Book Title: Jinabhashita 2001 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ सुबह के अखबारों में विज्ञापन प्रका- | 'करना चाहेंगे?' अभ्यागत ने प्रति- | होकर कहा- 'ऐसा भी होता है?' शित हुआ और दोपहर तक सेठ के दरवाजे प्रश्न कर स्वयं उत्तर देते हुए कहा- 'करते ही ‘ऐसा बहुधा होता है।' आगन्तुक ने पर लोगों की लाइन लग गई। स्थानीय जनता कहा- 'जो लोग सरकारी विभागों की कार्य के अलावा आस-पास के गाँवों-नगरों से भी फिर तो इससे झगड़े की नौबत आ | प्रणाली से परिचित हैं, उन्हें इस पर कोई लोगों के आने का सिलसिला आरम्भ हो गया। सकती है। वैमनस्य पैदा हो सकता है।' आश्चर्य नहीं होगा। दर असल, बेईमानी और लाइन की लम्बाई बढ़ने लगी और बढ़ते बढ़ते 'धार्मिक स्थान पर निर्माण को लेकर भ्रष्टाचार सरकारी कामों में, इस कदर घर कर जब नगर के चौराहे पर यातायात के लिए झगड़े की नौबत आना कौन सी नई बात होगी गए हैं कि ईमानदार कर्मचारी का संतुलन समस्या बनने लगी तो ट्रैफिक पुलिस हरकत हमारे लिए? यह तो होता ही है। अभ्यागत बनाए रखना असंभव होता जा रहा है। और में आई। उसने सेठजी को शीघ्र ही स्थिति ने इत्मीनान से कहा। फिर सरकारी कामों में ही क्यों? राजनीतिक सम्हालने को कहा। सेठ ने भी तत्काल लोगों इस अकाट्य तर्क से सेठ जी निरुत्तर क्षेत्र में, सामाजिक कार्यों में, हर जगह को आदर पूर्वक बैठाने का इंतजाम किया और हो गए। उन्होंने तत्काल अभ्यागत को धन्य- | बेईमानी का बोल-बाला है। अब तो, सेठजी! एक एक कर आगन्तुकों से मिलना प्रारंभ कर | वाद दे भेंट-समाप्ति का संकेत दिया। लोगों को विश्वास ही नहीं होता कि कोई दिया। इस तरह एक-एक कर अतिथियों से | ईमानदार भी हो सकता है। विश्वास का संकट प्रथम अभ्यागत का विस्तृत परिचय | भेंट का सिलसिला कई दिनों तक चला। सुबह | पैदा हो गया है। एक ईमानदार व्यक्ति को यह प्राप्त कर, सीधे विषय पर आते हुए सेठ जी से शाम तक सेठ रोज अभ्यागतों से मिलते। | सिद्ध कर पाना कि वह ईमानदार है, मुश्किल ने पूछा - 'कहिए आपकी योजना क्या है?' उनकी योजनाएँ जानते। किसी से दस मिनिट | है, बहुत मुश्किल।' इतना कह आगंतुक ने 'मैं एक मंदिर बनवाना चाहता हूँ।' चर्चा होती तो किसी से दो मिनिट। पर कोई | एक गहरी साँस लेकर विराम लिया। अभ्यागत ने कहा। भी योजना उन्हें संतुष्ट न कर सकी। कुछ ही । 'तो इस मामले में आप मुझसे क्या 'कहाँ?' दिनों में भीड़ छंटने लगी। लोगों की समझ में | चाहते हैं। सेठ ने पूछा। 'इसी शहर में।' यह आने लगा कि सेठ की अंटी से दान की | . होता यों है सेठ जी कि जब किसी 'इस शहर में?' सेठ जी ने साश्चर्य राशि ढीली करवाना किसी के वश की बात | ईमानदार कर्मचारी को झूठे मामले में फँसा कहा- 'यहाँ तो अनेक मंदिर हैं।' नहीं है। फिर भी कौतूहलवश कुछ लोग आते | कर निलंबित कर दिया जाता है तब कुछ 'जहाँ मैं बनाना चाहता हूँ, वहाँ नहीं है।' और लाइन में लग जाते। पर यह भी ज्यादा समय बाद आर्थिक तंगी के कारण उसका आप कहाँ बनवाना चाहते हैं?' दिन नहीं चला। मनोबल टूटने लगता है। ऐसे समय यदि उसे 'उस जगह जहाँ तीन नई कालोनियाँ सेठ का धैर्य जवाब देने लगा तो | कहीं से मदद मिल सके तो वह टूटने से बच प्रस्तावित हैं।' उन्होंने फिर मुनीम को बुलाया। मुनीम ने सकता है। जब मैंने आपका विज्ञापन पढ़ा तो हाँ!'