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जी! इहलोक और परलोक दोनों में माना जाता | लेकिन ऐसा हुआ नहीं। खाँसी रुकी। | आयाम जुड़े हैं। पहले जहाँ दान का संबंध
और फिर आश्वस्त होकर सेठ ने कहा- 'यदि | प्रायः धार्मिक स्थलों, अनाथ आश्रमों, धार्मिक सेठ ने सुनकर भी अनसुनी करते हुए | मैं स्वस्थ हो गया तो दस लाख रुपये की यह | पाठशालाओं और गरीबों-याचकों तक सीमित कराहने की गति में वृद्धि कर दी।
राशि मैं अपनी मर्जी से दान दूंगा।' था वहाँ आज दान की पैठ पब्लिक स्कूलों, तकरीबन सभी ने महसूस किया कि । 'हाँ, क्यों नहीं, क्यों नहीं?' प्रसन्नता प्राइवेट इंजीनियरिंग-मेडिकल कालेजों और सेठ की तबीयत बद से बदतर होती जा रही । की लहर उठी।
इसी तरह की अनेक संस्थाओं में गहराई तक है। वरना इतने महत्वपूर्ण विषय पर क्या इस 'स्वस्थ तो सेठ जी आप हो ही रहे हैं। हो चुकी है। प्राकृतिक विपदाओं से निपटने का कदर चुप्पी साध लेते?
अभी आपकी उम्र ही क्या है? साठा सो कार्य भी अब मुख्यतः दान पर निर्भर होता 'दान किए बिना देह त्यागने पर अशुभ | पाठा।' किसी ने कहा।
जा रहा है। देश में सूखे की स्थिति हो या बाढ़ गति प्राप्त होती है, ऐसा शास्त्र कहते हैं।' एक सेठ जी ने राहत की साँस ली और की अथवा भूकंप से तबाही हो, इनका ने धीरे से सेठानी के कानों में कहा- 'आप ही | इतमीनान से लेट गए।
मुकाबला करने में देश-विदेश से प्राप्त दान कुछ कहिए! क्या आप चाहती हैं कि...... | अब दान का प्रताप कहिए, दवा का का बड़ा महत्त्व होता है। देश की सरकार
'नहीं! नहीं!' कहते हुए सेठानी ने पति असर कहिए, परिजनों की सेवा कहिए या चलाने का जिम्मा जिन राजनीतिक पार्टियों पर के पैर पकड़ लिए और फूट-फूट कर रोने महज संयोग, सेठ जी कछ ही दिनों में स्वस्थ है उनकी गतिविधियाँ तो पूर्णतः दान के सहारे लगी। रोते रोते ही उन्होंने नाक सुड़की। शेष हो गए। चलने फिरने लगे।
ही संचालित है। इसका नमूना तो दुनिया भर बची हुई को साड़ी के कोने से पोंछते हुए और फिर यहीं से आरम्भ हुई सेठ की ने अभी अभी स्पष्ट रूप से देखा-सुना है। दान बोलीं- 'अंतिम समय मेरी बात न रखोगे परेशानी! दान दें तो किसे दें? कब दें? किस के उद्देश्य में भी अब विविधता आती जा रही क्या?'
