Book Title: Jinabhashita 2001 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ सामाजिक असमन्वय के धार्मिक कारण बल दिया जाए। धर्म किसी भी समाज के नियंत्रण का अचूक माध्यम होता है, [4. साधु एवं श्रावक स्वयं अपने शिथिलाचार को समाप्त करने किन्तु धार्मिक क्षेत्र में बढ़ते विवादों ने धर्म के साथ समाज को भी | हेतु सजग हो। विवादित बनाया है। पूजा पद्धतियों में अन्तर, तेरापंथ, बीसपंथ, साढ़े 15. धार्मिक क्षेत्र में आगम की मान्यताओं का ध्यान रखा जाए। सोलह पंथ, शुद्धाम्नाय, निश्चय-व्यवहार, निमित्त उपादान, क्रमबद्ध | 6. समाज में धार्मिक-नैतिक एवं लौकिक शिक्षा के लिए समाज पर्याय, मूर्तिपूजा, तारणपंथ, कहानपंथ, सोनगढ़ी, जयपुरी-देवगढ़ी, द्वारा शिक्षालय स्थापित किये जायें। पीठाधीश परम्परा के रूप में साधुओं का असंयमित व्यवहार, | 7. समाज के उद्योगपति, प्रबन्धक अपने संस्थानों में समाज के आर्यिकाओं के चरण चिन्हों की नवीन सर्जना, प्रथमाचार्य-विवाद, ही व्यक्तियों की प्राथमिक अनिवार्यता के साथ नियुक्तियाँ करें। ब्रह्मचारिणियों की पूज्यता-वन्दना, बढ़ते मंदिर, घटते पुजारी आदि 8. सामाजिक विवादों को निपटाने हेतु स्थानीय स्तर पर धार्मिक विवादों ने समाज के अनेक वर्ग बना दिये हैं। अब तो दिगम्बर 'सामाजिक विवाद निवारण प्रकोष्ठ' बने। साधुओं के नाम पर भी खेमेबाजी है। साधुओं में असंयम को तर्क सामाजिक प्रतिबद्धता के विकास हेतु पूजन शिविर, श्रावक संगत बताया और माना जाने लगा है जिससे समाज में समन्वय शिविर एवं सहयोग शिविर आयोजित किये जायें। कम विद्वेष और अलगाव तथा किंकर्तव्यमूढ़ता की स्थिति निर्मित हुई 10. समाज में निर्धनवर्ग की पहचानकर उनके विकास/उत्थान की एकान्तवादी सोच के विकसित होने से मनमानापन समाज एवं दसवर्षीय योजनाएं संचालित की जायें। व्यक्ति के स्तर पर बढ़ा है परिणामस्वरूप माँ-बाप, भाई-भाई एक 11. साधुओं की भूमिका समाजोन्मुखी एवं दीर्घकालिक हो। दूसरे के वैचारिक दुश्मन बन गये हैं, जिनके कारण घर एवं समाज 12. दान का रूप प्रचलित हो उसे बोली का रूप न दिया जाय। का वातावरण कलुषित हुआ है। न लोग निश्चय को समझ रहे हैं न 13. मन्दिरों के सामानों पर दानदाताओं के नाम अंकित नहीं किये व्यवहार को बल्कि निश्चय नय के नाम पर व्यवहार एवं निश्चय दोनों जायें। को गड़बड़ा दिया है। वास्तव में एकान्तवाद एक विष की तरह है | 14. सामाजिक सहयोगात्मक गतिविधियों में बढ़ोत्तरी हो। जिससे व्यक्ति करे भले ही नहीं, किन्तु फोड़े फुन्सियों की उत्पत्ति | 15. धार्मिक विवादों को निबटाने के लिये शीघ्र पहल की जाये। और बहते मवाद की दुर्गन्ध सहने से बच नहीं सकता। 16. एकान्तवादी विचारधारा के स्थान पर अनेकान्तवादी विचारधारा निराकरण के उपाय को प्रोत्साहित कर दूसरों के विचारों का आदर किया जाए। इस सामाजिक असमन्वय के निराकरण हेत निम्न उपाय | 17. समाज में नियमित स्वाध्याय एवं वैचारिक संवाद के आयोजन अपेक्षित हैं किये जायें, ताकि वैचारिक मानस उच्चता को प्राप्त हो। 1. समाज को घटकों में बाँटकर देखने के स्थान पर विराट समाज | 18. समाज में साधु, विद्वान और श्रावकों की भूमिका बनी रहे। एक के रूप में देखा जाए। दूसरे को काटने की प्रवृत्ति न हो, ताकि इन तीनों के महत् 2. समाज में असहायों, अशिक्षितों के उद्धार हेतु सामाजिक मंच योगदान से सामाजिक समन्वय की धारा अविरल बहती रहे। एवं आर्थिक कोष बनें। एल-65, न्यू इंदिरा नगर-ए, 3. समाज में धन की श्रेष्ठता के स्थान पर गुणात्मक श्रेष्ठता पर बुरहानपुर, म.प्र. डॉ. रमेशचन्द्र जैन की कृतियों का विमोचन दादावाड़ी- कोटा (राज.) में दि. 2 नव. को परमपूज्य मुनि श्री सुधासागर जी, क्षु. श्री गम्भीर सागर जी एवं क्षु. श्री धैर्यसागर जी के सान्निध्य में भगवान महावीर स्वामी के 2600 वें जन्म कल्याणक वर्ष एवं विद्वत्परिषद् की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में प्रकाशित अनेकान्त मनीषी डॉ. रमेशचन्द्र जैन डी.लिट. (बिजनौर), अध्यक्ष - अ.भा. दि. जैन विद्वत् परिषद् द्वारा लिखित 'जैनपर्व' एवं 'उद्बोधन' कृतियों का विमोचन श्री मनीष कुमार जैन, आशिष मेडिकल स्टोर्स, लाड़पुरा, कोटा ने किया। उन्होंने 11000/- रुपये प्रदान कर 'जैनपर्व' कृति भेंट स्वरूप समाज में साधुसंतों को प्रदान करने की घोषणा की। पू. मुनि श्री ने लेखक एवं विमोचन कर्ता को धर्मवृद्धि हेतु आशीर्वाद प्रदान किया। 'परमसुधासागर' का प्रकाशन दादाबाड़ी- कोटा (राज.)। धर्म दिवाकर पं. लाल चन्द्र जैन 'राकेश' (गंजबासौदा) द्वारा विरचित मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के जीवन चरित पर आधारित कृति संगोष्ठी में विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत की गयी, जिसे प्रा. अरुण कुमार जैन (निदेशक आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, ब्यावर) ने प्रकाशन हेतु स्वीकार किया। कोटा समाज के विशेष आग्रह पर यह कृति श्री ऋषभ मोहिवाल, मनीष मोहिवाल, राजु मोहिवाल, अमित मोहिवाल एवं परिवार कोटा (राज.) द्वारा प्रकाशित की जायेगी। डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन, एल-65, न्यू इंदिरा नगर, बुरहानपुर (म.प्र.) -दिसम्बर 2001 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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