Book Title: Jinabhashita 2001 05 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 5
________________ आपके पत्र : धन्यवाद 'जिनभाषित' का अप्रैल कि आध्यात्मिक व्यक्तित्व जिनभाषित का अप्रैल 2001 अंक देखकर तबीयत खुश हो गई। लाह का 'भगवान महावीर के निर्माण में यह पत्रिका का 2600वाँ जन्मकल्यामैंने नहीं सोचा था कि कोई धार्मिक पत्रिका इतनी लुभावनी हो सकती है। अपना प्रायोगिक योगदान णक महोत्सव' विशेषांक पत्रिका का आकार, रंगरूप, सज्जा और संयोजन बहुत आकर्षक है। करेगी। आध्यात्मिकता एवं मिला। आपके श्रेष्ठ सम्पादप्रकाशित सामग्री रुचिकर होने के साथ-साथ उच्च स्तर की है। आप अपने भौतिकता में सन्तुलन स्थापित कत्व से प्रकट यह पत्रिका मकसद में कामयाब हैं। निःसंदेह 'जिनभाषित' पत्रिका मौजूदा जैन पत्रिकाओं करेगी। अपराधचेतना से युक्त वस्तुतः पाठक को निजभामें शीर्षस्थान पायेगी। आपकी पूरी टीम बधाई की हकदार है। इतनी अच्छी व्यक्तित्व का रूपान्तरण पत्रिका देने के लिए धन्यवाद स्वीकार करें। षित से जिनभाषित तत्त्वज्ञान । करेगी। भाव, विचार, रुचि, की ओर अवश्यमेव अग्रसर शीलचन्द्र जैन, ज्ञान और चारित्र की भिन्न वाणिज्यिककर अधिकारी (सेवा निवृत्त) करने में समर्थ होगी। विष 13, आनन्द नगर, जबलपुर ताओं से संपृक्त प्रत्येक यचयन एवं प्रस्तुतीकरण पाठक को आध्यात्मिक विकास अतिश्लाध्य है। इस अंक में श्रद्धेय पं. | 'जिनभाषित' का अप्रैल अंक करगत | के पथ पर अग्रसर करेगी। जिनभाषितपन्नालाल जी साहित्याचार्य का स्मरणप्रतीक | हुआ। कृतज्ञ हूँ। अनेक अभिनव उद्घोषों के रश्मियाँ हमारे मंगल पथ को आलोकित समाहित करने से गरिमा वृद्धिंगत हो गई है। साथ 'जिनभाषित' का अभ्युदय हुआ है। करेंगी। मुद्रण, कागज, गेटअप आदि सभी प.पू.108 इसके माध्यम से जिनवाणी के प्रसार-प्रचार जैन समाज को अपने अहिंसक आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के आशीर्वाद में नये नये वैचारिक वातायन खुलेंगे। यह आचरण से अनेक आर्थिक, सामाजिक एवं के अनुरूप ही हैं। आपको व समस्त प्रकाशन फूले और खूब फले, मेरे अनन्त | राजनीतिक लाभ प्राप्त होतेहैं। यह आवश्यक सहयोगियों को बधाई। लेखकों को भी आशीष स्वीकारिये। आप समाज के प्रबुद्ध है कि इस पत्रिका के माध्यम से हम अहिंसक धन्यवाद। पुरुष हैं। आप जैसे महानुभाव जमकर खूब आचरण के लाभों को प्रभावी ढंग से समाज पं. शिवचरणलाल शास्त्री, काम करें। आपका मार्ग सदा निरापद रहे, यही | के नवयुवकों के समक्ष प्रस्तुत करें। मैनपुरी उ.प्र. कामना और भावना है। सुरेश जैन, आई.ए.एस. डॉ. महेन्द्रसागर प्रचण्डिया ___30, निशात कालोनी, आपने मुझे 'जिनभाषित' का (अप्रैल मंगलकलश, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, भोपाल-462003 म.