हेतु दें? ये कुछ ऐसे प्रश्न थे जिनके उत्तर सहज है। ज्यादातर लोग तो होली-दीवाली के समय सेठ ने सहसा कराहना बंद कर दिया। ही नजर नहीं आ रहे थे। इस समस्या पर सेठ भी जो चंदा देते हैं उसके पीछे लोक-कल्याण बोले- 'अंतिम समय? ये क्या कह रही हो जितना विचार करते उतना ही और उलझ की भावना कम और उपद्रवी तत्त्वों को शांत भागवान।'
जाते! शारीरिक रूप से सेठ स्वस्थ तो हो गए रखने की भावना ज्यादा मानते हैं। कई एक 'हाय! होनी को कौन रोक पाया है।' | थे पर मानसिक तनाव से ग्रस्त हो गए। मामलों में, दान देने के पीछे, संभावित कहते हुए सेठानी ने एक दुहत्तड़ अपनी छाती | यहाँ दान के संदर्भ में अपनी परम्परा परेशानियों से वर्तमान और भविष्य में बचे पर दे मारा और बाकायदा मूर्छित हो गई। | को समझ लेना समीचीन होगा। हमारा इति- रहने का उद्देश्य होता पाया गया है। और यह
सेवकों ने उन्हें सम्हाला। पानी के छींटे हास दानवीरों के आख्यानों से पटा पड़ा है। उद्देश्य जब कुछ ज्यादा प्रभावी होता है तो दिए। सेठानी ने होश में आते ही पतिचरणों पर जहाँ एक ओर शूरवीर कर्ण, राजा बलि और दान देकर कुछ लाभ उठा लेने की ओर मुड़ जकड़न बढ़ा दी। बोली- दान बोलो दान। इस हरिश्चन्द्र जैसे दान दाता हमारे पूर्वज रहे हैं जाता है। मुई दौलत में धरा क्या है। इसे कौन साथ वहीं दूसरी ओर दान लेने वालों में स्वयं अतः सेठ की द्विविधा को यदि उपलाया है और कौन साथ ले जायेगा? हाय! भगवान बावन अवतारी सर्वोपरि हैं। दान देना र्युक्त पृष्ठभूमि में देखा जाये तो सेठ का दान समय रहते बोल क्यों नहीं जाते कुछ?' इतना एक पुण्य-कार्य है। धन्य हैं वो लोग जो कि | राशि के सार्थक उपयोग को लेकर आशंकित कह वह पुनः मूर्छित हो गई।
दान दे देते हैं। अपनी कमाई का एक भारी होना, सर्वथा तर्कसंगत लगता है। कुपात्र को सेठ जी ने परिस्थिति की गंभीरता को अंश, बिना किसी प्रत्यक्ष लाभ के, अपने से दान देने से पाप का बंध होता है, ऐसा शास्त्रों भाँपा। दान बोले बिना कोई उपाय नजर नहीं अलग करने का हौसला दिखाते हैं। निश्चय ही में कहा गया है। इसलिए सेठ की यह चिंता कि आ रहा था। यों सेठ जी कभी किसी के दबाव यह एक जीवट का कार्य है जो कि केवल उनके दान दें तो किसे दें, किस हेतु दें, पूर्णतः में नहीं आए पर पत्नी की हालत पर उन्हें द्वारा किया जा सकना संभव है जिनमें मोह उचित समझी जानी चाहिए। काफी तरस आ रहा था। मजबूरी में ही सही, त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी जा चुकी बहुत सोच विचार करने के बाद भी बोले- 'सुनो भागवान, तुमने कही और हमने हो। अतः दानवीरों का सम्मान किया जाना जब सेठ को इस समस्या का हल नहीं सूझा मानी। दान हम बोल देते हैं, पर एक शर्त है।' उचित ही माना जाना चाहिए। वैसे कहते हैं कि तो उन्होंने अपने विश्वस्त मुनीम से सलाह ली।
सो क्या?' दो-चार बेसब्र स्वर इकट्ठे दान दाता उपकार नहीं करता बल्कि पुण्य- मुनीम ने तत्काल समाचार पत्रों में विज्ञापन उभरे। सेठानी को भी होश आ गया। कार्य करने का अवसर प्राप्त कर उपकृत होता देने का सुझाव दिया और तनुसार अनेक
'यदि मैं चल बसा तो दस लाख रुपये | है। और जो दान प्राप्त करता है वह उपकृत समाचार पत्रों में लोगों ने निम्नांकित विज्ञापन या इसके ऊपर जो तुम चाहो, जहाँ देना हो, | नहीं होता बल्कि दान दाता को पुण्य कमाने का पढ़ादान में दे देना। लेकिन...' कहते कहते सेठ अवसर प्रदान कर उपकार कर रहा होता है। दान देना है दस लाख रुपये की राशि। ने भयंकर रूप से खाँसना प्रारंभ कर दिया। यह उपकृत होने - करने की परम्परा, जो व्यक्ति या संस्था इस राशि का सार्थक नर्स ने फौरन सहारा देकर उन्हें अधलेटा किया समय के साथ, अपने मूल उद्देश्य से कहीं उपयोग कर सके वह दानदाता से सम्पर्क कर पर खाँसी थी कि रुकती ही नहीं थी। परिजनों बहुत आगे निकलकर अब काफी व्यापकता अपनी योजना से अवगत करावे। योजना में के मन में 'लेकिन' गड़ रहा था। कहीं ऐसा न प्राप्त कर चुकी है। दान लेने-देने की प्रथा में दान दाता के संतुष्ट होने पर ही दान दिया हो कि अब और कुछ कह ही न पायें। अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं। नए नए क्षेत्र और | जाएगा।'
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मई 2001 जिनभाषित 26 -
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