Book Title: Jina Vachan Author(s): Ramanlal C Shah Publisher: Mumbai Jain Yuvak Sangh View full book textPage 7
________________ No. No. Verse 59. पंचिदियाणि कोहं माणं (उ. 9-36) 60. जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं (उ. 19-11) 61. जहा कुम्मे सअंगाई (सू. 1-8-16) 62. वित्तं पसवो य नाइओ (सू. 2-3-16) 63. सयं सयं पसंसंता (सू. 1-2-23) 64. सयं तिवायए पाणे (सू. 1-1-3) 65. साहरे हत्थपाए य (सू. 1-8-17) 66. संबुज्झमाणे उ णरे मइमं (सू. 1-10-21) 67. सव्वाहि अणुजुत्तीहि (सू. 1-11-9) 68. पभू दोसे निराकिच्चा (सू. 1-11-12) 69. ण कम्मुणा कम्म खवेन्ति (सू. 1-12-15) 70. भासमाणो ण भासेज्जा (सू. 1-9-25) 71. जो जीवे वि न याणति (द. 4-35) 72. जो जीवे वि वियाणति (द. 4-36) 73. जे य चंडे मिए थद्धे (द. 9-(2)-3) 74. पढमं नाणं तओ दया (द. 4-33) 75. सव्वे पाणा पियाउया (आ. 1-2-3) 76. एक्कं पि बंभचेरे जंमिय (प्र. 4-1) 77. पूयणट्टा जसोकामी (द. 5-(2)-35) 78. अबंभचरियं घोरं (द. 6-16) 79. जहा कुक्कुड पोयस्स (द. 8-53) 80. अप्पत्तियं जेण सिया (द. 8-47) 81. विभूसा इस्थिसंसग्गी (द. 8-56) 82. चित्तभित्तिं न निज्झाये (द. 8-54) 83. आयावयाही चय सोगुमल्लं (द. 2-5) 84. सुरं वा मेरगं वा वि (द. 5-(2)-36) 85. हत्थपायपइच्छित्रं (द. 8-55) 86. खवेत्ता पूर्वकम्माइं (द. 3-15) 87. जइ तं काहिसी भावं (द. 2-9) 88. तेणे जहा संधिमुहे गहीए (उ. 4-3) 89. कसिणं पि जो इमं लोयं (उ. 8-16) Verse 90. अहे वयइ कोहेणं (उ. 9-54) 91. दुमपत्तए पंडुयए जहा (उ. 10-1) 92. कणकुंडगं जहित्ताणं (उ. 1-5) 93. सद्दे रुवे य गंधे य (उ. 16-12) 94. न तं अरी कंठछेत्ता करेइ (उ. 20-48) 95. जहा सूणी पूइक्कणी (उ. 1-4) 96. पुरिसो ! रम पावकम्णा (सू. 2-1-10) 97. संबुज्झह किं न बुज्झह (सू. 2-1-1) 98. दहरा बुड्ढाय पासह (सू. 2-1-2) 99. जे य बुद्धा अतिक्कंता (सू. 1-11-36) 100. जसं किर्ती सिलोगं च (सू. 1-9-22) 101. अहं पंचहि ठाणेहिं (उ. 11-3) 102. सीह जहा खुड्डमिगा चरंता (सू. 1-10-20) 103. वेराइं कुब्वइ वेरी (सू. 1-8-7) 104. मणसा वयसा चेव (स. 1-8-6) 105. माइणो कट्ट माया (सू. 1-8-5) 106. सव्वे सयकम्मकप्पिया (सू. 1-2-3-18) 107. कामेहि य संथवेहि (सू. 1-2-1-6) 108. अष्भागमितंमि वा दुहे (सू. 1-2-3-17) 109. मा पच्छ असाहुया भवे (सू. 1-2-3-7) 110. गमिणं जगई पुढो जगा (सू. 1-2-1-4) 111. जे इह सायागुणा नरा (सू. 1-2-3-4) 112. अधुवं जीवियं नच्चा (द. 8-34) 113. सक्का सहेडं आसाए कंटया (द. 9-(3)-6) 114. मुसावाओ य लोगम्मि (द. 6-12) 115. न बाहिरं परिभवे (द. 8-30) 116. अवण्णवायं च परम्मुहस्स (द. 9-(3)-9) 117. तवतेणे वइतेणे (द. 5-(2)-46) 118. तहेवं दहरं व महल्लगं वा (द. 9-(3)-12) 119. समावयंता वयणाभिधाया (द. 9-(3)-8) 120. अंग-पच्चंगसंठाणं (द. 8-57) F Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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