सम्पू. किया किन्तु शीघ्र विद्यारसिक कोठिया जी की जयंती महोत्सव का आयोजन किया। अधिसंस्कृत विश्व.) से संस्कृतप्रथमा एवं बंगीय प्रेरणा से संस्थापित समंतभद्र संस्कृत महा., वेशन में लिए गए निर्णय के अनुरूप ग्रन्थ संस्कृत परीक्षा एसो., कलकत्ता की व्याकरण दिल्ली में प्राचार्य पद पर रहकर सात वर्षों आलेखन का दायित्व डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री परीक्षा में सफलता प्राप्त की। स्याद्वाद महा. तक संस्था का विकास किया। अध्यापन के ज्योतिषाचार्य को सौंपा गया। कालान्तर में वाराणसी में अध्ययन प्राप्त कर नव्यन्याय साथ विद्याध्ययन भी अनवरत जारी रहा, 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य मध्यमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अतः शास्त्राचार्य (जैनदर्शन) का अंतिम परम्परा' के नाम से 4 खण्डों में वह ग्रन्थ ज्ञानाराधना की भावना से विद्याध्ययन की खण्ड तथा एम.ए. संस्कृत परीक्षा बनारस तत्कालीन उपराष्ट्रपति माननीय श्री बी.डी. इच्छा बलवती होती गई, अतः आपने हिन्दू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। 3 वर्ष तक जत्ती के करकमलों से विमोचित हुआ। इसी प्राचीन न्यायशास्त्री, प्राचीन न्यायाचार्य प्रथ- दिगम्बर जैन कालेज, बड़ौत में संस्कृत अवसर पर रजत जयंती स्मारिका प्रकाशन मखण्ड, काशी हिन्दू विश्व, से, जैनदर्शन प्राध्यापक रहकर सन् 60 में बनारस हिन्दू का निर्णय तथा 'महावीर विद्या फण्ड' की शास्त्री, जैनदर्शनशास्त्राचार्य (दो खण्ड) विश्व में प्राच्यविद्या धर्म-विज्ञान-संकायगत स्थापना कर जैन विद्वान् या उनकी संतान को बं सं, एसो. कलकत्ता की जैन न्याय (प्रथम) जैन दर्शन-न्याय के प्राध्यापक पद पर शिक्षा कार्य में सहायतार्थ कोष की स्थापना एवं मध्यमा, न्यायतीर्थपरीक्षा भी उत्तीर्ण की। नियुक्त हुए। इसी विश्वविद्यालय में ही सन् की गई। माणिकचंद दिग. जैन परीक्षालय बम्बई से | 70 से 74 सेवानिवृत्ति काल तक जैन-बौद्ध विशारद (द्वितीय एवं तृतीय खण्ड) तथा दर्शन के रीडर पद पर रहकर अध्यापन कार्य साधु-संगतिसिद्धांतशास्त्री परीक्षा के धर्म-न्याय-साहित्य करते रहे। इसी बीच जैन साहित्य के मूर्धन्य समाज सेवा, प्रवचन, अध्यापन कार्य रूप तीनों खण्ड उत्तीर्ण किए। मनीषी पं. जुगल किशोर मुख्तार ने आपकी के अतिरिक्त अवसर प्राप्त होने पर साधुप्रतिभा का मूल्यांकन कर अपने साहित्य कार्य संगति अवश्य करते थे सन् 80 में गृहस्थाश्रम प्रवेश हेतु मुनि श्री समंतभद्र महाराज के सान्निध्य श्रवणबेलगोला में चातुर्मास के दौरान लगभग युवावय में छिंदवाड़ा (म.प्र.) निवासी में कुम्भोज-बाहुबली में अपना उत्तराधिकारी 150 पिच्छिकाधारियों के साथ ऐलाचार्य श्री छोटे साहब श्री खुशालचंद पटोरिया की नियुक्त किया। एवं दिल्ली जाकर एक विद्यानंद महाराज के सान्निध्य में द्रव्य-संग्रह सुपुत्री चमेलीदेवी के साथ दाम्पत्य जीवन समारोह आयोजित कर डॉ. कोठिया को एवं न्यायदीपिका ग्रंथों का वाचन करने का सन् 1936 में प्रारंभ हुआ। आपने भी अपना 'धर्मपुत्र' घोषित किया। अवसर प्राप्त किया। आचार्य श्री विद्यासागर विद्यालयीन शिक्षा के अतिरिक्त विशारद, साहित्यरत्न, प्रभाकर परीक्षा उत्तीर्ण की थी। जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में पं. फूलचंद साहित्य सेवा जी सिद्धांतशास्त्री, पं. कैलाशचंदजी सन् 1985 में चमेलीदेवी का अवसान हो वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट की वाराणसी में सिद्धांतशास्त्री, पं. जगमोहनलालजी सिद्धांत जाने पर पं. दरबारी लाल कोठिया के जीवन स्थापना कर सन् 60 से आप मानद मंत्री के शास्त्री, पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य, पं. में विरक्ति के बीज गहरे होते गए। रूप में साहित्यलेखन-प्रकाशन कार्य में जवाहरलालजी सिद्धांत शास्त्री, पं. बालचंदजी अध्यापन कार्य संलग्न रहे। अतः आपके मार्गदर्शन में उक्त सिद्धांत शास्त्री के साथ षट्खण्डागम एवं संस्थान से शताधिक ग्रन्थ प्रकाशित एवं सन् 1939 में सर्वप्रथम भा.दि. जैन कषायपाहुड के वाचना शिविरों में भी आपने पुनर्मुद्रित भी हुए। संप्रति, आप अध्यक्ष पद संघ अंबाला में तत्त्वोपदेशक के रूप में भाग लिया तथा सागर खुरई, ललितपुर पर रहकर जिनवाणी की सेवा में तत्पर थे। आपने कार्य प्रारंभ किया। बाद में पं. आदि में वाचन करने का सौभाग्य भी प्राप्त श्री गणेश वर्णी ग्रंथ माला काशी के सन् 64 - दिसम्बर 2001 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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