Book Title: Jinabhashita 2001 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 4
________________ विधायक की अनुशंसा पर वह इन पशुओं के | शान्ति का मार्ग : लोभ से मुक्ति परिवहन की अनुमति देता है, जबकि तहसीलदार को ऐसी अनुमति जारी करने का बहोरीबंद में आचार्य श्री विद्यासागर जी अधिकार ही नहीं है। के प्रवचन का अंश यह भी पता लगा है कि सागर में जानवरों की ट्रेन पकड़े जाने से पहले बीना संसारी प्राणी सारी दुनिया को अपने | गरमी को विशेष रूप से पाता है। हमारे जेब से कई ट्रेनें भरकर जानवर बूचड़खाने भेजे अण्डर में रखना चाहता है। जो दूसरे को | की ही गरमी इसमें कारण होती है। मन की गए थे। सागर में आम नागरिकों की अण्डर में रखने की चाह रखता है, उसके | गरमी के कारण भीषण गरमी भोगने को जागरूकता के कारण कसाइयों में भय व्याप्त परिणाम ऐसे होते हैं कि उसके लिए विशेष | मिलती है। इस मन की गरमी के कारण बहुत है। सागर के कार्यकर्ता बीना-सागर रेल मार्ग रूप से अण्डरग्राउण्ड की व्यवस्था होती है। । बड़ा विस्फोट हो सकता है, जो सारी दुनिया | में कुछ समय में हाहाकार मचा सकता है। नीचे के नरक रूपी अण्डर ग्राउण्ड की पर बाकायदा निगरानी कर रहे हैं। 'आचार्य व्यवस्था वह करता है। यह व्यवस्था किस | लोभ व्यक्ति के लिये भटकाता है। विद्यासागर गोसंवर्धन केन्द्र' के उपाध्यक्ष कारण से होती है? तो लोभ के कारण होती आप जैसा लोभ करोगे तो वैसा ही फल महेश जैन बिलहरा, सुरेन्द्र जैन मालथौन तथा है। एक विषयों का लोभ होता है, दूसरा आत्म पाओगे। धर्म का लोभ होता, दूसरा धन का ऋषभ जैन मड़ावरा ने कहा कि आचार्य श्री संपदा को पाने का लोभ होता है। आत्मसंपदा लोभ होता है। जैसे पुलिस होती है वह आपको विद्यासागर जी ने हमें जीवरक्षा का संदेश का लोभ हमारे लिये ऊपरी स्वर्गरूपी जेल भी ले जाती है, तो आपकी सुरक्षा भी दिया है इसलिये हम कोई भी कुर्बानी देकर व्ही.आई.पी. व्यवस्था देता है। लेकिन करती है। हमें जितनी आवश्यकता है, हम इन जानवरों की रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि विषयों का लोभ हमें नीचे की व्ही.आई.पी. उतना ही अपने पास रखें। आवश्यकता से सागर के आम नागरिकों के सहयोग से हम व्यवस्था का देनेवाला होता है। अपने जीवन अधिक हम रखेंगे तो वह हमारे लिये अशांति इन जानवरों के लिये चारा पानी की व्यवस्था में जड़ का संग्रह तो है, और हीरे, जवाहरात का कारण ही बनेगा। लोभ एक सीमा तक हो कर रहे हैं। यदि इस तरह अन्य जानवर भी आदि का संग्रह करते हैं, इससे आत्मिक तो ठीक है। लेकिन महाराजजी! जब ये आ बूचड़खाने जाने से रोके जाते हैं तो हम उनकी शांति की प्राप्ति नहीं होती है। आत्मिक शांति जाता है तो उस समय महाराज भी याद नहीं भी सुरक्षा अपने केन्द्र में करेंगे। उन्होंने बताया तो रत्न त्रय रूपी रत्नों को ग्रहण करने से ही रहते हैं। महाराज की तो बात अलग हैं कि केन्द्र की 90 गौशालाएँ अलग अलग प्राप्ति होती है। जड़ वस्तु के संग्रह से रागद्वेष, भगवान भी नहीं दिखते हैं। इस लोभ के शहरों में संचालित हो रही है, जहाँ इन मोह लाभ, कषाय आदि होते हैं जो हमारी कारण ही सारी दुनिया हैरान है। लोग आक जानवरों को भेजे जाने की योजना है। अशांति के कारण है। और रत्नत्रय रूपी कहते हैं, महाराज