Book Title: Jina Vachan
Author(s): Ramanlal C Shah
Publisher: Mumbai Jain Yuvak Sangh

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Page 6
________________ INDEX [ द-दसवैकालिक, उ-उत्तराध्ययन, सू-सूत्रकृतांग, आ आचारांग, प्र=प्रश्न व्याकरण ] No. Verse No. Verse 1.धम्मो मंगलमुक्किळं (द. 1-1) 30. वरं मे अप्पा दंतो (उ. 1-16) 2. से जाणमजाणं वा (द. 8-31) 31. आहच्च सवणं लद्धं (उ. 3-9) 3. सोच्चा जाणइ कल्लाणं (द. 4-11) 32. अप्पाणमेव जुज्झाहि (उ.9-35) 4. जावंति लोए पाणा (द. 6-9) 33. जो सहस्सं सहस्साणं (उ. 9-34) 5. गुणेहिं साहू अगुणेहिं 5 साहू (द. 9 (3) - 11) 34. जा जा वच्चइ रयणी (उ. 14-25) 6. मुहुत्त दुक्खा हु हवंति कंटया (द. 9 (3) - 7) 35. अप्पा कत्ता विकत्ता य (उ. 20-27) 7. जा य सच्चा अवत्तव्वा (द. 7-2) 36. अप्पा चेव दमेयव्वो (उ. 1-15) 8. वत्स्यगंधमलंकारं (द. 2-2) 37. न लब्वेज पुट्ठो सावज्जं (उ. 1-25) 9. जेय कंते पिए भोए (द. 2-3) 38. माणुस्सं विग्गहं लद्धं (उ. 3-8) 10. सव्वे जीवा वि इच्छंति (द. 6-10) 39. सुइं च लड़े सुद्धं च (उ. 3-10) 11. अप्पणट्ठा परट्ठा वा (द. 6-11) 40. चउरंगं दुल्लहं मत्ता (उ. 3-20) 12. वितहं पि तहामुत्तिं (द. 7-5) 41. जहा लाभो तहा लोभो (उ. 8-17) 13. तहेव फरसा भासा (द. 7-11) 42. सुवण्णरुपस्स उ पव्वया भवे (उ. 9-48) 14. असच्चमोसं सच्चं च (द. 7-3) 43. अप्पा नदी वेयरणी (उ. 20-36) 15. तहेव काणं काणे त्ति (द. 7-12) 44. खणमेत्तसोक्खा (उ. 14-13) 16. कोहो पीइं पणासेइ (द. 8-37) 45. शरीरमाहु नाव त्ति (उ. 23-73) 17. कोहं माणं च मायं च (द. 8-36) 46. अहिंसं सच्चं च अतेणयं च (उ. 21-12) 18. उवसमेण हणे कोहं (द. 8-38) 47. नाणेण जाणई भावे (उ. 28-35) 19. अपुच्छिओ न भासेज्जा (द. 8-47) 48. रागो य दोसो वि य कम्म बीयं (उ. 32-7) 20. जरा जाव न पीलेई (द. 8-35) 49. जहा य अंडप्पभावा बलागा (उ. 32-6) 21. तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा (द. 7-54) 50. तस्सेण मग्गो गुरु-विद्धसेवा (उ. 32-3) 22. जयं चरे जयं चिठे (द. 4-31) 51. पाणीवह-मुसावाया (उ. 30-2) 23. चित्तमंतमचित्तं वा (द. 6-13) 52. आहच्च चंडालियं कट्ट (उ. 1-11) 24. दिठं मियं असंदिद्धं (द. 8-48) 53. सोही उज्जुयभूयस्स (उ. 3-12) 25. स-वक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी (द. 7-55) 54. एवं खु नाणिणो सारं (सू. 1-4-10) 26. समया सव्वभूएसु (उ. 19-26) 55. माणुसत्तम्मि आयायो (उ. 3-11) 27. दंतसोहणमाइस्स (उ. 19-28) 56. जे पावकम्मेहि घणं मणुस्सा (उ. 4-2) 28. चत्तारि परमंगाणि (उ. 3-1) 57. अज्झत्यं सव्वओ सव्वं (उ. 6-6) 29. नाणं च दंसणं चेव (उ. 28-3) 58. न हु पाणवहं अणुजाणे (उ. 8-8) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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