Book Title: Jinabhashita 2001 07 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 45
________________ आपके पत्र : धन्यवाद, सुझाव शिरोधार्य __ 'जिनभाषित' का मई 2001 अंक | कलेवर, आकर्षक साज-सज्जा और मौलिक । अंक में छपा लेख 'जैन आचार में प्राप्त कर हर्ष है। उसके विषय महत्त्वपूर्ण, | सामग्री पत्रिका का वैशिष्ट्य है। "जैन आचार | इन्द्रियदमन का मनोविज्ञान' अनूठा है, जो प्रासंगिक और पठनीय हैं। 'जैन आचार में | में इन्द्रियदमन का मनोविज्ञान" लेख स्वच्छन्द आपके मौलिक चिन्तन की गहराइयों से भरा, इन्द्रियदमन का मनोविज्ञान' पढ़ा। उन्मुक्त | भोगवादी लोगों को एक नई दिशा देता है। मन को छूने वाला हैं। श्रुतपंचमी सम्बन्धी कामभोग का दुष्परिणाम एक भगवान् साथ-साथ ओशो को भी यह सटीक जवाब सभी लेख भी उत्कृष्ट है। अतिनिन्दनीय और आचार्य के आश्रम में भी सुना, जहाँ सेक्स है। सच में, इन्द्रियदमन की नई अवधारणा अतिप्रशंसनीय' भी श्रेष्ठ बोधकथा है। के लिये, गर्मी-सुजाक रोग के उपचार हेतु को प्रकट कर आपने जैनाचार की युक्तियु ब्र. हेमचन्द्र जैन 'हेम' अस्पताल हैं। शम-दम से संवर होता है जो क्तता एवं वैज्ञानिकता को स्थापित किया है। कुन्द-कुन्द छाया, एम.आई.जी. 10/ए, पूर्णरूपेण संवर में शामिल है। आपने सोनागिरी, भोपाल-462021 आपके इस स्तुत्य प्रयास के लिये कोटिशः ऐन्द्रियिक उत्तेजनाओं के शक्त्यनुसार क्रमिक धन्यवाद। उत्तमचन्द्र जैन, एडवोकेट 'जिनभाषित' का मई 2001 का अंक दमन में इच्छाओं के नाड़ीतन्त्रीय स्रोत का निष्क्रिय होना बताया। क्या स्वदारसन्तोष लिंक रोड, सागर (म.प्र.) मिला। पहली बार जैन समाज की श्रेष्ठ पत्रिका इसका उपचार नहीं हो सकता? इधर देखी, जबकि भगवान महावीर का विषयविषमाशनोत्थित मोहज्वरजनिततीव्रतृष्णस्य। "जिनभाषित' मई 2001 अंक मिला। 2600वाँ जन्मोत्सव राष्ट्रव्यापी रूप में निःशक्तिकस्य भवतः प्रायः पेयाद्युपक्रमः श्रेयान्॥ '1200 मवेशी कटने से बचे' समाचार मनाया जा रहा है। आपने पत्रिका में (आत्मानुशासन 17) विचार करें। वास्तव में विशेष है। इस सम्बन्ध में सागर सारगर्भित, ज्ञानवर्धन और नानाविध सामग्री परम पूज्य आचार्य श्री आदि गुरुओं के नगरवासियों की सक्रियता सराहनीय है। संकलित की है। पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर सदुपदेश, गोरक्षा के माध्यम से अहिंसा का गोरक्षा के क्षेत्र में आचार्यश्री द्वारा किये गये जी के दो लेख/प्रवचन अच्छे लगे। श्रुतपंचमी पालन, जीवनोपयोगी अनेक रचनाओं के ठोस, व्यावहारिक दिशानिर्देशन से जीवदया पर आचार्य श्री ने अच्छा प्रकाश डाला और कारण यह पत्रिका अत्युपयोगी है। सम्पादन, का यह क्षेत्र सक्षम एवं व्यापक हो सका है। | सम्पादकीय भी इस विषय पर पसन्द आया। इन्द्रियदमन की आवश्यकता को वैज्ञानिक प्रकाशन सुन्दर है। धन्यवाद। एक लेख में 'मूकमाटी महाकाव्य' पर पं. नाथूलाल जैन शास्त्री एवं तार्किक ढंग से बताकर आपने कई लोगों प्रशासनिक दृष्टि से विचार किया गया है। पं. 