..... कहते हुए सेठ जी ने थोड़ा | | निहायत ही शांति से स्थिति का जायजा मुझे लगा कि इस दान-राशि से एक ट्रस्ट विराम लिया फिर पूछा- 'जमीन? मंदिर के | लिया। उसे पता लगा कि आगंतुकों में एक बनाकर मदद की जा सकतीहै। पर आप तक लिए जमीन क्या सहज ही मिल जायेगी व्यक्ति ऐसा भी था जो पहले दिन से ही रोज पहुँचने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।' इतना वहाँ?' यहाँ आता रहा है पर सेठ जी से भेंट करने हेतु कह आगंतुक ने दो घूट पानी पिया फिर कुछ कब्जा करना होगा। कर लिया जाएगा।' कभी पंक्तिबद्ध नहीं हुआ। मुनीम ने तत्काल भावुक होकर कहा, 'सुनते हैं सेठ जी कि अभ्यागत ने उत्तर दिया। उस व्यक्ति से सम्पर्क स्थापित किया और सरकार सफेद शेर की विलुप्त होती प्रजाति यह क्या अनुचित कार्य नहीं होगा?' पूछा- 'क्या आपके पास भी कोई योजना है?' | को लेकर चिंतित रहती है। सफेद शेर की सेठ ने जिज्ञासा की। है तो सही। पर मुझे नहीं लगता कि | नस्ल बचाने के लिये काफी धन खर्च करती 'धार्मिक स्थल के लिए जमीन प्राप्त | सेठ जी को पसंद आएगी।' ।। है। पर ईमानदारों की विलुप्त होती प्रजाति को करने का यही तरीका प्रचलन में है आजकल! ‘ऐसा आप क्यों सोचते हैं? कृपया बचाने के लिये कुछ नहीं करती। सेठ जी, यदि इस हेतु सरकारी जमीन सर्वथा उपयुक्त मानी | एक बार सेठ जी से मिल तो लीजिए।' कहते | आप चाहें तो दान राशि देकर ईमानदारों की जाती है। रात के अंधेरे में, वांछित भूमि पर, | हुए मुनीम उसे सेठ जी के पास ले गया। | नस्ल बचाने की दिशा में पहला कदम उठा थोड़ा सा निर्माण कार्य कर लिया जाए तो फिर सेठ ने आगंतुक को सादर बैठा कर | सकते हैं। आपने मुझे शांति से सुना, उसे हटाने की हिम्मत कोई नहीं करता। कुछ उसका परिचय पूछा। धन्यवाद! जाने के लिए आज्ञा चाहूँगा।' रोज हो-हल्ला होता है फिर स्थिति सामान्य हो 'मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ जो पिछले सेठ आश्वस्त हो गया। उसने अनुभव जाती है।' एक वर्ष से सेवा से निलंबित हूँ।' आगंतुक ने किया कि उसे दस लाख के दान के लिये . पर यह तो जोर-जबरदस्ती हुई।' सेठ कहा। सार्थक उद्देश्य प्राप्त हो गया है। उसने 'किस कारण से? कोई घपला किया था निलम्बित कर्मचारी को इस उद्देश्य को पूर्ण 'धर्म की प्रभावना के लिए इतना तो । क्या?' सेठ ने पूछा। करने के लिये आवश्यक योजना बनाने का करना ही पड़ता है।' अभ्यागत ने स्पष्ट किया! 'जी नहीं! घपला करने में साथ नहीं | काम सौंप दिया। 'तब, ऐसा तो सभी धर्मावलम्बी | दिया था इसलिए।' आगंतुक ने उत्तर दिया। 56, ए मोतीलाल नेहरू नगर (पश्चिम) करना चाहेंगे।' 'अच्छा!' सेठ जी ने आश्चर्य चकित भिलाई - 490020 (दुर्ग) छत्तीसगढ़ ने कहा। मई 2001 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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