प्र. 2001) अंक भेजने की कृपा की है। आभार। __ अलीगढ़ उ.प्र. 'स्वर्णयुग के प्रतिनिधि का महाप्रयाण' शीर्षक अप्रैल 2001 का जिनभाषित हृदयासे आपने पूज्य साहित्याचार्य पं. पन्नालाल . 'जिनभाषित' का अप्रैल 2001 अंक | ह्लादक है। विविध विषयों का सम्पादन पत्रिका जी पर सम्पादकीय लिखकर शुभ कार्य किया प्राप्त कर हार्दिक प्रसन्नता हुई। प्रसन्नता का | की चुम्बकीय विशेषता है। शलाकापुरुष पूज्य है। पंडितजी के महाप्रयाण का उनके अवदान विशेष कारण यह है कि इस अंक में मेरे परम पं. गणेशप्रसाद जी वर्णी के व्यक्तित्व एवं के अनुरूप नोटिस नहीं लिया गया है। श्रद्धेय गुरुवर डॉ. पन्नालाल जी पर विशिष्ट साहित्यसेवा पर परम विद्वान स्व. डॉ. पंडित 'Unwept,unsung' वे चले गये। उनका सामग्री है। मैं सन् 1940 से 1946 तक पन्नालाल जी साहित्याचार्य का संक्षिप्त लेख ठीक से मूल्यांकन अपनी इस पत्रिका में जरूर | उनके अधीन ही सागर में अध्ययन करता रहा। वर्णीजी के आकाश से विस्तारवाले उज्ज्वल करवाइयेगा। वे मेरे परम हितैषी, उद्भट विद्वान, श्रेष्ठ आध्यात्मिक जीवन की झाँकी है। सम्पादकीय जिनभाषित को आपने सुरुचिसम्पन्न लेखक, अनन्वय अध्यापक और परम में विगत पीढ़ी के धुरन्धर जैन पंडित स्व. प्रकाशित किया है। जैन शासन की ऐसी चारित्रवान व्यक्ति थे। पंडित जी पर आपका डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य के व्यक्तित्व पत्रिका, निश्चित ही जैनों को जैन बनाने की लेख और आपकी उनमें श्रद्धा ही इस पत्र के एवं कर्तृत्व को विषय बनाकर विद्वान दृष्टि से अपनी भूमिका निभायेगी। उत्सवों, । | प्रेरक कारण हैं। सम्पादक ने सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। महोत्सवों, हल्लों-गुल्लों की अनुगूंज ही डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन बोधकथाएँ देकर पत्रिका की प्रभावअनुगूंज से भरी अधिकांश पत्रिकाओं के बीच प्रोफेसर (से.नि.) कता में चार चाँद लगाये हैं। अध्यात्म और जैन शासन की समृद्धि एवं प्रासंगिकता को 13, शक्तिनगर, पल्लवरम, चेन्नई-600043 आगम के बीच 'नमस्कार सुख' का व्यंग्य 'जिनभाषित' गहरे से रेखांकित कर सके, मन को गुदगुदाते हुए मस्का लगाने की प्रवृत्ति यही मनोकामना है। 'जिनभाषित' देखकर अत्यधिक प्रस- पर चोट करता है। प्रो. (डॉ.) सरोज कुमार |मता हुई। पत्रिका का नाम सहज, सरल एवं आवरण-सज्जा 'जिनभाषित' के अनुमनोरम, 37 पत्रकार कालोनी, | लालित्यपूर्ण है। लेखों का चयन एवं | कूल है एवं निर्दोष, स्वच्छ, सुन्दर मुद्रण इंदौर-452001 म.प्र. प्रस्तुतीकरण सराहनीय है। मुझे विश्वास है पत्रिका के सौन्दर्य में वृद्धि कर रहा है। स्तरीय -मई 2001 जिनभाषित 3 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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