Book Title: Jeev Vichar Prakaran Author(s): Manitprabhsagar Publisher: ManitprabhsagarPage 11
________________ SHOTTEENSHease जीव विचार प्रकरण SERIES क्योंकि जीव विचार की गाथाओं में कई बातें नहीं भी हैं / पर तुम्हें जीव से संबंधित हर तथ्य को इसमें डाल देना है ताकि यह अपने आप में पूर्ण बन सके। और मैं यह देख कर हैरान हूँ कि मात्र 51 गाथाओं की विवेचना और उसके विषय-स्पष्टीकरण के लिये इसने 275 से अधिक पृष्ठ भरे हैं। इसमें बहुत सारा विषय नवतत्त्व, कर्मग्रन्थ आदि का भी आ गया है। पर इसमें कोई समस्या नहीं। क्योंकि लक्ष्य था कि जीव से संबंधित कोई भी विषय बाकी नहीं रहना चाहिये। तत्त्व मुनि मनितप्रभ का अति प्रिय विषय है। तत्त्वज्ञान की पुस्तक को वह उपन्यास की भाँति पढता है। उपन्यास की उपमा उचित नहीं है क्योंकि बाल जीवों को ही उपन्यास में रस आता है। साधकों को तो तत्त्वज्ञान में ही रस आता है। चिंतन तो काफी समय से चल ही रहा था कि अपनी पाठशालाओं के लिये एक पाठ्यक्रम तैयार किया जाय / पर अन्यान्य विषयों में प्रवृत्ति होने से संभव नहीं हो पया। बेंगलोर में बहिन विद्युत्प्रभा आदि के साथ पाठशाला के विषय पर थोडी गहन चर्चा हुई। श्री तेजराजजी गुलेच्छा आदि श्रावों के साथ लम्बा विचार विमर्श चला। परिणामत: यह निर्णय किया गया कि तत्त्वज्ञान की प्रारंभिक पुस्तकें पाठशाला के आधार पर तैयार करवाई जाय जिसमें संबंधित विषय का पूरा खुलाशा हो। Pi.. H :: : . ' ' A .. पर वाचना पतताय काफी साधु-साध्वियों से इस विषय पर चर्चा कर निर्णय लिया गया। PIC पारणा तप्रभ ने बह ल्प समय विचार पर एक सर्वोत्तम पुस्तक तैयार की है। मनितप्रभ अप्रमादी है, ज्ञानवादी हैं, क्रियावादी है। उसके हर व्यवहार में साधुता टपकती है। समय पर उसका अपना नियंत्रण है। और इस कारण वह समय का लगातार मालिक हो रहा है। अपने समय के पूरे सदुपयोग का उससे अच्छा उदाहरण नजर नहीं आ सकता। यह पुस्तक उपयोगी बने और मनित नित नई सर्जना करता रहे, यही मेरी शुभकामना है। (मणिप्रभसागर)Page Navigation
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