40, हुकुमचन्द मार्ग, इंदौर-2 म.प्र. की शंकाओं का समाधान किया है। आसक्ति, फूलचन्द्र जी का लेख उत्तम है। शंकासमाधान आदत को दूर करने के लिये मन और तन | ज्ञानप्रद तथा मार्गदर्शक है। ऐसी उत्तम पत्रिका 'जिनभाषित' पत्र का मई 2001 का पर लगाम तो लगानी ही पड़ेगी। के लिये हार्दिक बधाई। अंक प्राप्त हुआ। बहुत प्रसन्नता हुई। प्रथम आशा है 'जिनभाषित' माँ जिनवाणी प्रो. निजामुद्दीन, मोहल्ला- साजगरीपोरा तो अंक का कागज, छपाई, बनावट आदि की सेवा करते हुए समाज को ऐसा सोच देगा, श्रीनगर-190011 (जम्मू-कश्मीर) भी बहुत सुन्दर है। दूसरे सभी लेख पढ़ने जिससे समाज, सत्य, अहिंसा, अनेकान्त पर योग्य आगमानुसार हैं। इस प्रयास के लिये | 'जिनभाषित' पत्रिका पढ़कर प्रसन्नता बद्धचित्त होकर रचनात्मक कार्यों के द्वारा आपको हार्दिक धन्यवाद। व्यक्तिगत एवं सामाजिक विकास की ओर हुई। 'श्रुतपञ्चमी' सम्पादकीय में जैनजगत का पं. लाड़ली प्रसाद जैन पापड़ीवाल | वर्गीकरण और निष्कर्ष पढ़कर अच्छा लगा। अग्रसर हो सकेगा। सवाई माधोपुर, (राजस्थान) अजित जैन 'जलज' 'स्वाध्यायः परमं तपः' की सिद्धि और ककरवाहा (टीकमगढ़) म.प्र. उसका व्यवहाररूप पुनर्विचार हेतु प्रेरित "जिनभाषित' के अप्रैल-मई के अंक करता है। यह आश्चर्य है कि प्रत्येक वर्ग अपने मिले। अद्वितीय अनुपम, आकर्षक है यह 'जिनभाषित' के अप्रैल और मई को अल्पसंख्यक वर्ग (अन्तिम वर्ग) की श्रेणी पत्रिका। इसे सत्यं, शिवं, सुन्दरम् भी कहा 2001 के अंक प्राप्त हुए। भतीजा बोला | में मानता है। भ्रम कैसे दूर हो, विचारणीय पूजा सकता है। सम्पादक, प्रकाशक एवं मुद्रक 'दादाजी! 'इंडिया टुडे' में ऊपर कवर पर है। आचार्यश्री का आलेख 'ज्ञान और सभी साधुवाद के पात्र हैं। भ. महावीर स्वामी का एवं गोम्मटेश्वर म. | अनुभूति' मननीय है। 'सम्यक् श्रुत' आलेख अनूपचन्द्र जैन, एडवोकेट बाहुबली का फोटो छपा है। मैंने ध्यान से देखा ज्ञानवर्धक है। आकर्षक साजसज्जा एवं फिरोजाबाद (उ.प्र.) तो पाया यह तो जैन/मासिक पत्रिका है और | कुशल संयोजन हेतु बधाई। उसके लेख व सम्पादकीय उच्चकोटि के हैं। डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल 'जिनभाषित' पत्रिका देखी। पहली ही अप्रैल के अंक में छपा लेख 'महावीर प्रणीत बी/369, ओ.पी.एम. कालोनी बार में आद्योपान्त पढ़ डाला। अभिनव जीवनपद्धति की प्रासंगिकता' एवं मई के अमलाई-484117 (शहडोल) म.प्र. -जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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