घर में सब कुछ है धन है, संकल्प के माध्यम से राग द्वेष, मोह, माया धान्य है, नौकर, चाकर, बेटा, बेटी सब है, सागर जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष आदि समाप्त होते हैं। लेकिन शांति नहीं है। पहले सब कुछ था स्वदेश जैन गुड्डु एवं एडव्होकेट श्री विरधीचंद व्यक्ति का लोभ ही व्यक्ति के लिये लेकिन जब से लक्ष्मी देवी घर में आई है तब जैन ने राज्य सरकार से बीना में पशुतस्करी अशान्ति का कारण होता है। यह जड़ वस्तु से ही अशांति हुई है। आप ऐसा आशीर्वाद रोकने के लिये एक निगरानी दस्ता तैनात को ऐसे जकड़ रखता है जैसे एक बंदर लोभ दे दो जिससे हमें शान्ति प्राप्त हो जाये। आज करने की माँग की है। के कारण अपनी प्रिय वस्तु चने का लोभ कर अमेरिका जैसा राष्ट्र सबसे बड़ा है। वहाँ पर भोपाल में श्री दिगम्बर जैन मुन संघ एक घर की छत पर गया। देखा एक घड़े में यदि सबसे महंगी वस्तु है तो वह नींद है। सेवा समिति ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चने रखे थे। प्रिय वस्तु के लोभ में आकर नींद के लिये वहाँ के लोग नींद की गोलियों पशुतस्करी की उच्चस्तरीय जाँच कराने, हाथ डाल देता है। इधर-उधर देखता है कोई की फाकी लेते हैं। उन्हें नींद नहीं आती, मूर्छा कुरवाई के पशु चिकित्सक तथा तहसीलदार पकड़ न ले, देख न ले, और बहुत से चनों आती है। जहाँ पर सबसे अधिक धन होगा, को निलम्बित करने तथा तस्करी में सहयोग को मुट्ठी में बांध लेता है। हाथ फंस जाता है वहाँ पर ऐसा ही होता है। वहाँ सबसे अधिक व समझता है कि किसी ने पकड़ लिया है। अशान्ति रहेगी। इस धन के कारण एक दूसरे देने वाले बीना के रेलवे कर्मचारियों पर घड़े में कौन बैठा है मुझे किसी ने पकड़ लिया के प्रति कृतज्ञता भी नहीं रखते हैं। बेटा भी आपराधिक प्रकरण कायम करने की माँग की । है। वह बंदरों की टीम को आवाज देता है। बाप को भूल जाता है। कृतज्ञता ऐसा गुण है आकर कुछ बंदर उसे अपनी प्रिय वस्तु को - जिसे आचार्यों ने कहा - रेत के ढेर में जैसे मुनिसंघ-सेवासमिति ने भोपाल रेल छोड़ने को कहते है। छोड़ता तो हाथ बाहर आ हीरे की कणिका मिलना दुर्लभ है वैसे ही ये मंडल प्रबंधक को भी पत्र लिखकर कहा है जाता है। उसे किसी ने पकड़ा नहीं था स्वयं कृतज्ञता रूपी गुण दुर्लभ होता है। जो धन कि पशुतस्करी में रेल का उपयोग प्रतिबंधित के लोभ ने उसे पकड़ था। उसके पास जेब के कारण व्यक्ति के अंदर से समाप्त हो जाता करें, पशुपरिवहन के लिये नियमानुसार ही रेल तो नहीं थी लेकिन आप सभी लोग जेबवाले | है। आप लोग अपनी बुद्धि को ठीक करें, उपलब्ध करायें, साथ ही बीना के जिन रेल हैं। इसलिये आप लोगों के समाने बोलयाँ अपनी शान्ति के लिये जड़ के लोभ का त्याग कर्मचारियों ने स्वार्थ में अंधे होकर कसाइयों । लगाते हैं। क्योंकि जेब से बाहर कैसे निकाला | करें, हम भगवान शान्ति नाथ से यही प्रार्थना की मदद की है उन्हें दंडित करें। जाये। क्योंकि जिसको अपने जेब की गरमी | करते हैं। आप लोग लोभ की पकड़ से मुक्त रवीन्द्र जैन अधिक होती है, वह व्यक्ति नरक रूपी शुद्ध | रहें, तो निश्चित रूप से शांति को पायेंगे। मई 2001 जिनभाषित 2 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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