Book Title: Jinabhashita 2001 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 24
________________ शंका क्या तीन कम नौ करोड़ मुनिराज हमेशा मध्य लोक में विद्यमान रहते हैं ? समाधान छठे गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक के मुनिराजों की संख्या आगम में इस प्रकार वर्णित है- प्रमत्तसंयत 59398206 + अप्रमत्त संयत 29699103 + तीनों उपशमक 897 + उपशांत मोह 299 + तीनों क्षपक 1794 + क्षीण मोह 598 + सयोगकेवली 898502 + अयोग केवली 598 = 89999997 शंका समाधान अब प्रश्न यह है कि यह संख्या शाश्वत मुनिराजों की है या उत्कृष्टतया है। इस संबंध में सर्वार्थसिद्धि के अन्त में दिये गये आचार्य प्रभाचन्द्र विरचित वृत्तिपद, पृष्ठ 395 पंक्ति 19 में लिखा है 'सर्वेऽप्येते प्रमत्ताद्ययोगकेवल्यन्ताः समुदिता उत्कर्षेण यदि कदाचिदेकस्मिन् संभवन्ति तदा त्रिहीननवकोटिसंख्या एव भवन्ति ।' अर्थप्रमत्त संयत से लेकर अयोग केवली पर्यन्त ये सभी संयत उत्कृष्टरूप से यदि एक समय में एकत्र होते हैं तो उनकी संख्या तीन कम नौ करोड़ होती है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि तीन कम नौ करोड़ संख्या शाश्वत नहीं है बल्कि उत्कृष्टता की अपेक्षा है। लेकिन आचार्य प्रभाचन्द्र जी ने जो 'एक समय में एकत्र होते हैं लिखा हैं' उसका तात्पर्य इस प्रकार समझना चाहिए 'संयतों की यह संख्या कभी भी एक समय में न जानकर विवक्षा भेद से कही जानी चाहिए। कारण कि न तो उपशम श्रेणी के चारों गुणस्थानों में से प्रत्येक में एक ही समय में अपने- अपने गुणस्थान की संख्या प्राप्त होना संभव है और न क्षपक श्रेणी के चारों गुणस्थानों में से प्रत्येक में एक ही समय में अपने अपने गुणस्थान की उत्कृष्ट संख्या प्राप्त होना संभव है। हाँ, उपशम श्रेणी और क्षपकश्रेणी के प्रत्येक गुणस्थान में, क्रम से अपने अपने गुणस्थान की संख्या का काल-भेद से अवश्य प्राप्त होना संभव है। कारण कि जो जीव 8 समयों में इन श्रेणियों के आठवें गुणस्थान में चढ़ें, वे ही तो अन्तमुहूर्त बाद नौवें गुणस्थान में पहुँचते हैं। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए और इस प्रकार समय भेद से अन्तर्मुहूर्त के भीतर सब संयतों की उक्त संख्या बन जाती है, यहाँ ऐसा अभिप्राय समझना चाहिए। (सर्वार्थसिद्धि ज्ञानपीठ प्रकाशन का संपादकीय पू. 5-6 पंडित फूलचंद जी सिद्धांताचार्य) इससे यह स्पष्ट होता है कि एक समय में, कभी भी न तो तीन कम नौ करोड़ मुनि हुए हैं और न हो ही सकते हैं। सामान्य बुद्धि से भी विचारणीय है कि यदि अयोगकेवली गुणस्थान में 598 मुनियों की संख्या शाश्वत मान ली जाए, तो अयोगकेवली गुणस्थान का काल 5 लघु अक्षर प्रमाण होने से, 5 लघु अक्षर काल में 598 जीवों को सिद्ध पद प्राप्त हो जाएगा अर्थात् 6 महीने 8 समय में असंख्यात् जीव सिद्ध बन जाएँगे जो स्पष्ट रूप से आगम बाधित है। शंका जन्मकल्याणक के समय जिन रत्नों की वर्षा होती है वे क्या वास्तविक होते हैं? - मई 2001 जिनभाषित 22 Jain Education