Book Title: Jinabhashita 2001 07 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ वर्षायोग प्रतिष्ठापन मुनिद्वय श्री समतासागर जी एवं श्री प्रमाणसागर जी टीकमगढ़ में परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महराज के परम शिष्य मुनि श्री 108 समता सागर एवं मुनि श्री 108 प्रमाणसागर व ऐलक श्री 105 निश्चय सागर जी महाराज के चातुर्मास व मंगल कलश की स्थापना का कार्यक्रम विधि विधान व मंत्रो चारण के बीच सम्पन्न हुआ। चातुर्मास के प्रथम दिन धर्म सभा में बोलते हुए मुनि श्री 108 समता सागर जी ने कहा, 'कबिरा बदरी प्रेम की हमपे बरखा आई, अंतर भीगी आत्मा हरी भरी बदराई' । चातुर्मास के काल में हरी-भरी प्रकृति की गोद में श्रावकों का जीवन धर्म से भरा रहे। आज का दिन संकल्प का दिन है, आज संकल्प के साथ जो माँगोगे वह मिलेगा, राम माँगोगे तो राम मिलेंगे, महावीर माँगोगे तो महावीर मिलेंगे। हमें घर-घर में श्रद्धा के कलश रखना हैं। घर-घर में ज्ञान का दीप प्रज्वलित करना है। घर-घर में आचार्य श्री के चित्र डूबते सूरज में अभी उजास बाकी है सम्यक्त्व भारती स्थापित कर संपूर्ण मानव समाज को आलोकित करना है। यह संयोग आपके पुण्य से बना है कि कल ही परम पूज्य आचार्य श्री 108 गुरुवर विद्यासागर जी महाराज का डूबते सूरज में अभी उजास बाकी है पर तौलते पंछी में अभी परवाज़ बाकी है 12 जुलाई-3 - अगस्त 2001 जिनभाषित आशीर्वाद हमें प्राप्त हुआ। जब मंगलाचरण ही सर्वाधिक मंगलमय हो, इतना प्रभावकारी हो तो सम्पूर्ण चातुर्मास कितना प्रभावकारी होगा ! मुनि श्री ने कहा कि पच्चीस किलोमीटर तक की सीमा चातुर्मास में बनाई है. संत का जीवन तो लालिमा है, पूरब दिशा की भाँति संत का काम तो सारी धरती को जगाना है। गहन पीर के बाद नव शिशु का दर्शन होता है। रात पूरी कट गई जिसके उजाले में बुझते चिराग में अभी प्रकाश बाकी है प्राण थक गये तो क्या हुआ जनाब मरते हुए आदमी में अभी साँस बाकी है जी सको तो जियो इंसान की तरह वक्त के पन्नों पर अभी इतिहास बाकी है कोई तो बचाये आके विनाश से इसे अमन के बीच का अभी विकास बाकी है Jain Education International पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हए कहा कि चातुर्मास की चौकी में बाहर की यात्रा को विराम देकर अंदर की साधना करते हैं और चाहते हैं कि हमारी साधना का लाभ आपको भी मिल सके। साधुसान्निध्य के बल पर हम अपने जीवन को रूपांतरित करने की प्रक्रिया को अपना सकें। आचार्य श्री कहते हैं कि भगवान महावीर की परम्परा बाँटने की रही है, इसलिये बाँटने में कोई कमी नहीं रहेगी, यदि कमी होगी तो तुम्हारे पात्र की होगी। वर्षा योग में वर्षा की धार तो बहेगी, लेकिन इस मंच से धर्म की लगातार वर्षा होगी, जिसमें जैन धर्म के क, ख, ग, से लेकर क्ष, त्र, ज्ञ तक के अक्षय भंडार आपके बीच खोल दिए जायेंगे। इसके लिये आपको अपने जीवन के वाल्व, ट्यूब खोल के रखना चाहिए। इस अवसर पर परम पूज्य ऐलक 105 निश्चय सागर जी महाराज ने अपना मंगल आशीर्वाद धर्म सभा को दिया। अखिलेश सतभैया, टीकमगढ़ आपके बिना मुझसे रहा नहीं जाता सम्यक्त्व भारती आपके बिना मुझसे रहा नहीं जाता कहना चाहता हूँ बहुत पर कहा नहीं जाता जख्म काँटों के लाख सह सकता हूँ मगर घाव फूलों का मुझसे सहा नहीं जाता रिश्तों की इबारत न जाने क्यों बदल गई उनसे दीवानगी में बेका नहीं जाता For Private & Personal Use Only जहर मौत के लिए तमाम उम्र पीते रहे जिन्दगी के वास्ते अमृत पिया नहीं जाता www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48