Book Title: Jina Vachan
Author(s): Ramanlal C Shah
Publisher: Mumbai Jain Yuvak Sangh

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Page 8
________________ Verse No. Verse 121. समाए पेहाए परिव्ययंतो (द. 2-4) 152. निसन्ते सिया अमुहरी (उ. 1-8) 122. आउक्खयं चेव अबुज्झमाणे (सू. 1-10-18) 153. आलवंते लवंते वा (उ. 1-21) 123. पणीयं भत्तपाणं तु (उ. 16-7) 154. आणानिद्देसकरे (उ. 1-2) 124. जहा बिडालावसहस्स मूले (उ. 32-13) 155. जे आयरियउवज्झायाणं (द. 9-(2)-12) 125. खेत्त वत्युं हिरण्णं च (उ. 19-17) 156. जहा अग्गिसिहा दित्ता (उ. 19-39) 126. थावरं जंगमं देव (उ. 6-6) 157. जहा दुक्खं भरेउं जे (उ. 19-41) 127. वालुयाकवले वेव (उ. 19-37) 158. नापुट्ठो वागरे किंचि (उ. 1-14) 128. जहा भुयाहिं तरिउं (उ. 19-42) 159. मणगुत्तयाए णं भंते (उ. 29-53) 129. जो सहस्सं सहस्साणं (उ. 9-40) 160. वयगुत्तयाए णं भंते (उ. 29-54) 130. दाराणि च सुया चेव (उ. 18-14) 161. कायगुत्तयाए णं भंते (उ. 29-55) 131. नीहरन्ति मयं पुत्ता (उ. 18-15) 162. सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकंपी (उ. 21-13) 132. एगब्भूए अरण्णे वा (उ. 19-77) 163. बहुं सुणेई कण्णेहिं (द. 8-20) 133. सव्वं जगं जइ तुहं (उ. 14-39) 164. अस्थि एगं धुवं ठाणं (उ. 23-81) 134. माया पिया ण्हुसा भाया (उ. 6-3) 165. अलोलुए अक्कुहए (द. 9-(3)-10) 135. जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं (उ. 14-27) 166. मुसं परिहरे भिक्खू (उ. 1-24) 136. जहा सूई ससुत्ता (उ. 29-59) 167. समरेसु अगारेसु (उ. 1-26) 137. कोहे माणे माया लोभे (प्र. भाष्य) 168. अणुसासिओ न कुप्पेज्जा (उ. 1-9) 138. पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि (आ. 1-3-3) 169. मणपल्हाय जणणिं (उ. 16-4) 139. रमए पंडिए सासं (उ. 1-37) 170. विरई अबंभचेरस्स (उ. 19-29) 140. संसयं खलु सो कुणई (उ. 9-26) 171. जया कम्मं खवित्ताणं (द. 4-25) 141. न वि मुंडिएणं समणो (उ. 25-31) 172. जया जीवमजीवे या (द. 4-37) 142. समयाए समणो होइ (उ. 25-32) 173. रागो य दोसो वि य (उ. 32-7) 143. जिणवयणे अणुरत्ता (उ. 36-259) 174. तं ठाणं सासयं वासं (उ. 23-84) 144. कोहविजएणं भन्ते (उ. 29-67) 175. न रूय-लावण्ण-विलास हासं (उ. 32-14) 145. माणविजएणं भन्ते (उ. 29-68) 176. धम्मलद्धं मियं काले (उ. 16-8) 146. मायाविजएणं भन्ते (उ. 29-69) 177. बहुं खु मुणिणो भदं (उ. 9-16) 147. लोभविजएणं भन्ते (उ. 29-70) 178. तं देहवासं असुइं (द. 10-21) 148. न चित्ता तायए भासा (उ. 6-11) 179. चत्तपुत्तकलत्तस्स (उ. 9-15) 149. सुणिया भावं साणस्स (उ. 1-6) 180. न य वुग्गहियं कहं (द. 10-10) 150. अमणुनसमुप्पायं (सू. 1-3-10) 181. अहिसं सच्चं च अतेणगं च (उ. 21-12) 151. धम्मज्जियं च ववहारं (उ. 1-42) 182. इमं च मे अस्थि (उ. 14-15) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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