International पं. रतनलाल वैनाडा समाधान तीर्थंकर भगवान के जन्म कल्याणक या आहार चर्या के समय जो रत्न वर्षा होती है, वे रत्न सच्चे ही होते हैं, साथ में अनमोल भी उत्तरपुराण पृष्ठ 378 पर इस प्रकार कहा है - मगधदेश के कितने ही वैश्यपुत्र द्वारावती नगरी पहुँचे। वहाँ उन्होंने बहुत से श्रेष्ठ रत्न खरीदे, जो भगवान नेमिनाथ के गर्भ एवं जन्म कल्याणक के समय देवों द्वारा बरसाये गये थे और राजगृही जाकर उन रत्नों को भेंट देकर अर्धचक्री जरासंध के दर्शन किये। जरासंध उन रत्नों को देखकर चौंक उठा और उसने उन वैश्यपुत्रों से उनकी प्राप्ति का रहस्य पूछा। उत्तर में वैश्यपुत्रों ने कहा कि भगवान नेमिनाथ की उत्पत्ति का कारण होने से जो सब नगरियों में उत्तम है तथा याचकों से रहित है ऐसी द्वारावती नगरी में बहुत से रत्न विद्यमान हैं। हमने ये रत्न वहीं से प्राप्त किए हैं। इन वचनों को सुनकर और द्वारावती के वैभव का अनुमान कर जरासंध क्रोध से अंधा हो गया और यादवों का नाश करने के लिये निकल पड़ा। वीरवर्धमानचरित्र ( ज्ञानपीठ प्रकाशन पृष्ठ-125-26) में इस प्रकार लिखा है- तीर्थंकर वर्धमान की राजा कूल के यहाँ प्रथमपारणा होने पर राजा के आंगन में अंधकारनाशक अनमोल करोड़ों मणियों की स्थूल, अखण्ड, सघन धारासमूहों से फूलों की सुगंधी से मिश्रित जल वर्षा के साथ आकाश से भारी रत्न वर्षा हुई, जिसके द्वारा सारे राजांगण को पूरित देखकर सभी आश्चर्यचकित हो रहे थे। इसेस यह स्पष्ट है कि ये रत्न अनमोल होते हैं. वास्तविक होते हैं तथा नगरी में अर्थाभाव को समाप्त कर धन से पूरित करने के लिये देवों द्वारा बरसाये जाते हैं। शंका- चार आयु को अप्रतिपक्षी तथा चार गति को प्रतिपक्षी क्यों कहा गया है ? समाधान जो प्रकृतियां अप्रतिपक्षी होती हैं उन प्रकृतियों का जिस समय बंध होता है, उस समय उनका अपना ही बंध होता है, और जब बंध नहीं होता तब नहीं होता है । परन्तु जो प्रकृतियाँ सप्रतिपक्षी होती है, उनके समस्त भेदों में से किसी भी एक भेद का बंध प्रति समय होता ही है (बंध व्युच्छित्ति काल तक ) । इस परिभाषा के अनुसार चार आयु अप्रतिपक्षी है क्योंकि जिन समयों में इनका बंध होता है, उन्हीं समयों में इनका बंध होता है, अन्य समयों में इनका बंध नहीं होता तथा चार गतियाँ प्रतिपक्षी कही गई हैं, क्योंकि इनमें से किसी एक गति का बंध प्रतिसमय होता ही रहता है। शंका- आलू में कितने जीव पाये जाते हैं और वे बादर हैं या सूक्ष्म ? समाधान- आलू (साधारण) सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति का स्कन्ध है। एक आलू में असंख्यात साधारण शरीर होते हैं और प्रत्येक साधारण शरीर में अनन्तानन्त निगोदिया जीवों का निवास होता है। ये सभी निगोदिया बादर तथा सूक्ष्म दोनों होते हैं। कहा भी हैबादर सुहम णिगोदा, बद्धा पुट्ठा य एयमेएण। ते हु अणंता जीवा, मूलयथूहल्लयादीहिं ॥ (श्रीधवल पु. 14 पृ.231) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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